दिनांक, 4, 7, 2019,
हाथ उठाकर पूछे एक बेवश ,
तकदीर मेरी मुझको बता,
मेरा गुनाह क्या है ।
जीवन मेरा क्यों इतना दुरूह,
हर इक दिन अपना क्यों ,
चुनौतियों भरा है ।
अभाव हैं क्यों इतने अधिक ,
जूझते जूझते ही क्यों मेरे ,
सपनों का महल ढहा है ।
होती बेकार क्यों अपनी मेहनत ,
अधूरी ही रहीं ख्वाहिशें मेरीं ,
पसीना भी बहा है ।
बस ईमान ही है अपनी अमानत,
न जाने फिर भी क्यों जमाना,
हमें दुत्कार रहा है ।
यहाँ पर कर रहा है जो गुनाह ,
क्यों शान से वो आखिर ,
दुनियाँ में जी रहा है ।
रहे हैं क्यों परेशान हम ही बेवश ,
खबर ही नहीं है उनको,
नहीं अपने गुनाह का पता है ।
कभी तो कुछ बोलें मेरे मालिक ,
दुनियाँ में क्यों अन्याय का,
ये सिलसिला चला है ।
हम पर भी जो हो जाये करम ,
चल जाये पता हमको भी,
धरती को क्यों जन्नत कहा है ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
हाथ उठाकर पूछे एक बेवश ,
तकदीर मेरी मुझको बता,
मेरा गुनाह क्या है ।
जीवन मेरा क्यों इतना दुरूह,
हर इक दिन अपना क्यों ,
चुनौतियों भरा है ।
अभाव हैं क्यों इतने अधिक ,
जूझते जूझते ही क्यों मेरे ,
सपनों का महल ढहा है ।
होती बेकार क्यों अपनी मेहनत ,
अधूरी ही रहीं ख्वाहिशें मेरीं ,
पसीना भी बहा है ।
बस ईमान ही है अपनी अमानत,
न जाने फिर भी क्यों जमाना,
हमें दुत्कार रहा है ।
यहाँ पर कर रहा है जो गुनाह ,
क्यों शान से वो आखिर ,
दुनियाँ में जी रहा है ।
रहे हैं क्यों परेशान हम ही बेवश ,
खबर ही नहीं है उनको,
नहीं अपने गुनाह का पता है ।
कभी तो कुछ बोलें मेरे मालिक ,
दुनियाँ में क्यों अन्याय का,
ये सिलसिला चला है ।
हम पर भी जो हो जाये करम ,
चल जाये पता हमको भी,
धरती को क्यों जन्नत कहा है ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
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नहीं हसी ठिठोली जीवन अपना , होता है ये तो एक संग्राम |
रैन दिवस बस यही मन में चलता , हो न जाये कहीं अपमान |
यहाँ रोज दिखावा चला ही करता , मिलता मन को नहीं आराम |
हर कोई यहाँ पर इतना ही चाहता , कभी भी घटे न उसका मान |
जब काम क्रोध मद लोभ न छूटता , तब होना ही है गलत काम |
स्वाभिमान से जो जीता रहता , वही वस रख पाता अपना मान |
जो मौका मतलब मक्कारी जपता , उसका कभी रह न पाता मान |
सम्मान उसी का है जग में रहता , जो खुद औरों का रखता मान |
अब आया नया जमाना नयी सोच का , रहता दिखावे में ही ध्यान |
काम निकालकर आगे बढ़ने का , अब इसी मंत्र की है पहचान |
अब भला बुरा कुछ भी नहीं होता , बस काम चलाना ही है शान |
मानव तो नेता या अभिनेता होता , रहा मान का भला क्या काम |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश .
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छोटी सी होती है जेब ये लेकिन , इसकी गाथा बृहद् और विशाल है |
इस दुनियाँ का हर एक जीने वाला , इस अदुभुत सी शक्ति का गुलाम है |
होती जिसकी जेब है भारी बस समझो , उसके ही सपनों का संसार है |
आकर्षित रहती है सारी दुनियाँ , हर पल ख्वाबों पर छाया हुआ खुमार है |
जिसकी जेब में छेद बना है , वह इस जग में अपनों के लिऐ बेकार है |
उसको हरिश्चन्द्र का नाती कहते ,सबके लिऐ वह मूर्खों का अवतार है |
यहाँ बजन नहीं होता जिसकी जेब में , दुनियाँ में कहलाता वह नाकाम है |
कहीं पर कदम चूमती सरस्वती उसके ,कहीं इन्सानियत उसकी गुलाम है |
आखिर सुखी कौन है इस दुनियाँ में , यह चर्चा हमेशा जवाब से अनजान है |
सुख की तलाश में जेबों बाले ही , रहते आये अक्सर ही परेशान हैं |
मेहनत कर के रोज कमाकर खाने वाले , हमेशा ही बने रहे नादान हैं |
चाहत , रुआब , राजनीति और रिश्ते , करें भावना को घायल जेब ही शैतान है |
जग में कहीं सत्कर्मो की बात न चलती , सब यहाँ जेब भरने को परेशान हैं |
कुछ अपनों का प्यार कुछ अच्छे विचार , चले जो जेब में डाल वही धनवान है |
चलें मंजिल की ओर आये जब जीवन का छोर , हमारा शेष रहे न कोई गुमान है |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्थप्रदेश
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दिनांक, 2,7,2019,
माँगने से भीख नहीं मिलती ,
कोशिश से ही मिलते हैं मोती ।
हो दायित्वों के पालन में कभी,
अधिकारों की बात नहीं होती ।
व्यवस्थित समाज के लिए कभी,
मर्यादाएं हो सकतीं गलत नहीं ।
ये तो पालन कर्ता की है मर्जी ,
वो अराजक बने या सभ्य शहरी।
नियमों में समाहित जीवन सुखी,
कर्तव्य व अधिकार होते हैं सभी।
जब से हो गये हम सब मतलबी,
शासन करने की नीयत है जागी ।
निर्बल दीन दुखियों के कारण ही ,
अधिकारों की बात चली आयी।
हद हो जाये जब निरंकुशता की,
तब चलती नहीं है अधिकारों की।
सजगता हो अगर अधिकारों की,
करनी पड़ती है कोशिश पाने की।
इच्छा हो जब कर्तव्य निर्वहन की,
हम बात करें तब अधिकारों की ।
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आज का विषय, वजह ,
दिन, सोमवार,
दिनांक, 1, 7, 2019,
वजह छुपी थी मन के अंदर ,
ढूँढ रहे थे वे घर बाहर ।
खिलखिलाना गुम है बच्चों का,
गुमसुम गुमसुम से वृध्द हमारे ।
बैठक घर की बंद पड़ी है ,
सूने सूने से छत और द्वारे ।
मदद नहीं माँगते हैं पड़ोसी ,
हों चाहें वे विपदा के मारे ।
तीर नैनों के मोबाइल में डूबे ,
तरस रहे हैं दिल के मारे ।
राष्ट्र समाज की बात फिजूल है,
यहाँ हैं सब सपनों से हारे ।
बड़ी बड़ी सौगातें लेकर के ,
पहुँच रहे हैं भगवान के द्वारे ।
समय परिवर्तन क्यों और कैसे,
वजह जानते जानने वाले ।
पहले आप का चक्कर चलता,
हम दोषी नहीं हैं बेचारे ।
पर्दा स्वार्थ का हटा के देखो ,
कष्ट निवारण होंगे सारे ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
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30,6,2019
खारा पानी आँख का, देता इतनी सीख ।
जो देखा वो झूठ था, समझ रहा वो ठीक।।
सच्चा झूठा कुछ नहीं, जो कहना है बोल ।
रहना सब कुछ है यहीं, बातें अपनीं तौल ।।
दुनियाँ एक सराय है ,कटते हैं दिन रैन ।
जाना अपने देश है, फिर काहे बैचैन ।।
सोना चाँदी के लिये, हर कोई हैरान ।
नेह प्याला हम पियें, मन का कहना मान ।।
जीवन वृक्षों का भला, देते हैं संदेश ।
जादू सेवा का चला, देना मत उपदेश।।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
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आज का विषय, फासले, दूरी
दिन, शनिवार
दिनांक, 29,6,2019,
नजदीक हैं हम कितने,
पर एहसास की है दूरी ।
कुछ तेरी भी मजबूरी,
कुछ मेरी भी मजबूरी ।
दुनियाँ है जो मेरे ख्वाबों की,
तेरे ख्वाबों को नहीं भाती ।
जल जायेगी चाहे रस्सी,
रहेगी फितरत से मगर अकड़ी ।
तबियत इंसान की कुछ ऐसी ,
नहीं मिटती है अंहम की हस्ती ।
रिश्तों में खींचीं हैं लकीरें इतनी,
दिल की जमीं दिखे है धुंधली ।
यूँ तो साथ चलें आकाश धरती,
पर मिलने की तदवीर नहीं होती ।
दिल और दिमाग में रही दूरी,
ख्वाहिश दिल की रही अधूरी ।
जो आत्मा परमात्मा की मिटे दूरी,
मिट जायेगी हमारे बीच की हर दूरी ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
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आज का विषय, परिवर्तन
दिन, गुरुवार
दिनांक, 2 7,6,2019,
परिवर्तन प्रकृति का स्वाभाविक है,
नहीं योगदान कुछ मानव का।
आज प्रकृति का दोषी मानव है,
कब परिवर्तन होगा इस स्वभाव का ।
बंजर होती धरती घटते जंगल हैं,
समापन हो रहा है अब जल का ।
ये परिवर्तन क्या प्रकृति का है,
या परिवर्तन है मानव मन का।
रिश्तों को देती प्रकृति बराबर है,
हमें ही भान नहीं अब रिश्तों का।
ईश्वर ने सबको वस्त्र हीन भेजा है,
षड्यंत्र हमारा ही अमीर गरीब का ।
इनसे अलग हुआ जो परिवर्तन है ,
उससे विकास हुआ है मानवता का ।
असर दिखता ये परिवर्तन का है,
मिला तौहफा हमें आजादी का ।
घट रहा अज्ञानता का अंधेरा है,
घर घर में प्रकाश है शिक्षा का ।
संसार नारी का पहले से बदला है,
अवतरण नया है कोमलांगी का ।
स्वरूप जाति धर्म का बदला है ,
ढाँचा बदल गया है समाज का ।
पाबंदी युध्दों पर कुछ हद तक है,
रोकथाम हुई है पाशविकता पर ।
ये सब परिवर्तन की ही बातें हैं,
अच्छाई के संग अस्तित्व बुराई का ।
परिवर्तन मानव मन का जरूरी है,
खुलेगा द्वार तभी तो विकास का ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
दिन, गुरुवार
दिनांक, 2 7,6,2019,
परिवर्तन प्रकृति का स्वाभाविक है,
नहीं योगदान कुछ मानव का।
आज प्रकृति का दोषी मानव है,
कब परिवर्तन होगा इस स्वभाव का ।
बंजर होती धरती घटते जंगल हैं,
समापन हो रहा है अब जल का ।
ये परिवर्तन क्या प्रकृति का है,
या परिवर्तन है मानव मन का।
रिश्तों को देती प्रकृति बराबर है,
हमें ही भान नहीं अब रिश्तों का।
ईश्वर ने सबको वस्त्र हीन भेजा है,
षड्यंत्र हमारा ही अमीर गरीब का ।
इनसे अलग हुआ जो परिवर्तन है ,
उससे विकास हुआ है मानवता का ।
असर दिखता ये परिवर्तन का है,
मिला तौहफा हमें आजादी का ।
घट रहा अज्ञानता का अंधेरा है,
घर घर में प्रकाश है शिक्षा का ।
संसार नारी का पहले से बदला है,
अवतरण नया है कोमलांगी का ।
स्वरूप जाति धर्म का बदला है ,
ढाँचा बदल गया है समाज का ।
पाबंदी युध्दों पर कुछ हद तक है,
रोकथाम हुई है पाशविकता पर ।
ये सब परिवर्तन की ही बातें हैं,
अच्छाई के संग अस्तित्व बुराई का ।
परिवर्तन मानव मन का जरूरी है,
खुलेगा द्वार तभी तो विकास का ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
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इन्द्रधनुष के रंगों जैसी, है रंग बिरंगी दुनियाँ ।
तरह तरह के रंगों की होतीं हैं सबकी खुशियाँ ।
अलग अलग रंग होता है सबके ही ख्वावों का,
इन्द्रधनुषी रंग नहीं सबके ख्वावों को है मिलता ।
लाचारी भूख, गरीबी, बीमारी और अपमान का,
सबके जीवन में रंग ज्यादा ही हमको है दिखता ।
जीवन इंद्रधनुष सा सतरंगी हो यहाँ जन जन का,
कोशिश सबकी हो ऐसी ही प्रयास हो यही हम सबका ।
अस्त न हों सपनें किसी के आंसूसे मेल न हो आँखों का,
खुश रहने का अधिकार हो अब हर इक बच्चे का ।
इंद्रधनुष पर हक न हो अब सिर्फ आसमान का ,
