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ब्लॉग संख्या :-634
विषय गौरव
विधा काव्य
23 जनवरी 2020,गुरुवार
खून पसीना सदा बहाते
पर हित के डग पर चलते।
गौरव पाते वे जीवन भर
सत्य मार्ग से कभी न हटते।
जीवन ही संग्राम है मित्रों
विपदाएँ आती जाती है।
गौरव सदा मिलता उनको
जिनमें सहने की छाती है।
मातृभूमि के पुत्र सभी हम
देशभक्ति जीवन लक्ष्य हो।
शस्यश्यामला हरी भरी सी
फिर क्यों न गौरवान्वित हो।
अहिंसा परमोधर्म सदा हो
साहस धैर्य कभी नहीं टूटे।
करो कर्म सदा ही निष्फल
जीवन से कभी भाग्य न रुठे।
गौरव तो करनी का फल है
गौरवान्वित हो लक्ष्य हमारा।
जीवन तो बस आना जाना
है सद्कर्मों का मात्र सहारा।
गौरवशाली बोस वेक्तित्व था
अदम्य साहसी प्रिय सुभाष।
नमन करें जयंती सुअवसर
फैले दिकदिगन्त उच्छ्वास।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
23 जनवरी 2020,गुरुवार
खून पसीना सदा बहाते
पर हित के डग पर चलते।
गौरव पाते वे जीवन भर
सत्य मार्ग से कभी न हटते।
जीवन ही संग्राम है मित्रों
विपदाएँ आती जाती है।
गौरव सदा मिलता उनको
जिनमें सहने की छाती है।
मातृभूमि के पुत्र सभी हम
देशभक्ति जीवन लक्ष्य हो।
शस्यश्यामला हरी भरी सी
फिर क्यों न गौरवान्वित हो।
अहिंसा परमोधर्म सदा हो
साहस धैर्य कभी नहीं टूटे।
करो कर्म सदा ही निष्फल
जीवन से कभी भाग्य न रुठे।
गौरव तो करनी का फल है
गौरवान्वित हो लक्ष्य हमारा।
जीवन तो बस आना जाना
है सद्कर्मों का मात्र सहारा।
गौरवशाली बोस वेक्तित्व था
अदम्य साहसी प्रिय सुभाष।
नमन करें जयंती सुअवसर
फैले दिकदिगन्त उच्छ्वास।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनांक-23/01/2020
विषय-गौरव
मजदूरो का गौरव
जलने दो चिरागों को महलों में हम क्या जाने कब होली होती है ,कब दिवाली होती है।
मजदूर हैं हम, मजबूर हैं हम ,हम मजदूर की पूरी दुनिया ही काली होती है।।
हम अमीरों के इमारत की नींव है ,अमीरों की तकदीर हैं ।
खून पसीना बहाकर पूरा करते हैं ,अमीरों का सपना।।
मेहनत मेरी लाठी है, मजबूत मेरी काठी है, हर बाधाओं को हम कर देते हैं दूर ,फिर भी दुनिया मुझे कहती है मजदूर।
उखड़ी सांसे थाम -थाम ,सुबह दोपहर या शाम -शाम।
दिन किसी तरह से बीते है ,न जाने कैसे हम जीते हैं।।
बेदर्द वक्त से हार- हार ,चाहत मन की मार -मार ।
बने बेस्वाद कसैले तीते खाते है, न जाने हम कैसे जीते हैं।।
जिसके हाथों में छाले हैं ,पैरों में पडी बीवाई है।
उसी के दम से अमीरों के महलों में रौनक आई है।।
रोटी कितनी महंगी है ,ये वो एक औरत बताएगी।
जिसने जिस्म गिरवी रखकर एक कीमत चुकाई है।।
अमीरों के बंगलों की हर एक निशा भी होती है रंगीली।
फिर हमारे घरों की लाचारी भी उन्हें लगती है जहरीली।।
शहरों की सड़कों पर उन बेबस लाचारो से पूछो
कौन है जिम्मेदार उनके सपनों का उन हरकारों से पूछो।
वह क्या जाने स्वतंत्रता की सच्ची अस्मिता को।
उनके मन में भड़कती ज्वाला की भष्मिता से पूछो।।
क्यों कैद हुए उनके सपने अमीरों की चाहरदीवारी में।
चकनाचूर करते हैं गरीबों के गौरव को अपनी रंगदारी मे।
भरी दुपहरी में अंधियारा, सूरज परछाई से हारा।
आहुति बाकी ,यज्ञ अधूरा ,मजदूरों को है विघ्नों ने घेरा।।
पांव के नीचे अंगारे, सिर पर बरसे ज्वालाएं ,आग लगाकर जलना होगा फिर भी हमें गंगाजल बनकर बहाना होगा।।
छत खुला आकाश है ,हो रहा वज्रपात है।
फिर भी हमारे वेदना के तूफानों का घोर दंश भरा संताप है।।
सूरज की तपती तपिश में हथौडा कर रहा प्रहार
माथे पर टपके मेरे सिंहनाद का पसीना फिर भी मजदूर है लाचार।।
अंतिम पंक्तियां?.......
