ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें |
ब्लॉग संख्या :-248
(१)
मन के भावों को कागज में उतारना
ये ही लेखन कहलाता,
भाषा और शैली का ठीक प्रयोग
लेखन की शोभा को ओर बढ़ाता |
लेखनी की अगर तेज होगी धार,
तभी लेखन होगा असरदार |
चित्रलेखन,निबंधलेखन,कवितालेखनआदि,
लेखन के अनेक प्रकार |
पहले अनुसरण करें बार ,बार तभी
लेखन को दें सुन्दर आकार |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
ये ही लेखन कहलाता,
भाषा और शैली का ठीक प्रयोग
लेखन की शोभा को ओर बढ़ाता |
लेखनी की अगर तेज होगी धार,
तभी लेखन होगा असरदार |
चित्रलेखन,निबंधलेखन,कवितालेखनआदि,
लेखन के अनेक प्रकार |
पहले अनुसरण करें बार ,बार तभी
लेखन को दें सुन्दर आकार |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
(2)
क्रिसमस का पर्व आया,
बच्चों में खुशियाँ लाया,
सांता का सबको इंतजार,
देगा सबको वो उपहार |
गिरिजाघरों में भीड़ लगी है,
यीशु का जन्मदिन आज है,
चांद, सितारों की रोशनी है,
मन में सबके उत्साह भरा है |
प्लम केक मुख्य उपहार,
एक दूजे को सब देंगे आज,
परमेश्वर की यही है माया,
यीशु रूप में लिया अवतार |
दुनियां में खुशियां बांटी,
खुद को मिला दु:ख का सागर,
खूब सहे उन्होंने अत्याचार,
शांति का पढ़ा गये यीशु पाठ |
काम उन्होंने किये महान,
मसीहा बनकर थे वो आये,
दु:ख संसार के सारे अपनाये,
तभी ईसामसीह वो कहलाये |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
बच्चों में खुशियाँ लाया,
सांता का सबको इंतजार,
देगा सबको वो उपहार |
गिरिजाघरों में भीड़ लगी है,
यीशु का जन्मदिन आज है,
चांद, सितारों की रोशनी है,
मन में सबके उत्साह भरा है |
प्लम केक मुख्य उपहार,
एक दूजे को सब देंगे आज,
परमेश्वर की यही है माया,
यीशु रूप में लिया अवतार |
दुनियां में खुशियां बांटी,
खुद को मिला दु:ख का सागर,
खूब सहे उन्होंने अत्याचार,
शांति का पढ़ा गये यीशु पाठ |
काम उन्होंने किये महान,
मसीहा बनकर थे वो आये,
दु:ख संसार के सारे अपनाये,
तभी ईसामसीह वो कहलाये |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
क्रिसमस की मची हैं हर तरफ धूम
बच्चे बड़े सब नाचे गाये मचाये धूम
सांता का करें सब बेसब्री से इंतजार
लायेगा उनके लिये सुन्दर प्यारे उपहार .
मौसम हैं सर्द सुहावना
अच्छा मौका दिया हैं ईश्वर ने खुशियाँ मनाने का
आया हैं साथ में नववर्ष
छाया हैं हर तरफ उल्लास और हर्ष.
आओ हम मिलजुलकर सब खुशियाँ बाँटें
प्रेम प्यार से एकदूसरे को गले लगायें
जीवन में प्रेम के सुमन खिलायें
क्रिसमस के संग खुशियों के दीप जलायें.
स्वरचित:- रीता बिष्ट
बच्चे बड़े सब नाचे गाये मचाये धूम
सांता का करें सब बेसब्री से इंतजार
लायेगा उनके लिये सुन्दर प्यारे उपहार .
मौसम हैं सर्द सुहावना
अच्छा मौका दिया हैं ईश्वर ने खुशियाँ मनाने का
आया हैं साथ में नववर्ष
छाया हैं हर तरफ उल्लास और हर्ष.
आओ हम मिलजुलकर सब खुशियाँ बाँटें
प्रेम प्यार से एकदूसरे को गले लगायें
जीवन में प्रेम के सुमन खिलायें
क्रिसमस के संग खुशियों के दीप जलायें.
स्वरचित:- रीता बिष्ट
विधा- बंधन मुक्त द्विपदिका
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
लेखनी तलवार को भी काट सकती है !
लेखनी हर वार को भी छांट सकती है !
लेखनी के तेज से सिंहासन हिल जाते है !
इसके वेग से दुश्मन भी मिट्टी में मिल जाते है!!
लेखनी निर्भीक हो विनाश का नाश करती है !
अंधियारे में चमकता प्रकाश करती है ! !
लेखनी पथ प्रर्दशक बन देती नया परिवेश !
लेखनी समृद्ध बनाती है अपना प्यारा देश !!
लेखनी विश्वास है ,लेखनी एक आस है !
लेखनी को निखारते रहे , यही श्वाँस है !!
लेखनी पवित्र गंगा सा तट एक आकाश है !
लेखनी हम सब का आत्म विश्वास है !!
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
लेखनी तलवार को भी काट सकती है !
लेखनी हर वार को भी छांट सकती है !
लेखनी के तेज से सिंहासन हिल जाते है !
इसके वेग से दुश्मन भी मिट्टी में मिल जाते है!!
लेखनी निर्भीक हो विनाश का नाश करती है !
अंधियारे में चमकता प्रकाश करती है ! !
लेखनी पथ प्रर्दशक बन देती नया परिवेश !
