Friday, January 31

"अभिनंदन/ तिलक"'31जनवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-642
विषय अभिनंदन, तिलक
विधा काव्य

31 जनवरी 2020,शुक्रवार

करें अभिनंदन मातृभूमि का
पालन पौषण करती सबका।
निर्मल जल भोजन देती नित
सदा ध्यान रखती हर जन का।

सिर किरीट कश्मीर सुहाना
सागर नित ही चरण पखारे।
वसुंधरा के हर कण कण में
मलय पवन प्रिय बहे बहारें।

आओ केसर तिलक लगावें
प्रिय भारत को आज सजाएँ।
शस्य श्यामला वसुंधरा हित
मन विभोर गीतों को गाए।

जो देती है लेती कुछ नहीं
जो सहकर भी विपदा हरती।
औषध रंग सुनहरे देती नित
पालन पौषण सबका करती।

वंदन अभिनंदन करते हम
तिलक लगा कर शीश झुकावें।
ऋण उऋण नहीं हो सकते माँ
अद्भुत छवि जननी मन भावे।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनांक- 31/01/2020
शीर्षक-"अभिनंदन/तिलक"
वि
धा- छंदमुक्त कविता
******************
एक तिलक माथे पर कर दो,
एक तिलक मेरी तलवार पर,
ओ दुश्मन!तेरी अब खैर नहीं,
गर्दन तेर होगी अब धार पर |

अभिनंदन करते उन वीरों का,
जो देश को गौरवान्वित करते,
जान हथेली पर रखकर वो,
खतरों से बिल्कुल नहीं डरते |

कभी तलवार, कभी भाला और
कभी बन्दूक वो खूब चलाते,
भारत भूमि की रक्षा ख़ातिर,
ऐसे वीर बलिदान हो जाते |
जय हिंद

स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
विषय - अभिनंदन
प्रथम प्रस्तुति


यूँ तो स्वागत में कमी न की थी
गर्मजोशी से आवभगत की थी।।
उनके हाथों पानी पिलाना
वर्षों बाद मिली खुशनसीबी थी।।

एक और दर्द जगा गयी थी
वो अपना फर्ज़ निभा गयी थी।।
हम ताकते रह गये वो नयन
वो घड़ी जल्द फ़ना भयी थी।।

वो अभिनंदन वो इस्तक़बाल
करता रहा क्या क्या न सवाल।।
इतने दिन बाद आया तुम्हे
आज मुझसे मिलने का ख्याल।।

जैसे हमसे वो कह रही थी
ये बात रगों में बह रही थी।।
अभिनंदन की सुखद घड़ी वो
'शिवम' शीघ्र ही ढह रही थी।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 31/01/2020
31 /1/2020
बिषय, अभिनंदन ,,तिलक

भारत के वीरों का अभिनंदन करती है माँ भारती
धरती माँ ने थाल सजाया और उतारे आरती
डाल गले में जयमाल आओ तुम्हें पुकारती
देश की आन बान रखने को सदा हुंकारती
बलशाली समृद्धशाली भारत को बनाना है
देश की खातिर मर मिटेंगे दुनिया को समझाना है
बढ़े.चलो.बढ़े चलो पीछे मुड़कर नहीं देखना
जिस मिट्टी में जन्म लिया उसी में प्राण न्यौछावर कर देना
हिन्दी हैं हम वतन इसे हिंदु राष्ट्र बनाऐंगे
नहीं झुके हैं नहीं झुकेंगे तिरंगा अपना लहराऐंगे
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
31/1/2820/शुक्रवार
*अभिनंदन, तिलक*

काव्य

अभिनंदन हम वंदन करते,
आप हमारे द्वार पधारें।
पूजन अर्चन तिलक करें मां,
आप हमारे भाग्य संवारें।

नित नूतन सबका हो उत्कर्ष।
मां सदा सुखद रहे हर बर्ष।
सभी रहें आनंदित माते
सबको मिलता रहे श्रीहर्ष।

हो अभिनंदन जवान किसान।
दोनों रखते देश का ध्यान।
रक्त तिलक इस भू को करते,
करें अभिनंदन वेद पुराण।

