Wednesday, January 15

" तिल,गुड़, संक्रन्ति, पतंग, दान"14जनवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-625

दिनांक- 14/01/2020
शीर्षक- *तिल/गुड़/मकर संक्रांति/ पंतग/दान
िधा- छंदमुक्त कविता
********************
आज का दिन है बड़ा ही पावन,
बड़ा ही सुन्दर है मनभावन,
मकर संक्रांति नाम से जानें,
खुशी से मिलकर हम सब नाचें |

आज होगा गंगा स्नान,
सूर्य देव को करें प्रणाम,
खिचड़ी का होगा पकवान,
खूब करें मन से दान |

गुड़, तिल का बनेगा प्रसाद,
तन में मस्ती मन में उमंग,
रंग-बिरंगी उड़ायेंगे पंतग,
गीत गुनगनायेंगे सबके संग |

इन सबके पीछे सुन्दर संदेश,
गुड़, संग जैसे मिले हैं तिल,
वैसे मिल जाये हम सबके दिल,
फिर प्रेम-पुष जायेंगें खिल |

पंतग जो हम सब उड़ाये,
डोर मजबूत उसमें लगाये,
पंतग बुराई की गर सामने आये,
उसको वो काट गिराये |

त्यौहारों की हो गई शुऱूवात,
खुशियों की मिले सौगात,
बनी रहे सुख और शांति,
मुबारक सबको मकर संक्रांति |

स्वरचित -*संगीता कुकरेती*

दिनांक-14/01/2020
विषय-पतंग


मुक्त गगन में उडे़ पतंग
कालचक्र झंझावतो के संग।
फर्र -फर्र उड़े पतंग
वन में उपवन में मस्त मलंग।।

आलिंगन करने को नभ से
व्याकुल पी के भंग।
हर मंजिल हर चौराहों पर
कोलाहल के संग संग।।

क्षणभंगुर डोरी से न जाने कब
हवा ठहर जाये.......
दूर-दूर तक नभ में रंग-बिरंगे
ऊंचे ऊंचे बदरो में
अपने वैभव को लहराये...
होकर जैसे पी के भंग।।

मौलिक रचना
विषय गुड़,तिल, संक्रांति, पतंग, दान
विधा काव्य

14 जनवरी 2019,मंगलवार

कालचक्र का पहिया चलता
संक्रान्ति पावन दिन लाया।
तिलगज़क गुड़ प्रिय मोदक
मिलकर बड़े चाव से खाया।

गङ्गा यमुना पावन सलिल में
नर नारी सब मारे डुबकियां।
हाड़ कंपाती भीषण सर्दी में
मुँह निकले मात्र सिसकियां।

दान दक्षिणा याचक को देते
पुण्य दिवस देवालय जाते।
परम् पिता दर्शन रत होकर
वन्दन स्तुति मिलकर गाते।

नील गगन दूर क्षितिज तक
रंग बिरंगी नयी पतंगे उड़ती।
कभी ढील तो कभी छूट से
कुछ बढ़ती है कुछ हैं कटती।

जीवन अस्थायी पतंग सम
उड़ती है तो सब खुश होते।
जब कटती है शौर शराबा
सब मिलकर सारे हम रोते।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

विषय- दान

खूब कमालो धन अपार
मत भूलो पड़ोस परिवार।।

भूखा आसपास न सोए
बंद करो न हृदय का द्वार।।

जहाँ दया और धर्म नही
कैसी रौनक कैसा प्यार।।

अपने में जीना क्या जीना
ठीक न ये मानव व्यवहार।।

संस्कार से सजी ये धरती
हर दिन नये तीज त्यौहार।।

हँसी खुशी की सरगम हो
रहे सदा मन में सुविचार।।

भांति भांति के दान यहाँ
बढ़ो समझो करो विचार।।

बिना दान इस नरतन से
कैसा 'शिवम' मोक्ष द्वार ।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 14/01/2020
तिल,गुड़,संक्रांति,पतंग,दान

हर दिन जीवन में है बहार
लो आ गया पावन
मकर संक्रांति का त्योहार
मनाते हैं सभी
मन और विश्वास से
हर्ष और उल्लास से
गंगा इसी दिन
भगीरथ के पीछे चल आई थी
सागर से मिलने की
ललक खींच लाई थी
आज के दिन शुभ है
गंगा में स्नान
करें सब
सूर्य को प्रणाम
तिल,गुड़ का साथ हो
जीवन में मिठास हो
आकाश में मुक्त विचरती
पतंगें रंगीन
जीवन न हो
कभी भी रंग हीन
मजबूत डोर से
बंधी है पतंग
आज मन उड़ चला है
बन कर पतंग
बच्चे दौड़ें, भागते
लूटें कटी पतंग
उन्हें जीतनी है
यह खूबसूरत जंग
ढोल,नगाड़े का संगीत
बच्चे, बूढ़े गायें गीत
उत्तर-भारत में करें
खिचड़ी का सब दान
घर में भी बनता यहाँ
खिचड़ी का पकवान
दान-दक्षिणा सब करें
पावन है यह कर्म
देना दान गरीब को
होता है सत्कर्म।।