लेखनी समृद्ध बनाती है अपना प्यारा देश !!
लेखनी विश्वास है ,लेखनी एक आस है !
लेखनी को निखारते रहे , यही श्वाँस है !!
लेखनी पवित्र गंगा सा तट एक आकाश है !
लेखनी हम सब का आत्म विश्वास है !!
(१)
प्रहलाद मराठा
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
रचना मौलिक स्वयं रचित सर्व अधिकार सुरक्षित
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
रचना मौलिक स्वयं रचित सर्व अधिकार सुरक्षित
कैसे कहूँ लेखनी सिर्फ प्यार लिखती है
जरूरत पड़ने पर यह अंगार लिखती है ।।
सताये हुओं के आँसुओं की धार लिखती है
जिन्दगी की उलझनें यह हजार लिखती है ।।
उलझनों को सुलझाने के अशआर लिखती है
इंसान के प्रति इंसान का यह प्यार लिखती है ।।
खिजांओं में भी रहे जो वो बहार लिखती है
देश के दुशमनों को यह हुंकार लिखती है ।।
हर हाल में लेखनी चमत्कार लिखती है
लोक परलोक बनाने का आधार लिखती है ।।
प्रकृति का सुन्दर सुमधुर श्रंगार लिखती है
परम सुख का ''शिवम्" यह सार लिखती है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
जरूरत पड़ने पर यह अंगार लिखती है ।।
सताये हुओं के आँसुओं की धार लिखती है
जिन्दगी की उलझनें यह हजार लिखती है ।।
उलझनों को सुलझाने के अशआर लिखती है
इंसान के प्रति इंसान का यह प्यार लिखती है ।।
खिजांओं में भी रहे जो वो बहार लिखती है
देश के दुशमनों को यह हुंकार लिखती है ।।
हर हाल में लेखनी चमत्कार लिखती है
लोक परलोक बनाने का आधार लिखती है ।।
प्रकृति का सुन्दर सुमधुर श्रंगार लिखती है
परम सुख का ''शिवम्" यह सार लिखती है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
(2)
प्रस्तुत है माननीय अटल बिहारी बाजपेयी जी के अवतरण दिवस पर एक कविता
अटल जी ने अटल इरादे से वो मुकाम छुआ
जिसको छूने वाला अब तक न कोई हुआ ।।
कवि ह्रदय होते हुये राजनीति का शीर्ष पद
वाकई काबिले तारीफ है और प्रेरणाप्रद ।।
किन मुश्किलों से हुआ होगा उनका सामना
किन परिस्थतिंयों का पडा़ होगा दामन थामना ।।
कवियों को एकाकीपसंद कहने वालों को जबाव
सचमुच कवि विरादरी के थे वो एक आफताब ।।
अदभुत प्रतिभा का परिचायक उनका व्यक्तित्व
सदियों तक याद किया जायेगा उनका कृतित्व ।।
कौन कर सकता उनकी श्रेष्ठता का बखान
लिख गये ''शिवम" तरक्की का नया सोपान ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
अटल जी ने अटल इरादे से वो मुकाम छुआ
जिसको छूने वाला अब तक न कोई हुआ ।।
कवि ह्रदय होते हुये राजनीति का शीर्ष पद
वाकई काबिले तारीफ है और प्रेरणाप्रद ।।
किन मुश्किलों से हुआ होगा उनका सामना
किन परिस्थतिंयों का पडा़ होगा दामन थामना ।।
कवियों को एकाकीपसंद कहने वालों को जबाव
सचमुच कवि विरादरी के थे वो एक आफताब ।।
अदभुत प्रतिभा का परिचायक उनका व्यक्तित्व
सदियों तक याद किया जायेगा उनका कृतित्व ।।
कौन कर सकता उनकी श्रेष्ठता का बखान
लिख गये ''शिवम" तरक्की का नया सोपान ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
(१)
सांता क्लॉज आया है
आओ प्यारे प्यारे बच्चो
देखो सांता क्लॉज आया है।
हाथ करो सारे आगे
पॉकेट में खुशियां भरकर लाया हैम
लो चिंता में डूबे लोगो
आज जी भर के आशीष पालो
आज खुद खुदा का पुत्र
रहमत बरसाने आया है।
कोई मन मे कपट नही कोई धर्म गलत नही
बस यही पाठ पढ़ाने आया है।
सांता क्लॉज का प्यार किसी एक को नही
बल्कि वो सब पर प्यार लुटाने आया है।
सब जात पात को बुलाकर
हिन्द एकता का पाठ पढ़ाने आया है।
वो स्वर्ग छोड़कर आपके साथ
क्रिसमस पर्व मनाने आया है।
स्वरचित
सुखचैन मेहरा
सांता क्लॉज आया है
आओ प्यारे प्यारे बच्चो
देखो सांता क्लॉज आया है।
हाथ करो सारे आगे
पॉकेट में खुशियां भरकर लाया हैम
लो चिंता में डूबे लोगो
आज जी भर के आशीष पालो
आज खुद खुदा का पुत्र
रहमत बरसाने आया है।
कोई मन मे कपट नही कोई धर्म गलत नही
बस यही पाठ पढ़ाने आया है।
सांता क्लॉज का प्यार किसी एक को नही
बल्कि वो सब पर प्यार लुटाने आया है।
सब जात पात को बुलाकर
हिन्द एकता का पाठ पढ़ाने आया है।
वो स्वर्ग छोड़कर आपके साथ
क्रिसमस पर्व मनाने आया है।
स्वरचित
सुखचैन मेहरा
(2)
वो अटल थे...
