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ब्लॉग संख्या :-591
नमन भावों के मोती
10/12/2019
मंगलवार
विषय -संतुलन
संतुलन किसी का
नहीं बिगड़ा
न मान का
न सम्मान का
न भलाई का
न ईमानदारी का
बिगड़ा
सिर्फ संस्कार
का
संतुलन
उसके बाद
असंतुलित हो गये
मान
सम्मान
भलाई
ईमानदारी
स्वरचित
शिल्पी पचौरी
10/12/2019
मंगलवार
विषय -संतुलन
संतुलन किसी का
नहीं बिगड़ा
न मान का
न सम्मान का
न भलाई का
न ईमानदारी का
बिगड़ा
सिर्फ संस्कार
का
संतुलन
उसके बाद
असंतुलित हो गये
मान
सम्मान
भलाई
ईमानदारी
स्वरचित
शिल्पी पचौरी
दिनांक-10/12/2029
विषय-संतुलन
【 हो संतुलित पर्यावरण अपना】
हो संतुलित अपनी ये धरा
हरियाली से हो जीवन भरा
रक्षित हो जीव जंतु नभ थल के
प्रकृति पाताल गगन तारण तल के
क्यों पेड़ काट रहे हो...?
हम अपने पैरों को प्रतिदिन
क्यों मिटा रहे सौंदर्य स्वप्न को
वसुधा के अंगों को गिन- गिन
क्यों रणभूमि में बदल रहे
आश्रय दाई सब अभयारण्य चुन- चुन
नदियों की सांसे रुकी- रुकी
सागर प्यासे खडे हुए
प्रकृति है मौन विवश खड़ी थकी-थकी
क्यों बनूं दुःशासन के अनुयाई?
करते धरती का चीर हरण
हां लुप्तप्रायः हो गए बहुत से
देवदार ,साखू के घट- परण
है माघ पसीने में लथपथ
अपनी अवनी कहती सत्य पथ
अब गगन में विचरते खग गिरते
गुम हो गए हो कहां वो आँशिया के शरण
आओ करें हम प्राण प्रतिष्ठा
करें अब तन मन से धरा का वरण
गगन की धूमिल हुई क्यों चमक....?
गगनचुंबी तारों की धूमिल हुई चमक
चिमनियों के विषैले धुएं की भभक
चहल-पहल अब वो कहां खो गई
पूछो अब अंधे कुएँ की कसक
ओजोन क्षत्र भी क्षीण हुआ
हो रहे बहुत बड़े बड़े छेद
तपता सीना तपती माथा
हिम पिघला कहता अपनी गाथा
स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
विषय-संतुलन
【 हो संतुलित पर्यावरण अपना】
हो संतुलित अपनी ये धरा
हरियाली से हो जीवन भरा
रक्षित हो जीव जंतु नभ थल के
प्रकृति पाताल गगन तारण तल के
क्यों पेड़ काट रहे हो...?
हम अपने पैरों को प्रतिदिन
क्यों मिटा रहे सौंदर्य स्वप्न को
वसुधा के अंगों को गिन- गिन
क्यों रणभूमि में बदल रहे
आश्रय दाई सब अभयारण्य चुन- चुन
नदियों की सांसे रुकी- रुकी
सागर प्यासे खडे हुए
प्रकृति है मौन विवश खड़ी थकी-थकी
क्यों बनूं दुःशासन के अनुयाई?
करते धरती का चीर हरण
हां लुप्तप्रायः हो गए बहुत से
देवदार ,साखू के घट- परण
है माघ पसीने में लथपथ
अपनी अवनी कहती सत्य पथ
अब गगन में विचरते खग गिरते
गुम हो गए हो कहां वो आँशिया के शरण
आओ करें हम प्राण प्रतिष्ठा
करें अब तन मन से धरा का वरण
गगन की धूमिल हुई क्यों चमक....?
गगनचुंबी तारों की धूमिल हुई चमक
चिमनियों के विषैले धुएं की भभक
चहल-पहल अब वो कहां खो गई
पूछो अब अंधे कुएँ की कसक
ओजोन क्षत्र भी क्षीण हुआ
हो रहे बहुत बड़े बड़े छेद
तपता सीना तपती माथा
हिम पिघला कहता अपनी गाथा
स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
विषय-संतुलन
विधा-मनहरन
संतुलन इंसान में
सबसे जरुरी बात,
जो जीवन को आपके
महान बनाता है।
लोभ,मोह संतुलित
विलासिता संयमित,
हो तो इंसान सफल
जीवन बुनाता है।
उपभोग प्रकृति का
संतुलित करके ही,
पर्यावरण को आज
इंसान बचाता है।
संतुलन हो प्रेम में
आजादी जब साथ हो,
दाम्पत्य तभी सफल
बंधन निभाता है।
श्रद्धान्जलि शुक्ला"अंजलि"
विधा-मनहरन
संतुलन इंसान में
सबसे जरुरी बात,
जो जीवन को आपके
महान बनाता है।
लोभ,मोह संतुलित
विलासिता संयमित,
हो तो इंसान सफल
जीवन बुनाता है।
उपभोग प्रकृति का
संतुलित करके ही,
पर्यावरण को आज
इंसान बचाता है।
संतुलन हो प्रेम में
आजादी जब साथ हो,
दाम्पत्य तभी सफल
बंधन निभाता है।
श्रद्धान्जलि शुक्ला"अंजलि"
विषय संतुलन
विधा काव्य
10 दिसम्बर 2019,मंगलवार
पञ्च तत्वों में है संतुलन
जिससे जग जीवन चलता।
षड ऋतुओं का अद्भुतक्रम
विश्व संतुलन धरा पे रहता।
विजयी श्री मिलती उनको
जो शरीर संतुलित करता।
दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर
नर मंजिल पे सदा पहुँचता।
गृहस्थ जीवन अगर संतुलित
जीवन उपवन खिलता रहता।
स्नेह सुधा पर हित जीवन से
मानव खुशियां पाकर हँसता।
खानपान संतुलित हो जीवन
संतुलन से जीवनअति पावन।
स्वस्थ शरीर सदा निरोगमय
चहुर्मुखी विकास करे मानव।
कर्म वचन में हो संतुलन
संतुलन जीवन का आधारा।
अर्थ धर्म नित रहे संतुलन
सुख जीवन का बने सहारा।
स्वरचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
10 दिसम्बर 2019,मंगलवार
पञ्च तत्वों में है संतुलन
जिससे जग जीवन चलता।
षड ऋतुओं का अद्भुतक्रम
