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ब्लॉग संख्या :-384
🌹भावों के मोती🌹
12/5/2019
"मां"विशेष
माँ,
जब तक सूरज सागर है
सूरज की ये लालिमा है
वंदन, शीश नवाऊँ मैं
तेरे हाथों से पल जाऊं मैं।।
माँ,
तेरे ही नेह श्वासों से
नभ को भी मैं छू जाऊंगा
मेरे हाथों में तेरा हाथ रहे
सागर पार भी लग जाऊंगा।।
माँ,
जैसे सूरज के आते ही
मन मेरा खिल जाता है
भोर,सवेरा तुझको मानूं
जीवन दर्शन भी खिल जाता है।।
माँ,
और कहूँ क्या तुझको मैं
तू सागर सी शीतल लहरे है
न जाने कितनी ही नदियां
खुद में समाए रखती है।।
क्रमश: ....
वीणा शर्मा वशिष्ठ
🙏🏼मंच को नमन🙏🏼
दिनांक-12/05/2019
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
माँ
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
चार दिनो के इस जीवन में,
जब उलझने बहुत सताती हैं।
तब बहुत तेरी याद आती हैं माँ।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
जब राहों की ठोकरें,
मुझको हरदम सताती हैं।
तब बहुत तेरी याद आती हैं माँ।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
तेरे सपनों को पूरा ना कर,
पाने की नाकामी मुझे सताती है।
तब बहुत तेरी याद आती हैं माँ।
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जब पीड़ा के क्रंदन
आँखों में भर जाती हैं।
तब बहुत तेरी याद आती हैं माँ।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
जब नींद नही आती रातों मे,
तेरी थपकी की याद सताती है।
तब बहुत तेरी याद आती हैं माँ।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
तेरे हाथों की रोटी खाने को,
जब ये जिव्हा ललचाती है।
तब बहुत तेरी याद आती हैं माँ।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
लड़कर तेरी यादों से रातों को,
रोते हुए जब तेरी बेटी सो जाती है।
तब बहुत तेरी याद आती हैं माँ।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
अब तू नही बस तेरी याद है,
तेरी बाहों में सोने की फरियाद है।
अब बहुत तेरी याद आती है माँ।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
स्वरचित एवं मौलिक
मोनिका गुप्ता
12-5-2019
विषय:- माँ
विधा :-विधाता छंद
चलो आओ ज़रा सुन लो , बहुत बातें मुझे करनी ।
तुम्हारे बिन नहीं कोई , कहूँ जिसको व्यथा हरनी ।।
तुम्हारी गोद ही मंदिर , पढी मैंने जहाँ गीता ।
नहीं देखी कभी देवी , दिखी तुझमें मुझे सीता ।।
कभी जब भी ज़रा बिखरी ,मनोबल कर दिया ऊँचा ।
निराशा दूर कर देती , दिखा कर धैर्य का गूँचा ।।
क्षुधा को भाँप लेती तू , पराँठा सेंक कर देती ।
खिलाती हाथ से अपने , बलैयाँ साथ थी लेती ।।
कहाँ होती बड़ी बेटी , बड़ी उसको सभी कहते ।
सभी दुख दर्द सह लेती , कहीं आँसू छिपे रहते ।।
मुझे माँ याद है आता , पढ़ाना जाग कर तेरा ।
पिता से डाँट खाकर भी , बचाना याद है तेरा ।।
मधुर स्वर गूँजते घर में ,सुबह जब आरती गाती ।
सभी आ बैठते थे हम , वहाँ परशाद सब पाते ।।
गई जब से यहाँ से तू , हृदय ख़ाली मकाँ ख़ाली ।
रहें बैठे कबूतर माँ , नहीं उड़ते बिना ताली ।।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 126055 (. हरियाणा )
कहा क्या खूब है जन्नत मेरी मां के कदमों में।
है मां का करम जो कामयाबी खुद बुलाती है।
मां की रहमत का बड़ा कर्जा चढा हम पर।
पीकर जहर अमृत वो छाती से पिलाती है।
मां के रहने से है रहती इस घर में मेरे बरकत।
उसकी दुआओं से जिन्दगी मेरी जगमगाती है।
उस की हर साँस मे है फिक्र मेरी दुनिया का।
जाती बिखर खुद घर का हर कोना सजाती है।
सर पे साया मां का जैसे नेमत बडी रब की।
मां के आंचल की छाया मुसीबत से बचाती है।
रौशन करे जल कर दिया जो मां वो बाती है।
सदा रौशन रहे घर वो जहां मां मुस्कुराती है।
विपिन सोहल
नमन भावों के मोती
दिनांक - 12/5/2019
आज का विषय - माँ
-------माँ--------
माँ , माँ खुशी है, ममता है, प्यार है
माँ , माँ की महिमा अपरम्पार है
माँ , माँ है तो ये संसार है
माँ , माँ ही जन्नत है, स्वर्ग का द्वार है
माँ , माँ ईश्वर का अवतार है
माँ , माँ बिन सब निराधार है
माँ , माँ पिता है बहन है,भाई है
माँ , माँ की महिमा सब ने गाई है
माँ , माँ ब्रह्मा, विष्णु, महेश है
माँ , माँ दुर्गा का अवशेष है
माँ , काली है, लक्ष्मी है, पार्वती है
माँ , माँ पूजा की आरती है
माँ , माँ अंधेरे में दीपक समान है
माँ , माँ ईश्वर का गुणगान है
माँ , माँ वट वृक्ष सी छाया है
माँ , माँ ही धन-दौलत है,माया है
माँ , माँ फूलों में गुलाब है
माँ , माँ ही राजा है, नवाब है
माँ , माँ छंद है,कविता है, अलंकार है
माँ , माँ शब्द ही महाकाव्य साकार है
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
सुप्रभात "भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन🌹
12/05/2019
सभी सदस्यों को" मातृ दिवस"की शुभेच्छा🙏
सभी माताओं का चरण वंदन🙏🌹🙏
"माँ"
1
मातृ दिवस
ममता का त्योहार
रोज मनाएँ
2
श्रद्धापूर्वक
माँ की हो नित सेवा
क्यों एक दिन
3
माँ का आँचल
आज दुखी बहुत
कैसा दिवस
4
ईश दर्शन
चरणों में जन्नत
सेवा ही फूल
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
नमन मंच
भावों के मोती
दिनांक : 12.05.2019
विधा : कविता
शीर्षक : माँ
माँ
ईश्वर की
सर्वश्रेष्ठ कृति
माँ की महिमा
अपरम्पार
तन मन धन
सब न्योछावर करती
करती बच्चों से
अनन्त प्यार
सूखे में
बच्चे को सुलाती
गीले में सो जाती
हर बार
उंगली पकड़कर
चलना सिखाती
अपनी गोदी में
खूब खिलाती
जब भी कभी
मुसीबत आती
माँ हमेशा
ढाँढ़स बँधाती
माँ तो होती
है माँ
माँ का कर्ज़
नहीं कोई
चुका पाता है
तभी तो
चोट लगने पर
ईश्वर के नाम
से पहले
माँ का नाम ही
जुबाँ पर
आता है
--हरीश सेठी 'झिलमिल'
सिरसा
( स्वरचित)
नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक माँ
विधा लघुकविता
12 मई 2019,रविवार
माँ से बड़ा न कोई होता
माँ ममता करुणा होती।
माँ होती देवी की प्रतिमा
माँ होती जग दिव्यज्योति।
माँ पूजनीया माँ वन्दनीया
माँ रक्त से हम सिंचित हैं।
वह दुर्भाग्यशाली जग में
माँ स्नेह जग में वंचित है।
माँ नित देती लेती नहीं है
माँ अंतरात्मा की ध्वनि है।
माँ से बड़ा न कोई जग में
माँ बहुमूल्य एक मणी है ।
माँ धेनु गङ्गा माँ निर्मल
माँ स्वयं प्रिय भारत माता।
माँ तेरे पावन चरणों मे
सृद्धा से नित शीश झुकाता।
स्व0रचित ,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
12/5/19
भावों के मोती
विषय-माँ
🏵💕🏵
तुमसे ही मेरा जहान माँ
तुम ही मेरी भगवान
बड़ी ही प्यारी भोली-भाली
मेरे चेहरे की मुस्कान है
उँगली पकड़ कर चलना सिखाया
परिस्थितियों से लड़ना सिखाया
आँचल में तेरे नाजों से पली
तेरे दम से ही है मेरी हँसी
संस्कारों का देकर खजाना
जीवन का हर पाठ सिखाया
मेरी आँखों से जो छलके आँसू
तो तू तड़पकर रो देती है
मुस्कुराहट पर मेरी लेती बलाएं
खुशियों से झोली भरती है
रख लेती दिल पर पत्थर
जब बेटी को विदा करती है
रखना सबकी खुशियों का ख्याल
सीख सदा यही तुमने दी
कोशिश मेरी सदा यही रहती
तेरे पदचिन्हों पर ही में चलूँ
जो संस्कार तूने मुझे दिए हैं
वही धरोहर बेटी को भी दूँ
जब भी कोई मुश्किल आती
तुम साया बनकर रही बचाती
माँ बनकर मैंने तुझको जाना
कितना करती माँ बलिदान यह माना
सदा रहूँगी तेरी ऋणी
तुझसे ही है यह ज़िंदगी
बस यही दुआ है उस रब से
तू ही माँ बने मेरी हर जनम में
झोली में तेरी रहें सदा खुशियां
बनी रहूँ मैं तेरी छोटी-सी गुड़िया
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित✍
नमन मंच
१२/५/१९
रविवार
माँ
ज़िंदगी के गर्म तवे पर
खुशियों की रोटी पका देती है
माँ वो है जो
मेरे गम़ो की जली कढाई में भी
सुकून की खीर पका देती है
भिगों देती है मेरे आँसूओं के मैले कपड़े
दुखों को धोकर सुखा देती है
माँ वो है जो दर्द की बारिशों में भी
मुझ पर हँसी का आँचल लहरा देती है ।
स्वरचित
सुमनजीत कौर
मंच को नमन
दिनांक-12/5/2019
विषय-स्वतंत्र लेखन
(ऐसी होती है माँ)
🌹🌹🌹
प्रसव की पीर
ममता का चीर
ऐसी होती है
माँ की तासीर
🌹🌹🌹
त्याग की मूर्त
करुणामय सूरत
ऐसी होती है
माँ की सीरत
🌹🌹🌹
अभावों में जीती
उफ़ तक ना करती
ऐसी होती है
माँ की सहनशक्ति
🌹🌹🌹
पहली पाठशाला
कराती अक्षर ज्ञान
ऐसी होती है
माँ कबीर रसखान
🌹🌹🌹
सपनों का गीत
सुरम्य संगीत
ऐसी होती है
माँ की प्रीत
🌹🌹🌹
माथे का चंदन
करूँ अभिनंदन
ऐसी होती है
माँ की वंदन
🌹🌹🌹
पूजा की थाली
निहित सारी शक्ति
ऐसी होती है
माँ की भक्ति
🌹🌹🌹
उसका मान
अर्पित सम्मान
ऐसी होती है
माँ गुणों की खान
🌹🌹🌹
घर का द्वार
ख़ुशियाँ बेशुमार
ऐसी होती है
माँ की जागीर
🌹🌹🌹
रिश्तों में प्यार
रहता बरक़रार
ऐसी होती है
माँ की दरकार
🌹🌹🌹
अच्छे संस्कार
जीवन साकार
ऐसी होती है
माँ की मनुहार
🌹🌹🌹
शब्दों में गुंठित
माँ की भव्यता
ऐसी होती है
माँ में कविता
🌹🌹🌹
अदा करना फ़र्ज़
माँ का क़र्ज़
ऐसी होती ही
माँ की अर्ज़
🌹🌹🌹
✍🏻संतोष कुमारी ‘संप्रीति’
मौलिक एवं स्वरचित
🌳🌹भावों के मोती🌹🌳
👏मां👏
अयि मां नतमस्तक हूं चरणों में।
कृपा वरद हस्त रखदो वंदनीया।
उपकार अंगिणत है आपके।।
आज यहाँ तक आ पाऐ है।
प्रथम गुरु की उपाधि पाकर।।
बहु गरिमा मयी उपकारणींम्।।
नमन सदैव वंदनीया प्रणाम।।
करुणामयी ममतामयी मां ।
हम अज्ञानी निरा मूढ ठहरे।।
आपके ही आशीष से सदैव।
हर ऊंचाई पर पहुंचे मां।
अयि मां सादर प्रणाम👏👏
⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳
स्वरचित
राजेन्द्र कुमार#अमरा
१२/०२/२०१९@०६:५५
💐नमन भवों के मोती💐
कार्य:- शब्दलेखन
बिषय:- माँ
दिनाँक:-12-5-2019
(विश्व मातृ दिवस)
💐तू याद आती है माँ 💐
***************
1.
जाड़े की ठिठुरती रातों में तू
ममता के गर्म हाथों से तू
उलट-पुलट जब करती थी माँ
खुद गीले में रहकर भी तू
सूखे में हमें सुलाती थी माँ
फ़टी गुदड़ी और वो ठण्ड
आज भी याद आती है माँ
तू बहुत याद आती है माँ
2.
रातों रात जागती थी तू
लोरी सुना थपकियों से तू
रोज हमको बहलाती थी माँ
छोटी सी मेरी एक छींक से तू
कितनी वे-चैन हो जाती थी माँ
तेरी चूड़ियों की वो खनक
आज भी याद आती है माँ
तू बहुत याद आती है माँ
3.
मांटी की हांडी में पकाती थी तू
कंडों पे सेंकती रुआ-वाटी भी तू
घी-गुड़ का चूरमा बनाती थी माँ
छोले के चटुये से उफनती महेरी ( राबड़ी)
भीनीं महक फैल जाती थी माँ
तेरे आंसू और माथे का पसीना
आज भी याद आता है माँ
तू बहुत याद आती है माँ
4.
