आज सालों बाद हमसफर की याद
में इन आंखों में आंसू समा गए..।
तो दिल खुदबखुद पूछ बैठा कि
वो कहाँ हैं..? वो कहाँ गए..?।।
जानता है और था, ये बेवस दिल
कि वो कहाँ है... और कहाँ गए..।
फिर क्यूँ पुछ बैठा नादान दिल कि
वो कहाँ है...? वो कहाँ गए...?।।
शायद पर्स में छुपाये खत उनके
उनकी याद अचानक दिला गए।
तभी तो मन बावरा विकला उठा
कि वो कहाँ है...? वो कहाँ गए..?।।
ये समां नहीं उनकी रग दुखाने का
तभी नम नैना वक़्त विचार गए..।
सम्भलता है मन कुछ इस तरह
कि न नयन मेरे वहें न उसके वहें।।
स्वरचित
सुखचैन
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जरूरी तो नहीं कि
हमसफ़र खूबसूरत हो
पर ये जरूरी है कि
हमसफर सच्चा हो |
जिन्दगी का सफर है
दिन, तारीखे बदलेंगी
पर ऐ मेरे हमसफर तु
कभी मत बदल जाना |
तु जब साथ होता है
तो सफर सुहावना है
बिना तेरे तो ये सावन,
भादो लगता बेगाना है |
बस यूँ ही साथ निभाना
मैं कभी रूठूँ तो मनाना
बस दूर कभी न जाना
यही है जिन्दगी का तराना |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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🍁
सुनहरी यादों को याद करके,
आँखे रो रही है ।
विरह की आग मे तपती हुई,
इक विधवा रो रही है॥
🍁
यादों को झिझोर रही है,
मन मे विलख रही है।
हमसफर जो साथ नही है,
उसको ढूँढ रही है॥
🍁
देश पे मरने वालो की,
कोई उम्र नही ज्यादा होती।
तोप सलामी चाहे दे दो,
विधवा का अंत नही होती॥
🍁
जीवन की अनसुलझी बातें,
अनदेखी अनकथनी है।
शेर कहे हमसफर बिना,
ये जीना भी क्या जीना है॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
जिन्दगी का साज तुम हो।
मै गीत हूँ एक मूक सूना।
गीत की आवाज तुम हो।
हमसफर हमराज़ तुम हो।
जिन्दगी का साज तुम हो।
प्यार की मीठी गज़ल तुम।
खुशियों का हरेक पल तुम।
कल तुम्ही से होगा रोशन।
और सुनहरा आज तुम हो।
हमसफर हमराज़ तुम हो।
जिन्दगी का साज तुम हो।
है वास्ता तुम को हमारा।
प्यार का तुम ही सहारा।
जीने की तुम ही तमन्ना।
जिन्दगी का नाज़ तुम हो।
हमसफर हमराज़ तुम हो।
जिन्दगी का साज तुम हो।
मै गीत हूँ एक मूक सूना।
गीत की आवाज तुम हो।
स्वरचित विपिन सोहल
तो बनती हर बात है ।।
हम सफर गर रूठा तो
सेकड़ों मुश्किलात है ।।
हमसफ़र को साधिये
यह जिन्दगी आबाद है ।।
हमसफ़र का रूठना
करे जिन्दगी बरबाद है ।।
वक्त कभी न एक सा
ये करे दिल नशाद है ।।
हर घड़ी मन काबू रख
मुस़्तकिल न हालात है ।।
जीत दिल हमसफ़र का
कुछ ऐसी कर शुरूआत है ।।
दुनिया फिर तेरी मुट्ठी में
जग की न ''शिवम्" विसात है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
