Wednesday, May 22

"पहेली"21मई 2019

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                                    ब्लॉग संख्या :-393

नमन मंच
दिनांक .. 21/5/2019
विषय .. पहेली
शैली .. लघु कविता 
*********************

जय विजय के बीच में, लो मैं  पराजित हो गया।
सामने मंजिल थी मेरी , पर मैं थक के सो गया।
अपनो पे विश्वास कर मैं  खुद ही खुद से ठग गया।
आँख जब खुली तब तक, मैं लावारिस हो गया।
....
छोड करके जा चुके थे जो मेरे अपने रहे ।
जो बचे थे अब वहाँ वो नाम के सपने रहे ।
कुछ ने छोड़ा  कुछ ने तोड़ा,  कुछ का समझौता रहा।
कुछ पहेली बनके आये, कोई  नही अपना रहा ।
....
जिन्दगी का फलसफा टुकड़ों  मे ही मुझको मिला।
इक मुक्कम्मल प्यार था जो इक से न दो से मिला
एक यादों का भँवर है दूसरी अब जिन्दगी।
एक प्रीती की लहर सी, दूसरी प्रिया मंजरी।
....
शब्दों मे रम कर कहीं,  अब मनभाव न खुल जाये ।
शेर मन किसमें  है उलझा,ये  सब जान न जाये ।
इक पहेली जिन्दगी है, उसमे ही उलझे रहो।
शेर की कविता पढो ,मदमस्त  मन बहके रहो।
मदमस्त मन बहके रहो, मद्धमस्त मन बहके रहो...
....
स्वरचित एवं मौलिक 
शेरसिंह सर्राफ


।। पहेली ।।

हसीनाओं को पढ़ना भी
पहेली बुझाने जैसा है ।
सच कहते आज जमाना
उसका जिसके पैसा है ।

दो कदम चलके चोट खाऐ ।
वोट किसी को मिलना रहे
और वोट कोई यहाँ पाऐ ।

अजीब वाक्यात जिन्दगी में ।
चोट वो ही खाते रहे यहाँ
जो लगे रहे प्रभु बन्दिगी में ।

अब कहें जिन्दगी पहेली है ।
पर ज्योतिषी कहें नही यह
तो हमारे हाथों की हथेली है ।

जो रेखायें प्रभु ने लिखीं हैं ।
वही उसके जीवन में घटीं 
अक्सर मूर्तरूप में दिखीं हैं ।

आज तक बूझ ही रहे हम ।
शायद कोई हल निकले पर
मुकम्मिल हल कहाँ 'शिवम' ।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 21/05/2019


नमन  मंच  भावों के मोती 
तिथि।       21/05/19
विषय        पहेली
**
जीवन 
एक अबूझ पहेली
आदि से अंत तक
प्रश्न अनुत्तरित ।
कर्म इस जन्म का
या पिछले जन्म का,
नियति और कर्म के ,
समय और परिश्रम के
भँवर जाल में भ्रमित ।
नियति और समय से मिले 
तो कर्म ,परिश्रम से क्या लाभ।
इन्सान से धर्म 
या धर्म से इंसान
आस्था या विज्ञान
रोटी सस्ती या जान
पत्थर  में भगवान 
और इंसान में  हैवान
आडम्बर और मूल्यों 
के मध्य  डोलती,
मौत शाश्वत सत्य 
तो क्या जीवन झूठा
मोह माया से परे 
तो ममता का क्या,
ऐसे ही कितने 
प्रश्न अनुत्तरित ।
जिंदगी अनबूझी 
अनसुलझी पहेली।
यथार्थ के धरातल
पर चक्रव्यूह जैसी जो
सुलझाने में उलझती जाए ।

स्वरचित
अनिता सुधीर


सुप्रभात "भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन,🌹
21/05/2019
   "पहेली"
1
राजा हो या हो फकीर,
बाँध न पाए इसे जंजीर।
दीवारों में चुनवा दो ,
 मड़ोर कलाई बाँध डालो ,
चाल अपनी चलती ही जाए
कोई इसे रोक न पाए ।।
उत्तर:---घड़ी
2
मारुति नंदन को बड़ा लुभाए,
फल समझके खा ही जाए।
जग में रौशन इससे आए,
वक्त की पाबंदी बताता जाए।
उत्तर:---सूरज
3
माँ की लोरी के बाद है आती,
 रंगीन दुनिया की सैर कराती ।
अजीबोगरीब कहानियाँ गढ़ती,
कभी हँसाती कभी रुलाती।
उत्तर:----सपने
4
कटोरे पर कटोरा है भरा
बाहर सख्त भीतर सागर 
पर पानी उसका मीठा मीठा।
उत्तर:----नारियल
5
परिवार में है पाँच सदस्य
सबके हैं आकर अलग
एक दूजे के बिना लगे अधूरे
काम सभी के हैं अलग -अलग
साथ मिलकर बने पंच।।
उत्तर:---हाथ की उँगलियाँ।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल


भावों के मोती
21/05/19
विषय - पहेली 

बूझो कौन? 