मंदिरों के बहरे पाषाण हम अपने वज्र छाती से तेरी कब्र खोदने आते है।
हटो हमारे गरीबी के व्योम मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं।।
सत्य प्रकाश सिंह केसर इलाहाबाद........
विषय-गौरव
मजदूरो का गौरव
जलने दो चिरागों को महलों में हम क्या जाने कब होली होती है ,कब दिवाली होती है।
मजदूर हैं हम, मजबूर हैं हम ,हम मजदूर की पूरी दुनिया ही काली होती है।।
हम अमीरों के इमारत की नींव है ,अमीरों की तकदीर हैं ।
खून पसीना बहाकर पूरा करते हैं ,अमीरों का सपना।।
मेहनत मेरी लाठी है, मजबूत मेरी काठी है, हर बाधाओं को हम कर देते हैं दूर ,फिर भी दुनिया मुझे कहती है मजदूर।
उखड़ी सांसे थाम -थाम ,सुबह दोपहर या शाम -शाम।
दिन किसी तरह से बीते है ,न जाने कैसे हम जीते हैं।।
बेदर्द वक्त से हार- हार ,चाहत मन की मार -मार ।
बने बेस्वाद कसैले तीते खाते है, न जाने हम कैसे जीते हैं।।
जिसके हाथों में छाले हैं ,पैरों में पडी बीवाई है।
उसी के दम से अमीरों के महलों में रौनक आई है।।
रोटी कितनी महंगी है ,ये वो एक औरत बताएगी।
जिसने जिस्म गिरवी रखकर एक कीमत चुकाई है।।
अमीरों के बंगलों की हर एक निशा भी होती है रंगीली।
फिर हमारे घरों की लाचारी भी उन्हें लगती है जहरीली।।
शहरों की सड़कों पर उन बेबस लाचारो से पूछो
कौन है जिम्मेदार उनके सपनों का उन हरकारों से पूछो।
वह क्या जाने स्वतंत्रता की सच्ची अस्मिता को।
उनके मन में भड़कती ज्वाला की भष्मिता से पूछो।।
क्यों कैद हुए उनके सपने अमीरों की चाहरदीवारी में।
चकनाचूर करते हैं गरीबों के गौरव को अपनी रंगदारी मे।
भरी दुपहरी में अंधियारा, सूरज परछाई से हारा।
आहुति बाकी ,यज्ञ अधूरा ,मजदूरों को है विघ्नों ने घेरा।।
पांव के नीचे अंगारे, सिर पर बरसे ज्वालाएं ,आग लगाकर जलना होगा फिर भी हमें गंगाजल बनकर बहाना होगा।।
छत खुला आकाश है ,हो रहा वज्रपात है।
फिर भी हमारे वेदना के तूफानों का घोर दंश भरा संताप है।।
सूरज की तपती तपिश में हथौडा कर रहा प्रहार
माथे पर टपके मेरे सिंहनाद का पसीना फिर भी मजदूर है लाचार।।
अंतिम पंक्तियां?.......
मंदिरों के बहरे पाषाण हम अपने वज्र छाती से तेरी कब्र खोदने आते है।
हटो हमारे गरीबी के व्योम मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं।।
सत्य प्रकाश सिंह केसर इलाहाबाद........