करें अभिनंदन अतिथि महान।
हो अभिनंदन देश गुणगान।
मान बांटकर मान मिल,
करें सदा हम सबका सम्मान।

अभिनंदन हो ज्ञानवान का।
सदा वंदन हो शीलवान का।
जो जैसा हो पूजा उसकी,
आज भारत में रखलें ध्यान।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म प्र
*जीवन है तेरा अभिनंदन*

खुशियों का नहीं पिटारा है ,
किस्मत का कोई मारा है ,
भोर कहीं,सांझ का तारा है ,
सागर का कर लेते मंथन ।
जीवन है. तेरा अभिनंदन ।।

नहीं आज कोई ठिकाना है ,
तिनके का नहीं सहारा है,
जग की भी रीत निभाना है ,
कर ले चाहे कितना क्रंदन ।
जीवन है तेरा अभिनंदन ।।

कितना भी कोई सयाना हो ,
मन का मन से याराना हो ,
धोखा देने से अच्छा ,खा लेना ,
मुक्त करें कितने ही बंधन ।
जीवन है तेरा अभिनंदन ।।

मौसम का हाल पुराना है ,
गिरता चढ़ता सा पारा है ,
पूछे तो हाल सुहाना है ,
अपना मन कर लो चंदन ।
जीवन है तेरा अभिनंदन ।।

मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित
स्वागत है ऋतुराज का

झूम-झूमकर नाचे तितली,संगीत मधुकर की साज का।
पीली चुनरी ओढ़े धरती ,करती स्वागत ऋतुराज का।।

रंग बिरंगे फूल खिले हैं ,खेत , बाग सब महक रहे हैं ।
तीतर,मोर ,पपीहा ,तितली,शाखा -शाखा चहक रहे हैं।।
क्या कहूँ लिखा नहीं जाता,ये अद्भुत नजारा आज का ।
पीली चुनरी ओढ़े धरती ,करती स्वागत ऋतुराज का।।

जीव जंतु मानव सब प्राणी,जिक्र कर रहे हरियाली का।
बसंत ऋतु संदेशा लाई है धरती पर खुशहाली का ।।
पैदावार फ़सल की कहती,घर होगा भरा अनाज का ।
पीली चुनरी ओढ़े धरती ,करती स्वागत ऋतुराज का।।

सभी पुलकित वन,उपवन हुए,राग हवा ने दिया है छेड़।
मंद - मंद हँसती है कलियाँ ,फसलों के संग नाचें पेड़ ।।
अली कली को दे संदेशा,सभी खुशियों के आगाज का।
पीली चुनरी ओढ़े धरती ,करती स्वागत ऋतुराज का।।

मौसम में बदलाव हुआ है , नित बसंत ऋतु के आने में।
मधुमक्खियाँ वयस्त बहुत हैं,भँवरों संग आज गाने में।।
आनंद लेते सब वन्य प्राणी,इस मौसम खुशमिजाज का।
पीली चुनरी ओढ़े धरती ,करती स्वागत ऋतुराज का।।

नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित रचना
मौलिक

तिथि🌻३१/१/२०२०
🌾🌻🌺🌾🌻🌺🌾🌻🌺🌾🌻🌺
करे के अभिनंदन रंग भरलाती वसंत बेला
धरा के सौन्दर्य का,🌺🌻🌾
पतझर दुश्मन हर्ष भरी बहारों का,
लगाती तिलक वसंत के रंग दारों का ।
🌺🌻🌾🌺🌻🌾
विखर जाती पंखुड़ियाँ,
वसंत प्रेम लौटाता रंग डाली का, 🌺🌻🌾
नित गिरते फूल अभिनंदन को उगते,
वसंत राज धरापर बहारों का ।🌺🌻🌾🌻🌾
खिली वसंत की भौर कुंज-कुंज में,
पोर-पोर पर तिलक नव हर्ष सुमनौ का ।🌺🌻🌾🌺🌻🌾
पीली धानी चुनर ओढ़ रही धरणी,
छाया रंग पीताम्बरी मन उपवन में,
अभिनंदन का तिलक सजा श्रृंगार शिखरों पर धरणी के उद्गारों का ।

