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ब्लॉग संख्या :-374
गुजरा था कारवां यह निशां है कहीं।
कहीं हैं दिल के, जिस्मों जां है कहीं।
गुबारो गर्द में कुछ समझ नहीं आता।
नज़र कहीं हैं और और बयां हैं कहीं ।
इस जिन्दगी का भला क्या है भरोसा
कहीं ठहर यह जाए और रवां है कहीं
मशविरे मुझको कभी समझ नहीं आए
हदें जमीं थी कही, के आसमां है कहीं
परवरि़श कैसे मुकम्मल होती मुमकिन।
दूर होता हुए गुलशन, के बागबां है कहीं।
विपिन सोहल
कहीं हैं दिल के, जिस्मों जां है कहीं।
गुबारो गर्द में कुछ समझ नहीं आता।
नज़र कहीं हैं और और बयां हैं कहीं ।
इस जिन्दगी का भला क्या है भरोसा
कहीं ठहर यह जाए और रवां है कहीं
मशविरे मुझको कभी समझ नहीं आए
हदें जमीं थी कही, के आसमां है कहीं
परवरि़श कैसे मुकम्मल होती मुमकिन।
दूर होता हुए गुलशन, के बागबां है कहीं।
विपिन सोहल
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सुप्रभात"भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन🌹
02/05/2019
"निशान"
1
सफेद खून
पानी के संग घुला
कैसा निशान
2
लहू का रंग
खंजर के निशान
घायल मन
3
रेतीली जमीं
कदमों के निशान
बनके मिटा
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन🌹
02/05/2019
"निशान"
1
सफेद खून
पानी के संग घुला
कैसा निशान
2
लहू का रंग
खंजर के निशान
घायल मन
3
रेतीली जमीं
कदमों के निशान
बनके मिटा
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
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लघु कविता
"अमिट निशान"
बीते पलों की सोचकर
खो गया मैं
अतीत के गलियारों में
सीखा जमाने से बहुत कुछ
कमाई इज्जत और मान-सम्मान।
स्वर्णिम पल था
मेरी जिन्दगी का
निकल गया जो तेजी से
तूफान की मानिंद
और छोड़ गया
अमिट निशान
मेरे हृदय पटल पर।
राकेशकुमार जैनबन्धु
गाँव-रिसालियाखेड़ा, सिरसा
हरियाणा,
"अमिट निशान"
बीते पलों की सोचकर
खो गया मैं
अतीत के गलियारों में
सीखा जमाने से बहुत कुछ
कमाई इज्जत और मान-सम्मान।
स्वर्णिम पल था
मेरी जिन्दगी का
निकल गया जो तेजी से
तूफान की मानिंद
और छोड़ गया
अमिट निशान
मेरे हृदय पटल पर।
राकेशकुमार जैनबन्धु
गाँव-रिसालियाखेड़ा, सिरसा
हरियाणा,
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नमन मंच 🙏
सुप्रभात मित्रों 🙏😊
दिनांक- 2/5/2019
शीर्षक-"निशान"
विधा- कविता
************
मेरे जीवन की ज्योति थे तुम,
साथ-साथ कितने खुश थे हम,
अचानक नौकरी से पैगाम आ गया,
जल्दी आओ दुश्मन घात लगा गया |
सिपाही जहांबाज तुम थे देश के,
खबर मिलते ही तुरंत रवाना हो गये,
देश की रक्षा सर्वोपरि सोचकर,
बॉर्डर पर जा तुम तैनात हो गये |
दुश्मनों को तुमने धराशायी किया,
गोलियों का दर्द तुमने भी सहा,
अपनी आखरी सांस तक तुम डटे रहे,
आह! स्वयं भी तुम शहीद हो गये |
तुम्हारे खून के निशान वर्दी पर लगे,
तिरंगे पर थे तुम शान से लिपटे,
नहीं कर पाई दिल से तुम्हें जुदा,
वर्दी से ही लिपटी रहूँगी मैं सदा |
एहसास तुम्हारे होने का मिलेगा,
जीने का कुछ तो हौंसला मिलेगा,
आज तुम नही तुम्हारी यादें पास हैं,
तुम्हारे स्पर्श के निशान मेरे साथ हैं |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
सुप्रभात मित्रों 🙏😊
दिनांक- 2/5/2019
शीर्षक-"निशान"
विधा- कविता
************
मेरे जीवन की ज्योति थे तुम,
साथ-साथ कितने खुश थे हम,
अचानक नौकरी से पैगाम आ गया,
जल्दी आओ दुश्मन घात लगा गया |
सिपाही जहांबाज तुम थे देश के,
खबर मिलते ही तुरंत रवाना हो गये,
देश की रक्षा सर्वोपरि सोचकर,
बॉर्डर पर जा तुम तैनात हो गये |
दुश्मनों को तुमने धराशायी किया,
गोलियों का दर्द तुमने भी सहा,
अपनी आखरी सांस तक तुम डटे रहे,
आह! स्वयं भी तुम शहीद हो गये |
तुम्हारे खून के निशान वर्दी पर लगे,
तिरंगे पर थे तुम शान से लिपटे,
नहीं कर पाई दिल से तुम्हें जुदा,
वर्दी से ही लिपटी रहूँगी मैं सदा |
एहसास तुम्हारे होने का मिलेगा,
जीने का कुछ तो हौंसला मिलेगा,
आज तुम नही तुम्हारी यादें पास हैं,
तुम्हारे स्पर्श के निशान मेरे साथ हैं |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती ,
आज का विषय , निशान ,
दिन , गुरुवार ,
दिनाँक, २,५,२०१९,
निशान दिल पर वक्त ने अपने बना दिये ,
नैनों के दोनों ही प्याले लबालब भर दिये ।
जो उसने बतायी राह उस पर हम चला किये ,
पैमाने खुशियों के फिर भी हाथों से ले लिये ।
डूब गयीं कई हस्तियाँ समुंदर में प्यार के ,
पड़ गये जो निशान मिटाये से नहीं मिटे ।
बुराई में अच्छाई के भीे निशान कई मिले ,
राजनीति के दलदल में भी कमल कई खिले ।
आवागमन दुनियाँ में निरंतर ही चलते रहे ।
निशान शुभ सृजन के सीढियाँ चढ़ते रहे ।
कदमों की सुर ताल से साज दिल बजते रहे ,
लगा दिये थे वृक्ष जो वो फल सदा देते रहे ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
