Sunday, January 26

"अंतिम/आखिरी"'25जनवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-636
दिनांक 25-01-2020
विषय-अंतिम/आखिरी


अंतिम साँस चले जब तक,
माँ तेरा गुणगान करूँ ।
तन मन धन अर्पण कर मैं,
माँ तेरा सम्मान करूँ ।

मेरी रूह में बसती है ,
माँ तेरी मनहर काया ।
हर सुख दुख में संबल है ,
माँ के आँचल की छाया ।

आखिरी स्वास भी मेरी माँ ,
तेरी रक्षा में अर्पण हो ।
गौरव मुझको भारतीय हूँ ,
मन वाणी में समर्पण हो।

उन्नत भाल सदा रहे तेरा ,
जग में हो तू श्रेष्ठ महान ।
तू ही पहचान है हम सब की,
सांसे भी तुझ पर कुर्बान ।

आँख उठाए जब भी शत्रु,
हम ज्वाल कराल बन जाएँ,
आँच न तुझ पर आने दें,
ऐसा कुछ कर पाएँ ।

देश भक्ति और देश प्रेम ही ,
लहू में बहता रहे जहाँ ।
अंतिम साँसें रुकने तक भी,
माँ का आँचल हँसे वहाँ ।

कुसुम लता 'कुसुम'
नई दिल्ली
विषय आखिरी,अंतिम
विधा काव्य

25 जनवरी 2020,शनिवार

हर प्रारम्भ का अंत जरूरी
यश अपयश सुख दुख क्रम।
मिलन बिछोह धूप छाँव सा
मायावी जग में है बहु भ्रम।

सीमा पर सैनिक लड़ता है
जब तक अंतिम श्वास चले।
जो दौड़ कर पीछे हटता है
वह कर्महीन नित हाथ मले।

मृत्यु दंड के अपराधी से
आखिरी इच्छा पूछी जाती।
मरने से पहले यह खुश हो।
बुझने वाली जीवन बाती।

अंतिम संस्कार बड़ा संस्कार
आओ हम इससे कुछ सीखे।
हँसी खुशी व्यतीत हो जीवन
क्यों फिर हम जीवन में खींझे ?

हर मानव की अंतिम इच्छा
जन्म मृत्यु के बन्धन टूटे।
अमर आत्मा की मुक्ति हो
जीवन के सब बन्धन छूटे।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय - आखिरी
प्रथम प्रस्तुति


वो आखिरी मुलाकात
नही जाती दिल से ।
जब दुर हुए थे उनसे
उस हसीन महफिल से ।

बस कर रह गयी है वो
इस दिल में हसीं तस्वीर ।
वो तन्हा मन बेचारा
वो रूठी सी तकदीर ।

सारे जहां में लिए फिरूँ
वो सपनों की जागीर ।
इबादत से कम नही वो
बड़ी लजीज़ है तासीर ।

कहीं आखिरी वक्त भी न
वो कशिश मन को लुभाय ।
ज़ुबाँ से रब कि जगह 'शिवम'
उसका नाम निकल आय ।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 25/01/2020

तुम मत रोना प्रिय मेरे, यह तेरा काम नही है।
जिससे मन मेरा लागा, मेरा घनश्याम वही है।
जो राधा का है मोहन, मीरा का नटवर नागर।

वो प्रेम रसिक है जग का,मेरा मन झककत गागर।
**
वो आखिरी चाह है मन का,पहला वह प्यार हृदय का।
मन पोर-पोर है डूबा, अन्तिम एहसास हृदय का।
वो सृष्टि का प्रथम नियन्ता, जिसपे मन शेर ने हारी।
वो एक पुरूष इस जग का, बाकी सब तन मन नारी।

शेर सिंह सर्राफ
२५/१/२०२०
विषय-आखिरी/अंतिम

आज फिर व्यथित है मन"
आज फिर व्यथित है मन
फिर याद आए वे पल-छिन
जिन्हें हम कभी भुला न सके
वो बचपन के दिन......
वो अपनापन
वो लडना - झगड़ना रूठना-मनाना
एक आवाज पर तुम्हारा
दौड़े चले आना
जिसके लिए तरसता है मन
आज फिर व्यथित है मन ... ।

