Tuesday, October 30

"ज्योति "30अक्टूबर2018



ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार  सुरक्षित हैं एवं बिना लेखक की अनुमति के कहीं भी प्रकाशन एवं साझा नहीं करें |





हृदय को अपने दीया बना लूँ, 

प्रिय के प्रेम की ज्योति जला लूँ, 
विश्वास का उसमें तेल भर लूँ, 
ऐसा मन मेरा करता है |

ज्योति ये अखंड जलती रहे,

प्यार के फूल यूँ ही खिलते रहें, 
रिश्ते को खूब अटूट बना लूँ, 
ऐसा मन मेरा करता है 

स्वरचित *संगीता कुकरेती*





अंधकार ने घेरा है
चारों ओर अँधेरा है ।।
तम को हरने आया रवि
नित करता फेरा है ।।

अंतस में भी ज्योति है
माया ढके वो रोती है ।।
पर्दा तो हटाना होगा 
आत्मा दीप्ति होती है ।।

अखण्ड ज्योत से जुड़े तार
करले मानव कुछ विचार ।।
बाहर क्या तूँ देखता है
अन्दर ही है चमत्कार ।।

ज्योति जगाओ ज्योति जगी 
क्यों न गुरू में लगन लगी ।।
परमात्म से प्रज्वलित वो 
बात मान ये ''शिवम" सही ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम"




त्याग करना बड़ा कठिन है !
त्याग की ज्योति प्रज्वलित रखना महां कठिन !
त्याग की ज्योति सार्थक है सूर्य गति की !
त्याग की शीतल ता से प्रगटाती है!
जीवन सरिता की ज्योति धारा !!
सरिता, सूर्य के ज्योति त्याग से 
ज्योतिर्मय जीवन हमारा !!
आत्म ज्योति का देह बंधन घर !
विन आत्म ज्योति के देह इधर न उधर!!

देह को पावन करती ज्ञान ज्योति !

ज्ञान ज्योति से प्रबल मानव जीवन ज्योति !!
गेह द्वार पर मात् तत्व अखण्ड ज्योति! 
प्रकाश पिता फैलावे कर्म ज्ञान की ज्योति! !
इस ज्योति से सर्व जग उज्ज्वल! 
धर्म ज्ञान मान मर्यादा प्रगटाती प्रबल! !

लोभ मोह की कलित छाया ने जीवन भ्रमाया !

ज्ञान ज्योति बिन दुस्सा सन ने क्या है पाया! !

ज्ञान ज्योति हीन कर्ता जाति धर्म का पाखण्ड! 

जाति धर्म समाज का होये खण्ड,विनास,खण्ड! !

दुष्कर्म से जो ज्ञान ज्योति क्षीण हो !

हे कर्मी मानव इससे सदा दूर रहो! !

मुझसे कहती मन भावना मेरी! 

हे भ्रमित पथ के पथिक 
ज्ञान ज्योति उज्ज्वल कर किस बात की देरी! !

देह बन्धनों की माया घनेरी !

इस में उलझी जीवन फेरी !
पल में काल कवलित हो तेरी !!
ज्ञान ज्योति का प्रकाश !
जन्म-जनम की ज्योति प्रकाशित तेरी !!

गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक हल्द्वानी






प्रातः नमन के साथ ही, 

गुरूवर करू प्रणाम ।
शेर हृदय की भावना, 
भक्ति भाव श्रीराम ॥
🍁
जलती रहे भाव की ज्योति, 
तम का कर दे नाश।
कविता की रस धारा पहुचे, 
दिल से दिल के पास॥
🍁
सुप्त हृदय को भी महका दे,
वीणा की झँकार ।
भावों के मोती के मंच से,
सब कवियो को मेरा प्रणाम॥
🍁
रहे ना रहे शेर मगर,
कविता को देना धार ।
नव कवियो को ढूँढ-ढूँढ कर,
साहित्य से करना प्यार॥
🍁
स्वरचित... Sher Singh Sarraf



ज्योति पुंज से जीवन ज्योति।
सविता से मिलती हमें ज्योति।
यदि ज्ञानदीप जल जाऐ उर में,
सार्वभौम सुखद हो ये ज्योति।

ज्ञानज्योति आल्हादित कर देती।
सभी तिमिर मनमानस हर लेती।
परोपकार की ज्योति जले अगर,
जन मन हृदय पुलकित कर देती।

ज्ञानोदय करें सबका अखिलेश्वर।
मनमनोहर करें सबका परमेश्वर।
धीर वीर गंभीर बनें हम सबजन,
ज्योतिदीप जले सबका सोमेश्वर।

अंतरतम में शुभ ज्योतिस्ना आऐ।
सबके मनसे यह प्रभु तृष्णा जाऐ।
कुदृष्टि कदाचार नहीं आऐं मन में,
शुभ्रा ज्योति जले नहीं घृणा आऐ।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय





जलती एक ही ज्योत को ....

