Monday, October 8

"अमर"08अक्टूबर 2018



वह वीर अमर बलिदानी था,
वह वीर भगत मतवाला था,
आजाद की आँख का तारा था।
सुखदेव संग उसका याराना था ।
भारत मां का वह वीर निराला था।
आजादी हेतु उसने जन्म लिया,
आजादी हेतु ही वह जीता था।
आजादी हमें दिलाने को,
खुश होकर चूम लिया फंदा।
किंचित भी वह भयभीत न था,
वह वीर पुत्र भारत का था।
आजादी हमको दिलवा कर,
वह अमर हो गया पन्नों में।
भारत माँ का वह वीर पुत्र,
अब अमर हो गया इस रब में।
वह अमर हो गया इस रब में।।
(अशोक राय वत्स(जयपुर स्वरचित
7665994959

***************
नमन करूँ इस माटी को
जिसमें वीरों का हुआ जन्म
मर मिट गये देश की खातिर
खिला गये भारत का चमन |

भगत सिंह, सुखदेव,राजगुरू
सच्चे सपूत थे भारत माता के
भारत की आजादी के खातिर
हँसते-हँसते चढ़ गये फाँसी पे |

रखना होगा शहीदों का मान
भारत को दें एक नई पहचान 
वो जो मर कर भी अमर हो गये
उनको मेरा शत्-शत् प्रणाम |

🇮🇳🌹जय हिंद 🌹🇮🇳
स्वरचित *संगीता कुकरेती


***************************
🍁
निर्मल भावों को जन-जन तक,
जिसने पहुचाया हिन्दी मे।
साहित्य अधूरा लगता है जब,
नाम ना आये हिन्दी मे॥
🍁
वो कलमकार मन के भावों को,
जन-जन तक पहुचाया है।
मुंसी प्रेमचन्द की रचना पढ के,
उसमे हृदय समाया है॥
🍁
अब अमर रहेगा नाम तेरा,
जब तक है सूरज चाँद यहाँ।
हर कलमकार की रचना मे,
हिन्दी का तेरा भाव यहाँ ॥
🍁
स्वीकार करो अब नमन मेरा,
वर्णो का पुष्प किया अर्पण ।
इस शेर हृदय के भावों को,
जन लेखक को मेरा तर्पण ॥
🍁
स्वरचित... Sher Singh Sarraf



अमर
नाम अमर है उनका जग में।
जिसने रक्षा की सीमा की।
दिन रात रहे तैनात वहाँ।
मुँह से कभी उफ्फ तक ना की।
कितने हीं वीर शहीद हुये।
माँ की टूटी उनकी आस।
कितनी सुहागिनें हुई विद्यवा।
मेंहदी भी ना छूटी थी जिनके हाथ।
वही वीर हैं अमर सदा।
अमर रहेगी उनकी कुर्बानी।
गर्व है करता देश उनपर।
याद रहेगी सदा उनकी कुर्बानी।।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी




कौन लेकर आया अमरता का वरदान
एक दिन हर एक छोड़ेगा यह जहान ।।

हम न मिल पाये तो क्या हुआ गम नही
बनाकर जाऊँगा कोई मकबरा या मकान ।।

जिसका हर एक पत्थर गा रहा होगा 
कर रहा होगा अमर प्रेम का बखान ।।

नही था बादशाह मगर दिल था बादशाह
ऐसा भी शख्श हुआ बनाऊँगा पहचान ।।

गर चाहत बुलन्द है तो राहें भी बनतीं
सच्चे प्रेम की बना कर जाऊँगा शान ।।

क्या प्रेम का प्रतीक सिर्फ ताज ही है
इससे भी ऊँचा छोड़ जाऊँगा निशान ।।

अमरता की क्षमता हरेक में है ''शिवम"
पर खुद से ही रहें हम आजीवन अन्जान ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 08/10/2018




*****
लक्ष चौरासी योनि उपरान्त,
प्राप्य धरा पर मानवतन,
उपादान सुरदुर्लभ तन ये,
अमरत्व प्राप्ति हित शुचि अनंत।

मात्र अमर अविनाशी परमात्मा,
तस्य अंश शुचि चारु आत्मा,
जीवगात भौतिक भूतल पर,
क्षणभंगुर नश्वर सकामना।

