Friday, May 1

" चरित्र"30अप्रैल2020

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ब्लॉग संख्या :-722
विषय - चरित्र
प्रथम प्रयास


चरित्र अनुवांशिकी है पाया जाता है
पर कुछ चरित्र यहाँ खुद बनाया जाता है।।

अच्छाइयाँ और निखारना होतीं हैं
बुराइयों से पिण्ड छुड़ाया जाता है।।

वक्त पर सदगुरू का मिलना हितकर है
समर्पित हो शीष झुकाया जाता है।।

हीरा भी हीरा कहाँ होता है भला
तराश कर बाजार में लाया जाता है।।

सुपरिवेश मिलना सौभाग्य मगर कभी
कमल कि मानिंद कष्ट उठाया जाता है।।

चरित्र कभी भी स्थिर नही कहलाता है
धूमिल न हो नजर गढ़ाया जाता है।।

सतसंग की अहमियत को सदा समझिए
चार चाँद लगा उसे सजाया जाता है।।

चरित्र से बढ़कर नहि कुछ भी संसार में
नेक कथन 'शिवम' नहि भुलाया जाता है।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 30/04/2020

30 अप्रैल 2020
विषय चरित्र


विधा चौपाई
बिषय चरित्र
...............................................
दोहा। उत्तम चरीत्र मनुज का, करता है उत्थान।
जग जीवन सुंदर रहे,नही कहीं व्यवधान।।
चौपाई।

मात पिता गुरु सेवा चरणा
निज पुनीत जीवन आचरणा।
सदा सत्य का पालन करना,
सहज सरल जीवन में रहना।।

नर नारी मर्यादा रखें,
सदा चरण में पथ को देखें।।
चरित्र नीति धर्म मय रखना,
कर्मठता पारायण रहना।।
दोहा
मनुज देह दुर्लभ मिली, रखिए सदा पवित्र।
खान पान आचरण से, उत्तम बने चरित्र।।
............................................
केशरीसिंह रघुवंशी हंस



विषय चरित्र

मानव में निहित प्रवृत्तियों का योग है चरित्र।
दृष्टिकोण और व्यवहार विधियों का प्रयोग है चरित्र।।
मानवीय कार्य पद्धति का दर्पण है चरित्र।
जिसमें प्रतिबिंब प्रतिभाषित कराता है चरित्र।।
आत्मनियंत्रण उत्तम चरित्र की पहली पहचान।
कार्य में दृढ़ता हो खुद पर विश्वासमान।।
कर्म में निष्ठा हो अन्तःकरण की हो शुद्धता।
उत्तरदायित्व की भावना हो मानवीय गुणों की समाविष्टता।।
ऋषियों की भूमि है, गुरुओं की बानी।
महापुरुषों के उपदेश श्रेष्ठता की निशानी।।
उत्तम चरित्र से है भारत की पहचान।
दुनिया में देश का बढ़ाता है सम्मान।।
राम कृष्ण गौतम गाँधी विक्रमादित्य।
इनसे प्रकाशित चरित्र का आदित्य।।
चरित्रवान नागरिक ही बनाते हैं उन्नत देश।
उत्तम चरित्रवान बनो बस यही है संदेश।।

फूलचंद्र विश्वकर्मा


विषय चरित्र
विधा काव्य

30 अप्रेल 2020,गुरुवार

इत्र मित्र चित्र चरित्र सब
ये परिचय मोहताज नहीं।
जीवन सदा प्रेरणामयी हो
स्नेह मित्रता सद्भाव सही।

एक कहावत बड़ी प्रचलित
धन खोया तो कुछ न खोया।
अगर स्वास्थ्य स्वस्थ नहीं है
वह नर जीवन में नित रोया।

सदाचरण जीवन की पूंजी
दया ममता स्नेह समर्पण।
परहित बड़ा धर्म न कोई
परोपकार में जीवन अर्पण।

राम चरित जग की प्रेरणा
अवधपति ने चरित सिखाये।
क्या कर्त्तव्य होते मानव के
धन्य भाग्य प्रभु हमें बताये।

सतत शिक्षा जीवन प्रक्रिया
एक दूजे से सीखें मिलकर।
सदवृत्ति ही सद्चरित्र जग
ये आती सत्संग में रहकर।

सुवासित सा चरित्र महकता
उसे कहते जग में मानवता।
स्व स्वार्थ में सदा लीन रहे
वह होती है जग में दानवता।

ये विश्व सुन्दर रंग मंच प्रिय
जगजीवन अभिनय करना।
सद्चरित्र इत्रवत महकाओ
सब जानते हैं जीना मरना।

स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।


विषय- चरित्र

जीवन कथा
चरित्र के अल्फाज
पढ़ते सब

चरित्र इत्र
महकता समाज
मिले सम्मान

सीता सम्मुख
चरित्र तलवार
हारे रावण

बुरा चरित्र
अंधकार जीवन
ढूंढों प्रकाश

पाप की अग्नि
संस्कारों का कवच
सत्य चरित्र
***
स्वरचित-रेखा रविदत्त


दिन :गुरुवार
दिनांक:३०-०४-२०२०

विषय :#चरित्र
विधा :#छंदमुक्त कविता
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

ऐसे होते तो कई तरह के हैं,.............पर मुख्यतः होते हैं दो,
एक इकहरा,दूसरा दोहरा,..........और दोनों के कारनामे दो।
एक सत्यवाची,अडिग-सहयोगी,दूजा होता छली,खली -मदाँध,
दोनों ही रहते इसी समाज में,पर होते दोनों के शामियाने दो।।

घर-संस्कार का,समाजिक-व्यवहार का व ख़ुद के विचार का मेल है चरित्र,
बहुत बड़ी छाप पड़ती है संगति का,......................जीवन शैली का,मित्र ।
इकहरे चरित्र वाले होते कम,......बहुत कम,क्योंकि क़दम कठोर होता है,
दोहरे वाले बहुत,.......ख़ूब बदलते हैं ,.....................चाल-चलन विचित्र।।

