ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें |
ब्लॉग संख्या :-383
नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक जिम्मेदारी ,दायित्व
विधा लघुकविता
11 मई 2019 ,शनिवार
जगति का है पालन कर्ता
सृष्टि संचलन दायित्व निभाता
अद्भुत पंचतत्वों के बल पर
सदा खुशी की नींद सुलाता
जीवन में दायित्व मर्म है
जिम्मेदारी बड़ा कर्म है
दायित्वों को सदा निभाना
मानवता का बड़ा धर्म है
आना जाना जीवन होता
जिम्मेदारी निज कर्तव्य
जो अपना दायित्व निभाते
उनका जीवन बनता भव्य
मातपिता की जिम्मेदारी
संस्कार संस्कारित करना
हर बाला देवी की प्रतिमा
बच्चा बच्चा राम बनना।।
स्व0 रचित ,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
@@@@@@@@@@@@@@@
नमन🙏 "भावों के मोती"
समस्त रचनाकारों को सादर सुप्रभात,नमन-वंदन🙏🌹
विधा-छंद मुक्त कविता
🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀
विषय-जिम्मेदारी/दायित्व
जिम्मेदारी का एहसास
बनाता है हमको खास
करते जाइये कर्म अब
मन में रहे बस आस
दुनिया की नजर तुझ
पर ही रहेगी सदा ही
उम्मीद की तू किरण
अपनो का आफताब
दायित्वों का बोध
रहे, मिलेगी मंजिल
कीमती समय है जो
उसे न गवां तू आज
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
@@@@@@@@@@@@@@@
माँ शारदा को नमन ।वह हमें अमल -विमल बुद्धि दे ।भावों के मोती मंच को नमन ।
विषय :-जिम्मैवारी /दायित्व
विधा :-कविता
अपने दायित्वों से हम
कभी मुकुर नही सकते
कर्तव्य निर्वहन ही तो
दायित्व मिला हे हमको ।
जिम्मेवारी का बोझ तो
इन कंधों को उठाना हे ।
हर पग संकल्प लिये
आगे ही बढ़े हरदम
जीवन की मंजिल को
हर हाल में पाना है ः
स्वरचित :- उषासक्सेना
@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
दिनांक .. 11/5/2019
विषय .. दायित्व
शैली .. लघु कविता
***********************
समय बडा ही कठिन हो गया,
अधिकारो कर्तव्यो का।
साधारण जन समझ ना पाया,
है अपने दायित्वो का।
....
भौतिकता के युग मे मानव,
बँधा हुआ है इतना।
जीवन कैसे बेहतर हो अब,
फँसा हुआ है इतना।
....
निर्धन अरू धनवान के बीच मे,
गहरी बहुत है खाई।
ईश्वर ही जाने है उसने,
कैसे लाज बताई।
....
अधिकारो की माँग कर रहा,
दायित्वो से पृथक रहा।
शेर के अन्तर्मन मे सच है,
हरदम ही ये द्वंद रहा।
....
स्वरचित एंव मौलिक
शेरसिंह सर्राफ
@@@@@@@@@@@@@@@
।। जिम्मेदारी/दायित्व ।।
हर एक अपनी फिकर करे
अब जिम्मेदारी लगे भारी है ।
घर गृहस्थी की गाड़ी आज
कहीं राम भरोसे ठाड़ी है ।
संकीर्णता की भी हद होती
तस्वीर अमेरिका की उतारी है ।
घर गृहस्थी को संभालने की
अब तो सरकार की बारी है ।
मियाँ बीवी ड्यूटी वालें हैं
पलना घर में किलकारी है ।
वृद्ध बेचारे वृद्धाश्रम में
ये किस युग की तैयारी है ।
सिर्फ पैसा ही पैसा 'शिवम'
