Monday, January 13

परिस्थिति"13जनवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-624
विषय परिस्थिति
विधा काव्य

13 जनवरी 2020,सोमवार

परिस्थिति से क्या घबराना
जीवन है संघर्षो से लड़ना।
प्रकृति नव सबक सिखाती
कभी पतझड़ पुनःखिलना।

राम स्वयम वनवास गये थे
मीरा ने खुद जहर पीया था।
भरी सभा में बुरी नियत से
चीर हरण द्रोपदी किया था।

परिस्थितियां तो धूप छाँव है
हँसना रोना जीवन खेल हैं।
सावधान हो जीवन जी लो
कभी बिछुड़ना कभी मेल है।

बनती बिगड़ती परिस्थितियां
शुभ मङ्गल गीतों को गाती।
हर्ष अशुभ यश अपयश होते
जीवन लीला खेल खिलाती।

जीवन सुंदर स्वर्गीम सुख है
बड़े भाग्य से मिलता सबको।
परिस्थिति तो आनी जानी है
मज़े लेने हैं मिलकर हमको।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान
नमन "भावों के मोती"
नमन साथियों


परिस्थिति
तू मार
जितना चाहे मार
मैं घबराने वाला नहीं
तू जितना मारेगा
मेरा संघर्ष उतना ही
तीब्र होगा
शक्ति मिलेगी लड़ने की
बनो तुम राहों के काँटे
जब किस्मत ने ही बाँटे
तो गम क्या, आँखें नम क्या?
गोली और बम क्या?
उठकर गिरना और
गिरकर उठना
जीवन का संदेश है
अंधेरे का शमाँ बंधेगा
तभी तो उजाले का किरण फूटेगा
इसलिए हताश नहीं मैं
परेशान नहीं मैं
करो जुल्म कोई फर्क नहीं पड़ता
ईश्वर मेरे साथ हैं
भरोसा है उनपर
इसलिए हर क्षण,हर पल
कार्यरत हूँ
हवा, पृथ्वी, नदी, सूर्य की भाँति
ताकि लोग
दोषारोपण न करें
कि मैं सक्रिय नहीं रहा
चला नहीं जमाने के साथ
सबका मुँह बंद करना है-मुझे।
और तुम्हारा भी
इसलिए
परिस्थिति तू मार
जितना चाहे मार
मैं सदैव तैयार हूँ
हर संघर्ष के लिए
एक नयी लड़ाई के लिए।

स्वरचित
रत्नेश कुमार शर्मा"रत्नाकर"
पोखरतल्ला ,मिहिजाम
जामताड़ा,झारखंड

विषय - परिस्थिति
प्रथम प्रस्तुति


परिस्थितियाँ हमसे सवाल करतीं
परिस्थितियाँ हमसे बवाल करतीं।।
परिस्थितियों को समझना सदा ही
परिस्थितियाँ कभी धमाल करतीं।।

इंसान परिस्थितियों का दास न हो
इंसान परिस्थिति में उदास न हो।।
हो गर हिमालय सा अडिग इरादा
क्यों फिर कोई सफल प्रयास न हो।।

यहाँ पर सब कुछ बदल रहा है
इंसान फिजूल मचल रहा है।।
धैर्य लगन औ साहस का परचम
कल भी था अब भी चल रहा है।।

मोड़ दे जो नदी का धारा
ऐसा जो व्यक्तित्व निखारा।।
उसके आगे झुका है 'शिवम'
गली गाँव क्या संसार सारा।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 13/01/2020

विषय परिस्थिति
दिनांक 13/01/2020


वो आकर
खडी हो गई समक्ष
किसी टीचर की तरह
कोमल थी पर कठोर बनी
परिस्थिति मार्गदर्शक बनी
सवाल बडे कठिन थे
कुछ जाने से कुछ अनजाने थे
नये सवालो ने डर दिखाया
पर अंधेरे मे जैसे उजाला सीखाया
धीरज के साथ आगे बढना सीखाया
वो जिद्दी थी या जिद्दी थी बनी
मेरी भी उससे बहुत थी तनातनी
वो सवाल दर सवाल करती रही
मै जवाब तलाशता देता रहा
कभी सफल कभी असफल रहा
वो मौन रही और कुछ न कहा
वो परीक्षा बदलती रही
कभी सरल कभी कठिन करती रही
जिंदगी भी मेरी यूं ही चलती रही
आखिर उसका कोमल पक्ष भी दिखा
जब गुूजरा परिस्थितियों से मै
सच कहता हूं मैने बहुत कुछ सीखा
सच कहता हूं मैने बहुत कुछ सीखा

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
13 /1/2020/
बिषय,, परिस्थिति

