Wednesday, January 22

"सेवक "21जनवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-632


विषय सेवक
विधा काव्य

21जनवरी 2020,मंगलवार

सेवक और स्वामी सम्बंध
अति प्राचीन सनातनी होता।
बलिदानी पन्ना स्वामी हित
ममतामयी तनय प्रिय खोया।

सेवक बनना खेल नहीं होता
त्याग तपस्या मूरत है चर।
जीवन भर विश्वास जीतता
स्वामी भक्त रह करे कर्म हर।

शोषण को वह समझे भाग्य
भाग्य विधाता उसका स्वामी।
तन मन सब अर्पण करके भी
सेवक जग में हुये अति नामी।

मातृभूमि के हम सब हैं सेवक
वह स्वामिनी है पालन करता।
सब कुछ देती लेती नहीं कुछ
ऋण उऋण होते नहीं बनता।

हम सेवक हैं परमपिता के
जिसने यह संसार दिखाया।
कालचक्र प्रकृति का घूम रहा
कभी रुलाया कभी हँसाया।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

21 /1/2020
बिषय ,,सेवक

सेवक हों जैसे लक्ष्मण हनुमान
जिनके रक्षक श्री भगवान
हर कार्य सिद्धि हर कार्य आसान
श्री चरणों का किया गुणगान
वर्तमान में सेवक चाटूकार हैं
चमचागिरी जिनके आधार हैं
जहाँ मिल जाए माल खजाना
भेड़िया की तरह टूटते हैं
खुद तो सनम डूबते ही
स्वामी को ले डूबते हैं
दो की चार ,चार की सोलह
इनको करना आता है
जाने कितने करिश्मे से
जेबें भरना आता है
रामायण में तुलसीदास जी ने
इनकी महिमा बखानी है
चारों तरफ बिगुल बजाते
मानों ए सुल्तानी हैं
प्रभु बचाऐं इनसे पड़े कभी न पाला
जहाँ जहाँ नजरें इनकी उनका हुआ दिवाला
स्वरचित, सुषमा ब्यौहार

शीर्षक- सेवक
प्रथम प्रस्तुति


निज सेवक प्रभु बना लेना
निज चरणों में रमाँ लेना ।।

दास तुम्हारा हूँ मैं सच्चा
सत्य का मार्ग दिखा देना ।।

भटक न पाय मन मिरा कच्चा
मनोबल मेरा बढ़ा देना ।।

मार्ग प्रशस्त करूँ सभी का
इक ज्योत मन में जगा देना ।।

सेवक के तुम सदा सहायक
धीरज मुझको बंधा देना ।।

पग-पग में बाधायें प्रभुवर
पथ की बाधा हटा देना ।।

और न कोई दूजा तुम बिन
सेवक का साथ निभा देना ।।

'शिवम' भंवर में भटक रहा हूँ
नैया को पार लगा देना ।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 21/01/2020
विषय, सेवक
दिन, मंगलवार

दिनांक, २१,१,२०२०.

मालिक केवल एक है,
सेवक सब संसार ।
सीधी सी है बात ये,
है दुनियाँ का सार ।।

निष्ठा कायम रख सके,
सेवक की ये रीत ।
मैल रहे मन में नहीं ,
पावन मन से प्रीत ।।

सेवा मालिक की करे ,
सच्चे मन दिन रैन ।
पल भर भी पाये नहीं ,
मालिक बिन वो चैन।।

जीवन जिससे चल रहा,
नहीं जाये वो छाँव ।
सेवक का मालिक देवता,
बना रहे ये ठाँव ।।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश 



विषय- सेवक

नेता हैं सेवक जनता के
ये बात वे कभी न भूलें।
कुर्सी पाकर अहंकार में
वे अपना फर्ज न भूलें।।

कितनी ही उड़ाने भर लें
लौटना होगा जमीं पर ही।
पांच साल बाद फिर इन्हें
आना होगा हमारे घर ही।।
©निलम अग्रवाल, खड़गपुर
विषय-* सेवक*
विधा- काव्य

