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ब्लॉग संख्या :-403
*आगाज़/प्रारम्भ/शुरूआत*
आगाज़ कर न डर अंजाम से खुद को बताना है
वक्त अनमोल है कश्मकश में नही बिताना है ।।
कौन है जिसने चोट नही खायी कभी यहाँ
कुछ खोया न यहाँ खोकर ही कुछ पाना है ।।
जिन्दगी का उसूल है यह जो हमें समझना है
अपनाना है और दुनिया को भी समझाना है ।।
राह में चल पड़ते हैं रहबर भी हमें मिलते हैं
और रहनुमा भी दोस्त दुश्मन हमें बनाना है ।।
हर आगाज़ का अंजाम भी होता है ''शिवम"
आगाज़ में हमें सूझबूझ कभी नही भुलाना है ।।
आगाज़ अच्छा है तो अंजाम भी अच्छा होता
मगर मेहनत लगन से हमें जी नही चुराना है ।।
कहीं कोर कसर रहती खुद अहसास होता
मंजिल के वास्ते दिल दिमाग भी लगाना है ।।
बुलंदियों पर पहुँचे वो जो कभी डरे नही हैं
राहों में आँधी तूफान तो आना ही आना है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 31/05/2019
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कल जो मिले होते तो आज की बात होती।
खुले दिल मिले होते तो राज़ की बात होती।
कोशिश करके दर्दे-दिल तराना बना दिया है।
तुम जो साथ गुनगुनाते तो साज़ की बात होती।
हुस्न को हर दौर में माना कि गरूर होता है।
मगर तारीफ करे और तो नाज़ की बात होती।
समझते काश तुम कभी खामोशी की कीमत।
तो हरेक महफिल में तेरी आवाज़ की बात होती।
यकीन से अन्जाम बन जाता हसीं खुद ब खुद।
हौसलो से गर तुमने की आगाज़ की बात होती।
विपिन सोहल
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आगाज़/प्रारंभ/शुरुआत
💐💐💐💐💐💐💐
31/5/2019
नमन भावों के मोती।
सुप्रभात गुरुजनों, मित्रों।
💐💐🙏🙏💐💐
मन में आता है कि,
शुरुआत कैसे करें।
चाहे किसी काम की,
या किसी से परिचय की।
सोचते हैं हम,
कि आरंभ कैसे करें।
छोड़ दो चिन्ता,फिकर,
या क्या होगा कल।
किसी बात की चिंता किए बिना,
काम का आगाज करो।
जो होगा, अच्छा हीं होगा,
सोचते रहो।
कर्मपथ पर बेधड़क,
आगे बढ़ते रहो।
कर्म करोगे तो सफलता मिलेगी ही,
यही सोचकर कर्म करते चलो।
कल की चिंता करें क्यूं,
दुनियां से हम डरे क्यूं।
हर काम की शुरुआत,
मां सरस्वती का नाम लेकर करो।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
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नमन मंच भावों के मोती
विषय-आगाज/प्रारंभ/शुरुआत
दिनांक-31/05/2019
फिर शुरुआतो से #शुरुआत हो
और यादों की.......बारात हो।
बस तेरी मेरी........... बात हो,
न शिकवों की बरसात हो.......,
हर शै हो जाये गैरहाजिर.....
बस तेरी मेरी..............जात हो
जिंदगी तेरी मेरी कोई खेल नहीं,
जहां शह और............मात हो।
फिर शुरुआतो से शुरुआत हो,
और यादों की.........बारात हो।।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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🌹🙏नमन मंच🙏🌹
आदरणीय जनो को नमन
🌹🙏 🙏🌹
विषय-आगाज़/प्रारंभ
दिनांक-31/05/19
है #आगाज़ नवयुग का
उड़ान भरेंगे हम
नवयुग में नये भारत का
निर्माण करेंगे हम
फौलादी हिम्मत है........
गजराज सा बल बाहों में
हैं उम्मीदें सुनहरी....
