Sunday, May 26

"जुदाई"25मई 2019

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                                    ब्लॉग संख्या :-397
।। जुदाई ।।

जुदाई किसको नही रूलाती है
पर जुदाई हकीकत कहलाती है ।।

मिलन संग जुदाई लिखी हुई है
जैसे दिन के संग रात आती है ।।

जुदाई के पलों से कौन न गुजरा 
सभी को किसी की याद सताती है ।।

यह आँसुओं की अमानत है जो
किसी की खातिर पायी जाती है ।।

जुदाई की तड़फ ही है ''शिवम"
जो शायर से शायरी लिखाती है ।।

जुदाई बाद मिलन मिलन बाद जुदाई
यही कश्मकश जीवन में रंग लाती है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 25/05/2019

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नमन मंच🙏🌹
सभी गुणीजनों को सादर प्रणाम🙏😊
दिनांक- 25/5/2019
शीर्षक-"जुदाई"
विधा- कविता
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जुदाई का आलम बड़ा खराब,
रिश्तों में जब आ जाती दरार,
बन जाती है गहरी सी खाई,
फिर कैसे होगी भरपाई ?

जीवन की ये है सच्चाई,
साथ चलती है गमों की परछाई,
भीड़ में भी इंसा अकेला होता,
साथ रह जाती बस तन्हाई |

किसी को न आये कभी जुदाई,
प्यार और सम्मान से भर दो खाई,
परिस्थतियों को अनुकूल बनाओ,
जुदाई का आलम दूर भगाओ |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

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25मई2019
नमन मंच।
नमस्कार गुरुजनों,मित्रों।
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                  जुदाई
बेटी हुई अब पराई,
सही नहीं जाये जुदाई।

जन्म लिया तो खुश थे कितने,
माता बलैया लेती कितने।

तब नहीं था पता,हमें छोड़ जायेगी,
माँ,बाप का दिल तोड़ जायेगी।

दुनियाँ की ये रीत पुरानी,
बेटी को ग़ैरों के घर जानी।

गमे जुदाई सहना पड़ेगा,
बेटी के बिना रहना पड़ेगा।

जाओ बेटी खुश रहना तुम,
जहाँ भी रहना,सबको खुश रखना तुम।
💐💐💐💐💐💐💐
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
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नमन मंच,, भावों के मोती
25/5/2019/
बिषय| ,,,जुदाई,,, 
मौसम है जस्ने ढोल
नगाड़े शहनाई का 
किसी का आंगन आबाद 
कहीं गम बेटी की जुदाई का 
अनवरत बह रहे पिता 
के आँसू बहुत कुछ कहते हैं
दिल पर पत्थर रख 
तुम्हें बिदाई देते हैं  
 कैसे सौंपूं तुमको 
बड़ी नाजों से पली
मेरे आंगना की चिड़िया 
मेरे चमन की  कली 
बॉहों का झूला माता की लोरी 
भाई बहिन की प़ीत पिछोरी
बड़ा ही कठिन तुमको भुलाना 
जरूरी था ए दस्तूर निभाना
मायके की यादें संजोकर 
तुम रखना 
हर  हाल में मुस्कराकर के रहना 
 दूर रहें तुमसे बुरी बलाऐं
देते हैं सब यही दुआऐं
खुशियों से भरी हो 
तुम्हारी पिटारी 
 ले लो आशीशें 
बिटिया हमारी ।।
स्वरचित,,, सुषमा ब्यौहार,,,

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नमन भावों के मोती,
आज का विषय, जुदाई,
दिन, शनिवार,
दिनांक, 25,5,2019,

