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ब्लॉग संख्या :-402
"आग/ज्वाला"
नफरत की आग होती बुरी
भूल जाए इंसा अपनी धुरी ।।
होश-हवास वो ऐसा खोए
शब्द निकलें बनकर छुरी ।।
नफरत से हरदम बचना
नफरत में कोई दवा न फुरी ।।
चित्त रखो प्रभु में हरदम
यह दवा न दूर पास धरी ।।
कोई क्या बिगाड़े किसका
प्रभु की ये सब माया रची ।।
उसे खबर हर सुख दुख की
बदलता वह सबकी घड़ी ।।
जिसके मन में जैसे बीज
एक दिन हो वो फसल हरी ।।
न आना इस लपेट में ''शिवम"
महाभारत में यही आग भरी ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 30/0572019
तपती दोपहरी में सब पसीना पसीना है।
तरसती बून्द को फटा धरती का सीना है।
बरसे आग अम्बर से सुबह से रात तक।
कहें है जेठ जिसे बडा जालिम महीना है।
जलते पांव तपती राह ढूंढे घनी सी छांव।
इसी का नाम मरना इसी का नाम जीना है।
सूखते दरिया ओ शज़र मरती है जिन्दगी।
किसने जलाया और किसने पानी छीना है।
अपनी खताओ की और क्या सजा होगी।
पानी को तरसना और आग को पीना है।
विपिन सोहल
नमन -भावों के मोती
माँ शारदे को प्रणाम
दिनांक-30/05/2019
कलम से आज लिख दूं अंगार..
बागी एक सितारा हूँ।
किसी के आहो का आवारा हूँ।
कलम क्यों उगलती आज आग।
अक्षर से ही बनते चिंगारी।
हरदम जलते नभ में शोले
बादल बनते बिजली के क्यारी।
क्यों ही जलती सदैव
अतुल्य भारत की हर नारी।
जिसके नयनों में दीपक जलते
करुण क्रंदन पे विश्व हँसते।
सांसो से झरता स्वप्न पराग।
मन में भरा एक उश्चवास।
हँस के उठते पल में आद्र नयन।
छा जाता जीवन में एक बसंत।
लुट जाता संचित अनुराग।
यह नहीं है जीवन ऋतुराज।
है यह एक घोर अवसाद........?
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह
केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
नमन भावों के मोती
आज का विषय, आग, अग्नि, ज्वाला,
दिन, गुरुवार,
दिनांक, 30,5,2019,
आग पेट की है दुखदायी,
भले बुरे की समझ गँवाई।
नहीं सहन करने की शक्ति,
मति मानव की है भरमाई ।
तन की आग पाप की गठरी,
अंधकार में जाकर के पटकी।
काजल से भी काला है ये रंग,
मन सुमन मिटा दुर्गंध बिखरी।
चिंता अग्नि तो जीते जी मारे,
मुख कमल हैं हरदम मुरझाये।
होते भव बंधन के कष्ट निराले,
तन अरमानों की चिता जलाये ।
दौलत की अग्नि जिया दहकाये,
मानव मन को पल पल सुलगाये।
ठंडक और अधिक तपन दे जाये,
ज्यों ज्यों पाये मन डूबता ही जाये।
लौ ईश्वर से जब जब लग जाये,
हरि दर्शन की अभिलाषा सताये।
मन का पंछी जले भक्ति की ज्वाला,
मन मंदिर में फैले चहुँ ओर उजियारा ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
भावों के मोती
30/05 /19
विषय - आग - अग्नि - ज्वाला(अगन)
मन की अगणित परतों में दबी ढकी आग
कभी सुलगती कभी मद्धम कभी धीमी फाग।
यूं न जलने दो नाहक इस तेजस अनल को
सेक लो हर लौ पर जीवन के पल-पल को।
यूं न बनाओ निज के अस्तित्व को नीरस
पकालो आत्मीयता की मधुर पायस।
गहराई तक उतर के देखो सत्य का दर्पण
निज मन की कलुषिता का कर दो तर्पण ।
बस उलझन का कोहरा ढकता उसे कुछ काल
मन मंथन का गरल पी शिव बन, उठा निज भाल।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
