Thursday, January 2

" नम्र/ नम्रता"2जनवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-613
शिखर की ठोकरों से जब तुम घबरा गये
कैसे सागर की गहराई को पार कर पाओगे
सर्द मौसम में फिर वही दर्द उभर आया है।
आह निकली जो तेरा जिक्र अगर आया है।


भूल कर बैठे थे जो हम भूल नहीं पाएंगे।
याद करता हूँ तो मुंह को जिगर आया है।

अब यकीं हमको मुहब्बत पर नहीं होता।
तेरी सोहबत का कुछ तो असर आया है।

हाल पूछा भी मेरा उसने मेरे रकीबों से।
ख्याल कुछ देर के बाद खैर मगर आया है।

मुतमईन अब भी नहीं तो कहां जाओगे।
मेरी नजरों को नजारा यह नजर आया है।

विपिन सोहल

2/1/2020
बिषय, नम्र,,नम्रता

मानव हृदय में नम्रता का भाव होना चाहिए
धन दौलत से क्या नम्र स्वभाव होना चाहिए
विनम्रता से .बनते हैं बिगड़े काम
विनम्रता ही देती है हमें नाम
नम्रता में छिपे हजारों राज
नम्रता ही पहना देती हैं सिर पर ताज
नम्रता से चहुँदिश कीर्ति छाती है
हिना तो अपनी रंग दिखाती है
हर गुणों से श्रेष्ठ नम्रता का नाम
परिपक्व परिपूर्ण ही है इसका काम
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
दिनांक-2-1-2020
विषय-नम्र/नम्रता

विधा-कविता

ऐसी प्यारी मनभावन
दुनिया सब अपने लिए चुनें
प्यार,सौहार्द ,भाईचारे और
नम्रता से सब बात बनें

एक घाट पर पानी पियें
सिंह अजा बड़े प्यार से
विनम्र भाव से सब रहें
बैर रहे तीर तलवार से

सत्य बात कहने में न चूके
क्या राजा क्या रानी
सबका हक हो एक बराबर
नहीं चले किसी की मनमानी

राष्ट्र के सभी नेतागण
करें स्वच्छ स्वस्थ राजनीति
ईमानदारी हो व्यक्तित्व में
कदापि न पनपे विष बेल रूपी अनीति

षडयंत्र खुराफाती तत्व
सब जाएं कूड़ेदान में
रामराज्य का सपना सच हो
हमारे देश हिंदुस्तान में

नर नारी,बड़े बुजुर्गो का
हो समुचित मान सम्मान यहाँ
पावन वसुंधरा ही तब
बन जाए स्वर्ग समान जहां।

है ये सार्थक शाश्वत कथन
'विद्या ददाति विनयम'
रहे सभी होकर विनम्र।।
नम्रता है शक्तिशाली नियम

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
शीर्षक-- नम्र/नम्रता
प्रथम प्रस्तुति


नम्र थे राम
झुके परशुराम।
महानता का दिए
हमें वो पयाम।

रिश्ते निभाइए
नम्रता अपनाइए।
सुख और समृद्धि
घरों में लाइए।

नम्रता है गहना
पहन कर रहना।
अहम् के भाव में
भूलकर न बहना।

ज्ञान नही वो ज्ञान
होय जहाँ अभिमान।
नम्रता में सदा 'शिवम'
छुपा दिखा कल्यान।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 02/01/2020
शीर्षक:-नम्र/नमृता।
०२/०१/२०२०@१०:४८
🌳
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नम्र वही हैं नम्रता वही हैं।
जो सहज सरल गंभीर अपार। ।
दयावान सत्यपथिक क्षमावान।
तनिक नहीं अकड़ दूर्वा से नरम।
तेज आंधी बवंडर में सदा प्रसन्न।
रूख सी अकड़ जडों गिरजात हो।
नम्र बनो नम्रतावान सर्वक्षेमकरी।
निर्भय करो सचराचर गुणज्ञ बनो।
🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
स्वरचित:-
राजेन्द्र कुमार अमरा
जय माँ शारदा 🙏विषय-नम्रता

कहते है जो वृक्ष जितना फलदायी होता वो उतना झुकता है। वस्तुतः मानव जीवन प्रकृति से प्रेरित ही तो है। नम्रता ऐसा सद्गुण है जो व्यक्ति को महनता की ओर अग्रसर करती है। गुरुजन समक्ष, हमउम्र तथा छोटे से नम्रता से बात करने से, उनके हृदय में मनुष्य एक विशिष्ट स्थान रखने लगता है। छोटी छोटी बातों पर उद्विग्नता रिश्तों को कमजोर कर देती है।
यद्यपि ये उचित है कि हमें नम्र होना चाहिए तथापि ये कदाचित उचित नहीं कि आप इतना झुक जाए कि आपका अस्तित्व ही समाप्त हो जाए क्योंकि मनुष्य का स्वभाव कभी नहीं बदलता। कहते हैं ना
"कोटी जतन कोउ करे, परै ना प्रकृतिहि बीच।
नल बल जल ऊंचौं चढ़ै, तऊ नीच को नीच।