इंद्रधनुष भी वासी बन जाय अब इस धरती का।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
तरह तरह के रंगों की होतीं हैं सबकी खुशियाँ ।
अलग अलग रंग होता है सबके ही ख्वावों का,
इन्द्रधनुषी रंग नहीं सबके ख्वावों को है मिलता ।
लाचारी भूख, गरीबी, बीमारी और अपमान का,
सबके जीवन में रंग ज्यादा ही हमको है दिखता ।
जीवन इंद्रधनुष सा सतरंगी हो यहाँ जन जन का,
कोशिश सबकी हो ऐसी ही प्रयास हो यही हम सबका ।
अस्त न हों सपनें किसी के आंसूसे मेल न हो आँखों का,
खुश रहने का अधिकार हो अब हर इक बच्चे का ।
इंद्रधनुष पर हक न हो अब सिर्फ आसमान का ,
इंद्रधनुष भी वासी बन जाय अब इस धरती का।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
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नमन भावों के मोती
आज का विषय, मोबाइल
दिन, मंगलवार
दिनांक, 2 5,6,2019,
मोबाइल हमारा हमको तो लगता है सबसे प्यारा ।
जब फुरसत हो मोबाइल से अपना वक्त गुजारो।
नई नई खबरों के संग संग मनोरंजन भी पाओ ।
हुनर सीखने के कितने ही कालम इसमें पाओ।
प्यार अगर हो हिंदी भाषा से कागज कलम उठाओ ।
साहित्यिक अभिरुचि के समूह में शामिल होते जाओ।
पंख लगाकर भावनाओं के कल्पनाओं को सजाओ।
दायरा अपने मित्रों का कितना ही विस्तृत करते जाओ।
समझ मगर अपनी सदैव ही तुम जीवंत बनाओ।
गुण अवगुण मौजूद सब जगह गुणों को अपनाओ ।
दूर नहीं लगे कोई अपना वीडियो काल से सुख पाओ ।
कम से कम कीमत में अकेलेपन को दूर भगाओ ।
प्यार दया ममता ज्ञान कला का अद्भुत भंडार पाओ ।
सुविधा के लिए है मोबाइल गुलाम इसके मत हो जाओ ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
सहज हो ही जाता हमको छलना |
मीठी मीठी बातों के बदले में हम ,
कर देते हैं समर्पण जीवन अपना |
राजनीति के गलियारों में जो सत्ता ,
बस सिक्का सफेद झूठ का चलता |
वैसे कहने को है जनता का शासन ,
बना पर सर्वोपरि सदा सेवक रहता |
यूँ तो सलाह मशविरा देना भाता ,
सबके बन जायें हम भाग्यविधाता |
उपयोग करना हो जब अपना मत ,
वोट मुफ्त की सेवाओं में भरमाता |
हम चाहें तो सब कुशासन बदल दें ,
पल भर में देश का भविष्य सँवार दें |
हम रहें कोसते शासन को ही हरदम ,
हम खुद को पहचान सब ही बदल दें |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
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नमन भावों के मोती ,
स्वतंत्र सृजन
रविवार ,
7, 4 ,2019 ,
बेवफा होता है ये वक्त जितना ,
कौन होगा इस जग में इतना |
नहीं राग कोई इसकी धड़कनों में ,
सीखा नहीं है कभी इसने झुकना |
ये सिरफिरा लगता है पंछी कोई ,
सीखी है इसने तो बस साफगोई |
सिसकता नहीं है ये कभी दर्द में ,
तबियत मुसाफिरों के जैसी है पाई |
वैरागियों सा है इसका जीवन ,
तड़पता नहीं है कभी इसका मन |
ठंड़क तो बेहिसाब है इसके तन में ,
असर करता ही नहीं है कोई रुदन |
माया की नगरी का लगता है वासी ,
कौन जाने कब ये बदल ले गुलाटी |
हर किसी को रखता है ये जेब में ,
कौन पढा सकता है इसको पाटी |
ये रोते को हसाकर हसते को रुला दे ,
देदे रंक को महल राजा को भटका दे |
सब आशाओं को मिटा डाले ये पल में ,
निराशाओं के भँवर में जब चाहे गिरा दे |
चिरंजीवी रहा है शायद ये इसलिए ,
सुख दुख का महत्व नहीं इसके लिए |
खड़ा होता नहीं है ये किसी के पक्ष में ,
जीता रहा प्रभु की आज्ञा पालन के लिए |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
अगर दिमाग नहीं होता मानव में ,
तो ये दुनियाँ कैसी दिखती होती |
अब तक जो विकास किया सबने ,
तरकीब नहीं और कोई उसकी होती |
सदुपयोग जहाँ दिमाग का होता ,
कुछ न कुछ अच्छा ही है होता |
नया नया अविष्कार ईजाद होता ,
नव निर्माण सदा ही होता रहता |
चालाकी ने ही सब काम बिगाड़ा ,
मतलब के लिऐ अगले को चराया |
अहं भाव ने ही हम सबको सताया ,
रहा न कोई यहाँ पर अपना पराया |
पर कितने होते हैं मतलबी यहाँ पर ,
ये दुनियाँ टिकी हुई मानवता पर |
जब दर्द पराया असर करता दिल पर ,
तस्वीर अंकित हो जाती जब मति पर |
सहयोग भावना जाग उठती है परस्पर ,
काम होते जग में फिर जन हितकर |
क्या से क्या हो गये आज सब नारी नर ,
दिख रहा दिमाग का ही तो है ये असर |
हम अपने जैसा ही समझें सब को ,
लूट खसोट में नहीं लगायें मति को |
विकिसित करते रहें हम दुनियाँ को ,
गाली नहीं बनायें अपने बुध्दि बल को |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
हमको तो कभी लम्हे फुरसत के नहीं मिलते ,
जब से जहाँ में विकिसित हो गये हैं हम |
अब तो कभी हमारे दिलों के पट नहीं खुलते ,
जब से कि बहुत अधिक ज्ञानी हो गये हैं हम |
हमको फुरसत ही नहीं मिला करती है अब तो ,
घड़ी दो घड़ी को भी अपनों ही से मिलने की |
दुनियाँ में हो गये हैं कितने सम्बंध बौने अब तो ,
अब तो संसार में अहमियत हो गई धन कमाने की |
ये नया युग, नया जमाना कह है रहा आजकल हमसे ,
हो और भी लम्बा दिन दुआ यही कर रहा रब से |
तमन्ना है मिलें खुद से कभी हम भी तो फुरसत में ,
जमाना आया वो कि मरते दम तक चाहत नहीं मिटती |
लेकर आये थे चार दिन दुनियाँ में हम जो रब से ,
क्या किया उन दिनों का हमने कभी सोचेंगे फुरसत में |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
पल दो पल की होती है बात नहीं,
यह सिलसिला तो है उम्र भर का | हमेशा ही चाहत मन में रही यही ,
हाथ में सदा हाथ बना रहे प्यार का |
रहे दिलरुबा जो दिल के करीब ,
मन में भाव बना रहे सुकून का |
कोई मिले हमदर्द हो साथी मेरा ,
मिलता रहे आनन्द फिर जिन्दगी का |
माना डगर जिंदगी की कठिन सही ,
धूप ही धूप है नहीं निशाँ है छाँव का |
जो हो अपना हमसफर साथी कोई ,
हमें कोई खौफ हो न फिर खार का |
मन खुश ही रहे हो नहीं कोई वेदना ,
हो एहसास संग सुख दुख बाँटने का |
बहती धारा नदी की तरह रहे जिंदगी ,
मिल जाये साथ जो किसी हमराज का |
दुनियाँ में बनते बिगड़ते कई रिश्ते रहे ,
पर निरंतर बना साथ रहा विश्वास का |
सदा संसार में घर-बार यूँ ही चलते रहे ,
सिलसिला पर टूटा नहीं कभी प्यार का |
साथ साथी का जरूरी है मन के लिऐ ,
मिल जाता जब कोई सहारा भाव का |
अपना हमराह हो कोई मंजिल के लिऐ ,
चैन से बसर हो जाता लम्हा जिंदगी का |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
जब गति समय की न रूकी ,
फिर तू ही बता क्यों थम गया |
इस वक्त की रफ्तार के संग ,
शायद चलते चलते थक गया |
आज अजनबी खुद से ही हुआ ,
अब रिश्तों का भ्रम भी टूट गया |
व्यर्थ ही तो यूँ संसार के बाजार में ,
बेमोल दिल का नगीना बिक गया |
चाहतों के बवंड़र में घिर कर ,
अस्तित्व स्वयं का ही मिट गया |
सदा झूला झूलना अपना पराया ,
फिर मैं में ही अटक कर रह गया |
सब कुछ पाया यहाँ और लुटाया,
असंतुष्ट मैं फिर भी तो रह गया |
मैं ज्ञान के सागर में डूब कर भी ,
नन्हे शिशु सा बिलखता रह गया |
कर दें तिरोहित हम इस मैं को यहीं ,
हर एक सुख प्रेम ही में मिल गया |
रह जायेगा एक दिन सब कुछ यहीं ,
अपना ही स्वयं क्यों दुश्मन बन गया |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
फिर तू ही बता क्यों थम गया |
इस वक्त की रफ्तार के संग ,
शायद चलते चलते थक गया |
आज अजनबी खुद से ही हुआ ,
अब रिश्तों का भ्रम भी टूट गया |
व्यर्थ ही तो यूँ संसार के बाजार में ,
बेमोल दिल का नगीना बिक गया |
चाहतों के बवंड़र में घिर कर ,
अस्तित्व स्वयं का ही मिट गया |
सदा झूला झूलना अपना पराया ,
फिर मैं में ही अटक कर रह गया |
सब कुछ पाया यहाँ और लुटाया,
असंतुष्ट मैं फिर भी तो रह गया |
मैं ज्ञान के सागर में डूब कर भी ,
नन्हे शिशु सा बिलखता रह गया |
कर दें तिरोहित हम इस मैं को यहीं ,
हर एक सुख प्रेम ही में मिल गया |
रह जायेगा एक दिन सब कुछ यहीं ,
अपना ही स्वयं क्यों दुश्मन बन गया |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
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लगती जीवन की बगिया सूनी सूनी ,
रहती गर रिश्तों में घुली मिठास नहीं |
सुदंरता तब तक मन को नहीं भा पाती ,
जब तक कि नेह की उड़ती पराग नहीं |
मन के पुष्पों में रहती है जो पावनता ,
वह स्नेह मकरंद से ही सुवासित होती |
बना ये दिल भँवर रहता उन्मत्त सदा ,
जीवन ऑगन को वही महकाया करती |
मन कहता फूलों सा जीवन हो अपना ,
अपने लिऐ जीना भी क्या होता जीना |
हमको उत्सर्ग जीवन पराग करते रहना ,
सुगंधित देश समाज घर को करके जीना |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
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उसूल बनाये थे जब हमने , कभी सोचा ही नहीं था कि मुश्किल भी होगी |
कदम कदम पर इस जीवन में , मेरे सिध्दांतों की बेहद ही तौहीन होगी |
मेरा भोर का उठना और पूजन बंदन से , घरवालों की नींद खराब होगी |
सत्य बोलकर जीवन में जाने किस किससे , दुआ सलाम ही बंद होगी |
मेरे शाकाहारी भोजन करने से भी , कुछ मित्रों को बड़ी तकलीफ होगी |
घास फूस और निर्धन भोजन से अलंकृत , मेरी जीवन शैली भी प्रभावित होगी |
शादी विवाह उत्सव आयोजन में , निर्धारित समय पर पहुँचने से वोरियत होगी |
व्यवस्था में व्यस्त भाई बहिनों को भी , मुझे देख बड़ी ही तकलीफ होगी |
सरकारी दफ्तरों में जाने से , भ्रष्टाचारियों को काम करने में बड़ी कोफ्त होगी |
छोटे छोटे से काम करवाने में ही , मुझको शायद पूरी उम्र ही बितानी होगी |
निष्कर्ष यही निकला जीवन में , उसूलों की जरूरत तो जरूर ही होगी |
सत्य अहिंसा प्रेम सहयोग ही में , हमको आपनी तमाम उम्र बितानी होगी |
जो उसूल बोझ बन जायें जीवन में , परहित में उनसे हमको तौबा करनी होगी |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
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होता उपकार बड़ा हम पर माता का , हमको जिसने दुनियाँ में जन्म दिया |
पिता तुल्य नहीं कोई उपकारी , बनकर आकाश जो छाया करता आया |
बिस्तार ज्ञान का करने वाला , गुरू सम भला कौन है उपकारी |
हम ईश्वर का उपकार न भूलें , जिसने बुध्दि और काया दे डाली |
उपकार बहुत हैं हम पर दुनियाँ मे, वृक्षों ,नदियों और धरती माता के |