सेवक बनें राम के हम सब,
राम नाम गुण गाऐं।
बनें भक्त हनुमान हरी के,
सारे कलुष मिटाऐं।

सेवक बनकर रहें गुरू के,
अपनी प्रीत जताऐं।
चरणों में नतमस्तक रहकर,
सदा गुरु गुण गाऐं।

स्वामी बनकर नहीं जिऐं हम,
सेवक रहें सुहाने।
सेवा से मेवा मिलती है,
कहते लोग पुराने।

परमार्थ उपकार करें हम,
शुभाशीष हम पाऐं।
सेवक बनें दीन के हम तो,
सदैव आशीष हम पाऐं।

सेवक समाज सपरिवार के,
नित अपने कर्तव्य निभाऐं।
जब तक रहें जगत में,
क्यों अहसान जताऐं।

स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना, गुना म प्र
विषय_ सेवक |
Damyanti Damyanti 
सेवक वही जो करे सेवकाई |
नहो लोभ प्रपंच मन मे कभी

सत्य धर्म कर्म हो हितकारी |
सेवक बने भरत लक्ष्मण हनुमान सम
बने पन्ना धाय,हो भामाशाह से
हो रहिम ,निराला सम सारे |
राजा सेवक होता निज प्रजाका
आज भूले सब भाईसारे के सारे |
करो सेवा गरीब भूखे बिमारो की
गुरू मात पिता की सेवा परम धर्म सुखदायी |
नारी को न करो अपमानित हे पूज्य शक्ति |
बिन शक्ति कोई कर्म न होवे देख कर जतन |
कहते आये गुणीजन सारे परिहित
सरस धर्म नही परपीडा सुखदायी |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा


विषय- सेवक
21/01/20

मंगलवार
कविता

देशभक्ति का राग वही सच्चा सेवक गा पाता है,
जिसको अपनी मातृभूमि का कर्ज चुकाना आता है।

सदा राष्ट्र की आन- बान व शान उसे बस भाती है,
जिसकी ख़ातिर जान हथेली पर रखकर वह जाता है।

ऐसे वीर सपूतों ने ही आजादी दिलवाई थी ,
इसीलिए यह देश गीत वीरों के यश के गाता है।

अमर जवान ज्योति साक्षी है उनके दृढ कर्तव्यों की,
जिसका प्रबल प्रकाश राष्ट्र को ज्योतिर्मय कर देता है।

है इतिहास गवाह राष्ट्र के भक्तों ने संघर्ष किया ,
तभी देश के आँगन में स्वतंत्रता-दीपक जलता है।

देश सदा ऐसे सेवक पर गौरव अनुभव करता है,
बार-बार उनके समक्ष सिर श्रद्धा से ही झुकता है।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
विधा कविता
दिनांक 21.1.2020
दिन मंगलवार

सेवक
💘💘💘

सेवक का बहुत गहन अर्थ है भक्त
यानि जो स्वामी सेवा मे रहे अनुरक्त
इसमें नाम केवल हनुमान जी का ही आता
वे राम से न हुए बिल्कुल कभी भी विरक्त।

पूरे मनोयोग से निस्वार्थ भाव से
बिना कोई भी अन्य प्रभाव से
राम जी के सारे कठिन कार्य किये
दूर दूर जाकर पूरी उमंग और चाव से।

सेवक होना कोई नहीं आसान
इसमें समर्पित हो जाते प्रान
लेकिन एक बात तो निश्चित है
जो भी है सेवक वह है महान्।

सेवक का पथ दुर्गम है
इसमें बस श्रम ही श्रम है
वही ख्याति की सीढी़ चढ़ता
जिसमें अपना दमख़म है।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त

विषय -सेवक

दिनांक २१-१-२०२०
दाता देते मुझे बहुत,सेवक बन में लेता हूँ।
करता हूँ नित प्रभु सेवा,कुछ नहीं देता हूँ।

प्रभु कृपा से प्रभु सेवा,अवसर में पाता हूँ।
इसी बहाने नजदीक रह,सेवक सुख पाता हूंँ।

प्रभु चरण शीश नवा,जन्म सफल करता हूँ।
बिन मांगे ही सदा,मैं प्रभु दर्शन को पाता हूँ।