सुख-दुःख के साथी थे हम
दूर होकर भी कितने पास थे हम
सबकी खुशी में खुश रहने वाले
कितने प्यारे और अनोखे थे तुम
फिर कैसे चल दिए अकेले
अंतिम यात्रा पर. ... !
हम सबका साथ छोड़कर
हम सबका दिल तोडकर
न कुछ कहा न कुछ सुना
बड़े धोखेबाज निकले तुम
आज फिर व्यथित है मन ... ।

ऐसे भी भला जाता है कोई
बताओ कब हमारी आंखें न रोई
खोजती हैं बस तुम्हें यादों के खंडहर में
पर नहीं दिखते तुम कहीं.....
बस याद आते हो बहुत याद आते हो
दिल तब खून के आंसू रोता है
ऐसे भी भला कोई अपनों से दूर होता है
आज फिर व्यथित है मन
तन्हा मन तन्हा जीवन ।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
दिनांक-25/01/2020
विषय-आखिरी/अंतिम


थकी दुपहरी में पीपल पर,
कोयल बोलती शून्य स्वरों में,
फूल आख़िरी ये बसंत के,
गिरे ग्रीष्म के उष्म करो मे।

मध्य निशा का यह अभागा,
तेरे प्रेम का है यह त्यागा।।
रात्रि की अंतिम प्रहर तक जागा,
सखा रे !निर्दयी सावन मुझे त्याजा ।।

तेरे प्रेम के आखिरी प्याले से
अखंड विश्वास के उजाले से
गुप्त हृदय पीड़ा के ज्वाले से
अश्रु नीर बहे फिर ,भी नयन निराले से

कैसे निष्ठुर नयन तुम्हारे कहते
पर इससे जो आंसू बहते
मेरे मृदुल हृदय कैसे सहते

सत्य प्रकाश सिंह
इलाहाबाद
दिनांक- 25/01/2020
शीर्षक- आखिरी/अंतिम
विधा- काव्य
**************
तुम थे वो जाबांज सिपाई,
दुश्मन को कई बार धूल चटाई,
हर कोई करता तुम्हारी बढ़ाई,
सीमा पर पहरेदारी खूब निभाई |

छुट्टी पर इस बार घर तुम आये,
परिवार संग हमने मौज मनाई,
सेना का अचानक बुलावा आया,
देश के लिए फर्ज की दौड़ लगाई |

नहीं पता ये अंतिम मुलाकात थी,
मौत मेरे दरवाजे पर खड़ी थी,
कई दुश्मनों को किया धराशायी,
सीने में अपने कई गोलियां खाई |

फर्ज निभाते अंतिम ली विदाई,
भारत माँ की आन तुमने बचाई,
अश्रु धारा नहीं थमती सजन मेरी,
वर्दी को सीने से लगा लेते हैं तेरी |

जय हिंद

स्वरचित- *संगीता कुकरेती*

भावों के मोती"
25/1/2020

अंतिम/आखिरी
***************
जिंदगी
डायरी के चंद पन्नो से शुरू होकर पूरी किताब में बदलती रहती है
कुछ पन्ने सपाट तो कुछ में अंकित है आड़ी- तिरछी -सीधी रेखाए ,
जब प्रारंभ हुआ सफऱ तो उत्साह और उमंग से लबरेज दोड़ती है,जैसे कोई शब्दों को सहेज कर लिख रहा हो जिन्दगी की किताब को
अपने सपनो को करीने से सजा रहा है हर पन्ने को
अपने सपनों से, रंग बिरंगी कलमों से उन्हें चिन्हित करता है
अरे ये क्या हुआ
शायद कोई तूफान आया है इस समंदर में,ये जीवन नैया डगमगाने लगी,बिगड़ गया संतुलन समय की कमी सी है
कुछ बिखराव है
जल्दी से इस डायरी केपन्नो पर दो लाइन,कही चार पंक्तियां तो कही पूरी
कविता ,कुछ सजी है
तो कुछ बेतरतीब
कुछ को पढ़ कर चेहरे पर मुस्कान तो
कुछ को पढ़ कर
आंखे नम हो जाती है
कहीं मीठे प्यार के पल तो कुछ कड़वे
अब कुछ अंतिम पन्ने ही शेष है
पता नही कब कलम
यूँ हाथो में रह जाये
और मेरा आखीरी
पन्ना खाली रह जाये
मैं न रहूंगी तब.......क्योकि वही होगा मेरा अंतिम सृजन
मेरा अंतिम पड़ाव...
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर

