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ब्लॉग संख्या :-627
विषय व्यवहार
विधा काव्य
16 जनवरी 2020,गुरुवार
मात पिता सद्संस्कारों से
नर जीवन सफलता पाता।
मृदु व्यवहार आलंम्बन से
गीत खुशी जीवन में गाता।
वाणी पर व्यवहार है निर्भर
मृदु वाणी में शक्ति बड़ी है।
दुश्मन को अपना कर लेती
सदा सफलता पास खड़ी है।
वशीकरण का मंत्र व्यवहार
सादा जीवन उच्च विचार हो।
द्वेष ईर्ष्या स्वार्थ नाश कर
सुधास्नेह जीवन आधार हो।
दानव नर मानव बन जाता
सत्संगति से क्या नहीं पाता?
रत्ना डाकू वाल्मीकि बन
श्री राम स्तुति गुण गाता।
जग रंगमंच पात्र सभी हम
सद्व्यवहार मंच सफलता।
निज स्वार्थ रत जो रहता
उसको मिले सदा विफलता।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
16 जनवरी 2020,गुरुवार
मात पिता सद्संस्कारों से
नर जीवन सफलता पाता।
मृदु व्यवहार आलंम्बन से
गीत खुशी जीवन में गाता।
वाणी पर व्यवहार है निर्भर
मृदु वाणी में शक्ति बड़ी है।
दुश्मन को अपना कर लेती
सदा सफलता पास खड़ी है।
वशीकरण का मंत्र व्यवहार
सादा जीवन उच्च विचार हो।
द्वेष ईर्ष्या स्वार्थ नाश कर
सुधास्नेह जीवन आधार हो।
दानव नर मानव बन जाता
सत्संगति से क्या नहीं पाता?
रत्ना डाकू वाल्मीकि बन
श्री राम स्तुति गुण गाता।
जग रंगमंच पात्र सभी हम
सद्व्यवहार मंच सफलता।
निज स्वार्थ रत जो रहता
उसको मिले सदा विफलता।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय - व्यवहार
प्रथम प्रस्तुति
लोग अक्सर घुलते नही हैं
मैल मन के धुलते नही हैं।।
ज़माना ही कुछ ऐसा है
सच्चे लोग मिलते नही हैं।।
मिलें भी तो क्या मिलें ठगे हैं
इंसा को कई रोग लगे हैं।।
झलक ही जाते हैं देर-सबेर
आज अब सगे भी क्या सगे हैं??
व्यवहार में बनाबटपन आम
इंसानियत की हुई अब शाम।।
कोई मजबूरी कोई जानकर
रखता है आज काम से काम।।
बनावटी लाल ने बना मुखोटा
दिखा दिया है कितनों को टोटा।।
गिरगिट से भी बढ़कर निकले वो
इंसानियत का गला ही घोंटा।।
व्यवहार में अब बदलाव है
रिश्तों में अब बिखराव है।।
संभल-संभाल चलना 'शिवम'
बात-बात में टकराव है।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 16/01/2020
प्रथम प्रस्तुति
लोग अक्सर घुलते नही हैं
मैल मन के धुलते नही हैं।।
ज़माना ही कुछ ऐसा है
सच्चे लोग मिलते नही हैं।।
मिलें भी तो क्या मिलें ठगे हैं
इंसा को कई रोग लगे हैं।।
झलक ही जाते हैं देर-सबेर
आज अब सगे भी क्या सगे हैं??
