ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें
ब्लॉग संख्या :-605
विषय प्रखर,प्रचंड, तेज
विधा काव्य
24 दिसम्बर 2019,मंगलवार
प्रखर तेज स्वरूप विधाता
जग नियन्ता पालन करता।
श्री चरणों में शीश समर्पित
प्रिय जीवन के करता धर्ता।
तेज प्रभंजन चले आंधियां
खलबली मच जाती भू पर।
सागर की लहरें हिल उठती
सुनामी आती जल थल पर।
तेज प्रवाह आता नदियों में
जग में विप्लव छा जाता है।
प्रचंड गति होती जब वर्षा
कौहराम वसुधा पे आता है।
अति सदा बुरी ही होती है
तेज गुस्से में विवेक मरता ।
जो जैसा करता जग जीवन
वह वैसा जीवन में भरता ।
तेज प्रखर बनो जग जीवन
सुमति से सब कुछ मिलता।
तन तोड़ करो नित मेहनत
सदा जीवन पुनःये खिलता।
अद्भुत जीवन आज मिला
बड़े भाग्यशाली हम सारे ।
पर उपकार जीवन जी लो
प्रखर भक्ति से प्रभु ने तारे ।
स्वरचित मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
24 दिसम्बर 2019,मंगलवार
प्रखर तेज स्वरूप विधाता
जग नियन्ता पालन करता।
श्री चरणों में शीश समर्पित
प्रिय जीवन के करता धर्ता।
तेज प्रभंजन चले आंधियां
खलबली मच जाती भू पर।
सागर की लहरें हिल उठती
सुनामी आती जल थल पर।
तेज प्रवाह आता नदियों में
जग में विप्लव छा जाता है।
प्रचंड गति होती जब वर्षा
कौहराम वसुधा पे आता है।
अति सदा बुरी ही होती है
तेज गुस्से में विवेक मरता ।
जो जैसा करता जग जीवन
वह वैसा जीवन में भरता ।
तेज प्रखर बनो जग जीवन
सुमति से सब कुछ मिलता।
तन तोड़ करो नित मेहनत
सदा जीवन पुनःये खिलता।
अद्भुत जीवन आज मिला
बड़े भाग्यशाली हम सारे ।
पर उपकार जीवन जी लो
प्रखर भक्ति से प्रभु ने तारे ।
स्वरचित मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनांक-24/12/2019
विषय-प्रचंड
वीरों का वसंत - होता है प्रचंड
हौसला था जिनके दिलों में
जोश जिनकी रगो में था।
सर झुका है उनके सदके
फर्ज जिनके दर पे था।
रक्त धमनियों में उबल रहा
जज्बा जिनके सर पे था।
खड़े थे बारूदो के विध्वंस पे
रूतबा उनका कम न था।
धधक रही थी सीने में ज्वाला
प्रलय उनका प्रचंड था।
अंगार बना था हार उनका
रोष उनका अनंत था।
खंडहर थे दर्द के रास्ते
साहस उनका भुजंग था।
कसक भरी थी अधरों में
लहजा उनका नम ही था
मुद्दतों से मौत ने तरसाया
मृत्यु की आरजू कम न था।
शत्रु दृश्य हो या अदृश्य हो
मौत एहसास का,उनका अंतरंग था।
नफरतों का जुल्म था
शूलो का संग अनंत था।
खड़ी थी बारुदो की आभा
फिर भी प्रदीप्त मन ज्वलंत था।।
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
विषय-प्रचंड
वीरों का वसंत - होता है प्रचंड
हौसला था जिनके दिलों में
जोश जिनकी रगो में था।
सर झुका है उनके सदके
फर्ज जिनके दर पे था।
रक्त धमनियों में उबल रहा
जज्बा जिनके सर पे था।
