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ब्लॉग संख्या :-399
सुप्रभात "भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन🌹
27/05/2019
"विधाता"
1
रूठा विधाता
दर-दर भटका
बेबस कर्म
2
गाज जो गिरी
विधाता का कहर
माथे पे बल
3
सुख व दु:ख
मानव है मोहरा
खेल विधाता
4
भाग्य विधाता
हँसाता व रुलाता
मायावी खेला
5
सर पे टूटा
विधाता का कहर
दु:खी है मन
6
पिता विधाता
सुख झोली भरता
दु:ख हरता
7
हैं दिगंबर
विधाता चहुँ ओर
धरा,अंबर
8
विधाता शक्ति
ब्रह्मांड में विराजे
मन की भक्ति
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
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नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक विधाता
विधा लघुकविता
27 मई 2019,सोमवार
विधी विधान होते अद्भुत
जग नियंता एक विधाता
धरा अम्बर भू प्रकृति को
नए रंगों में स्वयं सजाता
शशि रवि आलोकित कर्ता
निशा गगन में सदा चमकते
परम् कृपा विधाता हम पर
चिड़िया चहके फूल महकते
मालिक मात्र सहारा तेरा
क्या तेरा और क्या मेरा है
सबकुछ दिया विधाता तेने
मात्र चार दिन का डेरा है।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
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नमन मंच
दिनांक .. 27/5/2019
विषय .. विधाता
विधा .. लघु कविता
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लिखा विधाता के विधि का तो,लेख मिटे ना भाई।
कर ले लाख चतुराई , विधि का लेख मिटे ना भाई।
...
कहने वाले तो कहते है, भाग्य पे कर्म है छाई।
पर क्या जाने वो मूरख, विधि कर्म के रस्ते आई।
....
सोना रहा सोनार का, गढ के दिया बनाई।
शेर कहे वो भाग्य बली है, जिस तन गई समाई।
.....
शेरसिंह सर्राफ
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!! विधाता !!
शिकायतें बहुत हैं मिलें तो बतायें !
कितनी हैं बातें जो समझ न आयें !
मुर्गे को मरने की खातिर बनायें !
बेचारे की चीख पर बहरा बन जायें !
मनगढ़ंत अक्ल सब ही भिड़ायें !
ज्ञानी यहाँ पर भूखों कहलायें !
मूढ़मति यहाँ छक्के पंजे उड़ायें !
फ़ेहरिस्त बड़ी है सब न सुनायें !
'शिवम'सार जीवन के बड़े उलझायें !
चारदिनी जिन्दगी क्या क्या अपनायें !
समझ न आये कमायें या चुकायें !
पूर्व जन्मों की बही कहाँ से लायें !
विडंबनायें हजार जो हैं रूलायें !
एक दिन हंसें एक दिन अकुलायें !
तेरी बानगीं विधाता प्रश्न कई उठायें !
तुझे समझना हजार जन्म कम कहायें !
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 27/05/2019
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जय सरस्वती मैया
महादेव वन्दना
त्रिभंगी छंद
शीर्षक= विधाता
सुर नर मुनि गाते शीश झुकाते महादेव सब ताप हरो।
सिर गंगा न्यारी डमरू धारी सब सुख दायक पाप हरो।।
बन अति बलवाना तुम हनुमाना राम प्रभू के काज करे।
जब भक्त पुकारे आय उबारे वामदेव सब कष्ट हरे।।
संग महारानी उमा भवानी नंदी वाहन संग चले।
