Saturday, December 8

"प्रेरणा "8 दिसम्बर 2018





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      ब्लॉग संख्या :-231

श्रद्धा होनी चाहिये प्रेरणा के हजार स्रोत 
सूरज चाँद नही तो क्या है , हैं खद्दोत ।।
श्रद्धा नही तो ब्रह्मा भी कुछ नही हैं
श्रद्धा की पहले जलाना होगी ज्योत ।।

एकलव्य की गुरूभक्ति जानी पहचानी 
बन गई मिसाल बन गई अमर कहानी ।।
रास्ते तो खुद व खुद बन गये हैं वहाँ 
जहाँ जिगर में जज्वा औ दृढ़ निश्चय ठानी ।।

पढ़िये कुदरत का कण कण कुछ सिखलाये
क्यों न हमने उनमें अपने यह ध्यान लगाये ।।
जो लगाये इनमें अपनी आँखें और कान
वो दुनिया में हट कर कुछ कर दिखलाये ।।

कब कहाँ मिल जाये प्रेरणा सजग रहो 
अपनों कार्यों में हरदम तुम रत रहो ।।
न्यूटन और सेव का किस्सा मशहूर है
कर्म में अपने ऐसे 'शिवमअलमस्त रहो ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"


विधा लघु कविता
8,12,2018
प्रेरणा के स्रोत्र सारे
जो धरा बिखरे पड़े हैं
फूल पत्ती भव्य उपवन
देवदारु वृक्ष खड़े हैं
मात पिता सद गुरु जन
प्रेरणा सद चित्त करते हैं
भटक जांय अगर राह तो
नेक पथ पर वे धरते हैं
सूर्य चन्द्र माँ वसुंधरा
छिपी प्रेरणा की कहानी
जिसने समय रहते समझा
वह् कहलाया दानी मानी
बिन प्रेरणा के कौन उठा है
महापुरुष जीवन की प्रेरणा
जीवन जीते प्रेरणा लेकर
वे नित पूजें प्रभु के चरणा
सदा जागरूक जो रहता है
सद प्रेरणा मनोवांछित पाते
भूल त्रुटि असत्य अभाव में
गीत खुशी के वे मिल गाते
ज्ञान की सरिता शारदे
नव गति ताल छंद भरे
कवि प्रेरणा वीणा वादिनी
हर पीड़ा को स्वयं हरे।।
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।



लघु कविता
विषय-प्रेरणा

प्रेरणा
क्षणभंगुर सी लहर
उठती है गिर गिर कर
पावक एक जलता हुआ
उर्ध्वमुखी निःसृत धुँआ
चट्टानों की बंजर धरा
लिए हुए है कुछ उर्वरा
फूलते है काँस-काई
दूर खड़े दो शैलों को
जोड़ती है एक खाई
कण-कण की अवधारणा में
क्षीण-किरण की साधना में
निहित एक प्रेरणा है
दृष्टि की एक लक्षणा है
कुचले हुये पुष्प भी
सदा बिखेरते सुरभि
मनु की तुम संतति
रोक मत निज गति
कथ्य-अकथ्य में
हृदय के नेपथ्य में
मन में ध्येय हो
संकल्प का पाथेय हो
प्रेरणा संबल हो
संचित आत्मबल हो
दूर नहीं लक्ष्य है
निकट ही गंतव्य है
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित





प्रेमानुरागी बनूं प्रभु मै

प्रेरणाऐं पाकर सभी से।
महापुरुष प्रेरणाऐं देते,
गृहण गर करं सभी से।

श्रीराम दें प्रेरणाऐं हमको
कैसे हम पुरूषोत्तम बनें।
श्रीकृष्ण दें प्रेरणाऐं हमको
क्यों धैर्यवान सर्वोत्तम बनें।

शौर्य गाथाऐं प्रताप से लें।
तेजपुंज श्रीसूर्यदेव से लें।
प्रकृति में सबकुछ भरा है,
प्रेरणाऐं सब प्रकृति से लें।

चाहते हैं प्रेरणाऐं अगर हम,
संम्पूर्ण जगत से ले सकेंगे।
संगति चाहते या कुसंगति,
जो भी चाहें हम ले सकेंगे।

सद्प्रेरणाऐं ले सकें सभी से
जीवंत हम प्रेरणाऐं कर लें।
प्रेमपुष्प विकसित करें उर,
शुभ प्रेरणास्पद खुद बना लें।

स्वरचितः ः
इंजी।शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.