परिस्थिति लोगों को क्या से क्या बना देती है
कभी आसमां कभी. जमीन पर गिरा देती हैं
ऊगते सूर्य को सभी नमस्कार करते हैं
डूबते हुए से दरकिनार करते हैं
वर्तमान में तो बस दौलत से प्यार करते हैं
वरना भाई भाई से भी अजनबी सा ब्यवहार करते हैं
इंसान के हाथ में कुछ भी नहीं
वह तभी तक परिस्थिति सही है
आदमी तो क्या सब समय की बात है
वक्त ही कहता रात को दिन ;दिन को रात है
ए तो काल का चक्र है चलता ही रहेगा
लेकिन इंसान नहीं सुधरेगा बदलता ही रहेगा
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
विषय-परिस्थिति
दिनाँक-13/1/2020


परिस्थिति बड़ी बलवान होती है।
जीवन की यही माला पिरोती है।
देकर खुशियाँ हँसाती है कभी ये,
कभी गम के दरिया में डुबोती है।

वश में इंसान के नहीं कुछ होता।
वह तो बीज खुशियों के ही बोता।
होके मजबूर परिस्थिति के हाथों
फिर दहाड़ें मार- मार के रोता।

परिस्थिति कुछ ऐसी आई थी।
कीर्ति जिसकी देश में छाई थी
राणाप्रताप से रणबांकुरे ने
वन में रोटी घास की खाई थी।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
तिथि : 13 जनवरी 2020
विषय : कविताएं

शब्द : परिस्थिति

लगता है जिंदगी को ...
बदलने में वक्त लगेगा ...
पर क्या पता था ...
बदला हुआ वक्त ...
जिंदगी बदल देगा ...।

हर तकलीफ से इंसान का
दिल दुखता बहुत है ,
पर हर तकलीफ से इंसान
सीखता बहुत है ।

मिट्टी से बना है
फिर मिट्टी पर चलना है
और फिर मिट्टी में मिल जाना है
औकात ए इंसान है ये
तो फिर गरूर कैसा ...?
ये इंसानों की परिस्थिति है ।

स्वरचित एवं मौलिक
मनोज शाह 'मानस'
सुदर्शन पार्क,
मोती नगर, नई दिल्ली

नमन मंच।👏
शीर्षक-परिस्थिति।
स्वरचित।
हम सब हैं परिस्थितियों के गुलाम
जब जैसी आ पड़ती है
हो जाते हैरान,परेशान।।

सुख में डूबे अहंकार में
किसी को कुछ ना समझें।
हम ही सब कुछ इस दुनिया में
हमसे बढ़कर कौन?

जब दुख देता ऊपर वाला
किस्मत को हम रोते
सौ-सौ गाली देते उसको
दिनभर खुद को कोसते।

बदले समय पर हम ना बदलें
यही सीख इंसान।
समय को बदल दे करके हिम्मत
सर ना झुका नादान।

वीर,साहसी,कर्मठ ,जीवट
हो जाओ तुम मानव।
समय ना हाबी हो तुझ पर
निर्णायक बन जाओ।
परिस्थितियों को दास बनाओ।।
****
प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"
13/01/2020

13/1/20

आ जाते है
कुछ वाक्या
जीवन मे
उलझाने
जिंदगी को
बेबस लाचार
करने
बेसहारा करने
चुनौतियों
से भरने
बाढ़ बनकर
सूखा के रूप में
आत्महत्या
अग्नि काण्ड
सड़क दुर्घटना
बालिका शोषण
सैनिक बलिदान
बहुत सी धटनाये
बन जाते
हादसे का
रूप
दे जाते
एक दुखद अंत
कभी स्वता द्वारा
या हादसा
बनकर
परिस्थितियों से
समझौता करने को...
स्वरचित
मीना तिवारी
दिनांक-13/01/2020
विषय-परिस्थिति


काश पूरी दुनिया नग्न होती.........
तब न नग्नता होती ,न अश्लीलता होती

ठंडा हो/ चूल्हा
अनुपस्थित हो/ धुआं
खामोश हो/ बर्तन
कैसे हो परिवार/ का जतन
भड़की हो भूखी/ आग
जब शुष्क हो/ सुखी आँत
कैसे बीतेगी/ सुनी रात
हरियाली की /सूखी पात
गीली आटा/ खोखली जाँत
खोखले आदर्शों /का बोझ
पेट भरेगा कैसे/ रोज
जीना ही/ जीवन है
बिना नीर / पनघट के घाट

स्वरचित........