मेरे नन्हे-नन्हे पग बजती पैजनिया
घुंघरुओं की खनक सुन-सुन तू
खिलखिला कर हंस देती थी माँ
दो डग भरूँ जब गिरने को होता
गोदी में मुझे तू उठा लेती थी माँ
तेरी बलैयां और चेहरे की चमक
आज भी याद आती है माँ
तू बहुत याद आती है माँ
स्वरचित:
डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी
गुना (म.प्र.)
नमन भावों के मोती
विषय - माँ
12/05/2019
अंतर मन में बहे करूणा
माँ , स्नेह का संसार
नि:शब्द भावों में झलकें
माँ मौन, माँ मुखर हृदय का उद्गगार
आँखों में झलकें स्नेह
माँ, रण में हुँकार
आस्था में बैठा विश्वास
माँ, कर्म पथ का विस्तार
नाजुक डोर बँधे जीवन की
माँ, जीवन का सार
क़दम क़दम पर ढाल बनी
माँ , दो धारी तलवार
नारी रूप नारायणी
माँ, शक्ति का अवतार
मिथक भ्रम जग ने पाला
माँ, काली के एक पाँव का संसार
सृष्टि का कण - कण दाता
माँ, स्नेह रूप में साकार
सुकूँ की छाँव मिले जीवन में
माँ, ममता की बौछार |
स्वरचित -
- अनीता सैनी
12/5/19
भावों के मोती
द्वितीय प्रस्तुति
"माँ"
______🏵_______
क्या लिखूँ कैसे लिखूँ
कैसे तुझको शब्दों में रचूँ
तुम खुद हो पूरा संसार
तेरा क्या मैं गुणगान करूँ
बेटी बनी पत्नी बनी
हम सब की जननी बनी
दादी-नानी बनकर तूने
रिश्तों की रचना करी
तेरे होने से ही हम है
तेरे दम से यह जीवन है
अनुभवों की तुम हो ख़ान
माँ तुम हो बहुत महान
हँसना सीखा बोलना सीखा
माँ तुमसे ही चलना सीखा
मुश्किलों से लड़ना सीखा
ऊँच-नीच दुनिया की सीखी
दूर भले ही तू मुझसे रहती
दिल में मेरे बस तू ही रहती
जब तक करूँ न तुमसे बात
दिल को नहीं मिलता आराम
याद आए हरदम तेरा आँचल
खनकती हुई हाथों की चूड़ियाँ
याद आती है पायल की रुनझुन
माँ तेरे बिन लगता अकेलापन
सुन लेती हूँ तेरी आवाज़
लगता है यहीं है मेरे पास
कुछ और ना माँगू मैं तुझसे
बस तू खुश रहे माँगू रब से
संस्कार अनुभव जो तुमने दिए
उससे ही यह जीवन सजे
यही सीख में आगे बढ़ाती
तेरी तरह ही रिश्तों को सजाती
फ़िर भी न बन पाती तेरे जैसी
रह जाती हरदम कोई कमी-सी
कैसे कर लेती हो तुम इतना सब
तभी तो माँ तुम हो सबसे हटकर
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित रचना ✍
मेरे कुछ हाइकु
दिनाँक 12 -5 -2019
विषय - माँ
माँ
*************
मै जग घूमा
सब धाम बसे है
माँ के चरण ।
माया ठगनी
फंसा कर करती
चित्त हरण ।
जिन्दा रहते
कुपुत्र है करते
घर में रण ।
बिना इनके
अस्तित्व नही तेरा
न रहा कण ।
संकट कटे
आशीष से इनके
देख तत्क्षण ।
गफलत में
सेवा का सारा
बीतता क्षण ।
मात-पिता में
सारे प्रभु बसते
जाओ शरण ।।
✒ आलोक मिश्र 'मुकुन्द'
🙏🌹💐🌹 (12-05-2019)
आज विश्व मातृ दिवस के उपलक्ष्यमें
🙏 आज का शीर्षक ; 🌷"माँ"🌹💐🌹
हर रोज़ मदर्स डे' : (लघु-अतुकांत कविता)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी :
हर रोज़ तो है ...
मदर्स डे ......
●
माँ से ....
माँ का ....
माँ द्वारा ...
माँ ने.....
●
लेकिन नहीं है कुछ ...
माँ के लिए ...
माँ पर ....
माँ को ...
●
है फिर भी ....
घर में ...
घर से बाहर ...
चारों ओर ....
पुकारती, दुलारती, संवारती, निहारती, आह्वान करती, बेहाल, परेशान, हैरान ......
माँ ही माँ
हर रोज़ .... हर जगह ....
हर रोज़ तो है ....
मदर्स डे ...
ओह ! माँ .... मेरी माँ ....
- शेख़ शहज़ाद उस्मानी
शिवपुरी (म.प्र.)
{रचना तिथि : 08 मई, 2016]
नमन मंच 🙏
आप सभी को सादर प्रणाम व "मातृ दिवस" की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं 😊❤️🌹🍫🍧
दिनांक- 12/05/2019
शीर्षक-"माँ"
***************
आज माँ पर हम प्यार लुटायें,
सब मिल आज मातृ दिवस मनायें,
हर दिन माँ ने हमें ,अपना दिया,
नि:स्वार्थ मन से हमें प्यार किया,
हृदय माँ का है बहुत बड़ा |
लोरी गाकर माँ ने हमें सुलाया,
पूरी रात माँ को हमने जगाया,
सुबह सबसे पहले माँ ही जगी,
मुख पर थी उनके हमेशा हँसी,
कितनी सुन्दर लगती माँ की छवि |
सारे सुख माँ हमको देती,
दु:खों से स्वयं टक्कर लेती,
सहनशक्ति की माँ है मूरत,
सुन्दर,सलोनी माँ की सूरत |
हर बच्चा माँ को लगे समान,
प्यार बराबर सबको करती,
फिर वो बेटा हो या बेटी,
डाँट फटकार जब माँ लगाती,
मन से हमारा हित वो चाहती |
माँ जैसा दुनियां मे कुछ नहीं,
भगवान की छवि माँ में दिखी,
चरण वंदन माँ तुमको करते,
आशीष हमको माँ अपना दें,
ममता माँ की सबको मिले |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
नमन भावों के मोती
विषय - माँ
12/05/2019
माँ का प्यार अनमोल
माँ का प्यार है अनमोल
नही है उसका कोई मोल
माँ की ममता सब पर भारी
नही है उसका कोई तोल
कभी माँ बनकर तो
कहीं दोस्त बनकर
बच्चों को देती सहारा है
त्याग दया और मातृत्व से
भरा ये जीवन सारा है
दुनियां से लड़ जाती बच्चों के लिए
बच्चों से बढ़कर कुछ भी नही
बच्चों की खुशी में खुश हो जाना
कष्ट होने ओर दुखी ही जाती माँ
सच्चाई की राह दिखाती
ज्ञान का पाठ पढ़ाती माँ
जीवन में कठिन परिश्रम करना
बच्चों में हौंसला बढ़ाती माँ
घर सहेजती अभावों से लड़ती
बच्चों पे प्यार लुटाती माँ
ऊँचाई के शिखर पर
बस पहुंचे मेरे बच्चे
बस यही पाठ सिखाती माँ।
सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
"नमन" भावों के मोती12/5/2019
बिषय ,,🌺 माँ 🌺
हे मॉ तुम्हें नमन
स्वीकार करो मेरा
प्यार भरा वंदन
बचपन में ही हमें छोड़
तुम चिरनिद़ा में सो गईं
हमें अकेला न जाने
किस जहॉ में खो गईं
सच कहती मॉ तुम्हारी
याद बहुत सताती है
वक्त वक्त पर मेरी
आँखें भर जाती है
तुमसे बिछड़े हुए
एक जमाना बीत गया
वो ममता का ऑचल
वो लोरी का गीत गया
तुम बिन मॉ सब
बेगाना लगता है
बस हालातों पर छोड़
मन समझाना पड़ता है
जिनके सिर पर
मॉ का साया है
उसके पास दुनियॉ की
दौलत और माया
ओ मेरी मॉ तुम जहॉ
भी हो कृपा वरषाए रखना
हम बच्चों पर अपनी
बत्सल्य नजर बनाए रखना
🌺 मां🌺
स्वरचित
।। माँ ।।
बेटे की खातिर रातों की नींद गंवाये
स्वयं गीले में सोये उसे सूखे में सुलाये ।।
ऐसी स्नेह और ममतामयी माँ का
त्याग तप भला कोई कैसे भुलाये ।।
अपनी जान की बाजी लगा वह
जान दे हमको अस्तित्व में लाये ।।
संतान की हर एक खुशी में जो
अपनी हर खुशियों को समझाये ।।
माँ नही वह साक्षात ईश्वर रूप है
क्यों न उन चरणों में शीष झुकाये ।।
मानो गर मंदिर तो वह घर ही है
इतनी सी बात 'शिवम' समझ न पाये ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/05/2019
नमन मंच--भावों के मोती
विषय--माँ
मेरी द्वितीय प्रस्तुति
वत्सलता की प्रतिमूरत है,
मां की ममता दिग दिगंत।
सौ-सौ धारों से दूध पिलाया
मां की सूरत रूप - वसंत।
मन्नत और मनौती का है,
निर्बाध बहता नीर अनंत।
सौ- सौ धारों से दूध पिलाया
मां की सूरत रूप - वसंत।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
12/05/2019
🌹 नमन भावों के मोती🌹,
(परी लोक का राजा बनके )
"~~
पाल पोस कर
बङा किया
खुद की
छाती छिजा कर '
दुखों पे
विराम लग जाते
माँ तेरी गोंद में आकर |
तेरी गोद में
सिर रख़ कर
परीलोक का
राजा बनके गूम आता
मेरा रोना नहीं रुकता
तो माँ तेरी लोरिया सुन
झट से सो जाता |
कुछ थपथपियाँ
जो डराकर '
मुझें सुलाती थी
सँच में माँ
आशिर्वाद 'के थापों से
हर बाधा को
दूर भगाती थी |
माँ काले टीके
लाख जतन कर
हमें बचाती थी
ममता मई स्पर्शो से
स्नेहित होकर
दुख नाशिनी
बन जाती थी |
दुनिया के
अकूत खजानों से
बङी दौलत वो माँ है
वो मंधुर भाषनी '
सु कोमल'
मृदुला वो माँ है |
जिसके चरणों
में जन्नत
कितने ही'
सुख स्वर्ग पड़े है |
ज़ितना लिखूँ
उतना कम '
माँ शब्द के
अर्थ बहुत बड़ेै है |
___
पी राय राठी
भीलवाड़ा, राज
नमन मंच
दिनांक .. 12/5/2019
विषय .. माँ
विधा .. लघु कविता
********************
🌹
वन्दे मातरम्
ईश्वर ना पहुचा जब जग मे जब, हर मानव के पास।
मात बनाया उसके दिल मे. खुद को दिया बसाय।
...
दाता की वो अनुपम कृति , फिर बनी ना दूसरे बार।
हर माता मे भाव यही है, मानव, पशु खग प्यार।
.....
बडा अभागा वो होता है जिसकी होती न माँ।
प्रेम का जो सम्पूर्ण समागम , वो होती है माँ।
....
पुत्र कुपुत्र सुना है पर क्या सुनी कुमात।
शेर भाव माता पर जिसके जैसी कोई न जात।
...
स्वरचित एंव मौलिक
शेरसिंह सर्राफ
💞नमन भावों के मोती💞
" माँ "
भूल जाती हूँ हर दर्द मैं,
तेरे गोद में आकर
मिलता मुझे सुकून माँ,
तेरे गले से लिपटकर।
मिटा देती तूँ, सारे दर्द की रेखाएँ,
गर तुने किस्मत लिखा होता
बिछा देती अपनी आँचल राह पर,
गर तुझे मेरे जाने का पथ पता होता।
भोगे थें भगवान भी बहुत कष्ट,
जब बिन माँ के इस धरा को छुआ था
इसलिए तो दूसरे जन्म में वें
दो - दो माँओं का सुख लिया था।
हर जख्म की मरहम
हर खुशी की आधार हो
माँ मेरी सर्वस्व
तुम ही मेरी कर्णधार हो।
मातृत्व दिवस की हार्दिक शुभकामना..... हर माँ को समर्पित 🌹🌹❤❤💐💐😊🙏🙏
स्वरचित: - मुन्नी कामत।
माँ...
आज उम्र के इस पड़ाव पर।
जीवन के तीसरे पहर पर।
दिल में बैठी नन्ही गुड़िया, झाँक रही है जाने क्यों!
भरा हुआ दिल जज्बातों से।
कहने को आकुल है माँ से।
हूक कलेजे में व्याकुलता, लगती जाने छाने क्यों!
सूनापन मन में छा जाता।
मन तड़पन से भर-भर जाता।
ढूँढ़ रही हैं उनको आँखें, जाने और अनजाने क्यों!
हर दिन बड़ा अधूरा लगता।
कुछ हर समय खटकता रहता।
खुद ही खुद को थपकी देकर, मन लगता बहलाने क्यों!
सारे रस फीके लगते हैं।
सारे दिन रीते लगते हैं।
बिन घन आँखें मेघ बरसती- सी बन आयीं जाने क्यों!
अभी बहुत था कहना उनसे।
नहीं पढ़े अध्याय बहुत से।
हर दिन उनके पढूँ सामने, मन यह लगा मनाने क्यों!
और निराशा मन में छाई।
नहीं सामने माँ जब आई।
आँखें उनको ढूँढ-ढूँढ कर, लगती हैं अकुलाने क्यों!
कहना होता था जो उनसे।
घुट जाती हूँ मैं अब मन से।
नहीं रहीं वह इस दुनिया में, दिल इसको न माने क्यों!