लक्ष्य पर सही नजर,
हौंसले हों अगर बुलंद,
सपनों की उड़ान तेरी,
सही दिशा दिखलायेगी |

जिन्दगी के सफर में यूँ तो,
मुश्किलें बहुत आयेंगी,
तेरा हर एक सही कदम,
प्रेरणा सबके लिए बन जायेगी |

कर्म गर तेरा प्रधान होगा,
फल भी तेरा महान होगा,
तम के बादल छट जायेंगे,
किस्मत भी खुल जायेगी |

स्वरचित*संगीता कुकरेती*



विधा - छंद मुक्त

मेरी प्रेरणा तुम
प्रेरक भी तुम्ही हो
कभी कागज के पन्नों पर
बिखर जाते हो
शब्द बन कर
कभी भावों के मोती बन
बन्द हो जाते हो
अँखियों की सीपी में तुम
मेरे चित्र
फीके हैं तुम बिन
रंग बन बिखर जाते हो
कभी मेरे चित्रों में तुम
भावमयी चित्रों के
अर्थ बन जाते हो तुम
बन्द पलकों पर 
नए ख्वाब सजाते हो तुम
अधूरी हूँ तुम बिन
पूर्णता देती है
तुम्हारी प्रेरणा मुझे
जीवंत है मेरा जीवन
तुम से ही

सरिता गर्ग
(स्व रचित)


लघु कविता

मेरी कलम की है सच्ची कहानी
कह रही मैं अपनी ही जुबानी
बात नहीं है ये बरसों पुरानी

फरिश्ता सा कोई आया था
लेखन शैली दिल में गहराया था
लिखने की मेरी चाहत पुरानी थी

मन के भाव मेरे अपने थे
कोने में जाग रहे सपने थे
सच सामने ही खड़े थे

प्रेरणा मुझे वो दे गया
एक पथ नया दिखा गया
हाथ में कलम पकड़ा गया

हवा का एक झोंका था
अभिमान ने रास्ता रोका था
फिर मिला आघात था

देख यह मैं घबरा गई
संघर्षों से भी टकरा गई
राह अकेली चल पड़ी

मुझे राह अकेला छोड़ गया
पथ दिखा बादलों में छुप गया
मन में यह कसक रह गई

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल


पाकर प्रेरणा आप से
हम बदल गए हैं खुद से
हमारे विचारों में थी केवल निशा
अब मिल गई है उसे भोर की दिशा
अब तक थी केवल दबी भावना
आ गया जिसे अब जलना
अभी तक की केवल उषा
मिल गई है उसे अब रश्मियां
अभी तक थे कोरे ख्वाब दिल के
चल दिए हैं अब राहे मंजिल के
***********************
स्वरचित
प्रीति राठी

मैं 
आपकी प्रेरणा हूँ
प्रिया मत समझियेगा
मैं कदरदां हूँ महबूबा मत समझियेगा
मैं एक सांझ हूँ 
सवेरा मत समझियेगा मैं तो सिर्फ एक शुरुवात हूँ 
कभी अंत मत समझियेगा
******************
स्वरचित
प्रीति राठी




जीवन है
प्रेरणा का
खजाना

बचपन में 
माँ की प्रेरणा 
चलना सिखाया
बोलना सिखाया
हाथ पकड़ 
संभावना सिखाया

किशोरावस्था में 
पिता की प्रेरणा 
पढना 
बढ़ना
कमाना सिखाया

प्रेमिका बन पत्नी 
बनी जवानी में प्रेरणा 
प्यार 
समर्पण 
साथ जीना 
साथ सुख दुःख में 
जीना सिखाया

बुढापा बनी 
नाती पोतों को
ऊँगली बन
आगे बढने की
प्रेरणा 

प्रेरणा जीवन की
धूरी है
प्रेरणा जीवन की
पून्जी है
जितना संघर्षशील बनेंगे 
प्रेरणा उतनी 
मार्गदर्शक बनेगी

लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल




प्रेरणा बन शक्ति पुंज,
कर-अकर का मिटता द्वंद।
हृदय अनेक भाव सुप्त,
प्रेरणा जिन्हें करती प्रदीप्त।
लक्ष्य का करना चुनाव,
जीवन लगा हो जब दांव।
झिलमिलाती एक लौ,
अंतस में भर देती उजास।
निर्णय-अनिर्णय की स्थिति,
हो कैसी विषम परिस्थिति।
अंतरतम से आती आवाज,
बन प्रेरणा करती आगाज़।
सुन नहीं सकता है जो,
चुन नहीं सकता है जो।
मिलते उसे प्रेरक यह,
आदर्श के ही रूप में।
प्रेरणा कविता का मूल,
प्रेरणा खिलाती भावों के फूल।
जग-कल्याण होता है तभी,
जब मूल में हो प्रेरणा।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित




