Friday, December 7

"चंचल "7 दिसम्बर 2018

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मन चंचल
काल्पनिक उड़ान
लब मुस्कान

रूप ईश्वर
चंचल बचपन
द्वेष से परे

चंचल नार
नयन हथियार
पिया की हार

चंचल नैन
हृदय पे कटार
लूटे करार

स्वरचित-रेखा रविदत्त
7/12/18
शुक्रवार


मन तो बड़ा है चंचल।
इधर,उधर को भागे।
बाँध ना पाये इसको कोई।
लगाओ चाहे कितने ताले।

कभी चाँद पर जाये।
कभी समन्दर में गोते लगाये।
कभी चिड़ियों सा पँख फैलाकर।
गगन में उड़ता जाये।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी




चंचल चितवन चैन चुरा गये

नादां दिल को रोग लगा गये ।।
खिली खिली सी रही थी धूप
अकस्मात ही बादल छा गये ।।

उन चंचल नैनों की चोरी 
करती है वो अब वरजोरी ।।
कितने कितने हुये रतजगे 
अब भी न वह टूटे डोरी ।।

चंचलता न जाये उसकी 
'शिवम' सादगी लुभाये उसकी ।।
रूप और गुण का संगम 
हरदम याद दिलाये उसकी ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"


उत्तम प्रकृति पावन शोभने।
मनभ
ावन हो गजगामिनी।
मनमोहक हाव भाव प्रिय।
भारतवर्षीय संस्कृति शोभे।
मलया उडिया बंग्ला ललना।
मराठी गुजराती अनंगे।
बुन्देली छत्तीसी मध्यदेशीय।
अवधी मिथिला कोकण पावने।
शालीनता सदाचार परायणे।
अनुशासित हाव भाव प्रिय।
मृगनयनी यह चितवन प्रिय।
कमलनयनी प्रहार शुभ्रा।
स्थिर मन चंचल कर देती।
स्थिर मन चंचल कर देती।



१/चंचल मन,
हमेशा ढूंढ ता है,

मरुस्थल वसुधा,
केवल सुख,
पहचान न सका,
मानव अपने को।।१।।
२/चंचल मन,
सुख को भटकता,
मारा मारा फिर ता,
वसुधा पर,
समझ नहीं पाया,
पहचान न सका।।२।।
३/धवल रात,
शरद की चांदनी,
अवनी पे छिटकी,
चंचल हवा,
हौले-हौले बहती,
वसुधा मुंस्काती है।।३।।
देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।।.




बिषयः ःचंचल ,,छंन्दमुक्त,,

चंचल चपलता बचपन की पर्यायवाची
बिल्कुल बिलक्षण प्रतिभा निराली
लगता कहीं खो गया वो बचपन
ढूंढे कहीं खो गया जो नहीं दिखता बचपन
चंचल चपल थी बचपन की चपलता।
चंचल चपलता सरिताओं में दिखती
कलकल करती नदियां इठलाती धरती पर
सुंदर मधुर गुणगान करती सी लगती 
शोख अदाऐं चंचल ललनाओं में दिखतीं
लेकिन जो चंचलता बचपन में मिलती
उसमें मनमोहन की छवि हमें दिखती
जीवन चंचलता से जिऐं हम
बचपन को अगर प्रफुल्लित रखेंगें
माने भबिष्य हम हर्षित रखेंगे।
मनमंदिर कलुषित नहीं होने दें तो
अपने मधुवन में सुमन खिलेंगे।
जबतक चंचल चपलता बचपन में रहेगी
कुसुम लताऐ यहां खिलती रहेंगी।
ईशाशीष मिलेगा हमको
सदा सुखद चंचलता महकती रहेंगी।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.


~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

चंचल आँखों में कोई तो जादू है
कितनी बातें कह जाती है चुपके से।

भूरी आँखों में कितनी गहराई है
राज़ कई बतला जाती है चुपके से।

कभी तो कुछ कहती ही नहीं है और कभी
बातें कई बता जाती है चुपके से।

अजब इशारे होते उसकी आँखों के
बिना कहे समझा जाती है चुपके से।
"पिनाकी"
धनबाद (झारखण्ड)


******----******
चंचल मन
चाहतों का सागर
ओर न छोर
*********
चंचल बेटी
बड़ी ही शरारती
माँ की लाड़ली
**********
चंचल चित
चितचोर ले गया
चैन न आवे
*********
चंचल नैना
मारे तीर कटारे
बचे न कोई
**********
चंचल बच्चे
करते अठखेली 
लगते प्यारे
********
चंचल कृष्ण
राधा है भोली भाली
प्रीत अनोखी
***********
स्वरचित
प्रीति राठी


