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ब्लॉग संख्या :-400
पर्वत पर जमी बर्फ की तरह
बेशर्म उम्र के अनुभव का पहरा
चेहरा बदल कर जिंदगी
कितने पहरे लगा देती है।
कभी उजली धुप सी
कभी भरा हुआ आकाश
और कभी डूबते सूरज का
अंतिम पैगाम सुना देती है।
बचपन, जवानी और बुढ़ापा
स्थितियां धरा के रूप सी
जिंदगी वक्त के साथ-साथ
आखिरी सलाम बता देती है।
सिद्धान्तों में पलकर जीना
सुख को सलाम देना है
रोटी से रिश्ता तोड़कर
सूना शमशान दिखा देती है
चेहरे बदल कर जिंदगी
कितने पहरे लगा देती है।
श्रीलाल जोशी "श्री"
तेजरासर, बीकानेर ।
(मैसूर)
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सादर नमन पटल
दिनाँक-28/05/19
विषय-पर्वत/पहाड़
विधा-ग़ज़ल
काफ़िया-ई
रदीफ़-है
वज्न-2122 2122
अब मुहब्बत ज़िन्दगी है।
ज़िन्दगी में क्या कमी है।
साथ है मेरे ख़ुदा तो।
शम्अ ये तब ही जली है।
झील पर्वत और नदियाँ
उसकी ही रहमत हुई है।
ढूँढता फ़िरता रहा तू।
वो ही तो इक रौशनी है।
ज़िन्दगी में है सुकूँ ग़र।
तेरी आकिब' सादगी है।
*-आकिब जावेद*
स्वरचित/मौलिक
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🌹🙏नमन मंच🙏🌹
आदरणीय जनो को नमन
🌹🙏 🙏🌹
विषय-पर्वत/पहाड़
दिनांक-28/05/19
हर माँ कहे मुझको भी
इक अभिनंदन चाहिए
दुश्मन पर टूटे वार करे
शेरों सा गरज संहार करे
अब न देश में होता कोई
क्रंदन चाहिए।
हो ललाट गजराज सा जिसका
वक्ष दहकती ज्वाला
#पर्वत सा जो अडिग रहे
कर काम हिमालय वाला
माँ भारती को ऐसा ही
रघुनंदन चाहिए
हर माँ कहे मुझको भी
इक अभिनंदन चाहिए।
***स्वरचित****
--सीमा आचार्य--
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नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक पर्वत,पहाड़
विधा लघुकविता
28 मई 2019,मंगलवार
प्रकृति की शौभा पर्वत से
जड़ी बुंटिया हैं अपरिमित
नानाकार वृक्ष आच्छादित
रवि रश्मियां होती प्रमुदित
उद्भव होती गङ्गा यमुना
बद्री और केदार विराजे
ऋषि मुनि पावन स्थली
अति दूर से सुन्दर साजे
मानसून आकर्षित करता
वर्षा पर्वत पर होती निर्भर
इठलाती सरिता बहती नित
गिरिराज निरखे नीलाम्बर
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर से
जल गिरता अति नाद करता
गौ मुख गङ्गा पाप विनाशनी
सुर नर मुनि मानस को हरता।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
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पर्वत पहाड ही भारत
की सुन्दरता दर्शाते
खुली हवा खुली
जलवायु लाते
जीवन में नई
बहार लाते
माँ के मनोरम
मंदिर दर्शाते
आज उनको
तोड रहे गट्टी के लिये
भारत की प्राकृतिकता
को नष्ट कर रहे हैं
अपना काम बना रहे हैं
धन राशि के चक्कर में
प्रकृति दोहन कर रहे हैं
स्वरचित एस डीशर्मा
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## पर्वत/पहाड़ ##
जब चले हवा पहाड़ को पड़े झेलना
बड़ा कठिन होता संघर्षों से खेलना ।।
जो जितना बड़ा उतने संघर्ष लिपटे
यह सत्य है यह सत्य सदा उकेलना ।।
देख उनको अपने गम किये कम
शुक्र है उन जैसी अपनी रेल ना ।।
उनकी तो हरदम ही रेल रहती है
आँधी तूफान पड़े उनको ठेलना ।।
बड़े की चाह में कुछ ज्यादा गम
किस्मत को होते है उडे़लना ।।
हमने भी अब सीखा है ''शिवम"
जाना है इन गमों को धकेलना ।।
पहाड़ को जानिये पहचानिये
रहिऐ पास रहिऐ अकेल ना ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 28/05/2019
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नमन माँ शारदे
28/5/2019
पहाड़ का दर्द समझाने का प्रयास
मेरी प्रथम गढ़वाली कविता...
