ब्लॉग की रचनाएँसर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें
ब्लॉग संख्या :-621
दिनांक-10/01/2020
विषय-भंवरा/भ्रमर
हर एक कली पे भंवरे मड़राते
गुल जैसी खुशबू कांटो में हम पाते।
रात अंधेरी में अठखेलियां करें
कलियों के मकरंद को चूस जाते।।
जैसे कमल खिले रवि बिन
कुमुदिनी शशि बिन बेताब।
भंवरे करते भ्रमण रात भर
कलियों को दिखाते झूठा ख्वाब।।
छलकते प्याले कलियों पर
पराग को देते दर्द नायाब
निकलते शूल उसमें से
भंवरो के नये-नये अंदाज।।
अमराई की कुंजो में
जब भ्रमर करे इशारे।
बौरों की हर धड़कन पर
मकरंद लुटे हाथ पसारे।।
भंवरे होते मद में मतवाले
इस डाली से उस डाली पर।
फुर्र-फुर्र उड़ जाते भंवरे
अपने पंख ...........पसारे।।
चाह पुष्पों की खिले रहे हम
कभी ना हम मुरझाये।
मकरंद उनकी मधुर तृप्ति से
तृप्त भ्रमर हो जाए।।
कलियों का दर्द.....भंवरो से
क्या खता मेरी थी जालिम
क्यों तुने चूसा हमे..........
क्यों ना मेरी उम्र तक
उस शाख में छोड़ा तूने
जब ना तू मुझको पाएगा
दर्द से बेचैन होगा........
मेरी खुशबू से बिछायेगा
बिचौना रात भर
सुबह होते ही यूं........
तू मुझे मिला देगा खाक में
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
विषय-भंवरा/भ्रमर
हर एक कली पे भंवरे मड़राते
गुल जैसी खुशबू कांटो में हम पाते।
रात अंधेरी में अठखेलियां करें
कलियों के मकरंद को चूस जाते।।
जैसे कमल खिले रवि बिन
कुमुदिनी शशि बिन बेताब।
भंवरे करते भ्रमण रात भर
कलियों को दिखाते झूठा ख्वाब।।
छलकते प्याले कलियों पर
पराग को देते दर्द नायाब
निकलते शूल उसमें से
भंवरो के नये-नये अंदाज।।
अमराई की कुंजो में
जब भ्रमर करे इशारे।
बौरों की हर धड़कन पर
मकरंद लुटे हाथ पसारे।।
भंवरे होते मद में मतवाले
इस डाली से उस डाली पर।
फुर्र-फुर्र उड़ जाते भंवरे
अपने पंख ...........पसारे।।
चाह पुष्पों की खिले रहे हम
कभी ना हम मुरझाये।
मकरंद उनकी मधुर तृप्ति से
तृप्त भ्रमर हो जाए।।
कलियों का दर्द.....भंवरो से
क्या खता मेरी थी जालिम
क्यों तुने चूसा हमे..........
क्यों ना मेरी उम्र तक
उस शाख में छोड़ा तूने
जब ना तू मुझको पाएगा
दर्द से बेचैन होगा........
मेरी खुशबू से बिछायेगा
बिचौना रात भर
सुबह होते ही यूं........