मैं शब्द शब्द चुनती हूं
अर्थ सजाती हूं
दिल की पाती ,
नेह स्याही लिख आती हूं। 

फूलों से थोड़ा रंग,
थोड़ी महक चुराती हूं
फिर खोल अंजुरी
हवा में बिखराती हूं। 

चंदा की चांदनी
आंखो में भरती हूं
और खोल आंखे
मधुर सपने बुनती हूं। 

सूरज की किरणो को
जन जन पहुँचाती हूं
हवा की सरगम पर
गीत गुनगुनाती हूं। 

बूझो कौन ?नही पता!
मैं ही बतलाती हूं 
जब निराशा छाने लगे
मैं " आशा " कहलाती हूं ।

स्वरचित 

        कुसुम कोठारी ।



नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक     पहेली
विधा      लघुकविता
21 मई  2019,मंगलवार

धरती सूरज चांद सितारे
अगन पवन सब बने पहेली।
संचालक कौन इन सबका
सरिता बहती नित अलबेली।

देखा कभी नहीं पालनकर्ता
फिर भी पालन जग का होता
जीवन होता ही अति अद्भुत
मानव रहता है हँसता   रोता

सदा उपजते भाव हैं मन में
अद्भुत प्रकृति एक पहेली।
वनस्पति खिलती खिर जाती
दुनियां लगती  मैली  मैली।

जन्म मृत्यु सुख दुःख क्या हैं
क्यों मानव जग आता जाता
राजा रंक बने सब कैसे
नित खयाल यह मन मे आता

तन पहेली मन पहेली
जग पहेली रब पहेली
कैसा है संसार अद्भुत
ऊपर नीचे सब पहेली।। 
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।



,🌹जय माँ शारदे,🌷
नमन,मंच  भावों के मोती
21/5//20/19/
बिषय ,,,पहेली,,

जिंदगी भी इक अनकही 
पहेली की तरह 
 कभी सुलझी तो कभी 
उलझ के रह जाती है
 कभी उजाला कभी अंधेरा 
कभी दिया सी टिमटिमाती है
क्या भरोसा किस पड़ाव पे 
कब ठोकर लग जाए 
कभी गिर पड़े तो कभी 
संभल कर उठ आए 
संघर्षों ने जीवन का 
फलसफा बता दिया
 उसूलों ने हमें आइना 
दिखा दिया 
निकल तो पड़े हैं 
न जाने रास्ता  कहॉ जाएगा
उसी में सुकून जहॉ ले जाएगा
उम्मीदों के प्याले पीते रहेंगे 
 जाही बिधि राखे राम 
जीते रहेंगे
स्वरचित ,,,सुषमा ब्यौहार



नमन भावों के मोती,
 आज का विषय, पहेली,
दिन, मंगलवार,
दिनांक, 21,5,2019,

बडा़ आग का गोला हू मै, 
नमस्कार मुझे करते लोग।
मेहरबान जब मैं हो जाऊँ,
राजा भी बन जाते लोग।

रूप मेरा है बड़ा सलोना, 
मौहित मुझ पर कवि लोग।
बाद मेरे दिनमान का फेरा,
हमसे  ठंडक पाते हैं लोग।

आराम जरा मैं करना चाहूँ,
बैचैन बहुत हो जाते लोग ।
कभी अगर मैं लगूँ दौड़ने ,
दुखी बहुत हो जाते लोग।

हरा रंग लगता हमें प्यारा,
रंग हमारा चुराते हैं लोग।
जग का पालन काम हमारा,
कष्ट पहुँचाते हैं हमको लोग ।

मिली पिता की संज्ञा हमको,
हमें प्राण तत्व कहते हैं लोग ।
बादल बिजुरी सूरज चंदा को,
सदा हमारे ही घर में ढूँढें लोग ।

रंग हमारा कोई  भी नहीं है,
बदनाम  हमें करते हैं लोग ।
काम किसी का चला नहीं है,
मेरा  साथ नहीं छोड़ते लोग ।

आज पहेली का दिन है भाई, 
होगें खुश बनकर बच्चे लोग।
बाल देवता जो प्रतिभाशाली,
उनकी ही पूजा करते हैं लोग।



नमन मंच
21/5/2019 मंगलवार
पहेली

जीवन एक पहेली निकला
जिसका उत्तर मिला नहीं
प्रश्नों की नित नई श्रृंखला
समाधान ढूंढे न मिला
बंद गली के अंतिम घर ने
झांका हसरत से यौवन सड़कों का

जीवन एक पहेली निकला
कोई जीवन भर कर जीता
कोई अभावों में भी गाता
कुछ खुशियों से घबराते
कुछ अश्कों के दीप जलाते
सबके उत्तर अलग अलग

जीवन एक पहेली निकला
जिसके उत्तर अलग अलग
कुछ ढूंढे आमों की बौराई बगिया में
कुछ शहरों के कोलाहल में
सबने पाये अपने उत्तर 
अपने ही मन की गहराई में

मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित



नमन मंच🙏
सुप्रभात मित्रों 🙏😊
दिनांक- 21/5/2019
शीर्षक-पहेली
*************
जीवन एक पहेली है,
कुछ टेढ़ी कुछ सीधी है |

कभी आसानी से सुलझ जाती,
कभी सदा  पहेली ही रह जाती |

संयम ,धैर्य जिनमें होता है,
पहेली को चुनौती वही देता है |
************************
कुछ पहेली मैं भी पूँछू😊
बूझो तो तुमको मैं मानूँ 😃

1
उठे तो डगर तय हो जाये, 
वरना ज़िन्दगी थम जाये |

2
सोने जाऊँ तो वो पहले ही गिर जाये,
हरपल सनम मुझे उस पर ही बैठायें |

3
जलकर जो खुशबू फैलाती, 
फूल नहीं पर घरों में मिल जाती |

4
रात को वो जन्मी, 
सुबह हरी घास में सोती, 
मोती जैसी वो प्यारी, 
बादल की वो राजदुलारी |

5
 रात को कँपकपाते हैं, 
रोशनी खूब फैलाते हैं, 
गिनने में नहीं आते हैं, 
सुबह गायब हो जाते हैं |