दिल में बैठी नन्ही गुड़िया, झाँक रही है जाने क्यों!
डॉ राजकुमारी वर्मा
सिर्फ आज का दिन
मित्रता के नाम,
कल से फिर वही शत्रुता
का काम,
जैसे सिर्फ महिला दिवस
पर महिला सम्मान,
बकाया दिन महिला अपमान,
जैसे मातृ दिवस पर मां को
प्रणाम,
बकाया दिन पत्नी सम्मान,
आज हम कितने प्रगतिशील
हो गये है,
सिर्फ विशेष निर्दिष्ट दिवसों पर
ही विशेष भावनाओं में
बहते हैं,
शेष दिन भावना शून्य रहते हैं,
जैसे हिन्दी दिवस पर
हिन्दी सम्मान,
शेष दिन अंग्रेजी को सलाम,
स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगे का
अभिमान,
शेष दिन पड़ा तिरंगा कूड़े दान,
ये कैसी मजबूरी है,
सच्चाई से कितनी दूरी है,
हम किश्तों में भावनाएं
प्रदर्शित करते हैं,
रोज जीते हैं
रोज मरते हैं,
क्या हम रोज माँ
का सम्मान नही कर सकते???
दोस्त को दोस्त नही मान सकते,
क्या हमारी राष्ट्रीय भावना
मर चुकी है??
हिन्दी प्रेम क्या एक दिन का ही है???
ये कैसी विसंगति है,
आज की यही रंगत है,
हर तरफ आधा तीतर
आधा बटेर है,
हर तरफ हाय पैसे
के लिये अंधेर है,
माई न बप्पा न भैय्या
न अइय्या,
सबसे बड़ा है आज
रुपय्या,
सोच वो मां ही थी जिसने
तुझे जना,
आज तू धरा का सुख
चखने लायक बना,
वही मां हो गयी
परायी,
ये कैसी अशुभ घरी
आयी??
जब तू निज जननी
का न हुआ,
तो भारत मां का
क्या होगा??
अभी भी समय है
सुधर जा,
मातृ ऋण से
उऋण होजा,
खुशी खुशी मां
को घर ला,
उल्लास पूर्वक
मातृ दिवस मना।।।
भावुक
माँ
🎻🎻🎻
कोई भी भाषा, नहीं इतनी सशक्त
ओ माँ!जो कर सके तुझे अभिव्यक्त
तेरी आँखों से झरता, एक ही झरना
जिसे कहते हैं ज्ञानी, अनुपम
अनुरक्त।
इन साहित्य कोषों के, ये सारे अलंकार
नहीं व्यक्त कर सकते,तेरे प्रति उदगार
फिर भी मेरी ईजा,मैं कर दूँ स्पष्ट
मेरे पास हैं ,तेरे लिये कुछ शब्द उत्कृष्ट।
इन्हें अश्रु जल से,धोकर अर्पित करता हूँ
तेरे सम्मान में,समर्पित करता हूँ
इनसे ही है,मेरे भावों का अर्पण
यही मेरी पूजा,यही मेरा तर्पण।
पुनर्जन्म में मेरी,श्रद्धा अथाह है
सच कहता हूँ,उमड़ती यही चाह है
तेरा आँचल,फिर से मिल जाये
मेरा पुनर्जन्म,तुझसे खिल जाये।
ईजा तुम्हारी जय हो
12/5/19
नमन मंच।
नमन गुरूजनो,
मित्रों।
💐 मां 💐
मां तो मां होती है,
मां जैसा कोई दूसरा नहीं होता।
जागती है सारी रात वो,
जब उसका बच्चा नहीं सोता।
मां में है जन्नत,
मां से है खुशियां।
मां हीं मेरी संगी,साथी,
मां हीं मेरी दुनियां।
परवाह करो मां की,
ईश्वर होंगे खुश।
घर बनेगा जन्नत,
बच्चे भी होंगे खुश।
मां को करो प्रणाम,
उसमें है चारों धाम।
माफ करना मुझको खुदा,
मां ने हीं सिखाया तेरा नाम।।
💐💐💐💐💐💐💐💐
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
🌸🌸🌸🌸🌸
🙏🌹जय माँ शारदा
..सादर नमन भावों के मोती..
दि. -12.05.19
विषय - माँ
...हर मातृ शक्ति को सादर नमन करते हुए मेरी प्रस्तुति..... 👏👏
==========================
🌷माँ 🌷
********
नहीं माँ से कोई बढ़कर यही आवाज़ आती है |
सदा सम्मान में जिसके ये दुनिया सिर झुकाती है ||
बिना माँ के नहीं मुमकिन सुनो दीदार दुनिया का |
हमें दुनिया में लाकर ये हसीं दुनिया दिखाती है ||
उठाती है स्वयं तकलीफ लेकिन उफ नहीं करती |
हमारे वास्ते हर दर्द माँ हँसकर उठाती है ||
मिलेगी हर खुशी तुमको सुखद आशीष से इसके |
दुआ माँ की हमारी हर मुसीबत काट जाती है ||
कृपा भगवान की हरदम बरसती है वहाँ सुनिये |
सदा रोशन रहे वो घर जहाँ माँ मुस्कुराती है ||
सताओगे अगर माँ को तो सच ये मान लेना तुम |
सफलता हाथ आकर भी नहीं फिर हाथ आती है ||
गुमां किस बात का प्यारे न कर पाये अगर सेवा |
भला वो ज़िंदगी भी क्या जो यूँ ही बीत जाती है ||
भले पूजो न पूजो तुम सुनो भगवान को अपने |
अगर खुशहाल है माँ तो इबादत हो ही जाती है ||
**********************************
#स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी सिवनी म.प्र.
भावों के मोती
12/5/2019::रविवार
विधा- चोका
विषय माँ
माँ सम अणु
बालक परमाणु
हो विघटित
सन्तान संचयित
नवीन आशा
मानव परिभाषा
ममता नाम
अथक परिश्रम
प्रात की बेला
सुरभित भजन
घर मन्दिर
कर्मभूमि प्रांगण
जलता चूल्हा
महकती रसोई
स्वादिष्ट भोज
प्रथम गुरु रूप
माता आशीष
चरण में वंदन
माँ शीतल चन्दन
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
नमन भावो के मोती
12-5-2019
मातृ दिवस की शुभकामनायें सभी माँ,बहन व भारत माँ को,,,
मातृ दिवस के उपलक्ष में माँ का महत्व दर्शाती एक भावपूर्ण काव्य उदगार ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
, , माँ संवेदना है
, ****************
माँ तो आखिर माँ होती है
असीम दर्द सहकर
गर्भ में नौ माह रखकर
हृदय स्पर्श से सहलाकर
माँ जन्म देती है नव शिशु को,
चाहे वो लड़की हो या लड़का
दोनों उसके। हृदय का टुकड़ा
छिपा लेती है अंक में
वात्सल्य रस के दुग्धधार से
चिहका लेती है अति प्यार से
बहने लगती है ममता की भाव धारा
कदम कदम पर निस्वार्थ जीवन धारा
हाथ पकड़कर चलना सिखाना
सिखाती है खाना,पीना, पढ़ना लिखना
अपने श्रेष्ठ संस्कारों में जीना
कुछ अंतराल बाद,
बच्चे बढ़कर जवान हुए
लगने लगा वे माँ के त्याग से अंजान हुए
शिक्षा व जीवन में प्रगति हुई
दूर सुदूर पोस्टिंग हुई
किन्तु कई मायने में,
भूल गए वो माँ का प्रतिदान
उनके। अनंत प्यार का दान
पर , माँ। को। वही चिन्ता
बेटे के लिए वही ममता
दिल में टीस उठती रही
पर, बेटे के हित में जीती रही
अमृत देकर विष पीती रही
अरे। सुन लो मूर्ख बेटे बेटियों ।
माँ। को सम्मान दो
उसके दुख को पहचान लो
माँ धरणी है माँ जननी है
माँ संवेदना है शक्ति है साधना है
********************
ब्रह्माणी वीणा
********************
नमन भावों के मोती
12-5-2019
* माँ *
मातृदिवस के उपलक्ष्य में रचित सृजन,,,वैसे हरदिन माँ के नाम समर्पित है,,,,,,माँ संवेदना है शक्ति है साधना है🌷🌷🌿🌿🌷🌷🌿🌿🌷🌷🌿🌿🌷🌿🌿
गीतिका
*******
सामांत = आरी
पदांत = है
चौपाई छंद आधारित 16 +16 ( मात्रिक )
********************************
माँ की महिमा
÷÷÷÷÷÷÷÷
🌷🌷🍀☘️🌷🌷🍀🍀🌷🌷🍀🍀🌷🌷🍀🌷
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माॅ तेरी महिमा न्यारी है,,,,,,सारा जग तुझपे वारी है!
परमेश्वर भी कम है माता, तू शक्ति शिवानी नारी है !!
÷
नवजीवन को अमृत देती,पीती जाती विष जीवन का ,
तू कष्ट सहे धरणी बनके,,,,,तेरी क्षमता बलिहारी है !!
÷
तू आदि शक्ति मातु विधाता,तू जगजननी,जीवनदाता,
तू मातु धरा माँ प्रियंवरा ,शिशु जीवन की रखवारी है! !
÷
तू शीतल चंदन जैसी माॅ, ज्यों निर्झर झरना झरती माँ,
आॅचल मे तेरे देव पले ,,;,,;,,,,,तू जननी माँ महतारी है।।
÷
तुम ममता क्षमता करूणा की ,पावन गंगा की धारा हो,
केशव भी चरण पखारें माँ,जिनको यशुदा माँ प्यारी है !!!*****************************************
🌷🌹☘️☘️🌹🌹☘️☘️🌹🌹☘️☘️🌹🌹☘️☘️🌹
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
नमन मंच - भावों के मोती
विषय - माँ
दिनांक - 12 - 05 - 19
विधा - दोहा ग़ज़ल
- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -
दुनिया में लाई मुझे , माँ रब का अवतार |
तुझ जैसा कोई नहीं , नमन है बार-बार ||
दुनिया की हर सीख दी , दी मुझको हर राह ,
चुका न पाऊँगा कभी , माँ का कर्ज अपार ||
दुनिया सारी ढीठ है , करती है माँ नेह ,
भाई- बहना है सभी , सुख के रिश्तेदार ||
दुनिया तो मुख मोड़ ले , दुख होते जब पास ,
जब तक माँ जिन्दा रहे , खोले दिल के द्वार ||
माँ जिन्दा जब तक रहे , समझ उसे भगवान ,
देती हर पल है दुआ , है सुख का भंडार ||
एल एन कोष्टी गुना म प्र
स्वरचित एवं मौलिक
1*भा.12/5/2019/रविवार
बिषयःःः# माँः#
विधाःःःकाव्यःःः
माँ तो आखिर माँ होती है।
माँ की नकल नहीं होती है।
माँ की संतान ससारी प्राणी,
माँ की रचना नहीं होती है।
जगत जननी तू ही माता।
तू है सबकी भाग्यविधाता।
श्रीरामकृष्ण सब तूने जन्में,
माँ केवल तो सुख की दाता।
नहीं किसी से माँ की तुलना।
माँ के बिन पत्ता नहीं हिलना।
कैसे करूं महिमा बखान मैं,
मुश्किल शब्द कहीं से मिलना।
जय जगदंम्बे मात भवानी।
इस जग की तुम्हीं महारानी।
ऋण मुक्त जन्मों तक न होंऐं,
ये बात सभी ने अक्षरसः मानी।
स्वरचितःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम
1*भा.#माँ#
12/5/2019/रविवार
नमन भावों के मोती
विषय:-माँ
तिथि:-१२/०५/२०१९
वार:-रविवार
********************
#माँ_है_तो_ईश्वर_है
************************************
बेवजह ही माँ की भावनाएं नरम नही होती,
माँ तो माँ होती है ,ईश्वर से कम नहीं होती।
बेटे की खुशहाली और तरक्की को देखती,
भीगी पलके रखती , आंखे नम नही होती!
कल भी देती थी और ,आज भी देती है,
रोज देती माँ मुझे ,दुआ कम नही होती !
कुछ कहती नही पर बहुत कुछ कह जाती है,
लबों पर कभी भी सख्ती बेरहम नही होती !
टूट भी जाऊं तो सम्हाल लेती हर बार मुझे,
बढ़कर कोई और माँ सी मलहम नही होती!
माँ तो माँ है,माँ है तो ईश्वर भी संसार मे है,
माँ जैसी दुनिया मे कोई शम नही होती !