वो अटल थे अपने इरादों पर
सम्मान करता था विपक्ष भी
आज तक ऐसा कवि, नेता
नहीं देखा जो था निष्पक्ष ही।।
कमी पूरी नहीं होगी शायद इनकी
जमाना भी याद करेगा इन्हें हरदम
देश का सच्चा ईमानदार नेता जो है
नहीं, विपक्ष की आंखें भी होंगी नम
शत - शत नमन इस महान कवि को
जिन्होंने ने लेखनी से भी सँवारा ज़हाँ।
भारत एक प्राचीन राष्ट्र है, स्वतंत्रता इसे
ही मिली है। नए को नही। ये था कहा।
जैसे माँ की रहमतों का व्यख्यान नी हो सकता
किसी से इनकी ईमानदारी का भी नहीं होगा।
शत - शत नमन करूँ इस महान भारतरत्न को
जो शांतिप्रिय-महापुरुष था और सदा रहेगा।।
स्वरचित
सुखचैन मेहरा
वो अटल थे...
वो अटल थे अपने इरादों पर
सम्मान करता था विपक्ष भी
आज तक ऐसा कवि, नेता
नहीं देखा जो था निष्पक्ष ही।।
कमी पूरी नहीं होगी शायद इनकी
जमाना भी याद करेगा इन्हें हरदम
देश का सच्चा ईमानदार नेता जो है
नहीं, विपक्ष की आंखें भी होंगी नम
शत - शत नमन इस महान कवि को
जिन्होंने ने लेखनी से भी सँवारा ज़हाँ।
भारत एक प्राचीन राष्ट्र है, स्वतंत्रता इसे
ही मिली है। नए को नही। ये था कहा।
जैसे माँ की रहमतों का व्यख्यान नी हो सकता
किसी से इनकी ईमानदारी का भी नहीं होगा।
शत - शत नमन करूँ इस महान भारतरत्न को
जो शांतिप्रिय-महापुरुष था और सदा रहेगा।।
स्वरचित
सुखचैन मेहरा
(1)
देश का गर्व
भारत के मुकुट
"अटल" रत्न
(2)
कविता संग
राजनीति के पंक
खिले "अटल"
(3)
"अटल" नीति
राष्ट्रधर्म ऊपर
हृदय प्रीति
स्वरचित
ऋतुराज दवे
(१)
लेखन है अभिव्यक्ति
हृदयगत भावनाओं की
ऊंची उड़ान है
विचारों की
भाषा चाहे
देवनागरी हो या संस्कृत
उर्दू हो या फारसी
या हो संसार की
कोई भी भाषा
लेखन कागज पर हो
या हो भोजपत्र पर
किसी कपड़े पर, बूटे पर
या फिर किसी दीवार पर
जोड़ देता है दिलों को
लिखने वाले के हृदय - तंत्र
जुड़ जाते हैं जब
पढ़ने वाले के हृदय से
उतर जाता है लेखन किसी का
हृदयकी अतल गहराइयों में
तो सार्थक होता है लेखन
सार्थक लेखन स्याही से हो
या रंगों से
आँसुओं से हो या लहू से
छोड़ जाता है एक अमिट छाप
लेखन होता है
इतिहास का, धर्म का
अथवा समाज का
साहित्य में प्रतिपादित
नौ रसों का
जब तक होता रहेगा लेखन
जीवित रहेगी
हमारी संस्कृति
सभ्यता और परम्परायें
सरिता गर्ग
(स्व - रचित)
हृदयगत भावनाओं की
ऊंची उड़ान है
विचारों की
भाषा चाहे
देवनागरी हो या संस्कृत
उर्दू हो या फारसी
या हो संसार की
कोई भी भाषा
लेखन कागज पर हो
या हो भोजपत्र पर
किसी कपड़े पर, बूटे पर
या फिर किसी दीवार पर
जोड़ देता है दिलों को
लिखने वाले के हृदय - तंत्र
जुड़ जाते हैं जब
पढ़ने वाले के हृदय से
उतर जाता है लेखन किसी का
हृदयकी अतल गहराइयों में
तो सार्थक होता है लेखन
सार्थक लेखन स्याही से हो
या रंगों से
आँसुओं से हो या लहू से
छोड़ जाता है एक अमिट छाप
लेखन होता है
इतिहास का, धर्म का
अथवा समाज का
साहित्य में प्रतिपादित
नौ रसों का
जब तक होता रहेगा लेखन
जीवित रहेगी
हमारी संस्कृति
सभ्यता और परम्परायें
सरिता गर्ग
(स्व - रचित)
(2)
आज अटल जी के जन्मदिवस पर उन्हें शत शत नमन । उनकी कमी हमेशा रहेगी।उनके देहावसान पर लिखी अपनी एक कविता आप सब से पुनः साझा कर रही हूँ -
आँख नम है
हृदय विचलित
चल दिये
रोता बिलखता छोड़कर
यूँ अचानक
ठहर जाते
और कुछ पल
माना बहुत मसरूफ थे
तुम जिंदगी भर
पर अभी भी थी जरूरत
