विषय -बीता साल
दिनांक 30-12-2019बीता साल,कुछ यादें छोड़ गया।
खट्टे मीठे अनुभव,कुछ यूं दे गया।
कुछ रह गई,मेरी जो बातें अधूरी।
उन्हें पाने का, एक लक्ष्य दे गया।
जिंदगी, एक वर्ष कम करके भी।
कुछ गैरों को,वो करीब कर गया।
अधूरे ख्वाबों को, पूरा कर गया।
मीठी याद दे,अलविदा कह गया।
जाते जाते,एक सबक वो दे गया।
कल काम आज करो,कह गया।
अनुभवों से, आज संवार लिया।
हर वर्ष अच्छा गुजरे, कह गया।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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विषय -स्वतंत्र
दिनांक-29-12-2019दिल दिमाग जंग,अक्सर दिल जीत जाता है।
क्योंकि प्यार दिलों दिमाग,हावी हो जाता है।।
दिल से सोचने वाला,पागल ही कहलाता है
सच झूठ में फर्क,वो कभी नहीं कर पाता है।।
जाती पांति की भाषा,वो नहीं समझ पाता है।
सावन अंधे को,सब ओर हरा नजर आता है।।
आंखें तब खुलती,जब वो धोखा खा जाता है।
ना घर ना घाट का,जग भी उसे बिसराता है ।।
दिल दिमाग काबू रख,बड़ों की बात मानता है।
जीवन में ठोकर,वो जन कभी नहीं खाता है ।।
दिल की सुन दिमाग से,नेतृत्व जो भी करता है।
यश खुद पाता,और जग में वह छा जाता है।।
वीणा वैष्णव
विषय -स्वतंत्र
दिनांक-29-12-2019दिल दिमाग जंग,अक्सर दिल जीत जाता है।
क्योंकि प्यार दिलों दिमाग,हावी हो जाता है।।
दिल से सोचने वाला,पागल ही कहलाता है
सच झूठ में फर्क,वो कभी नहीं कर पाता है।।
जाती पांति की भाषा,वो नहीं समझ पाता है।
सावन अंधे को,सब ओर हरा नजर आता है।।
आंखें तब खुलती,जब वो धोखा खा जाता है।
ना घर ना घाट का,जग भी उसे बिसराता है ।।
दिल दिमाग काबू रख,बड़ों की बात मानता है।
जीवन में ठोकर,वो जन कभी नहीं खाता है ।।
दिल की सुन दिमाग से,नेतृत्व जो भी करता है।
यश खुद पाता,और जग में वह छा जाता है।।
वीणा वैष्णव
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विषय- नेतृत्व
दिनांक -27-12-2019नेतृत्व करना,बहुत ही कठिन काम होता है।
कोई एक बिरला ही, नेतृत्व कर पाता है।।
अंधा नेतृत्व करे,तो वो खाई में गिराता है।
उस पार तो, दिमाग वाला ही ले जाता है ।
साहस धैर्य व आत्मविश्वास, उसमें होता है।
सच्चा नेतृत्व कर्ता,गुणों से परिपूर्ण होता है।।
कठिन परिस्थितियों में,वो निर्णय लेता है।
इमानदारी पूर्वक कार्य कर,आगे बढता है।।
शक्ति का नहीं,दिमाग का खेल ये होता है।
ज्ञान के बिना,बस यह एक मखोल होता है।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक -27-12-2019नेतृत्व करना,बहुत ही कठिन काम होता है।
कोई एक बिरला ही, नेतृत्व कर पाता है।।
अंधा नेतृत्व करे,तो वो खाई में गिराता है।
उस पार तो, दिमाग वाला ही ले जाता है ।
साहस धैर्य व आत्मविश्वास, उसमें होता है।
सच्चा नेतृत्व कर्ता,गुणों से परिपूर्ण होता है।।
कठिन परिस्थितियों में,वो निर्णय लेता है।
इमानदारी पूर्वक कार्य कर,आगे बढता है।।
शक्ति का नहीं,दिमाग का खेल ये होता है।
ज्ञान के बिना,बस यह एक मखोल होता है।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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विषय -हसीं मौसम