तू मुझे मिला देगा खाक में
स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
भंवरा कौन नहीं है जग में
भंवरा सदा स्नेह प्रतीक है।
भंवरा गुँजन करे सुमन पर
भंवरा बनना जीवन रीत है।
सैनिक भंवरा बने सीमा पर
हिम खण्डो पर गुंजन करता।
मातृभूमि नित रक्षक बन कर
दुःख संताप धरती के हरता।
वह भक्त भगवन का भंवरा
भजन कीर्तन करता गुँजन।
अर्चन पूजन नित करता वह
सदा प्रेरणा देता है हर जन।
मधुमास आता जब जग में
खिले सुमन भंवरे मंडराते।
गुँ गुँ स्वर से गुँजन करते वे
इठलाते मृदु गीतों को गाते।
गोपियों ने भ्रमर गीत गाये थे
मदन मुरारी कृष्ण साँवरे हित।
उद्धव कोई कसर नहीं छोड़ी
श्याम रंग गोपियां थी सिक्त।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
भंवरा सदा स्नेह प्रतीक है।
भंवरा गुँजन करे सुमन पर
भंवरा बनना जीवन रीत है।
सैनिक भंवरा बने सीमा पर
हिम खण्डो पर गुंजन करता।
मातृभूमि नित रक्षक बन कर
दुःख संताप धरती के हरता।
वह भक्त भगवन का भंवरा
भजन कीर्तन करता गुँजन।
अर्चन पूजन नित करता वह
सदा प्रेरणा देता है हर जन।
मधुमास आता जब जग में
खिले सुमन भंवरे मंडराते।
गुँ गुँ स्वर से गुँजन करते वे
इठलाते मृदु गीतों को गाते।
गोपियों ने भ्रमर गीत गाये थे
मदन मुरारी कृष्ण साँवरे हित।
उद्धव कोई कसर नहीं छोड़ी
श्याम रंग गोपियां थी सिक्त।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
10 /1 /2020
बिषय,, भ्रमर,, भंवरा
गुनगुनाता भंवरा बैठता कली कली
आलिंगन करने आतुर हर कली खिली खिली
पराग पी पीकर अलमस्त हो रहा
बहुत प्यार है मुझे सपने संजो रहा
इसे कृष्ण के तन मन की संज्ञा दी हुई
गोपियों ने प्रेम की तुलना की हुई
इसी कारण कुछ ज्यादा ही इतराता है यह
दौड़ दौड़ कमल पुष्प पर बैठ जाता है यह
इसे क्या पता कि कल की सुबह देख नहीं पाएगा
कमल दल संध्या को बंद हो जाएगा
भ्रमर की तरह ही है मानव जीवन
जाने कब उजड़ जाए चलती सांसों का चमन
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय,, भ्रमर,, भंवरा
गुनगुनाता भंवरा बैठता कली कली
आलिंगन करने आतुर हर कली खिली खिली
पराग पी पीकर अलमस्त हो रहा
बहुत प्यार है मुझे सपने संजो रहा
इसे कृष्ण के तन मन की संज्ञा दी हुई
गोपियों ने प्रेम की तुलना की हुई
इसी कारण कुछ ज्यादा ही इतराता है यह
दौड़ दौड़ कमल पुष्प पर बैठ जाता है यह
इसे क्या पता कि कल की सुबह देख नहीं पाएगा
कमल दल संध्या को बंद हो जाएगा
भ्रमर की तरह ही है मानव जीवन
जाने कब उजड़ जाए चलती सांसों का चमन
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
10/1/20
जब प्रकृति का
यौवन खिलता है
धरा की छवि
अदभुद होती है
सतरंगी रंगों का राजा
धरती रंगीन सजाता है
भ्रमरे गुंजन करके
कलियों पर मंडराते है
मनमस्त होकर तितली
इठलाती ओर इतराती है
रिमझिम वर्षा की बूंदे
अतुलित आनंदित
होकर मन मे
बह।रे बिखराती
मिट्टी की सोंधी सोंधी
खुसबू
संग हवा के बहती है
एक कवि के कोमल
मन मे
कविता की किरणें जग जाती
खो जाता है
वो ले उड़ान
कल्पनाओ का ले बखान
मिल जाता उसको
निमंत्रण
रवि किरणों के समान
स्वरचित
