Wednesday, January 15

"ज्ञान"15जनवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-626
विषय ज्ञान
विधा काव्य

15 जनवरी 2020,बुधवार

विद्या देती सदा विनय को
विनयभाव से ज्ञानार्जन है।
विवेक जाग्रत होता ज्ञान से
यह जीवन दिक़दर्शन है।

अज्ञानी जन भ्रमित होता है
वह जग जीवन भर रोता है।
आलसी और निकम्मा रहता
जीवन जी कर सब खोता है।

जीवन जीना खेल नहीं है
पद पद पर बाधा संकट हैं।
संघर्षो से भरा यह जीवन
मंजिल मार्ग अति विकट है।

स्वविवेक और ज्ञान निज से
प्रति पहेली सरल है उत्तर।
ज्ञानी ध्यानी स्व जीवन में
कभी नहीं होता निरुत्तर।

सत्य ज्ञान विजयेता होता
अंधकार आलोक हटाता।
सत्य पथ ही उत्तम पथ है
यह जीवन स्वर्ग बनाता।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय - ज्ञान
विधा- दोहा

ज्ञान वहाँ पर बाँटिए ,
जहाँ ज्ञान की चाह।
तिमिर हटे संकट घटे,
मिले सत्य की राह।।

भूख में ही भाय सदा,
क्या रोटी क्या ज्ञान।
रच बस जाय रग रग में ,
दिखे असर हो मान।।

ज्ञान नही वो ज्ञान जो,
हो जिसमें अभिमान।
संतों जैसी सादगी,
खरे ज्ञान की शान ।।

गुरु ज्ञान को बाँटिए ,
गुरू कि ये ही आस।
उऋण भी होइवे 'शिवम'
बढ़वे तोला-माश।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'

विषय- ज्ञान

ज्योति ज्ञान की भारत में, वीणा के झंकार से ।
कुंठित आज समाज सारा ,किस अज्ञान के उपकार से।।
मधुमय वाणी दिव्य राग में, मिट जाए अज्ञान हमारा।
नील गगन में करूं बसेरा ,झंकृत वीणा के तार से।।
ज्ञान के इस संसार में जगदंबे का बिहार करें।
कंठ में निवास करें जननी, नित नूतन वाणी के उदगार में।।
ज्ञानी तो ज्ञान की चर्चा करें ,अज्ञानी भ्रम को भरमाये।
शरण करें सत्य अकिंचन, ज्ञान से जग को तार जाये।।
ज्ञान चक्षु कृपा तेरी वरदायिनी, एक पल में कटे कालीमा यामिनी।
ज्ञान दिव्य आभा का संचार करें, एक अकिंचन खड़ा द्वार

उसका हम उपकार करें.....।

मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
Damyanti Damyanti 
विषय_ज्ञान
ज्ञान शून्य जीवन पशुवत
भटकते राहे बिनज्ञान |

भ्रमित जन जन निज हित
बनो ले शुभ ज्ञान मंथन हे
कर पावोगे सही डगर क्या |
मिले ज्ञान जिससे जंहा लिजीये |
ज्ञानी कोई छोटा बडा नही
जड हो या चेतन सब ज्ञानवान |
होनी चाहिये सक्षमता लेने की |
हो ज्ञान से परिपूर्ण व्यक्ति
खाता नही धोखा जीनव मे |
सफल जीवन है बिताता |
सफलता असफलता निर्मर
निज बुद्धि ज्ञान पर सदैव |
स्वरचित_दमयंती मिश्रा
दिनांक 15-01-2020
विषय- ज्ञान

छंदमुक्त

ज्ञान ही वास्तविक पूंजी है,
ज्ञान सफलता का आधार ।
अज्ञानता जीवन अभिशाप,
ज्ञान से ही चलता संसार ।

भिन्न प्रकार हैं ज्ञान के भी,
अनुभव ज्ञान किताबी ज्ञान।
बिना गुरु ज्ञान नहीं मिलता,
गुरु से मिटता है अज्ञान ।

अनुभव से भी ज्ञान हम पाते,
श्रवण दृश्य चक्षु का आभास ।
खुले द्वार मेधा के ज्ञान से ही,
तम अज्ञान का हो जाए निकास।

ज्ञान निधि से मनुज समृद्ध बने,
जग में ज्ञान ही मान दिलाता ।
शिक्षित अपढ़ मानव में तो ,
ज्ञान ही तो है भेद कराता ।

ज्ञान की महिमा पावन श्रेष्ठ,
मिले ज्ञान से आदर और मान ।
अज्ञानी का न अस्तित्व कोई ,
जड़ता से मिलता अपमान ।

लक्ष्य प्राप्त जीवन में जरूरी
ज्ञान से ही मंजिल मिलती है ।
अगर नींव मजबूत ज्ञान की,
सफलता की राह खुलती है ।

शाश्वत रहता सदा त्रैलोक्य में,
क्षरण न हो कभी संचित ज्ञान।
विद्वान सुजान यह हमें बनाए,
देता है नाम प्रतिष्ठा सम्मान ।

कुसुम लता 'कुसुम'
नई दिल्ली
शीर्षक-ज्ञान।
विधा-काव्य।

स्वरचित।
बस अब बहुत हुआ,
ज्ञान की ना बातें करो तुम,
समझ नहीं आतीं हैं आसानी से।
कई बार होती हैं इतनी क्लिष्ट
गुजर जातीं हैं सिर के ऊपर से मेरे।।

मतलब यह नहीं कि
अज्ञानता का शोध करो तुम।
बस थोड़े सहज-सरल रहो,
सीधे-सच्चे रहो,जिम्मेदार औ
प्यार की ऊष्मा से भरे रहो तुम।।

ज्ञान ही सब कुछ नहीं
जीवन जीवंत जीने के लिए।
कुछ चीजों से अनजान हो जाओ,
कुछ पल समझदारी से परे हो जाओ,
सबकुछ भूलकर बस मुझमें ही खो जाओ तुम।।
*****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
15/01/2020


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