टूटे न इसकी कभी भी लड़ी ।।
एक खत्म तो शुरू हो दूसरी
बात न लघु यह बात है बड़ी ।।
क्यों ये व्यर्थ चिन्तन करते
क्यों न प्रभु में ध्यान धरते ।।
बिन माँगे भी देता है वह
अभिलाषाओं में क्यों सुमरते ।।
बिन अभिलाषा भजले बन्दे
जीवन में कुछ तजले बन्दे ।।
रावण की अभिलाषा जान
नही सुनी जो तो सुनले बन्दे ।।
क्या क्या अभिलाषा न रखी
क्या वो ''शिवम" स्थायी टिकी ।।
बृह्मज्ञानी होते हुये भी उसे
निष्काम भक्ति नही दिखी ।।
हनुमान सा बड़भागी कौन
वरदान कहे तो रहे वो मौन ।।
क्या माँगूं मैं प्रभु आप से
आप आगे हर इच्छा गौण ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
मैं पंछी बन जाऊँ
खुले गगन की
सैर कर आऊँ
मेरी अभिलाषा है |
मैं पुष्प बन जाऊँ
माँ के गले का
हार बन जाऊँ
मेरी अभिलाषा है |
मैं सेवक बन जाऊँ
माँ के चरणों में
जगह पा जाऊँ
मेरी अभिलाषा है |
वृक्ष मैं बन जाऊँ
पथिक को छाया
और फल दे पाऊँ
मेरी अभिलाषा है |
वीणा की तान
मैं बन जाऊँ
सरगम में घुल जाऊँ
मेरी अभिलाषा है |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
इक आशा इक अभिलाषा है,
फिर से तुझको देखूँ ।
माँ मेरी तू लौट के आ जा,
तेरी गोदी मे सो लूँ ॥
🍁
सूना करके बचपन मेरा,
छोड गयी कर अकेला।
अब भी इक अभिलाषा है,
तुझको देखूँ मै छू के ॥
🍁
अभिलाषा मेरे बेटे के,
आँखो मे दिखता है।
शेर का बेटा आज भी
अपनी माँ के लिए रोता है॥
🍁
स्वरचित.. Sher Singh Sarraf
तेरा प्रेम मुझे दिन-रात मिले,
मिले समर्पण प्रियवर का,
कोई प्रेम भरी सौगात मिले,
मैं सुध-बुध सारी खो दूंगी,
बस हाथों में तेरा हाथ मिले,
मैं भीग- भीग मिलने आऊं,
रिमझिम सावन की रात मिले,
मिले समर्पण रघुवर सा,
शिव-गौरी जैसा साथ मिले,
मिले सुनहरा धूप रवि का,
तारों की बारात मिले,
सुख भी हो दुख भी हो,
सम दोनों का अनुपात मिले,
मैं मिलूं उन्हें मीरा बनकर,
वो बनकर दीनानाथ मिलें,
बस चाह हमारी इतनी है,
की तुझमे खुद को खो पाऊँ,
तुम मुझे रिझाओ,हर्षाओ,
मैं तुझपर वारी-वारी जाऊँ,,,
......राकेश...स्वरचित,
ना रूकूँ ना थकूँ
लहरों से भी आगे बढ़ूँ
मेरी अभिलाषा है।
मिटा दूँ
भेद-भाव की लकीरें
गिरा दूँ
ऊँच-नीच की दिवारें
जन-जन में समानता की
संदेश पहुँचाऊँ
मेरी अभिलाषा है।
कोयल से मीठी वाणी लाऊँ
चन्द्रमा से शीतल प्रकाश
बच्चों से मासुमियत लाऊँ
उसी से निश्छल मुस्कान
भुलाकर जात-पात का वैर
सिखा पाऊँ करना सबको
आपस में प्यार
मेरी अभिलाषा है।
स्वरचित:- मुन्नी कामत।
अभिलाषा
🔏🔏🔏🔏
हम पर हावी रहती हैं सदा ही अभिलाषायें
नये नये परिधानों में आजाती हैं आशायें
मन होता है इनका उदगम पर मन को कौन बांध सका
मन की सीमाओं को कौन अब तक लांघ सका।
मन पर नियंत्रण कर लो कह देते पोथी पुराण
पर ये तो बताओ कौन अब तक पा चुका इच्छा से त्राण
अभिलाषाओं में छिपा है पूरे जग का ही विस्तार
पाषाण युग से अब तक की यात्रा प्रकट करती है सार।
ये ढाई आखर प्रेम के अभिलाषा बिन कैसे आये
प्रेम की निर्मल भाषा में ये कवि गण कैसे इतराये
अभिलाषा ही के कारण तो मेघ अलंकृत हो जाते
प्रेयसी के केश भी उनकी काली घटाकृत हो जाते।
अभिलाषा में पिपासा और जन्म लेती आशा
यही है चिरंजीवी जीवन की सुन्दर परिभाषा
अभिलाषा बिन व्यक्ति का जीवन नहीं होता
वह सदा के लिए ही निर्जीव पड़ा है सोता।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
अभिलाषा है मेरे मन की,
फूल बन मुस्काऊं,
सबके जीवन की ख़ुशी
बनजाऊँ l
ना किसी से बैर करूँ,
ना किसीका दिल दुखाऊँ,
अभिलाषा....