हम भूलें न उपकार किसी का ,अपने दायित्वों का हमेशा निर्वहन करें |
कर्म करें हम सब अपना अपना , परहित के लिऐ ही दुनियाँ में जियें |
जुड़े हैं परस्पर जब हम सब दुनियाँ में, सहयोग सबका करते रहें |
उपकार सभी का है इक दूजे पर ,यह बात सदा हम याद रखें |
खुद से स्वार्थीपन को दूर भगाये , हम कहीं कृतघ्न न बन
जायें |
मानव जीवन का मकसद हम समझें , बिस्तार मानवता का कर जायें |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
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अवसर सबको मिलता रहता जीवन में ,नादान हैं जो ये न समझें |
रहते हैं परम आलसी जो जन हरदम , मौका वो बस बैठे रहने का ढूंढें |
अवसर के मोतियों की माला गूँथकर ,ज्ञानी जन जीवन में अपने पहनें |
अक्ल का अर्जीणन जिनको होता , अपनी किस्मत को वही तो बैठे कोसें |
फिर से दुनियाँ में यह मानुष जीवन , हमको नहीं मिलेगा हम ये सोचें |
कल का किसको पता है आखिर , क्यों न अवसर हम आज ही खोजें |
हम चरितार्थ करें मानव जीवन को , मानवता के लिऐ भी कुछ करलें |
मंजिल हमको मिल ही जायेगी , अगर अवसर गढ़ना हम
सीखें |
कष्ट क्लेश जीवन में आते ही रहते , इनसे घबरा कर हम अवसर न चूकें |
जो भी करना है आज ही कर लें , हम कभी कल पर बात न टालें |
कुछ अच्छा काम करने के लिऐ भी , क्यों हम सब सोचें विचारें |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
रहते हैं परम आलसी जो जन हरदम , मौका वो बस बैठे रहने का ढूंढें |
अवसर के मोतियों की माला गूँथकर ,ज्ञानी जन जीवन में अपने पहनें |
अक्ल का अर्जीणन जिनको होता , अपनी किस्मत को वही तो बैठे कोसें |
फिर से दुनियाँ में यह मानुष जीवन , हमको नहीं मिलेगा हम ये सोचें |
कल का किसको पता है आखिर , क्यों न अवसर हम आज ही खोजें |
हम चरितार्थ करें मानव जीवन को , मानवता के लिऐ भी कुछ करलें |
मंजिल हमको मिल ही जायेगी , अगर अवसर गढ़ना हम
सीखें |
कष्ट क्लेश जीवन में आते ही रहते , इनसे घबरा कर हम अवसर न चूकें |
जो भी करना है आज ही कर लें , हम कभी कल पर बात न टालें |
कुछ अच्छा काम करने के लिऐ भी , क्यों हम सब सोचें विचारें |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
सादर मंच को समर्पित -
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
युवा रहें हमेशा हम भाव यही तो , सबके मन में रहता है |
जीवन की पथरीली राहों पर ,युवा ही तो हसकर आगे बढता है |
अपने घर समाज और देश सभी का, भार इसी पर रहता है |
पत्थर में भी फूल खिला दे ,निश्चय अटल युवा का होता है |
शौर्य और वीरता का परचम , हमेशा युवा ही तो लहराता है |
दुनियाँ में बल बुध्दि और प्रतिभा का ,जिसको सदुपयोग आता है |
यहाँ नाम सुयश शिक्षा विकास का , अवतार वही बन जाता है |
जब कभी भ्रमित होकर के युवा , गलत राहों पर मुड़ जाता है |
दुश्मन अपना वो हो जाता , विनाशक तत्वों का खिलौना बन जाता है |
दायित्व अपना युवा जो समझे , जीवन सुखदाई बना सकता है |
युवा दीन दुखी निर्बल असहाय का , सहारा भी बन सकता है |
जो उद्देश्य कोई जीवन में हो तो , सफल जीवन हो सकता है |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
जीवन की पथरीली राहों पर ,युवा ही तो हसकर आगे बढता है |
अपने घर समाज और देश सभी का, भार इसी पर रहता है |
पत्थर में भी फूल खिला दे ,निश्चय अटल युवा का होता है |
शौर्य और वीरता का परचम , हमेशा युवा ही तो लहराता है |
दुनियाँ में बल बुध्दि और प्रतिभा का ,जिसको सदुपयोग आता है |
यहाँ नाम सुयश शिक्षा विकास का , अवतार वही बन जाता है |
जब कभी भ्रमित होकर के युवा , गलत राहों पर मुड़ जाता है |
दुश्मन अपना वो हो जाता , विनाशक तत्वों का खिलौना बन जाता है |
दायित्व अपना युवा जो समझे , जीवन सुखदाई बना सकता है |
युवा दीन दुखी निर्बल असहाय का , सहारा भी बन सकता है |
जो उद्देश्य कोई जीवन में हो तो , सफल जीवन हो सकता है |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
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दिन , शुक्रवार ,
दिनांक, 22, 3, 2019,
एक सुहाना धोखा है ये दुनियाँ , जिसको सब जीवन भर अपनाते हैं,
इस दुनियाँ में इस धोखे को , हम हस हस कर जानबूझ कर खाते हैं |
होता है अनिश्चित जीवन अपना , मालूम सभी को एक दिन चले जाना है ,
जब नहीं है साथी तन भी अपना , फिर कौन यहाँ पर अपना है |
हों भाई बंधु चाहे सखा पडोसी ,सबको ही तो निशि दिन छलना है,
धोखा हम खायें चाहें जितना भी , हमें दामन उनका ही पकड़ना है|
यहाँ कुछ कहते कुछ करते हैं सब , सबको बस फरेब ही तो भाता है,
गोल होती है जब दुनियाँ सारी , हर कोई लौट वहीं फिर आता है |
ये विश्वासघात उपहार है ऐसा , जो बिन चाहे ही मिल जाता है ,
तुम गले लगाओ या न लगाओ , झटपट सीने से यह लग जाता है |
बड़ा खतरनाक है धन का मामला , फरेब का साथी यह कहलाता है ,
कदम कदम पर देता धोखा , जरूर ही विश्वासघात से मिलवाता है |
होता प्रेम जगत का यह दुश्मन , हमें बड़े प्रेम से धोखा मिलता है ,
यहाँ कुछ समझ नहीं पाता इन्सा ,चुपके से खंजर सीने में चुभ जाता है |
विश्वासघात का एक बड़ा समुदंर , राजनीति का दरिया बन जाता है ,
धीरे धीरे आगे चलकर सेवक ही यहाँ पर , मालिक का सौदाई बन जाता है |
हों क्षेत्र भले ही अलग अलग , जीवन में धोखा सबको ही मिलता है ,
कोई खिलाड़ी बना कोई मौहरा बना ,बदल बदल कर चक्र यूँ ही चलता है |
होता है भाग्यवान समझ जाओ वही , संसार में जो इससे बच जाता है ,
हो भाग्यशाली हर कोई यहाँ , सदा मन मेरा यही दुआ बस करता है |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
दिनांक, 22, 3, 2019,
एक सुहाना धोखा है ये दुनियाँ , जिसको सब जीवन भर अपनाते हैं,
इस दुनियाँ में इस धोखे को , हम हस हस कर जानबूझ कर खाते हैं |
होता है अनिश्चित जीवन अपना , मालूम सभी को एक दिन चले जाना है ,
जब नहीं है साथी तन भी अपना , फिर कौन यहाँ पर अपना है |
हों भाई बंधु चाहे सखा पडोसी ,सबको ही तो निशि दिन छलना है,
धोखा हम खायें चाहें जितना भी , हमें दामन उनका ही पकड़ना है|
यहाँ कुछ कहते कुछ करते हैं सब , सबको बस फरेब ही तो भाता है,
गोल होती है जब दुनियाँ सारी , हर कोई लौट वहीं फिर आता है |
ये विश्वासघात उपहार है ऐसा , जो बिन चाहे ही मिल जाता है ,
तुम गले लगाओ या न लगाओ , झटपट सीने से यह लग जाता है |
बड़ा खतरनाक है धन का मामला , फरेब का साथी यह कहलाता है ,
कदम कदम पर देता धोखा , जरूर ही विश्वासघात से मिलवाता है |
होता प्रेम जगत का यह दुश्मन , हमें बड़े प्रेम से धोखा मिलता है ,
यहाँ कुछ समझ नहीं पाता इन्सा ,चुपके से खंजर सीने में चुभ जाता है |
विश्वासघात का एक बड़ा समुदंर , राजनीति का दरिया बन जाता है ,
धीरे धीरे आगे चलकर सेवक ही यहाँ पर , मालिक का सौदाई बन जाता है |
हों क्षेत्र भले ही अलग अलग , जीवन में धोखा सबको ही मिलता है ,
कोई खिलाड़ी बना कोई मौहरा बना ,बदल बदल कर चक्र यूँ ही चलता है |
होता है भाग्यवान समझ जाओ वही , संसार में जो इससे बच जाता है ,
हो भाग्यशाली हर कोई यहाँ , सदा मन मेरा यही दुआ बस करता है |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
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दुर्गुण तो कुछ भी कम हो न सके ,
हर बार होलिका दहन सब करते रहे |
यहाँ खूब गुव्वारे बुराई के भर भर के ,
होलिका दहन होते ही जी भर के फूटे |
टोलियाँ चल पड़ी हैं खूब सजधज के ,
ढोलक ,मजीरा ,घुँघरू ,करताल ,लिऐ |
घूमते है सब राधा कृष्णा का रूप धर के ,
मन में भरे भंग के गोला की तंरग लिये |
सब मदमस्त मगन नचते थे ता था थैया ,
खोये तभी होली की हुड़दंग में वलमा |
उनके अम्मा बाबा चाचाचाची भाभीभैया ,
थक गये सबही पर कँहू नहीं मिले वलमा |
जब शाम भई आ गये तभी हमारे भैया ,
हम तैयार भये मैके को चले संग में भैया |
आधी रस्ता ही में रोके रस्ता ठाढे रहे सैंया ,
काहे चलीं मायके सजनी लौटा देओ भैया |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
हर बार होलिका दहन सब करते रहे |
यहाँ खूब गुव्वारे बुराई के भर भर के ,
होलिका दहन होते ही जी भर के फूटे |
टोलियाँ चल पड़ी हैं खूब सजधज के ,
ढोलक ,मजीरा ,घुँघरू ,करताल ,लिऐ |
घूमते है सब राधा कृष्णा का रूप धर के ,
मन में भरे भंग के गोला की तंरग लिये |
सब मदमस्त मगन नचते थे ता था थैया ,
खोये तभी होली की हुड़दंग में वलमा |
उनके अम्मा बाबा चाचाचाची भाभीभैया ,
थक गये सबही पर कँहू नहीं मिले वलमा |
जब शाम भई आ गये तभी हमारे भैया ,
हम तैयार भये मैके को चले संग में भैया |
आधी रस्ता ही में रोके रस्ता ठाढे रहे सैंया ,
काहे चलीं मायके सजनी लौटा देओ भैया |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
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होली के रंग में रंगा संसार ,
चारों तरफ है अबीर गुलाल |
एक बरस में आता है फाग ,
रहता न मन में कोई मलाल |
भाई बंधु और मित्र पडोसी ,
सबके मन में बसी है होली |
है रंग प्यार का सबकी मुठ्ठी ,
चेहरों पर अबीर की लाली |
मिठाई सी मुस्कान है मीठी ,
भंग तरंग सी चाल है बहकी |
राधा कहीं कान्हा से रूठी ,
कहीं प्यार की बज रही बंशी |
टीस किसी के मन में उठती ,
की थी दुश्मन ने जो चालाकी |
नहीं पुलवामा की याद पुरानी ,
क्रोध के रंग की छायी है लाली |
ऋतु बसंत कितनी मतवाली ,
मोहक छटा फाग बिखरायी |
है मन मयूर की चाल निराली ,
सारी दुनियाँ हो गयी दिवानी |
बुराई दहन की घड़ी है आई ,
बर्षा प्रीत रंग की होती भाई |
अबीर गुलाल की बदली छाई ,
देखो देखो अब होली आई |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
चारों तरफ है अबीर गुलाल |
एक बरस में आता है फाग ,
रहता न मन में कोई मलाल |
भाई बंधु और मित्र पडोसी ,
सबके मन में बसी है होली |
है रंग प्यार का सबकी मुठ्ठी ,
चेहरों पर अबीर की लाली |
मिठाई सी मुस्कान है मीठी ,
भंग तरंग सी चाल है बहकी |
राधा कहीं कान्हा से रूठी ,
कहीं प्यार की बज रही बंशी |
टीस किसी के मन में उठती ,