मार्ग दर्शन की तुम्हारे
सफर लम्बा था बहुत
इस जिंदगी का
थक गए थे तुम बहुत
हम जानते है
क्या करें लाचार हम
बस दे रहे अंतिम विदाई
नींद गहरी सो गए हो
तुम अटल
अब न जागोगे कभी
बिखर कर
इतिहास के पन्नों में
याद में रह जाओगे
बस यूं हमारी
सरिता गर्ग
आँख नम है
हृदय विचलित
चल दिये
रोता बिलखता छोड़कर
यूँ अचानक
ठहर जाते
और कुछ पल
माना बहुत मसरूफ थे
तुम जिंदगी भर
पर अभी भी थी जरूरत
मार्ग दर्शन की तुम्हारे
सफर लम्बा था बहुत
इस जिंदगी का
थक गए थे तुम बहुत
हम जानते है
क्या करें लाचार हम
बस दे रहे अंतिम विदाई
नींद गहरी सो गए हो
तुम अटल
अब न जागोगे कभी
बिखर कर
इतिहास के पन्नों में
याद में रह जाओगे
बस यूं हमारी
सरिता गर्ग
(१)
अटल
अवतरित भू पर
एक युगऋषि अरिष्टनेमि
मानव-धर्मी,राष्ट्रप्रेमी
साहित्य का मनस्वी
राजनीति का तपस्वी
एक अटल-
जो सिद्धांतों पर
बरसों तक अटल रहा
धरती पर आजकल
वो अटल न रहा
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
अवतरित भू पर
एक युगऋषि अरिष्टनेमि
मानव-धर्मी,राष्ट्रप्रेमी
साहित्य का मनस्वी
राजनीति का तपस्वी
एक अटल-
जो सिद्धांतों पर
बरसों तक अटल रहा
धरती पर आजकल
वो अटल न रहा
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
(2)
विषय-लेखन
संवेदी मन में
कुछ चुभन
सार्थक मनन
कुछ घुटन
गहन चिंतन
विचारों का मंथन
ढुलकते बन
भावों के मोती-
झर झर
लेखनी के आँसू
जज्बात है लेखन
मौन मुख से
निःसृत शब्द
कोरे पृष्ठ पर
उंगलियों का थिरकन
एक पैनापन,
तेज धार लिए
शब्दों में
अर्थ का सिंगार लिए
बोध की कांति
क्रांति का ललकार लिए
एक कर्म है लेखन
एक धर्म है लेखन
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
संवेदी मन में
कुछ चुभन
सार्थक मनन
कुछ घुटन
गहन चिंतन
विचारों का मंथन
ढुलकते बन
भावों के मोती-
झर झर
लेखनी के आँसू
जज्बात है लेखन
मौन मुख से
निःसृत शब्द
कोरे पृष्ठ पर
उंगलियों का थिरकन
एक पैनापन,
तेज धार लिए
शब्दों में
अर्थ का सिंगार लिए
बोध की कांति
क्रांति का ललकार लिए
एक कर्म है लेखन
एक धर्म है लेखन
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
विधा-हाईकु
विषय- लेखनी
१
भावो से पूर्ण
दमदार लेखनी
बताती सार
२
सत्य लेखनी
कलम तलवार
करती वार
३
भावो के फूल
लेखनी से महके
साहित्य बाग
४
लौह सी बात
लेखनी मजबूत
छोड़े असर
स्वरचित-रेखा रविदत्त
25/12/18
मंगलवार
विषय- लेखनी
१
भावो से पूर्ण
दमदार लेखनी
बताती सार
२
सत्य लेखनी
कलम तलवार
करती वार
३
भावो के फूल
लेखनी से महके
साहित्य बाग
४
लौह सी बात
लेखनी मजबूत
छोड़े असर
स्वरचित-रेखा रविदत्त
25/12/18
मंगलवार
लेखनी
मेरी लेखनी तू आज लिख !
नव प्रयाण
नव विहान
नई सोंच
हो प्रखर....!
आज दे तू नई सीख !
मेरी लेखनी तू आज लिख !
मिटे निशा
मिले दिशा
फड़फड़ाते पंख को
आज जाने दो संवर ... ! आज दे तू नई सीख !
मेरी लेखनी तू आज लिख !
कारवाँ बने नया
गम मिटे
तम मिटे
हो नित नई भोर.. !
आज दे तू नई सीख !
मेरी लेखनी तू आज लिख !
स्व रचित
उषा किरण
मेरी लेखनी तू आज लिख !
नव प्रयाण
नव विहान
नई सोंच
हो प्रखर....!
आज दे तू नई सीख !
मेरी लेखनी तू आज लिख !
मिटे निशा
मिले दिशा
फड़फड़ाते पंख को
आज जाने दो संवर ... ! आज दे तू नई सीख !
मेरी लेखनी तू आज लिख !
कारवाँ बने नया
गम मिटे
तम मिटे
हो नित नई भोर.. !
आज दे तू नई सीख !
मेरी लेखनी तू आज लिख !
