Wednesday, October 31

"ऐतबार "31अक्टूबर2018


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विधा- पद्य

चिथड़े हुई जिंदगी को,
पैबन्द-ए-तबस्सुम सजाती रही।
हँसने की कसम खाई थी,
सो हँसती-मुस्कुराती रही।

उम्र की दहलीज पर पाँव रखती हुई,
अनमनी सी कदम मैं बढ़ाती रही।

करीब मंजिल के पहुँची पता ये नहीं,
करीब मंजिल ही मेरे आती रही।

इंतिहा हो गई हर उम्मीद की,
शम्मअ जलती रही शब्बअ ढलती रही।

उठ गया ऐतबार-ए-मुकद्दर तेरा,
तू छलता रहा मैं छली जाती रही।

लुट गए ख्वाब सब बिखर गई जिंदगी,
साँस लावारिस युँ ही कसमसाती रही।

जिंदगी की तलब में मैं जिंदगी भर,
दाँव पर जिंदगी ही लगाती रही।

इस तरहा जिंदगी बसरती रही,
या कहो कि मैं खरचती रही।
#
"स्वरचित"
- मेधा नारायण.

कविता
तन्हाईयों में गुजरती 
सुबह से शाम
तेरे साथ गुजरा 
वो जमाना हुआ 
ऐतबार फिर क्यों तेरा है

बीच मझधार 
डूबती मेरी नैय्या 
मिलता नहीं किनारा है
ऐतबार फिर क्यों तेरा है 

चाँदनी रातों को 
सितारों संग
जलता चँदा है
दिल में मेरे अंधेरा है 
ऐतबार फिर क्यों तेरा है 

यादों को जीती रही रातभर
भोर वो ओस की बूँदोंसे 
नहाया है
ऐतबार फिर क्यों तेरा है 

अब तक दिन ने भी
धूप से हाथ नहीं
मिलाया है
छाया घना कोहरा है 
ऐतबार फिर क्यों तेरा है 

जीवन के सफर में 
मिला गमों का साया
सीने में दफनाया है 
ऐतबार फिर क्यों तेरा है 

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)पश्चिम बंगाल


हथेली पे फिर शौक से जान रख।
थोड़ा सा सब्र और इत्मीनान रख।


कोई शै नही दूर रहें पावं जमीं पे।
निगाहों में चाहे तो आसमान रख।

जन्नत कहां अगर जो नहीं है यहाँ।
तू बस एक ख्यालों में अमान रख।

नंगी है तो कभी एतबार न करना। 
साथ में ही तलवार के मयान रख।

ना कुछ न छिपेगा लाख छिपा ले।
तू सच्चा करम सच्चा बयान रख।

दोस्त को ये दुश्मन बना सकती है। 
सोच ले फिर तोल कर जबान रख।

माना कि मुश्किल ठहरना हवा में। 
हैं शर्त इरादों के आगे उडान रख। 

किससे निभेगी छोड तुझे सोहल। 
ऐसे नामुराद का ना अरमान रख। 

विपिन सोहल



पता नहीं चलता अब की कौन यार किसका है
अपने ही देते है दगा #एतबार किसका है।

बिकी है न्यायपालिका अब सारी की सारी
सजा किसे मिली और अत्याचार किसका है।

बंदिशे रही नहीं चलती है अब तानाशाही
करिए जो भी है करना इनकार किसका है।

न इतराओ तुम जो मिला धन जरा-सा तो
क्षणिक है जीवन फिर इतना खुमार किसका है।

फायदे का है सौदा पाने है सभी आतुर
सारे हामी भरते पर इकरार किसका है।

दिखे बाहर जो गोरे अंदर से है काले
जानोगे कैसे अच्छा व्यवहार किसका है।

स्वरचित
रामप्रसाद मीना'लिल्हारे'