विषय गौरव
प्रथम प्रस्तुति
🇹🇯🇹🇯🇹🇯🇹🇯🇹🇯🇹🇯🇹🇯
गौरवमय इतिहास हमारा ।
बहती जहाँ है गंगा धारा ।
शीष मुकुट हिमालय प्यारा ।
गुरु का ताज मिला है न्यारा ।
ऋषियों के ये तप की शान ।
गौरवमयी गाथा का गान ।
बनाय रखना शान बड़ों की ।
ध्यान रखना सदा जड़ों की ।
जड़ मज़बूत तो हम मजबूत ।
भूल रहा है युवा या यूथ ।
वेद सारे ज्ञान का स्रोत ।
हर वैभव से ओतप्रोत ।
गीता ज्ञान का नही जबाब ।
यूँ नही मिला गुरु ख़िताब ।
वीरों ने धरा खून से सींची ।
प्रभु कि यहाँ से रही है प्रीति ।
राम कृष्ण हर जन्म यहीं पर ।
ऐसा श्रेष्ठ न देश कहीं पर ।
घूम के देखा सारा जग ।
हर पहलू में सजग अलग ।
फेहरिस्त है बहुत बड़ी ।
टूटेगी नही कहीं कड़ी ।
चलो नमन करते हैं हम ।
पुण्य भूमि पर पाय जनम ।
खुद पर भी कभी गर्व करो ।
गौरव गाथायें 'शिवम' पढ़ो ।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 23/01/2020
प्रथम प्रस्तुति
🇹🇯🇹🇯🇹🇯🇹🇯🇹🇯🇹🇯🇹🇯
गौरवमय इतिहास हमारा ।
बहती जहाँ है गंगा धारा ।
शीष मुकुट हिमालय प्यारा ।
गुरु का ताज मिला है न्यारा ।
ऋषियों के ये तप की शान ।
गौरवमयी गाथा का गान ।
बनाय रखना शान बड़ों की ।
ध्यान रखना सदा जड़ों की ।
जड़ मज़बूत तो हम मजबूत ।
भूल रहा है युवा या यूथ ।
वेद सारे ज्ञान का स्रोत ।
हर वैभव से ओतप्रोत ।
गीता ज्ञान का नही जबाब ।
यूँ नही मिला गुरु ख़िताब ।
वीरों ने धरा खून से सींची ।
प्रभु कि यहाँ से रही है प्रीति ।
राम कृष्ण हर जन्म यहीं पर ।
ऐसा श्रेष्ठ न देश कहीं पर ।
घूम के देखा सारा जग ।
हर पहलू में सजग अलग ।
फेहरिस्त है बहुत बड़ी ।
टूटेगी नही कहीं कड़ी ।
चलो नमन करते हैं हम ।
पुण्य भूमि पर पाय जनम ।
खुद पर भी कभी गर्व करो ।
गौरव गाथायें 'शिवम' पढ़ो ।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 23/01/2020
विषय-गौरव
विधा-मुक्त
दिनांक--२३ / ०१ / २०२०
किस बात की अकड़
तुझमें है बंदे
किस बात पर तू
गौरव करता है
खून तो ठंडा है तेरा
बस हवस की
आग में जलता है
करता चीर-हरण
चौराहों पर
माताओं-बहनों का
या शब्दों से नंगा करता
संस्कृति और संस्कारो को
माना देश अखण्ड है
है गौरव के योग्य
मगर तेरी करतूतों से
शर्मिंदा है कब से।
डा.नीलम
विधा-मुक्त
दिनांक--२३ / ०१ / २०२०
किस बात की अकड़
तुझमें है बंदे
किस बात पर तू
गौरव करता है
खून तो ठंडा है तेरा
बस हवस की
आग में जलता है
करता चीर-हरण
चौराहों पर
माताओं-बहनों का
या शब्दों से नंगा करता
संस्कृति और संस्कारो को
माना देश अखण्ड है
है गौरव के योग्य
मगर तेरी करतूतों से
शर्मिंदा है कब से।
डा.नीलम
दिनांक- 23/01/2020
शीर्षक- "गौरव"विधा- छंदमुक्त कविता
*******************
मेरा भारत है महान,
गूँजे इसका गौरव गान,+
तिरंगा भारत की है शान,
हो जायें हम इसपे कुर्बान |
उत्तर में ऊँचा हिमालय,
जड़ी-बूटियों की ये खान,
गंगा का प्रवाह यहीं से,
जन-जन का करती कल्याण |
राम,कृष्ण जन्मे यहां पर,
पावन भूमि है ये महान,
मुनियों की ये तप भूमि,
यहीं पर हैं चारों धाम |
वीरों की है जन्मभूमि,
वीरांगना हुई लक्ष्मी बाई,
मिट्टी का कण-कण गाये,
उन वीरों का गौरव गान |
संस्कृति है हमारी धरोहर,
अतिथि का होता सम्मान,
इस भूमि पर जन्म लेकर,
होता है मुझको अभिमान |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
शीर्षक- "गौरव"विधा- छंदमुक्त कविता
*******************
मेरा भारत है महान,
गूँजे इसका गौरव गान,+
तिरंगा भारत की है शान,
हो जायें हम इसपे कुर्बान |
उत्तर में ऊँचा हिमालय,
जड़ी-बूटियों की ये खान,
गंगा का प्रवाह यहीं से,
जन-जन का करती कल्याण |
राम,कृष्ण जन्मे यहां पर,
पावन भूमि है ये महान,
मुनियों की ये तप भूमि,
यहीं पर हैं चारों धाम |
वीरों की है जन्मभूमि,
वीरांगना हुई लक्ष्मी बाई,
मिट्टी का कण-कण गाये,
उन वीरों का गौरव गान |
संस्कृति है हमारी धरोहर,
अतिथि का होता सम्मान,
इस भूमि पर जन्म लेकर,
होता है मुझको अभिमान |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
शेर की कविताए....