सत्य प्रकाश
इलाहाबाद

13-01-2020.
विषय: परिस्थिति।

********************************
ईश्वर ने यह जगत बनाया, उसकी अनुपम कृति है हम।
संघर्ष ही है जीवन का आधार,इस मूल-मंत्र को माने हम।
तभी सफल होगा ये जीवन, लक्ष्य प्राप्त कर सकेंगे हम।
अपार शक्ति है समाई हममें, हर परिस्थिति से जूझे हम।।
********************************
सार्थक करें अपना ये जीवन,जग का कल्याण करें हम।
यही है ईश्वर की सच्ची पूजा,आओ निःस्वार्थ पूर्ण करें हम।
मानवता की रक्षा खातिर अपना सर्वस्व अर्पण कर दें हम।
विपदाओं से जूझना सीखें,सिंह गर्जना कर विजयी हों हम।।
********************************
(स्वरचित) ***"दीप"***

विषय :परिस्थिति
दिनांक:13/ 01/2020


हे मनु
अब उठो
जागो
नवयुग का
निर्माण
करो

नव चेतना से
कर्मवीर
बनो
मन में
नव संकल्प
करो

परिस्थिति हो
विकट
ना डरो
निज शक्ति
संकट दूर
करो

सत्य पथ के
अनुगामी
बनो
सत्य को
धारण
करो

देश के
सच्चे लाल
बनो
धर्मवीर
माँ की रक्षा
करो

कहे 'रिखब'
नव सृजन
करो
मातृभूमि का
नव श्रृंगार
करो

रचयिता
रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
®स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित
जयपुर राजस्थान

दिनांक : 13 जनवरी 2020
वार : सोमवार

विशेष : परिस्थिति
विधा: पद (छंदबद्ध कविता)

उपजे_उर से उम्मीद उमंग

जुनून जीत का जिद्दी होकर,जज्बातों संग लड़ता जंग।
विजय विरासत बने बशर्ते,उपजे उर से उम्मीद उमंग।।

हालातों को हरा हराकर , हिम्मत हृदय की बढ़ती है ।
बैठा जहन में ये ही बात ,चट्टानों चींटी चढ़ती है ।।
वजन बदन से ज्यादा होता, पहुँचे मंजिल पाकर तंग ।
विजय विरासत बने बशर्ते,उपजे उर से उम्मीद उमंग।।

दुर्गम पथ है ,दूर पथिक है ,पथ फिर भी पैरों के नीचे ।
इम्तिहान ले बोझ बैल का ,कर बर्दाश्त दर्द रथ खींचे।।
मंजिल को पाने की चाहत ,कर देती है सभी को दंग ।
विजय विरासत बने बशर्ते,उपजे उर से उम्मीद उमंग।।

भाग्य भागे कर्म के पीछे , कर्म रहे मेहनत के पास ।
मेहनत मोहताज निष्ठा की,निष्ठा काबिलियत की दास ।।
काबिलियत में कमी एक ही,बिनअवसर के होती अपंग।
विजय विरासत बने बशर्ते ,उपजे उर से उम्मीद उमंग ।।

कैसे बिंब दर्शाए दर्पण ,जब तक साफ करो नहीं धूल ।
हु-ब-हू फतेह की फितरत ,भूल कर न दोहराओ भूल ।।
'नफे' भूल है भयंकर बिच्छू , काटता उसे रहे जो संग ।
विजय विरासत बने बशर्ते , उपजे उर से उम्मीद उमंग।।

नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित कविता
मौलिक

दिनांक 13-01-2020
विषय- परिस्थिति


परिस्थिति कब एक सी रहती,
मनुष्य परिस्थितियों का है दास ।
जीवन है जंग परिस्थितियों से,
दुख में भी सुख की हो आस ।

जीवन में ऐसे मोड़ कुछ आए,
परिस्थितियों ने जब रुख मोड़ा ।
खिलते हुए कुसुम को जैसे
माली ने ही डाली से तोड़ा ।

हारी नहीं परिस्थितियों से कभी,
दुख बेगुनाही का है मिलता ।
आत्मविश्वास है अडिग मन में
कीचड़ में ही कमल खिलता ।

कांटों में ही फूल का जीवन,
कैसी भी परिस्थितियां आए ।
कुम्हलाए नहीं फूल शूल में
खुशबू से जग को महकाए ।

दिनकर भी हर परिस्थिति में,
देखो उदय और अस्त है होता ।
बादल कुहरा धुंध में भी यह,
कभी नियम नहीं है खोता ।

वश में नहीं परिस्थितियां होती ,
कभी विवश हम भी हो जाते ।
कोशिश करके लाख संभालें,
कभी खुद संभल नहीं पाते ।

कभी परिस्थिति भीषण होती,
नसीब में संध्या कब हो भोर l
कहाँ तिलक था श्री राम का,
कहाँ चल पड़े वन की ओर l

कभी-कभी परिस्थिति को हम,
अविवेकी हो कठिन बनाते ।
सूझबूझ मनन चिंतन से फिर
स्वयं उसे हम हल कर जाते ।