जुदाई मिली उनको जिन्होंने प्रीत की रीति निभाई है।
प्यार बिना एहसास जुदाई कब हिस्से में आई है ।
मात पिता से मिली जुदाई बेटी हुई पराई है।
दिल के कोने में प्यार संजोया रीति यही चल आई है।
चला गया परदेस को बेटा उसे करनी थी कमाई है।
मात पिता के दिल से पूछो कैसा दर्दे गम जुदाई है ।
कसमें वादे करने वाले जब कर देते भेंट जुदाई है ।
दुनियाँ वाले लगने लगते आशिक को सभी कसाई  हैं ।
 हमें  गमों से मिल जाये जुदाई तो हर चीज सुहाई है ।
कभी कभी अच्छी भी लगती जो अवगुण से मिले जुदाई है।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,


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भावों के मोती
25/05 /19
विषय- जुदाई

बिन बाबुल की विदाई 

यूं तो बिन बाबुल के भी विदा होती है बेटियां
पर मां को छोड़ जार-जार रोती है बेटियां
जाती है ससुराल सब वैसा ही होता होगा
पर बिन बाबा के नेह रीती रह जाती है बेटियां
जनक की आंख में एक याचना होती है ।
बिन बोले ही सब समझ जाती है बेटियां
दोनो कुल की मर्यादा का पाठ सुन पिता से
गांठ में बांध कर स्नेह से साथ ले जाती है बेटियां
बिन आसमां जीना सीख लेती है फिर भी
आसमां की चाहत लिये पराये घर जाती है बेटियां।
कन्या दान के समय जो हथेली पर सागर छलकता है
बिन बाबा अथाह सागर मन में समा लेती है बेटियां।
जुदाई का आलम कितना संगीन होता है
फिर भी मुठ्ठी में यादें संभाल ले जाती है बेटियां।

स्वरचित 

कुसुम कोठारी।
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सादर नमन
विधा-हाईकु
विषय- जुदाई
जुदाई आग
जलता तन मन
प्रेम फुहार
टूटते रिश्ते
जुदाई की दीवार
रोते नयन
पिया जुदाई
नैनों से बरसात
सैलाब लाए
**
स्वरचित-रेखा रविदत्त
25/5/19
शनिवार
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नमन"भावो के मोती"
25/05/2019
     "जुदाई"
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तड़प जुदाई की क्या जाने वो
बेदर्द होते हैं जो....
स्वार्थ के नशे में चूर होते हैं 
सीने में दिल न उनके होते .।।

जुदाई होती बड़ी दुःखदायी
दर्द आँखों से बहते है...
गम घुट-घुट कर पीते हैं..
न जीते हैं और न मर पाते हैं

जो रूह को छूकर गुजरे होते ..
साँसों में बस जाते हैं...
जब वो जुदा हो जाते हैं.
दिल को तड़प दे जाते हैं
यादों के सहारे ही.....
जीवित रह पाते हैं...।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
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"माँ शारदे को नमन"
नमन भावों के मोती
दिनांक-२५/५/२०१९"
"शीर्षक-"जुदाई"
बेटी की जुदाई ,माँ को नही सुहाई
बहु को बेटी बनाई, मिटाई अपनी तन्हाई।

बेटी को माँ की जुदाई, बहुत सताई
सास को माँ बनाई,अब नही रही पराई।

बेटा की जुदाई,सही नही जाई
लौट आओ घर,मैंने रोटी है बनाई।

मित्र की जुदाई एहसास करों भाई
मित्रता हैं अमोल धन,तौले न कमाई।

मिलन और जुदाई, आते जाते है भाई
जुदाई तो जुदाई है,इससे गमजदा न हो ज्यादा मेरे भाई।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव

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नमन् भावों के मोती
25मई19
विषय जुदाई
विधा हाइकु