दिनांक 26- 12- 2019हसीं मौसम का आनंद,आप अपनों संग लिजिए।
गैरों संग मजे कर,अपनों को दर्द कभी ना दीजिए।।
मौसम कोई भी हो,उसे हसीं मौसम बना लीजिए।
ठंड बहुत ज्यादा हो,अलाव जला आनंद लीजिए।।
इसी बहाने कुछ पल,अपनों से आप बातें कीजिए।
बड़े बुजुर्गों के अनुभव को,साझा आप कीजिए।।
जिंदगी में कभी भी,उदास आप ना रहा कीजिए।
है बहुत छोटी,हर पल आनंद से जिया कीजिए।।
कुछ यादें जाने से पहले,आप अमिट छोड़ दीजिए।
जग याद करें,ऐसा कुछ तो आप काम कीजिए।।
सुबह शाम चक्कर में,जिंदगी तमाम ना कीजिए।
मिला है अनमोल जीवन, इसे सार्थक कीजिए।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 26- 12- 2019हसीं मौसम का आनंद,आप अपनों संग लिजिए।
गैरों संग मजे कर,अपनों को दर्द कभी ना दीजिए।।
मौसम कोई भी हो,उसे हसीं मौसम बना लीजिए।
ठंड बहुत ज्यादा हो,अलाव जला आनंद लीजिए।।
इसी बहाने कुछ पल,अपनों से आप बातें कीजिए।
बड़े बुजुर्गों के अनुभव को,साझा आप कीजिए।।
जिंदगी में कभी भी,उदास आप ना रहा कीजिए।
है बहुत छोटी,हर पल आनंद से जिया कीजिए।।
कुछ यादें जाने से पहले,आप अमिट छोड़ दीजिए।
जग याद करें,ऐसा कुछ तो आप काम कीजिए।।
सुबह शाम चक्कर में,जिंदगी तमाम ना कीजिए।
मिला है अनमोल जीवन, इसे सार्थक कीजिए।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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विषय-तुलसी
दिनांक-25-12-2019
तुलसी ने आंगन मेरा महकाया।
हर घर की शोभा को बढ़ाया ।।
मंदिर में जब उसे मैने लगाया ।
प्रभु प्रसाद स्थान उसने पाया।।
जड़ी बूटी गुण तुलसी में बताया।
कई रोगों को उसने दूर भगाया।।
द्विबीज पत्री पौधा वो कहलाया।
सर्वश्रेष्ठ स्थान तुलसी ने पाया ।।
श्याम वर्ण बन श्यामा कहलाया।
श्वेत तना प्रभु नाम राम कहाया।।
अनेक रोग इलाज तुलसी पाया।
जीवन निरोग सब इससे बनाया।।
हिंदू धर्म महत्व तुलसी बताया।
तुलसी जल नित्य सब चढ़ाया।।
जिसने नित्यक्रम यह दोहराया।
प्रभु चरण स्थान उसने पाया।।
तुलसी दिवस रूप आज मनाया।
संस्कृति बच्चों को ज्ञान कराया।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक-25-12-2019
तुलसी ने आंगन मेरा महकाया।
हर घर की शोभा को बढ़ाया ।।
मंदिर में जब उसे मैने लगाया ।
प्रभु प्रसाद स्थान उसने पाया।।
जड़ी बूटी गुण तुलसी में बताया।
कई रोगों को उसने दूर भगाया।।
द्विबीज पत्री पौधा वो कहलाया।
सर्वश्रेष्ठ स्थान तुलसी ने पाया ।।
श्याम वर्ण बन श्यामा कहलाया।
श्वेत तना प्रभु नाम राम कहाया।।
अनेक रोग इलाज तुलसी पाया।
जीवन निरोग सब इससे बनाया।।
हिंदू धर्म महत्व तुलसी बताया।
तुलसी जल नित्य सब चढ़ाया।।
जिसने नित्यक्रम यह दोहराया।
प्रभु चरण स्थान उसने पाया।।
तुलसी दिवस रूप आज मनाया।
संस्कृति बच्चों को ज्ञान कराया।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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विषय -प्रखर/ तेज
दिनांक 24-12 -2019मैंने जिंदगी में,हार ना कभी मानी है।