25/01/2020
"अंतिम"
ूसरी प्रस्तुति
**********

आज,
साक्षात ,अंतिम समय,
सत्य से मुलाकात हुई,
सभी परिग्रह,मिथ्या धारणाएँ,
स्वतः ही झकझोर गई।
करुणा, संयम,सन्तोष सभी भाव,
यह मुलाकात दर्शा गई।
अंतिम समय सत्य से,
मुलाकात की परिभाषा बतला गई।
ओढनी अहंकार की स्वतः ही,
श्वेत वस्त्र में दिखला गई।
सभी अहंकार,दम्भित भावनाएं,
अंत समय गंगामय हो गई।
इस मुलाकात से
जीवन डगर बदल गई,
परन्तु आह!
मुलाकात सत्य की ,
पहले न हो सकी।
काश,
कुछ मुलाकातें,
पहले होती...
जीवन रँगीन बनाती,
दम्भ,द्वेष,कपट त्याग,
सत्य राह अपना कर..
सन्तोष,शांति अभय को,
कर्मों की झोली में सजाती।
अंतिम समय..….
सत्य की शैया पर पड़े -पड़े,
जीवन की समस्त,गुजरी मुलाकातें,
पटल पर आ रही थी।
प्रेम स्नेह की मुलाकातों को मनु
दर किनार क्यो कर देता है????
मात्र लालची,दम्भी बना ....
धन को परिजन मान लेता है।
हाथ से समय,
अब निकल गया था....।
रेत सा फिसलता ,
जीवन ढह गया था।
सत्य की अंतिम मुलाकात ने,
जीवन 'श्रवण 'बना दिया था।
राम,कृष्ण के कर्मों की महत्ता को,
अंतिम समय की मुलाकात ने,
सत्य क्या है.....
समझा दिया था।
काश !
हृदय के द्वार को....
न बंद करता....
अपनत्व के झरोखें भी
सदा,खुले ही रखता।
प्रेम की पावन पवन
मेरे अंतर्मन को जाग्रत करती..।
परन्तु ,स्वयं ही
चाँद-तारों की ,
ओढ़नी ओढ़ने की,
लालसा ने ...
आह!!!!
मुझे अंत समय
ग्लानि भाव से भर दिया।
चंद क्षणों के लिए ....
सुख की चादर ,
पाने के लिए,
मानव ने जीवन के...
सार से ही मुहँ मोड़ लिया।

वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित,पंचकूला

25/1/2020
विषय-आखिरी/अंतिम


इस 'आखिरी' शब्द में
बड़ा दम है
आखिरी शब्द
समापन नहीं
ये तो जीवन का शुभारंभ है !!

मिट्टी सबका आखिरी
मंज़िल और मुकाम है
जीते जी मिले न मिले
अंतिम समय में
सबको मिलता सलाम है !!

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
Damyanti Damyanti
विषय_ अंतिम/आखिरी |
हरके के जीवन मे पल ये आता |
जन्म हे तो अतिम पल भी होगा |

जीवन गुजरत कई उलझनौ से
सफल असफलताओं के बीच |
याद आते वीर मुझे कभी कभी
कितने महान होते ये वीर |
परवाह नही अंतिम बेला की
लडते रहते अविरल सदैव
आता अंतिम पल कहते माँ
जाता हूँ फिर आऊँगा तूझे सलाम |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
विषय : अंतिम
विधा : कविता

तिथि : 24. 1.2020

बुड़ापा, जीवन का अंतिम पहर
समझना मत तुम इसको कहर।
जब समय आए, करो सुस्वागत
जीवन में यह निश्चित है आगत।

