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ब्लॉग संख्या :-604
विषय थाप, थपकी
विधा काव्य
23 दिसम्बर 2019,सोमवार
शाबासी की पड़ती थपकी
सब संकट छू मंतर हो जाते।
रोते बालक हँस उठते सब
स्नेह सुधा थपकी तरसाते।
ममता प्यार दुलार थपकी से
आँचल में सो जाता बालक।
कलियुग की सारी विपदाएँ
स्वयं हरण करे जग पालक।
ढोलक तबले बजते ढम ढम
थाप पड़े जब सदा प्यार की।
वीणा तार सितार बज उठते
गाते गज़ल स्नेह मनुहार की।
अति स्नहे उमड़े मन मानस
सदा प्यारमय थपकी देते।
दुश्मन आकर मिले स्नेह से
प्रेम वशीभूत गले मिल लेते।
मात पिता और गुरुजन की
थाप सदा प्रेरणा नित देतीं ।
जीवन जीना बड़ी कला है
स्नेह थाप विपदा हर लेती।
कितनी थपकी मिली प्यार में
हिलना मिलना और बिछुड़ना।
अति अद्भुत है संसार निराला
धूप छांव सुख दुख सिकुड़ना।
स्वरचित मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
23 दिसम्बर 2019,सोमवार
शाबासी की पड़ती थपकी
सब संकट छू मंतर हो जाते।
रोते बालक हँस उठते सब
स्नेह सुधा थपकी तरसाते।
ममता प्यार दुलार थपकी से
आँचल में सो जाता बालक।
कलियुग की सारी विपदाएँ
स्वयं हरण करे जग पालक।
ढोलक तबले बजते ढम ढम
थाप पड़े जब सदा प्यार की।
वीणा तार सितार बज उठते
गाते गज़ल स्नेह मनुहार की।
अति स्नहे उमड़े मन मानस
सदा प्यारमय थपकी देते।
दुश्मन आकर मिले स्नेह से
प्रेम वशीभूत गले मिल लेते।
मात पिता और गुरुजन की
थाप सदा प्रेरणा नित देतीं ।
जीवन जीना बड़ी कला है
स्नेह थाप विपदा हर लेती।
कितनी थपकी मिली प्यार में
हिलना मिलना और बिछुड़ना।
अति अद्भुत है संसार निराला
धूप छांव सुख दुख सिकुड़ना।
स्वरचित मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
शीर्षक -- थाप / थपकी
प्रथम प्रस्तुति
जैसे कोई दे गया हो
प्यार भरी कोई थपकी ।।
मीठी सी इक नींद रही
मैं कहूँ कृपा ये रब की ।।
ख्वाबों की मल्लिका कहूँ
या कहूँ प्यार की झपकी ।।
कैसे किसे हँसाना होय
नहि जाना रब की ढब की ।।
'शिवम'प्यार की थपकी एक
सौ काँटों की चुभन मिटाय ।।
सहेज कर रखना कुछ लम्हे
जिन्दगी सदा नही हँसाय ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 23/12/2019
प्रथम प्रस्तुति
जैसे कोई दे गया हो
प्यार भरी कोई थपकी ।।
मीठी सी इक नींद रही
मैं कहूँ कृपा ये रब की ।।
ख्वाबों की मल्लिका कहूँ
या कहूँ प्यार की झपकी ।।
कैसे किसे हँसाना होय
नहि जाना रब की ढब की ।।
'शिवम'प्यार की थपकी एक
सौ काँटों की चुभन मिटाय ।।
सहेज कर रखना कुछ लम्हे
जिन्दगी सदा नही हँसाय ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 23/12/2019
विधा-दोहा
विषय-थपकी
माँ आजा तू फलक से,नींद हमें नहिं आय।
थपकी दे कर तू हमें , थोड़ी देर सुलाय।।
तेरे आँचल के बिना , मिले न हमको चैन।
तेरी थपकी के बिना,दिन बीते नहिं रैन।।
जब तू हमको थपकती ,सब दुख जाते भूल।
उर की घाटी में खिलें,सदा महकते फूल।।
तेरी थपकी से लगे, शीतल चली बयार।।
मेरे जीवन में नई , फिर आ गई बहार।।
घड़ी आखिरी आ गई, प्रभु बरसा दे प्यार।
अंतिम थपकी दे मुझे , तू पहुँचा दे पार।।
सरिता गर्ग
माँ आजा तू फलक से,नींद हमें नहिं आय।
थपकी दे कर तू हमें , थोड़ी देर सुलाय।।
तेरे आँचल के बिना , मिले न हमको चैन।
तेरी थपकी के बिना,दिन बीते नहिं रैन।।
जब तू हमको थपकती ,सब दुख जाते भूल।