हर मर्ज़ की दवा विचारी है ।
जिम्मेदारी क्या होती घर की
अब ये भूली दुनिया सारी है ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 11/05/2019
@@@@@@@@@@@@@@@
जय मॉ शारदा
🙏🙏🙏🙏
,🌹🌹🌹🌹
नमन वंदन
सादर सुप़भात
"भावों के मोती""
बिषय ,जिम्मेदारी ,दायित्व,
इस जीवन की जटिलता
रहते बड़े झमेले
सदा सामने लगे
दायित्वों के मेले
निर्वहन करना ही
हमारी नैतिक जिम्मेदारी
फिर क्यों इससे भागें
रहे मानसिक तैयारी
कर्म साक्षी यही
गीता रामायण का कहना
पृथ्वी पर जन्म लिया
कर्तब्य पूर्ण करना
संघर्षों को
लघु रूप में हँसते हँसते सहना
रहें सदैव सजग हो न
अंत समय पछताना
निज कर्मों को सहेज
इस जहॉ से जाना
स्वरचित
@@@@@@@@@@@@@@@
दि- 11-5-19
विषय- जिम्मेदारी / दायित्व
सादर मंच को समर्पित -
🌺 जागरण गीत 🌺
************************
🌻 जिम्मेदारी 🌻
🏵 छंद- लावणी 🏵
( मात्रा=16+14 )
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
राष्ट्र जागरण की बेला है ,
स्वाभिमान की बारी है ।
भारत माँ का आज बुलावा ,
नवयुग की तैयारी है ।।
जाग उठा हर भारतवासी ,
राष्ट्र धर्म बलिहारी है ।
एक ही नारा विकास सब का,
सब की जिम्मेदारी है ।।
बहुत खो चुके, अब न पिसेंगे ,
नहीं बटें जाति, धर्म पर --
भ्रष्टाचारी होश में आयें ,
जागी जनता सारी है ।।
चहुँदिश विकास हक जनता का ,
समग्र उन्नति जारी है ।
जो समाजहित संकल्पित है ,
जीत का वही अधिकारी है ।।
शोषण, अत्याचार , अशिक्षा,
बेरोजगारी मिटाने --
रणभेदी अब बुला रही है ,
अर्थ क्रांति जिम्मेदारी है ।।
युवा शक्ति हुंकार उठी है,
संकल्पों की चिनगारी है ।
खुशहाली का कमल खिलेगा,
सत्य की राह हमारी है ।।
सर्व धर्म , राष्ट्र की सुरक्षा ,
अन्त्योदय हो निर्बल जन --
हम भी पहरेदार राष्ट्र के ,
निश्चित विजय हमारी है ।।
🏵🍀☀️🌸🌴🌺
🏵🍀**... रवीन्द्र वर्मा आगरा
मो0- 8532852618
@@@@@@@@@@@@@@@
11/5/19
जिम्मेदारी/दायित्व
💐💐💐💐💐
छंदमुक्त कविता
🌸🌸🌸🌸
नमन मंच।
नमन गुरुजनों, मित्रों।
🌹🌹🙏🙏
जिम्मेदारी।
ये शब्द बड़ा गंभीर है।
जितनी बड़ी जिम्मेदारी,
उतनी कड़ी मेहनत।
छोटी या बड़ी,
कोई नहीं होती है।
जिम्मेदारी तो,
आखिर जिम्मेदारी होती है।
मां बाप की जिम्मेदारी,
बच्चों के प्रति।
बच्चे की जिम्मेदारी,
मां बाप के प्रति।
हमारी जिम्मेदारी,
राष्ट्र के प्रति।
सभी जिम्मेदारियां,
हमें बहुत हीं अच्छे तरीके से,
निभानी पड़ती है।
जरा सी चूक हुई,
और हम नीचे गिरे।
लेकिन हम तो बच्चों की,
जिम्मेदारियां निभाते हैं अच्छे से।
पर बच्चे बड़े होकर,
अपने परिवार में फंसकर,
हमें बिल्कुल भूल जाते हैं।
अपनी जिम्मेदारियों से मुंह,
मोड़ लेते हैं।
राष्ट्र के प्रति हम अपनी,
जिम्मेदारी भूलकर,
राष्ट्र को हीं नीलाम,
कर बैठते हैं।
क्या यही है हमारी जिम्मेदारी?
क्या ऐसा हीं होना चाहिए?