#मेरुपहाड #
मेरु पहाड़ त्वे क्या हुवै ग्याई,
हरयाली त्यारी कख ख़ुवै ग्याई,
कोदू, झंगोरु कु पुन्गंडा,
अबत दिखण बिसरिय ग्याई l
छोड़ि बुए बूबा कु घोर,
वै नानी दादी कु छुआड़,
वि बौंण की घसियारणं,
कख गै बाघ की दहाड़l
पानंदीयारिण कु पांणी कु जांण,
बंटा मुंड मा धैरी की हिट हिटांण,
कख गई वो गाड.. गदना,
रुणु लग्युं च यु सरु पहाड़l
ओ नोना बाला बोडी घोर ऐजा,
खुद लगंणी तुमरी तेरु बुए -बाबा,
सुन्नू वै गई सैरु... पहाड़,
अब तू अनवार मैते दिखेजा ll
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
देहरादून
"मेरा पहाड़"
मेरे पहाड़ तुझे क्या हो गया है
हरियाली तेरी कहाँ खो गयी है
मंडवे का आटा, झंगोरे के खेत
अब दीखते ही नही हैं।
सब अपने माँ बाप
नानी दादी सबको छोड़ निकल गए हैं
कहाँ है जंगलों में घास काटने गयी घस्यारी और विलुप्त हो चुकी बाघ की दहाड़।
पानी के लिए पन्देरे
(पानी का प्राकृतिक श्रोत)
में जाती महिलाएँ
और बंठा/कसेरा यानि गागर अपने सर पर रख कर वापिस होती हुई अब दिखाई ही नही देती।
वो प्राकृतिक स्रोत भी वैसे नही रहे।
पहाड़ भी अपनी हालत पर रो रहा है।
ओ बच्चो अब घर लौट आओ
माँ बाप को तुम्हारी बहुत याद आ रही है
पहाड़ सूने सूने लग रहे हैं
अब तो अपना चेहरा हमे दिखा जाओ।
इसका अनुवाद मेरी प्रिय सखी और भुली Chauhan Sangeetaजी ने किया
शुक्रिया सखी
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नमन भावों के मोती
विषय पहाड़
विधा कविता
दिनांक 28.5.2019
दिन मंगलवार
पहाड़(संक्षेप में)
💖💖💖💖💦💦
उत्तराँचल के पहाड़ों की छटा बताई है
प्रकृति की अनोखी शैली,
दूर दूर तक है फैली,
रमणीय माने क्या होता है,
वर्णनीय कैसा होता है,
गगन चूमना किसे कहते,
शिखर घूमना किसे कहते,
बर्फीला आँचल कैसा होता,
झरने का छलछल कैसे धोता,
किसे कहते प्रकृति की गोद,
कैसे होता ईश्वरीय बोध,
ये दर्शन होते हैं साक्षात,
आनन्द की होती है बरसात।
यह देव भूमि पावन भूमि,
श्रध्दा से जिसने चूमी,
उसने ईश्वरीय बस्ती घूमी,
उन्माद लहर उसकी हुई दूनी,
यह पहाड़ है पहाड़ है पहाड़ है,
ईश्वरीय आनन्द की बहार है।
ओम नमः शिवाय।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
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नमन मंच ,भावों के मोती
18/5 /2019
बिषय पर्वत पहाड़
वो गुजरे गली से मेरी
आकर चले गए
मैं देखती रह
नजर झुका कर चले गए
मालूम न था इक दिन
ऐसा भी आएगा
समझा जिनको अपना
बेगाना बनाकर चले गए
जमाने ने जाने कितने जख्म
हैं दिए
ये पर्वत पहाड़ से गम
दिल में छिपा कर चले गए
आज नहीं तो कल
वक्त अपना भी आएगा
छोटी सी आरजू मन में
जगाकर चले गए
वो भुला कर चले गए
हम निभा कर चले गए।।
स्वरचित,,
सुषमा,, ब्यौहार,,
सादर अभिवादन,,,,
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नमन भावों के मोती
दिनाँक - 28/5/2019
आज का विषय - पर्वत/पहाड़
---स्वर्ग सी शांति---
घूमने गया
गया मैं शिमला
शिमला में पहाड़
पहाड़ ऊंचे - ऊंचे
ऊंचे - ऊंचे घने पेड़
पेड़ों पर चहचहाते पक्षी
पक्षियों की कलरव ध्वनि
ध्वनि जैसे मधुर संगीत
संगीत ऐसा जो लुभाये मन
मन में चल रहा था विचार
विचार जो झंकझोर रहा दिल
दिल कहता कितना गिर गया इन्सान
इंसान स्वार्थ की ख़ातिर काट रहा पेड़
पेडों को करके नष्ट, कर रहा खत्म जंगल
जंगल में देखो कितना सुकून
सुकून ऐसा , आभास स्वर्ग सा
स्वर्ग सी शांति , सब जीव खुश
खुश प्रकृति, प्रसन्नता ही प्रसन्नता
प्रसन्नता ऐसी कहां मिलती हैं बन्द मकानों में
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा(हरियाणा)
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नमन मंच
28/5/2019
विषय पर्वत
मैं नीरव निर्जन तपस्वी का प्रिय भूथल
जीवन दाई नदियों का मैं उद्गम स्थल
कितने ही जीवन अंशों का मैं आश्रय
कितने ही वृक्ष , पादपों का मैं आलय
कहता मानव मुझको अडिग रुका और जड़