****************************************
रचनाकार:-राजेन्द्र मेश्राम "नील"
चांगोटोला, बालाघाट ( मध्यप्रदेश )
दि- 12-5-19
विषय- माँ
सादर मंच को समर्पित -
🍑🌱🌸 गीतिका 🌸🌱🍑
********************************
🌺 माँ 🌺
🍎🍀🐥 🐥🍀🍎
आधार छंद--हरि गीतिका
मापनी - 2212 , 2212 , 2212 , 2212
समान्त - आन , पदान्त - से
*********************************
🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒
माँ तो सदा पालन करे हम को गहन पयपान से ,
है फर्ज अपना भी रखें उसको सुखी संज्ञान से ।
नित खून से सींचे हमें , आँचल भरा है प्यार का ,
है त्याग की मूरति मही , गम सह जुटे जी,जान से।
अपना न रखती ध्यान वो,परिवार की खातिर महज ,
सब को खिलाती है प्रथम , खाये बचे सन्तान से ।
खटती रहे अनथक सभी की सोचती घर द्वार में ,
वात्सल्य से परिपूर्ण कर चिन्ता करे अनुमान से ।
जो जन्म से ही है पराई फिर रहे आश्रित सदा ,
बेटे पढा़ परिवार सुख दे , खुद पराश्रित जान से ।
पीती रहे अपमान को , उफ़ तक नहीं करती कभी ,
जिन्दा रहे परिवार को , मर कर उठे दल्लान से ।
जननी सदा पर्याय है जप,त्याग औ ' बलिदान की ,
गाथा यही माँ की अमर जीवन लुटे ईमान से ।।
🍎🍀🍑🌴🌸🍒🌹
🌹🍀 ** .... रवीन्द्र वर्मा, आगरा
मो0-- 08532852618
नमन भावों के मोती
👏👏👏👏👏
माँ
ममता की मूरत।
ईश्वर की सूरत |
इस जगती पर-
हर बच्चे की जरूरत |
मैं थी असहाय
निर्बल निरुपाय |
हृदय से लगाया तुमने सँवारा हुई मैं सहाय |
मेरा दुख तेरा तेरे सुख मेरे थे
आज ये जाना |
तेरे ही नयनों से देखा जग प्यारा
सबको पहचाना रिश्तों को जाना पाया किनारा |
ममता तुम्हारी जीवन आधार |
सपनों को मेरे किया साकार |
हम पर माँ तेरा जन्मों का ऋण -
माँ मेरे जीवन पे तेरा उपकार |
माँ तुझसे जाना है ममता का सार |
माँ की इस महिमा का नहीं कोई पार |
मिसरी सा बोल अनुपमअनमोल
सिखलाया जीवन में मानो मत हार |
©®मंजूषा श्रीवास्तव "मृदुल"
नमन मंच भावों के मोती
दिनांक- १२/५/२०१९
दिवस- रविवार
गीतिका
________
इस जगत् में माँ हमारे प्राण का आधार है।
ईश का भेजा हुआ सबसे बड़ा उपहार है।
अवगुणों का रंच भी उसमें नहीं है अंश भी,
त्याग की प्रतिमूर्ति है माँ प्रेम का संसार है।
सृष्टि के निर्माण में विधि का सुधा संकल्प ऋत,
इस धरा पर माँ मनुज में चेतना विस्तार है।
वेदना को कर सहन मधुरिम नवल मुस्कान दे,
माँ स्वशिशु के दुःख का करती सदा परिहार है।
शीत हो अथवा तपिश हो घोर वर्षण भी सहे,
तुम समझ सकते कि माँ तो प्रेम का आगार है।
---बृजेश पाण्डेय विभात
🌹भावों के मोती🌹
🌹सादर प्रणाम🌹
विषय=माँ
विधा=हाइकु
🌹🌹🌹🌹
(1)वात्सल्य भरा
सागर से गहरा
माँ का ह्रदय
🌹🌹🌹🌹
(2)अश्को की धार
आश्रम में दुःखी माँ
कठोर बेटा
🌹🌹🌹🌹
(3)सुना है मैंने
लोई जैसी है रोटी
माँ जैसी बेटी
🌹🌹🌹🌹
(4)हाथ में ज्वाला
आंखो में अश्रुधारा
चिता पर माँ
🌹🌹🌹🌹
(5)करे अर्पण
जो बच्चों को जीवन
सिर्फ वो है माँ
🌹🌹🌹🌹
(6)कैसी ममता
माता बनी कुमाता
कूड़े पे शिशु
🌹🌹🌹🌹
(7)ममता मोती
मिले एक जगह
माता की झोली
🌹🌹🌹🌹
(8)आत्मा में छुपी
माँ महिमा निराली
सभी ने जानी
🌹🌹🌹🌹
(9)परमात्मा में
रहता माँ निवास
नहीं अंजान
🌹🌹🌹🌹
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
12/05/2019
सादर नमन
12-05-2019
जननी (माँ)
हिलती नींव, बिखरता रिश्ता
जबसे तात, तुम हुए फरिश्ता
दरकती शाख, फुनगी पे आँख
मर्माहत मूल, ये कैसी भूल
देख के मौका, बिलग हुआ चौका
खेतों के मेड़, किए उलटफेर
ये गाछ,झाड़-झंखाड़, किए दिलों में दरार
तिकड़म और तकरार, आँगन में उठती दीवार
कुहकती कोख, भाग्य-भर संतोख
अतीत की परछाई, धुंध-सी छाई
अविरल अश्रुधारा, संतति संग बेसहारा
लहराती टहनियाँ, एकाकी दुनिया
विलुप्त हुए घाम, जिन्दगी की शाम
घना कुहरा, कालिमा का पहरा
पलभर शेष रात्रि, बोझ भई धात्री
हृदय में छाले, किये दो निबाले
सम्पदा के वारिस, रिश्ते हुए खारिज
बनके मीर, खींचे लकीर
विभाजित जागीर, सुसुप्त जमीर
अचल है धरणी, कैसे बँटे जननी?
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
नमन - सम्मानित मंच
12 - 05 - 2019
विषय - **माँ**
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मातृ - दिवस
~~~~~~
***माँ***
०००००००
प्रश्न सहज सब कर रहे, माँ से बढ़ कर कौन ।
मानव की औकात क्या, वेद रह गये मौन ।।
माँ से ही घर-बार है, माँ से ही संसार ।
संतति की सब कुछ वही, पल-पल देती प्यार ।।
पालन पोषण माँ करे, जीवन का आधार ।
माँ बिन यह मुश्किल बने,महिमा
अपरम्पार ।।
बच्चों को जब कष्ट हो, माँ होती बेचैन ।
अपना सुख सब छोड़ कर, जगती सारी रैन ।।
माँ ईश्वर का रूप है, समझो मेरे मीत ।
बिन माँगे संतान को, सदा बाँटती प्रीत ।।
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया
नमन मंच को
दिन :- रविवार
दिनांक :- 12/05/2019
विषय :- माँ
विश्व मातृ दिवस पर संपूर्ण मातृ शक्ति को शत् शत् नमन🙏🙏🙏🙏🙏
शीतल सी मंद बयार तुम..
जीवन नैया की पतवार तुम..
माँ तुम ही हो पालनहार मेरी..
हो तुम ही पूरी कायनात मेरी..
प्रेम की मूरत..
ममता की सूरत..
स्वच्छ चंद्रिका सी..तेरी सीरत..
करुणा की सागर तुम..
स्नेह की हो गागर तुम..
छलकाती सदा स्नेहसुधा..
कल्पवृक्ष की हो क्यारी तुम..
भावनाओं का भंडार तुम..
संवेदनाओं का प्रवाह तुम..
भाषा की गरिमा तुझसे..
संस्कारों की जननी तुम..
तुम ही हो शब्दकोश..
तुम ही हो वर्णमाला..
तुमसे ही सजी..
प्रेम की हर पर्वतमाला..
तुम ही हो आवाज मेरी..
सपनों की परवाज मेरी..
तुमसे ही है जीवन मेरा..
तुम ही हो सरताज मेरी..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
नमन भावों के मोती,
आज का विषय, " माँ "
दिन, रविवार,
दिनांक, 12,5,2019,
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
हो झूठ चाहेे सारी दुनियाँ पर, यहाँ माँ से सच्चा कोई नहीं।🌷
कही है हमने बात हकीकत की, कुछ अपवादों की बात नहीं।🌷
ममता ही छलकती है आँखों में, कहाँ छुपे हैं आँसू पता नहीं।🌷
वो अन्नपूर्णा है सबके लिए, पर उसने क्या खाया पता नहीं।🌷
है सर्वस्य निछावर बच्चों के लिए, क्या बचाया अपने लिऐ पता नहीं।🌷
माँ आँचल में समेटे दुआओं को,
वो लुटा देती है कब पता नहीं।🌷
है ढाल भी माँ तलवार भी है,
वो कैसे सब कर लेती पता नहीं।🌷
शीतल धारा होती माँ खुशियों की,
इतना धैर्य कहाँ से लाती पता नहीं।🌷
मित्र गुरू स्वामिनी अस्तित्व की माँ, कैसे सब सिखला देती पता नहीं।🌷
इकलौती सच्चाई माँ दुनियाँ की,
कौन है उसके जैसा पता नहीं।🌷
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
Jai ho......मातृ दिवस पर दुनिया की सभी माताओं को नमन है ।।
माँ तो माँ है माँ तो माँ है ,
माँ पर मैं क्या लिख पाँऊ ।।
माँ पर लिखना हो तो मित्रों ,
शब्द कँहा से में लाऊँ ।।
ज्ञान रूप में ,माँ ने ही तो ,
मूर्खो को विद्वान् किया ।।
शक्ति रूप में, माँ ने ही तो ,
दुष्टों का सँहार किया ।।
ना होती जो गंगा तो ,
पूर्वज को मोक्ष दिलाता कोन ।।
ना होती जो अनुसिया ,
त्रिदेव को दूध पिलाता कोन ।।
माँ ने ही तो अन्नपूर्णा बन ,
सृष्टि के भंडार भरे ।।
तुम्हीं बताओ कैसे कोई ,
माता से ना प्यार करें ।।
माँ तो माँ है,माँ तो माँ है ,
माँ पर में क्या लिख पाऊँ ।।
समंदरों की कलम बनाऊँ ,
पृथ्वी पर ना लिख पाऊँ ।।
माँ की ममता पाने को ,
ईश्वर भी यंहा तरसता है ।।
कृष्णा पर दो,राम पर तीन ,
माँओं का प्यार बरसता है।।
वेदों ओर पुराणों ने भी ,
माँ का ही गुणगान किया ।।
इसीलिए तो माँ का दर्जा ,
ईश्वर का स्थान दिया ।।
माँ पर लिखना हो तो मित्रों ,
ये तो बिलकुल वैसा है ।।
जैसे बहते पानी पर ,
पानी के लिखने के जैसा है ।।
रूपेश राठोड धार (म,प्र)
एै मां तुझको कर्म समर्पित
कर्म क्या मेरा धर्म समर्पित
पर हमको दे वीर कुछ और,
एक फतह, दूजी फतह,तीजी फतह
जीत का एक लम्बा दौर
फिर भी कहते तान के सीना
"ये दिल मॉगे मोर" l
मेरे तुझको गीत समर्पित
गीत क्या सारी जीत समर्पित
पर मांगू अमन की भोर,
बहन का भाई , मॉ का बेटा
वीरांगनां का अमर सुहाग
पापा का गर्वित होकर कहना
होता एेसा एक बेटा और,
फिर ये कहते तान के सीना
" ये दिल मॉगे मोर"l
ये तन मन सब कुछ तेरा है
जीवन का हर पल तेरा है
हो जाता मन भाव- विभोर,
जब देखूं बढते कदमों को
हंस-हंस के सहते सदमों को
भूल न जाएं ऐसा दौर,
कहते रहें हम तान के सीना
" ये दिल मॉगे मोर" l
ऐ जन्म दायिनी जन्म समर्पित
जन्म और मेरा मर्म समर्पित
पर मॉगू देश में शांति हर ओर,
हिन्दू को हो मुसलमॉ प्यारा
सिक्ख ईसाई का हो सहारा
सबमें बहे तेरी ही धारा
लहराए तिरंगा प्यारा,
देश भक्ति हो मन मे घोर
और कहें फिर तान के सीना,
" ये दिल मॉगे मोर"
" ये दिल मॉगे मोर" l
Srilal Joshi "sri" तेजरासर, बीकानेर
Mysore
🙏 नमन भावों के मोती मंच 🙏
विषय : 'माँ'
दिनांक : १२/०५/२०१९
विधा : कविता
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विश्व के सब कोश देखे, खोज आये व्याकरण सब,
शब्द पर मिल न सका जो कर सके तुमको बयाँ माँ..?
गर्भ में नौ मास रख मेरा सृजन तुमने किया था,
दुग्ध कर निज रक्त का तुमने मुझे जीवन दिया था,
थपकियाँ देकर सुलाती थी निशा भर जाग कर तुम,
हो विकल उठती थी पल भर देखती थी गर जो गुमसुम,
नोच लेना, काट लेना, मारना आदत थी मेरी,
किंतु तुमने सब भुलाकर प्यार से चूमा दुलारा।
कुछ मिला खाने को तुमको तो मुझे पहले खिलाया,
सो गई गीली तरफ तुम मुझकों सूखे में सुलाया,
दर्द करती थी भुजाएं किन्तु कुछ कहती न थी तुम,
कि कहीं मैं नींद से यूं हड़बड़ाकर उठ न जाऊँ,
आज भी है याद बचपन का वो हर इक वाकया माँ..!!
विश्व के सब ................................................!!
आज भी संसार से जब खिन्न होता मन हमारा,
जब मेरे अपने ही हमसे कर रहे होते किनारा,
जब लगा कि मैं ही हूँ जग में सभी से दीन दुखिया,
तब मेरी माँ की अचरियाँ ही बनी मेरा सहारा,
आज भी मुझको मेरी माँ राजकुँवर बोलती है,
बिन पिए जल व्रत कई मेरे लिए वो रख रही है
आज भी मिलती है उसकी गोद मे ही नींद मीठी,
आज भी जब चोट लगती है तो 'माँ' आवाज आती,
माँ हो सिरहाने तो अपने दर्द सारे भूल जाता,
सत्य, माँ से बढ़ जगत में दूसरा मरहम नही है,
तो कहो! मैं किस तरह तुमको समेटू एक दिन में,
जबकि मेरे रक्त के हर बूद पर है ऋण तुम्हारा,
विश्व के उपलब्धियों की प्राप्ति की इच्छा नही है,
चाहता हूँ बस बुढ़ापे में बनूँ तेरा सहारा..!
और मैं पूरी करूँ हर इक तुम्हारी कामना माँ..!!
विश्व के सब ........................................ !!