संघर्ष चाहे जितना हो ,पर इकहरे चरित्र का समाज में मान होता है,
तत्काल चाहे नहीं,.............पर बाद में उनका ख़ूब सम्मान होता है ।
दोहरे चरित्र वाले अपने आप व अपने बाप के नहीं होते,होते हैं दबंग,
सामने चाहे कोई करे सम्मान,पर अंत उनका बेहद बदनाम होता है।।

•••#कुमार @ शशि


विषय - चरित्र
दिनांक - ३०/४/२०


जो महका दे निज जीवन की राह।
अंतर मन छूने की जिसमें हो चाह।
भावना हो गंगाजल सी पाक।
वेदना में निभाये जो हर दम साथ।
समझ तब लो सच्चा मीत वही है।।

चले रिश्ता मन का मन से यूँ जब।
छूट जाते हों तन के विकार सब।
हाथ पकड़ ले जाये सदमार्ग तब।
ह्रदय शून्य में बसने लगे मित्र रब।
समझ तब लो सच्चा मीत वही है।।

बह जाये भावों में दोनों का चरित्र।
महके मन जैसे महकता हो इत्र।
बस जाये रग-रग में मित्र का चित्र।
भाव सदा रहें निर्मल पावन पवित्र।
समझ तब लो सच्चा मीत वही है।।

दिल जिसका होता सदैव दर्पण भी।
करता हो नित प्रेम औ' समर्पण भी।
शुद्ध विचार करे आत्मा तर्पण भी।
दुख में मित्र को दे जीवन अर्पण भी।
समझ तब लो सच्चा मीत वही है ।।


मीनू शुक्ल
राजकोट
दिनांक - 30,4,2020
दिन - गुरुवार

विषय - चरित्र

ये पूँजी सबके पास नहीं ,
बहुत कम धनवान हैं ।
दौलत चरित्र की मिले नहीं ,
खो गए इंसान हैं ।

कुछ ऐसी चलने लगी हवा ,
बेवस मन बदला है ।
जल्बा दिखे झूठ फरेब का ,
दिखावा ही बढ़ा है ।

ईमान बिक रहा सस्ते में ,
गद्दारी अनमोल है ।
ख्वाव सताते हैं सोते में ,
मन पे न कंट्रोल है ।

चरित्र नामक चिड़िया जग में,
घुटती है पिंजरे में ।
ईमान धर्म जिसके मन में ,
चरित्र है जीवन में ।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .


भावों के मोती।
विषय- चरित्र

स्वरचित।

चरित्र, जो दिखाये
अन्तर का वृहद चित्र।
आचरण का वरण
विचारों का स्फूरण।
प्रकृति का उद्घाटन
संस्कृति का संस्थापन।।

चरित्र, जो हो प्रेरक
सभ्यता का उत्प्रेरक।
करे सुभाषित जग
उद्घाटित हो नव नभ।
झरने सा झरे, पवन सा बहे।
वृक्षों सा नवे, पहाड़ सा अचल रहे।
विनय हो जड़ तो फल हो ज्ञान
देश स्वाभिमान तो,जन्म अभिमान।।

यही आदर्श चरित्र की है पहचान।
यही है आदर्श चरित्र कीपहचान।।

प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
30/04/2020

शीर्षक चरित्र ।
भावो के मोती


चरित्र पर दाग लगा तो चरित्र हीन कहलाऐ
बद से बदनाम बुरा कंलक लग जाऐ।

छिपकली का चरित्र रात भर कीड़े खाए
सुबह देवताओ की फोटो के पीछे छुप जाए ।

काला चश्मा पहने राजनेता देते बडे बडे वादे
जीतने के बाद सब वादी खोखले चरित्र दिख जाए।।।।।

चरित्र है जीवन भर की पूंजी
एक गलती पाप बन चरित्र कीचड़ बन जाऐ ।

परदों के पीछे होते महापापी
बाहर आकर आदर्श चरित्रवान बन जाऐ ।
धनयवाद
स्वरचित
पूनम कपरवान
देहरादून
उत्तराखंड


विषय-चरित्र

मनहरण घनाक्षरी
(1)
घर की दीवार पर ,अर्द्ध नग्न फोटो सजी,
बोलो चरित्र निर्माण ,कैसे कर पायेंगे|

मातु-पिता अस्त व्यस्त,चीज बड़ी मस्त मस्त,
आठोयाम गाने जब, ये ही गाये जायेंगे||

रात दिन टीवी चले, लाडलो को वो ही छले,
बो रहे बबूल हम, आम कैसे आयेंगे|

नशा जब चूर होगा, तब आयेगी समझ,
यही लल्ला लल्ली आगे,नाम को डुबायेंगे||

(2)
देखा और सुना है जो,वही लिख रहा मीत,
जैसी हम नींव रखे, वैसा घर पायेंगे|

आप यदि राम जैसे, घर में पवित्र सीता,
दावा है ये मीत मेरा, लवकुश आयेंगे||

रामायण और गीता, जीजाबाई नित पढ़े,
शिवाजी से लाड़ले जी, दुर्ग तोड़ जायेंगे||

लक्ष्मीबाई बेटी बन ,घर घर जन्म लेगी,
संस्कार अपने यदि, हम अपनायेंगे||

~जितेन्द्र चौहान "दिव्य"