की थी दुश्मन ने जो चालाकी |
नहीं पुलवामा की याद पुरानी ,
क्रोध के रंग की छायी है लाली |
ऋतु बसंत कितनी मतवाली ,
मोहक छटा फाग बिखरायी |
है मन मयूर की चाल निराली ,
सारी दुनियाँ हो गयी दिवानी |
बुराई दहन की घड़ी है आई ,
बर्षा प्रीत रंग की होती भाई |
अबीर गुलाल की बदली छाई ,
देखो देखो अब होली आई |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
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मुश्किल घड़ी
पहचान हो रही
चयन सही |
मित्र हमारे
बने सदा सहारे
चयन वारे |
आया दोराहा
ये चयन हमारा
कहाँ है रास्ता |
वस्त्र चयन
सुशोभित आनन
हो पहचान |
वधू चयन
प्राथमिकता धन
हुआ पतन |
खोज सत्य की
उत्तम चयन की
बात मति की |
जीवन साथी
चयन हमराही
हों दिया बाती |
चयन कैसा
हो गया है अकेला
रिश्ता झमेला |
करें नमन
ईश्वर का चयन
मिला जीवन |
ये अहंकार
नफरत दुत्कार
चयन प्यार |
पापी संसार
चयन व्यवहार
कैसा आचार |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
पहचान हो रही
चयन सही |
मित्र हमारे
बने सदा सहारे
चयन वारे |
आया दोराहा
ये चयन हमारा
कहाँ है रास्ता |
वस्त्र चयन
सुशोभित आनन
हो पहचान |
वधू चयन
प्राथमिकता धन
हुआ पतन |
खोज सत्य की
उत्तम चयन की
बात मति की |
जीवन साथी
चयन हमराही
हों दिया बाती |
चयन कैसा
हो गया है अकेला
रिश्ता झमेला |
करें नमन
ईश्वर का चयन
मिला जीवन |
ये अहंकार
नफरत दुत्कार
चयन प्यार |
पापी संसार
चयन व्यवहार
कैसा आचार |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
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देखो बात बात में बात बढ़ गयी ,
नहीं चयन सही था शब्दों का |
छुपा हुआ जानवर सामने आया ,
लेकर के सहारा लफ्जों का |
हमने सोच समझकर की न संगत ,
किया गलत चयन था मित्रो का |
विद्यार्थी चप्पल चटकाते घूम रहे हैं ,
नहीं चयन कर पाया सही शिक्षा का |
युवा रोज कोसते अपने आप को ,
नहीं चयन हो पाता व्यवसाय का |
भटक रही है यहाँ आज जिदंगी ,
नहीं चयन लक्ष्य कोई जीवन का |
मनमर्जी का जीवन है सबका ,
नहीं चयन हो सका दिनचर्या का |
घर समाज न देश की परवाह करना ,
हो न सका चयन अपने कर्तव्यों का |
भोग विलास को जीवन समझा ,
नहीं चयन हो जीवन के यथार्थो का |
तब जीवन सही दिशा पकड़ता है ,
चयन अगर हो जाये सही कर्मों का |
दोनों ही लोक सुधर जाते हैं ,
हम को साथ मिले सत्कर्मो का |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
नहीं चयन सही था शब्दों का |
छुपा हुआ जानवर सामने आया ,
लेकर के सहारा लफ्जों का |
हमने सोच समझकर की न संगत ,
किया गलत चयन था मित्रो का |
विद्यार्थी चप्पल चटकाते घूम रहे हैं ,
नहीं चयन कर पाया सही शिक्षा का |
युवा रोज कोसते अपने आप को ,
नहीं चयन हो पाता व्यवसाय का |
भटक रही है यहाँ आज जिदंगी ,
नहीं चयन लक्ष्य कोई जीवन का |
मनमर्जी का जीवन है सबका ,
नहीं चयन हो सका दिनचर्या का |
घर समाज न देश की परवाह करना ,
हो न सका चयन अपने कर्तव्यों का |
भोग विलास को जीवन समझा ,
नहीं चयन हो जीवन के यथार्थो का |
तब जीवन सही दिशा पकड़ता है ,
चयन अगर हो जाये सही कर्मों का |
दोनों ही लोक सुधर जाते हैं ,
हम को साथ मिले सत्कर्मो का |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
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बीज करुणा
बरसात नयना
अंकुर क्षमा |
गुरु किसान
परम्परा महान
अंकुर ज्ञान |
दरिया प्रेम
अंकुर सुख बेल
विषाद फेल |
अंकुर कोख
कैसी सबकी सोच
बेटी को दोष |
संस्कार बीज
अंकुर तहजीब
स्वप्न सजीब |
धरती माता
देश अपना पिता
अंकुर बेटा |
बीज कल्पना
अंकुर है रचना
भाव व्यजंना |
परोपकार
अंकुर स्नेह प्यार
सदाबहार |
शिक्षा प्रभाव
अंकुर बदलाव
धारा प्रवाह |स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
बरसात नयना
अंकुर क्षमा |
गुरु किसान
परम्परा महान
अंकुर ज्ञान |
दरिया प्रेम
अंकुर सुख बेल
विषाद फेल |
अंकुर कोख
कैसी सबकी सोच
बेटी को दोष |
संस्कार बीज
अंकुर तहजीब
स्वप्न सजीब |
धरती माता
देश अपना पिता
अंकुर बेटा |
बीज कल्पना
अंकुर है रचना
भाव व्यजंना |
परोपकार
अंकुर स्नेह प्यार
सदाबहार |
शिक्षा प्रभाव
अंकुर बदलाव
धारा प्रवाह |स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
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जादू चला ऐसा |
कलम की चर्चा |
लेखक सोया |
जागा जमाना |
जादूगर पैसा |
नाच नचाया |
जग बौराया |
जादू बसंत |
वसुधा अनंत |
उन्मत्त मन |
बरसात रंग |
ये जादूगरी |
रहता जादू |
घर परिवार |
रिश्तों की आड़ |
घायल पंछी ,
डोले वन वन |
वेदना बड़ी |
नयन बाण |
जादू की पडी |
काला जादू |
बिखर गया |
कितने डसते नाग |
अब लगी प्रभु से आस |
चल गया जादू ,
बातों का बिशेष |
शुभकामनाऐं अशेष |
आहत जनादेश |
गोरख धंधा ,
रात दिन |
चैन नहीं दिन रैन ,
जादूगर जादू करे |
नाचे छम छम ,
पागल मनवा बैचेन |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
कलम की चर्चा |
लेखक सोया |
जागा जमाना |
जादूगर पैसा |
नाच नचाया |
जग बौराया |
जादू बसंत |
वसुधा अनंत |
उन्मत्त मन |
बरसात रंग |
ये जादूगरी |
रहता जादू |
घर परिवार |
रिश्तों की आड़ |
घायल पंछी ,
डोले वन वन |
वेदना बड़ी |
नयन बाण |
जादू की पडी |
काला जादू |
बिखर गया |
कितने डसते नाग |
अब लगी प्रभु से आस |
चल गया जादू ,
बातों का बिशेष |
शुभकामनाऐं अशेष |
आहत जनादेश |
गोरख धंधा ,
रात दिन |
चैन नहीं दिन रैन ,
जादूगर जादू करे |
नाचे छम छम ,
पागल मनवा बैचेन |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
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चंचलता के रंग में डूबी हुयी , दुनियाँ की हर इक शय रहती है
इन्सानों को ये नित रंग नये नये , हर पल ही दिखलाया करती है |
कब क्या होगा ये कोई न जाने, धोखे में सबको ही रखा करती है,
हमेशा अपनी सुबिधा से ही , ये दुनियाँ करवट बदला करती है |
मानव मन का नहीं कोई ठिकाना , कब किस करवट बैठने वाला है ,
रंज कभी कभी खुशी कब करे कटाक्ष , कब वाह वाह करने वाला है |
कभी तो ये साधु बड़ा ज्ञानी ध्यानी रहता ,परोपकारी बडे दिल वाला है ,
कब करवत बदल कर के झटपट , वह लालच के दरिया में कूदने वाला है |
संसार राजनीति का भी अनोखा , ऊट किस करवट बैठने वाला है ,
कब राजा यहाँ पर रंक बन जाये , इसे नहीं कोई भी जानने वाला है |
होता वक्त बड़ा ही अजब खिलाड़ी , वो कब कहाँ क्या चलने वाला है ,
जग में कौन हुआ है पैदा ऐसा , जो इसकी फितरत को समझने वाला है |
रिश्ते भी होते मायाजाल से लिपटे , कहाँ करवट कौन बदलने वाला है ,
यहाँ पर महसूस दर्द तो वही करेगा , जो ठोकर को खाने वाला है |
घड़ी घड़ी दिल की धड़कन लेखन मेरा , यही बस दुआ माँगने वाला है ,
ऐसी करवट न ले कोई भी यहाँ , जिससे किसी का भी अनिष्ट होने वाला है |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
इन्सानों को ये नित रंग नये नये , हर पल ही दिखलाया करती है |
कब क्या होगा ये कोई न जाने, धोखे में सबको ही रखा करती है,
हमेशा अपनी सुबिधा से ही , ये दुनियाँ करवट बदला करती है |
मानव मन का नहीं कोई ठिकाना , कब किस करवट बैठने वाला है ,
रंज कभी कभी खुशी कब करे कटाक्ष , कब वाह वाह करने वाला है |
कभी तो ये साधु बड़ा ज्ञानी ध्यानी रहता ,परोपकारी बडे दिल वाला है ,
कब करवत बदल कर के झटपट , वह लालच के दरिया में कूदने वाला है |
संसार राजनीति का भी अनोखा , ऊट किस करवट बैठने वाला है ,
कब राजा यहाँ पर रंक बन जाये , इसे नहीं कोई भी जानने वाला है |
होता वक्त बड़ा ही अजब खिलाड़ी , वो कब कहाँ क्या चलने वाला है ,
जग में कौन हुआ है पैदा ऐसा , जो इसकी फितरत को समझने वाला है |
रिश्ते भी होते मायाजाल से लिपटे , कहाँ करवट कौन बदलने वाला है ,
यहाँ पर महसूस दर्द तो वही करेगा , जो ठोकर को खाने वाला है |
घड़ी घड़ी दिल की धड़कन लेखन मेरा , यही बस दुआ माँगने वाला है ,
ऐसी करवट न ले कोई भी यहाँ , जिससे किसी का भी अनिष्ट होने वाला है |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
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दर्दे दिल
बेवफा सनम
रात भर
करवट |
जुदाई जानम
एहसास जगाते
बदलते हैं
करवट |
बदला मिजाज
दौलत बेहिसाब
नींद गायब
चिंता बढी
करवट ही करवट |
परिश्रम दिन रात
ली किस्मत ने
करवट |
प्रतिभाशाली
भारत का युवा
स्वप्न अनंत
वेरोजगारी ग्रसित
लेते करवट |
आगमन चुनाव
परिणाम क्या
अंधेरे में तीर
मन अधीर
शयन कक्ष
सिर्फ करवट |
खुश जन मन
ऋतु बसंत
कोकिला गायन
उत्सव फाग
मौसम करवट |
सुविचार
सहयोग परस्पर
अंत बुराई
विकास करवट |
छलकता पैमाना
भीगता मन
हसीन सपने
लेते करवट
ऑंखों का कमाल |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
बेवफा सनम
रात भर
करवट |
जुदाई जानम
एहसास जगाते
बदलते हैं
करवट |
बदला मिजाज
दौलत बेहिसाब
नींद गायब
चिंता बढी
करवट ही करवट |
परिश्रम दिन रात
ली किस्मत ने
करवट |
प्रतिभाशाली
भारत का युवा
स्वप्न अनंत
वेरोजगारी ग्रसित
लेते करवट |
आगमन चुनाव
परिणाम क्या
अंधेरे में तीर
मन अधीर
शयन कक्ष
सिर्फ करवट |
खुश जन मन
ऋतु बसंत
कोकिला गायन
उत्सव फाग
मौसम करवट |
सुविचार
सहयोग परस्पर
अंत बुराई
विकास करवट |
छलकता पैमाना
भीगता मन
हसीन सपने
लेते करवट
ऑंखों का कमाल |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
अरी ओ बीमारी क्यों दुनिया में आयी ,
कर दी अच्छे भले आदमी की तबाही |
छोटे से बच्चे की है ऑंखों पै चश्मा ,
डाक्टर के आगे लगा कितना मजमा |
बढा दी रक्तचाप और शक्कर की बीमारी ,
हृदय पर भी तूने अपनी नियत बुरी डाली |......
कितने परीक्षण कितनी रिपोर्टों की दुनियाँ ,
फैली दवाओं की बदबू इंजेक्शन की सुइयाँ |
सबकी पहले ही छूटी थी दूध और मलाई ,
और तबियत डायटिंग की बात सुनके घबराई |........
सुनो बीमारी हटो चलो जाओ दूर हमसे ,
स्वच्छ वातावरण कर देगें हम कसम से |
जैविक खाद से ही करेंगे खाद्यान्न की बुबाई ,
बीमारी दुनियाँ से फिर हो जायेगी तेरी विदाई |...........