पिया जुदाई
कण्टक विरहाग्नि
अश्रु नयन

बेटी जुदाई
ससुराल बिदाई
रस्म निभाई

पेट जीविका
अपनों की जुदाई
फोन सहारा

सीमा प्रहरी
घर-देश जुदाई
राष्ट्र सुरक्षा

मौत है आयी
दुनिया से बिदाई
जीव जुदाई

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली

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"नमन भावों के मोती"
25 /05 /19 --शनिवार
आज का विषय
शीर्षक-- "जुदाई"
आ० सुषमा ब्योहार जी
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साँस लेत आगे बढ़े ,.  . छोड़े पीछे आय।
होत जुदाई नायिका,झूला सी हुइ जाय।।
--------------------------
पिया मिलन में लगत जो,सुन्दर सकल ज़हाँन।
उसे जुदाई में लगे ,.. . .  ये दुनिया शम्शान।।
-------------------------
मिलते ही खिल जात है,. . . . जुदा होत मुरझाय।
ज्यों सूरज बिन कमलिनी,कभी नहीं खिल पाय।।
==============================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
(स्वरचित)
एटा --यूपी
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II जुदाई II नमन भावों के मोती.... 

छत पे कोआ कांव कांव कर रहा है....
कोई और तो अपना है नहीं...शायद...
तुम आ रही हो कहीं...

मिलोगी मुझसे तो बताऊंगा तुझे...
जीना कितना दुश्वार था तेरे बगैर...
दिन भी रात थी तेरे बगैर...
ज़ख्म रिस्ते दिल के दिखाऊंगा तुझे...
कपडे भी चुभते हैं उसपे बताऊंगा तुझे...
किस तरह से बना हूँ तमाशा सब के आगे...
ढूँढा किया हर गली हर चमन यूं बेतहाशा भागे...
गाऊंगा गीत वही जो तुम सुनती थी...
झूमते झूमते संग तेरे तेरी डोर से बंधा...
पर वो गीत आज मैं अकेला ही गाता हूँ.....
कट्टी पतंग की तरह झूलता...गिरता पड़ता...
जो कभी पस्त न हुआ था किसी के आगे...
वो हारा तो बस तेरे आगे...

बिना आहट के दस्तक सी हुई लगती है...
एक झोंके की तरह वो मेरे सामने आ जाती है...
बाल बिखरे से हैं उसके मेरे बालों की तरह....
पलकें सूजी हैं उसकी तो मेरी भी हैं...
सुर्ख आँखें दोनों की कुछ ब्यान किये जाती हैं..
लब उसके भी ज़र्द सफ़ेद मेरे जैसे हुए जाते हैं...
सांसें उसकी तेज हैं तो धड़कन मेरी रुक सी है रही...
ये आसमान इस कदर क्यूँ झुक सा है गया ....
आतुरता धरती में भी मिलन की प्रबल है हुई...
न लब उसके हिलते हैं न मैं ही बोलता हूँ कुछ...
आँखें उसकी मेरी आँखों में डूब सी हैं गयी...
विरह वेदना को जैसे विरक्ति मिल हो गयी...
गिले शिकवे..सवाल ..जवाब...दिल दिमाग के...
सब विलुप्त से हो गए...
दिलों ने जैसे एक दूसरे का दर्द पी हो लिया...
उसके साँसों के समंदर में...
मेरी धड़कने डूब सी गयी.....
दोनों ही एक दूसरे से पस्त हो गए....
अजीब सी शान्ति हर और छा सी गयी ...
हर मौज अब सुहानी सी हो गयी....

भोर की छटा बिखर सी रही है...
विदा होता चाँद भी मुस्कुरा रहा है...
दूर कहीं कोयल मीठे गीत गा रही है...
मंदिर में शंख धवनि हो रही है....
घंटे घड़ियाल बज उठे हैं....
तारों की छाँव में मिलन हमारा हो रहा है...
मंद मंद पवन गीत हमारे मिलन के....
विदाई दुनिया से गा रही है...
यूं तारों कि छाँव में डोली हमारी जा रही है.....

