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ब्लॉग संख्या :-612
विषय रात,रजनी,विभावरी
विधा काव्य
31 दिसम्बर 2019,मंगलवार
प्रकृति की अद्भुत लीला
रात दिवस क्रमशः आता।
रजनीकर मधु नींद सुलाता
दिनकर आकर हमें जगाता।
चिर शांति देती प्रिय रजनी
जल कुमोदिनी खिल जाती।
सचराचर को मिले सहारा
स्वयं विभावरी लौरी गाती।
कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में
रजनी अपने स्वरूप बदलती।
कभी धवल उजियारा नभ में
कभी अंधियारा भू पर करती।
टिम टिम तारे अम्बर टिमके
दिव्य ज्योत्स्ना अति सुहानी।
धवल प्रकाश सुशोभित सुंदर
दिव्य रूप लख हरखे प्राणी।
रात काली दिवस उजियारा
दुःख सुख आते हैं जीवन में।
वसुधा पर पतझड़ आते ही
प्रिय ऋतुराज आते उपवन में।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
31 दिसम्बर 2019,मंगलवार
प्रकृति की अद्भुत लीला
रात दिवस क्रमशः आता।
रजनीकर मधु नींद सुलाता
दिनकर आकर हमें जगाता।
चिर शांति देती प्रिय रजनी
जल कुमोदिनी खिल जाती।
सचराचर को मिले सहारा
स्वयं विभावरी लौरी गाती।
कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में
रजनी अपने स्वरूप बदलती।
कभी धवल उजियारा नभ में
कभी अंधियारा भू पर करती।
टिम टिम तारे अम्बर टिमके
दिव्य ज्योत्स्ना अति सुहानी।
धवल प्रकाश सुशोभित सुंदर
दिव्य रूप लख हरखे प्राणी।
रात काली दिवस उजियारा
दुःख सुख आते हैं जीवन में।
वसुधा पर पतझड़ आते ही
प्रिय ऋतुराज आते उपवन में।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
"भावों के मोती"
31/12/2019
रात /रजनी/विभावरी
********
वो रात बड़ी
निराली थी
तेरे आने की
आस में हो रही
मतवाली थी
चांदनी के पलकों
पर बादल भी
सजल हो गए
जब तुम चुपके
मेरे करीब आ गए
रात के श्वेत उजाले
में, मैं देखती हूँ
भरी भरी नजरों से
तुम्हें
सारे शब्द और रंग
तेरे प्यार में सिमट
गए
ज़िंदगी के आईने
की धूल उड़ गई
हवा में,जमी हुई
गर्त बर्फ बनकर
पिघल गयी
तेरी सरगोशियां
करती थी हलचल
मन में कुछ इस
तरह,तेरी मुहब्बत
लहू बन कर रूह
में उतर गई अब
मैं कहाँ होश में आने
वाली थी
वो रात बड़ी
मतवाली थी ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
31/12/2019
रात /रजनी/विभावरी
********
वो रात बड़ी
निराली थी
तेरे आने की
आस में हो रही
मतवाली थी
चांदनी के पलकों
पर बादल भी
सजल हो गए
जब तुम चुपके
मेरे करीब आ गए
रात के श्वेत उजाले
में, मैं देखती हूँ
भरी भरी नजरों से
तुम्हें
सारे शब्द और रंग
तेरे प्यार में सिमट
गए
ज़िंदगी के आईने
की धूल उड़ गई
हवा में,जमी हुई
गर्त बर्फ बनकर
पिघल गयी
तेरी सरगोशियां
करती थी हलचल
मन में कुछ इस
तरह,तेरी मुहब्बत
लहू बन कर रूह
में उतर गई अब
मैं कहाँ होश में आने
वाली थी
वो रात बड़ी
मतवाली थी ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
31/12/2019
जागता रहा चांद,
रोती रही विभावरी।
शबनम जम गया सुबह तक।
हरेक पौधे हो गये शबनमी।
ठंड में रजनी गुजरती नहीं है।
लगता है काफी लम्बी हो गई है।
भयानक सी लगती है रात।
चांदनी केवल मुस्कुरा रही है।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
जागता रहा चांद,
रोती रही विभावरी।
शबनम जम गया सुबह तक।
हरेक पौधे हो गये शबनमी।
ठंड में रजनी गुजरती नहीं है।
लगता है काफी लम्बी हो गई है।
भयानक सी लगती है रात।
चांदनी केवल मुस्कुरा रही है।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
दिनाँक - 31/12/2019
विषय - रजनी/रात
विधा - कुण्डलिया
रजनी लेकर आ गई, याद पिया की संग।
अंतस पीड़ा उठ रही, तड़प रहे हैं अंग।।
तड़प रहे हैं अंग, नींद नयनों से भागी।
बसी हृदय में याद, रात सारी मैं जागी।।
वर्मा सुनो पुकार, पीर में व्याकुल सजनी।
ये कैसा संयोग, बीत रही तन्हा रजनी।।
कितनी प्यारी रात है, चमक रहा है चाँद।
सभी जीव अब आ गए, अपनी-अपनी माँद।।
अपनी-अपनी माँद, शीत समीर जो बहती।
कितना खुश आकाश, हँसी तारों की कहती।।
फैली दुधिया कांति, चाँदनी में भीगी सारी।
पूनम की ये रात, लगे है कितनी प्यारी।।
आओ मित्रों मैं कहूँ, एक राज की बात।
मुलाकात वो थी प्रथम, रही अँधेरी रात।।
रही अँधेरी रात, बुलावा छत का आया।
जाकर पकड़ा हाथ, नशा अति प्रेमिल छाया।।
आई बैरन भोर, अभी जल्दी से जाओ।
सार्थक निकली रात, पिया कल फिर से आओ।।
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
सिरसा (हरियाणा)
विषय - रजनी/रात
विधा - कुण्डलिया
रजनी लेकर आ गई, याद पिया की संग।
अंतस पीड़ा उठ रही, तड़प रहे हैं अंग।।
तड़प रहे हैं अंग, नींद नयनों से भागी।
बसी हृदय में याद, रात सारी मैं जागी।।
वर्मा सुनो पुकार, पीर में व्याकुल सजनी।
ये कैसा संयोग, बीत रही तन्हा रजनी।।
कितनी प्यारी रात है, चमक रहा है चाँद।
सभी जीव अब आ गए, अपनी-अपनी माँद।।
अपनी-अपनी माँद, शीत समीर जो बहती।
कितना खुश आकाश, हँसी तारों की कहती।।
फैली दुधिया कांति, चाँदनी में भीगी सारी।
पूनम की ये रात, लगे है कितनी प्यारी।।
आओ मित्रों मैं कहूँ, एक राज की बात।
मुलाकात वो थी प्रथम, रही अँधेरी रात।।
रही अँधेरी रात, बुलावा छत का आया।
जाकर पकड़ा हाथ, नशा अति प्रेमिल छाया।।
आई बैरन भोर, अभी जल्दी से जाओ।
सार्थक निकली रात, पिया कल फिर से आओ।।
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
सिरसा (हरियाणा)
शीर्षक- रात/रजनी
बेरिन रतिया लागे आली
बेरिन लागे हर एक खोर।
जब से गयो नन्द को लाला
मथुरा बरसाना को छोड़।
शामे सूनी रातें सूनी
और सूनी रहती हर भोर।
मुरली धुन अब कौन सुनावे
ओ छलिया ओ नन्द किशोर।
रात रात वो छवि निहारू
ज्यों निहारे चाँद चकोर।
रातों की वो नींद ले गया
वो बृजवाला माखनचोर।
'शिवम' सलोनी सूरत वाला
वो निकला निर्दयी कठोर।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 31/122019
बेरिन रतिया लागे आली
बेरिन लागे हर एक खोर।
जब से गयो नन्द को लाला
मथुरा बरसाना को छोड़।
शामे सूनी रातें सूनी
और सूनी रहती हर भोर।
मुरली धुन अब कौन सुनावे
ओ छलिया ओ नन्द किशोर।
रात रात वो छवि निहारू
ज्यों निहारे चाँद चकोर।
रातों की वो नींद ले गया
वो बृजवाला माखनचोर।
'शिवम' सलोनी सूरत वाला
वो निकला निर्दयी कठोर।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 31/122019
दिनांक-31/12/2019
विषय-रात/रजनी/विभावरी
सारे आनंद पीकर मैं मौन हूं
रजनी के अंगों पर...........?