उठो, जागरूक हो जाओ,
अपनी जिम्मेदारियों को समझो।
सभी जिम्मेदारियां ढंग से,
तरीके से पूरी करो।
तभी होगा सबोमें प्रेम,
परिवार में सद्भाव।
परिवार का विकास।
राष्ट्र का विकास।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
🌸🌸🌸🌸🌸
@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती
विषय-जिम्मेदारी/ दायित्व
1
जिम्मेदारी ले रहे, आतंकी जो खास।
जन संहार सतत करें, बिछा रहे हैं लाश।
जुड़कर धारा मुख्य से, दूर करें यदि दोष ---
सभी युवा लें प्रेरणा,हों नहिं कभी उदास।
2
दायित्व बोध सिमटता, तो सब कुछ बदहाल ।
एक काम क्या कर लिया, खूब बजाते गाल ।
संसाधन सीमित अगर, सोच करें उलयोग--
दुख बाँटे ,दुख कम हो, सुख बाँटें खुशहाल।
*******स्वरचित******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र)451551
@@@@@@@@@@@@@@@
कहांँ अंधेरों से दोस्ती की है।
जला के खुद को रोशनी की है।
नाहक हुए हो तुम यूं ही खफा।
मैंने तुमसे कब दिल्लगी की है।
जां से खेलना और क्या होगा।
मौत से हासिल जिन्दगी की है।
अब हो अन्जाम चाहे कुछ भी।
बेफिक्र हौ के खिदमती की है।
नेकनामी कहॉ होती मयस्सर।
मैने फर्ज की जो बन्दगी की है।
स्वरचित विपिन सोहल
@@@@@@@@@@@@@@@
1भा.11/5/2019/शनिवार
बिषयःःः #जिम्मेदारी/दायित्व#
विधाःःःकाव्यःःः
नहीं भूलें कभी उत्तरदायित्व प्रभु जी
क्यों कर कारण इस संसार में आया।
जन्म लिया भारतभूमि पर क्यों मैने,
अबतक भी मै कुछ समझ न पाया।
प्रेमाशीष मिला है मुझको उनका,
फैली सारे जगत में जिनकी माया।
सुख दुख जो हमको देते रहते हैं,
जिम्मेदारी देना ये इनकी काया।
जब तक दायित्व निभाते जाऐंगे।
सदा प्रगतिशील बनते ही जाऐंगे।
जीवन मिला कर्मशील बन जाऐं
स्वयं प्रफुल्लित होते ही जाऐंगे।
दुखद स्मृतियां सभी भुला कर
नित नव नूतन सृजन करें हम।
जो कुछ हैं उत्तरदायित्व हमारे,
समयानुसार निर्वहन करें हम।
स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
1भा#.जिम्मेदारी/दायित्व#
11/5/2019/शनिवार
@@@@@@@@@@@@@@@
सादर नमन मंच
11-05-2019
दायित्व
जैसे-जैसे बढ़ता गया
दायित्वों का भार
झुकती गयी कमर
कंधे भी हुये लाचार
एक दायित्व-बोध लिए
दिये की जैसे बाती
तिल-तिल जलकर
कुछ उजियारा लाती
फिर एक अलख
दायित्व-पूर्णता का प्रमाद
सुखांतककारी सिलसिला
क्षण भर का आह्लाद
श्रृंखला-बद्ध जिंदगी
पार्श्व में छल गयी
दायित्वों के साथ एक दिन
चुपके से निकल गयी
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों केमोती
11/05/19
विषय-जिम्मेदारी/दायित्व
विधा-हाइकु
1
देश सुरक्षा
सबकी 'जिम्मेदारी'-
सशक्त राष्ट्र
2
'दायित्व' होता
मतदान करना-
लोकतंत्र में
3
घर चलाना
परिवार 'दायित्व'-
अभिभावक
4
बच्चे पढ़ाना
माता-पिता 'दायित्व'-
जिन्दगी राह
5
सेवा करना
संतान का 'दायित्व:-
निज माँ पापा
6
कानून रक्षा
नागरिक' दायित्व'-
राष्ट्र विकास
7
साधु 'दायित्व'
सामाजिक उत्थान-
विश्व कल्याण
मनीष श्री
रायबरेली
स्वरचित
@@@@@@@@@@@@@@@
गुलशन को,
सब की जिम्मेदारी,
महकाना है।1।।
नन्हें गुलोंको,
जिलाने ,जिम्मेदारी,
माता पिता की।।2।।
राष्ट्र उत्थान,
सारे देशवासियों,
की,जिम्मेदारी।।3।।
निशुल्क शिक्षा,
हर बच्चों को देना,
सत्ता की जिम्मेदारी।।4।।
स्वरचित हाइकु मेरे,
हाइकु कार देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।।
@@@@@@@@@@@@@@@
भावों के मोती
11/05/19
विषय दायित्व
दायित्व सूरज का
रवि लाया एक नई किरण
संजोये जो, सपने हो पूरण
पा जाऐं सच में नवजीवन
उत्साह की सुनहरी धूप का उजास
भर दे सबके जीवन में उल्लास ।
दायित्व दीपक का
साँझ ढले श्यामल चादर
जब लगे ओढ़ने विश्व!
