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ब्लॉग संख्या :-725
विषय पानी ,नीर,सलिल
विधा काव्य
02 मई 2020,शनिवार
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर से
गौ मुख से गङ्गा जल आता।
यमनोत्री से यमुना उदगम है
हरित क्रांति सलिल ही लाता।
नीर समाहित सकल विश्व में
नीर नहीं तो कुछ भी नहीं है।
नीर विकास है नीर उत्कर्ष है
नीर से जग आकर्षक महि है।
पावन पानी जग जीवन है
पानी सबकी प्यास बुझाता।
बिन पानी अति जीवन सूना
पानी सर्वत्र हरितिमा लाता।
कूप झील पुष्कर सरिता
नीर भरा रहता नहरों में।
निर्मल नीर सभी को प्यारा
सुख शांति करता नगरों में।
ताल मिलता नदी के जल में
नदियां मिलती है सागर में।
ठंडा मृदु निर्मल विशुद्ध जल
है लाभकारी प्रिय गागर में।
पंच तत्व सलिल की गणना
जगजीवन करता परित्राण।
अखिल जगत में नीर महत्ता
होता जल सचराचर प्राण।
स्वरचित मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
02 मई 2020,शनिवार
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर से
गौ मुख से गङ्गा जल आता।
यमनोत्री से यमुना उदगम है
हरित क्रांति सलिल ही लाता।
नीर समाहित सकल विश्व में
नीर नहीं तो कुछ भी नहीं है।
नीर विकास है नीर उत्कर्ष है
नीर से जग आकर्षक महि है।
पावन पानी जग जीवन है
पानी सबकी प्यास बुझाता।
बिन पानी अति जीवन सूना
पानी सर्वत्र हरितिमा लाता।
कूप झील पुष्कर सरिता
नीर भरा रहता नहरों में।
निर्मल नीर सभी को प्यारा
सुख शांति करता नगरों में।
ताल मिलता नदी के जल में
नदियां मिलती है सागर में।
ठंडा मृदु निर्मल विशुद्ध जल
है लाभकारी प्रिय गागर में।
पंच तत्व सलिल की गणना
जगजीवन करता परित्राण।
अखिल जगत में नीर महत्ता
होता जल सचराचर प्राण।
स्वरचित मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
तिथि-02/05/2020
विषय-पानी/नीर/सलिल
"जल"
जल जीवन के लिये बहुत ही
आवश्यक है तत्व
पंच महाभूत में इसका
सबसे अधिक महत्व
अगर ना होता जल जगत में
कहीं ना होते जीव,
हरियाली की पड़ ना पाती
इस वसुधा पर नींव।
नहीं रहेगा जल तो सारे
सूख जायेंगे खेत,
धूल उड़ेगी धरती पर
सर्वत्र होगी रेत।
नहीं मिलेगा अन्न का दाना
भूखे होंगे लोग,
तड़पायेंगे हम सब को
तरह तरह के रोग।
तरसेंगे हम बूंद-बूंद को
सुख का होगा अंत,
पतझड़ ही तब दिखेगा
होंगे नहीं बसंत।
सभी दिशा में फैले होंगे
सूखा और अकाल
यहाँ वहाँ जीवों के बिखरे
होंगे तब कंकाल
बढ़ता ही जाता है प्रतिदिन
जनसंख्या का भार,
और धरा पर संचित जल का
रीत रहा भण्डार।
अगर बचाना है जीवन को
करें ना जल बर्बाद,
जल ही आधार जीवन का
बात रखें यह याद।
बूंद-बूंद जल बचाओ
मिलेगा जल संकट से त्राण
छुपा हुआ है जल सरंक्षण में
हम सब का कल्याण!
अनिता निधि
जमशेदपुर
विषय-पानी/नीर/सलिल
"जल"
जल जीवन के लिये बहुत ही
आवश्यक है तत्व
पंच महाभूत में इसका
सबसे अधिक महत्व
अगर ना होता जल जगत में
कहीं ना होते जीव,
हरियाली की पड़ ना पाती
इस वसुधा पर नींव।
नहीं रहेगा जल तो सारे
सूख जायेंगे खेत,
धूल उड़ेगी धरती पर
सर्वत्र होगी रेत।
नहीं मिलेगा अन्न का दाना
भूखे होंगे लोग,
तड़पायेंगे हम सब को
तरह तरह के रोग।
तरसेंगे हम बूंद-बूंद को
सुख का होगा अंत,
पतझड़ ही तब दिखेगा
होंगे नहीं बसंत।
सभी दिशा में फैले होंगे
सूखा और अकाल
यहाँ वहाँ जीवों के बिखरे
होंगे तब कंकाल
बढ़ता ही जाता है प्रतिदिन
जनसंख्या का भार,
और धरा पर संचित जल का
रीत रहा भण्डार।
अगर बचाना है जीवन को
करें ना जल बर्बाद,
जल ही आधार जीवन का
बात रखें यह याद।
बूंद-बूंद जल बचाओ
मिलेगा जल संकट से त्राण
छुपा हुआ है जल सरंक्षण में
हम सब का कल्याण!
अनिता निधि
जमशेदपुर
पानी की हैं,
अनगिन कहानी ၊
कुछ जानी,कुछ अनजानी ၊
पानी के उपर है गानी,
"पानी रे पानी,
तेरा रंग कैसा ၊
जिसमें मिलावों,
तु बने वैसा ၊"
अब बतलाता मैं,
"पानी "की कहानी ၊
जो हैं,मेरी जुबानी ၊
नयनों से आँसु बनकर,
जो बहता "पानी" ၊
कह देता है,
सुख ,दुःख की कहानी ၊
लञ्जतदार देखकर खाना ၊
मुंह में आता है "पानी" ၊
लग जाएं तीखा तो,
आँख में आता "पानी" ၊
धन,कुबेरों के घर,
देवी लक्ष्मी भरती "पानी" ၊
हालात बेकाबू हो जाए तो,
शिर के उपर बहता ''पानी"၊
कोई करें हमसे होशियारी,
फालतू की मारता हो बढाई ၊
कहते हम उसे,
ज्यादा ना फुदक मेरे,
दिलबर जानी ၊
मैं भी पिया हूं,
बारह घाट का "पानी"
जब परिस्थिती कुछ,
बनती विपरीत,
नहीं हारता हिंम्मत,
यह खुदा का बंदा ၊
कहता है,
"मुश्किले रहेंगी,
जहाँ की तहाँ,
जहाँ ठोकर मारुंगा,
"पानी" निकालुंगा वहाँ "
दुश्मन संग लङाई में,
विजयीता पिलाए,
दुश्मन को "पानी"
नवयौवना की नई कहानी,
सरका जो आँचल कंधे से ၊
लज्जा से हो जाती "पानी" ၊
देखकर उसको,
हमारा दिल हो जाता "पानी" ၊
विवाह के पवित्र बंधन में,
पिता करें, अपनी लाडली को,
ग्रहन "पानी" ၊
माँ, बाप के चरण धोकर,
पिते हम अमृतमय "पानी"
अंतिम समय आवें तो,
मांगे लड़के को अंतिम ''पानी" ၊
जब वो स्वर्ग सिधार जाएं तो,
पितर को करें अर्पण "पानी"
बारीश जब आती,
नदीयां,नाले भरकर,
बहता "पानी"
सुखा पड़ जाएं तो,
सब करते,
पानी पानी...।
प्रदीप सहारे
अनगिन कहानी ၊
कुछ जानी,कुछ अनजानी ၊
पानी के उपर है गानी,
"पानी रे पानी,
तेरा रंग कैसा ၊
जिसमें मिलावों,
तु बने वैसा ၊"
अब बतलाता मैं,
"पानी "की कहानी ၊
जो हैं,मेरी जुबानी ၊
नयनों से आँसु बनकर,
जो बहता "पानी" ၊
कह देता है,
सुख ,दुःख की कहानी ၊
लञ्जतदार देखकर खाना ၊
मुंह में आता है "पानी" ၊
लग जाएं तीखा तो,
आँख में आता "पानी" ၊
धन,कुबेरों के घर,
देवी लक्ष्मी भरती "पानी" ၊
हालात बेकाबू हो जाए तो,
शिर के उपर बहता ''पानी"၊
कोई करें हमसे होशियारी,
फालतू की मारता हो बढाई ၊
कहते हम उसे,
ज्यादा ना फुदक मेरे,
दिलबर जानी ၊
मैं भी पिया हूं,
बारह घाट का "पानी"
जब परिस्थिती कुछ,
बनती विपरीत,
नहीं हारता हिंम्मत,
यह खुदा का बंदा ၊
कहता है,
"मुश्किले रहेंगी,
जहाँ की तहाँ,
जहाँ ठोकर मारुंगा,
"पानी" निकालुंगा वहाँ "
दुश्मन संग लङाई में,
विजयीता पिलाए,
दुश्मन को "पानी"
नवयौवना की नई कहानी,
सरका जो आँचल कंधे से ၊
लज्जा से हो जाती "पानी" ၊
देखकर उसको,
हमारा दिल हो जाता "पानी" ၊
विवाह के पवित्र बंधन में,
पिता करें, अपनी लाडली को,
ग्रहन "पानी" ၊
माँ, बाप के चरण धोकर,
पिते हम अमृतमय "पानी"
अंतिम समय आवें तो,
मांगे लड़के को अंतिम ''पानी" ၊
जब वो स्वर्ग सिधार जाएं तो,
पितर को करें अर्पण "पानी"
बारीश जब आती,
नदीयां,नाले भरकर,
बहता "पानी"
सुखा पड़ जाएं तो,
सब करते,
पानी पानी...।
प्रदीप सहारे
विषय - पानी/नीर
प्रथम प्रस्तुति
हैरान भरी नज़र से मैं ,
देखा इक पंछी को आज ।
था कठौता खाली छत पर ,
पंछी को थी बेहद प्यास ।
अपनी चोंच पटक रहा था ,
पानी की थी इक दरकार ।
बेचारा वो बोले कैसे ,
चोंच को पटके बार बार ।
कौन सुने भला पंछी की ,
बोतल में बिकता है नीर ।
मरने की कगार पर कितने ,
भटक रहे लाचार अधीर ।
किसकी कारस्तानी है ये
किसकी स्वार्थ भरी डगर ।
कितने जीव जीवित नही हैं ,
औ कितने भटकें दर- ब-दर ।
प्रति वर्ष ग्रीषम ऋतुओं में ,
संकट में रहती है जान ।
एक पानी की चाहत में ,
मर जाते कितने नादान ।
लेखा जोखा सब रखे है ,
कब रूठे कुदरत, भगवान ।
निरीहों की कुछ सोच 'शिवम'
अपना अपना छोड़ दे गान ।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
प्रथम प्रस्तुति
हैरान भरी नज़र से मैं ,
देखा इक पंछी को आज ।
था कठौता खाली छत पर ,
पंछी को थी बेहद प्यास ।
अपनी चोंच पटक रहा था ,
पानी की थी इक दरकार ।
बेचारा वो बोले कैसे ,
चोंच को पटके बार बार ।
कौन सुने भला पंछी की ,
बोतल में बिकता है नीर ।
मरने की कगार पर कितने ,
भटक रहे लाचार अधीर ।
किसकी कारस्तानी है ये
किसकी स्वार्थ भरी डगर ।
कितने जीव जीवित नही हैं ,
औ कितने भटकें दर- ब-दर ।
प्रति वर्ष ग्रीषम ऋतुओं में ,
संकट में रहती है जान ।
एक पानी की चाहत में ,
मर जाते कितने नादान ।
लेखा जोखा सब रखे है ,
कब रूठे कुदरत, भगवान ।
निरीहों की कुछ सोच 'शिवम'
अपना अपना छोड़ दे गान ।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
भावों के मोती
बिषय -पानी ,नीर
2 मई 2020 शनिवार ॥
बिधा -दोहा
पानी अमृत मानिए ,पानी बिना अकाल ।
जग माहीं नीर बिना , जीबन हों बेहाल ॥
बिन पानी प्राण बन,जान असम्भब होए
नदी सरोवर समुद्र ,भरे निर्मल तोए ।
जल से सम्भब भूमि , हरित हरियाली ।
छायी पावन ओंस जो , बूँदें मतबाली ।
जल जीवन में मूल है ,जीब जीबका मान ।
इये पावन पवित्र जो ,युग युग से
बिध्दमान ॥
स्वरचित मौलिक रचना
मदनगोपाल शाक्य ''प्रेमी''
फर्रूखाबादी ।उ .प्र .।
बिषय -पानी ,नीर
2 मई 2020 शनिवार ॥
बिधा -दोहा
पानी अमृत मानिए ,पानी बिना अकाल ।
जग माहीं नीर बिना , जीबन हों बेहाल ॥
बिन पानी प्राण बन,जान असम्भब होए
नदी सरोवर समुद्र ,भरे निर्मल तोए ।
जल से सम्भब भूमि , हरित हरियाली ।
छायी पावन ओंस जो , बूँदें मतबाली ।
जल जीवन में मूल है ,जीब जीबका मान ।
इये पावन पवित्र जो ,युग युग से
बिध्दमान ॥
स्वरचित मौलिक रचना
मदनगोपाल शाक्य ''प्रेमी''
फर्रूखाबादी ।उ .प्र .।
भावों के मोती
विषय--नीर/पानी
2 मई 2020/शनिवार
******************
आसान कहाँ
होता है
धरना धीर को
रोक पाना
नयन-जलद से
बहते नीर को
दीर्घावधि तक
संग रह कर
बातें प्रिय अप्रिय
सुन कह कर
देकर खुशियाँ कभी
कभी गम देकर
जब चला जाता है
आसान कहाँ
उसके वियोग में
सूखना आँसू बहकर
हिला देता है गम
अचल गम्भीर को
आसान कहाँ
होता है रोक पाना
नयन-जलद से
बहते नीर को।
छाया नहीं
वह तो खुद आता है
मैं पास हूँ तेरे
खुल कर जताता है
रोता है खुद वह
खूब रुलाता है
आसान कहाँ
भूलना उसे
जो छोड़ चला जाता है
आसान नहीं सुखाना
फिर अश्रु-सिंचित चीर को
हाँ,आसान कहाँ
रोक पाना
नयन-जलद से
बहते नीर को।
*********
सुरेश मंडल
पूर्णियाँ,बिहार
विषय--नीर/पानी
2 मई 2020/शनिवार
******************
आसान कहाँ
होता है
धरना धीर को
रोक पाना
नयन-जलद से
बहते नीर को
दीर्घावधि तक
संग रह कर
बातें प्रिय अप्रिय
सुन कह कर
देकर खुशियाँ कभी
कभी गम देकर
जब चला जाता है
आसान कहाँ
उसके वियोग में
सूखना आँसू बहकर
हिला देता है गम
अचल गम्भीर को
आसान कहाँ
होता है रोक पाना
नयन-जलद से
बहते नीर को।
छाया नहीं
वह तो खुद आता है
मैं पास हूँ तेरे
खुल कर जताता है
रोता है खुद वह
खूब रुलाता है
आसान कहाँ
भूलना उसे
जो छोड़ चला जाता है
आसान नहीं सुखाना
फिर अश्रु-सिंचित चीर को
हाँ,आसान कहाँ
रोक पाना
नयन-जलद से
बहते नीर को।
*********
सुरेश मंडल
पूर्णियाँ,बिहार
भावों के मोती
बिषय -पानी ,नीर
2 मई 2020 शनिवार ॥
यूँ तो खिलते हैं, कमल फूल
दलदली भूमियारे में
एक गुलाब खिल उठा मेरे
गलियारे में
पानी देती जब उसे में
प्रातः सवेरा में
एक सवाल करता वो मुझसे
अक़्सर, जवाबों के घेरो में
प्रश्न भी उसका इश्क़ पर था
की काँटों से मेरा क्या नाता है,
और क्यूँ वो चुभता हर किसी को
जब कोई गुलाब को स्पर्श लगाता है।
हरी भरी ये क्यारियाँ इर्द-गिर्द
सजावट बसंत सावन बनी
मेरे गलियारे में फिर से
सूक्ष्म फूलों की बेलायें खिली।
कंचन झारखण्डे
भोपाल मध्यप्रदेश
स्वरचित व मौलिक
बिषय -पानी ,नीर
2 मई 2020 शनिवार ॥
यूँ तो खिलते हैं, कमल फूल
दलदली भूमियारे में
एक गुलाब खिल उठा मेरे
गलियारे में
पानी देती जब उसे में
प्रातः सवेरा में
एक सवाल करता वो मुझसे
अक़्सर, जवाबों के घेरो में
प्रश्न भी उसका इश्क़ पर था
की काँटों से मेरा क्या नाता है,
और क्यूँ वो चुभता हर किसी को
जब कोई गुलाब को स्पर्श लगाता है।
हरी भरी ये क्यारियाँ इर्द-गिर्द
सजावट बसंत सावन बनी
मेरे गलियारे में फिर से
सूक्ष्म फूलों की बेलायें खिली।
कंचन झारखण्डे
भोपाल मध्यप्रदेश
स्वरचित व मौलिक
कलरव से उनके हरी थी शाखें।
स्वार्थ की चली ऐसी आंधी,
पहले उड़ गए परिंदे,बदल गये
दरख़्त धीरे धीरे ठूंठों में......।
इन्सान मनाता है जश्न अपने किये पर,
जल्द मनाता है मातम बियाबानों में,
कुदरत बैठी है इस इन्तजार में सूखी,
कब होगी हरियाली, मिलेंगे पेड़-पानी
कब हटेगा पर्दा स्वार्थ का बताओ,
जागो,अब भी वक्त है,चेत जाओ।
पेड़ और परिंदों का नाता गहरा है,
पर शिकारी लगता अंधा-बहरा है।
जिस दिन खुल जायेंगी इन्सान की आंँखें,
होगा इन्साफ,हरी हों जायेंगी शाखें ।
सूखी धरती में लौटा दो पानी,
सूखी नदियों में लौटा दो पानी।
पानी है तो पहाड़ पर हरियाली है..
