Sunday, January 5

" तलाश"4जनवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-615
मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जो मेरे गाँधी को लाकर दे दे।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है। जो मुझे सुभाषचंद्र से मिला सके।

मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जो भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को दे सके।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जिसमें चँद्रशेखर आजाद हुए।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है। जिसमें तक्षशिला के कुलपति हुआ करते थे।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जिसमें चन्द्रगुप्त, हर्ष, अशोक थे।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है। जिसमें बाणभट्ट, भास और कालिदास थे।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जिसमें सीता, अनुसूया और गौतमी हुई।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जिसमें चाँदबीबी,हजरत महल और लक्ष्मीबाई हुई।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जिसमें सूर, कबीर, तुलसी, जायसी हुए।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जिसमें नानक, रामानंद, रैदास हुए।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जिसमें प्रसाद, पंत, निराला हुए।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जिसमें राजेन्द्र प्रसाद, अम्बेडकर, जवाहरलाल हुए।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जिसमें रहीम, रसखान, बिहारी हुए।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जिसमें सुभद्रा कुमारी, महादेवी वर्मा और मीराबाई हुई।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जिसमें पतंजलि, पाणिनि और आर्यभट्ट हुए।

मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जहाँ भूखमरी, भष्ट्राचार और बेरोजगारी न हो।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है। जहाँ जाति, धर्म, भाषा के झगड़े न हो।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जहाँ वृद्धों को आदर और माता पिता का सम्मान हो।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जहाँ कोई दवा के अभाव में मृत्यु का वरण न करें।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है। जहाँ की वायु, जल, मिट्टी प्रदूषित न हो।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जहाँ नेता सत्ता के लिए नंगा नाच न करते हो।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जहाँ सर्वधर्म समभाव हो।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जहाँ मानवता का राज हो।
मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जहाँ लोकतंत्र हो न कि भेड़ तंत्र?
मुझे ऐसे भारत की तलाश है।
जहाँ धनबल नहीं बल्कि जनमत है।
क्या आज का भारत ऐसा है???
स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ
डॉ कन्हैयालाल गुप्त" मीर"
शिक्षक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय ताली, सिवान, बिहार 841239

विषय तलाश
विधा काव्य

04 जनवरी 2020,शनिवार

शैशव को तलाश ममता की
बचपन को तलाश शिक्षा की।
यौवन तलाश कुछ करने की
याचक तलाश रहे भिक्षा की।

भक्त सदा भगवान तलाशता
विद्यार्थी नित विद्या तलाशता।
कलाकार कल्पना तलाशता
कलमकार छंद भाव तलाशता।

वैज्ञानिक अनुसंधान करता है
उसे तलाश है नया करने की।
जो जीवन हित हो न सका है
उसे तलाश इतिहास रचने की।

गुरु तलाश है नेक शिष्य की
जिग्यासु मेहनतकश नित हो।
जनता तलाश है सुनायक की
राष्ट्र भक्ति सदा अपरिमित हो।

पूरा जीवन प्रिय तलाश है
सुख शांति आंनद तलाश है।
विश्वासों के धागों पर जीवन
अच्छा हो बस यही आस है।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
दिनांक 04/01/2020
भावों के मोती
विषय- तलाश

चाहतों के इन समंदर से
तेरी यादों की मोतियां चुनती हूं
तेरे बेखबर लम्हों की
बस यूं ही तलाश करती हूं।
घिरे बादलों की ओटों से
यादें जब बारिशें करती है
सहमी सकुचाई सी सिमटी
अंकों में छिपने की तलाश करती हूं।
चाहतों के आशियाने में
गुजरे लम्हों की ताकीद करती हूं
ताउम्र तेरे संग जी लेने को
मुकम्मल जहां तलाश करती हूं।
स्वरचित-
निराशा सिंह 'निशा'
वाराणसी,उत्तर प्रदेश

अर्ज किया है।

दिल क्यूं उदास है बाकी । ये कैसी प्यास है बाकी ।

पी लिया आग का दरिया। कुछ और खास है बाकी ?

इक उम्र हुई तुमको । देखा नही इन आखो ने ।
नजरो मे नुमाया हो । फिर तलाश है क्या बाकी ?

दिल कयूं उदास है बाकी । ये कैसी प्यास है बाकी?

चले आए तो हो महफिल मे । देखा नही मुडकर भी ।
तेरे दिल मे सितमगर । कोई फांस है क्या बाकी ?

दिल क्यूं उदास है बाकी । ये कैसी प्यास है बाकी ?

वो एक वक्त तेरा था । और ये एक वक्त मेरा है ।
मुझे अब भी मुहब्बत है । तु उदास है क्या बाकी ?

