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मानव रूपी देह हमें मिला
प्रभु से नहीं कोई गिला,
बुद्धि, विवेक खूब है सबमें,
अध्यात्म से मन क्यों न जुड़ा |
भौतिक सुखों का ये लालच,
मन को कैसे खूब दौड़ाये,
सच्चा सुख मिलेगा जिसमें,
अध्यात्म को चित्त समझ न पाये |
दूसरों में कमी क्यों ढूँढे,
अन्तर्मन में झाँकों भाई,
मोक्ष का मार्ग अध्यात्म है,
इसको जीवन में अपनायें |
जीवन का एक मूलमंत्र,
चादर ज्यादा बड़ी न करें,
परम आनंद चाहिए तो,
परमात्मा से ही सीधे जुड़े |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
अध्यात्म हर तरक्की का आधार है
अध्यात्म से आती शक्ति अपार है ।।
चिन्तन मनन पठन पाठन आत्मलीन-
होना ये ही कुछ इसके मूलाधार है ।।
अध्यात्म के बिना जीवन मानो निर्मूल है
अध्यात्म को भूलना एक बड़ी भूल है ।।
अध्यात्म ने किया इंसान का कायाकल्प
आया परिवर्तन इंसान में अमूलचूल है ।।
लौक परलौक बनाना हमें सिखलाया है
चहुँमुखी विकास करना हमें बतलाया है ।।
सबका हल अध्यात्म में मिलता ''शिवम"
इसमें आत्म से परमात्म का पाठ पढा़या है।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
अन्तर्मन मे द्वंद बहुत है,
जाकर किसे दिखाये।
ढूँढ रहा हूँ ऐसा मन जो,
हृदय मेरा पढ पाये॥
🍁
भौतिकता का ओढ आवरण,
नित नये रूप दिखाये।
मै अज्ञानी अध्यात्म ना जाने,
छल से मन बहलाये॥
🍁
ढूँढ रहा नटवर नागर को,
मन मीरा बन नाचें।
जीवन के दूरूह सफर मे,
हरि ही लाज बचाए॥
🍁
जरा-मरण की साधना मे,
मन मेरा भटक रहा है।
शेर की विनती सुन लो भगवन,
मन क्यो तडप रहा है॥
🍁
स्वरचित.. sher singh sarraf
सारी जिंदगी पर था भारी।
अंतस की गहराईयां चाहती थी,
इसी तरह बीत जाए उम्र सारी।।
एक ही क्षण में था सब घट गया।
"मैं" और शरीर था ,
दो हिस्सों में बंट गया।।
जब देखा निकल देह से खुद को
करबद्ध और नतशीश।
उसी क्षण बरस पड़ा था,
अस्तित्व और उसका आशीष।।
तब जाना "अनंत" है एक गहरी नदी
तैरना है व्यर्थ प्रयास।
स्वयम को बहने दूँ
उसमें समग्रता से सायास।।
अब ज्वार बन कर उस पूनम के चंद्र को,
बार बार छूना चाहती हूँ।
उस एक पल के लिए अगर लेना पड़े हज़ार जन्म,
तो लेना चाहती हूं।।
ऋचा मिश्रा
हम भतिकता में लिपट गये
संस्कृति संस्कार भूल गये।
सहिष्णुता सदाचार छोड दिऐ
शांति ,शक्ति सामर्थ्य नहीं रहें।
कर्महीन हो गये।
भाग्य को हम कोस रहे।
विवेक गिरवी रख दिया
अंतर्आत्मा की नहीं सुन रहे।
न्याय कहीं दिखता नहीं
संयम दूर फेंक दिया
अहंकार सिर चढ रहा
आत्ममुग्ध होकर आदमी
स्वयं को ही ठग रहा।
"मै"आज बढा हो गया
वाणी में माधुर्य नहीं रहा
सत्य को पछाड़ कर
झूठ चहुंओर पल रहा
कर्तव्य पथ पर चलें नहीं
महत्वाकांक्षी बन गये
बताऐं कैसे दूरगामी हम बनें
बिचलित परिस्थिति से हो रहे
पत्थरों से सिर फोड कर
दोष दूसरों को दे रहे।
शांति सुखों में तलाश कर
भौतिकता में खो रहे।
आस्थाऐं निष्ठाऐं मिट रहीं
नेकनामी छिप गई
श्री राम बंद तंबू में
महलों में हम सो रहे।
आत्मीयता नहीं रही
कहीं ईश खोज रहे
जो अंतस में घुसे
उन्हें बाहर हम ढूंढ रहे।
स्वरचितः ः
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
विज्ञान और अध्यात्म की
लिए जिज्ञासा मूल में
और बोध शून्य का
अभिलाषा अनंत की
अध्यात्म के सँस्कार
विज्ञान के चमत्कार
हैं
व्यवहारिक
प्रायोगिक
कुछ कथ्य हैं
कुछ तथ्य हैं
किन्तु..