चिखला बालाघाट मध्य प्रदेश




थोड़ी सी खुशियाँ,थोड़े से गम।
यही है नाम जिंदगी का।
लोगों पे करो ऐतबार।
यही है सार जिंदगी का।
तुम करोगे गर ऐतबार।
तो उन्हें भी होगा तुमपर भरोसा।
चार दिन की है जिंदगी।
कल का क्या भरोसा जिंदगी का।
कोई धोखा देगा बस एक बार।
पर मेरा उठ जायेगा उसपे भरोसा।
इसलिये भरोसा मत तोड़ो किसीका।
ऐतबार पर हीं टिकी है दुनियाँ।
वरना कौन यहाँ किसीका।
कारण यही है लोगों से जुड़े रहने का।
वरना दुनियाँ में क्या मतलब है रिश्तों का।
वीणा झा
स्वरचित
बोकारो स्टील सिटी


पल प्रतिपल जीवन का अनुभव,
करता सृजन मनस प्रतीति का,
मन की प्रतीति से शनै शनै शुचि,
मानस तल पर पलता ऐतबार।

ऐतबार के साथ हृदय अन्तर्गत,
होते जज्बात चारु अंकुरित,
ऐतबार जज्बात योग से,
मानवीय सम्बन्ध सुदृढ़ शुचि।

ऊर्जावान सफल जीवन हित,
अपरिहार्य खुद पर ऐतबार,
सम्बन्ध निकटतम मध्य सदा,
ऐतबार शुचि अत्यावश्यक।

रहती बनी खुदा की रहमत,
जीव चराचर पर धरती के,
मानव प्रजाति दृढ़ ऐतवार यह,
विश्वास आत्म में वृद्धिकारक।

ऐतबार कारण सशक्त अति,
उर -प्रेम मधुरतम मुस्कानों का,
टूट सदा यह ऐतबार ही,
छलका जाता आँसू लोचन में।
--स्वरचित--
(अरुण)



खुद पर भी न अब मुझको ऐतबार है
ये कैसा अहसास कैसा का करार है ।।

मैं देखता रहा उन हसीन नजरों को 
लब्ज कुछ न कहे ये लब्ज खतादार है ।।

ये लब्ज मेरे अपने हैं पर दगा किये 
क्या अपनों पर भी नही अधिकार है ।।

मैं मग्न था उन आँखों में वक्त ने खींचा 
वक्त का पता न हर शख्स से सरोकार है ।।

वो वक्त ही था जिसने कराया था दीदार 
अब वक्त ने ही बनाया दिल को लाचार है ।।

दुनिया की हर शै ने इंसान को यहाँ ठगा 
और कहते कि इंसान बहुत समझदार है ।।

लगता ज्यों इंसान ठगने के लिये ही आया 
फिर भी वो करता यहाँ प्यार बेशुमार है ।।

ये उसकी दरियदिली है या कोई मजबूरी 
टालता हूँ हँस कर हरेक ही तजुर्बेकार है ।।

एक मैं ही नही अकेला ''शिवम" क्यों सोचूँ
इतना कहे दिल हंसता जो रोता जा़र जा़र है।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"



भारत मां,
कहती आ रही है,
मैं अपने बेटों पर,

एत वार करके,
रो रही हूं।
राजनीति दलों को,
अपना समझ के,
मुझे मेरे हाल में छोड़,
दर वालों के सामने,
हाथ जोड़े खड़े रहते हैं,
मुझे बहुत दुखी होता है।
मेरे बच्चे दलों को,
अपना समझ,
गुम राह हो गयेहै।
गांधी बापू कह गयेहै,
जब तुम संसद में बैठो,
दल को संसद के बाहर छोड़ के भारत मां के बारे सोचना,
लेकिन गांधी बापू की बात भूलगये।
सत्ता के मद में भारत जननी कोभूल ,दलों को अपना समझ रहे हैं,
मैं भारत जननी,
अपने बेटों पर एतबार कर,
आज रो रही हूं।
सर्वर चित देवेन्द्र नारायण दास बसना।।


अश्क आँखों से बहाकर कोई इकरार करे...
संग दिल दुनिया में कैसे कोई इज़हार करे....