चंचल सब चलायमान जग
चंचल शिशु जीवन शुरुवात
चंचल लक्ष्मी को पाने हित
श्रम करते हैं दिन और रात
चंचल नयना घायल करते
चंचल नीर प्यास बुझाए
चंचल चारु चन्द्र किरण मिल
रजनी में सब लोक लुभाए
चंचल भंवरे पुष्प डाल पर
बैठे मधुर रस पान करें
चंचल चपल दामिनी धुति से
पावस में सब लोग डरे
मृग नयनी चंचल आँखे
काम भोग के सर संधारे
चंचल यौवन पगले बन वे
व्यर्थ समय अनमोल गंवाए
चंचल जीवन चंचल तन है
चंचल मायालोक जगत है
सब चंचल है,फिर बौराये
अभिनय स्व अंदाज अलग है
चंचल नटखट खुद कान्हा थे
चंचल सुखद वे लीला धारी
राधा नागरी, मीरा गिरधारी
तन मन धन जीवन सब हारी
चंचल ही जीवन की रीति
चंचल जीवन का निष्कर्ष
चंचलता को जिसने समझा
जीवन वह् जीता उत्कर्ष।।
स्व0 रचित
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।


#विधा- मुक्तक

चंचल नार सुकुमार छबीली
मनभावन ये प्रीत सुरीली
तन मन का संगम अनूठा
पावन तेरी रीत निराली।।

गहरे रंग अंखियों में समाएँ
नीर नयन के भांव संजोए
तरल सपने प्रवाहित होकर
एक नये आयाम को जगाए।।

मृदु भाषा बोल मनुहारी
सुगंधित वाटिका न्यारी
पुष्प पर्णों की भांव लूट से
तस्वीर तेरी लगती प्यारी।।

स्वरचित
डॉ. नीलीमा तिग्गा (नीलांबरी)



*******************
🍁
मै चली पिया के द्वार सखी,
बाबुल के घर को त्याग सखी।
मद्धम कदमों के साथ सखी,
मन प्रीत उमंग बहार सखी ॥
🍁
तोसे ही बस बतलाती हूँ, 
मन व्याकुल पर सकुचाती हूँ।
चंचल नैना मन राग भरे,
मै पिया मिलन की प्यासी हूँ॥
🍁
जब पिय ने मोरी बाँह धरी,
कैसे मै कहूँ क्या भाव जगी।
मै छोड के सारे बन्धन को,
मै श्याम के अपने साथ चली॥
🍁
जो बात नही कह पायी मै,
कुछ लाज से जो घबरायी मै।
तुम शेर की कविता पढ लेना,
जो बात न समझा पायी मै॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf





माया,मोह सी
चंचल चितवन
मृगतृष्णा सा
चंचल मन
सिकता में
सरि की तलाश
चंचल क्षण
अंजुरी भरी रेत सा
सरकता
संग बहु आस
दरकता
चंचलता का
ठौर कहाँ
निराधार,निरावलम्बन
अस्थिर, भ्रमित
चंचल मन को
इसपर गौर कहाँ?
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित




विषय-चंचल
विद्या - पिरामिड 


ये
मन 
चंचल
चितचोर
वश मे नहीं 
उड़ान भरता
कपोल कल्पना है


जाओ
चंचल
चितचोर
बाँसुरी बजी
मन विभोर है
तुम्हारा इंतज़ार।
(अशोक राय वत्स) स्वरचित
८६१९६६८३४१जयपुर


विषय-चंचल

सागर की लहरें अति चंचल,
तट छूने को रहती व्याकुल।
नदिया की धारा है चंचल,
सागर से मिलन उसकी मंजिल।
गिरि से गिरते निर्झर चंचल,
छूने को धरा रहते हैं विकल।
घनघोर घटा चपला चंचल,
तड़क -कड़के मचती हलचल।
बहती है पवन कैसी चंचल,
कभी रूकती नहीं चलती हरपल।
वय बचपन की निश्छल चंचल,
खुशियों से भरे होते हैं पल।
वय यौवन की अति है चंचल,
आकाश में उड़ने को आकुल।
सबसे ज्यादा होता मन चंचल,
बंधन में न बंधता ये इक पल।
जग धन के पीछे है पागल,
रूकता ही नहीं है अति चंचल।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित



मुख बिम्बित तेरा चन्दर प्रिये...
साँसों की सुलगती सरिता प्रिये...
धक् धक् धड़कन सी ताल प्रिये...
चंचल चितवन तेरी चाल प्रिये...
नित नूतन गीत सजाये प्रिये...