दिल क्यूं उदास है बाकी । ये कैसी प्यास है बाकी ।
पी लिया आग का दरिया । कुछ और खास है बाकी ?

स्वरचित विपिन सोहल
"भावों के मोती"
4/1/2020

तलाश
*******
जिंदगी का सफ़र क्या
ऐसे ही तय करोगे
रहोगे यूँ गुमशुदा से
रास्ते पर भटका करोगे ।

ये दुनियां है सराय
जाना होगा छोड़कर
बन्धनों से खुद को
मुक्त न करोगे?

कब तक इस मेलेमें
घूमोगे
पालकर आसक्तियां
कब तक इन सब को
प्यार करोगे।

क्यूँ नहीं करते बाह्य से अंतर की यात्रा
करोगे न जो
स्वयं के भीतर यात्रा
तो स्वयं को कैसे
तलाश करोगे ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
शीर्षक-- तलाश
🌹🌹🌹🌹🌹

तला
श को यूँ ही रख ज़ारी
आएगी कभी तिरी बारी ।।

मुरझाए दिल के चमन की
खिल जाएगी फुलवारी ।।

इस मकां में कोई रहे है
कर तूं मिलने की तैयारी ।।

उसकी ही सब चालें हैं ये
वो शतरंज का है खिलाड़ी ।।

हम ही क्या सारी दुनिया ने
तस्वीर उसकी यह निहारी ।।

सनम मिले या खुदा मिले थे
जगा गये थे एक खुमारी ।।

गमों को मात देने की इक
तदबीर कहायी थी न्यारी ।।

तलाश रहेगी हरदम 'शिवम'
बड़ी खुशगवार थी वो यारी ।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 04/01/2020

विषय , तलाश
दिन, शनिवार

दिनांक, ४,१,२०२०.

भटक रहा है हर एक प्राणी ,
पता नहीं उसे चाहिए क्या।
जो मिल गया वो दिखा नहीं,
रहती अनदेखे की तलाश है।

मात पिता का त्याग न देखा ,
कुछ कमियों पर बबाल उठा।
दे सके सहारा न अपनों को ,
भौतिक सुख ही खोज रहा।

हर दिन सूरत देखी दर्पण में ,
लेकिन मन को न देख सका।
सुख की तलाश में लगा रहा,
हँसने की वजह न ढ़ूँढ़ सका ।

जब कण - कण में हरि रहता है,
फिर मन तलाश क्या करता है।
इस दुनियाँ का वही रचियता है,
फिर उसको छोड़ क्या चाहता है।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश 

Damyanti Damyanti 
आज मानव भकटा भौतिकता मे |
हो रहा स्वयं इस गिरफ्त गुम |

तलाश रहा कुछ हो ऐसे अनमोलपल |
मिले सकुन ,प्रेम ,सौहार्द के रिश्ते |
मिल बैठ करे दूर बोये बीज नफरतो के |
तलाश मानव को उस अमृत की , पीकर भूल बुराईयां एक हो चले चले |
तलास जन जन को एक सशक्त नेतृत्व की |
हो सदचरित्र ईमानदार सुदृढ़ हो व्यक्तित्व अस्तित्व वाला |
सबको समानता के दे अधिकार |
न हो शौषण ,किसान ,मजबूरो का |
न रहे गरीब भारत मे हो उन्त भाल |
आज तलास हे बेरोजगारो को रोजगार की |
छीन ली मशीनरी ने भूखे मरते करते लूटपाट |
हर किसी तलास हे खोये सपनो को पूरा करने की |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
4/1/2020
विषय-तलाश

*****************
सागर की लहरों से मैंने पूछा,
किसकी तलाश में वो तट तक आती हैं?
ये भी उनसे पूछा
किसे देख वो लहराती बल खाती हैं?

जब गहराई से देखा
तो स्वयं ही उत्तर पाया
वे हमें एक सीख देकर जाती हैं
वो अपनी हद,अपनी सीमा को
छूकर निज को पाने आती हैं

क्यों न हम भी
उस परम सत्ता को,
स्वअस्तित्व पहचाने
निजत्व को तलाशने
रूह की खोज में जाएं
कर प्रयास निज तक जा पहुँचें
जहाँ बस विशुद्ध प्रेम की लहरें हों
जिसकी तरंग में हम भी झूमें लहराएं ।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
विषय-तलाश
04/01/2019

*********************
तेरे हर सवालों के जवाब की आस में हूँ,
ये जिंदगी रोज ही मैं तेरी तलाश में हूँ!

सारी दूरियां ,एक पल मे मिटाने के लिए!
एक इशारा तो कर ,करीब बुलाने के लिए,
भटका नही मैं तो तेरे आस-पास में हूँ!
ये जिंदगी रोज ही मैं तेरी तलाश में हूँ!