सरिता गर्ग

14 / 1 /2020/
बिषय,, मकर संक्रांति,, तिलगुड़ पतंग,, दान

मकर संक्रांति का पर्व है महान
माँ नर्मदा में करते हैं स्नान
तिल गुड़ खिचड़ी का करते हैं दान
रेवा के घाटों पर लगता है मेला
अपार जनसमूह बड़ा रेलम पेला
नर्मदा किनारे दाल बाटी बनाते
प्रेम सहित माँ को भोग लगाते
तत्पश्चात मेला घूमने जाते
बिभिन्न बिबिधाओं का लुफ्त उठाते
पतंगबाजी की अनोखी कला
चलता रहता है सिलसिला
हल्दी कुंकुंम देती सुहागन
अनेकों संदेशों को लाया त्यौहार पावन
लोकगीतों की होती बौछार
माँ सलिला ही हमारे जीवन का आधार
बुड़की का बहुत ही महत्व है
इससे मिलता अमरत्व है
पुण्यों से भरपूर संक्रांति सुहानी
जय जय बोलो माँ रेवा भवानी
14/01/2020

ाइकु(5/7/5)
(1)
घूम दक्षिण
सूरज लौट आया
उत्तरायण
(2)
संक्रान्ति पर्व
रवि को देखकर
उछ्ले तिल
(3)
रवि का रथ
मकर करे पार
रश्मि सवार
(4)
दान का पर्व
ऊर्जा से किया स्नान
रवि को अर्ध्य
(5)
गुड़ महके
रवि का आगमन
तिल तड़के
(6)
मकर रवि
रजनी की चादर
थोड़ी सिमटी
(7)
उत्तरायण
पतंग कर रही
सूर्य तिलक

दिनांक:14/01/2020
विधा: छंद मुक्त

मकर संक्रांति का यह त्योहार,
लोहड़ी पोंगल उत्सव घर द्वार।
सूरज देव उत्तरायण को तैयार,
सब मिल करते सूर्य नमस्कार ।

भास्कर देवता जग के आधार,
सुख समृद्धि की करते बौछार।
खेतों में पीली सरसों की बहार,
खुशियाँ मिलती सबको अपार।

लोहड़ी पूजा कर अलाव तैयार,
ढोल बजे भंगड़ा नाचे मेरे यार।
मक्की रोटी सरसो साग आहार
पेट भर खाए पकवान परिवार

दान पुण्य स्नान का है त्योहार,
दानी करते गरीबों पर उपकार।
देते है वस्त्र,धन भोजन उपहार,
अतिथि देवो भव: ईश सत्कार।

कागज की पतंग मिलन बहार,
चरखी मांजा हाथ लेकर तैयार।
प्रेम डोर बीच बंधे उडाए बयार,
सड़क पतंगों की मची लूटमार।

नील गगन में पतंगों की भरमार,
वर्धमान पेच लडा़ने को है तैयार।
हाथ से छूट कटी पतंग की डोर,
वो काटा वो काटा का मचा शोर।

घर की छतों पर है सारा परिवार,
गरम हलवा,पुआ,पकौड़ी तैयार।
तिल गजक रेवड़ी करो स्वीकार,
'रिखब' हाथ जोड़ करता मनुहार।

रचयिता
रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
®स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित
जयपुर राजस्थान
14/01/20
दोहा छन्द

**

संतति मङ्गल कामना,जननी करे अपार।
लड्डू तिल के बन रहे,सकट चौथ त्यौहार।।

मूँगफली ,गुड़ ,रेवड़ी,धधक रही अंगार ।
करें भाँगड़ा लोहड़ी, हुआ शीत पर वार ।।

मकर राशि दिनकर चले ,करें स्नान अरु दान।
उत्सव के इस देश में ,संस्कृति बड़ी महान ।।

खिचड़ी पोंगल लोहड़ी,अलग संक्रांति नाम।
नयी फसल तैयार है,खुशियां मिले तमाम ।

रंग बिरंगी उड़ रही ,अब पतंग हर ओर ।
मन पाखी बन उड़ रहा ,पकड़े दूजो छोर।।

जीवन झंझावात में ,मंझा रखिये थाम ।
संझा दीपक आरती ,कर्म करें निष्काम ।।

उड़ पतंग ऊंची चली ,मंझा को दें ढील।
मंझा झंझा से लड़े ,सदा रहे गतिशील।।

ऋतु परिवर्तन जानिये ,निकट बसन्त बहार।
पीली सरसों खेत में ,धरा करे श्रृंगार ।।

स्वरचित
अनिता सुधीर

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🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

मकर राशि में सूर्य अब, उत्तरायण प्रवेश ।
सूर्य देव आराधना , ध्यान, दान संदेश ।।

🌹🌻🌸🍀🌷

फसल रुपहली पक रही ,खुशियों का उल्लास ।
गुड़ , तिल पुष्ट शरीर हो , पतंग मेले खास ।।

🌲☀️🏵🌴🌸

पर्व गंग स्नान, ध्यान का , सच्चे मन से दान ।
खिचड़ी समरस भाव से , मानवता पहचान ।।