बड़े सुंदर हर्फ़
हमसफ़र
बड़ा सुंदर अल्फ़ाज़
इसकी सुंदरता का बखान
मेरे तीनों जहान क़ुर्बान
पंचतत्व -सा वजूद तेरा
मेरी ज़िंदगी को ख़ूब उकेरा
तुम अर्पण हो तुम समर्पण हो
ज़िंदगी के ख़्वाबों का दर्पण हो
तेरा साथ मेरा साथ
मिलकर बना एकाकार
कल्पनाओं का थामा हाथ
नव जीवन आरंभ साकार
नई पहचान नया नाम दिया
कुछ कर गुज़रने का पैग़ाम लिया
दौर मुश्किलों का भी
कुछ कम ना था
पग -पग पर मिला साथ
फिर कोई ग़म ना था
आगे मैं बढ़ी तो तुम
पल -पल मुस्कराए
मेरी उपलब्धियों पर हर्षाए
कुछ अनकहे अल्फ़ाज़
जब ज़ुबान पर ना आए
अंतर्मन के मंथन को
तुम ख़ूब समझ पाए
तुम मेरा गीत
तुम मेरा संगीत
तुम मेरा पर्व
तुम मेरा गर्व
तुम मेरा सम्मान
ज़िंदगी का अरमान
संग संग चलकर किया अब तक सफ़र
मेरी जीवन नैया ए मेरे हमसफ़र !✍🏻
स्वरचित
संतोष कुमारी
बैठ के साथ कोई नगमा कभी गुनगुना न सका
मैं हूँ मुजरिम ख़ताएं सब माफ कर देना
प्यार इतना था कि नफरते करके भी भुला न सका
पास इतने थे कि ,तन्हाई एहसास न थी।
गुजर गई जिंदगी ,मानो कोई प्यास न थी।
मेरे हमसफ़र खोकर तुझे , दिल ने तब जाना_
ख़ो आए वो जिंदगी जो ,कभी हमारे पास थी।
न हो तुम तो राहे सफर मुश्किल सा कटता हैं,
उजालों से डर तो कभी रातो को अंधेरा डसता हैं ।
उल्फतो में हो गये हालात अब कुछ ऐसे ही
जिस्म तो है ,मगर इसमें , कोई बेजान बसता है।
चलो राहें सफर मुश्किल को आसान करते है।
दो राहें इस सफर में कुछ निशान करते हैं।
भरोसे के पँछी कभी गगन छोड़ा नहीं करते""_
चलो उन्मुक्त गगन में ,फिर उड़ान भरते है।
पी राय राठी
, राज•
जनम-जनम की तृष्णा मिट जाये,
हाथों में तेरा हाथ चले,
सफर मेरा जो सफर हो तेरा,
सफर में हम-तुम साथ चलें,
लब पे तुम्हारे लब रख दूँ मैं,
सांसों से तेरी सांस मिले....
पिघले बदन फिर मोम के जैसा,
चाहत को एहसास मिले...
सिमट-सिमट के मैं विखरूँ फिर,
प्यास को फिरसे प्यास मिले...
नेह में तेरे तोड़ दूँ बन्धन,
प्रियतम तेरी आस मिले.....
जैसे जले कही आग सी कोई,
वैसे जले है तन मेरा......
सुलग -सुलग कर तड़प-तड़प कर,
तुझपे मिटे है मन मेरा......
तन को बना लूँ चादर अपने,
तन के तेरे साथ बिछे.....
लब पे तुम्हारे लब रख दूँ मैं,
सांसों से तेरी सांस मिले....
तेरी कशिश को मान गुजारिश,
प्यार में तेरे साथ चलूँ....
जैसे ढले संग चाँद के चांदनी,
वैसे मैं तेरे साथ ढलूँ.....
साथ हमारा यूँही रहे कि,
जब तक ये दिन रात रहे....
लब पे तुम्हारे लब रख दूँ मैं,
सांसों से तेरी सांस मिले....
पिघले बदन फिर मोम के जैसा,
चाहत को एहसास मिले...
