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लो आ गया है संदेश
माँ दुर्गा अष्टभवानी का
सब मिल आज पूजा करें
शेरों वाली का डोला आया
भक्ति का संदेश लाया
जयकारा मच गया गली गली
गरबा करो सब माँ को रिझाअो
लाल चुनर सब माँ को ओढाओं
माँ के आने का संदेश सब को सुनाओ
जयकारा मच गया गली गली
हलवा और पूरी बनाओ
माँ को भोग लगाओ
मंगल गाओ और खुशियाँ मनाओ
जयकारा मच गया गली गली |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
जा री चाँदनीं मेरे प्रिय की संगिनी बन
बता उसे उसी में रमा रहे सदा मेरा मन
इस पुरवाई के संग घर के खाने की सुगंध भेजी है
चख कर बताना पहली रसोई आज सजी है
माना देश को तुम्हारी दरकार है
इस घर को भी सदा तुम्हारा इंतज़ार है
स्वरचित
स्वपनिल वैश्य "स्वप्न"
अहमदाबाद गुजरात
कान्हा कौन तुम्हारे देश
कैसे संदेशा भिजवाऊँ...
काहे बदले तुमने भेष
कैसे संदेशा भिजवाऊँ..
निर्मोही प्रीत न जानी
काहे दूर की तूने ठानी
व्याकुल है राधारानी
व्याकुल है हर एक प्रानी
गऊयें करवें रोज कलेश
कैसे वन में उन्हे चराऊँ
कान्हा कौन तुम्हारे देश
कैसे संदेशा भिजवाऊँ....
अब न जियरा धीर धरे
रोजऊँ साँझ को राह तके
नजर राह से नही हटे
मन से प्रीत न तनिक घटे
सांसों ही रह गईं हैं शेष
निर्मोही कैसे समझाऊँ
कान्हा कौन तुम्हारे देश
कैसे संदेशा भिजवाऊँ...
मैं पाती भी लिखवाती
गर पता जो तेरा पाती
की तूँने क्यों नादानी
प्रीत की रीत न तूँने जानी
तेरे मन में छल और द्वेश
काहे ''शिवम" मैं नीर बहाऊँ
कान्हा कौन तुम्हारे देश
कैसे संदेशा भिजवाऊँ...
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
माँ की ममता से हर बचपन, हरा-भरा सा खिलता है ।
भाग्यवान संतानों को ही, माँ का आँचल मिलता है ।।
-1-
विधना की रचनावों मे, माता से बढकर और नही ।
माँ के चरणों से बढकर , दुनिया का कोई ठौर नही ।।
त्याग और बलिदान की गरिमा, माँ की छवि मे दिखता है ।
भाग्यवान संतानों को ही, माँ का आँचल दिखता है ।।
-2-
पूत कपूत भले ही दिखते, माँ की ममता मिटी नही ।
चाहें जितना भी दिल तोडें, दिल से दूरी घटी नही ।।
माँ के कद से छोटा मुझको, रब का भी कद लगता है ।
भाग्यवान सन्तानों को ही, माँ का आँचल मिलता है ।।
-3-
माँ के त्याग और ममता की, कीमत जिसने जान लिया ।
मृत्युलोक मे स्वर्गलोक सा, सुख वैभव पहिचान लिया ।।
माँ के आशीषों से उस पर, सुख का मेघ बरसता है ।
भागयवान सन्तानों को ही , माँ का आँचल मिलता है ।।
राकेश तिवारी " राही "
🍇