विश्व संतुलन धरा पे रहता।
विजयी श्री मिलती उनको
जो शरीर संतुलित करता।
दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर
नर मंजिल पे सदा पहुँचता।
गृहस्थ जीवन अगर संतुलित
जीवन उपवन खिलता रहता।
स्नेह सुधा पर हित जीवन से
मानव खुशियां पाकर हँसता।
खानपान संतुलित हो जीवन
संतुलन से जीवनअति पावन।
स्वस्थ शरीर सदा निरोगमय
चहुर्मुखी विकास करे मानव।
कर्म वचन में हो संतुलन
संतुलन जीवन का आधारा।
अर्थ धर्म नित रहे संतुलन
सुख जीवन का बने सहारा।
स्वरचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
"भावों के मोती"
10/12/2019
संतुलन
*******
सुंदर धरा
पर्यावरण संतुलन
सदाचारी जीवन
जीवन तत्व संतुलन
न अति चुप
न अति बोलना
व्यवहार संतुलन
संतुलित विचार
व्यक्तित्व में निखार
भौतिक व भवनात्मक
असंतुलन
शापित जीवन
सुरक्षित जीवन
गति में संतुलन
मर्यादित जीवन
समाज में संतुलन
वाणी सन्तुलना
प्रसन्ता बिखरे
संतुलित तमन्नाऐ
एवम सच्चाई
हो संतुलित
जीवन प्रवाह ।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
10/12/2019
संतुलन
*******
सुंदर धरा
पर्यावरण संतुलन
सदाचारी जीवन
जीवन तत्व संतुलन
न अति चुप
न अति बोलना
व्यवहार संतुलन
संतुलित विचार
व्यक्तित्व में निखार
भौतिक व भवनात्मक
असंतुलन
शापित जीवन
सुरक्षित जीवन
गति में संतुलन
मर्यादित जीवन
समाज में संतुलन
वाणी सन्तुलना
प्रसन्ता बिखरे
संतुलित तमन्नाऐ
एवम सच्चाई
हो संतुलित
जीवन प्रवाह ।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
विषय-"सन्तुलन"
स्वरचित कविता
शीर्षक - "कितना अच्छा हो"
जीवन तराजू है
तन-मन को तोल
ओ रे मनुज!
ये समय है अमोल.
तन होवे हल्का-
सबको ही भाए,
मन न हो भारी-
करो तुम उपाय.
स्वस्थ शरीर-
बने तकदीर,
मन में हो नेकी-
बदले तस्वीर.
तन-मन का खेल-
जिंदगानी का राज,
संतुलन कर कायम -
भरो परवाज.
दो पलड़े इसके-
बराबर रखो,
जीवन-मजा है-
इसको चखो.
गर होती अनबन-
परस्पर कभी,
करो संतुलन-
उसी पल तभी.
_____
स्वरचित-
डा. अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
स्वरचित कविता
शीर्षक - "कितना अच्छा हो"
जीवन तराजू है
तन-मन को तोल
ओ रे मनुज!
ये समय है अमोल.
तन होवे हल्का-
सबको ही भाए,
मन न हो भारी-
करो तुम उपाय.
स्वस्थ शरीर-
बने तकदीर,
मन में हो नेकी-
बदले तस्वीर.
तन-मन का खेल-
जिंदगानी का राज,
संतुलन कर कायम -
भरो परवाज.
दो पलड़े इसके-
बराबर रखो,
जीवन-मजा है-
इसको चखो.
गर होती अनबन-
परस्पर कभी,
करो संतुलन-
उसी पल तभी.
_____
स्वरचित-
डा. अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
शीर्षक-- संतुलन
प्रथम प्रस्तुति
अच्छे अच्छों ने संतुलन खोया है
बीज कोई हानिकारक बोया है ।।
वक्त की हवा किसे न बहा ले गयी
कठपुतली बन इंसा यहाँ रोया है ।।
असंमियत दिनचर्या भी ठीक नही
संयम की मिलती आज सीख नही ।।
मिलती भी तो कौन उसे धारण करे
दुनिया की हालत अब कुछ नीक नही ।।
आदर्श जीवन की अब कहाँ है कदर
जहाँ भी देखो तहाँ दिखती है गदर ।।
शाम हुई कि मयखाने में भीड़ हुई
संतुलन अब शायद वहाँ पाता बशर ।।
डांवाडोल आज 'शिवम' जीवन नैया
कोई नही दिखता अब पार लगैया ।।
संतुलन की अहम भूमिका भूले हम
उसे भी हम भुलाये जो जग रचैया ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 10/12/2019
प्रथम प्रस्तुति
अच्छे अच्छों ने संतुलन खोया है
बीज कोई हानिकारक बोया है ।।
वक्त की हवा किसे न बहा ले गयी
कठपुतली बन इंसा यहाँ रोया है ।।
असंमियत दिनचर्या भी ठीक नही
संयम की मिलती आज सीख नही ।।
मिलती भी तो कौन उसे धारण करे
दुनिया की हालत अब कुछ नीक नही ।।
आदर्श जीवन की अब कहाँ है कदर
जहाँ भी देखो तहाँ दिखती है गदर ।।
शाम हुई कि मयखाने में भीड़ हुई
संतुलन अब शायद वहाँ पाता बशर ।।
डांवाडोल आज 'शिवम' जीवन नैया
कोई नही दिखता अब पार लगैया ।।
संतुलन की अहम भूमिका भूले हम
उसे भी हम भुलाये जो जग रचैया ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 10/12/2019
बिषय ----संतुलन
संतुलन एक गणित है जो हमारे शरीर ही नही पूरे व्राह्मणो को संचालित करता है । हर बस्तु हर जीव हर वह तत्व जो प्रकृति ने हमे दिया अथवा हम इंसानो ने बनाया वह सब एक बिषेश युग्म का संयोजन होता है ।इस संयोजन के अनुपात के घटने अथवा बढ़ने से बिषय बस्तु या तो खंडित होता है अथवा अनुपयोगी हो जाता है। हमारे शरीर मे रक्त की कमी हमें निर्वल बनाती है ।