मीना तिवारी
जब प्रकृति का
यौवन खिलता है
धरा की छवि
अदभुद होती है
सतरंगी रंगों का राजा
धरती रंगीन सजाता है
भ्रमरे गुंजन करके
कलियों पर मंडराते है
मनमस्त होकर तितली
इठलाती ओर इतराती है
रिमझिम वर्षा की बूंदे
अतुलित आनंदित
होकर मन मे
बह।रे बिखराती
मिट्टी की सोंधी सोंधी
खुसबू
संग हवा के बहती है
एक कवि के कोमल
मन मे
कविता की किरणें जग जाती
खो जाता है
वो ले उड़ान
कल्पनाओ का ले बखान
मिल जाता उसको
निमंत्रण
रवि किरणों के समान
स्वरचित
मीना तिवारी
दिनांक10-01-2020
विषय- भ्रमर
मधु का अभिलाषी भंवरा
पुष्पों पर करता गुंजार।
पंखुड़ियों के हृदय में कैद,
उसका मधुर मदिर संसार।
पराग रस पान करता अलि,
पुष्पों का आलिंगन पाकर ।
मुकुल मंजरी मुदित होती है
भ्रमर का अतृप्त चुंबन पाकर।
मधु के मृदु प्याले मंजरी के
भ्रमर को आकर्षित करते ।
नीरस जीवन बिन मकरंद,
प्रसून मन हर्षित हैं करते ।
गुनगुन मंजरियों पर करते
जीवन का यह गीत सुनाते ।
मृदुलता में सरस आनंद,
गुंजार से यह हैं समझाते ।
कली कली पर अलि मंडराएं,
निशा के तम में रहते विह्वल।
रवि किरणों की उज्ज्वलता में,
पराग तृप्त लगते हैं निर्मल ।
कुसुम लता'कुसुम'
नई दिल्ली
विषय- भ्रमर
मधु का अभिलाषी भंवरा
पुष्पों पर करता गुंजार।
पंखुड़ियों के हृदय में कैद,
उसका मधुर मदिर संसार।
पराग रस पान करता अलि,
पुष्पों का आलिंगन पाकर ।
मुकुल मंजरी मुदित होती है
भ्रमर का अतृप्त चुंबन पाकर।
मधु के मृदु प्याले मंजरी के
भ्रमर को आकर्षित करते ।
नीरस जीवन बिन मकरंद,
प्रसून मन हर्षित हैं करते ।
गुनगुन मंजरियों पर करते
जीवन का यह गीत सुनाते ।
मृदुलता में सरस आनंद,
गुंजार से यह हैं समझाते ।
कली कली पर अलि मंडराएं,
निशा के तम में रहते विह्वल।
रवि किरणों की उज्ज्वलता में,
पराग तृप्त लगते हैं निर्मल ।
कुसुम लता'कुसुम'
नई दिल्ली
दिनांक- 10/01/2020
शीर्षक- भ्रमर/भँवरा
विधा- छंदमुक्त कविता (बाल कविता)
******************
एक भँवरा बड़ा शैतान,
गुन-गुन करता है गान,
कली-कली में मँडराता,
फूलों का करता रसपान,
एक भँवरा बड़ा शैतान |
काली है उसकी काया,
फूलों के मन को भाया,
फूलों में है उसकी जान,
नैनों से चलाता है बाण,
एक भँवरा बड़ा शैतान |
तितली संग जब आता ,
बच्चों के मन भाता,
फूल-कली से पहचान,
बगिया की है ये जान,
एक भँवरा बड़ा शैतान |
प्यार गर मिलता इसको,
मधुर राग ये सुनाता,
छेड़खानी मत करना बच्चों,
काट लेगा तुम्हारे कान,
एक भँवरा बड़ा शैतान |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
शीर्षक- भ्रमर/भँवरा
विधा- छंदमुक्त कविता (बाल कविता)
******************
एक भँवरा बड़ा शैतान,
गुन-गुन करता है गान,
कली-कली में मँडराता,
फूलों का करता रसपान,
एक भँवरा बड़ा शैतान |
काली है उसकी काया,
फूलों के मन को भाया,
फूलों में है उसकी जान,
नैनों से चलाता है बाण,
एक भँवरा बड़ा शैतान |
तितली संग जब आता ,
बच्चों के मन भाता,
फूल-कली से पहचान,
बगिया की है ये जान,
एक भँवरा बड़ा शैतान |
प्यार गर मिलता इसको,
मधुर राग ये सुनाता,
छेड़खानी मत करना बच्चों,
काट लेगा तुम्हारे कान,