गांँव, शहर की खुशहाली है..।
पानी का संघर्ष युद्ध में न बदल जाए,
मति दे ईश्वर, इन्सान संभल जाए।
दिन - शनिवार
विषय - पानी , नीर , सलिल
पंचतत्व निर्मित हर इक तन ,
जल से बना संसार है ।
नदियाँ झरने झीलें सागर,
जग में इनसे बहार है।
पानी बिन व्यक्तित्व है सूना ,
लगे निर्लज्ज बेकार है।
सलिल प्रेम की सरिता बहती ,
मन दर्पण पे निखार है ।
धरती अम्बर बादल बर्षा ,
इनसे सभी को प्यार है।
मनोहारी प्रकृति सुखदाई ,
बनता नीर आधार है।
खाद्यान्न सभी निर्भर जल पर ,
छुपा शरीर का सार है।
पोषक पानी सकल सृष्टि का ,
रहता अनमोल नीर है ।
मोल समझ लें हम पानी का ,
करना बात स्वीकार है ।
बेहतर जल से नहीं दौलत ,
इससे नहीं इन्कार है।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश
विषय - पानी , नीर , सलिल
पंचतत्व निर्मित हर इक तन ,
जल से बना संसार है ।
नदियाँ झरने झीलें सागर,
जग में इनसे बहार है।
पानी बिन व्यक्तित्व है सूना ,
लगे निर्लज्ज बेकार है।
सलिल प्रेम की सरिता बहती ,
मन दर्पण पे निखार है ।
धरती अम्बर बादल बर्षा ,
इनसे सभी को प्यार है।
मनोहारी प्रकृति सुखदाई ,
बनता नीर आधार है।
खाद्यान्न सभी निर्भर जल पर ,
छुपा शरीर का सार है।
पोषक पानी सकल सृष्टि का ,
रहता अनमोल नीर है ।
मोल समझ लें हम पानी का ,
करना बात स्वीकार है ।
बेहतर जल से नहीं दौलत ,
इससे नहीं इन्कार है।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश
दिनांक 2 मई 2020 शनिवार
विषय पानी
पानी की रक्षा करो, पानी है अनमोल।
बिन पानी जीवन नहीं, पानी खर्चो तोल।।
धरती अम्बर सब जगह,पानी का है खेल।
इससे बढ़कर धन नहीं, इससे रक्खो मेल।।
प्रकृति ने तुमको दिया,यह अद्भुत उपहार।
हो उपयोग सँभालकर,यह जीवन आधार।।
नदी ताल सर कूप में,जल का किया प्रबंध।
इसे बाँधकर मत रखो,करो इसे निर्बंध।।
पानी से धरती हरी,हरा - भरा संसार।
अमृत जीवनदायिनी,सलिल जीव का सार।।
इसीलिए जल को बचा,करो जगत कल्याण।
नीर नयन सूखे नहीं, बचे जीव के प्राण।।
फूलचंद्र विश्वकर्मा
विषय पानी
पानी की रक्षा करो, पानी है अनमोल।
बिन पानी जीवन नहीं, पानी खर्चो तोल।।
धरती अम्बर सब जगह,पानी का है खेल।
इससे बढ़कर धन नहीं, इससे रक्खो मेल।।
प्रकृति ने तुमको दिया,यह अद्भुत उपहार।
हो उपयोग सँभालकर,यह जीवन आधार।।
नदी ताल सर कूप में,जल का किया प्रबंध।
इसे बाँधकर मत रखो,करो इसे निर्बंध।।
पानी से धरती हरी,हरा - भरा संसार।
अमृत जीवनदायिनी,सलिल जीव का सार।।
इसीलिए जल को बचा,करो जगत कल्याण।
नीर नयन सूखे नहीं, बचे जीव के प्राण।।
फूलचंद्र विश्वकर्मा
दिनाँक-2-5-2020
विषय-पानी/नीर/सलिल
पानी अति गुणवान है,मूल्यवान है पानी।
सोच समझकर खर्च करें,रखें कुछ सावधानी।
ठोस,द्रव और गैस की,इससे सुनो कहानी।
तीन रूप होते पदार्थ के तीनों में है पानी।।
समझ नहीं है आज भी,कैसे बचता पानी।
नहीं मिला यदि पानी हमको,तो फिर खतम कहानी।।
पानी की ही आस में,बैठे होंगे लोग।
तब पछताये होत का,पहले के ये भोग।।
रवेन्द्र पाल सिंह'रसिक' मथुरा।
विषय-पानी/नीर/सलिल
पानी अति गुणवान है,मूल्यवान है पानी।
सोच समझकर खर्च करें,रखें कुछ सावधानी।
ठोस,द्रव और गैस की,इससे सुनो कहानी।
तीन रूप होते पदार्थ के तीनों में है पानी।।
समझ नहीं है आज भी,कैसे बचता पानी।
नहीं मिला यदि पानी हमको,तो फिर खतम कहानी।।
पानी की ही आस में,बैठे होंगे लोग।
तब पछताये होत का,पहले के ये भोग।।
रवेन्द्र पाल सिंह'रसिक' मथुरा।
दिनांक;-2-5-2020
विषय:- पानी, नीर, सलिल
विधा:-कविता
पानी ही जिंदगानी है,
यह मत भुलाइए|
हर तरह से हर हाल में,
पानी बचाइए |
पानी बहुत है कीमती,
इसको बचाइए|
पानी हमारी जान है,
यह मान जाइए|
जीना है अगर चैन से ,
तो इसको बचाइए|
पानी कहीं कल की ,
कहानी न बन जाए|
इसकी हर एक बूंद को,
तरसना न पड़ जाए |
इसलिए इसका ,
उपचार कीजिए |
पानी के साथ कभी न,
दुर्व्यवहार कीजिए |
सांसों के बिना दिल की,
धड़कनों के बिना |
जिंदा नहीं रह सकते,
हो तुम पानी के बिना |
पानी रहेगा तो हरे भरे,
खेत रहेंगे |
अन्न धन से भरे सभी ,
खलिहान रहेंगे |
पानी से ही हरियाली ,
का संसार रहेगा |
जंगल पहाड़ नदियों का,
अस्तित्व रहेगा |
पानी रहेगा तभी ,
सृष्टि का अस्तित्व रहेगा
बोतलों में बिक रहा है,
अभी चेत जाइए |
पानी की हर एक बूंद को,
जी भर बचाइए |
मैं प्रमाणित करता हूं कि
यह मेरी मौलिक रचना है |
विजय श्रीवास्तव
बस्ती
विषय:- पानी, नीर, सलिल
विधा:-कविता
पानी ही जिंदगानी है,
यह मत भुलाइए|
हर तरह से हर हाल में,
पानी बचाइए |
पानी बहुत है कीमती,
इसको बचाइए|
पानी हमारी जान है,
यह मान जाइए|
जीना है अगर चैन से ,
तो इसको बचाइए|
पानी कहीं कल की ,
कहानी न बन जाए|
इसकी हर एक बूंद को,
तरसना न पड़ जाए |
इसलिए इसका ,
उपचार कीजिए |
पानी के साथ कभी न,
दुर्व्यवहार कीजिए |
सांसों के बिना दिल की,
धड़कनों के बिना |
जिंदा नहीं रह सकते,
हो तुम पानी के बिना |
पानी रहेगा तो हरे भरे,
खेत रहेंगे |
अन्न धन से भरे सभी ,
खलिहान रहेंगे |
पानी से ही हरियाली ,
का संसार रहेगा |
जंगल पहाड़ नदियों का,
अस्तित्व रहेगा |
पानी रहेगा तभी ,
सृष्टि का अस्तित्व रहेगा
बोतलों में बिक रहा है,
अभी चेत जाइए |
पानी की हर एक बूंद को,
जी भर बचाइए |
मैं प्रमाणित करता हूं कि
यह मेरी मौलिक रचना है |
विजय श्रीवास्तव
बस्ती
दिनांक - 02/05/2020
दिन -शनिवार
विषय- पानी /नीर /सलिल/जल
============================
सदा बिन जल जीवन अधूरा,
अब जल संचय से यह पूरा।
पावन नदी गंग की धारा,
सदा भक्तों को इसने तारा।
सभी धरा को खूब सजालो,
जल जीवन है इसे बचालो।
जल बूंदें अब सभी बचाना,
सभी धरा में वृक्ष लगाना।
दूषित जल से होते रोगी,
रखें स्वच्छ रहिये निरोगी।
नदी नदी बन जाये सागर,
बूँद बूँद भर जाये गागर।
धरा हरी भी जल से होती,
बिन इसके सब सूखी होती।
हिम शिखरों से नदियाँ आती,
भू को सींचे बढ़ते जाती ।
जल बिन मीन रह नही पाये,
पाकर जल भी यह मुस्कराये।
हम स्वच्छ नदियाँ बनायें,
अब यह हम करके दिखलायें।
.............भुवन बिष्ट
रानीखेत (उत्तराखंड )
(स्वरचित /मौलिक रचना)
दिन -शनिवार
विषय- पानी /नीर /सलिल/जल
============================
सदा बिन जल जीवन अधूरा,
अब जल संचय से यह पूरा।
पावन नदी गंग की धारा,
सदा भक्तों को इसने तारा।
सभी धरा को खूब सजालो,
जल जीवन है इसे बचालो।
जल बूंदें अब सभी बचाना,
सभी धरा में वृक्ष लगाना।
दूषित जल से होते रोगी,
रखें स्वच्छ रहिये निरोगी।
नदी नदी बन जाये सागर,
बूँद बूँद भर जाये गागर।
धरा हरी भी जल से होती,
बिन इसके सब सूखी होती।
हिम शिखरों से नदियाँ आती,
भू को सींचे बढ़ते जाती ।