विधा :- छंद मुक्त कविता

प्रेरणा जीवन को 
देती नई दिशा,
खिलाती उत्साह पुष्प,
जीवन उपवन।
प्रेरित करती,
उन्नयन जीवन परिवेश का।
प्रेरणा भरती उमंग,
प्राणी सजीव में।
प्रेरणा उद्वलित
करती पिपासा।
असीम जिजिविषा,
है प्रेरणा संजीवनी।
प्रेरणा प्रकृति,
सीखाती परोपकार।
प्रेरणा समंदर सी,
करती सृजन रत्न।
प्रेरणा सरोवर सी,
संयमित करती जीवन।
प्रेरणा हंस की,
चुनता मोती सागर।
प्रेरणा तितलियां
अल्प है जीवन 
उमंग भरा।
प्रेरणा शबनम बूंद,
दूब तृण जीवन।
प्रेरणा रश्मि सी,
रोशन करती जीवन।
प्रेरणा गुरूजन की,
हरती अज्ञान।

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

विधा - गद्य

प्रेरणा
जिंदगी में जब हृदय - आकाश को निराशा और उदासी के काले बादल घेर लेते हैं तब अचानक किसी की कही कोई बात ,कोई व्यक्ति, कोई वस्तु उस अंधकार में उजाले की किरण बन जाती है और उससे प्रेरित हो हम हृदय पे घिरे निराशा के बादलों को चीर कर ,उदासी के अंध कूप से बाहर आ जाते हैं । कभी किसी से प्रेरणा प्राप्त कर हमारे व्यक्तित्व में चमत्कारिक बदलाव आ जाता है ।
स्वयम परमात्मा ने इस संसार में अनेक वस्तुऐं , व्यक्ति जड़ और चेतन रूप में बनाये हैं , जो हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं ।
चाँद और सूरज समय पर उदित और अस्त होते हैं जो हमें समय का मूल्य और वक्त की पाबंदी की सीख देते हैं। धरती हमें धैर्य की प्रेरणा देती है । सागर मर्यादा में रहना सिखाता है । पर्वत स्थिरता और दृढ़ता सिखाते हैं । सरिता निरन्तर आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करती है ।ऋतुएं यथा समय बदलाव की प्रेरणा देती हैं । त्योहार खुशी मनाने और जीवन में रंग भरने का संकेत देते हैं । पंछियों का कलरव जीवन में संगीत भर देता है ।
माता पिता एक ओर सत्कर्मों और सत - चरित्रता की प्रेरणा देते हैं वही दूसरी ओर गुरुजन कठोर व्रत, अनुशासन और एकाग्रता का पथ दिखाते हैं। जीवन में हर कदम पर किसी न किसी रूप में हम प्रेरणा पाते रहते हैं। जीवन में सफल महापुरुष जीवन जीने की कला सिखा कर हमारे आदर्श बन जाते हैं और हम उनसे प्रेरित होकर अपने जीवन को सार्थक करते हैं ,हौंसलों की उड़ान भरते हैं।

हम निराशा से निकल कर
हौंसला मन में भरें
प्रेरणा जगती से लेकर
भाव कुछ मन में भरें

हर कदम पर प्रेरणा के
रंग हैं बिखरे हुए
इन रंगों से भरें दामन
सतत आनन्दित रहें

सरिता गर्ग
(स्व रचित)


ओ मेरी प्रेरणा, आ तुझे
आत्मसात कर लूँ 
भावों का संबल तू ,
हृदय की बात कर लूँ 

जाने कहाँ छुपी तुम, 
मेरी शिराओं में 
अद्भुत शक्ति हो तुम,
मेरी मनोभावों में 

ओ मेरी अभिन्ना, आ तुझसे मुलाकात कर लूँ 

निःस्वार्थ अलौकिक, 
तुम अपरिमित हो
मैं सिमटी तुम तक, 
तुम असीमित हो

ओ मेरी भाव -तरंगिता,
आ तुझे साँस- साँस कर लूँ 

तुमसे ही मैं हूँ सदा
मुझसे तुम नहीं 
मुझको जगाती हो तुम 
मैं अचेतन रही
ओ मेरी अंतरप्रिया,आ तुझे हमराज कर लूँ ।