एक भँवरा बड़ा शैतान |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
10/01/2020
भ्रमर
*भ्रमर*
फूली सरसों के खिले रंग
मादकता ले आया अनंग
मन ही मन कलियाँ मुसकाई
घूँघट में गोरी शरमाई
झोंके मृदुल चले पवन के
घूँघट पट सरका चितवन के
दरश मदिर हरस अंगराई
पुहुप पराग प्रीति लहराई
नव किसलय पुलकित उपवन में
भाव मधुर मदन भरे मन में
महुआ महक कलियाँ बौराई
नयन मकरंद मदिर लुनाई
छलिया पिया कहाँ भटका रे
आ भ्रमर चख चषक चटकारे
पखड़ी पुलक परिमल नेह हो
हिय नित मधुबन मोद मेह हो
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
भ्रमर
*भ्रमर*
फूली सरसों के खिले रंग
मादकता ले आया अनंग
मन ही मन कलियाँ मुसकाई
घूँघट में गोरी शरमाई
झोंके मृदुल चले पवन के
घूँघट पट सरका चितवन के
दरश मदिर हरस अंगराई
पुहुप पराग प्रीति लहराई
नव किसलय पुलकित उपवन में
भाव मधुर मदन भरे मन में
महुआ महक कलियाँ बौराई
नयन मकरंद मदिर लुनाई
छलिया पिया कहाँ भटका रे
आ भ्रमर चख चषक चटकारे
पखड़ी पुलक परिमल नेह हो
हिय नित मधुबन मोद मेह हो
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
भावों के मोती मंच,
नमन।
विषय-भंवरा।
स्वरचित।
गुंजन करता घूमे रे भंवरा!
डाल डाल और कली-कली।
रसपान करने पराग का
फूलों की संगत भली भली।।
चंचल पवन बहै रे भंवरा!
छलके मदिरा की गगरी।
कलियां भी मदहोश मिलन से
मधु-मधुर गन्ध-रस भरी भरी।।
जीवन बसंत आया रे भंवरा!
खिल जातीं मन सुमन सखी।
रंग-बिरंगी लाज भरी स्मित
मुस्कान बिराजै खिली खिली।।
*****
प्रीति शर्मा " पूर्णिमा"
10/01/2020
नमन।
विषय-भंवरा।
स्वरचित।
गुंजन करता घूमे रे भंवरा!
डाल डाल और कली-कली।
रसपान करने पराग का
फूलों की संगत भली भली।।
चंचल पवन बहै रे भंवरा!
छलके मदिरा की गगरी।
कलियां भी मदहोश मिलन से
मधु-मधुर गन्ध-रस भरी भरी।।
जीवन बसंत आया रे भंवरा!
खिल जातीं मन सुमन सखी।
रंग-बिरंगी लाज भरी स्मित
मुस्कान बिराजै खिली खिली।।
*****
प्रीति शर्मा " पूर्णिमा"
10/01/2020
दिनांक-१०/१/२०१९
शीर्षक_"भंवरा"।
पाकर कलियों का मौन निमंत्रण
भंवरा मंद मुस्काये
अनेक आकांक्षा मन में पाले
आहृलादित हो गुनगुनाये।
अनुपम छटा है बाग की,
देती एक संदेश,
चिरस्थाई नही जीवन हमारा
ब्यर्थ न जाये जीवन हमारा।
पीकर तूने मधू हमारा,
भंवरा तूने हमारा जीवन संवारा
प्रेम हमारा अमर कर डाला
धन्य धन्य हो गया भाग्य हमारा।
प्रकृति सीखाती प्रेम का पाठ
प्रेम ही है जीवन का सार
इसे जब समझ जाये हम
प्रकृति से जुड़ जाये हम।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
शीर्षक_"भंवरा"।
पाकर कलियों का मौन निमंत्रण
भंवरा मंद मुस्काये
अनेक आकांक्षा मन में पाले
आहृलादित हो गुनगुनाये।
अनुपम छटा है बाग की,
देती एक संदेश,
चिरस्थाई नही जीवन हमारा
ब्यर्थ न जाये जीवन हमारा।
पीकर तूने मधू हमारा,
भंवरा तूने हमारा जीवन संवारा
प्रेम हमारा अमर कर डाला
धन्य धन्य हो गया भाग्य हमारा।
प्रकृति सीखाती प्रेम का पाठ
प्रेम ही है जीवन का सार
इसे जब समझ जाये हम
प्रकृति से जुड़ जाये हम।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