दुविधा लाचारी या खुशियां हो,
जग के प्रति न दुर्भाव रहे ।
हार जीत यश अपयश जो हो,
सुख में दुख में समभाव रहे ।

विनती हर पल तुमसे हे ईश्वर ,
तुझ में आस्था व झुकाव रहे ।
विषम परिस्थिति में विचलित न हों
बस जीवन का न अभाव रहे ।

कुसुम लता 'कुसुम'
नई दिल्ली

भावों के मोती
विषय- परिस्थिति


परिस्थिति आए चाहे कैसी भी
हर मोड़ से यूं ही गुजर जाएंगे हम।
हंसके करेंगे तय, सफ़र-ए-जिंदगी
आंसू कभी भी ना बहाएंगे हम।।

सुख-दुख तो आते-जाते रहते
कर्मवीर तनिक ना घबराया करते।
हर अवरोधों को पार करके
मंजिल की जानिब बढ़ते जाएंगे हम।।

बस रहना सदा तुम साथ मेरे
कुछ भी न कर पाऊंगा मैं बिन तेरे।
एक-दूजे का बस बनके सहारा
हर मुश्किलों को झेल जाएंगे हम।।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर

तिथि -13/102020/सोमवार
विषय -*परिस्थिति*

विधा- छंदमुक्त

मनुष्य परिस्थिति का मारा
घबराता दौड़ता
कहीं बचकर निकलने
मगर क्यों घबराएं हम,
कोई बर्फ नहीं जो
पिघल जाएंगे।
परिस्थितियों से
दो दो हाथ करेंगे
टकराएंगे
इन्हें भगाएंगे।
परिस्थितियों के दास नहीं
हम इनके स्वामी बनेंगे।
डरकर नहीं यहां
सभी डटकर लड़ेंगे
और इन डराती रूलाती
धमकाती हुई
कायर परिस्थितियों की
लौहयुक्त
मजबूत दीवार बनेंगे।
ईश ने हमें
सबकुछ तो दिया है
फिर क्यों तुमने इस मन को
अपने इरादों से हल्का किया है।
बस एकता के सूत्र में बंधे हम
आपसी मतभेद से टूटें नहीं हम
चलो आसमां में
छेद कर दें
अपने कदमों में इन
सभी परिस्थितियों को रख दें।

स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म प्र
जय-जय श्री राम राम जी

भा*परिस्थिति* काव्य छंदमुक्त
13/1/2020/सोमवार
शीर्षक परिस्थिति
12/1/2020

विधा छंदमुक्त

परिस्थिति हो कभी अनुकूल या प्रतिकूल ,
न बैठ थक कर कभी,रच तू इतिहास मानव।

अंधेरों में ना दिखता जो हाथ को हाथ ,
ऐसे में न छोड़ तू कभी हिम्मत का साथ ,
उजालों के खिलेंगे फूल और होगी भोर ,
विपदाएं होंगी दूर , नाचेंगे मन के मोर ,
परिस्थितियां कभी अनुकूल या प्रतिकूल ।
न बैठ थककर कभी, रच तू इतिहास मानव।।

वक्त रचता हो भले कितना कठिनसंवाद ,
थक हार जायेगा , औ दूर होगा प्रमाद ,
सुंदरतम आशाओं का हो कभी आगाज़,
औ जल उठेंगे मन के बुझते हुए चिराग ,
परिस्थिति हो कभी अनुकूल या प्रतिकूल ।
न बैठ थक कर कभी, रच तू इतिहास मानव ।।

रचले अपने गम खुशियों के नवल विधान ,
डैनों में भर ताकत ले एक नई उड़ान ,
पराजय से न थक ,सदा नए हौसले बांध ,
कठिनाइयों के पर्वतों को तू सदा लांघ ,
परिस्थिति हो कभी अनुकूल या प्रतिकूल ।
न बैठ थक कर कभी रच तू इतिहास मानव ।।

मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित

13/01/2020:: सोमवार
परिस्थिति

छन्द मुक्त रचना

कंचन किरणों की किश्ती पर
प्रभात बेला और सागर तट.....
झूल रहा है वो बाहों में
बचपन मेरा है नटखट.....
भय नहीं मुझको कोई भी
गोद पिता की ज्यूँ वृक्ष वट.....
देते मुझको शीतल छाया
और रखते अपने निकट......
झट आगाह किया करते
परिस्थिति कोई हो विकट.....
धीरे से मुस्काते रहते
देख माँ सँग बाल हट.....
आज भी मुझको समझ बच्चा
देते हैं वो जोर डपट....
फिर भी मुशिकल कोई हो तो
साथ खड़े हों आ झटपट.....
रजनी_रामदेव
न्यू_दिल्ली
Damyanti Damyanti 
भावो के मोती
विषय_ परिस्थिति