तू है तो मैं हूँ, ये दुनियां को बताओं जरा,
ये दूरियां है कैसी? जरा समझाओं जरा!
करो आलिंगन मुझे कैसे बेपाश में हूँ!
ये जिंदगी रोज ही मैं तेरी तलाश में हूँ!

तेरे सिवा मुझको ,और नही कुछ चाहिए,
सिर्फ जीने का ,एक नया मकसद चाहिए!
कुछ तो है तुझमे जो इतना विश्वास में हूँ!
ये जिंदगी रोज ही मैं तेरी तलाश में हूँ !
***********************
स्वरचित-राजेन्द्र मेश्राम "नील"

4 /1/2020
बिषय,, तलाश

जाने किस की तलाश में भटकते रहे हम
शंका कुशंकाओं के झमेले में अटकते रहे हम
न ही खुदा मिला न बिशालेयार
चुपके चुपके आंचल में सुबकते रहे हम
बिन थाह के नदी में डाल दी नैेया
कभी उतराते कभी डूबते रहे हम
अपने परायों की पहचान भी न थी
झूठे रिश्तों की डोर में लटकते रहे हम
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
दिनांक- 4/01/2019
विषय- तलाश
विधा- कविता
************

कभी ख्वाब में कभी हकीकत में,
नये-नये सपने रोज बुना करती हूँ,
ऐ जिन्दगी !मैं रोज तुझे जीती हूँ ,
खुद में ही खुद को तलाशती हूँ |

कभी बीती पुरानी उन यादों में,
कभी मिट्टी की सौंधी खुशबू में,
कभी दर्पण में अक्स देखती हूँ,
खुद में ही खुद को तलाशती हूँ |

स्वरचित- संगीता कुकरेती

विषय - तलाश
विधा - पद्य
**************
भटक रहा है मन
सुकून की तलाश में
अपलक है अंखिया
ख्वाब की आस में।

बीत रहा दिवस
दिनकर के साथ में
ढल रही है साँझ
निशा के विश्वास में।

पूर्ण हुआ तलाश
अंतस के प्रकाश में
सफल हुआ जन्म
कर्मबंधन के वनवास में।

पा लिया स्वयं को
कस्तूरी मृग की आस में
तलाश है परमात्मा की
ईश अंश के आभास में

संगीता सहाय "अनुभूति"
स्वरचित
रांची झारखंड

04/01/2020
*पन्ने की तलाश*

एक कोरे पृष्ठ पर
लिखे थे रच-रचकर
तुमने कुछ संवाद
हाँ, मुझे है याद
शब्द-शब्द प्रीत थे
हृदय के गीत थे
आज फिर चौक्कने हो
ढूँढता हूँ उस पन्ने को
यद्यपि मुड़े-तुड़े हों
कुछ भाव ही जुड़े हो
क्यों, इतनी कवायद?
मेरे लिए हो शायद
पन्ना वही जरूरी
जीवन की कस्तुरी
हाँ, हाँ, सच में, वह खास है
मुझे जिस पन्ने की तलाश है
संचित उसमें जो पल है
मृदुभावों का प्रतिफल है
ढूँढता उन्हीं मृदुभावों को
पग-पग छलकर अभावों को
उफ़्फ़, कितनी दूर तक चल गया
आज फिर मन मचल गया
एक अघट विश्वास है
मुझे, लेकिन
उस पन्ने की तलाश है
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
4/1/20

तलाश

जिंदगी भर करता रहा ,सुकून की तलाश।
लम्हा लम्हा बीत रहा,होते अब निराश ।।
जीवन की रात अंधेरी, खुशियां हुई दूर।
आपाधापी लगी रही ,हम हुये मजबूर ।।
मंदिर मस्जिद भटके हैं ,आया न कुछ रास।
थके हार सब छोड़ दिया,पाया अपने पास।।
चादर में पैर पसारे , खरचे करे न्यून ।
गरीब को देकर देखा ,रोटियां दो जून ।।
बूढ़ों सँग समय बिताया ,सेवा है जुनून।
बच्चों की किलकारी में ,मिलता है सुकून।।
बीते वक़्त की याद में,खोये दिल का चैन।
भविष्य का पता नहीं क्यों ,मन करे बैचैन।।
उम्मीद हम क्योंकर करें ,करती ये हताश।
वर्तमान में खुश रह कर,पूरी करें तलाश ।।
भानु प्रातः का उदित हुआ ,बीती जाय रात।
है सुकून जब जीवन में,खुशियों की बरात ।