दिनाँक-10 /01 /2020
विषय- भँवरा/भ्रमर
गुंजन करते हैं भ्रमर, करें फूल से बात।
इनसे सजता बाग है, सुंदर लगे प्रभात ।
फूलों के प्रेमी यही, चूस रहे मकरंद।
नहीं खबर कुछ वक्त की, हुए कमल में बंद।
चूस लिया रस फूल का, ढूंढ़े कलियाँ और।
उपवन फूलों से भरा , इन्हें बहुत है ठौर।
हरजाई होती है बड़ी, इन भँवरों की जात ।
एक जगह टिकते नहीं , मँड़राते दिन- रात।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
विषय- भँवरा/भ्रमर
गुंजन करते हैं भ्रमर, करें फूल से बात।
इनसे सजता बाग है, सुंदर लगे प्रभात ।
फूलों के प्रेमी यही, चूस रहे मकरंद।
नहीं खबर कुछ वक्त की, हुए कमल में बंद।
चूस लिया रस फूल का, ढूंढ़े कलियाँ और।
उपवन फूलों से भरा , इन्हें बहुत है ठौर।
हरजाई होती है बड़ी, इन भँवरों की जात ।
एक जगह टिकते नहीं , मँड़राते दिन- रात।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
10/1/2020
भवँरा
*****
यूँ बंध गया मन
तेरे प्रेम में
ज्यूँ भंवरा बंध
जाए पुष्प के
मोह पाश में,
मन भी जीवन
मोह में उलझता
जाये बन्धनों में
बंधता जाए
अनसुलझे सवालों
में पड़ता जाए
क्यूँ पड़ जाती
इतनी गांठे
तमाम कोशिशों
पर भी खुल न
पाए
क्यों नही बन
जाता मन भी
भवरें सा न उलझे
बन्धनों में न पड़े
मोह बस यूं ही
होके खुद का
खुद में ही मिल
जाये
हो सबेरा मन में
फैले उजियारा
ज्ञान का ज्यों
सुबह भंवरा
उड़ जाए
मन भी सारे
मोह माया
छोड़ पाये ।।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
भवँरा
*****
यूँ बंध गया मन
तेरे प्रेम में
ज्यूँ भंवरा बंध
जाए पुष्प के
मोह पाश में,
मन भी जीवन
मोह में उलझता
जाये बन्धनों में
बंधता जाए
अनसुलझे सवालों
में पड़ता जाए
क्यूँ पड़ जाती
इतनी गांठे
तमाम कोशिशों
पर भी खुल न
पाए
क्यों नही बन
जाता मन भी
भवरें सा न उलझे
बन्धनों में न पड़े
मोह बस यूं ही
होके खुद का
खुद में ही मिल
जाये
हो सबेरा मन में
फैले उजियारा
ज्ञान का ज्यों
सुबह भंवरा
उड़ जाए
मन भी सारे
मोह माया
छोड़ पाये ।।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
10/1/2020
विषय:-भ्रमर
ईश छंद
112 121 22
भवरें तुम्ही बताओ ।
सब राज तो जताओ ।
अब शूल क्यों चुभाया ।
तुमने मुझे भुलाया ।
तब मोम सी ढली थी ।
जब नाज में चली थी ।
लुटना नहीं मुझे था ।
हर हाल में भली थी ।
प्रिय ढूंढ-ढूंढ हारी।
अब रो रही बिचारी ।
तुमको पता चलेगा ।
तन राख में मिलेगा ।
मधुमास क्यों बिताया ।
तुमने मुझे भुलाया ।
अब क्यों नहीं लुभाते ।
उर से मुझे लगाते ।
स्वरचित✍
नीलम शर्मा # नीलू
विषय:-भ्रमर
ईश छंद
112 121 22
भवरें तुम्ही बताओ ।
सब राज तो जताओ ।
अब शूल क्यों चुभाया ।
तुमने मुझे भुलाया ।
तब मोम सी ढली थी ।
जब नाज में चली थी ।
लुटना नहीं मुझे था ।
हर हाल में भली थी ।
प्रिय ढूंढ-ढूंढ हारी।
अब रो रही बिचारी ।
तुमको पता चलेगा ।
तन राख में मिलेगा ।
मधुमास क्यों बिताया ।
तुमने मुझे भुलाया ।
अब क्यों नहीं लुभाते ।
उर से मुझे लगाते ।
स्वरचित✍
नीलम शर्मा # नीलू
विषय , भंवरा , भ्रमर
शुक्रवार
१०,१,२०२०.