ले मुझे डूबा मेरा दोस्त मांझी वो मेरा… 
कैसे अपनों पे भी क्यूँ अब कोई ऐतबार करे…

अपने होंठों पे सजाओ गीत ऐसा कोई....
आग सावन की न दिल पे कोई भी वार करे...

रोज़ अब किस से कहें हम अपना तन्हाई-ए-गम...
याद करके दिल क्यूँ खुद को शर्मसार करे...

आज फिर दिल को रुलाया और समझाया है...
चाँद आयेगा ज़मीं पर क्यूँ तू एतबार करे… 

कौन लेता है जहां भर के ग़मों की दौलत...
जो तबाह इश्क़ में न शिकवा कभी यार करे…

II स्वरचित - सी.एम्. शर्मा II 




० दोहे ०
वादे करके तोड़ते, पहुँचाते आघात ।
एतबार लायक नहीं, नेताओं की बात ।१।

एतबार उसका करो, जो सच्चा इंसान ।
प्यार लुटाता हो सदा, तजकर निज अभिमान ।२।

एतबार करना नहीं, सुनकर मीठे बोल ।
है कैसा इंसान वह, पहले नब्ज़ टटोल ।३।

पता लगाना ही उचित, किसके मन में खोट ।
एतबार जब टूटता, दिल पर लगती चोट ।४।
० श्लेष चन्द्राकर ०
(स्वरचित एवं मौलिक)



सभी धर्म ग्रंथों का तुम एतबार करो
एकता पाठ पढ़ाते सब स्वीकार करो

आए कोई अतिथि जब घर तुम्हारे
पहले उसका तुम खूब सत्कार करो

कभी यतीम खाने भी जाया करो
उनके सर पर रख हाथ दुलार करो

मां को आश्रम में छोड़ने से पहले खूद
अपनी वृद्धावस्था का भी दीदार करो

स्वर्ग और नरक जमीन पर ही रहता है
सच्चे झूठे कर्मों से अपने साकार करो

स्वरचित 
मुकेश भद्रावले 




विधा.. लघु कविता 
*********************
🍁
ऐतबार का झरना मेरा,
सूख रहा है अब तो।
दिल ने इतना धोखा खाया,
डर लगता है अब तो॥
🍁
आँखो से टकराती आँखे,
मन मे प्रीत जगाती है।
पर मन मे किसके क्या है,
यह बात नही बतलाती है॥
🍁
ऐसे ही भावों के चलते,
कितने छल हो जाते है।
गैरो पर हो ऐतबार तो,
मुश्किल मे पड जाते है॥
🍁
शेर हृदय का भावुक मन,
हरदम ही छलनी होता है।
ऐतबार गैरो पर कर के,
मुश्किल जीना होता है ॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf



हे प्रभु आशीष मुझे दें ऐसा
ऐंतवार स्वयं पर कर पाऊँ।
आत्मशक्ति यदि बडे मेरी तो,
अखिलेश प्रगति मै कर पाऊँ।

ऐंतवार जो श्रीराम पर मेरा,
नहीं किसी पर मै कर पाऊँ।
आत्मविश्वास मेरा बड जाऐ,
तब शायद गैरों पर कर पाऊँ।

सारी दुनिया निपट स्वार्थी,
नहीं कोई ऐंतवार के काविल।
दगाबाज मिलते हैं निशदिन,
नहीं कुछ कर पाऐं हाशिल।

हम सशक्त हमारा देश रहेगा।
आपस मेंजब ऐंतवार रहेगा।
टांग खींचते रहे एकदूजे की,
जीवित यदि प्रतिकार रहेगा।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी 



नही करो ऐतबार किसी का ,कर्म करो जी ।
बिना किये पाने हित , न बेशर्म बनो जी ।।

-1-
राम कृपा होगी जब, हम कुछ काम करेंगे ।
बोयेंगे बबूल तो कैसे , आम मिलेंगे ।।
सत्कर्मों को करके , पहले धर्म करो जी ।
बिना किये पाने हित ,न बेशर्म बनो जी ।।