व्यवहार में बनाबटपन आम
इंसानियत की हुई अब शाम।।
कोई मजबूरी कोई जानकर
रखता है आज काम से काम।।
बनावटी लाल ने बना मुखोटा
दिखा दिया है कितनों को टोटा।।
गिरगिट से भी बढ़कर निकले वो
इंसानियत का गला ही घोंटा।।
व्यवहार में अब बदलाव है
रिश्तों में अब बिखराव है।।
संभल-संभाल चलना 'शिवम'
बात-बात में टकराव है।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 16/01/2020
सादर मंच को समर्पित -
🌹🌴 गीत 🌴🌹
***************************
छंद - लावणी
मात्रा =30 ( 16+14 )
☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️
झाँक चलें रे मन मन्दिर में ,
सत्य सदा ही स्वीकारें ।
खोजें खुद को अपने अन्दर ,
विनम्रता से व्यवहारें ।।
सृष्टि सँजोती प्रकृति रुपहली ,
कण-कण संजीवन बोती ।
पग-पग पर बिखरीं हैं खुशियाँ ,
चुन लें हम सागर मोती ।।
मानव श्रेष्ठ बनाया जग में ,
बुद्धि , विवेक , ज्ञान पाया ।
संवेदना प्यार उपजाया ,
गर्मी , शीत ,पवन छाया ।।
चन्दन माटी द्रव्य खजाना ,
नत मस्तक हो सिर धारें ।
खोजें खुद को अपने अन्दर ,
विनम्रता से व्यवहारें ।।
बड़े भाग्य मानव तन पाया ,
मिली साँस हैं गिनती की ।
क्या था करना , क्या करते हम,
उड़ें उड़ानें नभ ऊँची ।।
आज रेत पर दौड़ चल रही ,
भूल जमीनी सच्चाई ।
कागज की नावें गल जातीं ,
अंधी होड़ न सुखदायी ।।
जीवन मर्म जान लें मितवा ,
अभी साँस कल भू धारें ।
खोजें खुद को अपने अन्दर ,
विनम्रता से व्यवहारें ।।
जैसी करनी वैसी भरनी ,
यहीं कर्मफल मिल जाये ।
फिर पछताये क्या रे बन्दे ,
चिड़िया खेती चुग जाये ।।
सुबह भूल कर शाम लौटता ,
भूला नहीं कहाता रे ।
अब भी देर नहीं है मीता ,
अन्त भला सुख पाता रे ।।
यह दुनिया तो रैन बसेरा ,
पंछी फिर उड़ संचारें ।
खोजें खुद को अपने अन्दर ,
विनम्रता से व्यवहारें ।।
🌹🌴 गीत 🌴🌹
***************************
छंद - लावणी
मात्रा =30 ( 16+14 )
☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️
झाँक चलें रे मन मन्दिर में ,
सत्य सदा ही स्वीकारें ।
खोजें खुद को अपने अन्दर ,
विनम्रता से व्यवहारें ।।
सृष्टि सँजोती प्रकृति रुपहली ,
कण-कण संजीवन बोती ।
पग-पग पर बिखरीं हैं खुशियाँ ,
चुन लें हम सागर मोती ।।
मानव श्रेष्ठ बनाया जग में ,
बुद्धि , विवेक , ज्ञान पाया ।
संवेदना प्यार उपजाया ,
गर्मी , शीत ,पवन छाया ।।
चन्दन माटी द्रव्य खजाना ,
नत मस्तक हो सिर धारें ।
खोजें खुद को अपने अन्दर ,
विनम्रता से व्यवहारें ।।
बड़े भाग्य मानव तन पाया ,
मिली साँस हैं गिनती की ।
क्या था करना , क्या करते हम,
उड़ें उड़ानें नभ ऊँची ।।
आज रेत पर दौड़ चल रही ,
भूल जमीनी सच्चाई ।
कागज की नावें गल जातीं ,
अंधी होड़ न सुखदायी ।।
जीवन मर्म जान लें मितवा ,
अभी साँस कल भू धारें ।
खोजें खुद को अपने अन्दर ,
विनम्रता से व्यवहारें ।।
जैसी करनी वैसी भरनी ,
यहीं कर्मफल मिल जाये ।
फिर पछताये क्या रे बन्दे ,
चिड़िया खेती चुग जाये ।।
सुबह भूल कर शाम लौटता ,
भूला नहीं कहाता रे ।
अब भी देर नहीं है मीता ,
अन्त भला सुख पाता रे ।।
यह दुनिया तो रैन बसेरा ,
पंछी फिर उड़ संचारें ।
खोजें खुद को अपने अन्दर ,
विनम्रता से व्यवहारें ।।
विषय , व्यवहार
दिन, गुरुवार
दिनांक, १६,१,२०२०.
व्यवहार आईना व्यक्तित्व का ,
हमको सबसे मिलवाता है।
चाहे लाख छुपाओ मन अपना,
व्यवहार उगल ही देता है।
छल कपट छिपा हो गर मन में,
व्यवहार नाटकीय लगता है।
कभी काम आता दिखावा नहीं ,
अक्सर भाव झलक ही जाता है।
दुनियाँ रंग शाला जीवन की,
तारीफ यहाँ वही पाता है।
व्यवहार करे जो अपनेपन का ,
बातों में सच्चाई रखता है।
कभी दुख पहुँचे न हमारी बातों से ,
याद जो इसको रखता है।
जो दुःख दर्द बाँटता है सबके,
हमेशा व्यवहार उसी का सुख देता है।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
दिन, गुरुवार
दिनांक, १६,१,२०२०.