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 
२५.०५.२०१९

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🌹भावों के मोती🌹
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25/5//2019
असहनीय जुदाई
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जुदाई
अपनों से,अपनत्व की जुदाई
सँग मधुर क्षणों की विदाई
असहनीय होती जुदाई।।
गड़गड़ाहट मेघों की भाँति
विदाई बैचैन करती है
समस्त खोने की भयावहता 
सुनामी प्रतीत होती है।।
असहनीय पीड़ा
उद्वेलित करती है
झर-झर झरते अश्कों से
सागर निर्माण करती है।।
जल बिन तड़फती मछली
चाँद बिन चकोरी सी दशा
श्वासों का ठहरना, ऐसी जुदाई
मन को 'दशरथ' बना देती है।।
पवित्रता जब मैली समझी जाती है
सात्विक प्रेम में ,कपटता नज़र आती है
हृदय द्रवित होता है,प्रेम की विदाई होती है।।
गजरों में महक जब शेष नही
कर्म निर्वाहन जब सम्पूर्ण हो
शेष अतिरेक पास कुछ न हो
ऐसी जुदाई असहनीय होती है।।

वीणा शर्मा 'वशिष्ठ'
स्वरचित मौलिक
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ग़ज़ल
#जुदाई

        दिल्लगी  में  जब  जुदाई  हो  गयी । 
        जिंदगी   ख़ुद  की  पराई  हो  गयी । 

        मिल गयी मंजिल मुहब्बत की मुझे । 
        बेसबब   ग़म  से  मिताई  हो  गयी ।

        दर्द   के   मंजर  मिले  है प्यार   में ।
        दिल्लगी    में   बेवफ़ाई   हो  गयी । 

        चाहतों  पर  रंजिशें  थी  और  भी । 
        बेबसी    की   रहनुमाई   हो  गयी ।

        ढह गया बेशक़ घरौंदा  प्यार  का । 
        हसरतों  की भी  विदाई  हो  गयी ।

        देखकर   ग़म  मुस्कुराती  दूर  से । 
        मौत  भी  तो आततायी  हो गयी ।

        बेदख़ल 'रकमिश' हुआ है प्यार में । 
        इश्क़    में   दुनिया  पराई  हो गयी ।

                               रकमिश सुल्तानपुरी

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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
25/05/2019
हाइकु (5/7/5)   
विषय:-"जुदाई "

(1)
जुदाई दर्द
प्रेम अग्निपरीक्षा
बडी ही सख्त
(2)
बोझ हो विदा
मन से जुदा घृणा
इंसान खुदा
(3)
आँसू बेवफा 
बहे भावना संग 
आँखों से जुदा
(4)
धरा भिगोए
सागर से हो जुदा 
बादल रोए
(5)
दूर किनारा
जुदाई के गम में
आँसू सहारा
(6)
वक्त बेवफा
पेड के सूखते ही 
परिंदे जुदा
(7)
दर्द आग़ोश 
जुदाई की लगा लौ  
जागता प्रेम
(8)
जीवन रीत
मिलन व जुदाई
पूर्ण हो गीत

स्वरचित 
ऋतुराज दवे

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🌸नमन भावों के मोती🌸
🙏गुरुवर को नमन🙏
   विषय-जुदाई
   दिनांक-25/05/19

कौआ बोल रहा मुंडेर पे
लेता है कुछ नाम
दूर सरहद से पिय का
लाया है पैगाम

खनखन करती चूड़ी
मन में है मुस्काती
खत्म हुई रात #जुदाई की
मिलन की बेला आती

हाथों की मेंहदी शर्म से
फिर हो गई आज लाल
करती है घायल कूकी
बैठी अमवा डाल

चमक रहा है टीका
अगुवाई में सारा गांव
सजन तुझको बुला रहे
छमछम करते पांव।।

    स्वरचित
  -सीमा आचार्य-(म.प्र)

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नमन "भावो के मोती"
25/05/2019
   "जुदाई"(2)
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मिलके तुझसे अब गिला क्या करना।
बेवफाओं से मिला क्या करना।।