स्वरचित
अनिता सुधीर

04/01/2020
"तलाश"

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ऐ दिल-ए-नादान
क्या ढूँढता है तू
है किसकी तलाश

स्वार्थ की दुनिया है अभी
दौलत को पूजते हैं सभी
मतलब से रिश्ते हैं बनाते
काम निकाल केफेंक देते
प्रेम की न करना आस
बेकार इंसानियत तलाश
सुन ऐ दिल-ए-नादान...।

झूठे लोगों का है अब ये जहां
भटकते मिलेंगे ईमान यहाँ
फरेबियों का अब बोलबाला
सच्चाई के मुँह पे लगा ताला
झूठ का है सुरसा सम ग्रास
पूरी होगी न सच की तलाश
सुन ऐ दिल -ए-नादान।

मजदूर रात-दिन पीस रहें
रोटी की जुगाड़ वो कर रहे
बच्चों की शिक्षा रही अधूरी
परिवार का बोझ है मजबूरी
ऐसे में कैसे सुख आये पास
पूरी होगी न सुख की तलाश
सुन ऐ दिल-ए-नादान......।

ऊँचे-ऊँचे महलो में रहने वाले
दिनभर हाय-हाय करने वाले
पेट कभी भी न उनके भरते
रात करवट बदल जागते रहते
क्यों नींद न आती उनके पास
कहाँ करोगे संतोष की तलाश
बता ऐ दिल-ए-नादान.......।

हवस की भूख है मन विकार
बहु-बेटियों को बनाते शिकार
भूल जाते अपने धर्म-संस्कार
बर्बाद करते है अपना परिवार
सुन कर रुक जाते हैं साँस
कहाँ करोगे मानवता तलाश
कहो ऐ दिल-ए-नादान.....।

ऐ दिल -ए-नादान
क्या ढूँढता है तू
है किसकी तलाश।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

🌹भावों के मोती🌹

वि
षय:-तलाश

काश टूट जाये हर भरम
कि तू मेरा है ।
दिल के दरबाजे पर आज
तेरा ही पहरा है।
तलाश रोज करती हूँ तेरी
दिल के अंदर ।
बन जाये हमकदम ख्वाब
अब ये मेरा ।
जिये जा रहे है हम तो आस
में कि तू मेरा है
साथ चलना था तो चलता
जताता तू मेरा है।
दफन हर राज कर लिया
तुमने अंदर ।
तलाश जिद की रही कि तू
आज भी मेरा है।

स्वरचित
नीलम शर्मा # नीलू
4/1/2020
विषय-तलाश

विधा-हाइकु

करे तलाश
निज के अस्तित्व की
वही विद्वान।

कस्तूरी मृग
तलाश करे गंध
अन्तर्निहित।

तलाशे जहाँ
सर्वत्र यहाँ वहाँ
भीतर सब।

उचित प्रश्न
है तलाश किसकी
है सामने 'मैं'।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
दिनांक ४/१/२०२०
शीर्षक _तलाश

लघुकथा

शाम की धुंधलका छा गई थी,रात होने ही वाली थी,नेहा अपनी कपड़ो की अलमिरा से गहनो की डिबिया सहेज रही थी,तभी कुछ छन से गिरने की आवाज आई,अब वह चारो तरफ उपर नीचे खोज बिन करने लगी कि आखिर गिरा क्या है?
तभी उसकी नजर एक छोटी सी कर्णफूल पर पड़ी,आच्छा तो यही गिरा था,आच्छा हुआ जो मिल गया,वह सोचने लगी।
लेकिन यह तो एक ही है दूसरा कहाँ गया वह परेशान हो उठी,पूरा अलमिरा व गहने की पोटली फिर से खगांल डाली,उसे दूसरा कर्णफूल नही मिलना था सो नही मिला,वह मन ही मन सोचने लगी यह तो बिटिया की कर्णफूल है,जो शादी के पहले पहनती थी,शायद शादी के वक्त यही अलमिरा मे छोड़ गई होगी।अब वह आत्मग्लानी से भर उठी,अपनी बिटिया की एक कर्णफूल तक नही सभांल सकी।
तेज रौशनी में भी जब उसे कही दूसरा कर्णफूल नही दिखा तो वह और उसके पति मोबाईल का टार्च जलाकर पंलग के नीचे व अलमिरा के चारो तरफ ढ़ूंढ़ने लगे,परन्तु निराशा ही हाथ लगी।उसने सोचा कि बिटिया को बताना ही उचित होगा कि उसका एक कर्णफूल भूल गया है,क्योकि पता नही उसे फिर कब आना होगा,यही सोचते हुए उसने बिटिया कुन्नी को फोन लगाया,और उसे बताते ही कुन्नी बोल उठी"मम्मी वह कर्णफूल तो मेरे पास है पता नही तुम क्या तलाश रही हो,?"तभी उसे याद आया कि जिसे वह कर्णफूल समझ ढ़ूंढ़ रही है वह तो उसका नाक का फूली है जो पीछले माह अपनी सहेली के साथ बाजार से खरीद कर लाई थी,और वह उसे बिल्कुल भूल चुकी थी,और उसे वह बिटिया की कर्णफूल समझ ढूंढ़ रही थी,नाक के फूली का जोड़ा का तो सवाल ही नही उठता,जिसका अस्तित्व ही नही है,उसकी तलाश में वह परेशान हो रही थी,श्रम और समय दोनो व्यर्थ गया।
तभी उसे यह एहसास हुआ कि जो हमारे पास है उसकी पहचान और सही इस्तमाल ही सार्थक है,और किसके तलाश में हम भटक रहे है यह जानना निहायत जरूरी है,वर्ना समय और श्रम की बर्बादी के सिवा कुछ हाथ नही आता।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