उर की घाटी में खिलें,सदा महकते फूल।।
तेरी थपकी से लगे, शीतल चली बयार।।
मेरे जीवन में नई , फिर आ गई बहार।।
घड़ी आखिरी आ गई, प्रभु बरसा दे प्यार।
अंतिम थपकी दे मुझे , तू पहुँचा दे पार।।
सरिता गर्ग
दिनाँक:23/12/2019
विषय:थपकी/थाप
विधा:हाइकु
थपकी देती
बच्चे को सुलाती माँ -
ओले की वृष्टि
तरु कानन--
पालने में बालक
झुलाती माता
ढोल की थाप-
उड़े रंग - अबीर
फगुआ संग
बिटिया पायी
एवरेस्ट पे फतह-
नेह की थाप
स्वरचित
मनीष कुमार श्रीवास्तव
विषय:थपकी/थाप
विधा:हाइकु
थपकी देती
बच्चे को सुलाती माँ -
ओले की वृष्टि
तरु कानन--
पालने में बालक
झुलाती माता
ढोल की थाप-
उड़े रंग - अबीर
फगुआ संग
बिटिया पायी
एवरेस्ट पे फतह-
नेह की थाप
स्वरचित
मनीष कुमार श्रीवास्तव
23/12/2019
विषय-थाप/थपकी
विधा-कविता
देती माँ जब प्यार से थपकी
चैन की नींद आ जाती है
माँ की मीठी झिड़की
जीवन का पाठ पढ़ाती है।
गुरु कुंभकार बनकर
ऊपर से थाप लगाता है
कोरी गीली अनगढ़ मिट्टी से
चेले को इंसान बनाता है।
पड़ती है जब थाप ढोल पर
मधुर ताल ध्वनि होती है
खो जाते हैं सब उस धुन में
संगीत लहरियां बजती हैं।
कर्णप्रिय मृदंग थाप पर
मगन नर्तकी जब थिरकी
हो जाते हैं मदहोश सभी
जब ताल पे ताल पड़े थपकी ।।
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
विषय-थाप/थपकी
विधा-कविता
देती माँ जब प्यार से थपकी
चैन की नींद आ जाती है
माँ की मीठी झिड़की
जीवन का पाठ पढ़ाती है।
गुरु कुंभकार बनकर
ऊपर से थाप लगाता है
कोरी गीली अनगढ़ मिट्टी से
चेले को इंसान बनाता है।
पड़ती है जब थाप ढोल पर
मधुर ताल ध्वनि होती है
खो जाते हैं सब उस धुन में
संगीत लहरियां बजती हैं।
कर्णप्रिय मृदंग थाप पर
मगन नर्तकी जब थिरकी
हो जाते हैं मदहोश सभी
जब ताल पे ताल पड़े थपकी ।।
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
दिनांक - 23/12/019
विषय - थाप / थपकी
*****************
बंधीं थीं जब बेड़ियाँ
माँ भारती के पैरों में
तोड़ने वाला उसे
न हिन्दू न मुस्लिम था
सुना है मैंने अपने दादाजी से
तब संघर्षरत सब हिन्दुस्तानी था।
कैसे भूल पाएगा ये मुल्क भला
हर धर्मों के कुर्बानियों को
दिया जो था बलिदान सभी ने
वह शोणित रक्त के धारों को।
यह देश हम सबका है और रहेगा
मत आओ किसी के बहकावे में
देखो बरगला कर तुझको ये नेता
कैसे थाप लगा रहे हैं हाथों में।
तुझे बना कर अलाव ये
अपनी रोटी सकेंगे
जलाकर तुझे भस्म कर यह
उसी राख से घिसकर
अपनी राजनीति चमकाएँगे।
जहाँ है हिन्दी - उर्दू एक समान
वहाँ की एकता हो
सकती कमजोर नहीं
मत घिरों षड्यंत्र में
करो सबको बेनकाब
तुम हो देश के सच्चे नागरिक
कोई हुडदंगी गिरोह नहीं।
स्वरचित: - मुन्नी कामत।
विषय - थाप / थपकी
*****************
बंधीं थीं जब बेड़ियाँ
माँ भारती के पैरों में
तोड़ने वाला उसे
न हिन्दू न मुस्लिम था
सुना है मैंने अपने दादाजी से
तब संघर्षरत सब हिन्दुस्तानी था।
कैसे भूल पाएगा ये मुल्क भला
हर धर्मों के कुर्बानियों को
दिया जो था बलिदान सभी ने
वह शोणित रक्त के धारों को।
यह देश हम सबका है और रहेगा
मत आओ किसी के बहकावे में
देखो बरगला कर तुझको ये नेता
कैसे थाप लगा रहे हैं हाथों में।
तुझे बना कर अलाव ये
अपनी रोटी सकेंगे
जलाकर तुझे भस्म कर यह
उसी राख से घिसकर
अपनी राजनीति चमकाएँगे।
जहाँ है हिन्दी - उर्दू एक समान
वहाँ की एकता हो