रूप मनोहर सृष्टि का ,
भ्रमर है संसार ।
प्रेम प्यासा जग सभी,
चाह रहा रसपान ।।
मोह बनाये लालची,
बाँधें मन की डोर।
भला बुरा सब भूल के,
नाचे मन का मोर ।।
भ्रमर नाचे सुमन पर ,
जीवन भर का साथ ।
हानि लाभ की बात कर,
नहीं छोड़ता हाथ ।।
भंवरे को किया गया,
दुनियाँ में बदनाम।
यौवन रस के लालची,
करते हैं ये काम ।।
बुरा यहाँ कुछ भी नहीं,
समझ समझ की बात।
संस्कार रहते जहाँ,
वहाँ नहीं है घात ।।
स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश
शुक्रवार
१०,१,२०२०.
रूप मनोहर सृष्टि का ,
भ्रमर है संसार ।
प्रेम प्यासा जग सभी,
चाह रहा रसपान ।।
मोह बनाये लालची,
बाँधें मन की डोर।
भला बुरा सब भूल के,
नाचे मन का मोर ।।
भ्रमर नाचे सुमन पर ,
जीवन भर का साथ ।
हानि लाभ की बात कर,
नहीं छोड़ता हाथ ।।
भंवरे को किया गया,
दुनियाँ में बदनाम।
यौवन रस के लालची,
करते हैं ये काम ।।
बुरा यहाँ कुछ भी नहीं,
समझ समझ की बात।
संस्कार रहते जहाँ,
वहाँ नहीं है घात ।।
स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश
विषय :भँवरा /भ्रमर
दिनांक:10/ 01/2020
परिवार एक उपवन
मातपिता एक माली
नन्हें मुन्ने फूल खिले
घर बगिया हरियाली
कलियों से फूल बना,
फूलों से सुंदर बगियाँ।
नित खिले फल फूल,
उपवन घूमें सखियाँ
गुन गुन करता भँवरा।
चिड़िया चहके डाली
रंग बिरंगी तितलियाँ,
दल पत्र बजाएँ ताली
खग गाते कलरव गान,
सरगम की मीठी तान।
पिक गाती मीठा गान,
उपवन में इसकी शान।
फूल बिखेरते मुस्कान,
मकरंद करता रसपान।
वसंत बहार मंद पवन,
'रिखब' करें धरा नमन।
रचयिता
स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित®
रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
जयपुर राजस्थान
दिनांक:10/ 01/2020
परिवार एक उपवन
मातपिता एक माली
नन्हें मुन्ने फूल खिले
घर बगिया हरियाली
कलियों से फूल बना,
फूलों से सुंदर बगियाँ।
नित खिले फल फूल,
उपवन घूमें सखियाँ
गुन गुन करता भँवरा।
चिड़िया चहके डाली
रंग बिरंगी तितलियाँ,
दल पत्र बजाएँ ताली
खग गाते कलरव गान,
सरगम की मीठी तान।
पिक गाती मीठा गान,
उपवन में इसकी शान।
फूल बिखेरते मुस्कान,
मकरंद करता रसपान।
वसंत बहार मंद पवन,
'रिखब' करें धरा नमन।
रचयिता
स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित®
रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
जयपुर राजस्थान