जल बिन मीन रह नही पाये,
पाकर जल भी यह मुस्कराये।
हम स्वच्छ नदियाँ बनायें,
अब यह हम करके दिखलायें।
.............भुवन बिष्ट
रानीखेत (उत्तराखंड )
(स्वरचित /मौलिक रचना)
दिनांक - ०२/०५/२०२०
दिन - शनिवार
विषय - पानी , नीर , सलिल
१)
जल अमृत
कहे मरू जीवन
रखो सहेज।
२)
जल में कल,
बूँद बूँद अमोल,
व्यर्थ ना कर।
३)
रंग बेरंग,
रंग देता जीवन,
निर्मल नीर।
४)
जल जीवन,
बूँद बूँद अमोल,
रख सहेज।
५)
रंग बेरंग,
पानी बदले रंग,
वक्त के संग।
६)
मन पावन
बहे निर्मल धार
शुद्ध विचार।
७)
नीर सा बन,
सरल औ तरल,
खिले चमन।
८)
जल की बूँदें,
निसर्ग का आधार,
ना करो व्यर्थ।
९)
जल जीवन,
जल से चले सृष्टि,
जीवन सार।
१०)
रेत सी व्यथा,
खोजता रहा नीर,
मन ख्वाहिशें।
११)
जल से सृष्टि,
जल से ही जीवन,
जल से प्राण।
१२)
जल में कल,
अमृत तुल्य जल,
व्यर्थ ना कर।
१३)
मन अधीर,
नयन झरे नीर,
मन के पीर।
१४)
जग सुंदर,
मन, रख निर्मल,
नीर के जैसा।
१५)
मन के पीर,
शब्द उकेरे चित्र
नयन नीर।
१६)
शब्द सलिल
उर निर्मल भाव
काव्य के फूल।
१७)
बीना गरूर,
बहता हुआ नीर,
निर्मल मन।
१८)
नीर सा बहो,
जीतो सबका दिल,
खिले सुमन।
१९)
झरे झरना,
बहे निर्मल नीर
यही जीवन।
२०)
अरे इंसान,
जल है तो जीवन,
सृष्टि का सार।
२१)
जीवन जल,
सहेज कर रख,
अमृत तुल्य,
२३)
बहो निर्झर,
नीर जैसा निर्मल,
मिले विस्तार।
© रामेश्वर बंग
दिन - शनिवार
विषय - पानी , नीर , सलिल
१)
जल अमृत
कहे मरू जीवन
रखो सहेज।
२)
जल में कल,
बूँद बूँद अमोल,
व्यर्थ ना कर।
३)
रंग बेरंग,
रंग देता जीवन,
निर्मल नीर।
४)
जल जीवन,
बूँद बूँद अमोल,
रख सहेज।
५)
रंग बेरंग,
पानी बदले रंग,
वक्त के संग।
६)
मन पावन
बहे निर्मल धार
शुद्ध विचार।
७)
नीर सा बन,
सरल औ तरल,
खिले चमन।
८)
जल की बूँदें,
निसर्ग का आधार,
ना करो व्यर्थ।
९)
जल जीवन,
जल से चले सृष्टि,
जीवन सार।
१०)
रेत सी व्यथा,
खोजता रहा नीर,
मन ख्वाहिशें।
११)
जल से सृष्टि,
जल से ही जीवन,
जल से प्राण।
१२)
जल में कल,
अमृत तुल्य जल,
व्यर्थ ना कर।
१३)
मन अधीर,
नयन झरे नीर,
मन के पीर।
१४)
जग सुंदर,
मन, रख निर्मल,
नीर के जैसा।
१५)
मन के पीर,
शब्द उकेरे चित्र
नयन नीर।
१६)
शब्द सलिल
उर निर्मल भाव
काव्य के फूल।
१७)
बीना गरूर,
बहता हुआ नीर,
निर्मल मन।
१८)
नीर सा बहो,
जीतो सबका दिल,
खिले सुमन।
१९)
झरे झरना,
बहे निर्मल नीर
यही जीवन।
२०)
अरे इंसान,
जल है तो जीवन,
सृष्टि का सार।
२१)
जीवन जल,
सहेज कर रख,
अमृत तुल्य,
२३)
बहो निर्झर,
नीर जैसा निर्मल,
मिले विस्तार।
© रामेश्वर बंग
दिनांक 2 मई 2020
दिन शनिवार
विषय पानी
वज़्न -221 2122 221 2122
ग़ज़ल
दरिया की ये रवानी, इस को बचाए रखना,
अनमोल है ये पानी, इस को बचाए रखना ।
आब ए हयात यूँ ही कहते नहीं इसे हम,
पानी है ज़िंदगानी इसको बचाए रखना ।
मिलकर वो चार सखियां पनघट पे हँस रहीं थीं,
ख़ुसरो की ये कहानी इस को बचाए रखना ।
पानी के तीन मानी, अनवर वक़ार पानी,
रहीमन कि ये बयानी इसको बचाए रखना ।
झीलों की आँख में ख़ुद अंबर निहारता है,
परछाई आसमानी इसको बचाए रखना ।
बच्चे सुना रहे हैं पानी की ये जो कविता,
मछली है जल की रानी इसको बचाए रखना ।
ए 'आरज़ू' सुनो तुम पानी कभी न खोना,
इसका न कोई सानी इस को बचाए रखना ।
-अंजुमन मंसुरी 'आरज़ू'©
दिन शनिवार
विषय पानी
वज़्न -221 2122 221 2122
ग़ज़ल
दरिया की ये रवानी, इस को बचाए रखना,
अनमोल है ये पानी, इस को बचाए रखना ।
आब ए हयात यूँ ही कहते नहीं इसे हम,
पानी है ज़िंदगानी इसको बचाए रखना ।
मिलकर वो चार सखियां पनघट पे हँस रहीं थीं,
ख़ुसरो की ये कहानी इस को बचाए रखना ।
पानी के तीन मानी, अनवर वक़ार पानी,
रहीमन कि ये बयानी इसको बचाए रखना ।
झीलों की आँख में ख़ुद अंबर निहारता है,
परछाई आसमानी इसको बचाए रखना ।
बच्चे सुना रहे हैं पानी की ये जो कविता,
मछली है जल की रानी इसको बचाए रखना ।
ए 'आरज़ू' सुनो तुम पानी कभी न खोना,
इसका न कोई सानी इस को बचाए रखना ।
-अंजुमन मंसुरी 'आरज़ू'©
2/5/2020/शनिवार
*पानी/नीर/सलिल/जल*
काव्य
जल बिन जीवन शून्य
पंचतत्व की काया।
राम बिना क्या रहे यहां पर,
सभी राम की माया।
सलिल सरल सरताऐं बहतीं,
उदगम गंग हिमालय।
यमुना गंगा सरस्वती सब,
निर्मल जल की आलय।
तीर्थधाम जब जल बिखेरें,
तब हरियाली होती।
नीर नहीं होता तो सोचें,
क्या शीतलता होती।
माटी पानी सभी चाहिऐ
हम सबके जीवन को।
जीव वनस्पति जीवित रहते,
जल तो हर जीवन को।
जल स्रोत सभी सूख रहे हैं,
मानव इसका दोषी।
चीर रहे धरती का सीना,
कैसे हैं परिपोषी।
सागर में सरिता मिलती हैं,
मीठा पानी भरती।
वाष्प रूप में परिणित होकर,
वापिस वहीं पहुंचती।
अभी समय संभल जाऐ हम,
फिर कठिनाई होगी।
कितना भी हम जोर लगाऐं,
क्या भरपाई होगी।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
*पानी/नीर/सलिल/जल*
काव्य
जल बिन जीवन शून्य
पंचतत्व की काया।
राम बिना क्या रहे यहां पर,
सभी राम की माया।
सलिल सरल सरताऐं बहतीं,
उदगम गंग हिमालय।
यमुना गंगा सरस्वती सब,
निर्मल जल की आलय।
तीर्थधाम जब जल बिखेरें,
तब हरियाली होती।
नीर नहीं होता तो सोचें,
क्या शीतलता होती।
माटी पानी सभी चाहिऐ
हम सबके जीवन को।
जीव वनस्पति जीवित रहते,
जल तो हर जीवन को।
जल स्रोत सभी सूख रहे हैं,
मानव इसका दोषी।
चीर रहे धरती का सीना,
कैसे हैं परिपोषी।
सागर में सरिता मिलती हैं,
मीठा पानी भरती।
वाष्प रूप में परिणित होकर,
वापिस वहीं पहुंचती।
अभी समय संभल जाऐ हम,
फिर कठिनाई होगी।
कितना भी हम जोर लगाऐं,
क्या भरपाई होगी।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
02-05-2020
*नीर*
उमड़ रहे कुछ बादल कारे।
नील-निलय निश्छल कजरारे॥
धरे उर-उदधि में कवन पीर।
सखे, क्यों कलकल बहता नीर?
विरह-विपद लतिका लिपटी है।
धौंकनी धमक साँसे कपटी है॥
उद्वेलित निरत करत समीर ।
सखे, क्यों कलकल बहता नीर?
सागर सरक सुदूर किनारा ।
विकल तरल पल-पल है धारा ॥
हिवड़ा! धरे तनिक नहीं धीर॥
सखे, क्यों कलकल बहता नीर?
सरि, सागर की अभिलाषी है ।
भरे नीर भी वो प्यासी है॥
तृष्णा है, तो तृप्ति भी नीर।
सखे, क्यों कलकल बहता नीर?
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
*नीर*
उमड़ रहे कुछ बादल कारे।
नील-निलय निश्छल कजरारे॥
धरे उर-उदधि में कवन पीर।
सखे, क्यों कलकल बहता नीर?
विरह-विपद लतिका लिपटी है।
धौंकनी धमक साँसे कपटी है॥
उद्वेलित निरत करत समीर ।
सखे, क्यों कलकल बहता नीर?
सागर सरक सुदूर किनारा ।
विकल तरल पल-पल है धारा ॥
हिवड़ा! धरे तनिक नहीं धीर॥
सखे, क्यों कलकल बहता नीर?
सरि, सागर की अभिलाषी है ।
भरे नीर भी वो प्यासी है॥
तृष्णा है, तो तृप्ति भी नीर।
सखे, क्यों कलकल बहता नीर?
