Thursday, January 9

"मिलावट""9जनवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-620
विषय मिलावट
विधा काव्य

09 जनवरी 2020,गुरुवार

तन मिलावट मन मिलावट
और मिलावटी है जग सारा।
इस मिलावट झूँठी दुनियां से
जगति का हर मानव हारा।

राजनीति में बड़ी मिलावट
धार्मिकता में अति मिलावट।
मानव भी मानव से बोले तो
बसे मुख में अति कड़ुवाहट।

मिर्ची हल्दी धनिया मिलावट
कँहा नही बस रही मिलावट?
हर रिश्ते में स्वार्थ मिलावट
जँहा देखते वंही है मिलावट।

खाद्य सामग्री रसायन मिलावट
प्राणवायु जल जहर मिलावट।
जीवन जीना दुष्कर हो गया है
सजावट में सज रही मिलावट।

मुखौटा धारक मानव मुख से
क्या खुद है वह दिखता क्या है?
असली सूरत रोज छिपाता वह
कहता क्या है करता क्या है?

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

9/1 2020
बिषय,, मिलावट

वर्तमान में मिलावटखोरों. का जमाना
दूध, सब्जियों. खाद्य पदार्थ मिलावट ही पीना मिलावट ही खाना
मिलावट से पनपते बीमारियों के घर
व्यापारी दे रहे धीमा धीमा जहर
अब मुश्किलें बढ़ीं खाऐं तो क्या खाऐं
डाक्टरों की जेब भरते जाऐं तो कहाँ जाऐं
मिलावटी ही मिलती हैं दवाई
इंजेक्शन गोली कोई काम न आई
कैसे जी रहे हैं प्रभु ही जानता है
मिलावटी जमाखोरों की ही प्रधानता है
इसलिए तो कहते हैं सच में भगवान है
तभी तो इंसान की जान में जान है
शनैः शनैः आदमी की उम्र कम होती जा रही
भटकती सारी दुनियां रसातल में समा रही
न जाने कब खुलेंगे चक्षु ज्ञान
कैसे बचेगी आम आदमी की जान
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार
शीर्षक - मिलावट
प्रथम प्रस्तुति


मिलावट का जमाना है ।
मिलावट तो होगी ही
क्या किसी को अजमाना है ।
नफ़रत होगी दूरी होगी
हमें रिश्ते निभाना है ।
हालात अब ठीक नही
यह सभी ने माना है ।
हमें हंसना है हंसने
के मायने बताना है ।
भूलकर नही खुद को औ
औरों को रूलाना है ।
सबका यहाँ बिगड़ा हुआ
कोई राग पुराना है ।
दर्द वैसे भी कम नही
और नही बढ़ाना है ।
धुल सके तो अपने मन
का मैल धुलाना है ।
व्यस्त जीवन में दो पल
सतसंग को चुराना है ।
जन्मों की मैली चादर
मिलावट रहित बनाना है ।
यही एक मोक्ष है 'शिवम'
इस पर ध्यान गढ़ाना है ।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 09/01/2020
दिनाँक- 09/01/2020
विषय-मिलावट


मुनाफाखोरी के इस युग मे,
हर जगह मिलावट मिलती है।
बेईमानी कपट लालच पर ,
आज की दुनिया चलती है।

उमंगों से परिपूर्ण कभी,
तीज -त्यौहार येआते हैं।
मिलावटी मिठाई का हँसके,
धीमा जहर हम खाते हैं।

मिलावट दंश अनाज दालों में ,
कुछ ऐसा घुस आया है।
रँगे कंकड़ को दाल समझ,
आँखों ने धोखा खाया है।

मिलावट से अब सब्जी
दूध भी नही अछूते हैं।
इंजेक्शन वाली सब्जी खाकर
दूध यूरिया का पीते हैं।

खाने पीने की बातें छोड़ो,
मिलावट रिश्तों में आई है।
अब रोगी दिल,रोगी है काया,
बचाओ प्रभु!दुहाई है दुहाई है।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
विषय- मिलावट
दिनांक-09/01/2020