नन्हें नन्हें दीप जला कर
प्रकाश बिखेरो चहुँ ओर
हो आलोक, हरे हर तिमिर ।
दायित्व सज्ञानी मन का
त्याग अज्ञान का मलीन आवरण
पहन ज्ञान का पावन परिधान
मानवता भाव रख अचल
मन में रह सचेत प्रतिपल
सह अस्तित्व ,समन्वय ,समता ,
क्षमा ,सजगता और परहितता
हो रोम रोम में संचालन
हर प्राणी पाये सुख,आनंद
बोद्धित्व का हो घनानंद।
दायित्व मनुष्यता का
लोभ मोह जैसे अरि को हरा
दे ,जीवन को समतल धरा
बाह्य दीप मालाओं के संग
प्रदीप्त हो दीप मन अंतरंग
जीवन में जगमग ज्योत जले
धर्म ध्वजा सुरभित अंतर मन
जीव दया का पहन के वसन।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
भावों के मोती
दिनांक 11.05.2019
विधा : कविता
विषय: दायित्व
दुःख
होता है बहुत
जब
लगा देता है कोई
प्रश्नचिह्न
सिरे से खारिज
कर देता है
दायित्व निर्वहन के प्रति
किए गये
तमाम प्रयास
परिश्रम
सहयोग
व समर्पण की
भावना को
आलोचना के लिये ही
होती है आलोचना
उस वक्त
उत्पन्न हो जाता है
आक्रोश
नकारात्मकता
होने लगती है हावी
व्यथित हो उठता है
मन
शिथिल सा होने लगता है
जीवन
पर
अगले ही पल
स्मरण हो उठते हैं
सकारात्मक सोच वाले
सैंकड़ों
प्रेरक प्रसंग
कविताएँ
कहानियां
संस्मरण
और
तब
व्यक्ति
पुनः आरम्भ
कर देता है
इक नई ऊर्जा
व उत्साह से
अपने
दायित्व का निर्वहन
-- हरीश सेठी 'झिलमिल'
सिरसा
( स्वरचित)
@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती,
आज का विषय, जिम्मेदारी, दायित्व,
दिन, शनिवार,
दिनांक, 11,5,2019,
घर परिवार समाज राष्ट्र और मानवता,
इनके प्रति हैं सभी के दायित्व कई ।
अगर निभायें हम इनको अपने दिल से,
फिर चिंता की रह जाती नहीं बात कोई ।
स्वस्थ व विकसित राष्ट्र रहे अपना भारत,
हिंसा लूटपाट की वारदात न हो यहाँ कोई।
सम्मानित हो नारी अपमान न हो उसका कहीं,
बलात्कार सी शर्मनाक घटनायें भी न हों कहीं ।
राम राज्य हो जाये हकीकत में फिर यहाँ पर,।
अब ये कहने की तो है कोई झूठी बात नहीं।
कुछ स्वार्थी तत्वों ने जिम्मेदारी से मुँह मोड़ लिया।
करके मनमानी सारे ही सिस्टम को बदनाम किया।
अगर जिम्मेदारी न समझते यहाँ कुछ अच्छे लोग,
कब का अपना देश रसातल में पहुँच गया होता।
फिर शायद नाम बडा़ न रह पाता भारत का ,
इतिहासों के पन्नों से इसे कब का मिटा दिया होता।
हम निभाते रहें सदा ही अपने सब दायित्वों को,
शान से उठाते रहे अपने कंधों की जिम्मेदारी को।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
@@@@@@@@@@@@@@@
नमन "भावो के मोती"
11/05/2019
"जिम्मेदारी/दायित्व"
लघु कविता
################
दीया जलता रहा...
अंधेरों को मिटाने की खातिर.
दायित्व अपना निभाता रहा..
फिर भी.......
अंधकार मन का .....
कहाँ दूर हुआ......!!
गुलाब मुस्कुराता रहा..
प्रीत के रंग़ों से .....
महकता रहा....
काँटों के संग रहकर भी
जिम्मेदारियों को निभाता रहा
फिर भी....
नफरतों की दीवारें...
ऊँची होती रही.....!!
कोयल मीठी गाती रही..
मन के टीस को ...
गुनगुनाती रही ....
प्रेममय वातावरण ..
रखने की खातिर..
अपने गीतों से.....
जिम्मेदारी निभाती रही..
फिर भी.......
मन से घृणा न गया...!!
चाँद जलकर भी...
चाँदनी से धरा को...
शीतल करता रहा..
शीतल शांत धरा को..
रखने का दायित्व ..
निभाता रहा....
फिर भी.....
उग्रता क्यों बरकरार रहा..!!