 स्वरचित *संगीता कुकरेती*



21मई2019
जय भावों के मोती मंच।
नमन गुरुजनों,मित्रों।
          पहेली
          💐💐
ये जीवन है एक पहेली,
इसको कोई समझ ना पाये।
जितना इसको सुलझाना चाहे,
उतना हीं ये उलझता जाये।

कोई नहीं यहाँ अपना,पराया,
स्वार्थ के नाते हैं सब,
यही पहेली सुलझाने में,
बरसों बीत गये हैं अब।

पर इसको सुलझा नहीं पाये,
हम कितने मजबूर हुये।
देखते हीं देखते इसी पहेली में,
और उलझते गये।

इसी पहेली को सुलझाने में,
उम्र की सीढियाँ चढ़ते गये।
जीवन है सुख दुःख का नाम,
पहेली कभी करने ना देती आराम।।
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी



21/5/2019
पहेली
💐💐
द्वितीय प्रस्तुति
💐💐💐💐💐
1
नील,पीले रंग हैं उसके,
सुबह,शाम करता है शोर,
हाथ बढ़ाओ पकड़ने को तो,
भाग जाता है वो चितचोर।
2
मीठा, ठण्डा होता है,
बच्चे इसे चाव से खाते हैं।
जल्दी से खा लेना इसको,
वरना ये रूठ जाता है।
💐💐💐💐💐💐💐
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
💐💐💐💐💐💐


II  पहेली II नमन भावों के मोती....

बहुत काटा-पीटी  सी ज़िन्दगी है मेरी...
रोज़ ही नए सवाल देती है....
कुछ के तो खुद ही जवाब देती है...
पर वो भी समझ कहाँ पाता हूँ......
उलझ सा जाता हूँ...जाने क्या चाहता हूँ...
बहुत काटा पीटी है ज़िन्दगी मेरी....

पड़ोस में जवां मौत हो गयी है...
घर उनका उजड़ सा गया है...
पर...बच्चे मेरे की शादी है...
ढोल बज रहा है...मैं नाच गा रहा हूँ....
अपने को बना रहा हूँ... यां शायद
दर्द भरी चीखों से डर रहा हूँ...
कुछ समझ नहीं पाता हूँ…

ताज़ा सुन्दर से फूल लिए..मंदिर जा रहा हूँ…
सामने एक मासूम..फूल सा कोमल बच्चा…
चुप्पचाप सा...आँखों में अनगिनत सवाल लिए...
पर मैं बिना कुछ बोले....निकल जाता हूँ...
भगवान् को "दे" कर भी मैं खुश नहीं रह पाता हूँ...
कुछ समझ नहीं पाता हूँ…

अभी अभी सब्जी मंडी में....
एक "बूढी औरत" से..प्याज का भाव पूछता हूँ...
शायद कहीं कम भाव में मिलें..आगे बढ़ जाता हूँ...
वापिस आ के पाता हूँ वो "बूढी औरत"...
अपनी ज़िन्दगी का हिसाब कर निकल चुकी है...
और मैं अपना हिसाब करने बैठ जाता हूँ...
कुछ समझ नहीं पाता हूँ….

कभी लगता है दो कदम पे मंज़िल मिल ही जाएगी...
मीलों भागता हूँ फिर नाउम्मीद वापिस लौट आता हूँ...
छाँव में भी तपती रेत का अहसास होता है...
मन में अजीब सी प्यास का ऊफान उठता है...
शायद स्वाति बूँद की तलाश है मुझको..
पर....कुछ समझ नहीं पाता हूँ....
बहुत ही काटा पीटी सी ज़िन्दगी है मेरी...

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 
२१.०५.२०१९



नमन मंच  :   भावों के मोती 
शीर्षक     :   पहेली 
दिनांक     :   21 मई 2019 

  गीत      *  पहेली हो तुम  *

सच्ची एक सहेली हो तुम
 फिर भी एक  पहेली  हो 

 जब से तुम  जीवन  में  आई
 सुंदर  सी  इक  कथा   रचाई 
 रुचकर इक परिवार संजीला 
खुशियों  की  बारिश  बरसाई 

 कहाँ पली हो कहाँ  बढी हो 
किस आँगन में खेली हो तुम
सच्ची  एक  सहेली  हो  तुम 
फिर भी  एक पहेली हो  तुम

 तुम नदिया सी बहती धारा 
 निर्मल सा हो एक किनारा
सबको  देती हो  छाया तुम 
दिव्य भाव सा रूप तुम्हारा

 बीच सभी के रह करके भी
 लगती  नई  नवेली  हो तुम 
सच्ची  एक  सहेली  हो तुम
फिर भी एक पहेली हो तुम

दिन भर तुम इक तप करती हो
अविरल   झरने  सा  झरती  हो 
घर की  चिंता  में  लग-लगकर 
तुम   सबकी  चिंता  हरती  हो 

 छोटे   एक   बसेरे   को   तुम
 कहती  एक  हवेली  हो  तुम 
सच्ची  एक  सहेली  हो   तुम
 फिर  भी एक  पहेली हो तुम

 मौलिक , स्वरचित , अप्रकाशित गीत
 राजकुमार निजात




नमन         भावों के मोती 
     शीर्षक        पहेली  
     तिथि          21/519  
     वार            मंगलवार  
***********************
कालिदास का अभिज्ञान शकुन्तलम 
तुलसी जी का रामचरित मानस 
बाल्मीकि का रामायण लिखना 
धरती मे सीता का समाहित होना 
आज भी है एक अनबूझ #पहेली