ज्योति एक जले....एक ही ज्योति जले....


सारे ब्रह्माण्ड में....सारे विश्व में....
एक ही ज्योति जले...ज्योति एक जले....

हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई...एक से एक भले..
फिर तू क्यूँ भेद करे....ज्योति एक जले.....

गंगा यमुना बहती धरा पर...वही तो भीतर बहे..
जिसे तू समझ न सके.....ज्योति एक जले.....

जो ब्रह्माण्ड में वो ही पिंड में...सब में वो ही जले...
तू क्यूँ अज्ञान पले.....ज्योति एक जले.....

निर्विकार वो साकार वो...हर मूरत वो ढले...
तेरी श्रद्धा फूले फले....ज्योति एक जले.....

उसका वैरी कोई नहीं है...वैर न वो भी करे...
फिर तू क्यूँ वैर करे....ज्योति एक जले.....

मेरे भीतर तेरे भीतर...सब के भीतर जले...
क्यूँ तू पराया बने....ज्योति एक जले.....

मैं अज्ञानी तू अभिमानी...काहे दम्भ करे...
जब एक ही एक रमे....ज्योति एक जले.....

ज्योति एक जले....एक ही ज्योति जले...

II स्वरचित सी.एम्.शर्मा II 
३०.१०.२०१८





आओ जीवन में नई ज्योति जलाएं

ज्योति पर्व हम मिल कर मनाएं
करके ज्ञान का प्रकाश
कर दो ज्योतिर्मय संसार
अज्ञानता को दूर भगाएं
आओ जीवन में नई ज्योति जलाएं
ज्योति पर्व हम मिल कर मनाएं
तम का न हो कोई निशान
करदो प्रकाशित हर एक कोना
कोई न रोए दुखों का रोना
भाईचारे का संदेश फैलाकर
सबके दिलों में प्यार जगाकर
आशा की नई ज्योति जगाएं
आओ जीवन में नई ज्योति जलाएं
ज्योति पर्व हम मिल कर मनाएं
यह तब तक संभव न होगा
जब तक हर घर शिक्षित न होगा
अंधविश्वास को दूर भगाकर
सबके मन में विश्वास जगाकर
सबका जीवन सफल बनाएं
आओ जीवन में नई ज्योति जलाएं
ज्योति पर्व हम मिल कर मनाएं
कब तक सब आपस में लड़ोगे
जीवन को यूं ही खोते रहोगे
मन से अपने मैल निकाल कर
करो फिर से एक नई शुरुआत
एक-दूजे को गले लगाएं
आओ जीवन में नई ज्योति जलाएं
ज्योति पर्व हम मिल कर मनाएं
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित कविता


ज्ञान की ज्योति 
एक नया सवेरा 
दूर अंधेरा 
💥
कृष्ण दर्शन 
अद्भुत दिव्य ज्योति 
है आकर्षण 
💥
दीपों से ज्योति 
दीपावली की रात्रि 
जगमगाती 
💥
अखंड ज्योति 
शहीदों की निशानी 
ममता रोती
💥
ज्ञान की ज्योति 
अज्ञानता को धोती
बनते मोती
💥
प्रेम है ज्योति 
मन की अनुभूति 
ईश विभूति 
💥
आस है ज्योति 
सफलता चूमती
खुशी नाचती
💥
उल्का की वृष्टि 
ज्योतिर्मय आकाश 
अद्भुत सृष्टि 
💥
सूर्य की ज्योति 
अनुपम है कृति 
ईश्वर सृष्टि 
💥
देव दीवाली 
मनाते ज्योति पर्व 
गंगा का गर्व 