रंगीन हैं ख्वाब हमारे
सौ-सौ हाथों से भारत का
मान करेंगे हम
नये युग में नये भारत का
निर्माण करेंगे हम।।
***स्वरचित****
--सीमा आचार्य--
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नमन मंच,भावों के मोती
शीर्षक आगाज़,प्रारम्भ,शुरुआत
विधा लघुकविता
31 मई 2019,शुक्रवार
शुरुआत करने से पहले
काम की पहिचान करले
जिंदगी यह चार दिन की
नित अपयश से दूर रहले
स्वविवेक होता सभी में
शुभ अशुभ में भेद करले
शत्रु कोई बनता नहीं है
स्नेह भाव हृदय में भरले
बुद्धिदाता श्री गणपति से
काम नित प्रारम्भ करले
हैं अपाहिज वृद्ध जन भी
मृदुल बोल उनसे कहले
सदा काम शुरुआत कर
निष्ठा और लगन के साथ
समय होता बड़ा कीमती
कभी न आता है यह हाथ।।
स्व0 रचित ,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
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II आगाज़/शुरुआत/प्रारम्भ II नमन भावों के मोती....
आज दो साल बाद मिले...
अचानक उसी बाग़ में....
यहां पहली बार मिले थे...
तुम ठिठकी मुझे देख कर...
मैं जड़ हो गया तुझे देख कर...
खड़े रहे यूं ही....
कभी आँखें मिलतीं...
कभी लबों पे हरकत होती...
पर बात आरम्भ नहीं हुई....
याद आयी मुझे अपनी पहली मुलाक़ात....
इसी बाग़ में जब मिली थी तुम...
हतप्रभ...ठगा सा रह गया था मैं...
देख कर तेरे चहरे को...
उस पर चाँदनी जैसी मुस्कराहट को...
न जाने कौन से संसार में गुम हो गया...
भूल गया था अपने को...
फिर आँखों ही आँखों में कुछ हुआ...
तुमने ही लबों से कुछ कहा...
मैं कुछ न बोला और तुम...
जैसे आयी थी...वैसे ही चली गयी...
मुलाकातें हुईं....
पर हर बार तुम ही बोली...
न जाने क्यूँ तुम्हारे सामने...
कभी कुछ न बोल पाया...
फिर तुमने एक दिन अलग होने का फैसला लिया...
मैं फिर कुछ न कह पाया...
आज वही मौसम है...
वैसे ही हवा सरगोशी कर रही है...
फूल भी खिले हैं...
पर उनमें सुगंध नहीं है...
तुम्हारे चहरे पर...
बारीक से परछाईआं...
कभी उभरती हैं...
कभी यादों को निगलती दिखती हैं...
न जाने किस बात की हलचल है...
तुम में और...
मुझ में...
यकायक मैं पूछता हूँ...
तुम कैसी हो....
तुम्हारी आँखें उठती हैं...
बहुत महीन सी हंसी के साथ...
काले बादलों में बिजली की तरह...
फिर तुम...गुम हो जाती हो...
कैसी हो तुम...
बताना अगली बार...
मैं बुदबुदाता रहता हूँ...
अपने आप से...
परेशान सा...
न जाने अंत होगा...
इस आगाज़ का...
या फिर...
प्रारम्भ...शायद...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
३१.०५.२०१९
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नमन मंच
दिनांक .. 31/5/2019
विषय .. प्रारम्भ /आगाज /शुरूवात
विधा .. लघु कविता
*************************
आरम्भ है प्रारम्भ है, आगाज है शुरूवात है ।
नवराष्ट्र का निर्माण है, भारत उदय फिर तात है।
....
नूतन सवेरा होगा फिर , फैला हुआ प्रकाश है।
एकार होकर सामने, भारत मेरा अभिमान है।
...
यह सृष्टि की पहली धरा, जन्मी जहाँ पर सभ्यता।
सबकुछ यहाँ सम्पूर्ण है, यह शेर मन की भावना।
....
उदभव पराभव मान अप, देखा है मेरे देश ने।
प्रारम्भ फिर वो समय, स्वर्ण इति लिखे अब देश ये।
..