ओज हो तुम भाव में,
पवन सा गतिमान हो
समंदर सी गहराई तुझमें, 
उत्प्रेरक विजयी मान हो

ओ अंतरमना विजयिता,
आ तुझे बाहुपाश कर लूँ 

जीवन के सारे रसों का 
तू आस्वादन कराती है
ले कलम अक्षर -अक्षर 
मन पिघला जाती है।

ओ मेरी हृदय स्पर्शिका
आ अर्पित सारे भाव कर लूँ 

तेरे ही इंगितों पर होता 
तन मन सक्रिय मान है
तेरे ही पगों पर नमित 
मेरी सुबह शाम है

ओ मेरी हृदयनर्तकी 
आ तेरा मनुहार कर लूँ 

स्वरचित 
सुधा शर्मा 
राजिम छत्तीसगढ़ 


प्
रेरणा ज़रुरी है जीवन में 
यह भरती है उमंग मन में
लक्ष पाने को प्रेरित करती
उत्साहित करती हर क्षण में।

प्रेरित करने से बढ़ता आत्मबल 
प्रेरित करने से बढ़ता सम्बल
प्रेरित करने से निखरती मन की शक्ति 
प्रेरित करने से रोम रोम में उठती हलचल।

विसंगतियों के बाद भी जो शिखर छूते
भयंकर अभावों में भी जो नहीं टूटे
ऐसे लोग ही प्रेरणा स्त्रोत होते
जिन्होंने मंजिल पाई जीवन से नहीं रुठे

बिखरे पड़े हैं आस पास
प्रेरणा के स्त्रोत हमारे
फूलों की बगिया हमें सिखाये
खुशियाँ बिखेरे हम जग सारे

पराजय से निराश न हो
करें जीत की तैयारी
लेकर चिंटी से प्रेरणा
करे आगे की तैयारी

नभ के चाँद सितारे
सीख देते यही सारे
प्रकाशित कर हम अपना जीवन
राह दिखाये दूसरों को

श्रवण से ले हम प्रेरणा
माँ -बाप की करने की सेवा
दधीचि से हमें मिले
दूसरो की मदद करने की प्रेरणा

महापुरुषों के जीवन से लेकर हम प्रेरणा
कर जाये कुछ ऐसा काम
बन जाये हम दूसरो की प्रेरणा।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।


मैं सूर्य स्वामिनी ,
मैं चंद्र रागिनी 
मैं अखिल ब्रह्मांड विहारिणी 
मैं कण-कण वासिनी 
सुहासिनी मैं प्रेरणा 

कचनार पुष्प सी 
आकर्षक सुगंध 
प्रत्येक ह्रदय में 
बहती मंद मंद 

थाम मेरा हाथ 
तुझे ले चलूँ 
फतह के गाँव तक 
यश की निर्मल छाँव तक 

मैं तेज पूर्णिमा का 
मैं तम अमावस का 
मैं अंत तेरी हर प्यास का 
मैं प्रारंभ सुखद आस का ।

(स्वरचित )सुलोचना सिंह 
भिलाई (दुर्ग )

"प्रेरणा"
छुप-छुप कर रोना छोड़ कर,
रूख बदलें खुशियों का,
जलकर देना रोशनी,
काम है दीयों का,
बना प्रेरणा हौंसलों को,
नभ को हम झुकाएँगें,
पाकर लक्ष्य अपना,
प्रेरणा हम बन जाएँगे,
तुफानों को करना है पार,
ड़ूब कर तैरना सिखेंगें,
प्रेरणा की कलम से,
एक नई कहानी लिखेंगें

स्वरचित-रेखा रविदत्त
8/12/18
शनिवार

जब निराशा घोर अँधेरा, 
प्रेरणा दीप जलाती है, 
भरती है आत्मविश्वास,
मन को सबल बनाती हैl 

स्व शक्ति से परिचय करा,
आत्मविश्वास जगाती है, 
व्यक्तित्व को बना हनुमान,
समंदर पार कराती है l

जिह्वा से निकल प्रेरणा, 
सीधे हृदय उतर जाती है, 
बदलें वो हाथ की लकीरें, 
जीवन नया गढ़ जाती हैl

आदर्शों से पहचान करा,
प्रेरणा कर्म सँवारती है, 
सोई आत्माओं को जगा,
वो इंकलाब भी लाती हैl 

प्रकृति के पग-पग में प्रेरणा, 
शूलों में फूल खिलाती है, 
जीवन की रग-रग में दे सन्देश, 
आगे बढ़ना सिखलाती है l

स्वरचित 
ऋतुराज दवे

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