04/01/2020
विषय: तलाश


तलाश जारी है
एक अदद इंसान की
सदियों से
तलाश जारी है
भगवान की
आदि से
तलाश जारी है
सत्य की
पुरातन से
तलाश जारी है
कर्मशील की
सदा से
तलाश जारी है
लोकतंत्र की
सभ्यता के शुरुआत से
तलाश जारी है
अंत की
अनादि से
तलाश जारी है.......
©
मनीष कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित

विषय-तलाश
विधा-मुक्तक

दिनांक-4/1/2020
शनिवार

(1)
कोई सभी कुछ पा लेता,फिर भी कुछ नहीं पाता,
कोई एक बस पाकर ही,सब कुछ यहाॅ पा जाता।
जो दिखता वह है नहीं,जो नहीं दिखे होता वही,
जिसे तलाश करे नर कोई,उनमें से कोई पाता।।

(2)
भौतिक सुख पाने को,सभी यहाॅ पर दौड रहे,
पाना जिसे चाहिये,मुंह उसी से मोड रहे।
सुख साधन की होड में,नफरत के बीज बोये,
प्रेम,शुकुन पाया नहीं,कडुवे फल देखे रो रहे।।

(3)
जाना था कहीं ओर ,और कहाॅ तुम चले गये,
पाना था कुछ और ,और जहाॅ में खो गये।
पाना था अपनी रूह को,भटक गये जाने कहाॅ,
फॅसे माया के जाल में,कहाॅ कहाॅ तुम अटक गये।।

स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डाॅ एन एल शर्मा जयपुर ' निर्भय
सूनी सी आँखो के कोर से, बरसे निरझर नीर।
पिया गये परदेश छोड मोहे, नही रहा अब धीर।


सूखी धरती प्यासा अम्बर, तपती जलती धूप,
शेर हृदय उसकी तलाश में, जिसने मारा तीर।

यमुना तट पर राधा बिलखे, हृदय मे है तस्वीर।
नैन तलाश न पूरा है तब, हृदय दर्द गम्भीर।

प्यासा पपीहा जैसे बोले, दर्द की अनबुझ गीत,
श्याम भूल गये कर्म रथि बन, समझेगे क्या पीर।

शेर सिंह सर्राफ
विषय : तलाश
तिथि : 4.1. 2020

विधा : कविता

तलाश
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क्यों भटके इंसान
कितना बड़ा नादान
है सत्य से अनजान।

थामे अहम् अभिमान
तलाशे संतुष्टि ज्ञान
कभी मंदिर कभी भगवान।

छिपाए बैठा अंतर्ज्ञान
कस्तूरी के समान
बना है मृग अनजान।

ढूंढ ढूंढ परेशान
तलाशता सब धाम
अंतर का करे न ध्यान।

अंतर छिपी है खान
खरी सोने समान
पुकारती सुबह शाम।

लगा धूनी ध्यान
अंतर कस्तूरी पहचान
पा लेगा आन मान सम्मान।

संतुष्टि व ज्ञान
बसी अंतर के धाम
हर पल कर इसमें स्नान।

यही बनाती महान
सच्चा यही है भान
आध्यात्मिकता की जान।
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
विषय :-"तलाश"
दिनांक :- 04/01/2020.