स्वरचित.....राकेश पांडेय
जीवन सफर में साथ ना छूटे
साँसों की डोरी से अटूट बँधे
हमसफ़र का हो साथ ऐसा
सुख के लम्हों को
साथ साथ जी लें
हमसफर का हो साथ ऐसा
दुःखों के पर्वतों को भी
संग साथ काट लें
हमसफ़र का हो साथ ऐसा
किस्मत की रेखा को
आपस में बाँट लें
हमसफ़र का हो साथ ऐसा
पल रुठने मनाने का
सिलसिला ना खोने दें
हमसफ़र का हो साथ ऐसा
प्रेम का ना दिखावा हो
जज़्बातों को समझने दें
हमसफ़र का हो साथ ऐसा
रिश्तों की डोरी को
बातों से ना टूटने दें
हमसफ़र का हो साथ ऐसा
सम्मान करें एक दूजे का
बस जियो और जीने दें
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
बंशी बजाते तुम रहना कन्हैया।
ख्याल हमारे तुम रखना कन्हैया।...........
सदा हमसफर तुम रहना कन्हैया।
निभाते साथ तुम रहना कन्हैया।
नहीं दिख रहा कोई रस्ता सुगम अब,
हमें राहें बताते तुम रहना कन्हैया।बंशी ........
कंटक यहाँ बहुत बिखरे हुऐ हैं।
नहीं चेहरे बहुत निखरे हुऐ हैं।
चिंतित सब चिंता ग्रस्त यहाँ पर
धीर जरा दिलाते तुम रहना कन्हैया।बंशी....
कहीं डूबे ना नाव मझधार हमारी।
संभालो अब तुम ये पतवार हमारी।
जब बन गये तुम हमसफर हमारे,
अब मजबूरी है ये पतवार तुम्हारी।
नैया अब खेते तुम रहना कन्हैया।बंशी......
बंशी तुम बजाते रहना कन्हैया।
ख्याल हमारे तुम रखना कन्हैया।बंशी....
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जब साथ हमसफर हो
हर गम भूला दे
ऐसा हमसफर हो
ऐसा हमसफर है पाया
कोरा कागज सा जीवन
रंगीन फूलों से सजाया
साथ हरदम हरकदम
बना अंधेरों में भी जो साया
जीवन के हर पड़ाव पर
संघर्ष के हर चढ़ाव पर
देकर साथ मेरा
जीवन है महकाया
ऐसा हमसफर है पाया
थोड़ी तकरार से
थोड़े प्यार से
हरपल को सजाया
हर एक गम भूलाया
ऐसा हमसफर है पाया
कभी धूप कभी छाया
अनमोल है प्रीत की माया
मेरी हर सांस में
नाम तेरा ही आया
ऐसा हमसफर है पाया
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
तभी से रास्ते जैसे अपने एक हुए
यूँ तो पथरीली है जीवन डगर
गाड़ी दौड़ेगी सही तू साथ है अगर
तू मेरा मैं तेरी पूरक बनी
हमसफ़र तेरे साथ मैं पूरी बनी
सारथी तू मेरे सपनों का है
तेरी हर उम्मीद में संग पूरा है
किसी मोड़ पर तन्हा न छोड़ जाना
अपने प्रेम का मोहताज न बना जाना
तुमसे सजे साँसों का क्रम
मैं हूँ तुम्हारी हिम्मत का दम