आज का विषय , निशान ,
दिन , गुरुवार ,
दिनाँक, २,५,२०१९,
निशान दिल पर वक्त ने अपने बना दिये ,
नैनों के दोनों ही प्याले लबालब भर दिये ।
जो उसने बतायी राह उस पर हम चला किये ,
पैमाने खुशियों के फिर भी हाथों से ले लिये ।
डूब गयीं कई हस्तियाँ समुंदर में प्यार के ,
पड़ गये जो निशान मिटाये से नहीं मिटे ।
बुराई में अच्छाई के भीे निशान कई मिले ,
राजनीति के दलदल में भी कमल कई खिले ।
आवागमन दुनियाँ में निरंतर ही चलते रहे ।
निशान शुभ सृजन के सीढियाँ चढ़ते रहे ।
कदमों की सुर ताल से साज दिल बजते रहे ,
लगा दिये थे वृक्ष जो वो फल सदा देते रहे ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
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तुझे खुशी देने का वादा
🌹नमन भावों के मोती🌹विषय,_निशान,मुक्तक
तुझे खुशी देने का वादा कर के मैं निभा न सका।
बैठ के साथ कोई नगमा कभी गुनगुना न सका
मैं हूँ मुजरिम ख़ताएं सब माफ कर देना
प्यार इतना था कि नफरते करके भी भुला न सका
पास इतने रहे कि ,तन्हाई कभी एहसास न थी।
गुजर गई जिंदगी ,मानो कोई प्यास न थी।
मेरे हमसफ़र खोकर तुझे , ये दिल ने तब जाना_
ख़ो आए वो जिंदगी जो ,कभी हमारे पास थी।
न हो तुम तो राहे सफर मुश्किल सा कटता हैं,
उजालों से डर तो कभी रातो को अंधेरा डसता हैं ।
उल्फतो में हो गये हालात अब कुछ ऐसे ही
जिस्म तो है ,मगर इसमें , कोई बेजान बसता है।
चलो राहें सफर मुश्किल को आसान करते है।
दो राहें इस सफर में कुछ #निशान करते हैं।
भरोसे के पँछी कभी गगन छोड़ा नहीं करते""_
चलो उन्मुक्त गगन में ,फिर उड़ान भरते है।
पी राय राठी
, राज•
🌹नमन भावों के मोती🌹विषय,_निशान,मुक्तक
तुझे खुशी देने का वादा कर के मैं निभा न सका।
बैठ के साथ कोई नगमा कभी गुनगुना न सका
मैं हूँ मुजरिम ख़ताएं सब माफ कर देना
प्यार इतना था कि नफरते करके भी भुला न सका
पास इतने रहे कि ,तन्हाई कभी एहसास न थी।
गुजर गई जिंदगी ,मानो कोई प्यास न थी।
मेरे हमसफ़र खोकर तुझे , ये दिल ने तब जाना_
ख़ो आए वो जिंदगी जो ,कभी हमारे पास थी।
न हो तुम तो राहे सफर मुश्किल सा कटता हैं,
उजालों से डर तो कभी रातो को अंधेरा डसता हैं ।
उल्फतो में हो गये हालात अब कुछ ऐसे ही
जिस्म तो है ,मगर इसमें , कोई बेजान बसता है।
चलो राहें सफर मुश्किल को आसान करते है।
दो राहें इस सफर में कुछ #निशान करते हैं।
भरोसे के पँछी कभी गगन छोड़ा नहीं करते""_
चलो उन्मुक्त गगन में ,फिर उड़ान भरते है।
पी राय राठी
, राज•
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दि- 2-5-19
विषय- निशान
सादर मंच को समर्पित -
🍋🌿 वर्ण पिरामिड 🌿🍋
*************************
निशान
🐾🐾🐾🐾🐾🐾🐾🐾🐾
🍅🌲 (1)
ये
उच्च
निशान
छूट जात
क्षण भंगुर
शरीर न साथ
है मृत्य खाली हाथ
🍎🌱🍋
🍋🌲 ( 2 )
है
यह
शरीर
बुलबुला
भाडे़ की शाला
निशान खो जाना
मृत्यु का न ठिकाना
विषय- निशान
सादर मंच को समर्पित -
🍋🌿 वर्ण पिरामिड 🌿🍋
*************************
निशान
🐾🐾🐾🐾🐾🐾🐾🐾🐾
🍅🌲 (1)
ये
उच्च
निशान
छूट जात
क्षण भंगुर
शरीर न साथ
है मृत्य खाली हाथ
🍎🌱🍋
🍋🌲 ( 2 )
है
यह
शरीर
बुलबुला
भाडे़ की शाला
निशान खो जाना
मृत्यु का न ठिकाना
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1भा*2/5/2019/गुरुवार
बिषयःःः# निशान#
विधाःःःकाव्यःःः
अमिट निशान छोड पाऊँ मैं माते,
तू ऐसा कुछ मुझको अच्छा वर दे।
भरूँ भावों के मोती मन मानस में,
तू मात शारदे सबसे सच्चा कर दे।
प्रेमपूर्ण साहित्य सृजन कर पाऊँ।
प्रेमभावनाऐं उत्सर्जन कर पाऊँ।
जीवन लगे परोपकार हित हेतु माँ,
सर्वप्रथम स्वपरिमार्जन कर पाऊँ।
लक्ष्य निर्धारित हो कुछ अच्छा करने।
हो निशान निर्धारण कुछ सच्चा करने।
मानव जीवन मिला किस हेतु मुझे ये,
करूँ स्वनामधन्य कुछ अच्छा करने।
मुझे निशान प्रभु पगडंडी बन जाऐं।
कुछ सत्संगी साहित्यकार मिल जाऐं।
प्रस्फुटित हों प्रेमप्रीत बीजांकुर मन में
कुछ पंथ सचरित्र लोगों के मिल जाऐं।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
बिषयःःः# निशान#
विधाःःःकाव्यःःः
अमिट निशान छोड पाऊँ मैं माते,
तू ऐसा कुछ मुझको अच्छा वर दे।
भरूँ भावों के मोती मन मानस में,
तू मात शारदे सबसे सच्चा कर दे।
प्रेमपूर्ण साहित्य सृजन कर पाऊँ।
प्रेमभावनाऐं उत्सर्जन कर पाऊँ।
जीवन लगे परोपकार हित हेतु माँ,
सर्वप्रथम स्वपरिमार्जन कर पाऊँ।
लक्ष्य निर्धारित हो कुछ अच्छा करने।
हो निशान निर्धारण कुछ सच्चा करने।
मानव जीवन मिला किस हेतु मुझे ये,
करूँ स्वनामधन्य कुछ अच्छा करने।
मुझे निशान प्रभु पगडंडी बन जाऐं।
कुछ सत्संगी साहित्यकार मिल जाऐं।
प्रस्फुटित हों प्रेमप्रीत बीजांकुर मन में
कुछ पंथ सचरित्र लोगों के मिल जाऐं।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
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II निशान II नमन भावों के मोती....