🙏 'कुमार आशू'
नमन भावों के मोती
विषय - माँ
12/05/19
रविवार
कविता
पहला प्यार मिला माँ से
जब वह मुझको दुलराती थी
उसकी निश्छल ममता मेरे
तन-मन में बस जाती थी |
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
उसका मृदुल स्पर्श मुझे
चलने को प्रेरित करता था
बार -बार माँ -माँ कहलाना
उसको प्रमुदित करता था |
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
वह मुझको बाँहों में लेकर
सदा झुलाया करती थी
मेरी एक हँसी पर वह
पूरी न्यौछावर रहती थी |
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
मीठी लोरी गा -गाकर वह
मुझे सुलाया करती थी
मेरे एक रुदन पर वह
व्याकुल हो जाया करती थी |
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
ऐसा प्यार यहाँ दुनिया में
और कहीं मिल पाता है
केवल माँ की ममता का ही
सार समझ में आता है |
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
मां पर कुछ हाइकु
*************
मां की ही कृपा
सबको मिली धरा
फिर क्यों मारा???
घर दूकान
बंटा जर मकान
कौन ले मां को???
बुजुर्ग मायी
खत्म हुयी दवाई
सूखी खटाई।।।
माँ की इज्जत
बहू करे न बेटा
चाहें कीमत।।।
मां जैसे मरी
सब चाहें गहने
साझे की अर्थी।।
माता की सेवा
विरले हैं करते
ढूंढे न मिलें।।।
भावुक
भावों के मोती
12/05/19
विषय- मां
मां मैं, मैं प्रसू मैं धात्री
मेरा नन्हा झूल रहा था
मेरी आस के पलने में
किसलय सा कोमल सुकुमार
फूलों जैसी रंगत
मुस्कानो के मोती लब पे
उसकी अनुगूँज अहर्निश
किलकारी में सरगम
मुठठी बांधे हाथों की थिरकन
ज्यों विश्व विजय पर जाना
प्रांजल जैसा रूप मनोहर
प्रांजल सी प्रति छाया
देख के उस के करतब
अंतस तक हरियाया
याद है मुझको वो
प्रथम स्पंदन जो अंदर
गहरे अनुराग कर पुलकित
गात को दे मधुर आभास
मै मां मै प्रसू मै धात्री
कर धारण तूझको
सृष्टि भाल सुशोभित
नील मणि सम गर्वित
चंद्र कला सी बढती शोभा
ब्रह्मा स्वरुप विश्व सृजक
पहला पदार्पण एक सिहरन
अशक्त नाजुक देह कंपित
निर्बोध डरा सा मन बेताब
प्रथम क्रंदन, मां की मुस्कान
हल्की महक मां की परिचित
और सब अंजान,
मां ने पाया नव जीवन औ'
विधाता से अप्रतिम वरदान।
स्वरचित।
कुसुम कोठारी ।
सभी मातृ शक्ति को प्रणाम 🌹🙏
नमन "भावों के मोती"🙏
12/05/2019
हाइकु(5/7/5)
विषय:-"माँ /माता"
(1)
प्रातः वंदन
गौ माता आगमन
शुभ चरण
(2)
तुलसी माता
आँगन बैठकर
रोग भगाये
(3)
सींचते प्राण
गंगा मैया की गोद
धुलते पाप
(4)
स्नेह लुटाती
सम्पदा को बाँटती
धरती माता
(5)
सुरक्षा छाया
सर्वधर्म आँचल
भारत माता
(6)
प्रतीक शक्ति
कर्तव्य की राह,माँ
"ममता" मूर्ति
स्वरचित
ऋतुराज दवे
नमन भावो के मोती
दिनांक-12/05/19
शीर्षक-मां
विधा-मुक्त रचना
बेटे का मां को पत्र (मुक्त रचना)
जन्म से पहले भी मां तुमने
कितने दर्द सहे होंगे !
स्वस्थ रहू मैं गर्भगृह में
कितने यत्न किए होंगे!!
मेरे खातिर खाना कम
ज्यादा दवाए पी होगी !
ज्ञानी और विद्वान बनूं मैं
गीता कुरान पढी होगी !!
जन्म लिया था जब मैने मां
तुम दर्द से कितना रोई होगी !
जब तक मैं चैन से ना सोऊं
तुम भी नही सोई होगी!!
मेरे आधी रात में रोने से
तुम रात भर जागा करती थी !
मैं सोता था मस्ती में
तुम लोरी गाया करती थी!!
जब मैं पोटी करके रोया
मलमुत्र भी तुमने पोछा है !
अपनी सुध-बुध खोकर भी मां
तुमने मेरा हित ही सोचा है!!
मां ,जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ
तुम बहुत दुलारा करती थी !
मेरे पिछे दौड दौड कर
मुझे खिलाया करती थी!!
मां तुम कितनी अच्छी थी
मां तुम कितनी प्यारी थी!
एक पप्पी मैं तुम्हे लगाता
तुम चार लगाया करती थी!!
मेरी तुतलाती बातो को
तुम सदा सुधारा करती थी!
मुझे चिडाने वालो को मां
तुम डांट लगाया करती थी!!
पापा जी की डांट डपट से
तुम मुझे बचाया करती थी!
मैं कोई गलती ना दोहराऊ
बहुत समझाया करती थी!!
मुझे याद है वो पहला दिन
जब तुमने स्कूल पहुंचाया था!
मैं रोया था स्कूल में दिनभर
तुमने घर में कुछ नही खाया था!!
रोज शाम को घर आते ही
आंचल से मुझे लगाती थी!
ABCD मुझे सिखाती
मेरा होमवर्क करवाती थी!!
मां तुम सच में अच्छी थी
अच्छी टीचर के जैसी थी!
मेरे पुराने खिलोनो को मां
तुम बचा बचा कर रखती थी! !
काजू बादाम,पिस्ता किशमिश
बचा बचा कर रखती थी!
सोने से पहले, जागने के बाद
वो मुझे खिलाया करती थी!!
मैं तो मोटा ताजा था पर
तुम दुबला-पतला कहती थी !
बुरी नजर से मुझे बचाने
काला टीका लगाया करती थी!!
मां मैं थोड़ा काला था पर
तुम चांद का टुकड़ा कहती थी !
रगड़ रगड़ कर नहलाती और
पाउडर खूब छिडकती थी!!
मेरे गंदे मैले कपड़े
रगड़ रगड़ कर धोती थी !
मां तुम सबसे पहले जगती
सबसे बाद मे सोती थी! !
निरंतर ------------------------
सुरेश जजावरा "सरल"
स्वरचित मौलिक रचना
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
************************************
पकड़ उँगली सभी को माँ सदा चलना सिखाती है
प्रथम होती गुरू माता सही रस्ता दिखाती है।
सहे हर दर्द को हँसकर रहें हालात चाहें जो
भला है क्या बुरा है क्या सदा माँ ही बताती है।
बला सब दूर रहती है दुआ पूरी सभी होती
सदा रोशन रहे घर वो जहाँ माँ मुस्कुराती है।
रहें बच्चे सदा महफूज़ करती है दुआएं माँ
बचाने को बुरी नजरों से नित काजल लगाती है।
नहीं माँ भेद करती है रहें औलाद कैसी भी
लगे जो घाव तो माता सदा मरहम लगाती है।
करें गलती कभी बच्चें उन्हें फटकारती है माँ
अगर रूठे कभी बच्चे उन्हें हँसकर मनाती है।
रहें भूखी हमेशा माँ मगर बच्चों को दे भोजन
भले हों आँख में आँसू मगर सबको हँसाती है।
स्वरचित
रामप्रसाद मीना'लिल्हारे'
चिखला बालाघाट (म.प्र.)
सादर अभिवादन आदरणीय मंच
🙏🙏🙏🙏
वैसे तो हमारा हर दिवस मातृ दिवस होता है और होना भी चाहिए. किंतु फिर भी पाश्चात्य संस्कृति के अनुसार आज मातृ दिवस पर हम सभी को अनंत शुभकामनाएं
💐💐💐🙏🙏🙏
____________________
ताटंक छंद
विधान:- सम मात्रिक छंद, 16-14 की यति से 30 मात्राएं, पदांत में यगण अनिवार्य, कुल 4 चरण, क्रमागत युगल चरण सम तुकांत ।
______________________
जीवन-नौका
प्रकृति चैत्र मास में जैसे, सकल नवल हो जाती है ।
जीवन को जीवन देकर माँ, नवजीवन खुद पाती है ।
तेज भले वैशाख धूप हो, पथ संघर्ष चलाती माँ ।
अमलतास पलाश शिरीष सा, खिलना हमें सिखाती माँ ।
जीवन जेठ दुपहरी सा तो, माँ है पीपल छाया सी ।
जल सी पावन शीतल निर्मल, मूल्यवान सरमाया सी ।
आषाढ़ मास बरखा से जब, मन-माटी गीली हो ली ।
संस्कार-बीज बो देती माँ, बोल बोल मीठी बोली ।
माँ सावन सा नेह सींचती, सजा अधर पर मुस्कानें ।
खुश होकर कजरी गाती वह, हरियाती जब संतानें ।
कभी निराशा में जब छाते, भय के बादल भादो में ।
संबल भरती सूर्य किरण सी, माँ आशा संवादों में ।
माँ कहती दुख-घन जब छटते, शरद चंद्रमा है आता ।
हों ज़रूरत ओस सी छोटी, अश्विन संदेशा लाता ।
मन कार्तिक की रातों को माँ, दीवाली कर देती है ।
घोर तमस्वी भरी अमा को, जगमग जग कर लेती है ।
अवसादों की सर्दी में माँ, धूप बने हल्की मीठी ।
अगहन सूरज बन हर लेती, सारी पीड़ाएँ सीठी ।
पौष दिवस सा सुख जब आकर, झट से वापस हो जाए ।
धीरज धरना सिखला कर माँ, अनुभव ऊष्मा फैलाए ।
माघ कुहासा सी अड़चन गर, इस जीवन में छा जाती ।
डगमग मत हो भर डग मग मे, माँ हिम्मत से समझाती ।
माँ कोयल सी बोल रही है, मौसम हुआ सजीला है ।
इतनी सीखें पा जीवन ये, फाल्गुन सा रंगीला है ।
रोज़ सुबह से सांझ ढले तक, आगे हमें बढ़ाती माँ ।
उदय अस्त सा सुख-दुख आता, जीवन पाठ पढ़ाती माँ ।
ये सुबह सांझ ये मास बरस, आस-हवा का है झोंका ।
बस माँ की आशीष-पाल से, चलती है जीवन नौका ।
-अंजुमन 'आरज़ू'©✍
स्वरचित एवं मौलिक रचना
नमन मंच
१२/०५/२०१९
विषय--- माँ
लघु कविता
"कैसे माँ का गुणगान करूँ"
नहीं शब्द मिला अबतक मुझको,
जिससे माँ का गुणगान करूँ।
पाला है जिसने नाजों से ,
कैसे उसका मैं बखान करूँ।
माँ तो देवी है ममता की,
किन शब्दों से उसका सतकार करूँ।
लहू जिसका मेरी रग रग में है,
क्यों न उसका गरिमा गान करूँ।
उंगली पकड़ कर जिसकी चलना हमने सीखा,
वह शब्द बतादो जिससे मैं उसका श्रृंगार करूँ।
जिसके आंचल में दुनिया की हर खुशी है सिमटी,
कोई आज बता दे आकर के कैसे उसका मैं मान करूँ।
हैं कर्ज बहुत माँ के हम पर,
क्यों न पूजा कर बस ध्यान धरूँ।
नहीं शब्द मिला अब तक मुझको
जिससे माँ का गुणगान करूँ।
(अशोक राय वत्स ) © स्वरचित
जयपुर
मां के आंचल से जब
मुंह ढक कर सो जाता था।
कुछ देर सही सारी मनवेदना से
मुक्त हो जाता था।
मन की शक्ति थी वो मेरी
गुरु प्रथम थी वो मेरी।
सद्गुण का पाठ पढ़ाती थी वो
अपनी पलकों पर सदा बिठाती थी वो।
मां अब तेरे बिन जीवन सूना लगता है।
मेरा मन तेरी निश्चछल ममता को तरसता है।
नमन "भावो के मोती"
12/05/2019
"माँ"
लघु कथा
################
मेरी "माँ "ममता की प्रतिमूर्ति, धर्म और संस्कारों की अनुगामिनी।
"भोर मंगलाचरण'
"हे कृष्ण करुणासिंधु दीनबंधु जगतपते।
गोपेश गोपिकाकांत राधाकांत नमस्तुते।।
"तप्त कांचन गौरांगी राधे वृंदा वनेश्वरी।
वृषभानु सूते देवु प्रणमामी हरिप्रिये।।
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में जगना,सूर्योदय से पहले नित्य पूजा संपन्न करना।माँ के भजन एवं करताल ध्वनि की आवाज सुनकर सभी जाग जाते हैं और वो आज भी.....।
सुबह मंगल आरती::---
विभावरी शेष आलोक प्रवेश
निद्रा छाड़ी उठो जीव.......।
सुबह गीता या रामायण का पाठ जो उम्र के साथ सुबह और शाम का कार्य हो चूका है।घर की रसोई में जो भी बनता लड्डू गोपाल को भोग के बाद प्रसाद के रुप में ग्रहण करना..शुद्ध सात्विक आहार का सेवन ..माँ के ही कारण हम सभी भाई-बहनों ने तामसिक भोजन से परहेज रखा है।
सिर्फ यही नहीं "मेरी माँ"का साहित्य में भी रुझान रहा,उनके पसंदीदा साहित्यकार "मुंशी प्रेमचंद"रहे है।उनकी रुचि संगीत में भी थी,मुकेश के गाने खूब सुना करती थी।
"चिठिया हो तो हर कोई बाँचे
भाग न बाँचे कोइ...."ये पसंदीदा गानों में से एक थे।
दोपहर का वक्त रेडियो में "नारी जगत","नारी लोक"सुनते-सुनते सिलाई-कढ़ाई और सर्दी के मौसम में स्वेटर बुनने में बिताया करती थी।इस कला में इतनी निपुण थी कि आस-पड़ोस की औरतें माँ से सिखने के लिए आती थी।
रेडियो से सुनकर ही माँ ने हर फलों का जेली और मुरब्बा बनाती थी।मैं भी बनाई हूँ माँ से सीखकर...पर माँ के हाथों का स्वाद नहीं आ पाता...मुझे वो स्वाद आज भी याद है।
मासिक पत्रिका"मनोरमा" और "सरिता"प्रत्येक माह पढ़ती थी कभी-कभार अखबार के प्रचार में देखती थी कोई विशेष माह में "गृहशोभा"में स्वेटर के नये पैटर्न हैं तो वो लेती और उसे पढ़कर पैटर्न उतारती।हम सभी को माँ ने अपने हाथों से बुनकर पहनाती थी,यहाँ तक मेरे बच्चों के लिए भी हर साल एक सेट बनाकर भेजती रही।माँ के बारे में जितना कहूँ कम है,....।शायद दिनभर लिखूँ तो भी पूरी न हो....!!!!!
