Sunday, January 26

"कल्याण"'24जनवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-635

दिनांक-24/01/2029
विषय- कल्याण


मौनी अमावस्या के पुण्य अवसर पर कामना कल्याण की ....
मां गंगे की चरणों में समर्पित एक छंद--------------

अविरल कल कल मार्ग को प्रशस्त कर,
पाप निवारणी व स्वर्ग-दायिनी हो मां।
कठिन तपस्या जब भागीरथ ने किया था,
तब बनी पूर्वजों की प्राण- दायिनी हो मां।
जितने भी आए लोग तुम्हारी गोद हे अंब,
सर्व प्राणियों की तूं आशीष- दायिनी हो मां।
मैं भी आ गया हूं अब चूमने चरण रज,
दुख दूर कर दो तूं सुख- दायिनी हो मां।।
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज

विषय--कल्याण
24/01/2020

-----कल्याण----
--------------------
सरोवरों के
पास गये मानव को
लौटते प्यासा देखा
हे तथाकथित प्रजापतियों !
आपकी दुनिया में मैंने
अजब तमाशा देखा
सोचता था कभी
इतनी अच्छी-अच्छी बातें
लिखते रहते हैं साहित्यकार
प्रेम की ऊज्ज्वल धारा में
शायद अहर्निश
डूबते उतराते हैं रचनाकार
कल्याण की चाहत से
मैं उनके पास गया
पर बार पाया उनसे
यह अहसास नया।

कई मठों में देखा
कहीं नहीं है कुछ खास नया
हर जगह मठाधीश बने हुए हैं
जो नवागन्तुकों को
समझते हैं निरा अज्ञानी
चुभने को उन्हें भाले से तने हुए हैं
ये रचनाकार हैं
पर कोई गुरु नहीं हैं
छोड़ने को निज अहं
हुए वे शुरु नहीं हैं
तब हर
प्रयासरत साधक से
मेरा कहना यही है
डरना कदापि
पुरानी तीरों की
नोकों से नहीं सही है
सद्गुरु मिल जाय
तो निज भाग्य मनाइए
नहीं तो स्वचेतना से
नवसृजन के गीत गाइए
नव संकल्प से
जब नूतन संधान होगा
सच है तभी
जगत का कल्याण होगा।
********
सुरेश मंडल
पूर्णियाँ,बिहार


विषय कल्याण
विधस काव्य

24 जनवरी 2020,शुक्रवार

जन्म मृत्यु के इस मेले में
भटक रहे हैं सब अंजान।
श्रद्धा से देवालय जाते हैं
हो जावे जन मन कल्याण।

झूंठे बैर खिलाये भिलनी ने
केवट ने श्री चरण पखारे।
किया कल्याण प्रुभ राम ने
दीनदयाल दानव भी तारे।

ध्रुव प्रह्लाद नन्हे बालक को
हिरणाकश्यप मुक्त कराया।
गले लगाया प्रिय भक्त को
कर कल्याण स्वभक्त बनाया।

दीन दयाला जग रखवाला
नागनथैया जग पालन कर्ता।
भीर पड़े अपने भक्तों पर
कर कल्याण पीड़ा को हर्ता।

चरण कमल के सभी पुजारी
सभी दुःखी प्रिय अंतर्यामी।
करो कल्याण हमारा प्रभुवर
दीन हीन हम आप हैं स्वामी।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
भावों के मोती
आज का विषय, कल्याण
दिनांक, २ ४,१,२०२०

दिन, शुक्रवार

हे माता सरस्वती जी विद्या दायिनी शारदा,
मुझ दीन का करिएगा आप सदा कल्याण।

माँ कलम सदा ही चलती अविरल रहे ,
राह सत्य की पकड़ सोचे लोक हितार्थ।

बुद्धि प्रदाता आप सा कोई नहीं संसार,
सद्बुद्धि जो आप दें हो जग का कल्याण।

सभी वैमनस्य कलुषिता मिट जाये जग से,
यहाँ पर बहती रही निरंतर प्रेम रस की धार।
दुनियाँ से ये अंधकार अज्ञान का दूर हो माते ,
बिखरे चहुँ ओर यहाँ जननी ज्ञान का उजास।

जग कल्याणी जयति जयति वंदनीय हे शारदा ,
करते हम विनती यही माँ करिए मम कल्याण।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
24/01/2020शुक्रवार
विषय-कल्याण

विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
कर कल्याण

तेरा होगा रे भला

मानुष चोला👌
💐💐💐💐💐💐
मूरख मन

परोपकार कर

होगा कल्याण👍
💐💐💐💐💐💐
दस मिलेगा

तू एक पैसा देगा

कल्याण रीत💐
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला

विषय - कल्याण
प्रथम प्रस्तुति


कैसे हो कल्याण प्रभु
कुछ समझ नहीं आए।
कहीं भागे है ये मन
कहीं ये रूह बुलाये।

ऊहापोह इस मन की
कभी न मिटे मिटाये।
आधी से ज्यादा उम्र
बीती मन छटपटाये।

भोग विलास से ऊबे
नही उसमें लिपटाये।
अजीब तड़प रहे सदा
मन क्या सुने सुनाये।

कैसे में है कल्याण
समझ न अब तक आए।
कैसे माया बंधन
प्रभु जी आप बनाये।

देर-सबेर कुछ मिली
सीख उसे अपनाये।
कर कल्याण हो कल्याण
मनहि अब ये ही भाये।

अपनी शक्ति सामर्थ्य
अब हम खूब भुनाये।
नित माँ वीणा पाणी
के दर में हम गाये।

माँ की कृपा बरसती
कुछ कविता रच जाये।
यही 'शिवम' कर पाए
यही कुछ सीख सिखाए।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'

तिथि -24/1/2020/शुक्रवार
विषय -*कल्याण*

विधा -काव्य

करें हर जीव का कल्याण।
हमारे यह श्रीराम भगवान।
गहें चरण रज हम रामकी ,
हो सारे जग का कल्याण।

नित परोपकार हम करलें।
दीनबंन्धु को पाश में भरलें।
दीनदयाल जगत आधार,
इन्हें अंकपाश में भरलें।

राम राज तो राम राज था।
अपना सबका कामकाज था।
श्रीराम आदर्श पुरुष थे,
न कोई यहां चालबाज था।

सुकल्याण जगता कल्याण।
कहां सोचता ये इनसान।
जीवन धन्य सही हो जाए,
बनें आदमी हरि भगवान।

स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना, गुना म प्र
Priti Sharma 👏
नमन मंच, भावों के मोती।
विषय-कल्याण।
्वरचित।
करती हूं कामना तुझसे, कल्याण कर मां।
भटकी हूं मैं अज्ञान में, तू ज्ञान दे मां,तू ज्ञान दे मां।
मां ज्ञानदायिनी,मां वीणावादिनी।
मां ज्ञान दायिनी, मां वीणावादिनी।।

भटके हुओं को मां तू ही तो उबारे
हम और निहारे किसको, हैं तेरे सहारे।
है बीच भंवर नैय्या तू पार कर मां।।
भटकी हूं मैं अज्ञान में,तू ज्ञान दे मां तू ज्ञान दे मां।
मां ज्ञानदायिनी,मां वीणा वादिनी।।....

घृणा-द्वेष के बादल चहुं ओर हैं छाए
घबराते फिर रहे हैं तेरे भक्त सताए।
इस वैर-भाव से सबका निस्तार कर मां।।
भटकी हूं मैं अज्ञान में, तू ज्ञान दे मां,तू ज्ञान दे मां।
मां ज्ञानदायिनी,मां वीणावादिनी।।

करती हूं कामना तुझसे,कल्याण कर मां,
भटकी हूं मैं अज्ञान में तू ज्ञान दे मां, तू ज्ञान दे मां।
मां ज्ञानदायिनी, मां वीणावादिनी।
मां ज्ञानदायिनी, मां वीणावादिनी।।
****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"

मंच नमन : भावों के मोती
तिथि : 24 जनवरी 2020
विषय : कल्याण

मिलकर हमारा एक एक मत ,
बन जाता है बहुमत ।
आपको मिल जाता है राज सिंहासन ,
दोनों हाथों में प्रशासन ।

अगर सचमुच करना चाहते हैं
मानव कल्याण ,
देश के संपूर्ण पार्टियों से है
आव्हान ।

कार्य करें देशहित राष्ट्रीय हित
और जनहित को रखते हुए ध्यान ।
तभी फिर से भारतवर्ष
सोने की चिड़िया बन सकती है ।

और हम कह सकते हैं
हमारा भारत महान ।।

मनोज शाह 'मानस'
सुदर्शन पार्क ,मोती नगर
नई दिल्ली

शेर की कविताए...
**


मिला के लाल में पीला, बना लो रंग केसरिया।
यही वो रंग है जिसनें, शेर के मन को है जीता।
**
इसे कहते है सब भगवा,जो प्रिय भगवान को मेरे,
जो है माँ भारती का मन, वतन मेरा है केसरिया।
**
व्यथा इसमे नही कोई, कथा सदियों पुरानी है।
हुआ कल्याण मानव का, वो केसरिया कहानी है।
**
रवि का रंग केसरिया, उदित हो अस्त हो तो क्या,
शेर का मन भी है भगवा, शिखर पे बात आनी है।
**