खड़े थे बारूदो के विध्वंस पे
रूतबा उनका कम न था।
धधक रही थी सीने में ज्वाला
प्रलय उनका प्रचंड था।
अंगार बना था हार उनका
रोष उनका अनंत था।
खंडहर थे दर्द के रास्ते
साहस उनका भुजंग था।
कसक भरी थी अधरों में
लहजा उनका नम ही था
मुद्दतों से मौत ने तरसाया
मृत्यु की आरजू कम न था।
शत्रु दृश्य हो या अदृश्य हो
मौत एहसास का,उनका अंतरंग था।
नफरतों का जुल्म था
शूलो का संग अनंत था।
खड़ी थी बारुदो की आभा
फिर भी प्रदीप्त मन ज्वलंत था।।
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
नमन मंच
शीर्षक-प्रखर/तेज
प्रथम प्रस्तुति
कुछ चेहरे खास होते हैं
ज्यों आफताब पास होते हैं।।
उनकी गुणवत्ता के हमको
दूर से अहसास होते हैं ।।
तेज झलकते चेहरे वो
बदन भले हो इकहरे वो ।।
ऊर्जा उनमें हो यूँ भरी
जैसे हो सागर गहरे वो। ।
पढ़ लेते हैं पढ़ने वाले
खुले जिनके मन के ताले ।।
'शिवम' सार्थकता जीवन की
मिलेगी उनसे मेल मिला ले ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 24/12/2019
शीर्षक-प्रखर/तेज
प्रथम प्रस्तुति
कुछ चेहरे खास होते हैं
ज्यों आफताब पास होते हैं।।
उनकी गुणवत्ता के हमको
दूर से अहसास होते हैं ।।
तेज झलकते चेहरे वो
बदन भले हो इकहरे वो ।।
ऊर्जा उनमें हो यूँ भरी
जैसे हो सागर गहरे वो। ।
पढ़ लेते हैं पढ़ने वाले
खुले जिनके मन के ताले ।।
'शिवम' सार्थकता जीवन की
मिलेगी उनसे मेल मिला ले ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 24/12/2019
24/12/19
सूर्य उदित हो रहा।
पवित्र हो गई धरा।
सहस्त्र रश्म रश्मिया।
सहस्त्र कोटि राशियां।
निकल पड़ी सङ्ग में
स्वर्ण रजत अस्व सजा।
चमक उठी समस्त धरा।
मचल उठा जग सजा।
प्रखर प्रचंड रूप ले
सूर्य आगमन हो गया।
छितिज के एक ओर से
दूसरा भी चमक उठा।
बज उठे मंदिर और ताल।
सज गए है सभी केभाल।
उठ गए जग के लाल।
चमक उठा समस्त प्रभात।
स्वरचित
मीना तिवारी
सूर्य उदित हो रहा।
पवित्र हो गई धरा।
सहस्त्र रश्म रश्मिया।
सहस्त्र कोटि राशियां।
निकल पड़ी सङ्ग में
स्वर्ण रजत अस्व सजा।
चमक उठी समस्त धरा।
मचल उठा जग सजा।
प्रखर प्रचंड रूप ले
सूर्य आगमन हो गया।
छितिज के एक ओर से
दूसरा भी चमक उठा।
बज उठे मंदिर और ताल।
सज गए है सभी केभाल।
उठ गए जग के लाल।
चमक उठा समस्त प्रभात।
स्वरचित
मीना तिवारी
२४-१२-२०१९
विषय-प्र्खर/तेज़/प्रचंड
"कलाधर छंद" पर,,,,,,
**************************
गुरु लघु की आवृत्ति 15 बार ,,,चरणांत एक गुरु
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
********************************
भारती पुकारती,सुनो पुकार देश-वीर,
देश को बचाइये,सुधीर- वीर सैनिकों !
शक्ति धार के,*प्रचंड -लक्ष्य में रहो सदैव,
जै निनाद घोष संग,हो अधीर सैनिकों!