अभी हाल ही में पापा की आचानक मृत्यु से माँ को तोड़कर रख दिया है..अभी तक उबर नहीं पाई है.. स्वास्थ्य बिल्कुल गिर गया है।डाक्टर और दवा का चक्कर लगा रहता है।और ज्यादा नहीं लिख पा.....।।
सादर चरण वंदन🙏🌹🙏
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
नमन मंच : भावों के मोती
विषय : माँ
विधा : छंद
माँ बालक का पहला रिश्ता
ईश्वर खुद माता में बसता
संस्कार सब माँ से आए
सेवा शिक्षा आदिक पाए
माँ है पूजा माँ है वंदन
माँ से पहला टीका चंदन
स्व:रचित रचना
राजकुमार निजात
आज मात दिवस पर संसार की समस्त मात शक्तियों को मेरा सत सत नमन के साथ ही उनके सम्मान में मेरी उक्त कविता सब सस्नेह सर्मपित।
********************************************
विधा - कविता
विषय - मां
12/05/2019
दिवस शनिवार
. !! मां तो बस मां होती है !!
*******************
बांटें खुशियां सहती दुःख,
फिर भी न करती वो उफ़,
बहे सदा बन प्रेम सुधा रस,
हर हाल में रखे सबको खुश,
सुखों की वो राह होती है।
मां तो बस मां होती है।।
नौ महिनों का दर्द सहा,
तब धरा पे ले कर आई,
अमृतमयी दुधपान करा,
बल, बुद्धि, दिशा दिखाई,
कृपादायिनी वो होती है।
मां तो बस मां होती है।।
भरे पेट खुद भूखी रहकर,
रखे खुशियों का ध्यान सदा,
गीले बिछौने खुद सोकर,
सुलाए सूखे पे हमें सदा,
जीवन का वो प्रवाह होती है।
मां तो बस मां होती है।।
बहा के अपनी आंख से आंसूं,
लाल के हर दुःख को हर ले वो,
मिले न जग में दूंढ़े से मां सा जूं,
सच जान समझ पहचान ले जो,
प्रेमातुर मां अथाह होती है।
मां तो बस मां होती है।।
जिसने मां का अपमान करा,
खुशियों को ग्रहण लगाएगा,
बूढ़ी मां का जो न ध्यान धरा,
तो बस जीवन भर पछताएगा,
खफा तब भी वो न होती है।
मां तो बस मां होती है।।
जो करूं सदा उम्र भर सेवा,
"अर्श" ऋण नहीं चुक पाएगा,
लाख जतन कर लूं मैं देवा,
ऋण बाकी ही रह जाएगा,
वो कब रब से जुदा होती है।
मां तो बस मां होती है।।
__स्वरचित एवं मौलिक कविता__
Kavi DrHS Arsh Lucknawi--
-------------------------------------------
नमन माँ को
माँ
12/5/2019
पिरामिड कोशिश
प
1
माँ
सत्य
महान
देवी तुल्य
पालन कर्ता
सृष्टि रचयिता
ममता का आंचल
2
माँ
दुर्गा
मोहक
छवि प्यारी
सिंह सवारी
काली अवतारी
रक्त बीज संहारी
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
देहरादून
उत्तराखंड
नमन् भावों के मोती
12/05/2019
विषय-माँ
विधा-कविता
माँ का प्यार
--------------–--
माँ ने सही अनगिनत पीड़ा
कष्ट सहा पर आह न आयी
लाड़-प्यार शिशु की सब क्रीड़ा
माँ ने निंदिया को लोरी गायी
शिशु के हर सुख दुःख का बीड़ा
माँ ने ममता से उसे उठाया
माँ के वात्सल्य ने हमको जकड़ा
हमारे नाज नखरों को उठाया
जब पैरों पर हुआ खड़ा
हाथ पकड़ लिखना सिखलाया
पाला पोषा दूध पिलाया किया बड़ा
जीवन का हर मर्म सिखाया
बच्चों पर जब कोई कष्ट पड़ा
चुपके से उसको स्वयं उठाया
ममता का नीर ह्रदय में उमड़ा
धूप छाँव से हमें बचाया
माँ की आँखों में बहती करुणा
ईश्वर ने अपनी प्रतिमूर्ति बनाया
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
नमन-मंच"
"दिंनाक-१२/५/२०१९"
शीर्षक-माँ
माँ की याद मे लिखी कविता।
माँ ,तुमसे दूर होकर मैं रोऊँ चुपचाप
हर एक पल तेरी याद मे बिताऊँ
किसे समझाऊँ अपनी दिल की बात।
माँ क्यों चली गई चुपचाप।?
जीवन के हर एक रस मैं
चख रही चुपचाप
कभी दुःख की घड़ियों से गुजरती हूँ,
हजारों आँसू बहा,
तो कभी खुशियोँ के फूल चुनती हूँ मैं हजार।
माँ कौन दिलायेगा मुझे
आनेवाले झंझावात से परित्राण
या कौन थमायेगा मुझे
खुशियोँ की चाभियों की सौगात
माँ क्यों चले गई चुपचाप
माँ तेरी याद में मैं रोऊँ चुपचाप
हरपल तेरी याद मे बिताऊँ
किसे समझाऊँ अपनी दिल की बात।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
आज का विषय माँ पर मुक्तक साथियों।।
कई मन्नोतो पर माता ने,
मुझको पुत्र रुप में पाया,
सभी मन्नोतों ने जिसका गुण,
उसके गौरव में ही गाया।।1।।
मुझे देखकर मेरी माँ ने,
और किसी को बड़ा नदेखा,
मुझको पाकर उसने समझा,
प्रभु का सबकुछ मैने पाया।।2।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दासबसना छ,ग,।।।
🙏🌹नमन मंच🌹🙏
आदरणीय गुरुजन को नमन
🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏
विषय-माँ
दिनांक-१२-०५-२०१९
विधा-चोका
मैं मुस्काती हूँ
#माँ फिर रो देती है
सब जानती
तेरे हर्षित नैन
छलक कर
देते आशीर्वाद हैं
पापी संसार
राह अप्रीतिकर
मत गिरना
संभल के चलना
तेरी अँखियाँ
बरसते नयन
बस ये दुआ देते ।।
**स्वरचित***
-सीमा आचार्य-(म.प्र)
“ भावों के मोती ”
नमन मंच
विषय * माँ*
मां तुम याद बहुत आती हो
चूल्हे पर फुलके सेंक सेंक
कंगन के खनखन करते गीतों से
प्यार परोसा करती थी
माँ तुम याद बहुत आती हो
भीगी भीगी बरसातों में
पानी की नन्ही नन्हीं बूंदों सी
सब धो कर निर्मल कर जाती थी
उन धुले खिले भावों सी
माँ तुम याद बहुत आती हो
धरती के अंतर्मन की आग लिए
ऊपर से हरियाली दोशाले की ओट लिए
जीवन की ऊंची नीची राहों में
तुम नर्म सर्द एहसास लिए
माँ तुम याद बहुत आती हो
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित
नमन
भावों के मोती
१२/५/२०१९
विषय-मां
नहीं है आज शब्द
और मां को शब्दों में
अभिव्यक्ति देना मेरे लिए
संभव नहीं है।
'मां 'एक शब्द नहीं,
उसे शब्दों में कैसे ढालूं।
बस यही है कोशिश,
उसकी ममता को मैं संभालूं।
कर लूं उसकी जी भर सेवा,
इससे बढ़कर नहीं कुछ दूजा
कभी न उसका दिल मैं
दुखाऊं,
बिन बोले उसको समझ
जाऊं।
आंख में उसके आंसू न आएं,
इतना सुख उसको दे पाऊं।
कभी करूं न काम मैं ऐसा,
मां से बढ़कर हो जाए पैसा।
रहे सलामत मां और ममता,
मां की किसी से कहां है समता।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
भावों के मोती
12/05/19
विषय- मां
द्वितीय प्रस्तुति
हां मै पागल हूं
मां हूं ना!!
अपना बचपन देखा उन में
मेरा अंश है वो
मां हूं मैं ।
मेरी प्रतिछाया
मेरी फलती आशा
चित्रकार हूं मैं।
पल पल जीया
उसे अपने अंदर
जननी हूं मैं ।
साकार हुवा सपना
उसे देख कर
पूर्ण तृप्ता हूं मैं ।
मैं गर्वित हूं
विधाता की तरह
रचना कार हूं मैं ।
खिले रहे शाश्वत वो
मेरी बगिया में
बागबां हूं मै ।
सम्मान देते भगवान
सम, मूझ से कहते
पालन हार हूं मैं।
स्वरचित
कुसुम कोठरी।
नमन मंच
दिनांक-12/05/2019
विषय-माँ,
विधा -दोहा छंद
माँ ममता अरु प्रेम की,शुद्ध विशुद्ध मिसाल।
बरगद की छाया घनी,तरुवर विटप रसाल।
माँ की सेवा से सदा,होता है कल्याण।
माँ का हृदय विशाल है,उसका नहिं परिमाण।।
माता जीवन में भरे ,आशा प्रेम प्रतीति।
प्रथम गुरू गृह की वहीं,शिक्षा सुघर सुनीति।।
उसके पय के पान से ,बालक वज्र समान।
प्रथम गुरू गृह की वहीं,देती आत्मज्ञान।।
ताप श्राप से मुक्ति दे,माता का आशीष।
जननी का आदर करो,सभी झुकाओ शीश।।
जननी जगजननी समा,सदा करे कल्याण।
बाधा सब हर लेति हैं, तन में भरती प्राण।।
माँ के पय में अमिय है,हृदय बसे भगवान।
माँ का पाँव जहाँ पड़े,होता है कल्यान।।
यह तन माँ से है मिला, और पिता से प्राण।
जितना हो उतना करें,मात पिता कल्याण।।
माँ के जीते जी सभी,रखना उनका ख्याल।
मरने पर सारी क्रिया,देती बहुत मलाल।।
पं रामजस त्रिपाठी, नारायण
चुनारगढ़ उ.प्र.
** माँ **
~~~~~
गीतिका
---------
जग की पालनहारी माता ,
बच्चों की यह भाग्य विधाता ।
जो कोई बच्चों को डाँटे ,
माता को यह नहीं सुहाता ।
धूप अगर हो पथ में भारी ,
बच्चों पर बन जाती छाता ।
प्यारी लोरी - - माता गाती ,
नींदों में बच्चा खो जाता ।
झाला देकर मात बुलाती ,
माँ-माँ कह बच्चा आ जाता ।।
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया
माँ
भावों के मोती
💐💐💐💐
माँ के लिए क्या लिखूं
मां ने मुझे खुद लिखा है
दुलार से प्यार से
संस्कार से है सींचा।
जीवन जीना सिखाया
कदम दर कदम बढ़ाया।
राहों की बलाएं मेरी
माँ मेरी तूने हटाई।
अब रहूं मैं संग तेरे
मेरी किस्मत संग मेरे।
तू हमेशा खुश रहे
ऐसी है मेरी माँ मन्नत
लोंगो से सुना है कहते
माँ के कदमों में है जन्नत।
💐💐💐💐
स्मृति श्रीवास्तव
नमन भावों के मोती
विषय - माँ
विधा- कविता
🌷🌻माँ का आँचल 🌻🌷
सर से सरकती थी ...
जब माँ तेरी साङी .
पल्लू को सम्हालते ...
तू लगती थी बङी ही प्यारी .
तहजीब झलकती थी ...
तेरे सम्हालते हुए पल्लू में .
दिखती थी ममता की मूरत ...
तेरी प्यारी सूरत में .
याद है वो बचपन ..
जब खींच लेती थी..
मैं तेरा आंचल .
कभी मुस्कुराती ..
कभी डांटती ..
कभी खिजाती ..
कभी पुचकार के गले लगा लेती थी तू .
जाने कौन सी हवा ..
उङा ले गई तेरा आंचल .
तरसती रह गई मैं ..
खो गया माँ तेरा वो आंचल .
जिससे करती थी मै .
अक्सर बचपन में शरारत .
सुन्दर सपने सा लगता है मुझको..
माँ वो तेरा प्यारा आंचल.
जो गिरने नहीं देता था आँसू मेंरे ..
अपने पल्लू के छोर से पोंछ ..
समेट मेंरे दुखों को..
खुशियाँ बिखेर देता था ..
माँ तेरा प्यारा आंचल .
काश होता आज भी तेरा आंचल ..
जिंदगी की घनी धूप में
शीतल छाया देता मुझको
तेरा ममता मयी प्यारा आंचल ..
याद बहुत आता है
माँ तेरा आंचल ..
वो सर से सरकता पल्लू
वो ममत्व का सागर..
माँ तेरा आंचल ...
माँ तेरा आंचल...
😢😢😢😢
🙏🌷🙏🌷🙏
From - Niti Agrawal ✍🏾
नमन भावों के मोती
शीर्षक -माँ
दिनांक-12-5-19
विधा --दोहे
1
माँ कविता की रागिनी,माँ करुणा का छंद।
नेह प्रेम व दया भरी, त्याग पुष्प मकरन्द।।
2.