यह कैसी अनजानी रात आई.............
व्यथित हृदय मंद मंद अकुलाई...............
एक अजीब सा खालीपन
स्याह अंधेरा था एकाकीपन
उथला- पुथला सा था मेरा मन
ढूंढता एहसासों का सन्नाटा पन
दोनों रहते थे संग संग
एक तो था खालीपन
एक तो था एकाकीपन
यह कैसा परिचय रजनी के अंगों से
एक अपरिचित शख्स से
प्रखर हो रहे मेरे शब्द
उमड़े जज्बातों के अश्क से
यह प्रतिबिंब है, या एक छलवा
प्रश्न अनेको मन में उठते
रजनी है कैसा ए तेरा जलवा
रजनी का एक सन्नाटा जीवन में आया.....................
हृदय की जर्जर तारों से खेलें
मन की अनसुनी चाहत से वो
भावनाओं के कोरे धागों को छेड़ें
शून्य संज्ञा हीन मन के भावों को
असंतृप्त अकुलाहट को झंझोरे
फिर भी हारे मन की चाह को
असंख्य बार कोमल धागों में पिरोरे
एक एकांत जीवन में आयी...?
एक प्रतीक्षा को मैं आलिंगन लगाया
सुन ए मेरे अशांत मन
चिर प्रतीक्षित के मीत
कोई कहता है प्रतीक्षा तो
स्वयं में है एक प्रीत
युगों से मेरे मन प्रतीक्षारत
तुम अब प्रतीक्षा के युग ले लो
जगा हूं मैं मलयलीन अलको से
नींद के पलकों को मुझको दे दो
तंद्रा भंग हुई अब मेरी
व्यस्त लम्हों की मजार पे
कशिश भरी रह गई दिल में
गुमनाम रंजिशो के द्वार पे
स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
विषय-रात/रजनी/विभावरी
सारे आनंद पीकर मैं मौन हूं
रजनी के अंगों पर...........?
यह कैसी अनजानी रात आई.............
व्यथित हृदय मंद मंद अकुलाई...............
एक अजीब सा खालीपन
स्याह अंधेरा था एकाकीपन
उथला- पुथला सा था मेरा मन
ढूंढता एहसासों का सन्नाटा पन
दोनों रहते थे संग संग
एक तो था खालीपन
एक तो था एकाकीपन
यह कैसा परिचय रजनी के अंगों से
एक अपरिचित शख्स से
प्रखर हो रहे मेरे शब्द
उमड़े जज्बातों के अश्क से
यह प्रतिबिंब है, या एक छलवा
प्रश्न अनेको मन में उठते
रजनी है कैसा ए तेरा जलवा
रजनी का एक सन्नाटा जीवन में आया.....................
हृदय की जर्जर तारों से खेलें
मन की अनसुनी चाहत से वो
भावनाओं के कोरे धागों को छेड़ें
शून्य संज्ञा हीन मन के भावों को
असंतृप्त अकुलाहट को झंझोरे
फिर भी हारे मन की चाह को
असंख्य बार कोमल धागों में पिरोरे
एक एकांत जीवन में आयी...?
एक प्रतीक्षा को मैं आलिंगन लगाया
सुन ए मेरे अशांत मन
चिर प्रतीक्षित के मीत
कोई कहता है प्रतीक्षा तो
स्वयं में है एक प्रीत
युगों से मेरे मन प्रतीक्षारत
तुम अब प्रतीक्षा के युग ले लो
जगा हूं मैं मलयलीन अलको से
नींद के पलकों को मुझको दे दो
तंद्रा भंग हुई अब मेरी
व्यस्त लम्हों की मजार पे
कशिश भरी रह गई दिल में
गुमनाम रंजिशो के द्वार पे
स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
विषय =रात
विधा=हाइकु
🌹🙏🌹
सारा जहान
करेगा घमासान
आज की रात
निशा पहनी
सितारों वाली साड़ी
दिखती प्यारी
निशा बनाती
रात के तवे पर
चांद सी रोटी
निशा परोसे
गगन की थाली में
चांद सी रोटी
निशा सजाए
तारों की महफिल
चांद अध्यक्ष
राह आसान
लेकर चली निशा
चांद की टार्च
दिन में दिखा
रात जैसा नजारा
सूर्यग्रहण
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
विधा=हाइकु
🌹🙏🌹
सारा जहान
करेगा घमासान
आज की रात
निशा पहनी
सितारों वाली साड़ी
दिखती प्यारी
निशा बनाती
रात के तवे पर
चांद सी रोटी
निशा परोसे
गगन की थाली में
चांद सी रोटी
निशा सजाए
तारों की महफिल
चांद अध्यक्ष
राह आसान
लेकर चली निशा
चांद की टार्च
दिन में दिखा
रात जैसा नजारा
सूर्यग्रहण
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
भावों के मोती
विषय--रात/विभा/विभावरी
आधार छंद*(१३/१२)
मन बंजारा ढूँढ़ता,
कहाँ हो तुम बताओ।
किन गलियों में जा छिपे,
जरा झलक दिखलाओ।
चाँदनी हौले उतरी,
खिड़की में आ बैठी।
लौ संग पतंगा जला,
बाती रही सिसकती।
बीते न यह दिन रातें,
अब तो तुम आ जाओ।
मन बंजारा ढूँढता,
कहाँ हो तुम बताओ।
मौसम भी बदले रंग,
यादें बैरी बनती।
चुप ही सही सखियाँ मेरे,
कानों में कह जाती।
ढूँढ़ता फिर दिल तुझको,