दिनांकः-10-1-2020
वार शुक्रवार
हिन्दी दिवस पर
विधा छन्द मुक्त
शीर्षकः-मातृ भाषा हिन्दी को नमन
अपनी मातृ भाषा हिन्दी को मेरा प्रणाम।
वन्दे मातरम् वन्दे मातरम् वन्दे मातरम्।।
विज्ञान पर पूरी तरह हिन्दी खरी उतरती।
जैसा लिखते है बिल्कुल वैसी बोली जाती।।
खूबियों हिन्दी की करूं कहाँ तक बखान ।
मात्राओं की अपनी भाषा में हैं पूरी खान ।।
बनती है मात्राओं से ही भाषा असाधारण ।
उन्हीं के कारण होता है उत्तम उच्चारण ।।
अधिक रिशते अंकल आंटी पर होते खतम।
अंग्रेजी भी देखो दिखाती कैसे कैसे सितम।।
न्यमोनिया पिन्यूमोनिया अंग्रेजी में कहते ।
भेड़ मछली कितनी हो एकवचन है कहते।।
अंग्रेजी बोलकर अपने को साहब समझते ।
गलत बोलने पर भी हैं रहते वह इतराते ।।
बातें बहुत हैं कहने को और कितना बताऊँ।
मैं तो अपनी हिन्दी भाषा पर बड़ इतराऊँ।।
छोड़ दासों की भाषा, हिन्दी में करो काम ।
वन्दे मातरम् बोलो प्रेम से सब वन्दे मातरम्।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादावादी”
स्वरचित
वार शुक्रवार
हिन्दी दिवस पर
विधा छन्द मुक्त
शीर्षकः-मातृ भाषा हिन्दी को नमन
अपनी मातृ भाषा हिन्दी को मेरा प्रणाम।
वन्दे मातरम् वन्दे मातरम् वन्दे मातरम्।।
विज्ञान पर पूरी तरह हिन्दी खरी उतरती।
जैसा लिखते है बिल्कुल वैसी बोली जाती।।
खूबियों हिन्दी की करूं कहाँ तक बखान ।
मात्राओं की अपनी भाषा में हैं पूरी खान ।।
बनती है मात्राओं से ही भाषा असाधारण ।
उन्हीं के कारण होता है उत्तम उच्चारण ।।
अधिक रिशते अंकल आंटी पर होते खतम।
अंग्रेजी भी देखो दिखाती कैसे कैसे सितम।।
न्यमोनिया पिन्यूमोनिया अंग्रेजी में कहते ।
भेड़ मछली कितनी हो एकवचन है कहते।।
अंग्रेजी बोलकर अपने को साहब समझते ।
गलत बोलने पर भी हैं रहते वह इतराते ।।
बातें बहुत हैं कहने को और कितना बताऊँ।
मैं तो अपनी हिन्दी भाषा पर बड़ इतराऊँ।।
छोड़ दासों की भाषा, हिन्दी में करो काम ।
वन्दे मातरम् बोलो प्रेम से सब वन्दे मातरम्।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादावादी”
स्वरचित
दिनांक-10-1-2020
विषय-भंवरा/भ्रमर
गुन गन करता भंवरा
फूलों पर मंडराए
यूँ लगता है मानो
फूलों को चिढ़ाये
कलियों के पास जाएं
करने लगते ये ठिठोली
हंसे हँसाये
बोले मीठी बोली
पराग चूसने में मगन अलि
सूर्यास्त पर बंद हुई कली
कभी समय का भान न रहता
शरारत की क्या सज़ा मिली!!