कबूतर बन कर,इस जग में,
शांति दूत मैं बन जाऊं,
कोई अगर अपराध करे तो,
काली की कटार उठाऊँ l
कुसुम पंत उत्साही
देहरादून
स्वरचित
उड़ें परिन्दे नभ की ओर,
किन्तु कभी छू पाते क्या,
महिमा अनन्त की अदभुत चारु,
पार कभी जा पाते क्या।
चारु विलक्षण गात मनुज का,
मठ शुचितम ब्रह्माँश चारु का,
अनुचर आत्मा का मन चंचल अति,
कल्पनालोक में करता विचरण।
विचारश्रंखला उदगम चंचल मन,
विचार जनित नित अभिलाषाऐं,
कर्म प्रेरणा स्त्रोत विचार शुचि,
कर्मानुसार ही फलदायक।
मन की अभिलाषा चारु अनंत,
सकारात्मक अगर प्रकृति में,
वैभव, समृद्धि, अति सुखदायक,
नकारात्मक विध्वंसक अति।
शुभ भाव जनित अभिलाषा हेतु,
मन-मण्डल शुचि कल्पवृक्ष सम,
अभिलाषा यदि दृढ संकल्पित,
चमत्कार जीवन में कर देती।
--स्वरचित--
(अरुण)
मासूम आंखें करें सवाल
क्यों मुझसे उपेक्षित व्यवहार
अंश आपका वो भी है
अंश आपका मैं भी हूं
फिर क्यों आपके दिल में
मेरे लिए यह दूरी है
बेटे की हर अभिलाषा पूरी
मैं कभी कुछ भी मांगू न
मेरी बस यही अभिलाषा
मुझको भी प्यार मिले जरा सा
मैं रोशन करती नाम आपका
फिर भी शाबाशी बेटों को
मैं इतना लाड़ लगाती पापा
पर आपका प्यार बेटों को
थोड़ा प्यार मुझे भी करलो
बस इतनी सी अभिलाषा है
आप जान से प्यारे मुझे
यह कैसे समझाऊं मैं
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित कविता
काम तेरे मैं आ जाऊँ
देकर स्व बलिदान मेरा
नाम तेरा मैं कर जाऊँ
बन सरहद का प्रहरी
रक्षा की अभिलाषा
तिहूँ ऋतु हार न मानूं
शीत,गर्मी व चौमासा
हो नाम अमर हिंद का विश्व में
नित वह कर्म की अभिलाषा
फहराऊँ तिरंगा नील गगन में
है मेरे मन की ये अभिलाषा
कर्तव्य पथ पर अडिग रहूँ
नहीं कोई दुराचार की लालसा
आमरण संघर्ष की शपथ मेरी
है बस यही अभिलाषा
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
तुम युवा रत्न रन नेता
सार्वभौम प्रगति के पथ में
सारथी हो तुम जैसा ।
युवा वर्ग की आत्ममूर्ति तुम
तुम हो-युग प्रणेता
बदल गई भारत की मांटी
तुम हो-भावी नेता ।
राष्ट्र बना अब सुंदर गुलशन
तुमसे महके यह जग-जन
अभिलाषा हों पूर्ण सभी की
तुमको अर्पण तन-मन-धन ।
( मेरे कविता संग्रह की कविता "श्रद्धा सुमन " जो स्व. राजीव गांधी को समर्पित है )
बस अभिलाषा की माया है
जिस माटी से जन्मी मैं
जिसकी गोद मे पली-बढ़ी
उसी भारत की मिट्टी मे
रंगमंच पर खेलते थक कर
जब मै सो जाऊँ , तिरंगा ही मेरा वसन हो ।
कुछ ऐसा कर जाऊँ, मुझ पर ना कर्ज ए वतन हो ।
है ईश, मेरी यही अभिलाषा
मानव मानवता छोड़े ना
शांति प्रेम से मुँह मोड़े ना
अभिलाषा के पंखो पर हो सवार
इंसान चाँद पर जा बैठा