लिए अभी
"अर्ध सत्य" हैं
यथा
मानदंड, नैतिकता के
आदर्शों के
पराकाष्ठा
युद्ध की, विनाश की
पराजय
जीवन मूल्यों, संस्कृति की
विकृत होते ये अपरूप
हैं कुरूप कई अर्थों में
यथा
परिचायक
धर्मांध के, उन्माद के
कलुषित
राजनीति के, संप्रदाय के
ढिंढोरे
मानवता के, समाज के
चाहे समाधिस्थ हो अध्यात्म
या हो
विज्ञान ब्रह्माण्ड में लीन
रहेगा अनुसंधान अनवरत
रहेगी साध अधूरी
"मनुष्यता" के आने तक
नहीं होनी ये बातें पूरी
स्वरचित
ऋतुराज दवे
आध्यात्मिक दर्शन,
भाव संगम।
विश्वास धार,
सम्पूर्ण समर्पण,
प्रभु दर्शन।
ओम में लीन,
अध्यात्म सत मार्ग,
मिलता मोक्ष।
प्राण योग्यता,
तन-मन ढूँढते,
आध्यात्म पाये।
स्वरचित
रचना उनियाल
बैंगलोर
अध्यात्म मनः शांति द्योतक
अध्यात्म ज्ञान उद्भोदक
अध्यात्म निर्विकार है
अध्यात्म नम्र उद्बोधक
करो चिंतन मनन
तर जाए जीवन
सकल सृष्टि उपासक
अध्यात्म संजीवन
नव चेतना का उद्गार है
हर जन का उद्धार है
संग अध्यात्म के
सुखी जीवन संसार है
भौतिक ये संसार
अध्यात्म है आधार
बिन अध्यात्म के
परिकल्पना बेकार
अध्यात्म द्योतक विज्ञान का
अध्यात्म पथ परम धाम का
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
अध्यात्म ज्ञान
अंतस अभियान
मन सौपान
२.
मन अध्यात्म
महक सनातन
घर पल्वित
३.
हो मनोरथ
निस्वार्थ कर्म पथ
अध्यात्म रथ
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
भव सागर पार
सच्चा हो भाव
कवि भी लाते
समाज क्रांति वास्ते
अध्यात्म गंगा
निकल पड़ी
अध्यात्म सागर से
ज्ञान सरिता
चुन लो आप
अध्यात्म का भंडार
भावों के मोती
अध्यात्म वृक्ष
चढ़ाए ज्ञान जल
मिलेगा फल
अध्यात्म द्वार
सत्कर्मों का विमान
ले जाए पार
स्वरचित
मुकेश भद्रावले
अध्ययन से अध्यात्म प्राप्त कर लेंगे हम।
भक्ति से परमात्म प्राप्त कर लेंगे हम।
ज्ञान चक्षुओं से देखेंगे दुनियां को यदि,
सार तत्व का आत्म प्राप्त कर लेंगे हम।
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बलराम निगम
ऐसा सुन्दर पथ अध्यात्म
जहाँ मिलता सकता परमात्म
इसी पथ पर निरन्तर चलकर
निखरती रहती है निज आत्म।
थोड़ा हों केवल निर्मल
मन के क्षीण हो छलबल
फैलने न पाये कभी मन में
ईर्ष्या की गन्दी दलदल।
राम नाम का अवलम्ब हो
नहीं जप तप में विलम्ब हो
पानी की प्यास की तरह
हरि में इच्छा प्रलम्ब हो।
पेट कभी भूखा न हो
व्यवहार भी रुखा न हो
मन की इस मरूभूमि में
राम पुष्प सूखा न हो।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
हृदय को हर्षित करने
सीतल तरंगें लिए
"माँ" जब मेरे हृदय में आती है !!