सृजन करने निकला था मैं....
अपनी दुनियाँ का....
खुद को ग़ुम सा पाता हूँ....
हर कोई जानता है मुझे...
पर मैं भूल जाता हूँ...
कब अपनों में गैरों से...
कब गैरों में अपनों से मिला...
हर किसी से अब सम्भलना चाहता हूँ....
हर किसी से गैर होना चाहता हूँ...
मैं खुद को पाना चाहता हूँ...
काले रात के साये में....
नज़र आती है मेरी परछाई....
पर दिन में ग़ुम हो जाती है क्यूँ....
यह देखना चाहता हूँ....
रात में जब भी हाथ बढ़ा छूना चाहा उसे...
कर उजाला भाग जाती है मुझसे...
वैर है उसीका मुझसे, जिसे...
मैं पाना चाहता हूँ....
सागर में गहरे उतरा था मैं भी...
बिन सोचे समझे....
मोतियों की नहीं पर...
डूबने की चाह थी मुझे...
न जाने सागर पल में....
क्यूँ ख़फ़ा हो गया मुझसे.....
छूते ही वो मुझे...
काली रेत् का ढेर हो गया...
मेरे निशाँ भी ले गया...
रेत् से घरौंदे का सृजन किया...
फिर खुद ही ढहा दिया मैंने...
अपने को खड़ा रखना चाहता हूँ....
खुद को पाना चाहता हूँ...
कहाँ से शुरू करून...
खोजना खुद को....
काले बादल बीते वक़्त के...
छा जाते हैं....
उमस बढ़ती है...
बिजलियाँ चमकती हैं...
दिल आँखों में आ... ठहर सा जाता है....
रास्ता मिलता नहीं लौट जाता है....
और मैं...
खुद को पाना भूल जाता हूँ....
ताकता रह जाता हूँ....
बस ताकता ही रहता हूँ....
मुझ जैसे दिखती...
अनदेखी...अनचाही...निर्जन सी राह को..
शायद उसे भी इंतज़ार कि ...
कोई आये संवारने उसे...
और मैं....
अपने आस्तित्व का अणु अणु जोड़ कर...
अतीत के हर निशां को तीर बनाकर...
अनजाने भविष्य के सतरंगी धनुष से...
संधान करना चाहता हूँ...
अपने निशाँ...
भविष्य के अतीत पर छोड़ना चाहता हूँ...
मैं खुद को पाना चाहता हूँ...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०२.०५.२०१९
सृजन करने निकला था मैं....
अपनी दुनियाँ का....
खुद को ग़ुम सा पाता हूँ....
हर कोई जानता है मुझे...
पर मैं भूल जाता हूँ...
कब अपनों में गैरों से...
कब गैरों में अपनों से मिला...
हर किसी से अब सम्भलना चाहता हूँ....
हर किसी से गैर होना चाहता हूँ...
मैं खुद को पाना चाहता हूँ...
काले रात के साये में....
नज़र आती है मेरी परछाई....
पर दिन में ग़ुम हो जाती है क्यूँ....
यह देखना चाहता हूँ....
रात में जब भी हाथ बढ़ा छूना चाहा उसे...
कर उजाला भाग जाती है मुझसे...
वैर है उसीका मुझसे, जिसे...
मैं पाना चाहता हूँ....
सागर में गहरे उतरा था मैं भी...
बिन सोचे समझे....
मोतियों की नहीं पर...
डूबने की चाह थी मुझे...
न जाने सागर पल में....
क्यूँ ख़फ़ा हो गया मुझसे.....
छूते ही वो मुझे...
काली रेत् का ढेर हो गया...
मेरे निशाँ भी ले गया...
रेत् से घरौंदे का सृजन किया...
फिर खुद ही ढहा दिया मैंने...
अपने को खड़ा रखना चाहता हूँ....
खुद को पाना चाहता हूँ...
कहाँ से शुरू करून...
खोजना खुद को....
काले बादल बीते वक़्त के...
छा जाते हैं....
उमस बढ़ती है...
बिजलियाँ चमकती हैं...
दिल आँखों में आ... ठहर सा जाता है....
रास्ता मिलता नहीं लौट जाता है....
और मैं...
खुद को पाना भूल जाता हूँ....
ताकता रह जाता हूँ....