विधा :- "पद्य"

दूर से कोई विरह का, गीत गाता जा रहा है।
फिर भी मन के बीच मन का मीत उतरा जा रहा है।
लड़ झगड़ संसार के, सब बंधनों को तोड़कर फिर,
आज क्यों मन बंधनों में, प्यार का सुख पा रहा है।
भोले चातक! चांद ने, कब-कब है तेरी पीर समझी,
चांदनी की आड़ में, अंगार फिर बरसा रहा है।
झुलसकर मधुमास पतझड़ बनगया जिसके विरहमें,
वो सिसकता! देख लो, अनुराग मेरा जा रहा है।
कितनी तलाशकी न पाया, कितना निष्ठुर हो गया तू।
मेरे यौवन का समंदर, झील बनता जा रहा है।
आग अंतर की दबाए, कसक औ' पीड़ा समेटे,
कटुता के घन- अंधियारे में गीत मिलन का गा रहा है।
चाह मेरी का जो सपना, पथ की बन कर धूल रह गया,
समझा था अनुकूल वो, प्रतिकूल होता जा रहा है।
प्रेमपिपासित कविकुटिया में प्यास अधूरी हैअधरों की,
जाएगी काफिर खिजाँ, मधुमास चलता आ रहा है।

4/1/19
विषय तलाश


चल पड़ी मैं ले कलम
उम्र के इस पड़ाव में
अनुभवों की पोटली
लेकर अपने साथ मे

नही बचा सकी हूँ
धन्य धान्य साथ मे
संजो रही मैं पोथियां
वसीयत के नाम मे

तोड़ कर मडोरकर
गीत लिखे काव्य में
दिन निशा बीत रहे
इन्ही शब्द जाल में

अभाव में प्रभाव में
वक्त के बहाव में
बह रही मैं कर सृजन
उम्र के इस पड़ाव में

शांति की तलाश में
ढूढती हूँ समाज मे
मौन होकर ताकती
अशांति के माहौल में

स्वरचित
मीना तिवारी

विषय- तलाश
दिनांक ४-१-२०२०
खुशी की तलाश में,भटक रहा इंसान है।
अपना गलत तरीके,बन रहा वो हैवान है।।

सत्य से अनजान,बन रहा वो नादान है।
अंतर्मन छुपी खुशियां,नहीं रहा जान है।।

शांति की तलाश में,कर रहा तकरार है।
अपनों से दूर,ऐसे जा रहा देखो इंसान है।।

उलट फेर के चक्कर में,खोया सम्मान है।
सब हाथ से निकल गया,बचा अभिमान है।।

कर श्रेष्ठ कार्य,बनता आदमी महान है।
कांटों भरी राह जो चला,वो प्रभु समान है।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

तलाश

तलाशते रहे
ता-जिन्दगी
हम अपनों को
अर ठहर जाते
मुकाम मिल जाता

प्यार वो हमें
बेपनाह कर गयी
फिर ज़िंदगी मे
हमको तनहा कर गयी
चाहत थी उनके इश्क़ मे
पहना होने की,
पर वो लौटकर आने
को भी मना कर गयी
तलाश की भी है हद
मरने के बाद भी
आँखें खुली रख गये

ता-जिन्दगी
माँ
तलाशती रही
औलाद को
"पर" निकलते ही
"पंछी" गुम हो गये

सीमा पर था वो
दुआ करती रही
वो सुहाग की
हर रात तलाशती थी
उसे सपनों में
मिलती खबर जब
ख़ैरियत की
अगली तलाश में
फिर वो थी जीती

होती नहीँ तलाश
कभी खत्म रिश्तों की
तलाशते तलाशते
जिन्दगी खत्म हो गयी

स्वलिखित

04/01/2020
"तलाश"

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तलाश लो निगेहबान, हमसफ़र कोई मिले।
तो राह के कांटों को तुम, रौंद दो पैरों तले।
तलाश में जो बाग के, सुमन मिलें खिले-खिले।
तो भूल जाना ना कभी भी,कंटकों से पग छिले।

जो राह की वीरानियों से, नेह जोड़ता चला।
तलाश पूर्ण हो गई,पथिक मिले या ना मिले।
अकेला लक्ष्य साधकर कि, मंजिलें बुला रहीं।
तलाश छोड़ हमसफ़र की, एकला चला चले।