ना झुको,डटे रहो,महान- देश के जवान,
जीत की उमंग में,बढो प्रवीर सैनिकों!
देश- अस्मिता झुकाय,घात से चलाय तीर,
मार डालिए तुरंत वक्ष-चीर,,सैनिकों!!
*********************************
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
विषय-प्र्खर/तेज़/प्रचंड
"कलाधर छंद" पर,,,,,,
**************************
गुरु लघु की आवृत्ति 15 बार ,,,चरणांत एक गुरु
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
********************************
भारती पुकारती,सुनो पुकार देश-वीर,
देश को बचाइये,सुधीर- वीर सैनिकों !
शक्ति धार के,*प्रचंड -लक्ष्य में रहो सदैव,
जै निनाद घोष संग,हो अधीर सैनिकों!
ना झुको,डटे रहो,महान- देश के जवान,
जीत की उमंग में,बढो प्रवीर सैनिकों!
देश- अस्मिता झुकाय,घात से चलाय तीर,
मार डालिए तुरंत वक्ष-चीर,,सैनिकों!!
*********************************
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
24 /12/2019
बिषय ,.प्रखर ,,प्रचंड,, तेज
शनैः शनैः शीतलहर प्रचंड हो रही
शबनम की बूंद पत्तियों का मुख धो रही
सूर्य की रश्मियां फैलती हो प्रखर
मुस्कराती हुई कलियां हो जाती हैं मुखर
दोनों ही तेज हो अपना रंग दिखा रहे
चलते ही रहना जिंदगी हमको सिखा रहे
जो रुक गए तो फिर बढ़ न पाएंगें
आशावादी बन कुछ कर दिखाना है
हौसले हो बुलंद न हारकर बैठ जाना है
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार
बिषय ,.प्रखर ,,प्रचंड,, तेज
शनैः शनैः शीतलहर प्रचंड हो रही
शबनम की बूंद पत्तियों का मुख धो रही
सूर्य की रश्मियां फैलती हो प्रखर
मुस्कराती हुई कलियां हो जाती हैं मुखर
दोनों ही तेज हो अपना रंग दिखा रहे
चलते ही रहना जिंदगी हमको सिखा रहे
जो रुक गए तो फिर बढ़ न पाएंगें
आशावादी बन कुछ कर दिखाना है
हौसले हो बुलंद न हारकर बैठ जाना है
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार
दिनांक, 24,12, 2019.
दिन , मंगलवार .
जीवन संग्राम जीतना है तो सहनी प्रचंड धूप
सूरज दिन प्रतिदिन क्यों तपता है माटी सोना तब ही होगी ,
रवि की किरणों की प्रखरता ही से प्रकृति सृष्टि करती होगी ।
बादल वर्षा पानी अनाज सब होगी ,
दिन , मंगलवार .
जीवन संग्राम जीतना है तो सहनी प्रचंड धूप
सूरज दिन प्रतिदिन क्यों तपता है माटी सोना तब ही होगी ,
रवि की किरणों की प्रखरता ही से प्रकृति सृष्टि करती होगी ।
बादल वर्षा पानी अनाज सब होगी ,
तेज हवा के झोंकों में ही तेरी बुद्धि और प्रखर होगी ।
जो कभी कर्म भूभि में डटा नहीं उसे प्रखरता कैसे हासिल होगी ,
दुनियाँ की रीत यही तो है ये काया तपकर ही कुदंन होगी । फसलें मुमकिन इससे होगीं।
ओजस्विता, प्रखरता प्रचंडता गति इसके बिन कैसे संभव होगी,
जब तक तेज न होगा मानव में ये दुनियाँ विकसित कैसे होगी।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश .
प्रखर प्रचंड तेज
बनों
प्रचंड
जीवन में
लो हर
चुनौतियों से
लोहा
सफलताएं
चूमेंगी कदम
अनेक
रखो
रफ्तार तेज
जीवन में
तभी जीत
पाओगे
प्रतिस्पर्धा के
इस दौर में
प्रखर बनो
प्रचंड बनो
करो वार तेज
अनेक
समझो मत
कमजोर
अपने को
संघर्ष ही
जीवन है
लेना है
संकल्प यह
सलफता
पायेंगे हम
अनेक
देख लो
इतिहास
जीता वही
युद्ध में
थे जिसके
प्रहार
अनेक
रखो मानसिकता
खुली हमेशा
सकारात्मक
हो विचार
नहीं है
बाधा कोई
जीवन में
करोगे फतह
शिखर
अनेक
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
बनों
प्रचंड
जीवन में
लो हर
चुनौतियों से
लोहा
सफलताएं
चूमेंगी कदम
अनेक
रखो
रफ्तार तेज
जीवन में
तभी जीत
पाओगे
प्रतिस्पर्धा के
इस दौर में
प्रखर बनो
प्रचंड बनो
करो वार तेज
अनेक
समझो मत
कमजोर
अपने को
संघर्ष ही
जीवन है
लेना है
संकल्प यह
सलफता
पायेंगे हम
अनेक
देख लो
इतिहास
जीता वही
युद्ध में
थे जिसके
प्रहार
अनेक
रखो मानसिकता
खुली हमेशा
सकारात्मक
हो विचार
नहीं है
बाधा कोई
जीवन में
करोगे फतह
शिखर
अनेक
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
24/12/19
प्रचंड ,प्रखर
****
सदा रही प्रचंड जिज्ञासा ,क्या जीवन आधार।
प्रश्न कई अनुत्तरित रहते ,लगा हुआ भंडार ।।
फल कर्मों का यदि मिलता जो,परिश्रम का क्या लाभ।
कर्म,नियति में उलझे रहते ,लिये समय की मार।।
धर्म बना इंसानों से या ,इंसानों से धर्म ।
कीमत प्राणों की सस्ती है,रोटी का व्यापार ।।
भगवान बसे पत्थर में !क्यों,मनुज हुआ हैवान ।
देख धरा की अद्भुत पीड़ा, रोता रचनाकार ।।
जीवन है अनबूझ पहेली,परम सत्य है मौत ।
प्रखर हुआ आडम्बर जो अब ,ये जीवन का रार ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
प्रचंड ,प्रखर
****
सदा रही प्रचंड जिज्ञासा ,क्या जीवन आधार।
प्रश्न कई अनुत्तरित रहते ,लगा हुआ भंडार ।।
फल कर्मों का यदि मिलता जो,परिश्रम का क्या लाभ।
कर्म,नियति में उलझे रहते ,लिये समय की मार।।
धर्म बना इंसानों से या ,इंसानों से धर्म ।
कीमत प्राणों की सस्ती है,रोटी का व्यापार ।।
भगवान बसे पत्थर में !क्यों,मनुज हुआ हैवान ।
देख धरा की अद्भुत पीड़ा, रोता रचनाकार ।।
जीवन है अनबूझ पहेली,परम सत्य है मौत ।
प्रखर हुआ आडम्बर जो अब ,ये जीवन का रार ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
भावों के मोती
शीर्षक- प्रखर
प्रखर प्रतिभावान है वो मगर
भाग्य अनुकूल नहीं है उसका।
कड़ा श्रम करके भी न मिला
अनुरूप प्रतिफल मेहनत का।
होकर मायूस बैठ गया है वो
काश,कोई आकर हौसला बढ़ाता।
भटक न जाए वो,यह डर सताता।
क्यूं कभी कभी किस्मत रुठ कर।
हंसती हम पर मनमानी कर।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
शीर्षक- प्रखर
प्रखर प्रतिभावान है वो मगर
भाग्य अनुकूल नहीं है उसका।
कड़ा श्रम करके भी न मिला
अनुरूप प्रतिफल मेहनत का।
होकर मायूस बैठ गया है वो
काश,कोई आकर हौसला बढ़ाता।
भटक न जाए वो,यह डर सताता।
क्यूं कभी कभी किस्मत रुठ कर।
हंसती हम पर मनमानी कर।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
बहुत तेज चलती हैं समय की रेखा
एक क्षण में कई सदियां बदल जाती हैं
एक मुद्द्त से मुझे तेरी तलाश थी
जब मुझे तू मिली जैसे कल की बात हैं .