ये जीवन की पाठशाला,
मिलती वास्विक शिक्षा|
पग पग पर हे चुनौतियां
सही पथ चुनकर चले |
देती कर्मशीलता कर्मठ बनो
बदल दो परिस्थितियां तुम
नये इतिहास बनाने की |
जीवन है सघर्ष,तनमन धन
लगा राहे मोडदो |
बचाओ संसाधनजो हैं
देश को नवीनता से सजादो |
लडकर विकट परिस्थिति से
बचाओ आत्मसम्मान|
न रूको न डरो न मौन रहो
|
लेती अग्नि परीक्षा न घबराओ
यंहा धन नही ,काम आते हिम्मत
काम आते संबध,व्यवहार,स्वभाव |स्वरचित_ दमयंती मिश्रा

विषय , परिस्थिति
दिनांक , १३,१,२०२०.

वार , सोमवार

जीवन हम सब का संघर्ष भरा ,
हिम्मत से सामना इसका हुआ।
विषम स्थिति पर काबू हो सका,
हौंसला हमारा जो मजबूत हुआ।

हो परिस्थिति कैसी भी जीवन में,
कभी डरने से मिला मुकाम नहीं।
सीखा नहीं जिसने परिस्थिति से ,
कर पाया कभी नव निर्माण नहीं।

अक्सर ही मौसम बदला करते हैं,
हम व्यवस्था भी वैसी ही करते हैं।
ऋतुओं का आना जाना चलता है,
जीवन भर हम सब इनसे लड़ते हैं।

परिस्थितियां बनती और बिगड़तीं हैं,
ज्ञानी इनको एक कसौटी कहते हैं।
जो परिस्थितियों को दिशा मानते हैं,
दुनियाँ में वे सुखमय जीवन जीते हैं।

स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश
13/1/2020
परिस्थिति

परिस्थिति अनकूल हों, तब बढ़े तो क्या बढ़े...
जब हों तेज बारिशें,तूफ़ान के आसार हों...
उस समय कदम बढ़े, तब तेरे हौसलों की पहचान है...
गर कहीं मिली जो छाँव, कदम थोड़े ठिठक गये....
जो कड़ी धूप मिली, तो मंजिल की और तेज चले....
छोटा न था ये लक्ष्य, की बस कहीं कदम जो थम गये....
जाना है दूर तलक की, क्षितिज छूने हम चले....
जो भी हो मुश्किलें राह में, कदम न थम सकें...
परिस्थिति पर हो यूँ नजर, की भ्रमित न हों इरादे कभी...
बस बढ़ चले जो अब कदम,....
अब कभी न थमें....
पूजा नबीरा काटोल नागपुर
दिनांक - १३-१-२०
दिवस - सोमवार
विषय - परिस्थिति
~ हे कवि ~
जोश की मृत्यु हुई या होश भी अभिशप्त है,

मन मरा कुंठित हुआ या तूँ भी कोई भक्त है।

पक्षपाती हो गया लिखता नहीं हालात को,

पुरस्कार से दब गया या कलम तेरी जप्त है।

~ हे कवि ~
देश तेरा जल रहा तूँ आशिकी में ढल रहा,

कलम तेरी जल न जाये तिब्र लौव निकल रहा।

पथ-प्रदर्शक भाव पर लिखता है तूँ नैनों भाषा,

कोमल तेरे एहसास जब बसंत है उबल रहा।

~ हे कवि ~
रणभेरी बज रही तब प्रेम का नहीं ठौर है,

रसों अलंकरों का होता अपना भी एक दौर है।

बजे बधाई मौत पर यूँ देखा नहीं मैने कभी ,

वक्त वो कुछ और था ये परिस्थिति कुछ और है।

~ हे कवि ~ अरे हे कवि ~
सन्तोष परदेशी

13/01/20
परिस्थिति

छन्द मुक्त
**
मैं सही ,
मेरे तर्क़ सही
मेरे विचार सही ।
आप सही
आप के तर्क़ सही
आप के विचार सही ।
फिर गलत क्या ?
गलत कहाँ
गलत कौन कब रहा।
परिस्थिति क्या गलत रही
क्या गलत घटित होता रहा
लिखा विधान का मिलता रहा ।
माना परिस्थिति गलत
जो घटित वो गलत
उसे सही गलत का भान नहीं।
पर बुद्धि ,विवेक
मनुज के पास ।
वो क्यों बन जाता
परिस्थिति का दास।
पाल के कटुता मन में
रखता द्वेष और अविश्वास ।
बारिक रेख दोनो के मध्य
मत भूलो ये तथ्य ।
परिस्थिति हो सकती प्रतिकूल
पर सक्षम है हम
मिटा वैमनस्य
ढलें उसके अनुकूल ।