बस ताकता ही रहता हूँ....
मुझ जैसे दिखती...
अनदेखी...अनचाही...निर्जन सी राह को..
शायद उसे भी इंतज़ार कि ...
कोई आये संवारने उसे...
और मैं....
अपने आस्तित्व का अणु अणु जोड़ कर...
अतीत के हर निशां को तीर बनाकर...
अनजाने भविष्य के सतरंगी धनुष से...
संधान करना चाहता हूँ...
अपने निशाँ...
भविष्य के अतीत पर छोड़ना चाहता हूँ...
मैं खुद को पाना चाहता हूँ...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०२.०५.२०१९
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भावों के मोती
2/05/2019
विषय - निशान
. " निशान वफा ए ताज "
शाहजहां ने बनवाकर ताजमहल
याद में मुमताज के,
डाल दिया आशिकों को परेशानी में।
आशिक ने लम्बे इंतजार के बाद
किया इजहारे मुहब्बत
नशा सा छाने लगा था दिलो दिमाग पर
कह उठी महबूबा अपने माही से
"कब बनेगा ताज हमारे सजदे में"
डोल उठा! खौल उठा!! बोला
" ये तो निशानी है याद में
बस जैसे ही होगी आपकी आंखें बंद
बंदा शुरू करवा देगा एक उम्दा महल"
कम न थी जानेमन भी
बोली अदा से "लो कर ली आंखें बंद
बस अब जल्दी से प्लाट देखो
शुरू करो बनवाना एक ख्वाब गाह"
जानु की निकल गई जान
कहां फस गया बेचारा मासूम आशिक
पर कम न था बोला
" एक मकबरे पे क्यों जान देती हो
चलो कहीं और घूम आते हैं
अच्छे से नजारों से जहाँ भरा है"
बला कब टलने वाली थी
"बोली चलो ताज नही एक फ्लैट ही बनवादो
चांद तारों से नही गुलाबों से ही सजा दो "
उसे पाने की कोशिशें तमाम हुई सरेआम हुई
अब खुमारी उतरी सरकार की बोला
"छोड़ो मैं पसंद ही बदल रहा हूं
आज से नई गर्लफ्रेंड ढूंढता हूं
मुझमें शाहजहां बनने की हैसियत नही
तुम मुमताज बनने की जिद पर अड़ी रहो
देखता हूं कितने और ताजमहल बनते हैं
हम गरीबों की वफा का माखौल उडाते है
जीते जी जिनके लिए सकून का
एक पल मय्यसर नही
मरने पर उन्हीं के लिये ताज बनवाते हैं।"
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
2/05/2019
विषय - निशान
. " निशान वफा ए ताज "
शाहजहां ने बनवाकर ताजमहल
याद में मुमताज के,
डाल दिया आशिकों को परेशानी में।
आशिक ने लम्बे इंतजार के बाद
किया इजहारे मुहब्बत
नशा सा छाने लगा था दिलो दिमाग पर
कह उठी महबूबा अपने माही से
"कब बनेगा ताज हमारे सजदे में"
डोल उठा! खौल उठा!! बोला
" ये तो निशानी है याद में
बस जैसे ही होगी आपकी आंखें बंद
बंदा शुरू करवा देगा एक उम्दा महल"
कम न थी जानेमन भी
बोली अदा से "लो कर ली आंखें बंद
बस अब जल्दी से प्लाट देखो
शुरू करो बनवाना एक ख्वाब गाह"
जानु की निकल गई जान
कहां फस गया बेचारा मासूम आशिक
पर कम न था बोला
" एक मकबरे पे क्यों जान देती हो
चलो कहीं और घूम आते हैं
अच्छे से नजारों से जहाँ भरा है"
बला कब टलने वाली थी
"बोली चलो ताज नही एक फ्लैट ही बनवादो
चांद तारों से नही गुलाबों से ही सजा दो "
उसे पाने की कोशिशें तमाम हुई सरेआम हुई
अब खुमारी उतरी सरकार की बोला
"छोड़ो मैं पसंद ही बदल रहा हूं
आज से नई गर्लफ्रेंड ढूंढता हूं
मुझमें शाहजहां बनने की हैसियत नही
तुम मुमताज बनने की जिद पर अड़ी रहो
देखता हूं कितने और ताजमहल बनते हैं
हम गरीबों की वफा का माखौल उडाते है
जीते जी जिनके लिए सकून का
एक पल मय्यसर नही
मरने पर उन्हीं के लिये ताज बनवाते हैं।"
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच को
दिन :- बृहस्पतिवार
दिनांक :- 02/05/2019
शीर्षक :- "निशान"
निज अस्तित्व को..
स्वीकारते है निशान..
वहम के पुल सदा..
ढहाते है निशान..
कभी होते ये शोध के विषय..
निकलते कभी इनके कई आशय..
करते कभी अचंभित ये निशान..
होते कभी स्वभाविक ये निशान..
होते कभी ये परिलक्षित..
तो करते कभी ये दिगभ्रमित..
कभी बनते ये चुनौती..
तो कभी करते ये स्वीकारोक्ति..
वैज्ञानिक हतप्रभ है..
मिले कुछ निशां संदेहास्पद है...
महामानव है या महादानव..
चिंतन,मनन उनका अनवरत है..
निशान होते कभी अबुझ पहेली...
शंका होती इनकी सखी सहेली..
पड़ती जब छाया प्रयोगों की..
तब सुलझ ही जाती इनकी पहेली..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
दिन :- बृहस्पतिवार
दिनांक :- 02/05/2019
शीर्षक :- "निशान"
निज अस्तित्व को..
स्वीकारते है निशान..
वहम के पुल सदा..
ढहाते है निशान..
कभी होते ये शोध के विषय..
निकलते कभी इनके कई आशय..
करते कभी अचंभित ये निशान..
होते कभी स्वभाविक ये निशान..
होते कभी ये परिलक्षित..