कोई तो बतलाओ।
मन बंजारा ढूँढ़ता,
कहाँ हो तुम बताओ।
बीते दिनों की यादें,
देकर गुजरती साल।
बीते साल में सबने ,
देखे सुख-दुख हजार।
फिर जाने खुशियाँ मिले,
आकर खुशी मनाओ।
मन बंजारा ढूँढ़ता,
कहाँ हो तुम बताओ।।
विषय--रात/विभा/विभावरी
आधार छंद*(१३/१२)
मन बंजारा ढूँढ़ता,
कहाँ हो तुम बताओ।
किन गलियों में जा छिपे,
जरा झलक दिखलाओ।
चाँदनी हौले उतरी,
खिड़की में आ बैठी।
लौ संग पतंगा जला,
बाती रही सिसकती।
बीते न यह दिन रातें,
अब तो तुम आ जाओ।
मन बंजारा ढूँढता,
कहाँ हो तुम बताओ।
मौसम भी बदले रंग,
यादें बैरी बनती।
चुप ही सही सखियाँ मेरे,
कानों में कह जाती।
ढूँढ़ता फिर दिल तुझको,
कोई तो बतलाओ।
मन बंजारा ढूँढ़ता,
कहाँ हो तुम बताओ।
बीते दिनों की यादें,
देकर गुजरती साल।
बीते साल में सबने ,
देखे सुख-दुख हजार।
फिर जाने खुशियाँ मिले,
आकर खुशी मनाओ।
मन बंजारा ढूँढ़ता,
कहाँ हो तुम बताओ।।
दिनांक 31/12/2019
विधा:हाइकु
विषय:रात/रजनी/रात्रि
पूर्णिमा रात
चाँदनी की दस्तक
अमृत वर्षा
छुपा चन्द्रमा
अमावस्या की रात
व्रत वंदना ।
काली रजनी
हुआ है बलात्कार
रोईं सभ्यता ।
फुटपाथ पे
भिखारी ठिठुरता।
शिशिर रात्रि ।
महानगर
प्रफुल्लित पूरा देश
रजनी जागी।
आज की रात्रि
धूम धडाक मचा
स्वागत बीस ।
रजनी गंधा
महकाती जीवन
देती संदेश ।
रात्रि श्रृंगार
प्रेयसी का मिलन
जीव निर्माण ।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
विधा:हाइकु
विषय:रात/रजनी/रात्रि
पूर्णिमा रात
चाँदनी की दस्तक
अमृत वर्षा
छुपा चन्द्रमा
अमावस्या की रात
व्रत वंदना ।
काली रजनी
हुआ है बलात्कार
रोईं सभ्यता ।
फुटपाथ पे
भिखारी ठिठुरता।
शिशिर रात्रि ।
महानगर
प्रफुल्लित पूरा देश
रजनी जागी।
आज की रात्रि
धूम धडाक मचा
स्वागत बीस ।
रजनी गंधा
महकाती जीवन
देती संदेश ।
रात्रि श्रृंगार
प्रेयसी का मिलन
जीव निर्माण ।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
31/12/2019
"रात/रजनी/विभावरी"
1
पूस की रात
गरीबों का संताप
जीना दुश्वार
2
पूस की रात
खलिहान है जाना
जंग समान
3
पूर्णिमा रात
चाँदनी इतराती
चाँद के संग
4
रजनी संग
सपनों ने भरा रंग
नयना दंग
5
चाँद संगिनी
रजनी मुस्कुराती
दुनिया सोती
6
आधी रात को
अकुलाई सजनी
साजन कहाँ!
7
रतिया सारी
जागती विरहिणी
प्रेम की प्यासी
8
आज की रात
अंतिम मुलाकात
सभी हों साथ
9
पुराना साल
आज रात है बाकी
माँगें विदाई
10
विदाई रात
नव वर्ष स्वागत
दुनिया मग्न
सेदोका
1
जागो हे! जीव
विभावरी गमन
उषा का आगमन
निद्रा तू त्याग
हरि नाम के संग
दिवस शुभारंभ।
2
पूस की रात
काँपते हाथ-पाँव
लाठी लेके सहारा
पहरेदार
सुनसान राहों पे
राही है वो अकेला।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।
"रात/रजनी/विभावरी"
1
पूस की रात
गरीबों का संताप
जीना दुश्वार
2
पूस की रात
खलिहान है जाना
जंग समान
3
पूर्णिमा रात
चाँदनी इतराती
चाँद के संग
4
रजनी संग
सपनों ने भरा रंग
नयना दंग
5
चाँद संगिनी
रजनी मुस्कुराती
दुनिया सोती
6
आधी रात को
अकुलाई सजनी
साजन कहाँ!
7
रतिया सारी
जागती विरहिणी
प्रेम की प्यासी
8
आज की रात
अंतिम मुलाकात
सभी हों साथ
9
पुराना साल
आज रात है बाकी
माँगें विदाई
10
विदाई रात
नव वर्ष स्वागत
दुनिया मग्न
सेदोका
1
जागो हे! जीव
विभावरी गमन
उषा का आगमन
निद्रा तू त्याग
हरि नाम के संग
दिवस शुभारंभ।
2
पूस की रात
काँपते हाथ-पाँव
लाठी लेके सहारा
पहरेदार
सुनसान राहों पे
राही है वो अकेला।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।
नमन-भावों के मोती
विषय : रात, रात्रि
विधा : हाइकू
शीतल रात
देती गहरा घात
हाय! औकात।
*
सताता चांद
विरहन की रात
क्यों धीमी चाल?
*
तन्हाई रात
लाई अश्रु सौगात
मरहम घात।
*
धुल जा रात
आने को है प्रभात
सपने कात।
*
रात्रि प्रकाश
टिमटिमाती आशा
तारे दिलासा।
*
-रीता ग्रोवर
विषय : रात, रात्रि
विधा : हाइकू
शीतल रात
देती गहरा घात
हाय! औकात।
*
सताता चांद
विरहन की रात
क्यों धीमी चाल?