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नारी तुम केवल श्रध्दा हो , ऐसा कवियों ने गाया नारी तुमको ,
ऑचल में दूध ऑख में पानी , कभी कहा गया नारी जीवन को |
कहीं कहीं पर तो पाप का द्वार भी , कह डाला नारी को ,
किसी ने लड़ाई झगड़े की जड़ भी , बेहिचक कह दिया नारी को |
नारी तुम तो बस केवल नारी हो , पड़ती हर एक पर भारी हो ,
नारी तुम ही जन्म दात्री हो , तुम वंश बेल बढाया करती हो |
तुम ही सुख दुख की साथी हो , सहचरी तुम्ही कहलाती हो ,
दो कुल की लाज बनी तुम हो , तुम अन्नपूर्णा भी कहलाती हो |
बनकर के माता इस जग में तुम , ममता छलकाया करती हो ,
जग में करूणा की मूरत बनकर तुम , सर्वस्य लुटाया करती हो |
जब बहिन रूप में होती हो तुम , स्नेह सुधा को बरसाती हो ,
पत्नी जब बन जाती हो तुम , जीवन को सुगम बनाती हो |
बनकर के बेटी जब आ जाती तुम , तब त्याग सिखा कर जाती हो ,
जीवन पथ पर बिखरे काँटों को , तुम फूल बनाती रहती हो |
बन जाती कभी सरस्वती हो , तुम ज्ञान की ज्योति जलाती हो ,
कभी शक्ति रूप दिखलाती हो , हल हर मुश्किल को कर लेती हो |
सामाना दुष्ट से हो जाये तो , तुम रणचंडी भी बन जाती हो ,
काया बनी चाहे कोमल हो , तुम कमजोर नहीं हो सकती हो |
जब हाथों में हथियार उठा लो , तुम रानी लक्ष्मीबाई कहलाती हो ,
कभी दुर्गावती बन जाती हो , कहीं पर पन्ना धाय कहलाती हो |
जब भी दुश्मन से सामना हो , नारी तुम कुछ भी कर सकती हो ,
चाहे राजनीत का दलदल हो , नारी तुम उसमें भी मुस्काई हो |
देश विदेश में है नाम तुम्हारा , तुम चाँद भी देखकर आई हो ,
इस दुनियाँ के रंगमंच पर , अब तुम रही नही कठपुतली हो |
बना पात्र बड़ा मजबूत तुम्हारा , बडे़ गौरव से इसे निभाई हो ,
रहो सदा विजयी हो सम्मान तुम्हारा , यह आशीष साथ में लाई हो
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
नींद नहीं आती नैनों में , ख्वाबों से डर जाती है ,
बड़े बड़े ऊँचे सपनों से , सहमी सहमी रहती है |
दूर खड़ी रहती ऑंखों से , कितने इशारे करती है ,
कष्ट हो रहा दूर रहने में , सान्निध्य पाना चाहती है |
ठिठक रही वो ऑंखों से , ईष्या द्वेष से डरती है ,
बैर भाव न हो ऑंखों में , इच्छा ऐसी ही रखती है |
शांति भावना हो मन में , ये सुकून थोड़ा चाहती है ,
प्रेम रस बरसे हृदय में , यही नींद कामना करती है |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
शिव सृष्टि नियंता महादेव प्रभु ,हैं जन जन के हितकारी जग में |
तीन लोक के स्वामी शिव जी , बन गये हिमालय वासी जग में |
श्री भोले नाथ प्रभु पार्वती पति , घट घट के वासी हैं जग में |
महिमा शिव की सबने ही गायी ,शिव हैं अंनंत अविनाशी जग में |
जग कल्याण हेतु गरल पान कर , शिव नीलकंठ भी कहलाये जग में
शिव और शक्ति का अदुभुत संगम ही , सृष्टि को सुदंरतम बनाया जग में |
आसक्ति रहित हैं शिव सत्य घोष भी , भोले अति पावन रूप धराये जग में |
शिव के भाल चंद्रमा, गंग धार सिर , गले सर्प हार, बाघम्बर सोहे तन में |
नट नागर हैं शिव अर्धनारीश्वर भी , डमरू बजा जीवन संगीत सजाये जग में |
औघढ रूप धर भूत पिशाच संग रह , जीवन दर्शन समझाया हमको जग में |
विसंगतियों में भी निर्मल रख मन , जीवन ज्योति उजागर रख पाना जग में |
आक धतूरा और वेल की पाती, बिषपान सहजता से करना जग में |
जीवन में सुख और दुख दोनों को , शिव समान कहकर दिखलाये जग में |
उनका मन आराध्य में रहा सदा ही , किये तीन लोक संचालित जग में |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
रोटी पर जब घी लगा , आया अधिक स्वाद |
नाम संग जब जी जुड़ा, जागा जन अनुराग ||
सुखदायी वाणी बड़ी , मधुर रहें जो बोल |
मन से मन की लय जुडी, पूँजी है अनमोल ||
दौलत जोड़ी जगत में , कोशिश कर दिन रैन |
काम न आयी अंत में , चित्त रहा बैचैन ||
मानव मन चंचल बड़ा , घूमे चारों ओर |
हित अनहित ही में पड़ा , तोडे हरि से डोर ||
उड़ता पंछी गगन में , मस्त मगन मन मोर |
शाम देख दुखी मन में , पाप तमस घनघोर ||
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
है सीमा तय देशों की , हम सरहद का मान करें ,
रहें सरहदशांति से हम सब भी,और प्रेरित सबको भी करते रहें|
शांति स्थापित हो विश्व में ,सब मानवता का सम्मान करें ,
भाई चारा हो जन जन में, सबकी भावनाओं का मान करें |
कुछ लालची कायरों ने , जब हद को अपनी भुला दिया है,
झूठे धर्म के आडम्बर में , कितने निर्दोषों को मार दिया है |
बार बार की चेतावनी से भी , उसको कुछ न बोध हुआ है ,
तब थक हार कर मजबूरी में, दो देशों में युध्द हुआ है |
वीर जवान सजग प्रहरी बने , सरहद पर ही डटे रहे हैं ,
अपने देश की हिफाजत के लिऐ ,कितने ही कष्ट सहे हैं |
जीत सच्चाई की होती आई , पापी के ही किले ढहे हैं ,
भारत के वीर अभिनंदन , काल शत्रु के लिऐ बने हैं |
सरहद के ये पैमाने तो , बस समझदार के लिऐ बने हैं ,
आतंकी शैतानों के लिऐ ही , दुनियाभर के शस्त्र बने हैं |
निसंकोच हो खात्मा इनका ,आज सभी ये बोल रहे हैं ,
शांति प्रिय लोग सभी अब ,टकटकी लगाकर देख रहे हैं |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
है सीमा तय देशों की , हम सरहद का मान करें ,
रहें सरहदशांति से हम सब भी,और प्रेरित सबको भी करते रहें|
शांति स्थापित हो विश्व में ,सब मानवता का सम्मान करें ,
भाई चारा हो जन जन में, सबकी भावनाओं का मान करें |
कुछ लालची कायरों ने , जब हद को अपनी भुला दिया है,
झूठे धर्म के आडम्बर में , कितने निर्दोषों को मार दिया है |
बार बार की चेतावनी से भी , उसको कुछ न बोध हुआ है ,
तब थक हार कर मजबूरी में, दो देशों में युध्द हुआ है |
वीर जवान सजग प्रहरी बने , सरहद पर ही डटे रहे हैं ,
अपने देश की हिफाजत के लिऐ ,कितने ही कष्ट सहे हैं |
जीत सच्चाई की होती आई , पापी के ही किले ढहे हैं ,
भारत के वीर अभिनंदन , काल शत्रु के लिऐ बने हैं |
सरहद के ये पैमाने तो , बस समझदार के लिऐ बने हैं ,
आतंकी शैतानों के लिऐ ही , दुनियाभर के शस्त्र बने हैं |
निसंकोच हो खात्मा इनका ,आज सभी ये बोल रहे हैं ,
शांति प्रिय लोग सभी अब ,टकटकी लगाकर देख रहे हैं |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
पवन पुत्र
बजरंग बली जी
श्री राम प्रिय |
ये पंचतत्व
शरीर संरचना
आधार जीव |
जीवन नहीं
संचालित प्रक्रिया
पवन श्वांस |
पवन गति
सुख दुख प्रवाह
बदले रंग |
स्वच्छ पवन
जीवन का आधार
करें प्रयास |
वातावरण
अप्राकृतिक गैसें
बिषैला करें |
सुबह सैर
लाभदायी पवन
निरोगी तन |
अभिनंदन
लौटे देश पवन
सुस्वागतम |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
पाक का पाप ,
अभिनंदन प्रण ,
नष्ट विमान |
प्रधान मंत्री ,
संकल्प अरि नाश ,
कूटनीति से |
आतंकवाद ,
भारत का संकल्प ,
समूल नाश |
संकल्प दृढ़ ,
बदला पुलवामा ,
चार सौ वध |
संकल्प आज ,
भारत की जनता
सेना के साथ |
छुपे गद्दार ,
नमक हरामी है ,
संकल्प सजा |
सजग रहें
संकल्प समर्पण ,
देश के लिऐ |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश,
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
विजय पथ पर अग्रसर ,
सदैव तुम बने रहो |
माँ भारती के लाल वीर ,
बने चिरंजीव तुम रहो |
मिले दुश्मनों को हार ,
सदा शौर्यवीर तुम रहो |
भारत के ललाट पर ,
तुम मुकुट बन के रहो |
आन बान शान का ,
सूर्य तुम बनकर रहो |
अपने प्रखर ओज से ,
दुश्मनों को दहते रहो |
बरसात खुशियों की बनो ,
खुशियों को बाँटते रहो |
तुम देश की धड़कन बनो ,
इसकी जान बनकर रहो |
आज धधकती आग से ,
मुक्ति हृदय को मिली |
हमारे शहीदों को ये ,
श्रध्दाजंलि सही मिली |
नसीहत ये दुश्मन को ,
बिल्कुल अब सही मिली |
जय हिन्द जय वीर को ,
गूँज एक नयी मिली |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
र आदमी को बस तलाश कुछ नये की है ,
परवाह किसी की नहीं अपने भले की है |
लड़ते भाई भाई बात कुछ अधिक की है ,
रह गयी नहीं अहमियत अब कुछ कहे की है |
जरूरत रह गयी नहीं अब माँ बाप की है ,
पहचान कुछ रही नहीं उनके करे की है |
परम्परा भुला दी सबने दोस्ती की है ,
आदत रह नहीं गयी हमें निभाने की है |
किताब बंद कर दी अपने रिवाजों की है ,
अब तो लग चुकी है लत नकल करने की है |
चाहत सभी को बस नसीहत देने की है ,
कोई आरजू नहीं आगे आने की है |
करता है वक्त माँग नई रोशनी की है ,
लगती जरूरत नव जागरण करने की है |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
परवाह किसी की नहीं अपने भले की है |
लड़ते भाई भाई बात कुछ अधिक की है ,
रह गयी नहीं अहमियत अब कुछ कहे की है |
जरूरत रह गयी नहीं अब माँ बाप की है ,
पहचान कुछ रही नहीं उनके करे की है |
परम्परा भुला दी सबने दोस्ती की है ,
आदत रह नहीं गयी हमें निभाने की है |
किताब बंद कर दी अपने रिवाजों की है ,
अब तो लग चुकी है लत नकल करने की है |
चाहत सभी को बस नसीहत देने की है ,
कोई आरजू नहीं आगे आने की है |
करता है वक्त माँग नई रोशनी की है ,
लगती जरूरत नव जागरण करने की है |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
बार बार प्रहार से ही फौलाद तलवार हुआ ,
वक्त के प्रहार से ही मासूम समझादार हुआ ,
लौह के प्रहार से जब जब काँप उठी है धरा ,
नये नये शस्त्रो का विश्व में अविष्कार हुआ |
बेवजह ही जब कभी प्रहार मानवता पर हुआ ,
उजड़ गये बसे हुये चमन घायल विश्वास हुआ ,
यहाँ पर भूलकर दया धर्म प्रहार जब होता रहा,
शांति के लिऐ ही तो तब संधि का चलन हुआ |
बल का प्रमाद जब किसी तरह न कम हुआ ,
सुरक्षा के लिऐ वार फिर आतंकियों पर हुआ ,
हमेशा दंड पापियों को इसी तरह मिलता रहा ,
यूँ ही विश्व बंधुत्व धरा पर अंततः कायम हुआ |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश,
वक्त के प्रहार से ही मासूम समझादार हुआ ,
लौह के प्रहार से जब जब काँप उठी है धरा ,
नये नये शस्त्रो का विश्व में अविष्कार हुआ |
बेवजह ही जब कभी प्रहार मानवता पर हुआ ,
उजड़ गये बसे हुये चमन घायल विश्वास हुआ ,
यहाँ पर भूलकर दया धर्म प्रहार जब होता रहा,
शांति के लिऐ ही तो तब संधि का चलन हुआ |
बल का प्रमाद जब किसी तरह न कम हुआ ,
सुरक्षा के लिऐ वार फिर आतंकियों पर हुआ ,
हमेशा दंड पापियों को इसी तरह मिलता रहा ,
यूँ ही विश्व बंधुत्व धरा पर अंततः कायम हुआ |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश,
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सौदंर्य बोध जो छुपा हुआ , उसे कला ही उजागर करती है ,
जीवन के अनमोल पलों को ,यह ही परिभाषित करती है |
निष्प्राण पडे एक पत्थर को , जीवंत यही तो करती है ,
बने पाषाण हृदय के मानव को ,मोम यही तो करती है |
मानव मन की संवेदनाओं को , ये ही उकसाया करती है,
उभरते मन के भावों को , यह कागज पै उकेरा करती है |
दुनियाँ से मिले आघातों को ,जीवन में निखारा करती है,
सीने में दबा करके गम को, हरदम मुसकाया करती है |
खाली बिखरे पन्नों को,शब्दों के मोती से सजाया करती है ,
अज्ञानता के अंधेरों को , ज्ञान के उजालों में बदला करती है |
यह कला ही अपने जीवन को , उत्साही बनाया करती है
देती है प्रेरणा हम सब को , जीवन में खुशियों की बर्षा करती है |
स्वरचित ,मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
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मानवता श्रृंगार जमीं का ,
