********
शाश्वत सत्य है
सूर्य की दिनचर्या
चाँद-तारों की अठखेली करना
ऋतु परिवर्तन होना
पृथ्वी की परिक्रमा करना
जन्म-मृत्यु का होना
अथाह रेगिस्तान में भी
पुष्पों का खिलखिलाना।
जीवन सत्य यही
मर्त्य देह हेतु मोह न रखना।
याद रखना
खाली हाथ आए थे
खाली हाथ जाना हैं।
क्या तेरा क्या मेरा
इस भंवर से हमें निकलना हैं
सत्य की राह पकड़
असत्य को झुठलाना है।
शाश्वत सत्य जीवन के जो रूप है
मग्न वहीं हो जाना है।
प्रेम सुरभि के कण-कण को
हर हृदय में पहुंचाना है।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
सत्य अंहिसा की बात करो अब हिंसा को छोड़ो तुम
मारा मारी बहुत हो गई अब खून खराबा छोड़ो तुम
सत्य अहिंसा परमोधर्मः गांधी जी सिखलाते थे
सत्य अहिंसा की खातिर वो यात्नायें भी सह जाते थे
पावं उखाड़ दिए गोरों के सत्य अहिंसा के बल पर
एक अनोखी जंग लड़ी सत्य अहिंसा के पथ पर
आपदाओं में अब हमको आकुल होना नहीं है
बिपत्तियों से अब तुमको व्याकुल होना नहीं है
बिकराल मुसीबत पड़ जाये पर विजय सत्य की होती
झूठ के पावं नहीं होते साँच को आँच नहीं होती
ढाई अक्षर प्रेम के पढ़ लो जीवन सरल बना लो तुम
कोई उलझन नहीं रहेगी जो दिल में प्यार जगा लो तुम
लोभ मोह के बन्धन तोड़ो पुण्य के कुछ तो काम करो
धूल जमीं है पापों की दिल का शीशा साफ करो
प्यार ही प्यार धरा पर हो ऐसी मेरी चाहत है
नफरत मिटे धरा से अब बस इतनी सी हसरत है
अखिल बदायूंनी
सत्य है सुंदर गहना थातियों ने
सदैव इसे ही पहना
सत्य पथ अडिग पितामह भीष्म,,,,,,
श्री राम इस पथ चले
असत्य पर सत्य की विजय
दशहरा पर्व सनातन बना
कर्मफल दिखलाते कृष्ण
सत्य पथ पर चले,,,,,,,,
आजादी की तेज चली थी आंधी
सत्य अहिंसा प्रवर्तक थे गांधी
सत्य-प्रतिरूप बन अंग्रेजों को छकाया
सत्य-आदर्श पथ जिसने अपनाया,,,,,,,
सदैव सफल नायक/ महापुरुष बने
नव पीढ़ी निर्माण
रोक रही चमक- दमक
संस्कार वान बनाना काम अहम,,,,,,
एक सत्य अस्त
अनेक असत्य दूसरे हस्त,,,,,,
नव पीढ़ी ,मान-सम्मान,विस्मृत कर
पुरातन संस्कार मृत प्रायः कर
ढूंढ रही मृग मरीचिका के वन में
स्वर्ण मय जीवन,,,,,,,
नहीं कोई सोद्देश्य राह
नवनिर्माण सत्य अहम
मिटाना होगा इनका झूठा वहम
दुनिया की चमक दमक से खींच
पुनः सत्य पथ लाने होंगे बढ़ते कदम,,,,,,,
स्वरचित- आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
सत्य की हर तरफ बात हो
हर तरफ हो सत्य का साथ
सत्य ही हो जीवन का आधार
सत्य का हो जग में सार .
सत्य की राह थोड़ी कठिन हैं
पर सत्य ही मुश्किल राह को आसान बनाती हैं
भव सागर से हमारी नैया पार लगाती हैं
अंत में सत्य की जय होती हैं .
कुछ क्षण के लिये असत्य फलित होता हैं
फिर गर्दिश में डूब जाता हैं
असत्य का साथ देने वाला महलों से झोंपड़ी में चला जाता हैं
सत्य का साथ देने वाला सदैव विजय होता हैं .
