ऋतुराज दवे (एडमिन)




"लेखक परिचय"
1-नाम:-ऋतुराज दवे
2-जन्मतिथि(वर्ष सहित):-06/10/1974
3-जन्म स्थान:-ब्यावर
4-शिक्षा:-एम. ए.(हिंदी),बी एस.सी.(बायो.)
5-संप्रति:-वरिष्ठ अध्यापक(विज्ञान)
6-सृजन की विधाएँ:-हाइकु, पिरामिड,तांका,कविता,मुक्तक ,छंदमुक्त काव्य ..
7-प्रकाशित कृतियाँ:-
साझा संग्रह:-
(1)"हाइकु मञ्जूषा"
(2)"अपनी शान है तिरंगा" (अर्णव कलशएसोसिएशन,हरियाणा)
(3)"सागर के मोती"जसाला पिरामिड
(4)काव्य सौरभ

(5)हाइकु -2019
(6)संचित काव्य तरंग
8)सम्मान:-
(1)जिला स्तरीय श्रेष्ठ अध्यापन सम्मान
(2)मेवाड़ -वागड़ -मालवा संभागस्तरीय शहीद नानाभाई
श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
(3) संभागस्तरीयसर्वश्रेष्ठ डायरी लेखन सम्मान
(4)विज्ञान मॉडल निर्माण.. सर्वश्रेष्ठ सम्मान
(5)निर्वाचन कार्य में तीन बार कलेक्टर से सम्मानित
(6)जसाला "पिरामिड शिरोमणि" सम्मान
(7)फेसबुक के साहित्य समूहों में श्रेष्ठ हाइकुकार से सम्मानित l

(8)संचित काव्य तरंग साहित्य सम्मान, हरियाणा
(9)अणुव्रत विश्व भारती द्वारा बलोदय प्रकल्प सम्मान 

(9)संपर्क सूत्र(पूर्ण पता):-मकान न. 106
आसोटिया, कृष्ण विहार कॉलोनी
मोही चौराहा, बाय पास रोड
कांकरोली, जिला :-राजसमंद (राजस्थान)

(10)-ईमेल आईडी:
rituraj60945@gmail.com

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दिनांक :30/01/2020
विषय : "पलायन"
विधा : हाइकु(5/7/5)
(1)

आज का युग

कर्तव्य पलायन

धन की भूख

(2)
रोक न पाये
मूल्यों से पलायन
शिक्षा बुलाये
(3)
जीवन आज
भावना पलायन
बुद्धि का राज
(4)
बिगड़े गति
जीवन पलायन
कायर वृत्ति
(5)
घर उजड़े
संस्कार पलायन
खामोश बूढ़े
(6)
मिला न काम
प्रतिभा पलायन
तंत्र की हार




स्वरचित

ऋतुराज दवे




दिनांक :29/01/2020
विषय : "वसंत/ऋतुराज"
विधा : हाइकु(5/7/5)

(1)
फैलाता रंग
हवाओं की डोली पे
आया वसंत
(2)
छूए वसंत
धरा ले अँगड़ाई
हवा बौराई
(3)
चहके मन
ऋतुराज आँगन
पीत सुमन
(4)
खिचे मधुप
वासंती उपवन
चुम्बक पुष्प
(5)
उम्र है अंक
मन की डाल पर
बैठा वसंत
(6)
मद से भरा
ऋतुराज का स्पर्श
महकी धरा

स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद(राज.)



दिनांक :25/01/2020
विषय : अंतिम/आखिरी
विधा : हाइकु(5/7/5)

(1)
मृत्यु बताती
जीवन कचहरी
अंतिम सत्य
(2)
छूटता नाता
कर्म गठरी संग
अंतिम यात्रा
(3)
भाग्य चमके
अंतिम क्षण में भी
पासा पलटे
(4)
सेवानिवृति
नाच रही स्मृतियाँ
आखिरी दिन

स्वरचित
ऋतुराज दवे



दिनांक :24/01/2020
विषय : कल्याण
विधा : हाइकु(5/7/5)

(1)
चुनावी नारा
गरीब का कल्याण
वहीं बेचारा
(2)
आज का दौर
निज कल्याण हावी
दिखावा शोर
(3)
प्रेम समाया
बुजुर्ग वृक्ष नीचे
कल्याण छाया
(4)
मान न कम
कर देती कल्याण
वाणी-कलम
(5)
नाम है बड़े
कल्याणपुरवासी
रोग में पड़े



स्वरचित

ऋतुराज दवे, राजसमंद(राज.)


दिनांक :20/01/2020
विषय : महाराणा प्रताप
विधा : हाइकु

(1)
मेवाड़ भूमि
वीरता की मिसाल
राणा प्रताप
(2)
अजेय भूमि
मेवाड़ का सूरज
राणा प्रताप
(3)
अश्व चेतक
अमर बलिदान
राणा का मान
(4)
साहस खिला
धन्य मेवाड़ धरा
राणा उपजा
(5)
भूमि वंदन
प्रताप के भाल पे
माटी चंदन
(6)
शीश न झुका
हल्दीघाटी सुनाये
वीरता कथा

स्वरचित
ऋतुराज दवे



18/01/2020
हाइकु(5/7/5)
आँगन
(1)

जाड़े में खूब

आँगन खेल रही

सुहानी धूप

(2)
दवाई बड़ी
आँगन की तुलसी
ममता खड़ी
(3)
गोद में लेटा
आँगन भी रो रहा
शहीद आया
(4)
बड़े शहर
खो रहे हैं आँगन
सिमटे घर
(5)
आशीष धूप
वसुंधरा आँगन
खिलते फूल
(6)
चुनती दाना
आँगन झूमें चिड़ी
गा रही गाना

स्वरचित


17/01/2020
हाइकु(5/7/5)
किनारा
(1)

जिन्हें था पाला

कर गए किनारा

शत्रु बुढ़ापा

(2)
साँझ-सवेरे
वसुंधरा किनारे
रवि टहले
(3)
नभ खिलता
रवि धरा किनारे
रंग भरता
(4)
दर्द छुपा के
पलकों के किनारे
बैठे हैं आँसू
(5)
तन की नाव
कैसे लगे किनारे
छेद हज़ार

स्वरचित
ऋतुराज दवे



15/01/2020
हाइकु(5/7/5)
विषय:-"ज्ञान"
(1)📚

बुद्धि की बाढ़

बिछड़ी भावनाएँ

कुचला "ज्ञान"

(2)📚
बुद्धि की चाभी
"ज्ञान" तिजोरी खुली
सच्चाई मिली
(3)📚
भ्रमित मन
जिज्ञासा ने बताई
"ज्ञान" की राह
(4)📚
कथनी शोर
"ज्ञान" बाँट रहे है
करनी मौन
(5)📚
वक़्त मैदान
व्यवहार ने पीटा
किताबी "ज्ञान"

ऋतुराज दवे


14/01/2020
हाइकु(5/7/5)

(1)🌞

घूम दक्षिण

सूरज लौट आया

उत्तरायण
(2)🌞
संक्रान्ति पर्व
रवि को देखकर
उछ्ले तिल
(3)🌞
रवि का रथ
मकर करे पार
रश्मि सवार
(4)🌞
दान का पर्व
ऊर्जा से किया स्नान
रवि को अर्ध्य
(5)🌞
गुड़ महके
रवि का आगमन
तिल तड़के
(6)🌞
मकर रवि
रजनी की चादर
थोड़ी सिमटी
(7)🌞
उत्तरायण
पतंग कर रही
सूर्य तिलक

स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद(राज.)



13/01/2020
कविता
विषय :-परिस्थिति

परिस्थितियां मौसम है
कठोर तो कभी नरम है
कब कैसे बदल जाये
कह नहीं सकते...

परिस्थितियां गुरु है
तोड़ती गुरुर है
कब कैसा सबक सिखाए
कह नहीं सकते...

परिस्थितियां मालिक है
हाथ कर्मों का चाबुक है
कब किसे गुलाम बनाए
कह नहीं सकते...

परिस्थितियां बेलगाम है
ऊपर वाले की कमान है
कब हाथ छोड़ चली जाए
कह नहीं सकते...

परिस्थितियां मासूम है
उसका कोई धनी है न दीन है
कब राजा-रंक हो जाए
कह नहीं सकते...

परिस्थितियां चंचल है
दुःख है आज पर सुख के भी फल है
कब समय बदल जाये
कह नहीं सकते...

स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद(राज.)



07/01/2020
हाइकु
विषय:-"कला"

(1)
दिलाये मान
"कला" भरती पेट
ईश सौगात
(2)
वोट तोलना
राजनीति की "कला"
झूठ बोलना
(3)
सुमन खिला
पत्थर में संघर्ष
जीवन कला
(4)
रोज़ बतायें
सुख-दुःख क्षणिक
चन्द्र कलाएँ
(5)
दोष नसीब?
भूख मारना कला
सीखे गरीब

स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद(राज.)



दिनांक-03/01/2020
विधा-हाइकु (5/7/5)
विषय :-"शीत/ठंड/शीतलहर"

(1)
शीत है सख्त
निशा की रजाई में
दुबका वक़्त
(2)
मौसम घर
ठंड ने दी दस्तक
निकली ऊन
(3)
ठंड अमीर
मेवों के मौसम में
भूखा गरीब
(4)
दे स्वास्थ्य शिक्षा
शीत लहर लेती
तन परीक्षा
(5)
छेड़ता जल
ठंड से मिलकर
काँपता तन
(6)
आज मौसम
एहसास हैं ठंडे
स्वार्थ गरम

ऋतुराज दवे


दिनांक-02/01/2020
विधा-हाइकु (5/7/5)
विषय :-"नम्रता"
(1)

प्रेम को मिला

नम्रता जीत लेती

दिल का किला

(2)
परोपकार
विनम्रता से लदे
वृक्ष संस्कार
(3)
मुट्ठी जहान
नम्रता दिलवाती
योग्य को स्थान
(4)
पेड़ों को देखा
अधिकता नम्रता
कटती ग्रीवा
(5)
शुष्कता देख
विनम्रता से झुक
बरसे मेघ

स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद l



31/12/2019
चन्द हाइकु (5/7/5)
रात/रजनी
(1)

धरा निहारे

रजनी के जूडे में

टंके सितारे

(2)
कजले नैन
साँझ के झुरमुट
झाँकती रैन
(3)
प्रीत की आग
विरह की वेदना
डसती रात
(4)
धरा का तन
रजनी ने ओढ़ाई
"नींद"चादर
(5)
तारों की चिंदी
रजनी का श्रृंगार
चाँद है बिंदी

ऋतुराज दवे


दिनांक-21/12/2019
विधा-हाइकु(5/7/5)
विषय :-"निःस्वार्थ"

(1)
निःस्वार्थ सेवा
वृक्षों की तरह ही
माँ-पा को देखा
(2)
बदलें जग
निःस्वार्थ पथ चलें
सेवा के पग
(3)
निःस्वार्थ मन
स्वार्थ जग सागर
दुर्लभ रत्न
(4)
असल धर्म
मानवता की पूजा
निःस्वार्थ कर्म
(5)
जीने का अर्थ



15/12/2019
आज "चाय दिवस"पर...
वर्ण पिरामिड

☕️☕️☕️☕️☕️☕️☕️

(1)

है

चाय
स्वागत
आमंत्रण
स्फूर्तिदायक
मीठी सी आदत
भोर मुस्कुराहट
(2)
है
चाय
सत्कार
मनुहार
रिश्तों में प्यार
यादों का संसार
संगत अख़बार

स्वरचित
ऋतुराज दवे


दिनांक-11/12/2019
विधा-हाइकु (5/7/5)
विषय :-"छाया/छाँव"

(1)
जैसे मौसम
धूप तो कभी छाँव
यही जीवन
(2)
कैसे भुलाएँ
नीम की ठंडी छाँव
गाँव बुलाएँ
(3)
चैन की साँस
माँ बाप वट वृक्ष
आशीष छाँव
(4)
प्रेमाकर्षण
पलकों की छाँव में
बैठता मन
(5)
पिता भी साया
माँ बनके चलती
बच्चों की छाया

स्वरचित


दिनांक-06/12/2019
कविता
विषय :-"एहसास"

बढ़ रही है दूरियां
रिश्ता सुलग रहा है
स्वार्थ के घरों में
एहसास बिखर रहा है..

दिखने में सभ्य हुए
आचरण बिगड़ रहा है
इंसानियत हुई शर्मसार
एहसास मर रहा है..

धीरे-धीरे दुनिया का
अंदाज़ बदल रहा है
चकाचौंध के विस्तार में
एहसास सिमट रहा है....

तकनीक की गुलामी
मनुज रोबोट हो रहा है
वक़्त की भागमभाग में
एहसास छिटक रहा है....

जाग रहा अवसाद
हाथ का सुख खो रहा है
अहं गोलियों के नशे में
एहसास सो रहा है....

स्वरचित
ऋतुराज दवे



दिनांक-05/12/2019
विधा-हाइकु (5/7/5)
विषय :-"विवाह"

(1)
प्रेम निर्वाह
सुख-दुःख के साथी
सच्चा विवाह
(2)
वचन सात
परिणय संस्कार
जीवन साथ
(3)
जोड़े विवाह
अंजाने परिवार
रिश्ते सौगात
(4)
दिखावा रोग
शहर में विवाह
छप्पन भोग
(5)
पीड़ा,कराह
विश्वास छूटते ही
डूबा विवाह
(6)
लबों पे हँसी
बिटिया का विवाह
आँखों में नमी
(7)
टिका न प्यार
टूट रहे विवाह
घृणा के वार
(8)
माँ-बाप बना
विवाह ने सिखाई
जिम्मेदारियां
(9)
अग्नि समक्ष
विवाह गठबंध
वादों के फेरे

स्वरचित
ऋतुराज दवे



दिनांक-04/12/2019
विधा-हाइकु (5/7/5)
विषय :-"वादा"

(1)
सपना टूटा
राजनीति में ठग
वादों ने लूटा
(2)
चुनावी घड़ी
बादल से नेताजी
वादों की झड़ी
(3)
वादा अधूरा
स्वप्नों की फेहरिस्त
जीवन पूरा
(4)
वक़्त पे आए
प्राण सींचे सूरज
वादा निभाए
(5)
बेटा शहीद
वादा निकला झूठा
बही अखियाँ

स्वरचित
ऋतुराज दवे



दिनांक-30/11/2019
गीत...
विषय:-"आक्रोश"

देख तंत्र की लाचारी
गुबार निकल आता है
बन के ज्वाला सीने से
आक्रोश निकल आता है...

बेटी का मतलब समझ न पाए
बेटे से ही लाड़ लड़ाएं
कोख में मारे बेटी को और
बहु की फिर आस लगाएं
जब कचरे के ढ़ेर से फिर
भ्रूण निकल आता है
बन के ज्वाला सीने से
आक्रोश निकल आता है...

वो भी माँ है,बहिन किसी की
और गुड़िया माँ-पापा की
उसके सीने में भी दिल है
नहीं खिलौना बलात्कारियों की
एक नारी में हैवानों को
सिर्फ मांस नज़र आता है
बन के ज्वाला सीने से
आक्रोश निकल आता है...

आतंकी मासूम को मारे
और देशभक्त पत्थर को खाएँ
प्राण लुटाते सीमा पर जो
कट के धड़ जब घर को आएं
भुजाएं फिर फड़कती है
गौरव प्रताप याद आता है
बन के ज्वाला सीने से
आक्रोश निकल आता है...

नीति और नियम जलाये
भ्रष्टों ने है हाथ मिलाये
धर्मों को बदनाम किया और
भय और विद्वेष फैलाये
जब शैतानों के हाथों से
कानून बिखर जाता है
बन के ज्वाला सीने से
आक्रोश निकल आता है...
स्वरचित
ऋतुराज दवे



दिनांक-29/11/2019
गीत...
माना कि आसान नहीं मैं प्यास जगाता हूँ...
हाँ मैं आशावान हूँ और आस जगाता हूँ....

चींटी देखो गिर-गिर संभले हौसला ना कभी डिगे,
पर्वत देखो सीना ताने हर मौसम में रहे खड़े,
चट्टानों में फूल हँसे,मन को बतलाता हूँ,
हाँ मैं आशावान हूँ और आस जगाता हूँ... l

नदियाँ देखो बल खाती,सागर को जाती है,
बाधाओं को करके पार मंजिल पा जाती हैं,
जीवन बहता पानी, मैं झरना बन जाता हूँ,
हाँ मैं आशावान हूँ और आस जगाता हूँ....l

अनुशासन में रहता सूरज रोज सुबह आ जाता है,
कर्तव्य पथ पर अग्निपुंज वो जीवन दे जाता है,
ऊर्जा की सौगात लिए फिर मैं खिल जाता हूँ,
हाँ मैं आशावान हूँ और आस जगाता हूँ....l

माना है कि इस दुनिया में दर्द पड़े हैं बड़े-बड़े,
मरने मारने को तैयार और अहं के लट्ठ हैं लिए खड़े,
नफरतों से लड़ कर, प्रेम के दीप जलाता हूँ,
हाँ मैं आशावान हूँ और आस जगाता हूँ.... l

स्वरचित
ऋतुराज दवे



दिनांक-28/11/2019
विधा-हाइकु (5/7/5)
विषय :-"सड़क"
(1)

ओवरलोड

सड़कें ले जा रहीं

वैकुंठ लोक

(2)
सर्दी की मार
फुटपाथ पे रंक
रोते हालात
(3)
फूल भी दिखें
जीवन की सड़क
शूल भी चुभें
(4)
सूखे हलक
गर्मी करती मार्च
सूनी सड़क
(5)
जीवन नर्क
फुटपाथी जिंदगी
किसको फर्क
(6)
गाँव-शहर
संस्कृति औ समृद्धि
लाई सड़क
(7)
गड्ढे अपार
खा गया है सड़कें
ये भ्रष्टाचार

स्वरचित
ऋतुराज दवे



दिनांक-27/11/2019
विधा-हाइकु (5/7/5)
विषय :-"पड़ाव"




(1)

दिखे न नीति

कौनसे पड़ाव पे
ये राजनीति
(2)
वर्षा के संग
मेघ पड़ाव डालें
तड़ित नाचे
(3)
छूटते साथ
उम्र के पड़ावों पे
स्मृतियाँ हाथ
(4)
मंज़िल सुख
जीवन की राह में
पड़ाव दुःख
(5)
रवि विदाई
निशा डाले पड़ाव
सुस्ताते प्राण

स्वरचित
ऋतुराज दवे



25/11/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"सबक"

(1)
काम न आये
किताबों के "सबक"
चोट सिखाये
(2)
वक़्त पे चींटी
सिखा गई "सबक"
हाथी भी पस्त
(3)
मौसम जैसे
जिंदगी के "सबक"
परीक्षा लेते
(4)
समझ नेता
लोकतंत्र में वोट
"सबक" देता
(5)
जीवन कक्ष
प्रेम के "सबक" से
ईश समक्ष

स्वरचित
ऋतुराज दवे


23/11/2019
चंद हाइकु
"प्रेम"

(1)
शब्द ना मिलें
प्रेम का मौन स्पर्श
नयन बोलें
(2)
प्रेम बहरा
अभिव्यक्ति से गूंगा
दिल ठहरा
(3)
राधा या मीरा
छिछली वासना से
प्रेम गहरा
(4)
प्रेम प्रतीक
श्रृद्धा, आस्था, विश्वास
देवत्व वास
(5)
तन व मन
अंह का विसर्जन
प्रेम सृजन
(6)
प्रेम की धार
तपता सा जीवन
शीत फुहार
(7)
चुरा के दिल
प्रेम की गुदगुदी
छेड़ता नींद
(8)
घर को छोड़ा
तिरंगे के प्रेम ने
मोह को मोड़ा
(9)
घृणा है शूल
जीवन की बगिया
प्रेम है फूल

स्वरचित
ऋतुराज दवे




दिनांक-20/11/2019
विधा-हाइकु (5/7/5)
विषय :-"विधि/विधान"
(1)

न्याय की आस

विधि के दरबार

लम्बी कतार

(2)
शर्म का काम
विधि के होते हुए
लुटा विधान
(3)
विधि का मान
विविध भारत में
एक विधान
(4)
हाथों में कृत्य
ईश्वर का विधान
अटूट सत्य
(5)
अमूल्य निधि
विधानों की सुरक्षा
करती विधि

स्वरचित
ऋतुराज दवे



18/11/2019
विषय:---"जिम्मेदार"
चंद अनुभूतियां..