शेरसिंह सर्राफ
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भावों के मोती दिनांक 31/5/19
आगाज/शुरूआत/प्रारंभ
प्रारम्भ है तो अंत है
जन्म है तो मृत्यु है
एक है रिश्ता दोनों के बीच
इन्सानियत मोहब्बत का
अगर निभा सको तो
सफल जीवन है
हो शुरूआत हर काम की
ले के प्रभु नाम
संकट सब टल जाऐंगे
सफल होंगे काम
ऐसे भी न मोड़ो दोस्तों
ज़िम्मेदारियों से मुँह
जिम्मेदारी अपनी
उठाओगे नहीं आप
तो करोगे किससे उम्मीद
शुरू की है जिंदगी अपनी
तो आगाज भी करो आप
ताश के पत्तों सी है जिन्दगी
खेल की होती है शुरूआत
एक समान सवारी पर
खत्म होता है खेल
जीत हार की बाजी पर
और क्या लिखूं
जिंदगी तेरे बारे में
जब शुरू होती हो तू
अंत होता ही है
फिर क्यो डराती है तू मौत से
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
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सादर अभिवादन
नमन मंच
भावों के मोती
दिनांक : 31-5- 2019 (शुक्रवार)
विषय : आगाज/ प्रारंभ /शुरुआत
काश आगाज अच्छा होता
तो आँशु आज ना होता
न जाने क्यों चले आते हैं
आंखों के कपाटों को खोलकर
अनचाहे -अनजाने
बिन बुलाए ये आँशु
पथरीले मन के
भीषण दावानल में
क्यों दिखा देते हैं
मुझे इतना असहाय
खैर
शुरुआत अच्छा नहीं हुआ
तो क्या हुआ
अंत भला तो सब भला
जग भला जगदीश भला
स्वरचित
मधुलिका कुमारी "खुशबू"
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नमन"भावो के मोती"
31/05/2019
"शुरुआत"
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सुबह ऊषा रवि के संग आती
लाल सुनहरी आभा बिखेरती
दिन का करती शुरुआत है।
निंद्रा छोड़कर जागती दूनिया
नई आशा पलकों में लेकर
कर्मों का करता शुरुआत है।
चिड़िया रानी चीं-चीं करती
हौसले से उडान है भरती
उमंगों से करती शुरुआत है।
ऊर्जा का संचार दिवस भरता
नित-नित नई कहानी गढ़ता
किस्सों का करता शुरुआत है
रवि ले विश्राम जो शाम होती
गति दुनिया की कम हो जाती
रजनी की होती शुरुआत है।
सज-धज के चाँद है आता
नभ में तारों संग चमकता
प्रीत का करता शुरुआत है।
दिवस बीता, रात जो गुजरती
सुख-दु:ख का होता एहसास
रंगीन सपनो का शुरुआत है।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)पश्चिम बंगाल
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भावों के मोती मंच को नमन
दिन :-शुक्रवार :-31 /5/2029
विषय:- शुरूआत।.विधा:-/कविता:-
आओ !
करें शुरूआत
हम नये संबंधों की ।
स्थिर हुये
संबंधों पर
जम गई काई है ।
अविसर्जित
धूप हवा पानी से
फैल गई बदबूदारसड़न ।
ढूंढ़ रहे
अपने ही हाथ
खोजतेअपनों का साथ ।
फैल गई
बर्फ की चादर
सर्द हो लहरा कर ।
डूबता
जैसे विश्वास
दुहराताअपना इतिहास ।
जड़ता से
निष्पंद हुये
गतिहीन जीवन को
सांसों की
ऊष्मा देकर
पिघला दो अपना अहसास।आने दो
बाढ़ फिर
नये संबंधों की ,।
लहरों की
धड़कन पर
उग आया खोया विश्वास।
टूटे हुये
तटबंधों ने
कर दी हैफिर
एक नई शुरूआत ।
स्वरचित :-उषासक्सेना
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सादर नमन
विधा-हाईकु
विषय-आगाज़/ प्रारम्भ / शुरूवात
१
कर आगाज़
हौंसला-ए - बुलँद
साथ संसार
२
मिटाके बैर
आगाज़- मोहब्बत
बनते रिश्ते
३
बन दुल्हन
संस्कारों की चुनर
प्रेम आगाज़
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
31/5/19
शुक्रवार
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नमन मंच 🙏
दिनांक- 31/5/2019
शीर्षक- आगाज़ /प्रारंभ /शुरूआत
विधा- हाइकु
1)
नूतन भोर
कर्मठ युवा वर्ग
करो आगाज़
2)
आलस्य त्याग
हौंसले हों बुलंद
शुभ प्रारंभ
3)
कार्य प्रारंभ
ले गणपति नाम
पूरण काज
4)
किया आगाज़
दृढ़ किया विश्वास
सही अंजाम
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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नमन भावों के मोती
विषय - आगाज़/आरम्भ
31/05/19
शुक्रवार
मुक्तक
आगाज़ सही हो तो अंजाम उचित होगा।