पूर्णविराम कहाँ जीवन का,
मृत्यु मात्र शुचि एक पड़ाव,
"मृत्योर्मा अमृतंगमय" चारु सी,
बहती ऊर्जान्वित जीवन धारा।

भूमण्डल में मानव जीवन के,
सत्कर्म और व्यक्तित्व शुचित,
अमरत्व प्रदायक सदा धरा पर,
संदेहविहीन सर्वदा सुपूजित।
--स्वरचित--
(अरुण)





🇮🇳
ले अमरता का वरदान 
जन्मे थे इस देश में
कर गये नाम अमर 
स्वतंत्रता के आवेश में

🇮🇳
भारत माँ का कर गये
नाम अमर विश्व परिवेश में
सिखलाया देश धर्म 
नौजवानों ने जोश में
🇮🇳
नाम भगत चंद्रशेखर
बिस्मील और अशफाक
अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए
कर ब्रिटिश साम्राज्य खाक
🇮🇳
नाम अमर है आज भी
करते सब गुणगान
इनके ही बलिदानों से
है मेरा भारत महान
🇮🇳
धन्य है माटी भारत की
धन्य मांयें इन वीरों की
युगों युगों तक अमर
इन वीरों के गुण गायें,
🇮🇳
जय हिंद जय भारत
वंदे मातरम 
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

स्वरचित :- मुकेश राठौड़




जो अनंत अभेद अछेद अजर है,

वो आत्मा सतत शाश्वत अमर है।

आत्मतत्व ही जीवन है इस जग का,

वस्त्र धारण किया है उसने इस तन का।

जो जीवन में पवित्र कर्म ध्येय अपनाता,

संसार युगों-युगों तक गीत उसी के गाता।

बनकर आदर्श जगत में स्थान उच्च है पाता,

बनकर प्रेरणा विश्व को राह नई दिखलाता। 

जग कल्याण निमित्त जो सब अर्पित कर देता,

बन विशिष्ट संसार में सदा अमर वह रहता।

नाम अमर है उनका जो लिखते नई कहानी,

जग के मंगल हेतु करते स्व की भी कुर्बानी।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित



अमर रहे यह देश हमारा और सदा विजेता हो

ऐसी है यह मेरी कामना युग चाहे कलयुग द्वापर त्रेता हो

महा शक्तिशाली सेना इसकी योद्धाओं से सदा भरी

जो भी इससे टकराया बड़ी दुर्गतिपूर्ण पराजय उसे मिली

बार बार पिटता पर है हठी अपना एक पड़ोसी है

हमसे जलता आहे भरता कभी न शांति का वो हितैषी है

हमसे रखता द्वेष और साजिशें करता वो न थकता

बार बार रोता पछताता और अपने घावों को चाटता

अमर हमारा देश इसकी जनता और सेनानी है

बार बार इस नभ पर लिखी है हमने अपनी यही कहानी है

(स्वरचित)

अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव



कोई अजर अमर नहीं रहता जग में,

केवल नाम अमर अपना रहता है।
करलें परोपकार कुछ सदकर्म तभी
वरना ये अमर नाम सपना रहता है।

सर्वस्व न्योछावर किया जिन्होंने,
अपनी मातृभूमि की सेवा करने।
अमर थे सदैव अमर रहेंगे वह जो
वलिदान हुऐ भारत की सेवा करने।

हे भगवन मुझे आत्मशक्ति तुम देना,
डटकर चलता रहूँ सदा सदकर्मों पर।
पथभ्रष्ट कभी नहीं होऊँ निज पथ से,
अडिग रहूँ अंतसमय भी सत्कर्मों पर।

नहीं मानता मै अमर कभी रह पाऊँ।
नहीं चाहूँ मै वदनाम कभी रह पाऊँ।
ये नश्वर काया तो माटी में मिल जाऐ,
मै बनूँ राख भारत की माटी रह जाऊँ।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.