मेरा मन मस्तिष्कस पूनम चंद्रमां
सा खिल जाता है! !
मेरा हृदय हर्षित हो !
"माँ " की मोहनी मंगलता पाता है! !
"माँ" की अतुल्य कृपा से हृदय में!
निस्मृत सुपावन भाव उभर आता है! !
मेरा अंतर मन मधुरिमता में!
छलांग भरता है! !
"माँ" की चंद्र किरण मेरे मन कलियो पर!
शब्दोंकी अखण्ड शिरोमणि ज्ञान माला पिरोती है! !
मेरे हृदय में मनोरम उषा का संचार होता है! !
मेरे हृदय के शब्द सुमनो का श्रृंगार!
कागज पर खिलता है !!
भावों के मोहक बेलों पर!
शब्द श्रृंगारौ का चंद्र धरा पर उतर आता है! !
हृदय की शब्द रशिका उठकर!
धरा के श्रृंगार रस में खोजाती है! !
मेरा हृदय मन्दिर "माँ" के सुगन्ध भरे!
सोमरस में नहाकर शब्दो के नृत्य
अद्वितीय लय में मग्न हो जाता है !!
शब्दो के सुगन्धित लहरौ से हृदय का !
स्वर्ग लोक शब्दो के नृत्य से हर्षाता है !!
"माँ" शारदे की शब्द अप्सरायें!
हृदय द्वार पर आकर
भाव सम्मोहित घोल जाती है! !
"माँ" की सीतल तरंगौ के प्रकाश में!
शब्द सितारौ की नृत्य करती बारात
शब्द वरण लिए मेरे हृदय कलियों को
स्नान कराती है! !
हृदय की भोर भरी बेला में!
हृदय सुमनो में मुक्ता के रंग खिलते है! !।
गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक हल्द्वानी
स्मरण कर्म
बहती जलधारा
अध्यात्म मार्ग
✍️
धर्म-करम
सहिष्णुता मर्म
देता अध्यात्म
✍️
जीवन शैली
आधुनिकता दौड़
अध्यात्म जोड़
✍️
अध्यात्म राह
प्रकाशित जीवन
तिमिर दाह
✍️
आसान राह
खोज अमरत्व की
अध्यात्म पथ
✍️
अध्यात्म ज्ञान
सुखमय जीवन
कर स्तुति
स्वरचित -आशा पालीवाल पुरोहित
हमारी इन्द्रियाँ अभिभूत हैं
मोह माया में लिप्त हो
इन्द्रियाँ इधर उधर भागते हैं
मन का यह नियंत्रण
अध्यात्म से ही संभव है
जीवन रुपी यह रथ
सुपथ पर संचालित है
मायावी इस संसार में
मन का अहंकार
जड़ता का द्योतक है
अध्यात्म ही चिंतन है
अध्यात्म ही वह राह है
सुपथ पर जीवन चलना
संभव है
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत) पश्चिम बंगाल
भौतिकता और अध्यात्म में
उलझता मानव जीवन
फंस जाता है अक्सर
भौतिकता के व्यामोह में।
माया का आवरण
ढंक लेता अंतरतम को
नहीं सूझती कोई राह
अध्यात्म से बेपरवाह
कस्तूरी मृग सम
भटकता संसार में।
सुख, शांति,संतोष
की प्रबल लालसा
भौतिक साधनों में
ढूंढती आत्मानंद।
बौद्धिकता का बन
प्रबल दास
आत्मा को देता नकार
अहम के घोड़े पर सवार
चंचल मन व्याकुल
अतृप्त प्यासा
मायावी दुनिया में ढूंढता
अमृत की बूँद।
ध्यान, चिंतन, योग का अभाव
घटता हुआ सद्भाव
कर देता विमुख अध्यात्म से
जो यात्रा है आत्मा की परमात्मा से मिलन की
वह अपूर्ण रह जाती है।