-2-
रामभरोसे ढोवो न , जीवन की नइया ।
बन अपंग जावोगे, सुनलो मेरे भइया ।।
ज्ञान, ध्यान निज बलका, अपने, मर्म करो जी ।
बिना किये पाने हित ,न बेशर्म बनो जी ।।

-3- 
जिन पर था ऐतबार सुनो, मनकी सरकार चलावै ।
जिनके बल से हुये सबल, उन सबको आज रुलावै ।।
सभी आपके क्यों? ,आपस मे फर्क करो जी ।
बिना किये पाने हित, न बेशर्म बनो जी ।।

राकेश तिवारी " राही " स्वरचित


करना होग ऐतबार दूसरो पर
तभी जीवन हमारा आसान होगा

कल क्या होगा किसने जाना
आज पर ऐतबार रखना होगा

आज नही तो कल पूरे होगें सपने
यह स्वीकार हमें करना होगा

धोखा, बेईमानों से भरी है दुनिया
यह सोचना सही नही होगा

"कर्म-उतम" तो "फल भी उतम"
इस मर्म को हमें समझना होगा

जीवन नही है फूलों का सेज
काँटों से दामन बचाना होगा

भाग्य भरोसे बैठे नही हम
पुरुषार्थ पर ऐतबार रखना होगा

जिसनें बनाया यह सुन्दर दुनिया
उस पर ऐतबार करना होगा।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव



नदियों का प्रेम-प्रवाह,
फूलोंकांटोका साथ 
श्रद्धावनत तरु की कतार
पलके मूंदे नयन 
बहती अश्रुधार 
पिंजरा बंद खग वृंद
उन्मुक्त होने की चाह****

एतबार करो🎉🎉🎉

एक दूजे पे एतबार 
जीवन बने रसधार 
शंका आशंका की मंझधार
ज्यों टूटे नाव की पतवार ****

एतबार करो 🎉🎉

वह बचपन की अठखेलियां 
भाई बहनों की मिठी झड़प 
माता पिता की प्यारी मीठी डांट 
आज भी जेहन में जिंदा है **** 

एतबार करो 🎉🎉

विद्यालय की सखी सहेलियां 
कक्षा बंक की वह मिठास 
टीचर जी की वह पीठ थपकी 
खोमचे पानीपुरी वाले भैया
वोअविस्मरणीय दिन *****