सत्य संघर्ष हित,आवाज उठा ली है।
अपनी प्रखर बुद्धि से,राह निकाली है।
कठिन परिस्थितियों में,राह ना बदली है।
दीप शांति के जले,ये मन में ठानी है।
माँ शारदे साज हूँ,कलम मैंने उठाली है।
राह सबको सही दिखाए,वही ज्ञानी है।
प्रभु श्रेष्ठ रचना का,एक वही सानी है।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 24-12 -2019मैंने जिंदगी में,हार ना कभी मानी है।
सत्य संघर्ष हित,आवाज उठा ली है।
अपनी प्रखर बुद्धि से,राह निकाली है।
कठिन परिस्थितियों में,राह ना बदली है।
दीप शांति के जले,ये मन में ठानी है।
माँ शारदे साज हूँ,कलम मैंने उठाली है।
राह सबको सही दिखाए,वही ज्ञानी है।
प्रभु श्रेष्ठ रचना का,एक वही सानी है।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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विषय -स्वतंत्र सृजन
दिनांक 22 -12- 2019 संघर्ष बिना किसी का,जीवन कहाँ निखरता है।
भाग भरोसे जो बैठा,दुखी जीवन बिताता है।।
कोशिश करने वाला,कामयाबी को पाता है।
कठिन परिस्थितियों में,राह स्वयं बनाता है।।
जिंदगी जंग है,जीतना कहाँ आसान होता है।
जुझारू व्यक्ति ही, सब मुमकिन बनाता है।।
कुछ समय के लिए,पागल वो जग में बनता है।
संघर्ष जारी रख,वह जग में सफलता पाता है ।।
अंजाम की परवाह नहीं,आगाज वह करता है।
इस तरह संघर्ष से,जीवन उसका निखरता है।।
संघर्ष कर सिकंदर,जग विजेता बन जाता है।
देखो मरकर भी वो,नाम अमर कर जाता है।।
कह रही वीणा, संघर्ष बेकार नही जाता है ।
परिवर्तन के दौर में ,सम्मान वो ही पाता है।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 22 -12- 2019 संघर्ष बिना किसी का,जीवन कहाँ निखरता है।
भाग भरोसे जो बैठा,दुखी जीवन बिताता है।।
कोशिश करने वाला,कामयाबी को पाता है।
कठिन परिस्थितियों में,राह स्वयं बनाता है।।
जिंदगी जंग है,जीतना कहाँ आसान होता है।
जुझारू व्यक्ति ही, सब मुमकिन बनाता है।।
कुछ समय के लिए,पागल वो जग में बनता है।
संघर्ष जारी रख,वह जग में सफलता पाता है ।।
अंजाम की परवाह नहीं,आगाज वह करता है।
इस तरह संघर्ष से,जीवन उसका निखरता है।।
संघर्ष कर सिकंदर,जग विजेता बन जाता है।
देखो मरकर भी वो,नाम अमर कर जाता है।।
कह रही वीणा, संघर्ष बेकार नही जाता है ।
परिवर्तन के दौर में ,सम्मान वो ही पाता है।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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दिनांक 21-12 -2019नि:स्वार्थ भाव से काम कर,तो तू यश को पाएगा।
आ गया स्वार्थ,तो पाया सम्मान भी खो जाएगा।।
दोस्त का हमदर्द बनकर,जो उसका दर्द बटाएगा।
जख्मों पर हकीकत में,वो ही मरहम लगाएगा।।
मतलबी दुनिया,जीवन चरितार्थ ना हो पाएगा।
करता रह नि:स्वार्थ कार्य,तू सफलता पाएगा।।
प्रभु घर देर अंधेर नहीं,तू सार्थक कर पाएगा ।
आँखों के अंधों को,आईना तू ही दिखाएगा।।
नि:स्वार्थ भाव रख,तू जग में अमर हो जाएगा।
बाकी स्वार्थ में डूबा ,दर दर ठोकर खाएगा।।
सब कुछ पाकर स्वार्थी जन, सम्मान न पायेगा।