झर झर झरतें हैं फूल प्रिये...
खुले पंखुरी से जब होंठ प्रिये...
भर भर महकें मेरे शब्द प्रिये...
तेरे अधर संयोजित स्वर प्रिये...
नित नूतन प्रेम के गीत प्रिये...

बड़े कजरारे तेरे नयन प्रिये....
मधुबन में कारे ज्यों टीके प्रिये... 
मधुशाला के कभी दो जाम प्रिये… 
कभी गहरी झील से भायें प्रिये...
नित नूतन गीत लहराएं प्रिये...

नव यौवन सा तेरा रूप प्रिय...
मेरा मन चंचल ओ अधीर प्रिये...
तेरी जीत में मधुर संगीत प्रिये...
मेरी हार भी गाये तेरे गीत प्रिये..
हर पल नित नूतन गीत प्रिये...

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 
०७.१२.२०१८





चंचल चितवन मधुशाला सी
करती मनोहर एक बाला सी
खिले उपवन मे एक कचनार
लगे प्रेम पियाला मधुशाला की

घूँघट मे लाज ,मतबाली नार
पायल को धार, खनकाती नार
उठे हृदय झंकार, कर सोलह श्रृंगार
पुलकित हुआ हृदय बार बार

छूने चले चंचल नयन 
मोहित हुआ ये तन वदन
खिलने लगे अब कपोल भी
मिलने लगे खुलके वदन
स्वरचित 7/12/18
नीलम शर्मा#नीलू





मन से चंचल कुछ नहीं, करे मन की गति हैरान, 

रहे भटकता रात दिन, नहीं करता कभी विश्राम |

चंचल पवन कभी-कभी, कर देती सबको बेहाल , 

उठा पटक करे इस तरह, नहीं संम्हले सालों साल |

हैं लक्ष्मी जी भी चंचला, कभी ये नहीं टिकातीं पांव , 

आज यहाँ कल जाने कहाँ, इनका कोई नहीं है ठांव |

चंचल चितवन की कथा, लिखते रहते हैं कितने लोग, 

यहाँ कोई नहीं है बच सका ,है ये बडा ही अनोखा रोग |

कुछ अच्छा और कुछ बुरा, होता सबका ही है प्रभाव, 

है ये अपने ही हाथ में , हम किसका कैसे करते उपयोग |

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,




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आंखों में उसके चंचलता
बातों में उसके मोहकता
चलती है जब बल खाकर
लगती जैसे हो मधुशाला

हो स्वर्ग से उतरी हूर कोई
इतनी सुन्दर जैसे हो परी
दिल ममता से भरा हुआ
आंखों में दर्द है कहीं छुपा

तन से कोमल मन से कोमल
चंचल चितवन जैसे कमल नयन
गाल गुलाबी फूलों जैसे
फिर भी चुभती सबको शूलों जैसी

पाने को आतुर मर्द सभी
पर दिखता उसका दर्द नहीं
चंचल मन वो सबको दिखाती
अपनी मजबूरी सबसे छुपाती

कुदरत का वो अनमोल नगीना
जिसने की सृष्टि की रचना
सदियों से मन में चाह लिए
उसको भी पूरा मान मिले

औरत है नहीं कोई खिलोना
क्यों उसका सुख-चैन है छीना
देदो उसको भी अधिकार सभी
होंठों पर खिल उठे चंचल हंसी

अपने आत्मसम्मान की खातिर
लड़ती रही और लड़ती रहेगी
चंचल,ज्वाला दोनों रूपों में
नारी है इसलिए अटल खड़ी है
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित रचना





मेरे संयमित मन का एक कोना 
चंचल जैसे मृग छौना ।
पुलिन ह्रदय पर
विरुधा का संगी 
चाहता नित नये 
भावों के मोती बोना ।
मेरे चंचल मन का एक कोना 
चाहे धवल गुलाब सा 
सुरभित होना ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह 
भिलाई (दुर्ग )




शीर्षक:--"चंचल"हाइकु
😊
चंचल मृग
कस्तूरी ढूँढे वन
बौराया मन
😊
मृगनयनी
चंचल कौमुदिनी
मन मोहिनी
😊
पिया की याद 
चंचल चितवन
सताती रात
😊
चंचल नैना
संभल के रहना
लूट ले चैना

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल





विधा :- लघु कविता

चंचल मन प्रकृति सम सुंदर
भटके कानन प्यासा मृग बन
कस्तूरी की ही चाह में भटके
सूंघता तृण का हर कण कण

है चंचलता करती विचलित
नैराश्य का बोध ना समझती
आशाओं की हर दहलीज से
चंचलता ही परिचय कराती