(1)
भूले कर्तव्य
याद रहे अधिकार
बदहाल योजनाएं
कौन जिम्मेदार?
(2)
जिम्मेदारियां
छीन ले गई बचपन
दर्द की सलवटें हैं
उम्र जैसे पचपन
(3)
रातों की नींद को
उम्र चुराती रही
जिम्मेदारियां
अलार्म बनके जगाती रही
(4)
वो किसी बहकावे में ना आये
जिसने समझी. ..
गरिमा कुर्सी की
जात पात से उठकर
जिम्मेदार को बैठा आये
(5)
न पिता थे खड़े
न माँ थी पास
उसे वक़्त ने कराया
जिम्मेदारी का अहसास

स्वरचित
ऋतुराज दवे



नमन मंच"भावों के मोती"
(1)
भोर का काल
अँधेरा गया भाग

खिलखिलाया बाग

चहकी धरा

पंछी गा रहे गान

शिक्षा कर्म प्रधान
(2)
उतरी रश्मि
रवि का हाथ थामे
भोर के प्रांगण में
महकी धरा
प्राणों में भरा ओज
खिल उठा सरोज

स्वरचित
ऋतुराज दवे



12/11/2019
कविता
विषय "गुमनाम"

ना समझ पाया
जिंदगी के सवाल
दर्द का हमनाम हूँ
हाँ मैं गुमनाम हूँ...

गरीबी ने दी ठोकरें
चमकती ईमारतों की
नींव का पाषाण हूँ
हाँ मैं गुमनाम हूँ...

आम हूँ चूसा हुआ
स्वार्थ के मेले में
फिंका हुआ सामान हूँ
हाँ मैं गुमनाम हूँ...

न चाट सका तलवे
अपनी ही शय में रहा
वो बंद सा तूफ़ान हूँ
हाँ मैं गुमनाम हूँ...

संतोष है धन मेरा
मिट्टी से पैर है जुड़ा
कर्म की पहचान हूँ
हाँ मैं गुमनाम हूँ...

अकेला बेज़ार हूँ
गिरते हुए बाज़ार में
बचा हुआ ईमान हूँ
हाँ मैं गुमनाम हूँ...

स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद(राज.)


नमन "भावों के मोती"🙏🏻
दिनांक-12/11/2019
विधा-हाइकु(5/7/5)
विषय :-"राख"

(1)

शरीर ख़ाक

जल गया अहम

सच्चाई राख
(2)
देह का दाह
अमर है शहीद
पवित्र राख
(3)
हवा से यारी
राख को ओढ़ कर
छुपी चिंगारी
(4)
रोये प्रतिभा
बेरोज़गारी आग
राख डिग्रियां
(5)
धन्य थी धूल
शहीद की चिता पे
राख भी फूल

स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद(राज.)



06/11/2019
गीत
विषय:-"निमंत्रण"

कर्म के पथ पर आमंत्रण
भोर में सन्देश समाया है
क्षितिज की देहरी पार कर
रवि निमंत्रण लाया है.....

पंछी चहके, बगिया महके
मंद समीर झूमें औ बहके
जीवन यूँ मुस्काया है
रवि निमंत्रण लाया है.....

लहरों पर रश्मि का खेल
अम्बर पर मेघों का मेल
विश्वास जगाने आया है
रवि निमंत्रण लाया है.....

ओस के लडडू पत्तों के थाल
धरा का करके गाल गुलाल
अंधेरा हटा कर आया है
रवि निमंत्रण लाया है.....

स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद



04/11/2019
कविता
विषय:-"चलो एक गीत लिखते हैं..."

भावनाओं की सरगम में,
हृदयों की प्रीत लिखते हैं,
चलो एक गीत लिखते है...

धुन हो तुम्हारी तो सुर मेरे हों,
रूह को छूते शब्द सुनहले हों,
तेरे मेरे मन की जीत लिखते हैं,
चलो एक गीत लिखते हैं....

कागज़ पे उभरते नेह सुमन हों,
छंदों की वर्षा में भीगते मन हों,
कलम से एक नई रीत लिखते हैं,
चलो एक गीत लिखते हैं ....

दर्द के संग मुस्कान भी हो,
जीवन का पैगाम भी हो,
मौन में छुपा वो संगीत लिखते हैं,
चलो एक गीत लिखते हैं ....

स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद(राज.)


01/11/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"प्रार्थना"

(1)🙏
छलके भाव
उतरती प्रार्थना
भरते घाव
(2)🙏
प्रार्थना आशा
ईश्वर से संवाद
मन की भाषा
(3)🙏
प्रार्थना गंगा
अहं का विसर्जन
हृदय चंगा
(4)🙏
छूटे आसक्ति
निर्मल करे मन
प्रार्थना शक्ति
(5)🙏
शांति प्रकट
प्रार्थना के जादू से
गायब अहं

✍️स्वरचित
ऋतुराज दवे


(5/7/5)
विषय:-"मंच/रंगमंच"

(1)

भावों को भर
कागज़ के "मंच" पे
नाचे कलम
(2)
परदा गिरा
जीवन रंगमंच
नाटक पूरा
(3)
मन दुखना
साहित्य सजा "मंच"
चोरी रचना
(4)
नाना प्रपंच
अभिनय नगरी
जगत "मंच"
(5)
विष उगला
राजनीतिक "मंच"
गिरी गरिमा
(6)
अहम् भिड़ा
मंच बने अखाड़ा
किसका भला?



स्वरचित
ऋतुराज दवे




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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
18/04/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"कदम" 👣
(1)🌆
आँगन साँझ
उतर आई निशा
"क़दम"शांत
(2)🌄
रवि का पथ
अंतहीन "कदम"
दौड़ता कर्म
(3)👩
सौभाग्य थाप
बिटिया के "कदम"
लक्ष्मी की छाप
(4)⛈️
वर्षा उतरी
सावन गीत गाते
भीगे "क़दमों"
(5)🏃‍♂️🏃
रिश्तों को गढ़ा
एक "कदम" बढ़ा
कारवाँ जुड़ा
(6)👣
विश्वास कर
साहसिक "कदम"
चूमे शिखर
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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सुप्रभात !"भावों के मोती"🌅
आप सभी को "महावीर जयंती" की हार्दिक शुभकामनाएं💐💐🙏
17/04/2019
छंदमुक्त रचना
विषय:-यदि महावीर आज होते
यदि महावीर आज होते,
सिद्धान्तों की दुर्दशा देख सोचते
असत्य के ढेर में,
"सत्य" की सुई कहाँ खोजते?
हिंसा के तो रूप हजार हो गए,
धर्म के नाम कत्ले आम हो गए,
"अहिंसा"और शांति के नाम पर,
आज परमाणु बम तैयार हो गए l
"अपरिग्रह" धूल चाट रहा,
मनु अंधी दौड़ में भाग रहा,
जरूरतों के ढेर पर बैठ कर,
झूठी शान के गीत गा रहा l
"अचौर्य" की धज्जियाँ उड़ती है,
आज हर चीज़ की चोरी होती है,
मूल्यों, नैतिकता को आग लगाकर,
यहाँ सिद्धान्तों की बलि चढ़ती है l
"ब्रह्मचर्य"किस चिड़िया का नाम?
कलयुग में सीता ना राम,
बड़े बड़े संत कर रहे,
जेलों में यहाँ आराम l
बाजार बन चुकी दुनिया ने,
ऐसे सारे सिद्धान्त ढहाये,
यदि महावीर आज आ जाएँ,
तो वे भी ना पहचाने जाएँ l
स्वरचित
ऋतुराज दवे

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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
16/04/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"पन्ने"
(1)📰
विचार बाँटे
अख़बार के "पन्ने"
जग समेटे
(2)📚
प्रेम किताब
"पन्नों" में बसी याद
छुपा गुलाब
(3)📙
यादों के "पन्ने"
उम्र की मुंडेर पे
छूटे, बिखरे
(4)📒
धर्म है जिल्द
जिंदगी की किताब
कर्मों के "पन्ने"
(5)⛈️
पवन लाये
सावन का संदेशा
मेघों के "पन्ने"
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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सुप्रभात "भावों के मोती "🙏
सभी को रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐🌹
13/04/2019
चंद हाइकु (5/7/5)
भगवान "श्री राम"
(1)
कर्तव्य पथ
मित्रता को दे मान
चलते "राम"
(2)
छाँव या धूप
सीता - राम की जोड़ी
प्रेम का रूप
(3)
राम महिमा
उतार बोझ सारे
पत्थर तैरे
(4)
शबरी-राम
झूठे बेर भी मीठे
चखते भाव
(5)
"राम" का तप
सत्य का तीर चला
अहम् गर्त
(6)
झूठी निराशा
रिश्तों की परिभाषा
"राम" है आशा
(7)
रखते मान
वचन को सम्मान
वन में "राम"
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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सुप्रभात !सादर नमन"भावों के मोती!🌅🙏
11/04/2019
विषय:-"मृत्यु"
छंदमुक्त रचना
मृत्यु....
जीवन का एक छोर
बीच में भाग-दौड़
मृत्यु....
सिर्फ बदनाम
लूटती तो जिंदगी
मृत्यु....
देह त्याग कर
आत्मा यात्रा पर
मृत्यु....
मोह को ठोकर
माया पे हथौड़ा
मृत्यु.....
छोड़ गई कर्म
साथ ले गई तन
मृत्यु...
वक़्त नहीं देखती
दुनियां स्वप्न बुनती
मृत्यु....
विदाई की घड़ी
ज़िंदगी हार कर पड़ी
मृत्यु...
पारिस्थिकी सँतुलन
प्रकृति का नियम
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
10/04/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"जेब"
(1)
रुलाता पेट
गरीब की जिंदगी
चिढ़ाती "जेब"
(2)
स्वार्थ को तौले
भ्रष्टाचार के हाथ
"जेब" टटोले
(3)
खाली सत्कर्म
दिखावे की "जेब" है
दान न धर्म
(4)
मुट्ठी मे रेत
जीवन फटी "जेब"
फिसले वक़्त
(5)
बिजली छड़ी
बादल "जेब" फटी
बूँदें बिखरी
(6)
जादुई धन
ठंडे करे उसूल
"जेब"गरम
(7)
आमद ढ़ेर
महंगाई की मार
सिकुड़ी "जेब"
स्वरचित(मौलिक)
ऋतुराज दवे

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सुप्रभात !🌅
नमन "भावों के मोती"🙏
09/04/2019
छंदमुक्त रचना
विषय:-"मैं"
मैं
एक यात्री
सुलगता सवाल हूँ
खुद से खुद की तलाश हूँ
मैं..
"मैं" को ढोता रहा
और बस...
यूँ ही तन्हा होता रहा
मैं
अभिनय करता रहा
जीवन के रंगमंच पर
खुद का किरदार खोता रहा
मैं
वक़्त के साथ बदलता रहा
आखिर...
वो भी तो मुझे छलता रहा
मैं
बन ईंधन
जलता रहा
और घर चलता रहा
मैं
निखरता रहा
वक़्त...
बेवक़्त जो परखता रहा
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇 सभी को हिंदू नववर्ष की शुभकामनाएँ.. 💐💐
नमन "भावों के मोती"🙏
06/04/2019
हाइकू(5/7/5)
विषय:-"चैत्र"
(1)
अन्न दर्शन
खेतों में हलचल
चैत्र उमंग
(2)
पावन काल
सृष्टि का प्रस्फुटन
चैत्र आरम्भ
(3)
मन बौराये
चैत्र की बगिया में
कोकिल गाये
(4)
शीत न ग्रीष्म
चैत्र नवजीवन
काल गणना
(5)
प्रेम संदेशा
चैत्र का आगमन
वसन्तदूत
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
04/04/2019
हाइकू(5/7/5)
विषय:-"साथ"
(1)
मीठी आदत
सुबह की चाय सा
तुम्हारा "साथ"
(2)
मोह में पड़े
सिंकंदर भी खाली
"साथ" है झूठे
(3)
टूटन आज
दिखावे की दुनियां
स्वार्थ का "साथ"
(4)
दिखें जितने
समय की परख
"साथ" कितने?
(5)
पूनम रात
चाँद के पहलू में
चाँदनी "साथ"
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
04/04/2019
छंदमुक्त कविता
विषय:-"साथ"
साथ सभी हैं
साथी कौन होता है ,
वक्त रिश्तों का
कडा इम्तिहान लेता है।
कहीं साथ बँधन,
तो कहीं ..
स्वतंत्र होता है,
कहीं बोझ, समझौता
तो कहीं...
जीने का मंत्र होता है।
कोई पराया हो कर भी
दामन थाम लेता है,
तो कोई अपना हो कर भी
'साथ' छोड देता है ।
तो..
इस छोडने-थामने में भी
कहीं स्वार्थ होता है,
खुशनसीब है जहाँ
'साथ' निस्वार्थ होता है
वहाँ ..
प्रेम और विश्वास का
वास होता है
शायद..
वही सच्चा साथ
और..
'साथ' का अर्थ होता है...
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
03/04/2019
दौड़ते ही रहे यूँ ख्वाहिशों के तले,
बहते हुए वक्त में बस हाथ ही मले,
सुला के बेचैनियाँ सुन सकूँ दिल की
कभी खुद से भी मिलूं गर फुर्सत मिलेl
अब अवकाश होके भी,अवकाश कहाँ रहता है
अब वो सुकून वाला, इतवार कहाँ रहता है l
कामों की फ़ेहरिस्तें मुँह चिढ़ाती है मुझको
ढूँढ़ता हूँ यादों में, वो पुराना यार कहाँ रहता है l
खुद से मिलने का भी बहाना लगा रहता है,
खो ना जाऊं दुनिया के मेले ये
डर बना रहता है,
समय का हर पल,होता ही गया महँगा,
फुरसत के कीमती लम्हों का इंतजार बना रहता हैl
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
02/04/2019
कविता (17वर्ण)
विषय:-"बुद्धि/मति"
विवेक के सहारे बुद्धि सोपान चढ़ जाती है,
विवेक साथ छूटते ही विपत्ति दौड़ आती है,
मोह, माया,अहं सब हावी हों जाते हैं मन पे,
जग दिखता है मूर्ख औ दृष्टि बदल जाती है l
बुद्धि भ्रमित होते ही दशा भी बदल जाती है
प्रेम रूपांतरित हो नफरत भर आती है,
क्या रिश्ते क्या नाते सब ठगे रह जाते हैं,
लड़खड़ाती जुबाँ औ महाभारत हो जाती है l

स्वरचित
ऋतुराज दवे

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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
02/04/2019
हाइकू(5/7/5)
विषय:-"बुद्धि/मति" 
(1)
"बुद्धि" कमान
जिह्वा से छूटा तीर
घायल प्राण
(2)
पाश्चात्य हाथ
वैचारिक बंधन
"बुद्धि" गुलाम
(3)
आस्था की बाढ़
भावनाएँ बहती
ठहरी "बुद्धि"
(4)
कल्पना घोडे़
"बुद्धि" हाथ लगाम
मन भी दौडे़
(5)
करते खोज
कल्पना के हाथ में
"बुद्धि" का दीप
(6)
"बुद्धि" थी नग्न
शिक्षा ने पहनाए
सभ्यता वस्त्र
(7)
"बुद्धि" की बाढ़
बिछड़ी भावनाएँ
कुचला ज्ञान
(8)
"बुद्धि" की चाबी
ज्ञान तिजोरी खुली
सच्चाई मिली
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
01/04/2019
वर्ण पिरामिड
विषय:-"पराग/मकरंद " 
(1)
ये
रज
पराग
फाग राग
बहार बाग
पतझड़ भाग
नवयौवन जाग
(2)
है
फाग
चहका
पुष्प मुस्का
अलि बहका
बगीचा महका
मकरंद छलका
स्वरचित
ऋतुराज दवे