प्रकृति में भी संतुलन है समय का निर्धारण है तभी तो मौसम है , रात दिन है , भगवान ने अथवा यह कहे एक नियम निर्धारित है जगत मे कहावत भी है कि हर बडी मछली छोटी मछली को खा जाती है तो ,यह तो सभी जानबरो के साथ भी है और कुछ सीमा तक मनुष्य पर भी लागू हो जाती है यह बात । हर अमीर कमजोर का हनन करता है । मानसिक संतुलन बिगड़ने पर हम होश खो बैठते है, भावो का संतुलन गड़बड़ाया तो रोते है चीखते है क्रोध करते है या फिर डिप्रेशन मे चले जाते है।
इसी प्रकार हर बनस्पति को भी संतुलित ऊर्जा की आवश्यकता होती है
यूं कहे संतुलन जीवन दाई है बनाये रखिये अपने लिये संसार के लिये घर परिवार के लिये प्रकृति के लिये भी ।जिस जमीन पर हम घर बनाते है उसे संतुलित करते है । उसमें उपयोग मे आने वाले हर पदार्थ को एक अनुपात मे संयोजित करते है तब दीबार उठती है नही तो भरभरा कर गिर जाय। संतुलन न बिगडे ख्याल आप रखिये।।
सरला सिंह शैल कृति
मौलिक
संतुलन एक गणित है जो हमारे शरीर ही नही पूरे व्राह्मणो को संचालित करता है । हर बस्तु हर जीव हर वह तत्व जो प्रकृति ने हमे दिया अथवा हम इंसानो ने बनाया वह सब एक बिषेश युग्म का संयोजन होता है ।इस संयोजन के अनुपात के घटने अथवा बढ़ने से बिषय बस्तु या तो खंडित होता है अथवा अनुपयोगी हो जाता है। हमारे शरीर मे रक्त की कमी हमें निर्वल बनाती है ।
प्रकृति में भी संतुलन है समय का निर्धारण है तभी तो मौसम है , रात दिन है , भगवान ने अथवा यह कहे एक नियम निर्धारित है जगत मे कहावत भी है कि हर बडी मछली छोटी मछली को खा जाती है तो ,यह तो सभी जानबरो के साथ भी है और कुछ सीमा तक मनुष्य पर भी लागू हो जाती है यह बात । हर अमीर कमजोर का हनन करता है । मानसिक संतुलन बिगड़ने पर हम होश खो बैठते है, भावो का संतुलन गड़बड़ाया तो रोते है चीखते है क्रोध करते है या फिर डिप्रेशन मे चले जाते है।
इसी प्रकार हर बनस्पति को भी संतुलित ऊर्जा की आवश्यकता होती है
यूं कहे संतुलन जीवन दाई है बनाये रखिये अपने लिये संसार के लिये घर परिवार के लिये प्रकृति के लिये भी ।जिस जमीन पर हम घर बनाते है उसे संतुलित करते है । उसमें उपयोग मे आने वाले हर पदार्थ को एक अनुपात मे संयोजित करते है तब दीबार उठती है नही तो भरभरा कर गिर जाय। संतुलन न बिगडे ख्याल आप रखिये।।
सरला सिंह शैल कृति
मौलिक
विषय:- संतुलन
विधा :- कुण्डलिया
१रखते जो संतुलन हैं , रखते उच्च विचार ।
रुग्ण मानसिक ही करे, सदा भ्रष्ट व्यवहार ।
सदा भ्रष्ट व्यवहार , दुखी लोगों को करते ।
संतुलन लें बिगाड़ , किसी की इज़्ज़त हरते ।
मिले बुरे परिणाम , नहीं मीठे फल चखते ।
शोभा पाते लोग , जो संतुलन हैं रखते ।।
२
चलते सब संतुलन से , जग के कारोबार ।
थोड़ा भी जब बिगड़ता , मचता हाहाकार ।।
मचता हाहाकार , तब भूकम्प हैं आते ।
फटते हैं जब मेघ , सैंकड़ों ही मर जाते ।
सारे ग्रह नक्षत्र , नहीं इत उत हैं ढलते ।
रखे संतुलित चाल , कक्ष में अपनी चलते ।।
✍️
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा
विधा :- कुण्डलिया
१रखते जो संतुलन हैं , रखते उच्च विचार ।
रुग्ण मानसिक ही करे, सदा भ्रष्ट व्यवहार ।
सदा भ्रष्ट व्यवहार , दुखी लोगों को करते ।
संतुलन लें बिगाड़ , किसी की इज़्ज़त हरते ।
मिले बुरे परिणाम , नहीं मीठे फल चखते ।
शोभा पाते लोग , जो संतुलन हैं रखते ।।
२
चलते सब संतुलन से , जग के कारोबार ।
थोड़ा भी जब बिगड़ता , मचता हाहाकार ।।
मचता हाहाकार , तब भूकम्प हैं आते ।
फटते हैं जब मेघ , सैंकड़ों ही मर जाते ।
सारे ग्रह नक्षत्र , नहीं इत उत हैं ढलते ।
रखे संतुलित चाल , कक्ष में अपनी चलते ।।
✍️
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा
दिनांक 10-12- 2019
विषय -संतुलन
संतुलन के बिना,जीवन गाड़ी डोल रही।
नहीं सामंजस्य,भेद घर का वो खोल रही।।
देखो बहू,सास को आज आंखें दिखा रही।
बड़ा घर है फिर भी,कोना सास दिखा रही।।
बेटे बहू बिल्कुल,आजकल नहीं बन रही।
संतुलन अभाव में, गाड़ी पटरी उतर रही।।
परिवार में बहु, रणचंडी बनी घूम रही ।
बड़े बुजुर्ग जीना हराम,अब वह कर रही।।
हकीकत लिखने का, प्रयास मैं कर रही।
सब दुखी है पर,सास कहने से डर रही ।।
घर में संतुलन बनाने का,प्रयास वो कर रही।
संस्कार हीन बहु,बुजुर्ग सम्मुख बन रही।।
कोई बात समझने की,कोशिश नहीं कर रही।
मैं ही सही हूँ, हर बार वह यही कह रही।।
विद्या ददाति विनियम,निरर्थक कर रही।
माँ बाप नाम को, मिट्टी में मिला रही ।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
विषय -संतुलन
संतुलन के बिना,जीवन गाड़ी डोल रही।
नहीं सामंजस्य,भेद घर का वो खोल रही।।
देखो बहू,सास को आज आंखें दिखा रही।