सत्य की मेरी हर राह हो
जीवन में सत्य का साथ हो
कभी असत्य की तरफ ना कदम बढ़ाऊँ
मेरे ह्रदय में सत्य का साथ और वास हो जीवन की राह पर .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
सत्य की जीत का प्रतीक
दशहरा मानाये आज
अपने अंदर के रावण को
आओ जलाए आज
आज पग पग पर
असत्य का है डेरा
अधर्म नें हर जगह
फैला रखा है घेरा
भ्रष्टाचार की आग में
जल रही सत्य की बाती
अंधविश्वास की आड़ में
होती अधर्म की खेती
डेरों में पांडालो में
बैठे कितने रावण
रुप धरकर संतों का
करते यौन शोषण
आओ जगाए राम को
अपने अंतर्मन में
करें दहन बुराइयों का
अपने अंतर्मन से
आओ मनाए दशहरा
करे प्रज्वलित दीप ज्ञान का
चलें राह सत्य की
त्याग दामन अज्ञान का
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
ये सत्य कभी मरता नहीं है,
सत्य अजर अमर रहता है।
जीत हमेशा सत्य की होती,
सत्य सदैव सृजन करता है।
कहीं असत्य के पांव न होते
झूठ सदा लंगडा रहता है।
आज कल में पकडा जाऐ,
असत्य पैर उखडा रहता है।
एक सत्य छुपाने आदमी,
सौ सौ झूठ बोलते देखा।
नहींआदर इसको मिलता,
ये झूठ सदा डोलते देखा।
हुऐ थे सत्यवादी एक राजा,
हरिश्चंद्र की सुनी कहानी।
बिके सत्य के लिए स्वयं जो
बेचे अपने बालक महारानी।
इतिहास साक्षी ऐसे लोगों का
जो मिटे सत्यवचन की खातिर।
महापुरुषों ने बलिदान दिया ,
अपने वचन स्वजन की खातिर।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
9685410562
स्वरचित-पंक्तिया 32
वो लंकापति रावण भी मानी अभिमानी था........
वो लंकेश शिव भक्त और परम ग्यानी था.......
विनाश जब आता है ,तो बुद्दी काम नही करती......
वरना दशानन भी कर्तव्य कर्ता और कुशल विद्वानी था.....
जब अपने ही अपनो का तिरसकार करते है....
भाईयो से भी परायो जैसा व्यवहार करते है.....
परिवार का बेद दुसरो को बताकर .....
अपने अपनो का संहार करते है....
रावण ने असत्य को अपनाया .....
और सत्य धर्म को टुकराया.....
बुराई से नाता जोड लिया .....
और न्याय का साथ छोड दिया....
अधर्म पर धर्म की जीत का इतिहास होना था....
लंकापति रावण का बुराई के साथ विनाश होना था.......
भगवान राम की सत्य से विजय हुई.....
अधर्म पर धर्म की फिर जय हुई......
भगवान राम ने रावण को नही मारा....
अच्छाई ने बुराई को मारा.......