मैं रचता माटी का रूप स्वयं हो खंड खंड
जलमग्न धरा से मैंने ही थल को स्वरूप दिया
लावा को शांत किया चट्टानों का रूप दिया
धीरे-धीरे सागर से उभरा ,श्रृंखलाओं को आज़ाद किया
मैं बिखरा संभला , कितने ही नगरों को आबाद किया
मैं प्रचंड ताप विकल पवन और हिमघात सहा
खंडित खंडित हो मैं धारा के साथ बहा
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित
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नमन भावों के मोती मंच 🙏
दिनांक - 28/05/2019
विषय - पर्वत /पहाड़
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पर्वत
मैं पर्वत हूँ
युगों - युगों से
समेटे स्वयं में
कितने रहस्य
चुप खड़ा हूँ
बहती है
मेरी भाव धारा
पीयूष स्रोत सी
हृदय की घाटियों से
सँवारी है हमने
धरती माँ के अद्भुत वेश को
हमारी ही गोदी में
समृद्ध और उन्नत हुई हैं
कितनी सभ्यताएं
मैं हूँ साक्षी
अपनी ही कंदराओं के
साधकों के
अपरिमित ज्ञान - विज्ञान के चरमोत्कर्ष का...... ।
देखे हैं हमने
जमाने के कितने रंग. ..
टूटते - बनते मानदंड...
स्वार्थ लोलुपता और
उसकी स्वयं सृजित
विध्वंस लीला....
जिसकी बलि चढ़ता
मैं स्वयं
अपने खोते पुराने स्वरूप को देखता
हताश और निराश
पर मैं डरता हूँ कि
टूट न जाए
धर्य का तटबंध और
बहने लगे दर्द का ग्लेशियर
जिसके सैलाब में
हो जाय स्वाहा
यह पूरी सृष्टि ही.....!
स्व रचित
डॉ उषा किरण
28/05/2019
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भावों के मोती
28 /05 /19
विषय - पहाड़ /पर्वत।
ये वादियां ये नजारे, देखो घिर आई घटायें भी
पहाड़ो की नीलाभ चोटियों पर झुकने लगा आसमां भी।
झील का शांत जल बुला रहा,कुदरत मुस्कान बिखेर रही
ये लुभावनी घूमती घाटियां हरित रंग रंगी धरा भी।
किसी कोने से झांक रही सुनहरी सूर्य किरण
हरी दूब पर इठलाती लजीली धूप की लाली भी ।
छेड़ी राग मधुर, मस्त, सुरभित हवाऔं ने
प्रकृति के रंग रंगा देखो आज मन आंगन भी।
स्वरचित।
कुसुम कोठारी ।
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ठिठुर रहा
ओढ़ हिम दुशाला
बूढ़ा पहाड़
चलती नदी
कर के पहाड़ों का
चरण स्पर्श
वर्षा के बाद
पहाड़ों ने उठाया
इंद्र्धनुष
हवा उड़ाए
बादलों की पतंग
चढ़ पहाड़
इठला रही
पहन देवदार
नंगी चट्टान
खूब छकाता
छुप पहाड पीछे
चाँद शैतान
टंगा है चाँद
चोटी पे पहाड़ की
लालटेन सा
अंधेरे साये
उतर पहाड़ से
धरा पे फैले
माथे सजता
सुबह पहाड़ के
सूर्य तिलक
राजीव गोयल
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नमन मंच
28/05/19
पहाड़
**
पहाड़ों से उतरती धूप
का, देखा जब भव्य रूप
सौंदर्य से इसके हुए मुग्ध
अचंभित हो ,हुए निःशब्द
अधीर हो सुनहरी किरणें
मिली धवल हिम कणों से जब
परावर्तित हो पल भर मे
चांदी सी चमक पहाड़ों
पर चहुँ ओर छा गयी
देखते देखते चांदनी ने
ओढ़ ली सुनहरी चूनर
पल में यूँ लजा कर
फिर लाली हो गयी मुखर
जैसे हो नई दुल्हन का रूप
यूँ पहाड़ों से उतरी धूप ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
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सादर नमन
28-05-2019
पर्वत
पथ रोके रोड़े नहीं, पाषाण यहाँ
जीवन राह कठिन आसान कहाँ
इस डगर कभी क्या चला कोई
इस पत्थर को भी है छला कोई
साहस, शक्ति संबल संचय किए
धीरज अटल, ईंधन अक्षय लिए
निरत अहर्निश धुन में मतवाला
रूखा-सूखा खा या बिन निवाला
पथ्य हीन पथ की आस सुहास
सपनों में जीवित कल्प आभास
हे पथिक चले तुम अगम्य राह
विकट बाधा विघ्न से बे-परवाह
आखिर तुमने तो तोड़ ही डाला
पत्थरमुख को भी मोड ही डाला
कृश-काया, बाजू किधर बलवान
सश्रम संकल्प शुचि लक्ष्य संधान
अडिग अविचल अहं अनत पर्वत
सत्त-श्रम-संबल सम्मुख धरा-नत
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
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द्वितीय प्रस्तुति
संवाद के द्वारा पर्वत का दर्द ....