व्यवहार आईना व्यक्तित्व का ,
हमको सबसे मिलवाता है।
चाहे लाख छुपाओ मन अपना,
व्यवहार उगल ही देता है।
छल कपट छिपा हो गर मन में,
व्यवहार नाटकीय लगता है।
कभी काम आता दिखावा नहीं ,
अक्सर भाव झलक ही जाता है।
दुनियाँ रंग शाला जीवन की,
तारीफ यहाँ वही पाता है।
व्यवहार करे जो अपनेपन का ,
बातों में सच्चाई रखता है।
कभी दुख पहुँचे न हमारी बातों से ,
याद जो इसको रखता है।
जो दुःख दर्द बाँटता है सबके,
हमेशा व्यवहार उसी का सुख देता है।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
16/1 /2020
बिषय,,व्यवहार
सदैव ही समानता का व्यवहार होना चाहिए
हर प्राणी को जीने का अधिकार होना चाहिए
आरक्षण की सीढ़ी पकड़ क्यों. चढ़ते हैं. लोग
खत्म ए सारा दुर्व्यवहार होना चाहिए
क्यों पड़ोसी देश उठाए उंगलियां
उसके लिए तो तलवार की धार होना चाहिए
क्यों सरेराह लुट रही अस्मिता
दुष्कर्मीयों को तनिक तो शर्मसार होना चाहिए
क्यों मिलावटी मिलती हैं वस्तुएं
.शुद्धता स्वच्छता का बाजार होना चाहिए
क्यों एक दूसरे की टांग खींचने में लगे रहते हैं लोग
शांति मय सुगम सरल जीने का आधार होना चाहिए
स्वरचित,, सुषमाब्यौहार
बिषय,,व्यवहार
सदैव ही समानता का व्यवहार होना चाहिए
हर प्राणी को जीने का अधिकार होना चाहिए
आरक्षण की सीढ़ी पकड़ क्यों. चढ़ते हैं. लोग
खत्म ए सारा दुर्व्यवहार होना चाहिए
क्यों पड़ोसी देश उठाए उंगलियां
उसके लिए तो तलवार की धार होना चाहिए
क्यों सरेराह लुट रही अस्मिता
दुष्कर्मीयों को तनिक तो शर्मसार होना चाहिए
क्यों मिलावटी मिलती हैं वस्तुएं
.शुद्धता स्वच्छता का बाजार होना चाहिए
क्यों एक दूसरे की टांग खींचने में लगे रहते हैं लोग
शांति मय सुगम सरल जीने का आधार होना चाहिए
स्वरचित,, सुषमाब्यौहार
16/01/2020
"व्यवहार"निर्मल सा व्यवहार हो,
मिले मान-सम्मान।
दंभ,क्रोध में आदमी,
बन जाता शैतान।।
धरो प्राण में शिष्टता,
समावेश हो ज्ञान।
सर्वोत्तम व्यवहार की,
अद्भुत यह पहचान।।
अमन,चैन की जिंदगी,
जीवन का हो ध्येय।
मृदुल-मृदुल व्यवहार सा,
सुधा,सोम सा पेय।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ, स्वरचित
अति शीघ्रता में....
"व्यवहार"निर्मल सा व्यवहार हो,
मिले मान-सम्मान।
दंभ,क्रोध में आदमी,
बन जाता शैतान।।
धरो प्राण में शिष्टता,
समावेश हो ज्ञान।
सर्वोत्तम व्यवहार की,
अद्भुत यह पहचान।।
अमन,चैन की जिंदगी,
जीवन का हो ध्येय।
मृदुल-मृदुल व्यवहार सा,
सुधा,सोम सा पेय।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ, स्वरचित
अति शीघ्रता में....
विषय -व्यवहार
विधा--दोहा मुक्तक
गुरुवार/16.1.2020
1.
हाथ मेंहदी नाक नथ, किया सकल श्रृंगार।
आँख लाज से झुक गई, दुल्हन का संसार।
नव घर नव परिवार में, पाएँ आदर मान ---
तद अनुरूप ही रखना , अब अपना व्यवहार ।
2.