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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
30/03/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"सिद्धांत/उसूल"
(1)🌵
परीक्षा बड़ी
उसूल की डगर
कांटो से भरी
(2) ☹️
संस्कृति बलि
सँस्कार तिलांजलि
सिद्धांत दुःखी
(3)🤓
रुपैया बाप
सिद्धांत औ आदर्श
रखें हैं ताक
(4)🌅
दिखाई राह
उसूलों पे चल के
चमका रवि
(5)🤔
कौन रखता?
उसूल है महंगे
ज़माना सस्ता
(6)😇
अडिग रहे
सिद्धांत और सूत्र
हम बदले
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
28/03/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"मौका/अवसर" 
(1)👥
मौका जो मिला
शराफत समेटी
स्वार्थ को जगा
(2)👨‍🎓
समस्या बड़ी
मौक़े की तलाश में
प्रतिभा खड़ी
(3)♥️
निष्ठा का त्याग
अवसरवादिता
बदला प्यार
(4)🌈
लुप्त अँधेरा
रवि को मिला मौका
रंग बिखेरा
(5)🇮🇳
मौकापरस्त
गीत गाये विदेशी
खायें स्वदेशी
(6)👷‍♂️
विकास धर्म
समान अवसर
एकता स्वर
(7)✍️
भुनाया मौका
सफलताएँ चख
जीवन लिखा
(8)🇮🇳
सौभाग्यवान
देश औ माता-पिता
सेवा का मौका
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
27/03/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"युवा" 
(1)👨‍🎓
डिग्रियाँ रोये
बेरोजगार युवा
चप्पल घिसे
(2)🕵️‍♂️
समझो चाल
नेट, नशे का जाल
युवा कंगाल
(3)💃
अंदाज युवा
आयु एक नंबर
बुढ़ापा खिला
(4)👷‍♂️
युवा सपने
भारत के हाथों से
विकास बुने
(5)👨‍💼
ऊर्जा का स्त्रोत
सम्भावना अपार
युवा संसार
(6)🌱
प्रेम की वर्षा
धरती हुई युवा
बूँदों ने छुआ
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
26/03/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"खबर/समाचार"
(1)🎭
सच औ झूठी
ख़बरों की दुनियां
तथ्य कसौटी
(2)🎭
मौसम लाया
वर्षा का समाचार
हल तैयार
(3)🎭
स्वयं लापता
पड़ौस की खबर
सबको पता
(4)🎭
टेलीविज़न
ख़बरों का संग्राम
हारता देश
(5)🎭
भागी ख़बरें
अफवाहों के संग
प्रमाण रोये
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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नमन "भावों के मोती"🙏
मुक्तक
विषय:-"फैसला"
(1)💐
वक़्त की दी गई मोहलत भी एक दिन निकल जाती है, 
कमज़ोर फैसलों की भी आखिर उम्र निकल जाती है,
टीस बन के दिल के कोने में रहता है अफ़सोस ,
मन को समझाते हुए पूरी जिंदगी निकल जाती है l
(2)💐
कुछ के लिए न्याय सस्ते, और जेब में होते हैं,
दर्द बाँट के हँसते हैं, ज़मीर खरीदे होते हैं
भूल जाते हैं, निचली अदालत से बरी हो कर,
कुछ फैसले, ऊपर वाले के पास भी होते है l
स्वरचित
ऋतुराज दवे,राजसमंद,राजस्थान
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
25/03/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"फैसला"
(1)
कौन है बड़ा?
वक़्त की अदालत
फैसला पड़ा
(2)
रंजिशे, लहू
विभाजन फैसला
देश नासूर
(3)
द्वंन्द परीक्षा
बदल दे जीवन
सही फैसला
(4)
हँसता पाप
सुरक्षित फैसला
वक़्त के पास
(5)
स्वार्थ सबूत
प्रकृति का फैसला
समेटा हरा
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
23/03/2019
जय हिंद!!
अमर शहीदों को शत-शत नमन 🙏
वन्देमातरम!!🇮🇳
हाइकु
विषय:-"शहीद"
(1)
हँसा शहीद
मिटा न सकी फाँसी
देश तस्वीर
(2)
मांग को मिटा
शहीद से लिपट
गोली भी रोई
(3)
शहीद गड़ा
त्याग की कीमत पे
भारत खड़ा
(4)
शहीद धर्म
देश माने मंदिर
पूजा कर्तव्य
स्वरचित
ऋतुराज दवे,राजसमंद,(राजस्थान)
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
22/03/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"धोखा" 
(1)️🔪
दोहरा मन
"धोखे" की शिकायत
स्वयं न कम
(2)🔪
दर्द की राह
आँसू ने दिया "धोखा"
छोड़े नयन
(3)🔪
टूटा भरोसा
अपना बनाकर
"धोखा" परोसा
(4)🔪
भरोसा क़त्ल
"धोखे" ने खोली आँखे
किया सजग
(5)🔪
गरीब भूखा
वादों से भरा पेट
थाली में "धोखा"
(6)🔪
जीवन धन
समय "धोखेबाज"
ले गया उड़ा
(7)🔪
विश्वास झूठा
स्वार्थ को मिला मौका
झोली में धोखा
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राजस्थान)

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शुभ साँझ 🌇
21/03/2019
नमन "भावों के मोती"🙏
कविता
विषय:-और हंसी निकल गई....😁(हास्य-व्यंग्य)
दाल पूरी गली नहीं
जबान पूरी फिसल गई
पाक में शांति का नोबेल !
और हंसी निकल गई....😁
चुनाव देखो आये पास
नेताजी को वोट की प्यास
बदले रंग बदले दल
विचारधारा बदल गई
और हंसी निकल गई....😁
हंगामा और हुड़दंग
संसद में भी देखी जँग
माइक फेंके,लांघी मर्यादा
राजघाट श्रद्धांजलि दी गई
और हंसी निकल गई....😁
फोटो देख कर की सगाई
शादी में जो बारिश आई
उतरा मेकअप आई रुलाई
पति की घिग्घी बंध गई
और हंसी निकल गई....😁
सोचा था ये सब है मेरा
रिश्ते नाते दौलत- पैसा
क्षण में बदला मंजर ऐसा
सब मौत छीन कर ले गई
और हंसी निकल गई....😁
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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नमन "भावों के मोती"
20/03/2019
वर्ण पिरामिड
शीर्षक - "होली/रंगपर्व"
(1)
है
होली
त्यौहार
रंग प्यार
मस्ती फुहार
मिठास सँस्कार
संस्कृति उपहार
(2)
है
होली
उमंग
प्रेम संग
एकता रंग
हिय बजे चंग
मस्ती में झूमे अंग
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
20/03/2019
नमन "भावों के मोती"🙏
सभी को "होली/रंगोत्सव" की हार्दिक शुभकामनाएँ 🎈💐💐
हाइकु
विषय:-"होली/फाल्गुन/रंग"
(1)🎈
मन बहार
होली ने छेड़ा दिल
गाल गुलाल
(2)🎈
फाल्गुन संग
होली ने बरसाए
सद्भाव रंग
(3)🎈
दल बदले
रंग भी शरमाये
नेता जो देखे
(4)🎈
सीने पे गोली
सैनिक का त्यौहार
खून की होली
(5)🎈
फाल्गुन राग
नाचती तितलियाँ
कूकता बाग
(6)🎈
दिलों को जोड़े
जातिगत बंधन
होली ने तोड़े
(7)🎈
फीका है मन
शहीद घर दर्द
होली बेरंग
(8)🎈
नशे की गोली
घायल है संस्कृति
विकृत होली
स्वरचित
ऋतुराज दवे

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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
18/03/2019
हाइकु
विषय:-"चयन"
(1)
वक़्त की मार
श्रेष्ठतम चयन
प्रकृति काज
(2)
मृत्यु चयन
कायरता प्रतीक
संघर्ष जीत
(3)
कौन प्रतिभा?
प्रश्न लाया चयन
बुद्धि परीक्षा
(4)
बाज़ार युद्ध
विकल्पों की दुनियां
चयन धुंध
(5)
खाद है धर्म
संस्कारों का चयन
खिला सदन
स्वरचित
ऋतुराज दवे

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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
18/03/2019
मुक्तक
विषय:-"चयन"

मुक्तक
(1)वार्णिक मुक्तक (14)
जीवटता से जीवन उत्कर्ष होता है,
उठता वही जो गिर के संभलता है,
शिला के बीच निकल पुष्प हँस दिया,
प्रकृति का "चयन" भी उत्कृष्ट होता हैl
🌷🌵🥀🌷🌵🌷🌵🌷🌵🌷🌵
(2)वार्णिक मुक्तक(19)
जिगर हाथ में, दिल देश पर निसार करते हैं,
परिवार बटुए में,यादों के लम्हें साथ रखते हैं,
कर्तव्य के मैदान पर जवान खेलते हैं मौत से,
वक़्त की परीक्षा में, शहादत का "चयन" करते हैं l
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
स्वरचित 


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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
15/03/2019
हाइकु
विषय:-"जादू"
(1)
फाग का जादू
रंगीन सम्मोहन
गायब आँसू
(2)
कर्तव्य दौड़
पिता जादू चिराग
घिसता रोज
(3)
हँसीऔआँसू
पल में सुख-दुःख
जीवन जादू
(4)
कृष्ण का जादू
बंसी पर गोकुल
कंस पे काबू
(5)
थिरके तन
सात सुरों का जादू
गायब मन
(6)
मित्रता जादू
बूझे मन की बात
मौन सँवाद
(7)
जिह्वा पे काबू
बदल दे जीवन
शब्दों का जादू
(8)
ममता जादू
लोरी का सम्मोहन
नींद आगम
(9)
जादू सा दिखा
शशि का सम्मोहन
सागर खिंचा
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
14/03/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"करवट"
(1)
धरा की ओट
रवि ले करवट
साँझ प्रकट
(2)
धरा के घर
मौसमी करवट
रोग दस्तक
(3)
बैचैन नैन
इश्क ले करवट
गायब रैन
(4)
विदेश बेटा
करवटे बदलें
माँ की ममता
(5)
सोचे गुनाह
बैचेन करवटें
वृद्धाश्रम में
(6)
जख्म रिसते
वक़्त की करवट
बदले रिश्ते
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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नमन "भावों के मोती"🙏
13/03/2019
कविता
विषय:-"वस्त्र/चीर/वसन"
क्या पहने क्या न पहने,
ये है नारी का अधिकार,
क्यों वस्त्र कटघरे में खड़े,
दोषी तो कुत्सित विचार l
कई सदियों ने शोषण किये,
हाँ नारी मुखर हुई है आज,
अब वस्त्र बन गए हैं प्रतीक,
घोषणा स्वतंत्र मैं भी आज l
वक़्त के साथ कदम चले,
शर्म आँखों में, बसे लाज,
बस आँचल में मर्यादा रहे,
और खिलते रहे सँस्कार l
जहाँ हो संस्कृति का ह्रास,
फूहड़ औ नग्नता का नाच,
शालीनता को त्यागा जाये ,
वहीं आज़ादी बने उपहास l
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
13/03/2019
हाइकु
विषय:-"वस्त्र/वसन/चीर"
(1)
बुध्दि थी नग्न
शिक्षा ने पहनाये
सभ्यता "वस्त्र"
(2)
आया वसंत
धरती को ओढ़ाया
पीत "वसन"
(3)
निकाल आत्मा
काल ने यहीं छोड़ा
तन "वसन"
(4)
सजाये तन
वस्त्रों की शालीनता
खास है "मन"
(5)
मन लुभाते
संस्कृति पहचान
वस्त्र कराते
(6)
विचार लड़े
"वस्त्र" न ढक पाए
मन उघड़े
स्वरचित
ऋतुराज दवे

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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
12/03/2019
हाइकु
विषय:-"रोग/बीमारी/मर्ज़"
(1)
दिखावा रोग
शहर में विवाह
छप्पन भोग
(2)
क्रोध के घर
असहिष्णुता फेरा
रोगों का डेरा
(3)
सस्ता प्रयोग
स्वच्छ पर्यावरण
भागते रोग
(4)
रोता विकास
अपशिष्टों को ढ़ोती
नदी बीमार
(5)
प्रकृति त्यागी
पैर कुल्हाड़ी मारी
बुलाया रोग
स्वरचित
ऋतुराज दवे

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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
12/03/2019
कविता
विषय:-"रोग/बीमारी/मर्ज़"
पर्यावरण को चूस रहे,
स्वार्थ की राह भोगी हैं,
ईश्वर को काहे कोसना,
जब मन ही यहाँ रोगी है l
और तन बड़ा लाचार है,
गरीबी कोढ़ में खाज है,
जद्दोजहद जिंदगी की,
व्यवस्थाएँ बड़ी बीमार है l
कुछ भावनाएँ भी मर्ज़ है,
जब अपनों ने दिया दर्द है,
वो बीच राह में चले गए,
अब गिनती के हमदर्द हैं l
होता नहीं जो दिखता है
आवरण लगता , झूठा हैं
जहाँ हो तन-मन परिष्कार
वो सच्चा स्वास्थ्य अनूठा हैं
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
11/03/2019
हाइकु
विषय:-"बादल/मेघ"
(1)
जीवन भरा
बादलों के कलश
अमि छलका
(2)
बूँदे अशर्फी
मेघ पोटली खुली
धरती धनी
(3)
पवन घोड़े
बैठ के आये मेघ
सूखे को देख
(4)
धरा कल्याण
बादल के हाथों से
बूँदो का दान
(6)
दुःख उमड़ा
बादल सा घुमड़ा
आंसू की वर्षा
(7)
नेह से भरे
धरती को चूमने
बादल झुके
(8)
नौकाएँ बन
आसमाँ के सागर
तैरते घन
(9)
बूंदे समेट
परदेसी बादल
विदा में रोये
(10)
रवि को देख
सागर की बाहों से
फिसले मेघ
(11)
सावन घर
बादलों का पहरा
छुपी किरण
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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नमन !"भावों के मोती"🙏
09/03/2019
विधा:-"वर्ण पिरामिड"
नोट/धन/रुपैया/पैसा/माया
(1)
ये
धन
साधन
जग भोग
मन का रोग
बिक जाते लोग
गुणा भाग व योग
(2)
ये
नोट
ताकत
स्वार्थ ओट
रिश्तों पे चोट
खरीदते वोट
मन में लाते खोट
(3)
है
शक्ति
रूपया
चैन लेता
इंसा बिकता
लालच खिंचता
ज़मीर खरीदता
(4)
है
धन्य
दुर्लभ
मुनि मन
श्रम ही धन
संतोष का धर्म
संस्कारयुक्त कर्म
(5)
हैं
आज
विडंबना
रंक भूखा
मन को दुखा
पैसों का दिखावा
करोड़ों में चढ़ावा
(6)
है
वक़्त
अखाड़ा
जीती उम्र
रुपैया हारा
जीवन सागर
ईश्वर ही सहारा
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"और मातृ शक्ति 🙏
08/03/2019
हाइकु 
"नारी"
(1)
प्रेम बसता
नारी सम्मान जहां
सुख टिकता
(2)
रस्सी पे चाल
पीहर -ससुराल
नारी कमाल
(3)
अभिन्न मित्र
मुस्कान और श्रम
नारी के इत्र
(4)
शर्म है धन
नारी हृदय बसा
कोमल मन
(5)
मेहंदी नारी
जिम्मेदारी के पाट
पिस के रची
(6)
रूप हज़ार
भक्ति,शक्ति या प्रेम
नारी अपार
(7)
नारी ने लिखा
वीरता इतिहास
जग गवाह

स्वरचित
ऋतुराज दवे

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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
07/03/2019
हाइकु
विषय:-"मौन"











(1)
घटिया सोच
शब्द जहाँ हो सस्ते
कीमती "मौन"
(2)
चहका जग
रवि हटाये तम
समेटा "मौन"
(3)
सुनता कौन?
हाशिये नसीहतें
बुजुर्ग "मौन"
(4)
निःस्वार्थ दान
"मौन" साधनारत
वृक्ष महान
(5)
चढ़ा सन्यास
संसार को समझ
उतरा "मौन"
(6)
धरा की गोद
पर्यावरण आँसू
स्वार्थ है "मौन"




स्वरचित
ऋतुराज दवे



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"वर्ण पिरामिड"
विषय " जय हिन्द "🇮🇳


(1)
है 
भूमि
महान
शौर्य गान
संस्कृति प्राण
सर्वस्व कल्याण
जय हिंद प्रणाम !
(2)
है
तीर्थ
रमण
शांतिवन
खिलते धर्म
आस्था उपवन
जय हिंद नमन !
स्वरचित
ऋतुराज दवे,राजसमंद (राज.)
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
06/03/2019
विषय:-"राहत"
फुटपाथ पे जिंदगी, और तन बीमार है,
उजाले है दूर, मज़बूर, अँधेरा स्वीकार है,
बेहाल है आज भी, लाचार बदनसीब,
दर्द की झोंपड़ी को राहत का इंतजार है l
घायल रिश्तों से,और तन भी दिव्यांग है,
जीवन जँग कहीं,कहीं मिले तिरस्कार है,
मदद का हाथ हो, स्नेह का मरहम,
दो बोल मीठे भी, राहत की फुहार है l
शिक्षा से वंचित, कोसों दूर बहार है,
नन्हें हाथों पत्थर है,ममता न प्यार है,
आशीष बन बरसेगी राहतें उन पे कभी,
वक़्त को उस मौसम का बेसब्र इंतजार है l
विषमता पसरी है,रोते अधिकार है,
हो चुके त्रस्त, अब चाहिए संहार है,
बेरोजगारी,भ्रष्टाचारऔरआतंकवाद,
असुर हो नष्ट,राहत का इंतजार हैl
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
05/03/2019
हाइकु
विषय:-"नींद" 
(1)
"नींद" ने बुने
सतरंगी सपने
भोर उधड़े
(2)
"नींद" असर
तन निकल मन
घूमे डगर
(3)
आँखों से छीन
बचपन की "नींद"
उम्र ले भागी
(4)
सुकूँ मिलता
"नींद" परोसे स्वप्न
खाकर चिंता
(5)
बैठता दिल
सरहद पे बेटा
उड़ती "नींद"
(6)
धरा शरीर
रजनी ने ओढ़ाई
चादर "नींद"
स्वरचित
ऋतुराज दवे

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सुप्रभात 🌄
नमन "भावों के मोती" 🙏
सभी को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐💐
🌿ॐ नमः शिवाय 🌿
04/03/2019
चंद हाइकु..
विषय :-"शिव "
(1)🌿
शिव विवाह
भूत-प्रेत बाराती
सवारी नंदी
(2)🌿
विरह अग्नि
शिव का अलंकार
सती की भस्म
(3)🌿
राख़ विरक्ति
शिव एक तपस्वी
झूठी आसक्ति
(4)🌿
शिव का सत्य
काया क्षणभंगुर
आत्मा अनंत
(5)🌿
दृष्टि त्रिकाल
काल के कपाल पे
है महाकाल
(6)🌿
डमरू बजा
व्याकरण प्रकृट
शिव ताँडव
(7)🌿
शिव श्रृंगार
भस्म, नाग व चंद्र
जटा विशाल
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
02/02/2019
हाइकु
विषय:-"सरहद " 
(1)
देश को चैन
"सरहद" पे जागे
रक्षक नैन
(2)
उड़ते पंछी
"सरहदों" के पार
सिमटे इंसां
(3)
दीवाली गोली
"सरहद" त्यौहार
खून की होली
(4)
आतंकी बोली
"सरहद" छलनी
घृणा की गोली
(5)
हथेली प्राण
"सरहद" की रक्षा
मिटे जवान
स्वरचित
ऋतुराज दवे