गरिमापूर्ण ढंग से इसे स्वीकारना
इस दौर को सुंदरता से संवारना
चलता रहता यह दौर परंपरागत
बचपन,यौवन,बुड़ापा, हैं शाश्वत।

सुंदरता से इसका करना उपयोग
अछूता न रहेगा कोई उपभोग।
कोसने देने से न मिले गी राहत
तूं ज़िदादिली को बना ले चाहत।

है सब पर आती यह दूजी पारी
बेहतर, कर लो इससे यारा-यारी
ज़हर में अमृत की होगी आगत
हिचकिचाए मौत, देख ये करामत।
--रीता ग्रोवर
--स्वरचितf
दिन :- शनिवार
दिनांक :- 25/01/2020

शीर्षक :- आखिरी/अंतिम

सफर का पयाम होगा,
अंतिम वो विराम होगा।
श्वांस भी होगी मद्धिम,
जब महाप्रयाण होगा।
वो दिन आखिरी होगा.....!!!
लिखती कलम शब्द जो,
वो पृष्ठ भी अंतिम होगा।
भाव,कल्पना मर्म सब,
सदृश्य जब प्रतीत होगा।
वो दिन आखिरी होगा.....!!!
देह थामेगी निष्क्रियता,
होगी धड़कन निस्तारित।
दृश्य सब होंगे गमगीन,
द्रुतयान होगा संचालित।
वो दिन आखिरी होगा....!!!
हसीं होगी वो रात भी,
सजेगी फिर बारात भी।
करेंगे रुदन नयन जब,
बजेंगे ढोल मृदंग सब।
वो दिन आखिरी होगा.....!!!

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश

शीर्षक-आखिरी, अंतिम।
्वरचित।
तुझे सलाम मां ,तुझे सलाम
तुझे सलाम मां ,तुझे सलाम।
अंतिम सांस लड़े जब तक वो
जां में जान रही बाकी ।।
तुझे सलाम मां तुझे सलाम....

झुकने ना देंगे सिर भारत का
मन में हट थी यह ठानी।
लेकर कसम गए सीमा पर
वीर महाबली बलदानी।।
तुझे सलाम मां, तुझे सलाम....

आन की खातिर लड़ेंगे हम
आखिरी सांस रहे बाकी।
नहीं की परवाह उन्होंने तो
बर्फीले तूफ़ानों की।।
तुझे सलाम मां तुझे सलाम....

ना था भय व्याप्त कोई उन्हें
बंदूक, तोप ,धमाकों का।
जब तक जां थी फर्ज निभाया
क़र्ज़ चुकाया भारत मां का।।
तुझे सलाम मां, तुझे सलाम
तुझे सलाम मां, तुझे सलाम।।
****
प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"
विषय- आखिरी / अंतिम

लेकर अंतिम हिचकी वो
सरहद पर कुर्बां हो गये
वंदना में शीश झुका कर
मिट्टी में आखिर मिल गये

थे तैनात सरहद पर तो
घरबार सब भूल गये
वक्त आया देश की सुरक्षा का
त्यौहार सारे भूल गये

घर में बैठी माँ खैर मना रही
बेटे के जीवन की
आई पुकार भारत माँ की
सर पर कफन बाँध गये

शीत,पावस,ग्रीष्म सब ऋतुएं
एक समान रहीं उनके लिए
भरी बर्फ में भी वे खुशी-खुशी
दर्प से अड़ गये

हैं चुनौतियाँ सरहदों पर ही नहीं
भीतरघात करने वाले घर में ही सेंध कर गये ।

डा.नीलम

दिनांक- 25/01/2020
विषय- अंतिम/ आखिरी

***********************
अंतिम श्वास अब पूर्ण हुई,
जीवन पर पूर्ण विराम लगा।
निष्प्राण शरीर था पड़ा हुआ,
लोगो का तांता आन पड़ा।

क्रंदन के स्वर गूँज उठे,
जल से मुझे था नहलाया।
घी का लेप लगाकर तब,
शवाच्छादन मुझको पहनाया।