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
दिनांक-2-5-2020
विषय-पानी/नीर/सलिल
विधा-दोहा
पनघट सूने हो चले,
चिंतित हुआ समाज।
धरती बंजर हो रही,
कैसे उगे अनाज।।1।।
भारी संकट आ खड़ा,
जल का पड़ा अकाल।
कूप सरित सूखे हुए,
हो संचय तत्काल।।2।।
पानी संचित कीजिए,
करके सद उपयोग।
खर्चा उतना कीजिये,
जितने में हो भोग।।3।।
नीर बिना होता नहीं,
कोई सा भी काम।
मोल सलिल का जानिए,
करें उपाय तमाम।।4।।
जल ही जीवन जानिए,
यही प्राण आधार।
इसे बचाने के लिये,
रहें सभी तैयार ।।5।।
जब थी जल की बहुलता,
किया नहीं तब मोल।
अब तो कीमत जान लो
पानी है अनमोल।।6।।
*वंदना सोलंकी मेधा*©स्वरचित
विषय-पानी/नीर/सलिल
विधा-दोहा
पनघट सूने हो चले,
चिंतित हुआ समाज।
धरती बंजर हो रही,
कैसे उगे अनाज।।1।।
भारी संकट आ खड़ा,
जल का पड़ा अकाल।
कूप सरित सूखे हुए,
हो संचय तत्काल।।2।।
पानी संचित कीजिए,
करके सद उपयोग।
खर्चा उतना कीजिये,
जितने में हो भोग।।3।।
नीर बिना होता नहीं,
कोई सा भी काम।
मोल सलिल का जानिए,
करें उपाय तमाम।।4।।
जल ही जीवन जानिए,
यही प्राण आधार।
इसे बचाने के लिये,
रहें सभी तैयार ।।5।।
जब थी जल की बहुलता,
किया नहीं तब मोल।
अब तो कीमत जान लो
पानी है अनमोल।।6।।
*वंदना सोलंकी मेधा*©स्वरचित
कुछ तो तुम आंख में पानी रखते।
पाक दामन यह जवानी रखते।
सुनके जिसको यकीन आ जाए।
ऐसा गम ऐसी कहानी रखते।
ये माना के लफ्ज़ नहीं मिलते।
कुछ तो सूरत की बयानी रखते।
जख्म सब सी दिए मेरे तुमने।
कुछ तो चाहत की निशानी रखते।
खूबसूरत हो कि फक्र है तुमको।
काश सीरत भी सुहानी रखते।
हमको दुनियांँ ने सताया "सोहल"।
आप कुछ तो मेहर-बानी रखते।
विपिन सोहल
पाक दामन यह जवानी रखते।
सुनके जिसको यकीन आ जाए।
ऐसा गम ऐसी कहानी रखते।
ये माना के लफ्ज़ नहीं मिलते।
कुछ तो सूरत की बयानी रखते।
जख्म सब सी दिए मेरे तुमने।
कुछ तो चाहत की निशानी रखते।
खूबसूरत हो कि फक्र है तुमको।
काश सीरत भी सुहानी रखते।
हमको दुनियांँ ने सताया "सोहल"।
आप कुछ तो मेहर-बानी रखते।
विपिन सोहल
विषय-पानी,नीर,सलिल
विधा -काव्य
02 मई 2020,शनिवार
------
द्विगुणित चौपाई में-
22 22 22 22=16-16
1)
जल है तब ही जीवन होगा,
ये सुंदर वृक्ष सघन होगा।
मत डालो गंगा में कचरा3
ये करती जीवन हरा भरा।।
2)
गंगा के पावन जल से ही,
धुल जाते हैं फिर पाप सभी।
पावन गंगा की धारा है,
दिव्य रूप लगता प्यारा है।।
3)
जीवन तब ही संभव होगा,
इस धरती पर जल जब होगा।।
महक उठेगा सब वन- उपवन
संवर जायेगा जन जीवन।।
4)
दुष्ट नरक का भागी होगा
जीवन उसका दागी होगा।
पानी जो बर्बाद करेगा
वो कैसे आबाद रहेगा।
5)
पंचतत्व में महत्ता जल की
छोड़ो दोहन सोचो कल की।
जल ही जीने का आधार बना
है फलता जीवन वृक्ष घना।।
---////
DrHem Lata
विधा -काव्य
02 मई 2020,शनिवार
------
द्विगुणित चौपाई में-
22 22 22 22=16-16
1)
जल है तब ही जीवन होगा,
ये सुंदर वृक्ष सघन होगा।
मत डालो गंगा में कचरा3
ये करती जीवन हरा भरा।।
2)
गंगा के पावन जल से ही,
धुल जाते हैं फिर पाप सभी।
पावन गंगा की धारा है,
दिव्य रूप लगता प्यारा है।।
3)
जीवन तब ही संभव होगा,
इस धरती पर जल जब होगा।।
महक उठेगा सब वन- उपवन
संवर जायेगा जन जीवन।।
4)
दुष्ट नरक का भागी होगा
जीवन उसका दागी होगा।
पानी जो बर्बाद करेगा
वो कैसे आबाद रहेगा।
5)
पंचतत्व में महत्ता जल की
छोड़ो दोहन सोचो कल की।
जल ही जीने का आधार बना
है फलता जीवन वृक्ष घना।।
---////
DrHem Lata
विषय-पानी/नीर/सलिल
विधा-दोहा
बूँदें बहुत बरस गई , नीर बना है
बाढ़।
सावन मास बीत चुका,गया महीना षाढ़।
बादल फटे कहीं-कहीं , फूट पड़ा शैलाब।
गिरी टूटकर गिर पड़े , खड्ड बने तालाब।
गंगा मैया रो रही , दर्द बड़ा गंभीर।
काला मेरा जल हुआ , कौन हरे
अब पीर।
पानी बहुत बरस गया ,बाढ बनी नासूर।
घर ईटों का बह गया , सपने चकनाचूर।
खटिया पर है माँ पड़ी,आँखों में है नीर।
बोझ बनी है जिंदगी,कौन हरे अब पीर।
कोरोना के दौर में , कोस रहे सब चीन।
घर में आज तड़प रहे , ज्यों बिन पानी मीन।
सलिल धार नित बह रही,पिया रहे परदेश।
अखियां तरसे दर्श को, बनी आज दरवेश।
✍️अनुज🇮🇳
राकेशकुमार जैनबन्धु
विधा-दोहा
बूँदें बहुत बरस गई , नीर बना है
बाढ़।
सावन मास बीत चुका,गया महीना षाढ़।
बादल फटे कहीं-कहीं , फूट पड़ा शैलाब।
गिरी टूटकर गिर पड़े , खड्ड बने तालाब।
गंगा मैया रो रही , दर्द बड़ा गंभीर।
काला मेरा जल हुआ , कौन हरे
अब पीर।
पानी बहुत बरस गया ,बाढ बनी नासूर।
घर ईटों का बह गया , सपने चकनाचूर।
खटिया पर है माँ पड़ी,आँखों में है नीर।
बोझ बनी है जिंदगी,कौन हरे अब पीर।
कोरोना के दौर में , कोस रहे सब चीन।
घर में आज तड़प रहे , ज्यों बिन पानी मीन।
सलिल धार नित बह रही,पिया रहे परदेश।
अखियां तरसे दर्श को, बनी आज दरवेश।
✍️अनुज🇮🇳
राकेशकुमार जैनबन्धु
दिनांक 2 मई 2020
विषय पानी
पानी
जीवन
पानी सा
होना चाहिए
उठे चाहे
कितना ऊपर से
विनम्र बहना चाहिए
जिससे मिले
वैसा आकार बने
थोडा ढलना चाहिए
चले अनवरत
चट्टानो को काट चले
वक्त सा बदलना चाहिए
सबके कंठ की
प्यास बुझाता सतत
परोपकारी होना चाहिए
पानी देता सीख
सरल, सतत, सहज रहे
पानी सा बहना चाहिए
कमलेश जोशी
विषय पानी
पानी
जीवन
पानी सा
होना चाहिए
उठे चाहे
कितना ऊपर से
विनम्र बहना चाहिए
जिससे मिले
वैसा आकार बने
थोडा ढलना चाहिए
चले अनवरत
चट्टानो को काट चले
वक्त सा बदलना चाहिए
सबके कंठ की
प्यास बुझाता सतत
परोपकारी होना चाहिए
पानी देता सीख
सरल, सतत, सहज रहे
पानी सा बहना चाहिए
कमलेश जोशी
दिनांक 2 मई 2020
विषय पानी
जीवन बने तो ऐसा बने जैसा निर्मल पानी
जिससे मिले वैसा बन जाता निर्मल पानी
बादल से बरसे, शिखर से बहे,झरनो से झरे,
उच्चकुल जन्मा,विनम्र हो जाता निर्मल पानी
बहता रहता सतत वन वन गिरि अंचल मे
कंठ कंठ की है प्यास बुझाता निर्मल पानी
जीवनगूढ रहस्य कहे, पानी तन,पानी आत्मा
पानी पानी मे मिल जाए तो बन जाता है पानी
पानी की हर बूंद कीमती, समझ करे उपयोग
पानी बिन कहां जीवन, जीवन विधाता पानी
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
विषय पानी
जीवन बने तो ऐसा बने जैसा निर्मल पानी
जिससे मिले वैसा बन जाता निर्मल पानी
बादल से बरसे, शिखर से बहे,झरनो से झरे,
उच्चकुल जन्मा,विनम्र हो जाता निर्मल पानी
बहता रहता सतत वन वन गिरि अंचल मे
कंठ कंठ की है प्यास बुझाता निर्मल पानी
जीवनगूढ रहस्य कहे, पानी तन,पानी आत्मा
पानी पानी मे मिल जाए तो बन जाता है पानी
पानी की हर बूंद कीमती, समझ करे उपयोग
पानी बिन कहां जीवन, जीवन विधाता पानी
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
शीर्षक-पानी
पानी से ही जीवन है इसको बचाते रहना
कीमत पानी की अब सबको बताते रहना..
पानी से ही अस्तित्व हमारा है लोगों
नादान सभी लोगों को ये समझाते रहना..
पानी को कभी न लापरवाही ही बहायें
जितना संभव हो उतना इसे बचाते रहना..
बिन पानी मर जायेंगे तरु-जीव और मानव
जीवन की ज़रूरत पानी सबको बताते रहना..
कोई व्यर्थ गंवाये न पानी आईना देखो
बूंद-बूंद पानी की एहमियत बताते रहना..
अनामिका वैश्य आईना
पानी से ही जीवन है इसको बचाते रहना
कीमत पानी की अब सबको बताते रहना..
पानी से ही अस्तित्व हमारा है लोगों
नादान सभी लोगों को ये समझाते रहना..
पानी को कभी न लापरवाही ही बहायें
जितना संभव हो उतना इसे बचाते रहना..
बिन पानी मर जायेंगे तरु-जीव और मानव
जीवन की ज़रूरत पानी सबको बताते रहना..
कोई व्यर्थ गंवाये न पानी आईना देखो
बूंद-बूंद पानी की एहमियत बताते रहना..
अनामिका वैश्य आईना
2/5/2020
पानी, नीर, सलिल
पानी के बुलबुले जैसी मानव की सांस
तेरा मेरा क्यों करे रिश्ते नातों की आस
हृदय ऐसा चाहिए ज्यों गंगा का नीर
स्वयं लेकर बह रही सारे जहां की पीर
संत मन ऐसा है ज्यों सलिल की धार
न अपना पराया रहे सदा उदार
पानी जैसे बन जाऐं जो डालो वही रंग
छोड़ बुराई जगत की बैठ जहाँ सत्संग
धरती देती अन्न हमें देते बादल नीर
दिया लिया सब वही हैं सिया राम रघुवीर
मानव तन को पाय के क्यों फिरता इतराय
प्राण पखेरू उड़ चले पिंजरा खाली रह जाय
स्वरचित, सुषमा ब्यौहार
पानी, नीर, सलिल
पानी के बुलबुले जैसी मानव की सांस
तेरा मेरा क्यों करे रिश्ते नातों की आस
हृदय ऐसा चाहिए ज्यों गंगा का नीर
स्वयं लेकर बह रही सारे जहां की पीर
संत मन ऐसा है ज्यों सलिल की धार
न अपना पराया रहे सदा उदार
पानी जैसे बन जाऐं जो डालो वही रंग
छोड़ बुराई जगत की बैठ जहाँ सत्संग
धरती देती अन्न हमें देते बादल नीर
दिया लिया सब वही हैं सिया राम रघुवीर
मानव तन को पाय के क्यों फिरता इतराय
प्राण पखेरू उड़ चले पिंजरा खाली रह जाय
स्वरचित, सुषमा ब्यौहार
विषय - पानी/नीर/सलिल
विधा - मुक्तक
दिनाँक - 02/05/2020
===============
पानी से घोड़ा भला, पानी से इंसान I
पानी से नारी चले, पानी से ही पान l
पानी मत बर्बाद कर, बूँद -बूँद अनमोल -
पानी से कल दोस्तो, यही धरा की जान l
जल से वन-उपवन भले, भ्रमर करें गुलजार l
जल बिन सूना ही रहे, धरा हरा श्रंगार l
नीरद , नीरधि नीर है, नीरज नीर सुजान -
"माधव" पानी के बिना, नहीं तीज त्योहार I
#स्वरचित
#सन्तोष कुमार प्रजापति "माधव"
#कबरई जिला - महोबा (उ.प्र.)
विधा - मुक्तक
दिनाँक - 02/05/2020
===============
पानी से घोड़ा भला, पानी से इंसान I
पानी से नारी चले, पानी से ही पान l
पानी मत बर्बाद कर, बूँद -बूँद अनमोल -
पानी से कल दोस्तो, यही धरा की जान l
जल से वन-उपवन भले, भ्रमर करें गुलजार l
जल बिन सूना ही रहे, धरा हरा श्रंगार l
नीरद , नीरधि नीर है, नीरज नीर सुजान -
"माधव" पानी के बिना, नहीं तीज त्योहार I
#स्वरचित
#सन्तोष कुमार प्रजापति "माधव"
#कबरई जिला - महोबा (उ.प्र.)
दिनांक-02/05/2020
विषय-नीर/सलिल
चहूँ ओर सलिल करती आह्लालाद
गर्जन से मेघ होते आज आजाद
प्राची का अरुणिमा मस्त बिहान
इंद्रदेव आते सवार होकर विमान
रुनझुन -रुनझुन वायु के मंद स्वर
नीर-नीर से होती धरा तरुवर
बदली की रिमझिम फुहार
कोयल गाए मेघ मल्हार
तितली का सतरंगी आंचल
सलिल तृप्ति करता बादल
भंवरों के मीठे अनुस्वार!
अंजलि में भर लूं तेरा प्यार
त्यागूँ मन के विरह बिराग
स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह
विषय-नीर/सलिल
चहूँ ओर सलिल करती आह्लालाद
गर्जन से मेघ होते आज आजाद
प्राची का अरुणिमा मस्त बिहान
इंद्रदेव आते सवार होकर विमान
रुनझुन -रुनझुन वायु के मंद स्वर
नीर-नीर से होती धरा तरुवर
बदली की रिमझिम फुहार
कोयल गाए मेघ मल्हार
तितली का सतरंगी आंचल
सलिल तृप्ति करता बादल
भंवरों के मीठे अनुस्वार!
अंजलि में भर लूं तेरा प्यार
त्यागूँ मन के विरह बिराग
स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह
पानी नही कुछ भी नही |
जड चेतन सब बिन पानी मृत |
पानी के रुप तीन तरल ठोस वाष्प |
कौई आकार प्रकार नहीपानी का |
जीव बनता पंच तत्वो से |
जल,वायु पृथ्वी आकाश अग्नि |
सबसे महत्वपूर्ण जल |
पानी ,अगर इज्ज़त चली जाय ,
तो मानव जीवित रहे कैसे |
पानी ,मोती का चमक गई तो ,
वह मूल्य हीन हे ||
पानी बिन जीवन नही धरा क्या
तीनो लोको मे |
समुद्र ,नदियाँ ताल तलैयापोखर ,
कुए बावडी की दशा देख रोता मन |
सब अटे पडे कूडे करकट से ,
रे मानव तू क्यों भूल रहा महत्व को |
आज दोहन इतना कल क्या करेगा |
न कर इनको गंदा शहरो के गंदे नालो से |
अब भी सुधर जा देख दशा बिन पानी के कैसे धरा हुई मरुस्थल |
जहा बहती कल कल निनादनी
नदियाँ भरे पोखर थे इज वोहो |
पक्षियों का कलरव नही ,प्यासे पशु ,
मानव स्वयं प्यासा कैसे बुझाये प्यास |
कारखानो के केमिकल से मर रहे जीव |
आओ जल को बचाओ ,कर इनको साफ |
जल हे तो जीवन हे ,नही सब सूने |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा |
जड चेतन सब बिन पानी मृत |
पानी के रुप तीन तरल ठोस वाष्प |
कौई आकार प्रकार नहीपानी का |
जीव बनता पंच तत्वो से |
जल,वायु पृथ्वी आकाश अग्नि |
सबसे महत्वपूर्ण जल |
पानी ,अगर इज्ज़त चली जाय ,
तो मानव जीवित रहे कैसे |
पानी ,मोती का चमक गई तो ,
वह मूल्य हीन हे ||
पानी बिन जीवन नही धरा क्या
तीनो लोको मे |
समुद्र ,नदियाँ ताल तलैयापोखर ,
कुए बावडी की दशा देख रोता मन |
सब अटे पडे कूडे करकट से ,
रे मानव तू क्यों भूल रहा महत्व को |
आज दोहन इतना कल क्या करेगा |
न कर इनको गंदा शहरो के गंदे नालो से |
अब भी सुधर जा देख दशा बिन पानी के कैसे धरा हुई मरुस्थल |
जहा बहती कल कल निनादनी
नदियाँ भरे पोखर थे इज वोहो |
पक्षियों का कलरव नही ,प्यासे पशु ,
मानव स्वयं प्यासा कैसे बुझाये प्यास |
कारखानो के केमिकल से मर रहे जीव |
आओ जल को बचाओ ,कर इनको साफ |
जल हे तो जीवन हे ,नही सब सूने |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा |
२/५/२०२०
प्रदत्त विषय..नीर,जल, सलिल
#नीर(जीवन दाई)
#नीर मेरा निर्मल रहने दो
बहने दो पावन धारा....