🌺🌻🌾🌺🌻🌾हिम श्रृंग करते बृक्ष लता श्वेत स्वावंत कर,
🌺🌻🌺🌻🌾
भौर की वैला स्वर्ण रंगित हो छाया ऋतु राज शिखरों पर ।
🌺🌻🌾🌺🌻🌾
शिशिर दाह-कराह दबी खुशियाँ अनंत,
हर्षित हुए जीव-जंतु भोर वसंत ।
🌺🌻🌾🌺🌾🌻
माथे सज रही तिलक भरी विंदिया,
पीली धरणी पीताम्बर धारण जीव अनंत ।🌺🌻🌾🌺🌻🌾🌻🌾
पतझर ने किये थे बृक्ष लाता निहंग,
मधुकर हृदय जागी उमंग अनंत ।🌺🌻🌾🌺🌻🌾🌺🌻🌾
खगों का मधुरिम कलरव स्नेहिल ध्वनि गूंजा गगन, 🌺🌻🌾🌺🌻🌾
अभिनंदन को कलि काग श्वेत हुए,
सजा रहे तिलक मृग नयनों को हर्ष अनंत ।
🌺🌻🌾🌻🌾🌺🌾
गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक


31/01/20
शुक्रवार
कविता

तिलक देश के सैनिक के मस्तक पर जब लग जाता है,
मातृभूमि पर मर-मिटने का भाव प्रबल हो जाता है।

कितनी ही बाधाएं उसके पथ को रोक खड़ी होतीं,
वह उन सबको रौंद विजय-पथ पर आगे बढ़ जाता है।

आतप, शीत और बारिश में सरहद पर सीना ताने,
वह फौलादी बनकर भारत का रक्षक बन जाता है।

कठिन परिश्रम और अनुशासन उसमें क्षमता भरते हैं,
उसके मन में शत्रु-विजय का लक्ष्य सजगता लाता है।

कभी शत्रु के सम्मुख उसका शीश नहीं झुक पाता है,
वह जाबांज समर में उनको ऊँचा करके जाता है।

उसके ओजस्वी भावों से जन- जन प्रेरित होता है,
देश की खातिर कुछ करने को हृदय विकल हो जाता है।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

विषय : अभिनंदन, तिलक
विधा : वर्ण पिरामिड

तिथि : 31.1.2020

1
लो
अहा
वसंत
हर्षोल्लास
अभिनंदन
सुगंध चंदन
श्री-मौसम वंदन।

2
हां
मान
तिलक
ज़िम्मेदारी
कर्तव्य भारी
समर्पित पारी
निभाना हितकारी।
--रीता ग्रोवर
--स्वरचित

तिथि : 31 जनवरी 2020 शब्द. : " अभिनंदन..."

अभिनंदन है ...! अभिनंदन को मातृभूमि में ।
जो परास्त कर आया दुश्मनों को रणभूमि में ।।

महाभारत के अभिमन्यु जो फंस गए थे ,
दुश्मनों के चक्रव्यूह में ।

महान भारत के अभिनंदन जो फंस गए थे ,
दुश्मनों के चक्र गृह में ।।

आ रहा है शूरवीर परम योद्धा मातृभूमि में ।
अभिनंदन है ...! अभिनंदन को मातृभूमि में ।।
जो परास्त कर आया दुश्मनों को रणभूमि में ।।।

वायु पुत्र पवन पुत्र भारत वर्ष के समीर ।
दुख के आंसू बह चले यह खुशी के नीर ।।

फूलों की बरसात हो रहा आज आसमानों से ।
एक झलक पाने को व्याकुल नैन अरमानों से ।।

उस मां को नमन जिन्होंने जन्म दिया अभिनंदन ।
उस पिता को वंदन जिन्होंने नाम दिया अभिनंदन ।।

अभिनंदन को अभिनंदन है ...! मातृभूमि में ।
जो परास्त कर आया दुश्मनों को रणभूमि में ।।