विषय-चरित्र
विद्या-हाइकु
🏻👊🏻हाइकु चरित्र पंच👊🏻✍🏻

जैसा चरित्र।
उठा कर देख लो।।
वैसे हैं मित्र।

चरित्र साफ।
प्रभु के द्वार पर।।
गलती माफ।

अच्छा चरित्र।
बनाता पहचान।।
दोनों जहान।

बनके इत्र।
महकाए चरित्र।।
सच में मित्र।

बनो पवित्र।
"ऐश" साफ सुथरा।।
रख चरित्र।।

©️ अश्वनी कुमार चावला"ऐश"✍🏻
अनूपगढ़ श्रीगंगानगर, 30/04/2020

दिनांक- 30/4/20
विषय- चरित्र

स्त्री -एक संपूर्ण आधार
-----------------
कर्जों के बोझ तले दबकर,
जिन्दगी से हारकर,
वो विष का प्याला पी गया,
अपनों को छोड़ अकेला ,
परलोक का हो गया,
किंचित भी स्मरण ना किया उस निष्ठुर ने,
कैसे जीएगें उसके बिन उसके अपने इस दुनिया में
दो कोमल कलियाँ ,उस युवा फ़ूल के साथ,
कैसे रोकेगी इस समाज के बुरी नीयत भरे हाथ,
समय ने उस अभागिन से घर की दहलीज़ पार करवाई,
घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारी उस वीरांगना ने निष्ठा से उठाई,
इच्छाओं को दबाकर कर्ज़ों को उतारा,
ह्रदय से लगाकर अपनी मासूम कलियों की भी बनी सहारा,
दुख में सबने छोड़ दिया हाथ,
कोई ना आया निभाने उसका साथ,
उसकी मुस्कुराहट पर भी तानों का मिला अंबार,
कोई ना देख पाया उसके ह्रदय की पीड़ा अपार,
चरित्र की कसौटी पर भी परखा गया उसे,
हर खुशी से महरूम रखा गया उसे,
किन्तु वो शक्ति बन आगे बढ़ती गई,
पवित्र दामन ओढ़ अपने कर्तव्यों को पूरा करती गई,
उसने जग को दिया ये उदाहरण,
पुरूष प्रधान समाज में भी वो है श्रेष्ठतम स्थान करती है धारण।

"स्त्री स्वयं में एक संपूर्ण आधार है,
शक्ति और धैर्य का संसार है,
हारती नहीं जीवन की कठिनाइयों से कभी,
हर स्थिति को हिम्मत से करती स्वीकार है॥"

-निधि सहगल ' विदिता'

30/4/20
चरित्र...
चित्र चरित्र का कैसे कलम से बनाऊँ....
इतनी बारीक़ है ये कारागिरी कैसे
रंग सजाऊँ...
सफेद कैनवास दुनिया की तूलिका कितनी नजाकत से चलाऊँ....
की एक पल भटका मन तो कैसे कालिमा को बचा पाऊँ....
अगर लगा गलती से कोई दाग तो
नजरें कैसे मिला पाऊँ....
दामन मेरे जीवन का पाक ही रख पाऊँ...
कोई ऐसी भूल हो न प्रभु की नजरें जहाँ से चुराऊँ....
रंगों की रंगोली से चरित्र अपना मनमोहक बना पाऊँ....
बस ये जीवन का चित्र सबको लुभाये....
ऐसा जीवन चित्र रंगों से सजाऊँ
पूजा नबीरा काटोल नागपुर महाराष्ट्र


दिनांक 30 अप्रैल 2020
विषय चरित्र


गुण अवगुण
बनाते चरित्र
चरित्र आईना
जीवन का

चरित्र देख
जुडते है सब
अच्छे सा अच्छा
सच्चे से सच्चा

चरित्र बुरा
तो क्या भला,
ज्ञान का मोल
चरित्र पे निर्भर

प्रेरणा पाते
अच्छे चरित्र से
करते अनुकरण
सद्गुणो का सदैव

बहुत कठिन
चरित्र बनाना
जीवन मे अपने
सद्गुणो को भरना

चरित्र से नाम
शान और मान
जग मे पाता वह
चरित्र से बहुमान

करे कोशिश
अच्छा बनने की
अपने चरित्र को
अच्छा करने की

आती खुशियां
अच्छे चरित्र से
मन को संतोष
अच्छे चरित्र से

कमलेश जोशी

तिथि-30/04/2020
विषय-चरित्र


चरित्र
****
चरित्र हमारी है अमूल्य निधि
जीवन की कुन्जी है।
धन गया, कुछ ना गया।
स्वस्थ्य गया, फिर भी कुछ ना गया।
अगर चरित्र गया तो
समझो सब कुछ गया।
तुम राहों के फूल बनो शूल नहीं
गीता का उपदेश बन विशेष बनो
तुम तुलसी की चौपाई सी बनो
भक्ति में मीरा बाई बनो
प्रेम में राँझा की हीर बनो
पानी सा निर्मल नीर बनो
फूलों का हार बनो
कमल की भांति निर्लिप्त और पवित्र बनो।
तुम जहाँ-जहाँ जाओगे
तुम्हारी परख चरित्र से ही होगी!

अनिता निधि
जमशेदपुर,झारखंड


30/4/2020
बिषय, चरित्र

वापिस आ सकता है गया हुआ धन
फिर से निरोग हो जाता कमज़ोर रोगी तन
लेकिन चरित्र गया तो सब गया लगता कुछ न हाथ
जीते जी मर गए खो चुके विश्वास
चरित्रवान इंसान का सब करते सम्मान
फिर जाने क्यों बन जाते हैं नादान
यूँ तो चाँद पर भी दाग है मगर वह भी लगाया हुआ
क्योंकि शंभु ने उसे भाल पर सजाया हुआ
चांद तो चाँद है इसमें कोई खोट नहीं
माँ सीता के चरित्र में कोई दोष नहीं
अपने चरित्र को बचाते हुए हम चलते रहेंगे
लोगों का तो कहना कुछ भी लोग कहेंगे
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
30/4/2020/गुरुवार
*चरित्र*

दोहा
धनबल खोया कुछ नहीं,
चरित्र हीन हैं दीन।
सतचरित जो रहें सदा,
वह सबसे परवीन।1//

धर्मांध स्वास्थय का रखें,
वरना होंगे क्षीण।
रहें निरोगी गर सभी,
ना होंऐं गमगीन।2//

सद्चरित्र विद्वान करें,
गरिमा गौरव गान।
चहुंओर सम्मान मिले,
मानव वहीं महान।3//

धनवान हम भले बनें,
गया चरित्र सब गौण।
ज्यों सुंदर गूंगा कहीं,
लगता सबको मौन।4//

चरित्र चमकता ही दिखे,
ज्यूं माणिक का साथ,
कहें बलवान है वही,
जहां चरित्र का हाथ।5//

निर्मल पावन सा कहीं,
अपना चरित विवेक।
संस्कार हों पास सभी,
मिल जाए मित्र अनेक।6//