आज का विषय है आग ,
गजल साथियों,
मन में बैठा बतियाता है,सावन में,
सूने घर शोर मचाता है सावन में।।1।।
प्रेमी मन रातों जागता है सावन में,
भीतर ही भीतर सुलगता है सावन में।।2।।
मन की नदी में लहर उठती है सावन में,
तन मन मे आग सा जलता है सावनमें।।3।।
सपनों में आकर मिलता है सावन में,
तन मन में साजन रमता है सावन में,/4/।
मन भी फूले नही समाता है सावन में,
पिया को पा प्राण मचलता है सावन में।।5।।
स्वरचित देवेन्द्रनारायण दास बसनाछ, ग,।।
30/5/2019
नमन मंच भावों के मोती।
सुप्रभात गुरूजनों, मित्रों।
आग/अग्नि/ज्वाला
💐💐💐💐💐💐💐
जब नफरत की आंधी चलती है।
हर दिल में आग भड़कती है।
तब कोई देखता नहीं सामने है कौन।
एक दूजे पर गोलियां चलती है।
चाहे अपना हो या पराया।
हर दिल में हिंसा का साया।
आंखों से शोले बरसते हैं।
दिल में चीत्कारें उठती है।
इस ज्वाला से बचा ना कोई।
नफरत शब्द हीं ऐसी होई।
पैदा करो प्यार दिलों में।
नफरत को भगाओ।
एक दूजे से हिल मिलकर।
जग में सुख शांति फैलाओ।
💐💐💐💐💐💐💐💐
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
🌸🌸🌸🌸🌸
II आग II नमन भावों के मोती....
विधा : हाइकु
१.
आग घर की...
पानी से काबू हुई...
मन की ज्वाला ?...
२.
बेरोज़गारी....
सड़क पे हुजूम...
शिक्षा की आग ?...
३.
संसद खाली…
नेता सड़क पर...
जुबां से आग...
४.
अपहरण...
हुजूम की सोच का....
आग-ही-आग...
५.
आग सुपुर्द...
सब राष्ट्र सम्पति...
दोष किसका ?
६.
नाटक शुरू...
तू तू मैं मैं की आग...
दोषारोपण...
७.
सोच की आग...
देश हित दिखावा...
नतीजा ठेंगा!...
८.
स्वार्थ की आग....
भ्रष्ट नेता तंत्र की...
सब पे हावी....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
३०.०५.२०१९
नमन मंच
30/05/19
आग
***
आग के रंग देखो हजार
कोई आग उगले है अपार
कोई पानी में आग लगाये
कोई आग में पानी डाल जाये
कोई जंगल में आग फैलाये
कोई आग बबूला हो जाये
कोई आग पर तेल छिड़क जाए
कहीं अंगार बरसे
कहीं अंगार धधके
कोई अंगारों पर चलता है
कोई अंगारों मे कूदता है
कही दिल मे आग लगती है
पेट की आग जोर पकड़ती है
आग लोहड़ी की खुशियां लाये
आग हवन कुंड की पवित्र कहलाये
कहीं आग तहस नहस कर जाए
आग मरघट की सन्नाटा फैलाये
आग का रंग सूरज सा अन्तर्मन
में शांति ध्यान कहलाये
सतत प्रयास हो हम सबका
आग कल्याण कारी बनाएं।
स्वरचित
अनिता सुधीर
30/5/19
भावों के मोती
विषय-आग/अग्नि/ज्वाला
___________________
सोचती हूँ अक्सर तन्हाई में
काश वो लम्हा न जिया होता
जिस लम्हे में साथ छूटा था तेरा
काश वो रात न आई होती
तो मेरी ज़िंदगी से तेरी विदाई न होती
काश वो सफ़र न तय किया होता
जिसमें तुमसे दूर जाना लिखा था
यह "काश,अगर,यदि" ने साथ छोड़ा होता
तो शायद इस दर्द से बाहर निकल पाते
पर काश ऐसा हो सकता
तो इन दर्द भरी यादों को भूलना आसान होता
जेठ दुपहरी-सी तपती तेरी यादें
विरह की #आग में मन को जलाती
काश तुम गए न होते तो
देखते कुछ नहीं बदला सब-कुछ वही है
अगर कुछ कमी है तो वो तेरी कमी है
काश मान जाते तुम सबका कहना
मगर तुम को जिद्द थी जाने की कैसी
एकबार भी न सोचा जाने से पहले