अनिता सुधीर
दिनांक 13/01/2020
विधा:सयाली छंद

विषय:परिस्थिति

परिस्थितियाँ
अनुकूल प्रतिकूल
कर दृढ निश्चय
कोशिश निरंतर
सम्पूर्ण ।

देशभक्ति
सर्वोत्तम प्राथमिकता
जटिल हो परिस्थति
अग्रसर हरदम
विजयी।

जरूरत
महिला सशक्तिकरण
आत्म बल उजागर
सुरक्षित भविष्य
जागरूकता ।

स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
दिनांक -13-1-2020
विषय-परिस्थिति

विधा-मुक्तछंद

जितना कुछ मिला हुआ है
कहीं खोया उससे ज़्यादा है ,
दर्द बहुत है लिखने वाला
पर लिखा गया जो आधा है ।

भरोसा बहुत किया ग़ैरों पर
अपनो ने भी इसको तोड़ा है ,
साहिल आने से पहले ही
लहरों ने भी दामन छोड़ा है ।

भ्रम वाली सब दीवारों की
पपड़ी सारी उतर चली ,
ढहने को है एक आशियाँ
मुरझा गई हसरत की कली ।

कर बैठे बग़ावत इस ज़माने से
बस अब अंजाम आना बाकी है ,
कतरा -कतरा लहू का कहता
परिस्थिति की कोई चालाकी है ।

फ़रियाद किसी से क्या करना
लकीरें हाथ की यह कहती हैं ,
बुरे समय की एक एक चोट पर
ज़िंदगी पल-पल आहें भरती है ।

पतझड़ -सी छाई है उदासी
मधुमास झलक को तरस रही ,
ज़िंदगी में बिन मौसम के देखो
बन बारिश मायूसी बरस रही है ।

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित एवं मौलिक

विषय - परिस्थिति
दिनांक-१३--१-२०२०
परिस्थितियों की रस्सी लटककर, रोज न जाने कितने ख्वाब टूट जाते हैं।
कमजोर होते हैं वह लोग,जो हालात सम्मुख टूट जाते हैं।।

परिस्थितियों के समक्ष,अक्सर लोगों को खामोश रहते देखा हैं।
पीठ दिखा वही भागते हैं,जो लड़ने का हुनर नहीं जानते हैं।।

विपरीत परिस्थितियों से बाहर, कुछ बिरले ही निकल पाते हैं।
माँ आशीष से जो जिंदगी सामना करने,घर से निकलते हैं।।

परिस्थितियां एक जैसी नहीं होती,अदम्य साहस बनाते हैं।
समय परिस्थिति सदैव पक्ष हो न हो,हम यूं ही मुस्कुरा लेते हैं।।

जब जीना ही है सीना तान,तो क्यों घुट घुट मरने तैयार रहते हैं।
प्रभु श्रेष्ठ रचना है,फिर परिस्थिति मुकाबला क्यूं न हिम्मत करते हैं।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

विषय : परिस्थिति
तिथि :13.1.2020

विधा : कविता

समय-समय पर विभिन्न सी परिस्थितियां
लाता रहता है जीवन!
कभी तो सुख-दुख,कभी हर्ष और विषाद
हैं जीवन की जड़- नींव।।

जब आते सुख-आनंद और हर्ष व खुशियां
मन चाहे रहें आजीवन।
आतीं जब-जब, अनचाही दुख की घड़ियां
करते रफ़ू और सीवन।।

स्वागत पाते हैं सबसे,आनंद और खुशियां
दुख की महत्ता है हीन।
जोड़ता है दुख आत्मविकास की कड़ियां
दुखियो, नहीं तुम दीन।।

मनोवेदना दिखाती,आत्मोन्नति की सीढ़ियां
नए-नए ज्ञान तूं बीन।
हरा कर हर बाधा, जीत ले मनु चुनौतियां।
बन दुख से स्वाधीन।

कर अपने पक्ष में, कैसी भी हों परिस्स्थितियां
दुख से खुशियां छीन।
बना ले मनु मनोनुकूल,सर्वम ही मन:स्थितियां
तूं बन इसमें प्रवीन।
-रीता ग्रोवर
- स्वरचित

"भावों के मोती "
13/1/2020

परिस्थिति
**********
पल में जीवन झर जाता
यूँ ही मिट्टी में मिल जाता
माना आवागमन है चलन
संसार का ,एक पल हंसी
तो पल में रुला जाता है ।

माना जाने से किसी के
जीवन सुना हो जाता है
ये संसार मरुस्थल हो
जाता है ।

उठो कदम बढ़ाओ
न यूँ परिस्थितियों से घबराओ
आशाओं के जुगनुओं से
ले उम्मीद की किरण ,
रोशनी का दीप जलाओ ।