****
मैं ...जब भी तुम्हारी गोद में आती हूं तुम्हारे सौंदर्य में खो
जाती हूँ।
वो... अब मेरी वह सुंदरता कहां बची!
मैं ...ऐसा क्यों कह रही हो तुम ,देखो ना इन हसीन
वादियों को ,कितनी खूबसूरत हैं ये।
वो ....कितनी चोट सहनी पड़ती है कितना टूटना
पड़ता है मुझे ,मेरी इस व्यथा को कौन
समझेगा?
मैं ....अपने स्वार्थवश तुम्हारे लिए सोच ही नहीं पाई
कि तुम अपना कलेजा चीर कर हमें खुशी देती
हो और हम तुम्हें ही खोखला कर रहे हैं
वो .....शुक्र है तुमने मेरी व्यथा तो समझी बस एक
निवेदन है मैं जैसी भी हूं मुझे वैसे ही अपना
लो ,अब और आघात सही नहीं जाते ।
मैं .......निशब्द थी उसकी व्यथा पर!
स्वरचित
अनिता सुधीर
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नमन भाव के मोती
दिनांक 28 मई 2019
विषय पर्वत पहाड़
विधा हाइकु
निर्जन गिरि
बिखरे हिमकण
विपुल शांति
गिरि आंगन
हिमकण सज्जित
नवल कान्ति
बर्फ चादर
गिरि काया धवल
वसन भ्रान्ति
पहाड़ बने
आध्यात्मिक संसार
शान्ति की गोद
पहाड़ों पर
सतरंगी सुषमा
मेघ फुहार
पहाड़ गर्भ
निकलती नदियां
जीवनदायी
साहस देता
पहाड़ों का धीरज
जीवन लक्ष्य
चांदनी रात
चमकता पहाड़
हिम वसन
मनीष श्री
रायबरेली
स्वरचित
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सादर अभिवादन
नमन मंच
भावों के मोती
दिनांक : 28-5- 2019 (मंगलवार )
शीर्षक : पर्वत / पहाड़
पर्वत पहाड़ पर डेरा तेरा
दर्शन कैसे करपाऊँ मैं
छोड़ सभी यह रिश्ते -नाते
तुझको ही अपनाऊँ मैं
पांच तत्वों से निर्मित काया
माया में मगरूर रहा
जप -तप साधन कर न सका
मन सत्संगति से दूर रहा
तन का दोष नहीं पर अपने
मन को क्या समझाऊं मैं
पर्वत पहाड़ पर डेरा तेरा
दर्शन कैसे करपाऊँ मैं
मैं अज्ञानी ज्ञान की बातें
क्या समझूं क्या गौर करूं
माया के इस महानगर में
कहां कहां मैं दौड़ करूं
तू ही मां तू पिता गुरु मेरे
तुझ में ही रम जाऊं मैं
पर्वत पहाड़ पर डेरा तेरा
दर्शन कैसे कर पाऊँ मैं
तुम हो अगम अगोचर स्वामी
करुणानिधान है नाम तेरा
दीन दुखी को गले लगा कर
दुख हरना है काम तेरा
आकर गले लगा लो मुझको
जीवन सफल बनाऊँ मैं
पर्वत पहाड़ पर डेरा तेरा
दर्शन कैसे करपाऊँ मैं
है वैद्यनाथ अनाथ की नैया
भवसागर से पार करो
डूब ना जाऊं बीच भंवर में
बस इतना उपकार करो
बना रहूं चरणों का प्रेमी
नित नचारी गाऊँ में
मधुलिका कुमारी "खुशबू"
ये स्वरचित है ।
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नमन "भावो के मोती"
28/05/2019
"पहाड़"
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दु:खों का पहाड़.....
जग से मिलते हैं जो...
सीने में दर्द दे जाता...
अक्सर मुस्कुराहट छीन लेता है।।
राई का पहाड़.....
बनाता जो इंसान..
खोखली बातें कह जाता...
ईमान को भूल.....
अक्सर सच्चाई का घर भूल जाता है।।
चलना ही है जिंदगी...
जो मन में ठान ले...
पहाड़ बनकर बाधाएँ ...
जो सामने आ जाए...
हौसलों से काटकर...