हर्षिता श्रीवास्तव
स्वरचित
प्रयागराज
विषय-नम्र, नम्रता
विधा-काव्य

दिनाँक-2जनवरी2020

अगर जो रहना है हमको,
मिलजुल कर इस देश में।
नम्र बनें गंभीर बनें,
सदाचार के भेष में।

महान बन जाता है मानव,
सत्कर्मों की ढाल से।
छिन्न- भिन्न हो जाता मन,
कदाचार की चाल से।

नम्रता ऐसा भूषण है,
जिसने इसको पहना।
चूमा उसने तभी गगन,
सीखा जिसने सहना।

बिना नम्रता के मानव,
बिल्कुल ऐसा लगता है।
व्यर्थ, सूखा ठूँठ अकड़,
ऊपर को चलता है।

लदे फलों का पेड़,
हमेशा नीचे झुकता है।
भूखे लोगों का पेट हमेशा,
नम्र पेड़ ही भरता है।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
तिथि-2/1/2020/ गुरुवार
विषय -*नम्र /नम्रता*

विधा॒॒॒ -काव्य

अहं को हटा सकूं तो नम्रता मैं गहूं।
जगे प्रीत मानस तभी कटुता मै सहूं।
छल कपट कहीं हृदय में बसा है मेरे,
यहां कैसे मिला प्यार ममता मैं कहूं।

जहर वाणी में घुला आपको बताऊं।
नम्रता सभी घोलकर आपको सुनाऊं।
काम चलाने अपने निकट रखूं नम्रता,
झूठ बोलकर अपने आपको लजाऊं।

नम्रता बेचारी प्रतिदन मरती है यहां।
गाय हमारी रोज ही कटती है यहां।
देख रहे विनम्रता से काम नहीं चले,
विनम्र भले बनें कटार चलती हैं यहां।

मर गये सभी जो नम्रता सिखाते रहे।
सदा अहिंसा मार्ग हमें दिखाते रहे।
प्रेम की भाषा सभी जब भूल चुके हम
बेकार शासन आइना दिखाते रहे।

स्वरचितःः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय श्रीराम रामजी


दिनांक_२/१/२०२०
शीर्षक-नम्र/नम्रता


नम्रता को जिसने अपनाया
समझो वह जग पार पाया
आती नम्रता उसी के पास
जिसके पास है ज्ञान भंडार।

चाहे हो कितना भी ज्ञान
नम्रता बिना है सब बेकार
नम्रता है ईश्वरीय गुण
इसे हम अपनाये जरूर।

नम्रता से होते सत्कर्म
समझो इसे जीवन का मर्म
नम्रता है अलंकार सम
अपनाये इसे विद्व जन।

अतिशय नम्रता नही जरूरी
अपमान सहना नही मजबूरी
करे विरोध अपराध की
हो रक्षा स्वाभिमान की।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव
"भावों के मोती"
2/1/2020

नम्र/नम्रता
**********
अंततः प्रतीक्षा
खत्म हुई
मेरी तुम्हारी
मिलन की
रात आई
जब मैं तुमसे
आत्मसात हुई
निशा सी काली
घनी रात चारों
ओर एक नर्म
उजाला लिपटा
था तुम्हारे साथ
तुम्हारे सुंदर
मुखड़े से तेज़
चमकता हुआ
मदहोश सी हो
गयी मैं तुम्हारे
रूप को देख
पड़ गयी मैं
तुम्हारे प्रेम में
हार दिया मैंने
खुद को तुम
पर,अब प्रेम
काअसली रंग
चढ़ा मुझ पर
ये जाना तुम पर
समर्पित होकर
तुम में मिल कर
तुम में घुल कर
खुद को डुबो
देना यही प्रेम
है,हो तुम पालक
परम् ,फिर भी
कितने कोमल
नर्म,जब कोई
छोड़ देअपना" मैं",
कितनी
नम्रता से उसे
तुम अपना लेते।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर

विषय- नम्र /नम्रता
दिनांक 2-1- 2020
नम्रता का पाठ,जिंदगी में जिसने पढ लिया।
सफलता का मूल मंत्र,उस जन ने पा लिया।।

नम्र व्यक्ति ने ही,नम्रता गुण को अपनाया।
साहस धैर्य से,उसने ही मंजिल को पाया।।

इतिहास गवाह,नम्र ने सदा परचम लहराया।
उदाहरण बन,उसने जग अमरता को पाया।।

विद्या ददाति विनियम,गुण जीवन में अपनाया।
बड़े बुजुर्ग कहे चला ,जीवन सफल बनाया।।

नम्र ने ही सदा,परिवार में सामंजस्य बिठाया।
प्रेम से रह अपनों संग,जिंदगी आनंद उठाया।।

करती वीणा, विनम्रता गुण जिसने अपनाया।
जिंदगी में उसने,सब जन ह्रदय स्थान पाया।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
विषय, नम्र /नम्रता
दिनांक, २, १, २०२०.