सकती कमजोर नहीं
मत घिरों षड्यंत्र में
करो सबको बेनकाब
तुम हो देश के सच्चे नागरिक
कोई हुडदंगी गिरोह नहीं।
स्वरचित: - मुन्नी कामत।
23/12/19
शीर्षक थपकी
माँ की लोरीaa
प्यारी थपकी
नीद की झपकी
आँचल लिपटी
सवालों की गठरी
प्रेम की गगरी
प्यार की छतरी
मैं जब रोती
वो भी रोती
देती सीख
भर तिजोरी
कदमो में तेरी
जन्नत की देहरी
माँ तू मेरी
मैं तेरी बेटी
स्वरचित
मीना तिवारी
शीर्षक थपकी
माँ की लोरीaa
प्यारी थपकी
नीद की झपकी
आँचल लिपटी
सवालों की गठरी
प्रेम की गगरी
प्यार की छतरी
मैं जब रोती
वो भी रोती
देती सीख
भर तिजोरी
कदमो में तेरी
जन्नत की देहरी
माँ तू मेरी
मैं तेरी बेटी
स्वरचित
मीना तिवारी
तिथि-23/12/2019/ सोमवार
विषय -*थपकी/थाप*
विधा- काव्य
माते वरद्हस्त रहे हम सब पर,
हो हमेशा तेरी जय जय कार।
लगे थाप पीठ पर यहां सबकी,
हमें सदैव खुशियां मिलें अपार।
ढोलक मात मंजीरे बजाऐं।
सब नाचें गाऐं तुम्हें रिझाऐं।
आराम मिले तेरे चरणों में,
हम ताली अपनी खूब पिटाऐं।
धौल लगे माता के हाथों की।
लगे थपकी पीठ पर हाथों की।
बन सदाचारी हम सुकर्मों से,
आशीष मिले मां के हाथों की।
करें पुरजोर परोपकार अगर
नहीं आऐगी हमें कभी झपकी।
नित सत्संग सुखद कार्य करें तो
हमें मिले प्रोत्साहन की थपकी।
स्वरचितःः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
विषय -*थपकी/थाप*
विधा- काव्य
माते वरद्हस्त रहे हम सब पर,
हो हमेशा तेरी जय जय कार।
लगे थाप पीठ पर यहां सबकी,
हमें सदैव खुशियां मिलें अपार।
ढोलक मात मंजीरे बजाऐं।
सब नाचें गाऐं तुम्हें रिझाऐं।
आराम मिले तेरे चरणों में,
हम ताली अपनी खूब पिटाऐं।
धौल लगे माता के हाथों की।
लगे थपकी पीठ पर हाथों की।
बन सदाचारी हम सुकर्मों से,
आशीष मिले मां के हाथों की।
करें पुरजोर परोपकार अगर
नहीं आऐगी हमें कभी झपकी।
नित सत्संग सुखद कार्य करें तो
हमें मिले प्रोत्साहन की थपकी।
स्वरचितःः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
थपकी
माँ की थपकी सबसे भली होती है।
माँ के हाथों में वह नींद भरी होती है।
ममतामयी स्नेहास्पर्श से थकान मिटाती है।
अपने भूखी रहती है पर हमें खिलाती है।
माँ के चरणों में ही स्वर्ग है जन्नत है।
माँ ही तो हमारे जीवन की मन्नत है।
माँ के थप्पड़ से हर बात बन जाती है।
जिसपर नहीं पड़ती जीवन बिगड़ जाती है।
माँ के हाथों का कौर मिश्री है मक्खन है।
माँ के हाथों का ठौर शिवाजी का जीवन है
माँ का सबक जीवन की मधुर कहानी है।
माँ की बातें बरसात का झरता पानी है।
माँ की लोरी जीवन की जैसे थाप है।
माँ की आँखों से झरता जैसे बरसात है।
स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ
डॉ कन्हैया लाल गुप्त 'शिक्षक'
माँ की थपकी सबसे भली होती है।
माँ के हाथों में वह नींद भरी होती है।
ममतामयी स्नेहास्पर्श से थकान मिटाती है।
अपने भूखी रहती है पर हमें खिलाती है।
माँ के चरणों में ही स्वर्ग है जन्नत है।
माँ ही तो हमारे जीवन की मन्नत है।
माँ के थप्पड़ से हर बात बन जाती है।
जिसपर नहीं पड़ती जीवन बिगड़ जाती है।
माँ के हाथों का कौर मिश्री है मक्खन है।
माँ के हाथों का ठौर शिवाजी का जीवन है
माँ का सबक जीवन की मधुर कहानी है।
माँ की बातें बरसात का झरता पानी है।
माँ की लोरी जीवन की जैसे थाप है।
माँ की आँखों से झरता जैसे बरसात है।