चरित्र महकता दूर से,
जैसे मलय सुवास।
लिपट रहे अजगर यहां,
रहते नहीं उदास।7//

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र


भावों के मोती
दिनांक30/4/2020

विषय चरित्र

चरित्र
चरित्र तो पुरुषों के होते हैं
चरित्रहीन स्त्रियां होती हैं
पति नहीं रहे तो
कुलटा ,अशुभकारी पत्नी होती है
साज श्रृंगार पत्नी की जाती है
विधवा पत्नी होती है
हंसने ,बोलने,नाचने गाने रंगीन वस्त्र
पहनने पर रोक तो पत्नी पर लगता है।
हो भी क्यों नहीं?
पुरुष जन्म से चरित्रवान होता है
वो कभी विधवा होता ही नहीं ,
पत्नी की चिता ठंडी हुई नहीं
लड़की वाले आने लगते है।
लोग बाग समाज को विधुर की
चिंता सताने लगती है ।
उसकी रंगीन वस्त्र पर
कहां रोक टोक होता है ?
उसे शादी ब्याह में जाने के लिए
कहां कोई रोकता है?
उसे तो कोई अपशकुन भी
नहीं कहता है?
इसलिए कि पुरुष चरित्रवान होते हैं!
उसका जीना कहां दुभर होता है ?
उसके लिए तो पूरा सामाज खड़ा होता है।
सच पूछिए तो ,
नारी ही चरित्रवान है।
वह सब दुख सह लेती हैं,
अंगारों पर चलती है,
अकेले छोटे-छोटे बच्चों को भी
पोश पाल लेती हैं।
लेकिन कभी दूसरी शादी की
विचार भी मन में नहीं लाती।
पूरी जिंदगी अकेली बिता देती हैं,
वह रो रो कर पति की याद में
रात रात भर जागती हैं
लेकिन किसी और का विचार भी
मन में नहीं लाती।
अरे आंखें खोलिए साहब!
चरित्रवान तो स्त्री होती हैं !!
माधुरी मिश्रा वरिष्ठ साहित्यकार, जमशेदपुर झारखंड


भावों के मोती ।
बिषय- चरित्र

विधा -हाइकु


चरित्रबान -
सत्य बादी नर,
धर्मात्मा ।


महात्मन-
परहित निपुण ,
परोपकारी ।

दुबिचारक -
क्रूर मानबता ,
अभिमानक ॥

चंचल मन -
उत्कल बिचार ,
चल चरित्र ॥

गुणी मानव -
सम्मान साधक ,
प्रेमी परुष ।
मदनगोपाल शाक्य 'प्रकाश'
फर्रूखाबादी । उ .प्र . ॥



समस्त मोतीयों को प्रणाम
विषय-चरित्र

जिंदगी एक चलचित्र है,,,,,,।
समझना विचित्र है,,,,,,,,???
जिवन साथी जिंदगी के मित्र हैं,,,।
सत्यता विचीत्र है,,,,,,,,,,???
खुशहाली हो तो तृप्त है,,,,।
वरना सब सुप्त है,,,,,,,???
बात यह गुप्त है,,,,।
जानना मुफ़्त है,,,,,,???
जांचो,परखो,खोजी नज़रों से,,,।
बचो मुखोटै चरित्र खंजरों से,,,???
नज़रें बड़े बुजुर्गो की,,,,,
भाप जाती है पल में,,,,,,
अनुभवों को प्रणाम करो,,,,,
इनसै ही चरित्र की क्लास पढ़ो,,,,???
स्वरचित-वंदना पालीवाल
३०-४-२०२०

खुश हो कर त्योहार मनाने से पहले।
कुछ सोचो घर -द्वार सजाने से पहले।


देखो भाई बिन क्या तन्हा जी पाओगे।
अपने आंगन मे दीवार उठाने से पहले।

मन को रोशन कर लेते खुशियों से।
तुम दीपक दो चार जलाने से पहले।

फिक्र जरा होती अपनों की गैरों की।
खुद को लम्बरदार बनाने से पहले।

अदब और कायदा तुम भूल गए हो।
इस बर्बादी को यार बनाने से पहले।

थोड़ा सा किरदार बना लेते अच्छा।
तुम बंगले मोटर कार बनाने से पहले।

अभी बहुत लम्बा रस्ता दूर है मजिंल।
जरा सोच कदम चार उठाने से पहले।

तौल के अपना दिल देख कभी लेना।
सबको झूठा मक्कार बताने से पहले।

विपिन सोहल

विषय - चरित्र
30/04/20

गुरुवार
कविता

जो समाज के कष्ट स्वयं ही आत्मसात करता है,
चिंतनऔर मनन कर सबकी पीड़ा को हरता है।

स्वार्थभाव को त्याग,समर्पण ही उसका व्रत होता ,
इसीलिए सच्चे अर्थों में वह नायक बनता है।

कितनी ही बाधाएं पथ को रोक खड़ी हो जाएँ,
पर वह निज कर्तव्य-बोध से विमुख नहीं रहता है।

जन-जन के हित में होती है उसकी हर अभिलाषा,
उसका हर एक कदम राष्ट्रहित में आगे बढ़ता है।

वह अपने उज्ज्वल चरित्र से जग में नाम कमाता,
सदा सभी के हृदय-पटल पर वह अंकित रहता है।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

विषय :- चरित्र
विचार प्रवाह
सुनो # मैं नारी # मुझे कुछ कहना है-
—————————————-
आज तक समझ नहीं सकी
कि ‘ चरित्र ‘ को हमेशा मुझसे
क्यूँ जोड़ा जाता है ?
विवाह से पहले या विवाह के बाद
मेरी अस्मिता क्यूँ ख़तरे में रहती है?
जिनसे मेरी अस्मिता को ख़तरा है
उनके ‘चरित्र ‘पर क्यूँ सवाल नहीं उठते?
****
तुम अनेक संबंधों के बाद भी
रहे चरित्रवान किसी ने भी न
प्रतिकार किया.
किन्तु मेरा किसी से बोल लेना
भी आख़िर क्यों नहीं किसी को
स्वीकार हुआ.?
***
‘ वो ‘ बलात्कार करके चला गया
नींद में मौत की भी सुला गया
रह रहा समाज में वो ख़ुशी ख़ुशी
जो दुष्कृत्य से अपने दहला गया।
***
क्यूँ नहीं उसका बहिष्कार हुआ ?
क्यूँ नहीं ख़तरे में आया चरित्र ?
मेरा तो वहशियाना शिकार हुआ
फिर मैं कैसे हो गयी अपवित्र ?
उत्तर दो।
वेदस्मृति ‘कृती’
स्वरचित