वक्त का हर लम्हा इतना तेज चला हैं
कुछ ही लम्हें बिताये तेरे संग
वक्त की चाबी से वक्त बदल गया
फिर तू मुझसे करीब होकर दूर हो गई.
ऐसे ही जिंदगी का सफर तेज चलता रहा
वक्त का हर फहर गुजरता गया
कभी उसकी इश्क की चाल तेज थी
और कभी मेरी चाहत की रफ्तार तेज थी .
स्वरचित :- रीता बिष्ट
एक क्षण में कई सदियां बदल जाती हैं
एक मुद्द्त से मुझे तेरी तलाश थी
जब मुझे तू मिली जैसे कल की बात हैं .
वक्त का हर लम्हा इतना तेज चला हैं
कुछ ही लम्हें बिताये तेरे संग
वक्त की चाबी से वक्त बदल गया
फिर तू मुझसे करीब होकर दूर हो गई.
ऐसे ही जिंदगी का सफर तेज चलता रहा
वक्त का हर फहर गुजरता गया
कभी उसकी इश्क की चाल तेज थी
और कभी मेरी चाहत की रफ्तार तेज थी .
स्वरचित :- रीता बिष्ट
"भावों के मोती'
24/12/2019
प्रचंड/तेज़/प्रखर
***************
प्रचंड ज्वाला में
धधकती मै
मौन धरती सी,
तेज़ मेरा होता
और प्रखर प्रबल
जब असह बेदना
से होता मन आहत
सह अत्याचार सभी सहनशील
शांत सी रहती ,
बन शीतल जल
बहती निरन्तर
सरिता सी,बांधती
संसार को निश्छल
प्रेम में,सींचती स्नेह गेह में, दे
यह उपहार जग
को,भर जाती अप्रियतम ओज़ में
मैं एक मौन स्त्री ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
24/12/2019
प्रचंड/तेज़/प्रखर
***************
प्रचंड ज्वाला में
धधकती मै
मौन धरती सी,
तेज़ मेरा होता
और प्रखर प्रबल
जब असह बेदना
से होता मन आहत
सह अत्याचार सभी सहनशील
शांत सी रहती ,
बन शीतल जल
बहती निरन्तर
सरिता सी,बांधती
संसार को निश्छल
प्रेम में,सींचती स्नेह गेह में, दे
यह उपहार जग
को,भर जाती अप्रियतम ओज़ में
मैं एक मौन स्त्री ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
विषय -प्रखर/ तेज
दिनांक 24-12 -2019
मैंने जिंदगी में,हार ना कभी मानी है।
सत्य संघर्ष हित,आवाज उठा ली है।
अपनी प्रखर बुद्धि से,राह निकाली है।
कठिन परिस्थितियों में,राह ना बदली है।
दीप शांति के जले,ये मन में ठानी है।
माँ शारदे साज हूँ,कलम मैंने उठाली है।
राह सबको सही दिखाए,वही ज्ञानी है।
प्रभु श्रेष्ठ रचना का,एक वही सानी है।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 24-12 -2019
मैंने जिंदगी में,हार ना कभी मानी है।
सत्य संघर्ष हित,आवाज उठा ली है।
अपनी प्रखर बुद्धि से,राह निकाली है।
कठिन परिस्थितियों में,राह ना बदली है।
दीप शांति के जले,ये मन में ठानी है।
माँ शारदे साज हूँ,कलम मैंने उठाली है।
राह सबको सही दिखाए,वही ज्ञानी है।
प्रभु श्रेष्ठ रचना का,एक वही सानी है।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