*
तन्हाई रात
लाई अश्रु सौगात
मरहम घात।
*
धुल जा रात
आने को है प्रभात
सपने कात।
*
रात्रि प्रकाश
टिमटिमाती आशा
तारे दिलासा।
*
-रीता ग्रोवर
दिनांक 31-12-19
विषय- रात/रजनी/विभावरी
विधा- मुक्तक
ऐ रात तू जब भी आती है,
तन्हाई संग क्यों लाती है ।
चाँद सितारों के आगोश में,
नवयौवना सी इठलाती है।
शांत स्निग्ध स्तब्ध तू बहती,
सांय सांय सी है कुछ कहती।
ख़ामोशी के इस मंज़र में ,
कालिमा तन ओढ़े तू रहती ।
कभी पूनम का चाँद चमकता,
चाँद न हो तो चकोर बहकता।
शीतल उज्ज्वल चंद्रिका संग,
कभी न आंचल तेरा दहकता ।।
विरह में तू नागिन सी लगती ,
आंखें प्रिय बिन तुझ संग जगती ।
रात रानी भी नहीं सुवासित,
दिल का चैन तू क्यों है ठगती ।।
सन्नाटे में पसरी जब धरती,
मलिन स्वप्न नैनों में भरती ।
व्यथित हृदय वेदना आकुल,
अंतस में पीड़ा है सिसकती ।।
कुसुम लता पुंडोरा
नई दिल्ली
विषय- रात/रजनी/विभावरी
विधा- मुक्तक
ऐ रात तू जब भी आती है,
तन्हाई संग क्यों लाती है ।
चाँद सितारों के आगोश में,
नवयौवना सी इठलाती है।
शांत स्निग्ध स्तब्ध तू बहती,
सांय सांय सी है कुछ कहती।
ख़ामोशी के इस मंज़र में ,
कालिमा तन ओढ़े तू रहती ।
कभी पूनम का चाँद चमकता,
चाँद न हो तो चकोर बहकता।
शीतल उज्ज्वल चंद्रिका संग,
कभी न आंचल तेरा दहकता ।।
विरह में तू नागिन सी लगती ,
आंखें प्रिय बिन तुझ संग जगती ।
रात रानी भी नहीं सुवासित,
दिल का चैन तू क्यों है ठगती ।।
सन्नाटे में पसरी जब धरती,
मलिन स्वप्न नैनों में भरती ।
व्यथित हृदय वेदना आकुल,
अंतस में पीड़ा है सिसकती ।।
कुसुम लता पुंडोरा
नई दिल्ली
31/12
रात
वर्णिक छन्द
धार ,सम्मोहा और विमोहा छन्द में
रात
****#धार छन्द
मगण +लघु
प्यारी बात ,न्यारी रात ।
गोरी साथ ,लेके हाथ।।
मूँदे नैन ,मीठे बैन ।
बीते रैन ,आये चैन ।।
गायें गीत , भाये मीत ।
सोहे प्रीत ,मोहे जीत ।।
बाजे साज, जी लो आज।
छोड़ो काज ,सीखो राज ।।
////////////////////////////
सम्मोहा छन्द
मगण+गुरु+गुरु
***
न्यारी थी बातें ,मीठी थी रातें
क्या थी सौगातें,वो प्यारे नाते।
मूँदे जो नैना , बीती थी रैना ।
वो मीठी बोली,कानों में घोली।
गाते थे गाना,बाहों में आना,
ख्वाबों में जीना,आँखो से पीना।
कैसे वो छूटे ,कैसे वो टूटे,
वादे वो झूठे , प्रेमी थे रूठे ।
सूनी है रातें ,सूनी है बातें
आँसू को पीना,छोड़ा है जीना।।
**
///////////////////////?
विमोहा छन्द
रगण रगण
212 212
चाँदनी रात है ,प्यार की बात है।
हाथ में हाथ है ,साजना साथ है ।।
भाव ये प्रीत के ,साज ये गीत के ।
प्रेम के रंग हैं ,प्रीत के ढंग हैं।।
दम्भ में चूर क्यों ,आप हैं दूर क्यों।
वक़्त ये क्रूर है,आपसे नूर है ।।
प्रीत में गीत हो ,हार में जीत हो
प्रीत में रार है ,जीत में हार है ।
जीव में वेदना,मूल है चेतना ।
प्रेम आधार है ,प्रेम ही सार है ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
रात
वर्णिक छन्द
धार ,सम्मोहा और विमोहा छन्द में
रात
****#धार छन्द
मगण +लघु
प्यारी बात ,न्यारी रात ।
गोरी साथ ,लेके हाथ।।
मूँदे नैन ,मीठे बैन ।
बीते रैन ,आये चैन ।।
गायें गीत , भाये मीत ।
सोहे प्रीत ,मोहे जीत ।।
बाजे साज, जी लो आज।
छोड़ो काज ,सीखो राज ।।
////////////////////////////
सम्मोहा छन्द
मगण+गुरु+गुरु
***
न्यारी थी बातें ,मीठी थी रातें
क्या थी सौगातें,वो प्यारे नाते।
मूँदे जो नैना , बीती थी रैना ।
वो मीठी बोली,कानों में घोली।
गाते थे गाना,बाहों में आना,
ख्वाबों में जीना,आँखो से पीना।
कैसे वो छूटे ,कैसे वो टूटे,
वादे वो झूठे , प्रेमी थे रूठे ।
सूनी है रातें ,सूनी है बातें
आँसू को पीना,छोड़ा है जीना।।
**
///////////////////////?
विमोहा छन्द
रगण रगण
212 212
चाँदनी रात है ,प्यार की बात है।
हाथ में हाथ है ,साजना साथ है ।।
भाव ये प्रीत के ,साज ये गीत के ।
प्रेम के रंग हैं ,प्रीत के ढंग हैं।।
दम्भ में चूर क्यों ,आप हैं दूर क्यों।
वक़्त ये क्रूर है,आपसे नूर है ।।
प्रीत में गीत हो ,हार में जीत हो
प्रीत में रार है ,जीत में हार है ।
जीव में वेदना,मूल है चेतना ।
प्रेम आधार है ,प्रेम ही सार है ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
दिनांक-31/12/2019
विषय-रात /रजनी
विधा-छन्दमुक्त
जैसे जैसे रात
गहराती है
वैसे वैसे मेरी कलम
अकुलाती है
तब मैं रजनी से
काली स्याही चुरा लेती हूँ
पन्नों में चित्रकारी करने के लिए
तारों से टपके लफ़्ज़ों को
मैं अंजुरी में भर लेती हूँ
भावों की कलम से
दिल की बातें
कागज़ पर उकेर देती हूँ
फिर नींद से
बोझिल आँखों को
बंद कर निशा की गोद में
सिर रख कर सो जाती हूँ
नई स्फूर्ति ऊर्जा लेकर
पुनः नव निर्माण करने के लिए।।
✍️वंदना सोलंकी©स्वरचित
विषय-रात /रजनी
विधा-छन्दमुक्त
जैसे जैसे रात
गहराती है
वैसे वैसे मेरी कलम
अकुलाती है
तब मैं रजनी से
काली स्याही चुरा लेती हूँ
पन्नों में चित्रकारी करने के लिए
तारों से टपके लफ़्ज़ों को
मैं अंजुरी में भर लेती हूँ
भावों की कलम से
दिल की बातें
कागज़ पर उकेर देती हूँ
फिर नींद से
बोझिल आँखों को
बंद कर निशा की गोद में
सिर रख कर सो जाती हूँ
नई स्फूर्ति ऊर्जा लेकर
पुनः नव निर्माण करने के लिए।।
✍️वंदना सोलंकी©स्वरचित
भावों के मोती
दिनांक - 31/12/2019
शीर्षक -- रात/रजनी/विभावरी
मैं चरागां जलती रही रात भर
रात डायन बुझाती रही रात भर
नर्गिसी रंग में रंगी अँखियाँ मेरी
शर्म को मैं छुपाती रही रात भर
गैर के शे'रों पे आशना वो रहें
नज़्म आँसू बहाती रही रात भर