अपनी उपलब्धियो पर ऐंठा ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
ये शुभ दिन हो चिर- चिर
तक बस यही अभिलाष प्रिये।
पावन सरस अनुरागी मन का
सदा रहो सुहाग प्रिये।
इस अकिंचन वसुधा की साँसों का
सदा रहो आकाश प्रिये ।
मधुप तुम, मधुरस तुम ही
तुम ही हो मधुमास प्रिये।
तुमसे ही मुस्कान मेरी
जीवन की हर आस प्रिये।
तुमसे ही महका घर आँगन
मेरा हृदयाकाश प्रिये।
नीर -क्षीर अपना जीवन
सुरभित ज्यूं मलयज- सुमन
छूटे चाहे जग के बंधन
टूटे ना ये पाश प्रिये ।
सुख- दुख में चले संग- संग हम
ले हाथों में हाथ प्रिये।
जीवन के संघर्षों में हम
रचें नवल इतिहास प्रिये।
जलती रहे नेह की बाती
प्रतिपल साँस साँस प्रिये।
गाते रहें मधु-मिलन गीत हम
जीवन का अंदाज प्रिये।
स्वरचित
सुधा शर्मा
राजिम (छत्तीसगढ़)
नारी मन की यही अभिलाषा,
सदा सुखी रहे घर परिवार।
सदा सुहागन रहूँ जीवन भर,
खुशियाँ होवै अपरम्पार।।
हाथों में मेंहदी माथे बिंदी
गले में हो मोतिन के हार।
सर पर ओढ़ूँ लाल चुनरिया
करूँ सदा सोलह श्रंगार।।
भारत की नारी का गौरव ,
भारत के परिधान से।
भारत की संस्कृति सदा से,
नारी के सम्मान से।।
रचनाकार
जयंती सिंह
मानवता भी धर्म हो
समझें प्रेम की भाषा
आतंक की परछाई न हो
दूर रहे निराशा
ऐसी मन "अभिलाषा"....
समता का आँगन हो
आँखों में हो आशा
सर्व धर्म मिलके रहें
न हो खून, तमाशा
ऐसी मन "अभिलाषा"...
हाथों को बस काम मिले
बुजुर्गों को सम्मान मिले
स्त्री की गरिमा हो सुरक्षित
हर बच्चे को ज्ञान मिले
ऐसी मन "अभिलाषा"...
मुट्ठी भर आकाश मिले
गरीब के घर भी दिया जले
मिलकर आँसू पोंछे सब
निर्बल को मिले दिलासा
ऐसी मन "अभिलाषा"...
स्वरचित
ऋतुराज दवे
अभिलाषाएं हैं अनंत,
जा पहुंची दिग्दिगंत।
इनसे संचालित है जीवन,
व्याकुल सदा ही रहता मन।
अनवरत ये क्रम चलता है,
इच्छित फल तब मिलता है।
जब अभिलाषा कोई जगती है,
तो कर्म का साथ चाहती है।
जब दोनों का होता है संगम,
तब बन जाती है राह सुगम।
सबकी अभिलाषा एक ही हो,
इस जगती का कल्याण ही हो।
मिट जाएं सारी कुरीतियां,
सुंदर बने सारी नीतियां।
जीवन सुंदर सहज बने,
दूर हों दुख के बादल घने।
कोई दीन दुखी न जग में रहे,
शोषण के सारे महल ढहें।
समता न्याय फिर पोषित हों
सद्भाव समाज में विकसित हो।
नारी पर अब अत्याचार न हो,
मासूम कलियों की चीत्कार न हो।
बस इतनी सी है अभिलाषा,
अभिलाषा की अभिलाषा।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
अभिलाषा हुई जब मेरी गगन छूने की
तमन्ना के पंख लगाकर दूर गगन में मैं उड़ने लगी
ह्रदय में कई उमंगों को रखकर पवन संग चलने लगी
अपने ख्वाब को पूर्ण करने के लिये नभ में पंछी बनकर उड़ने लगी .