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
@@@@@@@@@@@@@@@
नमन
भावों के मोती
११/५/२०१९
विषय-दायित्व/जिम्मेदारी
बन कर्मण्य
निभा दायित्व
चुका ऋण
माता-पिता का।
जिन्होंने दिया जन्म
पाला-पोसा
तुझे एक समर्थ इंसान बनाया।
चुका ऋण
इस मातृभूमि का।
जिसने तुझे
जीने के संसाधन दिए
पहचान दी।
कर सेवा
परिवार,समाज,देश की।
जिनसे ही तेरा
अस्तित्व बना।
निभा दायित्व
बन सफल मानव
कर कल्याण मनुष्यता का।
देख तेरी लापरवाही
न पड़ जाए भारी
तेरी उन्नति से
होता है राष्ट्र उन्नत।
पहचान अपना दायित्व
कर कर्म ऐसा
निभा मनुज धर्म
हो जीवन उद्देश्य पूर्ण।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
@@@@@@@@@@@@@@@
भावों के मोती
जिम्मेदारी/ दायित्व
हक के प्रति सचेत हैं सभी
जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रहे।
आज अपने ही अपनों से,
बस इसलिए मुंह मोड़ रहे।।
मात-पिता, भाई-बहन से दूर
अपनी दुनिया नयी सजा रहे।
सिर्फ पत्नी बच्चों तक सीमित
जिसे अपना परिवार बता रहे।।
स्वरचित
निलम अग्रवाल, खड़कपुर
@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती
दिनाँक-11/05/2019
शीर्षक-दायित्व , जिम्मेदारी
विधा-हाइकु
1.
वोट डालना
जिम्मेदारी सबकी
नेता चुनना
2.
बेटी पढाना
जिम्मेदारी हमारी
बेटी बचाना
3.
वृक्ष लगाना
हरियाली बढाना
नेक दायित्व
4.
निभा दायित्व
भारत माँ की सेवा
चुकाया कर्ज़
5.
रिश्ते बनाना
जिम्मेदारी सबकी
लाज बचाना
6.
राष्ट्र सुरक्षा
जिम्मेदारी है बड़ी
सेना के नाम
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
@@@@@@@@@@@@@@@
नमन "भावों के मोती"
विषय - दायित्व/ जिम्मेदारी
11/05/19
शनिवार
मुक्तक
मात-पिता की अथक तपस्या तभी रंग ला पाती है।
जब उसकी संतान योग्य बन निज दायित्व निभाती है।
मन समुचित संतोष प्राप्त कर हर्षित होने लगता है -
उनके जीवन में खुशियों की नयी लहर छा जाती है।
जो अपने सुख की चिंता तज निज दायित्व निभाते हैं,
उनको जीवन में ईश्वर से शुभाशीष मिल जाते हैं।
अपने सत्कर्मों के बल से वे सराहना पाते हैं ,
और लक्ष्य हासिल करके वे जीवन सुखद बनाते हैं।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
@@@@@@@@@@@@@@@
II दायित्व...II नमन भावों के मोती....
मुझे तो रुकना है.........
रुक जा तू ए वक़्त मुझे तो अभी न मरना है....
बहुत हैं दायित्व जिन्हे अभी पूरा करना है.....
बेटी ने कॉलेज की पढ़ाई अभी तो पूरी की है...
रुक जा थोड़ी देर अभी उसे डॉक्टर बनना है...
मोहल्ले में पानी की समस्या है बहुत ही भारी....
एक माह तो रोज़ हमें अभी करना धरना है....
राज़ की बात मेरी धीरे से कान में तुम ये सुन लो...
अगले साल वेतन बढ़ने पर एरियर मुझे मिलना है....
दुश्मन पडोसी आँखों में मेरी रोज़ ही चुभता है...
उस से पहले मुझ को तो हर हाल न मरना है....
तुम तो चलते रहते हो बिन मतलब के ए वक़्त....
अभी पड़े मेरे काम बहुतेरे, मुझे तो रुकना है....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
११.०५.२०१९
@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच-भावों के मोती
दि०-11.05.2019
विषय-जिम्मेदारी/दायित्व
विधा-रचना(शब्द प्रवाह )
संबोधन-प्रेमिका के प्रति🌹🌹✔
==================
मेरी सुमुखे ! मत हो अधीर
भर नयनों में किंचित न नीर
यह प्रणय पर्व की परिपाटी
पग तल से ढह जाती माटी
टूटे -टूटे से स्वप्न मोद
प्रस्फुटित भले विकराल क्रोध
मन में दुर्भाव तुझे रहता
मरमान्तक खेद नहीं सहता
कैसी गरिमा न रही उपमा
मन का मदमत्त न वेग थमा
फिर कहो प्रणय की पूँजी क्या
जब बात नहीं कुछ बूझी क्या
तुमसे कब खिन्न हुआ जाता
नैराश्य नहीं पलभर जाता
यह जिम्मेदारी भान कहीं
मर्यादा का अपमान नहीं
तुम आँच न मुझ तक आने दो
जाती है प्रतिष्ठा जाने दो
प्रिय मुझे कहा मत और कहो