सोच कर हैं मेरे दिल के हमदर्द वो
दर्द दिल का सुनाती रही रात भर
साथ लगने लगा बोझ उनको मेरा
तीश्नगी दिल सताती रही रात भर
छोड़ तन्हा वो महफिल मेरी जब गए
तन्हा महफिल सजाती रही रात भर
क्या कहे 'आशा' क्या है गमें आशिकी
याद उनकी सताती रही रात भर
आशा पंवार
दिनांक - 31/12/2019
शीर्षक -- रात/रजनी/विभावरी
मैं चरागां जलती रही रात भर
रात डायन बुझाती रही रात भर
नर्गिसी रंग में रंगी अँखियाँ मेरी
शर्म को मैं छुपाती रही रात भर
गैर के शे'रों पे आशना वो रहें
नज़्म आँसू बहाती रही रात भर
सोच कर हैं मेरे दिल के हमदर्द वो
दर्द दिल का सुनाती रही रात भर
साथ लगने लगा बोझ उनको मेरा
तीश्नगी दिल सताती रही रात भर
छोड़ तन्हा वो महफिल मेरी जब गए
तन्हा महफिल सजाती रही रात भर
क्या कहे 'आशा' क्या है गमें आशिकी
याद उनकी सताती रही रात भर
आशा पंवार
विषय रात
विधा कविता
दिनाँक 31.12.2019
दिन मंगलवार
रात/रजनी
💘💘💘💘
रात रजनी विभावरी निशा
तय कर देती अधिकतम दिशा
प्रयास में उसने रात काली कर दी
जीवन में अपने खुशहाली भर दी।
रत जगा का आयोजन हो गया
भजन कीर्तन में मन फिर खो गया
इधर रतियाली हुई नृत्य और गीत हुए
दूल्हा दुल्हन जीवन भर के मीत हुए।
रात हुई आकाश में चाँदनी खिल गई
कवि को लिखने के लिये सुन्दर पंक्ति मिल गई
रात भर प्रेयसी का चित्र रहा कल्पना में
सब कुछ भूल गया प्रेमी अलग विडम्बना में।
रात भर षणयन्त्र हुए कुटिल प्रयास हुए
सिंहासन पलटने के गन्दे से प्रयास हुए
रात ने ही इतिहासों को झंझोडा़ है
इसके पन्नों को बुरी तरह से मोडा़ है।
आज निशा करवट लेगी और बदलेगा ये साल
ज़रा सी करवट में ही देखो होवेगा बडा़ कमाल
फिर पूछता रहेगा तीन सौ पैसठ दिन तक 2020
घुमा फिरा कर 2019 से तीखे और टेडे़ सवाल।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
विधा कविता
दिनाँक 31.12.2019
दिन मंगलवार
रात/रजनी
💘💘💘💘
रात रजनी विभावरी निशा
तय कर देती अधिकतम दिशा
प्रयास में उसने रात काली कर दी
जीवन में अपने खुशहाली भर दी।
रत जगा का आयोजन हो गया
भजन कीर्तन में मन फिर खो गया
इधर रतियाली हुई नृत्य और गीत हुए
दूल्हा दुल्हन जीवन भर के मीत हुए।
रात हुई आकाश में चाँदनी खिल गई
कवि को लिखने के लिये सुन्दर पंक्ति मिल गई
रात भर प्रेयसी का चित्र रहा कल्पना में
सब कुछ भूल गया प्रेमी अलग विडम्बना में।
रात भर षणयन्त्र हुए कुटिल प्रयास हुए
सिंहासन पलटने के गन्दे से प्रयास हुए
रात ने ही इतिहासों को झंझोडा़ है
इसके पन्नों को बुरी तरह से मोडा़ है।
आज निशा करवट लेगी और बदलेगा ये साल
ज़रा सी करवट में ही देखो होवेगा बडा़ कमाल
फिर पूछता रहेगा तीन सौ पैसठ दिन तक 2020
घुमा फिरा कर 2019 से तीखे और टेडे़ सवाल।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
31/12/2019
बिषय,, रात ,रजनी,, विभावरी
मौसम ने ली जब अंगड़ाई
लो शीत के संग बरषा आई
दिन में रात रात में दिन
कुछ पता नहीं चलता है
बस रजाई में दुबके रहने को मन करता है
देख देख मौसम का मिजाज रजनी और गहराई
साल पुराना बर्ष नए का स्वागत प्रकृति करती
मेह बरसा शीतलहर विभावरी में भरती
जकड़न बाली ठंडी में कैसे नववर्ष मनाऐं
जलवृष्टि के झमेले में घर से भी निकल न पाऐं
हे ईश्वर तुम्हारी दयादृष्टि जो है जाए
रिमझिम बारिश बादलों की कालिमा छंट जाए
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय,, रात ,रजनी,, विभावरी
मौसम ने ली जब अंगड़ाई
लो शीत के संग बरषा आई
दिन में रात रात में दिन
कुछ पता नहीं चलता है
बस रजाई में दुबके रहने को मन करता है
देख देख मौसम का मिजाज रजनी और गहराई
साल पुराना बर्ष नए का स्वागत प्रकृति करती
मेह बरसा शीतलहर विभावरी में भरती
जकड़न बाली ठंडी में कैसे नववर्ष मनाऐं
जलवृष्टि के झमेले में घर से भी निकल न पाऐं
हे ईश्वर तुम्हारी दयादृष्टि जो है जाए
रिमझिम बारिश बादलों की कालिमा छंट जाए
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
दिनांक 31/12/2019
रात/रजनी/विभावरी
थक हार चुकी हूं जीवन से
मन क्लांत हुआ अब जाता है,
जीवन के इस अंधियारे में
हे ! रजनी तुझ को ढूंढ रही हूं।
आ बैठ मेरे संग कुछ पल तो
तुझसे ही बातें करना है
आगोश में तेरे छिपकर फिर से
सारे क्लांत मिटाना है।
निराशा सिंह 'निशा'
वाराणसी , उत्तर प्रदेश
रात/रजनी/विभावरी
थक हार चुकी हूं जीवन से
मन क्लांत हुआ अब जाता है,
जीवन के इस अंधियारे में
हे ! रजनी तुझ को ढूंढ रही हूं।
आ बैठ मेरे संग कुछ पल तो
तुझसे ही बातें करना है
आगोश में तेरे छिपकर फिर से
सारे क्लांत मिटाना है।
निराशा सिंह 'निशा'
वाराणसी , उत्तर प्रदेश
31/12/2019::मंगलवार
विषय--रात, रजनी, विभावरी
बेला के फूलों पर
ओस की बूँदे.....
मोतियों सी चमक रही है
और चाँदनी रात में
फ़ूलों की महक
आँगन को गमका रही है
प्रियतम की याद में
प्रेयसी
चन्दा को निहार रही है
अपने आपसे ही
कुछ बातें किये जारही है
कुछ अकेली और
कुछ तन्हा
ऐ चांदनी तूँ ही
कुछ ऐसा कर
उसकी बेक़रारी
जा कर बयाँ कर दे
उसके प्रियतम से.........
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
विषय--रात, रजनी, विभावरी
बेला के फूलों पर
ओस की बूँदे.....
मोतियों सी चमक रही है
और चाँदनी रात में
फ़ूलों की महक
आँगन को गमका रही है
प्रियतम की याद में
प्रेयसी
चन्दा को निहार रही है
अपने आपसे ही
कुछ बातें किये जारही है
कुछ अकेली और
कुछ तन्हा
ऐ चांदनी तूँ ही
कुछ ऐसा कर
उसकी बेक़रारी
जा कर बयाँ कर दे
उसके प्रियतम से.........