मेरी मां तेरी आंचल तो धानी ही थी
चांद तारों से उसमें थे सितारे जड़े
रंग केसरिया का फूल उसमें बना
आज अपने ही लोगों ने बदरंग किया ।
जहां दूर तक ये निगाहें है जाती
मिलावट की ही बस बू है निकलती
कभी तेरी सत्ता तो कभी तेरी नियत
मुझे क्या जमाने को हर पल है छलती।
कभी कोई बेटी कभी कोई नारी
कभी कोई सत्ता कभी कोई मजहब
कभी कोई बेबस सी दुखियारी जनता।
तेरे मिलावट से दामन है भारी।
बहुत हो चुका अब बस भी करो
जीत जाने का फिर शंखनाद करो
धर्म कोई नहीं मजहब कोई नहीं
हिन्दुस्तानी होने का खुद पर गर्वित करो।
स्वरचित-निराशा सिंह' निशा'
वाराणसी, उत्तर प्रदेश

🌹🌻🍃 मुक्तक 🍐🍊🍓
*******************************
🌵🌷 मिलावट 🌷🌵
🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾

जीवन यह अनमोल मिला है,
इसको सहज व सरल बनायें ।

शुभ सोचे , मन-वचन- कर्म से ,
जीवन बगिया कमल खिलायें ।

नहीं उगायें नागफनी , दिल ,
कण्टक वचन न सोच कुटिल हो--

हो न मिलावट जीवन में ,
प्यार से हिल-मिल सफल बनायें ।।

🍓🌲🍒🌴🍇

🌹🍀***......रवीन्द्र वर्मा आगरा

मिलावट
9/1/20
मिलावटी दौर है यारो
सब चलता मिलावट से...
हर किरदार के अंदर....
जाने कितनी मिलावट है...

मिलावटी मुस्कुराहटें चेहरों पर...
नकली है हर अदा उसकी....
सच्चाई पर सौ परदे...
ईमानदारी बस दिखावट की...

मिलावट आंसुओं में है...
नकली प्यार और रिश्ते
मिलावट की बुनियाद से
रौशन हैं जीवन के सब रस्ते...

मिलावटी दुनिया में बस यारो
सच्चाई हारी है....
सदियों से उसके हिस्से..
बस तन्हाई आई है....

पूजा नबीरा काटोल
दिनांक- 9/01/2020
शीर्षक- मिलावट
विधा- छंदमुक्त कविता
******************
दुनियां का क्या अब होगा हाय!
मिलावट सर्वत्र कोहराम मचाए,
इंसान ही दुश्मन बन गये हाय!
अब शुद्धता हम कहां से लाए?

दाल, चावल में कंकड़ भरे हैं,
दूध में शैंम्पू का झाग मिलायें,
सब्जी, फलों में इंजेक्शन लगे,
ऐसा भोजन हम अब कैसे खाए?

अब तो रिश्तों में भी मिलावट,
हर बात में कर देते लोग बगावत,
दिल से अब कोई नहीं जुड़ पाता,
खत्म हो रहा अब रिश्ता-नाता |

सब अपने-अपने में ही रहते,
राजी-खुशी की कहां खबर लेते?
मिलावटी बातें सब कर लेते,
अंदर से फिर कीसते रहते |

मिलावट तेरा राज चल रहा,
इंसान ही इंसान को छल रहा,
आगे की तो अब प्रभु ही जाने,
मिलावट तेरे यहां बहुत दीवाने |

स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
दिनांक-9/1/2020
विषय-मिलावट


ज़माने में आजकल मिलावटों का दौर है
बिना मिलावट न मिलता एक रोटी का कौर है

मिलावट खोर आजकल खूब फ़ल फूल रहे हैं
आजकल तो अपने ही अपनों को खूब छल रहे हैं

साजिशें देखकर भी नजरें खामोश हो जाती है
सभी दिलों के अंदर एक आग सी धधक जाती है

इंसानों की सेहत को ताक पर ये अमानुष रख दिया करते हैं
अपने फायदे के लिए ज़िन्दगियों से खिलवाड़ किया करते हैं।

गूंगी बहरी सरकारें अब न जगेगी हमें मालूम है
उनके काम भी तो इसी तरह से ही चला करते हैं।

इन मिलावटखोरों को कुछ तो सबक सिखाना चाहिए
सेहत के दुश्मनों को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित

9/01/2020
"मिलावट"

दोहे

देख मुनाफा खोर ये,करे मिलावट काम।
सावधान रहना सदा ,ज्यादा लेते दाम।।

रखकर उसूल ताख पे ,करते हैं व्यापार।
रुपों के लिये बेचते ,मिलावलट आहार।।

आहार भी मिलावटी ,समझ से खान-पान।
आयेगा घर रोग भी , हर लेंगें वो जान।।

मतलब से नाते बने ,प्रेम की नहीं आस।
नाते हुये मिलावटी , टूट रहे विश्वास।।

जगमाया का खेल है , झूठा ये संसार।
भरोसा सभी खो रहे,मिलावटी जो प्यार।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
विषय , मिलावट
दिन , गुरुवार

दिनांक , ९,१,२०२०.