मन के भावों की
गीली मिट्टी पर
यादोँ के बाग लगाओ, ख्वाबों के कुछ फूल
ख़्यालों की खाद से
खिला ,सुंदर आशियाना
बनाओ ।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
भावों के मोती दिनांक 13/1/20
परिस्थिति


होतीं विपरित
परिस्थितियाँ
जीवन में
कई बार
मत हारो
हिम्मत
कोशिश करो
बार बार

सैनिक लेते
कठिन प्रशिक्षण
सजग रहते
हर क्षण
घबराते नहीं
मुश्किल
परिस्थिति से
हासिल करते
अपनी मंजिल

देती माँ
दुलार
पिता सिखाता
संघर्ष
लो सीख उनकी
जीवन में
बनों
हर परिस्थिति में
कामयाब
जीवन में

जिन्दगी है
इसी का नाम
ढाले जो
अपने को
मुश्किल
परिस्थिति में
करता रहे बस
अपना काम
पाते मान
देश समाज में
जो लगे रहते
अपने लक्ष्य पर
करते सब
उनका सम्मान

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

दिनांक १३/१/२०१९
शीर्षक_परिस्थिति"


प्रतिकूल परिस्थिति में हो न उदास
हम नही है परिस्थिति के दास
हर परिस्थिति में सामंजस्य सही
बुद्धि विवेक हो साथ यदि।

हर परिस्थिति में ढ़लने को तैयार
जीवन जीने का यही सही अंदाज
तुलना नही दूसरों के साथ
उम्मीद का दामन पकड़े आप।

सुखद परिस्थिति देती सुखद एहसास
दुःखद परिस्थिति अभिशाप समान
परिस्थिति नहीं सदैव एक सी रहती
है यह चंचल सदैव बदलती।

सुख में न भूले राम
दुःख में न करें फरियाद
हर परिस्थिति के हम उतरदायी
हमारी करनी ही आगे आई।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
13-1-2020
विषय-परिस्थिति

विधा-छन्दमुक्त

हम ज़िंदगी से प्रायः
ये शिकायत करते नज़र आते हैं

कि सुख के चंद पल
कितनी जल्द गुजर जाते हैं

दुख के पंछी चुपके से आकर
अपने कदम जमाते हैं

दिल की दीवारों पर ये
ग़मों के बीज छिड़क जाते हैं

राख की ढेरी में दबे दुःख
कुरेदने पर आँच से भरक जाते हैं

ऊपर से तो ये सर्द हैं
पर अंदर आग सुलगाते हैं

तब अक्सर हम दुश्चिंताओं के
भंवर में डूबते चले जाते हैं

ज़रा धयान से देखने पर
ज़िंदगी के फ़लसफ़े नज़र आते हैं

सुख दुख तो जीवन के हिस्से हैं
जो हमे एक अहम सबक सिखाने आते हैं

हो यदि प्रबंधित मन हमारा
तो हम हर परिस्थिति में ढल जाते हैं ।।

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित

दिनाकः-13-1-2020
शीर्षकः-परिस्थिति

जीवन में सबसे महत्वपूर्ण होती है परिस्थिति।
निर्णय वैसा ही लेना चाहिये हो जैसी स्थिति।।
मनुष्य को उठा सिर, मान को रखना चाहिये।
पर आये आँधी तूफान सिर नीचा कर लीजिये।।
विद्यालय में लगन से विद्याध्यन ही कीजिये।
देश के शत्रु के सामने शस्त्रों को उठा लीजिये।।
मित्र पर पड़े संकट तब आप पीछे मत देखिये।
बढ़ के आगे सहायता भरपूर ही उसकी कीजिये।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित

13/01/2020
कविता

विषय :-परिस्थिति

परिस्थितियां मौसम है
कठोर तो कभी नरम है
कब कैसे बदल जाये
कह नहीं सकते...

परिस्थितियां गुरु है
तोड़ती गुरुर है
कब कैसा सबक सिखाए
कह नहीं सकते...

परिस्थितियां मालिक है
हाथ कर्मों का चाबुक है
कब किसे गुलाम बनाए
कह नहीं सकते...

परिस्थितियां बेलगाम है
ऊपर वाले की कमान है
कब हाथ छोड़ चली जाए
कह नहीं सकते...

परिस्थितियां मासूम है
उसका कोई धनी है न दीन है
कब राजा-रंक हो जाए
कह नहीं सकते...

परिस्थितियां चंचल है
दुःख है आज पर सुख के भी फल है
कब समय बदल जाये
कह नहीं सकते...

स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद(राज.)