रंग हिना में है छिपा, पति पत्नी संसार।
जितनी ज्यादा वो रचे, उतना ज्यादा प्यार ।
रची मेंहदी कम अगर, कम हो सकता प्रेम--
रंग मेंहदी का बढ़े, बढ़े प्रेम व्यवहार ।
******स्वरचित ******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
विधा--दोहा मुक्तक
गुरुवार/16.1.2020
1.
हाथ मेंहदी नाक नथ, किया सकल श्रृंगार।
आँख लाज से झुक गई, दुल्हन का संसार।
नव घर नव परिवार में, पाएँ आदर मान ---
तद अनुरूप ही रखना , अब अपना व्यवहार ।
2.
रंग हिना में है छिपा, पति पत्नी संसार।
जितनी ज्यादा वो रचे, उतना ज्यादा प्यार ।
रची मेंहदी कम अगर, कम हो सकता प्रेम--
रंग मेंहदी का बढ़े, बढ़े प्रेम व्यवहार ।
******स्वरचित ******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
विद्या :- वर्ष छंद (वर्णिक)
विषय :-व्यवहार
दिनांक :- 16-01-2020
दिन :- गुरुवार
मापनी- 222 221 121
(मगण तगण जगण)
**
छीने दूजे के अधिकार,
रोटी की होती तकरार।
होते ही जाते व्यभिचार,
कैसा झूठा है व्यवहार।
भूले बैठें ये तहज़ीब ,
खेला है जो खेल अजीब ।
मूँदे बैठा नैन समाज ,
कैसे होगा पीर इलाज ।
लेना ही होगा प्रतिकार ,
सोचो कैसे हो उपकार ।
लायेगा ये कौन बहार ,
कैसे पायें रूप अपार।
सोचो ये आराम हराम,
पूरे होंगे काम तमाम ।
छोड़ोगे जो भोग विलास,
तो आयेगा भोर उजास ।
अनिता सुधीर
विषय :-व्यवहार
दिनांक :- 16-01-2020
दिन :- गुरुवार
मापनी- 222 221 121
(मगण तगण जगण)
**
छीने दूजे के अधिकार,
रोटी की होती तकरार।
होते ही जाते व्यभिचार,
कैसा झूठा है व्यवहार।
भूले बैठें ये तहज़ीब ,
खेला है जो खेल अजीब ।
मूँदे बैठा नैन समाज ,
कैसे होगा पीर इलाज ।
लेना ही होगा प्रतिकार ,
सोचो कैसे हो उपकार ।
लायेगा ये कौन बहार ,
कैसे पायें रूप अपार।
सोचो ये आराम हराम,
पूरे होंगे काम तमाम ।
छोड़ोगे जो भोग विलास,
तो आयेगा भोर उजास ।
अनिता सुधीर
दिनाँक-16/1 /2020
विषय-व्यवहार
व्यवहार
उत्तम मिश्री सा करो, अपना तुम व्यवहार।
इससे ही तुमको मिले, जग में मान अपार।
प्रेमभाव से जो मिलो ,करो मधुर व्यवहार ।
निश्चय तुम को भी मिले, बदले में अति प्यार ।
अपने गुरुजन को दिया, जो तुमने सम्मान ।
दूना हो करके मिले, स्नेहिल सा अब मान ।
अमर नहीं कुछ भी यहांँ,है असार संसार।
याद करेंगे लोग बस, प्रेम भरा व्यवहार।
वशीकरण व्यवहार है ,वश में करती प्रीत।
डाकू अंगुलिमाल को, लिया प्रेम ने जीत।
करें दुर्व्यवहार जो, लेकर धन की ओट।
मन को साले शूल सा ,करे खड़ग सी चोट ।
चार दिनों की चाँदनी , यह जीवन निःसार।
मदहोश चकाचौंध में, मत भूलो व्यवहार।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
विषय-व्यवहार
व्यवहार
उत्तम मिश्री सा करो, अपना तुम व्यवहार।
इससे ही तुमको मिले, जग में मान अपार।
प्रेमभाव से जो मिलो ,करो मधुर व्यवहार ।
निश्चय तुम को भी मिले, बदले में अति प्यार ।
अपने गुरुजन को दिया, जो तुमने सम्मान ।
दूना हो करके मिले, स्नेहिल सा अब मान ।
अमर नहीं कुछ भी यहांँ,है असार संसार।
याद करेंगे लोग बस, प्रेम भरा व्यवहार।
वशीकरण व्यवहार है ,वश में करती प्रीत।
डाकू अंगुलिमाल को, लिया प्रेम ने जीत।