अभी मिलावट का जमाना है ,
बस मिलावट ही मिलावट है।
मिलावट आज रिश्तों में है ,
हुई बातों में मिलावट है।
अब नहीं ईमान खालिस है,
सच में भी मिलावट है।
हवा तक शुद्ध नहीं मिलती है ,
जल में भी मिलावट है।
मिलावट अब जहर बन गई है ,
ये लगने लगी कयामत है।
जब से नीयत में खोट आई है ,
मिलावट की हुई चाँदी है।
मिलावट की फसल रोकनी है,
हमें इसकी करना सफाई है।
हकीकत जो दुनियाँ की है,
हमें वही तस्वीर रखनी है।

स्वरचित, मधु शुक्ला.
सतना, मध्यप्रदेश .

दिनांक ९/१/२०१९
शीर्षक-मिलावट


मिलावट का धंधा भारी
हर चीज में मिलावट जारी
शुद्ध आहार मिले नही
मिलावट से परे नहीं।

मिलावट के परिणाम से
चाहते सभी परित्राण।
दु:खी है हर इंसान
फिर मौन क्यों है आज?

सौदागर चलते कुटिल चाल
मिलावटी सामान बेचे बाजार
हर चीज में मिलावट का भविष्य
सोचें क्या होगा परिदृश्य।

ख़ामोश रहना उचित नही
गंभीर है समस्या, समझे सभी
हर बस्तु की प्रामाणिकता परखे
तभी इस्तेमाल कर सकते।

"स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क"
ये सब तो जानते सभी।
शुद्ध आहार दें स्वस्थ मस्तिष्क।
बदलना होगा मिलावटी परिवेश।

अपने स्तर पर सभी करें प्रयास
भयाकुल है सारा समाज
मिलावटी सामान से मुक्ति
निकाले कोई उक्ति।

एक लक्ष्य है, एक आधार
मिलावटी सामान हो बहिष्कार
मिलावट से मुक्ति तो
रोग से मुक्ति।

स्वस्थ हो समाज, स्वस्थ हो परिवार
मिलकर करें सभी प्रयास।
हम सुधरेंगे,जग सुधरेगा
पहला कदम मायने रखते खास।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
9/1/20
विषय मिलावट


मिलावट का जमाना है।
मिलावट ही मिलावट है।
रिश्तों में भी मिलावट है।
प्रेम में भी मिलावट है।

जुबा में भी मिलावट है।
आँखो में भी मिलावट है
वादों में दिखावट है।
मिलावट ही मिलावट है।

खाने में मिलावट है।
असली में मिलावट है।
नकली तो नकली है।
जहर में भी मिलावट है।

शब्दो मे मिलावट है।
खूनो में मिलावट है।
प्रदूषण ने जो फैलाया।
हवाओ में मिलावट है।

सभी खाते मिलावट है।
ब्रांडेट में भी मिलावट है।
रोगों को देते दावत है।
डॉक्टरों में भी मिलावट है।

स्वरचित
मीना तिवारी
विषय -मिलावट
दिनांक ९-१-२०२०
मिलावट का माहौल,व्याप्त चहुँओर है।
जिधर भी देखो उधर,सिर्फ हरामखोर है।।

शुद्धता के नाम पर,बस केवल मोहर है।
मिलावट करने वाले,सबके सब चोर है।।

इंसानियत के नाम पर,एक वो कलंक है।
पाप करने वालों का ,कहीं नहीं ठौर है।।

यह कैसा आजकल, मिलावटी का दौर है।
देखो बन रहे पागल ,नहीं कोई छोर है।।

जिंदगी को देखो, नादान बना रहे ढोर है।
अब भी संभल,आ गई जीवन की भोर है।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
09/1/2020
विषय:-मिलावट