पहने मृगछाला रूप निराला अंग अंग में भस्म मले।।
तुम विद्धि विधाता जन सुख दाता देव हमें भव पार करो।
जप नाम तुम्हारा मम मन हारा देव दया कर ध्यान धरो।।
स्वरचित
संदीप कुमार विश्नोई
दुतारांवाली अबोहर पंजाब
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27/5/2019
विधाता
💐💐
नमन मंच।
नमन गुरुजनों ,मित्रों।
विधाता ने ये संसार रचा,
स्रृष्टि की रचना की।
हमको, तुमको बनाया उसी ने,
सब जीवों की रचना की।
कभी किसी का दिल ना दुखाना,
वो सब देख रहा है।
सच्चे कर्म को करने वाले,
तूं क्यों सोच रहा है।
सभी विधान को रचने वाला,
चुपचाप बैठा है।
पर जो तूं करेगा प्राणी,
सबकी उसे खबर है।
विधाता की रचना हैं हम सब,
सब मिलकर शीश झुकाओ।
गुण उसके रात दिन तुम,
हिल मिलकर सब गाओ।।
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स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
💐💐💐💐💐
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,🌹🌹🙏🙏जय माँ शारदे,,🙏🙏🌹🌹
नमन मंच ,,,भावों के मोती,,
,🌹हार्दिक /अभिनंदन🌹
शीर्षक,,, बिधाता,,,
27/5/2019/
ऐ नीचे धरती ऊपर आसमां
खिलती कलियाँ गुलिस्तां
लहलहाती फसलें चलती बयार
बहती नदियों की कल कल धार
ए प़कृति बिधाता की अति
सुंदर संरचना
वो हमारे ऋषियों मुनियों की आराधना
कितने अरमानों से सजाया था इसको
खून पसीने से बनाया था इसको
पर हमने इसकी कद़ नहीं जानी
निज स्वार्थ बशीभूत करने लगे
मनमानी
इन अद्भुत उपहारों से
करते छेड़छाड़
भौतिक सुखों के लिये करते
खिलवाड़
पेड़ो का काटना रेत का खनन
किया ही नहीं कभी चिंतन मनन
अट्टालिकाऐं तो बन जाऐंगी
पानी हवा कहाँ से पाओगे
भाबी पीढ़ी को क
क्या देकर जाओगे
बूंद बूंद पानी को तरसते
रह जाओगे
ए जंगल ए नदियां
कुछ नहीं पाओगे
हाथ मलोगे ढूढते रह जाओगे
,,,स्वरचित,,, सुषमा ब्यौहार,,,
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चलें जीवन के काम सब मेरे राम भरोसे।
न रुपया कोड़ी दाम सब मेरे राम भरोसे।
खग मृग चातक धेनु करे ना कोई काज ।
बस चरें करें आराम सब मेरे राम भरोसे।
किसने फूल खिलाए किसने पर्वत बनाए।
सृष्टि के आयाम है सब मेरे राम भरोसे।
आग में जलना होगा फिर भी चलना होगा।
लड़ लेंगे यूं हर संग्राम सब मेरे राम भरोसे।
उठें सभी प्राणी भूखे भर पेट सभी हैं सोय।
सब के ही दाता राम सब मेरे राम भरोसे।
विपिन सोहल
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नमन मंच भावों के मोती
दिनांक-27/5/2019
आज का शीर्षक -विधाता
विधा-लघु कथा
कभी-कभी मुझे लगता है कि #विधाता ने नारी की रचना की या ढोलक को ही चलता फिरता नारी आकार प्रदान कर दिया।
अलग अलग चमड़ी की नारी या अलग-अलग लकड़ी से बनी ढोलक।
दोनों किनारों पर खाल डोरियों से कसी जो स्वर से स्वर मिलाने का काम करेंगी।
हां #विधाता ने नर को भी दिया है काम कि इन डोरियों को कसता रह,
और जब यह छल्ले ढीले पड़ जाए तो दूसरी खाल मढ़ देना।
सुन मधुर थाप।कस डोर.........