उस लम्हे को रहेंगे सदा हम कोसते
काश रोक पाते तुमको पर मजबूर थे हम
किस्मत के फ़ैसले से नाखुश थे हम
काश टल जाती मौत आने से पहले
तो आज़ ज़िंदगी में तेरी कमी न खलती
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित ✍
नमन "भावो के मोती"
30/05/2019
"आग/अग्नि/ज्वाला"
मुक्तक
1
प्रीत का दीया एकदिन जो मैं जलाई,
ना जाने कहाँ से आँधी चली आई,
फिर तो न पूछो क्या से क्या हो गया,
दीये की लौ से घर में आग लग गई।।
2
नभ में चाँद को देख शीतल होती थी धरा,
उसी चाँद में दिखता आज आग का गोला,
हालातों से खयालात भी बदल जाते हैं,
शबनम भी कभी-कभी बन जाता है शोला।।
3
सूरज दादा सुबह से आग बरसा रहे हैं,
प्रकृति दोहन से आग बबूला हो रहे हैं,
पेड़ पौधे जीव-जंतु भला छुपे भी तो कहाँ,
महलों में लोग मजे में एसी चला रहे हैं।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
नमन भावों के मोती
30/05/19 गुरुवार
विषय-आग/अग्नि/ज्वाला
विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
(1)
आसमान से
आग बरसा रहे
सूरज देव👌
👍👍👍👍👍👍
(2)
प्रचण्ड गर्मी
अग्नि उगल रहा
जेष्ठ महीना👍
👌👌👌👌👌👌
(3)
नवतपा में
पानी भी बना आग
ठण्डा पसीना👌
👍👍👍👍👍👍
(4)
रहे न अब
आदमी के भीतर
आग व पानी👍
👌👌👌👌👌👌
(5)
पेट की आग
पेट में ही है बुझे
बुद्धि न सूझे👌
👍👍👍👍👍👍
(6)
तपने तो दो
पावक की ज्वाला से
नई पीढ़ी को👍
👌👌👌👌👌👌
(7)
ठण्डी है आग
उबल रहा पानी
आज की पीढ़ी👍
👌👌👌👌👌👌
(8)
बुरी संगत
पापी पेट की ज्वाला
पीठ बेचारा👌
👍👍👍👍👍👍
(9)
पेट - गणित
हल करता पीठ
कैसी ये रीत👌
👍👍👍👍👍👍
(10)
जवान पीढ़ी
न जोश न खरोश
होश-बेहोश👍
👌👌👌👌👌👌
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू"अकेला"
💐💐💐💐💐💐
🎂🎂🎂🎂🎂🎂
सादर नमन
30-05-2019
आग
आग अनोखे रूप धरि
पल-पल बहु रंग दिखाये
प्रेम व प्रतिशोध की आग
जन-मन को अंध बनाये
पेट की आग की विवशता
जाने क्या-क्या करवाये
कहीं कभी कोई चोरी करता
लंपट लोभ, बरजोरी करता
कहीं सर्वसुलभ बन रमणी
किसी के तन की आग बुझाये
क्रोध-आग की लपट बुरी
स्वयं झुलस मनु राख बन जाये
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
"हम सुबह का आलम देखेंगे"
हम सुबह का आलम देखेंगे
ये रात की परछाई हटा दो,
हम प्यार के उड़ते पंछी हैं
ये मतभेदों की श्रंखला मिटा दो l
ये स्वार्थ का चढता ज़हर
ये आहों में डूबते शहर,
ये खूनी युद्धों के बढते साये
ऐसा न हो, सब मिटा जाए l
अब अविश्वास की खाईयां
भर दें तो अच्छा है,
शांति के मार्ग में कंकर
परे कर दें तो अच्छा है l
ये आग उगलती दोपहर
हमसे देखी नहीं जाती,
हमसे अपनें ही भाई पर
चिन्गारी भी फेंकी नहीं जाती l
इस बढ रही आग को
क्यूं न बुझा दें,
इन खूनी राहों में
कोई प्यार का बाग लगा दें
नहीं तो
ये लपटें अपनें ही घर को घेरेंगी
फिर तो
पश्चाताप की आहेंअपने ही मन में तैरेंगी,
तो क्यूं न
इस ज़हर को यही पर मिटा देंl
हम सुबह का आलम देखेंगे
ये रात की परछाई हटा दो,
हम प्यार के उड़ते पंछी हैं
ये मतभेदों की श्रंखला मिटा दो l
श्रीलाल जोशी "श्री"
तेजरासर, "मैसूरू"
II आग II
विधा: छंद - दोहा
आग-आग का खेल है, हो मन की या देह...