जब धर्म पर संकट हो तो संग्राम उचित होगा।
यह सत्य है जीवन का,जिसको सभी स्वीकारें-
संघर्ष गर किया तो परिणाम उचित होगा।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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नमन भावों के मोती
विषय- आरंभ/ प्रारंभ/शुरुआत
विधा-दोहा
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जो मन में रखता नहीं, कभी छुपा कर दंभ।
सारे गम को भूल कर, करता नव आरंभ।।
सबके दिल में गाड़ दो, खुशियों का इक खंभ।
सारा जग सुंदर लगे , ऐसा हो प्रारंभ।।
भूले से डरना नहीं अगर कठिन शुरुआत।
डटकर तुम आगे बढ़ो, देना सबको मात।।
स्वरचित
- वेधा सिंह
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शुभ साँझ
विषय--आगाज़
विधा-- ग़ज़ल
द्वितीय प्रस्तुति
मुहब्बत का आगाज़ पुराना है
अब तो सिर्फ उनको बताना है ।।
बताने में ही देर कर दी क्या कहूँ
गम है यही तो एक पछताना है ।।
काश किया होता इज़हार पहले
न लिखता दर्द का ये अफसाना है ।।
आगाज़ कर न डर किसी चोट से
चोट यहाँ सबको एक दिन खाना है ।।
जो सोचा करते हैं ज्यादा अक्सर
वह देर कर देते ये हमने जाना है ।।
वक्त कहाँ देती है जिन्दगी ज्यादा
कश्मकश में वक्त नही गंवाना है ।।
जो करना है वो आज कर ''शिवम"
कल पर टालना खुद धोखा खाना है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 31/05/2019
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31/5/19
भावों के मोती
विषय- आगाज़/प्रारम्भ/शुरुआत
_________________
आगाज़ नई भोर का
प्रारम्भ नए दौर का
शुरुआत हो प्रेम-भाव की
हो मौत बैर-भाव की
जात-पात का भेद मिटा
मानवता की करो पहल
इतिहास फिर नया रचो
नया भारत सब एक हो
न किसी से द्वेष हो
एकता की रखो मिसाल
कर्म हो सबकी पहचान
धर्म सबका एक समान
न कोई छोटा न बड़ा
इंसान सभी एक से
इंसानियत की और सभी
अपने कदम बढ़ाए जा
सोने की चिड़िया हो देश फिर
भारत विश्व में हो सबसे महान
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित ✍
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भावों के मोती
31/05 /19
विषय - शुरूआत
चल उठ चल दे कर्म दाता
संसार चले संग तेरे पल-पल।
दूर झुरमुट से भास्कर निकले पहन स्वर्ण वसन
आलोकिक कर विश्व सारा छाये गगन आभा मंडल बन।
नव जीवन की"शुरुआत"हर सुबह करता चतुर जन
हर सुबह उतरे नया विश्वास नई आशा नया उद्घघोष बन।
देखो सुमन दल झुकी झुकी शीश नमाये करे वंदन
हवा हो चली मंद गति, सरिता धीमी लय में करती गुंजन।
पंछी नीड़ छोड उड़ चले छूने उजला नभ रश्मि दल
चहुँ और व्याप्त एक मधुर रागिनी समय वीणा की झन-झन।
चल उठ चल दे कर्म दाता
संसार चले संग तेरे पल-पल।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
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"नमन-मंच"
"दिनांक-3१/५/२०१९"
"शीर्षक-आगाज"
समस्याओं पर सिर्फ बात करने से
होता नही निदान
आगाज करें उनके निवारण का
तभी होगा कल्याण।
लक्ष्य को बस रखकर ध्यान
साधे एक निसान
निर्मल मन और सुन्दर कर्म हो तो
प्रभु देते उनका साथ।
आलोचकों को पथ प्रदर्शक बना ले
हो जाये काम और आसान
आगाज करने का ये अंदाज निराला
सबको आयेगा रास।
नये जीवन का आगाज करने का
होगा ये सुन्दर अंदाज़
समस्या तो सुलझ जायेगी
जीवन होगा और आसान।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
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नमन मंच को
दिन :- शुक्रवार
दिनांक :- 31/05/2019
विषय :- आगाज/प्रारंभ/शुरुआत
मिला ऐसा अंजाम मेरे सपनों को...
भीड़ में ढूँढता रहा सदा अपनों को...
मोहब्बत से लिखी इबारत जो..
स्वार्थ ने ढहाई हर इमारत वो..
आगाज से पहले ही..
देख लिया अंजाम रिश्तों का..
नीम से भी ज्यादा..
कड़वाहट भरा स्वाद रिश्तों का..
दौलत के अहंकार ने..
ढहाए हर एक पुल रिश्तों के..
बीच बाजार में बिक रहे..
अवशेष अब उन रिश्तों के..