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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
01/03/2019
हाइकु
विषय:-"पवन " 
(1)
"पवन"घोड़े
बैठ के आये मेघ
सूखे को देख
(2)
दिखे ना टिके
मौसम की गोद में
"पवन" खेले
(3)
अँगुली सँग
बाँसुरी रँगमंच
नाचे "पवन"
(4)
पवन करे
मौसम की चुगली
तन संभले
(5)
सुमन चूमें
फागुन की हवाएँ
मन को छुए
(6)
छेड़ती नाक
"पवन"पीठ पर
गंध सवार
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
28/02/2019
हाइकु
विषय:-"संकल्प/प्रण" 
(1)
रोशन जग
सीने में धधकता
रवि का "प्रण"
(2)
लाए दृढ़ता
बढ़ाये आत्मबल
"संकल्प" शक्ति
(3)
सीमा पे खड़ा
मातृभूमि की रक्षा
"संकल्प" बड़ा
(4)
दृढ़ कदम
"संकल्प" के हाथों ने
छुआ शिखर
(5)
भाग्य में लिखा
देश सेवा "संकल्प"
सबसे बड़ा
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
25/02/2019
हाइकु
विषय:-"भाग्य" 
(1)
"भाग्य" के संग
सफलता प्रशस्ति
लिखता कर्म
(2)
नैन तरसे
कृषक की आशाएँ
"भाग्य" भरोसे
(3)
माँ-पिता सेवा
तिरंगे का कफ़न
"भाग्य" की बात
(4)
भारत माता
गोद में विविधता
"भाग्य" विधाता
(5)
डूबा आलस
कर्म के क्षितिज पे
चमका "भाग्य"
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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नमन !"भावों के मोती"🙏
23/02/2019
आज का विषय"जल/नीर/पानी"
कविता
जल तेरे रूप हजार...
प्यासी धरा पर कभी,
बरसे मेघ बन के प्यार,
कहीं भावना सागर बन,
अश्रु रूप में निकले ज्वार l
जल तेरे रूप हजार....
निर्मल गंगा बहती धार,
हरियाली में प्राण उतार,
बलखाती सरिता करती,
मेखला से प्रकृति श्रृंगारl
जल तेरे रूप हजार....
सींचे प्राण लाए बहार,
श्रेष्ठ विलायक घुले अपार,
कृषक आशाओं को पाले,
जल सृष्टि अद्भुत उपहार l
जल तेरे रूप हजार....
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
23/02/2019
चंद हाइकु
विषय:-"पानी/नीर/जल" 
(1)💦
स्वार्थ तपन
सूखे नयन "नीर"
दिखे न पीर
(2)💦
बिकता "पानी"
समय की दुकान
सस्ता आदमी
(3)💦
चिंतित कल
अविवेक दोहन
सिमटा "जल"
(4)💦
अभ्यास जोर
"जल" का श्रम करे
पत्थर गोल
(5)💦
जल है भला
व्यवहारकुशल
आकार ढला
स्वरचित
ऋतुराज दवे,राजसमंद(राज.)
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
22/02/2019
3 "मुक्तक"समर्पित... 
🇮🇳
शहीदों की शहादत को नमन सौ बार करता हूं,
मैं अश्रुपुष्प चढ़ाकर के,समर्पित भाव करता हूँ,
नहीं कोई बड़ा है धर्म, वतन की ईबादत से,
प्रेरणा तुम्हें बना जीवन, देश के नाम करता हूँ l
🇮🇳
काँटों में भी रहकर जो,सुमन सा मुस्कुराता है,
जिसके सामने आते, दुश्मन भी घबराता है,
अभिमान है सैनिक है गौरव देश के जन का,
खुद जाग सरहद पे, वतन को वो सुलाता है l
🇮🇳
सफल जीवन वही है जो, वतन के काम आता है,
हथेली जान वो रख कर ,देश के गीत गाता है,
कर्तव्य की बलिवेदी पे, चलता है बड़ा हंसकर,
घर की याद जब आये, वो आँसू को छुपाता है l
स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद(राज.

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नमन "भावों के मोती"🙏
21/02/2019
कविता
शहीद... 🇮🇳
आँखे हैं नम, सीने में धधकती ज्वाला है,
अपने बच्चों की शहादत पे, रोती भारत माता हैl
चीत्कारती है आत्मा, कलेजा भी फट जाता है,
जिस आँगन बेटा बड़ा हुआ, पार्थिव बन के आता है l
उस माँ का क्या, जिसका इकलौता सहारा छीन गया ,
पेट काट कर स्वप्न बुने थे, हाथ में तिनका रह गया l
दर्द न पूछों उस बेवा का, जो खबर छुपाती है,
बूढ़े ससुर के सामने, माँग सिंदूर सजाती है,
काँधे देती वीरांगनाएं, भारत माँ जयघोष लगाती है,
यह भूमि है वीरों की,माटी मस्तक से लगाती है l
बचपन जिस काँधे पे बैठ, बेटा हर्षित होता था,
आज उसे काँधे देते, पिता हृदय भी रोता हैl
तोड़ के रिश्तों के बंधन को,देश से नाता जोड़ गया,
तू गया लेकिन आँखों में आँसू,यादें दामन में छोड़ गया l
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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नमन "भावों के मोती"🙏
20/02/2019
दैनिक कार्य विषयआधारित प्रस्तुति, विषय :-"कला"
विधा:- हाइकु
(1)
दिलाये मान
"कला" भरती पेट
ईश्वर दान
(2)
वोट तोलना
राजनीति की "कला"
झूठ बोलना
(3)
सुमन खिला
पत्थर में संघर्ष
जीवन कला
(4)
रोज़ बतायें
सुख-दुःख क्षणिक
चन्द्र कलाएँ
(5)
मौत करीब
भूख मारना कला
सीखे गरीब
स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद(राज.)
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
19/02/2019
हाइकु
विषय:-"अंत"
(1)
आभासी"अंत"
पतझड़ विदाई
आया वसंत
(2)
चित्र अधूरा
जीवन का कागज़
"अंत" में कोरा
(3)
भाव पिरोता
जीवन सूत्र देता
कथा का "अंत"
(4)
शहीद संत
देश रग में जिंदा
अमर "अंत"
(5)
है इतिहास
आतंक उम्र छोटी
"अंत" खराब
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
18/02/2019
हाइकु
विषय:-"आसरा" 
(1)
मन्नती बेटा
माँ-पिता वृद्धाश्रम
"आसरा" झूठा
(2)
मन है मरा
जग स्वार्थ पसरा
ईश "आसरा"
(3)
देश भी जागे
भारत माँ "आसरे"
शहीद सोये
(4)
धरतीपुत्र
मौसम के "आसरे"
मेघ निहारे
(5)
कांच से रिश्ते
नफरतों की आँधी
टूटे "आसरे"
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
16/02/2019
हाइकु
विषय:-"मानवता" 
(1)
चीखता भ्रूण
"मानवता" के आँसू
स्वप्नों का खून
(2)
ऐसा भी काम
"मानवता" के नाम
खोली दुकान
(3)
स्वार्थ की राह
खो चुकी "मानवता"
मिले दानव
(4)
सेवा से ध्यान
"मानवता"भी धर्म
पूजे इंसान
(5)
मिले तो बता
मानवता का पता
रहता खुदा
स्वरचित 
ऋतुराज दवे
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नमन !!भावों के मोती"🙏
15/02/2019
शहीदों को नमन 🙏
आक्रोश है,दर्द है, 
कायरता की हद है,
आतंक है मजहब,
इंसानियत न धर्म है l
आतंक का नासूर,
धूर्तता का चेहरा है,
नापाक है ईरादे,
ईमान तेरा बहरा है l
शहीदों की शहादत,
खुदा की ईबादत है,
फर्क है वार करने में,
धोखा तेरी आदत है l
कुंठा भरा है कर्म तेरा
साँपों से भरा घरा है
लानत है बुजदिली की
पाक देश नहीं तू शर्म है
सामने आ ललकार,
चुनौती को स्वीकार कर
भाड़े टट्टू न आगे कर,
साहस भर सामना कर l
व्यथित
ऋतुराज दवे
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नमन "भावों के मोती"🙏
15/02/2019
"पुलवामा" के शहीद वीर सपूतों को अश्रुपूरित श्रद्वांजलि !!नमन !!🌹🌹🙏
(1)
आतंक पास 
धर्म न मजहब
धूर्त विचार
(2)
सेना नमन !
तिरंगे का कफ़न
भारत रत्न
(3)
सपूत खोये
तिरंगा ओढ़कर
शहीद सोये
(5)
सेना लाचार
फ़र्ज़ राह शहीद
तंत्र की हार
(6)
कौन नामर्द?
आतंकी या ये तंत्र
क्षुब्ध है प्रश्न
(7)
देश बेचते
राजनीति महंगी
शहीद सस्ते
(8)
क्षति की अति
सेना का अधिकार
सख्त जवाब
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
13/02/2019
हाइकु
विषय:-"दाग" 
(1)
दाग कालिमा
साहित्य श्वेत वस्त्र
चुरी रचना
(2)
लगाओ दाग़
कीचड़ फेंको खेल
जीवन आज
(3)
मीरजाफर
भारत माँ आँचल
गद्दारी दाग
(4)
आतंकी दाग
शहीद के कफ़न
वीरता गाथा
(5)
हुए न साफ़
हृदय पे अंकित
दुष्कर्म दाग
स्वरचित
ऋतुराज दवे
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@ चंद हाइकु
विषय:-"जहर"


(1)
जहर हवा
बीमार  शहर की
वृक्ष है दवा
(2)
बिखरे घर
तकनीक परोसे
मीठा जहर
(3)
यम झुकता
जीवन का जहर
हँस जो पीता
(4)
रोये शहर
संस्कृति के पेट में
धीमा जहर
(5)
मन विचारे
जहर बदनाम
जिंदगी मारे

स्वरचित
ऋतुराज दवे

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कविता
विषय:-"जहर"



विकास की मदिरा बना कर,
फिर उसे दवा का नाम दिया,
मिलावट और प्रदूषण ने मिल,
जीवन को जहर बना दिया...

संस्कारों की होली जला,
संस्कृति को बदनाम किया,
कहीं रिश्तों का करके खून ,
जीवन को जहर बना दिया...

महत्वाकांक्षाओं की बस्ती में,
स्वार्थ ने घर बना लिया,
मर्यादाओं को करके तार,
जीवन को जहर बना दिया...

तंत्र लाचार,गरीब रहा गरीब
नीति, मूल्यों का ह्रास किया
विषमता के बीज बो कर
जीवन को जहर बना दिया...

स्वरचित
ऋतुराज दवे

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10/ 02/2019
माँ शारदे स्तुति...

हे कमल पद्मासनी 
ज्ञान का वरदान दो.....

भावों में उतर के माँ
लेखनी सँवार दो
जो मंत्रमुग्ध कर दे मन
वाणी को निखार दो
हे कमल पद्मासनी
ज्ञान का वरदान दो.....
हे श्वेत वस्त्र धारिणी
जड़ता को तार दो
धर्म पे चलूँ मैं माँ
करुणा उपहार दो
हे कमल पद्मासनी
ज्ञान का वरदान दो.....
निर्भय मैं रह सकूँ
मन को विश्वास दो
बुध्दि,मन पवित्र हो
हृदय स्वाभिमान दो
हे कमल पद्मासनी
ज्ञान का वरदान दो.....
स्वरचित
ऋतुराज दवे

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10/02/2019

चंद हाइकु.. 
विषय:-"ऋतुराज /वसंत "
(1)
वासंती धरा
स्वागत ऋतुराज
मन भी हरा
(2)
उत्सव फाग
ऋतुराज को देख
मुस्काये बाग
(3)
चैत्र महके
ऋतुराज आँगन
आम बौराये
(4)
खिलते रंग
पतझड़ का अंत
आया वसंत
(5)
धरा प्रसन्न
ऋतुराज धराये
पीत वसन
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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09/02/2019
कविता
विषय:-"वसंत "
कूकते हुए बागों में,
तितलियों का नर्तन,
फूलों में भर मकरंद,
फिर आया वसंत....
भवंरो को बुलाकर,
सरसों ने मुस्कुराकर,
धरा के तन को,
पहनाया पीत वसन,
फिर आया वसंत.....
कोंपल की अँगड़ाई
पवन खिलखिलाई
जिजीविषा जीवन,
शिला में हँसा सुमन,
फिर आया वसंत.....
रंगों को बरसाता,
फागुन चंग बजाता,
चैत्र को महकाकर,
खिलाता मस्त चमन,
फिर आया वसंत.....
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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07/02/2019
चंद हाइकु
विषय:-"प्रश्न/सवाल" 
(1)
बेटी पे गाज़
सवालों के घेरे में
सभ्य समाज
(2)
कौन ढूँढता?
सवालों की भीड़ में
उत्तर छुपा
(3)
प्रश्न थे आगे
जन्म से मृत्यु तक
जवाब माँगे
(4)
कर्मठ इंसा
प्रश्नों के पीछे दौड़
ढूँढा विज्ञान
(5)
भूखे थे प्रश्न
मन हुआ चेतन
मिले उत्तर
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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कविता
विषय:-"प्रश्न" 
जिंदगी अपने आप में, एक बड़ा सवाल है,
कदम-कदम पे परीक्षा है, अधूरे जवाब है l
जिज्ञासा के सागर में, ज्ञान बूँद समान है,
सुलगता सा जीवन है, और प्रश्नों की बाढ़ है l
कुछ रेडीमेड उत्तर हैं, कुछ की तलाश है,
कहीं धर्म -ध्यान किनारे, कुछ बुझती प्यास है l
कुछ प्रश्न ज्वलंत हैं, तो कुछ प्रश्न स्वतंत्र हैं,
कुछ प्रश्न खामोश हैं, तो कुछ प्रश्नों पे पहरा है l
तीखे हैं प्रश्न तो कुछ, आग भी लगाते हैं,
देश हित के प्रश्न, देश को ही संवारते हैं l
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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चंद हाइकु
विषय:-"पतंग"
(1)
साँसों की डोर
पतंग सा जीवन
ईश्वर हाथ
(2)
"पतंग"बोली
सपनों को दे ढील
खोल चकरी
(3)
विश्वास डोर
मित्रता की"पतंग"
तूफाँ में संग
(4)
यादें ही हाथ
बेटी कटी "पतंग"
घर उदास
(5)
"पतंग" बन
चाँदनी की डोर से
उड़ता चांद
(6)
रिश्तों को खोया
स्वार्थ काटे पतंग
दुःख लपेटा
(7)
दुःखी पतंग
ईर्ष्या ने लड़ा पेच
मिट्टी में प्रेम
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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चंद हाइकु
विषय:-"विज्ञान" 
(1)
योग विज्ञान
"साँसों" की साधना से
सिंचते प्राण
(2)
सिक्के के रूप
विज्ञान व अध्यात्म
दो अपरूप
(3)
सूर्य प्रणाम
आस्था संग विज्ञान
धर्म संस्कार
(4)
विज्ञान आया
भागा अन्धविश्वास
सत्य को लाया
(5)
रोये विज्ञान
हथियारों की होड़
अंधों की दौड़
(6)
आत्मा है धर्म
विज्ञान दिखलाये
भौतिक तन

स्वरचित

ऋतुराज दवे


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विषय:-"काग़ज़"
(1)
कलम मित्र
कागज़ पे उकेरे
भावों के चित्र
(2)
बारिश-नदी
बचपन की याद
कागज़ जुडी
(3)
दे पहचान
कागज़ का सम्मान
रत्न प्रमाण
(4)
वादों पे धूल
राजनीति बगिया
कागज़ी फूल
(5)
काग़ज़ संग
कलम ने तराशी
हीरा प्रतिभा
(6)
कागज मंच
भावों की भर स्याही
नाचे कलम
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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03/01/2019

"नारी"
नारी तू प्रेम है, श्रद्धा है,
त्याग की मूर्ति है ममता है,
समर्थ है, नहीं अबला है,
कोमल है तो तू ही दुर्गा है l
घर की धुरी है, विश्वास है,
जननी है तू,तू ही सूत्रधार है,
व्यक्तित्व गरिमा है,भाव है,
नारी तू स्वयं एक सम्मान है l
नारी तू मेहँदी है, त्यौहार है,
पुरुष की पूरक, गले का हार है,
मीरा सी भक्ति,राधा सा प्यार है,
तुझसे ही तप्त जीवन,शीत फुहार है l
चपला है, चंचला है,सौंदर्य भरा है,
वाणी में माधुर्य है,नारीत्व खिला है,
नारी तू लाज है, रिश्तों का साज है,
हे शक्ति स्वरूपा,तू सृष्टि का नाज़ है l
स्वरचित
ऋतुराज दवे

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02/02/2019
लघु कविता 
विषय:-"खिलौना"
हालात के हाथों का
खुद बना खिलौना,
आज बचपन को देखा
बेचते खिलौना,
हसरतें मजबूर थी
यथार्थ था बिछौना,
पेट का सवाल बड़ा
दर्द छुपा था कोना l
तंत्र की हार थी या
विषमता का रोना,
शिक्षा मंदिर के आगे
याचक था सलोना,
क्या जन्म ही अभिशप्त है
गरीब का होना,
खिलौने बेच व्यक्तित्व गढ़ा
स्वयं रहा बौना l
स्वरचित
ऋतुराज दवे