तो करते कभी ये दिगभ्रमित..
कभी बनते ये चुनौती..
तो कभी करते ये स्वीकारोक्ति..
वैज्ञानिक हतप्रभ है..
मिले कुछ निशां संदेहास्पद है...
महामानव है या महादानव..
चिंतन,मनन उनका अनवरत है..
निशान होते कभी अबुझ पहेली...
शंका होती इनकी सखी सहेली..
पड़ती जब छाया प्रयोगों की..
तब सुलझ ही जाती इनकी पहेली..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
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नमन भावों के मोती
दिनांक - 2/5/2019
आज का विषय - निशान
विधा - गजल
मोहब्बत के अंजाम से सब बेखबर है
इश्क में दुआएं भी लगती बेअसर है,
चलते तो बहुत है इश्क की राह
पर आसान कहाँ ये डगर है,
चलूं तो डगमगाते है पैर मेरे
ये नशा तेरे प्यार का असर है,
छोड़ चले दिल पे आँसू के #निशां
यहाँ तो बेवफ़ाई का कहर है,
इश्क में देखो हो रहे कितने बर्बाद
प्यार-ए-मोहब्बत मीठा सा जहर है,
हर कोशिश नाकाम दीदार की
ईद के चांद सा वो बेनज़र है,
हर दुःख-दर्द में जो खड़े साथ
जिंदगी में वही सच्चा हमसफ़र है,
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
दिनांक - 2/5/2019
आज का विषय - निशान
विधा - गजल
मोहब्बत के अंजाम से सब बेखबर है
इश्क में दुआएं भी लगती बेअसर है,
चलते तो बहुत है इश्क की राह
पर आसान कहाँ ये डगर है,
चलूं तो डगमगाते है पैर मेरे
ये नशा तेरे प्यार का असर है,
छोड़ चले दिल पे आँसू के #निशां
यहाँ तो बेवफ़ाई का कहर है,
इश्क में देखो हो रहे कितने बर्बाद
प्यार-ए-मोहब्बत मीठा सा जहर है,
हर कोशिश नाकाम दीदार की
ईद के चांद सा वो बेनज़र है,
हर दुःख-दर्द में जो खड़े साथ
जिंदगी में वही सच्चा हमसफ़र है,
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
@@@@@@@@@@@@@@
शुभ मध्याह्न , सभी गुणीजनों ,
भावों के मोती
मंच को नमन
दैनिक कार्य
स्वरचित लघु कविता
दिनांक 2.5.19
दिन वीरवार
विषय निशान
रचयिता पूनम गोयल
तेरे क़दमों के
निशान के सँग-सँग
कर लूँगी तय
मैं अपने जीवन का सफर ।
चलके उनके पीछे ,
नहीं भटक पाऊँगी ,
मैं अपनी डगर ।।
होता जाएगा मुझ पर ,
तेरे प्रेम का असर
और अधिक गहरा ।
जब पड़ेगा मेरे मन पर ,
तेरी पदचाप का पहरा ।।
अ’साथी , अपना साथ , मेरे साथ ,
तू यूँ ही बनाए रखना ।
एवं सदैव मुझे अपने ,
प्रेम की परछाईं
बनाके रखना ।।
प्रेम बिन लागे ,
सारा जग सूना ।
दे देना साथी ,
अपने हृदय में मुझे ,
एक छोटा-सा कोना ।।
भावों के मोती
मंच को नमन
दैनिक कार्य
स्वरचित लघु कविता
दिनांक 2.5.19
दिन वीरवार
विषय निशान
रचयिता पूनम गोयल
तेरे क़दमों के
निशान के सँग-सँग
कर लूँगी तय
मैं अपने जीवन का सफर ।
चलके उनके पीछे ,
नहीं भटक पाऊँगी ,
मैं अपनी डगर ।।
होता जाएगा मुझ पर ,
तेरे प्रेम का असर
और अधिक गहरा ।
जब पड़ेगा मेरे मन पर ,
तेरी पदचाप का पहरा ।।
अ’साथी , अपना साथ , मेरे साथ ,
तू यूँ ही बनाए रखना ।
एवं सदैव मुझे अपने ,
प्रेम की परछाईं
बनाके रखना ।।
प्रेम बिन लागे ,
सारा जग सूना ।
दे देना साथी ,
अपने हृदय में मुझे ,
एक छोटा-सा कोना ।।
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नमन भाव के मोती
2 मई 2019
विषय निशान
विधा लघु कविता
मैं आया
पुरखों की निशानी बन आया
हर कोई दौड़ा आया
जन्म का उत्सव गया मनाया
हर कोई ने गान सुनाया
सात सुरों का साज बजाया
कोई कहता माँ का मुखड़ा पाया
कोई कहता पापा पर मैं जाया
आखिर सबने साफ किया
मैं आधा -आधा जाया
खुशियों से पूरा घर इतराया
सबको खुशी हुई इतनी कि दिल में नही समाया
मैं आया
पुरखों की निशानी बन आया
माँ के आँचल में बड़ा हुआ
अपने पैरों पर खड़ा हुआ
शिक्षा का विस्तार हुआ
लोगों का सरताज हुआ
दुःख-दर्द,समस्या का अनुभव है पाया
गाँव,शहर और देश हेतु यह विचार है आया
कुछ कर्म करूं मैं ऐसा कि रोशन सारा जहाँ रहे
कालखंड के पन्नों पर मेरा भी अस्तित्व लिखा रहे
पीढियां हमारी गर्व करें बस यही कहानी रह जाये
भौतिक निशानी मिट जाये पर कर्म कहानी कह जाये
मैं आया
पुरखों की निशानी बन आया
©मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
2 मई 2019
विषय निशान
विधा लघु कविता
मैं आया
पुरखों की निशानी बन आया
हर कोई दौड़ा आया
जन्म का उत्सव गया मनाया
हर कोई ने गान सुनाया
सात सुरों का साज बजाया
कोई कहता माँ का मुखड़ा पाया
कोई कहता पापा पर मैं जाया
आखिर सबने साफ किया
मैं आधा -आधा जाया
खुशियों से पूरा घर इतराया