सागर में बरमूडा का होना 
आकाश में ब्रह्मांड का होना
ब्रह्मांड में ब्लैक होल का होना
उड़नतश्तरियों का दिखना 
आज भी है एक अनबूझ पहेली

जीवन में सांसों का होना 
सांसो का थमकर रुक जाना 
भयानक सच मृत्यु का होना 
पितामह का मृत्युशैया पर रहना  
आज भी है एक अनबूझ पहेली 

पानी मे दीपक  का जलना 
ज्वाला में ज्योति का जलना
सोने का छत्र धातु में बदलना
पुरी की पताका का उलटी दिशा मे बहना
आज भी है एक अनबूझ पहेली 

उद्वेलित आंदोलित बहती धारा 
निर्मल गंगा यमुना कावेरी का होना 
दुर्गा काली लक्ष्मी पन्नाधाय का होना 
स्वयं को परिभाषित करती गार्गी का होना 
आज भी है एक अनबूझ पहेली

द्रोपदी के चीर का बढ़ना 
निधिवन मे प्राणियों ना ठहरना 
अजंता एलोरा की गुफाओं का अदभुत होना
ऋषिमुनियों का ज्ञान का विज्ञान मे होना
आज भी है एक अनबूझ पहेली 

पवनपुत्र का अजर अमर होना 
आश्व्थामा का  वन मे भटकना 
पिरामिड मे शवों का सुरक्षित मिलना नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियों का सच होना 
आज भी है एक अनबूझ पहेली
****************************
 स्वरचित मौलिक
                #पूनम सेठी
               #बरेली  उत्तर प्रदेश


भावों के मोती मंचकोनमन ।विषय :-। पहेली । दिन:-मंगलवार -21/5/2019 ।
विधा :/कविता
जनम मरण  बन गया पहेली
बूझ सका न जिसको कोई 
दो कूलों के बीच बह रही
सदा यहां पर जीवन धारा ।
सुख दुख जीवन के दो पहलू
कोई इनसे बच नही पाता 
एक के रहते ही दूजा आता 
अपना फल देकर हीजाता ।
कोई समझ सका न इसको
यह ऐसी बड़ी अब़ूझ पहेली
जो इसके चक्कर में पड़ता 
घनचक्कर बन कर रहजाता।
स्वरचित -उषासक्सेना



1भा.21/5/2019/मंगलवार
बिषयः ः#पहेली#
विधाःः ःकाव्यः ः

कैसे सुलझाऊं मैं प्रभु पहेली।
   यहां तुम स्वयं हो बडी पहेली।
       किसलिए रचा ये संसार तुमने,
           सारा जगत ही विकट पहेली।

प्रकृति की है अद्भुत रचना।
   पडता प्रतिदिन इसे संवरना।
      अनुपम माया यहां बिखरी है,
          कैसे पसरी  कोई  खबर ना।

अचरज हम सबको होता है
   क्यों रची मानव की मूरत ये।
      जन्म मृत्यु निशदिन होते हैं
          गढी बिचित्र तुमने सूरत ये।

सारा जीवन उलझ उलझकर,
   मरता जीता यहां हरेक आदमी।
      फिर भी कोई सुलझा नहीं पाया,
          यह बिचित्र पहेली कोई आदमी।

  स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम रामजी

 1 भा  #पहेली# काव्यः ः
21/5/2019/मंगलवार



नमन भावों के मोतीH
शीर्षक --पहेली
दिनांक--21-5-19

1
मध्य कटे पर वह मर जाता।
अंत कटे पर मग बन जाता।
प्रथम कटे को गर तुम समझो--
प्राणी कौन ?पहेली बूझो ।
2.
प्रथम कटे पर  हर हो जाता।
अंत कटने पर शह का खेल।
मध्य कटने पर सर की ज्योति--
उच्च भवन की पहेली झेल।

******स्वरचित*******
      प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र)451551




नमन"भावो के मोती"
21/05/2019
    "पहेली"
हाइकु
1
आ खेलें खेल
पहेली सुलझाए
गम भूलाए
2
हँसी-फव्वारे
पहेली की दुनिया
सबको भाए
3
ईश्वर कृति
अनोखी है प्रकृति
स्वयं पहेली
4
मन का घोड़ा
पहेली सुलझाता
जीत ही लेता
5
जिंदगी डोरी
पहेली सी उलझी
टूट न जाए
6
ईश प्रदत्त
जैविक संरचना
जग पहेली
7
अनसुलझा
बारमूडा त्रिकोण
जल पहेली

सायली
1
आओ
खेलें खेल
बूझो तो जानें
रहस्यमयी पहेली
सुलझाए ।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल



क्या होगा कल ?
भविष्य है पहेली, 
जियो ये पल ।

सच्चा या झूठा, 
प्यार एक पहेली, 
समझे दिल ।

जीत या हार ,
है अबूझ पहेली, 
कर्मों का सार ।



नमन भावों के मोती
दिनांकः-21-5-2019
वारः—मंगलवार
विधाः- कविता

विषयः- आतंकवाद है यह कैसी पहेली

आतंकवाद विरोधी दिवस पर इतना कहना है।
बहुत सह लिया इसको तो अब नहीं सहना है।।

संसार मे रक्त का व्यापार, नहीं होने देना है ।
आतंकवाद को अब समूल ही उखाड़ फेंकना है।।

कोई भी धर्म जहाँ मे आतंकवादी नहीं होता है।
धर्म का आंतकववाद से भला ही नहीं होता है।। 