बड़ा घर है फिर भी,कोना सास दिखा रही।।
बेटे बहू बिल्कुल,आजकल नहीं बन रही।
संतुलन अभाव में, गाड़ी पटरी उतर रही।।
परिवार में बहु, रणचंडी बनी घूम रही ।
बड़े बुजुर्ग जीना हराम,अब वह कर रही।।
हकीकत लिखने का, प्रयास मैं कर रही।
सब दुखी है पर,सास कहने से डर रही ।।
घर में संतुलन बनाने का,प्रयास वो कर रही।
संस्कार हीन बहु,बुजुर्ग सम्मुख बन रही।।
कोई बात समझने की,कोशिश नहीं कर रही।
मैं ही सही हूँ, हर बार वह यही कह रही।।
विद्या ददाति विनियम,निरर्थक कर रही।
माँ बाप नाम को, मिट्टी में मिला रही ।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
विषय_संतुलन |
सृष्टि के नियमो में एक नियम हे संतुलन |
जड चेतन जीव जगत हो या सकल ब्रह्माड़
जरूरी हे संतुलन नही तो मचती हड़कम चंहू ओर |
फैलता निशा सा अज्ञानाधंकार चंहू ओर |
बिगड़ रहा हे संतुलन प्रकृति का देखो अतुलित हे जीवन कैसा |
जल की कमी से मी हाहाकार |
वायु न मिलने से हे फैला प्रदुषण
सांसे हो रही कम धरा पर |
जनसख्या का खौफ बड रहा
खेतीहर जमीन घटरही |
ओधोगिक जगत रहा पैर पसार
बिन खेती मिलेगा कैसे कच्चा माल |
इसीलिऐ प्रकृति अपना संतुलन बनाती स्वंय ऐसे |
कही उठती सुमानी ,कही भूकंप कही फूटते ज्वाला मुखी
कही अनावृष्टि तो कही अतिवृष्टि से
बनाती धरा अपना संतुलन |
ऐसे ही जिदंगी मे भी बनाना होता संतुलन |
आत समाज मे हो रहा हास नैतिक मानवीय मूल्यो का पतन |
सामने हे नजारे देखने को मिल रहे चंहू ओर
भ्रष्टाचार आतंक फूट दूराचार कहां तक गिने बताये कोई |
आवौ मिलकर सभी मानव बनाये मानवीय समीकरण सुदंर ऐसा |
हो संतुलित जीनव मिला हमे तोहफे ईश से |
जीवो सिद्दत से जीने भी दो सबको शान से |
स्वरचित_दमयंती मिश्रा
सृष्टि के नियमो में एक नियम हे संतुलन |
जड चेतन जीव जगत हो या सकल ब्रह्माड़
जरूरी हे संतुलन नही तो मचती हड़कम चंहू ओर |
फैलता निशा सा अज्ञानाधंकार चंहू ओर |
बिगड़ रहा हे संतुलन प्रकृति का देखो अतुलित हे जीवन कैसा |
जल की कमी से मी हाहाकार |
वायु न मिलने से हे फैला प्रदुषण
सांसे हो रही कम धरा पर |
जनसख्या का खौफ बड रहा
खेतीहर जमीन घटरही |
ओधोगिक जगत रहा पैर पसार
बिन खेती मिलेगा कैसे कच्चा माल |
इसीलिऐ प्रकृति अपना संतुलन बनाती स्वंय ऐसे |
कही उठती सुमानी ,कही भूकंप कही फूटते ज्वाला मुखी
कही अनावृष्टि तो कही अतिवृष्टि से
बनाती धरा अपना संतुलन |
ऐसे ही जिदंगी मे भी बनाना होता संतुलन |
आत समाज मे हो रहा हास नैतिक मानवीय मूल्यो का पतन |
सामने हे नजारे देखने को मिल रहे चंहू ओर
भ्रष्टाचार आतंक फूट दूराचार कहां तक गिने बताये कोई |
आवौ मिलकर सभी मानव बनाये मानवीय समीकरण सुदंर ऐसा |
हो संतुलित जीनव मिला हमे तोहफे ईश से |
जीवो सिद्दत से जीने भी दो सबको शान से |
स्वरचित_दमयंती मिश्रा
10 /12/2019
बिषय,, संतुलन
संतुलित मन संतुलित आहार
संतुलित वाणी और व्यवहार
संतुलित परिधान संतुलित सिंगार
सदैव सुखी संतुलित परिवार
बना कर चलें हम अपना संतुलन
सर्वदा संतोषी संयमित जीवन
सुपाच्य भोजन निष्पक्ष निष्कपट ब्यवहार
यही हैं निरोग निश्चिंत जिंदगी का आधार
जितनी हो आय उतना ही पैर पसार
कर्ज न कर निर्विवाद समय गुजार
हरे भरे बृक्ष न काटें बना रहे प्रकृति का संतुलन
बहने दो सरिता की धारा मत बाधो उसमें बंधन
स्वार्थपरता में कर रहे रेत खनन
हरी सब्जियां दूध फल सभी में मिलावट और रसायन
हमने स्वयं संतुलन बिगाड़ दिया अब क्या होवे जतन
रसातल की ओर जा रहा मेरा देश पावन
स्वरचित,, सुषमा ,ब्यौहार
बिषय,, संतुलन
संतुलित मन संतुलित आहार
संतुलित वाणी और व्यवहार
संतुलित परिधान संतुलित सिंगार
सदैव सुखी संतुलित परिवार
बना कर चलें हम अपना संतुलन
सर्वदा संतोषी संयमित जीवन
सुपाच्य भोजन निष्पक्ष निष्कपट ब्यवहार
यही हैं निरोग निश्चिंत जिंदगी का आधार
जितनी हो आय उतना ही पैर पसार
कर्ज न कर निर्विवाद समय गुजार
हरे भरे बृक्ष न काटें बना रहे प्रकृति का संतुलन
बहने दो सरिता की धारा मत बाधो उसमें बंधन
स्वार्थपरता में कर रहे रेत खनन
हरी सब्जियां दूध फल सभी में मिलावट और रसायन
हमने स्वयं संतुलन बिगाड़ दिया अब क्या होवे जतन
रसातल की ओर जा रहा मेरा देश पावन
स्वरचित,, सुषमा ,ब्यौहार
10/12/2019
"संतुलन"
माता -पिता और संतान
परिवार के होते आधार
चार पहिए के संतुलन से
चलता गाड़ी रुपी परिवार।
आपसी प्रेम,अनुराग होते इंधन
गृहकर्ता होते हैं परिवार इंजन
पहियों का जो बिगड़ा संतुलन
रुक जाता जीवन रुपी वाहन।
जीवन में जरुरी होता संतुलन
चाहे वो खान -पान का हो...