सबको खुशी हुई इतनी कि दिल में नही समाया
मैं आया
पुरखों की निशानी बन आया
माँ के आँचल में बड़ा हुआ
अपने पैरों पर खड़ा हुआ
शिक्षा का विस्तार हुआ
लोगों का सरताज हुआ
दुःख-दर्द,समस्या का अनुभव है पाया
गाँव,शहर और देश हेतु यह विचार है आया
कुछ कर्म करूं मैं ऐसा कि रोशन सारा जहाँ रहे
कालखंड के पन्नों पर मेरा भी अस्तित्व लिखा रहे
पीढियां हमारी गर्व करें बस यही कहानी रह जाये
भौतिक निशानी मिट जाये पर कर्म कहानी कह जाये
मैं आया
पुरखों की निशानी बन आया
©मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
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🙏🌹नमन मंच🌹🙏
आदरणीय गुरुवर को नमन
🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏
विषय-निशान/निशां
(०२-०५-२०१९)
काफ़िया-अ की बंदिश
रदीफ़-आई हूँ
आरज़ू खड़ी दोराहे सनम छोड़ आई हूँ
मैं तेरी महफ़िल को सनम छोड़ आई हूँ
जो ख़त लिखे तूने अर्जे वफ़ा में
दबाकर ज़मी #निशां छोड़ आई हूँ
वो मोड़ जिस पल किया तुझपे एतबार
फाड़कर वो पल ज़िदंगी के मोड़ आई हूँ
तिफ़्ल को था रात जिसका इंतजार
दिखाकर आईना भरम तोड़ आई हूँ
थी होड़ दिल्लगी की शहर "सीमा"
ज़श्न जीत का दे उन्हें कसम तोड़ आई हूँ ।।
***स्वरचित***
सीमा आचार्य(म.प्र.)
आदरणीय गुरुवर को नमन
🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏
विषय-निशान/निशां
(०२-०५-२०१९)
काफ़िया-अ की बंदिश
रदीफ़-आई हूँ
आरज़ू खड़ी दोराहे सनम छोड़ आई हूँ
मैं तेरी महफ़िल को सनम छोड़ आई हूँ
जो ख़त लिखे तूने अर्जे वफ़ा में
दबाकर ज़मी #निशां छोड़ आई हूँ
वो मोड़ जिस पल किया तुझपे एतबार
फाड़कर वो पल ज़िदंगी के मोड़ आई हूँ
तिफ़्ल को था रात जिसका इंतजार
दिखाकर आईना भरम तोड़ आई हूँ
थी होड़ दिल्लगी की शहर "सीमा"
ज़श्न जीत का दे उन्हें कसम तोड़ आई हूँ ।।
***स्वरचित***
सीमा आचार्य(म.प्र.)
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भावों के मोती
2/05/ 2019
विषय - निशान
प्रीत पद से बांध, होठों पर सजा मुस्कान
वर्दी सुर्ख लाल पहन लेना
भारत माँ से किया जो वादा
मेरी प्रीत भुला देना
सो चुका जन मानस
निद्रा मे व्यवधान न आने देना
सीने पर लेना हर जख़्म
ज़ालिम का निशान मिटा देना
आह्वान करूँ जन मानस से
देश के हर रखवाले को सीने से लगा लेना
माँ के स्नेह को तरसता
माँ की गोद में सुला देना
अहिंसा का पुजारी मेरा देश
शांति का बिगुल फ़िर बजा देना
अंतर मन से उठे चेतना
दबा कर फ़िर सुला देना
दिन सप्ताह और महीना
फ़िर वही कलेज़े पर निशान बना देना
सूखा न आँखों का पानी
वीर की वीरांगना को तिरंगा थमा देना
स्वरचित
- अनीता सैनी
2/05/ 2019
विषय - निशान
प्रीत पद से बांध, होठों पर सजा मुस्कान
वर्दी सुर्ख लाल पहन लेना
भारत माँ से किया जो वादा
मेरी प्रीत भुला देना
सो चुका जन मानस
निद्रा मे व्यवधान न आने देना
सीने पर लेना हर जख़्म
ज़ालिम का निशान मिटा देना
आह्वान करूँ जन मानस से
देश के हर रखवाले को सीने से लगा लेना
माँ के स्नेह को तरसता
माँ की गोद में सुला देना
अहिंसा का पुजारी मेरा देश
शांति का बिगुल फ़िर बजा देना
अंतर मन से उठे चेतना
दबा कर फ़िर सुला देना
दिन सप्ताह और महीना
फ़िर वही कलेज़े पर निशान बना देना
सूखा न आँखों का पानी
वीर की वीरांगना को तिरंगा थमा देना
स्वरचित
- अनीता सैनी
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सादर नमन
02-05-2019
निशान
अतल जलधि
तरंगित उर्मियाँ
संबंधों के बुलबुले
पल में घुले
जिंदगी गीली रेत
चलते युगल कदम
सोच,सफर अभिप्रेत
फूँक-फूँक पग धरे सचेत
अपितु, चुभन से चोटिल पाँव
पथ में बहु सीपी-कँकरेत
विरमे, एक अल्प पड़ाव
कदाचित कोई भटकाव
मुड़कर पार्श्व का अवलोकन
पग के निशान का मूल्यांकन
सिकता का अंचल सपाट
निशानहीन समतल बाट
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
02-05-2019
निशान
अतल जलधि
तरंगित उर्मियाँ
संबंधों के बुलबुले
पल में घुले
जिंदगी गीली रेत
चलते युगल कदम
सोच,सफर अभिप्रेत
फूँक-फूँक पग धरे सचेत
अपितु, चुभन से चोटिल पाँव
पथ में बहु सीपी-कँकरेत
विरमे, एक अल्प पड़ाव
कदाचित कोई भटकाव
मुड़कर पार्श्व का अवलोकन
पग के निशान का मूल्यांकन
सिकता का अंचल सपाट
निशानहीन समतल बाट
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
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"नमन-मंच"
"दिंनाक-२/५/२०१९"