करें दुर्व्यवहार जो, लेकर धन की ओट।
मन को साले शूल सा ,करे खड़ग सी चोट ।
चार दिनों की चाँदनी , यह जीवन निःसार।
मदहोश चकाचौंध में, मत भूलो व्यवहार।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
विषय- व्यवहार
दिनांक १६-१-२०२०मानव हो,जग में मानव सा तुम व्यवहार करो।
रंग रूप से नहीं,बस गुणों से तुम प्यार करो।।
करता हैवानो से काम,कहता मानव कहो।
सच्ची बात है यह, स्वीकार तुम इसे करो।।
इंसानियत जिंदा रहे,कोई तो ऐसा काम करो।
प्रभु समक्ष शर्मिंदा ना हो,खुद का मान करो।।
हो रहा मासूमों पर अत्याचार,थोडी शर्म करो।
विनाश निमंत्रण दे दानवों,ना हा हा कार करो।।
सब कुछ दिया ईश्वर ने,बस तुम इंसान बनो।
मानव हो मानवता सा ,तुम व्यवहार करो।।
ना मिलेगा दोबारा जीवन,कुछ नेक काम करो।
प्रभु नजर मिला सको,थोड़ा ऐसा काम करो।।
एक एक कर्म गिना जाएगा,मानव जाति का।
भूलकर भी,मजबूर बेबस अत्याचार ना करो।।
प्रभु श्रेष्ठ रचना हो, जीवन तुम साकार करो।
कहती वीणा,मानव हो मानव सा व्यवहार करो।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक १६-१-२०२०मानव हो,जग में मानव सा तुम व्यवहार करो।
रंग रूप से नहीं,बस गुणों से तुम प्यार करो।।
करता हैवानो से काम,कहता मानव कहो।
सच्ची बात है यह, स्वीकार तुम इसे करो।।
इंसानियत जिंदा रहे,कोई तो ऐसा काम करो।
प्रभु समक्ष शर्मिंदा ना हो,खुद का मान करो।।
हो रहा मासूमों पर अत्याचार,थोडी शर्म करो।
विनाश निमंत्रण दे दानवों,ना हा हा कार करो।।
सब कुछ दिया ईश्वर ने,बस तुम इंसान बनो।
मानव हो मानवता सा ,तुम व्यवहार करो।।
ना मिलेगा दोबारा जीवन,कुछ नेक काम करो।
प्रभु नजर मिला सको,थोड़ा ऐसा काम करो।।
एक एक कर्म गिना जाएगा,मानव जाति का।
भूलकर भी,मजबूर बेबस अत्याचार ना करो।।
प्रभु श्रेष्ठ रचना हो, जीवन तुम साकार करो।
कहती वीणा,मानव हो मानव सा व्यवहार करो।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
तिथि : 16 जनवरी 2020
विषय : व्यवहार
व्यवहार हमेशा
पतंग जैसा रखिए
पवित्र बनिए तंदुरुस्त रहिए
गगन जैसा विशाल बनिए ।
अपने ह्रदय आकाश में
करुणा, प्रेम, दया,
सहनशीलता,सहिष्णुता,
मित्रता, सद्भाव,
संयम और संगम
जैसा व्यवहार रखिए ।
ईर्ष्या, आलस्य, कायरता,
डर, अहंकार और काम रूपी
अपने व्यवहार से हटाइए ।
उमंग, आनंद, मौज, खुशी,
समझ और सुसंस्कार
अपने व्यवहार में लाइए ।
सदा मुस्कुराइए क्या गम है
जिंदगी में टेंशन किसको कम है ?
अच्छा या बुरा तो केवल भ्रम है
जिंदगी का नाम ही खुशी गम है ।
यही व्यवहार यही संगम है ।।
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज शाह 'मानस'
सुदर्शन पार्क, मोती नगर,
नई दिल्ली
विषय : व्यवहार
व्यवहार हमेशा
पतंग जैसा रखिए
पवित्र बनिए तंदुरुस्त रहिए
गगन जैसा विशाल बनिए ।
अपने ह्रदय आकाश में
करुणा, प्रेम, दया,
सहनशीलता,सहिष्णुता,
मित्रता, सद्भाव,
संयम और संगम
जैसा व्यवहार रखिए ।
ईर्ष्या, आलस्य, कायरता,
डर, अहंकार और काम रूपी
अपने व्यवहार से हटाइए ।
उमंग, आनंद, मौज, खुशी,
समझ और सुसंस्कार
अपने व्यवहार में लाइए ।
सदा मुस्कुराइए क्या गम है
जिंदगी में टेंशन किसको कम है ?