स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)पश्चिम बंगाल




ज्योति अमर जवानों

नित्य सदा जलती रहे
स्वतंत्रता की खूश्बू 
नित्य यहाँ फैलती रहे

ज्योति पावन गंगा की

नित्य यहाँ बहती रहे
बन ज्ञान की ज्योति
सदा अमृत्व छलकाती रहे

ज्योति पावन संस्कृतियों की

विश्व पटल पर बनी रहे
जात,धर्म के भेद ना हो
सभ्यता ऐसी घनी रहे

हो प्रकाशित हर मन

ऐसी तरलता बनी रहे
दूर हो हर अहंकार
ऐसी निरंतरता बनी रहे

हो कर्म हम सबके ऐसे

शान तिरंगे की बनी रहे
करते रहे सब सदाचार
आन देश की बनी रहे

कहता "मुकेश" बारंबार

ईमान सबका बना रहे
अमर सदा विश्व पटल पर
नाम हिन्दुस्तान बना रहे

स्वरचित :- मुकेश राठौड़





(1) मिली है आज 

निरंजन को ज्योति
मनी दीवाली 

(2) जीवन ज्योति 

चली प्रभु के धाम 
सूना संसार 

(3)आँखों सी ज्योति 

सम राखिए भाव
बेटा व बेटी 

(4)बुझा ना पाती

हवा आंधी या तूफा
ज्ञान की ज्योति 

(5)शिक्षा की ज्योति 

मिलकर जलाए
तम भगाएं

स्वरचित 

मुकेश भद्रावले



अंधकार असतित्व मिटाने, दिव्य ज्योति की किरण चली है ।
पापमयी वसुधा पे आके, सत्य राह बनके उभरी है ।।
-1-
अंधकार रूपी पापों का, अधिपति लंकेश्वर अभिमानी ।
सत्य-धर्म के प्रतिपालक बन, श्री राम से मिटी निशानी ।।
कुम्भकर्ण और मेघनाद सम, बलवानों को मौत मिली है ।
पापमयी वसुधा पे आके, सत्य राह बनके उभरी है ।।
-2-
द्वापर मे मथुरा के राजा, पापों के थे मेघ बनाये ।
कंसराज से त्रसित जनों ने, त्राहिमाम कह नीर बहाये ।।
यशुदा जी के नंदलाल से, पुनः धरा पे पुन्य खिली है ।
पापमयी वसुधा पे आके, सत्य राह बनके उभरी है ।।
-3-
जरासंध हो या दुर्योधन, पापमयी अंधियारा लाये ।
माधव ने निज दिव्य ज्योति दे,जन-गण को सत् पथ दर्साये ।।
लाख अधेरा ढके धरा को , हटे किरण रवि जब बिखरी है ।
पापमयी वसुधा पे आके , सत्य राह बनके उभरी है ।।

राकेश तिवारी " राही " स्वरचित






तम प्रतीक अज्ञान धरा पर
ज्ञान प्रतीक ज्योतर्मय अंश,
परमशक्ति शुचि ज्योति-पुँज,
"तमसो मा ज्योतिर्गमय"।

प्रेम - ज्योति मानव अंतस मे,

आलोकित करती सकल जगत के,
मानवीय सम्बन्ध अतीव,
शुचित मानवोचित व्यवहार।

ध्रुवीय वायुमण्डल उच्चस्तर पर,

मेरु-ज्योति रमणीय दीप्तिमय,
उत्तर दक्षिण के अक्षांशों पर,
सुमेरु क्रमागत कुमेरु दीप्तिमय।

अध्यात्म - ज्योति से आत्मबोध,

सांसारिक बन्धन - मुक्ति सम्भव,
परम लक्ष्य मानव जीवन का,
होता सहज अन्ततः मोक्ष।
--स्वरचित--
(अरुण)



ज्योति नयी जला लो अब तो

हर ओर बहुत अंधेरा है।
हाथ-हाथ को नहीं सूझता
मानवता जैसे बिखर गयी।
सहृदयता की डोर छूट गई
दिल के बन्धन ढीले हैं।
ज्योति नयी जला लो अब तो
हर ओर बहुत अंधेरा है।
च॔द बातों को दोहराते रहते
बीती सब खुशियां भूल गए।
दिये जला लो मिटे अंधेरा
मन च॔चल को रोक लगे।
ज्योति नयी जला लो अब तो
हर ओर बहुत अंधेरा है।
परिवेश बदल रहा है
सीमायें भी बदल गयी।
कोई किसी को राह सुझाये
ऐसे तो अब हालात नहीं।
हाथ बड़ा कर अन्तर पाटों 
जीवन का कुछ मोल आंक लो।
ज्योति नयी जला लो अब तो
हर ओर बहुत अंधेरा है।