धर्म नाम पर आतंकवाद उसे हानि पहुँचाता है।
ऐसा व्यक्ति अपने धर्म के गर्त मे ढ़केलता है।। 

स्वार्थी व क्रूर मानव आतंक का नेता होता है।
ऐश व अय्याशी के लिये धर्म का सहारा लेता है।।

भोले भाले नादानों को धर्म नाम पर बहकाता है।
अपने धर्मालंबियों को जिहाद नाम पर मरवाता है।।

मालिक के निर्दोष वन्दों का मारता या मरवाता है।
ऐसे जालिमों को मालिक भी स्वर्ग नहीं भेजता है।।

धर्म के नाम धोखा दे स्वार्थ को जिहाद कराता है ।
दोज़ख भी नहीं मिलती, बन प्रेत उल्टा लटकता है।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित



नमन भाव के मोती
दिनांक 21 मई 2019 
विषय पहेली 
विधा हाइकु
1
नानी बुझाती
रात्रि में पहेलियां -
बाल आनंद
2
मौत पहेली
आत्मा व परमात्मा-
जीव रहस्य
3
पहेली करे-
मस्तिष्क कसरत
स्वस्थ चिंतन
4
उलझी गुत्थी
मौत बनी पहेली-
सुभाष बोस
5
बच्चे बूझते
अबूझ पहेलियां-
जीवन ज्ञान
6
ज्ञान वर्धक
ख़ुसरो पहेलियां -
मनोरंजन 

मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली


"नमन-मंच"
"दिनांक-२१/५/२०१९"
शीर्षक-पहेलि"
तुम भी पहेली, हम भी पहेली
पूरा विश्व है एक पहेली
सृष्टि के सभी रंग पहेली
सूर्य चाँद ओ तारे पहेली।

शब्द पहेली हम रोज सुलझाये
वर्ग पहेली हमें बहुत भाये
जीवन पहेली हमें भरमाये
हर दिन नया पहेली लाये।

जीवन नही शब्दार्थ पहेली
नही है यह वर्ग पहेली
निर्भय हो हम खेलें पहेली
जीत भी पहेली, हार भी पहेली।

बड़े बड़े ऋषि मुनि जब
सुलझा न पाये ये पहेली
अनुत्तरित है यह ये पहेली
कितना सुखद यह एहसास
हम तो बालक है नादान।

बन जाये हम अबोध बालक
क्यों सुलझाये हम जीवन पहेली।
सूत्रधार जो रचे है जीवन
वही सुलझाये ये पहेली।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।



नमन मंच को
दिन :- मंगलवार
दिनांक :- 21/05/2019
विषय :- पहेली

एक पहेली सा जीवन ये..
खुद को तराशता रहता हूँ..
जवाब हर पहेली का..
खुद में तलाशता रहता हूँ..
कंटक पड़े हैं राहों..
पंगड़डियों की बाहों में..
खुद सिमटता रहता हूँ..
अनगढ़ सी किस्मत को..
मेहनत से तराशता रहता हूँ..
सोयी रातों में..
अंधेरी राहों में..
उजास की चाहत ले..
घूमता फिरता रहता हूँ..
एक पहेली सा है जीवन ये..
हर दिन नए सवाल दे जाता है..
उन सवालों के घेरे को..
खुद का कवच बनाकर..
जवाबों की खोज में खोया रहता हूँ..
पल-पल उलझती इस जिंदगी को,
सुलझाने की कोशिश में रहता हूँ..
एक पहेली सा जीवन ये...

स्वरचित :- मुकेश राठौड़



नमन भावों के मोती 🌹🙏🌹
21-5-2019
विषय:-पहेली
विधा :-विधाता छंद

सजाता कौन सपनों को , बना रहता पहेली सी । 
बडी सुंदर सजी दुनिया , लगे अपनी सहेली सी ।

मगर यह राज है गहरा , बडी मुश्किल पहेली है ।।
करिश्मा कौन है करता , दिखे कुदरत नवेली है ।।

सलोनी तितलियाँ उड़ती , खिले हैं पुष्प उपवन में ।
भँवर मँडरा रहे उनपर , जगाते प्रीत हर मन में ।।

कहीं आलोक सूरज का , कहीं है चाँदनी  निखरी ।
पहेली ये नहीं सुलझी , रहस्यों से भरी बिखरी ।।

कहीं झरने कहीं नदियाँ , कहीं है सिंधु ये खारा । 
कहीं मंदाकिनी की है , जटाओं से बही धारा ।।

कहीं कैलाश पर शंकर , कहीं बैठे गुफ़ाओं में ।
कहीं वह नृत्य हैं करते , शिवा की भुज लताओं में ।।

नहीं आती समझ उसकी , पसारा देख कर उसका ।
बना अद्भुत पहेली है , करो विश्वास तुम उसका ।।

निराली शक्ति है उसकी , बडा आह्वादकारी है ।
विधाता नाम है उसका , दयामय ब्रह्मचारी है ।। 

स्वरचित :-
ऊषा सेठी 
सिरसा 125055 ( हरियाणा )


भावों के मोती
शीर्षक- पहेली
बहारों सी मासुम
और अलबेली हो तुम।
समझ न पाया जिसे कोई
ऐसी एक पहेली हो तुम।

कभी होती हो सागर सी शांत,
कभी बन जाती हो तुफान।
कभी प्यार बरसाती हो,
कभी गुस्सा दिखलाती हो।
सबके बीच रहकर भी
लगता है जैसे हो अकेली तुम।
 समझ न पाया....