जीवन का सार कहे
धर्म सनातन
काबू में है तो राम है
अपना ही मन
है बेकाबू तो रावण है
अपना ही मन
असत्य पर सत्य की
विजय कर दिखलाई
श्री राम ने
कर्तव्य पथ पर चलने
की मर्यादा सिखलाई
श्री राम ने
उस पर चल कर ही है
सफल जीवन
जय श्री राम🚩
स्वरचित -
मनोज नन्दवाना
लघु कविता
सच्चाई के आगे देखो हार गया दश शीष ,
दंभ जिसे ताकत का था हो गया आज
वह रीक्त।
सत्य मार्ग प्रभु राम चले कर दिया सभी को लीन
अपना लो सब सच्चाई यदि पानी हो अब.जीत।
माना की वह विद्वान था ,था बहुत ही वीर,
पर ससच्चाई को त्याग कर ,अपना ली नई रीत।
वह योद्धा था वह ज्ञानी था ,पर था बहुत घमन्डी,
इसी कारण हार हुई औऱ सत्य की हो गई जीत।
(अशोक राय वत्स)जयपुर
स्वरचित 7665994959
सच्चाई के जीत का पर्व,
मना रहे है आज।
राम का रावण विजय के साथ,
विजय दशमी का त्योहार ॥
🍁
सत्य कभी भी छुप नही सकता,
भले ही रह ले मौन।
समय दिखाता है इक दिन ये,
झूठा या सच्चा कौन॥
🍁
द्वंद करो निर्द्वंद रहो पर,
वक्त का सब खेल।
झूठ के लाखो चेहरे है पर,
सत्य सा नाही तेज॥
🍁
भरा पडा इतिहास पलट कर,
गहन करो अरू सोच।
शेर की बाते समझ सको तो,
सत्य का नाही मोल॥
बेटा बाप से - पापा पापा मैं कवि बनूँगा
वीर रस की कविता पढ़ूँगा ।।
बाप बेटे से- मत बन कवि होते हैं पंगे
कवि होते पढ़े लिखे लफंगे ।।
मैं वो कवितायें नही पढ़ूँगा
मैं सत्य के पीछे बिकूँगा ।।
सत्य में तो है बहुत ही मंदा
क्या अपनों से भी लेगा पंगा ।।
बेटा अपनी ये सोच बदल
अभी समय है अभी सम्हल ।।
पापा मुझे समझ न आये
आप ही ये सीख सिखाये ।।
सत्य की होती सदा विजय
आप ही कहते हैं कि दूर रह ।।
कैसी यह बिडंवना है
आखिर कैसे सम्हलना है ।।
कुछ यहाँ पर कहना है
और कुछ यहाँ रहना है ।।
ये तो बात अजीब है
ये तो हुई तरकीब है ।।
क्या यही है दुनिया का स्वरूप
बाहर से सुन्दर अन्दर से कुरूप ।।
कुछ भी कहना यहाँ व्यर्थ है
जीता ''शिवम" यहाँ समर्थ है ।।हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 19/10/2018
बेवजह उठते सवालों से
जमाने में फैली बुराईयों से
अब हमको ही लड़ना है
आओ सत्य को स्वीकार करें
कलयुगी कंसों का नास करें
अब न राम आएंगे न ही कृष्णा
हमें ही मारना हैं मन की बुरी तृष्णा
सारे पापों की जड़ हैं यह
हमारे दुखों की वजह हैं यह
इन तृष्णाओं को मन से मिटाकर
मन में करके अटल इरादे
संघर्ष के पथ पर आगे बढ़ते
कलयुगी रावण का करना विनाश
धर्म का रखना दामन थाम
झूठ कभी भी छुपता नहीं
सत्य कभी-भी झुकता नही
आओ मिलजुलकर साथ चलें
अच्छाई से बुराई पर वार करें
कर्त्तव्य की नई राह चुनें
अधर्म का करके हम विनाश
धर्म की करें जय-जयकार
सच्चाई पर अडिग रह कर
मन के रावण का आज कर दो विनाश
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित कविता✍
विधा : दोहे
सत्य धर्म धारण करो, निश्चय कर हो जीत...
पूर्ण ह्रदय हो शांतमय, सबसे होगी प्रीत....
सत्य आत्म बल जो मिले, पास रहे संतोष...
हार जीत समझे न वो, मिट जाते सब दोष....
सत्य नाव डूबे नहीं, झूठ भरे संसार....
भव सागर पार उतरे, ईश हाथ पतवार...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
मैं
सत्य हूं
सत्य ही रहूंगा।
अविचल!
स्थिर!!
दृढ़!!!
असत्य के
प्रवाह में
नहीं बहूँगा।
मैं
अचंभित हूं
तुम्हारे
कुरूप कृत्य से
कुंठित भाव लिए
तुम
अनवरत
मुझे असत्य घोषित करने
मेरे
चरित्र से खेलते हो।
अपने अंदर
तिल तिल कर
जलते हो।
मर्यादा को
बिलखते और रोते
महसूस करना।
मुझे
मारने के विचार में
स्वयम
क्यों पल पल मरते हो???