स्व रचित
उषा किरण
कुछ हाइकु महान व्यक्तितत्व को समर्पित
1
करूँ नमन
हुआ अवतरण
कवि अटल
2
राष्ट्र कवि
अटल की थी छवि
जैसे हो रवि
3
वो थे अटल
महान देश प्रेमी
रहे निश्छल
4
महान नेता
अटल राजनीति
ना छल प्रीती
5
कवि महान
अटल पहचान
लेखन ज्ञान
6
करूँ प्रणाम
लेखन पहचान
श्रेष्ठ अटल
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
1
करूँ नमन
हुआ अवतरण
कवि अटल
2
राष्ट्र कवि
अटल की थी छवि
जैसे हो रवि
3
वो थे अटल
महान देश प्रेमी
रहे निश्छल
4
महान नेता
अटल राजनीति
ना छल प्रीती
5
कवि महान
अटल पहचान
लेखन ज्ञान
6
करूँ प्रणाम
लेखन पहचान
श्रेष्ठ अटल
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
लेखन
लेखन शब्दों का संसार,
समाया भावों का उद्गार,
शारदे खूब चले लेखनी
उत्तम रखूं सदा विचार।।
गागर में सागर सी बातें
न दिन देखूं न देखूं राते
कलम मेरी यूँ चलती जाए
निखरे इससे रिश्ते- नाते।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
लेखन शब्दों का संसार,
समाया भावों का उद्गार,
शारदे खूब चले लेखनी
उत्तम रखूं सदा विचार।।
गागर में सागर सी बातें
न दिन देखूं न देखूं राते
कलम मेरी यूँ चलती जाए
निखरे इससे रिश्ते- नाते।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
---------------------------
लेखन
पिरामिड
1
है
शब्द
ईकाई
गद्य पद्य
लेखन सार
अद्भुत विचार
भावों,अर्थों का हार।।
2
हो
श्रेष्ठ
सघन
सुलेखन
जाग्रत मन
कलम की धार
शब्द हो तलवार।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित मौलिक
पिरामिड
1
है
शब्द
ईकाई
गद्य पद्य
लेखन सार
अद्भुत विचार
भावों,अर्थों का हार।।
2
हो
श्रेष्ठ
सघन
सुलेखन
जाग्रत मन
कलम की धार
शब्द हो तलवार।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित मौलिक
विषय - लेखन/लेखनी
अरी ओ कलम!........तू है बड़ी कमाल।
मनोभावों को कोरे कागज पर देती तू उकार।
क्या कहूँ लेखनी तू तो है, बड़ी बेमिसाल।
लेखक के भावों को देती तू खूब सम्मान।
लेखनी अपने अद्भुत #लेखन से,
जैसा चित्र चाहे वो देती तू ,
कोरे कागज पर उतार।
कभी खिलाती किसी के हृदय में,
प्रेम के मधुर पुष्प तो,
कभी बिखेरती किसी के
चेहरे पर तबस्सुम।
कभी अपनी तीखी कटार से,
कर देती तू घायल।
अरी ओ लेखनी!...लेखन का तेरे,
हर व्यक्ति है कायल।
नौ रसों का रसास्वादन कराती,
अंतर्मन को तरह - तरह का स्वाद चखाती।
भावों के रंग बिखेर तू,
सफेद कागज को कर देती रंगीन।
हर लेखक के दिल में बसती,
लेखनी बन उसकी जीवन संगीन।
@सारिका विजयवर्गीय "वीणा"
नागपुर (महाराष्ट्र)
अरी ओ कलम!........तू है बड़ी कमाल।
मनोभावों को कोरे कागज पर देती तू उकार।
क्या कहूँ लेखनी तू तो है, बड़ी बेमिसाल।
लेखक के भावों को देती तू खूब सम्मान।
लेखनी अपने अद्भुत #लेखन से,
जैसा चित्र चाहे वो देती तू ,
कोरे कागज पर उतार।
कभी खिलाती किसी के हृदय में,
प्रेम के मधुर पुष्प तो,
कभी बिखेरती किसी के
चेहरे पर तबस्सुम।
कभी अपनी तीखी कटार से,
कर देती तू घायल।
अरी ओ लेखनी!...लेखन का तेरे,
हर व्यक्ति है कायल।
नौ रसों का रसास्वादन कराती,
अंतर्मन को तरह - तरह का स्वाद चखाती।
भावों के रंग बिखेर तू,
सफेद कागज को कर देती रंगीन।
हर लेखक के दिल में बसती,
लेखनी बन उसकी जीवन संगीन।
@सारिका विजयवर्गीय "वीणा"
नागपुर (महाराष्ट्र)
लेखन और क्रिसमस
लेखन है अभिव्यक्ति का
एक सशक्त माध्यम
इतिहास बदल दिया है इसने
भारत की आजादी का
"सर फरोशी की तमन्ना
अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना
कातिले दुश्मन में है "
लेखन ने बना दिया था मतवाला
आजादी के दीवानों को
चाहे हो दीपावली होली
ईद या क्रिसमस
हर एक की खुशी
शामिल होता है लेखन
धर्म जाति से ऊपर
उठ कर होता है लेखन
बस इन्सानियत मानवता
मित्रता का
संदेशा देता लेखन
लेख़क संतोष श्रीवास्तव भोपाल
लेखन है अभिव्यक्ति का
एक सशक्त माध्यम
इतिहास बदल दिया है इसने
भारत की आजादी का
"सर फरोशी की तमन्ना
अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना
कातिले दुश्मन में है "
लेखन ने बना दिया था मतवाला
आजादी के दीवानों को