पर रहो निडर निर्भीक बहो
यह जीवन एक नदी सम है
तरणी गर डूबे क्या ग़म है
मेरा दायित्व वफ़ा करना
क्या जवाबदेही से डरना ।।
==================
" अ़क्स " दौनेरिया
@@@@@@@@@@@@@@@
"नमन भावों के मोती"
11 /05 /19 --शनिवार
आज का शीर्षक-- "जिम्मेदारी/दायित्व"
=================================
सम्मानों की परवाह नहीं,.. . कर्तव्य में खोये रहते हैं,
काँटों को बीन-बीन वो तो,..... . फूलों को बोये रहते हैं,
महानता की पहचान यही,बस कर्तव्यों का ध्यान उन्हें ,
सूरज तब भी उग जाते हैं ,... जब कितने सोये रहते हैं।
===================================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
(स्वरचित)
एटा यूपी
@@@@@@@@@@@@@@@
शुभ संध्या
विषय-- ''जिम्मेदारी"
द्वितीय प्रस्तुति
जिम्मेदार नागरिक होता है
देश की पूँजी देश की शान ।
हर एक नागरिक को हो
अपने कर्तव्यों का ज्ञान ।
त्याग समर्पण औ सदभाव
जैसे गुण का करे वो मान
क्यों नही देश तरक्की करे
छुये तरक्की के नये सोपान ।
बचपन से हो बच्चों में आदत
संस्कार मिलें पढ़ाई दरम्यान ।
चिड़िया बच्चों को सिखाये
बचपन से भरना ऊँची उड़ान ।
कठोर दिल करके छोड़ देय
वो वहाँ जहाँ हो आँधी तूफान ।
होते हर गुण आदत में शुमार
समझना 'शिवम'न रहना अन्जान ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 11/05/2019
@@@@@@@@@@@@@@@
भावों के मोती
11/05/2019
शीर्षक-दायित्व /जिम्मेदारी
विधा हाइकु
द्वितीय प्रस्तुति
दायित्व निभा
मिलेंगे अधिकार
निश्चय जान।
जागरूकता
अच्छे नागरिक का
दायित्व सदा।
देश उद्धार
निरक्षर को ज्ञान
दायित्व बड़ा।
पीड़ा हर लो
नैतिक जिम्मेदारी
असहाय की।
बिना समझ
कैसे दायित्व पूरे
रहे अधूरे।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच को
दिन :- शनिवार
दिनांक :- 11/05/2019
विषय :- दायित्व/जिम्मेदारी
आओ हम अपना दायित्व निभाएं..
अपने लोकतंत्र को मजबूत बनाएं..
बनाएं हम एक भारत श्रेष्ठ भारत..
देकर वोट हम अपना फर्ज निभाएं..
बनाकर एक सशक्त सरकार देश में..
फिर विश्व पटल पर पहचान बनाएं..
हम अपने निजी स्वार्थ को त्यागकर..
राष्ट्रहित में अपना दायित्व निभाएं..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
@@@@@@@@@@@@@@@
शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
11/05/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"जिम्मेदारी/दायित्व"
(1)
मासूम छोटा
जिम्मेदारी बनाये
उम्र से बड़ा
(2)
कर्तव्य घर
जिम्मेदारी की किश्तें
जीवन भर
(3)
स्वच्छ हो तंत्र
जिम्मेदारी सभी की
एकता मंत्र
(4)
ढूँढ़ते ख़ुशी
निभाते जिम्मेदारी
उम्र निकली
(5)
काँटो की कुर्सी
जिम्मेदारी का ताज
योग्य जाँबाज
(6)
आश्रम में माँ
दायित्व चढ़े सूली
स्वार्थी संतान
स्वरचित
ऋतुराज दवे
@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती
विषय -जिम्मेदारी,दायित्व
दिनांक-11-5-1019
वार-शनिवार
#रेगिस्तान#
#लघु कथा#
सीता और शीला दोनों सखियां मिल कर पढ़ाई कर रही थी। थोड़ी बहुत बतिया भी लेती थी। दोनों टीचर थी। दोनों के अपने अपने जीवन थे। इतिहास पर चर्चा चल रही थी तभी शीला ने कहा "सीता तू कभी रेगिस्तान की तरफ गई है ? सीता ने कहा "नहीं" पर सुना है वहां बहुत गर्म हवाएं चलती है। तभी शीला ने बोलना शुरू किया " हां गर्म हवाएं ,रेती की फिसलन , यहां तक की इंसान रेती के पहाड़ों में दब भी सकता है। दूर दूर तक पानी के लिए भागते लोग , ऊंट की सवारी वरना रेती में चलना भारी , कुटुंब कबीले, काम के लिए तरसते लोग, सच ये सब देखना तो दूर मैं तो सुनकर ही घबरा जाती हूं। तो वहां लोग कैसे जीते होंगे " इतना बोल उसने सीता को देखा जो किसी ओर ही विचारों में खोई थी। शीला ने सीता को झकझोरते हुए कहा "तू कुछ सुन भी रही है मैं क्या बात कर रही हूं?