तिथि *वैशाख शुक्ल गंगा सप्तमी*
नमन मंचः *भावों के मोती*

दैनिक विषयः *चरित्र*
विधाः *दोहे*

#दोषी_कौन
सीता पायी घड़े में, खोदी गई जमीन|
जिसने छोड़ी घड़े में, कलंकी चरित्रहीन||

अंबा काशीराज की, क्यूँ लगा चरित्र दोष|
स्वंयवर से हड़ी गई, रहे सभी खामोश||

अंबाली वो अंबिका, थे भीषम युवराज|
स्वंयवर को नष्ट किया, अपने वंशज काज||

नारी चरित्र लिखा गया, अपना लिया छुपाय|
क्यूँ द्रोपदी रोई थी, वो देते बतलाय||

दोऊ की मर्जी मिले, दोनों की हो शान|
स्वंय का सृजन कीजिए, होय चरित्र निर्माण||
~~~~~~~~~~~~~~~~~
स्वरचित रचना द्वाराः
मंगलसैन डेढ़ा 'निर्गुर'
नई दिल्ली

दिनांक-30-4-2020
विषय-चरित्र


स्त्रियों का आचरण
दबे ढके आवरण
पुरुषों का चरित्र
है कितना विचित्र?
जो करते हैं
मासूम लड़कियों का शोषण

घर,गली मोहल्ले में
आज हैवान घूम रहे हैं
रक्षक ही
शैतान बन गए हैं
ये दुराचारी नहीं करते
किसी मर्यादा का आचरण

सीता के लिए तो
खींची लक्ष्मण रेखा
क्या रावण की थी
कोई सीमा रेखा?
जो घर मे घुस कर
करता था सीता का हरण

घर घर में छुपे हैं
आज दुःशासन
लाज बचाने को आज
कहाँ हैं कृष्ण
खुले आम हो रहा है आज
द्रोपदी का चीर हरण

और हमें ये सिखा रहे हैं
कि "कैसे मर्यादा में रहना
लज्जा होती है स्त्री का गहना
कि कैसा हो हमारा चरित्र और आचरण
कि कैसे हो हमारे आवरण??"

जिनको स्वयं नहीं पता
किसे कहते हैं मर्यादा
जो स्त्री की रक्षा कम
मान मर्दन करते हैं ज्यादा
क्या सिखाएंगे ये हमें
मान और मर्यादा?
और क्या उदाहरण रखेंगे
कि कैसा होना चाहिए चरित्र??


*वंदना सोलंकी मेधा*©स्वरचित


  • नारी चरित्र,सदा ही बखान किया गया।
जिम्मेदार कौन है,ये क्यों छुपाया गया।
चरित्र ज्वलंत वेदी ,नारी पुकारा वीणा।
फिर अग्निपरीक्षा देने,उसे संवारा गया।

क्या सच में ही, नारी अस्तित्व गिर गया।
सुलगते प्रश्न ,आज मुझे झकझोर दिया।
सम्मान पे संदेह,आज भारी हुआ वीणा।
फिर अग्निपरीक्षा,आह्वान सभा हो गया।

अनल चलने को,उसे तैयार कया गया।
क्यों नारी,ऐसे समाज ने शर्मसार किया।
हर कदम देती रही, अग्निपरीक्षा वीणा।
फिर क्यों उसे अपमानित ,आज किया।

सकल सृष्टि सृजन मैं,चरित्रवान हो गया।
आई खुद आँच, तो वो खामोश हो गया।
दूंगी अग्निपरीक्षा,ब्रह्मांड जला दो वीणा।
मैं अपवित्र हुई,तो वो कैसे पवित्र हो गया।

हर युग,खून के आंसू रोने मजबूर किया।
पुरुष होने का ही,उसे अहम जो आ गया।
जिंदगी को समझना,बहुत जरूरी वीणा।
लड़ अपने लिए,वरना जीवन व्यर्थ गया।


वीणा वैष्णव"रागिनी"
राजसमंद


३०/४/२०२०
विषय-चरित्र


संस्कार अर्पित,
सच्चे भाव समर्पित,
चरित्र निर्मित ।

सही पहचान,
पथ मिले आसान,
चरित्र निर्माण ।

सदाचार अंगीकार,
शांति,संयम बेशुमार,
चरित्र आधार।

सेवा भावना,
ईश की आराधना,
चरित्र साधना।

उन्नत समाज,
देश का विकास,
मानव चरित्रवान।

स्वरचित
चंदा प्रहलादका

30/4/20
विषय-चरित्र


कभी कभी हठ करती है।
मेरी हमसफ़र मेरी कलम।
बहुत फुसलाती हूं।
पर मानती ही नही ।
इसकी जिद की खातिर।
नीली की जगह।
भरती हूं मैं काली स्याही।
मैं जानती हूं मैं करती हूं छल।
उससे या फिर शायद स्वयं से।
उसे पता है।
मैं लिखती हूं सच्चाई दिलो की।
जो नही भाती किसी को
सोचती हूं आज ।
बदल दू इसकी रंगत।
नीले की जगह ।
चमकीला रङ्ग भर दू।
ये दुनिया चमक दमक की है।
ऊपर से कुछ और अंदर से कुछ और।
इस तरह पूरी हो जाएगी आस।
जो मेरे हमसफ़र की है खाश।
मेरी भी झूठी सच्चाइयों की बात।

स्वरचित


शीर्षक -चरित्र
दिनांक -30.4.2020

विधा --दोहे
1.
जैसा चरित्र हम गढ़ें, जीवन भर दे साथ ।
सद्चरित्र यदि गढ़ लिया ,ऊँचा होता माथ ।।
2.
चरित गया सब कुछ गया,मूल्यवान ये खास।
मानवता का रूप है ,उसकी रक्षा आस।।
3.
सत्य अहिंसा धर्म अरु, ब्रह्मचर्य ये चार ।
पथ चरित्र निर्माण का, यही जिन्दगी सार।।
4.
दूषित चरित्र से भरे,द्वेष बैर अभिमान।
मानव मन पर असर हो, लोभ,क्रोध से म्लान ।।
5.
जिनका चरित्र है खरा, मीत बनाने योग्य।