बना सार्थक मेरा जीवन
पाकर तेरा प्यारा साथ।
रोशन रहता है ये मन
चाहे दिन हो या रात।
क्यूं न गुमान करूं मैं
मेरी ही सहेली हो तुम।
समझ न पाया......
स्वरचित
निलम अग्रवाला, खड़कपुर



II  पहेली 2 - घूप ठंडी कैसे हो सकती है II

ज़िन्दगी इतनी बड़ी पहेली न होती....
गर कवि न होता....
सीधा न सोचता न सोचने देता....
अच्छी भली राहों को ऊबड़ खाबड़ कर देगा...
साफ़ पगडंडियों पे कांटे उगा देगा...
न जाने दिमाग कैसा पाया है....
चाँद में जबरदस्ती महबूब बिठाया है....
गर उसकी कविता नहीं सुनी तो...
उसी चाँद को आग का शोला दिखाया है...
न जाने क्या सोचता है क्यूँ भरमाया है....
कभी इसका संग न करना....
जीवन यह पहेली तेरी बना देगा वरना....

तीन दिन पहले कि मैं बात बताऊँ...
आसमान से आग बरस रही थी...
सूर्य देव को बहुत तेज़ बुखार था...
बदन सारा उसका तप रहा था...
कहीं परिंदा भी नज़र न आ रहा था...
पर मेरा कवि मित्र.... 
महबूबा की सोच में डूबा...
मस्त झूमता जा रहा था...
मुझसे रास्ते में टकरा गया था...
इस से पहले मैं बच निकलता... 
बोल पड़ा...
आयो शर्मा जी दी ग्रेट... 
बिला वजह हो रहे फेंट...
देखो कितना हसीं मौसम है...
फ़िज़ा में खुशबू-ए-आलम है...
ठंडी हवाओं से मौसम सुहाना है...
बैठिये हमें सुनाना आपको गाना है...
सुनते ही बात उसकी ....
माथा मेरा भन्ना गया...
गर्मी तो पहले ही बहुत थी...
मैं और ताप खा गया...
बच-बचा के घर आ गया...
रात को १०४ डिग्री बुखार में...
अस्पताल आ गया...
ज़िन्दगी मेरी पहेली बना गया...
डॉक्टर और घर वालों के आगे...
सवालिया निशाँ मैंने लगा दिया...
सब से पहेली पूछता फिरता हूँ...
घूप ठंडी कैसे हो सकती है  ?

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 
२१.०५.२०१९


नमन "भावो के मोती"
21/05/2019
  "पहेली"(3)
मुक्तक
1
ये जिंदगी पहेलियों में उलझाती है,
कुछ सुलझती कुछ यूँ ही रह जाती है,
भाग्य किसी का कोई नहीं सँवारता ,
 किस्मत की लकीरें कभी न बदलती है।।
2
आज रिश्ते-नाते दूर हमसे हो रहे,
जिंदगी के धागों को मिलकर उलझा रहे,
उलझ के कभी खुद ना सुलझते हैं रिश्ते,
हम खुद ही अनसुलझी पहेलियाँ बन रहे ।।

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल



नमन मंच  २१/०५/२०१९
विषय-- पहेली

यह जीवन एक पहेली है,
हल करना इसे जरूरी है।
जिसने नहीं है इसको समझा,
जीना उसकी मजबूरी है।

आगे बढ कर इसे सुलझाओ
तनिक न इससे तुम घबराओ
करो मुकाबला डट कर के
वीर पुत्र तुम कहलाओ।
( अशोक राय वत्स) ©स्वरचित
जयपुर



सादर न
शीर्षक- पहेली
बाल कविता
       "पहेली"
माँ एक पहेली सुलझा दो,
चाँद और सूरज को मिला दो,
क्यों रूठे हैं वो मुझे बता दो,
तुम तो माँ हो उनको सजा दो,
माँ तुम ये पहेली सुलझा दो,
माँ तुम जब आँख दिखा दो,
पापा को भी तुम ड़रा दो,
अपना गुस्सा उन्हें दिखा दो,
चाँद और सूरज को मिला दो,
माँ तुम ये पहेली सुलझा दो,
इनकी लड़ाई का राज बता दो,
झगड़ना है बुरी बात इनको सीखा दो,
माँ तुम चाँद और सूरज को मिला दो,
सूरज की तुम आग बुझा दो,
चाँद की अम्मा को हँसा दो,
माँ तुम ये पहेली सुलझा दो,
दोनों भईयों का हाथ मिला दो।
**
स्वरचित-रेखा रविदत्त
21/5/19
मंगलवार



शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
21/05/2019
हाइकु (5/7/5)   
विषय:-"पहेली"

(1)
रोज दौड़ते 
उदर की पहेली 
हल करते 
(2)
ओर न छोर 
जिंदगी की पहेली 
उलझे धागे 
(3)
द्वंद्व पहेली 
सबके हाथ फूल 
माथे क्यों खून? 
(4)
जीवन खेल 
सुख-दुःख सहेली 
मृत्यु पहेली 
(5)
प्रेम न बूझे 
रिश्ते बने पहेली 
मन उलझे 