अभिलाषा हैं ऊँचा उड़कर दिनकर को पाने की
आरजू हैं तारों के संग चमकने की
चाहत हैं गगन के दूर छोर तक जाने की
मन में अभिलाषा हैं अपनी चाहत को नवीन आयाम भरने की .
अपनी ही धुन में नये गीत ख़ुशी के गाने लगी मैं आँधी तूफानों को पीछे छोड़कर सब भव-बाधाओं से दूर चली मैं
इस धरा के सब मुक्त होकर पुष्पों की सुगंध में महकने लगी मैं
खुले गगन में खुश्बू बनकर उड़ने लगी मैं .
दिनकर को पाने की अभिलाषा में मैं
शशि और तारों से भी दो कदम आगे चली मैं
अभिलाषा हैं अपनी रंगों भरी दुनियाँ बनाने की
अपनी अभिलाषा को पूर्ण करने के सपने बुनने लगी मैं .
अभिलाषा हैं अपनी इंदरधनुषी सात रंगों भरी एक नई दुनियाँ बनाने की
चाहत हैं संगीत के सात सुरों में मिलकर नये गीत और तराने अफ़साने बनाने की
अभिलाषा हैं दुनियाँ में एक नाम और मुकाम बनाने की
अभिलाषा हैं सृष्टि में अपनी एक अलग पहचान बनाने की
स्वरचित:- रीता बिष्ट
***********
काश!अभिलाषा मेरी पूर्ण हो जाए
कभी किसी के हिस्से न हताशा आए
हौसलों भरी मुस्कान साथ सभी के हो
टिमटिमाती इच्छाएं नया मुकाम पा जाएं।।
गली,चौबारों,सड़को पर आहें भरती जिंदगानी
काश!की कटोरों की जगह पुस्तकें आ जाएं
धूप में नंगे पैर तपती जिंदगानी इनकी भी
किताबों में सजी धजी कहानी बन जाएं।।
अभिलाषा मेरी,कटुता,दम्भ त्याग दे
खिलखिलाते मन को उपवन सा सँवार दे
नेह,अपनत्व,दया,विश्वास की धार से
इश्क,मोहब्बत का इत्र सभी पर उबार दें।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
ओर छोर नहीं है।
आशा इच्छाऐं बढती जाती
कभी ये विकराल रुप धारण कर लेतीं
सिरपर ही ये चढती जाती।
दमन दुर्भावनाओं का करना होगा,
मनोमालिन्य खत्म करना होगा
निश्छल निर्मल प्रेमपूर्ण वातावरण
हम सबको विकसित करना होगा।
सृजनात्मक अभिलाषाऐं हों तो
उन्हें मनसे प्रस्फुटित करना होगा।
जो भी हो सकारात्मक सोचें
अभिलाषाऐं नकारात्मक नहीं हों
छलबल से कोई काम नहीं हो
धनबल से सुखशांति नहीं मिलती
भौतिकता से आराम नहीं हो।
वतन की खातिर जिऐं मरें हम
ऐसी अभिलाषाऐं पनपें
कहीं विध्वंसक गतिविधियां न हों
शुभकामनाऐं हम सबके मन में जन्में।
जीवनमूल्य सभीजन समझें
पशु पक्षी या नर नारायण हों
जीने की इच्छा सबकी होती है
सद इच्छा नव पारायण हो।
पुलकित और पल्लिवित हों अभिलाषाऐं
हर अंन्तर्मन अपना दर्पण हो।
प्रभु आशीष मिले सबको ही
सुंन्दर सुखद सदा सृजन हो।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
शीर्ष क"अभिलाषा"
आशा और अभिलाषा के साथ
जीवन चलता रहता है
आशाओं का दामन थामें
अभिलाषा भी सिर उठाती है
घोर निराशा मे भी, आशा की
एक किरण दे जाती है हमें
जीवन जीने की अभिलाषा
न हो हमारे जीवन में कोई अभिलाषा
तो जीवन निरस हो जाता हैं
अभिलाषा को पूरा करने को
