ब्लॉग की रचनाएँसर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें
ब्लॉग संख्या :-631
विषय प्रताप
विधा काव्य
20जनवरी 2020,सोमवार
था सपूत मेवाड़ी धरा का
भरा शौर्य जिसकी रग में।
वीर प्रतापी सदा पूजनीय
पीछे मूड देखे नहीं रण में।
वह पुजारी स्वतंत्रता का
मातृभूमि हित जीवन अर्पण।
घांस की रोटी खाई वन में
रिपु समक्ष न किया समर्पण।
चेतक अश्व भामाशाह साथी
वज्र बनी थी जिनकी छाती।
बलिदानी सैनानी गाथा को
मेवाड़ धरा आज भी गाती।
रतन सिंह सांगा कुंभा जननी
मेवाड़ धरा प्रिय भारत महान।
वीर प्रतापी कौन नहीं यँहा
सदा खंजर की गूंजे रण तान।
बेबस नहीं हुआ कभी जीवन
आन बान मेवाड़ की शान।
संघर्षो से कभी न हारा वह
राणा सदा वीर प्रतापी महान।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
20जनवरी 2020,सोमवार
था सपूत मेवाड़ी धरा का
भरा शौर्य जिसकी रग में।
वीर प्रतापी सदा पूजनीय
पीछे मूड देखे नहीं रण में।
वह पुजारी स्वतंत्रता का
मातृभूमि हित जीवन अर्पण।
घांस की रोटी खाई वन में
रिपु समक्ष न किया समर्पण।
चेतक अश्व भामाशाह साथी
वज्र बनी थी जिनकी छाती।
बलिदानी सैनानी गाथा को
मेवाड़ धरा आज भी गाती।
रतन सिंह सांगा कुंभा जननी
मेवाड़ धरा प्रिय भारत महान।
वीर प्रतापी कौन नहीं यँहा
सदा खंजर की गूंजे रण तान।
बेबस नहीं हुआ कभी जीवन
आन बान मेवाड़ की शान।
संघर्षो से कभी न हारा वह
राणा सदा वीर प्रतापी महान।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
महाराणा प्रताप
☆☆☆☆☆☆☆
हे युग पुरूष! शौर्य स्तम्भ महाराणा प्रताप,
आपके नाम से ही ,शत्रु जाता था काँप,
आपका स्मरणीय, है पौरूष, शत्रु न कभी, रह पाया निरंकुश,
आपने ही लगाया उस पर , अपना एक भारी अंकुश,
आपका शौर्य सुनकर, हो जाते हैं हम रोमांचित,
आप जैसे महान् जोधा से,
मन में उत्साह करते संचित।
आप भारत माँ के, ऐसे लाल,
होते जिनसे ,सब निहाल,
आप हमारे ,गौरव की ढाल,
आपके आगे न गली, शत्रु की दाल।
आपका भाला , आपकी तलवार,
करती थी ऐसा, सुदृड़ वार,
शत्रुओं में मचता, हाहाकार,
दिखने लगती थी, उनको हार।
मेरे पास आपके लिये ,कुछ शब्द हैं,
आपके सम्मान में ,लय बद्ध हैं,
इनसे देता मैं आपको , हे शिरोमणि " श्रध्दाँजली",
मेरे अश्रुओं से भरी, अर्पित करता ये अंजली।
महाराणा प्रताप अमर रहें।
☆☆☆☆☆☆☆
हे युग पुरूष! शौर्य स्तम्भ महाराणा प्रताप,
आपके नाम से ही ,शत्रु जाता था काँप,
आपका स्मरणीय, है पौरूष, शत्रु न कभी, रह पाया निरंकुश,
आपने ही लगाया उस पर , अपना एक भारी अंकुश,
आपका शौर्य सुनकर, हो जाते हैं हम रोमांचित,
आप जैसे महान् जोधा से,
मन में उत्साह करते संचित।
आप भारत माँ के, ऐसे लाल,
होते जिनसे ,सब निहाल,
आप हमारे ,गौरव की ढाल,
आपके आगे न गली, शत्रु की दाल।