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
दिनांक ३१/१२/२०१९
शीर्षक-रात
सूर्य ने ले ली है विदाई
रात आगमन की है तैयारी
अंधकार ने फैलाया सम्राज्य
आज की रात,बात है कुछ खास।
हर तरफ खुशियों की बौछार
बीत रहे हैं पुराने साल
नये साल की आगमन की तैयारी
है हमारी संस्कृति यही
विदाई समारोह में भी खूब मचाये धूम
स्वागत समारोह में भी हो न जाये कोई चूक।
आज की रात है संवेदना भारी
भारी मन से पुराने बर्ष की विदाई
खुशी मन से नये साल की
स्वागत की है तैयारी।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव
शीर्षक-रात
सूर्य ने ले ली है विदाई
रात आगमन की है तैयारी
अंधकार ने फैलाया सम्राज्य
आज की रात,बात है कुछ खास।
हर तरफ खुशियों की बौछार
बीत रहे हैं पुराने साल
नये साल की आगमन की तैयारी
है हमारी संस्कृति यही
विदाई समारोह में भी खूब मचाये धूम
स्वागत समारोह में भी हो न जाये कोई चूक।
आज की रात है संवेदना भारी
भारी मन से पुराने बर्ष की विदाई
खुशी मन से नये साल की
स्वागत की है तैयारी।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव
विषय, रात, रजनी, विभावरी .
31,12,2019.
मंगलवार.
आई विभावरी देने को राहत ,
कुछ तन मन को विश्राम मिले ।
दिन भर भटका जीव जुगत में,
यही रात कहे जरा आराम मिले।
बनती शुभकारी यामिनी जहाँ ,
वहीं घातक अंधकार हो जाये ।
जब सोये चैन से जगत सभी ,
मौज निशाचरों की तब हो जाये।
जो बेपरवाह रहें निज कर्तव्यों से,
उनके जीवन में हमेशा रात रहे।
जब ईश मिलन की आ जाये बेला,
पछतावे की तब स्वर लहरी निकले।
आराम सही, नहीं है आलस अच्छा,
अंधेरा ये जीवन में रात का ले आये।
रजनी बनी रहे जीवन में चाँदनी भरी,
हमारी कोशिश हमेशा यही बनी रहे।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
31,12,2019.
मंगलवार.
आई विभावरी देने को राहत ,
कुछ तन मन को विश्राम मिले ।
दिन भर भटका जीव जुगत में,
यही रात कहे जरा आराम मिले।
बनती शुभकारी यामिनी जहाँ ,
वहीं घातक अंधकार हो जाये ।
जब सोये चैन से जगत सभी ,
मौज निशाचरों की तब हो जाये।
जो बेपरवाह रहें निज कर्तव्यों से,
उनके जीवन में हमेशा रात रहे।
जब ईश मिलन की आ जाये बेला,
पछतावे की तब स्वर लहरी निकले।
आराम सही, नहीं है आलस अच्छा,
अंधेरा ये जीवन में रात का ले आये।
रजनी बनी रहे जीवन में चाँदनी भरी,
हमारी कोशिश हमेशा यही बनी रहे।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
"भावों के मोती"
30/12/2019
रात/रजनी/विभावरी
************
(द्वितीय प्रस्तुति)
सूनी रात में झींगुर
घुंघरू जैसे रुनझुन- रूनझुन
बजते हैं
होता मन मयूर
स्पंदित
तेरे मिलन की रात
आयी होता दिल का दीप प्रज्वलित
एहसासों से अंतर्मन भर जाता
रात की तन्हाई में
जब चुपके चुपके
वो आता है
सांसो की माला में
गूंथ प्यार के बोल
रजनी को सुरमई
गीत सुनाता है
टकटकी लगाए भाव विभोर विभावरी देखती
नाचते नाचते
मैं मीरा श्याम मयी
हो जाती
श्याम मीरा बन जाता ।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
30/12/2019
रात/रजनी/विभावरी
************
(द्वितीय प्रस्तुति)
सूनी रात में झींगुर
घुंघरू जैसे रुनझुन- रूनझुन
बजते हैं
होता मन मयूर
स्पंदित
तेरे मिलन की रात
आयी होता दिल का दीप प्रज्वलित
एहसासों से अंतर्मन भर जाता
रात की तन्हाई में
जब चुपके चुपके
वो आता है
सांसो की माला में
गूंथ प्यार के बोल
रजनी को सुरमई
गीत सुनाता है
टकटकी लगाए भाव विभोर विभावरी देखती
नाचते नाचते
मैं मीरा श्याम मयी
हो जाती
श्याम मीरा बन जाता ।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
शीर्षक- रात/विभावरी
विधा-गीत
पुरानी गायिका निर्मला देवी की गायी ठुमरी- मैंने लाखों के बोल सहे
की तर्ज़ पर
सूनी है रात सखी
सखी """""""""""""
सूनी है रात सखी
बृजवाला ने जादू डाला
निकला वैरी दिल का काला
कटे न विरहा की घड़ी
घड़ी"""""""""""""""""
सूनी है रात सखी
रात रात भर नींद न आवे
विरहा अग्नि जियरा जलावे
कहूँ जाय न पीर कही
कही """""""""""""
सूनी है रात सखी
जमना तट पर रास रचायो
कैसे कैसे जिया रिझायो
भूलो प्रीत की रीत सभी
सभी """""""""""
सूनी है रात सखी
संदेशा भी कहाँ भिजाऊ
पाती भी क्या मैं लिखाऊ
कैसो निकलो निष्ठुर मति
मति """"""""""
सूनी है रात सखी
रातें बैरन लागे आली
भाय न मोहे होली दिवाली
'शिवम' काया सूख गयी
गयी """""""""""
सूनी है रात सखी
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 31/12/2019
विधा-गीत
पुरानी गायिका निर्मला देवी की गायी ठुमरी- मैंने लाखों के बोल सहे
की तर्ज़ पर
सूनी है रात सखी
सखी """""""""""""
सूनी है रात सखी
बृजवाला ने जादू डाला
निकला वैरी दिल का काला
कटे न विरहा की घड़ी
घड़ी"""""""""""""""""
सूनी है रात सखी
रात रात भर नींद न आवे
विरहा अग्नि जियरा जलावे
कहूँ जाय न पीर कही
कही """""""""""""
सूनी है रात सखी
जमना तट पर रास रचायो
कैसे कैसे जिया रिझायो
भूलो प्रीत की रीत सभी
सभी """""""""""
सूनी है रात सखी
संदेशा भी कहाँ भिजाऊ
पाती भी क्या मैं लिखाऊ
कैसो निकलो निष्ठुर मति
मति """"""""""
सूनी है रात सखी
रातें बैरन लागे आली
भाय न मोहे होली दिवाली
'शिवम' काया सूख गयी
गयी """""""""""
सूनी है रात सखी
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 31/12/2019
। रात्रि में दर्द ।।
रात्रि में दर्द छुपा गहराया है।
मदमाया सबको रुलाया है।।
नगरों की चकाचोंध में
किसी को उजियाला
किसी को अँधियारा
दिखलाया है।
रात्रि में दर्द......
उन बच्चों को बेबस बना
मजदूरी का रूप दिखलाया है
आँखो से आँसू टपकाकर
उनका दुःख जतलया है।
रात्रि में दर्द......
जिन हाथों में किताब-कलम होनी थी
हाथों में मजदूरी का टोकरा थमवाया है,
उन कोमल हाथों में छाले देखकर
आँसुओ से अँधियारा दिखलाया है।
रात्रि में दर्द........