वार , गुरुवार .

नम्र स्वभाव सदा हितकारी,
जन सज्जन सब करें बढ़ाई।

घर परिवार लगे सुखदाई ,
बात न बिगड़े बनी बनाई ।

यश अपयश स्वभाव की बातें,
नम्र स्वभाव भी बदल दे घातें ।

कर्कश वाणी कर रही लड़ाई,
नम्र स्वभाव ने बात सुलझाई ।

खल संग बने नम्रता दुखदाई ,
दुष्ट संग नहीं नम्रता दिखाई ।

लाभ हानि मन सब समझाई,
धारण करें देख वक्त नम्रता भाई।

नीति अनुरूप जब आचरण होई,
परिणाम गलत नहीं कभी हो पाई।

सत्य अहिंसा संग जब नम्रता आये ,
माहौल स्वयं अति सुन्दर बन जाये ।

स्वरचित, मधु शुक्ला ,
सतना , मध्यप्रदेश .
विषय-नम्र/नम्रता
दि- गुरुवार/2.1.2020


1.
कठोरता ज्यों ज्यों बढ़े, घटे नम्रता कोष।
उदारता अरु नम्रता, प्रेम,नेह ,संतोष।
सदा लोक में पूज्य है, जीवन में सद्भाव--
नम्र भाव के मनुज ही, पायँ प्रीत आगोश।
2.
कोमलता से हैं सने, पुष्प पुष्प के पात।
पूरे तिल्ली फूल का , नरम नरम है गात।
सबको भाती नम्रता, मानव हृदय उदार --
भाव बोल में नम्रता,सहायता सौगात ।

******स्वरचित************
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
02/01/2019
"नम्र/नम्रता"

छंदमुक्त
################
सद्ज्ञान सिखाता नम्रता
नम्रता से मिलती महानता
महानता ही है मानवता
मानवता है मनुज उच्चता
उच्चता न सिखाता अहंकार
अहंकार है कारण विनाश
विनाशकाल में भूलते संस्कार
संस्कार से लोग हैं झुकते
फल लगे हैं तरुवर झुकते
फल बिन तरुवर उपर तकते
उपर तक के जो राह चलते
राहों पे ठोकर खा गिर पड़ते
गिरकर जो भी उठ जाते
उठकर संभल भी वो जाते
जीवन सीख उसे हैं मिलते
सीख पा कर मानव बनते
मानव हो वो नम्र हो जाते।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

नम्रता
नम्रता व्यक्ति की पहचान होती है।
यही तो मानवता की जान होती है।

नम्र व्यक्ति की वाणी में ओज होता है।
नम्र व्यक्ति को ही गुरु भक्ति प्राप्त होती है।
नम्रव्यक्ति सभ्य समाज का प्रतीक होता है।
नम्र वाणी मन-मानस को तृप्ति करता है। नम्रता के कारण सूर के पद मानस में है।
नम्रता के कारण मीरा भक्ति भाव में है।
नम्रता के कारण तुलसी में लोकमंगल भाव है।
कबीर की साखी से समाज में सद्भाव है।
नम्रता के कारण रसखान रसों के खान है।
नम्र वाणी से मन की वीणा बजती है।
तभी तो राधा कृष्ण की बंशी पर रीझती है।
नम्रता से बँधकर कृष्ण विदूर घर जाते है। दुर्योधन के छप्पन भोग को ठुकराते है।
स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ
डॉ कन्हैयालाल गुप्त"मीर" शिक्षक,
दिवस-गुरुवार
दिनांक-२-१-२०

आयोजन-नम्र/नम्रता
विधा-स्वतंत्र
प्रस्तुति-दोहे

प्राणी है गुनता सदा,जैसा हो परिवेश।
भावों का संसार भी,धर लेता वह वेश।।

नरम नेह की डोर तो,नम्र-नम्र हों भाव।
नम्रपूर्ण प्राणी बनें ,बिसरे मन से ताव।।

मानुष मन को चाहिए,रोक वेग संवेग।
तीव्र ज्वार की धार में,जलता मधुरिम वेग।।

नम्र भाव प्राणी धरें, बनते जाते सिद्ध।
चार ओर से घेरते,कलुष भाव के गिद्ध।।

नम्र भावना ओढ़ लो, यही सत्य सौगात।
याद करें प्राणी सदा,जीवन की जब रात।।

नमन करें सब परम को,देना ऐसा ज्ञान।
जीवन सुखमय वास हो,भारत का जयगान।।

बैर भाव को त्याग दें,बने नम्र सब प्राण।
प्रेम -प्रेम के रंग से,भू में रचें पुराण।।