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01/02/2019
हाइकु
विषय:-"इंसान" 
(1)
रोबोट काम
डिजिटल दुनियां
ढूँढो इंसान
(2)
दर्द की गली
मुस्कान को बाँटता
मिला इंसान
(3)
धर्म दीवार
बंटा हुआ इंसान
दुःखी आकाश
(4)
रहीम- राम
कर्मों के बल पर
पुजा इंसान
(5)
स्वार्थ जो दिखे
गिरगिट इंसान
रूप बदले
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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विषय:-"इंसान"
बे ब्रह ग़जल
वक़्त जिसका बिगाड़ न पाया उस फ़रिश्ते को देखते चलें,
दूजे का दर्द जिसके सीने में हो उस इंसान को देखते चलें l
ज़माने में जो बाँट रहे औरों को नसीहतें,
चलो चलते हैं आज उनका भी घर देखते चलें l
सभ्यता की गगनचुम्बी मीनारें हैं जहाँ खड़ी,
संवेदनाओं से भरा हुआ वो शहर देखते चलें l
इंसान को अब इंसान होना भी गवारा नहीं,
धर्म-जाति के संस्कारों का असर देखते चलें l
इंतिहा हो चुकी मर चुकी आज इंसानियत भी,
"राज"अब उस खुदा का कहर देखतें चलें l
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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31/01/2019
लघु कविता
विषय:-"गगन/आकाश"
गगन भरा संभावनाओं से,
मन बँधा अवधारणाओं से,
उड़ते परवाज़ों से सीखना,
चहकना, एकता धुन गुनना,
अब वक़्त किसके पास है?
अपने स्वप्नों के आस्मां की,
आज सभी को तलाश है l
रात-दिन, सुख-दुःख का वास है
ज़िंदगी पूर्णता लिए विरोधाभास है,
किसी को दो गज़ जमीं मयस्सर नहीं,
किसी के जमीं पे पैर पड़ते नहीं,
हर दौड़ अधूरापन भरने की प्यास है,
मन का पंछी पिंजरे में कैद है,
किसकी मुट्ठी में पूरा आकाश है?
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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30/01/2019
हाइकु
विषय:-"घूँघट"
(1)
नारी सम्मान
मर्यादा का घूँघट
नैनों के द्वार
(2)
निशा की सखी
बादलों के घूँघट
चाँदनी हँसी
(3)
चेहरा चाँद
हया घूँघट ताके
हिरणी आँख
(4)
झुकते नैना
घूँघट पहनाये
शर्म गहना
(5)
भोर की रश्मि
रजनी का घूंघट
हटाये रवि
स्वरचित
ऋतुराज दवे

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30/01/2019
वर्ण पिरामिड
विषय :-चीख /चीत्कार
(1)
है
आत्मा
चीत्कार
बलात्कार
घृणा का प्यार
समाज बहिष्कार
मानवता स्वीकार
(2)
क्यूँ
बेटी
गुनाह
हिय रोता
भ्रूण चीखता
मरी मानवता
भरी है दानवता
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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29/01/2019
विषय-"संत"
(1)
माया संसार
संतो का अनुभव
जीवन सार
(2)
जल के सम
संतो की संगत में
मन कंचन
(3)
एक समान
वाणी औ व्यवहार
संत आचार
(4)
संत बनना
दिखना और होना
फर्क है बड़ा
(5)
गृहस्थ संत
कर्तव्यों की साधना
संघर्ष मंत्र
(6)
जाग्रत वाणी
संत है उद्धारक
जग कल्याणी
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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28/01/2019
विधा:-हाइकु
विषय:-"पूजा"
(1)
मंदिर दूजा
मात-पिता की सेवा
हो गई पूजा
(2)
पुजे संस्कार
संस्कृति का मंदिर
श्रद्धा के द्वार
(3)
पूजा का भोग
गरीब ने चढ़ाये
आँसू के लडडू
(4)
विविध धर्म
व्यक्तित्व है अमर
पूजाते कर्म
(5)
स्वार्थ देवता
भ्रष्टाचार करता
पैसों से पूजा
(6)
प्रेम प्रसाद
मानवता की पूजा
ईश्वर सेवा
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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26/01/2019
सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई सहित.. चंद हाइकु विचारणार्थ.....
(1)🇮🇳
लड़ती कौम
संविधान भावना
समझे कौन?
(2)🇮🇳
स्वार्थ की गली
गणतंत्र की राह
काँटों से भरी
(3)🇮🇳
भाग्य विधाता
एक सूत्र में जोड़े
भारत माता
(4)🇮🇳
विविध जुबाँ
भारत गणतंत्र
विश्व मिसाल
(5)🇮🇳
राष्ट्रीय पर्व
दो दिन का सम्मान
फिर से शर्म
(6)🇮🇳
भारत माला
विविध धर्म मोती
एकता धागा
(7)🇮🇳
प्राण है गंगा
भारत सतरँगा
दिल तिरँगा
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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22/01/2019
चंद हाइकु आज के विषय "कलम"पर..
(1)
वक़्त के द्वार 
तकनीक आगम
विदा "कलम"
(2)
चेतना जगे
"कलम" मारे फूंक
कुर्सियां हिले
(3)
भाव देवता
"कलम" का पुजारी
शब्द साधता
(4)
नभ पटल
सूरज की कलम
रंगती घन
(5)
कागज़ मंच
कलम ने दिखाये
जीवन रंग
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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22/01/2019
लघु कविता
"कलम"
सृजन भी साधना,
साधन है कलम,
माँ शारदेआह्वान,
भावों का आगमन l
अनुभव की स्याही,
जब भर लेता मन,
कागज के मंच पे,
खिलते जीवन रंग l
छलकते हैं मौसम,
झलकता जीवन,
इतिहास को संजों,
जिंदा रखती कलम l
सत्य पे अडिग रहे,
राह सुझाये सुगम,
न बिके न धर्मांध दिखे,
वही सच्ची कलम l
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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21/01/2019
शीर्षक शब्द = "आहट"
विधा - वर्ण पिरामिड
*************************
(1)
है
आज
आहट
प्रदूषण
धरा दोहन
विनाश कहानी
बोतल बिके पानी
(2)
है
झूठी
भटकी
सियासत
मुद्दे आहत
धर्म गर्माहट
चुनाव की आहट
स्वरचित
ऋतुराज दवे

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दिनांक - 18/01/2019
विधा -हाइकु(5/7/5)
शीर्षक - "सरल"
(1)
मृत्यु सरल
वक़्त ने पूछ डाले
प्रश्न गरल
(2)
मोम सा ढ़ल
व्यवहार तरल
जीना सरल
(3)
काज दुःष्कर
आँसुओं को पौंछना
हँसी सरल
(4)
जटिल लोग
सरल कैसे बने
पाठ पढ़ाए
(5)
बुना कृत्रिम
जीवन था सरल
बनाया क्लिष्ट
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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17/01/2019
आज के विषय पर प्रस्तुति..
"प्रवाह"
(1)
ले गया उम्र
समय का प्रवाह
पकड़े हाथ
(2)
हालात वही
वादों के प्रवाह में
जनता बही
(3)
रंक तबाह
नीतियों ने मोड़ा है
धन प्रवाह
(4)
मन के तट
चेतना का प्रवाह
उठते भाव
(5)
पूनम रात्रि
चाँदनी का प्रवाह
धरा नहाती
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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16/01/2019
लघु कविता
"न जाने किसकी तलाश..."
मृग मरीचिका जग की
स्वयं से हो के बेखबर
प्यासी ही रहती आस
न जाने किसकी तलाश...
पा कर भी कुछ पा न पाए
हाथ का सुख पहचान न पाए
सफलता के शिखर पे बैठ
मन क्यूँ दिखे उदास
न जाने किसकी तलाश...
जीवन की रंगीन फिजायें
रिक्त हृदय ये भर ना पाए
प्रश्न अधूरे, सत्य अधूरा
अधूरी ज्ञान की प्यास
न जाने किसकी तलाश...
कगार पे आकर भी
मोह छूटा न माया छूटी
वक़्त बहा के ले गया
जीवन को मौत के पास
न जाने किसकी तलाश...
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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(1)
खूब सम्हाली
जीवन की "पतंग"
वक्त ने काटी
(2)
हवा से भिड
"पतंग"ने सिखाया
जीवन दाव
(3)
"पतंग"हँसे
मन धागे उलझे
उडे वो कैसे?
(4)
अंगुलि मन
जीवन की "पतंग"
नचाए संग
(6)
रवि का रथ
मकर करे पार
ऊर्जा सवार
(7)
संक्रान्ति पर्व
रवि को देखकर
तड़के तिल
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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सेना दिवस पर सभी जाँबाज़ मातृभूमि के रक्षकों को नमन 🙏🌹🌹
(1)
धरा बिछौना
देशभक्ति चादर
ओढ़ती सेना
(2)
सुख न चैना
सरहद पे सेना
जगती रैना
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
खून वही जो देश के काम आता है,
देश का दीवाना देश पे मिट जाता है,
करूँ उस शहादत को शत-शत नमन,
जिसके कफ़न को तिरंगा सजाता हैl
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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14/01/2019
चंद हाइकु, विषय -"शहर"
********
(1)
वक्त से होड़
"शहर"भागे कहीं
चैन को छोड़
(2)
मन को फेंक
"शहर" पहचाने
धन को देख
(3)
कंक्रीट जाल
किरणें भी अटकी
शहर आ के
(4)
जहर हवा
"शहर" मिलावटी
वृक्ष ही दवा
(5)
"शहर" फ्लैट
कबूतरखाने में
सिमटे पंख
(6)
"शहर" बाग
हास्य क्लब चलते
हँसी सीखते
(7)
गरीबी डेरा
"शहरी"चकाचौंध
तले अंधेरा
(8)
दिखावा रोग
"शहर" में विवाह
छप्पन भोग
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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09/01/2019
चंद हाइकु.. विषय :-"अतिथि "
(1)
तन सराय
मोह-माया अटैची
साँसे "अतिथि"
(2)
वक़्त अभाव
"अतिथि" से करती
दीवारें बात
(3)
मन के घर
घृणा-प्रेम अतिथि
आते व जाते
(4)
अतिथि सेवा
पूजा है संस्कारों की
आतिथ्य धर्म
(5)
जिद्दी अतिथि
ठहरी महंगाई
रोती गरीबी
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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07/01/2019
"वर्ण पिरामिड"
विषय :-"तरंग"
(1)
दे
सीख
तरंग
तट मन
आवागमन
बुलबुला तन
समझाया जीवन
(2)
हो
प्रेम
सत्संग
खिले मन
जीवन संग
सागर उमंग
मस्ती उठे तरंग
(3)
यूँ
उठे
तरंग
छूए मन
यादें मिलन
किनारे जीवन
मुस्काया बचपन
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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07/01/2019
हाइकु.. विषय :-"तरंग"
(1)
झूठा घमंड
जीवन बुलबुला
क्षण तरंग
(2)
हृदय तट
स्मृतियाँ टकराती
बन तरंग
(3)
नमन कुम्भ!
धर्म श्रद्धा सागर
आस्था तरंग
(4)
अहं तरंग
स्वार्थ लाया सुनामी
डूबे सम्बन्ध
(5)
उमंग जागे
मन उठे तरंग
प्रेम किनारे
स्वरचित
ऋतुराज दवे
राजसमंद (राज.)


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05/01/2019
हाइकु.. विषय :-"मोह"
(1)
सेवा को छोड़
"माया" के संग गया
कुर्सी का मोह
(2)
"मोह" ने लिखी
युद्ध की पटकथा
महाभारत
(3)
प्राणों का "मोह"
अटकी रही साँसे
तन बिछोह
(4)
तराजू फेंक
मोह ने किया सौदा
रूठा विवेक
(5)
"मोह" के घर
भेदभाव भी आया
लड़ाई लाया
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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04/01/2019
चंद हाइकु विषय:-"बेटी"
(1)
अजब मूढ़ें
"बिटिया" फेंकी कूडे
बहु को ढूँढ़े
(2)
नाली में भ्रूण
मानवता के आँसू
स्वप्नों का खून
(3)
यादें समेट
"बेटी" जो हुई विदा
कलेजा फटा
(4)
"बेटी "चिरैया
कर्तव्यों के तिनके
बुने घरौंदा
(5)
गृह चेतना
"बिटिया"संवेदना
बाँटे वेदना
(6)
घर महका
"बिटिया" की ऊर्जा से
चूल्हा चहका
(7)
यादें ही संग
"बेटी" के हाथ पीले
घर बेरंग
(8)
"बेटी"सँस्कार
पल्लू बँधा विश्वास
पिता की खास
(9)
रस्सी पे चाल
पीहर -ससुराल
बेटी कमाल
स्वरचित
ऋतुराज दवे
राजसमंद (राज.)


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2/1/2018
चंद हाइकु आज के प्रदत्त विषय"शिक्षा"पर...
(1)
शिक्षा की दशा
डिग्रियों को बिठाया
चलाया रिक्शा
(2)
दो दुनी आठ
भटक रही शिक्षा
रो रहे पाठ
(3)
बुद्धि थी नग्न
शिक्षा ने पहनाए
सभ्यता वस्त्र
(4)
शिक्षा की झाँकी
फेल हो के भी पास
नाचते दागी
(5)
पेट अगन
बाल मजूरी , भिक्षा
शर्मिन्दा शिक्षा
(6)
जग सागर
नाव सी माँ की शिक्षा
जीवन तरा
स्वरचित
ऋतुराज दवे
राजसमंद (राज.)


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2/1/2018
वर्ण पिरामिड
शीर्षक = नव, नवीन, नया, नूतन आदि समानार्थी शब्द
(1)
हो
"नव"
प्रयास
छूटे भोग
सिमटे रोग
मानवता योग
तकनीक प्रयोग
(2)
है
प्रश्न
गहरा
मन मरा
दर्द घनेरा
गरीबी का डेरा
होगा "नया" सवेरा?
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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01/01/2019
चंद हाइकु -"नया साल"
(1)
ऊर्जा के बीज
नया साल ने बोये
मन की जमीं
(2)
आशीष भरे
नए साल ने बाँटे
नेह लिफाफे
(3)
कहे सँभाल
जीवन उपहार
नूतन साल
(4)
नए साल में
सोया विश्वास जागे
स्वप्न भी उठे
(5)
आशा के साथ
नया साल उतारे
भोर आरती
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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31/12/2018
लघु कविता
और एक वर्ष बीत गया...
शेयर बाज़ार की तरह
ज़िंदगी चढ़ती-उतराती रही
महंगाई मुँह चिढ़ाती रही
वादों के घरों को ढूँढ़ते हुए
गरीब का कटोरा रीत गया
लो फिर एक वर्ष बीत गया....
सुख-दुःख की याद संजोये
सोच में क्या पाया और खोये
उम्र को पटकनी देकर यूँ
समय फिर से जीत गया
लो फिर एक वर्ष बीत गया....
कहीं रावण, कहीं दुःशासन
मानवता का चीरहरण
तो कहीं सेवा मिसाल बनकर
कोई देकर,प्रेरणा गीत गया
लो फिर एक वर्ष बीत गया....
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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31/12/2018
चंद हाइकु 2018की विदाई में...
(1)
ना जीना व्यर्थ
जाते साल ने कहा
बन समर्थ
(2)
विदा के साथ
जाते वर्ष ने सौंपे
अधूरे ख्वाब
(3)
यादों का धन
बीते साल के लम्हें
तिज़ोरी मन
(4)
स्वप्न मकान
गरीब फुटपाथ
एक सा साल
(5)
वर्ष विदाई
झोली में सुख-दुःख
शिक्षा भी पाई
(6)
क्या दें जवाब
वर्ष आखिरी दिन
माँगे हिसाब
स्वरचित
ऋतुराज दवे
राजसमंद(राज.)


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29/12/2018
"क्षणिकाएं"
विषय:-सौदा/सौदेबाज़
(1)
दिलों का सौदा
कुछ ऐसा रहा..
दर्द बंट गए दोनों के
मुस्कानों का....
मुनाफा रहा l
(2)
शोषण उठा
गरिमाएँ गिरी
तन के सौदे में
आत्मायें बिकी
(3)
खायें कहीं
बजायें कहीं
ऐसे धोखेबाज़
मातृभूमि को बेच दें
छुपे हैं सौदेबाज़
(4)
पर्यावरण दोहन
घाटे का सौदा
हाथ में आँसू
जेब असुरक्षा
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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28/12/2018
हाइकु.. विषय :-"दिल"

वसा को छोड
दिल मुस्कुराएगा
कहती दौड

बदले रंग
कठोर या नरम
दिल मौसम

तन का मंच
धडकन संगीत
नाचता "दिल

प्रेम जो मिला
धमनियों में दौड़ी
"दिल"की खुशी

"दिल"गोदाम
घृणा और प्रेम का
भरा सामान
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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28/12/2018
लेकर हौसला पत्थर ,
साहस घर बनाता हूँ
कंटीली राह पे चलने का,
मैं अपना मन बनाता हूँ l
दर्द की गली सोया ,
विश्वास को जगाता हूँ
बाँटकर कर्म बीजों को,
प्रेम को धर्म बनाता हूँ l
सितारे देख कर मैं भी
अरमाँ को सजाता हूँ
फटी झोली भले मेरी,
मैं आशा चादर बनाता हूँl
गले लगा के फूलों को ,
काँटे भी उठाता हूँ
पत्थर तोड़ के रस्ता,
मैं अपना खुद बनाता हूँl
सब भूल के नफ़रतें,
दिल को समझाता हूँ
जब दिल से पास वो आये,
दिल का बनाता हूँl
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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27/12/18
"चित्रलेखन" का प्रयास...
कल्पना के हाथ में, 
सृजन की तूलिका
बतला रही धरा पे,
क्या हो अपनी भूमिका
कहती प्रेम के रंग से,
इसे जीवन्त बनाएँ
हाथ हो कहीं के भी ,
मिल के धरा सजाएँ
पीड़ित है मानवता,
दुःख को दूर भगाएँ
दुलार करें प्रकृति को,
प्रदुषण को हटाएँ
देखना रचनात्मकता से
धरा खिल उठेगी,
इतने हाथों का सम्बल पा
वह मर के भी जी उठेगी l
स्वरचित 
ऋतुराज दवे



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26/12/2018
"किवाड़"
(1)
बटते लोग
किवाड़ खा गए हैं
घर का चौक
(2)
बच्चों में मन
किवाड़ पे चिपके
बूढ़े नयन
(3)
एक ही घर
किवाड़ मिले गले
भाई क्यों अड़े?
(4)
टूटते घर
डरते हैं किवाड़
आहट स्वार्थ
स्वरचित
ऋतुराज दवे
राजसमंद