एक झूठ छुपाने में,जीवन उसका गुजर जाएगा।।
कहती वीणा नि:स्वार्थ रह,जग नहीं बिसराएगा।
अपने श्रेष्ठ भावों से वो,जग में अमरता पाएगा।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
आ गया स्वार्थ,तो पाया सम्मान भी खो जाएगा।।
दोस्त का हमदर्द बनकर,जो उसका दर्द बटाएगा।
जख्मों पर हकीकत में,वो ही मरहम लगाएगा।।
मतलबी दुनिया,जीवन चरितार्थ ना हो पाएगा।
करता रह नि:स्वार्थ कार्य,तू सफलता पाएगा।।
प्रभु घर देर अंधेर नहीं,तू सार्थक कर पाएगा ।
आँखों के अंधों को,आईना तू ही दिखाएगा।।
नि:स्वार्थ भाव रख,तू जग में अमर हो जाएगा।
बाकी स्वार्थ में डूबा ,दर दर ठोकर खाएगा।।
सब कुछ पाकर स्वार्थी जन, सम्मान न पायेगा।
एक झूठ छुपाने में,जीवन उसका गुजर जाएगा।।
कहती वीणा नि:स्वार्थ रह,जग नहीं बिसराएगा।
अपने श्रेष्ठ भावों से वो,जग में अमरता पाएगा।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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विषय- क्षमा /माफी
दिनांक 19-12 -2019दुख देने से दुख बढ़ेगा, फिर क्यों दुख देते हैं।
अमन प्रेम विस्तार कर ,चहुँओर यश पाते हैं।।
बरसे हृदय से करुणा,ऐसा काम सब करते हैं।
हो जाए भूल वश गलती,उनको क्षमा करते हैं।।
द्वंद अगर हो जाए तो,थोड़ी दूरी रख लेते हैं।
मन वचन अगर क्लैश हो,माफी वो मांगते हैं।।
आगे जीवन क्लेस मुक्त हो, प्रयास करते हैं।
बड़े हैं, क्षमा करने से बड़े ही सदा बनते हैं।।
कोई नहीं दोषी,अनजाने में गुनाह सब होते हैं।
इस चक्रव्यूह से,क्षमा मांग ही सब बचते हैं ।।
स्वयं करता नहीं कोई,कर्मों का ताना-बाना है।
सब इस जग में रह,कर्मों का कर्ज चुकाते हैं।।
क्षमा वीररस्य भूषणम,अपना महान बनते हैं।
क्षमा दान देकर ही,वह अहंकार को हरते हैं।।
कहती वीणा उत्तम क्षमा,क्यूं अवसर गवांते हैं।
एक क्षमा शब्द,कितने जीवन संवर जाते हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 19-12 -2019दुख देने से दुख बढ़ेगा, फिर क्यों दुख देते हैं।
अमन प्रेम विस्तार कर ,चहुँओर यश पाते हैं।।
बरसे हृदय से करुणा,ऐसा काम सब करते हैं।
हो जाए भूल वश गलती,उनको क्षमा करते हैं।।
द्वंद अगर हो जाए तो,थोड़ी दूरी रख लेते हैं।
मन वचन अगर क्लैश हो,माफी वो मांगते हैं।।
आगे जीवन क्लेस मुक्त हो, प्रयास करते हैं।
बड़े हैं, क्षमा करने से बड़े ही सदा बनते हैं।।
कोई नहीं दोषी,अनजाने में गुनाह सब होते हैं।
इस चक्रव्यूह से,क्षमा मांग ही सब बचते हैं ।।
स्वयं करता नहीं कोई,कर्मों का ताना-बाना है।
सब इस जग में रह,कर्मों का कर्ज चुकाते हैं।।
क्षमा वीररस्य भूषणम,अपना महान बनते हैं।
क्षमा दान देकर ही,वह अहंकार को हरते हैं।।
कहती वीणा उत्तम क्षमा,क्यूं अवसर गवांते हैं।
एक क्षमा शब्द,कितने जीवन संवर जाते हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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विषय- छल-बल
दिनांक १६-१२-२०१९छल बल जीत ना पाया,किया उसने तकरार है।
एक बात मैं समझ ना पाई,क्या यही संसार है।।