साथ मिल हर पड़ाव पार करेंगें
हर जन्म तुझे पाने की फरियाद करेंगें
स्वरचित
स्वपनिल वैश्य "स्वप्न"
अहमदाबाद, गुजरात
प्रीत के तार दो
नेह से वार दो
अश्रुधार बह रही
आलिंगन हार दो।।
नयन की पुकार है
गंगा की धार है
निश्छल है बह रही
अमूल्य सा हार है।।
हृदय साकार हो
साथी संसार हो
चंद्र सा खिला-खिला
शीतल बहार हो।।
अनुपम दुलार है
प्रिय उपहार है
बंधन ये जन्मों का
तुझपर निसार है।।
अमूल्य तुम हार हो
इत्र सी बहार हो
हृदय में रम रही
नूतन फुहार हो।।
स्नेह विभूति कार हो
मेरे सृजन कर हो
विपत्तियों को धकेलते
अनादि ,अपार हो।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
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आशिकी है बनी आशिकों के लिए
बेबसी है बनी मुफ़लिसों के लिए।
कुछ न चाहूँ खुदा तुझसे रहमों करम
जिंदगी हो मेरी दोस्तों के लिए।
कीजिए सामना अब तो डटकर जरा
सीख है ये मेरी लड़कियों के लिए।
खो न जाएं कहीं हम सफर में कभी
#हमसफ़र चाहिए रास्तों के लिए।
साथ देने का वादा करें तू अगर
जान दे दूँ तेरी हसरतों के लिए।
इश्क में पड़ के मजनू बने जो यहाँ
इक ठिकाना बने पागलों के लिए।
कोई सजदा करें आरजू ये नहीं
तालियाँ तो मिले हौसलों के लिए।
धूप के साथ हो छाँव क्या बात हो
आशियाने बने बिजलियों के लिए।
तोड़ दो बंदिशे सबको उड़ने भी दो
आसमां हो खुला पंछियों के लिए।
क्या करें मानता ही नहीं कोई अब
औषधी ही नहीं है गधों के लिए।
साथ देता नहीं कोई भी 'राम' अब
बेकसी है बनी बेबसों के लिए।
स्वरचित
रामप्रसाद मीना'लिल्हारे'
चिखला बालाघाट मध्य प्रदेश
न हो हमसफ़र तो,
ये जीवन नहीं फिर,
सुहाना रहेगा।।
मिले लाख खुशियाँ,
मगर दिल मिले ना।
तो दिल का ये खाली
खजाना रहेगा।।
सांसों की सरगम,
बेसुरी ही रहेगी।
सदा ही अधूरा ,
तराना रहेगा।।
निभाये सदा साथ,
ऐसा साथी मिले तो।
ये जीवन हमेशा,
सुहाना रहेगा ।।
रचनाकार
जयंती सिंह
☆ हमसफ़र ☆
सफ़र कैसा भी हो
हमसफ़र साथ हो
हाथों में उसका हाथ हो
तो क्या बात हो..
यूँ ही हँसते-खेलते
बीत जाए वो सफ़र
ज्यादा नहीं थोड़े में ही
कर लें बसर
बस वो चेहरा
आस-पास हो
जिसे कहते हैं हमसफ़र ..
एक विश्वास हैं
एक सुकून हैं
एक हौंसला
एक जुनून हैं
निराशा में आस है
हमसफ़र...
गुज़र ही जाती हैं ज़िन्दगी
तन्हा मगर,
ज़िन्दगी भी ज़िन्दगी है
जब साथ हैं हमसफर..