स्वरचित 
ऋतुराज दवे


21/5/19
भावों के मोती
विषय - पहेली
__________________
यह रात की कैसी पहेली है
जिसके आते ही जीवन सोने चले
अँधेरे के आगोश में खोने लगे
चँदा अकेला अंबर से झाँके 
चाँदनी सबके झरोखों से झाँके
मिले न उसे कोई सखी-सहेली
कैसी है यह अनबूझ पहेली
प्यार का प्रतीक गुमसुम-सा रहता
तारों से अपने दिल की कहता
शीतल स्नेह से सबको भिगोए
फिर भी सारे नींद में खोए
रूठ कर कहीं छुप जाए
कुछ दिनों तक नज़र आए
सूरज के साथ गुलिस्तां महकता
धरती पर जीवन चहकता
धूप से होते हैं बेहाल
फिर भी सूर्य को करते नमस्कार
साँझ ढले ही लौटते घरों को
कृत्रिम रोशनी से अँधेरों को चीरते
अंधकार को लेकर साथ
सांझ चली रात के द्वार
रात बन पहेली सन्नाटे की सहेली
नहीं रहता किसी को होश
चुपके से गुजरती रात नींद के आगोश
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित✍



भावों के मोती
21/05/19
विषय पहेली।

द्वितीय प्रस्तुति 

अनसुलझी पहेली

पूर्णिमा गयी,बीते दिन दो 
चाँद आज भी पुरे शबाब पर था
सागर तट पर चाँदनी का मेला 
यूं तो चारों और फैला नीरव 
पर सागर में था घोर प्रभंजन 
लहरें द्रुत गति से द्विगुणीत वेग से
ऊपर की तरफ झपटती बढ़ती 
ज्यो चंन्द्रमा से मिलने 
नभ को छू लेगी उछल उछल 
और किनारों तक आते आते 
बालू पर निराश मन के समान 
निढ़ाल हो फिर लौटती सागर में
ये सिलसिला बस चलता रहा
दूर शिला खण्ड पर कोई मानव आकृति
निश्चल मौन मुख झुकाये 
कौन है वो पाषण शिला पर ? 
क्या है उस का मंतव्य? 
कौन ये रहस्यमयी,क्या सोच रही? 
गौर से देखो ये कोई और नही 
तेरी मेरी सब की क्लान्त परछाई है
जो कर रही सागर की लहरों से होड 
उससे ज्यादा अशांत 
उससे ज्यादा उद्वेलित
कौन सा ज्वार जो खिचें जा रहा
कितना चाहो समझना समझ न आ रहा ।

स्वरचित 
           कुसुम कोठारी ।




नमन भावों के मोती 
विषय - पहेली 
21/05/19
मंगलवार 
कविता 

यह जीवन है अबुझ पहेली समझ न कोई पाया ,
जितना  ही  इसमें डूबा  नर उतना ही भरमाया ।

कैसे  नदियाँ कल-कल बहतीं कैसे  मेघ  बरसते ,
नभ में  क्यों  उड़ते हैं पक्षी हम क्यों भू पर रहते।

धरती   से  ये  हरी-भरी  फसलें  कैसे  उगती  हैं,
कैसे फूलों में रंग और खुशबू  प्रतिपल बसती है।

मन  अचरज से भर जाता है देख बदलती काया ,
पहले शैशव फिर यौवन औ तब वृद्धत्व की छाया।

दूर  - सुदूर    देश  में   बैठे  परिजन  करते  बातें,
बिना  तार  के   कैसे   सारे  यंत्र  पास  ले  आते।

बहुत प्रयास किए सबने पर  सुलझी  नहीं  पहेली,
'ईश्वर की माया है' कहकर  जीवन को गति दे ली।

स्वरचित 
डॉ ललिता सेंगर



2भा./21/5/2019/मंगलवार
बिषयः#पहेली#
विधाःः ःकाव्यः ः

दुनिया अलबेली
जगत पहेली
क्यों सताती भूख प्यास
 अबूझ पहेली
  विधाता सदैव मुस्काता
संसार नचाता
सूरज चांद तारे उगाता
कहीं महलों में सुलाता
कुछ खुले मैदानों में रूलाता।
गजब की सृष्टि रचाई
 अबतक शायद ये पहेली
किसी की समझ न आई।
कौन इसका रचैया है
क्या कृष्ण कन्हैया है।
 कोई बृह्मा बताता है
कोई बिष्णु बुलाता है
गजब की बनाई ये दुनिया
कहीं खिलते कुसुम कलियां
कभी उजडे चमन बताता है।
 बहुत आऐ चले गये यहां से
मगर कोई कब
इस अद्भुत पहेली का राज
हमें हकीकत बताता है।
अगर आप समझें हों कहीं
मुझे भी कुछ सार समझाऐं
क्या कोई मिलजुलकर
ऐसी दुनियां बसाता है।

स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम

  2भा#पहेली# काव्यः ः
21/5/2019/मंगलवार



नमन मंच 
विषय: पहेली 
विधा : हाइकु 
२१/०५/२०१९

चींटी को चोट 
हाथी भी लोट पोट 
कैसी पहेली !! 

सुन सहेली 
ढूंढ मोरे बलमा 
बुझा पहेली !!

मुर्दो की भीड़ 
रह गयी अकेली 
बन पहेली !!

एक पहेली 
जीवन और मृत्यु 
सबने खेली !!

प्रकृति खेल 
दिन-रात पहेली 
कभी न मेल !!

जिस्मो की भीड़, 
दुनिया है अकेली
बनी पहेली !! 