या परस्पर हो प्रेम बंथन......
ईर्ष्या से बिगड़ जाता संतुलन
भूमंडल का बिगड़ रहा संतुलन
बढ़ रही आबादी का है क्रंदन
अब जागरूक हो रहे जन-गण
सीमित ही है प्राकृतिक संपद।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"संतुलन"
माता -पिता और संतान
परिवार के होते आधार
चार पहिए के संतुलन से
चलता गाड़ी रुपी परिवार।
आपसी प्रेम,अनुराग होते इंधन
गृहकर्ता होते हैं परिवार इंजन
पहियों का जो बिगड़ा संतुलन
रुक जाता जीवन रुपी वाहन।
जीवन में जरुरी होता संतुलन
चाहे वो खान -पान का हो...
या परस्पर हो प्रेम बंथन......
ईर्ष्या से बिगड़ जाता संतुलन
भूमंडल का बिगड़ रहा संतुलन
बढ़ रही आबादी का है क्रंदन
अब जागरूक हो रहे जन-गण
सीमित ही है प्राकृतिक संपद।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
विधा .......................गीत
****************************************
"इसी हार के गर्भ तले ,,
छुपी हुई है एक जीत रे । "
गीत विधान --रुचिरा छंद , (14,16 )
***********************************
नित नूतन अभ्यास करो,
सफल होगे तुम मनमीत रे।
इसी हार के गर्भ तले ,
छुपी हुई है एक जीत रे ।।
¶¶¶¶¶¶
मिली रातिमा आज दिवस,
होगा कल नव उजियारा भी।
असफल मानव को सदैव,
मिलेगी सफलता प्यारा भी।
छाँव धूप चल सखा बने,
बनता फिर सुंदर गीत रे।।
इसी हार के गर्भ तले ,
छुपी हुई है एक जीत रे।।
¶¶¶¶¶
मलिन विचार का त्याग कर,
सदगुण को अपना ले मानुष।
क्यूँ विकार पाल रहे हो,
सदाचार बढ़ा कर ले आयुष।
कुंठित मन क्या सृजन करें,
नवीन प्रेरणा के गीत रे।।
इसी हार के गर्भ तले ,
छुपी हुई है एक जीत रे ।।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
****************************************
"इसी हार के गर्भ तले ,,
छुपी हुई है एक जीत रे । "
गीत विधान --रुचिरा छंद , (14,16 )
***********************************
नित नूतन अभ्यास करो,
सफल होगे तुम मनमीत रे।
इसी हार के गर्भ तले ,
छुपी हुई है एक जीत रे ।।
¶¶¶¶¶¶
मिली रातिमा आज दिवस,
होगा कल नव उजियारा भी।
असफल मानव को सदैव,
मिलेगी सफलता प्यारा भी।
छाँव धूप चल सखा बने,
बनता फिर सुंदर गीत रे।।
इसी हार के गर्भ तले ,
छुपी हुई है एक जीत रे।।
¶¶¶¶¶
मलिन विचार का त्याग कर,
सदगुण को अपना ले मानुष।
क्यूँ विकार पाल रहे हो,
सदाचार बढ़ा कर ले आयुष।
कुंठित मन क्या सृजन करें,
नवीन प्रेरणा के गीत रे।।
इसी हार के गर्भ तले ,
छुपी हुई है एक जीत रे ।।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
0/12/19
विषय संतुलन
न होती कभी ब्यथित
न ही कभी आहत
न करती कभी विलाप
न ही कोई आलाप
न दिखाती है उन्माद
न रोना न ही मुस्कराना
सङ्ग परिस्थितियों के
करना समझौता
चलती ही रहती अपने सफर में
निरंतर सन्तुलित प्रभाव में
शामिल होती हर किसी के
सुख दुख में
देती साथ सभी को
समान रूप से
वर्षो से एक ही एहसास के सङ्ग
दौड़ रही है एक ही रास्ते पर
जन्मों जन्मों से
हादसों पर हादसे होते है
कुछ लोग दोषी उसे कहते है
न कोई दर्द न लगाव
जीती है लेकर सन्तुलित जीवन
ओ सड़क तुझे देख
याद आ गया
एक श्लोक
महान पुरुषो पर सुख दुख लाभ हानि पर कोई प्रभाव नही पड़ता
तू भी उनमे से है.......
स्वरचित
मीना तिवारी
विषय संतुलन
न होती कभी ब्यथित
न ही कभी आहत
न करती कभी विलाप
न ही कोई आलाप
न दिखाती है उन्माद
न रोना न ही मुस्कराना
सङ्ग परिस्थितियों के
करना समझौता
चलती ही रहती अपने सफर में
निरंतर सन्तुलित प्रभाव में
शामिल होती हर किसी के
सुख दुख में
देती साथ सभी को
समान रूप से
वर्षो से एक ही एहसास के सङ्ग
दौड़ रही है एक ही रास्ते पर
जन्मों जन्मों से
हादसों पर हादसे होते है
कुछ लोग दोषी उसे कहते है
न कोई दर्द न लगाव
जीती है लेकर सन्तुलित जीवन
ओ सड़क तुझे देख
याद आ गया
एक श्लोक
महान पुरुषो पर सुख दुख लाभ हानि पर कोई प्रभाव नही पड़ता
तू भी उनमे से है.......
स्वरचित
मीना तिवारी
10/12/2019
विषय-संतुलन
~~~~~~~~~
एक दिन मेरी इंद्रदेव से झड़प हो गई
मैंने उनको खूब खरी खोटी सुनाने लगी
मैंने कहा,
"धरती पर सब प्राणी
भीषण गर्मी से त्रस्त, बेहाल परेशान हैं
और वहाँ आप स्वर्ग में आनंद उठा रहे हैं
कभी कहीं भयंकर आग वर्षा रहे हैं
कहीं बाढ़ के प्रकोप से जन धन
को डुबो डुबो कर मार रहे हैं
आखिर आपकी मंशा क्या है
क्यों आप प्रकृति में
संतुलन में नहीं ला पा रहे हैं
यदि आप अपना दायित्व
भली भांति नहीं निभा पा रहे हैं
तो पदच्युत हो जाईये
अपनी जगह किसी
काबिल व्यक्ति को बैठाइए"
इंद्रदेव शांतिपूर्वक सब सुनते रहे
धैर्यपूर्वक मुझे बोलने का अवसर देते रहे
फिर बोले,
"हे मूर्ख नादान प्राणी!