स्वरचित
चरण सिंह प्रजापति
हिण्डौन सिटी
राजस्थान

4-1-2020
शीर्षकः-तलाश न्याय की


अंग्रेज चाहते थे उनकी सत्ता सदा बनी रहे।
चाहे किसी को भी न्याय मिले या न मिले।।

स्वतन्त्रता के बाद वही कानून गया अपनाया।
इसीलिये न्याय भी सरलता से मिल न पाया।।

अपराध की तफतीश मे लगता है बहुत समय।
अधिकतर अपराधी आज़ाद रहते इतने समय।।

अपराधी पकड़े जाने के बाद मुकदमा है चलता।
तब तक तो अपराधी जमानत पर रिहा हो जाता।।

इस बीच पीड़ित को भी वह धमकाता है रहता।
पीड़ित व्यक्ति पाने को न्याय, रहता है तरसता।।

निर्बल को न्याय मिलने रोड़ा बनते सदा दबंग।
जब तक मुकदमा वापस न लेता करते हैं तंग।।

धनपतियों के सामने तो कौन कौन हैं बिक जाते।
गरीब जन तो बेचारे न्याय, प्राप्त ही नहीं कर पाते।।

बरसों बीतने के बाद जाके, कहीं फैसला है आता।
सजा यदि होती है उसका तुरत अपील हो जाता।।

अनेक मामलों पीड़ित फैसले पहले दम तोड देता।
जब भी होता है फैसला ही होता, न्याय नहीं होता।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
04 जनवरी 2020

" तलाश "

तलाश ही तलाश रही वो न मिले जिनकी तलाश रही

दिन गुज़रे महीने और साल भी पर वो न मिले जिनकी तलाश रही

ए ख़ुदा मैंने तुझको न जाने कहाँ कहाँ पर जा के ढूँढ़ा पर तू न मिला तेरी सदा तलाश रही

अब भी मैं थक के कहाँ हूँ बैठा बस जारी है तलाश तेरी कि तू मिले और मेरी तलाश है जारी रही

कभी तू मुस्कुराता है मासूम बच्चा बन के ..कभी देता है दीदार सुंदर से फूल में खिल के..

और कभी तू मस्त हवा बन के मेरे जिस्म को छू के निकल जाता है

तो कभी तू किसी अमीर के ज़हन में बैठ सब मज़लूम गरीबों का भला करवाता है

मैं जानता हूँ कि तू और कहीं नहीं बस यहीं है ..यहीं है बस तू दिखता नहीं है

पर मेरी तलाश रहेगी जारी जब तक कि तू हूबहू नहीं मिलता .. पर हम भी देखेते हैं कि मेरी तलाश का क्या सिला मिलता

(स्वरचित)

अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव
4/01/2020 :: शनिवार
विषय-तलाश


एक मुट्ठी
छाँव की तलाश में
दरबदर भटकते रिश्ते......

शिखर की धूप में
तपते और झुलसते रिश्ते.....

दिलों की
बन्द खिड़कियाँ
दरारों से
दरकते रिश्ते.....

समाज के बन्धन
कुरीतियों में
घुट घुट कर
लाचार सिसकते रिश्ते......

काश!!!!!!
मिल जाती घनी छाँव
किसी वट वृक्ष की
मुस्कुराकर
आनंद से लहकते रिश्ते.........
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
नांक 4/1/2020
विषय - तलाश

विधा - हाइकु ,,,,
**************
1/ इंसानियत
कहीं खो गई भाई ,,
तलाश करें ,,,।
2/ तलाश जारी ,,,,,
अब भी सुकून की ,
कहीं न मिली ,,,।
3/ शांति कहाँ है ,,,,,,
तलाशती दुनियां ,,,
संतोषी मन ,,,।
4/ कहाँ खोए हो ,,,,,
किसकी तलाश है,,,
खुद को यार,,,।
5/ खुशी खो गई
तलाश कहाँ करें,,,
मन में खोज ,,,।
स्वरचित - " विमल '

विषय : तलाश
विधा: मुक्त

दिनांक 04/01/2020

मुझे तलाश है,
गुरू की,
मैं शिष्य बनूँ।
मुझे तलाश है,
दोस्त की,
मैं सुदामा बनूँ।
मुझे तलाश है,
वधू की,
मैं वर बनूँ।
मुझे तलाश है,
वर्षा बूँद की,
मैं चातक बनूँ।
मुझे तलाश है,
सीप की,
मैं मोती बनूँ।
मुझे तलाश है,
हीरे की,
मैं जौहरी बनूँ।
मुझे तलाश है,
शब्दों की,
मैं कविता बनूँ।
मुझे तलाश है,
संगीत की,
मैं गीत बनूँ।
मुझे तलाश है,
मंदिर की,
मैं सोपान बनूँ।
मुझे तलाश है,
फूल की,
मैं मकरंद बनूँ।
मुझे तलाश है,
सागर की,
मैं लहरें बनूँ।
मुझे तलाश है,
नाम की,
मैं 'रिखब बनूँ।

रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित
जयपुर राजस्थान

मैं उन खूबसूरत नजरों से नजरें मिलाने की आस करता हूँ
मैं उस हसीन चेहरे की तलाश करता हूँ
जिसको ईश्वर ने बनाया होगा मेरे लिए
जिसको ईश्वर ने भेजा होगा मेरे लिए
मैं उस कोहिनूर की तलाश करता हूँ
बस उस हसीन चेहरे की आस करता हूँ
जिसके दिल में दया भरी हो
जो ममतामय मूर्त बनी हो
मैं ऐसे कोमल हृदय की आस करता हूँ
मैं हमेशा उस हसीन चेहरे की तलाश करता हूँ
जो हमेशा मेरा साथ निभाएगी
जो मेरी ज़िंदगी को लक्ष्य का मार्ग दिखलायेगी
ऐसे साथी की मांग मैं हर सांस करता हूँ
बस मैं उस हसीन चेहरे की तलाश करता हूँ

स्वरचित :- जनार्धन भारद्वाज
श्री गंगानगर (राजस्थान)
जय माँ शारदा 🙏
विषय -तलाश
जाने किसकी तलाश में है वो
इधर उधर तकती हुई
कभी जंगले से नीचे
बिस्तर के ऊपर
अलमारी के अन्दर
किताबों के बीच में
परदे के पीछे
उफ्फ
कितनी परेशान है वो
बचपन के बाद
जाने कही खो गया है
तलाश है उसे
उसकी ही
हाँ हाँ वही बिछड़
गया है कबसे
उसका
सुकून।

हर्षिता श्रीवास्तव
प्रयागराज

तलाश सच्चे मित्र की
. "मित्र हो तो ऐसा"
~~~~~~~~

द्वारिकाधीश भगवान श्री कृष्ण के दरवाजे पर
बचपन के मित्र सुदामा भिक्षा मांगने पहुंचते हैं
द्वारपाल ने उनको रोका तब सुदामा ने कहा
कन्हैंयां मेरा बचपन का मित्र है भैया उनपर
खबर करदो कि तुम्हारा मित्र सुदामा द्वार पर
खड़ा है
यही बात द्वार पाल ने जा भगवान से कही
फिर क्या था

नाम सुदामा का सुनते ही उठ हरि धाये हैं।
द्वार पै खड़े सुदामा वहां भगवन आये हैं।

जब देखा है श्री घनश्यामा,
ये तो मेरा मित्र सुदामा।
जब मित्र का चित्र लखा है,
लख बोले दीन दशा है।
भैया तूने जुलम गुजारौ,
क्यौं डौलौ तू मारौ मारौ।
क्युंअब तक यहां नहीं आया,
तूने इतना क्यौं कष्ट उठाया।
ये भी तो तेरा ही घर था,
किस बात का तुझको डर था,
देख दशा गुरु भ्रात की करुणा हाथ बढ़ाये हैं
द्वार पै।।0।।

फिर मित्र की जेट भरी है,
और रोये लिपट हरी हैं,
कह नहीं पावैं कुछ दिल की,
रुकती नहीं हरि की हिलकी।
करुणा निधि इतने रोये,
पग अंसुअनि से ही धोये।
फिर हरि ने दिल को थामा,
बैठाये हैं पास सुदामा।
कुशल क्षेम पूछ सब घर की फिर हंस बतराये हैं
द्वार पै।।0।।

सुदामा मित्र को भैंट करने थोड़े से चावल एक
पोटली में ले गये थे जिसे कृष्न से कांख में
छिपाने लगे
तब कन्हैंया ने कहा

ये कांख में क्या दुबकाता,
सच क्यौं ना तू बतलाता।
क्या भेजा है ये भौजाई,
जिसको तू रहा है छिपाई।
ये तो भेजा है मुझको,
इस पर नहीं हक है तुझको।
भगवान ने उसको खींचा,
पर विप्र ने उसको भींचा।
खोल पुटरिया चावल की बड़े चाव से खाये हैं।
द्वार।।0।।

मुट्ठी दो चावल की खाईं,
दो दीये लोक गहाई।
की तीसरी की तैयारी,
तब बोलीं रुकमिणि प्यारी।
लिया रुकिमिण हाथ पकर,
ये रहे हो क्या भगवन कर।
गर तीसरा लोक भी दोगे,
फिर तुम भी कहीं रहोगे।
तब बोले भगवन कान्हा,
"महावीर" इसे समझाना।
खाइ सुदामा के सब चाल सब कष्ट मिटाये हैं।
द्वार पै खड़े सुदामा वहां भगवन आये हैं।

कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र)


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