मनोज शाह मानस
सुदर्शन पार्क
मोती नगर नई दिल्ली

विषय, अभिनंदन, तिलक
३१,१,२०२०

शुक्रवार

अपने देश की माटी हमको , चंदन जैसी लगती है ।
तिलक करूँ नित माथे पर , खुशबू प्यारी लगती है।

सभ्यता हमारी अदुभुत न्यारी, हमें भारत माता भाती है,
है भाषा पहनावा जुदा जुदा, विविधता में एकता रहती है।

अभिनंदन हम नदियों का करते , हमें जीवन जिनसे मिलता है।
स्वागत हम ऋतुओं का करते , परिचय रंगों से होता है।

यहाँ तिलक लगवाकर बहना से, गौरवान्वित भाई होता है।
निभाने को भूमिका रक्षक की , वह हरदम तत्पर रहता है।

तिलक आन अभिनंदन वीरों का , लहू से निखारा जाता है ।
कहीं शर्मशार न हो मानवता, हमें इंसान बनाया जाता है।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .

31/1/20

हे शारदे माँ
हमे तार दे माँ
चरणों मे तेरी
शीश झुकाते है माँ

तू ज्ञान की देवी
कामलवासनी माँ।
हाथो में वीणा
धारण करती माँ।

नही ज्ञान सुर का
न शब्दो ज्ञान माँ।
कलम ले चली हूँ
तेरा बखान माँ।

अज्ञानी हूं मैं
हटा दो तिमिर माँ।
ज्ञान का दीपक
जला दो मेरी माँ।

शब्दो की माला
लाई बना माँ।
स्वीकार कर लो
हे शारदे माँ।

करती हूं बंदन
सुरों का अभिनंदन माँ
दया की मया को
बनाए रखना मेरी माँ

स्वरचित
मीना तिवारी

नमन भावों के मोती
विषय - अभिनंदन

द्वितीय प्रस्तुति

🌹🌹🌹🌹🌹

अभिनंदन की अहमियतें
कहायँ बहुत बड़ीं यारा।
सोचो सदा सच्चे मन से
दिल ने है किसे पुकारा।

अभिनंदन नही फूलमाला
यह तो बाह दिखाबा सारा।
अभिनंदन है इक हृदय से
दुजे का स्वत: खुलना द्वारा।

हृदयाभिनंदन भी कहते
जितो हृदय रखो दिल न्यारा।
करो जग में ऐसा 'शिवम'
हो संसार स्वतः तुम्हारा।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 31/01/2020

विषय--अभिनंदन / तिलक
विधा-मुक्त

दिनांक-३१ /०१ /२०२०

कर तिलक गोरोचन से
भाल पे जवान की
देती हैं अस्त्र-शस्त्र
हाथों से अपने
करती हैं विदाई सीना तान
देश की सुरक्षा के लिए

एक विदाई बेटी की भी
करती माँ बड़े गर्व ओ'
नत मस्तक हो अश्रुपूर्ण नेत्र लिए /तिलक वर के भाल पे

करती है माँ तिलक बेटे के भाल पर पर जब
जब वो कर्म कोई गौरव का
करके घर आता है

बदल गया अब वक्त
बेटियों की बारी है आई
धरती से आसमान तक
बेटियों की ही करनी छाई

करो अभिनंदन अब
बेटी के जन्म पर
उस माँ का जिसकी कोख से
ऐसी बेटी ने जिंदगी पाई

तिलक करो अब बेटियों के
भाल पर
जिनके कार्यों ने भारत माँ
की शान बढ़ाई।

डा.नीलम

विषय-दोहा

माथे पर रोली तिलक, पगड़ी तुर्रेदार।
दरवाजे दूल्हा खड़ा, नजर न हटती यार।।

माथे पर चंदन तिलक, उर वैजंती माल ।
होठों पर वंशी धरे , बृजवासी गोपाल।।

कुमकुम का माथे तिलक, चुनरी ओढ़ी लाल।
नयनों में शर्मो हया,लाल हो रहे गाल।।

तिलक लगाया भाल पर, जोगी जैसा वेश।
लिया कमंडल हाथ में,फिरता देश विदेश।।

माथे सिंदूरी तिलक,उड़ता खूब गुलाल।
टेसू की फैली महक,चारों ओर धमाल।।

सरिता गर्ग

भावों के मोती
31.1.2020

शुक्रवार
शीर्षक -
अभिनंदन/ तिलक
विधा -मुक्तक

(1)
#अभिनंदन है अभिनंदन का
देश करे वंदन उनका
सच्चा सैनिक देशभक्त है
दहलाया दिल दुश्मन का ।।