चहुँदिशा घना अंधेरा,प्रभु ज्योति जलाता हूँ।
अंधकार हरण प्रभु आशीष से कर पाता हूँ।

ध्यान जाप चिंतन कर,मन द्वैष मिटाता हूँ।
प्रभु मार्गदर्शन से,सदा मार्ग प्रशस्त करता हूँ।

सही दिशा ज्ञान प्रभु,भवसागर पार करता हूँ।
सेवक बन हर जन्म,प्रभु चरण ही चाहता हूँ।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
क 
कहने को सेवक है, रक्षक वो है होता
लिए सदा वो अपने कांधे, घर का बोझा ढोता।
भोर-रात न शाम दिखे,बस भागा दौड़ी रहती
और घर के बाशिंदो की,निगाह उसी पर रहती।

हाथ दो और दो पैरों पर,नापें कोना- कोना
शिकन नही हो चहरे पर,हाँ-हाँ दिन भर कहना।
दूध-मलाई,बर्फी पुड़े ,प्लेट सजा कर रखता
मुँह मे पानी लिए सदा ही,तांका-झांका करता।

बैठ गया दिल उसका उस दिन,काका जब थे गुजरे
कौन करे अब मेरी रक्षा,प्रेम भरे दिन बिसरे।
चुपके-चुपके काका उसको,रोटी जी भर देते
डांट पड़े जब उसको तो,आँसू मन भर पीते।

कहाँ तेरहवीं किसकी होती,अब दो दिन का मेला
बांट लिया दो दिन में सब कुछ,मिटा अश्क का मैला।
टूट गया सब सपना उनका,मुंशी जब घर आया
हाथ लिया लंबा आदेश,पढ़ कर उन्हें सुनाया।

"सेवक कहने को सेवक है,रक्षक वो होता है
मिले संपत्ति आधा हिस्सा",काका ने बोला है।
लुढ़क पड़े सुन कर सब बातें,मौन हो गया सारा घर
सेवक के नयनों का झरना, फूट पड़ा काका के दर।।

क्रमशः
स्वरचित
वीणा शर्मा वशिष्ठभावों के मोती।

विषय-सेवक।
्वरचित।
कहें खुद को जनता का सेवक।
और करवाते सेवा खुद की।।
ऐसे ही नेतागण हैं अब भैय्या
खा जाते मेवा भी खुद ही।

कहते थे सेवा धर्म हमारा है
जनता को सपने दिखाए हैं।
राजनीति को धन्धा बना डाला
ये बस नोट कमाने आये हैं।।

सेवक सेवक का खेलें खेल
राजा बन मौज खूब उड़ाये हैं।
पकड़े जाते जब रंगे हाथ
तब बेशर्मी खूब दिखाये हैं।।
****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
विषय : सेवक
विधा : कविता ( व्यंग्य)
तिथि : 21.1.2020

जनसेवा है कार्य मेरा, नाम मेरा है सेवक
देश की कश्ती पार लगाऊं,बन कर केवट।
कश्ती पर शक न कर,निशान है जनसेवक
दबाओ मित्र निशान पर, सोचो मत प्रेमल।

मिटाना है भ्रष्टाचार, मुद्दा यह पहला प्रेरक
फिर हटानी निर्धनता,दूजा मुद्दा मुझे घेरन।
निरक्षरता की समस्या भी,सताती है ज़ेहन
आप के वोट शांत करेंगे ,मेरा मन उद्वेलन।

माना कश्ती में छेद बड़े, करो नहीं तुम हैरत
तोड़ूंगा नहीं विश्वास , वादे में न हेरन- फ़ेरन।
आज़मा लो मौका देकर,न करो मेरा प्रतेड़न,
भ्रम दूर हो जाएगा,निकट तो आओ मित्रवर।

( मन ही मन ) :

गिने जो छेद दिखाऊं गा रंग, छोड़ सारी गैरत
बन खानाबदोश भटक- भटक,ढ़ूढे गा तूं खैरन।
झूठ का व्यापार चलाना, मेरा तो है प्रिय ज़ेवर
मुखौटे में मत झांकना, दिखें गे मेरे असली तेवर।
--रीता ग्रोवर
--स्वरचित