अच्छा या बुरा तो केवल भ्रम है
जिंदगी का नाम ही खुशी गम है ।
यही व्यवहार यही संगम है ।।
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज शाह 'मानस'
सुदर्शन पार्क, मोती नगर,
नई दिल्ली
16-1-2020
"रूप और व्यवहार"
*************???******
मिट्टी कहे कांच से,तू रूप में व्यवहार,
तू कठोर है इतना,में कच्ची कली कचनार,
मैं तन कहलाती हूँ, तू मन का आधार,
भेद न कोई मेरा पाये,तू दिखाये आर पार।
काँच ने दिया जबाब ये सोच नही व्यवहार,
नही है अंतर एक हैं,तेरा मेरा रूप और व्यवहार,
कुम्हार तुझे रूप है देता देकर चाक को धार,
मुझे भी तपा आग पर देते नया आकर।
तू देती शीतलता, मुझेभी ताप से नही प्यार,
तू तपती कठोर है बनती,और मुझमें पड़ती है दरार,
तन की मिट्टी मेहनत के तप से चढ़ती नए सोपान
मन का दर्पण है दिखाये दुनिया के आचार और विचार।।
तू कच्ची,में हूँ नाजुक,है यही श्रृंगार,
मिलाके काँच और मिट्टी देते नया आकर,
काँच मिले जो मिट्टी मे बनते सुंदर पात्र,
तन और मन मिल जाये जन्म लेते नित नए विचार।।
गीतांजली वार्ष्णेय
"रूप और व्यवहार"
*************???******
मिट्टी कहे कांच से,तू रूप में व्यवहार,
तू कठोर है इतना,में कच्ची कली कचनार,
मैं तन कहलाती हूँ, तू मन का आधार,
भेद न कोई मेरा पाये,तू दिखाये आर पार।
काँच ने दिया जबाब ये सोच नही व्यवहार,
नही है अंतर एक हैं,तेरा मेरा रूप और व्यवहार,
कुम्हार तुझे रूप है देता देकर चाक को धार,
मुझे भी तपा आग पर देते नया आकर।
तू देती शीतलता, मुझेभी ताप से नही प्यार,
तू तपती कठोर है बनती,और मुझमें पड़ती है दरार,
तन की मिट्टी मेहनत के तप से चढ़ती नए सोपान
मन का दर्पण है दिखाये दुनिया के आचार और विचार।।
तू कच्ची,में हूँ नाजुक,है यही श्रृंगार,
मिलाके काँच और मिट्टी देते नया आकर,
काँच मिले जो मिट्टी मे बनते सुंदर पात्र,
तन और मन मिल जाये जन्म लेते नित नए विचार।।
गीतांजली वार्ष्णेय
दिनांक_१६/१/२०१९
शीर्षक_व्यवहार"
सौ दिलों पे राज करें
एक उत्तम व्यवहार
सहज सरल व्यवहार से
जीते दुनिया आप।
एक कठोर व्यवहार
करे हर दिल पे चोट
सौम्य व्यवहार हरे
आधि,व्याधि चहूं ओर।
शत्रु हो या मित्र
करे सौम्य व्यवहार
शत्रु भी बने मित्र
रिश्ता सुधरे आप
दर्प न झलके व्यवहार में
यह नही उन्नति के द्वार
स्पर्द्धा, द्वेष से दूर रहे
तभी होगा कल्याण।
उपेक्षा न कभी किसी का
ये नही सही व्यवहार
अपेक्षा तो सभी रखते
करे आर्दश व्यवहार।
हर प्रसन्नता का मूल है
सुन्दर सहज व्यवहार
राजा हो या रंक
व्यवहार दिलाये मान।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव
शीर्षक_व्यवहार"
सौ दिलों पे राज करें
एक उत्तम व्यवहार
सहज सरल व्यवहार से
जीते दुनिया आप।
एक कठोर व्यवहार
करे हर दिल पे चोट
सौम्य व्यवहार हरे
आधि,व्याधि चहूं ओर।
शत्रु हो या मित्र
करे सौम्य व्यवहार
शत्रु भी बने मित्र
रिश्ता सुधरे आप
दर्प न झलके व्यवहार में
यह नही उन्नति के द्वार
स्पर्द्धा, द्वेष से दूर रहे
तभी होगा कल्याण।
उपेक्षा न कभी किसी का
ये नही सही व्यवहार
अपेक्षा तो सभी रखते