🏵🍀🌻☀️🌹

समरसता का पर्व है, मकर संक्रांति भोज।
हिल-मिल खिचड़ी खाइये,तन-मन खिले सरोज।।

🍑🌴🏵🌲🌻🍀🌺

🌻🌲🌷***....रवीन्द्र वर्मा आगरा

 शेर की कविताएं...
********************
🍁
आसमान के नीले छत पर उडने लगी पतंग।
मन मयूर हर्षित है मेरा आने को है बसन्त॥

फागुन के दिन थोडे रह गये, मन मे उडे उमंग।
काम- काज मे मन ना लागे, चढा श्याम का रंग॥

अंग बसंती रंग बसंती ढंग बसंती लागे।
ढुलमुल- ढुलमुल चाल चले, मोरा हाल बसंती लागे॥

नैनो से नैन मिला लो हमसे, बिना पलक झपकाये।
जिसका पहले पलक झपक जाए, वो ही रंग लगाये॥

🍁

स्वरचित ... शेर सिंह सर्राफ

तिल गुड़ पतंग संक्रांति दान
१४०१२०२००९१४
टतिला भारतीय संस्कृति व्यापनी।
जनमानस मे सूर्यसंक्रांति उपयोगनी।
तिल तिल बड़ती अंशुमान गति ।
तिल उवटन रवि संक्रमण स्नायीं।
तिल हवन अर्कक्रांति स्व कुटुम्बी।
तिल अर्घ श्री अंशु बेला सूर्योदयी।
तिल सेवन श्री सूरज मकर संक्रांति।
तिलदानं श्रेष्ठदानं श्रीरस्तु षटतिला।
तिल गुड़ संयोगेन मिष्ठान संयोगी।
निरापद ऋतुचर्या गुणधर्म हितकारी।
पतंग उडान उन्नत भाविके उत्साही।
धन्यो$हम् धन्यो सभारतीयजन संस्कृति।

स्वरचित
राजेन्द्र कुमार अमरा
नमन भावों के मोती
विषय , तिल, गुड़, मकर संक्रांति, पतंग, दान,
िनांक, १४,१,२०२०.
वार, मंगलवार

सूर्य उदित हुआ उत्तरायण जब,
होने लगी कम कुछ शीत लहर।
बन गया माहौल उत्सव का तब,
तिल गुड़ महक उठे हर एक घर।

प्रमुदित सा मन हुआ हर्षित मगन,
करने लगे स्नान सब गंगा तट पर।
देकर अर्घ्य कर रहे सूर्य को नमन,
पुण्य लाभ लेने लगे सब दान कर।

अवसान कर अवसाद का रहना खुश,
बढ़ते रहें हम रहे चाहे मुश्किल डगर।
पूरीं एक दिन तेरी हसरतें होगीं जरूर,
होगा सत्य पथ पर यकीं हमको अगर।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश .

तिल गुड़

शुभ संक्रांति

करते है नमन

सूर्य देवता तुम्हें

सम्पूर्ण सृष्टि को

करते ऊर्जावान

देते प्रकाश और

बनाते कर्मप्रधान

उत्तरायन और

दक्षिणायन

देख चमत्कार

विश्व ने किया

तुम्हें नमस्कार

तिल गुड का

मानवता को

है संदेश

कड़वी तिल भी

हो जाती मीठी

मिल कर

गुड़ के साथ

रहना है

सब को

मिल-जुलकर

मानवता और

भाई-चारे के साथ

मूँग दाल और चावल

की खिचडी का

मिलन हो यू

मिट जाऐ

सब भेदभाव

हो जाये सब एक

हर नदी

तालाब पर

दे रहे आराध्य

सूर्य देव

तुम को

दान दे

तिल लड्डू और

खिचड़ी का

करें जीवन

सफल सब

स्वलिखित

लेखक

संतोष श्रीवास्तव भोपाल केम्प पुणे
विषय-संक्रान्ति,तिल, गुड़,दान।

सच्चे अर्थों में है यह भारतीय संस्कृति का
अलौकिक त्योहार ।
अलग-अलग रीति से मनाया जाने वाला
सामाजिक त्यौहार ।।
कहीं लोहड़ी तो कहीं संक्रांति,कहीं पोंगल नाम
कहीं पर बिहूं तो कहीं पौष संक्रांति का त्योहार।
यह है एकात्मकता का पर्व, लोकोत्सव का पर्व।
एकीकरण का पर्व, विविधता में एकता का पर्व।।

सूर्य का जाना एक राशि से दूसरी राशि में
अर्थात गतिशील होना,आगे बढ़ना, ऊर्जा फैलाना।
सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में जाते है
एक में घटते हैं दिन तो दूजे में बढ़ते दिन।
दो संक्रांति मेष और तुला जब होती हैं
दिन और रात बराबर, बदलता है जीवन।

प्रतीक है मानव के बढ़ते ज्ञान का
भौतिक, आध्यात्मिक तौर पर ।
सूर्य की किरणें पड़ती हैं सीधीं,बढ़ती है गर्मी
बढ़ते हैं दिन,बढ़ती है संभावनाएं सृजन की।
संभावनाएं बढ़ती हैं फसलों की, फूलों कीं।