रीझो मत व्यक्तित्व पर, कर्म जीत हैं भोग्य ।।

******स्वरचित ****

भावों के मोती
30.4.2020

शीर्षक- चरित्र
विधा- दोहा

चरित्र है सुन्दर वही, हो जिसमें सम्मान।
सून लगे चरित्र बिना, मानवता की शान॥1॥

सबसे मिलते नेह से, शुद्ध हृदय की खान।
आदर्श चरित्र ही सखि, इंसां की पहचान॥2॥

सद्गुणों से युक्त रहें, मिश्रित हो संस्कार।
ये जीवन के मूल हैं, और यही आधार॥3॥

दोगल चरित्र की सखे, प्रकृति बड़ी विचित्र।
न कोई शत्रु उसका, ना ही कोई मित्र॥4॥

राम-भेष मे नहिं रखें, लंकेश सा चरित्र।
गंगाजल सा गुज़रे, जीवन का चलचित्र॥5॥

अनामिका वैश्य आईना
लखनऊ


विषय : चरित्र
विधा : हाईकू

तिथि : 30.4 2020

चरित्र
-----

चरित्र वान
तेजस्विता सुशान
कमाता आन।

चरित्र हीन
असम्मानित दीन
कुकृत्य लीन।

सद्चरित्रता
सर्वोच्च गुणवत्ता
अपना व्रता।

आकार वृत
मुखौटा सद्चरित्र
विकृत चित्र।

मिटते रंग
अमिट जो कलाप
चरित्र छाप।

धन तो बोना
चरित्र न खोना
शाश्वत रोना।

-रीता ग्रोवर
-स्वरचित

दिनांक :-30-4-2020
शीर्षक:-चरित्र


सब कुछ भले खो जाय,
पर उसको बचाइये|
हर हाल में अपने चरित्र,
को बचाइए|

जुगनू समझ के चांद ,
गफ़लत में न आइये|
सितारों को छोड़िये,
अपना सूरज बचाइये|

किरदार ही तो आप की,
पहचान है जनाब|
पहचान को जी जान,
देके भी बचाइये|

तेरा चरित्र तेरी कस्तूरी,
बेशकीमती,अनमोल|
इसकी महक को अपनी,
आन, बान, शान बनाइये

जो चरित्र गिर गया तो,
सब खत्म समझ लो|
इसलिए पहले से ही,
अपनी हैसियत बचाइये|

मैं प्रमाणित करता हूँ कि यह मेरी मौलिक रचना है
विजय श्रीवास्तव
बस्ती

भावों के मोती
दिनांक - 30/04/2020

विषय - " चरित्र"

मां के वीर सपूत बनो
निर्मल उज्जवल जलधार बनो
करुणा के सागर बन जाओ
दया प्रीत सबमें दिखलाओ ।।

सत्कर्म के प्रतिबिंब बनो
सच्चरित्र का दर्पण बनो
स्वार्थहीन प्रेम गाथा बनो
समाज का विश्वास बनो ।।

पार कर मुश्किलों को
कुंदन तुल्य तुम निखर जाओ
सद्विचार के धागों से
समाज में प्रतिष्ठा पाओ ।।

सद् प्रकृति,सदाचार,सुविचार अपनाओ
रिश्ते समाज में वफ़ा से निभाओ
कारण धन - सम्पदा, वैभव के ना ईमान गंवाओ
है चरित्र जीवन की पूंजी, ये सबको
समझाओ ।।

स्वरचित मौलिक रचना
" उषा जोशी"

शीर्षक-चरित्र।

हार मिले या जीत मिले
पर डिगे ना चरित्र हमारा।
कठोर बने या सौम्य बने।
पर बने चरित्र हमारा
लाख सुन्दर पोशाक पहने
पर सुन्दर चरित्र न हो तो
वह है नकारा।
चरित्रहिन मनु है पशु समान।
सभ्य समाज के अंग है तो
बने चरित्रवान आज।
धन दौलत का अंबार है
पर सुन्दर चरित्र बिना बेकार।
गये चरित्र नही लौटेंगे
रखे इसका ख्याल।
चरित्रवान मनुष्य ही
कर सकता है
समाज सुधार।
चरित्र बिना है मनुष्य
कागज फूल समान
देखन में सुंदर लगे
पर वास नही सुवास।
जब तक रहे इस धरा पर
चरित्र का करें विकास।
सब कुछ नष्ट हो जाये
पर चरित्र रहे सदा साथ।
बनता नही चरित्र एक दिन में
करने पड़ते प्रयास
संस्कार तो कुछ होते
कुछ आत्म मंथन से होते हैं विकास।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

गुरूवार /30अप्रैल/2020
विषय- चरित्र

विधा- कविता

प्रेम बाती बार कर, प्रीत का दीप जलाओ !
किसी के चरित्र पर दाग , यूँ न लगाओ !
फिर सांसे तो चलती है , पर जीना मुश्किल हो जाता है!
निःसंदेह वेदना, रह -रह कर सताता है!
मित्र, प्रेम बाती बार कर, अलख यूँ जगाओ! व्यर्थ में किसी के चरित्र पर यूँ दाग न लगाओ!

क्यू औरत को ही बार-बार सहना पड़ता है !
प्रेम बीज़ बो कर चुल्लू भर पानी में रोज ही मरना पड़ता है !
आख़िर समाज में सत्य पक्ष चरित्र ही क्या अंधा है ?"-
उड़ती फिरती चिड़ियाँ मस्त मगन सा, मैं अपने बाबा की गुड़िया-
क्यू खोयी रहती ख्यालों में-
सोच सोच कर बोलती क्यू न खनक पायी !
औरत के चरित्र पर ही क्यू राम ने दाग लगायी ?"
प्रेम बाती बार कर, प्रीत का दीप जलाओ!
व्यर्थ में किसी के चरित्र पर यूँ दाग न लगाओ!!

रत्ना वर्मा
स्वरचित मौलिक रचना
धनबाद -झारखंड
विषय चरित्र
विधा कविता

दिनाँक 30.4.2020
दिन गुरुवार