जीवन में उमंग भर जाता हैं
एक अभिलाषा पूरी होते ही
दूसरी अभिलाषा जाग जाती हैं
जीवन निरंतर चलता रहता है
देख सृष्टि की दुर्दशा,
मुझमें यह अभिलाषा जागी हैं
हरा भरा रहे यह धरा हमेशा
निर्भय विचरण करे पशु पक्षी
चहूँ ओर,गंगा स्वच्छ हो
बहे जल धारा
देव निवास हो पुनः देश हमारा
अनुराग भरा हो सबके दिल मे
कृत्रिम व्यवहार करें न कोई
प्रतियोगी भी सहयोगी बन जाये
शांति फैले चहूँ ओर
विनाश आने से पहले
यह सृष्टि पुनः सुन्दर बन जाये
कृतज्ञ रहूँ मै सदा तुम्हारी
हे इष्ट पूर्ण करो अभिलाषा सारी।
स्वरचित-आरती -श्रीवास्तव।
हाइकु
1
जीवन सारा
मन की अभिलाषा
प्रेम की भाषा
2
है अभिलाषा
सुमन बन जाऊँ
वीरों के राह
3
जीवन पथ
अनंत अभिलाषा
अतृप्त आशा
4
है अभिलाषा
विश्व पटल पर
बने महान
मन के छंदों को छूने की अमल अभिलाषाएँ
शब्द कहें ,अर्थ मुसकाएँ,मनोभावों का बोध कराएँ ।
किसी कन्या भूर्ण की हत्या ना गर्भ में होवे
बेटी पढ़े,आगे बढ़े,नाम उसका जग में होवे।
सड़कों पर बेटियों का मान- सम्मान ना खोवे
सारे आम उनकी अस्मत का तार तार ना होवे ।
संतुलित भोजन और उचित संरक्षण
सब पावे
कोई भी बालक कुपोषण का शिकार ना होवे ।
कोई मासूम बचपन ना बर्तन माँजे,मलबा ढ़ोवे
बाल मजदूरी प्रांगण नही विद्या का मंदिर पावे ।
रोटी कपड़ा मकान की आवश्यकता सबकी पूरी हो जावे
किसी ग़रीब भूखे की आँत सिकुड़ बल ना खावे ।
हर नेता सुनेता बने ना भ्रष्टाचार बढ़ावे
जनता को दिए वायदों की वो पूरा कर पावे ।
शिक्षा व्यवस्था में वस अब भारी परिवर्तन हो जावे
शिक्षा संग जीवन मूल्य शिक्षार्थी सीख पावे ।
ना कोई द्वेष-बैर ,ना जाति धर्म की झूठी शान
राम राज्य पुनः आ जावे ऐसा बने मेरा हिंदुस्तान ।
मेरी अभिलाषा का ऐसा हो वर्ण
संयोजन
सर्व मंगलम,सर्वहिताय हो ,सुखद प्रयोजन ।
स्वरचित
संतोष कुमारी
तेरे दर का हूँ मुरीद माँ
आऊँगा लाल चुनर ले
दर पे तेरे बारम्बार माँ
एक ही अभिलाषा है
अर्जी मेरी तू स्वीकार
आऊँगा लाल चुनर ले
दर पे तेरे बारम्बार माँ
खोजती हैं निगाहें मेरी
तरसे दरस कोआँखें माँ
आऊँगा लाल चुनर ले
दर पे तेरे बारम्बार माँ
मिला है जो भी अब तक
माँ तुमने ही तो दिया है
मैं तुमको क्या भेंट चढ़ाऊँ
ये भक्त तो खुद तेरा हैं माँ
बस एक तमन्ना पूरी कर दो
मन केअसुरों का नाश करो
निर्मल तन मन हो जाए मेरा
भक्त पर बस ये उपकार करो
दूर भवन में तू रहने वाली
तुम ही दुर्गा तुम ही काली
कोई कहे पहाड़ों वाली तो
कोई कहे तुम्हें खप्परवाली
मुझ भक्त का उद्धार करो
दुःख,पीड़ा व संताप हरो
आऊँगा मैं लाल चुनर ले
दर पर तेरे बारम्बार.. माँ
स्वरचित :-
मनोज नन्दवाना
कश्मीर को आतंक मुक्त करने की
पाकिस्तान को खाक बनाने की
देश पर कुर्बान होने की
एक देशभक्त की अभिलाषा****
*****
मां को स्वतंत्र सम्मान की