भाई भाई बीच जंग,बनी देखो घर में दीवार है।
खून रिश्ते समझे नहीं,माँ बाप कितने लाचार हैं।।
धन दौलत चाह डूबे,चढ़ा सर उनके खुमार है।
संस्कारों को भुला दिया,बिखर रहे परिवार हैं।।
अस्तित्व तुम्हारा मिट जाएगा,यह नहीं प्यार है।
छल बल त्याग प्रेम अपना,यही संसार सार है।।
कर्मानुसार फल देगा,प्रभु को तेरा इंतजार है।
नहीं रहना सदा धरा,क्यों करता अत्याचार है।।
कहती वीणा संभल,जग में सब समझदार है।
छल बल छोड़ प्यार रह,यही तो परिवार है।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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विषय-स्वतंत्र लेखन
दिनांक 15 -12- 2019दिमाग को कचरे का डिब्बा,सबने बना दिया।
क्रोध लोभ मोह माया अंहकार,इसमे भर दिया।।
इन सबने मिलकर,जीवन को नर्क बना दिया।
अपने अमूल्य जीवन को,कोडी का बना दिया।।
अंहकारी रावण को भी,पथभ्रष्ट उसने किया।
दिया विनाश को निमंत्रण,सीता का हरण किया।।
जलती लकड़ी देख कर,भी नहीं विचार किया।
तन की होनी यही गति मनु अंहकार क्यों किया।।
अंहकार दान कर,जीवन को महान बना दिया।
गुमान सुरूर सिर सवार,उन सबको हटा दिया।।
प्रेम दिया ऐसा जला,अंहकार को भुला दिया।
मैं बहुत खुश हूँ,तुने मुझे अपनों से मिला दिया।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
स्वरचित
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विषय -विरोध
दिनांक १४-१२-२०१९
स्वार्थ के कारण ही,सदा विरोध होते हैं।
जहां नहीं स्वार्थ,वहां सब प्रेम से रहते हैं।।
जो लीक से हटकर, श्रेष्ठ कार्य करते हैं ।
विरोध का सामना ,वो जग में करते हैं।।
विरोध डर से,जो कदम पीछे करते हैं।
गर्दन झुका,कायरों की तरह वो जीते हैं ।।
विरोध बदलने का हुनर, बिरले रखते हैं।
अपना नाम अमर, वह जग में करते हैं ।।
देश विकास में,वही जन हाथ बढ़ाते हैं।
विरोध सह आगे बढे,वो इतिहास रचते हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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विषय- कीमत
दिनांक १२-१२-२०१९तेरे जाने के बाद,तेरी कीमत समझ आई ।
जीते जी वो तेरी,कभी कदर नहीं कर पाई।।
मौत खाई पारकर,तूने उसकी जान बचाई।
वो नादान कुदरत करिश्मा समझ, मुस्काई।।
लगी ठोकर,कीमत उसे तेरी समझ आई।
तब तक दूर तुमने,एक नई दुनिया बसाई।।
देखो उसने नादानी,सजा क्या खूब पाई ।
तुझ से दूर रह,कीमत उसने बड़ी चुकाई।।
भूलकर भी उसने,गलती कभी ना दोहराई ।
तेरी याद में उसने,अपनी जिंदगी बिताई।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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विषय -छांव/ छाया
दिनांक ११-१२-२०१९घने वृक्ष छांव से,घनी मात पिता आशीष छाया।
पड़कर लोभ लालच मनु,सौभाग्य यह गंवाया।।
पत्नी प्यार अंधा हो,मात पिता को ठुकराया।
जीवन लगा दिया,तूने उन्हें वृद्धाश्रम पहुंचाया।।
तेरी बारी भी आएगी,क्योंकि तूने भी पुत्र जाया।
जैसा देखा वैसा किया,यही विधाता की माया।।
पुत्र वह तेरा है लेकिन,पत्नी बाहर से वो लाया।
होगा एहसास,जब खेल यही तेरे संग दोहराया।।