राह बना लेता है ।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
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नमन मंच भावों के मोती
दिनांक-28/05/2019
विषय- पर्वत/पहाड़
विधा-दोहे
नदी कहे हिमालय से ,रिसिये न बूंद बूंद।
जैव विविधता भी बचे, हिम की पलकें मूंद।।
बढ़े ताप जो धरा का, बह जाएं हिमखंड।
सागर में पानी बढ़े, प्रलय काल का दंड।।
#पर्वत प्रहरी सा खड़ा, करे धरा का त्राण।
परिवेश यदि हो हरा ,बचें मनुज के प्राण।।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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माँ बाप को बोझ
समझने वालों,
खुद के इर्द गिर्द ही
जीने वालों।
जब तू माँ के गर्भ
में था,
वाक़ई रोज दर रोज
तेरा बढ़ता वजन
मां के लिए पहाड़
बनता जा रहा था,
अंततः जब तू रक्षा
झिल्ली फाड़,
गर्भनाल समेत धरा पर
गिरा।
सचमुच ये समय माँ
के लिये प्राण घातक था।
लेकिन माँ नें इस दर्द को
भी सुखद अहसास में
बदला,
सोच आज वही माँ
तेरे लिए कैसे भार है??
भावुक
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नमन भावों के मोती 🌹🙏🌹
28-5-2019
विषय:- पहाड़
विधा :- सरसी छंद
शैल शिखर आच्छादित हिम से , स्पर्श करें आकाश ।
मनमोहक रूप नीहार के , मेघ भरें भुज पाश ।।
बहें हृदय पर झरने नदिया , कलकल करते नाद ।
निर्जनता में जैसे करते , मुखरित हो संवाद ।।
दिनकर करता प्रथम किरण से , टीका उनके भाल ।
उषा भी अभिषेक है करती , पहन सुनहरी लाल ।।
ऊँचे पर्वत सीमाओं के ,बनते पहरे दार ।
धरती का शिंगार चोटियाँ , साधन भरे अपार ।।
तन कठोर मन कोमल होता , बहता रहता नीर ।
तरु काटते रहते वक्ष के , घाव करें गम्भीर ।।
जड़ी बूँटियों वन औषध का , आकर हूँ भरपूर ।
संसाधन का दोहन करते , हुए नशे में चूर ।।
कैलाशी से गिरि है शोभित , बनते उत्सव नैन ।
करें मनुहार गिरिजा से शंकर , परिरम्भन के बैन ।।
प्रेम उद्गार स्वत: स्फुटित हों , देखो गिरि हरिताभ ।
मेघ चूमते नभ से आकर ,पाने को अमिताभ ।।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
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28/5/2019
💐💐💐💐
पर्वत/पहाड़
🌸🌸🌸
नमन मंच।
नमन गुरूजनो, मित्रों।
💐💐🙏🙏
अडिग खड़ा है ये ऊंचा पहाड़,
छटा है इसकी निराली।
झरना झड़, झड़ बह रहा है इसके उपर से,
हवा भी चल रही है मतवाली।
ऊंची चोटी कुछ कह रही है हमसे,
वुद्धि, विवेक हो ऊंचा।
वही पूजे जाते हैं जग में,
जो रहते हैं अटल पर्वत सा।
इससे है निकलती नदियां,
झरने के रूप में बहकर।
करती है शीतल जनजीवन को,
उद्धार करती है पृथ्वी का।
कितने खनिज निकलते हैं,
इसी पहाड़,पर्वत से।
सबकुछ छिपा हुआ है इसमें,
पास देखो जाकर इसके।।
💐💐💐💐💐💐💐
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
💐💐💐💐💐
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नमनःभावों के मोती
मंगल.,दि.28/5/19.