करे आर्दश व्यवहार।
हर प्रसन्नता का मूल है
सुन्दर सहज व्यवहार
राजा हो या रंक
व्यवहार दिलाये मान।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव
व्यवहार
व्यवहार हैं
दर्पण
इन्सान का
यहीं है
संस्कार
जीवन के
होती तारीफ
सब जगह
कुशल व्यहार की
होता सफल
वही जीवन में
बनाते
माता-पिता
कुशल व्यवहार
बच्चों को
जो अपनाता
जितना जीवन में
रहता खुश
जीवनपर्यन्त
जीवन में
व्यवहार है
ऐसा गहना
जो करता
सज्जा
मानव का
होता प्रिय
वह सब का
बुजुर्गों का
यह हैं कहना
स्वलिखित
व्यवहार हैं
दर्पण
इन्सान का
यहीं है
संस्कार
जीवन के
होती तारीफ
सब जगह
कुशल व्यहार की
होता सफल
वही जीवन में
बनाते
माता-पिता
कुशल व्यवहार
बच्चों को
जो अपनाता
जितना जीवन में
रहता खुश
जीवनपर्यन्त
जीवन में
व्यवहार है
ऐसा गहना
जो करता
सज्जा
मानव का
होता प्रिय
वह सब का
बुजुर्गों का
यह हैं कहना
स्वलिखित
दिनांक 16/01/2020
विषय : व्यवहार
विधा :दोहे
सरल शुद्ध व्यवहार से,बने अनेकों मीत।
इन सबके सहयोग से, गूँजे चहुँ संगीत ।।
मीठी वाणी बोलकर,होत कठिन भी काम ।
अपने ही व्यवहार से,जग मे होवे नाम।।
बेटी जब डोली चढे, देना ऐसी सीख ।
उसके ही व्यवहार में, मचा न कोई चीख।।
संगी साथी जब मिले, ऐसा हो व्यवहार ।
घुल मिल सब ऐसे दिखे,समझे सब परिवार ।।
माता विनती यह सुनो,सफल हो जाय काम।
व्यवहार मे न दोष हो,जग में हो जाय नाम।।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
विषय : व्यवहार
विधा :दोहे
सरल शुद्ध व्यवहार से,बने अनेकों मीत।
इन सबके सहयोग से, गूँजे चहुँ संगीत ।।
मीठी वाणी बोलकर,होत कठिन भी काम ।
अपने ही व्यवहार से,जग मे होवे नाम।।
बेटी जब डोली चढे, देना ऐसी सीख ।
उसके ही व्यवहार में, मचा न कोई चीख।।
संगी साथी जब मिले, ऐसा हो व्यवहार ।
घुल मिल सब ऐसे दिखे,समझे सब परिवार ।।
माता विनती यह सुनो,सफल हो जाय काम।
व्यवहार मे न दोष हो,जग में हो जाय नाम।।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
विषय- व्यवहार
व्यवहार से ही होती
इंसान की सही पहचान है।
छोटों को जो देता प्यार
बड़ों का करता सम्मान है।।
ऊंच-नीच, जाति-धर्म का
जिसके मन में नहीं विचार है।
लोभ, क्रोध, घृणा, अहंकार
न आता जिसके आसपास है।।
प्रैरणा लेता जिससे जन-जन
सबके दिल पर करता राज है।
वहीं होता सच्चा जननायक
जिसके हृदय में सिर्फ प्यार है।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर
व्यवहार से ही होती
इंसान की सही पहचान है।
छोटों को जो देता प्यार
बड़ों का करता सम्मान है।।
ऊंच-नीच, जाति-धर्म का
जिसके मन में नहीं विचार है।
लोभ, क्रोध, घृणा, अहंकार
न आता जिसके आसपास है।।
प्रैरणा लेता जिससे जन-जन
सबके दिल पर करता राज है।
वहीं होता सच्चा जननायक
जिसके हृदय में सिर्फ प्यार है।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर
16/01/2020गुरुवार
विषय-व्यवहार
विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
हर जगह
व्यवहार कुशल
छाप छोड़ते👌
💐💐💐💐💐💐
सफल होते
व्यवहार कुशल
सभी जगह👍
💐💐💐💐💐💐
व्यवहार से