ये जो प्रकृति में असंतुलन व्याप्त है
ये तुम मनुजों के अक्षम्य कृत्य का परिणाम है
अपनी स्वार्थपरता में तुम ने
धरती को जलमग्न कर डाला है
कहीं सूखाग्रस्त बीहड़ कर डाला है
वनों को काट कर
कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए
पहाड़ो का सीना चीर कर
सड़कें ,राजमार्ग बनाए
समंदर में भी घुसकर निरीह जल जंतुओं
पर ज़ुल्म ढाए
अपने कुकृत्यों का देख लो अब
आँखो देखा हाल
अब मत करना मुझसे
बेवजह के सवाल
अपनी बर्बादी का जाल
तुम मनुष्यों ने स्वयं रच डाला है।।
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
विषय-संतुलन
~~~~~~~~~
एक दिन मेरी इंद्रदेव से झड़प हो गई
मैंने उनको खूब खरी खोटी सुनाने लगी
मैंने कहा,
"धरती पर सब प्राणी
भीषण गर्मी से त्रस्त, बेहाल परेशान हैं
और वहाँ आप स्वर्ग में आनंद उठा रहे हैं
कभी कहीं भयंकर आग वर्षा रहे हैं
कहीं बाढ़ के प्रकोप से जन धन
को डुबो डुबो कर मार रहे हैं
आखिर आपकी मंशा क्या है
क्यों आप प्रकृति में
संतुलन में नहीं ला पा रहे हैं
यदि आप अपना दायित्व
भली भांति नहीं निभा पा रहे हैं
तो पदच्युत हो जाईये
अपनी जगह किसी
काबिल व्यक्ति को बैठाइए"
इंद्रदेव शांतिपूर्वक सब सुनते रहे
धैर्यपूर्वक मुझे बोलने का अवसर देते रहे
फिर बोले,
"हे मूर्ख नादान प्राणी!
ये जो प्रकृति में असंतुलन व्याप्त है
ये तुम मनुजों के अक्षम्य कृत्य का परिणाम है
अपनी स्वार्थपरता में तुम ने
धरती को जलमग्न कर डाला है
कहीं सूखाग्रस्त बीहड़ कर डाला है
वनों को काट कर
कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए
पहाड़ो का सीना चीर कर
सड़कें ,राजमार्ग बनाए
समंदर में भी घुसकर निरीह जल जंतुओं
पर ज़ुल्म ढाए
अपने कुकृत्यों का देख लो अब
आँखो देखा हाल
अब मत करना मुझसे
बेवजह के सवाल
अपनी बर्बादी का जाल
तुम मनुष्यों ने स्वयं रच डाला है।।
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
10/12/19
संतुलन
212 212 212 212
काम अपने सिरे सब न पाला करो
वक़्त मेरे लिये कुछ निकाला करो।
चार दिन जिंदगी के बचे अब यहाँ,
सन्तुलन ये रहे, कुछ निराला करो ।
साँझ अब जिंदगी की यहाँ हो रही
वक़्त को साध लो मन न काला करो।
दूसरों का सहारा सदा तुम बने ,
खुद कभी को जरा अब संभाला करो ।
तौलती क्यों रही जिंदगी हर घड़ी,
साध के संतुलन वक़्त ढाला करो।
स्वरचित
अनिता सुधीर
संतुलन
212 212 212 212
काम अपने सिरे सब न पाला करो
वक़्त मेरे लिये कुछ निकाला करो।
चार दिन जिंदगी के बचे अब यहाँ,
सन्तुलन ये रहे, कुछ निराला करो ।
साँझ अब जिंदगी की यहाँ हो रही
वक़्त को साध लो मन न काला करो।
दूसरों का सहारा सदा तुम बने ,
खुद कभी को जरा अब संभाला करो ।
तौलती क्यों रही जिंदगी हर घड़ी,
साध के संतुलन वक़्त ढाला करो।
स्वरचित
अनिता सुधीर
दिनांक-१०/१२/२०१९
शीर्षक-संतुलन
अपने वाणी में रखे संतुलन
संतुलन रखें अपने कर्मो का
इस धरा पर सभी रखें
अपने हिस्से का संतुलन।
हस्तक्षेप न करें प्रकृति में
संतुलन बनानें में दे साथ सदा
दूसरों का मान का हनन ना करें
सबको दे सम्मान सदा।
जब जब बढ़ा है धर्म में असंतुलन
होता है संग्राम बड़ा
कमलनयन लेते अवतार
संतुलित करने को धरा सदा।
अद्वितीय है धरा हमारी
इसे संतुलित रखना हमारी जिम्मेदारी
प्रकृति है संपदा हमारी
इसे संतुलित रखना जिम्मेदारी भारी।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
शीर्षक-संतुलन
अपने वाणी में रखे संतुलन
संतुलन रखें अपने कर्मो का
इस धरा पर सभी रखें
अपने हिस्से का संतुलन।
हस्तक्षेप न करें प्रकृति में
संतुलन बनानें में दे साथ सदा
दूसरों का मान का हनन ना करें
सबको दे सम्मान सदा।
जब जब बढ़ा है धर्म में असंतुलन
होता है संग्राम बड़ा
कमलनयन लेते अवतार
संतुलित करने को धरा सदा।
अद्वितीय है धरा हमारी
इसे संतुलित रखना हमारी जिम्मेदारी
प्रकृति है संपदा हमारी
इसे संतुलित रखना जिम्मेदारी भारी।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
संतुलन
है
संतुलन
जीवन में
जरूरी
कम बोलो
अच्छा बोलो
बना रहेगा
मान
समाज में
तराजु सा
संतुलित
हो कार्य हमेशा
नहीँ बिगड़ेगी
बात कभी
दाम्पत्य
जीवन में रहे
संतुलित
सभी आपस में
रखें मान
माता पिता का