सेवक
हास्य कविता छंदमुक्त


लड़की देखने
गया लड़का
मार्डन लड़की
देख तडका
सोचा खुल
गयी किस्मत
सुन्दर इतनी
प्यारी लड़की
हो गया लट्टू
बस लगायी
एक रट्टू
करूँगा शादी
अब इससे
पूछा लड़की ने
बस एक बात
"रहोगे कैसे मेरे साथ?"
बोला लड़का झट से
"रहूँगा बस सेवक
बन कर आपका
कहोगी दिन को रात
तो रात कहूँगा "
कहा लड़की ने
अकड़
" हो गयी
वो बात पुरानी
अब बदल गये हैं
मायने सेवक के
कहूँगी मैं जो
मनोगे सब वह
दो लिख कर इतना"

आया अब समझ
मतलब सेवक का
चौका चक्की
बरतन भाड़े
उसकी
सेवा सुश्रुषा
की है पूरी
जिम्मेदारी
न है कोई
रिश्तेदारी
बस है सेवक की
हिस्सेदारी

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
शीर्षक- सेवक
सादर मंच को समर्पित -


🌲 बाल सेवक 🌲
***************************
😎👱 हाइकु 👨🛠
🏍🏍🏍🏍🏍🏍🏍🏍🏍

ईंट तोड़ता
नन्हा सा बचपन
रोजी कमाता

🍀🌹

कोमल गात
हथौड़ा लिए हाथ
श्रम का पाठ

🌀😞

उम्र तकाजा
खेल-कूद , पढ़ना
हँसना गाना

👱🛠

कौन पढ़ाये
गरीबी आड़े आये
श्रम कराये

🏵😎
शिक्षा जरूरी
भूख पापी पेट की
है मजबूरी

🤔🌹

बाल सेवक
श्रम कानून परे
कहाँ उबरे

🦃🌤

है अभिशाप
बाल श्रम का पाप
अशिक्षा श्राप


🏵🍀🌻🌺

🌴🌺**...रवीन्द्र वर्मा 
--सेवक
दिनांक--21.1.2020
विधा -दोहे

1.
सेवक की सेवा बदल, अगर सराहा जाय।
सेवा में तल्लीनता,और अधिक उमगाय।।
2.
सेवक या नौकर कहें, सदा काम ही भाय।
नौ हाथों से कामकर, मालिक को हर्षाय।।
3.
सेवक धर्म कठिन बहुत, सब कुछ रक्खे ध्यान।
एक काम यदि खत्म हो, दूजे का संज्ञान।।
4.
काम समय में काम से, मालिक होय प्रसन्न।
मजदूरी के साथ में, सेवक पाए अन्न।।

******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551


दिनांक २१/१/२०२०
शीर्षक_"सेवक"।


सेवक है जो देश के
रहते सदैव सजग
कर्म अपना सही करे
लाख भरमाये लोग।

चयन करे सन्मित्र को
सत्यमार्ग पर जाये
देशहित में जिये
देशहित मर जाये।

ज्ञानी जन ही कहे
मैं सेवक तू राम
अज्ञानी जन समझे
खुद को ही भगवान।

माता पिता के सेवक होना
है सौभाग्य की बात
इस धरा पर है
माता पिता भगवान।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

21/01/2020मंगलवार
विषय-सेवक

विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
(१)
खुद कहते

जनता के सेवक

ठगें जन को👌
👌👌👌💐💐💐
(२)
जनसेवा भी

अब तो बन गई

जानलेवा ही👍
💐💐💐👍👍👍
(३)
लोक सेवक

लोकतंत्र रक्षक

बनें भक्षक💐
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू"अकेला"

दिनांक- 21/01/2020
शीर्षक- "सेवक"
विधा- कविता
**************
राम भक्त हैं हनुमान,
सेवक नहीं कोई उनके समान,
भक्ति देखी न उनके जैसी,
तभी सीने में बसे सिया-राम |