जिंदगी में मिलें हैं जो जख्म ,
अब गमों से डरा क्या करना।

सूरत जो निगाहों में है बसी।
अब भला यूँ दिखा क्या करना।।

हम जुदा हो गए देखा जमाना
अब रहम खुदा का क्या करना।।

महफिलें भूल कर घर को चलें।
रौशन अब ये शमां क्या करना।।

दो गज जमीन का है आसरा।
जीने की अब तमन्ना क्या करना।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल।
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नमन' भावों के मोती'
विषय- जुदाई
25/05/19
शनिवार 
मुक्तक 

जुदाई   की  घड़ी   का  दर्द  केवल माँ  समझती है ।
विदा  करने  में बेटी को तो उसकी जां निकलती  है।
जिसे  ममता  की  छाया  में  बड़े नाज़ों से था पाला -
उसे   दूजे  के   हाथों  सोंपने  में   साँस  रुकती   है ।

नए  जीवन  की  खुशियों का  उसे  आशीष  देती है ।
मगर बेटी के बिन अपने को बिलकुल शून्य  पाती  है ।
सभी सुख-दुःख में उसके साथ रह जो संगिनी बनती -
उसे  अपने  से करते  दूर  वह  रह -रह  सिसकती  है ।

स्वरचित 
डॉ ललिता सेंगर

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शीर्षक- जुदाई
विधा- गजल
ग़ज़ल की बह्र--2122 2122 2122 212
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फिर जुड़े हैं तार दिल के आरजू तो याद है,
सुन जरा नगमात दिल के जुस्तजू तो याद है।
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चांद की रातें गई  पर तुम नज़र आए नहीं,
बारहा इन हसरतों में जिंदगी नाशाद है।
🌹🌹
सहल होंगी मुश्किलें साजन अहद तेरा रहा,
अब्र छाया आसमां में जिंदगी बर्बाद है।
🌹🌹
क्यों नहीं दिखती सबा गुलशन उजड़ कैसे गया,
आतिशे नेमत मिलेंगी सोच दिल दिलशाद है।
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हो गये आखिर #जुदा क्यूं सामना करते नहीं,
तुम नहीं तो कुछ नहीं है ख़ाक मिलती दाद है।

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शालिनी अग्रवाल
25/05/2019
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

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भावों के मोती
25/05 /19
विषय- जुदाई
द्वितीय प्रस्तुति 

मेरो हाइकु

आंखें है जागी
सपनों से जुदाई
नींद न आई।

लम्बी जुदाई
सीमा पर  सिपाही
तन्हा है पत्नी।

कैसी जुदाई
फूल सौंपा औरों को
बेटी पराई।

मौत  निशब्द 
जीवन से जुदाई
धीरे से आई।

स्वरचित।
कुसुम कोठारी

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शुभ साँझ
शीर्षक- ।। जुदाई ।।
द्वितीय प्रस्तुति

याद है वह पहला दिन जुदाई का
जाना था तब वक्त मैंने तन्हाई का ।।

आँसुओं की लड़ी और वो छपटाहट 
भुलाये न भूला वो पल उनसे विदाई का ।।

जुदा हुईं उनसे राहें जुदा हुईं निगाहें
खत्म हुआ था वक्त मेल मिलाई का ।।

रह रहकर याद आता था वह वक्त
उनकी मौजूदगी उनकी रहनुमाई का ।।

निगाहें ढूढ़तीं थीं उन्हे उन राहों में
खत्म हुआ था वो वक्त आशनाई का ।।

लम्बी जुदाई का गम मिला "शिवम"
जो दे गया यह सुरूर कविताई का ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 25/05/2019

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🌹भावों के मोती 🌹
🌹संध्या वंदन्🌹
   विषय =जुदाई 
   विधा=हाइकु 

(1)सावन ऋतु
     राखी त्यौहार लाई
     ग्रीष्म जुदाई 

(2)खुद जुदाई 
     देते हम बिदाई
     समझ आई

(3)भावों को जानें 
     जुदाई में तड़फ 
     बिदाई स्नेह

===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश 
25/05/2019

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नमन मंच को
दिन :- शनिवार
दिनांक :- 25/05/2019
विषय :- जुदाई