शीर्षक : पर्वत
*
पर्वत भूमा - उर की उमंग।
दृढ़ता , रसमयता संग-संग।
बहुमूल्य वनौषधि वर-दानी।
अन्तर्प्रपातयुत कल्याणी।।
आश्रय बहु वन्य प्राणियों का।
तपसी,अध्यात्म-ग्यानियों का।
निर्मल निसर्ग का शुचि प्रदेय।
अवदात उच्च गरिमा अगेय।।
-डा.'शितिकंठ'
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पर्वत राई
हिम्मत के समाने
जीत की चाह।।
गले पहाड़
सहे ताप की मार
डूबे शहर।।
बर्फ की वर्षा
सुहाना था मौसम
सड़क जाम।।
लगे पहाड़
जीना हुआ दूभर
माता के बिन।।
पहाड़ी क्षेत्र
भूलभुलैया मार्ग
जोखिम युक्त।।
करो साहस
कटे कष्ट पहाड़
समय दवा।।
उत्तुंग हिम
चढ़े पर्वतारोही
फहरा झंडा।।
गंगा भावुक
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भावों के मोती
शीर्षक- पर्वत/ पहाड़
दुःख थै मेरे पर्वत से
और राई सी मैं।
फिर भी हौसला रखा मैंने
तनिक न घबरायाे मैं।
हौले हौले ये दुःख सारे
समय की नदी में बह गए।
आज बहुत खुश हूं मैं,
सुख हो गये पर्वत से
और राई से हुए दुःख सारे।
स्वरचित- निलम अग्रवाल,खड़कपुर
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28/5/19
भावों के मोती
विषय -पर्वत/पहाड़
_________________
बचपन से सुनते आए
पहाड़ों के किस्से
कभी असली कभी नक़ली
पहाड़ थे कई किस्म के
कभी दुःख के कभी मुश्किल के
कभी राई का पहाड़
बहुत सुना सोचा-समझा
पर समझ नहीं आया
प्रश्नचिंह बन खड़ा हो जाता
राई का पहाड़ होता है कैसा
बड़े हुए तो अब यह जाना
कैसे छोटी-छोटी बातों का
लेकर बहाना
बन जाते हैं पहाड़ राई के
जो बातों ही बातों में
इतने बड़े हो जाते
फिर कोई नहीं चाहता है
चढ़ कर उतरना
सब चढ़ने के लिए तैयार रहते
यह राई के पहाड़ बड़े बेकार होते
मुसीबत बन कर टूट पड़ते
बदल जाते हैं तकरार के साथ
दुःख का पहाड़ बनकर
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित ✍
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शुभ संध्या
शीर्षक-- # पर्वत/पहाड़ #
द्वितीय प्रस्तुति
बारिश की बूँदें जब गिरें
पर्वत का हुस्न खिल जाए ।
मायूस पर्वतों को भी कुछ
हंसने का मौका मिल जाए ।
पर्वत नदी सभी उदास हैं
उनका कुछ गम निकल जाए ।
कुदरत के बैठें करीब हम
मानवता के बीज कुछ पल जाए ।
पंछियों के घरोंदे छीने ये गम है
यह गम उन पर्वतों का टल जाए ।
चहल पहल कभी रही वहाँ पर
फिर से वह चहल पहल जाए ।
कुछ हम बहलें कुछ तुम बहलो
पर्वत भी ''शिवम" बहल जाए।
हम सब तो संभले बहुत मगर
वह भी तो कुछ संभल जाए ।
नदी पहाड़ खत्म हुए हैं आज
है भूल काश ये भूल बदल जाए ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 28/05/2019
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सादर नमन
आज का शीर्षक- पर्वत
"पर्वत"
सिंदुरी नभ की किरणें,
लेती पर्वत का चुँबन,
निकले पर्वत से झरने,
करने नदी का आलिंगन,
पर्वत के तन पर,
श्वेत चाँदी का श्रंगार,
छोड़े निशानी पर्वत पर,
निर्मल झरने की धार।
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त
28/5/19
मंगलवार
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"नमन-मंच"
"दिनांक२८/५/२०१९"
"शीर्षक-पहाड़"/पर्वत"
महानगर के कोलाहल से दूर
चलो करें हम पहाड़ों की रूख
शुद्ध हवा, निर्मल पानी वहाँ पर
अनुपम छटा प्रकृति बिखरे जहाँ पर।
प्रकृति की गोद मे करें विहार
जीवन मे भर जाये असीम उत्साह
लंबे चीड़, देवदार यहाँ पर
लोगों की बोली मे मिठास यहाँ पर
मलिन नही निर्मल मलय यहाँ पर
स्वच्छ अम्बर चाँदनी बिखरे यहाँ पर
महानगर के कोलाहल से दूर
जीवन के मस्ती यहाँ भरपूर।
ग्लोबल वार्मिंग से न हो इन्हें नुकसान
प्रकृति को संरक्षित करना हमारा काम
पेड़ काट न करें इनका नुकसान
तभी सुरक्षित रहेगा हमारा पहाड़।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
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तिथि 28/5/19
विधा - छंद मुक्त
विषय - पर्वत
तुम पर्वत से
स्थिर, विशाल
दृढ़ता से
खड़े हो एक छोर पर
मेरी चाहत में
खामोश नजरों से
मुझ से
मुझे ही माँगते
बाँहें फैलाये
पर मैं अकिंचन
क्या दे पाऊंगी तुम्हें