जिसके स्वर निष्ठुर होते थे,
उन्होंने भी मेरा गुणगान किया।
जिनकी आंखों में तिनका थी मैं,
नम आंखों से उसने मुझे संम्मान दिया।

जिनके प्रेम को तरसती थी उन,
प्रियजनों ने हृदय से अंतिम प्रणाम किया।
जब अग्नि ने मुझको लिपटाया,
तब इस अनृत लोक से मैंने विदा लिया।

स्वरचित
मोनिका गुप्ता
विषय -आखिरी/अंतिम
दिनांक २५-१-२०२०
हर पल आखरी समझ ,जिंदगी जो जी रहा है।
असली आनंद जिंदगी का,वास्तव वो ले रहा है।

कल को किसने देखा,क्यों धोखे में जी रहा है।
आज को जी ले बंदे,प्रभु इंतजार कर रहा है।

गुरूर तेरा तोड़ देगा,पारखी नजर देख रहा है।
झूठी वाह वाही लूटी,अब कर्मों पर रो रहा है।

शिकवे शिकायत छोड़,जो जिंदगी जी रहा है।
तमन्ना खुद की दफन कर,तारीफ पा रहा है।

अब भी संभल मनुज,जीवन घटता जा रहा है।
हर पल जी ले,आखिरी पल करीब आ रहा है।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
शनिवार .

जो बाँट लें हम दुःख किसी के,
तो सफल जन्म मेरा हो जाये।
आरजू आखिरी बस यही है,
व्यर्थ जीवन न अपना बितायें।....

फसाने मुहब्बत के सबने कहे हैं ,
गम दुनियाँ में और भी हैं मिले हैं ।
व्यथा जो कभी हम उनकी सुनेंगे ,
हँसी जो व्यथित को हम दे सकेंगे ।
तमन्ना आखिरी अब बस यही है,
सेवा में उन सबकी जीवन बितायें।....

आजादी हमें मुश्किल से मिली है,
कितने सपूतों ने जां अपनी दी है।
खुशी हाथ से ये फिसलने न पाये,
वतन ये हमारा हर समय मुस्कराये।
अपनी आखिरी चाहत बस यही है,
तिरंगे में लम्हे आखिरी हम बितायें।.....

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
विषय*आखिर/अंतिम*
मुक्तक

अंतिम समय मुझको मां का प्यार मिले।
आखिर में यही गोदी उपहार मिले।
पड़ा रहूं निश्छल आंचल में मां कहीं,
मानूं सच मुझे समता संसार मिले।

मां तुझसे ही बनती है ये काया।
भारतमाता सब तुम्हारी है माया।
जीवन पाया यहां सारा जग तुझसे,
क्या किया मानवता ने हमें पराया।

इसी भारत भू पर ही पले बड़े हम।
सभी इसी पर सीना ताने खड़े हम।
आखिरी सांसों तक दायित्व निभाऐं,
वैरी से भी अब कभी नहीं डरें हम।

जीना मरना सब ही उसके हाथ में।
रहेंअंतिम सांस तकउसके पास में।
करें तुम्हारा तुम्हें हीअर्पित भगवन,
आखिर कोई क्या ले जाऐ साथ में।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मंगलाना, गुना म प्र
भावो के मोती
25/1/20


तू छोड़ अकेला चला गया।
वादे ढेरो मुझसे कर गया।

मैं रोज बाट जोहा करती।
दस्तक मन की टोहा करती।

ढूढती रहती मन के जवाब।
रातो के सपनेके अधूरे ख्वाब।

फैला चारो ओर है सन्नाटा।
तन्हाई का चुभता है कांटा।

मन थकित और हुआ लाचार।
पुकारी रहती हूँतुमको बारबार।

यादे खंजर सी चुभती रहती।
तकियों से बाते है करती रहती।

बीती बातों का है सिरहाना।
ख्वाबो में सिखाती है मुस्कराना।

आँचल का दामन अब सूखने लगा
तू जाकर मुझको है भूल गया।

धुंधला धुंधला सा दिखता है।
तन जर्जर सा मन दुखता है।

साँसे भी अब थमने है लगी।
तन्हाइयो में ये बिछुड़ने लगी।

मन मे रहती बस एक आस।
छू कर मुझको मिले अंतिम पड़ाव।

स्वरचित
मीना तिवारी
विषय-आखिरी/अंतिम

चला मैं दोस्तों अपने सफर पे
आखिरी खत घर जाकर दे देना
थम रहीं साँसें मेरी अब
घर में मेरी बातें कह देना।