पूछ रही गोपी उद्धव से,
लाए क्या संदेश।
श्याम सखी के मन मे अब भी,
क्या हमसे है प्रेम ॥
🍇
निरखत नैन लिए सब गोपी,
प्रेम भक्ति संयोग।
क्या ब्रज श्याम से बिसर गया,
ना मिलने का योग॥
🍇
जा देना संदेश श्याम को,
रोता है ब्रजधाम ।
राधा ललिता सब गोपी के,
हृदय बसे है श्याम॥
🍇
हर कण मे श्रीनाथ बसे है,
शेर हृदय भगवान ।
उद्धव था विद्वान गोपी सब,
छीन लिया अभिमान ॥
🍇
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
देना एक पैगाम मेरी माँ को
खुश है तेरा बेटा परदेश में।
बहुत पैसे कमाता है, पूरे
पाँच साल बाद लौटेगा देश में।।
पर मत कहना कैसे रहता हूँ
यहां क्या हाल है मेरा।
हां, देना पैगाम मेरी माँ को
तंदरुस्त है लाल तेरा।।
देना यह पैगाम मेरी माँ को
खाना समय पर खा लेता हूँ।
पर मत कहना, भूख नहीं लगती
खाना टाइम मिले तो बना लेता हूँ
भाई, बहन को याद करता हूँ
पापा की तश्वीर देखकर सोता हूँ।
मत बताना माँ को कि कभी कभी
अकेला बैठ कर रो लेता हूँ।।
हां देना एक संदेश मेरे देशवासियों को
देश में रहकर देश की तरक्की करना,
मैं तो बस मीठी गुलामी करता हूँ।।
स्वरचित
-:-सुखचैन मेहरा-:-
कैसे गुणगान तुम्हारे गाऊँ।
बहुत हुआ गंदला मन माते,
कैसे तुम्हें संदेशा पहुंचाऊँ।
दुर्गुण दूर करो माते सब मेरे,
दंम्भ अभिमान सब चूर करो।
करूं उपासना देवी देवों की,
हे माँ मन का संशय दूर करो।
कृपाकरें माँ महागौरी मुझपर,
हरकारा मै माँ का बन जाऊँ।
शुभ संदेश पहुंचाऊँ जगत में,
दुर्गे सद्भाव विकसित कर पाऊँ।
तेजपुंज मिले माता मुझे कुछ तो,
तेरी भक्ति शक्ति का बखान करूं।
हे महामाया माँ भगवती महागौरी,
शुभसंदेश सदुपदेशों का रसपान करूँ।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
रुत बीती जाये।
आखर पाती ना पढ़ सकूँ
दृग अश्रु से व्यथित हो आये।
बन जोगन जू फिरूँ बावरी
राह तकूँ मैं श्वास श्वास,
चिट्ठी न संदेश सजनवा
थाह नहीं, कैसा उपहास।
लपट ज्यूँ जलती रही
ना मैं थकी ,न आस
वो घड़ी आये तो खूब मिलूं
मुझे पिया मिलन की प्यास।
पी राय राठी
भीलवाड़ा राज
हे जाने वाले सुनो जरा,
लेते जाओ संदेश मेरा।
कब तक जोहूं मैं बाट यहाँ,
क्या रहा यही बस काम मेरा।
जो तुम संदेशा पहुंचा देते,
आसान काम यह कर देते।
मैं कब से व्याकुल हूँ बैठी,
अहसान यह मुझपर कर देते।
क्या जाने वह अब पढ लेता,
आने का मन वह कर लेता।
मैं व्याकुल ना होती इतना,
यदि आकर के वह मिल लेता।
जो तुम वहाँ नहीं जाओगे,
तो हमको भी नहीं पाओगे।
कर दो बस यह उपकार एक,