पर्वत का सीना चीर कर,
निकली नदी की धारा
अपना मार्ग स्वयं बनाती,
कल-कल बहती धारा
व्यथा मेरी नहीं कोई जाने
मुझको निर्मल न रहने देते
मल मूत्र भी मुझ में घोलते
अवशिष्ट सारे मुझ पर डालते,
बना बाँध रोकते मेरी धारा
कल कल बहती धारा....…
गंगा मैया मुझको कहते
पाप सारे मुझमें धोते
नहीं रखते मुझको पावन
दर्द मेरा क्यूं ना समझते?
मेरी पूजा करे जग सारा
कल कल बहती धारा.....
मुझे स्वच्छ निर्मल बढ़ने दो
गरल ना मुझको बनने दो
ना मिटाओ मेरी मर्यादा
मुझे पावन बनी रहने दो
मिट जाएगा संकट सारा
कल कल बहती धारा.....
शशि मित्तल "अमर"
२/५/२०२०
मौलिक एवं स्वरचित
प्रदत्त विषय..नीर,जल, सलिल
#नीर(जीवन दाई)
#नीर मेरा निर्मल रहने दो
बहने दो पावन धारा....
पर्वत का सीना चीर कर,
निकली नदी की धारा
अपना मार्ग स्वयं बनाती,
कल-कल बहती धारा
व्यथा मेरी नहीं कोई जाने
मुझको निर्मल न रहने देते
मल मूत्र भी मुझ में घोलते
अवशिष्ट सारे मुझ पर डालते,
बना बाँध रोकते मेरी धारा
कल कल बहती धारा....…
गंगा मैया मुझको कहते
पाप सारे मुझमें धोते
नहीं रखते मुझको पावन
दर्द मेरा क्यूं ना समझते?
मेरी पूजा करे जग सारा
कल कल बहती धारा.....
मुझे स्वच्छ निर्मल बढ़ने दो
गरल ना मुझको बनने दो
ना मिटाओ मेरी मर्यादा
मुझे पावन बनी रहने दो
मिट जाएगा संकट सारा
कल कल बहती धारा.....
शशि मित्तल "अमर"
२/५/२०२०
मौलिक एवं स्वरचित
दिनांक :-02.05.2020
विषय:- जल, पानी,नीर
विधा :- छंदमुक्त कविता
"""""""""""'''''''"""""""''''''''''''''''''''''
जल बचाओ कल बचाओ
एक -एक का सिक्का
डालने से
एक दिन
गुल्लक भर जाती है
और बहुत बड़ी रकम
इकट्ठी हो जाती है
एक -एक तिनके से ही
एक चिड़िया
दिन रात मेहनत कर
सुंदर एवं
आकर्षक
घोंसला बना लेती है
चींटी
एक -एक दाने को
चुन-चुनकर
अनाज का
ढेर लगा देती है
जो देखने में
असंभव सा लगता है
एक -एक ईट से
बड़ी-बड़ी
इतिहासिक
इमारतें खड़ी हो जाती हैं
जो...
आसमान को चूमती हुई
नजर आती हैं
ठीक इसी प्रकार
अगर हम एक - एक
पानी की बूंद
भी बचाते हैं तो...
हम प्रकृति की रक्षा करने में
और अपना जीवन बचाने में
सफल हो सकते हैं
इस मुहिम को
हम आज से ही शुरु करते हैं
जरूरत के हिसाब से
जल का प्रयोग करते हैं
जल को व्यर्थ जाने से बचाते हैं
आओ हम पेड़ लगाते हैं
अगर पेड़ हैं तो ...
जल है
फसल है
हमारा कल है
हिमालय अचल है
बाढ,सूखा एवं
प्राकृतिक आपदाओं से
सुरक्षा प्रतिपल है
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
महेंद्रगढ़ हरियाणा
स्वरचित रचना
मौलिक
विषय:- जल, पानी,नीर
विधा :- छंदमुक्त कविता
"""""""""""'''''''"""""""''''''''''''''''''''''
जल बचाओ कल बचाओ
एक -एक का सिक्का
डालने से
एक दिन
गुल्लक भर जाती है
और बहुत बड़ी रकम
इकट्ठी हो जाती है
एक -एक तिनके से ही
एक चिड़िया
दिन रात मेहनत कर
सुंदर एवं
आकर्षक
घोंसला बना लेती है
चींटी
एक -एक दाने को
चुन-चुनकर
अनाज का
ढेर लगा देती है
जो देखने में
असंभव सा लगता है
एक -एक ईट से
बड़ी-बड़ी
इतिहासिक
इमारतें खड़ी हो जाती हैं
जो...
आसमान को चूमती हुई
नजर आती हैं
ठीक इसी प्रकार
अगर हम एक - एक
पानी की बूंद
भी बचाते हैं तो...
हम प्रकृति की रक्षा करने में
और अपना जीवन बचाने में
सफल हो सकते हैं
इस मुहिम को
हम आज से ही शुरु करते हैं
जरूरत के हिसाब से
जल का प्रयोग करते हैं
जल को व्यर्थ जाने से बचाते हैं
आओ हम पेड़ लगाते हैं
अगर पेड़ हैं तो ...
जल है
फसल है
हमारा कल है
हिमालय अचल है
बाढ,सूखा एवं
प्राकृतिक आपदाओं से
सुरक्षा प्रतिपल है
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
महेंद्रगढ़ हरियाणा
स्वरचित रचना
मौलिक
मंच को नमन
विषय_पानी ,नीर,सलिल
विद्या _काव्य
2म ई 2020 शनिवार
जल ही जीवन है
भीषण गर्मी के बाद
आता है सावन का महीना
रिमझिम रिमझिम बारिश
हर जीव का मन हर्षाता है ।
जातक,मोर ,पपीहा ,हिरण
खरगोश कुलांचे भरता है।
सुखे नयन,फटे होंठों पर
आशा का दीप तब जलता है
नयन भरी आशाओं से
कृषक श्याम घन को देखता
हाथ जोड़ कर इंद्रराज को पूजता है,
कृपा करो हे इंद्रराज
अब तो जल बरसाओ,
मेरे खेतों में दया दृष्टि बरसाओ।।
हुई मूसलाधार बारिश
जन जीवन सुख पाते हैं।
सूखी हुई शाखाओं पर भी
नव कोपल आतें हैं ।
खेतों में हरियाली छाई,
मेढक, मोर ,पपीहा , झिंगुर
सबका मन है बिहंसा।
जल से ही तो जीवन है भाई
इतनी बात समझ लो।
औ
पेड़, पहाड़ सारी धरती
़जल से ही तो है !जल ना हो तो,
जल जाएगा यह विश्व ही सारा।
पंच तत्व से बनी यह धरती,
पंच तत्वों से बना शरीर ।
बात यह है बहुत गंभीर
ईश्वर ने दिया धरती,
धरती ने दी हरियाली
हरियाली का रक्षण हो
इसलिए बनी नदिया सारी।
ताल तलैया नष्ट ना करो
इनका तुम निर्माण करो
जल जाएगा तो तुम भी जाओगे
कोई नहीं बचा पाएगा।
जल को मत बर्बाद करो
सोच सोच कर खर्च करो
जल है तो जीवन है वरना
सब कुछ नामुमकिन है
जल ही जीवन है
जल ही जीवन है ।।
माधुरी मिश्रा वरिष्ठ साहित्यकार जमशेदपुर झारखंड
विषय_पानी ,नीर,सलिल
विद्या _काव्य
2म ई 2020 शनिवार
जल ही जीवन है
भीषण गर्मी के बाद
आता है सावन का महीना
रिमझिम रिमझिम बारिश
हर जीव का मन हर्षाता है ।
जातक,मोर ,पपीहा ,हिरण
खरगोश कुलांचे भरता है।
सुखे नयन,फटे होंठों पर
आशा का दीप तब जलता है
नयन भरी आशाओं से
कृषक श्याम घन को देखता
हाथ जोड़ कर इंद्रराज को पूजता है,
कृपा करो हे इंद्रराज
अब तो जल बरसाओ,
मेरे खेतों में दया दृष्टि बरसाओ।।
हुई मूसलाधार बारिश
जन जीवन सुख पाते हैं।
सूखी हुई शाखाओं पर भी
नव कोपल आतें हैं ।
खेतों में हरियाली छाई,
मेढक, मोर ,पपीहा , झिंगुर
सबका मन है बिहंसा।
जल से ही तो जीवन है भाई
इतनी बात समझ लो।
औ
पेड़, पहाड़ सारी धरती
़जल से ही तो है !जल ना हो तो,
जल जाएगा यह विश्व ही सारा।
पंच तत्व से बनी यह धरती,
पंच तत्वों से बना शरीर ।
बात यह है बहुत गंभीर
ईश्वर ने दिया धरती,
धरती ने दी हरियाली
हरियाली का रक्षण हो
इसलिए बनी नदिया सारी।
ताल तलैया नष्ट ना करो
इनका तुम निर्माण करो
जल जाएगा तो तुम भी जाओगे
कोई नहीं बचा पाएगा।
जल को मत बर्बाद करो
सोच सोच कर खर्च करो
जल है तो जीवन है वरना
सब कुछ नामुमकिन है
जल ही जीवन है
जल ही जीवन है ।।
माधुरी मिश्रा वरिष्ठ साहित्यकार जमशेदपुर झारखंड
दिनांक -02/05/2020
विषय -पानी/ नीर/ सलिल
हे मानव! धरा के कर्णधार ,
पानी ही जीवन आधार ।
बूंद -बूंद संचित करिए
पानी बिना सब बेकार ।
पानी उपवन को हरा है रखता
वसुधा का करता श्रृंगार।
दुल्हन जैसी सजी धारा
जब सावन की पड़े फुहार।
बूंद -बूंद का रखें ख्याल
पानी सूखे तो जग सूखेगा
बेकार न इसको बहने दे
आने वाला कल भी बिगड़ेगा।
पृथ्वी एक अनोखा ग्रह है
जहां पर पानी संभव है ।
पानी है हर गुणों की खान
पानी है तो सब संभव है ।
पानी से ही कल है ,
पानी से ही तो सब कुछ है ।
पानी नहीं बनाया जाता,
सिर्फ बचाया जा सकता है।।
स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज
विषय -पानी/ नीर/ सलिल
हे मानव! धरा के कर्णधार ,
पानी ही जीवन आधार ।
बूंद -बूंद संचित करिए
पानी बिना सब बेकार ।
पानी उपवन को हरा है रखता
वसुधा का करता श्रृंगार।
दुल्हन जैसी सजी धारा
जब सावन की पड़े फुहार।
बूंद -बूंद का रखें ख्याल
पानी सूखे तो जग सूखेगा
बेकार न इसको बहने दे
आने वाला कल भी बिगड़ेगा।
पृथ्वी एक अनोखा ग्रह है
जहां पर पानी संभव है ।
पानी है हर गुणों की खान
पानी है तो सब संभव है ।
पानी से ही कल है ,
पानी से ही तो सब कुछ है ।
पानी नहीं बनाया जाता,
सिर्फ बचाया जा सकता है।।
स्वरचित ,मौलिक रचना
रंजना सिंह
प्रयागराज
2 मई 2020
विषय पानी
विधा कुँडलियाँ
1
पानी जीवन प्राण है, रस का हैआधार।
संजीवन दे जगत को, मिला हमें उपहार
मिला हमें उपहार, नदी पर बांँध बनाओ।
संग्रह करना खूब, व्यर्थ में नही बहाओ।
कहे केशरी ' हंस' ,बात हमने यह जानी।
सभी नदी हो साफ, मिले पीने का पानी।
२
पानी का संचय करो, वर्षा का जल रोक।
कभी कमी आवे नहीं, क्यों होगा तब शोक।
क्यों होग तब शोक,सभी उत्पादन बड़ता।
आबादी का बोझ, नही तब भारी पड़ता।
सिंचित कृषि हो तभी', बात हमने यह जानी।
जल को रखना रोक,खेत में होगा पानी।
स्वरचित
केशरीसिंह रघुवंशी हंस
विषय पानी
विधा कुँडलियाँ
1
पानी जीवन प्राण है, रस का हैआधार।
संजीवन दे जगत को, मिला हमें उपहार
मिला हमें उपहार, नदी पर बांँध बनाओ।
संग्रह करना खूब, व्यर्थ में नही बहाओ।
कहे केशरी ' हंस' ,बात हमने यह जानी।
सभी नदी हो साफ, मिले पीने का पानी।
२
पानी का संचय करो, वर्षा का जल रोक।
कभी कमी आवे नहीं, क्यों होगा तब शोक।
क्यों होग तब शोक,सभी उत्पादन बड़ता।
आबादी का बोझ, नही तब भारी पड़ता।
सिंचित कृषि हो तभी', बात हमने यह जानी।
जल को रखना रोक,खेत में होगा पानी।
स्वरचित
केशरीसिंह रघुवंशी हंस
2/5/2020
जल
******
जल से जीवन का आधार,
व्यर्थ मत करो बेकार,
बूँद -बूँद से सागर भरता,
सभी बातों का सार।
अपने साथ आगे की सोचो ,
युवा पीढ़ी की ओर भी देखो,
आज हम जो बचत करेंगे,
वहीं रचेंगे कल इतिहास,
ये अमृत है धरती की ,
समझो इसका मोल ,
एक -एक बूंद इसकी कीमती ,
जल बड़ा अनमोल।
अनीता सिद्धि ।
दिल्ली ।
जल
******
जल से जीवन का आधार,
व्यर्थ मत करो बेकार,
बूँद -बूँद से सागर भरता,
सभी बातों का सार।
अपने साथ आगे की सोचो ,
युवा पीढ़ी की ओर भी देखो,
आज हम जो बचत करेंगे,
वहीं रचेंगे कल इतिहास,
ये अमृत है धरती की ,
समझो इसका मोल ,
एक -एक बूंद इसकी कीमती ,
जल बड़ा अनमोल।
अनीता सिद्धि ।
दिल्ली ।
तिथिः *वैशाख शुक्ल नवमी*
नमन मंच *भावो के मोती*
शब्दः *पानी, नीर, सलिल*
विधाः *काव्य गीत*
भारः 16 . 13 मात्रा
गीत शीर्षकः *जीवन होय सलिल सा दर्पण*
*मुखड़ा*
जीवन होय सलिल सा दर्पण,
प्रेम भाव में होय समर्पण,
मनवा निर्मल नीर हो ..