स्वरचित: डी के निवातिया



शुभ संध्या
शीर्षक-- ।। पहेली ।।
द्वितीय प्रस्तुति

मेरा प्यार किसी पहेली से कम नही
वो मुझे मिले या न इसका गम नही ।।
मगर कुछ कहता है यह प्यार सिर्फ-
दीदार को तड़फना क्या सितम नही ।।

सितम कई हैं जो जिन्दगी ने ढाये 
फिर भी हम हरदम ही मुस्कुराये ।।
पर ये दर्द इसलिये अक्सर रूलाये 
यह पहली ही चोट थी जो हम खाए ।।

इसके बाद तो पहेलियाँ कतारबद्ध थीं
जब देखा मेरी सारी राहें अवरूद्ध थीं ।।
किन किन पहेलियों को बुझाते हम 
सारीं की सारीं लड़ रहीं हमसे युद्ध थीं ।।

एक हम थे दुनिया में निपट अकेले 
ऊपर से नादान मासूम नये नवेले ।।
हंसने मुस्कुराने के जो दिन थे उनमें
हमने बड़े पहाड़ जैसे संघर्ष झेले ।।

अब तो हम इन संघर्षों के उस्ताद हैं
जान गया हूँ इनके जितने भी राज हैं ।।
जिन्दगी बेशक पहेली कहाये ''शिवम"
बूझ ही दूँगा ये मुझे खुद पर विश्वास हैं ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 21/05/2019



भावों के मोती दिनांक 21/5/19
पहेली

है मौत 
एक पहेली
चलता शरीर
सांस रूकी
लाश में  है 
तब्दील 

रिश्ते है 
एक पहेली
नाजुक सी है 
डोर
जो फिसली 
जुबान 
गांठ बनी
 दिल में 

माँ बाप का 
प्यार 
है 
एक पहेली
लूटा देते 
सब कुछ
बोलती है 
औलाद
किया क्या
 तुमने 
हमारे साथ 

इन्सान
खुद ही है
एक पहेली
बना है 
हाड़ मांस का
सजता है
सोने चांदी से

अब न पूछ
पहेली
तू 
पहेली 
मुझ से
जिंदगी है 
एक धोखा
खुद पर न
इतना इतरा 

स्वलिखित
 लेखक संतोष श्रीवास्तव  भोपाल



कितनी उम्र 
जिंदगी की पहेली 
बुझे ना कोई 

रखे ना पास
माँ बाप करे आस
बच्चे पहेली 

रंक पहेली 
एक रात में बना
कैसा अमीर 

बुझते जाओं
जिवन है पहेली 
बुझे ना कभी

कैसा विश्वास 
करते धोखेबाजी
बुझो पहेली 

मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश 
21/05/2019



नमन
भावों के मोती
२१/५/२०१९
विषय-पहेली

जीवन है एक पहेली।
कैसे सुलझे ,सुलझ न पाए,
जितना सुलझाएं,उलझती जाए।
नयी-नयी उलझन अलबेली,
बन जाती है एक पहेली।
मैं सोचूं और सोच न पाऊं,
बूझ रही हूं इसे अकेली।
कदम-कदम पर नयी पहेली,
एक न सुलझे दूजी आ जाए।
मैं अचरज में डूबी अकेली,
न कोई संगी न कोई साथी।
बूझ रही हूं जीवन की पहेली,
रचनेवाला रच कर बैठा।
एक के बाद एक पहेली,
जीवन है अनसुलझी पहेली।
कोई आज तक बूझ न पाया,
कैसी है ये जटिल पहेली।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक



भावों के मोती : प्रदत्त शब्द  : पहेली 
******************************
ज़िंदगी जाने अनजाने क्या क्या रंग दिखाती है 
आँखों में हर लमहा क्या क्या सपने सजाती है 
एक अनबूझ पहेली सी बन जीवन में निसदिन
एक नये साज पर नया ही गीत गुनगुनाती है ।

ज़िंदगी की पहेलियों को कौन सुलझा पाया है 
पाने की चाह में अकसर बहुत कुछ गँवाया है 
जाने किस मोड़ ,किस मक़ाम पर ठहर जाए ये
इसकी रफ़्तार को आजतलक कौन रोक पाया है ।

दोराहे पर साथ छोड़  अकेली निकल पड़ती है 
परछाईं सी कभी आगे कभी पीछे चल पड़ती है 
झूले की तरह कभी इस पार, तो कभी उस पार 
ज़िंदगी साँसों की डोर से बंधी झूलती जाती है।
स्वरचित (c)भार्गवी रविन्द्र .......बेंगलूर २१/५/१९



गूढ़ पहेली जिंदगी, सुलझे तो किस भाँति।
उलझे धागे की तरह, अलग न होवे छाँटि।
अलग न होवे छाँटि, उलझती जितनी ज्यादा।
उतनी पड़ती गाँठ, सुलझतीं उनमें आधा।
कहूँ राज की बात, सुनो सब सखा सहेली।
कोशिश है बेकार, जिंदगी गूढ़ पहेली। 

डॉ राजकुमारी वर्मा



नमन मंच भावों के मोती
दिनांक 21/5/2019
विषय- पहेली
जीवन अजब पहेली 
रंग बिरंगे इसके किस्से 
रंग बिरंगी टोली 
जीवन अजब पहेली ।
बड़े -बड़े ऋषि मुनियों ने कितनी कोशिश करली, पर उलझी रही पहेली 
जीवन अजब पहेली ।
कौन सुबह सूरज ले आता 
कौन रात में चंदा?
कौन दोपहर शाम बनाता 
कौन रात्रि आनंदा?
किसने नदियाँ झील बनाई 
किसने सागर गहरे ?
किसने इतने जीव बनाए 
किसने मानव काया?
किसने इस दुनिया को रच 
मानव को भरमाया ?
जीवन मृत्यु की इस छाया ने 
ऐसा खेल खिलाया 
राग द्वेष के जाल में फंस
मानव ऐसा भरमाया ।
ऊपर वाला बना मदारी
मानव को नाच नचाया ।
फिर भी समझ न पाया माया 
क्योंकि जीवन अजब पहेली।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय







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