स्वरचित :-
मनोज नन्दवाना
साथी जबसे तुम मेरे बने,
साथ बुने हमने सपने।
नयनों ने प्रेम-पुष्प चुने,
भावों के सुंदर हार बने।
मेरे जीवन का श्रृंगार हो तुम,
हर सफर में साथ रहेंगे हम।
मैं वीणा हूँ, संगीत हो तुम,
मैं दिल हूँ , तो धड़कन हो तुम।
हम दोनों का अस्तित्व ही एक,
अहम न हो,सदा हो विवेक।
सुख-दुख कितने ही आएंगे,
हम मिलकर साथ निभाएंगे।
एक सुंदर - सा संसार अपना,
बस प्रेम भाव से सहज बना।
जीवन का यह सुंदर सफर,
तेरे साथ ही पूरा हो हमसफर।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
सफर ए जिंदगी का तू अकेला ही मुसाफिर है
बैगाने है ये सब जो अपनापन जताते हैं
छोड़ जायेगे ये साथ इक दिन तेरा राहों मे
वो जो आज खुद को तेरा हमसफर बताते हैं
तू क्यों ऐसा हमसफर बनाता है
जो बीच राह में तेरा साथ छोड़ जायेंगे
जब दर्द से तु तड़प रहा होगा
मुड़ कर कभी ना देखेंगे वो तो दूर भाग जायेंगे
हमसफर बनाना है तो उसे बना जो जन्म से मृत्यु तक तेरा साथ निभायेगे
हमसफर तेरा जो तेरे दर्द को समझे तेरी पीड़ा को समझे जो तेरी अंतरात्मा की आवाज को समझे
जो हर पल साये की तरह तेरे साथ हो
वो तो है तेरा मुरलीधर इसके इलावा कोई और कल्पना भी नहीं की जा सकती हमसफर की
इन अजनबी सी राहों में, जो तू मुरलीधर मेरा हमसफर हो जाये बीत जाये पल भर में यह वक्त और हसीन सफर हो जाये
मैं तेरी हमसफर हूं, रहे न हममें दुरियाँ,
जाने-जाना समझ सकूं, तेरी मजबूरियाँ।
बचा है न कोई आज तक, वक्त के ताब से,
हम क्या चीज हैं, बच जाएं वक्त के दाग से।
इश्क का इकबाल है जो गिरकर संभलते हैं,
नहीं तो तूफानी हवाओं में बिखरते हैं।
जरूरी नहीं इस्बात की , इश्क के सफर में,
इख्तियार इतना, इख्लास रहे हम सफर में।
तुम मेरी जिंदगी हो, तुम ही मेरे रहनुमा,
तेरे सिवा कुछ नहीं चाहिए, मेरे हमनवा।
हम इतिहास रचेंगे, रखकर समझदारियां,
नहीं चाहिए किसी की, कोई तरफदारियां।
मैं तेरी हमसफर हूं, रहे न हममें दुरियाँ
जाने-जाना समझ सकूं, तेरी मजबूरियाँ।
--रेणु रंजन
(स्वरचित )
मेरे साथी मेरे हमसफर
मेरा प्यार बनकर
तुम आए हो मेरी जिंदगी में
पूनम का चाँद बनकर
तुम माथे की बिंदिया
मेरा श्रृंगार हो
मेरे मुस्कुराहटों की
वजह भी तुम हो
तुमसे ही मेरी जिंदगी में
आई यह बहार है
मेरे अंधेरे जीवन का
तुम प्रकाश हो
अब राह कितनी भी लंबी
या कांटों भरी रहे
जब हाथ तेरा हो हाथ में
सफर यूं हीं चलता रहे
चाँद के संग जैसे जुड़ी है चाँदनी
साथ मेरा साए सा
तुझ संग जुड़ा रहे
तेरे दु:ख की कभी भी
बनूं वजह न मैं
मुस्कान तेरे चेहरे पे
खिलती सदा रहे
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित कविता
रदीफ़ -हो जाता है
काफिया -आ
मापनी बेबह
अपनाही इश्क जब बेवफा होजाता है l
हमसफर ही अपना दफा हो जाता है ll
इश्क की गलियों में किसे ढूंढे ज़नाब,
हम सफर ही अपना खफा होजाता है l
शमा को फ़िक्र नहीं परवाने की,
जो उसके लिए ही फ़ना होजाता है l