Manish Srivastava 24/12/2019
विषय:-प्रखर,प्रचण्ड, तेज
विधा:हाइकु
1
'तेज' धूप में
गिट्टी तोड़े श्रमिक--
हाथ में छाला
2
उड़ा छप्पर
'प्रचण्ड' तूफ़ान से--
आंख में धूल
3
'प्रखर' मेधा
सुरक्षित भारत-
उन्नति ज्ञान
4
मध्यान्ह वक्त--
गर्मी में 'तेज'हुआ
सूर्य आतप
5
'प्रचण्ड' लू से
व्यथित हुआ व्यक्ति--
पेड़ की छाँव
6
भोर पहर--
जल पर बिखरी
'प्रखर' धूप
©मनीष कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित
विधा:हाइकु
1
'तेज' धूप में
गिट्टी तोड़े श्रमिक--
हाथ में छाला
2
उड़ा छप्पर
'प्रचण्ड' तूफ़ान से--
आंख में धूल
3
'प्रखर' मेधा
सुरक्षित भारत-
उन्नति ज्ञान
4
मध्यान्ह वक्त--
गर्मी में 'तेज'हुआ
सूर्य आतप
5
'प्रचण्ड' लू से
व्यथित हुआ व्यक्ति--
पेड़ की छाँव
6
भोर पहर--
जल पर बिखरी
'प्रखर' धूप
©मनीष कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित
24/12/2019
प्रखर/प्रचंड/तेज"
वर्ण पिरामिड
1
है
वेग
प्रचंड
तन दंड
शीत लहर
मौसमी कहर
गाँव और शहर।
2
है
तीव्र
प्रकोप
चहुँओर
रात्री पहर
हा! शीत लहर
जीना हुआ दुभर।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
प्रखर/प्रचंड/तेज"
वर्ण पिरामिड
1
है
वेग
प्रचंड
तन दंड
शीत लहर
मौसमी कहर
गाँव और शहर।
2
है
तीव्र
प्रकोप
चहुँओर
रात्री पहर
हा! शीत लहर
जीना हुआ दुभर।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
दिनांक-२४/१२/२०१९
शीर्षक_प्रख/प्रंचड/तेज
प्रखर हो लेखनी मेरी।
करूँ प्रार्थना मैं रोज तेरी
प्रखर बुद्धि दो माँ भारती
नमन करूँ मैं माँ भारती।
कर्म पथ पर जब हम निकले
भर दो प्रचंड जोश अंदर
भागे भय अंतस की सदा
आत्मविश्वास भरा हो अंदर।
आराधना करूँ मैं तेरी
अंतस भर दो प्रचंड ज्योति
अज्ञान का तम हरो सदा
कर्मनिष्ट मैं बनकर रहूं।
प्रखर बुद्धि पाकर भी
बनी रहूं विनम्र सदा
करूँ समर्पण मैं सवर्स्व
उच्छुंखल न बनु कभी।
मैं तेरी संतान हूं
भुल न जाना तू कभी
प्रचंड जोश भर दो सदा
कर्त्तव्य पथ पर रहूं डटा।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव
शीर्षक_प्रख/प्रंचड/तेज
प्रखर हो लेखनी मेरी।
करूँ प्रार्थना मैं रोज तेरी
प्रखर बुद्धि दो माँ भारती
नमन करूँ मैं माँ भारती।
कर्म पथ पर जब हम निकले
भर दो प्रचंड जोश अंदर
भागे भय अंतस की सदा
आत्मविश्वास भरा हो अंदर।
आराधना करूँ मैं तेरी
अंतस भर दो प्रचंड ज्योति
अज्ञान का तम हरो सदा
कर्मनिष्ट मैं बनकर रहूं।
प्रखर बुद्धि पाकर भी
बनी रहूं विनम्र सदा
करूँ समर्पण मैं सवर्स्व
उच्छुंखल न बनु कभी।
मैं तेरी संतान हूं
भुल न जाना तू कभी