देह उपजाय द्वेष को, दिल में उपजे स्नेह...
तृष्णा मन की आग को, मत सींचों तुम रोज़...
आग बुझे जल से मगर, तृष्णा दे है सोज़....
अहम मिटा न द्वेष गया, हुआ आग से ढेर...
लख चौरासी में फँसा, कर्मों का सब फेर...
'भावों के मोती' बना, 'आग' भाव का द्वार....
जो कूदेगा आग में, निश्चित होगा पार....😃
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
३०.०५.२०१९
नमन मंच🙏
दिनांक- 30/5/2019
शीर्षक-"आग/अग्नि,ज्वाला"
विधा- कविता
***************
आग के हैं विभिन्न प्रकार,
कहीं भी लगे करती है सर्वनाश,
पेट की आग जब न बुझती,
हैवानियत फिर कितनी बढ़ती,
जंगल में जब लग जाये आग,
राख हो जाये हर एक शाख |
एक आग जो बड़ी भयानक,
अक्सर घरों में कोई लगा देता,
घर के ही जब देते हैं मौका,
कब चिंगारी आग बन जाती,
घरवालों को पता भी न चलता |
कोई तो घर का भेदी होता,
तारीफें वो बाहर से लूटता,
बंद मुट्ठी की कीमत लाख,
खुल गई फिर हो गई खाक,
ये बात न उसके समझ में आती,
इसी आग में होती उसकी बर्बादी |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
सादर अभिवादन
नमन मंच
भावों के मोती
दिनांक : 30-5- 2019
विषय : आग /अग्नि/ ज्वाला
मुस्कुराते आप रहो
खुश हम हो जाएंगे
मंजिल आप पाओ
जीत हम जाएंगे
जिओ आप चाहे
किसी के लिए भी
जरूरत पड़ी तो
आग आप लगाओ
जल हम जाएंगे
क्यों जला दिया
मेरे अरमानों को
इससे पहले जिंदा
जला दिया होता
हमें ना होते ये दिन
ना रोते तेरे बिन
न आंखों में आँशु का
धारा झलकता होता
अगर जानता
बेवफा हो तुम ।
स्वरचित
मधुलिका कुमारी "खुशबू"
नमन "भावो के मोती"
30/05/2019
"अग्नि/ज्वाला/आग"
1
हिंसा की आग
शांति गई है भाग
झुलसा मन
2
नभ दामिनी
फसल हुआ स्वाहा
त्वरित ज्वाला
3
मन की टीस
सुलगता अंगार
उठता धुँआ
4
दानवी क्षुधा
संसार दावानल
जला मानव
5
ज्येष्ठ के दिन
रवि आग बबूला
एसी में भला
6
आग का गोला
कटु वाणी प्रहार
दिल के पार
7
पावन अग्नि
अपमानित गौरी
कुंड में स्वाहा
8
मन में आग
विरहनी सजनी
जली रजनी
9
प्रेम मिलन
लगी पानी में आग
देख के दंग
10
पेट की आग
गरीबी मजबूरी
जान पे आई
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
"नमन-मंच"
"दिनांक-३०/५/२०१९"
"शीर्षक-आग/अग्नि"
आग तो आग है,
ये कब समझे जज्बात है?
पर हम तो इंसान है
क्यों करते फरियाद हैं?