ये फूलों को उपजाता |
सुख दुःख दोनों हालातों में ,
ये सामंजस्य बिठलाता |
इन्सानियत खो गयी कहीं पर ,
सूरज मानवता का डूब रहा |
घृणा द्वेष को रखकर मन में ,
सबको घर का भेदी लूट रहा |
आतंक का साया मानवता पर ,
गिध्द बनकर टूट रहा |
हवस रह गयी अब बस बाकी ,
सब कुछ पीछे छूट रहा |
हुआ लालच हावी मानवता पर ,
दावानल सा फैल रहा |
धर्म प्रेम के ऑगन में ,
अब नाच ये नंगा नाच रहा |
घिरे बादल ऐसे आसमान पर ,
दानव मन हर्षित होता |
दया क्षमा नहीं शेष खून में ,
हैवानियत की फसलें उगा रहा |
मानवता के हैं शेष सिपाही जो,
उनको गिन गिनकर निगल रहा |
है व्यथा बड़ी रहती मन में ,
अंर्तमन में ये मंजर खटक रहा |
मानवता के ही दम पर ,
विकास का रथ चलता रहा |
भाव सुरक्षा का जीवों में ,
मानवता से ही बना रहा |
हमें युध्द की बिभीषिका से ,
दूर यही भाव करता रहा |
दुनियाँ में शांति दूत बन के ,
भाव ये विश्व बंधुत्व फैलाता रहा |
कुछ आततायी क्या दुनियाँ में
मानवता को डस लेगें ,
क्या हम ऐसे ही चुपचाप रहेगें ,
क्या धरे हाथ पर हाथ रहेगें |
जागो उठो करो कुछ तो अब ,
बच्चे हमको न माफ करेंगे |
अभी नहीं जो हमने सोचा ,
फिर आगे कुछ न सोच सकेंगे |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
ये फूलों को उपजाता |
सुख दुःख दोनों हालातों में ,
ये सामंजस्य बिठलाता |
इन्सानियत खो गयी कहीं पर ,
सूरज मानवता का डूब रहा |
घृणा द्वेष को रखकर मन में ,
सबको घर का भेदी लूट रहा |
आतंक का साया मानवता पर ,
गिध्द बनकर टूट रहा |
हवस रह गयी अब बस बाकी ,
सब कुछ पीछे छूट रहा |
हुआ लालच हावी मानवता पर ,
दावानल सा फैल रहा |
धर्म प्रेम के ऑगन में ,
अब नाच ये नंगा नाच रहा |
घिरे बादल ऐसे आसमान पर ,
दानव मन हर्षित होता |
दया क्षमा नहीं शेष खून में ,
हैवानियत की फसलें उगा रहा |
मानवता के हैं शेष सिपाही जो,
उनको गिन गिनकर निगल रहा |
है व्यथा बड़ी रहती मन में ,
अंर्तमन में ये मंजर खटक रहा |
मानवता के ही दम पर ,
विकास का रथ चलता रहा |
भाव सुरक्षा का जीवों में ,
मानवता से ही बना रहा |
हमें युध्द की बिभीषिका से ,
दूर यही भाव करता रहा |
दुनियाँ में शांति दूत बन के ,
भाव ये विश्व बंधुत्व फैलाता रहा |
कुछ आततायी क्या दुनियाँ में
मानवता को डस लेगें ,
क्या हम ऐसे ही चुपचाप रहेगें ,
क्या धरे हाथ पर हाथ रहेगें |
जागो उठो करो कुछ तो अब ,
बच्चे हमको न माफ करेंगे |
अभी नहीं जो हमने सोचा ,
फिर आगे कुछ न सोच सकेंगे |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
लगन बिना कोई काम न होता ,
दृढ़ निश्चय बड़ा जरूरी |
लगन लगा ले कर्म से अपने ,
नहीं होगी कोई मजबूरी |
लौ जले जब मन में प्यार की ,
दुनियाँ छोटी पड़ जाती |
रहे अपना पराया कोई नहीं ,
घर घर जलै प्रेम की बाती |
लौ जले जब कभी ज्ञान की ,
अमृत वाणी बरसाती |
होती प्रकाशित जीवन ज्योति ,
सीख के बरसते मोती |
ज्ञान और विज्ञान मिले जब ,
अबिष्कारो की झड़ी लग जाती |
लौ अगर नहीं होती मन में ,
टेक्निक नयी क्या होती |
हरी प्रेम में डूबा मन जब ,
गहरी लगन लगाई |
पदार्थ सब तुच्छ लगे तब ,
भक्ति की मोती पाई |
लौ मन में रहे सजग तो ,
जीवन ने गति पाई |
नहीं रहा कोई झगडा टंटा ,
राह विकास की पाई |
स्वरचित , मीना शर्मा ,मध्यप्रदेश ,
दृढ़ निश्चय बड़ा जरूरी |
लगन लगा ले कर्म से अपने ,
नहीं होगी कोई मजबूरी |
लौ जले जब मन में प्यार की ,
दुनियाँ छोटी पड़ जाती |
रहे अपना पराया कोई नहीं ,
घर घर जलै प्रेम की बाती |
लौ जले जब कभी ज्ञान की ,
अमृत वाणी बरसाती |
होती प्रकाशित जीवन ज्योति ,
सीख के बरसते मोती |
ज्ञान और विज्ञान मिले जब ,
अबिष्कारो की झड़ी लग जाती |
लौ अगर नहीं होती मन में ,
टेक्निक नयी क्या होती |
हरी प्रेम में डूबा मन जब ,
गहरी लगन लगाई |
पदार्थ सब तुच्छ लगे तब ,
भक्ति की मोती पाई |
लौ मन में रहे सजग तो ,
जीवन ने गति पाई |
नहीं रहा कोई झगडा टंटा ,
राह विकास की पाई |
स्वरचित , मीना शर्मा ,मध्यप्रदेश ,
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जहर बड़ा ही घातक होता है , ये जान सभी की लेता है ,
हमें भूले से नहीं इसे छूना है , अवचेतन मन ये कहता है |
बिषधर चंदन से लिपटा रहता है ,पर चंदन शीतल ही होता है ,
हलाहल से सब जग डरता है , पर एकत्रित इसे ही करता है |
वाणी में तो कभी चितवन में , कोई मुस्कान में भी इसे रखता है ,
जहर रिश्तों में छिपा कर रख्खा है, दिल में भी तो छुपा ये रहता है|
अब मत पूछो कहाँ पर नहीं है ये ,जहाँ न चाहो वहाँ पर होता है ,
ये जल वायु खाद्यान वातारण में , चप्पे चप्पे में समाया रहता है|
हर हाल में हम जी लेते हैं , हमें मर मर के जीने की आदत है |
जो संम्हल जायें तो अच्छा है , कौन अमर यहाँ पर होता है |
हम स्वस्थ्य रहें सानंद रहें , हमें चैन से जीने की लालसा होती है |
जीवन में कुछ सुधार हमें करने हैं , फिर अमृतमय जग हो जाना है |
स्वरचित , मीना शर्मा, मध्यप्रदेश ,
हमें भूले से नहीं इसे छूना है , अवचेतन मन ये कहता है |
बिषधर चंदन से लिपटा रहता है ,पर चंदन शीतल ही होता है ,
हलाहल से सब जग डरता है , पर एकत्रित इसे ही करता है |
वाणी में तो कभी चितवन में , कोई मुस्कान में भी इसे रखता है ,
जहर रिश्तों में छिपा कर रख्खा है, दिल में भी तो छुपा ये रहता है|
अब मत पूछो कहाँ पर नहीं है ये ,जहाँ न चाहो वहाँ पर होता है ,
ये जल वायु खाद्यान वातारण में , चप्पे चप्पे में समाया रहता है|
हर हाल में हम जी लेते हैं , हमें मर मर के जीने की आदत है |
जो संम्हल जायें तो अच्छा है , कौन अमर यहाँ पर होता है |
हम स्वस्थ्य रहें सानंद रहें , हमें चैन से जीने की लालसा होती है |
जीवन में कुछ सुधार हमें करने हैं , फिर अमृतमय जग हो जाना है |
स्वरचित , मीना शर्मा, मध्यप्रदेश ,
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नमन भावों के मोती
स्वतंत्र लेखन
रविवार
23,6,2019
जीवन दर्शन होता सबका अपना,
यहाँ पर कोई रोता कोई गाता है।
इस रंग बिरंगी दुनियाँ का सच,
जब नश्तर बनकर चुभ जाता है।
तब बोझ अधूरे सपनों का ही,
बागी तबियत कर जाता है ।
सिलसिला कहीं खुशियों का,
अनवरत जब चलता रहता है।
राग अनुराग प्रफुल्लित हो,
दृष्टिकोण अलग ही देता है।
जहाँ बहती प्रेम स्नेह की धारा,
मानव वहाँ उन्नति पाता है ।
सार्थक जीवन पाने के लिए ,
सकारात्मक सोच पाता है।
जीवन को गति देने के लिए,
दृष्टिकोण मायने रखता है।
धन दौलत तो उपक्रम होता,
क्रियान्वयन ही जीता है।
विचारधारा अगर पावन हो,
समाज को सुथारक मिलता है।
घर परिवार समाज के संग संग,
कल्याण देश का होता है।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
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यादें समेटे
पुरानी दहलीज
भविष्य ढूंढे
उम्मीद की किरण
कल का पता नहीं |
बैरी जमाना
पुरानी तहजीब
उन्मुक्त मन
यौवन दहलीज
बदलती किस्मत |
शिक्षा संस्कार
अध्धयन आधार
रोशन नाम
दहलीज शिक्षक
तराशते जीवन |
नारी जीवन
दहलीज उमंग
सपने नये
जीवन समर्पण
मान सुरक्षा सार |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
पुरानी दहलीज
भविष्य ढूंढे
उम्मीद की किरण
कल का पता नहीं |
बैरी जमाना
पुरानी तहजीब
उन्मुक्त मन
यौवन दहलीज
बदलती किस्मत |
शिक्षा संस्कार
अध्धयन आधार
रोशन नाम
दहलीज शिक्षक
तराशते जीवन |
नारी जीवन
दहलीज उमंग
सपने नये
जीवन समर्पण
मान सुरक्षा सार |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
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बदकिस्मत यहाँ नहीं कोई ऐसा ,
तुझको ईश्वर ने बनाया जैसा |
संसार में कोई नहीं चाहता तुझको ,
जग में दूर सभी ने तुझे भगाया |
हमेशा परेशान तू सबको करता ,
सबसे छीन लिया नीदों का साया |
बड़ी ही अजब गजब तेरी बातों का ,
तुझको कोई जबाब नहीं देने वाला |
होते अलग अलग क्यों बेटी बेटा ,
क्यों बल औरत पै मर्द आजमाता |
हमें पाल पोसकर बड़ा जो करता ,
क्यों हमको भूल उसी का जाये रास्ता |
कोई रातों रात जब अमीर बन जाता ,
कहें वह तो बंदा राजनीति का होता |
हम सबको नेता पर नहीं रहा भरोसा ,
क्या सच में नेता बस बेईमान ही होता |
कहीं पर तो पीते बहुत से मंहगा सस्ता ,
और कहीं पर कोई पीने को पानी तरसता |
कहीं कहीं तो फेंकने के लिऐ खाना परसता ,
और देखो कहीं भूख से कोई बिलखता |
यहाँ पर कोई अमीर कोई गरीब क्यों होता ,
कोई बना बैरागी तो कोई अधिकार छीनता |
न जाने कितने सवाल ऐ प्रश्न तू करता ,
सबको तू क्यों नहीं चैन से जीने देता |
दिखती सुप्त पडी हो जहाँ पै मानवता ,
बार बार क्यों प्रश्नों के वहाँ तीर चलाता |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
तुझको ईश्वर ने बनाया जैसा |
संसार में कोई नहीं चाहता तुझको ,
जग में दूर सभी ने तुझे भगाया |
हमेशा परेशान तू सबको करता ,
सबसे छीन लिया नीदों का साया |
बड़ी ही अजब गजब तेरी बातों का ,
तुझको कोई जबाब नहीं देने वाला |
होते अलग अलग क्यों बेटी बेटा ,
क्यों बल औरत पै मर्द आजमाता |
हमें पाल पोसकर बड़ा जो करता ,
क्यों हमको भूल उसी का जाये रास्ता |
कोई रातों रात जब अमीर बन जाता ,
कहें वह तो बंदा राजनीति का होता |
हम सबको नेता पर नहीं रहा भरोसा ,
क्या सच में नेता बस बेईमान ही होता |
कहीं पर तो पीते बहुत से मंहगा सस्ता ,
और कहीं पर कोई पीने को पानी तरसता |
कहीं कहीं तो फेंकने के लिऐ खाना परसता ,
और देखो कहीं भूख से कोई बिलखता |
यहाँ पर कोई अमीर कोई गरीब क्यों होता ,
कोई बना बैरागी तो कोई अधिकार छीनता |
न जाने कितने सवाल ऐ प्रश्न तू करता ,
सबको तू क्यों नहीं चैन से जीने देता |
दिखती सुप्त पडी हो जहाँ पै मानवता ,
बार बार क्यों प्रश्नों के वहाँ तीर चलाता |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
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नमन भावों के मोती
आज का विषय, सबूत गवाह
दिन, शनिवार
दिनांक, 22, 6, 2019,
दुनियाँ की अदालत में
सदियों से चल रहा मुकद्दमा
वादी प्रतिवादी सब मौजूद
सबूत जगह जगह बिखरे
थे सामने नहीं दिखे
कहीं बच्चे कुपोषित थे
कहीं बच्चियाँ थीं मसलीं
कहीं वामा प्रताड़ित थी
कही देह को लुटाती
कहीं नोंची जाती
थे बेवस कितने बंधुआ मजदूर
सड़कों पर सोते गरीब बेघर
आबाद कितने थे बृध्दाश्रम
कचरे के ढेर में दफन नवजात
कानों में गूँजते तीन तलाक
मातृभूमि को शर्मसार करते
देश विरोधी नारों की आवाज
कितने और कितने सबूत चाहिए
मानवता के दुश्मनों के खिलाफ
गवाह भी मौजूद सबूत भी
लेकिन कैसे होगा न्याय
बंद है आँखे न्याय की देवी की
न्यायमूर्ति के बंधे हैं हाथ
अधिवक्ता का मुँह बंद है
कैसे हो साबित अपराध
धन और बल का बढ़ा दबाव
सबूत और गवाह नाकामयाब ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
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2*भा#किनारा/तट#काव्यः ः
19/6/2019/बुधवार
नमन भावों के मोती
आज का विषय, किनारा / तट
दिन, बुधवार
दिनांक, 19,6,2019,
चल रहे साथ कब से, दूर रहकर किनारे,
चमक जाते हैं इन से, हमारे भी सितारे ।
कभी प्रकृति से किये थे ये किनारों ने वादे,
हमेशा बाँधे रहेंगे वो बहते जल के धारे ।
सदा फलेंगे फूलेंगे यहाँ पर रहने वाले ,
सबका सहारा बनेंगे जल स्रोतों के किनारे ।
पूछ रहे हैं आज सबसे व्यथित ये किनारे,
आज अस्तित्व जल का क्यों नुकसान पाये ।