सारा दिन काम करवाकर
संसार ने भूखा सुलाया है
बेबस उन निराश आँखो ने
अपना भाग्य दिखलाया है।
रात्रि में दर्द.......
भाविक भावी
रात्रि में दर्द छुपा गहराया है।
मदमाया सबको रुलाया है।।
नगरों की चकाचोंध में
किसी को उजियाला
किसी को अँधियारा
दिखलाया है।
रात्रि में दर्द......
उन बच्चों को बेबस बना
मजदूरी का रूप दिखलाया है
आँखो से आँसू टपकाकर
उनका दुःख जतलया है।
रात्रि में दर्द......
जिन हाथों में किताब-कलम होनी थी
हाथों में मजदूरी का टोकरा थमवाया है,
उन कोमल हाथों में छाले देखकर
आँसुओ से अँधियारा दिखलाया है।
रात्रि में दर्द........
सारा दिन काम करवाकर
संसार ने भूखा सुलाया है
बेबस उन निराश आँखो ने
अपना भाग्य दिखलाया है।
रात्रि में दर्द.......
भाविक भावी
विषय-रात /रजनी
विधा-कविता
दिनांक -31/12/2019
मंगलवार
रात हो अंधियारी ,कुछ दिखाई नहीं देता ।
जब सवेरा होता ,सबको प्रकाशित करता।।
माॅ धरती को चूमती ,सूर्य किरण चहुं ओर।
ऐसी आभा देखकर ,फूल खिलें हर छोर।।
जब उगे यह सूरज ,महकती सारी बगियाॅ ।
पाकर माॅ का प्यार ,फूल बन खिलती कलियाॅ।।
हरियाली ये सूर्य से ,धरा का सौंदर्य।
रंग सदा भरता यही ,जीवन में माधुर्य ।।
सत्य सनातन धर्म ,सबके ह्रदय को भाता।
रंग लुभाये हरा ,रंग केसरिया लाता।।
एक दीप भी यहाॅ, अंधकार मिटा देता।
दीप ज्योति देख ,अंधकार छू हो जाता।।
ज्ञान के दीप जले सदा,रौशन जहाॅ करे।
रात अंधियारी होती ,सबको भ्रमित करे ।।
स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
विधा-कविता
दिनांक -31/12/2019
मंगलवार
रात हो अंधियारी ,कुछ दिखाई नहीं देता ।
जब सवेरा होता ,सबको प्रकाशित करता।।
माॅ धरती को चूमती ,सूर्य किरण चहुं ओर।
ऐसी आभा देखकर ,फूल खिलें हर छोर।।
जब उगे यह सूरज ,महकती सारी बगियाॅ ।
पाकर माॅ का प्यार ,फूल बन खिलती कलियाॅ।।
हरियाली ये सूर्य से ,धरा का सौंदर्य।
रंग सदा भरता यही ,जीवन में माधुर्य ।।
सत्य सनातन धर्म ,सबके ह्रदय को भाता।
रंग लुभाये हरा ,रंग केसरिया लाता।।
एक दीप भी यहाॅ, अंधकार मिटा देता।
दीप ज्योति देख ,अंधकार छू हो जाता।।
ज्ञान के दीप जले सदा,रौशन जहाॅ करे।
रात अंधियारी होती ,सबको भ्रमित करे ।।
स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
दिनाँक-31/12/2019
शीर्षक-रात ,रजनी,विभावरी
विधा -हाइकु
1.
अंधेरी रात
टिमटिमाते तारे
लगते प्यारे
2.
छिपा सूरज
मुस्कराई रजनी
छाया अंधेरा
3.
बीती रजनी
छट गया अंधेरा
हुआ सवेरा
4.
शीतल रात
ठिठुरता चंद्रमा
तारों के साथ
5.
पूनम रात
धवल हुई धरा
खिली चाँदनी
6..
चंद्र किरणें
करती अठखेली
जल थल में
*************
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
शीर्षक-रात ,रजनी,विभावरी
विधा -हाइकु
1.
अंधेरी रात
टिमटिमाते तारे
लगते प्यारे
2.
छिपा सूरज
मुस्कराई रजनी
छाया अंधेरा
3.
बीती रजनी
छट गया अंधेरा
हुआ सवेरा
4.
शीतल रात
ठिठुरता चंद्रमा
तारों के साथ
5.
पूनम रात
धवल हुई धरा
खिली चाँदनी
6..
चंद्र किरणें
करती अठखेली
जल थल में
*************
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
विषय- रात /रजनी
दिनांक 31-12- 2019
रात्रि के अंतिम प्रहर,तुम न मुझसे दूर जाना।
बहुत किया इंतजार,ना कोई बहाना बनाना।।
आज होठों पे तुम,कोई एक तराना दे जाना।
दिनभर गुनगुनाऊंगी ,रात को आ जाना ।।
रात के हर प्रहर की, मधुर याद छोड़ जाना।
जहाँ बड़ा बेरहम ,फिर ना हो मिल पाना ।।
आज रात मधु पिला,होश में मैं ना रहना।
जीवन गुजारु याद में,एक याद दे जाना।।
ना मिल पाए कभी,चाँद चकोर बन जाना।
मैं निहारा करूंगी,तुम मुझसे दूर न जाना।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 31-12- 2019
रात्रि के अंतिम प्रहर,तुम न मुझसे दूर जाना।
बहुत किया इंतजार,ना कोई बहाना बनाना।।
आज होठों पे तुम,कोई एक तराना दे जाना।
दिनभर गुनगुनाऊंगी ,रात को आ जाना ।।
रात के हर प्रहर की, मधुर याद छोड़ जाना।
जहाँ बड़ा बेरहम ,फिर ना हो मिल पाना ।।
आज रात मधु पिला,होश में मैं ना रहना।
जीवन गुजारु याद में,एक याद दे जाना।।
ना मिल पाए कभी,चाँद चकोर बन जाना।
मैं निहारा करूंगी,तुम मुझसे दूर न जाना।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
विषय-- रात, रजनी, विभावरी
मुक्त छन्द
यह रात ढले संताप कटे, खुशहाली लौटे घर घर में।
बहुत लुटाया हम सबने, है शान्ति कामना जन जन से।।
इस साल मिले हैं दुख ऐसे, न घाव भरेंगे वर्षों में।
जिसने खोया है अपनों को,कैसे निकलेंगे सदमों से।।
फिर भी रब से यह आशा है, भय का मंजर अब दूर करे।
हर कौम मिले इक दूजे से, माँ का क्रंदन जो दूर करे।।
नफरत फैलाने वालों में,हर पल बस अब कोलाहल हो।
नई सुबह में नए हिन्द का, नया सृजन सुखदायक हो।।
खोने के गम से उबरें सब,सपने सबके फलदायक हों।
ऋहो नई चेतना जन जन में, हर हाथ सृजन में सहायक हो।।
(अशोक राय वत्स)© स्वरचित
रैनी ,मऊ,उत्तरप्रदेश
मुक्त छन्द
यह रात ढले संताप कटे, खुशहाली लौटे घर घर में।