स्वरचित

सुषमा गुप्ता



दीप और बाती की प्रिती

बता रही शीतल ज्योती ।।

मन में हमारे भी जले ज्योती

लेकर प्रिती, रिती, सद्गुणों के मोती ।।

जीवन चक्र एक भूल भुलैया

स्वार्थ परमार्थ की बहती नैया ।।

उमंग आशा से आगे बढ़ना

दूजे के लिए भी कुछ करना ।।

कार्य सिद्ध और जन हित संकल्प

कल नही आज ही कर प्रारंभ

एक दिन तो है जाना

ऐसा कर याद करे जमाना ।।

नेत्रदान करके दे किसी को नयन दीप

दमक उठे उस के भी नेत्रज्योती सीप।

पावन भाव की ज्योती जले

दीपावली आगे भी शुभ कार्य तले ।।

स्वरचित

डॉ नीलिमा तिग्गा (नीलांबरी)


जग में जीवन ज्योति जलायेंगे
राह में भटके मुसाफिरों को एक नवीन राह दिखायेंगे 
जलाकर प्रकाशमय ज्योति सबके जीवन में 

अँधियारा को दूर भगाकर रोशनी की किरण जगायेंगे .

प्रकाशमय और जीवन ज्योति जलाकर 
सबके चहेरे पर खुशियों की मुस्कान खिलायेंगे
देकर सबको ज्ञान की अनमोल ज्योति 
जीवन की बगिया को हर्षित बनायेंगे.

दुःख के सागर में डूबे लोगों के जीवन में 
खुशियों के खिलते कमल खिलायेंगे
इस धरा को सुन्दर स्वच्छ बनाकर 
सबके जिंदगी में जीवन ज्योति जलायेंगे.

प्रेम विश्वाश की ऐसी ज्योति जलायेंगे
जिसकी अलख युगों तक प्रकाशमान रहेंगी.
मन की इस सच्ची ज्योति को कभी मिटने नहीं देंगे 
ज्योति ऐसी अमिट रहेगी जिससे युगों तक इसकी लौ जलती रहेगी .
स्वरचित:- रीता बिष्ट


मां शारदे वर दे🌹🙏🌹
वाणी म
ें मधुरता दे 
ज्ञान दे आशीष दे
वाणी की शक्ति दे 
जीवन ज्योतिर्मय कर दे,,🌹🙏🌹
✍️
सफल कर्मों से बढ़ती जीवन ज्योति 
मन प्रसन्न होता,जग में मिलती ख्याति 
ज्योति से पथ दिखता आगे
मनुज कदम बढ़ाता जागे 
✍️
ज्योति लीन शांति मिले(परमात्मा)
ज्योति से दृष्टि उज्जवल (अग्नि) 
गृह ज्योति की बाती जले(प्रकाश)
जीवन प्रकाशित सुवासित करे
✍️
चरण वंदन करूं मैं तुमको 
जग सकल ज्योतिर्मय कर दे 
✍️
स्वरचित आशा पालीवाल पुरोहित




जड.-तम की वह चेतना-ज्योति,

जीवन की मंदाकिनि धारा।
जिससे नीरस रज - रेणु हरित,
पुलकित पल्लव ,द्रुम-दल- तारा।

जिसका लघु मौन इशारा भर,

करता,भरता,हरता अग-जग।
सागर में ज्वार जगा मुसका-
उठता मुक्ताहल में जगमग।।

-डा.उमाशंकर शुक्ल'शितिकंठ'




असीम विषमताएं 

अनेक समस्याएं 
उलझा जीवन 
लड़ता जंग
जिंदगी की। 

अभी भी जल रही

आश-ज्योति
प्रदीप्त जिजीविषा
प्रबल होती
प्राण- ज्योति
अनवरत, निरंतर। 

जीवन-गति

निर्बाध, निर्बंध
चलायमान
करती सामना। 
आंधियों 
तूफानों का
सतत
प्रज्वलित 
ज्ञान-ज्योति से। 

अमानवीयता के आवरण में

धर्म, सद्भाव, मानवता
बुझती हुई लौ सम
बस एक प्रयास 
और जल उठती है
मानवीयता की ज्योति।

यह सृष्टि

आत्म-ज्योति से
प्रकाशित
परमात्म-स्वरूप
सतत प्रवाहमान
अद्वितीय, अनुपम।

अभिलाषा चौहान





अवगुण भरा है मेरे मन मे
ज्ञान का ज्योति जला दो प्रभु
उलझन मे हूँ माया -जाल के
सत्य के ज्योत जला दो प्रभु

इष्ट हो तुम मेरे 
इतनी उदारता दिखाओ प्रभु
कृतज्ञ रहूँगी मैं जीवन भर
विश्वास है मेरा तुम पर प्रभु