तभी सीता ने कहा " हां मेने सुना , रेगिस्तान के लोग मेरी तरह जिंदगी जीते होंगे " शीला ने कहा ये तू क्या कह रही है?
तब सीता ने बताया " जब से सुदेश अपनी जवाबदारी "मुझे और बच्चों को " छोड़कर गया है ,हम रेगिस्तान का जीवन ही जी रहे हैं, मुसीबतों की गर्म हवाएं , रिश्तेदारों के ताने-बाने ,जैसे रेती के पहाड़ बन गए , घर खर्च के लिए दूर-दूर तक दोड़ना ,मानो रेगिस्तान में पानी ढूंढ़ना , अकेले ही जिंदगी जीना , जैसे कुटुंब कबीले से बिछड़ जाने जैसा लगता है।
अब तू ही बता शीला कि जिस रेगिस्तान की तू बात करते ही घबरा जाती है ,वो रेगिस्तान तो अभी मेरा ओर मेरी बेटी का जीवन बना हुआ है "ईश्वर करे ये रेगिस्तान किसीको न मिलें।
हर इंसान अपना दायित्व सही से निभाए । कभी किसीके जीवन में कोई सुदेश ना आए।
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
@@@@@@@@@@@@@@@
निज दायित्व
शूल के पथ निभा
खिले सुमन !!
पथ सुमन
जिम्मेदारी को निभा
खिले चमन !!
कर्तव्य पथ
हार, जीत ना देख
दायित्व निभा !!
© रामेश्वर बंग
@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच को
विषय - जिम्मेदारी/दायित्व
दिनांक : 11/05/2019
जिम्मेदारी/दायित्व
दिन रात चलना
निरन्तर बढ़ना
परिवार के पोषण के लिए
भविष्य रौशन के लिए
नित्य नये रोष से
जिम्मेदारीओ के बोझ से
थक कर जाता हाफँ हूँ
मैँ रोकर किसे दिखाउँ
मैँ तो आखिर बाप हूँ।
कभी इसके लिए
कभी उसके लिए
बस दिन रात ही मैं घुमता हूँ
कोई न जाने
मैं भी किसी बहाने
बस थोड़ा सा सुकून ढूँढता हूँ
मैँ ही सवाल ओर
मैं ही जवाब हुं
मैँ रोकर किसे दिखाउँ
मैँ तो आखिर बाप हूँ।
कभी आभावों से
टूटे ख्वाबों से
अपनों से ही लड़ता रहूं
उनके कल के लिए
होते छल के लिए
औरो से अक्सर झगड़ता रहूं
जिम्मेदारियों से भरी
पुर्ण किताब हूं
मैँ रोकर किसे दिखाउँ
मैँ तो आखिर बाप हूँ।
सारी ही ऊम्र
एक मुठ्ठी में भर
परिवार को मैं जोड़ता रहूं
बिखरे ना अपनें
टूटें ना सपने
निरंतर हीं मैं दौड़ता रहूं
थक कर भी आह नहीं करता
आखिर मर्द जात हुं
मैँ रोकर किसे दिखाउँ
मैँ तो आखिर बाप हूँ।
मुझे मेरा अंत पता है
मेरी वही तो जगह है
घर के किसी फालतू कोने में
वों नहीं आएंगे
सब भूल जाएंगे
सोता न था मैं कभी जिनके रोने में
दर्द ओर दायित्वों का
बस जिंदा हिसाब हूं
मैँ रोकर किसे दिखाउँ
मैँ तो आखिर बाप हूँ।
मैँ तो आखिर बाप हूँ।
जय हिंद
स्वरचित राम किशोर पंजाब
@@@@@@@@@@@@@@@
नमन : भावों के मोती
दिनाँक-11/05/2019
शीर्षक-दायित्व /जिम्मेदारी
*
अपना दायित्व निभाते जो।
काँटों में भी , मुस्काते जो।
अमरत्व उन्हीं से संशोभित,
धरती को स्वर्ग, बनाते जो।।
आहों को बाँहों में गहते।
असहायों हित दुर्दिन सहते।
अपने हिस्से का कुछ देकर,
औरों को आनंदित रहते।।
-स्वरचितःडा.'शितिकंठ'
@@@@@@@@@@@@@@@
भावों के मोती दिनांक 11/5/19
दायित्व/ जिम्मेदारी
है कैसी विडम्बना
जिन्दगी की
न कभी चैन न आराम
घिरा रहता है आदमी
जिन्दगीभर जिम्मेदारियों से
है हर प्राणी का
दायित्व करे