वरना जीवित हमको नहीं पाओगे।।
स्वरचित (अशोक राय वत्स)जयपुर
7665994959
-
संदेश
1
संदेश जन्म का कर्म रहे
न मृत्यु का कभी भय रहे
सीमित क्षेत्र में रहें असीमित
कर्मों का यहाँ खेल रहे।।
नित नव नीरज खिले कर्म के
उपवन,ताल यहीं सजाना है
सुक्षुप्त अवस्था त्याग सदा ही
जागृति मेला यहीं लगाना है।।
धूप-छाँव सा बना है जीवन
हर मौसम का आना-जाना हैं
सूखे बहते इस जीवन मे भी
अरुण सम तेज सदा फैलाना है।।
उत्सर्ग काम का चलता करना
अमृत संदेश यही फैलाना है
अर्थ,उग्र समभावो को
उर से बाहर करना है।।
जारी
वीणा शर्मा
हद हो चुकी है अब तो मौन तोड़ो
आखिरी वक़्त है अब तो सलाम ले लो
आंखे देती आई हैं मौन पयाम तुमको
आखिरी वक़्त है अबतो कोई संदेश भेजो।
कब कहती हूँ दुनिया की रंगीनियां दो मुझको
लबों पे एक हल्की सी मुस्कुराहट दे दो।
इक शब्द से तुम्हारे जन्नत पा लेंगे हम।
जिन्दगी में तो खुशी पा न सके हम
मर कर ही चैन पा लेंगे।
हद
अपनी यादोँ की कब्र बन। दो।
कफन बदन पर अपने शब्दों का उड़ा दो।
जन्नत खुदा की मिले न मिले
मन्नत अपने दिल की तो पा ही
। हद हो चुकी अब तो ये मौन तोडो। स्वरचित
सुषमा गुप्ता
आया संदेशा मायके से
बेटी तुम अपना ध्यान रखना
सांस ससुर का सम्मान करना
हो जाए कुछ बात अगर
तो भी धैर्य बरकरार रखना
मायके का मान रखना
आया संदेशा मायके से
आये मुसीबत कैसी भी
पर हमेशा संयम रखना
चाहे हो गरीबी या अमीरी
अपने आप को ढाल लेना
वहाँ की रित रिवाजों को
अपने मन में उतार लेना
मायके के संस्कारों का मान रखना
अब ससुराल ही तेरा गहना है
अपने संस्कारों से महकाना इसे
प्रीत और तन्मयता से निरंतर
अपनत्व भाव से अपनाना इसे
बहुत बड़ी होती है ये जिम्मेदारी
बहुत ही सच्चाई से निभाना इसे
अब यही है तुम्हारा घर आँगन
अपने विचार पुष्पों से महकाना इसे
मायके के इस संदेश को भूल ना जाना
मायके के संस्कारों का मान रखना
स्वरचित :-मुकेश राठौड़
पिया की याद में दिल हुआ दीवाना
ऐसी चली हैं पुरवाई
जिया में लगता हैं पिया का संदेशा लाई.
पिया गये हैं दूर प्रदेश
हर पल आँखें निहारे पिया का संदेश
जाने पिया होंगे किस हाल और वेश
अनजाना लोग हैं अनजाना हैं देश .
पिया को लिखती मैं हर दिन एक प्रेम संदेश
जल्दी से आ जाओ तुम बिन सुना हैं ये परिवेश
पिया की याद में लिखती हूँ हर दिल गजल कहानी
कब आयेगी मिलन की रुत सुहानी.
मेरा मिल गया पिया को संदेश
पिया लौट आये अपने देश
फिर से खिल गये खुशियों के पल अनमोल
फिर से सावन के सज गये झूले खिल गये ख़ुशी के फूल.