आपका भाला , आपकी तलवार,
करती थी ऐसा, सुदृड़ वार,
शत्रुओं में मचता, हाहाकार,
दिखने लगती थी, उनको हार।
मेरे पास आपके लिये ,कुछ शब्द हैं,
आपके सम्मान में ,लय बद्ध हैं,
इनसे देता मैं आपको , हे शिरोमणि " श्रध्दाँजली",
मेरे अश्रुओं से भरी, अर्पित करता ये अंजली।
महाराणा प्रताप अमर रहें।
प्रताप
🦠🦠
उनके शौर्य से दुश्मन थर्राये।
जब रण में महाराणा प्रताप आ जाए।
रणभेरी बज उठी।
ललकार कर वे आगे बढ़े।
सारे दुश्मन पीछे हटे।
कोई नहीं आगे आए।
जब रण में महाराणा प्रताप आ जाए।
घास की रोटी खाई।
जंगल में किया गुजारा।
छिपे हुए रहकर वार करके।
अंग्रेजी हुकूमत को भगाए।
जब रण में महाराणा प्रताप आ जाए।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
🦠🦠
उनके शौर्य से दुश्मन थर्राये।
जब रण में महाराणा प्रताप आ जाए।
रणभेरी बज उठी।
ललकार कर वे आगे बढ़े।
सारे दुश्मन पीछे हटे।
कोई नहीं आगे आए।
जब रण में महाराणा प्रताप आ जाए।
घास की रोटी खाई।
जंगल में किया गुजारा।
छिपे हुए रहकर वार करके।
अंग्रेजी हुकूमत को भगाए।
जब रण में महाराणा प्रताप आ जाए।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
विषय प्रताप
प्रथम प्रस्तुति
धन्य धरा होती कुछ वीरों से
धन्य धरा होती शमशीरों से।।
हो बुन्देलखण्ड या मेवाड़
गाथा भरी है ऐसे हीरों से।।
कहीं बुन्देल केसरी छत्रसाल
कहीं था महाराणा का भाल।।
ऐसे प्रतापी राजाओं ने
झुकने नही दिया माँ का भाल।।
जग जाहिर है वीर शिवाजी
लहु कि जिसने नदी बहा दी।।
शूरवीरता क्या होती है
दुश्मन को ये बात बता दी।।
धन्य है उनका वो बाहुबल
दबे पाँव भागा था अरिदल।।
शान से जीना सिखाए 'शिवम'
जबाब दिया क्या होता छलबल।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 20/01/2020
प्रथम प्रस्तुति
धन्य धरा होती कुछ वीरों से
धन्य धरा होती शमशीरों से।।
हो बुन्देलखण्ड या मेवाड़
गाथा भरी है ऐसे हीरों से।।
कहीं बुन्देल केसरी छत्रसाल
कहीं था महाराणा का भाल।।
ऐसे प्रतापी राजाओं ने
झुकने नही दिया माँ का भाल।।
जग जाहिर है वीर शिवाजी
लहु कि जिसने नदी बहा दी।।
शूरवीरता क्या होती है
दुश्मन को ये बात बता दी।।
धन्य है उनका वो बाहुबल
दबे पाँव भागा था अरिदल।।
शान से जीना सिखाए 'शिवम'
जबाब दिया क्या होता छलबल।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 20/01/2020
20/1/2020
बिषय ,,प्रताप
धन्य धन्य है वह जननी जिसने इनको जन्म दिया
वीर योद्घा प्रताप ने भारत भूमि को कृतार्थ किया
महाराणा जी ने जो हम पर उपकार किया
सिर न झुके भले कट जाए प्रण अपना साकार किया
वन वन भटके घास पूस की रोटी खा किया गुजारा
आन बान शान की खातिर लिया न किसी का सहारा
शत्रुओं के लिए काफी थी एक ही हुंकार
सिर के बल भागें रिपुदल ऐसी थी इनकी ललकार