विरह वेदना के उद्वेग से..
विहल उठा अंतःमन...
वेदना के तीव्र आवेग से...
ढह गया हर तटबंध...
खिलते पुष्प मुरझा गए..
विरह वेदना सह न पाए..
विरान हुए हर उपवन अब..
मुस्कुराहट तक बचा न पाए..
बवंडर आए अहंकार के..
उजाड़ गए रिश्तों के घरोंदे..
स्वार्थ के इस धरातल पर..
बन न पाए फिर वो घरोंदे..
जुदा हुआ हर शख्स अपना..
अब देकर जहर जुदाई का..
विरान हुआ सहरा यादों का..
सह न पाया जहर जुदाई का..

स्वरचित :- मुकेश राठौड़

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25/5/19
भावों के मोती
विषय-जुदाई
______________
कैसे सहते हैं जुदाई
बहुत तकलीफ़ होती है देखकर
जब वृद्धाश्रम से झाँकती आँखें
हर आते-जाते चेहरे में
अपनी औलाद को खोजती हैं
फिर मायूस होकर आँखों में आँसू लिए
बैठ जाते हैं खिड़की के पास
अपनों के आने की राह देखते हुए
हताशा के दलदल में डूबे
अपनी गलतियों को याद करते
शायद हमारी कोई गलती रही होगी
झेल रहे हैं उसका परिणाम
छोड़ गए दिल के टुकड़े अकेला
करके बेबस लाचार
किसको दोष दें हमने भी यही किया
बदले में वही ब्याज समेत मिला
दोष उनका नहीं जो देखा वो सीखा
अब पछताने के सिवाय कुछ नहीं
ज़िंदगी बोझ बनी गुजरती नहीं
बेबस आँखें खिड़की से झाँके
अनजाने चेहरों में परिचित चेहरा तलाशते
टूटते बिखरते बच्चों की जुदाई सहते
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित✍

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नमन मंच
विषय=जुदाई
विधा=मुक्त

द्वार सजा
तोरण लगा
वर का आना
घरभर को
सुहाना लगा
थी शहनाई
शादमानी
बज रही थी
ढोलक भी
खुशियों वाली
फूल फूले नहीं
समा रहे थे
इत्र तो मानो
माहौल को ही
महकाने को थी
आतुर
आँगन झूम झूम
नाच रहा
कहकहो में 
घूंघरुँ बंधे खनक
रहे थे
खुशियाँ
हर रिश्ते में
इक दूजे को
दे रही थी
बधाईंयां
पर जुदाई
बेचारी 
माँ की आँखों से
पिता की धड़कन में
दुल्हन के सर्वांग
में ही नहीं
घर के हर कोने
किवाड़,खिड़कियों
छत की मुंडेर,
आँगन के कोने में
लगे पेड़ के
पत्तो से झांकती
धुंधली चाँदनी में
छलक रही थी
जिसे देख कर भी
सब अनदेखा
कर खुशी को
चेहरे पर
चिपकाये
घूम रहे थे
क्योंकि सब इस
जुदाई की पीर
का दंश जानते हैं।

       डा.नीलम .अजमेर
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नमन भावों के मोती
दिनाँक-25/05/2019
शीर्षक-जुदाई
विधा-हाइकु

1.
रुकते नहीं
जुदाई के बादल
बिन बरसे
2.
रुकते नहीं
जुदाई के पहर
गिरते आँसू
3.
रो पड़ते हैं
दिलों की जुदाई में
प्यारे नयन
4.
जुदाई बेला
रोता है छुपकर
मन अकेला
5.
दो दिल रोते
जुदाई की घड़ी में
नयन खोते
********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा

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नमन मंच 
विषय - जुदाई 
हाइकु 