स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ
डॉ कन्हैया लाल गुप्त 'शिक्षक'
23/ 12/2019
बिषय ,,थाप ,,थपकी
बचपन में माँ की लोरी
प्यार भरी थपकी
न जाने कब आ जाती मीठी नींद की झपकी
बच्चे जब रहते आगोश में ममता की
कोई नहीं तुलना प्यार के क्षमता की
वो ढोलक की थाप मजीरों की झनझनाहट
वो गानों के मीठे बोल वो चूड़ी की खनखनाहट
रश्मों रिवाज में बंधे.थे त्यौहार
आपस में.मेलजोल मधुर मनुहार
अब तो औपचारिकता का दौर ही रह गया है
बेअदब हो गया इंसान न अदब रह गया है
रीति रिवाज हैं विलुप्ति की कगार पर
हम स्वयं बैठे तलवार की धार पर
जिस डाली पर बैठे उसी को काटते
भावी पीढ़ी को गहरा असर बांटते
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय ,,थाप ,,थपकी
बचपन में माँ की लोरी
प्यार भरी थपकी
न जाने कब आ जाती मीठी नींद की झपकी
बच्चे जब रहते आगोश में ममता की
कोई नहीं तुलना प्यार के क्षमता की
वो ढोलक की थाप मजीरों की झनझनाहट
वो गानों के मीठे बोल वो चूड़ी की खनखनाहट
रश्मों रिवाज में बंधे.थे त्यौहार
आपस में.मेलजोल मधुर मनुहार
अब तो औपचारिकता का दौर ही रह गया है
बेअदब हो गया इंसान न अदब रह गया है
रीति रिवाज हैं विलुप्ति की कगार पर
हम स्वयं बैठे तलवार की धार पर
जिस डाली पर बैठे उसी को काटते
भावी पीढ़ी को गहरा असर बांटते
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
23/12/2019
"थाप /थपकी"
मुक्तक
1
आधी रात को दे रहा कौन थाप है।
गहरी रात को किसका यह पदचाप है।
आँखों से नींद भी अब दूर चली गई--
मन में समा रहा भय और संताप है।
2
थपकी देकर माता यशोदा कान्हा को जब सुलाती है।
लोरी सुनकर निंदिया रानी भी दौड़ी चली आती है।
यशोदा की आँचल में देखो भगवान शांति से सो रहे--
कान्हा के आँखों में बसकर नींद बहुत ही इतराती है।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"थाप /थपकी"
मुक्तक
1
आधी रात को दे रहा कौन थाप है।
गहरी रात को किसका यह पदचाप है।
आँखों से नींद भी अब दूर चली गई--
मन में समा रहा भय और संताप है।
2
थपकी देकर माता यशोदा कान्हा को जब सुलाती है।
लोरी सुनकर निंदिया रानी भी दौड़ी चली आती है।
यशोदा की आँचल में देखो भगवान शांति से सो रहे--
कान्हा के आँखों में बसकर नींद बहुत ही इतराती है।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
विषय, थपकी
सोमवार
23,12, 2019 .
थपकी जैसा कुछ नहीं,
ये है सुख की खान ।
माँ की ममता से मिले,
स्वप्न लोक जहान ।।
अदुभुत होतीं थपकियाँ ,
पहुचायें विश्राम ।
तन मन दोनों पा रहे ,
बालक के आराम ।।
स्पर्श की भाषा बनी ,
थपकी बड़ी महान ।
मानव मन की औषधी,
अवचेतन का ज्ञान ।।
रिश्ता गहरा हो रहा ,
अजब है एहसास ।
माँ के हाथों पर करे ,
अबोध मन विश्वास ।।
स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश
सोमवार
23,12, 2019 .
थपकी जैसा कुछ नहीं,
ये है सुख की खान ।
माँ की ममता से मिले,
स्वप्न लोक जहान ।।
अदुभुत होतीं थपकियाँ ,
पहुचायें विश्राम ।
तन मन दोनों पा रहे ,
बालक के आराम ।।
स्पर्श की भाषा बनी ,
थपकी बड़ी महान ।
मानव मन की औषधी,
अवचेतन का ज्ञान ।।
रिश्ता गहरा हो रहा ,
अजब है एहसास ।
माँ के हाथों पर करे ,
अबोध मन विश्वास ।।
स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश
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