खाली है झोली मेरी
तुम्हारा आग्रह
कैसे स्वीकार करूँ
तुम्हारे प्रेम का प्रतिदान
कैसे दे पाऊँगी
सूने नयनों से
तुम्हें निहारती
खाली दामन लिए
कुछ बूँद
अश्रु छलकाती
इन्हीं पर्वत श्रृंखलाओं में
विलीन हो जाऊंगी
कहीं दूर
और तुम
भीगी पलकों
और भारी मन से
ढूंढोगे मुझे
फलक के सितारों में
न लौट पाउंगी
फिर कभी मैं
तुम्हारे भिक्षा पात्र में
खुद को समर्पित करने
सरिता गर्ग
स्व रचित
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नमन भावों के मोती
विषय - पर्वत/पहाड़
28/05/19
मंगलवार
मुक्तक
बिना तपस्या किए किसी को ऊँचा लक्ष्य नहीं मिलता।
अथक कोशिशों के बिन जैसे पर्वत कोई नहीं हिलता।
आत्मनियंत्रण व दृढ़ता से ही सब संभव होता है-
केवल कोरे स्वप्नों से उन्नति का पुष्प नहीं खिलता है।
बेटियों! तुम अब हृदय में भावना नूतन जगा दो।
खोखली सब रूढियों से दूर अपना मन लगा दो ।
लाख बाधाएं तुम्हारी राह में आकर खड़ी हों-
तुम प्रबल विश्वास से उत्तान पर्वत भी डिगा दो।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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नमन मंच को
विषय : पहाड़
दिनांक : 27/05/2019
पहाड़
जंगल पेड़ पहाड़ देखो
हरियाली की बहार देखो
जीवन नष्ट करने पे तुला
इन्सान आज तैयार देखो
देते पर्वत धरा पे जीवन
कितने सुंदर लगते हैँ वन
प्रकृति के भिन्न रंग समेटे
पुलकित करते देखो तन मन
अपनी लालसाओं के चलते
उजाड़े नित संसार देखो
जीवन नष्ट करने पे तुला
इन्सान आज तैयार देखो
पहाड़ों से सबका मन हर्षे
धरा भी खिलती नीर जो बरसे
कुदरत करें जब रूप उदंड
इंसान बूंद बूंद को तरसे
बुलबले सी औकात नहीं पर
बनता है होशियार देखो
जीवन नष्ट करने पे तुला
इन्सान आज तैयार देखो
झरने देखो कलकल बहते
जानवर पंछी ख़ुशी से रहते
खौफ में सब जानवर पंछी
देख के हर दिन पेड़ कटते
महत्वकांक्षी इंसान दे रहा
घुटती साँसों का उपहार देखो
जीवन नष्ट करने पे तुला
इन्सान आज तैयार देखो
इन्सान आज तैयार देखो
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर ,पंजाब
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नमन भावों के मोती
दिनाँक-28/05/2019
शीर्षक-पहाड़ , पर्वत
विधा-हाइकु
1.
ऊँचे पर्वत
चढ़े पर्वतारोही
दुर्गम रास्ते
2.
खड़ा अटल
हिमालय पर्वत
बना प्रहरी
3.
चाय बागान
फसल पर्वत की
ढलान युक्त
4.
ऊँचे पहाड़
आसमान को छूते
चीड़ के पेड़
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स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
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नमन मंच को
दिन :- मंगलवार
दिनांक :- 28/05/2019
विषय :- पर्वत/पहाड़
पर्वतों सा हौसला लेकर...
खुद को समर्थ बनाया है..
पर्वतों सा धैर्य लेकर..
हर बाधा से पार पाया है..
पर्वतों सी ऊँचाई लेकर..
ख्वाबों को सजाया है..
पर्वतों सा दृढ़ रहकर..
हर कर्तव्य निभाया है..
पर्वतों सा शांत रहकर..
हर गम को भुनाया है..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
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नमन भावों के मोती
28 /5 / 19
विषय -पर्वत /पहाड़
अपरिमित सौंदर्य ,दिव्य पावन सादगी ,
वितरागी पर्वत ,करता धरा की बंदगी
मिहीका की उड़ती फुहार,
खींचे अपनी ओर ,
रश्मिरथी की रश्मियां,
श्वेत रेशमी चादर पर
दौड़ दौड़ खेलती पुरजोर ।
पर्वतों से बहते निर्झर,
निर्मल झील ,नदी, संजीवनी की गागर ।
हिमआच्छादित पहाड़ों की ऊंची चोटियां,
चमचमाते अभ्रक की जैसे भरी बोरियां ।
तपता है, सुलगता है, गलता है, पिघलता है,
मानव के फैलाये प्रदूषण को
सीने पर अपने सहता है , चुप रहता है ।
असहनीय पीड़ा जब बढती है फिर
मनु जीवन कंपीत करता है ।
हे मानव !धरा पर जीवन पलता रहे
निज स्वार्थ तेरा भी चलता रहे ,
प्रदूषण पर रोक लगा ,
अपनी भूलों पर टोक लगा ।
सुरमई श्यामल बादल घिरने दे
निर्झर का सुरम्य संगीत झरने दे
बांध घुंघरू पांवों में
सलिल सरिता को नृत्य करने दे ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
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सादर नमन