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
विषय-भंवरा/भ्रमर
गुन गन करता भंवरा
फूलों पर मंडराए
यूँ लगता है मानो
फूलों को चिढ़ाये
कलियों के पास जाएं
करने लगते ये ठिठोली
हंसे हँसाये
बोले मीठी बोली
पराग चूसने में मगन अलि
सूर्यास्त पर बंद हुई कली
कभी समय का भान न रहता
शरारत की क्या सज़ा मिली!!
*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
विषय -भ्रमर
दिनांक -१०-१-२०२०
वन उपवन भ्रमण संग जब मैंने किया।
तरह तरह फूल खुशबू ने मन वश किया।
फूल मंडराते भौरों ने मन मोह लिया।
मस्त हवा के झोंकों ने आनंदित किया।
मधु रस पी भौरा देखो मदमस्त हुआ।
नीरस जीवन को भी हर्षित कर दिया ।
अली कलि लिप्त कारण जान लिया।
भौरों की गुनगुन ने मन मोह लिया।
हर फूल से उसने मकरंद रस लिया।
कलियों का दर्द किसने महसूस किया।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक -१०-१-२०२०
वन उपवन भ्रमण संग जब मैंने किया।
तरह तरह फूल खुशबू ने मन वश किया।
फूल मंडराते भौरों ने मन मोह लिया।
मस्त हवा के झोंकों ने आनंदित किया।
मधु रस पी भौरा देखो मदमस्त हुआ।
नीरस जीवन को भी हर्षित कर दिया ।
अली कलि लिप्त कारण जान लिया।
भौरों की गुनगुन ने मन मोह लिया।
हर फूल से उसने मकरंद रस लिया।
कलियों का दर्द किसने महसूस किया।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
तिथि 10/1/2020/शुक्रवार
विषय-*भ्रमर /भंवरा /भोंरा*
विधा-छंदमुक्त
प्रेमजाल में फंसा भंवरा
डोल रहा है
अपनी प्रेयसी के चहुंओर।
परेशान सा कुछ व्यथित बेचारा
किंकर्तव्यविमूढ़ हो
भटक रहा निरंतर
मधुरस पान के लिए।
जीवन पर्याय बिन अधूरा है
प्रियतम पास नहीं तो
याद सताऐ।
सच है पिया मन भाऐ।
जब तक मनुष्य नहीं मिले ये
निहारता रहेगा
जीता रहेगा प्रीत की यादों के सहारे।
भोंरा केवल रस पान चाहता है
अपने प्रेमी का पास पाना चाहता है
जब तक जिएगा।
यूंही घूमता रहेगा।
ध्यान मिलन हो
किसी तंन्द्रा में डूबते-उतराते
मर जाएगा ।
क्या पता इस पर निगाह
पड़े कि नहीं इसके सजन की
जो रसिक है कई जन्मों से
इसके प्रेम बंधन में बंधा है
इसलिए आजतक घूम रहा है।
स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
विषय-*भ्रमर /भंवरा /भोंरा*
विधा-छंदमुक्त
प्रेमजाल में फंसा भंवरा
डोल रहा है
अपनी प्रेयसी के चहुंओर।
परेशान सा कुछ व्यथित बेचारा
किंकर्तव्यविमूढ़ हो
भटक रहा निरंतर
मधुरस पान के लिए।
जीवन पर्याय बिन अधूरा है
प्रियतम पास नहीं तो
याद सताऐ।
सच है पिया मन भाऐ।
जब तक मनुष्य नहीं मिले ये
निहारता रहेगा
जीता रहेगा प्रीत की यादों के सहारे।
भोंरा केवल रस पान चाहता है
अपने प्रेमी का पास पाना चाहता है
जब तक जिएगा।
यूंही घूमता रहेगा।
ध्यान मिलन हो
किसी तंन्द्रा में डूबते-उतराते
मर जाएगा ।
क्या पता इस पर निगाह
पड़े कि नहीं इसके सजन की
जो रसिक है कई जन्मों से
इसके प्रेम बंधन में बंधा है
इसलिए आजतक घूम रहा है।
स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
No comments:
Post a Comment