अभिलाषा चौहान
पंचतत्व निर्मित भौतिक तन,
क्षणभंगुर, नश्वर यह संसार,
ऊर्जा प्रवाह गतिशील चारु,
घटक शुचित जीवन का सार।
चैतन्य तत्व संज्ञान, सुअभिज्ञान,
आत्मप्रज्ञता चाह चारु अध्यात्म,
आत्मा लघुतम अंश अनित्य,
अगोचर परमशक्ति परमात्म।
सत्य परम आनद ब्रह्म ही मात्र,
पर्याय प्रेम का वही शुचित सृष्टि में,
उसी प्रेम की खोज जीव की चाह,
भाव विना शुचि अनुभूति अप्राप्य।
अभिगम सत्य अभौतिक चारु,
अध्यात्म जीव अस्तित्व प्रशिक्षक,
मानव जीवन का अन्तिम लक्ष्य
अध्यात्म सुझाता केवल मोक्ष।
--स्वरचित--
(अरुण)
अध्यात्म प्रवाह
शांति निर्वाह
नैतिक चित्र
अपनाओ अध्यात्म
है सच्चा मित्र
3
अध्यात्म रास्ता
विनाश भौतिकता
मोक्ष की प्राप्ति
4
अध्यात्म गुरु
जीवात्मा है विद्यार्थी
मोक्ष की प्राप्ति
5
जीवन मुक्ति
अध्यात्म अभियुक्ति
ना अतिश्योक्ति
कुसुम पंत 'उत्साही '
मैं , मेरा, मुझको।
तू, तेरा, तुझको।
परतों,पर्दोों और आवरणों मे घेर लिया।
अच्छादित होकर मुझपर
मुझको मुझसे दूर किया।
चिन्तन चिन्ता में लिप्त किया।
कुछ बनूं मैं कुछ और बनूं
ऊंचा उठकर मैं आज चलूँ
कुछ और अधिक मैं चढ़ जाऊं।
इसी चाह में घूम रहा था ।
ऊपर चढ़ कर जब आंख खुली
निपट अकेला पाया अपने को।
उलझ उलझ कर जीवन उलझन।
उलझ गया है सारा जीवन।
मन भी मेरा उलझ गया।
मैं किसका और कौन है मेरा
प्रशन यही फिर सूझ गया।
क्या करता हूँ क्या करना है
चक्कर यह ही घूम गया।
चंचल मन ने खूब नचाया
तब ही समझ में मुझको आया
अंतर्मन में झांक कर देखा
सब अपने ही अंदर पाया।
मैं ही तूं है तूं ही मैं हूँ
अध्यात्म ने यह पाठ पढ़ाया।
अध्यात्म में खोकर ही अपने को पाया।
स्वरचित
सुषमा गुप्ता
कर्म-बंधन
आध्यात्मिक-चिंतन
आत्ममंथन
संचित-शक्ति
आध्यात्मिक व्यक्ति
मन-जागृति
गौतम बुद्ध
आध्यात्मिक-विचार
हो मन शुद्ध
नया-विहान
आध्यात्मिकता-ज्ञान
परमानंद
आध्यात्मवाद
दयालुता का भाव
मृदु-संवाद
स्वरचित 'पथिक रचना'
जीवन भटक रहा है, कब से
मोह माया के जंगल में
दिखावा, आडंबर बहुत हुआ
लौटना चाहे मन,अध्यात्म की ओर
अध्यात्म के राह पर चलने से
दुखः दर्द दूर हो जाते है
मन गर अशांत हो तो
सुकून उन्हें मिल जाता है
दुनिया तो आनी जानी है
जानकर भी हम अन्जाने है
अध्यात्म को हम अपना ले तो
प्रभु मिलन की आस जग जाती है
एक पल की भी सच्ची भक्ति कर ले तो
मोक्ष की आस बंध जाती है
अध्यात्म नही मिलता बाजारों मे
यह संस्कारो से आता है
अध्यात्म को हम अपना ले तो
संस्कृति अक्षुण्य रह पाता है
संस्कृति अक्षुण्य रह पाता है।
स्वरचित -आरती श्रीवास्तव।
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