"शीर्षक-निशान"
स्वाधीनता का निशान तिरंगा
है हमको प्यारा जग में
जन्म लिये हम भारतवर्ष में
यह सौभाग्य हमारा है।
चले हम उन निशानों पर
अक्षुण्य रहे देश हमारा
कीर्ति फैले सारे जग मे
करें हम कुछ ऐसा कर्म।
दुष्यंत को याद आई शकुंतला
देख अपने प्यार की अंगूठी
निशानी बदल दे भविष्य हमारा
यह हमें सिखलाता है।
अच्छे कर्मों के निशान
देते हमें सुख सदा
हम करें जब अपनी माँ बाप की सेवा
बच्चे स्वयं सीख जाते है
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
"दिंनाक-२/५/२०१९"
"शीर्षक-निशान"
स्वाधीनता का निशान तिरंगा
है हमको प्यारा जग में
जन्म लिये हम भारतवर्ष में
यह सौभाग्य हमारा है।
चले हम उन निशानों पर
अक्षुण्य रहे देश हमारा
कीर्ति फैले सारे जग मे
करें हम कुछ ऐसा कर्म।
दुष्यंत को याद आई शकुंतला
देख अपने प्यार की अंगूठी
निशानी बदल दे भविष्य हमारा
यह हमें सिखलाता है।
अच्छे कर्मों के निशान
देते हमें सुख सदा
हम करें जब अपनी माँ बाप की सेवा
बच्चे स्वयं सीख जाते है
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
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नमन भावों के के मोती
दिनांक- 02/05/19
शीर्षक- निशान
विधा - गीतिका छंद
जो निशां तुमने दिये वो,आज तक दिल पर रहै|
हम कभी के मर चुके है,दर्द ही जिंदा रहै||
जो न आई ख्वाब में तुम,ख्वाब भी रुसवा किये||
नींद भी आती नही है,फिर भला कैसे जिये||
दर्द को गर हम छिपा ले, तो कहाँ उसको रखे|
आइना टूटा हुआ है,एक देखे सौ दिखे||
एक डाली दो परिंदो,की कथा किससे कहै|
मौत को महबूब कर लूँ,जो तु उसमे भी दिखे||
सुरेश जजावरा"सरल"
©®
दिनांक- 02/05/19
शीर्षक- निशान
विधा - गीतिका छंद
जो निशां तुमने दिये वो,आज तक दिल पर रहै|
हम कभी के मर चुके है,दर्द ही जिंदा रहै||
जो न आई ख्वाब में तुम,ख्वाब भी रुसवा किये||
नींद भी आती नही है,फिर भला कैसे जिये||
दर्द को गर हम छिपा ले, तो कहाँ उसको रखे|
आइना टूटा हुआ है,एक देखे सौ दिखे||
एक डाली दो परिंदो,की कथा किससे कहै|
मौत को महबूब कर लूँ,जो तु उसमे भी दिखे||
सुरेश जजावरा"सरल"
©®
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नमन मंच
02/05/19
निशान
****
रेत पर बना निशानों को
कभी देखा ठहर कर
क्या हुआ अंजाम उसका
क्या वजूद बाकी है उनका
या सागर की अठखेलियों ने,
मिटा दिए नामोनिशान ।
पदचिह्न तो ऐसे बनाओ,
दिलोदिमाग पर छा जाओ
झंझावत और वक्त के थपेड़े
सह कर अमर हो जाओ,
लाखो " पग" फिर
चल पड़े,
तुम्हारे बनाये इन पैरों
के निशां पर
स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव
02/05/19
निशान
****
रेत पर बना निशानों को
कभी देखा ठहर कर
क्या हुआ अंजाम उसका
क्या वजूद बाकी है उनका
या सागर की अठखेलियों ने,
मिटा दिए नामोनिशान ।
पदचिह्न तो ऐसे बनाओ,
दिलोदिमाग पर छा जाओ
झंझावत और वक्त के थपेड़े
सह कर अमर हो जाओ,
लाखो " पग" फिर
चल पड़े,
तुम्हारे बनाये इन पैरों
के निशां पर
स्वरचित
अनिता सुधीर श्रीवास्तव
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नमन
भावों के मोती
२/५/२०१९
विषय-निशान
वक्त की आंधी कुछ ऐसी चली,
मंजिलें पास थीं पर पा न सकी।
मिट गए उसमें तेरे कदमों के निशान,
वक्त के आगे भला किसकी चली।
रह गई देखती मैं किस्मत के खेल,
जाने कैसे होगा मंजिल से मेल।
टूट-टूट कर मैं बिखरती गई,
जिंदगी बनती गई जैसे कोई जेल।
दोराहे पर आके रूकी जिंदगी है मेरी,
हरपल कमी खलती है मुझे तेरी।
ढूंढती नजरें सदा तेरे कदमों के निशान,
जिनके मिलने में अब हो चुकी देरी।
सपनों के खंडहर में खड़ी होके,
क्या मिला है मुझे भला तुझे खोके।
आज याद आती हैं वे बीती बातें,
याद आते हैं जिंदगी के सब धोखे।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
भावों के मोती
२/५/२०१९
विषय-निशान
वक्त की आंधी कुछ ऐसी चली,
मंजिलें पास थीं पर पा न सकी।
मिट गए उसमें तेरे कदमों के निशान,
वक्त के आगे भला किसकी चली।
रह गई देखती मैं किस्मत के खेल,
जाने कैसे होगा मंजिल से मेल।
टूट-टूट कर मैं बिखरती गई,
जिंदगी बनती गई जैसे कोई जेल।
दोराहे पर आके रूकी जिंदगी है मेरी,
हरपल कमी खलती है मुझे तेरी।
ढूंढती नजरें सदा तेरे कदमों के निशान,
जिनके मिलने में अब हो चुकी देरी।
सपनों के खंडहर में खड़ी होके,
क्या मिला है मुझे भला तुझे खोके।
आज याद आती हैं वे बीती बातें,