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रूप(5/7/5) 🙏
23/12/2018
विषय..किसान
*************
किसान
(1)
मंदिर खेत
कृषक ने चढ़ाये
कुसुम स्वेद
(2)
मौसम मार
कृषक झोली आँसू
श्रम बर्बाद
(3)
ठिठुरी रात
खेत माँ का आँचल
गोद किसान
(4)
कर्ज का मर्ज
किसान आत्महत्या
श्रम को शर्म
(5)
प्रभु आसरे
स्वप्न बोए किसान
आशा के खेत
(6)
खेत माँ सर
किसान पहनाए
हरी चुनर
(7)
रजत वर्षा
भू से निपजा स्वर्ण
कृषक हर्षा
(8)
कृतध्न इंसां
किसान अपमान
नाली में धान
(9)
भोला अंजान
बिचौलिये व कर्ज़
ठगा किसान
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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22/12/2018
चंद हाइकु (5/7/5)
"संसार"
(1)
दिलों को तोड़
माया के खिलौनों से
खेले "संसार"
(2)
मौन को चुना
"संसार" को समझ
सन्यास बना
(3)
माया से प्रीत
उगते को सलाम
"संसार"रीत
(4)
बारी से खेलें
"संसार" की गोद में
सुख व दुःख
(5)
समय ने की
"संसार"की दुर्दशा
पानी न हवा
(6)
"संसार" नाव
कर्मों की पतवार
स्वप्न सवार
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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22/12/2018
"क्षणिका"
विषय:-"संसार"
(1)
दौड़ते रहे
मरीचिका में
हाथ न आया
सार
अतृप्त
ईच्छाओं का बाज़ार
माया "संसार"
(2)
आतंकवाद
मानवता की हार
स्वार्थ का व्यापार
प्रदूषण ने घोंटा गला
दुःखी "संसार"
(3)
विषमता अपार
बिकता प्यार
भावनाओं का व्यापार
दिल भी खिलौना
अजब "संसार"
(4)
धरा बिछौना
आकाश ओढ़ना
पेट की खातिर
तन तोड़ना
छोटे-छोटे सुख को सहेज
सोता मन को मार
गरीब का संसार
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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"वर्ण पिरामिड"
शीर्षक
घिनौना/घृणित/नृशंस
(1)
है 
कृत्य
घिनौना
भ्रूण हत्या
दहेज़ लेना
बाल श्रम होना
स्त्री अस्मिता तोड़ना
(2)
है
दंगा
घृणित
निंदनीय
धर्म के नाम
निर्दोषों की जान
दुःखी वेद-कुरान
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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21/12/2018
"क्षणिका"
विषय:-"पायल"
(1)
बेटी की विदाई
दूर जाती हुई
"पायल" की धुन
और
मन में..
बुझता सा संगीत
(2)
गाती
कर्तव्य गीत
छू के मन
जगाती,सुनाती
भोर की मीठी धुन
तुम्हारी "पायल"
(3)
जब न होती तुम
खामोश घर गुमसुम
ढूँढता
वो भी मेरे संग
तुम्हारी...
"पायल"की धुन
(4)
तुम्हारी "पायल"
सुबह की अजान
खनकता नारीत्व
पैरों में जान
है...
परिवार की मुस्कान
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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20/12/2018
विषय:-"भूख"
विधा:-हाइकु
(1)
दहेज "भूख"
बेटियों को निगले
दानव रूप
(2)
दुःखित जन्म
"भूख" ने बेच दिए
तन व मन
(3)
कर्म जगाये
जीवन के मैदान
"भूख" दौड़ाये
(4)
स्वार्थ की "भूख"
विश्वास नहीं चखा
खा गई रिश्ता
(5)
ज्ञान की "भूख"
धर्म और साहित्य
आत्मा खुराक
(6)
नोचते सुख
इंसान भी भेड़िया
वासना "भूख"
(7)
धन की "भूख"
आखिरी सफर में
साथ में दुःख
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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19/12/2018
विषय:-"देशप्रेम "
विधा:-हाइकु
(1)
लड़ते धर्म
देशप्रेम जागता
मात्र दो दिन
(2)
कर्तव्य धर्म
देशप्रेमी की स्तुति
आहुति कर्म
(3)
तिरंगा दर्श
देशप्रेम दौड़ता
धमनी पथ
(4)
भ्रष्ट से नाता
देशप्रेम क्या होता?
स्वार्थ विधाता
(5)
सीमा पे गोली
देशप्रेमी ने खेली
खून की होली
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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16/12/2018
"सँस्कार"
(1)
झुकता सर
"सँस्कार" पूजा जाता
मन्दिर घर
(2)
"सँस्कार" बोले
शब्द चढ़े जिह्वा पे
मन को खोले
(3)
पीढ़ियों चले
"सँस्कार"बने बीज
खून में फले
(4)
"सँस्कार"पूँजी
मन तिजोरी भरी
असली धनी
(5)
टूटा संवाद
"सँस्कार" बने आज
हास्य के पात्र
(6)
ऐब का नशा
"सँस्कार"से लुढ़के
घर दुर्दशा
(7)
दुःखी दरख्त
"सँस्कारों "की फ़सल
खा गया वक़्त
(8)
वक़्त न साथ
"सँस्कारों "का रोपण
चुनौती आज
स्वरचित 
ऋतुराज दवे


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दिनाँक:-16/12/2018
चंद हाइकु
विषय:-"आँख/नयन" 
(1)
बोलें "नयन"
पलक चिलमन
झाँकता मन
(2)
"नयन" भाषा
बूझे मन की बात
मिला ईशारा
(3)
छुपा बेकार
"नयनों" की चुगली
पकड़ा प्यार
(4)
दिल के घर
"नयनों" की तलाशी
टटोले मन
(5)
भावों का वेग
"नयन" झील भरी
चादर चली
(6)
चकित सोना
"नयनों" पर जंचा
शर्म गहना
(7)
उम्र को ठेंगे
"आँखो" की शरारत
मन को छेडे
(8)
"आँखें बदरा
सजनी का काजल
प्रेम पसरा
(9)
हैरान मन !
श्वेत-श्याम "नयन"
रंगीन स्वप्न?
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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15/12/2018
"क्षणिका"
विषय:-"साक्षात्कार"
(1)
दूसरों की
आत्मा में झाँकते
कोसते बार-बार
क्या होगा जब?
स्वयं की आत्मा से
"साक्षात्कार"
(2)
चढ़ाओ लाख
दया न करुणा
मन में बसे
शोषण के भाव
कैसे हो प्रभु से?
"साक्षात्कार"
(3)
निकले भाव
पँख पसार
कल्पना ने
भरी उड़ान
जब हुआ कलम से
"साक्षात्कार"
(4)
मंदिर नहीं
हर बार
उतरा गहरा
मन भी ठहरा
प्रकृति से हुआ जब
"साक्षात्कार"
ऋतुराज दवे


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13/12/2018
लघु कविता
"ये मौसम कौनसा है? "
भरोसों का पतझड़ है,
अविश्वासों का कोहरा है,
कहाँ रिश्तों की गर्माहटें,
ये मौसम कौन सा है?
धुंध विषमता छाई है,
संशय बादल गहरा है,
क्यों स्वार्थ की आई सीलने,
ये मौसम कौन सा है?
रंग बदलती दुनिया है,
रूप बदलता चेहरा है,
हैवानियत की आती आहटें,
ये मौसम कौन सा है?
ईमान धूप भी डरती है,
कालिमा का पहरा है,
छुपी कहाँ मुस्कुराहटें,
ये मौसम कौन सा है?
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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13/12/2018
विधा:-हाइकु (5/7/5)
विषय:-"कोहरा "

(1)

सर्द सुबह 
"कोहरे" का धरना 
राह हरना 
(2)
सर्दी की गोद 
"कोहरा" भी पसरा 
ठहरी ओस 
(3)
छुपे न रूप 
समस्याएँ "कोहरा" 
प्रतिभा धूप 
(4)
रवि हटाये 
"कोहरे" की चादर 
रश्मि मुस्काये 
(5)
राह जो कर्म 
आशा धूप खिलेगी
"कोहरा" क्षण
स्वरचित 
ऋतुराज दवे


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12/12/2018
विषय:-"निवेदन"
चंद हाइकु..
(1)
प्रेम से भरी
निवेदन की पाती
आँखों ने भेजी
(2)
लालची पेट
थाली का निवेदन
जूठा न फेंक
(3)
मुफ्त हराम
रंक का निवेदन
हाथ को काम
(4)
वादा अधूरा
निवेदित जनता
भरोसा टूटा
(5)
देश भी फ़र्ज़
ममता निवेदन
चुकाना कर्ज़
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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12/12/2018
वर्ण पिरामिड
विषय---दुःखी
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
(1)
है
शर्म
मनन
मनु कर्म
विष वमन
दूषित जीवन
दुःखी पर्यावरण
(2)
है
दुःखी
संस्कृति
मरी मति
आई विकृति
विनाश की गति
लुटी प्रेम सम्पति
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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11/12/2018
विधा:-हाइकु (5/7/5)
विषय:-"कर्तव्य "
(1)
कहाँ है सत्य?
स्वार्थ बसे नगरी
भूले "कर्तव्य"
(2)
देश की सेवा
जन्मभूमि मंदिर
"कर्तव्य"पूजा
(3)
"कर्तव्य" इत्र
महकता व्यक्तित्व
श्रम के हाथों
(4)
स्व अन्वेषण?
"कर्तव्य" चढ़ा सूली
दोषारोपण
(5)
स्वदेश बड़ा
भावना से पहले
कर्तव्य पढ़ा
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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09/12/2018
वर्ण पिरामिड
विषय:-"नोट/धन/रुपैया/पैसा/माया" 
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
(1)
ये
धन
साधन
जग भोग
मन का रोग
बिक जाते लोग
गुणा, भाग व योग
(2)
ये
नोट
चतुर
भ्रष्ट ओट
तंत्र पे चोट
खरीदते वोट
मन में लाते खोट
(3)
है
शक्ति
रूपया
चैन लेता
इंसा बिकता
लालच खिंचता
ज़मीर खरीदता
(4)
है
धन्य
दुर्लभ
मुनि मन
श्रम ही धन
संतोष भी धर्म
संस्कारवान कर्म
(5)
है
आज
कमाल
रंक भूखा
मन को दुखा
पैसों का दिखावा
करोड़ों में चढ़ावा
(6)
है
वक़्त
अखाड़ा
जीती उम्र
रुपया हारा
जीवन सागर
ईश्वर ही सहारा
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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08/12/2018
चंद हाइकु, विषय:-"प्रेरणा"
(1)
कर्म प्रधान 
"प्रेरणा" देता रवि
कर्तव्य ज्ञान
(2)
बीती भूलना
गिर के संभलना
चींटी "प्रेरणा"
(3)
विश्वास स्पर्श
"प्रेरणा" की पुकार
जागी क्षमता
(4)
मुर्दे में जान
"प्रेरणा" फूँके प्राण
शक्ति समान
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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08/12/2018
विषय:-"प्रेरणा"
जब हो निराशा घोरअँधेरा,
प्रेरणा दीप जलाती है,
भरती है आत्मविश्वास,
मन को सबल बनाती हैl
स्व शक्ति से परिचय करा,
आत्मविश्वास जगाती है,
व्यक्तित्व को बना हनुमान,
समंदर पार कराती है l
जिह्वा से निकल प्रेरणा,
सीधे हृदय उतर जाती है,
बदलें वो हाथ की लकीरें,
जीवन नया गढ़ जाती हैl
आदर्शों से पहचान करा,
प्रेरणा कर्म सँवारती है,
सोई आत्माओं को जगा,
वो इंकलाब भी लाती हैl
प्रकृति के पग-पग में प्रेरणा,
शूलों में फूल खिलाती है,
जीवन की रग-रग में दे सन्देश,
आगे बढ़ना सिखलाती है l
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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वर्ण पिरामिड
विषय:-जोगी,योगी,साधु ,ऋषि,मुनि,
तपस्वी,महात्मा।
(1)
थे
दिव्य
महात्मा
प्रामाणिक
चमत्कारिक
धर्मार्थ रक्षक
वेदों के संवाहक
(2)
है
कौन
निरोगी
तन भोगी
विचार रोगी
आत्मायें सो गई
मन कैसे हो जोगी?
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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26/11/2018
विषय:-"आत्मा"
विधा:-हाइकु
(1)
स्वार्थ की चली
बुद्धि हुई नीलाम
आत्मायें बिकी
(2)
सच्चा श्रृंगार
सत्कर्म है सौंदर्य
आत्मा निखार
(3)
तन वसन
ईश्वर उपहार
पहने आत्मा
(4)
तन आवास
कर्म-धर्म के साथ
आत्मा का वास
(5)
सूक्ष्म शरीर
चैतन्य ईश रूप
आत्मा नश्वर
(6)
तन के घर
नयनों के द्वार से
झाँकती आत्मा
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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24/11/2018
"पनघट"
सूने हैं पनघट,
सूनी है डगरिया,
सूखे जल साधन,
प्यासी है नगरिया l
घर चारदीवारी,
सिमटी है दुनिया,
बोतलों में पानी है,
उदास है चिरैया l
चहकती गोरियाँ
बजती पैंजनिया
पनघट पुकारता
वो गोधूलि ध्वनियाँ
राधा की अठखेली,
ग्वालिनों की बतिया,
ढूँढ़ती है अँखियन,
वो नटखट कन्हैया l
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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22/11/2018
विषय:-"संघर्ष "
विधा:-"हाइकु"
(1)
वीर तो डटा
"संघर्ष"का मैदान
कायर हटा
(2)
उम्र की राह
"संघर्ष" ने बताई
रोटी कीमत
(3)
दिव्यांग पड़ा
"संघर्ष" का साहस
पैरों पे खड़ा
(4)
सीख से मिला
पंक संग संघर्ष
कमल खिला
(5)
तैयारी खास
"संघर्ष" की परीक्षा
प्रतिभा पास
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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22/11/2018
विषय:-रोग/रुग्ण/बीमारी
विधा:-"वर्ण पिरामिड"
(1)
है
तंत्र
लाचारी
जेब मारी
दवाएँ हारी
जनता दुश्वारी
भ्रष्टाचार बीमारी
(2)
है
रुग्ण
विचार
पैसा प्यार
स्वार्थ व्यापार
कर्म दुराचार
एकल परिवार
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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21/11/2018
विषय:-फूल/पुष्प
हाइकु
(1)
सौभाग्य मिला
शहीद सीने बैठ
"पुष्प " इतरा
(2)
काँटो को सहा
क्षण जिन्दगी, "पुष्प "
खिल के जिया
(3)
देख के "फूल"
दौड़ आती आशाएँ
चिंताए भूल
(4)
पैरों से रूँदा
"पुष्प " ने सहा दर्द
खुशी में बिछा
(5)
अच्छाई दंड?
"पुष्प " को तोडा जाता
स्वभाव नर्म
(6)
हश्र को धता
जीवन चार पल
"पुष्प " तो हँसा
(7)
गहने खीजे
पुष्प प्रेम श्रंगार
देवता रीझे
(8)
मित्रता सम
पुष्प का आगमन
ख़ुशी या गम
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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19/11/2018
विषय:-"स्मृति"
लघु कविता
मन को देख अकेला,
स्मृतियाँ देती दस्तक,
कहे दिल दरवाजा खोल,
संग बैठें कुछ पल तक l
क्या खोया क्या पाया,
क्या बदला है अब तक,
स्मृतियों का केनवास,
कर्मों के दृश्य नर्तक l
स्मृतियों की कक्षा में,
कुछ सबक से देते रिश्ते,
जीवन को बदल गए,
कुछ बन के आये फ़रिश्ते l
नयनों के आकाश में,
स्मृति बादल घुमड़ते हैं,
मन हल्का हो जाता हैंl
दर्द के आँसू बरसते है,
स्मृति की गोद में बैठ,
बचपन के नज़ारे दिखते हैं,
उम्र ठहर जाती है क्षण भर,
ये सोच के, कि फिर हँसते है l
स्वरचित अभी
ऋतुराज दवे


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19/11/2018
विषय:-"स्मृति"
चंद हाइकु
(1)
नयन घर
मन के आँगन में
"स्मृतियाँ"नाचे
(2)
जीवन साँझ
"स्मृतियों" के बादल
मन आकाश
(3)
"स्मृति" संदूक
अनुभव खज़ाना
बाँट के पाना
(4)
ठिठका मन
"स्मृतियों" की बारिश
भीगे नयन
(5)
जीवन थाल
खट्टी मीठी "स्मृतियाँ"
उम्र के स्वाद
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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16/11/2018
विषय:-"तपन"
(1)
दर्द रिसते
मामूली सी "तपन"
पिघले रिश्ते
(2)
बाण अगन
रवि ने बरसाए
शोले "तपन"
(3)
जन्म यूँ दुखा
गरीबी की "तपन"
भविष्य सूखा
(4)
मन टूटते
क्रोध "तपन" हाथ
झुलसे रिश्ते
(5)
सिकती उम्र
समय की "तपन"
पिघला तन
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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16/11/2018
विषय:-"धुआँ"
"पिरामिड"
(1)
ये
धुआँ
हत्यारा
रोग देता
दम घोंटता
वायु निगलता
जहर बिखेरता
(2)
है
भट्टी
जीवन
धुआँ मन
तन ईंधन
हालात अगन
आहुति देता कर्म
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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विषय -" बचपन "👶
(1)
शैतानी खेल
बचपन बिंदास
घर था जेल
(2)
उम्र के घर
बचपन की यादें
हटाऐं जाले
(3)
कबाड प्रेम
बचपन की लारी
जुगाड़ ढ़ेर
(4)
ख्वाबों से बना
बचपन घरौंदा
उम्र ने रौंदा
(5)
निश्चिन्त भाव
बचपन सुस्ताता
ममता छाँव
(6)
स्वयं नवाब
बचपन फक्कड़
जेब में ख़्वाब
(7)
ख्वाबों से भरी
बचपन की कश्ती
उम्र ले डूबी
(8)
बन के घन
बचपन आकाश
तैरता मन
(9)
बचपन है
उम्र के ढेर तले
मुस्काती यादें
ऋतुराज दवे



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10/11/2018
चंद हाइकु
विषय:-"क्रोध"
(1)
विवेक भागा
अहंकार ने छुआ
"क्रोध" भी जागा
(2)
"क्रोध" की भट्टी
साँसे भरे उफान
खून जलता
(3)
"क्रोध" की आँच
रिश्ते ज्यों पॉपकॉर्न
अधैर्य नाच
(4)
शर्म का बोध
पश्चाताप सागर
डूबता "क्रोध"
(5)
"क्रोध" की ज्वाला
तन-मन झुलसा
धन भी राख
(6)
"क्रोध" का वेग
बह गया विवेक
दुःख ही शेष
(7)
"क्रोध" के घर
असहिष्णुता फेरा
रोगों का डेरा
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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03/11/2018
विषय:-"अहंकार"
अहंकार जब आता है, 
विवेक चला जाता है,
मन होता जाता लघु ,
दुर्भाव गुरु हो जाता है l
न कोई समझा पाता है,
रिश्ता हाथों से जाता है,
सँस्कार चुप रह जाते हैं,
ज्ञान धरा रह जाता है l
विनाश को देआमंत्रण,
स्वधर्म को ठुकराता है,
शंका, क्रोध के मित्रों संग,
सत्विचार दुत्कारता है l
आत्मप्रशंसा के घर में,
चाटुकारिता से घिर जाता है,
सद्गुणों पर चोट कर,
व्यक्तित्व चूर कर जाता हैl
अहंकार जब आता है.....
स्वरचित अभी
ऋतुराज दवे