हमने तो किया था आगाज मोहब्बत से...
पर पग-पग मिला हमें अंजाम नफरत से..
मिले विश्वासघात कई रिश्तों में..
हृदयघात से कड़े आघात रिश्तों में...
जिसको माना हमने अपना..
समय ने उसे बदल दिया..
दौलत का सुरुर ऐसा छाया...
रास्ता तक उन्होंने बदल लिया..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
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नमन भावों के मोती
विषय प्रारम्भ
दिनांक 31-5-2019
दिन शुक्रवार
प्रारम्भ
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प्रारम्भ विकास का है अंकुरण
यही बनता है एक दिन सँस्मरण
प्रारम्भ के लिये उमंग होनी चाहिए
कुछ कर गुज़रने की तरंग होनी चाहिए।
प्रारम्भ यदि न हो अच्छे मन से
तो हर काम दिखते नाग फन से
फिर असफलता ही हाथ लगती
जो हर वक्त ही मनोबल को डसती।
प्रारम्भ के लिये पूजा पाठ का विधान है
इसमें छिपा हुआ हमारा पुरातन विज्ञान है
निर्मल भाव से लक्ष्य की ओर बढ़ो
यदि गिरो फिर उठो और सम्भल कर फिर चढ़ो।
प्रारम्भ अच्छा होना चाहिए
इसके लिये मन सच्चा होना चाहिए
प्रारम्भ के साथ प्रयासों का यदि मेल होगा
तो हर काम ही बाँये हाथ का खेल होगा।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
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नमन भावों के मोती
आज का विषय, आगाज प्रारम्भ, शुरूआत
दिन, शुक्रवार,
दिनांक, 31,5,2019,
शुरूआत दिन की सूर्य किरण से हो,
पूजन बंदन हरि दर्शन हो।
प्रारम्भ करे बच्चा चलना,
सीखे निशिदिन गिरना उठना ।
जीवन का आगाज यहीं से हो,
मन में जागे कुछ करने की तमन्ना।
आगाज स्वराज्य का किया क्रान्तिकारियों ने,
आजादी में सीखा हम सबने सांस लेना ।
शुरूआत हुई जब वैज्ञानिक युग की,
छोटी सी कितनी लगने लगी दुनियाँ।
साधन सुबिधाओं का अम्बार लगा,
देख लो चाँद पर पहुंच गई है दुनियाँ ।
आगाज करेंगे जब हम जीवन का,
मकसद कुछ न कुछ तो हमारा होगा ।
शुरूआत करेंगे जब चलने की हम ,
हमें प्राप्त लक्ष्य तब ही होगा ।
शुरूआत एक बीज से जब हम करते हैं,
घना फलदार वृक्ष कभी वही तो होगा ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
31/05/2019
कविता
विषय:-"शुरुआत "
चलो चलें शुरुआत करें....
मन मजबूत विश्वास भरें
असफलता से ले सबक
फिर मंजिल पर ध्यान धरें
चलो चलें शुरुआत करें....
वक़्त का अब सम्मान करें
सपनों में फिर प्राण भरें
सफलता कदम चूमेगी ही
स्वेद का जो हम दान करें
चलो चलें शुरुआत करें....
क्षमता का विकास करें
स्वयं से फिर पहचान करें
जीवन एक चुनौती है
संघर्ष को हँस स्वीकार करें
चलो चलें शुरुआत करें.....
जीते जी यूँ नहीं मरें
अवसादों में नहीं घिरें
जीत-हार का गणित भुलाकर
मन में फिर उत्साह भरें
चलो चलें शुरुआत करें.....
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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नमन मंच 🌹🌹🙏
विषय - आगाज , शुरुआत , प्रारंभ
ये दोस्ती मुझे खुबसूरत
मोहब्बत का आगाज लगती है ।
हर मौसम सुहाना हो गया,
जिंदगी प्यारा एक साज लगती है ।
श्वासों की सरगम, ज्यों तुम्हारे नाम की
बजती शहनाई हो ,
हर सुबह नयी शुरुआत ,
शाम मतवाली मधुमास लगती है ।
साथ तुम्हारा पाकर साजन हुई मै दीवानी ।
खो गया तुम में वजूद मेरा ,
हुई मैं खुद से ही बेगानी ।
इंद्रधनुषी स्वप्नों की दुनिया ,
हंसती है मुझ पर अब सखियाँ ।
मरूस्थल सा जीवन बना उपवन,
हर शै हुई रूमानी ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
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