याद आते हैं जिंदगी के सब धोखे।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
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नमन भावों के मोती 🌹🙏🌹
02-5-2019
विषय:- निशान
विधा ;- कुंडलिया
रिसते घावों के पड़े , गहरे अति निशान ।
हल्की चोट कुरेदती , दिखती जाती जान ।
दिखती जाती जान , सहें हम कैसे
इनको ।
बार बार दें चोट , कहें हम अपना जिनको ।
होता नहीं बचाव , सदा रहते हम पिसते ।
कैसे मिटे निशान , घाव रहते हैं रिसते ।।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
02-5-2019
विषय:- निशान
विधा ;- कुंडलिया
रिसते घावों के पड़े , गहरे अति निशान ।
हल्की चोट कुरेदती , दिखती जाती जान ।
दिखती जाती जान , सहें हम कैसे
इनको ।
बार बार दें चोट , कहें हम अपना जिनको ।
होता नहीं बचाव , सदा रहते हम पिसते ।
कैसे मिटे निशान , घाव रहते हैं रिसते ।।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
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2/5/19
भावों के मोती
विषय - निशान
द्वितीय प्रस्तुति
---------------------------
सीने पर लिए जख्मों के निशान
माँ भारती पुकारती
ख़त्म करो यह खून-खराबा
ख़त्म करो अब आतंकवाद
लहुलुहान मैं वीरों के लहू से
मिटा दो लहू के सारे निशान
अब न कफ़न बन पाए तिरंगा
दुश्मन ना कर पाएं अब दंगा
मानवता को अपनी जगाकर
खुशहाल बना लो हिंदुस्तान
मेरे जख्मों पर मरहम बन
इंसानियत के निभाओ सारे फर्ज़
बेटियों को रखो सभी महफूज़
भूलकर भी न हो कोई भूल
छोड़कर झगड़े जाति मजहब के
एक धर्म याद रखो भाईचारे का
एकता,अखंडता को करो मजबूत
मानवता का ना कर पाए कोई खून
नफ़रत का मिटाकर नामोनिशान
सबसे खुशहाल बना लो हिंदुस्तान
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित✍
भावों के मोती
विषय - निशान
द्वितीय प्रस्तुति
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सीने पर लिए जख्मों के निशान
माँ भारती पुकारती
ख़त्म करो यह खून-खराबा
ख़त्म करो अब आतंकवाद
लहुलुहान मैं वीरों के लहू से
मिटा दो लहू के सारे निशान
अब न कफ़न बन पाए तिरंगा
दुश्मन ना कर पाएं अब दंगा
मानवता को अपनी जगाकर
खुशहाल बना लो हिंदुस्तान
मेरे जख्मों पर मरहम बन
इंसानियत के निभाओ सारे फर्ज़
बेटियों को रखो सभी महफूज़
भूलकर भी न हो कोई भूल
छोड़कर झगड़े जाति मजहब के
एक धर्म याद रखो भाईचारे का
एकता,अखंडता को करो मजबूत
मानवता का ना कर पाए कोई खून
नफ़रत का मिटाकर नामोनिशान
सबसे खुशहाल बना लो हिंदुस्तान
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित✍
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भावों के मोती दिनांक दिनांक 2/5/19
निशान
भागते रहे
जिंदगी भर
जिंदगी जीने
के लिए
न मिला सुकुन
छूट गये
कुछ निशान
दुखभरे तो
कुछ सुखभरे
घर गृहस्थी
बच्चों आफिस में
गुजर गया
समय पंख लगाए
बच्चे हो गये
घर-द्वार के
जीवन हो गया
निवृत
लेकिन
कम होता नहीं
प्यार किसी भी
उम्र में
साथ चला थे
साथ रहेंगे
हर सुख-दुःख में
बस है प्रार्थना
ईश्वर से
साथ न छूटे
हाथ न छूटे
जिंदगी भर
खुशनुमा निशान
रहे यादों में हमारे
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
निशान
भागते रहे
जिंदगी भर
जिंदगी जीने
के लिए
न मिला सुकुन
छूट गये
कुछ निशान
दुखभरे तो
कुछ सुखभरे
घर गृहस्थी
बच्चों आफिस में
गुजर गया
समय पंख लगाए
बच्चे हो गये
घर-द्वार के
जीवन हो गया
निवृत
लेकिन
कम होता नहीं
प्यार किसी भी
उम्र में
साथ चला थे
साथ रहेंगे
हर सुख-दुःख में
बस है प्रार्थना
ईश्वर से
साथ न छूटे
हाथ न छूटे
जिंदगी भर
खुशनुमा निशान
रहे यादों में हमारे
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
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भावों के मोती
बिषय- निशान
है निशान गहरे दिल पर,
तेरी दिए हुए जख्मों के,
इन्हें मिटाने की कोशिश में
शायद उम्र निकल जाए।
कहते हैं कि वक्त का दरिया
बहा ले जाता है यादों को
मगर कुछ यादों के दाग़
किसी सुरत में नहीं मिटते।
स्वरचित
निलम अग्रवाल, खड़कपुर
बिषय- निशान
है निशान गहरे दिल पर,
तेरी दिए हुए जख्मों के,
इन्हें मिटाने की कोशिश में
शायद उम्र निकल जाए।
कहते हैं कि वक्त का दरिया
बहा ले जाता है यादों को
मगर कुछ यादों के दाग़
किसी सुरत में नहीं मिटते।
स्वरचित
निलम अग्रवाल, खड़कपुर
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