सुख दुख दोनों सहता,मात पिता आशीष छाया।
श्रवण जैसा क्यों ना बना,बना विभीषण भाया ।।
मात-पिता वचन पूरा करने,राम ने वन पाया।
सुख दुख सहे बहू,तभी तो जग ना बिसराया।।
इतिहास अमर हो गया,राम संग लक्ष्मण भाया।
कैकयी को कुयश मिला,नाम न कोई दोहराया।।
माता पिता आशीष छाया,जिसने जीवन में पाया।
स्वर्ग सुख धरा पर,उस परिवार ने ही सदा पाया।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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विषय- छल-बल
दिनांक १६-१२-२०१९छल बल जीत ना पाया,किया उसने तकरार है।
एक बात मैं समझ ना पाई,क्या यही संसार है।।
भाई भाई बीच जंग,बनी देखो घर में दीवार है।
खून रिश्ते समझे नहीं,माँ बाप कितने लाचार हैं।।
धन दौलत चाह डूबे,चढ़ा सर उनके खुमार है।
संस्कारों को भुला दिया,बिखर रहे परिवार हैं।।
अस्तित्व तुम्हारा मिट जाएगा,यह नहीं प्यार है।
छल बल त्याग प्रेम अपना,यही संसार सार है।।
कर्मानुसार फल देगा,प्रभु को तेरा इंतजार है।
नहीं रहना सदा धरा,क्यों करता अत्याचार है।।
कहती वीणा संभल,जग में सब समझदार है।
छल बल छोड़ प्यार रह,यही तो परिवार है।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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विषय-स्वतंत्र लेखन
दिनांक 15 -12- 2019दिमाग को कचरे का डिब्बा,सबने बना दिया।
क्रोध लोभ मोह माया अंहकार,इसमे भर दिया।।
इन सबने मिलकर,जीवन को नर्क बना दिया।
अपने अमूल्य जीवन को,कोडी का बना दिया।।
अंहकारी रावण को भी,पथभ्रष्ट उसने किया।
दिया विनाश को निमंत्रण,सीता का हरण किया।।
जलती लकड़ी देख कर,भी नहीं विचार किया।
तन की होनी यही गति मनु अंहकार क्यों किया।।
अंहकार दान कर,जीवन को महान बना दिया।
गुमान सुरूर सिर सवार,उन सबको हटा दिया।।
प्रेम दिया ऐसा जला,अंहकार को भुला दिया।
मैं बहुत खुश हूँ,तुने मुझे अपनों से मिला दिया।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
स्वरचित
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विषय -विरोध
दिनांक १४-१२-२०१९
स्वार्थ के कारण ही,सदा विरोध होते हैं।
जहां नहीं स्वार्थ,वहां सब प्रेम से रहते हैं।।
जो लीक से हटकर, श्रेष्ठ कार्य करते हैं ।
विरोध का सामना ,वो जग में करते हैं।।
विरोध डर से,जो कदम पीछे करते हैं।
गर्दन झुका,कायरों की तरह वो जीते हैं ।।
विरोध बदलने का हुनर, बिरले रखते हैं।
अपना नाम अमर, वह जग में करते हैं ।।
देश विकास में,वही जन हाथ बढ़ाते हैं।
विरोध सह आगे बढे,वो इतिहास रचते हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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विषय- कीमत
दिनांक १२-१२-२०१९तेरे जाने के बाद,तेरी कीमत समझ आई ।
जीते जी वो तेरी,कभी कदर नहीं कर पाई।।
मौत खाई पारकर,तूने उसकी जान बचाई।
वो नादान कुदरत करिश्मा समझ, मुस्काई।।
लगी ठोकर,कीमत उसे तेरी समझ आई।
तब तक दूर तुमने,एक नई दुनिया बसाई।।
देखो उसने नादानी,सजा क्या खूब पाई ।