(2)
माँ सरस्वती वीणापाणि, माँ क् वंदन, #तिलक करें
मातृभूमि की पावन धरती,
मंहका चंदन तिलक करें।।

स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘

विषय-अभिनन्दन/तिलक

अभिनंदन करते हैं हम,
सुर की देवी तेरा।
हंस वाहिनी पूरित कर,
ह्रदय ज्ञान से मेरा।

धवल वसनी छिन्न कर दे,
अंधकार अज्ञान का।
शारदे!वीणाधारिणी,
केंद्र है तू ध्यान का।

तेरी वंदना कर रही,
करबद्ध प्रकृति सारी।
अभिनंदन गीत गा रही,
काली कोयल काली।

करने को तिलक तुम्हारा,
हँसता बसंत आया।
दहके पलाश ने तिलक में
रँग अपना भरवाया।

जय माँ! कृपा कर,
हम मूढ़ शरण में हैं।
कर दो कृपा दृष्टि हम पर
देवि! तेरे चरण में हैं।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश

विषय -तिलक
दिनांक ३१-१-२०२०
तिलक लगा ललाट,माँ का लाल विदा हुआ।
धरती माँ का कर्ज अदा करने,वह लाल चला।।

दीवाना वह मातृभूमि का,हो तैयार रण चला।
हाथ तलवार,संग माँ का आशीष वो ले चला।

मातृभूमि रक्षार्थ,कफन सर वो बांध चला।
मातृभूमि कर्ज अदा करने,माँ का दीवाना चला।

मर कर अमर,नाम माँ तेरा लाल कर गया।
जननी तिलक लगा ललाट,अंतिम विदा ले चला।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

दिनांक_३१/१/२०२०
शीर्षक-अभिनंदन


एक एक सैनिक का हो अभिनंदन
जो रहते सीमा पर तैनात
घर बार की चिंता छोड़ कर
करते दुश्मनों का काम तमाम।

लड़े विरूद्ध जो अन्याय का
करें सदा उनका अभिनंदन
करे दंडित उनको सदा
क्यों करें उसका अभिनंदन?

तनया जन्म ले जब अँगना
करे सदा उसका अभिनंदन
हर प्रतिभा का हो अभिनंदन
करे अभिनंदन कृषक की सदा।

माता पिता का करें अभिनंदन
जिसने हमें जन्म दिया
करे अभिनंदन प्रभु की सदा
जिसने रचा ये सुनहरा संसार।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव
शीर्षक- अभिनन्दन

अय धरा के वीर सपूतों!
अभिनन्दन तेरा करते हम।
जिन्दा हैं हम तेरे ही दम पे
सुरझित है भारती का दामन।।

तुम बनके प्रहरी सरहद पे
रात-दिन ही डटे रहते हो।
धूप शीत बारिश सहते हो
निद्रा,भूख से भी लड़ते हो।।

सुख-सुविधा में रहने वाले
कैसे कर्ज चुका पाएंगे तेरा।
बस वन्दना करके तुम्हारी
बढ़ाते रहेंगे हौसला तेरा।।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपु
विषय अभिनन्दन... तिलक