खिचड़ी एक खाद्य ही नहीं है एक प्रतीक भी है
दाल-चावल मिलकर जो होते हैं एक रस
और देते हैं पोषण शरीर को,
और देते हैं संदेश समरस होने का,
मिलन का,सर्वत्र कल्याण का,शुभता का।
यह दस्तक है ऋतुराज के आगमन की,आशावाद की
पर्व पर करें सत्कर्म, स्नान,दानधर्म बढ़ाते हैं पुण्यकर्म।

सूर्य की किरणों से पूरित सरोवर में स्नान देता ऊर्जा
धार्मिक कृत्य और सामाजिक उत्सव बढ़ाते हैं आनन्द।
पूजा है पर पुरोहित नहीं, क्रियाएं हैं पर कर्म का नहीं।
स्नान है,पवित्रता है, समरसता है,क्षमता है ।
अन्त: प्रेरणा देने वाला ज्ञान है,विज्ञान है।
अज्ञान तिरोहित हो,अस्वच्छता तिरोहित हो।

सूर्य की रश्मि जैसा तेजस्वी जीवन हो ।
यही कामना है इस पावन पर्व की,
तिल के उपयोग उबटन में, तर्पण में,
अग्नि में,दान में खान-पान में है।
इसका महत्व है पर्यावरण की शुद्धता में।
तो आइए इस पर्व को मनाइए और
बढ़ते दिनों की बढ़ती ऊर्जा को सूर्य की तरह
अपने जीवन में भी समाहित की
दिन - मंगलवार
दिनाँक - 14/01/2020
विषय - लोहड़ी/संक्रान्ति
विधा - कुकुभ छन्द ( १६,१४ )
=========

आया है त्योहार लोहड़ी,
मकर राशि में आये हैं l
दक्षिणायन को दिनकर त्याग,
उत्तरायण सजाये हैं ll
मंगल काज शुरू होंगे अब,
माघ महीना कहता है l
करे परिश्रम धैर्य धरे जो ,
गगन भानु सम रहता है ll

खिचड़ी ,पोंगल और लोहड़ी,
इसके नाम अनेकों हैं I
तिल के लड्डू घर - घर बनते ,
यह त्योहार मजे को है ll
जैसे नभ में उड़ें पतंगें ,
आसमान में छा जातीं l
"माधव" हो यशगान तुम्हारा ,
धरा बसन्ती मुस्काती ll

#स्वरचित
#सन्तोष कुमार प्रजापति "माधव"
#कबरई जिला - महोबा ( उ. प्र. )

तिथि : 14 जनवरी 2020
विषय : तिल /गुड़ / सक्रांति /दान/ पतंग

लोहड़ी को अलविदा कहें ,
आगाज़ करें मकर सक्रांति ।
धनु से मकर में प्रवेश करेंगे ,
सूर्यदेव दे हमें सुख-शांति ।।

दक्षिणायन के समाप्ति ,
उत्तरायण की शुभारंभ शुभ क्रांति ।
इस बार पन्दरह जनवरी को ,
उद्घोष करें मकर सक्रांति ।।

तिल दान तिल प्रसाद तिल ग्रहण ,
पापों का शमन शांति ।
माघे संक्रांति कहें तिला सक्रांति ,
कहें या मकर सक्रांति ।।

सूर्य देव का प्रत्यक्ष आराधना ,
प्रत्यक्ष दर्शन मोक्ष प्राप्ति ।
तन भी धोएं मन की मैल भी
धोएं ना रहे कोई भ्रांति ।।

प्रयागराज में शुभारंभ एक ,
शंखनाद महाकुंभ की क्रांति ।
शाही स्नान अंतःकरण की ,
अंतर्ध्यान जीवन हो कांति ।।

गंगा जमुना सरस्वती की ,
त्रिवेणी संगम में शुभ संत ।
दुनिया भर की दार्शनिक ,
मांगलिक आंतरिक साधु संत ।।

सांगितिक मांगलिक झलक में ,
प्रयागराज सुख शांति ।
संपूर्ण की चरण आगमन है ,
महाकुंभ की महा क्रांति ।।

दक्षिण भारत में पोंगल ,
गुजरात में पतंगों की आंधी ।
जमीं से फलक तक हर्षोल्लास ,
आकाशगंगा भी नाची।।

एक शंखनाद उद्घोष हिंद हिंदी ,
हिंदू हिंदुस्तान के लिए ।
आओ मिलकर आगाज़ करें ,
पावन शाही स्नान के लिए।।

मनोज शाह मानस
सुदर्शन पार्क
दिनाँक-14/01/2020
शीर्षक-तिल, गुड़,संक्रांति, पतंग,दान
विधा-तांका

1.
खाकर तिल
आपस गले मिल
खोल के दिल
करें पतंगबाजी
मकरसंक्रांति है।
2.
दाल चूरमा
गज्जक मूँगफली
खाओ खिलाओ
करके गंगा स्नान
करो वस्त्र का दान ।
*************
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
विषय-मकर संक्रांति,तिल, गुड़,पतंग,दान
14/01/20
मंगलवार
दोहे