तुझ से दूर रह,कीमत उसने बड़ी चुकाई।।
भूलकर भी उसने,गलती कभी ना दोहराई ।
तेरी याद में उसने,अपनी जिंदगी बिताई।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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विषय -छांव/ छाया
दिनांक ११-१२-२०१९घने वृक्ष छांव से,घनी मात पिता आशीष छाया।
पड़कर लोभ लालच मनु,सौभाग्य यह गंवाया।।
पत्नी प्यार अंधा हो,मात पिता को ठुकराया।
जीवन लगा दिया,तूने उन्हें वृद्धाश्रम पहुंचाया।।
तेरी बारी भी आएगी,क्योंकि तूने भी पुत्र जाया।
जैसा देखा वैसा किया,यही विधाता की माया।।
पुत्र वह तेरा है लेकिन,पत्नी बाहर से वो लाया।
होगा एहसास,जब खेल यही तेरे संग दोहराया।।
सुख दुख दोनों सहता,मात पिता आशीष छाया।
श्रवण जैसा क्यों ना बना,बना विभीषण भाया ।।
मात-पिता वचन पूरा करने,राम ने वन पाया।
सुख दुख सहे बहू,तभी तो जग ना बिसराया।।
इतिहास अमर हो गया,राम संग लक्ष्मण भाया।
कैकयी को कुयश मिला,नाम न कोई दोहराया।।
माता पिता आशीष छाया,जिसने जीवन में पाया।
स्वर्ग सुख धरा पर,उस परिवार ने ही सदा पाया।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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विषय -नियति
दिनांक-९-१२-२०१९नियति बदल,आगे जो बढ़ पाएगा।
चट्टान चीर स्वयं,राह वो बनाएगा।।
ठहर गया ,कुछ ना कर पाएगा।
हिम्मत रख,तू उस पार जाएगा।।
नियति बदल,,हुनर सीख जाएगा।
अपना मार्ग, प्रशस्त कर पाएगा।।
जहाँ आई लालसा,क्षय हो जाएगा।
वो जग में सदा, कुयश ही पाएगा ।।
अग्निपथ,अनवरत चलता जाएगा।
आनंद नहीं,जीवन लक्ष्य वो पाएगा।।
मधुमयी शांत छाया,जो ठहर जाएगा।
नियति को,वह कभी न बदल पाएगा।।
अंबर विभा,प्रबद्ध जो कर पाएगा।
स्वर्णिम इतिहास,पुन:वो लिखाएगा।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक-९-१२-२०१९नियति बदल,आगे जो बढ़ पाएगा।
चट्टान चीर स्वयं,राह वो बनाएगा।।
ठहर गया ,कुछ ना कर पाएगा।
हिम्मत रख,तू उस पार जाएगा।।
नियति बदल,,हुनर सीख जाएगा।
अपना मार्ग, प्रशस्त कर पाएगा।।
जहाँ आई लालसा,क्षय हो जाएगा।
वो जग में सदा, कुयश ही पाएगा ।।
अग्निपथ,अनवरत चलता जाएगा।
आनंद नहीं,जीवन लक्ष्य वो पाएगा।।
मधुमयी शांत छाया,जो ठहर जाएगा।
नियति को,वह कभी न बदल पाएगा।।
अंबर विभा,प्रबद्ध जो कर पाएगा।
स्वर्णिम इतिहास,पुन:वो लिखाएगा।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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विषय- स्वतंत्र लेखन
दिनांक ८-१२-२०१९लोग मुँह मिश्री घोल,आजकल यूं बोला करते हैं।
मुँह राम बगल में छुरी,कहावत चरितार्थ करते हैं।।
महकते हैं फूलों की तरह,खुशबू मिलावट रखते हैं।
पत्तों सी कोमलता नहीं, स्पर्श दर्द दिया करते हैं।।
बातें लच्छेदार कर,वो ऐसे बात करामात रखते हैं ।
मिले जब भी खबर,नमक मिर्च लगा पेश करते हैं।
गुनाह करते हैं बहुत,पर शर्म नहीं किया करते हैं ।
यह कलयुग,ऐसे लोग ही मजे से जिया करते हैं।।
सच बोलने वाले, सदा ही गुनहगार बना करते हैं।
झूठ बोलने वाले।,एकछत्र चहुँओर राज करते हैं।।