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02/11/2018
विषय:-"अतीत"
अतीत गुरु जीवन की शाला, 
सबक याद दिलाता है,
सफलता की कहानियाँ सुना,
नाक़ामियाँ भी बताता हैl
गाँव की सैर करते करते,
मन क्षण भर ठहर जाता है,
नटखट बचपन याद कर,
अतीत खड़ा मुस्कुराता हैं l
अतीत का दर्द गाँठ बनकर,
जब दिल में उभर आता है,
शब्द ओझल हो जाते हैं,
वर्तमान चुप हो जाता हैl
जाता हुआ पल कानों में,
जीवन मंत्र ये दे जाता है,
जीना है तो आज में जी,
पल अतीत हो जाता है l
स्वरचित अभी
ऋतुराज दवे


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30/10/2018
विषय :-"ज्योति"
(1)
चिंगारी सोच
कलम भी मशाल
चेतना ज्योत
(2)
प्रेरणा ज्योति
विश्वास को जगाती
राह दिखाती
(3)
प्राणों की बाती
कर्म तेल से जली
जीवन ज्योति
(4)
शहर बने
दीपक ज्योति तले
अँधेरे घने
ऋतुराज दवे



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29/10/2018
विषय-" अध्यात्म"
विधा :-"हाइकु"
(1)
"अध्यात्म" राह
आत्मा से साक्षात्कार
मिटे विकार
(2)
ईश के पास
कर्मकांडों से दूर
"अध्यात्म" घर
(3)
जड़ें संस्कृति
"अध्यात्म" वृक्ष लदे
प्रेम के फल
(4)
सिक्के के रूप
विज्ञान व "अध्यात्म"
हैं अपरूप
(5)
जागे संसार
"अध्यात्म" का दर्शन
गीता का सार
(6)
अध्यात्म शक्ति
मन पर विजय
साधना भक्ति
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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25/10/2018(गुरूवार)
विषय :-"क्षण"
जीवन में क्षण ऐसे आते हैं,
कभी हँसाते, तो कभी रुलाते हैं,
क्षण की फितरत होती है ऐसी,
राजा को रंक, रंक को राजा बना जाते हैं l
क्षण में ही मंजर बदल जाते हैं,
दिलों को लाते हैं पास,कभी दूर ले जाते हैं,
मन की तिज़ोरी में सहेजे हुए क्षण,
अविस्मरणीय यादों में बदल जाते हैं l
क्षण में विचार बदल जाते हैं,
नियत क्या इंसान बदल जाते हैं,
अपने कर्मों पे पर्दा डाल कर,
क्षण को दोष दिए जाते है l
क्षण अपनी कीमत बताते हैं,
ठोकरें देकर रास्ता भी सुझाते हैं,
एक बार छूटे जो बेफिक्र हाथों से,
बेवफा क्षण फिर लौट के न आते हैं l
स्वरचित एवँ मौलिक
ऋतुराज दवे



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23/10/2018
विषय-"रिश्ते"
विधा:-"हाइकु"
(1)
रिश्तों की नदी
भावों के अकाल में
शुष्क विलीन
(2)
किसी को तोडा
भावों की वेल्डिंग ने
रिश्ता भी जोड़ा
(3)
क्रोध की आँच
रिश्ते ज्यों पॉपकॉर्न
अधैर्य नाच
(4)
मेहँदी रिश्ते
विश्वास के हाथों से
प्रेम रचते
(5)
स्वार्थ दुकान
रिश्ते व्यापार बने
भाव हैरान
ऋतुराज दवे


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14/10/2018
"कुर्सी"
पद और कुर्सी बड़ी महान होती हैं,
चमचों की गीता और पुराण होती है,
पूजी जाती हैं नौकरशाही में,
कलियुग में ये भी भगवान होतीं हैं।
कुछ कुर्सियों पे मोह का गोंद लगा होता है,
एक बार बैठे तो उठना कठिन होता है,
कहीं कुर्सी रेस का समाँ होता है,
मौका ताड़ते ही कब्जा लेता है l
कुछ कुर्सियों पर पहिए होते हैं,
जिन पर बैठ नीयत फिसलती है,
कुछ कुर्सियों का वजन इतना होता है,
कि आदर्शों को ढ़ोना मुश्किल होता है l
कुछ कुर्सियां बड़ी गरीब होती है,
रिश्वत के पैसों से अमीर होती है,
तो कुछ कुर्सियां इतनी खुद्दार होती है,
कि बेईमानी की आँधी में टिकी रहती है l
कुर्सियों की महिमा बड़ी न्यारी है,
कुछ को इस पर बैठते ही आती खुमारी है,
पद और शक्ति का प्रतीक है कुर्सी,
किसी के लिए दौड़ या मौज है कुर्सी,
तो कहीं सेवा और समर्पण के
पायों पे टिकी है कुर्सी l
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चं
द हाइकु
विषय -"कुर्सी"
(1)
पद की होड़
राजनीति का खेल
"कुर्सी"की रेस
(2)
दृढ़ गरिमा
रिश्वत खिसियाई
बिकी न "कुर्सी"
(3)
"कुर्सी" का नशा
लड़खड़ाई जीभ
ज़मीर गिरा
(4)
पसरे भ्रष्ट
लोकतंत्र की "कुर्सी"
लगी दीमक
(5)
कुर्सी" का धर्म
सेवा व समर्पण
ईश है जन
ऋतुराज दवे



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12/10/2018
कविता :-ऐसी मन "अभिलाषा"....
मानवता भी धर्म हो 
समझें प्रेम की भाषा
आतंक की परछाई न हो
रहे दूर निराशा
ऐसी मन "अभिलाषा"....
समता का आँगन हो
आँखों में हो आशा
सर्व धर्म मिलके रहें
न हो खून, तमाशा
ऐसी मन "अभिलाषा"...
हाथों को बस काम मिले
बुजुर्गों को सम्मान मिले
स्त्री गरिमा हो सुरक्षित
हर बच्चे को ज्ञान मिले
ऐसी मन "अभिलाषा"...
मुट्ठी भर आकाश मिले
गरीब घर भी दिया जले
मिलकर आँसू पोंछे सब
निर्बल को मिले दिलासा
ऐसी मन "अभिलाषा"...
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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10/10/2018
चंद हाइकु
(1)
ऐसा भी जोग
गृहलक्ष्मी उपेक्षा
दुर्गे को भोग
(2)
बेटे का व्रत
नवरात्रि की पूजा
माँ वृद्धाश्रम
(3)
बेटा ही चाह
अष्टमी पे देखते
कन्या की राह
(4)
भाव अम्बार
भक्ति गीतों से सजा
माँ दरबार
(5)
धर्म की हत्या
देवी को पूजे देश
फेंकता कन्या
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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वर्ण- पिरामिड
विषय -"माँ"
(1)
माँ
आस 
विश्वास
जूझे पूरी
रिश्तों की धुरी
ममता गागर
करुणा का सागर
(2)
माँ
श्रद्धा
संबल
कर्म भक्ति
कर्तव्य मूर्ति
घरौंदा बुनती
परिवार पूजती
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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09/10/2018
चंद हाइकु, विषय -"गरीब"
(1)
आँसू प्रसाद 
"गरीब" की पूजा में
भावों का भोग
(2)
अम्बर ओढ़ा
"गरीब" की रात का
धरा बिछौना
(3)
"गरीब" घर
सपनों को सुला के
जागे संतोष
(4)
धनी दुनियां
"गरीब" को चिढ़ाती
झूठी खुशियाँ
(5)
फूटा नसीब
असमानता चक्की
पिसा "गरीब"
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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06/10/2018
चंद हाइकु, विषय -"ऋतु"
(1)
उम्र की "ऋतु"
बुढ़ापा पतझड़
टूटते स्वर
(2)
सर्द या गर्म
"ऋतुओं" की ओट में
छुपा दर्शन
(3)
लाचार छत
गरीब की झोपड़ी
एक ही "ऋतु"
(4)
चुनावी "ऋतु"
वादों की बरसात
मेंढक राग
(5)
खाद्य संयम
"ऋतुओं" की प्रकृति
कड़े नियम
(6)
पीत में धरा
ऋतुराज के कर
मद है भरा
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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वर्ण पिरामिड
विषय- सहायता ,संबल
(1)
है
सेना
संबल
हर पल
आपदा हल
देश आत्मबल
जल, नभ या थल
(1)
है
पुण्य
संतोष
धार्मिकता
संस्कारिता
सच्ची मानवता
पात्र को "सहायता"
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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05/10/2018
विषय :-"सफर"
विधा :-हाइकु
(1)
इच्छाएँ ज्यादा
जीवन का "सफर"
वजन लादा
(2)
कर्मों का थैला
मौत के "सफर" में
यात्री अकेला
(3)
खानाबदोश
ज़िंदगी का "सफर"
पल का डेरा
(4)
ठहरे मन
प्रेम के "सफर" में
मंज़िल गुम
(5)
शब्दों को छोड़
मौन "सफर" करे
अंतस ओर
(6)
ईंजन भाव
कलम का "सफर"
शब्द सवार
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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02/10/2018
विषय :-"गाँधी"
विधा :-हाइकु
(1)
सत्य को मारा
गांधी को तिलांजलि
झूठ सहारा
(2)
गाँधी जी कौन?
सिद्धांत चढ़े सूली
बंदर मौन
(3)
गाँधी का ह्वास
स्वच्छता उपहास
मदिरा पास
(4)
गाँधी जीवट
अहिंसा के पुजारी
सत्य साधक
(5)
ज़मीर बिके
गांधी को चढ़ा माला
रिश्वत गिने
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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1/10/2018
विषय :-रंग
विधा -हाइकु
(1)
यादें ही संग
बेटी के हाथ पीले
घर बेरंग
(2)
हैरान मन !
श्वेत श्याम "नयन"
रंगीन स्वप्न
(3)
रंगीला फाग
नाचती तितलियाँ
कूकता बाग
(3)
वादों में भंग
राजनीति की त्वचा
टिके न रंग
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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छंदमुक्त कविता :-वो लम्हें याद आते हैं...
वो लम्हें याद आते हैं 
कभी मन में गुनगुनाते हैं
जीत की ख़ुशी हार के आँसू
पलकें भिगो जाते हैं
वो लम्हें याद आते हैं....
पहला प्यार,वो इकरार
बेसब्र था, वो इंतज़ार
अब,दिल में मुस्कुराते हैं
वो लम्हें याद आते हैं.....
कहानी, वो शैतानी
बेफिक्र बचपन की
मासूम सी नादानी
गुदगुदी कर जाते हैं
वो लम्हें याद आते हैं....
वक़्त के केनवास पर
रूठने मनाने के
वो दौर उभर आते हैं
वो लम्हें याद आते हैं....
किताबों के सायों में
ख्वाबों की राहों में
वो जोश फिर बुलाते हैं
वो लम्हें याद आते हैं....
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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27/9/2018
कविता शीर्षक
"विजय अभी बाकी है" .. .
जा पहुंचे हैं आज चाँद तक
अब मंगल की तैयारी है
धरा पे हारे मानवता
विजय अभी बाकी है ..
देश की खायें परदेस की गाएं
जयचंद से भीतरघाती है
आज़ादी अधूरी है अभी
शहीदों का कर्ज़ चुकाना बाकी है
विजय अभी बाकी है....
जहाँ पशुओं की भी होती पूजा
जीवन दर्शन राम और सीता
भूले संस्कृति और गौरव
एकता मंत्र अधूरा बाकी है
विजय अभी बाकी है....
एकजुट हो इनके विरूद्ध
कुरीति हो या भ्रष्टाचार
उत्पीड़न या व्यभिचार
जंग जीतना बाकी है
विजय अभी बाकी है...
सद्भाव की ज्योत जलाकर
अगड़ा-पिछड़ा भेद बुझाकर
देशभक्ति कहलाये धर्म
राष्ट्र को देव बनाना बाकी है
विजय अभी बाकी है...
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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विषय-क्रूर
(1)
है 
क्रूर
नियति
चाँद रोटी
पेट पे पट्टी
खुशियाँ हैं दूर
गरीब मजबूर
(2)
है
क्षोभ
असीम
क्रूर गली
कुचली कली
गरिमाएँ गिरी
इंसानियत मरी
स्वरचित
ऋतुराज दवे.


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25/9/2018
विषय "दीप/दीपक "
बुराई का अंधेरा डसता रहा,
दीप अच्छाई बन चमकता रहा,
कर्म का तेल, एकता की बाती,
रोशन जहाँ को करता रहा l
स्वयं में साहस भरता रहा,
संघर्ष के रास्ते हँसता रहा,
दृढ़ इरादों की ज्वाला बनकर,
विपरीत हवाओं से लड़ता रहा l
थपेड़े वक़्त के सहता रहा,
कफ़न बाँध के वो चलता रहा,
फ़र्ज़ निभा अंतिम साँस तक,
जीवन को प्रेरणा देता रहाl
बन धैर्य की लौ मुस्काता रहा
मन की ऊर्जा को बाँटता रहा
कर्तव्य से बढ़कर सुख कहाँ?
जलता "दीपक" ये कहता रहा l
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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24/9/2018
खामोशी"
झूठ के शिकंजे में कहीं 
जब आत्मा घबराती है
शब्द हो जाते अर्थहीन
"खामोशी" उतर आती है
छुपाती है आँसू कहीं
जब दर्द में भी मुस्काती है
कड़वे घूँट पीकर भी
"खामोशी" रिश्ते बचाती हैं
ईच्छा या कामनाएं कहीं
जब बाहर ही रह जाती है
निर्विकार द्वार खुलते ही
"खामोशी" भीतर आ जाती है
हैवानियत के हाथों कहीं
जब अस्मिता लुट जाती है
गिराई जाती है गरिमा
"खामोशी" खल जाती है
देश की गरिमा कहीं
जब दाँव पे लग जाती है
देशभक्त जिन्दा हो उठता है
"खामोशी" मर जाती है
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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विधा -"वर्ण पिरामिड"
शीर्षक--निषेध, मनाही,वर्जन, अस्वीकार।
(1)
हो
शिक्षा
निषेध
अपमान
देश पे वार
राजनीति काम
अभिव्यक्ति के नाम
(2)
लें
प्रण
वर्जन
बहिष्कार
बाल विवाह
कुरीति का जाप
समाज अभिशाप
(3)
है
नशा
विनाश
क्षण मज़ा
जीवन सजा
डूबे परिवार
निषेध से उद्धार
ऋतुराज दवे

(4)
है
बेड़ी
विचार
तीखे वार
रूढ़ आचार
स्त्री मन लाचार
निषेध की दीवार l
(5)
है
तन
सदन
द्वार मन
दृढ़ चिंतन
सत्कर्म प्रवेश
दुर्गुणों का निषेध
ऋतुराज दवे


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"ममता का सौंदर्य"
प्यार और विश्वास साथ,
माँ -लाल जुड़े जज्बात,
सागर सी गहराई माँ की,
माँ का सूरज चमके हाथ l
आशा की आँखों में झाँके,
ममता का सागर भी ताके,
बहता वात्सल्य का झरना,
स्नेह की बूँदों को ला के l
आनंद छू रहा आसमाँ,
माँ के हाथों खिलता रूप,
माँ की ममता बनती छाँव,
जीवन एक तपती धूप l
देख वात्सल्य का झरना,
सूरज ,सागर ठिठक गए,
ममता के सौंदर्य के आगे,
सारे रूप बिखर गए l
ऋतुराज दवे


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(1)
रंगीली "हिन्दी" 
भारत माँ के भाल
गौरव बिंदी
(2)
सम्पदा शब्द
"हिन्दी" के सागर में
विधाएँ रत्न
(3)
किससे आस?
अपने ही घर में
"हिन्दी" निराश
(4)
स्वीकार भाव
"हिन्दी"हिय विशाल
माता समान
(5)
छूटता देश
"हिन्दी" के अवशेष
पन्नों में कैद


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विधा -हाइकु
विषय -"साँस"
(1)
योग विज्ञान 
"साँसों" की साधना से
सिंचते प्राण
(2)
रोता विकास
प्रदूषण के हाथों
घुटती "साँस"
(3)
तन के घर
"साँस" मिट्टी का घड़ा
आखिर फूटा
(4)
क्षणिक साथ
"साँसों" की लहर पे
प्राण सवार
(5)
क्रोध का वेग
टूटा विवेक बाँध
उफनी "साँस"
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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11/09/2018
विषय -"प्रतिभा"
विधा -"हाइकु"
(1)
स्वार्थ की तुला
"प्रतिभा"की कीमत
अगूंठा मिला
(2)
रोती डिग्रियाँ
राजनीति की सूली
टँगी "प्रतिभा"
(3)
तंत्र की खामी
"प्रतिभा"पलायन
देश की हानि
(4)
छुपे न रूप
अभावों बीच खिली
"प्रतिभा" धूप
(5)
"प्रतिभा" टूटी
रोजगार ढूँढ़ते
चप्पल घिसी
स्वरचित
ऋतुराज दवे


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3/9/201 8 
चंद हाइकु
(1)
गली में शोर
गोकुल के काँधे पे
माखन चोर
(2)
कृष्ण का जादू
बंसी पर गोकुल
दुष्टों पे काबू
(3)
गोकुल ग्राम
गाए गोपियाँ ग्वाल
गीत गोपाल
(4)
गीता का दान
तर्जनी घूमे सृष्टि
कृष्ण महान
(5)
जादू मोहन
बँसी का सम्मोहन
गायब मन
(6)
कृष्ण विराट
परिभाषा से परे
समाई सृष्टि
ऋतुराज दवे



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तिथि..02/09/2018
विषय-किसान
चंद हाइकु 
(1)
कृषक पूजा
कर्मभूमि अर्पित
स्वेद के पुष्प
(2)
रजत वर्षा
भू से निपजा स्वर्ण
कृषक हर्षा
(3)
ठिठुरी रात
खेत माँ का आँचल
गोद किसान
(4)
कर्ज का मर्ज
किसान आत्महत्या
श्रम को शर्म
(5)
प्रभु आसरे
स्वप्न बोए किसान
आशा के खेत
(6)
खेत माँ शीश
किसान पहनाये
हरी चुनर
(7)
खेत मन्दिर
किसान पूजे कर्म
श्रम ही धर्म
(8)
सीमित चाह
किसान स्वप्न जोहे
बादल राह
(9)
मिला ना आना
किसान हाथ आँसू
सस्ता पसीना
ऋतुराज दवे