चाहे हो दीपावली होली
ईद या क्रिसमस
हर एक की खुशी
शामिल होता है लेखन
धर्म जाति से ऊपर
उठ कर होता है लेखन
बस इन्सानियत मानवता
मित्रता का
संदेशा देता लेखन
लेख़क संतोष श्रीवास्तव भोपाल
(१)
लेखन दर्पण समाज का होता है, होती यह बड़ी भारी जिम्मेदारी है |
लेखन कोई खेल नहीं होता है,समाज से होती यह भी एक जवाबदारी है |
जब प्रहार कुरीतियों पर होता है,तब अपनी भी तो आती बारी है |
यहाँ खलनायक जो भी होता है, कभी उसके हाथ नहीं आती बाजी है |
जब सच ही हथियार होता है, तब ही झुक पाती ये दुनियाँ सारी है |
खुद्दारी ही इसका पैमाना होता है, कभी कलम नहीं झुकने वाली है |
जिससे विकसित समाज होता है,लेखन ऐसी ही होती स्याही है |
कीड़ा दुर्गुण का इससे मर जाता है, बन जाता है यह एक दवाई है |
ये उत्साहित वीरों को करता है, खूब तलवार इसने भी चमकाई है |
यह ज्ञान का दीप जलाता है,अज्ञानता नष्ट इसी ने करवायी है |
लेखन एक ऐसा शीशा होता है,जिसमे परछाईं भावनाओं की दिखती है |
लेखक व्यक्ति न रहता है,जुड़ी कितनों की आशाऐं होतीं हैं |
वो दीपक बनकर जलता है, रोशनी राष्ट्र को मिल जाती है |
दायित्व बडा़ ये होता है, इसमें नहीं चल पाती मक्कारी है |
वो दुश्मन समाज का होता है, लेखन से करता जो गद्दारी है |
साफ नीयत जो रखता है, सदा लेखन से करे वही यारी है |
ये नहीं चना चबाना होता है, होती ये एक तलवार दोधारी है |
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
लेखन दर्पण समाज का होता है, होती यह बड़ी भारी जिम्मेदारी है |
लेखन कोई खेल नहीं होता है,समाज से होती यह भी एक जवाबदारी है |
जब प्रहार कुरीतियों पर होता है,तब अपनी भी तो आती बारी है |
यहाँ खलनायक जो भी होता है, कभी उसके हाथ नहीं आती बाजी है |
जब सच ही हथियार होता है, तब ही झुक पाती ये दुनियाँ सारी है |
खुद्दारी ही इसका पैमाना होता है, कभी कलम नहीं झुकने वाली है |
जिससे विकसित समाज होता है,लेखन ऐसी ही होती स्याही है |
कीड़ा दुर्गुण का इससे मर जाता है, बन जाता है यह एक दवाई है |
ये उत्साहित वीरों को करता है, खूब तलवार इसने भी चमकाई है |
यह ज्ञान का दीप जलाता है,अज्ञानता नष्ट इसी ने करवायी है |
लेखन एक ऐसा शीशा होता है,जिसमे परछाईं भावनाओं की दिखती है |
लेखक व्यक्ति न रहता है,जुड़ी कितनों की आशाऐं होतीं हैं |
वो दीपक बनकर जलता है, रोशनी राष्ट्र को मिल जाती है |
दायित्व बडा़ ये होता है, इसमें नहीं चल पाती मक्कारी है |
वो दुश्मन समाज का होता है, लेखन से करता जो गद्दारी है |
साफ नीयत जो रखता है, सदा लेखन से करे वही यारी है |
ये नहीं चना चबाना होता है, होती ये एक तलवार दोधारी है |
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
(2)
छायीं हुईं नयीं उमंगें देखो आ रहा अब नया साल है,
बडे दिनों की आईं छुट्टियाँ छाया बच्चों में उत्साह है ।
क्रिसमस डे को मनाने का सब बच्चों को बडा चाव है,
रंग बिरंगे उपहार पाने का मन में जाग उठा भाव है ।
जन्म दिन ईसा मसीह का बना उपहारों का त्यौहार है,
यह सांता सब बच्चों के लिए होता सपनों का संसार है ।
केक मिठाई और खिलौने इसकी झोली बड़ी विशाल है,
हरेक मुराद होती पूरी हम सबका रहता यही खयाल है।
आओ माँग लें हम भी एकता हमें करना यही प्रयास है ,
सद्भावना ही त्यौहारों का मकसद करना यही प्रसार है।
अनेकता में एकता की भारत ही बना हुआ मिशाल है ,
बडी़ प्राचीन संस्कृति अपनी अपना भारत देश महान है |
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
छायीं हुईं नयीं उमंगें देखो आ रहा अब नया साल है,
बडे दिनों की आईं छुट्टियाँ छाया बच्चों में उत्साह है ।
क्रिसमस डे को मनाने का सब बच्चों को बडा चाव है,
रंग बिरंगे उपहार पाने का मन में जाग उठा भाव है ।
जन्म दिन ईसा मसीह का बना उपहारों का त्यौहार है,
यह सांता सब बच्चों के लिए होता सपनों का संसार है ।
केक मिठाई और खिलौने इसकी झोली बड़ी विशाल है,
हरेक मुराद होती पूरी हम सबका रहता यही खयाल है।
आओ माँग लें हम भी एकता हमें करना यही प्रयास है ,
सद्भावना ही त्यौहारों का मकसद करना यही प्रसार है।