राम नाम की जपते वो माला,
अंजनी मैया के वो लाला,
राम के लिए सीता सिंदूर लगाये,
बजरंग ने खुद को पूरा रंग डाला |

समंदर में सेतु बनायें,
समुंदर को वो लांग जायें,
सीता की वो खोज लगाये,
रावण की लंका को जलायें |

ब्रहमचार्य का धर्म निभायें,
राम जी के चरण दबायें,
सेवक बनकर रहे हमेशा,
सबसे बड़े भक्त कहलायें |

स्वरचित- "संगीता कुकरेती"
21/01/2020
विषय सेवक

विधा हाइकु
1
प्रभु श्री राम
सेवक हनुमान
कृपा महान
2
निःस्वार्थ कार्य
सेवक का स्वभाव
अतुल्य प्रेम
3
स्वामी की रक्षा
सेवक की भावना
स्वस्थ विचार
4
भक्ति भावना
ईश्वर कृपादान
सेवक जीव

©
मनीष श्री

विषय-सेवक
विधा-मुक्त

दिनांक--२१ / ०१ / २०२०

बीत गये पाँच बरस ठाले बैठे
फिर चुनाव आ गये
घर-घर देखो टोपी पहने, हाथ जोड़े सफेदपोश सेवक आ गये

जंग लगी हड्डियों में फिर से
ग्रीस शब्दों की लगने लगी
मुर्ग-मुसल्लम वाली जबान भी रसमलाई सी होने लगी

कुछ चमचे भी साथ चल रहे
झुक-झुक कर सलाम कर रहे
कहीं किसी की जेब गरम थी
कहीं किसी के हलक हैं गीले

हर गली गुलज़ार है इनसे
सड़क का कहीं निर्माण कर रहे
कहीं हाथों से ये नालियां हैं बना रहे
हर चौराहे पर रौशनी का फैला जाल है

पाँच साल जिनके फोन बंद रहते थे
गेट पर दरबान और कुत्ते से सावधान पटल टंगा रहता था
आज देखो कैसे दिन- रात कर रहे सेवकाई हैं

बीत गये पाँच बरस......

डा.नीलम
वार: मंगलवार
दिनांक : 21.01.2020

आज का शीर्षक / विषय : सेवक
विधा : स्वतंत्र
विधा : गीत
विधान -- 26 मात्रा 16 : 10 पर यति , पदान्त गुरू

गीत

" काटे फसल यहाँ " !!

प्रजातन्त्र में जन जन सेवक ,
मिलते कहो कहाँ !
घर घर नेता भरे पड़े हैं ,
तनकर चले यहाँ !!

कारोबार राजनीति अहो ,
धनिकों की चेरी !
भाषा संयत रही नहीं है ,
उनकी या मेरी !
सपने अपने रोज टूटते ,
उनके पले यहाँ !!

भेदभाव तो लगता कम है ,
मन में रोष भरा !
रोज हवा देते हैं इसको ,
रखते घाव हरा !
नफरत का बीजारोपण है ,
काटे फसल यहाँ !!

धर्म विविध हैं , भाव एक है ,
रहते मिल जुल सब !
सभी तिरंगा यहाँ थामते ,
लड़ते कैसे कब !
भटकाने का मौका ताड़े ,
भेदी बने यहाँ !!

सेवाभाव बसा ना मन मे ,
नगदी पर तुलता !
सेवक को चाकर मानो तो ,
समय सदा छलता !
मद है , मदहोशी छाई सी ,
रोके रुके कहाँ !!

स्वरचित / रचियता 


:विषय-सेवक

सेवक है सेवा करे,एक यही बस काम।
मालिक होता खुश अगर,मिलते चारों धाम।

सेवा कर माँ बाप की,पुण्य कमाओ यार।
सेवा से मेवा मिले , पाओ उनका प्यार।।

सेवक हुआ न दूसरा,जैसे थे हनुमान ।
ह्रदय चीर दिखला दिया,जिनमें बसते प्रान।।

सेवा सेवकदार की,होती है अनमोल।
तन-मन से सेवा करे,बोले मीठे बोल।।

सरिता गर्ग























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