माँ का रक्त शरीर में ,सदा रखें ये याद।
बिना दुआ उनकी मिले, सब कुछ हो बर्बाद।।
3.
दौलत बिरलों को मिले, माँ का शुभ आशीष।
फेरे सर पर हाथ माँ, मिलती सब बख्शीश।।
4
अलादीन का दीप माँ, सब कुछ करती भेंट।
चाहे जितनी आधुनिक,या हो ग्रामी ठेट।।
5.
माँ तुलसी के पात सी,हरे रोग का जोर।
जिस पथ पर कल्याण हो,ले जाती उस ओर।।
6
माँ का दूध लजाय नहिं,बस उसकी ये आस।
जीवन भर खटती रही, लेकर ये विश्वास।।
7.
माँ रब का अवतार है, इसमें मीन न मेख।
रब को क्यों अब ढूंढता,मात चरण को देख।।
*******स्वरचित******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र)451551
शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"
12/05/2019
वर्ण पिरामिड
विषय:-"माँ"
(1)
माँ
आस
विश्वास
जूझे पूरी
रिश्तों की धुरी
ममता गागर
करुणा का सागर
(2)
माँ
श्रद्धा
संबल
कर्म भक्ति
कर्तव्य मूर्ति
घरौंदा बुनती
परिवार पूजती
(3)
माँ
संस्था
संसार
अवतार
बच्चों की छाया
जूठन भी खाया
परिवार समाया
स्वरचित
ऋतुराज दवे
🌹भावों के मोती🌹
12/5/2019
"माँ"द्वितीय प्रस्तुति
हाइकु
1)
माँ का दुलार
गोदी में भरे स्वप्न
चैन की साँस।।
2)
माँ उजास
सच को उकेरती
जीवन आस।।
3)
माता की लोरी
मन को छूती चैन
मीठी सी गोली।।
4)माता की स्मृति
चंद्रमा की किरण
ठंडक देती।।
5)
मन तरंग
माँ इंद्रधनुष सी
रँग भरती।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
शुभ संध्या
शीर्षक-- ।। माँ ।।
द्वितीय प्रस्तुति
समझ लेती थी दूर से
जो दिल की हर दुखन ।
कभी जो चेहरे पर नही
आने देती थी सिकन ।
वह माँ है अब जाना
अब सोचूँ करूँ यतन ।
पर अब वह नही है
होती दिल में चुभन ।
कभी जो ठेस पहुँचायी
करूँ प्रायश्चित सुमरन ।
प्रभु मेरी माँ की आत्मा
का करादो मुझसे मिलन ।
पर अब कहाँ संभव 'शिवम'
समय रहते करो उसे नमन ।
साक्षात ईश्वर रूप होते हैं
ममतामयी माँ के चरन ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/05/2019
12-5-2019
विषय:- माँ
विधा:- विधाता छंद
( द्वितीय प्रस्तुति )
समन्दर तू गुणों का माँ , गुणों को माँ लिखूँ कैसे ।
बनी स्याही नही कोई , लिखे बिलकुल तुम्हें वैसे ।।
रहूँ मैं सोचती हर पल , करूँ गुणगान मैं कैसे ।
खडी हूँ आज पाँवों पर , करूँ आभार मैं कैसे ।।
पढ़ा कर पाठ जीवन का , गहन माँ ज्ञान है देती ।
नहीं कोई समझता जब , समझ तू तोतले लेती ।।
पढ़ाती वर्णमाला है , सिखाती शास्त्र है सारे ।
हुआ कुछ पास जो उसके , सदा संतान पर वारे ।।
अधूरी ही रहे दुनिया , जहाँ पर माँ नहीं होती ।
कहो संवेदना उसको , मधुर अहसास माँ होती ।।
बनाती आत्म निर्भर है , तपस्या रात दिन करती ।
नहीं पर्याय है उसका , ज़रा ढूँढो सकल धरती ।।
✍️
स्वरचित
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
मंच कोनमन
दिनांक 12/4/19
माँ
सांसो की सूत्रधार
देह सृजन
सृष्टि रचिता
भाव प्रणेता
प्राण निछावर
धरा सरीखी
विश्वगुरु बन
रचती व्यक्तित्व
सम्पूर्ण अस्तित्व
हिये में प्रीत
जीवन संगीत
निर्मल धारा
साथ था प्यारा
सुखद अहसास
बुझाती क्षुधा
मूर्ति त्याग
किया परित्याग
सूर्य की किरण
पूजनीय चरण
प्रवीणा त्रिवेदी
स्व रचित
"भावों के मोती"
में प्रेषित
दिनांक -12-5-2019
स्वरचित कविता
शीर्षक - 'मेरी मां'.....
शैशव से ही मां को देखा-
कर्मठता के घेरे में,
सुबह सुबह नित घिर जाती थीं
वो रसोई के फेरे में.
ईश-स्तुति,तुलसी-पूजा-
उनके नियमित काम रहे,
ममतालु,स्नेहिल मां के-
मुख पर सबका नाम रहे,
चटर-पटर भोजन खाते थे-
मम्मी जी के हाथों का,
लुत्फ उठाते बैठ किचन में-
उनकी मीठी बातों का,
घर के कामों में जुट जातीं-
चेहरे पर मुस्कान लिये,
गर्वित होती उनकी हस्ती-
सबका ही सम्मान लिये,
मुंह धोती और फिर नहलातीं-
सुंदर वस्त्र हमें पहनातीं,
चोटी,पोनीटेल बनाकर-
लंच बॉक्स भी रोज लगातीं.
छुट्टी में जब भी जाते थे -
हम सब अपने गाँव में,
सुख के ही अहसास हुए-
मां की ही निर्मल छांव में.
पौ फटते ही अम्मां मेरी-
चक्की में आनाज पीसतीं,
ढेर गूंथकर आटा फिर वे-
चूल्हे धौरे हमें जीमतीं,
दादी की सेवा करतीं वो-
उनके दिनभर पैर दबातीं,
झाड़ू,चूल्हा,चौका,बर्तन-
सारे काम त्वरित निपटातीं
संयम,शील,सहनशक्ति की-
सचमुच वही मिसाल रहीं,
अब तक भी सारी रस्मों को-
घर में निभा संभाल रहीं,
कृशकाया है,मुरझाया मन-
बालक जाकर दूर बसे,
पापा को भी समझाती हैं-
रोएं मिलकर साथ हंसें,
मेरी मां ने संस्कार दे-
नैतिकता के सबक सिखाये,
इस छोटे से जीवन में ही-
गूढ़ रहस्य हमें बतलाये,
मेरी मां को नमन करूं मैं-
शत शत कोटिक बार,
हर बालक को दिया नियति ने-
यह अनुपम उपहार.
#स्वरचित
रचयिता-
डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली -30
सादर नमन मंच
मत्तगयंद सवैया
❤️माँ❤️
मांँ मन में तुम प्रीत बनी अब भी इस जीवन में नित आती ,
दर्द सदा दिल में उठता अरु पीर पगी अँखियांँ भर जाती,
आप कही नित मातु हिदायत अंतस ढांढस ही पहुंँचाती,
याद सदा कर "चंचल" को अब प्रेम नसीहत ही समझाती।
🌹❤️🌹❤️🌹❤️🌹❤️🌹❤️
मांँ करुणा भर के हम तो धरती पर आज गुहार रहे हैं,
कोमल से नयना मन के अब तो बस राह बुहार रहे हैं ।
आंँचल में ममता जिसकी तिन ही हम पाँव पखार रहे हैं।
मांँ अब हाथ रखो सिर पे नित ही हर बार पुकार रहे हैं ।
चंचल पाहुजा
दिल्ली
🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी 🌷
भिलाई दुर्ग छग
दिनांक 12/05/19
दिन रविवार
विषय माँ
विधा मनहरण घनाक्षरी
🌺मुक्तक 🌺
मेरी आस में है माँ,
मेरी साँस में है माँ ।
माँ से है ये जगत है
बिन माँ कैसे यश जहाँ ।
🍁मनहरण घनाक्षरी 🍁
माँ कि गुणगान कर,माँ की यशोगान कर।
माता देवी मान कर ,घर को सजाईये।।
माँ नही कुमाता होती, जग जगराता होती ।
रात रात जग कर,अब तो सुलाइये ।।
तेरे एक आह पर ,आँसू धार बहाकर।
जननी को रुलाकर, अब तो हँसाइये ।।
कितनी चोट खाई माँ, दर्द से कहराई माँ ।
दर्दे बाम लगाकर,"यश" सहलाईये ।।
🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी 🌷
भिलाई दुर्ग छग
नमन मंच को
शीर्षकांतर्गत द्वितीय प्रस्तुति
माँ का प्यार..
गंगा सा विस्तार..
यमुना सा पावन..
नर्मदा सी धार..
सागर सा अथाह..
पर्वत सा उत्तुंग..
वट वृक्ष सा घना..
स्नेहामृत से सना..
आँचल प्यारी माँ का..
बना देवों का गहना..
अन्नपूर्णा सी मूरत..
लक्ष्मी सी सीरत..
घोर अंधकार में..
आशा की किरण...
हौसलों की पाठशाला..
संस्कारों की पाकशाला..
संवेदनाओं के ज्वार लिए..
महिमा अपरंपार लिए..
भावों की बहती निर्मल सरिता..
कवि कलम से निकली कविता..
माँ तो माँ है..
नहीं कोई माँ जैसा दूजा..
सारे भगवन खुश हो जाएं..
गर कर लो इनकी पूजा..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
नमन
"🌹भावों के मोती🌹"
🙏🙏🙏
माँ
ना हर्ष,ना वैभव ना कोई वर माँगूं
मैं असहाय भीष्म, गंगा की शरण माँगूं
प्रतिज्ञाओं में जकड़ा, दायित्वों का करता वहन
मैं दिखता सबल , निर्बल हूँ , माँ का आँचल माँगू़ं
मैं असहाय भीष्म, गंगा की शरण माँगूं
मन में असह्य पीड़ा, दृढ़ नाट्य का ले आलम्बन
मैं क्षुद्र, माँ का अंक निहारूँ
मैं असहाय भीष्म, गंगा की शरण माँगूं
दीर्घ शुष्क आयु से हो विरत
शर शैय्या पर
मृत्यु पूर्व तेरा दरश माँगूं
मै असहाय भीष्म, गंगा की शरण माँगूं
जग ने उपाधि दे दे,
मुझे वृद्ध किया
हे माँ मैं तुससे, मेरा बचपन माँगूं
मैं असहाय भीष्म, बस तेरी ही शरण माँगूं
(स्वरचित)
....लोकप्रताप सिंह राणा
भावों के मोती
बिषय- माँ
अय मेरी ममतामई माँ
तुम्हारी आंखों के दीपक
अंधेरे में राह दिखलाए है।
मैं डूब गई तेरी प्रीत की झील में
जब-जब नफरत के शोले
मेरा तन-मन झुलसाए हैं।
आज याद कर तुझे
अश्क आंखों से छलक आए हैं।
स्वरचित
निलम अग्रवाल, खड़कपुर
भावों के मोती समूह
दिन -रविवार
दिनांक -12/05/2019
विषय -माँ
=====================
( रचना- माँ)
==================
माँ का आंचल सारे जग में ,
सदा-सदा ही प्यारा है।
हर विपदा को तुमने सहकर,
कांटों की राहों पर चलकर।
हर पल जीवन संवारा है,
माँ का आंचल प्यारा है।।
ममतामयी करूणा की सागर,
वह ममता की छांव है।
गिरकर उठना और संभलना,
माँ ने ही सिखलाया है।
दृढ़ निश्चय से मिले सफलता,
माँ तुमने ही दिखलाया है।
आई विपदाऐं भी अनेकों,
किया सामना डटकर तुमने,
हर सुख अपना न्यौछावर कर,
जीवन यह संवारा माँ।
मानवता के धर्म कर्म को,
हर पल माँ ने सिखलाया।
सागर की लहरों को उसने,
किश्ती बनकर पार किया।
हर जन्म तेरा आंचल मैं पाऊं,
माँ तेरी छांव मैं पलूँ सदा।
ममतामयी करूणा की सागर,
करूं तेरा गुणगान सदा।
माँ की ममता के आगे तो,
कठिन डग यहां हारा है।
माँ का आंचल सारे जग में ,
सदा - सदा ही प्यारा है।
(स्वरचित /मौलिक रचना )
.......भुवन बिष्ट
रानीखेत (उत्तराखण्ड)
भावों के मोती मंच के
शीर्षक अंतर्गत :-12/5/2019
मातृत्व दिवस पर:-
माँ :-
माँ तुझे नमन
शतबार नमन
चरणों में तेरे
मेरा वंदन ।
तुझसे हमने
जीवन पाया
तेरे उर का
अमृत पीकर
हो गये मगन ।
संस्कार की
घुट्टी को तूने
घोल के खूब
पिलाया था
हम न भूले
तेरी शिक्षायें
कुछ भी हो
हार नही माने
तेरी बातों के
अर्थ कहां तब
हमने उनको
समझा था ।
वक्त नही पर
रुकता है कभी
उसने हमको
समझा ही दिया ।
माँ बनकर ही
मुझे ज्ञात हुआ
माँ का होना
क्या होता है ।
स्वरचित :-उषासक्सेना
सादर नमन
" माँ"
माँ की शक्ति से ना कोई अंजान,
हर गलती पर देती है क्षमादान,
भूल कर भी ना माँ का दिल दुखाना,
करती न्यौछावर संतान पर अपने प्राण।
**
माँ गाऊँ मैं सदा ही तेरे गुणगान,
तू इस धरती पर है मेरी भगवान,
मेरे दुख दर्द की तू हरता बनकर,
देती मुझको सदा सुख का दान।
**
मातृत्व का तेरे मैं कर्जदार हूँ,
दुखाके दिल तेरा शर्मशार हूँ,
उन गुनाहों की तू दे दे सजा,
माँ जिन का मैं हकदार हूँ ।
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
12/5/19
रविवार
सादर नमन मंच भावों के मोती
का कार्य----स्वपसन्द के तहत एक कविता
माँ को समर्पित
'माँ''
'माँ''
माँ वो स्वर्णिम शब्द है.....