मैं
सत्य हूं
मरूँगा नहीं।
कुंठित प्रहार से
डरूंगा नहीं।
स्वरचित:शैलेन्द्र दुबे19।10।18
कुछ सोचो घर द्वार सजाने से पहले।
मन को रोशन कर लेते खुशियों से।
तुम यह दीपक चार जलाने से पहले।
फिक्र जरा होती अपनों की गैरों की।
खुद को लम्बरदार बनाने से पहले।
अदब और कायदा तुम भूल गए हो।
इस बर्बादी को यार बनाने से पहले।
थोड़ा सा किरदार बना लेते अच्छा।
तुम बंगले मोटर कार बनाने से पहले।
हम पर हंसने वालों कोई बात नहीं।
तुमसे हमें है प्यार जमाने से पहले।
अभी बहुत लम्बा रस्ता दूर है मजिंल।
जरा सोच कदम चार उठाने से पहले।
तौल के अपना दिल देख कभी लेना।
सबको झूठा मक्कार बताने से पहले।
आज दहन करले द्वेष मन के सोहल।
ये झूठे पुतले हर बार जलाने से पहले।
विपिन सोहल
हूँ बुलबुला पानी का लेकिन,
पानी नही हूँ मैं---
मैं स्वप्न हूँ ह्रदय का अपने,
दृग का नही हूँ मैं---
क्या आग को भी,
नही जानता है तू,
है शक्ति क्या उसकी,
नही पहचानता है तू---
लौह को कितने गला कर,
ये तरल कर दे,
आग ही जीवन में,
जीने को शरल कर दे,
समझो नही की मैं,
सपनों में जिया करता,
है स्वप्न जो मेरे मैं,
उनको ही जिया करता---
मैं ही कभी बिन वस्त्र,
घूमा कंदराओं में,
भूख से व्याकुल दोपहरी,
रात छावं में---
था कठिन जीवन,
मगर चलता रहा हूँ मैं,
हर स्वप्न को सत्य से,
गढ़ता रहा हूँ मैं---
सच है की आदमी,
कुछ विचित्र होता है,
उलझने खुद ही बनाता,
खुद ही रोता है,
चाहता जिसको,
बुरा उसको ही कहता है,
जग में रहकर ही जगत का,
ताप सहता है,
पर अकारण कुछ नही,
समझो अगर समझो,
प्रेम का अतिरेक है,
प्रेम ही समझो---
अब तलक ठहरे नही,
आगे न ठहरेंगे,
अब तलक बढ़ते रहे हैं,
बढ़ते ही जाएंगे-
स्वर्ग के राजा भी,
विस्मित हुये से है,
देव भी क्या इनको,
अब रोक पाएंगे,
स्वप्न आंखों में लिये,
बढ़ते आ रहे हैं जो---
बढ़ते आ रहे हैं जो---
......स्वरचित....राकेश पाण्डेय
सत्य पहचान परमतत्व की।
आत्मा की आवाज है ये,
मानवता की जान है ये।
अंतरतम का प्रकाश है ये,
अज्ञानता का नाश है ये।
मानव कल्याण का मार्ग है ये,
संपूर्ण सृष्टि में विद्यमान है ये।
रामायण का आधार है ये,
बाईबिल का भी सार है ये।
वेद, उपनिषद्, गीता, कुरान,
सत्य की महिमा का करे बखान।
सत्य से ही चलता संसार,
झूठ सदा जाता है हार।
सत्य - पथ उज्ज्वल सदा,
कलुषता का न अंश वहां।
सत्य जीवन का आभूषण,
सत्य जहां, वहां नहीं प्रदूषण।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
#सत्य के पथ पर हमेशा अग्रसर
वो ही रहता जिसे ना कोई डर
काँटों भरी राह में भी फूल खिलें
बाधीत होकर भी सत्य की परछायी देती अवसर ।।
संकट तो आते जाते
वीरानों में भी गुलशन पैदा होते
गर बीज सत्य का मन में बोया
डर जाता असत्य भी हार कर ।।
सत्य के खातिर गीता सृजन
सत्य के चिराग तले झूठ का दहन