मनवा निर्मल नीर हो,
जीवन होय .....
*अंतरा* (१)
बना रहे आँखों का पानी,
मानवता की प्रेम निशानी,
मानवता में धीर हो ..
मानवता में धीर हो,
जीवन होय ...
*अंतरा* (२)
जीवन जग उजियारा सा हो,
जीवन दर्शन प्यारा सा हो,
सुखमय साँस शरीर हो ...
सुखमय साँस शरीर हो,
जीवन होय ...
*अंतरा* (३)
अध्यातम की छाया सी हो,
साथ साहित्य माया सी हो,
खींचे कलम लकीर हो ..
खींचे कलम लकीर हो,
जीवन होय ...
~~~~~~~~~~~~~~
स्वरचित रचना द्वाराः
मंगलसैन डेढ़ा 'नि
शब्दः *पानी, नीर, सलिल*
विधाः *काव्य गीत*
भारः 16 . 13 मात्रा
गीत शीर्षकः *जीवन होय सलिल सा दर्पण*
*मुखड़ा*
जीवन होय सलिल सा दर्पण,
प्रेम भाव में होय समर्पण,
मनवा निर्मल नीर हो ..
मनवा निर्मल नीर हो,
जीवन होय .....
*अंतरा* (१)
बना रहे आँखों का पानी,
मानवता की प्रेम निशानी,
मानवता में धीर हो ..
मानवता में धीर हो,
जीवन होय ...
*अंतरा* (२)
जीवन जग उजियारा सा हो,
जीवन दर्शन प्यारा सा हो,
सुखमय साँस शरीर हो ...
सुखमय साँस शरीर हो,
जीवन होय ...
*अंतरा* (३)
अध्यातम की छाया सी हो,
साथ साहित्य माया सी हो,
खींचे कलम लकीर हो ..
खींचे कलम लकीर हो,
जीवन होय ...
~~~~~~~~~~~~~~
स्वरचित रचना द्वाराः
मंगलसैन डेढ़ा 'नि
विषय - पानी
दिनांक 2-5-2020
पानी का है रंग नहीं,
नहीं कोई आकार,
निराकार यह जल ही,
है जीवन का आधार।
कहा सदा माता नदियों को,
किया तिरस्कार लगातार,
फल भोगते हम निज कर्मों का,
करती जो प्रकृति प्रहार।
जल बिन जीवन है नहीं,
साक्षी हैं सारे बंजर ग्रह,
कर आदर प्रकृति का,
और मनुज चैन से रह।
रश्मि रावत
गाजियाबाद
मौलिक रचना
दिनांक 2-5-2020
पानी का है रंग नहीं,
नहीं कोई आकार,
निराकार यह जल ही,
है जीवन का आधार।
कहा सदा माता नदियों को,
किया तिरस्कार लगातार,
फल भोगते हम निज कर्मों का,
करती जो प्रकृति प्रहार।
जल बिन जीवन है नहीं,
साक्षी हैं सारे बंजर ग्रह,
कर आदर प्रकृति का,
और मनुज चैन से रह।
रश्मि रावत
गाजियाबाद
मौलिक रचना
02/05/20
पानी/नीर
**
धरती का जल स्तर गिरे',मनन करें ये बोल।
जल संरक्षण कीजिये ,पानी है अनमोल ।।
धरती का सीना फटे ,मिले न जल की बूँद।
मोल नीर का जानिये ,आँख न रखिये मूँद ।।
बूँद बूँद से घट भरे ,समझें इसके बोल ।
व्यर्थ न इसको कीजिये,नीर रहा अनमोल।।
मूल तत्व ये जीव का,यही जगत आधार।
दोहन इसका मत करें ,पीढ़ी का अधिकार ।।
प्यासी चिड़िया कह रही,लगी नीर की आस।
बर्तन भर के नीर से ,रखिये घर के पास ।।
बढ़े धरा का ताप जब ,सूखे नदियाँ ताल ।
बूँद बूँद की आस में,जीव जंतु बेहाल।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
पानी/नीर
**
धरती का जल स्तर गिरे',मनन करें ये बोल।
जल संरक्षण कीजिये ,पानी है अनमोल ।।
धरती का सीना फटे ,मिले न जल की बूँद।
मोल नीर का जानिये ,आँख न रखिये मूँद ।।
बूँद बूँद से घट भरे ,समझें इसके बोल ।
व्यर्थ न इसको कीजिये,नीर रहा अनमोल।।
मूल तत्व ये जीव का,यही जगत आधार।
दोहन इसका मत करें ,पीढ़ी का अधिकार ।।
प्यासी चिड़िया कह रही,लगी नीर की आस।
बर्तन भर के नीर से ,रखिये घर के पास ।।
बढ़े धरा का ताप जब ,सूखे नदियाँ ताल ।
बूँद बूँद की आस में,जीव जंतु बेहाल।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
विषय : पानी
विधा : कविता
तिथि : 2.5.2020
पानी
--------
बनना है तो पानी बन, पानी की रवानी बन।
जो राह मिली, वहां बह लिया
जो आकार मिला,उसमें ढल लिया
जो साथ मिला, उसी में मिल गया
न अहम न भेदभाव हर विचार में रम।
बनना है तो पानी बन, पानी की रवानी बन।
कोई हो दर्शन कोई हो धर्म
मिल सब में बन पानी सा मर्म
पानी सा अस्तित्व श्रेष्ठम कर्म
सुधर जाएं इससे तेरे सारे जन्म।
बनना है तो पानी बन, पानी की रवानी बन।
पानी जीवन का अमृत है
पानी तो प्यास में शर्बत है
पानी हरियाली की ज़िदगी है
पानी तुझे चाहे हर कण-कण।
बनना है तो पानी बन, पानी की रवानी बन।
कभी तरल, कभी ठोस बरफ़
कभी फ़ुहार बन,जीते इसका हर हरफ़
इसके जैसा मित्र न कोई
इसके तांडव का कारण कभी मनु न बन!
बनना है तो पानी बन, पानी की रवानी बन।
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
विधा : कविता
तिथि : 2.5.2020
पानी
--------
बनना है तो पानी बन, पानी की रवानी बन।
जो राह मिली, वहां बह लिया
जो आकार मिला,उसमें ढल लिया
जो साथ मिला, उसी में मिल गया
न अहम न भेदभाव हर विचार में रम।
बनना है तो पानी बन, पानी की रवानी बन।
कोई हो दर्शन कोई हो धर्म
मिल सब में बन पानी सा मर्म
पानी सा अस्तित्व श्रेष्ठम कर्म
सुधर जाएं इससे तेरे सारे जन्म।
बनना है तो पानी बन, पानी की रवानी बन।
पानी जीवन का अमृत है
पानी तो प्यास में शर्बत है
पानी हरियाली की ज़िदगी है
पानी तुझे चाहे हर कण-कण।
बनना है तो पानी बन, पानी की रवानी बन।
कभी तरल, कभी ठोस बरफ़
कभी फ़ुहार बन,जीते इसका हर हरफ़
इसके जैसा मित्र न कोई
इसके तांडव का कारण कभी मनु न बन!
बनना है तो पानी बन, पानी की रवानी बन।
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
विषय पानी जल नीर
तिथि 2_5_2020
वार शनिवार
पानी
जीवन की ज़रुरत
ना करो व्यर्थ
दो बूँद पानी की क़ीमत
सुनो उस किसान से
जो दिन रात एक कर देता है
खेत खलिहान में
पूछो उस जवान से
जो भूखे-प्यासे लड़ता है
जंग के मैदान मे
ये जो सिमटा हुआ है दर्द
मन में कही
हाँ बहा दो आँखो का पानी
सुकून मिल जाए
जीवन मे
पानी ही जीवन है
ना करो व्यर्थ
एक-एक बूँद
क़ीमती है
स्वरचित
सूफिया ज़ैदी
तिथि 2_5_2020
वार शनिवार
पानी
जीवन की ज़रुरत
ना करो व्यर्थ
दो बूँद पानी की क़ीमत
सुनो उस किसान से
जो दिन रात एक कर देता है
खेत खलिहान में
पूछो उस जवान से
जो भूखे-प्यासे लड़ता है
जंग के मैदान मे
ये जो सिमटा हुआ है दर्द
मन में कही
हाँ बहा दो आँखो का पानी
सुकून मिल जाए
जीवन मे
पानी ही जीवन है
ना करो व्यर्थ
एक-एक बूँद
क़ीमती है
स्वरचित
सूफिया ज़ैदी
2/5/20
विषय-पानी/नीर/सलिल
पानी रे पानी
गजब तेरी कहानी
जीवन दानी
बूँद की आशा
कृषक है लगाता
नीर बहाता
बहती नदी
लेकर के हिलोरे
मृदु सलिल
पानी बरसा
खूब झमाझम से
भरा शहर
नीर बहाती
दुखिया है ठाड़ी
भूखी प्यासी
स्वरचित
मीना तिवारी
विषय-पानी/नीर/सलिल
पानी रे पानी
गजब तेरी कहानी
जीवन दानी
बूँद की आशा
कृषक है लगाता
नीर बहाता
बहती नदी
लेकर के हिलोरे
मृदु सलिल
पानी बरसा
खूब झमाझम से
भरा शहर
नीर बहाती
दुखिया है ठाड़ी
भूखी प्यासी
स्वरचित
मीना तिवारी
दिनाँक2/5/2020
बिषय पानी/नीर/सलिल
विधा मुक्तक काव्य
बिषय नीर
हिमालय का पसीना
जब नदी रूप मेंबहता है
हिम खण्डों का नीर
सागर से जा मिलता है!
बदरा बन कर स्वाति बूँद
झम-झम वर्षा करता है
प्रकृति देवी का नीर ही
अभिसिंचन करता है!
गगन धरा मेंप्रेमरूप
नीर बूँद दे जाता है
तब माँ के अन्तर से
बीज जन्म ले पाता है!
नीर ही जीवन नीर ही
तो रक्त प्रवाह बढाता है
जीव जन्तुऔर बनस्पति
को जीवन भी दे जाता है!
स्वरचित
साधना जोशी
उत्तर काशी
उत्राखण्ड
बिषय पानी/नीर/सलिल
विधा मुक्तक काव्य
बिषय नीर
हिमालय का पसीना
जब नदी रूप मेंबहता है
हिम खण्डों का नीर
सागर से जा मिलता है!
बदरा बन कर स्वाति बूँद
झम-झम वर्षा करता है
प्रकृति देवी का नीर ही
अभिसिंचन करता है!
गगन धरा मेंप्रेमरूप
नीर बूँद दे जाता है
तब माँ के अन्तर से
बीज जन्म ले पाता है!
नीर ही जीवन नीर ही
तो रक्त प्रवाह बढाता है
जीव जन्तुऔर बनस्पति
को जीवन भी दे जाता है!
स्वरचित
साधना जोशी
उत्तर काशी
उत्राखण्ड
भावों के मोती
विषय- पानी/ नीर/सलिल
विधा- हाइकु
**************************************
संचय जल
सुरक्षित जीवन
आज व कल।
*******************
बढ़ता ताप
नदी ताल बेजान
जन बेहाल।
******************
सीमित जल
जीवन का आधार
मत बेकार।
******************
तृष्णा मिटाता
जल ही जीवन है
सृष्टि का मूल।
*******************
जीवन कश्ती
जल से है चलती
जीवित सृष्टि।
*************************************
स्वरचित- सुनील कुमार
जिला-बहराइच,उत्तर प्रदेश।
विषय- पानी/ नीर/सलिल
विधा- हाइकु
**************************************
संचय जल
सुरक्षित जीवन
आज व कल।
*******************
बढ़ता ताप
नदी ताल बेजान
जन बेहाल।
******************
सीमित जल
जीवन का आधार
मत बेकार।
******************
तृष्णा मिटाता
जल ही जीवन है
सृष्टि का मूल।
*******************
जीवन कश्ती
जल से है चलती
जीवित सृष्टि।
*************************************
स्वरचित- सुनील कुमार
जिला-बहराइच,उत्तर प्रदेश।
विषय.. जल,पानी
(1)
जल आधार।
मनुज जीवन का।
सभी प्रकार।
(2)
सम्भव नही।
पानी बिना जीवन।
है उपयोगी।
(4)
पानी पर है
सब कुछ निर्भर
जीव मनुज
(5)
कुदरत का।
अनोखा उपहार।
जल का मिलना।
रीतू..ऋतंभरा
(1)
जल आधार।
मनुज जीवन का।
सभी प्रकार।
(2)
सम्भव नही।
पानी बिना जीवन।
है उपयोगी।
(4)
पानी पर है
सब कुछ निर्भर
जीव मनुज
(5)
कुदरत का।
अनोखा उपहार।
जल का मिलना।
रीतू..ऋतंभरा
दिनांक 02-05-2020
विषय- पानी /सलिल/नीर
हो रही धरा पर जगह-जगह
पानी की कितनी ही किल्लत
वह कह सकते सब लोग नहीं
जो झेल रहे यह सब जिल्लत ....
कितनी मुश्किल होती उनको
हर-दिन घण्टों लाइन में लगते
पानी निर्मल पाने के लिए सब
रात में ही कुछ जल्दी से जगते...