अभिनन्दन उन वीरों का जिनके हातों में है सुरक्षित देश का मान...
जिनकी क़ुरबानी से ही ...
हम ले रहे हैं सुख चैन की साँस...
..अभिनन्दन..... अभिनन्दन
धूप छाँह की न कोई परवाह
कितने दुर्गम पथ पर निर्वाह......
नींद चैन को दिया है त्याग...
अभिनन्दन..... अभिनन्दन....
देश मान को रख बरकरार
ध्वज के मान को दे सम्मान
वीरों ने किया देह त्याग
अभिनन्दन अभिनन्दन अभिनन्दन
उनके लिये मन में सम्मान...
हैं भारतमाता का अभिमान
उनसे सुरक्षित देश का भाल...
अभिनन्दन अभिनन्दन अभिनन्दन.
पूजा नबीरा काटोल नागपुर

दिनांक- 31/1/2020
विषय - अभिनंदन/तिलक


माना विचार में वह पनपता है
पर आचार बनकर झलकता है
वंदन कहो या कहो अभिनंदन
एक संस्कार बनकर पनपता है ।

मात-पिता हैं जीवन के दाता
उनका निस-दिन वंदन करते हैं
उनके चरणों की धूल सुखराशि
भाल पर तिलक चंदन करते है ।

मातृभूमि की आन ,बान ,शान
हमारे हृदय में हरदम बसती है
उसकी रक्षा करने सदैव तत्पर
आहुति-प्राणों की तरसती है ।

तिलक लगाकर निज माटी का
युद्धभूमि में वीर सेनानी जाते हैं
माँ भारती के पावन आँचल का
क़ुर्बानी देकर अभिमान बढ़ाते हैं ।

केसरी ,श्वेत और हरा -तिरंगा
अभिनंदन उनका किया करता है
अमर सुहागन बन तिलक लगाती
उनको जन-जन वंदन करता है ।

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति 

विषय तिलक

सूरज की रश्मियों सी
तुम्हारे जीवन में चमक हो....
चन्दा की चांदनी सी
शीतलता लकदक हो.....
तेरे माथे पे सजा
केसर कुमकुम का तिलक हो....
भाई दूज का त्यौहार
मेरे जीवन की ललक हो....
भाई बहन के रिश्ते में
सोंधी सी महक हो......
जगह हो तेरी मेरे जीवन में
ज्यूँ नैनों पर पलक हो.....
प्रगतिपथ पर चाहूँ
तूँ हरदम फ़लक़ हो......
तेरे संग मेरे भाई!!!!
मेरा आशीष हर वक़्त हो...

रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली

दिनांक - ३१- १- २०२०
दिवस - शुक्रवार
आयोजन - अभिनंदन/चंदन
विधा - स्वतंत्र
प्रस्तुति - मुक्तक
-------------*----------
प्रभु चरण रज ही सदा है भक्त का चंदन,
लगाया वीरों ने भी रण में रक्त का चंदन ।
माथे पर लगाया जब भी माँ ने आंख का काजल ,
नजर-बट्टू बना महान स्नेहासक्त का चंदन ।
-------------------
पीला लाल सफेद आदि भगवान का चंदन ,
माटी लगे ललाट हुआ किसान का चंदन ।
रोली सिंदूर मलयागिरि कुमकुम चंदन के कइ रुप ,
बने ! सत्य धर्म सत्कर्म दया इंसान का चंदन ।
सन्तोष परदेशी

हे मधुमास तुम्हारा अभिनंदन है।
तेरे आने से संसार में प्रफुल्लता छा जाती है।
ऋतु यौवन के भार से सुशोभित हो जाती है।

तेरे आने प्रेमी जन प्रसन्न है।
वे तुम्हारा अभिनंदन वंदन करते हैं।
कोयल पंचम राग गाने को आतुर है।
प्रकृति पर बसंती रंग चढ़ा है।
मन आतुर और तन व्याकुल है।
सभी प्राणियों में प्रीत की लगन लगी है।
राधा को भी इस मधुमास में कृष्ण का इंतजार है।
गोपियाँ भी कृष्ण का राह तकती है।
गौओं को भी कृष्ण के मुरली की तान सुननी है।
यह मधुमास बड़ी ही आस और प्यास लेकर आयी है।
हे मधुमास तुम्हारा अभिनंदन है।
स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ डॉ कन्हैयालाल गुप्त शिक्षक उत्क्रमित उच्च विद्यालय ताली सिवान बिहार




"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...