हुआ न होगा ऐसा योद्घा जिसे करती माँ स्वयं तिलक वंदन
ऐसे महाराणा प्रताप को नमन नमन है बहुबार नमन
स्वरचित,,सुषमा,, ब्यौहार
बिषय ,,प्रताप
धन्य धन्य है वह जननी जिसने इनको जन्म दिया
वीर योद्घा प्रताप ने भारत भूमि को कृतार्थ किया
महाराणा जी ने जो हम पर उपकार किया
सिर न झुके भले कट जाए प्रण अपना साकार किया
वन वन भटके घास पूस की रोटी खा किया गुजारा
आन बान शान की खातिर लिया न किसी का सहारा
शत्रुओं के लिए काफी थी एक ही हुंकार
सिर के बल भागें रिपुदल ऐसी थी इनकी ललकार
हुआ न होगा ऐसा योद्घा जिसे करती माँ स्वयं तिलक वंदन
ऐसे महाराणा प्रताप को नमन नमन है बहुबार नमन
स्वरचित,,सुषमा,, ब्यौहार
दिनांक- 20/01/2020
शीर्षक- "प्रताप"विधा- कविता
*************
चेतक जिनकी सवारी थी,
हवा भी जिससे हारी थी,
वो वीर "प्रताप" राणा थे,
वीरता जिनकी न्यारी थी |
राजपूतों की शान थे राणा,
भारत का अभिमान थे राणा,
हल्दी घाटी का युद्ध कई बार लड़ा,
जीतने अकबर को न दिया |
प्रताप की वीरगाथा का तो,
इतिहास में बहुत गुणगान,
एक हो तो मैं भी सुना दूँ,
किस्से कईं हजार हैं |
नमन है ऐसे वीर पुरूष को,
मेवाड़ की जो शान थे,
भारत भूमि की ख़ातिर,
दे दिये जिन्होंने प्राण थे |
स्वरचित- संगीता कुकरेती
शीर्षक- "प्रताप"विधा- कविता
*************
चेतक जिनकी सवारी थी,
हवा भी जिससे हारी थी,
वो वीर "प्रताप" राणा थे,
वीरता जिनकी न्यारी थी |
राजपूतों की शान थे राणा,
भारत का अभिमान थे राणा,
हल्दी घाटी का युद्ध कई बार लड़ा,
जीतने अकबर को न दिया |
प्रताप की वीरगाथा का तो,
इतिहास में बहुत गुणगान,
एक हो तो मैं भी सुना दूँ,
किस्से कईं हजार हैं |
नमन है ऐसे वीर पुरूष को,
मेवाड़ की जो शान थे,
भारत भूमि की ख़ातिर,
दे दिये जिन्होंने प्राण थे |
स्वरचित- संगीता कुकरेती
शीर्षक--प्रताप
दिनांक-20जन.2020
विधा -दोहा मुक्तक
1.
राष्ट्रभक्ति के कारणे, अडिग रहे जो वीर।
राणाप्रताप एक हैं, सही,देश हित पीर।
कभी गिरफ्तार न हुए, लौटी अकबर फौज--
राणा,चेतक सामने, ध्वस्त,पस्त तदबीर।
2.
पश्त माँग मानसिंह की, शक्तिसिंह का द्रोह।
अकबर का दल बल बड़ा,राणा ऊहापोह।
जन धन का संकट बढा, भामाशाही दान--
चेतक पर विश्वास ने,उन्हें बनाया लोह।
3.
खरे वीरता के धनी, महाराणा प्रताप।
चेतक ने,गति,समझ की, छोड़ी अद्भुत छाप।
दोनों का गठजोड़ था, साहस भरी मिसाल--
राणा के मन भाव को,चेतक जाता भाप।
*******स्वरचित******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
दिनांक-20जन.2020
विधा -दोहा मुक्तक
1.
राष्ट्रभक्ति के कारणे, अडिग रहे जो वीर।
राणाप्रताप एक हैं, सही,देश हित पीर।
कभी गिरफ्तार न हुए, लौटी अकबर फौज--
राणा,चेतक सामने, ध्वस्त,पस्त तदबीर।
2.