नऊ विकार ख़ार अधीनस्थ करे जब मन
टूटते झूठ के तीर नुकीले सत्य की डगर ।।
स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
डॉ नीलिमा तिग्गा
लघु कथा
मन मेरा बावरा झूठे इस जगत में सच्चाई ढूंढने निकला।
भोर की बेला शीतल पवन ,हरी घास में चमकते ओस की बूँदें मानों कुछ कह रहे थे।
रात की कालिमा सिमट रही थी। चिड़ियों की चहचहाहट गूँज रही थी।
घोंसले में बच्चों को छोड़ चिड़ियाँ दाना चूगने दूर देश को जा रही थी।
बच्चे चीं-चीं कर माँ को विदा कर रहे थे।
उषा की लालीमा आकाश में बिखर रहे थे।किसान घर से निकलकर खेतों की ओर जा रहे थे। खेतों की हरियाली देख मन्द मन्द मुस्कुरा रहे थे।
मंदिर में घण्टों की ध्वनि गूँज रही थी।
गोपाल गायों को चारा डाल रहे थे।
गाँव को छोड़ कदम मेरे शहर की ओर जा रहे थे।अब सुनहली धूप भी चमक रही थी। कुछेक दुकानें खुल रही थी।
गाड़ियों का शोर शांति भेद रही थी।
सब अपने-अपने कामों में व्यस्त हो रहे थे।
सूरज भी अब सर के उपर खटक रहा था माथे से पसीना बह चला था।
कुछ दूर छोटी सी गुड़िया फटे कपड़ों में हाथ पसारे खड़ी थी पास ही एक बालक भी था शायद उसका बड़ा भाई था।मैं हाथ के इशारे से पास बुलायी।पूछने पर पता चला कि बाबुजी स्वर्ग सिधार चुके हैं, माँ बीमार है काम नहीं कर पाती पेट के लिये ये सब करना पड़ता है। मैं दोनों को साथ लेकर खाने का सामान खरीदी,दोनों के लिए दो -दो कपड़े खरीद कर साथ ले माँ से मिलने चल दी।
शाम हो चली थी। रास्ते पर चहलकदमी बढ़ चली थी।हाथ पकड़ मैं जा रही थी ।शहर का रास्ता छोड़ चुकी थी। मेरे पाँव भी थक चुके थे।
चलते चलते पहुँच गयी। एक छोटी सी कुटिया में एक औरत लेटी हुई थी।देखने से ही बीमार लग रही थी।
बच्चे माँ को देखते ही खुशी से लिपटते हुये कहने लगे आज तो ढेर सारा खाना मिला है सबलोग पेटभर कर भोजन करेंगे।
माँ दोनों बच्चों से लिपटकर रो रही थी।शायद काफी दिनों से भरपेट भोजन ना मिला हो और आज खुशी से................।
मैं चुपचाप खड़ी देख रही थी।परिस्थितियों को देख मैं बुत बन गयी थी।खुद को समभालते हुये उस औरत को कुछ रुपये देते हुये बोली अपना इलाज करा लें और कुछ दिनों के लिए
राशन पानी का इंतजाम हो जायेगा।
साथ ही हिदायत दे आयी की बच्चों को स्कूल भेजना।बेचारी सकुचाते रुपये तो ले ली पर कुछ नहीं बोल पायी।झुकी आँखें मुझे बहुत कुछ बोल गयी।
मैं भी चुपचाप वहाँ से चल पड़ी।इस बार कदम मेरे भारी हो गये थे शायद दिनभर की थकान हो।
सोचते सोचते चल रही थी---ये जगत सत्य है,सुबह और साँझ सत्य है, सूर्य और चाँद सत्य है, हमारे कर्म सत्य है।
सिर्फ कुछ इंसानों की नियत में खोट हैं
आज जरूरत है अपने मन के अंदर छुपा रावण का वध करने का।हम स्वयं को ना देख दूसरों की नियत तो खूब देखते हैं।""कभी सच्चाई से अपने मन को टटोलकर देखें ""