मकर राशि में सूर्य का , जब हो पुण्य प्रवेश।
पर्व मकर संक्रांति का, लाता शुभ संदेश ।।

हिन्दू धर्म का है यही , अति पावन त्यौहार।
इस दिन सच्चे दान से , हो जीवन उद्धार।।

पावन गंगा में सभी , प्रात: कर स्नान ।
विधि-विधान के साथ सब,करते पूजा- ध्यान।।

मकर संक्रान्ति पर्व पर , करें प्रेम से दान ।
निर्धन के हर कष्ट का , हम कर सकें निदान।।

इस दिन करते प्रेम से , सब खिचड़ी का भोग।
तिल के लड्डू का रहे , खिचड़ी के संग योग ।।

भारतीय- संस्कृति का , यह है सुन्दर अंग ।
बालवृंद की गगन में , उड़ती खूब पतंग।।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

विषय -तिल, गुड़, संक्राति, पतंग, दान
दिनांक-१४/१/२०२०
विधा -कविता
**************

मकर संक्रांति का आया त्योहार।
लाये जीवन में खुशियाँ अपार।।

छू लें जिंदगी की सारी कामयाबी।
जैसे पतंग छूती हैं ऊंचाइयां आसमान की।।

दें शीत लहर को भावभीनी विदाई।
खायें चुरा, तिल, गुड़ की लाई।।

स्नान , दान, से करें जीवन आनंद।
खुशहाल हो देश, परिवार रहे सानंद।।

उत्तरायण रवि करते ओज प्रकाश।
मिटे जीवन से सबके अंधकार, विनाश।।

खुशियों के धागे में, न मरें पंछी, कबूतर।
निवेदन है सबसे, इसका ध्यान रखें विशेषकर।।

तनुजा दत्ता ( स्वरचित)

दिनाँक-14/1 /2020
विषय-तिल/गुड़/संक्रांति/पतंग/दान
विधा-दोहा

तिल गुड़ के लड्डू बने, खिचड़ी का हो भोग।
शीत ताप के योग से, सभी भागते रोग।

अतिशय पावन माघ में, संक्रांति का पर्व।
प्रतीक निज संस्कृति का , हमको इस पर गर्व।

दिशा उत्तरायण चला, मकर राशि में भानु।
दान पुण्य का पर्व ये,मनता संग कृशानु।

बड़े हर्ष के पर्व में ,नभ में उड़े पतंग ।
लोग सभी इसकी छटा ,देख रह गए दंग।

तिल गुड़ और मूंगफली, कर खिचड़ी का दान।
भोजन कराओ विप्र को,होता पुण्य महान।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश

दिनाँक-14/1/2020
विषय-तिल/गुड़/पतंग/दान/खिचड़ी

रवि मकर राशि में करता प्रस्थान
ओणम,पोंगल संक्रांति तब जान

तिल गुड़ की सोंधी सुगंध
मन को भाए मूंगफली गंध
नभ में उड़ रही कितनी पतंग
अनगिन जिनके प्यारे रंग

जरूरतमंद को देना दान
होगा तब उनका कल्याण

खिचड़ी सम सब
मिल जुल कर रहते
भारतीय सभ्यता में
मिश्रित जन बसते

तीज त्योहारों का होता प्रमुख स्थान
प्रेम एकता सिखाये निज देश महान

खूब मनाओ खुशियां
मगर रखना ये ध्यान
हर पर्व त्योहार को मिले
समुचित सम्मान

पतंग उड़ाओ पर न करना मनमानी
विदेशी मांझे से न हो कोई हा

विषय : तिल / गुड़ / संक्रांति / पतंग / दान
तिथि : 14.1. 2020
विधा : कविता

संक्रांति त्योहार
वर्ष का प्रथम उपहार।

सूर्य संक्रमण धनु से मकर राशि
तिथि संक्रांति।

लड्डू तिल
आ गया दिल।

गुड़ गजक स्वाद
पूर्ण वार्षिक ख्वाब।

ले मन उमंग
उड़ाओ ऊंची पतंग।

पर्व संक्रांति
दिवस हर्ष शांति।

परम्परा संक्रांति
शादी-विवाह, नव जन्म-
गाओ बधाई गीत भांति भांति।

पवित्र कर काम
दिल से कर संक्रांति दान।
. - रीता ग्रोवर
-स्वरचित

शीर्षक-तिल,गुड़ संक्रांति,पतंग,दान
दिनांक-14.1.2020
विधा -दोहे

1
पर्व मकर संक्रांति का,मनाय पूरा देश ।
पोंगल,माही,लोहड़ी,लालगोई सँदेश।।
2.
आवाहन आलोक का, सूरज का सम्मान।
ऊँची पतंग को उड़ा, तिल गुड़ का कर दान।।
3.
तिल तिल बढ़ता अब दिवस, और सिकुड़ती रात।
आँचल प्रकाश का बढ़े, घटे अँधेरा गात ।।
4.
तिल,गुड़,खिचड़ी,वस्त्र का,मकर संक्रांति दान।
जो दे सकते स्वयं दें, जिन्हें जरूरत जान।।
5.
सामाजिक जो विषमता,दूर कर सके दान।
वैज्ञानिक उपाय यही,सह आध्यात्मिक ज्ञान।।
6.
एक बार उपवास कर, बचा अन्न दें दान ।
लाभ तभी उपवास का, मिलता है श्रीमान ।।