चरित्र
💘💘💘

बहुत ही अलग बनता है चित्र
जब हम बखानते क्या होता चरित्र
जब हम कहीं से सहारा पाते
जब हम श्वासों की धारा पाते
जब हमें नमक का स्वाद मिलता
बदन का रोम रोम खिलता
जब ज़बान की प्यास बुझती
थम जाती जब आवाज रुँधती
जब जीवन में चाँद मुस्कराता
प्यार से कोई अपना बनाता
इनसे बनता जब रुप विचित्र
वहीं मिलता अनुपम चरित्र।

हम यहाँ की खायें और न यहाँ की मानें
हमारी व्यवस्था को सुनायें सदा ही ताने
दूसरे लोगों के ही गायें सदा खूब गाने
काम न करने के बनायें बस बहाने।

नहीं हो सकते लोग ऐसे मित्र
इसे नहीं कहते अच्छा चरित्र।
30/4/2020
चरित्र।


चरित्र से शोभित जीवन का है द्वार ,
बिना चरित्र निर्माण के जीवन है बेकार ,
सभ्यता-संस्कार सभी
चरित्र के अंग ,
दाग लगाकर साथियों ,
करना मत बदरंग ।

कर्म गति महान है ,
साथ इसे है जाना ,
काम ऐसा कुछ करो ,
मेहंदी सा रच जाओ ,
पूंजी अपने चरित्र का,
रखना तुम संभाल ,
धीरज कभी खोना नहीं,
जीत होगी हर हाल।।

अनीता मिश्रा सिद्धि ।
दिल्ली।


विषय - चरित्र
निर्माण करो कुछ
एक सुंदर चरित्र निर्माण करो
करना हैं कुछ तो किसी को ख़ुश करो
चरित्र हो ऐसा की
किसी की मुस्कान बनो
हर दिल अज़ीज़ बनो
किसी की लाठी सहारा बनो
अंधो में काना राजा ना बनो
एक सुंदर चरित्र निर्माण करो
गीता के सार तो कही कृष्ण बनो
कही सेवा तो कही सम्मान बनो
बच्चों के चेहरे की मुस्कान बनो
अकेलो के तुम साथी बनो
एक सुंदर चरित्र निर्माण करो
तुम फूलो के हार बनो
हर माता का सम्मान करो
किसी की आँखो के ज्योति बनो
दया प्रेम के सागर बनो
एक सुंदर चरित्र निर्माण करो
प्रकृति पर विश्वास
करो
कुछ वृक्ष रोपण करो
पेड़ पौधों से दोस्ती करो
कुछ गुनगुना कर जल अर्पण करो
धूप में ठण्डी छांव बनो
एक सुंदर चरित्र निर्माण करो
समाजिक दायित्व समझ
शिक्षा दीक्षा पर यक़ीन करो
चलो कुछ सँवार आए
कुछ बिगड़े को बना आए ।

स्वरचित- सीमा पासवान
विषय - चरित्र

चरित्र क्या है ?
आकार- प्रकार कैसा है ?
शायद पूर्णतः निराकार
मानव कर्मों में होता साकार
कथनी-करनी करती स्वीकार।
स्थिति परिस्थिति के चलते
बिगड़ता-बनता है चरित्र
जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त
एक प्रक्रिया का नाम चरित्र ।
प्रारम्भिक स्तर पर परिवार
चरित्र-निर्माण करता है ,
घर से बाहर निकलने पर स्कूल
चरित्र-निर्माण करता है ।
किशोरावस्था में मित्र वर्ग
चरित्र -निर्माण करता है ,
देश, काल का वातावरण
चरित्र-निर्माण करता है ।
महान ग्रंथों में वर्णित आदर्श
चरित्र-निर्माण करता है ,
ग्रहण किया गया अन्न जल
चरित्र-निर्माण करता है ।
अकस्मात् घटने वाला प्रसंग
चरित्र निर्माण करता है ,
कोई रत्नाकर डाकू से
आदिकवि वाल्मीकि बनता है।
युद्ध विभीषिका देख अशोक
दीन-ए-इलाही धर्म चलाता है,
अर्धांगिनी की प्रताड़ना ही
तुलसी को क़लम थमाती है ।
सत्य का अन्वेषण करने को
सिद्धार्थ गृहत्याग करता है ,
पत्थरों की शिला तरासकर
माँझी सुगम पथ बनाता है ।
किसी को सत्ता का मोह
भ्रष्टाचारी बनाती है ,
तृष्णाओं के संवाहक से
कालाबाज़ारी करवाती है ।
ज़िंदगी के विषम हालात में
कलाम इतिहास बनाता है ।
दीन-दुखी की सेवा करने
कोई मदर टेरेसा बन जाती है,
कंस मामा हत्या करवाता है
रावण पर स्त्री अपहरण करता
कुरु सभा में चीरहरण होता
पितामह का विवेक रो देता ,
दुर्योधन निज करनी के चलते
पांचाली से शापित हो जाता ।
अंतत: निष्कर्ष यही...
व्यक्तित्व का पैमाना चरित्र
आचरण का आईना चरित्र
आदमी के बुद्धि - विवेक का
एक साक्षात्कार ही है चरित्र ।
कोई चरित्र पढ़ता ...है
कोई चरित्र गढ़ता....है
सुचरित्र सम्मान दिलाता
कुचरित्र अपयश फैलाता ,
निर्धारण आदमी को करना है
कैसा चरित्र निर्माण करना है ?

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘


चरित्र मानव का सबसे उत्तम गहना है,
महापुरुषों का सर्वोत्तम यही कहना है,

न धन बड़ा है और न तन बड़ा है मगर ये
चरित्र धन तो सब धनों में सबसे बड़ा है,
धन का आना और जाना दैव नियति है