यह दुनिया झूठी नहीं खूबसूरत लगेगी।
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
विषय,सत्य
सत्य और असत्य में एक दिन हुआ भयंकर द्वन्द
असत्य तो था बड़ा अभिमानी छल कपट से भरा हुआ बोला अभिमान से
जो मुझको अपनाता है वह सारी खुशियां पाता है
क्योंकि मेरे साथ छल कपट ईर्ष्या और द्वेष भी निभाता है
सत्य तू मुझसे क्या जीत पायेगा तू तो हमेशा अकेला खड़ा रह जाता है
रावण और श्रीराम के बीच जब युद्ध हुआ
तो मेरा छल कपट ही काम आया
सारे ग्रहों को व देवी देवताओं को रावण ने अपने सम्मुख पाया तू तो बस मुँह ताक रहा था
श्रीराम के सगे संबंधी ने भी बस मेरा साथ निभाया था कैकेयी ने लिया झूठ का सहारा छल कपट भी उस पर छाया था मंथरा ने क्या खूब खेल रचाया था असत्य का साथ पाकर उसका मन हर्षाया था , असत्य खुशहाली लाता है सत्य मन को दुखाता है
फिर सत्य मन्द मन्द मुस्काया और असत्य को यूं समझाया, श्रीराम अकेले नहीं खड़े थे रूद्र अवतारी हनुमान डटे खड़े थे , हर पल साथ मैंने उनका निभाया था, सत्य पर चल कर विजय ध्वज मैंने फहराया था इसलिए असत्य का अंत सत्य ने करके दिखलाया था जो खड़ा हुआ है सत्य पथ पर सफलता उसकी निश्चित है चाहे कितने काँटे हो पग पग पर संकट चाहे हो नैया डूब नहीं सकती उसकी क्योंकि ईश उसकी पतवार बन जायेगा,
सत्य की डगर कठिन है दोस्तों लेकिन सत्य को अपनाओ तुम असत्य के मोह जाल में फस कर अपना भविष्य ना गंवाओ तुम असत्य हमारा भ्रम है सत्य हमारा कर्म है बस इसी कर्म पर चलते जाओ तुम , जय जय श्रीराम जय हनुमान
🙏स्वरचित हेमा जोशी🙏
वास्तविकता वैसी होती नही
झूठ के पाँव होते नही
सच्चाई कभी छिपती नही
सच्चाई का जमाना नही रहा
यह कह हम अपना पल्ला झाड़े नही
हम सच्चा तो जमाना सच्चा
सच्चाई को हम कभी छोड़े नही
सच्चाई के राह मे आये काँटे अनेक
कभी पाँव मे छाले पड़े,कभी सताये पीड़
सच्चाई के र्माग पर चलकर मिले जो सुकून
तो आ जाये चेहरे पर नूर
सच्चाई के र्माग पर चलते बहुत कम
पर जो इस डग पर चले
वही समझे जीवन का मर्म
सच्चाई का दामन थाम चल चले हम
सच्चाई के राह पर चले हम
मिल जायेगी जीत,सँवर जाये जीवन
जिसने की है सच्चाई से बेवफाई
उसने सदा ही मुँह की खाई
सच्चाई पर टिका है धरातल
वरना कब का यह पहूँचे रसातल
सच्चाई को कभी न छोड़े हम
सच्चाई के दम पर जिये हम।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
1.
है
सत्य
जीवन
और मृत्यु
छल प्रपंच
छद्म अनुभूति
मोह-माया कुमति।
2.
है
जन्म
सार्थक
सत्य बोल
वचन तोल
असत्य कुबोल
हृदय पट खोल।
---रेणु रंजन
(स्वरचित )
1
ये
सत्य
महान
दशरथ
छोड़ा संसार
दिए वरदान
निभाए श्री राम
संतो के अरमान
2
ओ
सत्य
कठिन
प्रदर्शक
कंटक पथ
असत्य असुर
रक्त रंजित आत्मा
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
No comments:
Post a Comment