जीवन की इस डगर में
कहीं छांव कहीं धूप है
कहीं चुभते कांटे कहीं महके फूल है
कदम संभल कर रखना
लक्ष्य से नहीं फिसलना
जीवन की आंधियों में
हिम्मत से काम लेना
कर्मों का सबके ऊपर
रहता है लेखा-जोखा
सदमार्ग से भटकने का
फल सबको है भुगतना
जीना भी क्या वो जीना 
जो अपने लिए जिए
करो सत्कर्म ऐसे
जहां में नाम गूंजे
कभी हौंसला डिगे तो
आंखों को बंद करना
जो शहीद हुए वतन पर
उनको तुम याद करना
दे गए हमें आजादी
आजाद वतन कर गए
वो हो गए कुर्बान 
पर नाम अमर कर गए
जब तक यह जहां है
उनका नाम अमर रहेगा
सम्मान में सदा उनके 
यह शीश झुका रहेगा
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित कविता




काट कर कँटीली झाड़ी
राह सजा रही हूँ ,
भारत के अमर जवानों के पथ पर
फूल बिछा रही हूँ ।

स्वर्ण अक्षरों में लिखे हैं
तेरे अमिट नाम,
तेरी सहादत को करता है
देश सलाम
डबडबाई आँखों से
हे भारत के सपुत्र
तुझे शत्-शत् प्रणाम।

लौट कर आना फिर यहीं
आँखें बिछा रखीं हूँ ,
तेरी कुर्बानी के आगे
मैं मस्तक झूका रखीं हूँ।

जब भी ललकारें कोई दुश्मन
यूँही तुम अंगार बनो,
नोच कर आँखें गद्दारों का
तुम देश का स्वभिमान बनो ।

समर्पित कर लाखों दिया
दे रहा है देश आज तुझे सम्मान ,
हे माँ के विजयी लाल
चमको सदा तुम ध्रुव समान ।

स्वरचित:- मुन्नी कामत ।



लेखनी मेरी चले तो ऐसे चले
मैं लिख सकूं वीरों की गाथा
शीश कटा जो नमन किये माँ भारती को
उन अमर शहीदों की कथा

कितने गये और कितने आये धरा पर
पर लिख गये जो अपनी कुर्बानी
उन वीरों की अमर गाथा की
लिख सकूँ मैं अपनी जुबानी

दुनिया तो आनी जानी है
कुछ मैं भी ऐसा कर सकूँ
अमर हो जाये मेरी गाथा
इतिहास के पन्नों पर अपना नाम मैं लिख सकूँ।

कुछ तो फर्ज है देश के प्रति
उसको मैं पूरा कर सकूं
अमर शहीदों की अमर गाथा लिख
मैं भी अपना नाम अमर कर सकूँ।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।




आजादी के वीर वो मतवाले थे 
देश की खातिर हँसते हँसते फाँसी पर झूले थे 
नहीं थी परवाह उनको अपने प्राणों की 

भारत माँ की लाज बचाने अंगारों से खेले थे .

उन वीर अमर बलिदानी शूरवीरों की बात निराली थी 
बाँध कर सर पर कफ़न सीने पर खाई गोली थी 
उनमे आँधी तूफ़ान जैसा हौसला था 
तभी तो हर बात पर इंकलाब बोला था .

भगत राजगुरु सुखदेव इंकलाब की ऐसी लौ जलाई 
जिससे नींद में सोया जाग उठा हर हिंदुस्तानी भाई 
वतन पर मर गये मिट गये अमर हो गये
देश की खातिर अपने लहू का कतरा कतरा बहा गये.

किसी में कहाँ दम था जो उनको रोक सके 
आजादी की लेकर मशाल जिन्होंने सारे जग में किया धमाल 
नमन उन वीर अमर शहीदों को नमन भारतभूमि के शूर वीरों को 
नाम उनका अमर रहेगा जब तक धरती और ये गगन रहेगा .
स्वरचित:- रीता बिष्ट




मूल्यों -आदर्शों को अपनाए बिना
किसी की जयकार नहीं होती 
कथनी हो पर ना हो करनी

उस शख़्स की कोई पहचान नहीं होती।

ज्ञान ,विज्ञान ,धर्म ,न्याय, शिक्षा
विस्तृत आलोकित ज्ञान रश्मियाँ
आचरण कसौटी पर परखा आदर्श
प्रतिमान बन अमर कहलाता ।

स्वार्थ भाव से ऊपर उठकर
परमार्थ भाव स्वीकार करो
त्याग ,समर्पण स्वयं समर्पित
अमरता का रसपान करो ।

जिस जिस ने इतिहास रचा
ऐतिहासिक वह किरदार बना
पुण्य धरा पर किए सत्कर्म
स्वर्णाक्षरों में वह नाम जड़ा ।

असीम बल बुद्धि से सुसज्जित
विवेकी तुम कहलाओ
कर्म करो जग में ऐसे
तुम महान अमर कहलाओ ।