कभी क्रोधित होकर अगर ये जमीं छोड़ जाये ,
धरती पर फिर कैसे जिंदगी रह पाये ।
खोजा करते हो क्यों जीवन में सहारे ,
अगर आपको चाहिए ही नहीं है किनारे ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
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नमन भावों के मोती,
आज का विषय, पदक
दिन, मंगलवार
दिनांक, 1 8,6,2019,
पदक विजेता बनने का ख्वाब,
कितनी ही आँखों में पलता है।
कर्मवीर के लिए हमेशा जीवन में
कर्तव्य पथ ही पदक होता है ।
आजादी के परवानों का मकसद,
उन्हें अशेष सलाम दिया करता है।
है पदक यही तो सम्मान उनका,
जो कि दिलों में हमारे रहता है ।
कोई खिलाड़ी पदक जीत जब,
अपने राष्ट्रगान का सुख पाता है।
उसके भावों का उद्वेग न पूछो,
राष्ट्र का गौरव बढ़ ही जाता है ।
जब सैनिक की व्याहता के हाथों में,
पदक वीर मृत पति का आता है।
हृदय समंदर की गति न पूछो,
बेताब छलकने को रहता है।
ज्ञान और विज्ञान का सागर ,
पदक का शोध करता रहता है।
इन्हीं महापुरुषों की वजह से,
देश प्रगति की सीढ़ी चढ़ता है।
पदक बढ़ाते हैं उत्साह कर्मठ का,
जीवन बहती धारा बनता है ।
शुभ कर्मों का परिणाम हो दुगना,
अगर प्रसंशक मिल जाता है ।
ध्वेय हमारा यदि अटल नेक हो,
मंजिल पे पहुँचना पदक होता है।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती
आज का विषय, नीयत
दिन, सोमवार
दिनांक, 17,6,2019,
यहाँ पर नीयत ही पहचान सही,
होती है हर इंसान की ।
है दुनियाँ का आधार यही,
टिकी इसी पे धुरी सृष्टि के विधान की ।
नीयत जिनकी होती है खोटी,
उन्हें परवाह नहीं भगवान की।
होती रहे चाहे जहाँ भी बरबादी,
उन्हें बस चिंता है अपने काम की।
छल कपट की बसे दिल में बस्ती,
मुख पर शोभा झूठी मुस्कान की।
लोगों में चर्चा सदा इन्हीं की होती,
कितनी साख गिरा दी इंसान की।
बुरी नीयत कम ही ज्यादा है नेकी,
भाई चारा रह सका है इस धरती।
नीयत अच्छी जो अगर न होती,
कुर्वानी देश हित में नहीं होती।
असहाय दुःखी अपंग लोगों की,
यहाँ पे सेवा हो रही नहीं होती ।
रिश्तों की दीवारों की मजबूती,
न जाने कब की ढह गयी होती।
चर्चा ईमान दान धर्म मानवता की,
हम सब में भला क्यों कर होती ।
भली नीयत ने बनाई दुनियादारी,
नेक नीयत है हर सुख की चाबी ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती
आज का विषय, डाल / शाख
दिन, शुक्रवार,
दिनांक, 1 4,6,2019,
दुनियाँ में शजर हमारे जीवन की अटूट डोर होते हैं,
तोड़ा इसे जो झटके से शाख से फूल बिखर जाते हैं ।
शाख से टूट के नहीं फूल कभी खिल पाते हैं ,
सहारा न हो ममता का अगर पौधे मुरझा जाते हैं।
वृक्ष हमारे जीवन में संदेशा संरक्षण का ले आते हैं,
समर्पित करके खुद को वे पोषण जड़ों का चाहते हैं।
परिवार हमारे पेड़ की शाखों के प्रतीक होते हैं ,
कुटुम्ब के पेड़ के हटकर अपने अस्तित्व को खो देते हैं।
भुलाकर के वृक्षों को हम कब तक भला जी सकते हैं,
संचरित प्राणों को करने वाले पेड़ ही तो होते हैं।
पेड़ों को काटने वाले तो अपने ही कातिल होते हैं ,
क्या जड़ों के बिना भी कभी पत्ते हरे रह सकते हैं ।
हमेशा हरे भरे चमन में ही भावों के फूल खिलते हैं।
सूखे हुए दयारों से अक्सर पंछी भी दूर रहते हैं ।
गुलशन महकता रखने को लोग कोशिश हजार करते हैं,
हम भी तो उन्ही में से हैं हम कैसे अलग हो सकते हैं।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
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नमन भावों के मोती
घर,
मंगलवार
11,6,2019
घर हमारा
बगिया गुलाब की
प्यार आपसी
मलयज समीर
महके एहसास
रेशम डोर
पंछियों का बसेरा
घर घरोंदा
मिलने को आतुर
साथ बहुत भाता ।
सपना एक
तलाश जीवन की
गहरा रिश्ता
सुख दुःख समान
घर की सार्थकता
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
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नमन भावों के मोती
आज का विषय, चक्रव्यूह
दिन, बुधवार
दिनांक, 1 2,6,2019,
एक चक्रव्यूह जीवन सारा,
रचने वाला ऊपर वाला।
गुजरेगा हर आने वाला,
ज्ञान विवेक का ही सहारा।
क्रोध मोह लालच वासना,
माया ममता आसक्ति रचना।
मानव को इनसे ही गुजरना,
प्रगति द्वार रोकती ये संरचना।
बच बच कर पड़ता है चलना,
जगह जगह पर लगा उलझना।
मानव का जीवन है गहना,
इन चोरों से बच कर रहना।
नहीं पाप कर्म का बोझ बढाना,
मुश्किल हो जायेगा चलना ।
हथियार सत्य का थामे रहना,
सारी उमर पड़ेगा लड़ना।
ये चक्रव्यूह जो पार करेगा,
होगा उसका पिय से मिलना।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती ,
आज का विषय, कोयल,
दिन, सोमवार,
दिनांक, 10, 6, 2019,
श्यामल शरीर मनभावन नहीं,
वाणी भधुर मोहक अति वहीं ।
सुन विस्मृत हों क्लेश सब ही,
रीत बोली की कोयल कह रही ।
किसको पता कितनी है जिंदगी,
हम बाँट लें यहाँ पै हँस के खुशी ।
हरेक खुशी मीठे बोल ही में छुपी,
समझा है जो जी उसी ने जिंदगी ।
आज तो नफरतों में दुनियाँ फँसी,
सब को ही तलाश है सुकून की ।
हस्ती मिट रही राग अनुराग की,
सदा चाहिए कोयल के राग की।
हों हरी भरीं जो यहाँ पर वादियां,
कुँहुकें कोयल पेड़ों की डालियाँ ।
खिल उठें सूखीं मन की कलियाँ,
बर्षा हो प्रेम की महक उठे दुनियाँ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
सुलभ बनाया जीवन सबका ,
दी शक्तियाँ कई चमत्कारी |
भूगोल हो गया हमको संभव
कर दी छोटी दुनिया सारी |
लाइलाज अब रहा नही कुछ
रही नहीं कोई बड़ी बीमारी |
बना आवागमन सर्वसुबिथा युक्त ,
उन्नति की नयी दिशा दिखायी |
स्वार्थवश हमने ही दुनियाँ ,
बारूद से है सजाई |
नहीं जरूरत हमको भाती ,
ज्यादा से ज्यादा चाहत आयी |
लालची प्रवृत्ति ने ही तो लूटा ,
अच्छाई में भी घुस आयी बुराई |
विज्ञान नया नहीं अपने लिऐ ,
भारत ने प्रसिध्दि थी पायी |
शांति प्रिय था देश हमारा ,
बिघटन शक्ति नहीं अपनायी |
राज दिलों पर करना सीखा ,
नीति अहिंसा की अपनायी |
कुछ वक्त ने करवट ली ऐसी ,
दुनियाँ भर में उपजे आततायी |
विज्ञान का दुरुपयोग हो गया ,
पालक हाथ बने विध्वशंक दुखदाई |
स्वविवेक ने ही विज्ञान बनाया ,
उन्नति के लिऐ भी यही उत्तरदायी |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
भूगोल हो गया हमको संभव
कर दी छोटी दुनिया सारी |
लाइलाज अब रहा नही कुछ
रही नहीं कोई बड़ी बीमारी |
बना आवागमन सर्वसुबिथा युक्त ,
उन्नति की नयी दिशा दिखायी |
स्वार्थवश हमने ही दुनियाँ ,
बारूद से है सजाई |
नहीं जरूरत हमको भाती ,
ज्यादा से ज्यादा चाहत आयी |
लालची प्रवृत्ति ने ही तो लूटा ,
अच्छाई में भी घुस आयी बुराई |
विज्ञान नया नहीं अपने लिऐ ,
भारत ने प्रसिध्दि थी पायी |
शांति प्रिय था देश हमारा ,
बिघटन शक्ति नहीं अपनायी |
राज दिलों पर करना सीखा ,
नीति अहिंसा की अपनायी |
कुछ वक्त ने करवट ली ऐसी ,
दुनियाँ भर में उपजे आततायी |
विज्ञान का दुरुपयोग हो गया ,
पालक हाथ बने विध्वशंक दुखदाई |
स्वविवेक ने ही विज्ञान बनाया ,
उन्नति के लिऐ भी यही उत्तरदायी |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
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कोरे कागज सा था मन कोरा , जब रिश्ता रिश्तों से था जोड़ा |
रंग प्रेम के रंग गया मन भोला , अपना पराया मन में जोड़ा |
रहा याद नहीं क्यों जग में आया , मोह माया में ही रहा भरमाया |
कोरे कागज सा बच्चा भी होता , जो लिख दो इबारत वही सीखता |
जो संस्कार का पेज वह पढता , जीबन कागज पर वही तो उतारता |
दिल कोरा कागज जब तक होता ,तस्वीरें सपनों की बनाता रहता |
साकार जीवन का हो गया सपना , पतंग कागज की बनकर उडता |
भावों के धनी को कागज प्यारा , अपने भावों को दिल से उकेरा |
खूब साहित्य को समृध्द बनाया , दर्पण समाज के लिऐ बनाया |
कुछ लोगों ने दायित्व भुलाया , साहित्य सागर को मैला कर डाला |
कर लिया बुराई से समझौता , और गले से दौलत को लगाया |
जिसने कागज के उपयोग को समझा , जीवन में नहीं खाया थोखा |
कागल की जीवन बडी उपयोगिता , इस पर लिखा प्रमाण बन जाता |
जो ध्यान पूर्वक कागज को पढता ,जीवन में उसको मिले सफलता |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
रंग प्रेम के रंग गया मन भोला , अपना पराया मन में जोड़ा |
रहा याद नहीं क्यों जग में आया , मोह माया में ही रहा भरमाया |
कोरे कागज सा बच्चा भी होता , जो लिख दो इबारत वही सीखता |
जो संस्कार का पेज वह पढता , जीबन कागज पर वही तो उतारता |
दिल कोरा कागज जब तक होता ,तस्वीरें सपनों की बनाता रहता |
साकार जीवन का हो गया सपना , पतंग कागज की बनकर उडता |
भावों के धनी को कागज प्यारा , अपने भावों को दिल से उकेरा |
खूब साहित्य को समृध्द बनाया , दर्पण समाज के लिऐ बनाया |
कुछ लोगों ने दायित्व भुलाया , साहित्य सागर को मैला कर डाला |
कर लिया बुराई से समझौता , और गले से दौलत को लगाया |
जिसने कागज के उपयोग को समझा , जीवन में नहीं खाया थोखा |
कागल की जीवन बडी उपयोगिता , इस पर लिखा प्रमाण बन जाता |
जो ध्यान पूर्वक कागज को पढता ,जीवन में उसको मिले सफलता |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
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उड़ती मन पतंग सुध बुध बिसार आगे आगे सबसे आगे बादलों के पार अम्बर की ओर
जीवन की डोर रखती संयम कभी लहराती कभी तन जाती मंडराती कभी भाव विभोर |
ये पतंग लिऐ रंग हजार हर पल बुने सपनों के जाल खुशियों की चाहत में बड़ी बेकरार |
जाने मगर माने नहीं कटना ही सत्य टिकना नहीं चलती चले हारे नहीं वो जीवन से हार |
जब तक जियो उडते रहो लक्ष्य को छोडो नहीं आकाश से मिलना ही है फिर कैसी हार |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
जीवन की डोर रखती संयम कभी लहराती कभी तन जाती मंडराती कभी भाव विभोर |
ये पतंग लिऐ रंग हजार हर पल बुने सपनों के जाल खुशियों की चाहत में बड़ी बेकरार |
जाने मगर माने नहीं कटना ही सत्य टिकना नहीं चलती चले हारे नहीं वो जीवन से हार |
जब तक जियो उडते रहो लक्ष्य को छोडो नहीं आकाश से मिलना ही है फिर कैसी हार |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
सबको प्यार
रहता हाथों हाथ
कागज मुद्रा |
आया बुढापा
कागज ही सहारा
जीना आसान |
लेखनी हाथ
कागज पर भाव
प्रेरणा बने |
मोहित मन
सपने सुनहरे
कागज रंगे
कोरा कागज
कल्पना चित्रकार
होती साकार |
घर संसार
तलाक के कागज
विश्वासघात |
यादें पुरानी
कागज के खिलौने
नाव पतंग |
दबे कागज
भ्रष्टाचार फाइल
गरीब लोग |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
रहता हाथों हाथ
कागज मुद्रा |
आया बुढापा
कागज ही सहारा
जीना आसान |
लेखनी हाथ
कागज पर भाव
प्रेरणा बने |
मोहित मन
सपने सुनहरे
कागज रंगे
कोरा कागज
कल्पना चित्रकार
होती साकार |
घर संसार
तलाक के कागज
विश्वासघात |
यादें पुरानी
कागज के खिलौने
नाव पतंग |
दबे कागज
भ्रष्टाचार फाइल
गरीब लोग |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
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नमन भावों के मोती ,
दिन ,रविवार ,
दिनांक, 3,2,2019,
स्वतंत्र लेखन ,
**मौन क्यों **
थी गरिमामयी पंरम्परा हमारी
भारत देश में इज्जत नारी की
सब पास पडोस गांव शहर की
हमें बहिन बेटी ही लगती सारी |
पर दीवार वक्त ने बना दी ऐसी
अब कैसे जियेगी ये अपनी बेटी
नहीं कोख में भी जो जी पाती
वो जिंदा रहकर क्या जिंदा होगी ?