******स्वरचित ******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
शीर्षकः-
14-1-2020
शीर्षकः- तिल,गुड़, संक्रन्ति, पतंग दान

मकर संक्रान्ति के दिन शीघ्र जागिये।
पावन नदी में स्नान करने को जाईये।।

स्नान के बाद सूर्य को अर्ध्य चढ़ाईये।
इसके बाद आज के पतंगों को उड़ाईये।।

भरे होते हैं सब पतंगों में जितने रंग।
सभी जीवन में मेरे थीं जब तुम संग।।

देख कर सभी हम दोनों को होते दंग।
फुंक जाते ईर्ष्या से ही रकीबों के अंग।।

बढ़िया सादी व माझा से उड़ाता पतंग।
मेरे सादी व मांझे से हो गये सब तंग।।

काटी हमने जीवन में सबकी ही पतंग।
कटवा कर पतंग अपनी हुए सभी तंग।।

आकर साथ मेरे उड़ाईये, अपनी पतंग।
काटेंगे सबकी पतंग मिलकर दोनों संग।।

आज के दिन तिल के लड्डू को खाईये।
आनन्द के साथ मकर संक्रान्ति मनाईये।।

आज के दिन दीजिये निर्धनों को भी दान।
सो जाईये उसके बाद चैन से चादर तान।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
विषय -दान
दिनांक १४-१-२०२०

दान देना आजकल,मात्र दिखावा हो गया।
देना थोड़ा बताना ज्यादा, आम हो गया ।।

पात्र को दान देना,कठिन काम हो गया।
फकीर भी दान ले,देखो अमीर हो गया।।

दान देना आजकल,रिवाज सा हो गया।
मन्नते पूरी करा,प्रभु को रिश्वत दे गया।।

विचित्र सा,दान देने का तरीका हो गया।
रक्तदान कन्यादान, महादान हो गया।।

रजाई कंबल बांट, वो दान कर गया।
दूसरे दिन अखबार में,नाम कर गया।।

अंहकार दान बिना,सब बेकार हो गया।
दे शरीर दधीचि, देखो महान हो गया।।

कवच कुंडल,देवराज दान कर गया।
कुंती पुत्र कर्ण, नाम अमर कर गया।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
4/1/20

सूर्य के जादू
नव विहान
मकर संक्रांति
निर्मल शांति
कृषक झूमे
जीवन क्रांति
महके जीवन
गंगा स्नान
खिचड़ी पकवान
दान महान
गुड़ तिल
खुसबू बिखेरे
लड्डू तिल
पतंगे उड़ाते
मौज मनाते
पर्व मनाते
आई संक्रांति

स्वरचित
मीना तिवारी

विषय-मकर संक्रांति

लेख -

मकरसंक्रान्ति आध्यात्मिक के साथ वैज्ञानिक

विज्ञान के अनुसार प्रकाश में अपना शरीर छोड़ने वाला व्यक्ति पुनः जन्म नहीं लेता ,और अंधेरे में शरीर छोड़ने वाला व्यक्ति पुनः जन्म को प्राप्त होता है । यहां प्रकाश और अंधकार से तात्पर्य क्रमशः सूर्य की उत्तरायण और दक्षिणायन स्थिति से है भीष्मपितामह ने उत्तरायण स्थिति मे अपने प्राण त्यागे थे ।
सूर्य के उत्तरायण होने पर मनुष्य प्रगतिशील होता है उसकी कार्य क्षमता बढती है।
मकर सक्रांति के दिन नदियों में वाष्पीकरण होता है शरीर के लिए लाभदायक है
तिल गुड़ से बनी चीजें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं

मकरसंक्रान्ति का एक ऐतिहासिक महत्व भी है । कहा जाता है सूर्य देव अपने पुत्र से मिलने शनिदेव के घर जाते हैं
शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं
इसीलिए इसे मकरसंक्रान्ति कहते हैं मकरसंक्रान्ति के दिन ही भीष्मपितामह ने अपने शरीर को त्यागा और आज के दिन ही गंगा जी को कपिलमुनि के आश्रम से भागीरथ धरती पर लेकर आये थे ।

मकरसंक्रान्ति का महत्व-
शास्त्रों के अनुसार-दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात
नकारात्मक का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप,तप,दान यज्ञ, स्नान श्राद्ध तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है ऐसी धारणा है इस दिन किया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है
कहा जाता है कि अगर इस दिन कोई घी और कम्बल का दान करता है तो मोक्ष को प्राप्त होता है ।

माघे मासे महादेव:यो दास्यति घृतकम्बलम ।
स: भुक्तवा सकलान भोगान अंते मोक्षं प्राप्यति ।
उत्तर प्रदेश में यह दान का पर्व है

तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में इसे मनाते हैं।कर्नाटक में ,केरल में और आंध्रप्रदेश में इसे संक्रान्ति ही कहते हैं।मकरसंक्रान्ति को कहीं कहीं 'उत्तरायणी' भी कहते हैं लेकिन ,उत्तरायणी, भिन्न होती है

मकरसंक्रान्ति हिन्दुओं का त्यौहार है जिसे पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है जी हाँ तिल गुड,गजक की महक सही सोच रहे हैं आप , इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ कर मकर राशि में प्रवेश करता है।पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तब जनबरी में 14 या 15 तारीख को इसे मनाते हैं

स्वरचित
नीलम शर्मा #नीलू
विषय:-मकर संक्रांति
विधा :-दोहा

पर्व मकर संक्रान्ति का , होता बहुत महान ।
उतरायण में आज से , आते रवि भगवान ।।१।।

मकर संक्रांति के दिवस , कृपा करें भगवान ।
मिलता फल है सौ गुना , करते जो भी दान ।।२।।

लोग मकर संक्रांति को , करते तीर्थ प्रयाग ।
स्नान दान से मोक्ष का ,प्राप्त करे फल त्याग ।।३।।

भीष्म पितामह ने चुना , इस दिन का तन त्याग ।
उतरायण के सूर्य से ,था विशेष अनुराग ।।४।।

कर अनुगमन भगीरथ का , गंग किया प्रस्थान ।
कपिल कुटी से हो किया , सागर में अवसान ।।५।।

गंगा सागर पर्व पर , करो स्नान इक बार ।
एक बार के तीर्थ से , खुले मोक्ष का द्वार ।।६।।

लगी भागने शीत ऋतु , आई देख बसंत ।
दिवस बड़े होने लगे , पाला हुआ उड़ंत ।।७।।

कम्बल तिल खिचड़ी करो , आदर पूर्वक दान ।
निर्धन को तिल दान से , होता सदा कल्याण ।।८।।

उड़ी पतंगें गगन में , जीव ब्रह्म का खेल ।
बँधे हुये इक डोर से , सार तत्व है मेल ।।९।।

स्वरचित :-
ऊषा सेठी

******मकर संक्राति*******

मकर संक्रांति की
आई शुभ बेला !
देश भर में लगा
खुशियों का मेला !!
दक्षिणायन से दिनकर
उत्तरायण को आये !
सक्रांति पर मकर
राशि में प्रवेश पाये !!
दिन प्रतिदिन दिन
अब बड़े होते जाए !
तिल गुड़ के लड्डू
मन को अति भाए!!
रवि की रश्मियों ने
अनुपम छटा बिखरी !
गुनगुनी धूप तन को
लगे है अति प्यारी !!
तिल पपड़ी गजक
रेवड़ी गुड़ खास !
निज रिश्तों में घोले
नित भरपूर मिठास !!
संगम स्नान से
पापों को धोयें !
निर्धन दान से हम
पुण्य को कमाये !!

सत्यनारायण शर्मा "सत्य"
रावतसर
दिनांक 14/01/2020
विषय:पतंग/संक्रांति
विधा:छंद मुक्त कविता

नववर्ष की नई बेला मे लोहडी का पर्व आया है
साल का पहला उत्सव और सर्दी पूरे उठान मे है।
खेतों मे बाली ,गन्ने मे मिठास व दिल मे जोश है
ठंडी के इस मौसम मे हर चौराहे अलाव जला है।
सब परिवारों संग सजधज कर थाल सजा कर आये है
पूजां ,अर्चना ,ढोल नगाड़े, नाचे सब सुर ताल है।
मकरशंक्राति की पूर्व संध्या पर गले मिले सब लोग है ।
मकर संक्रांति मे दान देने की प्रथा अच्छी है।
सुबह सुबह स्नान ध्यान कर करते हम सब दान है।
ब्याही बेटियों को मायके आने का अवसर आया है।
माँ ने खिचड़ी,पापड़ ,दही,लाई- तिल के लड्डू बनाए है।
साथ मे अचार और देशी घी से घर पूरा महक रहा है।
छत पर भाइयों ने पतंग बाज़ी के इंतज़ाम किया है।
मैं भी चली पतंग उडान अपने सब सखियों के संग
सब आई थी कुछ दिनो को अपने मायके की ओर।
देख पतंग की ऊंची उडान व माँझे और चकरी को
सीख सिखाती जीवन की नई उडान कैसे करनी है।
कैसे अपने प्रतिद्वंदियों के बीच रुकना है आसमां मे।

स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव

भावो के मोती
दिनांक 14/01/2020
विषय पतंग

लाल पीली नीली काली
आसमान मे चढी पतंगे
बच्चे बुढे व जवानो की
आसमान को छूती उमंगे

किसी ने थाम ली चकरी
कोई लगा रहा था कन्नी
ढील दे दे चढी आसमान
संग पतंगो के देखो उमंगे

तिल गुड का मीठा स्वाद
हंसी ठिठोली का संवाद
कटी पतंगे लूट रहे कोई
न कोई झगडा न विवाद