अजब कहानी कथन कठिन है
कितना परिश्रम करके ये रहते
ऐसे भी दिन दिख जाते जब
इनके आँखों से आँसू ही बहते
ऐसे लोगों की भी कमी नही है
सड़क पे आकर सब समझाते
पर कहने में संकोच नहीं यह
पानी यह खुद सब नहीं बचाते
स्रोत यहाँ जो भी बने जलाशय
रात-दिवस सब मिल पाट रहे है
बढ़ा हुआ सब जगह अतिक्रमण
वन, उपवन सब मिल चाट रहे है ..
हो गया प्रदूषित सब है मण्डल
रुष्ट प्रकृति दिख रही अब अति
देख सूखती नदियाँ और धरती
नहीं आ रही मानव को है मति...
डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही
विषय- पानी /सलिल/नीर
हो रही धरा पर जगह-जगह
पानी की कितनी ही किल्लत
वह कह सकते सब लोग नहीं
जो झेल रहे यह सब जिल्लत ....
कितनी मुश्किल होती उनको
हर-दिन घण्टों लाइन में लगते
पानी निर्मल पाने के लिए सब
रात में ही कुछ जल्दी से जगते...
अजब कहानी कथन कठिन है
कितना परिश्रम करके ये रहते
ऐसे भी दिन दिख जाते जब
इनके आँखों से आँसू ही बहते
ऐसे लोगों की भी कमी नही है
सड़क पे आकर सब समझाते
पर कहने में संकोच नहीं यह
पानी यह खुद सब नहीं बचाते
स्रोत यहाँ जो भी बने जलाशय
रात-दिवस सब मिल पाट रहे है
बढ़ा हुआ सब जगह अतिक्रमण
वन, उपवन सब मिल चाट रहे है ..
हो गया प्रदूषित सब है मण्डल
रुष्ट प्रकृति दिख रही अब अति
देख सूखती नदियाँ और धरती
नहीं आ रही मानव को है मति...
डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही
विषय पानी
विधा कविता
दिनाँक 2.5.2020
दिन शनिवार
पानी/नीर
💘💘💘💘
कहीं तो हो गया सब लहू पानी
कहीं होगया शर्म से सब पानी
कहीं आँखों का सूख गया पानी
कहीं सँवेदना हो गई पानी पानी।
कहीं पानी के बिना फूटा मटका
कहीं पानी से ही दिया किसी ने झटका
कहीं पानी के लिये किसी ने किसी को पटका
कहीं पानी के लिये ही किसी का मुँह लटका।
पानी के लिये कभी कोई तरसा
पानी के लिये कभी कोई बरसा
पानी का रस्ता कभी पाट दिया
पानी का रस्ता कभी काट दिया।
पानी आधार है बिन पानी सब वीरान है
पानी से ही तो खेलती प्रकृति की मुस्कान है
पानी जीवन तत्व है प्रकृति का ममत्व है
रसायनिक गुण भी ऐसा कि इसका एक घनत्व है।
हम कहते हैं पानी है अमृत
इसके बिना है सब कुछ मृत
धरा भी रखती होगी कोई व्रत
मेघ भी होता होगा तभी तो नत।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
विधा कविता
दिनाँक 2.5.2020
दिन शनिवार
पानी/नीर
💘💘💘💘
कहीं तो हो गया सब लहू पानी
कहीं होगया शर्म से सब पानी
कहीं आँखों का सूख गया पानी
कहीं सँवेदना हो गई पानी पानी।
कहीं पानी के बिना फूटा मटका
कहीं पानी से ही दिया किसी ने झटका
कहीं पानी के लिये किसी ने किसी को पटका
कहीं पानी के लिये ही किसी का मुँह लटका।
पानी के लिये कभी कोई तरसा
पानी के लिये कभी कोई बरसा
पानी का रस्ता कभी पाट दिया
पानी का रस्ता कभी काट दिया।
पानी आधार है बिन पानी सब वीरान है
पानी से ही तो खेलती प्रकृति की मुस्कान है
पानी जीवन तत्व है प्रकृति का ममत्व है
रसायनिक गुण भी ऐसा कि इसका एक घनत्व है।
हम कहते हैं पानी है अमृत
इसके बिना है सब कुछ मृत
धरा भी रखती होगी कोई व्रत
मेघ भी होता होगा तभी तो नत।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
विषय ....... पानी/नीर/जल
विधा..........दोहा
************************************
नीर क्षीर का भेद तो, सदा हंस का काज।
भार सत्य का ही बढ़े,करता जग में राज।।1।
*****
नीर बिना सूना जहां , नीर जीव आधार।
नीर जगत से आप है, नीर प्राण साकार।।2।।
*****
संचय जल का कीजिए, पंच तत्व में एक।
रखें प्रदूषण हीन जल ,काम शुद्धि है नेक।।3।।
*****
घड़ा भरें जल बूँद से,भरें अश्रु जल नैन।
ताल भरें बरसात से, भरें भाव उर चैन।।4।।
*****
पानी पावस पाहुना , पाती पावन प्रेम।
पाखी प्रियतम पा भयो,पाचक पारस क्षेम।।5।।
************************************
स्वलिखित
*कन्हैया लाल श्रीवास 'आस'*
भाटापारा छ.ग.
विधा..........दोहा
************************************
नीर क्षीर का भेद तो, सदा हंस का काज।
भार सत्य का ही बढ़े,करता जग में राज।।1।
*****
नीर बिना सूना जहां , नीर जीव आधार।
नीर जगत से आप है, नीर प्राण साकार।।2।।
*****
संचय जल का कीजिए, पंच तत्व में एक।
रखें प्रदूषण हीन जल ,काम शुद्धि है नेक।।3।।
*****
घड़ा भरें जल बूँद से,भरें अश्रु जल नैन।
ताल भरें बरसात से, भरें भाव उर चैन।।4।।
*****
पानी पावस पाहुना , पाती पावन प्रेम।
पाखी प्रियतम पा भयो,पाचक पारस क्षेम।।5।।
************************************
स्वलिखित
*कन्हैया लाल श्रीवास 'आस'*
भाटापारा छ.ग.
ये
नद
विपिन
वनस्पति
घर गागर
जल बिन सून
संरक्षित- सागर।1।
ये
गंगा
धरती
शिवजटा
चहुँ तरफ
जल पटा पटा
अति निर्मल छटा ।2। 🙏
क्यों
सब
मानव
अभिमानी
कर्म की ठानी
अर्थ मोह वाणी
तो होता पानी पानी ।3।
नद
विपिन
वनस्पति
घर गागर
जल बिन सून
संरक्षित- सागर।1।
ये
गंगा
धरती
शिवजटा
चहुँ तरफ
जल पटा पटा
अति निर्मल छटा ।2। 🙏
क्यों
सब
मानव
अभिमानी
कर्म की ठानी
अर्थ मोह वाणी
तो होता पानी पानी ।3।
विषय - पानी/नीर/सलिल
विधा- कविता
जब न होगा धरा पर पानी ।
क्या होगी मानव कि कहानी ।।
सोचकर रूह ये काँपे है।
संकट क्यों नहि ये भाँपे है ।।
पानी की बरबादी रोकें ।
बढ़ती ये आबादी रोकें ।।
संसाधन सभी घट रहे हैं ।
क्योंकर सच से हम हट रहे हैं ।।
सिर्फ सरकार क्या करेगी ।
जन जागृति जो नही रहेगी ।।
जन जन में अलख जगाना है ।
जल को हमें 'शिवम' बचाना है ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 02/05/2020
विधा- कविता
जब न होगा धरा पर पानी ।
क्या होगी मानव कि कहानी ।।
सोचकर रूह ये काँपे है।
संकट क्यों नहि ये भाँपे है ।।
पानी की बरबादी रोकें ।
बढ़ती ये आबादी रोकें ।।
संसाधन सभी घट रहे हैं ।
क्योंकर सच से हम हट रहे हैं ।।
सिर्फ सरकार क्या करेगी ।
जन जागृति जो नही रहेगी ।।
जन जन में अलख जगाना है ।
जल को हमें 'शिवम' बचाना है ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 02/05/2020
विषय- नीर/जल/सलिल
२-५-२०
क्षिति जल पावक गगन समीर
पंचतत्वों में एक है नीर।।
बिन इसके मन होत अधीर
तर जाते हम पी के नीर।।
जल ही जीवन है कहते हैं सब
बिन इसके हम रहते हैं कब।।
हर बाग उपवन रहे हरा भरा
उतरे वर्षा जब वसुंधरा।।
बहे गंगा, यमुना, सरस्वती
निश्छल पावन यही नियति।।
रगों में रक्त की रवानी
ग़र शरीर में दौड़े पानी।।
कभी फसलों की हरियाली है
कभी शिव की जटा निराली है।।
पर्वतों से गिरता जल प्रपात है
मिटाता यह शोक-संताप है।।
नदियां गिरती सागर सागर
छलके पनघट गागर गागर।।
अंत समय मुख में डाल मोक्ष प्राप्ति का बनता मार्ग
निज पानी बरकत करे चले मनुज गर सनर्माग।।
स्वरचित एवं प्रकार्शनार्थ
प्रियंका प्रिया, पटना बिहार।।
२-५-२०
क्षिति जल पावक गगन समीर
पंचतत्वों में एक है नीर।।
बिन इसके मन होत अधीर
तर जाते हम पी के नीर।।
जल ही जीवन है कहते हैं सब
बिन इसके हम रहते हैं कब।।
हर बाग उपवन रहे हरा भरा
उतरे वर्षा जब वसुंधरा।।
बहे गंगा, यमुना, सरस्वती
निश्छल पावन यही नियति।।
रगों में रक्त की रवानी
ग़र शरीर में दौड़े पानी।।
कभी फसलों की हरियाली है
कभी शिव की जटा निराली है।।
पर्वतों से गिरता जल प्रपात है
मिटाता यह शोक-संताप है।।
नदियां गिरती सागर सागर
छलके पनघट गागर गागर।।
अंत समय मुख में डाल मोक्ष प्राप्ति का बनता मार्ग
निज पानी बरकत करे चले मनुज गर सनर्माग।।
स्वरचित एवं प्रकार्शनार्थ
प्रियंका प्रिया, पटना बिहार।।
दिनांक-२/५/२०२०
शीर्षक पानी।
जल संकट पर बात करें
मिलकर हो निदान
जल की बर्बादी मत करें
ये कह गये चतुर सुजान
दिन दुनिया की खबर नहीं?
सिर्फ अपना रखे ध्यान
ये नही सही मानवता
करे जग का भी कल्याण।
पानी जब खत्म हो जाय
हो जाय धरती विरान।
ईश दिये हमे उपहार।
हम सब रखे इसका ध्यान।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव (विपुला)।
शीर्षक पानी।
जल संकट पर बात करें
मिलकर हो निदान
जल की बर्बादी मत करें
ये कह गये चतुर सुजान
दिन दुनिया की खबर नहीं?
सिर्फ अपना रखे ध्यान
ये नही सही मानवता
करे जग का भी कल्याण।
पानी जब खत्म हो जाय
हो जाय धरती विरान।
ईश दिये हमे उपहार।
हम सब रखे इसका ध्यान।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव (विपुला)।
भावों के मोती।
विषय-पानी/नीर /सलिल
स्वरचित।
हो नैनों में नीर तो
दर्द बयां करता है।
मर जाए आंखों का पानी
बेशर्म कहा जाता है।।
करूण हृदय में भरा रहे
हरदम शीतल रखता।
क्रोध भाव में रहता तो
खून गरम हो जलता।।
शर्म,हया, चमक और श्वेद
बने मुहाबरे इस पर अनेक।
पानी पी पी कर कोसना
पानी मर जाना या पानी फिर जाना।।
जल कहो या नीर कहो
कहो सलिल या या पानी।
सृष्टि के कण-कण में छाई
इसकी नमी रवानी।।
जल से निर्मित मानव भी है
और उसका आचरण भी।
हो ना जिसकी आंखों पानी
क्या होगा उसका आचरण?
पानी का सवाल सबसे बड़ा
चाहे हो नदी झील या नयन।
हर एक का महत्व है अपना
स्वच्छ रखें भू पर हो या मन।।
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
02/05/2020
विषय-पानी/नीर /सलिल
स्वरचित।
हो नैनों में नीर तो
दर्द बयां करता है।
मर जाए आंखों का पानी
बेशर्म कहा जाता है।।
करूण हृदय में भरा रहे
हरदम शीतल रखता।
क्रोध भाव में रहता तो
खून गरम हो जलता।।
शर्म,हया, चमक और श्वेद
बने मुहाबरे इस पर अनेक।
पानी पी पी कर कोसना
पानी मर जाना या पानी फिर जाना।।
जल कहो या नीर कहो
कहो सलिल या या पानी।
सृष्टि के कण-कण में छाई
इसकी नमी रवानी।।
जल से निर्मित मानव भी है
और उसका आचरण भी।
हो ना जिसकी आंखों पानी
क्या होगा उसका आचरण?