पश्त माँग मानसिंह की, शक्तिसिंह का द्रोह।
अकबर का दल बल बड़ा,राणा ऊहापोह।
जन धन का संकट बढा, भामाशाही दान--
चेतक पर विश्वास ने,उन्हें बनाया लोह।
3.
खरे वीरता के धनी, महाराणा प्रताप।
चेतक ने,गति,समझ की, छोड़ी अद्भुत छाप।
दोनों का गठजोड़ था, साहस भरी मिसाल--
राणा के मन भाव को,चेतक जाता भाप।
*******स्वरचित******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
विषय , प्रताप
दिनांक, २०,१,२०२०.
सोमवार .
देशभक्ति थी जिसके लहू में ,
राष्ट्र जिसे था प्राणों से प्यारा ,
आजादी जिसको प्यारी थी,
शीश नहीं कभी जिसने झुकाया ।
थे महाराणा प्रताप मेवाड़ के राजा ,
जिन्होंने मुगलों को खूब छकाया।
वन वन भटके गुरुवत को झेला,
बच्चों को अन्न न मिल पाया ।
राजस्थान की माटी का असर था ,
दासता को कभी नहीं अपनाया।
जिये शान से जब तक जीवन था ,
इतिहास में स्वर्णाक्षरों में नाम लिखवाया।
शत शत नमन उन्हें श्रद्धांजलि,
देश प्रेम हमें उन्होंने सिखलाया ।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
दिनांक, २०,१,२०२०.
सोमवार .
देशभक्ति थी जिसके लहू में ,
राष्ट्र जिसे था प्राणों से प्यारा ,
आजादी जिसको प्यारी थी,
शीश नहीं कभी जिसने झुकाया ।
थे महाराणा प्रताप मेवाड़ के राजा ,
जिन्होंने मुगलों को खूब छकाया।
वन वन भटके गुरुवत को झेला,
बच्चों को अन्न न मिल पाया ।
राजस्थान की माटी का असर था ,
दासता को कभी नहीं अपनाया।
जिये शान से जब तक जीवन था ,
इतिहास में स्वर्णाक्षरों में नाम लिखवाया।
शत शत नमन उन्हें श्रद्धांजलि,
देश प्रेम हमें उन्होंने सिखलाया ।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
विषय-प्रताप
चेतक पर चढ़कर जो हवा सदृश हो जाते थे।
गौरव शाली मेवाड़ मुकुट राणा प्रताप कहलाते थे।
राणा प्रताप अति वीर देशभक्त थे भारी।
किया मुकाबला मुगलों का हिम्मत जरा न हारी।
रखने को मर्यादा अपने सम्मान की लड़ाई थी।
भटके वन- पर्वत में रोटी घास की खाई थी ।
शेरों सा सीना तान लड़े मुगलों के छुड़ा दिए ।
डाले घेरा रहे पर लड़ लड़ के दुश्मन हरा दिए ।
स्वीकार किया कठिनाई को पर झुकना स्वीकार नहीं।
स्वतंत्रता पर निछावर प्राण किये पर मानी हार नहीं।
हमारे देश के गौरव जो नमन है ऐसे वीरों को ।
रखेगा इतिहास अमर इन जैसे समर रणधीरों को।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
चेतक पर चढ़कर जो हवा सदृश हो जाते थे।
गौरव शाली मेवाड़ मुकुट राणा प्रताप कहलाते थे।
राणा प्रताप अति वीर देशभक्त थे भारी।
किया मुकाबला मुगलों का हिम्मत जरा न हारी।
रखने को मर्यादा अपने सम्मान की लड़ाई थी।
भटके वन- पर्वत में रोटी घास की खाई थी ।
शेरों सा सीना तान लड़े मुगलों के छुड़ा दिए ।
डाले घेरा रहे पर लड़ लड़ के दुश्मन हरा दिए ।
स्वीकार किया कठिनाई को पर झुकना स्वीकार नहीं।
स्वतंत्रता पर निछावर प्राण किये पर मानी हार नहीं।
हमारे देश के गौरव जो नमन है ऐसे वीरों को ।
रखेगा इतिहास अमर इन जैसे समर रणधीरों को।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
No comments:
Post a Comment