गाना बजाना शोर मचाना
कटे पतंगे खूब चिल्लाना
गजक खाना व खिलाना
झूमे गाए सारा ये जमाना

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद

शीर्षक-पतंग

बाँध कर अपनी उम्मिद की डोर
पतंग के साथ चलीआकाश की ओर
परिणाम की न थी परवाह
अभिष्ट पाने की बस एक चाह।

पतंग ने दिया एक सुंदर ज्ञान
रखना तुम अपनों पर विश्वास
टूटने न पाये विश्वास की डोर
तभी पहुंचोगे मंजिल की ओर।

सबकी उम्मिद पर तुम उतरो खरा
इस बात का ध्यान रखना जरा
सुनकर पतंग की ऐसी बात
समझ गयी मैं सारगर्भित बात।

पतंग समान है जीवन अपना
रिश्तों की डोर सभांलना होगा
सामंजस्य बैठाने होगें सबके साथ
तभी हम छू पायेगें आकाश।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव
विषय-संक्रांति

विजात छंद

1222 1222
मकर संक्रान्ति आयी है
खुशी के रंग लायी है।
हुआ है सूर्य उतरायण
सुगम सानिध्य का है क्षण।

करो स्नान अरु पूजन
नदी तट में सलिल निर्मल
सभी पापों को नित हरती
सरित पावन सदा करती।

उड़े नभ में पतंगे है
भरी मन में उमंगे है
कहीं खिचड़ी कहीं पोंगल
धरा का खिल रहा आँचल।

नए कोंपल सजे द्रुमदल
बढ़े रवि ताप है प्रतिपल,
शिशिर करती है आवाहन
पुलक उठते मनुज आनन।

गीता गुप्ता 'मन'
दिनांक 14-01-2020
विषय-पतंग
छंदमुक्त

काश मैं एक पतंग होती,
गम से दूर गगन उड़ जाती ।
तन्हाई का आलम जग में,
असीम शांति में सुख पाती

धरती माना है रंग बिरंगी,
ग़म का भी है अंबार घना ।
दंभ उपेक्षा के आलम में ,
अपनेपन का संसार सना ।

बुलंद हौसले से उड़ती पतंग,
ढीली डोर ऊंचा है उड़ाती ।
जब एक दूजे को काटती डोर,
तो उड़ती पतंग संग कट जाती ।

उत्साह से इठलाती उड़ जाती,
नील गगन की सैर है करती ।
जीवन सांस पतंग डोर सी
जीने का है यह दम भरती ।

भवसागर सा यह जीवन,
हम सब हैं पतंग समान।
कट कर यह नष्ट हो जाए,
उड़कर मिलता है आसमान ।

कुसुम लता 'कुसुम'
नई दिल्ली
विधा............दोहा छंद
★★★★★★★★★★★★★★★★★
मकर राशि में रवि करें,आते रेखा पार।
तिथि है चौदह जनवरी,मान संक्रांति यार।
★★★★★
भोग लगा लो गुड़ तिल्ली,प्रभु हरि दीनानाथ।
दूर करो संकट सभी,पालक बनकर साथ।
★★★★★
रहे सदा शुभ कामना, संक्रांयत त्यौहार।
दान करो द्विज को सखा,पावे सब मनुहार।
★★★★★
गगन तले पतंग उड़े,लेकर उच्च विचार।
मद औ माया त्याग कर,हर लो चित्त विकार।
★★★★★
स्नेह शील औ भाव का,सदा बसे सब धाम।
सभी रहो मिलकर सखा,बने सकल शुभ काम।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा

विषय -पतंग
विधा छंदमुक्त कविता
शिर्षक -पतंग
------------------------------
मन भी एक पतंग की भाँति
दूर गगन तक जाकर वापस ही
आने को ,धरा पर उतरने को
हो जाता ब्याकुल
एक डोर बिन पतंग की तरह
दूर गगन में लहराता
कभी निचे कभी ऊपर
बेलगाम उड़ते जाता
पर कुछ ही पल में
अपने हकीकत से रूबरू
होकर निराश बैठ जाता धरा पर
जहा से मन चला था
आसमान को छूने
चुनोती दे आया बाज ,चील कबूतर को
उनके पर कतर कर उन्हें हरा दिया
और आज खुद कटे पंक्षियों की भाँति ,तड़प कर गिरा है
मन ,और पतंग
एक असहाय पक्षी की तरह
मन पतंग दोनों बिखरे है
अपने जीवन को देख
सच को पहचाने है
छबिराम यादव छबि
मेजारोड प्रयागराज
हाइकु - संक्रांति

1-
उत्तरायण
भीष्म का परायण
नारी कारण ।

2-
सूर्य स्तवन
मकर की संक्रान्ति
स्नान पावन ।

3-
थमी जिन्दगी
पकड़ रही चाल
संक्रान्ति काल ।

4-
रश्मि प्रसार
तिल गुड़ संक्रान्ति
सर्दी की हार ।

5-
संक्रान्ति काल
ऊँची उड़ी पतंग
डोर का संग ।

-- नीता अग्रवाल
#स्वरचित




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