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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नमन् भावों के मोती
27मई19
विषय विधाता
विधा कविता
गति और विराम विधाता के अधीन
सृजन का उपहार सुंदर और नवीन
सरिता,गिरि,कानन और वसुंधरा सृजन
सूर्य,चन्द्रमा,ग्रह और जल-धारा जीवन
कर्म और भाग्य सब कुछ प्रकृति अधीन
सत्य और झूठ की रेखा बड़ी महीन
सुख-दुःख की लीला बड़ी चंचल और प्रवीन
जन्म-मरण का चक्र चलता प्रकृति अधीन
मनीष श्री
रायबरेली
स्वरचित
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🌷🌷जय माँ शारदे 🌷🌷
नमन मंच
दिनांक -27/05/2019
विषय -विधाता
रचा संसार विधाता तूने
उस क़लम के दर्श करा दे
लिखा उद्गार मानव हृदय का
अपने हृदय का मरहम बता दे
समेटे चित्त पर पीड़ा का भार
छुपा नयनों का नीर
उठी जो सुनेपन की टीस
गूँथी विरहिणी के मन की पीर
अंतर्वेदना चित की सारी
कल्पनाओं का सजा जीवन काल
खेल विधाता खेला तूने
बिछा मोह माया का सुन्दर जाल
भाग्य विधाता भाग्य बदल दे
अनदाता का जीवन खुशियों से भर दे
दीन दुखियों का दर्द मिटा दे
महके जीवन , हृदय में ऐसा दीप जला दे
स्वरचित -
- अनीता सैनी (जयपुर )
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नमन भावों के मोती
विषय - विधाता
27/05/19
सोमवार
कविता
पंच-तत्त्व की मिट्टी सानी तब इंसान बनाया था,
परम विधाता ने मानव को सर्वोत्तम ही पाया था।
सोचा था धरती पर आकर वह सत्पथ अपनाएगा ,
अपने उज्ज्वलतम कृत्यों से सबको मार्ग दिखाएगा।
किन्तु यहाँ मानव ने अपना एक अलग संसार रचा ,
सुख -साधन से परिपूरित अपना एकल परिवार सृजा।
दूर हो गए रिश्ते- नाते , भूल गए दादा- दादी ,
जिनके बिना अधूरी लगती थीं घर -आँगन की थाती ।
नित्य मशीनी जीवन जीकर मानव यंत्र समान हुआ ,
संवेदन का हृदय -पक्ष से समझो कि अवसान हुआ।
सुख-समृध्दि की चाहत ने उसको अब अंधा बना दिया ,
भ्रष्ट-आचरण की दलदल में उसको पूरा डुबा दिया।
चारों ओर भयंकर शोषण अपराधों का दौर चला,
चीत्कार व कोलाहल से पूरा ही संसार हिला ।
किंकर्तव्यविमूढ़ विधाता होकर बार -बार यह सोच रहा,
क्यों इतने यत्नों से मैंने इस मानव का रूप रचा ।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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नमन मंच
दिनांक - 27-5 -2019
शीर्षक - विधाता
विनती कीजिए स्वीकार विधाता
सब को दिए विधाता अनधन लक्ष्मी
मुझे क्यों बनाए भिखार विधाता
विनती कीजिए स्वीकार
सब को दिए विधाता कंचन तनमा
मुझे क्यों बनाए बीमार विधाता
विनती कीजिए स्वीकार
सब को दिए विधाता बांग्ला और गाड़ी
मुझे क्यों बनाए लाचार विधाता
विनती कीजिए स्वीकार
सब को दिए विधाता सुख भरा दुनिया
मुझे क्यों बनाए बेकार विधाता
विनती कीजिए स्वीकार
आशा लगा कर मैं चरणों में गिरी हूं
जीवन को दीजिए संभाल विधाता
विनती कीजिए स्वीकार
मधुलिका कुमारी (खुशबू)
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27/5/19
भावों के मोती
विषय- विधाता
___________________
मौत से जूझकर
मुश्किल रास्तों से गुजरकर
ज़िंदगी का दरवाज़ा खुलता है
उस दरवाज़े से ही
निकलकर ही मिलता है
जीवन का मार्ग जिसका अंत
मौत की दहलीज पर होता है
ज़िंदगी से मौत के बीच के मार्ग पर
हमको जीवन जीना पड़ता है
अपने कर्म करते हुए
अपने सपनों अपनों की ख्व़ाहिशें
सब पूरी करनी पड़ती हैं
मार्ग किसका कितना बड़ा
और किसका कितना छोटा है
यह सिर्फ विधाता ही जानता है
हमको जीने के लिए सिर्फ कर्म करने हैं
यही विधि का विधान है
उस विधाता की अनुपम रचना है
अंत में ही आरंभ का रहस्य छिपा है
हम जीवन-मृत्यु के
मार्ग पर चलते
जीवन के हज़ारों रंग देखते
विधाता की अनबूझ पहेली
सृष्टि के सृजनात्मक
शक्ति का अहसास लिए
जीवन के नये सृजन में
योगदान करते
और महसूस करते हैं
उस विधाता के अहसास को
जो जीवन का दाता और
सृष्टि का पालनहार है
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित✍
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नमन "भावो के मोती"
27/05/2019
"विधाता"
छंदमुक्त
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विधाता ने बनाए....
माटी के ये पुतले....
जज्बात भरे मन में..
दु:ख सुख जो समझ आए।
आकर इस संसार में..
हम विधाता को ही भूल गए.
टूटे जब-जब सपने.....
फिर विधाता क्यों याद आए।
मानव ...
संसार के दावानल में..
जल रहे.......