कहना मेरी बूढ़ी माँ से
लाल तेरा अब ना आएगा।
तेरी सेवा का वचन दिया था
अब नहीं निभा पायेगा।

कहना मेरी प्यारी से जो
मेरे बिन रात दिन रोती होगी
हरदम रास्ता ताकती थी
मुखड़ा आँसू से धोती होगी।

गम है मुझको जो मैंने अपने
वादे पूरे ना कर पाए।
अंतिम सफर पर चलने से पहले
नहीं किसी से हम मिल पाए।

पर एक खुशी है मन मे जो
साथ मे लेकर जाता हूँ।
भारत माता के चरणों मे
अपने प्राणों को चढ़ाता हूँ।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश

आखिरी / अंतिम

जिन्दगी

उड़ रहे हो
आसमां
वक़्त है
साथ तुम्हारे
जमीं पर ही
पाओगे
जब होगा नहीं
कोई अपना ही
अपने साथ
आखिरी वक्त

नहीं है हमें शौक
उड़ने का
कतर दिये जाते हैं
" पर"
परिन्दों के

ले चल मुकम्मल
जगह जिन्दगी
होता नहीँ सहन
दर्द भटकने का
अंतिम सांस तलक
ही है तो
भटती जिन्दगी

चलते थे दौड़ कर
पीछे खींचते थे दोस्त
चढ़े जनाजे पर
आखिरी वक्त
श्मशान ले भागे
दोस्त अपने ही

हुई दोस्ती जब
मौत से
जिन्दगी
आसान हो गयी
"संतोष "
बेवजह डरने की
वज़ह ही
हो गयी खत्म आखिरी

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
केम्प पुणे
दिनांक :25/01/2020
विषय : अंतिम/आखिरी
विधा : हाइकु(5/7/5)

(1)
मृत्यु बताती
जीवन कचहरी
अंतिम सत्य
(2)
छूटता नाता
कर्म गठरी संग
अंतिम यात्रा
(3)
भाग्य चमके
अंतिम क्षण में भी
पासा पलटे
(4)
सेवानिवृति
नाच रही स्मृतियाँ
आखिरी दिन

स्वरचित
ऋतुराज दवे
दिनांक-२५/१/२०२०
शीर्षक_"आखिरी/अंतिम


हर दिन सोय, सोचकर
है ये आखिरी दिन
कह गये विद्व जन
माने न यह, मन मलिन।

हर दिन समझे ,नया सूरज
हर रोज सीखे सीख नई
पल पल घटती श्वास है
कह गये दीन फकीर।

अजब-गजब है दुनिया हमारी
अजब-गजब है रीत
आखिरी श्वास तक
मन भटके,ज्यो वन बीच भटके मृग

उदास बैठा जानकर
बचे कुछ आखिरी दिन
अनासक्त अभी हुआ नही
मन उठे घनेरी पीड़।

ईष्या,द्वेष से भरा रहा जीवन
किये नही सत्काम
आखिरी वक्त आये तो
भजते हरी के नाम।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
विषय--आखिरी /अंतिम
25.1.2020

*************
अमरबेल की लताओं की भांति
लिपटि मेरी दुनिया
जो उसकी हीं शाख पे
फलती फूलती रही

वो संवेदनहीन सा
मुझे खुद से
अलग करता रहा

मैं परित्यक्ता की भांति
निर्निमेष आंखों में
सपने बुनती रही
वह जाता रहा एक
युग की तरह
मैं बीत गई
भूत की तरह
इंतजार की हद या
चाहत की पराकाष्ठा ,
आखिरी सांसों के साथ भी
आंखे खुली रहीं

स्वरचित --निवेदिता श्रीवास्तव

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"अंदाज"05मई2020

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