शीर्षक- पर्वत/पहाड़
"पर्वत"
तेरे प्रेम की स्वर्णिम किरणों से,
हुआ उज्जवल मेरा जीवन,
सुनकर गुँजन भँवरों की,
खिल गया है सारा चमन,
तेरे प्रेम के सागर में,
लहराता है मेरा मन,
उठकर खुशियों की मृदुल उमंग,
कर देती है दुखों का दमन,
किस्मत के सितारों से ,
हो जाती है जब अनबन,
पर्वत समान रखता हौंसलें,
आशा वादी ये मेरा मन,
ना घबराऊँ मैं अब,
आते दुख जब धारा बन,
आँसूओं का सैलाब भी,
करता है झुककर नमन।
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स्वरचित-रेखा रविदत्त
28/5/19
मंगलवार
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
28/05/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"पर्वत/पहाड़ "
(1)
सम्पदा बसी
पहाड़ों की गोद में
नदियाँ पली
(2)
श्रम विकल्प
पर्वत की चुनौती
चढ़े संकल्प
(3)
पर्वत झरे
मेघों का अभिषेक
गंगा उतरे
(4)
स्वार्थ ने काटे
मिल पर्वत-मेघ
सम्पदा बाँटे
(5)
वर्षा निखारे
पहाड़ों का श्रंगार
हरित हार
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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नमन मंच
आज का शीर्षक--पर्वत
विधा----मुक्त
दिनांक--28 / 05 / 19
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हिमाच्छादित पर्वत
सच बता
तू क्यों है शीतल
ज्यूं है मौत
तेरा दामन तो
सदियों से
देता ही आया
सबको जीवन मोक्ष
अथाह,असीम,अडिग
अविचल स्थिर है तू
तुझमें भरा
भंडार अर्थ का
है अमृत रस धार
तेरे दामन में
आश्रयदाता
बना था प्रलय में
मनुपुत्र का
तब से तो
देता ही रहा है
मोक्ष मानव को
असीम राशियां
संजीवन की
मिलती तेरी
देह से
फिर भी
सच बतला
तू क्यूं है मौन शव -सा
मानती हूँ
तेरे स्थिर मन में भी
भरा हुआ
अवसाद है
तभी तो सहनशीलता का
कभी कभी
टूटता बांध है
फट पड़ता है
कभी अचानक से
फिर भी गरम
राख ही राख
बिखेरता है
मानो.........
अभी अभी हुआ है
तेरा दाह संस्कार।
डा.नीलम .अजमेर
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नमन
भावों के मोती
28/5/2019
विषय-पहाड़
पहाड़ हुए अशांत
कभी गोली से कभी हमले से
कभी पर्यटकों के बढते हुए काफिले से
कभी आतंकी गतिविधियों से
घटने लगी है सुंदरता
हरियाली रहित नंगे पहाड़
दरक जाते हैं अक्सर
सहन नहीं कर पाते शोर
अपने ऊपर अत्याचार
आखिर पहाड़ भी दिल रखते हैं
चुक जाती है सहनशक्ति
टूट जाता है सब्र का बांध
कमजोर थके पहाड़
दरक जाते हैं अक्सर
तोडा जाता है इनको निर्ममता से
बनाने के लिए सड़क और सुंरग
प्रदूषण और कचरे से
बीमार होते पहाड़
दरक जाते हैं अक्सर
ये भूस्खलन नहीं
दर्द है पहाड़ों का
जो अचानक बह उठता है
तुम कितने निष्ठुर हो ?
अपना दुःख देखकर भी
पहाड़ों का दर्द नहीं समझ पाते!
ये शांत सुंदर बर्फीले पहाड़
बैचेन हैं अस्तित्व को लेकर
इसीलिए दरक जाते हैं अक्सर
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
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नमन मंच को
शैलेन्द्र कुमार प्रसाद
आज का शीषर्क -पर्वत/पहाड़
सीखो तुम पहाड़ से
आते है, जब दुख के बादल
अविचल हो कर लड़ता
हवा के थपेड़ो से
उन्हे रोक कर
मजबूर करता
अपने तन पर
बरसने को
झूमाता है पेड़ो को
खिलखिलाता है, नदियो को
झीलो को है भरता
हरियाली को है लाता
जीवन देता सभी को
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नमन मंच को
दिनांक-28/5/2019
विषय-पर्वत/पहाड़
सीखो पर्वतों से अचल रहना
अपनी आन बान शान में कायम रहना
सीखो पर्वतों की चोटियों से ऊँचाई की बुलंदियों को छूना ।
सीखो पर्वतों से गगन को भी छू लेना
सीखो पर्वतों से अपलक अपनी धुन में बने रहना ।
सीखो पर्वतों से एक अलग मापदंड तय करना।
निकालना स्वयं से अनेक नदियों झरनों झीलों को ।
आश्रय देना अनेक वन ,वनस्पतियों ,प्राणी कोल भीलों को ।
ये पर्वत हमारे जीवनाधार है,प्रकृति का सुंदर उपहार हैं।
आओ नमन करे इनकी महानता को ,
और जतन करें पाने को इनकी जैसी उदारता को।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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