स्वरचित:- रीता बिष्ट
देती हमें संदेश
समय से उठे हम मानव
समय हैं अनमोल।
चिड़ियों की कूजन में गूंजे
एक मिठा संदेश
हम मानव मिल कर रहे तो
मिट जाये राग-देव्ष
दीप से दीप जल उठे जब
देते एक संदेश
हम भी अपना अहं भूलकर
हो जाये बस एक
कल कल बहती नदियों की धारा
देती हमें संदेश
थक कर नही बैठना हमें
"जिंदगी है बस चलने का नाम"
नभ मे जब छा जाये बादल
चाँद फिर भी मुस्कुराता है
कभी हो आँखो से ओझल
कभी प्रकाश फैलाता है
गूढ़ संदेश छिपा है इसमे
कभी जो आये दुःखों का बादल
मन मे रहे बिश्वास
जब हटेगा दुःखों का बादल
पूर्ण होगी आस।
प्रकृति के कण कण में बसा है
सुंदर सा संदेश
समझ गये हम गर मानव तो
मिट जाये सारे क्लेश
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव।
1
पिया विदेश
कोई नहीं सन्देश
प्रिया अवसाद
2
वृक्षा रोपण
प्रकृति का सन्देश
बचे प्रदेश
2
ओ कबूतर
पिया है परदेश
दे आ सन्देश
4
डाकिया भैया
सन्देश देता जाता
पुरानी बाते
5
न काटो वृक्ष
प्रकृति दे सन्देश
त्रासदी भारी
कुसुम पंत 'उत्साही '
स्वरचित
देहरादून
उत्तराखंड
संदेश संचालित जग-जीवन,
भावों का करते हैं संचालन।
व्यथित हो या हर्षित हो मन,
संदेश ही आते सहारा वन।
संदेश विरहिणी का जीवन,
सैनिकों के लिए हैं संजीवन।
बूढ़े मां-बाप की आशा बन,
कर देते निराशा का समापन ।
महापुरूषों की अमृत वाणी,
या शहीदों की हो कुर्बानी ।
बनती प्रेरक संदेश सदा,
करती आलोकित जग है सदा।
एक छोटा-सा संदेश गलत,
जग में कर देता उथल-पुथल।
छिड़ जाते हैं युद्ध तभी
लड़ते दो समुदाय तभी ।
संदेश की महिमा सबसे अलग,
संदेश करें भावों को सजग ।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
जग कल्याणी
देती नव संदेश
दुख हरणी
शीघ्र पृथक
विवाह परिवेश
देते संदेश
मृत प्रतिभा
बढ़ती जनसंख्या
मिला संदेश
पट पे ताला
बुजुर्ग विरासत
छिपा संदेश
बदली फिजा़
जीवन का संदेश
घुटता जीव
स्वरचित आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
धरती बैठी आंस लगाये
दामिनी भी #संदेश लाये
झरझर बरखा प्यास बुझाये ।।
कोंपल फूटी अवनी अंगना
किसान पावत संदेश बोयना
अब मेहनत से काम करु मैं
खेत मोरे अब लहलहाये ।।
चुका दूंगा कर्ज सर का
व्यवधान ना हो सुत पढ़ाई का
लगे हाथ बेटी ब्याह दूँ
प्रियतमा भी खुद को सजाये ।।
चारों ओर छायी हरियाली
गुनगुनत है ख़ुशहाली
चैतन्य पल्लवित मयूर नाचे
अंग अंग धरा सृजन मनाये ।।
स्वरचित
डॉ नीलीमा तिग्गा (नीलांबरी)
अजमेर
पूजा की थाली सजाई
महागौरी आपके नाम
महिषासुर का वध करके
देती है शान्ति का संदेश
बिटिया की उत्सुक आँखें
निहारती चहुँ ओर
बोली--
हमारा है अधूरा परिवार
भेजा ना क्यों??
पापा को घर आने का संदेश
मैंने कहा--
माँ दुर्गा पहुँचा देगी पापा के पास
दे दो तुम अपना संदेश
झट पूजा की थाली लेकर
बिटिया दौड़ी माता के पास
बोली--
चौदह भुवन की तू हो माता
क्यूँ ना लायी माँ पापा को साथ
मेरे पापा बसे वो है कौन सा देश
मैंने किया है कौन सा दोष
पापा ना आते मेरे पास
तू ही बता क्या है मेरी पहचान
महा अष्टमी का यह मेरा संदेश
मैं भी जाऊँगी इस बार तेरे साथ
पापा से मिलने"शहीदों का देश"
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