शेर सिंह सर्राफ

विषय-कल्याण

है प्रभु!कल्याण भावना दे दो,
कुछ कम जगत में कर जाएं।
करें जन हमको भी याद,
नाम कुछ ऐसा कर जाएं।

मन में निश्छल प्रेम की
पावन ज्योति जला दो।
सच्चा धर्म जगे मन में,
उस दया से हमें मिलादो।

दूजे का कर कल्याण,
उद्धार हमारा भी होगा।
जो नहीं काम का है जीवन,
भू पर भार हमारा भी होगा।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
विषय - कल्याण
24 जन . 2020

विधा --मुक्तक

1.
बूँद बूँद का मोल है , पक्षी तक हैरान।
बूँद बूँद संग्रह करें ,तब होगा कल्याण ।
बर्बादी जल की करें,ये बनता अपराध --
मानव की पीड़ा यही ,रखें जीव ये ध्यान
2.
रक्तदान सबसे बड़ा,कहते हैं विद्वान।
सोच समझकर कीजिए,वक्त वक्त पर दान ।
अपनी हानि न हो कभी,औरों का कल्याण ---
रक्तदान है स्व बस में, सदा रखें ये ध्यान।

******स्वरचित ******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
विषय : कल्याण
विधा : कविता

तिथि : 24.1.2020

निज अंतर का जो हो कल्याण,
जोड़-जोड़ व होड़-होड़ कर,हो
सर्वजन हिताए, सर्वजन सुखाए;
हो जाए गा, सर्व-जग कल्याण।

जगे भावना हर दिल में ऐसी
रहे न खोट कोई, कहीं भी कैसी
हो जाए जग से सब दुख प्रयाण
अमृत परिणाम, अंतर-कल्याण।

जोत से जोत मन जलती जाए
छटें अधेरे और प्रकाश छा जाए
निज का हो, या जग का हो
आरम्भ करे गा,अंतर-कल्याण।

कलयुगी सोच को सब दो दहाड़
करो अंतर सोच का नव-निर्माण,
है कायाकल्प का आरंभ बिंदु-
प्रमाणित कर्माण, अंतर-कल्याण।
--रीता ग्रोवर
--स्वरचित

दिनांक २४/१/२०२०
शीर्षक-"कल्याण"


हे मनु जागो तुम
करो लोक _कलयाण
अपने तक क्यों सीमित हो?
करो नेक कुछ काम।

ईश ने दिये जो दो हाथ
क्यों बैठे बेकाम?
कलिकाल में एक ही काम
करे लोक कल्याण।

दीनन की सेवा करें
सभी धर्मों का सार
समाज में बहुत कुछ है,
गर करना चाहे आप।

निवारण करें दूसरे के दुःख का
बन जाये बिगड़े काम
निर्मल मन से ही करे
लोक कल्याण के काम।

प्रभु आपका साथ देंगे
प्रतिदान देगें तत्काल
बनकर देखे सखा दीनन की
खुश होंगे भगवान।

जीने के लिए और क्या चाहिए
सुन्दर हो मकान
और हो स्वस्थ परिवार
सबकुछ है जब साथ आपके
करे लोक कल्याण।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

विषय -कल्याण
24/01/20

शुक्रवार
कविता

सत्य-शिवं-सुन्दरं को क्यों
आज जमाना भूल गया है,
अपने ही वैभव में रत हो
अहंकार में फूल गया है।

कभी हमारी मातृभूमि पर
इनसे ही जीवन चलता था ,
सत्य -वचन से ही समाज का
नित कल्याण हुआ करता था।

सुन्दरता सबके हृदयों में
बन सुगंध महका करती थी,
घर-घर में खुशियों से पूरित
हँसी सदा चहका करती थी।

आज सत्य- शिव- सुन्दर का
नर ने यह अर्थ निकाल लिया है,
अपना ही हित हो जिसमें-बस
वही सत्य-शिव मान लिया है।

इसीलिए दानवता अपना
मुँह फैलाए खड़ी हुई है,
संस्कार की धरती को
विकृत करने पर अड़ी हुई है।

अब भी समय जागने का है
, फिर से संस्कार दोहराएं,
सत्यं- शिवं - सुन्दरं को
अपने जीवन का लक्ष्य बनाएँ।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

हे प्रभु करो निधान
मानवता बने मेरी पहचान
जग में हो मेरा कोई नाम

मानवता से जग का करना कल्याण.