रहें प्रसन्न सभी
प्राकृति रखती
संतुलन धरा पर
देती जल वायु
सभी को
बिगड़ता संतुलन
जब धरा का
क्रोधित होती
धरा , मानव से
बाढ़ भूकम्प
सूखा का
मिलता प्रतिफल
है संदेश
ईश का
स्वच्छ रखो
पर्यावरण
होगी खुशहाली
हर तरफ
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
है
संतुलन
जीवन में
जरूरी
कम बोलो
अच्छा बोलो
बना रहेगा
मान
समाज में
तराजु सा
संतुलित
हो कार्य हमेशा
नहीँ बिगड़ेगी
बात कभी
दाम्पत्य
जीवन में रहे
संतुलित
सभी आपस में
रखें मान
माता पिता का
रहें प्रसन्न सभी
प्राकृति रखती
संतुलन धरा पर
देती जल वायु
सभी को
बिगड़ता संतुलन
जब धरा का
क्रोधित होती
धरा , मानव से
बाढ़ भूकम्प
सूखा का
मिलता प्रतिफल
है संदेश
ईश का
स्वच्छ रखो
पर्यावरण
होगी खुशहाली
हर तरफ
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
विषय-संतुलन
विधा-छंद मुक्त सृजन
दिनांकः 10/12/2019
मंगलवार
गाड़ी चले संतुलन से,
बिन इसके गिर जाये ।
हो जायें कोई हादसा,
संकट में वह पड जाये ।।
हो संतुलन आहार में,
तभी बनें हम स्वस्थ ।
यदि संतुलन खो दिया,
हम हो जाते अस्वस्थ ।।
यदि बहुत तनाव हो,
मगज संतुलन बिगडते ।
बच के रहें तनावों से,
सभी काज सुधरते ।।
हो संतुलन काम में,
तभी काम सही होता ।
सुचारू रूप व्यवस्थित हो,
उसमें श्रेष्ठ निखार होता ।।
स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा 'जयपुर,
विधा-छंद मुक्त सृजन
दिनांकः 10/12/2019
मंगलवार
गाड़ी चले संतुलन से,
बिन इसके गिर जाये ।
हो जायें कोई हादसा,
संकट में वह पड जाये ।।
हो संतुलन आहार में,
तभी बनें हम स्वस्थ ।
यदि संतुलन खो दिया,
हम हो जाते अस्वस्थ ।।
यदि बहुत तनाव हो,
मगज संतुलन बिगडते ।
बच के रहें तनावों से,
सभी काज सुधरते ।।
हो संतुलन काम में,
तभी काम सही होता ।
सुचारू रूप व्यवस्थित हो,
उसमें श्रेष्ठ निखार होता ।।
स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा 'जयपुर,
संतुलन
नमन मंच भावों के मोती समूह,गुरूजनों, मित्रों।
संतुलन बनाए रखना जिन्दगी में।
उठने, बैठने और खाने-पीने में।
वरना सामना होगा बीमारी का।
बीमारी बनायेगी घर तेरे तन में।
भूमंडल का संतुलन बिगड़ा है।
कहीं ज्यादा गर्मी, कहीं ज्यादा ठंडा है।
पशु पक्षी कम हो रहे हैं।
अनावृष्टि से त्रस्त सभी हैं।
वृक्षों को तुम काट रहे हो।
प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रहे हो।
वृक्ष लगाओ,करो नेक काम यह।
क्यों आमंत्रण दुःख को दे रहे हो।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नमन मंच भावों के मोती समूह,गुरूजनों, मित्रों।
संतुलन बनाए रखना जिन्दगी में।
उठने, बैठने और खाने-पीने में।
वरना सामना होगा बीमारी का।
बीमारी बनायेगी घर तेरे तन में।
भूमंडल का संतुलन बिगड़ा है।
कहीं ज्यादा गर्मी, कहीं ज्यादा ठंडा है।
पशु पक्षी कम हो रहे हैं।
अनावृष्टि से त्रस्त सभी हैं।
वृक्षों को तुम काट रहे हो।
प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रहे हो।
वृक्ष लगाओ,करो नेक काम यह।
क्यों आमंत्रण दुःख को दे रहे हो।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
कठिन डगर हैं ना ज्यादा घबराना
ख़ुशी के पल में ना अधिक मुस्कराना
जीवन के हर पल हैं ख़ास
जिसमें हमें रखना हैं संतुलन .
फूलों की क्यारी में भी होती हैं
कभी-कभी काँटों की चुभन
दिल में उठता हैं दर्द करना पड़ता हैं सहन
यही तो प्रकृति का संतुलन .
जिंदगी की डोर से
लड़खड़ाते कदमों से
हरदम संतुलन बनाती हूँ
कभी दिल से सोचती हूँ कभी दिमाग से सोचती हूँ .
दिल से सोचती हूँ तो
कमजोर पड जाती हूँ
दिमाग से सोचती हूँ आगे बढ़ जाती हूँ
हरदम फिर भी एक नया संतुलन बनाती हूँ .
स्वरचित :- रीता बिष्ट
ख़ुशी के पल में ना अधिक मुस्कराना
जीवन के हर पल हैं ख़ास
जिसमें हमें रखना हैं संतुलन .
फूलों की क्यारी में भी होती हैं
कभी-कभी काँटों की चुभन
दिल में उठता हैं दर्द करना पड़ता हैं सहन
यही तो प्रकृति का संतुलन .
जिंदगी की डोर से
लड़खड़ाते कदमों से
हरदम संतुलन बनाती हूँ
कभी दिल से सोचती हूँ कभी दिमाग से सोचती हूँ .
दिल से सोचती हूँ तो
कमजोर पड जाती हूँ
दिमाग से सोचती हूँ आगे बढ़ जाती हूँ
हरदम फिर भी एक नया संतुलन बनाती हूँ .