सूर्य जो बरसाये आग
पेड़ काट मजबूर हम करे आज
ईष्या पाले जो हम अपने अंदर
आग बन डस जाये संबंधों को।
पेट के आग से होकर परेशान
क्यों करे समझौता नीज ईमान
बदले की आग जब पाले हम
पहले जले अपना मन।
पर अच्छाई, बुराई तो सबके साथ
हवन यज्ञ हो या कर्मकांड
आग के बिना न चले काम
रोज पकावें भोजन आग।
आग को रखें काबू में
तभी जिये हम शांति में
अपनी सुरक्षा अपने हाथ
हम जाने है चतुर सुजान।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक अग्नि, आग ,ज्वाला
विधा लघुकविता
30 मई 2019 बृहस्पतिवार
ईश्वर तुल्य अग्नि जग में
पंचतत्व में इसका नाम
जीवन संचालक है अग्नि
अतुलनीय इसका काम
जठराग्नि जले उदर में
भोजन सुख शांति देता
वडवाग्नि दावाग्नि मिल
भिन्न रूप जगत में लेता
सब आग का खेल तमाशा
जीवन इस पर होता निर्भर
अति विनाशक जब बनती
बने खाक लगता है पलभर
दीप जलाकर करें अर्चना
देव हेतु यजन करते सब
जीवन समापन होता जब
चिर शांति देती अग्नि तब।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
नमन भावों के मोती
दिनाँक-30/05/2019
शीर्षक-आग,अग्नि,ज्वाला
विधा-हाइकु
1.
बढ़ती दूरी
भटकाती दिलों को
विरह अग्नि
2.
ज्येष्ठ की आग
सूख गए तालाब
बेचैन जीव
3.
आतंक आग
डसता पग पग
जहरी नाग
4.
पेट की आग
मजबूरी अपनी
क्या न कराती
5.
ईर्ष्या की आग
बचा न अवशेष
मानवता में
6.
ईर्ष्या आग में
दो फाड़ हुए रिश्ते
भटके रस्ते
*******
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
30/05/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"आग/अग्नि"
(1)🔥
सत्य जलता
अफवाहों की आग
सबूत रोता
(2)🔥
जीवन भट्टी
तन-मन तपते
अग्नि परीक्षा
(3)🔥
दहेज़ आग
झुलसती बेटियां
दाग समाज
(4)🔥
पीछे ले जाती
मानवता जलाती
युद्ध की आग
(5)🔥
काग़ज़ काया
वक़्त लगाए तीली
अहं जलाया
(6)🔥
पेट की आग
कहीं जले उसूल
नीतियाँ राख़
(7)🔥
दंगों की आग
राजनीति ने सेंकी
धर्म की रोटी
(8)🔥
ईर्ष्या की आग
झुलस गया मन
बचा न तन
स्वरचित
ऋतुराज दवे
नमन
भावों के मोती
३०/५/२०१९
विधा-तांका
विषय-अग्नि/आग/ज्वाला
प्रचंड गर्मी
सूर्य का है प्रकोप
तपती धरा
बरसती है आग
व्याकुल जीव-जंतु।
निष्ठुर अग्नि
बन गई थी काल
चिराग बुझे
अंधकार प्रबल
तड़पते मां-बाप।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
नमन भावों के मोती
विषय - आग/अग्नि/ज्वाला
30/05/19
गुरुवार
मुक्तक
आग कहीं भी लगे, सदा वह विध्वंसक होती है।
कलुष-भाव को जला नये युग की सर्जक होती है।
भाव धधकते हैं ज्वाला बन करने को विध्वंस -
सबको कर चैतन्य राष्ट्र की संवर्धक होती है।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
शुभ संध्या
# आग/ज्वाला #
द्वितीय प्रस्तुति
नफरत की आग पेट की आग
आग कइयों होतीं हैं पहचानिये ।।
कौन सी आग क्या करती है
मकसद भी उनका जानिए ।।
आग के बिना जीवन नही है
यह भी सच यह सच मानिये ।।
मानव की पहली खोज आग है
यह इतिहास बखाना बखानिये ।।
महत्ता हर एक शय की यहाँ
पर वक्त पर ही उसको ठानिए ।।
क्रोध भी कभी वक्त से न हुआ
भूल हुई यह भूल अनुमानिए ।।
आग जलाए भी ''शिवम" और
जीवन भी दे सूझ सनमानिए ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 30/05/2019
भावों के मोती दिनांक 30/5/19
आग अग्नि ज्वाला