"शीर्षक-"चंचल"
चंचल दामिनी चमक रही नभ में

देख पथिक मन में घबरायें
यायावर बन वह निकला घर से
पहूचँ न पाया मंजिल तक।

जीवन गाथा वह समझ न पायें
दुःख के बादल चमक चमक जायें
चंचल मन समझ न पायें
जीजिविषा ही राह दिखाये

हे सूत्रधार,पूर्ण करो आशा
चंचल मन को दो दिलाशा
कृतज्ञ रहूँगी जीवन सारा
चंचल मन को मिल जाये साहारा।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।

स्वरचित :- मुकेश राठौड़


7/12/2018
हाइकु 
1
बैरी साजन 
चंचल चितवन 
चुराए मन 
2
चंचल पिया 
नही लगता जिया 
चुराए हिया 
3
लुभाये मन 
चंचल चितवन 
झांके नयन 
4
चंचल मन 
भागता चहुँओर 
करे विभोर 
कुसुम पंत उत्साही 
स्वरचित


विधा-*दोहे*

#चंचल मन से जो करें,बिगड़ें सारे काम
जो साधें मन आपना, भली करें सब राम।

मंद पवन जब तक बहे,करती प्राण प्रसार
#चंचल हो उड़ने लगे,सब कुछ बिन आधार।

अनल बनाती काम सब,जब तक रहती तुष्ट
#चंचल हो फूके सभी,गर हो जावे रुष्ट।

पानी जब #चंचल हुआ,सारे बंधन तोड़
सब जग जल जल हो गया,जीवन पीछे छोड़।

चंचलता बालक सजे,चाहें कर उत्पात
धीर बड़न शोभित करे,#चंचल कर्म न भात।

~प्रभात



मन चंचल
करता विहार
कल्पना लोक में
छूता ऊँचाई
असीमित
निर्झर सा चंचल
बालक मन
अबाधित
मृग शावक सा
विद्युत गति
तरंगित
मेखला द्युति
चंचल नयनों में
झलकती अबोधता
गहन विश्वास
चंचल धारा
उछलती कूदती
अवरुद्ध मार्ग पर भी
निर्बाध
आगे बढ़ती
मासूम सी चंचलता

सरिता गर्ग


विषय - चंचल
सुख भी तेरा दुःख भी तेरा
जीवन में आता साँझ सवेरा
प्रतिदिन तेरा ध्यान धरूँ
श्रद्धा से तेरा जाप करूँ
सुख में कभी ना तुझे बिसराऊँ
दुख आने पर ना संशय दिखलाऊँ
विषय विकार ना मुझे सताएँ
चरणों में तेरे ध्यान लग जाए
विनीत भाव से करूँ वंदना
तेरी महिमा के सदा गुण गाना
मन की चंचलता जग ज़ाहिर
कहते जग के सब नर नारी
मन की चंचलता है इक भटकन
ध्यान से विमुखता बन जाती उलझन
इस चंचल मन को प्रभु एकाग्र बनाऊँ
तेरी भक्ति से जीवन निज सफल बनाऊँ .....

स्वरचित
संतोष कुमारी



अस्तित्व ढूँढती हूँ मैं 
चंचल सी मस्त हवा का झोंका हूँ मैं 
शोख लहर सी हूँ मैं 

चंचल सरिता सी बहती हूँ मैं .

दूर गगन में चंचल पवन सी उड़ती हूँ मैं 
सर्द मौसम की धूप सी हूँ मैं 
कभी हकीकत तो कभी ख्वाब हूँ मैं 
रेत पर अपने निशान छोड़ जाने वाली मतवाली लहर हूँ मैं .

कभी दर्पण कभी समर्पण हूँ मैं
मन चंचल बैरागी सी हूँ मैं 
कभी उड़ान भरती गगन में पंछी सी हूँ मैं 
जीवन के चंचल जीने का सार हूँ मैं .
स्वरचित :- रीता बिष्ट



ऐ जिंदगी 
तुझसे अब शिकायत नहीं
तूने मेरे चंचल मन में 
फिर से नवीन ऊर्जा भर
नया-सा आकार दिया।

ऐ जिंदगी! 
मेरे मन में जो बातें 
हलचल मचाया करती थी 
उसे शब्दों में ढालने का 
गूर सीखा साकार किया।

ऐ जिंदगी!
डूबते उम्मीद को तूने 
फिर से खिलाकर 
उर में नया उम्मीद जगाकर
मन को एकाकार किया।

ऐ जिंदगी!
खोई थी जो चंचलता 
वो फिर से किया हलचल 
उर की आवाज शब्द बन
मन वीणा झंकार किया।

----रेणु रंजन 
( स्वरचित )

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