नहीं सुरक्षित जो घर में रह पाती
जब पास पडोस की नजर है खोटी
यहाँ हर बात की बस वही हैं दोषी
तो मस्तक ऊँचा वो कैसे रख्खेगी ?
पर कभी ये हार नहीं मानती बेटी
हर एक चुनौती हसकर वो ले लेती
दायित्व सभी रिश्तों का है निभाती
भाईयों पर भी अब ये भारी पड़ती |
अब बात यही एक मन में आती
यहाँ अपनों के लिऐ ही जो जीती
कुप्रथा की जंजीरों में क्यों जकडी
लक्ष्मण रेखा इस जग ने क्यों खीची |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
आर्त चीत्कार
भेडिये बलवान
लाश इंसान |
दुर्घटनाएं
सड़क शमशान
मौन इंसान |
सहायतार्थ
प्राकृतिक आपदा
सच्चे इंसान |
बाँटते खुशी
चेहरों पर हसी
इंसान यही |
जर्जर तन
पहुँचे बृध्दाश्रम
खोये इंसान |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
चंचलता के रंग में डूबी हुयी , दुनियाँ की हर इक शय रहती है
इन्सानों को ये नित रंग नये नये , हर पल ही दिखलाया करती है |
कब क्या होगा ये कोई न जाने, धोखे में सबको ही रखा करती है,
हमेशा अपनी सुबिधा से ही , ये दुनियाँ करवट बदला करती है |
मानव मन का नहीं कोई ठिकाना , कब किस करवट बैठने वाला है ,
रंज कभी कभी खुशी कब करे कटाक्ष , कब वाह वाह करने वाला है |
कभी तो ये साधु बड़ा ज्ञानी ध्यानी रहता ,परोपकारी बडे दिल वाला है ,
कब करवत बदल कर के झटपट , वह लालच के दरिया में कूदने वाला है |
संसार राजनीति का भी अनोखा , ऊट किस करवट बैठने वाला है ,
कब राजा यहाँ पर रंक बन जाये , इसे नहीं कोई भी जानने वाला है |
होता वक्त बड़ा ही अजब खिलाड़ी , वो कब कहाँ क्या चलने वाला है ,
जग में कौन हुआ है पैदा ऐसा , जो इसकी फितरत को समझने वाला है |
रिश्ते भी होते मायाजाल से लिपटे , कहाँ करवट कौन बदलने वाला है ,
यहाँ पर महसूस दर्द तो वही करेगा , जो ठोकर को खाने वाला है |
घड़ी घड़ी दिल की धड़कन लेखन मेरा , यही बस दुआ माँगने वाला है ,
ऐसी करवट न ले कोई भी यहाँ , जिससे किसी का भी अनिष्ट होने वाला है |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
वसन लाल
दुल्हन का श्रृगार
रीत विवाह |
चीर आबरू
तलवारें रूबरू
करें सुर्खरू |
चीर हरण
द्यूत क्रिया कारण
हरि शरण |
वस्त्र निर्माण
हो जीविका आसान
कला सम्मान |
चाहिऐ थोड़ा
रोटी कपड़ा छाया
तृष्णा है माया |
नजर दोष
करते वस्त्र क्षोभ
ये कैसा क्रोध |
चीर मर्यादा
चला चलन पर्दा
ओछा इरादा |
बालिका तन
मतलब वसन
घृणित कृत्य |
नारी की लाज
वस्त्र की मोहताज
कैसा समाज |
पापी है मन
बना दोषी वसन
नारी नमन |
चीर महत्व
महिला का अस्तित्व
पूज्य व्यक्तित्व |
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मर्ज आफत
भूली है शराफत लोग गायब |
बीमारी कैसी
चली रिश्तों पे कैंची
भूला पडोसी |
प्रेम का रोग
नहीं मिला संजोग
दीवाने लोग |
आयी बीमारी
भागमभाग भारी
दुनियाँ सारी |
अजब रोग
बदल गये लोग
भ्रम का योग |
हम डॉक्टर
घरेलू उपचार
मर्ज तैयार |
वैद्य विलुप्त
परीक्षण संयुक्त
बीमारी मुक्त |
कहते सभी
रोग धन की कमी
कैसी ये जमी |
प्रतिष्ठा झूठी
सारी दुनियाँ लूटी
बीमारी होती |
मर्ज भगाओ
काया निरोगी पाओ
जाग्रति लाओ |
रोग निदान
स्वच्छता अभियान
सुखी जहान |
टीकाकरण
शिशु अवतरण
रोग हरण |
उत्तम स्वास्थ्य
भोजन हो सुपाच्य
मर्ज नैराश्य |
दूर हो रोग
हो प्रेम सहयोग
सुख का भोग |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
समझे नारी
वस्त्र तीमारदारी
है ये जरूरी |
निखरा रूप
वसन है अनूप
शक्ति स्वरूप |
सभ्यता यही
परिधान हों सही
मन की कही |
व्यवसाय है
विकास चलता है
वस्त्र शान है |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
रुक जा ठहर जा बादल ,
मेरा दिल पुकारता है |
तुम रूठा करो न मुझसे ,
बस इतना चाहता है |
कब से धरती लगाये आशा ,
धानी चुनर वो ओढे |
कहीं सजने संवरने का ,
मौसम यूँ ही न बीते |
सावन की घटाओं को ,
मौसम पुकारता है |
बरसो काली बदरिया ,
यही पपीहरा चाहता है|...........
पूछते हैं सब आपस में ,
जग में नर और नारी |
गलती हुई क्या हमसे ,
जो रास्ता भुला दी |
अब दूरियाँ मिट जायें ,
यही वक्त पुकारता है |
यहाँ तृषित है हर पंछी,
बस उर तृप्ति चाहता है |.........
बादल तो हैं पर उपकारी ,
सब ने बात यही कही |
होते जग के पालन हारी ,
दुनियाँ निर्भर उन पर रही
हैरान हर शय दुनियाँ की ,
अब तुमको पुकारती है |
सुन लो पुकार सब की ,
प्रकृति यही तो चाहती है |...............
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
आज का विषय , स्वतंत्र लेखन , पिरामिड , देश ,
दिन , रविवार ,
दिनांक, 10, 3, 2019 ,
वो
कौन
करता
कमजोर
अपना देश
लालच कुर्सी का
भ्रष्ट मानसिकता |
ये
देश
महान
बलिदानी
कर्तव्यनिष्ठ
सजग जनता
समर्पण गहना |
है
माटी
पावन
देश धरा
पूजा करते
हृदय हमारा
हिन्दुस्तान है प्यारा |
वो
लोग
साधना
देश धर्म
जीवन धन
त्याग बलिदान
पूजनीय सर्वदा |
है
नहीं
सम्मान
प्रधानता
सत्ता की चाह
देश के दुश्मन
जरूरत दर्पण |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
धन दौलत और रूपया पैसा ,
कुछ भी नहीं है इसके जैसा |
दुनियाँ के हर रहने वाले ने ,
यहाँ बिल्कुल ऐसा ही सोचा |
अनुभव ही मानव जीवन को ,
तरह तरह के रंग दिखलाता |
प्रमुख गौण है क्या जीवन में ,
सब कुछ हमें यही सिखलाता |
जब से है बच्चा होश में आता ,
चारों ओर ही दौलत को पाता |
रिश्ते नाते हों या जीवन यापन ,
एक ही बात है बस पैसा पैसा |
ज्यों ज्यों जीवन ये आगे बढ़ता ,
अधिक मजबूत धारणा को पाता |
उसका उद्देश्य बस पैसा बन जाता ,
जीवन को समर्पित पैसे को करता |
माना दौलत जीवन में बहुत जरूरी ,
हर विकास की होती यह डोरी |
पर नशा नहीं कभी इसका करना ,
औषधि तुल्य ही उपयोग है करना |
जीवन दर्शन ज्ञान विज्ञान रखना ,
दौलत परहित ही में खर्च करना |
आधार जीवन का प्रेम ही होता ,
धन से सामंजस्य बिठाकर रखना |
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
यहाँ बन गई है सौदेबाजी किरकिरी आँख की,
हमेशा हम सबकी आँखों में गडती रहती |
कोई चाहे लाख छुपाऐ यह छुप नहीं सकती ,
सबके जीवन में आँसू बनकर बहती रहती |
हो मैदान या पहाड़ हो चाहे हो फिर कोई घाटी,
दिखती रहती है हमें नेताओं के रूप में सौदेबाजी |
मंदिर मस्जिद गुरूद्वारा चाहे बात करें गिरजाघर की,
सदा झांकती रहती है दरवाजों से सौदेबाजी |
हो मुंडन कनछेदन जन्म दिन चाहे कोई शादी,
ढोलक की थापों पर नाचती रहती है सौदेबाजी |
शिक्षा का मंदिर हो या बात करें किसी दफ्तर की,
कैसे कैसे रंग दिखाती रहती है हमको ये सौदेबाजी |
कोई बात नहीं आज की है ये तो बात है सदियों की,
सतयुग तो बच न सका बात करें क्या कलियुग की |
जब सिध्दांत नहीं कोई होता और आत्मा मर जाती,
वर्चस्व कायम करने के लिए ही सौदेबाजी की जाती |
काबिल आँसू बहाता है यहाँ मौज नकारे की होती,
दोषी तो सामने रहते हैं पर सजा नहीं उनको होती |
अन्याय रहेगा जब तक जिंदा होती रहेगी सौदेबाजी,
है बात हमारे हाथों में चाहें तो बदल जायेगी परिपाटी |
नहीं दानी कोई धरती के जैसा बनी इसीलिऐ धरती माता ,
पर उपकार की यह देती शिक्षा रखती नहीं है कोई भी अपेक्षा |
दे कर वनस्पतियों का खजाना जीवन को है सुगम बनाया ,
उर अंर्त बहती जल की धारा सिंचित होता प्राण हमारा |
खनिजों का भंडार लुटाकर दुनियाँ को समृद्ध बनाया,
रत्नों की खान बनी यह हमें इसने ही श्रृंगार सिखाया |
जन्म दिया इसने माटी से फिरआखिर में गोद में सुलाया,
ऋण नहीं कभी चुकता इसका हमने फिर भी बिसराया |
बाँट लिया इसको टुकड़ों में अलग अलग है नाम धराया ,
खून खराबा किया हमेशा हमनें मानवता को झुठलाया |
जो पालन पोषण अपना करती देती है ममता की छाया ,
शीश झुकायें नमन करें हम बनता यही है कर्तव्य हमारा |
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
एक पर्दा ही तो किवाड़ का रहता, आवरण हीन कोई जी नहीं सकता ।
होती हर किसी की अपनी मर्यादा, होगा सम्मान बिना भी कैसा जीना ।
पीछे किवाड़ के रहे छुपी गरीबी,इससे कभी जीत सकेगी नहीं अमीरी ।
रहें कुरीतियाँ बंद किवाड़ के भीतर , बातें विकास की होती रहतीं जर्जर ।
रंग ऐसा राजनीति के किवाड़ पर , कभी अश्क अपना नहीं दिखता उम्र भर ।
प्यार पिया का बंद मन के किवाड़ में ,फिर आजादी नहीं मिलती जीवन में ।
बंद रहतीं सांसे मन के किवाड़ में ,इसी से जले जीवन ज्योति इस संसार में ।
बंद किवाड़ लगते तभी तक अच्छे , जब तक उनमें गुनाह नहीं पलते ।
वे लोग किस्मत के किवाड़ बंद करते, यहाँ पर जो भी शिक्षा से दूरी रखते ।
खोलो किवाड़ नयी रोशनी आये अंदर , कोई भी विकार रहे न मन के अंदर ।
अब किवाड़ हृदय के खोलो दो सारे , इससे फैलने लगेंगे प्रेम भाव के उजियारे ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
*दुनियाँ *****
नहीं कोई तेरा न है तू किसी का, दुनियाँ मतलब की साथी रहेगी |
अंधेरे उजाले फूल हैं इस चमन के, गुजर तुझको इन से ही करनी पड़ेगी |
आया है अकेले तुझे जाना भी अकेले, तुझे अकेले ही रुखसत करनी पड़ेगी |
बहुत ही वेवफा है ये जिदंगानी, तुझे मुहब्बत इसी से करनी पड़ेगी |
नाम अपना जहाँ में रह जाय जिंदा, कुछ कमाई ऐसी भी करनी पड़ेगी |
करें काम हम वो हो न किसी की बुराई, हमें रब ने भेजा करने भलाई |
मुफ्त की बातों में गँवायें न जिदंगानी, करें कुछ इबादत जीत लें हम खुदाई |
मौका न देगी बेरहम है जिदंगानी,आज ही हम करें जो भी करना कमाई |
किसी को कल की तस्वीर पडी न दिखायी, न दुनियाँ किसी के कभी हाथ आई |
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
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