बाहरी चमक दमक मे बहुत हम उलझे।
अंतस ज्योति जला दो प्रभु
अमर्त्य नही मर्त्य हूँ मै
इसका एहसास करा दो प्रभु

राग देव्ष से भरा मेरा जीवन
प्रेम का ज्योति जला दो प्रभु
तिरस्कार करूँ नही मैं किसी का
गर सत्कार नही कर पाऊं मै

जब हम जलाये पूजा का दीप
ज्योति ज्ञान फैलाओ प्रभु
जब हम जलाये दीपावली की ज्योति
लक्ष्मी बन पधारों प्रभु

जरा मरण आने से पहले
ज्ञान की ज्योति जलाओ प्रभु
जीवन की ज्योति जलते रहे
किसी की जीवन ज्योति न बुझने
पाये प्रभु।
स्वरचित-आरती -श्रीवास्तव




मानव उठ जीवन ज्योति जगा
अपने अंतर्मन को पहचान जरा
तू स्वंय सत्यम शिवम सुंदरम है
अविनाशी अजर अमर है
चल उठ खुद को पहचान जरा
आत्मा मैं छिपी उस ज्योति को जगा
फिर आज भटक किस ओर पड़ा
शुद्ध बुध भूल गया कैसे अपनी
सुनसान अंधेरा सा क्यों पड़ा हुआ तेरा मन
अपनी पीड़ा को पी जाना 
बह जाये ना नैनो मे से जल
हे अज्ञानमयी में दुर्बुद्धि भगा हे मानव
उठ जीवन ज्योति जगा अपने अंतर्मन में
पहचान अपना और बेगाना
मानव उठ जीवन ज्योति जगा 
ऐसे कागज के किले ना बना
जो फूँक लगे उड़ जाये
बड़े भाग्य से ये मानुष तन पाया
फिर भी सूझ रही तुझे शैतानी
अपने अंदर उस भक्ति का दीप जला
अंधकार को दूर भगा,
खुद की खुद से कर पहचान जरा 
मानव उठ जीवन ज्योति जगा
अपने अंतर्मन को पहचान जरा 
🙏 स्वरचित हेमा जोशी🙏



ज्ञान की ज्योति से हो आलोकित

पुनः चिर संचित मूल्य महान
अज्ञानता तम में है डूबा
जीवन मूल्यों का अभिमान ।

आँखों का तारा स्नेहिल राजदुलारा

कुल का दीपक बस बेटा ही कहलाता
मरती बेटियाँ गर्भ में
जन्मी तो क़हर बरपाया
गली चौराहों संस्थाओं में
होवे शोषण तेज़ाब छिड़का जाता
कोरी स्याही से गठबंधन लिखते
दहेज प्रथा से उनके जीवन जलते 

ज्ञान की ज्योति से हों आलोकित

पुनः चिर संचित मूल्य महान
अज्ञानता तम में डूबा 
जीवन मूल्यों का अभिमान।

घर का खुला आँगन अब ना मिलता

सीमित बंद फ़्लैटों मे जीवन घुटता
स्व की परिभाषा ने ख़ूब पाँव पसारे
संयुक्त परिवार टूटे एकल परिवार सहारे
दादी नानी की कहानी अब
अनदेखे सपनों में खो गई
डे केयर कहो या आया की संगत
अब घर के बच्चे हैं पलते।

ज्ञान की ज्योति से हों आलोकित

पुनः चिर संचित मूल्य महान
अज्ञानता तम में डूबा
जीवन मूल्यों का अभिमान ।

देश का युवावर्ग अब दिशाहीन हो चला

जीवन लक्ष्य से विचलित
हुक्का पबबार फ़ैशन आम हो गया
पुरातन संस्कृति अब हो रही एथनिक
पाश्चात्य संस्कृति में ही
आधुनिकता का अर्थ खोजता

ज्ञान की ज्योति से हों आलोकित

पुनः चिर संचित मूल्य महान
अज्ञानता तम में डूबा
जीवन मूल्यों का अभिमान ।

बेसहारा लावारिस बचपन की किलकारी

अनाथालयों में गूँजित,खिलती फुलवारी
बड़े बुज़ुर्गों का वह एकाकीपन
अभावग्रस्त नीरस जीवन कटता
घर की छत्र छाया से भी निष्कासित
वृद्धाश्रमों में उनका जीवन ढलता।

ज्ञान की ज्योति से हों आलोकित

पुनः चिर संचित मूल्य महान
अज्ञानता तम में डूबा
जीवन मूल्यों का अभिमान।

स्वरचित


संतोष कुमारी












No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...