सोचते है जिनको शामो सहर,
काम निकलते ही वो सफा होजाता हैl
आरज़ू ए इश्क मे कुछ नही'उत्साही '
बस इश्क पर हुस्न ही फ़ना हो जाता है l
कुसुम पंत उत्साही
देहरादून
उत्तराखंड
मेरे हमसफर मेरे हमराज,
तुम जब जब पास आते हो।
इस बगिया में फूल खिलते है,
तुमसे ही आती है बहार।
तुमसे ही रौनक घर की है।
जब जब तुम दूर जाते हो,
जीवन नीरस हो जाता है।
पतझड़ सा जीवन लगता है
जब दूर तुम हमसे होते हो।
खिल जाती है मन की बगिया
जब जब तुम पास आते हो।
तुम हो बसंत इस बगिया के,
मै कोयल हूँ इस बगिया की।
मेरे हमसफर मेरे हमराही,
मेरी हर खुशी तुम्ही से है।।
(अशोक राय वत्स)जयपुर
हमसफर हमराज मेरे
हर कदम तेरा साथ हो
तुम्हारा साथ हो तो
कायनात लगे रंगोली सा
हरपल लगे उत्सव हमें
उमंग भरा जज्बात हो
आरोह अवरोह तो चले जीवन में
तनाव नही हमारे पास हो
क्यों करे हम कल की चिंता
दोनों मिल जीत लेगें दुनिया
जब कभी मैं विचलित रहूँ
स्नेह भरा तेरा साथ हो।
जब डगमगाये तुम्हारा कदम
थामने को मेरा हाथ हो
हमसफर तेरा साथ हो तो
जिदंगी आसान हो
तुम हमारे साथ हो तो
हर दिन होली लगे
रात लगे दीवाली -सा
हमसफर हमराही मेरे
कर्म कुछ ऐसा करे हम
मिशाल बन जाये,सदा
मिल कर रचे हम कुछ नया
गुण गाये जिसकी दुनिया सदा
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
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तुमसे मिली नज़र,मन का खिला पलाश।
खुद के लिए ही हो गई,मैं तो बहुत खास।
उड़ने लगी आसमाँ में,तितली की तरह।
अब ये जिंदगी मुझे,आने लगी थी रास।।
बनाकर#हमसफ़र तुमने,मंजिल दी मुझे।
मंजिल पे आकर रही,मंजिल की तलास।।
बेरुखी से तेरी मैं, बिखरने लगी हूँ अब।
मेरे संग मेरे सभी,बिखर गए अहसास।।
टूटा इस तरह से दिल,जैसे हो आईना।
हर टुकड़े में तेरी सूरत,दिखती है पचास।
सरिता बनाया खुद को,समाई सागर में।
सागर में रहकर भी,क्यों अधूरी रही प्यास।।
बदनसीब दिल मेरा,तेरी चाहतों का मारा।
"रानी" को रानी पर नही,अब रहा विश्वास।।
रानी सोनी 'परी'
राजस्थान जयपुर
कुछ कदम साथ चल,
तू हमसफर बनकर,
आएगी दामन में हमारे,
खुशियाँ खुद चलकर,
थाम कर हाथ तेरा,
दुनियाँ नई बसा लेंगे,
मिला कदमों से कदम,
मंजिलें अपनी पा लेंगे,
हुआ सुगंधित जीवन मेरा,
पाकर साजन तेरा संग,
पाकर हमसफर तुझसा,
भर गए जीवन में रंग।
स्वरचित-रेखा रविदत्त
मेरे महबूब,मेरे हमसफ़र
कर रही देख मैं !तेरे बगैर बसर
ऐसा नहीं कि प्यार तुम नहीं करते
हाँ! मगर एतवार नहीं करते
मामूली सी बातों से यूँ बेतरहा...
अब तो हर रोज रुठ जाना तेरा
मुझसे दूर अब जाकर कहो!
तुम्हें सुकूंं तो मिला...?
हद से जियादा तेरे गिले हो गए
वक्त-बेवक्त के सिलसिले हो गए
मत कोसना मुझे इन हालात के लिए
मुलजिम बना के हम से
सवालात के लिए
अब पास न आना,तुम्हें मेरी है कसम!
हालत पे मेरी छोड़, मुझे मेरे सनम...
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