जो स्वयं में समेटी हुई है सृष्टि को,
जो सिर्फ जन्मदाता ही नहीं,
हमारे कर्मों में भी हिस्सेदारी निभाती है,
हमारी प्रथम गुरु माँ.....
जो भरती है अपने बच्चों में संस्कार,व्यवहार,
पढ़ाती है पाठ रीती रिवाज़ों का,
रिश्तों का मर्म समझाती है,
जीवन पथ पर चलना सीखाती है,
माँ के एक स्पर्श से ही
सारी पीड़ाएँ दूर हो जाती थी
माँ की एक जादुई फूँक से....
सारे ज़ख्म भर जाते थे.....
सच माँ के हांथों में कोई जादू तो था.....
कितना घना छाँव था माँ के आँचल में....
जब भी बाँध देती थी मन्नत का धागा,.....
माँ के चरणों में......
वो फ़रियाद तुरंत पूरी हो जाती थी.....
हमारे पीछे सुबह से शाम तक दौड़ती भागती,......
फिर भी नहीं थकती,......
मुझे डाँट कर खुद रोती थी माँ,....
सारे रिश्तों को गूँथ कर एक माला
थमा कर माँ मेरी बहुत दूर चली गयी मुझसे,.....
अब मैं माँ बन कर ऋण चुका रही हूँ माँ का!!
माँ तुम्हे शत शत नमन------
विश्व की सभी माँ को समर्पित!!
# मणि बेन द्विवेदी
नमन भावों के मोती
शीर्षक-माँ
वार-रविवार
🌹माँ 🌹
जब भी दुनियां मुझे सताती है!
तब "माँ"तेरी याद बहुत आती है!!
जब भी दुःखो ने मुझे घेरा है!
तेरी छवि देखकर हुआ सवेरा है!!
दुनियां में "माँ" नही तेरे जैसा कोई मिला!
जिसने मेरे फटे हुए "दर्द-ए- दिल" को सिला!!
हे "माँ"तुम रोज मेरे सपनो में आओ!
ज्यादा नहीं तो थोड़ा ही बतियाओ!!
मैं राह निहारू "माँ" हर पल तुम्हारी!
हे "माँ" मैं तुम पर सदा जाऊँ बलिहारी!!
माँ आप जहाँ भी हो सदैव खुश रहो यही ईश्वर से प्रार्थना
🙏🏻🙏🏻💐💐🌹🌹😊😪
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
घट अमृत
रचे सकल विश्व
माता ममता !!
जीवन पथ
धूप में देता छाँव
माता आशीष !!
उर के पीर
मन तक रखती
बाँटे खुशियाँ !!
प्यारों से प्यारी
नर्म फूलों की क्यारी
माँ की ममता !!
विधा की रची
सर्वश्रेष्ठ रचना
माँ के रूप में !!
देती खुशियाँ
नेक दिल से माता
ईश्वर रूप !!
स्नेह-प्यार से
रिश्तों की हर डोर
थामे है माता !!
स्नेह का स्पर्श
हरे है दुःख-दर्द
माँ का आँचल !!
दिल के दर्द
माँ छिपाये रखती
बांटती खुशी !!
दिव्य ज्योति
मिटाये अंधकार
माँ के संस्कार !!
ममता रूप
माँ का निर्मल मन
झरे है प्यार !!
सृष्टि का स्वर्ग
माँ की गोद में मिले
अटूट प्यार !!
माँ और बेटी
अटूट स्नेह प्यार
जीवनभर !!
पावन गंगा
बहे निर्मल जल
माँ का आँचल!!
सृष्टि का सार
माँ बिन सूना जग
मिले ना चैन !!
पूर्ण जीवन
हमें देता रोशनी
माँ का आशीष !!
माँ का आँचल
स्नेह-प्यार अपार
रचे संसार !!
माँ का प्यार
सृष्टि का उपहार
देता जीवन!!
माता ममता
थाह प्यार का हाला
झरे अमृत !!
माँ का आँचल
ममता का सागर
देता खुशियाँ!!
माता ममता
रचे पूर्ण जीवन
ईश्वर रूप!!
सहके दुःख
रचे है सारा जहाँ
वो माँ का प्यार!!
विधा की रची
माँ है ईश्वर का रूप
सृष्टि की शक्ति !!
माँ का दुलार
मन करे शीतल
देता है शांति !!
माँ एक शब्द
स्नेह का स्पर्श देता
है एहसास !!
माँ एक शब्द
स्नेह भरा आभास
देता सुकून !!
माँ का आशीष
ताउम्र भर साथ
देता समृद्धि!!
मृदु आँचल
माँ कष्ट को सह
बांटे खुशियाँ !!
माँ का आँचल
देता है घनी छाया
जीवनभर!!
जग जननी
सृष्टि में भरे रंग
मिले जीवन !!
माँ की ममता
जीवन का आधार
चले संसार !!
माँ की ममता
ताउम्र अनमोल
करे ना मोल!!
ममता रूप
माँ का स्नेह-प्यार
देता है स्फूर्ति !!
झरे खुशबू
महकाये आँगन
माँ की ममता!!
माँ की ममता
देती हमें खुशियाँ
मिले आनंद!!
माँ देती ज्ञान
जीवन में संस्कार
है अनमोल !!
माँ छोटा शब्द
रचे सकल विश्व
जीवन सार !!
विधा की रची
माँ है ईश्वर का रूप
सृष्टि की शक्ति!!
माँ का दुलार
मन करे शीतल
देता है शांति!!
माँ एक शब्द
स्नेह का स्पर्श देता
है एहसास!!
माँ एक शब्द
स्नेह भरा आभास
देता सुकून!!
माँ का आशीष
ताउम्र भर साथ
देता समृद्धि!!
मृदु आँचल
माँ कष्ट को सह
बांटे खुशियाँ!!
माँ का आँचल
देता है घनी छाया
जीवनभर !!
जग जननी
सृष्टि में भरे रंग
मिले जीवन!!
माँ की ममता
जीवन का आधार
चले संसार !!
माँ की ममता
ताउम्र अनमोल
करे ना मोल !!
ममता रूप
माँ का स्नेह-प्यार
देता है स्फूर्ति !!
झरे खुशबू
महकाये आँगन
माँ की ममता !!
माँ की ममता
देती हमें खुशियाँ
मिले आनंद!!
माँ देती ज्ञान
जीवन में संस्कार
है अनमोल!!
© रामेश्वर बंग
नमन मंच को
विषय : मां
दिनांक : 12/05/2019
मां दिवस पर पूज्य मां को समर्पित
मां
मैने देखा न रब्ब को,
पर देख लिया सब को,
तुमसे बेहतर मिला न सारे जहाँ,
तू ही तो साक्षात रब्ब है धरा पर,
कोई ओर दुसरा रब्ब है कहां ?
तु ही दुर्गा बनी तु ही शक्ति बनी,
तुमसे ज्यादा किसी की भक्ति नहीं।
विपरीत स्थितियों में भी तुम,
मैने देखा कभी भी थकती नहीं।
दुख अपने न कहती,
सब चुपचाप सहती,
तेरा हृदय विशाल जैसे आसमान,
तू ही तो साक्षात रब्ब है धरा पर,
कोई ओर दुसरा रब्ब है कहां ?
तेरे आँचल का साया, पल पल भाया,
तु सिखाती रही , मुझे जीना न आया,
अब तेरे जैसा कोई कहीं मिलता नहीं,
बस मतलब का है यहां अपना पराया।
तू ही देवी है घर की,
तुझे सबकी फिक्र थी,
बिना तेरे लगता है घर भी वीरान,
तु ही तो साक्षात रब्ब है धरा पर
कोई ओर दुसरा रब्ब है कहां ?
कोई ओर दुसरा रब्ब है कहां ?
अपने अपने मां पिता जी की जय ।
स्वरचित : राम किशोर, पंजाब ।
शुभ साँझ , मित्रों
भावों के मोती
मंच को नमन
दैनिक कार्य
स्वरचित लघु कविता
दिनांक 12.5.19
दिन रविवार
विषय माँ
रचयिता पूनम गोयल
मेरी जीवनशक्ति , मेरी माँ ।
मेरी प्रेरणादायिनी , मेरी माँ ।।
आज मना रहा
सम्पूर्ण विश्व-
मातृदिवस विशेष ।
पर मैं क्या लिखूँ ,
इस दिन कुछ विशेष ।।
क्योंकि भगवान के बाद ,
दूसरा दर्जा है माँ का ।
इसलिए नहीं हो सकता ,
कोई दिवस विशेष माँ का ।।
माँ तो करुणमयी , ममतामयी है होती ।
हैं वो भाग्यशाली ,
जिनकी माँ है होती ।।
फिर उस
स्नेहभरी माँ के लिए ,
क्यों हो कोई दिन विशेष ।
होना चाहिए उसके लिए ,
जीवन का हर क्षण विशेष ।।
माँ ही पाले ,
माँ ही सम्भाले ।
हर कष्ट से हमें ,
माँ ही बचा ले ।।
करें सभी पूजा उस देवी की ,
जो सर्वगुणसम्पन्न ,
हमें बना दे ।
कदम-कदम पर ,
देकर बलिदान ,
हमारी जीवन-नैया को पार लगा दे ।।
माँ जैसा नहीं कोई दूजा ।
परमेश्वर के बाद ,
करो माँ की ही पूजा ।।
होगा जीवन सफल ,
यदि माँ को सम्मान दिया ।
होगा तेरा भी नाम रोशन ,
यदि सर्वप्रथम माँ को प्रणाम किया ।।
नमन सम्मानित मंच
(माँ)
***
रहा ढूँढता स्वर्ग धरा पर,
मिला मुझे शुचि नहीं कहीं,
झाँका जब तव पद पंकज मे,
स्वर्ग दिखा माँ! मुझे वहीं।
ममता के गहरे सागर से,
नीलवर्ण तव लोचन चारु,
करुणा की लहरों में छलके,
शुचित प्रेम की मधु रसधार।
सृष्टि संवर्धन हित बसुधा पर,
मात्र मातृ आधार-मूल शुचि,
जीव चराचर में मादा ही,
अस्तित्व सुरक्षा कवच धरा पर।
प्रतिमूर्ति ईश की धरिणी पर,
प्रकृति का अदभुत सा उपहार,
माँ का ऋणी निखिल संसार,
अंक में पोषित शैशव शुचि चारु।
--स्वरचित--
(अरुण)
नमन मंच
दिनांक १२ /०५ /१९
विषय-- माँ ऐसी ही होती है
विधा -- मुक्त
----------------------------------
जो गये हौंसला ,माँ के कलेजे पे रखकर
याद में उनके ,वो जिंदा रहती है
माँ ऐसी ही होती है
नित दीप जला सांझ-सवेरे
विदेश जा बसे बच्चों की
खुदा के दरबार में ,सदा खैर मांगें
माँ ऐसी ही होती है
कमाने की महत्वाकांक्षा में
बच्चे माँ को भूल जाते हैं
ना आयें बच्चे माँ की बीमारी पर भी
माँ मगर दिन रात उनकी खैरियत की दुआ माँगती है
माँ ऐसी ही होती है
मांगती नहीं कभी अपने लिए
महल -दोमहले
बच्चों के घर आबाद ओ' शादाब रहे , माँ चाहती है
माँ ऐसी ही होती है
बीतते हैं दिन राह तकते तकते
रातें मगर लंबी हो जाती हैं
दिन भर सूनी सूखी आँखेंं
रात भर तकिया भिगोती हैं
माँ ऐसी ही होती है
हर सवालों के जवाब
उसकी जुंबा पे रहते हैं
अपने आप में वो अनसुलझा
सवाल रहती है
माँ ऐसी ही होती है
तन पिंजर हो जाता है
सूने सूने घर में
पर सांस इक आस में अटकी रहती है
हौसले के बोझ तले दबी रहती है
माँ ऐसी ही होती है ।
डा. नीलम .अजमेर
नमन मंच को
विषय : माँ
दिनांक : 12/05/2019
माँ!
तुम मेरी माँ थीं, या मैं तुम्हारी?
सोचा करती हूँ।
घर तुम्हारी ज़िम्मेदारी थी, या फिर मेरी?
सोचा करती हूँ।
तुमने मेरा ख़याल रखा, या मैंने तुम्हारा?
सोचा करती हूँ।
मैंने माँ को खोया, या मेरी बेटी को?
सोचा करती हूँ।
तुम मेरी माँ रही हो, या बेटी,
तुम याद बहुत आती हो,
तुम आज भी बहुत रुलाती हो।
मनीषा बड़जात्या जैन
इंदौर (मध्यप्रदेश)
स्वरचित
नमन भावों के मोती
दिनांक -12/5/2019
विषय- माँ जीवन का आधार
जीवन मिला जिससे उपहार
अपने रक्त से अभिसिंचित कर
अपने प्रेम से स्नेहसिक्त कर
दुग्ध से परिपोषित कर
उतारा इस धरा पर ।
आशीषों का कवच पहना
जीवन मूल्यों का पहना गहना
भेजा इस कर्म भूमि पर ।
अब तो जीवन है अपना
रंग भरो उसमें भर सकते हो जितना ।
न भूलना उस निर्मात्री को ,
न भूलना उस जन्मदात्री को
जीवन सजेगा चमकेगा कुंदन जितना।
भरोसा करोगे जितना ,विश्वास बढ़ेगा उतना ।
माँ सृष्टि की अनमोल रचना।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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