स्वरचित :- रीता बिष्ट
विषय - संतुलन
10/12/19
मंगलवार
कविता
स्वस्थ और सुन्दर तन - मन का
भोजन है सचमुच आधार ,
किन्तु व्यक्ति को करना होगा
सदा संतुलन में आहार।
आज मिलावट की दुनिया ने
भोजन किया विषैला है,
चारों ओर असाध्य रोग का
भीषण खतरा फैला है।
इसीलिए घर के भोजन पर
सब मिलकर अवधान रखें,
ग्रहण करें अंकुरित खाद्य और
शुद्ध दूध का पान करें।
हरी सब्जियां, ताजे फल व
दाल - चपाती को खाकर,
स्वस्थ और सुन्दर जीवन का
मूल मंत्र सब अपनाएं ।
होगा जब आहार संतुलित
जीवन नवगति पाएगा,
तन-मन का हर कष्ट सदा के
लिए लुप्त हो जाएगा ।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
10/12/19
मंगलवार
कविता
स्वस्थ और सुन्दर तन - मन का
भोजन है सचमुच आधार ,
किन्तु व्यक्ति को करना होगा
सदा संतुलन में आहार।
आज मिलावट की दुनिया ने
भोजन किया विषैला है,
चारों ओर असाध्य रोग का
भीषण खतरा फैला है।
इसीलिए घर के भोजन पर
सब मिलकर अवधान रखें,
ग्रहण करें अंकुरित खाद्य और
शुद्ध दूध का पान करें।
हरी सब्जियां, ताजे फल व
दाल - चपाती को खाकर,
स्वस्थ और सुन्दर जीवन का
मूल मंत्र सब अपनाएं ।
होगा जब आहार संतुलित
जीवन नवगति पाएगा,
तन-मन का हर कष्ट सदा के
लिए लुप्त हो जाएगा ।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
विषय संतुलन
विधा कविता
दिनाँक 10.12.2019
दिन मंगलवार
संतुलन
💘💘💘💘
संतुलन जीवन का आधार है
संतुलन में ही टिका संसार है
असंतुलन जब खाने में होता
आदमी पड़ता तुरन्त बीमार है।
रसायन शास्त्र में समीकरण संतुलित करते
राजनीति में इसके लिये पद वितरित करते
समीकरण जब सारे बिगड़ जाते
सारे कदम बढ़ते हुए स्थगित करते।
युवा पीढी़ में वैवाहिक संतुलन बिगड़ रहा
नया नया परिवार भी अब उजड़ रहा
वैसे तो एक धुरी पर टिकता संतुलन
पर असंतुलन इस धुरी को ही रगड़ रहा।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
विधा कविता
दिनाँक 10.12.2019
दिन मंगलवार
संतुलन
💘💘💘💘
संतुलन जीवन का आधार है
संतुलन में ही टिका संसार है
असंतुलन जब खाने में होता
आदमी पड़ता तुरन्त बीमार है।
रसायन शास्त्र में समीकरण संतुलित करते
राजनीति में इसके लिये पद वितरित करते
समीकरण जब सारे बिगड़ जाते
सारे कदम बढ़ते हुए स्थगित करते।
युवा पीढी़ में वैवाहिक संतुलन बिगड़ रहा
नया नया परिवार भी अब उजड़ रहा
वैसे तो एक धुरी पर टिकता संतुलन
पर असंतुलन इस धुरी को ही रगड़ रहा।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
दिन :- मंगलवार
दिनांक :- 10/12/2019
शीर्षक :- संतुलन
संदेह पला,घर परिवार में।
रिश्ते बंटे,माटी की दीवार में।
जागा है अहं,थोड़ी तकरार में।
घुला जहर,मधुरम प्यार में।
भूले संस्कार,स्वार्थ की बयार में।
भीगे नयना,बसंत बहार में।
खींचें औजार,क्षणिक आवेश में।
लहू पसरा,गृह परिवेश में।
मौन है द्वार,रोती रही देहरी।
समेटे गम,मौन हुआ प्रहरी।
मुरझा गया,रिश्तों का उपवन।
ढहा महल,बिगड़ा संतुलन।
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
दिनांक :- 10/12/2019
शीर्षक :- संतुलन
संदेह पला,घर परिवार में।
रिश्ते बंटे,माटी की दीवार में।
जागा है अहं,थोड़ी तकरार में।
घुला जहर,मधुरम प्यार में।
भूले संस्कार,स्वार्थ की बयार में।
भीगे नयना,बसंत बहार में।
खींचें औजार,क्षणिक आवेश में।
लहू पसरा,गृह परिवेश में।
मौन है द्वार,रोती रही देहरी।
समेटे गम,मौन हुआ प्रहरी।
मुरझा गया,रिश्तों का उपवन।
ढहा महल,बिगड़ा संतुलन।
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
10/12/19
विषय-संतुलन
***
बना संतुलन इच्छाओं का,
जीवन -धारा बहती है,
हँसकर जीना सीखो तुम,
हमसे सदा ये कहती है,
**
क्रोध और प्रेम का संतुलन,
संस्कार सदा सीखाता है,
भटक जाते राह जब,
वक्त आईना दिखाता है,
**
समारोह का पा निमंत्रण,
जीभ को भाते स्वाद न्यारे,
पेट की हलचल देखकर,
आते नजर फिर दिन में तारे,
****
स्वरचित रेखा रविदत्त
विषय-संतुलन
***
बना संतुलन इच्छाओं का,
जीवन -धारा बहती है,
हँसकर जीना सीखो तुम,
हमसे सदा ये कहती है,
**
क्रोध और प्रेम का संतुलन,
संस्कार सदा सीखाता है,
भटक जाते राह जब,
वक्त आईना दिखाता है,
**
समारोह का पा निमंत्रण,
जीभ को भाते स्वाद न्यारे,
पेट की हलचल देखकर,
आते नजर फिर दिन में तारे,
****
स्वरचित रेखा रविदत्त
शीर्षक- संतुलन
कितनी ही विपदा आए
किस्मत की कितनी ही पड़े मार।
मानसिक संतुलन बनाए रखें
हों कितने ही तुम पर अत्याचार।।
देख तुम्हारी सहनशीलता
कुदरत का सर भी झुक जाएगा।
वक्त फिर खुद आगे बढ़कर
दर कामयाबी का दिखलाएगा।
काली रात के बाद ही तो
उजली सुबह आकर मुस्काती है।
हार के कांटों के बीच ही तो
जीत की कलियां खिल जाती है।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
कितनी ही विपदा आए
किस्मत की कितनी ही पड़े मार।
मानसिक संतुलन बनाए रखें
हों कितने ही तुम पर अत्याचार।।
देख तुम्हारी सहनशीलता
कुदरत का सर भी झुक जाएगा।
वक्त फिर खुद आगे बढ़कर
दर कामयाबी का दिखलाएगा।
काली रात के बाद ही तो
उजली सुबह आकर मुस्काती है।
हार के कांटों के बीच ही तो
जीत की कलियां खिल जाती है।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
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