बहुत लुटाया हम सबने, है शान्ति कामना जन जन से।।
इस साल मिले हैं दुख ऐसे, न घाव भरेंगे वर्षों में।
जिसने खोया है अपनों को,कैसे निकलेंगे सदमों से।।
फिर भी रब से यह आशा है, भय का मंजर अब दूर करे।
हर कौम मिले इक दूजे से, माँ का क्रंदन जो दूर करे।।
नफरत फैलाने वालों में,हर पल बस अब कोलाहल हो।
नई सुबह में नए हिन्द का, नया सृजन सुखदायक हो।।
खोने के गम से उबरें सब,सपने सबके फलदायक हों।
ऋहो नई चेतना जन जन में, हर हाथ सृजन में सहायक हो।।
(अशोक राय वत्स)© स्वरचित
रैनी ,मऊ,उत्तरप्रदेश
दिवस👉मंगलवार
दिनांक👉 ३१/१२/२०१९
विषय👉लालसा
थी लालषा नैन फेरकर वक्त चलागया ,
"न" भूल पाऊंगा "न" रख पाया,
कुछ ऐसा पल जिंदगी में दे गया,
उस पल बीज जो बोये थे लालषा के,
सजाने को फूलवारी,
जिंदगी का हार पिरो"न" पाया ,
वो लालषा भरा वक्त कर्जदारअनोखा बना गया ,
घर की चौखट पर खड़ी थी बेटी,
रखने को घर की बुनियाद बढ़ाये जो कदम,
आसा में उलझनो का घाव नया दे गया,
सुना था उलझन हाथ का मैल है पुरूष के,
पुरूषार्थ की रेखायें पढ़ता वो,
मैंने हथेली थमाई वो लालषा में हाथ ही लपेट गया,
हम पीतेरहे कड़वाहट जिंदगी की,
कुछ खास करते हिफाज़त कल की,
लालषा में वो तो चला
हर पल के यादों की लालषा भरी परेशानी नई दे गया।।
गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक
दिनांक👉 ३१/१२/२०१९
विषय👉लालसा
थी लालषा नैन फेरकर वक्त चलागया ,
"न" भूल पाऊंगा "न" रख पाया,
कुछ ऐसा पल जिंदगी में दे गया,
उस पल बीज जो बोये थे लालषा के,
सजाने को फूलवारी,
जिंदगी का हार पिरो"न" पाया ,
वो लालषा भरा वक्त कर्जदारअनोखा बना गया ,
घर की चौखट पर खड़ी थी बेटी,
रखने को घर की बुनियाद बढ़ाये जो कदम,
आसा में उलझनो का घाव नया दे गया,
सुना था उलझन हाथ का मैल है पुरूष के,
पुरूषार्थ की रेखायें पढ़ता वो,
मैंने हथेली थमाई वो लालषा में हाथ ही लपेट गया,
हम पीतेरहे कड़वाहट जिंदगी की,
कुछ खास करते हिफाज़त कल की,
लालषा में वो तो चला
हर पल के यादों की लालषा भरी परेशानी नई दे गया।।
गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक
तिथि-31/12/2019 मंगलवार
विषय-* रजनी/ विभावरी/रात/रात्रि*
विधा॒॒॒ -काव्य
चहुंओर
घोर अंधकार
रात्रि व्यवहार
दिनमान दुराचार
मनुष्य भूलासभी सदाचार।
रजनीचर बन गए
मुखौटों में छिपकर
खादी में लिपटकर
व्यभिचार कर रहे।
कलुषित उर
हम धवल कर रहे
देखिये बेशर्म आपके सामने ही
सीना तानकर
सुखमय जी रहे।
स्वाभिमान बेच दिया
विभावरी नोंचकर
निज कपाल धो रहे।
मूढ हमें मान रहे
क्यों हम जो गुणगान कर रहे।
रातदिन
कौन चरण पकड रहे।
सभी बात जानते
इन्हें यहीं पालते
हमें कुत्ते मानते
क्यों इनके तलबे चाटते।
राजरानी जो थी कभी
कलंक माथे पर
आज रातरानी हो गई।
भीड ने मसल डाला
हम देखते रहे
स्वप्न सब धूमिल हुऐ
तन मन मलिन कहीं
व्यभिचार बुद्धिजीवी
सुविचार ढूंढते रहे।
महानता मर गई
मानवता ही रूठी कहीं
अब विभावरी
काली गहरी जो हुई
देखें कब कौन बना
छुईमुई।
स्वरचितःः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
विषय-* रजनी/ विभावरी/रात/रात्रि*
विधा॒॒॒ -काव्य
चहुंओर
घोर अंधकार
रात्रि व्यवहार
दिनमान दुराचार
मनुष्य भूलासभी सदाचार।
रजनीचर बन गए
मुखौटों में छिपकर
खादी में लिपटकर
व्यभिचार कर रहे।
कलुषित उर
हम धवल कर रहे
देखिये बेशर्म आपके सामने ही
सीना तानकर
सुखमय जी रहे।
स्वाभिमान बेच दिया
विभावरी नोंचकर
निज कपाल धो रहे।
मूढ हमें मान रहे
क्यों हम जो गुणगान कर रहे।
रातदिन
कौन चरण पकड रहे।
सभी बात जानते
इन्हें यहीं पालते
हमें कुत्ते मानते
क्यों इनके तलबे चाटते।
राजरानी जो थी कभी
कलंक माथे पर
आज रातरानी हो गई।
भीड ने मसल डाला
हम देखते रहे
स्वप्न सब धूमिल हुऐ
तन मन मलिन कहीं
व्यभिचार बुद्धिजीवी
सुविचार ढूंढते रहे।
महानता मर गई
मानवता ही रूठी कहीं
अब विभावरी
काली गहरी जो हुई
देखें कब कौन बना
छुईमुई।
स्वरचितःः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
विषय- रात/रजनी/विभावरी
धवल चाँदनी रात में
सितारों जड़ी
चादर ओढ़े
शबनम से नहाई
बैठी है धरा
यौवन से भरपूर
मुस्काता चाँद
देख रहा है
लजाई धरा को
हसरत से
मगर धरती को प्रतीक्षा है
प्राची से उगते सूरज की
क्षितिज पर
मिलन की आस लिए
रात के इस
चौथे पहर में
सोच रही है
कब बीतेगी
विभावरी
किरणों के रथ पर
सवार भास्कर
समेट लेगा
धरा को
अपने आगोश में
ओढ़ा कर
स्वर्णिम रश्मियों की
रेशमी चादर
विदा कर
विभावरी को
सरिता गर्ग
धवल चाँदनी रात में
सितारों जड़ी
चादर ओढ़े
शबनम से नहाई
बैठी है धरा
यौवन से भरपूर
मुस्काता चाँद
देख रहा है
लजाई धरा को
हसरत से
मगर धरती को प्रतीक्षा है
प्राची से उगते सूरज की
क्षितिज पर
मिलन की आस लिए
रात के इस
चौथे पहर में
सोच रही है
कब बीतेगी
विभावरी
किरणों के रथ पर
सवार भास्कर
समेट लेगा
धरा को
अपने आगोश में
ओढ़ा कर
स्वर्णिम रश्मियों की
रेशमी चादर
विदा कर
विभावरी को
सरिता गर्ग