चली आंधियां 
जुदा हो गए पत्ते 
रोता विटप 


शाख से जुदा 
बिखर गया फूल 
मिट्टी में मिला 


आया घमंड 
गाते विरह गीत 
रिश्ते अकेले 


नयन गाते 
विरह की वेदना 
झरते आंसु 


ईश मिलन 
जगत से जुदाई 
साधना संग 


पानी की बूंद 
सागर से जुदाई 
नभ से गिरी 


भीगे नयन 
विरह पीड़ा प्यासी 
सूखे अधर 

(स्वरचित )सुलोचना सिंह 
भिलाई

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भावों के मोती
शीर्षक- जुदाई
मुमकिन कहां था मेरे लिए
जुदाई को तेरी बर्दाश्त करना
फिर भी मैंने यह दर्द सहा
सिर्फ तुम्हारी खुशी के लिए।

तुम न आए, वादा करके
हम फिर भी रहे राह तकते,
हर आहट पर चौंक गए
तुम को ना आना था,न आए।
स्वरचित
निलम अग्रवाल खड़कपुर

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नमन भावों के मोती 🌹🙏🌹
25-5-2019
विषय :- जुदाई 
विधा :- विधाता छंद 

बहे आँसू बने मोती , करें शिंगार गालों के ।
रहे वो गीत ही लिखते , विरह गमगीन ख़्यालों के ।। 

नहीं विन्यास कच होता , दिखे हैं केश व्यालों से ।।
निगाहें ग़ैर की देखे  , दुखी करती 
सवालों से ।।

जुदा दिल की जुदा राहें , जुदाई में यही होता ।
पड़े जब गाँठ कोई भी , सदा दिल ही रहे रोता ।।

कहाँ मिलती सभी को यह , नसीबों से मिला करती । 
निराली बेलि है इसकी , खिजाओं में खिला करती ।।

बनें जो प्रेम के दुश्मन , वही हमदर्द हैं बनते । 
ज़माना कुछ कहे उनको , मगर 
उनसे रहें ठनते ।।

बडी अनमोल है होती , चुकाते मोल हैं आँसू ।
पिया भी सामने रहता , बुलाते ही रहें आँसू ।।

बहातें रात को आँसू , बसर होती नहीं रातें ।
सबब दिखता नहीं कोई , करे कैसे मुलाक़ातें ।।

तसल्ली भी नहीं मिलती  , नहीं दिल मानता दूरी ।
रहे अंदर सदा दिल के  , जुदाई में  कहाँ  दूरी ।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी 
सिरसा 125055 ( हरियाणा ) र

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मंच को नमन
दिनांक -25/5/2019
विषय   -जुदाई

ज़हर जुदाई का अगर पिया ना होता
तेरी मौजूदगी को महसूस किया ना होता
तस्वीरों में तुझको टटोला ना होता
मधुर पलों को स्मृतियों में सहेजा ना होता
आकाश के सूनेपन को जाना ना होता
तन्हाई में चाँद से याराना ना होता
अशकों के बहने को पहचाना ना होता
तेरे काँधे को मसनद बनाया ना होता
वेदना से इतना अंतरंग सम्बंध ना होता
अधरों के मौन को अल्फ़ाज़ मिला ना होता
टूटकर फिर सम्भलना जाना ना होता
बिन तेरे जीना हमने  सीखा ना होता

✍🏻संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित

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साथ जो  रहने की  आदत हो गई।
जुदाई पल भर की आफत हो गई।

बदलने लगा है  जमाने का सुलूक।
कमजोरियों जब से ताकत हो गई।

जब से देखी सनम की अंगड़ाइयां।
हाय इस दिल पर  कयामत हो गई। 

आप के रुखसार पर ठहरी नजर।
तो आज शर्मिंदा नजा़कत हो गई। 

आके मिल जाओगे  सरे राह तुम।
हम ये  समझेंगे  जियारत  हो गई। 

बेरूखी हैं  बेसबब  क्यों आपकी। 
हमसे क्या ऐसी हिमाकत हो गई। 

सच कहूँ तो सच में  लगता है डर। 
जब से  खतरे में  शराफत  हो गई। 

                       विपिन सोहल

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