अनेकता में एकता की भारत ही बना हुआ मिशाल है ,
बडी़ प्राचीन संस्कृति अपनी अपना भारत देश महान है |
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
गता$र्क ९ का संक्रांति माह का।
मूलार्क्ष ध्वज का प्रतिमानक है।
सकल धरा पर शुभ के हेतू ।।
पूजन उत्तम तुलसीबिरवा है।
लोक कल्याणी पावन दायनी।
नित शुभ नित मंगलकारणी ।
मनो उद्गिनता तत्क्षण हरती।
शीत प्रकृति जनित उपद्रव।
तत्क्षण हरती तत्क्षण हरती।
धनु के१५ मकर२५ शीतऋतु।
कठिन जाड़े के दिन ४०।
तुलसीपूजन तुलसीरोपण।
उत्तम् है उत्तम् है सर्वोत्तम है।
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
स्वरचितः
राजेन्द्र कुमार अमरा।
मूलार्क्ष ध्वज का प्रतिमानक है।
सकल धरा पर शुभ के हेतू ।।
पूजन उत्तम तुलसीबिरवा है।
लोक कल्याणी पावन दायनी।
नित शुभ नित मंगलकारणी ।
मनो उद्गिनता तत्क्षण हरती।
शीत प्रकृति जनित उपद्रव।
तत्क्षण हरती तत्क्षण हरती।
धनु के१५ मकर२५ शीतऋतु।
कठिन जाड़े के दिन ४०।
तुलसीपूजन तुलसीरोपण।
उत्तम् है उत्तम् है सर्वोत्तम है।
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
स्वरचितः
राजेन्द्र कुमार अमरा।
हाइकु
१
लेखन कला
मानव रचयिता
पठन ज्ञान
२
कलम लिखे
लेखन भाव प्रिय
मानव पढे
३
सुलेख लिखें
सुधरता लेखन
प्रशंसा मिले
४
मन पुकारे
लेखन अभिव्यक्ति
हर्ष दिलाये
(अशोक राय वत्स)
स्वरचित , जयपुर
१
लेखन कला
मानव रचयिता
पठन ज्ञान
२
कलम लिखे
लेखन भाव प्रिय
मानव पढे
३
सुलेख लिखें
सुधरता लेखन
प्रशंसा मिले
४
मन पुकारे
लेखन अभिव्यक्ति
हर्ष दिलाये
(अशोक राय वत्स)
स्वरचित , जयपुर
लेखन करना अधिकार हमारा
साहित्य सृजन हम करते हैं।
अपने मनोभावों को लिख कर,
हम बाहर उत्सर्जन करते हैं।
जो सुखद भाव उतारें कागज पर,
वह साहित्य अमर हो जाता है।
जब जी चाहेंगी पीढियां देखेंगी,
सद साहित्य स्वर्णिम हो जाता है।
लेखन अनेक विधाओं का होता।
सृजन बहुत फनकारों का होता।
कलाकार कलाकारी करते यहां,
लेखन लेखक कवियों का होता।
जबसे ये मानव ज्ञानवान हुआ है।
संस्कृति संस्कार परवान चडा है।
पहले मिट्टी पत्थर से लिखता हो,
फिर कुछ लेखन का ज्ञान बडा है।
स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
साहित्य सृजन हम करते हैं।
अपने मनोभावों को लिख कर,
हम बाहर उत्सर्जन करते हैं।
जो सुखद भाव उतारें कागज पर,
वह साहित्य अमर हो जाता है।
जब जी चाहेंगी पीढियां देखेंगी,
सद साहित्य स्वर्णिम हो जाता है।
लेखन अनेक विधाओं का होता।
सृजन बहुत फनकारों का होता।
कलाकार कलाकारी करते यहां,
लेखन लेखक कवियों का होता।
जबसे ये मानव ज्ञानवान हुआ है।
संस्कृति संस्कार परवान चडा है।
पहले मिट्टी पत्थर से लिखता हो,
फिर कुछ लेखन का ज्ञान बडा है।
स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
शीर्षक :- लेखन
लेखन सद्विचारों का,
भावनात्मक सुविचारों का।
लेखन का है आधार,
हृदय के उद्गारों का।
लेखन से खिले,
भावना के उपवन।
लेखन से निखरे,
धरा,धर्म के चिलमन।
लेखन श्रृंगार का,
नवरस व अलंकार का।
भाव उद्घृत होते ऐसे,
पुष्प खिलते उपवन जैसे।
धार कलम की तलवार सी,
जैसे नौका की पतवार सी।
साहित्य समर में,
लेखनी के ही आयुध चले।
गौरव गान करे लेखन,
महापुरुषों के इतिहास रचे।
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
लेखन सद्विचारों का,
भावनात्मक सुविचारों का।
लेखन का है आधार,
हृदय के उद्गारों का।
लेखन से खिले,
भावना के उपवन।
लेखन से निखरे,
धरा,धर्म के चिलमन।
लेखन श्रृंगार का,
नवरस व अलंकार का।
भाव उद्घृत होते ऐसे,
पुष्प खिलते उपवन जैसे।
धार कलम की तलवार सी,
जैसे नौका की पतवार सी।
साहित्य समर में,
लेखनी के ही आयुध चले।
गौरव गान करे लेखन,
महापुरुषों के इतिहास रचे।
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
सुबह लिखता हूं शाम लिखा करता हूँ।
मै हरेक हर्फ तेरे नाम लिखा करता हूँ।
एक शायर की हैसियत भला कया है।
बन के गजल सरे आम बिका करता हूँ।
लोग कहतै है क्या खूब कलम होगा।
अजब सर हूँ नाकाम झुका करता हूँ।
लोग कहते है सुकूं सुन के बडा आया।
मुफ़्त मरहम हूँ बे दाम बिका करता हूँ।