एतबार करो 🎉🎉

जिंदगी में जरूरी है ऐतबार,
बार-बार हर बार।

ऐतबार बिना टिकता नहीं प्यार,
ऐतबार जैसे तलवार की धार।

टूटे तो बिखर जाए संसार,
बिखर जाए घर-परिवार।
करना ही पड़ता है ऐतबार।

ऐतबार ही कराए पहचान,
अपने-पराए, दोस्त-दुश्मन की। 

ऐतबार तो है बात मन की, 
जीवन पर जीवन की आस्था की। 

दरक जाता है छोटी - छोटी बातों से, 
धोखे, शक और झूठी चालों से। 

प्रगाढ़ से प्रगाढ़ संबंध भी टिकते नहीं, 
टूट जाएं तो फिर जुड़ते नहीं। 

दिल से दिल के रिश्ते भी टूट जाते हैं, 
अंधकार से जीवन घिर जाते हैं । 

बिना ऐतबार परख होती कहां हैं? 
ऐतबार से ही चलता ये जहां हैं। 

करना ही पड़ता है ऐतबार, 
बार - बार हर बार । । 

अभिलाषा चौहान 

स्वरचित


ऐतबार का कोई चेहरा नहीं होता
संज्ञा भाव प्रसंग बनकर
प्रमाण ख़ुद में ही होता।
यदि इतिहास के कुछ टटोलोगे पन्ने
जो स्वयं में ऐतबार का प्रमाण संजोते।
वन में था जिसका रैन बसेरा
प्रभु राम का किया नित ध्यान भतेरा
इक दिन प्रभु राम के दर्शन पाए
झूठे बेर से उनकी भूख मिटाई
उसकी भक्ति और मर्यादित प्रभु राम
शबरी जीवन का यह प्रसंग ऐतबार प्रमाण कहलाता 
महाभारत की कथा पुरानी दुशशासन करनी जग जानी
द्रौपदी का खींचा चीर भरी सभा में अपमान किया
लाज की मारी अबला बेचारी
चक्रधारी को याद किया
पुकार सुनकर दौड़े गिरधारी
चीर बढ़ाकर लाज बचाई 
द्रौपदी जीवन का यह प्रसंग ऐतबार प्रमाण कहलाता ।
शैशव अवस्था में प्रभु प्रेम की ज्योत जलाई
कुसुमबी साड़ी और भक्ति से भोग लगाया
विष का प्याला और प्रभु का ध्यान
मीराबाई के जीवन का यह प्रसंग 
ऐतबार प्रमाण कहलाता ।
विष्णु का था बड़ा ही परम भक्त
लेकर होलिका ने उसको गोद में 
जलती आग में झोंक दिया
प्रभु की भक्ति में लीन
तनिक ना उसका तन जला
भक्तों में भक्त शिरोमणि कहलाए
प्रहलाद जीवन का यह प्रसंग ऐतबार का प्रमाण कहलाता । 
साधु के वेश में रावण ने
अनैतिकता का प्रमाण दिया
किया सीताहरण और निवास अशोक वाटिका बना दिया 
प्रभु राम ने उसका वध करके
सीता प्यारी को छुड़ा लिया
घी के दीपक ख़ूब जलाए
पर सीता शुचिता पर सवाल किया
अग्निपरीक्षा देकर निज पवित्रता को सिद्ध किया
सीता मैया के जीवन का यह प्रसंग
ऐतबार प्रमाण कहलाता।
स्वरचित
संतोष कुमारी


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ऐ मेरे हमसफर ऐतबार कर
मेरी कुछ अनकही बातों का।
ऐ मेरे हमसफर ऐतबार कर
तेरे मेरे बीच के जज़्बातों का।।
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ऐतबार पर कायम है ये दुनियां
बिन ऐतबार प्रेम-कल्पना नहीं।
ऐतबार से ही सुदृढ़ बने रिश्ते
बे बुनियाद शक पर नहीं।।
∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆
जिंदगी इम्तहान ले जब कभी
तुम साथ रहना मेरे हमसफर।
ऐतबार करना ऐ मेरे हमदम
सुख चैन से गुजरे ये सफर।।
∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆∆
●स्वरचित●
◆सुखचैन मेहरा◆


कर ऐतबार तुझपर,
सब कुछ हार गई,
देखकर तेरा रूप असली,
मन पे लगे घाव कई,
ऐतबार जो टूटा,
खुशियों बिखर गई,
दुनियाँ थी तेरी कभी,
आज दिल से निकल गई,
झूठे वादे, झूठी बातें,
झूठा तू दिलदार मिला,
वफा से भरा दिल मेरा,
तोड़ दिल दिया अच्छा सिला।

स्वरचित-रेखा रविदत्त



आज वो पहला सा एतबार कहाँ, 
इस हरियाली में भी वो बहार कहाँ, 
कहते थे जो जी न सकेंगे तेरे बिन, 
अब वो पहले वाला प्यार कहाँ l

नदिया की निश्छल धार कहाँ, 
चिडियो का राग मल्हार कहाँ, 
कोयल काली कूकती पुस्तक में, 
अब वो मुस्काती कूक कहाँ l

माँ बेटे का प्यार कहाँ, 
दादी का दुलार कहाँ, 
वो परी वाली कथा दादी की, 
वो पोती पोतो की कतार कहाँ? 

गुम हो गया सब आधुनिक युग में, 
ख़ुशी खो गयी नकली युगमें 
हसीं का वो हास्य कहाँ, 
रोने में भी वो बात कहाँ? 
कुसुम पंत उत्साही 

स्वरचित 
देहरादून उत्तराखंड

"अंदाज"05मई2020

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