कोई बहुत बड़ी नहीं मानव की क्षति है,
स्वास्थ्य गिरा तो कुछ मानवीय क्षति है,
दैव की आप पर तो कुछ टेड़ी नियति है,
मगर चरित्र गिरा यहाँ जिस मानव का
उसका तो समझो बस सर्वनाश ही है.


विषय - चरित्र
******************
इंसान अपने चरित्र का खुद निर्माता और निर्देशक होता है,
अपने समाज ,अपने देश का,
तभी अंगरक्षक होता है,
बहन, बेटियों की जो ढाल बन,
सम्मान देता है वही सारे जगत का
चरित्र नायक होता है,

कुछ दोहरे चरित्र ने ,
समाज को कलंकित किया है,
विश्वास में लेकर अपनों को छला है,
दाग लग गई जो चरित्र पर ,
फिर न वो कभी धुल पाता है,
चरित्रवान वो है जो ,
अपना चरित्र अपने सत्कर्मों से बनाता है,
चरित्र ही वह पूंजी है जो ,
साथ अपने जाता है।
*********************
स्वरचित __ निवेदिता श्रीवास्तव

30.04.2020
विषय चरित्र
मेरा जीवन मुझें अनायास
सा लगता है, जब तुम पर
अधिकार की अपेक्षा करती हूँ।
तब केनवास के समक्ष कर देती हूँ
प्रस्तुत तमाम अभिलाषाओं को तब प्रत्येक चित्रण बिगड़ जाता है, मुझसे
क्योंकि मुझें केवल प्रेम करना आता है
तब एक प्रयास कागज़ के प्रत्यक्ष कर
गढ़ आती हूँ, तमाम ख्वाहिशों को
फिर कभी ज़िक्र नहीं करती की
मैंने तुम्हें अंनत-आजीवन प्रेम करने
का संकल्प लिया है।
कभी-कभी लगता है
मैं तुम्हारे जीवन में किसी
अमावस्या से कम नहीं
जैसे किसी होनी-अनहोनी के संदेह
में भृमित वह रात किसी काल
समान लगती और तुम्हें मुझसे
भय रहता कि प्रेम से परे
मैं तुम्हारे जीवन में अनेछिक
इतिहास न मढ़ दूँ
कभी कभी लगता है
मैं तुम्हारे जीवन में किसी
चन्द्रग्रहण से अल्प नहीं
जैसे सूर्य उस रात चाँद को
स्वयं में अवशोषित कर ग्रहण कर जाता है।
वैसे ही जैसे तुम्हारी अपारदर्शी छवि
बनाकर, मैंने तुम्हें संज्ञान के आवरण
और स्वयं में स्थापित कर लिया है
ओर तुम सदुपदेश अज्ञात रहो
की मैंने ख़ुद को अभिशाप समझा है
तुम्हारे समक्ष,
जैसे मेरे सूक्ष्म अनधिकृत प्रवेश से
तुम्हारे जीवन कि लक्ष्मण रेखा भंग हो गई हो
जैसे चन्द्रग्रहण को विराम देना असम्भव हो
वैसे ही मेरा, तुम्हारे जीवन मे गमन रोकना असंभव हो
क्योंकि प्रेम किसी अभिशाप, चन्द्रग्रहण, या
अमावस्या से सदैव परे हैं।
मैं सदैव कालरात्रि की तरह तुम्हारे जीवन के
कलेस को खुद में समेटती रहूँगी
फिर मेरी आत्मा को शायद ही मुक्ति मिले
मैं तम्हारे जीवन में किसी वनवास से अभिज्ञ नहीं।
तुमने मुझें कलंकृत जीवन दिया,
अभिशापित हूँ मैं, तुम्हारे प्रेम में....
लेखिका
कंचन झारखण्डे
भोपाल मध्यप्रदेश।

चरित्रहीन कौन?

मिटाकर अस्तित्व अपना ,
बंद कमरे में आशियाना बनाती है।
हर रोज मौत को गले लगाकर,
रो-रोकर सेज सजाती है ।।

ना गृहलक्ष्मी बनती,
ना अर्धांगिनी कहलाती ।
पर हर रोज दुल्हन बनकर ,
किसी का सुहागरात मनाती ।।

मजबूरी की कोख में पलती,
कतरा कतरा रोज बिखरती।
भूखे नंगे भेड़ियों की बाजार में ,
एक नए अंदाज में ,एक नए लिबास में ।।

बदनाम गलियों की कहानी गढ़ती,
लाली लिपस्टिक से दर्द को ढ़कती ।
दुर्भाग्य को मिटाने के लिए ,
हर रोज सौभाग्य का कुमकुम लगाती।।

लेकिन चरित्रहीन ,कामिनी,
गणिका ,वेश्या कहलाती ।
काजल की कोठरी में रहती,
पर कालीख से सब को बचाती ।।
सब रह जाते चरित्रवान,
वह बस तवायफ बदनाम।।

अंशु प्रिया अग्रवाल

सर्व मौलिक अधिकार सुरक्षित
दिनाँक30/4/2020
बिषय-चरित्र

विधा मुक्तककाव्य
चरित्र जीवन की सबसे बडी निधि है,
खर्च होगयी तो फिर नहीमिल सकती ,
जीवन कीअमूल्य धरोहर है,जिसको
चुराने वाले चोर हजारो है हर जगह!

लोभ मोह काम क्रोध इसके शत्रु है
जिससे नित होसकता है इसका हनन,
धर्म अर्थ पुरूषार्थ मोक्ष पोषित करते है
चरित्र निर्माण करके जीवन सफल करते है!

इसको धन नही चाहिए नचाहे ज्ञान अज्ञान,
जो सब बिकार से लड सके संयम नियम
निभाकर दृढ रह कर धर्म बचा कर चलसके,
चरित्र का वही रक्षक वही चरित्रवान बन जाये
स्वरचित
साधना जोशी
उत्तरकाशी





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