मिलता नही अब रिश्ता
बिना मिलावट का
अब नही कोई फ़रिश्ता
मुस्कराहट का

सत्य सदा ही है मिलता
झूठ की मिलावट का
मानवीय गुण भी सहता
छल-प्रपंच की आहट का

व्यापार जगत सदा ही करता
धन्धा मिलावट का
राजनीति का विश्व भी रखता
प्रगुण महमिलावट का

प्यार आज भी है सहता
धोखा रूपी मिलावट का
मनुष्य सदा ही चिंता करता
भविष्य की मुस्कुराहट का

©स्वरचित
मनीष श्री

दिन :- गुरुवार
दिनांक :- 09/01/2020

शीर्षक :- मिलावट

रिश्तों में हो रही..
स्वार्थ की मिलावट..
कर रहे हैं वो..
शतरंज की सजावट..
छल प्रपंच सब..
बन रहे हैं प्यादे..
मधु से मधुर..
कर रहें सब वादे..
आस्तीन में पलते साँप से..
करते घात विश्वास में..
मतलब हो पूरा बस..
रहते सदा इसी ताक में..
रिश्तों को सदा तौलते..
स्वार्थ के तराजू में..
मुँह पर मीठा बोलते..
लेकर खंजर बाजू में..
कहाँ बनते हैं शुद्ध रिश्ते अब..
रिश्ते भी रिश्तों को तरसते अब..
मिलावट का दौर है ये ऐसा...
कुछ अछूता न रहा इससे..

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
विषय मिलावट
विधा कविता

दिनाँक 9.1.2020
दिन गुरुवार

मिलावट
💘💘💘💘

बीमारी की अब जो आती रहती आहट है
उसकी गर्जना में मिलावट ही मिलावट है
ठीक होने के लिये दवाईयों का सेवन करते
पर उनसे तो बढ जाती घबराहट है।

असली घी दिखता डरा डरा
पनीर भी रहा कहाँ खरा
मसालों से सारा स्वाद मरा
क्या खायें मन रहता भरा।

व्यवहार में स्वार्थ की मिलावट है
स्वागत में कहाँ रही गर्माहट है
सम्बन्धों में क्षीण सी नर्माहट है
बस दिखावट ही दिखावट है।

मिलावट ने समीकरण सारे बिगाड़ दिये
खालिसों के संतुलन उजाड़ दिये
अब तो हर उत्तर है संशय भरा
इसने सारे विश्वास भी पछाड़ दिये।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
९-१-२०
विषय-मिलावट

ताटंक छंद
सत रज तम के गुण को धरकर,मनु ने पाई काया है।
मानुष ने लालच में अपने, तमो गुणों को गाया है।।

अनुकरण करे मानव सतगुण ,
हरीशचंद्र बने गाथा।
धार लिया यदि कलियुग यह गुण,
शीश झुकाये है माथा।।
सत्य भावना कलुष धार की,आज कपट का साया है।
मानुष ने लालच में अपने, तमों गुणों को गाया है।।

महिमा गा कर अशुद्ध भावों,
मानव मन इठलाता है।
करे नष्ट ये प्रकृति तत्व को,
ज्ञान इसे कब आता है।
भ्रष्ट भाव से क़ुदरत विचलित,हुआ प्रदूषित जाया है।
मानुष ने लालच में अपने,तमों गुणों को गाया है।।

पहुँच गई है चरम परिधि पर,
प्राण मिलावट की रेखा।
सँभल मनुज तू सँभल जरा ले,
वह ही देख रहा लेखा।
परिणामों को तू भुगतेगा, अंत कर्म गुण माया है।
मानुष ने लालच में अपने,तमों गुणों को गाया है।।

स्वरचित
रचना उनियाल
बैंगलोर
विषय : मिलावट
दिनांक : 09/01/2010

विधा : छंदमुक्त कविता
मिलावट
सच का जीना मुहाल
बनावट है मालामाल।
दंबग बन बैठा झूठ
सच का है बुरा हाल ।
आज सब बाजारों में, बस झूठ बिकता है
मिलावट का दौर है शुद्ध कहाँ टिकता है ।
रिश्तों में अविश्वास,
मिटती नहीं तलाश ।
अपनों से खतरा है ,
किससे लगाएं आस ।
स्वार्थ में अंधे लोग, कौन यहाँ किसका है
मिलावट का दौर है, शुद्ध कहाँ टिकता है ।
राजा बन बैठा चोर,
हर गली हर मोड़ ।
इल्जाम सच पे है ,
छुपता लगाए दौड़ ।
आज लोकतंत्र में, चोर तो फ़रिश्ता है
मिलावट का दौर है, शुद्ध कहाँ टिकता है ।
मिलावट का दौर है, शुद्ध कहाँ टिकता है ।

जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब ।
विषय : मिलावट
तिथी : 9.1.2020

विधा : कविता

वर्क सजावट, ढके मिलावट।

जीरे में गोबर
धनिए में मिट्टी
काली मिर्च में बीज पपीता
सुंदर पैंकिग की तरावट।

वर्क सजावट, ढके मिलावट।

दूध में शैम्पू
दही में पाउडर
खोए में ब्लाटिंग
हा! स्वास्थ्य में गिरावट।

वर्क सजावट, ढके मिलावट।

आटे में मैदा
चावल में कंकर
सब्जियों में रसायन
फलों की रंगत, इंजैक्शनी बनावट।

वर्क सजावट, ढके मिलावट।

राजनीति का लेबल, कुर्सियों में जान
बगलों में छुरी, मुंह पर राम राम
स्वार्थी लक्ष्य, दोस्ती की धुरी
ढूंढती नेह, रिश्तों की कराहट।

वर्क सजावट, ढके मिलावट।

प्रकृति में भी मिल गया प्रदूषण
भीतर खोट लिए चमके भूषण
खोटे चरित्रों पर शालीन मुस्कराहट
इंसानियत की प्रतीक्षा में आई थकावट।

वर्क सजावट, ढके मिलावट।

--रीता ग्रोवर
--स्वरचित
विषय- मिलावट

मिलावट मिलावट मिलावट
हर चीज में मिलेगी मिलावट।
शुद्ध कुछ भी नहीं,आज के दौर में
प्यार में भी है, स्वार्थ की मिलावट।
हर इंसा का हाल,हो रहा बेहाल
सजा के चेहरे पे झूठी मुस्कुराहट।
रिश्तों में पनप रहे नफरत के कांटे
दिखाते हैं फूलों सी खिलखिलाहट।
बचके रहना दिखावे की दुनिया से
रखना सम्भालकर घर की चौखट।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर

विषय-मिलावट
छंद मुक्त


मिलावट न करना
कभी प्यार में
चले आये हम तेरे
संसार में
किया है भरोसा
तेरे प्यार पर
भरोसा न टूटे
एतबार पर
मन वचन से सदा साथ
दिलवर निभाना
रिश्तों की
पाकीजगी को निभाना
गर खोट हो औ
मिलावट अगर हो
नहीं प्यार सच्चा
वो नाकाम हो

सरिता गर्ग

तिथि-9/1/2020/ गुरुवार
विषय-* मिलावट*

विधा -छंदमुक्त

आज मिलावट से ही तो
धंधा चल रहा है।
शायद इसीलिए कुछ
सब दूर मंदा चल रहा है।
क्योंकि मिलावट से
अब हरेक आदमी
तृष्त और तृप्त हो गया है
लगता है कोई
शुद्धता ही भूल गया है।
अब तो मिलावट में ही
मिलावट होने लगी है।
मगर मिलावटी आदमी की पहचान
आज भी जनता को नहीं हो रही।
देखिये न लोग जहर में ही
बिष घोल रहे हैं और
मानवता के पैरोकार बन
यहां कुत्तों सा भोंक रहे हैं।
चाट रहे जूठन हमारी
और ये मिलावटी विदेशी भाषा बोल रहे हैं।
उल्लू जैसा
कहीं भी मुंह खोल रहे हैं।
कोई कहता
भारत की गली गली में
वर्ण शंकर डोल रहे हैं।
जिन्हें खुद का पता नहीं
कहां से आए हैं।
वहीं हमारी संस्कृति, सभ्यता में
शरारत ढूंढ रहे हैं।
अनाज दाल किराना हो या
फल, सब्जी, दूध ,घी
दवाई हो या कोई भी सामग्री
सभी जगह
मिलावट का बोलबाला है
क्यो कि यहां अब असली नहीं
नकली का ही जमाना है।
अब आदमी अंदर से ही काला है।

स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मंगलाना गुना म.प्र.

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"अंदाज"05मई2020

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