स्वरचित
संतोष कुमारी




जीवन हमेशा वफ़ा ही नहीं कर सकता 
वह भी तो वक्त का मोहताज होता हैं,

आने वाले कल का कोई भरोसा क्या
जो गुजर गया वक्त वही अपना होता हैं,

कौन अमर होकर आया हैं इस जहाँ में
एक दिन मौत से सबका सामना होता हैं,

जो कर देता हैं ज़िन्दगी सबके के नाम
वो आदमी दुनिया से कुछ जुदा होता हैं,

देह तो हैं माटी इक दिन मिट ही जाएगी
नाम अमर है जो दिलों पे खुदा होता हैं,

फिर चाहे हो जाए बेवफा ज़िन्दगी तो क्या
ऐसी मौत का तो अलग ही मज़ा होता हैं,

रोते-रोते आया था जहाँ में कभी जो
हँसते-हँसते जाने का वारिस वही होता है,
स्वरचित :-
मनोज नन्दवाना

13अप्रैल 1919की घटना थी

जालियांवाला बाग में 
वीरों का जमावड़ा था
रोलेट एक्ट के विरुद्ध 
लोगों का हुजूम था 
इंकलाब के नारे
हवाओं में गूँजे थे
जन सैलाब उमड़े थे
अंग्रेजी सेना थी
जनरल डायर कातिल था
फिरंगियों ने भीड़ में 
गोली चलाई थी
लोग जान बचाने को
दौड़े थे
कुयें में सब कुदे थे
सब आजादी के दीवाने थे
अंग्रेजी गोली खाकर मरने से अच्छा 
स्वयं दिये बलिदानी थे
उन शहीदों की निशानी में 
आज भी जल रही है
"""अमर ज्योति """

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल

प्रेमियों की गाथा आज तक अमर रही
प्रेमियों ने दुनिया वालों के 
बहुत हैं अत्याचार सहे
लेकिन फिर भी प्रेम की अगन बनी रही
लैला मजनू हो या हीर रांझा
सोनी महिवाल हो या हो
राधा कृष्णा या मीरा का श्याम
इनका तो प्रेम चढ़ा परवान
प्रेम ही सबसे बड़ा है नाम
प्रेम के बिना ना कोई और दूजा
प्रेम ही है सब की पूजा
इन प्रेमियों को प्रेम के बिना और कुछ ना सूझा
प्रेम ने बता दिया प्रेम ही अजर अमर है
दुनिया में ऐसा कोई अस्त्र नहीं
जो हरा सके प्रेमियों को
प्रेम को जो हरा सके ऐसा कोई शस्त्र नहीं
अब क्या कहें प्रेम की बात
जो अब तक नहीं कहीं
बस इतना कहती हूँ
नमन है उन प्रेमियों को
जिनका प्रेम आज तक अमर है
🌷स्वरचित हेमा



कौन कहे तुम अमर रहोगे
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सहज नही रह पाओगे यदि
अपना आपा खो डाला,
खोई दुनिया मे ढूँढ स्वयं को 
अपना"आप"तुम रख लेना,
उपचार नहीं विद्वेष का लेकिन
कर प्रयत्न तुम यह लेना,
कौन कहे तुम अमर रहोगे
भ्रम वर्जित कर रह लेना।

तुम कब ऐसे निर्मम थे 
क्या आज तुम्हारा रूप हुआ,
तुमसे तो आसान बहुत था
कटु वचनों को कह लेना,
तुम थे अपनी बात के पक्के
बन प्रतीक तुम सह लेना,
कौन कहे तुम अमर रहोगे
भ्रम वर्जित कर रह लेना।

मिला तुम्हे है मानव जीवन
तो मानव भी बन जाओ,
पहले सत्य परख लो यारों
फिर लहरों में बह लेना,
सरल नहीं है टूटे घर की
कठिन कहानी कह लेना,
कौन कहे तुम अमर रहोगे
भ्रम वर्जित कर रह लेना।
स्वरचित-राकेश ललित




१.
अमर 'मुंशी'
कालजयी लेखनी 
अठ्ठन्नी चोर 

२.
अमर चोट
सामाजिक व्यवस्था 
प्रेम की वेदी 

३.
सेवासदन 
उपन्यास सम्राट
अमर कृति 
II स्वरचित - सी.एम्. शर्मा II 🌷




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