आशा औ निराशा की लहरों में...
उठते औ गिरते रहे...
पर विधाता न याद आए..।
मोहमाया के भ्रमजाल में..
फँसते चले गये....
सुख से आशक्त हुए..
मिला जो दु:ख ...
फिर विधाता ही नजर आए।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
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जग विधाता
नज़र नही आता
ढूंढते भ्राता।।
भाग्य विधाता
मानव के करम
दोष दें ईश।।
सृष्टि विधाता
एक परमपिता
रूप अनेक।।
मेरे विधाता
करता गुणगान
दीजिये ज्ञान।।
जाने विधाता
कलयुग विधान
सब समान।।
गंगा भावुक
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नमन मंच २७/०५/२०१९
विषय -- विधाता
लघु कविता
लेख विधाता ने जो लिखा
टाल सका न उसको कोई ।
जो टालन में सफल हो गया
महापुरुष न उससा है कोई।
बैठे हैं जो राम भरोसे
करें न कर्म जो एक।
खोजे से भी न मिले
उनसा मूर्ख यहाँ एक।
कर सृजन इस दुनिया का
नाम विधाता जिसने पाया।
संहार कर दुष्टों का उसने
नाम अपना सार्थक किया।
(अशोक राय वत्स) © स्वरचित
जयपुर
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भावों के मोती
27/05/19
विषय - विधाता
सुर और साज
एक सुर निकला उठ चला
जाके विधाता से तार मिला ।
संगीत में ताकत है इतनी
साज से उठा दिल में मचला
मस्तिष्क का हर तार झनका
गुनगुन स्वर मध्धम सा चला
दुखियों के दुख भी कम करता
सुख में जीवन सुरंग रंग भरता ।
एक सुर निकला उठ चला
जाके विधाता से तार मिला ।
मधुर मधुर वीणा बजती
ज्यों आत्मा तक रस भरती
सारंगी की पंचम लहरी
आके हिया के पास ठहरी
सितार के सातों तार बजे
ज्यों स्वर लहरी अविराम चले ।
एक सुर निकला उठ चला
जाके विधाता से तार मिला ।
ढोलक धुनक धुनक डोली
चल कदम ताल मिलाले बोली
बांसुरी की मोहक धुन बाजी
ज्यों माधव ने मुरली साजी
जल तरंग की मोहक तरंग
झरनो की कल कल अनंग ।
एक सुर निकला उठ चला
जाके विधाता से तार मिला।
तबले की है थाप सुहानी
देखो नाचे गुडिया रानी
मृदंग बोले मीठे स्वर में
मीश्री सी घोले तन उर में
एक तारा जब प्यार से बोले
भेद जीया के सारे खोले ।
एक सुर निकला उठ चला
जाके विधाता से तार मिला।
पेटी बाजा बजे निराला
सप्त सुरों का सुर प्याला
और नगाड़ा करता शोर
ताक धिना धिन नाचे मन मोर
और बहुत से साज है खनके
सरगम का श्रृंगार बनके ।
एक सुर निकला उठ चला
जाके विधाता से तार मिला।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
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"नमन-मंच"
"दिनांक-२७/५/२०१९"
"शीर्षक-विधाता"
हटाओ तिमिर, भरो प्रकाश
आशा है बस तुमसे आज
हे विश्व-विधाता करो कल्याण
विश्ववन्द्य, तुम हो अन्तर्यामी ।
तुम हो सबके भाग्य -विधाता
जय पराजय सब तेरे हाथ
नाहक परेशां है संसार
जन्म मरण सब तेरे हाथ।
विह्वल हो मैं करूँ फरियाद
अग्नि विभीषिका में
जो न बच पायें
उनके परिवार को संभालों आज।
हे विधाता करो कल्याण
अपनी ख्याति का रखो लाज
आशा है बस तुमसे आज
मेरी तुम सुन लो फरियाद।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
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नमन भावों के मोती,
आज का विषय, विधाता,
दिन, सोमवार,
दिनांक, 27,5,2019,
दुनियाँ में जब आये शिशु रहे निर्विकार ईश स्वरूप कहलाये ।
एक विधाता करे सृष्टि की रचना दूजा व्यक्तित्व बनाये ।
जैसे कुम्हार के हाथों से मिट्टी ढलकर आकार अनेकों पाये ।
पालक के संसर्ग में आकर शिशु भी चरित्र निर्माण को पाये ।
भारत की भाग्य विधाता जनता और घर की माता कहलाये ।