तेरे चरणों में सुख मिलता।
तुझमें हरपल ही मन रमता।।
लीन रहूंगी भक्ति में तेरी।
आशीर्वाद कुछ दे दुर्गे माँ मेरी।।
तुमसे ही है यह सब काया।
संसार में है तुम्हारी ही माया।।
नवरात्रि के नौ दिन में पूजन
पूजूं नौ रूपो को तेरे
प्रथम दिन माँ शैलपुत्री
भोग लगे शुद्ध घी से
मिले रोगन् से मुक्ति
रंग होवे पीला
द्वितीय दिन माँ ब्रम्हचारिणी
भोग लगे फल एवं शक्कर से
मोक्ष मिले माया से
रंग होवे हरा
त्रृतीय दिन माँ चन्द्रघण्टा
भोग लगे मेवा व खीर से
मिले प्रसन्ता औ सफलता
रंग होवे धूसर
चतुर्थ दिन माँ कुष्माण्डा
भोग लगे मालपुआ से
मिले बुद्धि व सफलता
रंग होवे गेरुआ
पंचम दिन माँ स्कन्दमाता
भोग लगे केला से
धन सम्पदा एवं आरोग्य
रंग होवे श्वेत
छष्ठम् दिन माँ कात्यायनी
भोग लगे शहद
स्वास्थ्य व आकर्षण
रंग होवे लाल
सप्तम् दिन माँ कालरात्रि
भोग लगे गन्ना से
काल संकट से मुक्ति
रंग होवे नीला
अष्टम् दिन माँ महागौरी
भोग लगे नारियल से
संतान प्रप्ति व सुख
रंग होवे गुलाबी
नवमी में माँ सिध्दिदात्री
भोग लगे तिल मीष्ठान से
अकाल मुत्यु एवं दुघर्टना से बचाव
रंग होवे बैगनी
उस जैसा न कोई दूजा
नवरात्रि मे करे माँ की जो पूजा
डॉ स्वाति श्रीवास्तव
ये सन्देश
हृदय उद्गार ही तो हैं
मनःस्थिति के
भाव ही तो है
हृदय की अनुभूति
और
शब्दों का अवलम्बन
खोलता है हृदय पट
स्वयं का स्वयं की संतुष्टि
और दिखाता है दूसरों को
प्रतिबिंब ,एक चित्र
विचारों का ।
कभी बादल
तो कभी हवाएँ
बन ही जाती है माध्यम
विरह वेदना
पहुँच ही जाती है
गंतव्य तक
और एक सन्देश
भर देता है
गहनतम
अनन्त
हृदय घाव ।
मौलिक
✍रकमिश सुल्तानपुरी
पापा क्या आपको याद मेरी आती नही।
या मजबूरियाँ कुछ ऐसी जो जाती नही।।
सबके पापा माँ के साथ आते विद्यालय।
माँ ही है जो आपके साथ आ पाती नही।
आप निभाते हो सीमा पर अपना फर्ज।
क्या आपको सर्दी गर्मी भी सताती नही।
बनती है घर मे आपके पसन्द की रोटी।
भीग जाती है पलक वो रोटी भाती नही।
आपके कपड़ो को सहलाकर रोती है माँ।
मैं सामने जाऊँ तो आँसू दिखाती नही।।
सहम जाती हूँ जब बिजली कड़कती है।
माँ जा आपको आँचल में छुपाती नही।।
मेरे #संदेश को पढ़कर रोना नही पापा।
दूर हूँ तो आपके आँसू पोंछ पाती नही।।
रानी सोनी 'परी'
१
प्रेम संदेश
मन है मधुबन
महके तन
२
पिया संदेश
उमंगों भरा दिल
बिते न पल
३
बदरी काली
मेहमान बरखा
देती संदेश
४
माँ का संदेश
नारियल की भेंट
मंदिर द्वार
५
बाबुल प्यारे
बेटी देती संदेश
समीर दूत
स्वरचित-रेखा रविदत्त
17/10/18
बुधवार
दो दो कुल की मैं लाज निभाऊँ
जैसे दो हाथों में दीपक जलाऊँ
मायका ससुराल सब एक जैसा
कभी किसी का दिल न दुभाऊँ
फिर भी सब मुझे समझे पराई
कभी किसी ने कहाँ अपनाई
मायके में मैं हूँ पराई अमानत
ससुराल में देखो बनी परजाई
सोचूँ मैं हूँ किस घर की शोभा
मुझसे किस घर न बढ़ा है मोभा
फिर भी नहीं यहाँ कोई घर मेरा
रहना है मुझे सबका दिल लोभा
सबका दिल ही मेरा घर होता
कभी हँसता कभी कोई रोता
सबको संग लेकर मैं चलती
फिर भी किसी कोने में रहती
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
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