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30/08/2018
चंद हाइकु, विषय -"इंसानियत"
(1)
कुचली कली 
इंसानियत मरी
आत्माएँ गली
(2)
नगरी स्वार्थ
इंसानियत गुम
घूमता अहं
(3)
सेवा ही धर्म
इंसानियत जिन्दा
अमर कर्म
(4)
प्रश्न भी मौन
इंसानियत धर्म
पुजारी कौन?
(5)
गहरा तम
इंसानियत की लौ
जगाती मन
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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28/08/2018
चंद हाइकु
विषय -"चाँद "
(1)
तारे चिंदिया
रजनी का श्रृंगार
चाँद बिंदिया
(2)
पूनो के हाथ
बिखरी कलानिधि
रजत रश्मि
(3)
करवा चौथ
सुहागन श्रृंगार
चाँद गुलाब
(4)
ताके आकाश
गरीब की खुशियाँ
ईद का चाँद
(5)
चाँद यूँ हर्षा
पूनम के हाथों से
रजत वर्षा
(6)
सुख व दुःख
जीवन समझाएँ
चन्द्र कलाएँ
ऋतुराज दवे



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विषय -"गीत"
(1)
प्रेम का गीत
धड़कन संगीत 
झूमते दिल
(2)
धोखा जपते
शान्ति का गीत गाते
छुरा भोंकते
(3)
जीवन मंच
सुख दुःख ने गाये
अपने गीत
(4)
पूत शहीद
रूठे शान्ति के स्वर
बिखरे गीत
(5)
भावों के मोती
शब्दों ने पहनाई
गीतों की माला
ऋतुराज दवे



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24/08/2018
लघु कविता, विषय -"गीत"
ऊँच नीच का भाव भुला दे
सोई मानवता को जगा दे
अहसास बनाना बाकी है
हाँ गीत अधूरा बाकी है...
समरसता की ताल ठोक दे
सद्भावों के सुरों को स्वर दे
वो प्रेम साधना बाकी है
हाँ गीत अधूरा बाकी है ...
राष्ट्रभक्ति की सरगम पर
बाहर के हो या भीतर घर
नाच नचाना बाकी है
हाँ गीत अधूरा बाकी है...
स्त्री अस्मिता की खातिर
सब धुनें हो जाएं शामिल
कानून थिरकना बाकी है
हाँ गीत अधूरा बाकी है.....
ऋतुराज दवे


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15अगस्त 2018
चंद हाइकु
(1)
झूठा आकाश 
आज़ादी है अधूरी
कैद विचार
(2)
ये स्वच्छन्दता
आजादी को चिढ़ाए
देश लजाए
(3)
अबला गौण
आजादी के शोर में
"भारत"मौन
(4)
भ्रष्टों की चली
आजादी को पाकर
मुक्ति ना मिली
(5)
आजादी अर्थ
स्वार्थ ने तोड़कर
किया अनर्थ
(6)
आपसी फूट
संकीर्णता की राह
आजादी दूर



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10/08/2018
चंद हाइकु, विषय -"धैर्य/संतोष"
(1)
समय गुरु 
जीवन की कक्षा में
"धैर्य" परीक्षा
(2)
मन की गाडी
धैर्य करे सवारी
मंज़िल पाई
(3)
अमूल्य धन
मन के खजाने में
संतोष रत्न
(4)
संतोषी सुखी
मन के दो हैं भाई
लालची दुःखी
(5)
गरीब घर
सपनों को सुला के
जागे संतोष
ऋतुराज दवे


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27/07/2018
(1)
जीवन लघु
अनुभव की कक्षा
समय गुरु
(2)
अहं हटाये
क्षमता परिचय
गुरु कराये
(3)
श्रद्धा भावना
अहं का विसर्जन
गुरु दक्षिणा
ऋतुराज दवे



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चंद हाइकु "ख़ुशी"पर
25/07/2018
(1)
दर्द की गली 
मुस्कान जब बांटी
झोली में "ख़ुशी"
(2)
सुकून बसा
माँ के आँचल तले
"ख़ुशी" का जहाँ
(3)
"ख़ुशी" समेट
बच्चों में बाँट देते
माता व पिता
(4)
"ख़ुशी"का स्वाद
नमकीन से आँसू
मीठे लगते
(5)
ख़ुशी की टोपी
धरी रही थी सर
ढूँढ़ते जग
(6)
धनी दुनियां
गरीब को चिढ़ाती
झूठी खुशियाँ
ऋतुराज दवे



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चंद हाइकु
🇮🇳"तिरँगा"🇮🇳
(1)
तिरंगा शान
प्रतीक स्वाभिमान
गौरव गान
(2)
गर्व समाया
तिरंगे में लिपटी
देश की गाथा
(3)
तिरंगे तले
सब धर्म सुस्ताते
ममता छाँव
(4)
खुशनसीब
तिरंगे का कफन
मृत्यु सफल
(5)
भारत माता
हर धर्म गोद में
सींचे ममता
(6)
धागे एकता
देशप्रेम बुनाई
खिला तिरंगा
(7)
प्यार की जुबां
भारत में इंडिया
दोनों ही जवां
(8)
प्राण है गंगा
भारत सतरँगा
दिल तिरँगा



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लहर लहर तिरंगा फहराता
भारत की गौरव गाथा गाता
ऊँच नीच का भेद भुलाकर
राष्ट्रीयता का भाव जगाता
लहर लहर तिरंगा फहराता ...
शहीदों की याद दिलाता
रक्त बूँद का मोल बताता
स्वाभिमान है तिरंगा
आत्मसम्मान को चढ़ाता
लहर लहर तिरंगा फहराता ...
केसरिया रंग ये चेताता
भारत का वीरता से है नाता
गर दुश्मन देखे आँख उठाकर
क्षण में भस्म वो हो जाता
लहर लहर तिरंगा फहराता ...
श्वेत शांति का पाठ पढ़ाता
सत्य , अहिंसा को बतलाता
महापुरुषों के संदेशो से
नैतिकता का अर्थ समझाता
लहर लहर तिरंगा फहराता ...
हरा रंग समृद्धि दर्शाता
भारत सम्पन्न है जतलाता
जा पहुँचा आज चांद पर
मंगल तक भी यान है जाता
लहर लहर तिरंगा फहराता ...
नीला चक्र गति बताता
प्रगति रथ आगे बढ़ाता
चौबीस तीलियों के संग
सबको साझेदार बनाता
लहर लहर तिरंगा फहराता ...
स्वरचित
ऋतुराज दवे



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19/07/2018
चंद हाइकु -"सँध्या/साँझ"पर
(1)
जीवन "सँध्या" 
यादों के क्षितिज पे
डूबता तन
(2)
मुस्काये चाँद
वसुंधरा की गोद
खेलती "साँझ"
(3)
जगते दीप
"साँझ" की देहरी पे
सो गया दिन
(4)
"साँझ" की छटा
निशा के आग़ोश में
रवि सिमटा
(5)
वक़्त प्रहरी
निशा के आने तक
"साँझ" ठहरी
ऋतुराज दवे



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18/07/2018
चंद हाइकु -"सावन "पर
(1)
"सावन" खले 
विरह की आग में
बूंदों से जले
(2)
मेघ सुनाते
"सावन" का सन्देश
मोर नाचते
(3)
भीगा "सावन"
हरिता में सरिता
मनभावन
(4)
"सावन"झड़ी
जैसे मेघों को पड़ी
डाँट या छड़ी
(5)
खेतों में मेले
"सावन" का उत्सव
पानी के रेले
(6)
सुर "सावन"
बूँदों की ताल पर
थिरका मन
(7)
दर्द छुपाये
सावन के आते ही
आँसू मिलाये
ऋतुराज दवे


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17/07/2018
चंद हाइकु -"पलकों "पर
(1)
यादों की वर्षा 
भावों के मोती झरे
भीगी पलकें
(2)
झुकी पलकें
बेटी का जिस्म तार
शर्म समाज
(3)
नैन ख़ुमार
पलकों के पर्दे से
झाँकता प्यार
(4)
माता व पिता
पलकों पे बैठाते
खुशियाँ लाते
(5)
छेड़ते नैन
शरारती पलकें
छीनते चैन
(6)
भीगी पलकें
खूब बरसी यादें
भाव छलके
(7)
बोले नयन
पलक चिलमन
झाँकता मन
ऋतुराज दवे


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16/07/2018
चंद हाइकु -हमारी शान "सेना"पर 🇮🇳
(1)
धरा बिछौना
देशभक्ति चादर
ओढ़ती सेना
(2)
सुख न चैना
सरहद पे सेना
जगती रैना
(3)
दौड़े जुनून
देशभक्ति का लहू
सेना के रग
(4)
घड़ी आपदा
सेना की सहायता
दूत देवता
(5)
बाज़ है सेना
देशद्रोही का काल
छूटे पसीना
🇮🇳जय हिंद 🇮🇳
ऋतुराज दवे


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11/07/2018
आज "विश्व जनसंख्या दिवस"पर प्रस्तुति
बढ़ती हुई आबादी 
बोझ बन रही है
इंसान बन रहे पशु
इंसानियत मर रही है
भीड़ के वज़ूद में
इंसान का कोई मूल्य है?
मानव और पशु
दोनों एक से तुल्य है
हाँ जीते है लोग यहाँ
और जीने का कोई मूल्य नहीं
एक के सर पे छत नहीं
एक भूखा पेट मरा कहीं
महँगा हुआ है सोना
आदमी सस्ता हुआ है
निहित स्वार्थों की खातिर
प्रकृति के प्रति
लापरवाह हुआ है
आधुनिकता के नाम पर
स्वयं भी बिक गया है
दाँव पे लगा प्रकृति को
स्वयं जुआरी बना गया है
जैसी बो रहे फसल
वैसी ही काट रहें है
आज हम इंसान नहीं
पशुओं की भीड़ बना रहे हैं
जो मूक है
निःस्तब्ध है
लाचार संघर्षबद्ध है
और...
बंद एक घेरे में हम
अपनी मान्यताओं के जाल को
बुने जा रहें हैं
महत्वाकांक्षा की सीढ़ियां चढ़ते हुए
धीरे -धीरे विनाश की और
बढे जा रहें हैं l
ऋतुराज दवे



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06/07/2018
चंद हाइकु
विषय "कलम"
(1)
खिले "कलम"
इंद्रधनुषी रंग
भाव गगन
(2)
आँसू की स्याही
"कलम"का आक्रोश
उकेरे दर्द
(3)
सत्य पे खड़ा
"कलम" का सिपाही
झूठ से लड़ा
(4)
दी पहचान
"कलम" ने दिलाया
भावों को मान
(5)
चेतना जगी
"कलम" की फूंक से
कुर्सी भी हिली
(6)
सत्य का अस्त्र
"कलम" की लड़ाई
असत्य पस्त
(7)
साहित्यकार
"कलम" का पुजारी
दबी चिंगारी
ऋतुराज दवे



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विषय -"आशा"
(1)
बिसरा तम 
"आशाओं" का सवेरा
जगाता कर्म
(2)
चींटी की "आशा"
ढ़ोती मन विश्वास
जीता पहाड़
(3)
फेंकी हताशा
"आशा" की सीढ़ी चढ़
मंजिल पाया
(4)
"आशा" सम्बल
अपंगता भी हारी
विजयी मन
(5)
साहस भरे
"आशाओं" के दीपक
आँधी से लड़े
(6)
माँ सम "आशा"
तन फूँकती प्राण
मन दिलासा
(7)
स्वप्नों के खेत
कृषक नैन ताके
"आशा" के मेघ
ऋतुराज दवे


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17/062018
चंद हाइकु -पिता को समर्पित
(1)
माँ गर धुरी
"पिता" परिधी पर
चलाता घर
(2)
घिसता रोज
"पिता" जादू चिराग.
ख़ुशी दे बाँट
(3)
दौड़ता रोज
"पिता" के काँधे पर
घर की सोच
(4)
अर्पित जान
"पिता" की खामोशी भी
घर की शान
(5)
स्वप्न सवार
परिवार की नैया
"पिता" खिवैया
(6)
सहिष्णु बड़ा
बिटिया की विदाई
फटता पिता
(7)
जीवन धूप
पिता का समर्पण
छाते का रूप
ऋतुराज दवे



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15/06/2018
चंद हाइकु -कुरीतियों पर
(1)
बाल विवाह 
बचपन का क़त्ल
मूढों के हाथ
(2)
मन मारती
जिंदगी भर ढ़ोती
सफ़ेद साडी
(3)
शादी की थाली
छप्पन पकवान
पेट हैरान
(4)
रिश्तों की होली
लालच का दानव
दहेज़ बलि
(5)
ऋण में दबा
मृत्यु भोज वजन
गरीब मरा
ऋतुराज दवे


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08/06/2018
विषय -"श्रृंगार"
(1)
प्रकृति करे
धरती का श्रृंगार
रूप हजार
(2)
तारों की चिंदी
नभ के श्रृंगार में
चाँद की बिन्दी
(3)
मन भरमा
नारी के श्रृंगार से
फूल शरमा
(4)
तन का घडा
श्रृंगार के रस से
यौवन भरा
(5)
रुप सत्कर्म
आत्मा के श्रृंगार से
सच्चा निखार
(6)
रवि श्रृंगार
साँझ की मांग भरे
सिन्दूरी लाल
ऋतुराज दवे



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5/6/2018
आज विश्व पर्यावरण दिवस पर
चंद हाइकु
(1)
व्यापार कैसा?
"पर्यावरण" बेचा
काल खरीदा
(2)
सस्ता प्रयोग
स्वच्छ"पर्यावरण"
भागते रोग
(3)
कृतघ्न इंसा
"पर्यावरण" झोली
कचरा दान
(4)
जीवन मरा
"पर्यावरण" दाँव
लुटती धरा
(5)
कालिख , धुआँ
"पर्यावरण" घर
जीवन रोया
(6)
स्वार्थ चंगुल
"पर्यावरण"आँसू
धरा विकल
ऋतुराज दवे



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31/5/2018
चंद हाइकु गर्मी पर
1)
जल का चोर

रवि धरा की ओर
कुँए पे शोर
2)
रवि का हाथ
लू मार रही फूँक
धरा अलाव
3)
रवि की गश्त
दुबकी दुपहरी
गरमी सख्त
4)
रवि ने भेजी
गरमी के हाथों से
आम की पेटी
5)
रवि के तीर
घायल होते प्राण
बैचेन नीर
6)
सूखे हलक
गर्मी करती मार्च
सूनी सड़क
7)
रवि का चूल्हा
धरती बनी तवा
सिकती हवा
8)
धरा पे शोले

रवि का तोपखाना
आग के गोले
9)
झुलसी रात
सूरज की भट्टी में
पिघला दिन
10)
गर्मी का जोर
कूलर पीते पानी
करते शोर
ऋतुराज दवे


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विषय -अनमोल
28/5/2018
(1)
बेशकीमती
समय "अनमोल"
क्षण का मोल
(2)
प्रेम का रिश्ता
"अनमोल" खजाना
असली धन
(3)
उम्र की शाम
"अनमोल" स्मृतियाँ
आँखों में नाच
(4)
धरोहर है
संस्कृति "अनमोल"
बचाये कौन?
(5)
रत्न समान
"अनमोल" व्यक्तित्व
गुणों की खान
ऋतुराज दवे


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27/05/201/8/
भगवान "श्री राम"
(1)
"राम" का तप
सत्य का तीर चला
रावण गर्त
(2)
"राम"का तीर
दर्प चकनाचूर
मिट्टी गुरुर
(3)
पकडे हाथ
मर्यादा चली साथ
"राम" की राह
(4)
"राम" का प्रेम
शबरी के बेर खा
असीम तृप्त
(5)
हिय को छूती
तुलसी की कलम
"राम" की कथा
(6)
"राम" सन्देश
हारता अहंकार
सत्य के आगे
(7)
झूठी निराशा
रिश्तों की परिभाषा
"राम" है आशा
(8)
मन भी सच्चा
"राम" की जिह्वा पर
वचन पक्का
(9)
कर्तव्य पथ
मित्रता को दे मान
चलते "राम"
(10)
वन में राम
वचन को सम्मान
बडों का मान
(11)
राम महिमा
उतार बोझ सारे
पत्थर तैरे
(12)
छाँव या धूप
सीता - राम की जोड़ी
प्रेम का रूप
ऋतुराज दवे



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25/5/2018
(1)
थिरके तन
सात सुरों का जादू
गायब मन
(2)
आत्मिक धुन
प्रकृति की राह में
मिलते सुर
(3)
मेघ मल्हार
सावन के सुर पे
बूँदों की ताल
(4)
लय का स्पर्श
सुरों की बारिश में
भीजता मन
(5)
भोर के घर
थिरकती किरणें
कोयल स्वर
(6)
बुझते स्वर
साँझ की सरगम
धुन मद्धम
ऋतुराज दवे



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विषय -चेहरा
(1)
ठगाता भोला 
अभिनय नगरी
लूटे "चेहरा"
(2)
दिखा के ख़ुशी
"चेहरे" की ओट में
छिपता दर्द
(3)
गिरे नक़ाब
उतरते "चेहरे"
सच को देख
(4)
"चेहरा" भ्रम
मुखौटे की दुनिया
सच्चा है मन
(5)
कर्ज़ गहरा
उधार का पिया घी
छिपे "चेहरा"
ऋतुराज दवे


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21/5/2018
चंद हाइकु (5/7/5)
विषय -"परिवार"
(1)
ख़ुशी में खड़ा 
"परिवार" सम्बल
दुःख में दौड़ा
(2)
समेटे दूरी
माँ "परिवार" केंद्र
जूझती पूरी
(3)
संस्कार मूल
"परिवार" बगिया
प्रेम है फूल
(4)
रिश्तों की पूजा
"परिवार" से बने
घर मंदिर
(5)
देता सम्बल
"परिवार" सहारा
टिकता घर
ऋतुराज दवे


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17/5/2018
चंद हाइकु
विषय -रुप
(1)
स्वार्थ के संग
समय ने बिगाड़ा 
धरा का रुप
(2)
जीवन धूप
माता पिता की दुआ
छाते का रुप
(3)
रुप हजार
शक्ति, भक्ति या प्रेम
नारी अपार
(4)
रुप निखारे
सूरज, चाँद, तारे
धरा सँवारे
(5)
मन ना पूछ
दिखावे की दुनियाँ
बिकता रुप




















































































































































































































































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