मूर्ख इन्सान
मत खेल आग से
भस्म अस्तित्व
नारी ज्वाला
रखो मान उसका
सुखी समाज
थपेडे आग
जलता है इन्सान
सहारा पानी
प्रिय बिछौह
मिटते हुए रिश्ते
आग शरीर
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
नमन मंच को
विषय : आग
दिनांक : 30/05/2019
विधा : हाइकु
आग
बरसे आग
मुरझाए चेहरे
हौसले पस्त
शक की आग
करती मतिभ्रम
मायूस रिश्ते
पेट की आग
बिकें मजबूरियां
सरे बाजार
देख अन्याय
तन मन क्रोधित
आग लगा दे
राजनीति में
अजब हथियार
धर्म की आग
बहता खून
आरक्षण की आग
बहके युवा
बहके लोग
मद लोभ में अंधे
पनपे आग
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब ॥
नमन मंच
30/5/2019
आग
आग
जो किसी के लफ्जों में होती है
या दिलों को कर दे रोशन
वह भी आग होती है
दिलों को जो जलाती है
या घरों को रख कर दे जो
वह भी आग होती है
लगा दे आग दामन में
या दामन को मोहब्बत से सजा दे
वह भी आग होती है
जो दिलों को पत्थर बना दे
या बारिश उतारे आंख में
वह भी आग होती है
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित
मंच को नमन 🌹🙏🌹
30-5-2019
विषय:- आग / अग्नि /
विधा :- पद्य
सज. सँवर कर सेंक रही हूँ ,
सजना तेरे प्रेम की आँच ।
बंद नैनों में तू है दिखता ,
प्रबल प्रेम भर रहा कुलाँच ।
दृष्टि -उत्सव हुआ तुम्हारा ,
बात करो कुछ मेरे मन की ।
पौष मास की ठिठुरन में भी,
देखो ज्वाला मेरे तन की ।
धड़कन दिल की हुई मंद है ,
साँसें भी हैं हो रही क्षीण ।
सजल नयन में तड़प रहे हैं ,
प्यासे नयनों के ये मीन ।
नयन मार रहे बाण रति के ,
उठ कर भर लो परिरंभन में ।
कंठहार लालायित दिखता ,
टूटने को दृढ़ आलिंगन में ।
मूक प्रेम की समझो भाषा ,
कैसे दूँ इसकी परिभाषा ।
मिल जाए तो पूरण आशा ,
अपूर्णता में घोर निराशा ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी १२५०५५
( हरियाणा )
नमन मंच को
दिन :- बृहस्पतिवार
दिनांक :- 30/05/2019
विषय :- आग/अग्नि/ज्वाला
भड़कती सीने में कभी...
वो बनकर बदले की आग..
उठती उर अंतर में कभी..
वो बनकर भूख की आग..
जलाती कभी घर संसार ये..
बनकर स्वार्थ की आग..
रिश्तों में खड़ी दीवार करती..
बनकर ये संदेह की आग..
उगलती ये जहर कभी..
बनकर वाणी की आग..
जला लो ज्ञानदीप अंतर्मन में..
आग लगे न फिर जीवन में...
जला दो निज अहंकार की होली..
बन जाओ एक दूजे के हमजोली..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
नमन भावों के मोती
दिनांक -30/05/2019
विषय -आग,अग्नि,ज्वाला
विधा-कविता
आग के हैं रूप अनेक
कभी जीवन दायिनी, कभी संहारिणी
जीवन के पांच तत्वों में प्रमुख एक ,
धारण करती है रूप अनेक।
पेट की भूख रुपी आग भी क्या -क्या जतन कराती है
कभी भीख, कभी चोरी ,कभी हिंसा भी कराती है ।
घृणा की आग भी अपना अलग रूप दिखाती है
अगर प्रचंड हो जाए तो घर ही जला डालती है।
साम्प्रदायिकता की आग तो अक्सर ही लगा करती है,
दोषी ही नहीं जाने कितने निर्दोष मासूमों को भी डसती है।
माना कि आग जरूरी है जीवन जीने के लिए ,
भोजन बनाने के लिए पेट भरने के लिए।
परंतु ऐसी आग मत जलाओ कि जल ही जाए घर सारा,विध्वंष हो जाए जग सारा।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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