जग का भाग्य विधाता ईश्वर कर्मों का सबको फल पहुँचाये ।
अपनी अपनी करनी का फल मानव इसी दुनियाँ में पाये ।
बैंक अकाउंट जैसे ईश्वर ने सबके कर्मों के खाते हैं बनाये ।
सुख में सुमिरन करे न मानव जब दुख आये तब पछताये ।
लाभ की इच्छा से ही प्रेरित मन जाने क्या क्या कर्म कराये ।
पड़ जाये जब उल्टा पासा विधना को तब दोष लगाये ।
पेड़ आम के जो हम लगायें तो कभी बबूल नहीं उग आयें ।
फल हीन हो सकता है वृक्ष पर हमें छाँव तो दे ही जाये ।
कर लें शुक्रिया विधाता का हम हमने मानुष जनम हैं पाये ।
जग में कर्मवीर को सब कुछ है संभव विधाता ये समझाये ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
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शुभ संध्या
शीर्षक-- ।। विधाता ।।
द्वितीय प्रस्तुति
विधाता तेरे विधि विधान
समझ न आये हम नादान ।।
सोच समझ जब जागे
बदले मंजर बदले गान ।।
जानें तो क्या क्या जानें
जीवन कम ज्यादा पुरान ।।
कभी सुने न कहे कहे तूँ
कभी सुने दिल की आन ।।
सत्य की सदा लड़ाई रहे
निर्बल पर सबल शैतान ।।
क्यों न दुखी रहेगा यहाँ
जो कहाये निर्बल इंसान ।।
पत्थर दिल पिघल जाये
जब तूँ न पिघले हों हैरान ।।
कभी तो लगे तूँ है ही न
कभी कण कण में भान ।।
कोई जीवन ही बितादे
अच्छाई का करते मान ।।
रोटी को तरस जाये
ऐसा तेरा जग जहान ।।
पहचाना कुछ कर्म बहाव
मन में ही उठते तूफान ।।
चलते चलते बहकें पग
मंजिल से न हो मिलान ।।
गूढ़ तेरी विधि विधाता
कुछ तो मैं गया हूँ जान ।।
शुरू किया कश्ती मोड़ना
शायद 'शिवम' मिले निर्वान ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 27/05/2019
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नमन मंच को
27/5/2019
आज काफी समय बाद
विधाता
हाइकु
1
पिता व माता
हमेशा है विधाता
काहे सताता
2
कर्म विधाता
निस्वार्थ हो भावना
फल दिलाता
3
जीवन दाता
ईश को पुकारता
मनु भूलता
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
समीक्षार्थ
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नमन भावों के मोती
दिनाँक-27/05/2019
शीर्षक-विधाता
विधा-हाइकु
1.
बेटा बिटिया
संरक्षक विधाता
घर सजाता
2.
मानव मूर्ति
ये अनोखा संसार
विधाता कृति
3.
पक्के नियम
विधाता ने बनाए
टूटते नहीं
4.
इंद्रधनुष
गजब का सौंदर्य
विधाता देन
5.
मयूर पंख
प्राकृतिक सौंदर्य
विधाता देन
6.
मोर मोरनी
विधाता ने बनाई
अजब जोड़ी
********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
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सादर नमन
विधा-हाईकु
विषय- विधाता
१
माता व पिता
भगवान स्वरूप
पूजते हम
२
रईस जादे
करते अत्याचार
विधाता बने
३
बुराई पृष्ठ
विधाता है लेखक
किस्मत सार
**
स्वरचित-रेखा रविदत्त
27/5/19
सोमवार
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
27/05/2019
कविता
विषय:-"विधाता "
खिलती कली
मुस्काती पली
ये फूल जब खिलता है
हाँ विधाता दिखता है...
एक मदद का हाथ जब
जरुरतमंद को पकड़ता है
जहां मिलकर रहते सभी धर्म
प्रेम पता रहता है
हाँ विधाता दिखता है...
रवि आता रश्मि संग
तम को जब निगलता है
तारों के बीच मुस्काता चंदा
चाँदनी संग निकलता है
हाँ विधाता दिखता है...
निर्दोष भोला बचपन
चंदा के लिए मचलता है
मां की आंखों का प्यार जब
ज्वार बनकर उमड़ता है
हाँ विधाता दिखता है....
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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