प्रचंड जोश भर दो सदा
कर्त्तव्य पथ पर रहूं डटा।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव
तिथि -24/22/2019/मंगलवार
विषय -*प्रखर/प्रचंड/ तेज*
विधा॒॒॒- काव्य
बनो तेज नहीं निस्तेज बनो तुम,
वरना सभी कुचले जाओगे।
देख लिया और सब देख रहे हो,
तुम सबही कभी पिचले
जाओगे।
नहीं समझे हम इसी बात को।
जो अनेकों बीती घोर रात को।
हम यूंही मासूम बने रहे तो
समझें घुटते रहें प्रति घात को।
प्रखर बुद्धि मात शारदा देवें।
तेज प्रताप बल वरदा देवें।
सभी ईश हमारे आयुध दाता,
प्रचंड वेग हनुमाना देवें।
संयम विवेक से पूर्ण रहें हम।
रहें एक तो संम्पूर्ण रहें हम।
बंधे रहें हम गर एक सूत्र में
तब प्रचंड बन सूत्र रहें हम।
स्वरचितः इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
विषय -*प्रखर/प्रचंड/ तेज*
विधा॒॒॒- काव्य
बनो तेज नहीं निस्तेज बनो तुम,
वरना सभी कुचले जाओगे।
देख लिया और सब देख रहे हो,
तुम सबही कभी पिचले
जाओगे।
नहीं समझे हम इसी बात को।
जो अनेकों बीती घोर रात को।
हम यूंही मासूम बने रहे तो
समझें घुटते रहें प्रति घात को।
प्रखर बुद्धि मात शारदा देवें।
तेज प्रताप बल वरदा देवें।
सभी ईश हमारे आयुध दाता,
प्रचंड वेग हनुमाना देवें।
संयम विवेक से पूर्ण रहें हम।
रहें एक तो संम्पूर्ण रहें हम।
बंधे रहें हम गर एक सूत्र में
तब प्रचंड बन सूत्र रहें हम।
स्वरचितः इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
दिनांक 24/12/219
विषय:प्रखर/प्रचंड/तेज
विधा:पिरामिड
है
शीत
प्रचंड
बर्फ बारी
रात तूफानी
कोहरा कहानी
ओढी रजाई भारी।
क्यो
सूर्य
निस्तेज
ऊष्मा ठंडी
सर्दी है तेज
अलाव संदेश
नव वर्ष प्रवेश ।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
विषय:प्रखर/प्रचंड/तेज
विधा:पिरामिड
है
शीत
प्रचंड
बर्फ बारी
रात तूफानी
कोहरा कहानी
ओढी रजाई भारी।
क्यो
सूर्य
निस्तेज
ऊष्मा ठंडी
सर्दी है तेज
अलाव संदेश
नव वर्ष प्रवेश ।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
दिनांक 24/12/219
विषय:प्रखर/प्रचंड/तेज
विधा:पिरामिड
है
शीत
प्रचंड
बर्फ बारी
रात तूफानी
कोहरा कहानी
ओढी रजाई भारी।
क्यो
सूर्य
निस्तेज
ऊष्मा ठंडी
सर्दी है तेज
अलाव संदेश
नव वर्ष प्रवेश ।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
विषय:प्रखर/प्रचंड/तेज
विधा:पिरामिड
है
शीत
प्रचंड
बर्फ बारी
रात तूफानी
कोहरा कहानी
ओढी रजाई भारी।
क्यो
सूर्य
निस्तेज
ऊष्मा ठंडी
सर्दी है तेज
अलाव संदेश
नव वर्ष प्रवेश ।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
No comments:
Post a Comment