पानी का सवाल सबसे बड़ा
चाहे हो नदी झील या नयन।
हर एक का महत्व है अपना
स्वच्छ रखें भू पर हो या मन।।
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
02/05/2020
2/5/2020
विषय-पानी/नीर/सलिल
स्वरचित
था झरनों का मीठा पानी
हरियाली पहाड़ों पे धानी
जो रातों को जुगनू,से टिमटिमाते
वो दिन में पहाड़ों पे,घर हैं बताते
पहाड़ों पे रास्ते बड़े संकरे-संकरे
के नीचे थी खाई नदिया को जकड़े
था हरियाली का ,खूबसूरत नज़ारा
खिले फूल महके,चमन फिर सारा
लगे स्वर्ग में हम,कहाँ आगये हैं
के बादल भी आकर,यही छा गए हैं
लगे ऐसा,खूब इन पलों को मैं जी लूँ
के तस्वीर ले लूँ और कितना मैं खेलूं
ये किन्नौर का वाकया,मन मे आया
ये शिमला से पियो के,रास्ते ने लाया
हिमाचल सफर की,सुनहरी हैं यादें
के खुद से किये थे,हमने कुछ वादे
के जाएंगे हम ,फिर से जीने वहाँ पे
मगर तुम चले अब,गए फिर कहाँ पे
अधूरे ये सपने हैं,आंखों में रहते
ना जाने ये कब फिर,ठलक कर हैं बहते
डॉ. शिखा
विषय-पानी/नीर/सलिल
स्वरचित
था झरनों का मीठा पानी
हरियाली पहाड़ों पे धानी
जो रातों को जुगनू,से टिमटिमाते
वो दिन में पहाड़ों पे,घर हैं बताते
पहाड़ों पे रास्ते बड़े संकरे-संकरे
के नीचे थी खाई नदिया को जकड़े
था हरियाली का ,खूबसूरत नज़ारा
खिले फूल महके,चमन फिर सारा
लगे स्वर्ग में हम,कहाँ आगये हैं
के बादल भी आकर,यही छा गए हैं
लगे ऐसा,खूब इन पलों को मैं जी लूँ
के तस्वीर ले लूँ और कितना मैं खेलूं
ये किन्नौर का वाकया,मन मे आया
ये शिमला से पियो के,रास्ते ने लाया
हिमाचल सफर की,सुनहरी हैं यादें
के खुद से किये थे,हमने कुछ वादे
के जाएंगे हम ,फिर से जीने वहाँ पे
मगर तुम चले अब,गए फिर कहाँ पे
अधूरे ये सपने हैं,आंखों में रहते
ना जाने ये कब फिर,ठलक कर हैं बहते
डॉ. शिखा
2/5/2020- *पानी*
स्वरचित
स्वरचित
पानी की है ,खूब कहानी
कहती जाएं,दादी-नानी
आंखों में,अश्रु बन जाये
बन गंगा जल ,मान बढ़ाये
सागर में,खारा कहलाये
नदियां जिसमें ,सब मिल जाएं
हम इसको ,दूषित कर जाएं
बारिश का ये,शुद्ध कहाए
बाढ़ में जो,सम्हला ना जाये
एच टू ओ ,विज्ञान बताये
इतने में भी पार ना पाए
प्लास्टिक में भर के बिक जाए
उसमें भी एक डेट छपायें
एक्सपायरी से मरा बताएं
डॉ. शिखा
विषय - पानी/नीर / जल
02/05/20
शनिवार
मुक्तक
पानी ही जीवन में सबसे श्रेष्ठ तत्त्व कहलाया है।
इससे ही धरती के कण-कण का सिंचन हो पाया है।
किन्तु प्रदूषण ने पानी को विषमय तत्त्व बना डाला-
अब जल के सब स्रोतों पर गहरा संकट मंडराया है।
पानी की शुद्धता हमारे प्रतिदिन का अवधान बने।
व्यर्थ न इसकी एक बूँद हो,ऐसा उचित विधान बने।
करें सभी संकल्प आज से जल संरक्षण करने का-
तभी धरा पर पानी सबके जीवन का सुनिधान बने।
धरा पर रहने वालों के लिए वरदान पानी है।
हर एक इंसां की आंखों में निहित सम्मान पानी है।
बिना इसके कोई भी शख्स जीवित रह नहीं सकता-
सभी जीवों की काया में जो फूंके जान,पानी है ।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
02/05/20
शनिवार
मुक्तक
पानी ही जीवन में सबसे श्रेष्ठ तत्त्व कहलाया है।
इससे ही धरती के कण-कण का सिंचन हो पाया है।
किन्तु प्रदूषण ने पानी को विषमय तत्त्व बना डाला-
अब जल के सब स्रोतों पर गहरा संकट मंडराया है।
पानी की शुद्धता हमारे प्रतिदिन का अवधान बने।
व्यर्थ न इसकी एक बूँद हो,ऐसा उचित विधान बने।
करें सभी संकल्प आज से जल संरक्षण करने का-
तभी धरा पर पानी सबके जीवन का सुनिधान बने।
धरा पर रहने वालों के लिए वरदान पानी है।
हर एक इंसां की आंखों में निहित सम्मान पानी है।
बिना इसके कोई भी शख्स जीवित रह नहीं सकता-
सभी जीवों की काया में जो फूंके जान,पानी है ।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
विषय-जल ,पानी,नीर-
दिनांक -2.5.2020
विधा ---गीत
डग डग रोटी पग पग नीर
वाली गागर रीती है।
पानी केवल हम ना पीते
ये धरती भी पीती है ।
अपनी प्यास बुझाई हमने
पर धरती को भूल गए।
इसीलिए धरती केकाँधे
अनचाहे ही झूल गए।
वर्षा का पानी धरती में पहुँचे तो बाजी जीती है--
नदी नाले सभी हैं रीते
ताल गढ़ी भी सूख गए।
कुएं बावड़ी का क्या कहना
हैंडपम्प भी रूठ गए ।
छत का पानी हैंडपम्प में डालो सही ये नीती है --
दोहन करते हाथ न रोका
खूब निकाला जल भाई
अब जब त्राहि त्राहि मची है
लगता अकल ठिकाने आई।
स्वयं नियंत्रण और त्याग से मिट जाए जो भीती है ---
डग डग रोटी पग पग नीर वाली गागर रीती है ।
******स्वरचित ******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
दिनांक -2.5.2020
विधा ---गीत
डग डग रोटी पग पग नीर
वाली गागर रीती है।
पानी केवल हम ना पीते
ये धरती भी पीती है ।
अपनी प्यास बुझाई हमने
पर धरती को भूल गए।
इसीलिए धरती केकाँधे
अनचाहे ही झूल गए।
वर्षा का पानी धरती में पहुँचे तो बाजी जीती है--
नदी नाले सभी हैं रीते
ताल गढ़ी भी सूख गए।
कुएं बावड़ी का क्या कहना
हैंडपम्प भी रूठ गए ।
छत का पानी हैंडपम्प में डालो सही ये नीती है --
दोहन करते हाथ न रोका
खूब निकाला जल भाई
अब जब त्राहि त्राहि मची है
लगता अकल ठिकाने आई।
स्वयं नियंत्रण और त्याग से मिट जाए जो भीती है ---
डग डग रोटी पग पग नीर वाली गागर रीती है ।
******स्वरचित ******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
विषय-पानी/नीर/सलिल
पानी है संसार के, जीवन का आधार।
बिन पानी संभव नहीं, दुनिया का व्यापार।।
दैनिक जीवन के लिए, इसका बड़ा महत्व ।
जल से मिलकर ही बने, पांँच सृष्टि के तत्व ।।
नीर भरी गगरी बनी, यह माटी की देह।
लुढ़की गगरी जल बहा, रिक्त हुआ तन -गेह।।
सलिलयुक्त नदियांँ बहें, लिए जीवनाधार।
शस्य श्यामला भू रहे, छाई रहे बहार।।
नीर भरे बादल झुके ,वर्षा को तैयार।
इंद्रधनुष की चाप भी, खिंची क्षितिज के पार।।
आंँखो का पानी मरे, जन हों लज्जा हीन।
आन बान के साथ ही, पाएंँ मान प्रवीन।।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर,उत्तरप्रदेश
पानी है संसार के, जीवन का आधार।
बिन पानी संभव नहीं, दुनिया का व्यापार।।
दैनिक जीवन के लिए, इसका बड़ा महत्व ।
जल से मिलकर ही बने, पांँच सृष्टि के तत्व ।।
नीर भरी गगरी बनी, यह माटी की देह।
लुढ़की गगरी जल बहा, रिक्त हुआ तन -गेह।।
सलिलयुक्त नदियांँ बहें, लिए जीवनाधार।
शस्य श्यामला भू रहे, छाई रहे बहार।।
नीर भरे बादल झुके ,वर्षा को तैयार।
इंद्रधनुष की चाप भी, खिंची क्षितिज के पार।।
आंँखो का पानी मरे, जन हों लज्जा हीन।
आन बान के साथ ही, पाएंँ मान प्रवीन।।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर,उत्तरप्रदेश
पानी की एक एक बूँद हैं अमूल्य,
कभी ना हो प्रदुषित करने की भूल।
पानी की कमी आ गई हैं संसार में,
पानी के खातिर वृक्षारोपण अनुकूल।।
पानी की...............................
प्यासे को पता चले पानी का मूल्य,
पानी से हो फसलें फल और फूल।
पानी के लियें बनायें कुँआ तालाब,
पानी सिंचे तो बैठाये धरती की धूल।।
पानी की...........................
दीनदयाल सोनी "स्वर्ण"
बाँदा उ.प्र.
कभी ना हो प्रदुषित करने की भूल।
पानी की कमी आ गई हैं संसार में,
पानी के खातिर वृक्षारोपण अनुकूल।।
पानी की...............................
प्यासे को पता चले पानी का मूल्य,
पानी से हो फसलें फल और फूल।
पानी के लियें बनायें कुँआ तालाब,
पानी सिंचे तो बैठाये धरती की धूल।।
पानी की...........................
दीनदयाल सोनी "स्वर्ण"
बाँदा उ.प्र.
आज का विषय है- पानी/ सलिल/ नीर
विधा- हाइकु
(1) सर्वतोमुखं ,
जल जन जीवन
जीवन सार।
(2) हे! धराधर,
कातर विलोचन
सकल विश्व ।
(3) सुर सरिता,
अमृतमय नीर
मोक्ष दायिनी।
यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
श्रीमती स्मृति श्रीवास्तव ' रश्मि '
विधा- हाइकु
(1) सर्वतोमुखं ,
जल जन जीवन
जीवन सार।
(2) हे! धराधर,
कातर विलोचन
सकल विश्व ।
(3) सुर सरिता,
अमृतमय नीर
मोक्ष दायिनी।
यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
श्रीमती स्मृति श्रीवास्तव ' रश्मि '
छूकर देखो तुम पानी के मन को,
सहला देगा वो तेरे जीवन को।
प्यास बुझाने जुड़ जाएगा तुमसे-
सुखद अनुभूति पहुँचायेगा तन को।।
छुपी जल में है एक नई कहानी,
सींचकर तन को देता है जवानी।
रुक जाए अगर यह चलती जिंदगी-
भरता यहीं है इसमें बस रवानी।।
~परमार प्रकाश
सहला देगा वो तेरे जीवन को।
प्यास बुझाने जुड़ जाएगा तुमसे-
सुखद अनुभूति पहुँचायेगा तन को।।
छुपी जल में है एक नई कहानी,
सींचकर तन को देता है जवानी।
रुक जाए अगर यह चलती जिंदगी-
भरता यहीं है इसमें बस रवानी।।
~परमार प्रकाश
02/05/2020
विषय:-पानी, नीर,सलिल
1
दिन बहुरे
पानी भरे बादल
नभ में घिरे
2
नयन नीर
बिटिया की विदायी
हृदय पीर
3
जल जीवन
पंचतत्व से बना
मनुज तन
4
कष्ट अपार
न मिला सच्चा प्यार
नयन नीर
5
सम्मान भीति
पानी बिना जीवन
मौत की भांति
मनीष
विषय:-पानी, नीर,सलिल
1
दिन बहुरे
पानी भरे बादल
नभ में घिरे
2
नयन नीर
बिटिया की विदायी
हृदय पीर
3
जल जीवन
पंचतत्व से बना
मनुज तन
4
कष्ट अपार
न मिला सच्चा प्यार
नयन नीर
5
सम्मान भीति
पानी बिना जीवन
मौत की भांति
मनीष
विषय-नीर/पानी/सलिल
विधा- हाईकु
१
नयन नीर
हृदय की तड़प
व्यथा सुनाए
२
आँखे चमकी
देखाकर व्यंजन
मुहँ में पानी
३
गंगा का पानी
लगाकर ड़ुबकी
धुलते पाप
**
स्वरचित-रेखा रविदत्त
विधा- हाईकु
१
नयन नीर
हृदय की तड़प
व्यथा सुनाए
२
आँखे चमकी
देखाकर व्यंजन
मुहँ में पानी
३
गंगा का पानी
लगाकर ड़ुबकी
धुलते पाप
**
स्वरचित-रेखा रविदत्त
★दिनांक०२-०५-२०२०
★दिन:-शनिवार
★विषय:-पानी नीर सलिल
★विधा:-दोहा छंद
सेना पर अंगुलि उठा , करते नित्य बवाल।
आँखों का #पानी मरा , देश किया बदहाल।।०१।।
किया प्रदूषित सोच से , सत्य अपावन #नीर।
गद्दारों को देश की , नहीं दीखती पीर।।०२।।
नित्य #सलिल में घोलते , असरदार विष रोज।
मान सरोवर में खिले , कैसे दिव्य सरोज।।०३।।
गंध जाफ़रानी नहीं , लाता मलय समीर।
उग्रवाद की आँधियाँ , देतीं अंतस चीर।।०४।।
गंगा गीता गाय का , नित होता अपमान।
#पानी आँखों का मरा , किस कारण श्रीमान।।०५।।
★रचनाकार:-
अनिल कुमार शुक्ल 'अनिल'
दुर्गाप्रसाद , बीसलपुर
पीलीभीत ,उत्तरप्रदेश
★स्वरचित/स्वप्रमाणित
★विषय:-पानी नीर सलिल
★विधा:-दोहा छंद
सेना पर अंगुलि उठा , करते नित्य बवाल।
आँखों का #पानी मरा , देश किया बदहाल।।०१।।
किया प्रदूषित सोच से , सत्य अपावन #नीर।
गद्दारों को देश की , नहीं दीखती पीर।।०२।।
नित्य #सलिल में घोलते , असरदार विष रोज।
मान सरोवर में खिले , कैसे दिव्य सरोज।।०३।।
गंध जाफ़रानी नहीं , लाता मलय समीर।
उग्रवाद की आँधियाँ , देतीं अंतस चीर।।०४।।
गंगा गीता गाय का , नित होता अपमान।
#पानी आँखों का मरा , किस कारण श्रीमान।।०५।।
★रचनाकार:-
अनिल कुमार शुक्ल 'अनिल'
दुर्गाप्रसाद , बीसलपुर
पीलीभीत ,उत्तरप्रदेश
★स्वरचित/स्वप्रमाणित
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