बुजुर्गों को सुख पूर्ण परिवार की
नाती पोतों के साथ की
रहती है अभिलाषा****
*****
देश पर न्योछावर होने की
राजनीति से भ्रष्टाचार मिटाने की
जात पात का भेद मिटाने की
आरक्षण को उखाड़ फेंकने की
प्रबल अभिलाषा****
*****
ग्रामीण क्षेत्रों में
शिक्षा-अलख जगानेकी
गरीबों को सार्थक जीवन देने की
असहाय को सहायता देने की
अटूट अभिलाषा****
*****
बगिया में सुंदर सुमन की
भौरों को पल्लवित पुष्पों की
पर्यटकों को
पुष्पित पल्लवित उपवन की
सुंदर अभिलाषा****
*****
कृषकों को बरसात की
हरे-भरे फसली खेतों की
अमराई में मंजरी भरे तरु की
रहती मनभावन अभिलाषा****
*****
विद्यालय की सुंदरता की
विद्यार्थियों के शिक्षा स्तर की
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की
अभिलाषी है सरकार****
****************
किन्तु
अंगूठा छाप मतदाता की
अपनी जीत मजबूत करने की
दोहरी नीति पर चल कर
जनता को बेवकूफ बनाने की
प्रबल अभिलाषी सरकार****
*****
बढ़ो अपने गंतव्य
हस्त पकड़ अभिलाषा का
आशा अभिलाषा का कोई अंत नही....
*****
स्वरचित
आशा पालीवाल पुरोहित
कुछ ऐसा कर जाँऊ हर नारी के अस्तित्व को
मैं बचा पाँऊ जो अकेले जीक्न काट रही
अौर वो इस समाज से लड़ रही
क्या आप जानते हैं तलाकशुदा औरत पर कितना करते हैं लोग प्रहार
विधवा पर कितना होता है अत्याचार
समाज की नजरों से बचती बचाती
अपने अस्तित्व को अपने मान सम्मान को
समाज की उन उठती नजरो को वो छेल रही
ह्रर पल वो सोच रही , कैसा आधुनिक युग आया
आज भी नारी को सम्मान नहीं मिल पाया
विधवा हो या तलाकशुदा दोनों को ही इस समाज ने नहीं अपनाया
झ्न पुरुषो ने देखी नहीं औरत अकेली शुरू हो जाती है इनकी पहेली
चाहे बस में बैठी औरत अकेली यह तो शुरू कर देते हैं अपनी ठिठोली
नौकरी पर जाये तो भी पुरुष इनको नहीं बकसते ,आज मै आपसे पूछती
हूँ की क्यो औरत अकेले नहीं जी सकती ,कहते ह्रै पुरुष और महिला एक समान हैं फिर बताओ
झ्न औरतो का क्यो करते अपमान है हर पल अपनी गन्दी नज़रों से क्यो मारते है बार बार
इन पुरुषों की दुनिया मे इन्हे हमेशा नजरो से गिराया, समाज मे कुछ इज्जतदार है लोग बैठे
जो महिला को दुर्गा लक्ष्मी सरस्वती है कहते लेकिन पीछे से उनकी इज्जत पर वार है करते
ऐसे दोगले लोग समाज मे इज्जत से ह्रै बैठे
मेरी अभिलाषा है की मै इन महिलाओं के लिए एक ऐसी संस्था बनाँऊ
हर नारी को सम्मान मिले समाज में महिलाओं को बराबर स्थान मिले किसी भी नारी का शोषण ना हो ,
समाज की समस्याओं को दूर करने का प्रयत्न करूँ मैं एक ऐसी संस्था शुरु करूँ मैं जहाँ मेरे विचार वाले लोग साथ मिलकर काम करें
और नारी के मान सम्मान के लिये हर वक्त काम करे , यही है मेरी अभिलाषा सबको मान सम्मान मिले और अधिकार मिले
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