स्वरचित
रचना उनियाल
विषय-नम्र /नम्रता
विधा-मुक्तक

दिनांक : 2/1/2020
गुरूवार

नम्रता है गुण बडा ,सब बडे काम हो जाते,
मानवता होती जहाॅ,सदगुण सभी आ जाते।
जिनमें विधा अरू ज्ञान हो,उनमें आते गुण ,
जिनमें ये गुण नहीं हों,अहंकार वहाॅ आते।।

ये विधा,ज्ञान पाकर,मानव ऊॅचा उठ जाता,
विद्वान बनता वह यहाॅ,महान वह बन जाता।
सज्जनता और नम्रता,साथ सदा ही रहते,
मन उदारता जहाॅ होती,दया ,करूणा रखता।।

जब विवाद या क्रोध हो,नम्रता शीतल करती,
भडकी हुई ज्वाला क्रोध की,शाॅत यही करती।
क्रोधित व्यक्ति हार मान,चरणों में आ गिरता,
नम्रता के कायल सब,नम्र विजयी ही होता।।

स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डाॅ एन एल शर्मा जयपुर 'निर्भय
नम्र/ नम्रता

है नम्रता
इन्सान का
आभूषण
नम्र बनों
इज्जत पाओ
चाहते सब
अपने, अपनों का
अपनापन
नम्र बन
पाते सब
झूकता हर
नम्र जगत
फल लगे
झूकते वृक्ष
संस्कारी बच्चे
झूकते माता पिता
के चरणों में
पाते आशीर्वाद
उनका भरपूर

दें जीवनसाथी
नम्रता का परिचय
जीवन में
सुखी खुशहाल
रहे उनका जीवन

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
दिनांक-02/01/2020
विधा-हाइकु (5/7/5)
िषय :-"नम्रता"
(1)
प्रेम को मिला
नम्रता जीत लेती
दिल का किला
(2)
परोपकार
विनम्रता से लदे
वृक्ष संस्कार
(3)
मुट्ठी जहान
नम्रता दिलवाती
योग्य को स्थान
(4)
पेड़ों को देखा
अधिकता नम्रता
कटती ग्रीवा
(5)
शुष्कता देख
विनम्रता से झुक
बरसे मेघ

स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद l

दिनांक 02/01/2020
प्रदत्त शब्द ...नम्र / नम्रता

मैं ...थक गई हूँ
हार नहीँ मानी
राह अकेली चल चुकी हूँ
अतीत की कई
बंदिशों में ...बेड़ियों में
जकड़े हुए

कभी संस्कृति बनी
आधुनिकता के रंग से रंगी
लील गई मुझे निष्ठुरता ...
युग के साथ
मेरा लक्ष्य बदल गया .....

कभी नियम बनी ,
तोड़ कर मेरे अस्तित्व को
अंधों के शहर में ...छोड़ दिया
युग के साथ
मेरा उसूल दहल गया .....

मेरी तरूणता को
भिगो कर अहं में
दिग्भ्रांत कर मुझे... निचोड़ दिया
युग के साथ
मेरा यौवन जल गया ....

आज इस अवस्था में
वृध्द ..असहाय ...कुरूप
संस्कृति को
दिखाओ पथ उज्ज्वल सा
दो सहारा ए ! नव तरुण ,
लौटा दो मेरा
कारुण्य ....तारूण्य
स्वरूप ....प्रशाँति ..
मेरी उदारता ...नम्रता
दो ..एक नववर्ष
दो एक नव जीवन ...
इस दिग्भ्रष्ट समाज को ....
इन संघर्षरत पल्लवों को .....

स्वःरचित ...पूर्णतः मौलिक
अनिमा दास
कटक , ओडिशा

विषय- नम्र/ नम्रता
विधा- हाइकु


नम्र स्वभाव
इज्ज़त बटोरता
प्यारा लगता

नम्रता देती
सादगी सरलता
मन हरती

नम्र मनुष्य
भाता जन-जन को
प्यार जगाता

खुश हो जाओ
नम्रता अपनाओ
मौज मनाओ
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
विषय, नम्रता
दिनांक, २,१, २०२०,

दिन, गुरुवार,

ये
सच
जेबर
सदाचार
आपसी प्यार
करुणा, नम्रता
कहलाये इंसान ।

है
आज
संसार
आवरण
छल कपट
नम्रता नाटक
मतलब के यार ।

स्वरचित , मधु शुक्ला.
सतना, मध्यप्रदेश,



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