***
जननि जन्मभूमि गौरव में,
रक्त मिला बलिदान दिया।
नायक से जननायक बनके,
भारत को अभिमान दिया।
खून के बदलें दी आजादी,
तन मन धन का दान लिया।
भारत के सम्मान के बदलें,
जीवन अपना त्याग दिया।
***
वो बने प्रणेता भारत के,
सम्मान शिखर पर पहुचाया।
भारत के हर इक जन मन में,
सम्मान राष्ट्र का जगवाया।
जय हिन्द पुनः स्थापित की,
सोए भारत के हर मन में।
उस राष्ट्र पुरूष को याद करें,
है भारत फिर हर मन से।
***
शेर सिंह सर्राफ
***
जननि जन्मभूमि गौरव में,
रक्त मिला बलिदान दिया।
नायक से जननायक बनके,
भारत को अभिमान दिया।
खून के बदलें दी आजादी,
तन मन धन का दान लिया।
भारत के सम्मान के बदलें,
जीवन अपना त्याग दिया।
***
वो बने प्रणेता भारत के,
सम्मान शिखर पर पहुचाया।
भारत के हर इक जन मन में,
सम्मान राष्ट्र का जगवाया।
जय हिन्द पुनः स्थापित की,
सोए भारत के हर मन में।
उस राष्ट्र पुरूष को याद करें,
है भारत फिर हर मन से।
***
शेर सिंह सर्राफ
विषय : गौरव
तिथि : 23.1.2020
विधा : कविता
विपक्ष को मोड़ूं सकूंअपने पक्ष
विजय ला सकूं अपने समकक्ष
स्वर्ग बना सकूं, मैं नर्क - रौरव
मेरा आत्मबल है, मेरा गौरव।
अडि ग रहूं सदा अपने पथ पर
छूऊं मैं मंज़िल परिंदा बन कर
रोके जो शैतान, पाए गा तोड़न
मेरा आत्मविश्वास ,मेरा गौरव।
नारी तो हूं, पर मैं अबला नहीं
चंडिका हूं , कोई द्रोपदी नहीं
मिटा दूंगी कोई आए तो कौरव
मेरा आत्मसम्मान , मेरा गौरव।
-- रीता ग्रोवर
-- स्वरचित
तिथि : 23.1.2020
विधा : कविता
विपक्ष को मोड़ूं सकूंअपने पक्ष
विजय ला सकूं अपने समकक्ष
स्वर्ग बना सकूं, मैं नर्क - रौरव
मेरा आत्मबल है, मेरा गौरव।
अडि ग रहूं सदा अपने पथ पर
छूऊं मैं मंज़िल परिंदा बन कर
रोके जो शैतान, पाए गा तोड़न
मेरा आत्मविश्वास ,मेरा गौरव।
नारी तो हूं, पर मैं अबला नहीं
चंडिका हूं , कोई द्रोपदी नहीं
मिटा दूंगी कोई आए तो कौरव
मेरा आत्मसम्मान , मेरा गौरव।
-- रीता ग्रोवर
-- स्वरचित
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