व्यवहारिक व्यक्ति
दिल जीतता💐
💐💐💐💐💐💐
स्थान बनाता
व्यवहारिक जन
सबके दिल🎂
💐💐💐💐💐💐
भला मानुष
व्यवहारिक होता
दम्भोक्ति नहीं💐
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
विषय-व्यवहार
विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
हर जगह
व्यवहार कुशल
छाप छोड़ते👌
💐💐💐💐💐💐
सफल होते
व्यवहार कुशल
सभी जगह👍
💐💐💐💐💐💐
व्यवहार से
व्यवहारिक व्यक्ति
दिल जीतता💐
💐💐💐💐💐💐
स्थान बनाता
व्यवहारिक जन
सबके दिल🎂
💐💐💐💐💐💐
भला मानुष
व्यवहारिक होता
दम्भोक्ति नहीं💐
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
16/1/2020/गुरुवार
विषय--*व्यवहार*
विधा-काव्य
हमारी संस्कृति हमारे संस्कार।
सभी बताते सिखाते व्यवहार।
आइना देखते हम चेहरा देखने,
पर लोग बताऐं हमारे सदाचार।
यह सीखने घर से ही मिलता।
कुछ विद्यालय से भी मिलता।
समाज सुधार की जरूरत नहीं,
कुछ स्वच्छ परिवेश से मिलता।
परमार्थ परोपकारी व्यवहारी बनें।
हम सुखद शिरोमणि संस्कारी बनें।
सहानुभूति हमें तभी तक मिलेगी,
नहीं जगत में कभी कदाचारी बनें।
व्यवहार बोलता सुनें कभी हम।
अपने मानस भी गुणें कभी हम।
इस अंतर्मन की पीडाऐं कितनी,
अपने व्यवहार में चुनें कभी हम।
व्यवहार से सबको अपना बना लें।
दुश्मन सारी दुनिया को ही बना लें।
ये मनुष्य नहीं व्यवहार पूजा जाता,
सुंदर कहीं सोने में सुहाग जड़ा लें।
स्वरचित
इंजी.शंम्भू सिंह रघुवंशी'अजेय'
मगराना गुना म प्र
विषय--*व्यवहार*
विधा-काव्य
हमारी संस्कृति हमारे संस्कार।
सभी बताते सिखाते व्यवहार।
आइना देखते हम चेहरा देखने,
पर लोग बताऐं हमारे सदाचार।
यह सीखने घर से ही मिलता।
कुछ विद्यालय से भी मिलता।
समाज सुधार की जरूरत नहीं,
कुछ स्वच्छ परिवेश से मिलता।
परमार्थ परोपकारी व्यवहारी बनें।
हम सुखद शिरोमणि संस्कारी बनें।
सहानुभूति हमें तभी तक मिलेगी,
नहीं जगत में कभी कदाचारी बनें।
व्यवहार बोलता सुनें कभी हम।
अपने मानस भी गुणें कभी हम।
इस अंतर्मन की पीडाऐं कितनी,
अपने व्यवहार में चुनें कभी हम।
व्यवहार से सबको अपना बना लें।
दुश्मन सारी दुनिया को ही बना लें।
ये मनुष्य नहीं व्यवहार पूजा जाता,
सुंदर कहीं सोने में सुहाग जड़ा लें।
स्वरचित
इंजी.शंम्भू सिंह रघुवंशी'अजेय'
मगराना गुना म प्र
विषय : व्यवहार
विधा : कविता
तिथि : 16.1 2020
शालीन मधुर व्यवहार
रचता रिश्ते प्यार।
कटु तिक्त व्यवहार
आमंत्रित करे धिक्कार।।
शीतल व्यवहार-
जैसे वर्षा फुहार,
क्रोध और तकरार-
हैं दो धारी कटार।।
दुर्व्यवहार नकार-
यह असंशोधित विकार,
करता सब कुछ ख्वार-
बनाता जीवन हाहाकार।।
सद्व्यवहार है रब का पुरस्कार,
हर जन को बना ले यार।
हो प्यार करुणा साकार-
ऐसी बन बहार।।
मुख पर तो करते प्रदर्शित-
सभी औपचारिक दुलार;
जो दिलाए पीठ पीछे सत्कार-
सर्वोत्तम वह व्यवहार।।
-- रीता ग्रोवर
--स्वरचित
आपसी ब्यवहार
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मिलते मीत
सहज ब्यवहार
मीठा अंदाज
छोड़ ते छाप
दिल करता नाज
ये ब्यवहार
स्वरचित
मीना तिवारी
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