दिन :- सोमवार
दिनांक :- 13/01/2020

शीर्षक :- परिस्थिति

परिस्थितियाँ...
बदलती मानव मन को..
देती है बल चिंतन को..
उलझाती कभी सवालों में...
कभी यही सुलझाती है..
कभी करती मजबूर तो..
यही कभी मजबूत बनाती है..
आ टिकाती कभी फर्ज पर तो..
कभी कृतघ्नता दे जाती है..
परिस्थितियाँ ये...
क्या से क्या करवाती है..
रहा अडिग जो..
हर परिस्थिति में..
वही जीत पाया..
हर मनःस्थिति से..
हार मौत नहीं जो श्वांस ले जाए..
हार सबक है जो जीना सीखा जाए..
परिस्थितियों से लड़ना..
है असल जिंदगी जीना..

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
विषय परिस्थिति
----------------------

परिस्थिति चलायमान
एक नाव की तरह
हिचकोले खाती
अभी सम्हलती
कभी डूब ,उतराती
कभी सुलभ भावो से
धीरे धीरे पहुँच जाती
किनारे पर ,मुस्काती
कभी टूट जाती इसकी
हिम्मत हवा के थपेड़े से

परिस्थिति होती है
एक उगते सूरज की भाँति कभी
ढलते सूरज की तरह
अर्ध्य मिलता है जब
उदित होता है
सारा जग उसके समक्ष
हाथ जोड़ खड़ा होता है
साँझ ढले वहीँ सूरज है
आस रौशनी की सब छोड़े
अपने घर आँगन में देखो
फौरन डीप जला के सोते

परिस्थिति का मारा जीवन
खिलकर भी मुरझाता है
राजा हो या रंक कभी भी
नहीं उबर पाता है
रंक भी राजा होता है
राजा भी बना भिखारी
परिस्थितियों के आगे देखो
सारे जग की हिम्मत हारी

छबिराम यादव छबि
मेजारोड प्रयागराज
13/01/2020
दिनाँक--13/01/2020
दिन--सोमवार

विधा--गीत
विषय--परिस्थिति
**************
आई विषम परिस्थिति संसार में।
घुल गया है धोखा..मानो प्यार में।

लालच की पैरों में बाँधी पायल है,
मानवता अब पशुता से घायल है।
बिकती है अस्मत खुले बाजार में।
घुल गया है धोखा..मानो प्यार में।

पवन विषैला नगरों में चलता है,
सच सदा सबका मन खलता है।
खुश होते सब झूठी जयकार में।
घुल गया है धोखा मानो प्यार में।

आएं प्यार-मनुहार में जी लें हम,
फैली जगत में जहर..पी लें हम।
जिएंगे पीढ़ियां हँस कर बहार में।
घुल गया है धोखा मानो प्यार में।

*********
सुरेश मंडल
पूर्णियाँ,बिहार
स्वरचित/मौलिक
13/01/20
विषय परिस्थिति

विधा हाइकु

वैश्विक ताप
विषम परिस्थिति
संकट स्थिति

आतंकवाद
विकट परिस्थिति
विश्व विपत्ति

विक्रमादित्य
सुखद परिस्थिति
तेजस स्थित

गगनयान
बढ़िया परिस्थिति
भारत स्थिति

देश महान
उन्नत परिस्थिति
विकास स्फीति

 परिस्थितियाँ
परिस्थितियाँ तरह तरह की होती है।
सुख की भी परिस्थितियाँ होती है और दु:ख की भी।

सुबह की भी होती है और शाम की भी।
परिस्थितियों के कई रंग होते हैं।
परिस्थितियाँ जीवन को निखारने का कार्य करती है।
जो व्यक्ति परिस्थितियों को अपने बस में कर लेता है।
सच में वही व्यक्ति पुरुषार्थी होता है।
सिद्धांत तो सभी व्यक्ति पढ़ते हैं।
जीवन के ककहरे से सबको रुबरु होना पड़ता है।
कुछ अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह के अंतिम दरवाजे पर जाकर दम तोड़ देते है। तो कुछ पाण्डव बनकर लाक्षागृह से निकलने में सफल हो जाते हैं।
कुछ की परिस्थितियाँ बड़ी भिन्न होती है।
जो कर्ण की तरह शापित हो निष्पाप हो कर भी जीवन दांव पर लगाते हैं।
कुछ की परिस्थितियाँ ऐसी होती है कि सबल होने के बावजूद भी भीष्म की तरह शरशैय्या पर सोना पड़ता है।
जो परिस्थितियों को समझ जाता है और उसके अनुरूप अपनी रणनीति का निर्माण करता है, वही मानव कहलाता है और दुनिया उसी का लोहा मानती है।

स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ
डॉ कन्हैया लाल गुप्त शिक्षक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय ताली, सिवान, बिहार 841239


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