सौ सुनार एक लुहार,कहावत प्रभु यथार्थ करते हैं।
जवानी में किया गुनाह,सजा वो बुढ़ापे में पाते हैं।।
प्रभु घर देर अंधेर नहीं,हकीकत नहीं समझते हैं।
करते हैं हिसाब सब बराबर,उधार नहीं रखते हैं।।
कह रही वीणा, ये मनु फिर क्यूं नहीं संभलते हैं।
अपने संग अपनों का भी,जीवन बर्बाद करते हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
स्वरचित
दिनांक ८-१२-२०१९लोग मुँह मिश्री घोल,आजकल यूं बोला करते हैं।
मुँह राम बगल में छुरी,कहावत चरितार्थ करते हैं।।
महकते हैं फूलों की तरह,खुशबू मिलावट रखते हैं।
पत्तों सी कोमलता नहीं, स्पर्श दर्द दिया करते हैं।।
बातें लच्छेदार कर,वो ऐसे बात करामात रखते हैं ।
मिले जब भी खबर,नमक मिर्च लगा पेश करते हैं।
गुनाह करते हैं बहुत,पर शर्म नहीं किया करते हैं ।
यह कलयुग,ऐसे लोग ही मजे से जिया करते हैं।।
सच बोलने वाले, सदा ही गुनहगार बना करते हैं।
झूठ बोलने वाले।,एकछत्र चहुँओर राज करते हैं।।
सौ सुनार एक लुहार,कहावत प्रभु यथार्थ करते हैं।
जवानी में किया गुनाह,सजा वो बुढ़ापे में पाते हैं।।
प्रभु घर देर अंधेर नहीं,हकीकत नहीं समझते हैं।
करते हैं हिसाब सब बराबर,उधार नहीं रखते हैं।।
कह रही वीणा, ये मनु फिर क्यूं नहीं संभलते हैं।
अपने संग अपनों का भी,जीवन बर्बाद करते हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
स्वरचित
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विषय - आसरा/सहारा
दिनांक-७-१२-२०१९मोहब्बत कर,आसरा दिल में दिया था।
बड़ी मुश्किल से,वो दिल पर छाया था।।
सहारा उसने,अपने घर में उसे दिया था।
उसकी औकात से,रूबरू कराया था।।
गरीब होना गुनाह,अब उसका हो गया था।
बात-बात पर उसे,सदा ही सताया गया था।।
किससे करे गिला,अपनों ने दूर किया था।
बेचा बाप ने उसे,आज उसे ये बताया था।।
प्यार नहीं फंसाने का,खेल वो खेला था।
नादानी ने उसे,ये कैसा धोखा दिया था ।।
किससे करे शिकवा,कोई ना उसका था।
हर दर्द,अपनों से खामोश रह सहा था ।।
ओर बेआबरु करता,इससे तो अच्छा था।
नौकर बना उसको,सहारा तो दिया था।।
दिल से खेलना अब,फैशन हो गया था ।
सहारा दे उसे,दिल से बे सहारा किया था।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक-७-१२-२०१९मोहब्बत कर,आसरा दिल में दिया था।
बड़ी मुश्किल से,वो दिल पर छाया था।।
सहारा उसने,अपने घर में उसे दिया था।
उसकी औकात से,रूबरू कराया था।।
गरीब होना गुनाह,अब उसका हो गया था।
बात-बात पर उसे,सदा ही सताया गया था।।
किससे करे गिला,अपनों ने दूर किया था।
बेचा बाप ने उसे,आज उसे ये बताया था।।
प्यार नहीं फंसाने का,खेल वो खेला था।
नादानी ने उसे,ये कैसा धोखा दिया था ।।
किससे करे शिकवा,कोई ना उसका था।
हर दर्द,अपनों से खामोश रह सहा था ।।
ओर बेआबरु करता,इससे तो अच्छा था।
नौकर बना उसको,सहारा तो दिया था।।
दिल से खेलना अब,फैशन हो गया था ।
सहारा दे उसे,दिल से बे सहारा किया था।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
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