मंगल हो सबका जीवन
मंगलमय हो सबका संसार
खुशियों भरा हो सबका जीवन संसार
हो सबका जीवन कल्याण का आधार .

सबका कल्याण करें भगवान
सबको मिले ईश्वर का अनमोल ज्ञान
भगवत गीता का हो संज्ञान
मेरा आर्यवर्त फिर से बने महान .
स्वरचित :- रीता बिष्ट

विषय -कल्याण
दिनांक २४-१-२०२०
निस्वार्थ भाव रखने वाला,जन कल्याण कर पाएगा।
मन लोभ रखने वाला,राह मनु सदा ही जाएगा।।

गहराई में जो डूबा,एकमात्र वो मोती चुन पाएगा।
जन हितार्थ काम कर,कल्याण मार्ग दिखाएगा।।

मन में निश्चल प्रेम रख,पावन ज्योति जलाएगा।
सही मायनों में दीन दुखी,कल्याण कर पाएगा।।

उद्धारक जग में बहुत,सिर्फ दिखावा कर जाएगा।
जन कल्याण नाम पर,सिर्फ फोटो खिंचवाएगा।।

शुद्ध भाव मन रखने वाला,सदा यश को पाएगा।
मजबूरी फायदा उठाने वाला,बस नर्क में जाएगा।।

मानव जन्म ले वो जन,दोबारा धरा ना आएगा।
कर्मानुसार फल पा,अपनी जगह वो बनाएगा।।

कहती वीणा अब भी संभल,मनु जन्म ना पाएगा।
स्वार्थ छोड़ जन कल्याण कर,भव सुधर जाएगा।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक :24/01/2020
विषय : कल्याण
विधा : हाइकु(5/7/5)

(1)
चुनावी नारा
गरीब का कल्याण
वहीं बेचारा
(2)
आज का दौर
निज कल्याण हावी
दिखावा शोर
(3)
प्रेम समाया
बुजुर्ग वृक्ष नीचे
कल्याण छाया
(4)
मान न कम
कर देती कल्याण
वाणी-कलम
(5)
नाम है बड़े
कल्याणपुरवासी
रोग में पड़े

स्वरचित
24जनवरी20
विषय:-कल्याण


1
लोकतंत्र में
कल्याणकारी राज्य
मूल संकल्प
2
अबकी बार
जनता का कल्याण
चुनावी वार
3
भाषण दौर
कल्याणकारी योजना
डिब्बे में बन्द
4
भारत बन्द
अपना ही कल्याण
जनता त्रस्त
5
पैसा ही यार
छाया है भ्रष्टाचार
कहाँ कल्याण
6
भारत देश
वसुधैव भावना
विश्व कल्याण
7
आदि काल से
विश्व गुरु भारत
शान्ति सद्भाव

मनीष श्री
विषय -कल्याण
24.1.2020


हे वीणावादिनी माँ
आपके शरणों में आये ,
विद्या बुद्धि ज्ञान दे माँ।
हम अज्ञानी ,अबोध बालक,
दे हमें वरदान तू,
ज्ञान चक्षु खोल दे माँ,
हमसे न कोई भूल हो
करें अर्जित सफलता,
रास्ते प्रशस्त हो।
कर्म हमारा नेक हो ,
जगत का कल्याण हो।
अपने शरणों में हमें लो,
हम बालक नादान हैं,
दृष्टि अपनी डालकर ,
कर दे तू कल्याण माँ।

स्वरचित --निवेदिता श्रीवास्तव
जमशेदपुर , झारखण्ड
अपना दृष्टिकोण है दर्शन,
आत्मा का विशुद्ध ज्ञान हैं दर्शन
वस्तु के विवेचना का आधार है दर्शन,

मन की शांति,इन्द्रीयों का संयम है दर्शन।

जीवन का उद्देश्य हैं दर्शन,
सही गलत की पहचान है दर्शन
सकारात्मक दृष्टिकोण,सफलता है दर्शन
मानव #कल्याण का आदि और अंत है दर्शन

ज्ञान का समुद्र जब उमड़ता है,
प्रभु भक्ति में रम जाता है मानव,
जीवन दर्शन को पा जाता है मानव
आत्मा परमात्मा का भेद भुला ईश्वर को
पा जाता है.....................दर्शन।।
गीतांजलि वार्ष्णेय


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