मै गुल नहीं के मौसम का इंतजार करुं।
सिर्फ पत्ता हूँ खूलेआम दिखा करता हूँ।
सिर्फ तेरा जिक्र है मेरे हरेक फसाने में।
मय तेरे नाम पे मै जाम बिका करता हूं।
विपिन सोहल
मै हरेक हर्फ तेरे नाम लिखा करता हूँ।
एक शायर की हैसियत भला कया है।
बन के गजल सरे आम बिका करता हूँ।
लोग कहतै है क्या खूब कलम होगा।
अजब सर हूँ नाकाम झुका करता हूँ।
लोग कहते है सुकूं सुन के बडा आया।
मुफ़्त मरहम हूँ बे दाम बिका करता हूँ।
मै गुल नहीं के मौसम का इंतजार करुं।
सिर्फ पत्ता हूँ खूलेआम दिखा करता हूँ।
सिर्फ तेरा जिक्र है मेरे हरेक फसाने में।
मय तेरे नाम पे मै जाम बिका करता हूं।
विपिन सोहल
मेरी लेखनी चले तो ऐसे चले
रूके न कभी, झूके न कभी
असत्य से परे,सत्य पे खरे
लेखन मेरा ऐसा हो
लिखे फिर से हरिश्चंद्र व राम
की कहानी,
जगा दे बच्चों में नैतिकता भारी
फलक तक चमके देश हमारा
लिख डाले कुछ ऐसा आज
वीरता, शौर्यता व देशभक्ति की बातें
लिख डाले कुछ विशिष्ट बातें
नरोधम भी बन जाये नरोत्तम
लिख डाले कुछ ऐसा मर्म
लेखन उत्कृष्ट हो सदा
दिखाये सामाज को मार्ग सदा
माँ सरस्वती, करूँ मैं वंदना
दे दो आशिर्वाद आज ऐसा
हो लेखन आज कुछ ऐसा
लिख दे अध्याय यह नया।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
रूके न कभी, झूके न कभी
असत्य से परे,सत्य पे खरे
लेखन मेरा ऐसा हो
लिखे फिर से हरिश्चंद्र व राम
की कहानी,
जगा दे बच्चों में नैतिकता भारी
फलक तक चमके देश हमारा
लिख डाले कुछ ऐसा आज
वीरता, शौर्यता व देशभक्ति की बातें
लिख डाले कुछ विशिष्ट बातें
नरोधम भी बन जाये नरोत्तम
लिख डाले कुछ ऐसा मर्म
लेखन उत्कृष्ट हो सदा
दिखाये सामाज को मार्ग सदा
माँ सरस्वती, करूँ मैं वंदना
दे दो आशिर्वाद आज ऐसा
हो लेखन आज कुछ ऐसा
लिख दे अध्याय यह नया।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
विधा .. लघु कविता
विषय .. लेखन
*************************
🍁
युगो-युगो से चली आ रही,
ज्ञान की जो गंगा है।
लेखन से ही ज्ञान सभी ,
इस धरती पर जिंदा है॥
🍁
ब्रहृमा ने वेदो की रचना,
सृष्टि के साथ बनाई।
मात शारदे ज्ञान की देवी,
कवियो की जो माई।
🍁
लेखन मे जो ऊर्जा है वो,
कहाँ तीर -तलवारो मे।
विष्णु गुप्त की अर्थशास्त्र सी,
पुस्तक नही हजारो में॥
🍁
प्रेम, भाव, माधुर्य सभी,
लेखन मे ही परिलक्षित है।
शेर की रचना लेखन से ही,
भावों की अभिव्यक्ति है॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
विषय .. लेखन
*************************
🍁
युगो-युगो से चली आ रही,
ज्ञान की जो गंगा है।
लेखन से ही ज्ञान सभी ,
इस धरती पर जिंदा है॥
🍁
ब्रहृमा ने वेदो की रचना,
सृष्टि के साथ बनाई।
मात शारदे ज्ञान की देवी,
कवियो की जो माई।
🍁
लेखन मे जो ऊर्जा है वो,
कहाँ तीर -तलवारो मे।
विष्णु गुप्त की अर्थशास्त्र सी,
पुस्तक नही हजारो में॥
🍁
प्रेम, भाव, माधुर्य सभी,
लेखन मे ही परिलक्षित है।
शेर की रचना लेखन से ही,
भावों की अभिव्यक्ति है॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
विधा:ग़ज़ल - लेखनी भावों का खजाना है
लेखनी भावों का खजाना है....
हर्फ़ दर हर्फ़ आबदाना है....
हो ग़ज़ल छंद या रुबाईयत...
शब्दों को जोड़ना घटाना है....
हो ख़ुशी गम किसी के जीवन में...
भाव अपनों में सब समाना है....
हो तड़प प्रेम या विरक्ति कहीं..
साथ हर दिल का ही निभाना है....
ज़िन्दगी बोझ हो गयी हो तो...
अश्क स्याही कलम बनाना है....
आग से खेलने सा है लेखन...
गर किसी दिल में राह बनाना है....
II स्वरचित - सी.एम्. शर्मा II
२५.१२.२०१८
आबदाना = भोजन पानी
लेखनी भावों का खजाना है....
हर्फ़ दर हर्फ़ आबदाना है....
हो ग़ज़ल छंद या रुबाईयत...
शब्दों को जोड़ना घटाना है....
हो ख़ुशी गम किसी के जीवन में...
भाव अपनों में सब समाना है....
हो तड़प प्रेम या विरक्ति कहीं..
साथ हर दिल का ही निभाना है....
ज़िन्दगी बोझ हो गयी हो तो...
अश्क स्याही कलम बनाना है....
आग से खेलने सा है लेखन...
गर किसी दिल में राह बनाना है....
II स्वरचित - सी.एम्. शर्मा II
२५.१२.२०१८
आबदाना = भोजन पानी
No comments:
Post a Comment