पालन पोषण
परिवार का
भागते दौड़ते
उम्र गुजर जाती है
बुढ़ापे में बस सुकून
चाहता है इन्सान
अगर नकारा
निकल जाए औलाद
टीस उठती रहती है
जिन्दगी में ताउम्र
रखें अपने
कंधे मजबूत
हिम्मत न छोड़े
वरिष्ठ जन
गर न मिले साथ
किसी का
अकेले ही चलें
राह जिन्दगी की
नहीं हो कोई
ऐसे हालात
समझदारी से
निपट जाए
जीवन की
जिम्मेदारी सारी
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
@@@@@@@@@@@@@@@
सादर नमन
जिम्मेदारी/ दायित्व
लगा मेहंदी हाथों में,
कर कुमकुम से श्रंगार,
ले फेरे साजन संग,
बाबुल की दहलीज की पार,
निभाई जिम्मेदारी पिता ने,
कर बेटी का कन्यादान,
माँ की सीख यही बेटी को,
मान पर ना आने देना आन,
अपने जीवन सफर में,
दायित्व की सीढ़ी पर,
ना ड़गमगा जाएँ तेरे कदम,
हौंसलों से भरी हो तेरी ड़गर,
तेरे कधों पर है दायित्व ,
ना समझना इसे तू बोझ,
करेगी सम्मान बड़ों का,
पाएगी आशीष हर रोज।
*****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
11/5/19
शनिवार
@@@@@@@@@@@@@@@
तिथि - ग्यारह/पांच/उन्नीस
विधा - छंद मुक्त
विषय - जिम्मेदारी/ दायित्व
मैं एक लड़की हूँ
हां मैं लड़की हूँ
कर्तव्य बोझ तले दबी
जो अनभिज्ञ है
अधिकार शब्द से
झोली में डाले गए हैं उसकी
केवल कर्तव्य
जिम्मेदारी और दायित्व
बचपन से बुढापे तक
सुबह जागने से
रात को सोने तक
स्वस्थ हो या बीमार
देखती संसार
बहु हो या बेटी
बहिनी हो या भगिनी
माँ हो या भाभी
अनेक रिश्तों में बंधी मैं
तोड़ न सकी
दायित्व की जंजीरें
जो बांध दी
परिवार और समाज ने
मेरे मन और तन पर
छटपटाती हूँ
जब मुझ पर
तरजीह दी जाती है भाई को
ब्याह दी जाती हूँ
कच्ची कली सी
रोप दी जाती हूँ
नए आँगन में
कभी पशु चराती
दूध दोहती
खेतों में काम करती
समाज और परिवार का
दायित्व ढोते
नाजुक तन और मन से
बूढ़ी हो जाती
और हो जाती असमय
काल कवलित
जी हूँ मैं
जिम्मेदारी निभाती
एक लड़की
सरिता गर्ग
स्व रचित
@@@@@@@@@@@@@@@
शीर्षक- कवि की जिम्मेदारी
विधा-गीतिका
हाथ में लेकर कलम हम,नव सृजन करते चले|
शब्द की तलवार लेकर,दोष सब हरते चले|
हम शिवालिक के पहाड़ो की अमर संतान है|
हम बहै निर्झर-निरंतर,तो कलम का मान है||
आह निकले गर किसी की,तो कलम रोती रहै|
हो खुशी के पल अनोखे,तो कलम अपनी हंसे|
युद्ध का त्योहार हो तो,जोश स्याहीं में दिखे|
शब्द बारुदी भंवर हो,छंद बाणो से लगे||
सत्य के रक्षक बने हम,वीरता गढ़ते चले|
कृष्ण बनकर अर्जुनो को,रोज हम गीता कहै|
सत्य युग के राम लक्ष्मन,की कथा सबसे कहै|
और इस युग के चलो हम,राम को गढ़ते चले||
दोष हमको भी लगेगा,सत्य जो कह ना सके|
झूठ और अन्याय अपनी,आंख को गर ना दिखे|
ये कलम बदनाम ना हो,वो सृजन तुम सीख लो|
चापलूसी कर प्रशंसा, की कभी ना भीख लो||
आग शब्दो से लगा दो,सुर्य हो तुम आज के|
बादलों को तुम बुला लो,जो कलम थोड़ी झुके|
रंक को राजा बना दो,तुम दया का सार हो|
सत्य कहने के लिए ही,तुम नया अवतार हो||
सुरेशजजावरा सरल
स्वरचित मौलिक
@@@@@@@@@@@@@@@
No comments:
Post a Comment