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ब्लॉग संख्या :-622
विषय तस्वीर,चित्र
विधा काव्य
11जनवरी 2020,शनिवार
उदयाचल से अस्ताचल तक
रवि रश्मियां चित्र बनाती।
धरा गगन विभिन्न नवरंग से
सम्पूर्ण सृष्टि सुंदर सजाती।
प्रकृति लीला है अति अद्भुत
रजत कणों से हिमगिरि भव्य।
चित्र विहंगम माँ वसुधा प्रिय
सर सरिता के दृश्य प्रिय नव्य।
भव्य चित्र नव इतिहास बनाते
पुराने स्मरण भी ताजा करते।
अब नया यांत्रिक युग आया
नयी सेल्फी से मोबाइ भरते।
सगुण भक्ति के सभी उपासक
बसे मनमंदिर में सुंदर सूरत।
अर्चन पूजन निशदिन करते
शीश झुकाते हम प्रभु मूरत।
नितनव चित्रकार चित्र बनाता
हम नश्वर हैं सब चित्र ईश्वर के।
कभी हँसावे कभी रुलाता वह
सब भक्त प्रिय हम प्रभु वर के।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
11जनवरी 2020,शनिवार
उदयाचल से अस्ताचल तक
रवि रश्मियां चित्र बनाती।
धरा गगन विभिन्न नवरंग से
सम्पूर्ण सृष्टि सुंदर सजाती।
प्रकृति लीला है अति अद्भुत
रजत कणों से हिमगिरि भव्य।
चित्र विहंगम माँ वसुधा प्रिय
सर सरिता के दृश्य प्रिय नव्य।
भव्य चित्र नव इतिहास बनाते
पुराने स्मरण भी ताजा करते।
अब नया यांत्रिक युग आया
नयी सेल्फी से मोबाइ भरते।
सगुण भक्ति के सभी उपासक
बसे मनमंदिर में सुंदर सूरत।
अर्चन पूजन निशदिन करते
शीश झुकाते हम प्रभु मूरत।
नितनव चित्रकार चित्र बनाता
हम नश्वर हैं सब चित्र ईश्वर के।
कभी हँसावे कभी रुलाता वह
सब भक्त प्रिय हम प्रभु वर के।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
11/1 /2020
बिषय,, तस्वीर,, चित्र
क्या मनभावन तस्वीर मेरे. देश की
सारी दुनियां से न्यारा
उत्तर से पश्चिम तक बिभिन्न बिधाओं का भंडारा
कहीं घाघरा चोली तो कहीं सूट है पटियाला
कहीं साड़ी के घूंघट में सुंदरता को सजा डाला
कहीं मैदान कहीं नदियां कहीं
झरने बहते झरझर
कहीं पर्वत पहाड़ों की श्रंखलाओं का मंजर
घने घने जंगलों की छटा लगती सुहानी है
इसीलिए तो मेरे देश की दुनियां दीवानी है
ए जीवन क्षणभंगुर संदेश देतीं लहरें सागर
अजब गजब चित्र कारी है मेरे प्रभु नटनागर की
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय,, तस्वीर,, चित्र
क्या मनभावन तस्वीर मेरे. देश की
सारी दुनियां से न्यारा
उत्तर से पश्चिम तक बिभिन्न बिधाओं का भंडारा
कहीं घाघरा चोली तो कहीं सूट है पटियाला
कहीं साड़ी के घूंघट में सुंदरता को सजा डाला
कहीं मैदान कहीं नदियां कहीं
झरने बहते झरझर
कहीं पर्वत पहाड़ों की श्रंखलाओं का मंजर
घने घने जंगलों की छटा लगती सुहानी है
इसीलिए तो मेरे देश की दुनियां दीवानी है
ए जीवन क्षणभंगुर संदेश देतीं लहरें सागर
अजब गजब चित्र कारी है मेरे प्रभु नटनागर की
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
शीर्षक- तस्वीर/चित्र
प्रथम प्रस्तुति
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
शायर बना दिया तेरी तस्वीर ने
क्या गुल खिलाया मेरी तकदीर ने ।।
तुझसे मिलना रब की रज़ा जानी
पर बेरहमी की वक्त की समीर ने ।।
मिलने को मिलता मैं तुझसे जरूर
मगर हाँ नही की मेरे ज़मीर ने ।।
सोचा तुझ तक पहुंचने की पर उल्टी
गंगा बहायी किस्मत की लकीर ने ।।
तेरी तस्वीर का आंकलन कर जग
का आंकलन किया दिल अधीर ने ।।
जो भी हूँ शायर आशिक आवारा
बनाया तेरे नैनों के तीर ने ।।
वैसे देर से किस्मत का खिलना
बताया था मुझको एक फकीर ने ।।
ओहदा मेरा भी कम न होगा तुझसे
बहुत वक्त लिया बनने में तामीर ने ।।
थी खूबसूरत अजंता की मूरत 'शिवम'
फख्र से जोड़ा दिल की जागीर ने ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 11/01/2020
प्रथम प्रस्तुति
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
शायर बना दिया तेरी तस्वीर ने
क्या गुल खिलाया मेरी तकदीर ने ।।
तुझसे मिलना रब की रज़ा जानी
पर बेरहमी की वक्त की समीर ने ।।
मिलने को मिलता मैं तुझसे जरूर
मगर हाँ नही की मेरे ज़मीर ने ।।
सोचा तुझ तक पहुंचने की पर उल्टी
गंगा बहायी किस्मत की लकीर ने ।।
तेरी तस्वीर का आंकलन कर जग
का आंकलन किया दिल अधीर ने ।।
जो भी हूँ शायर आशिक आवारा
बनाया तेरे नैनों के तीर ने ।।
वैसे देर से किस्मत का खिलना
बताया था मुझको एक फकीर ने ।।
ओहदा मेरा भी कम न होगा तुझसे
बहुत वक्त लिया बनने में तामीर ने ।।
थी खूबसूरत अजंता की मूरत 'शिवम'
फख्र से जोड़ा दिल की जागीर ने ।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 11/01/2020
नमनमंच।
भावों के मोती।स्वरचित।
विषय-तश्वीर।
तश्वीर तेरी दिल में
इस तरह समाई है।
दिल के धड़कते ही
तेरी याद आई है।।
तस्वीर तेरी आंखों में
इस तरह बसाई है।
कोई और नहीं इनमें
तेरी परछाई है।।
तश्वीर तेरी धड़कन में
सांसों में छाई है।
मैं तेरी तू मेरा है
बस ये सच्चाई है।।
****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा".
भावों के मोती।स्वरचित।
विषय-तश्वीर।
तश्वीर तेरी दिल में
इस तरह समाई है।
दिल के धड़कते ही
तेरी याद आई है।।
तस्वीर तेरी आंखों में
इस तरह बसाई है।
कोई और नहीं इनमें
तेरी परछाई है।।
तश्वीर तेरी धड़कन में
सांसों में छाई है।
मैं तेरी तू मेरा है
बस ये सच्चाई है।।
****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा".
दिनांक -11/1/2020
विषय-तस्वीर/चित्र
प्रथम प्यार की प्रथम तस्वीर
अंकित है इस दिल पर अब तक
कोई जगह न ले सकता उस की
संग रहेगी मेरे अंतिम क्षण तक
वो माँ संग मेरी पहली तस्वीर है
वो मेरे खुदा की बनाई तकदीर है
उसमें हैं सारे जहाँ की खुशियाँ
माँ की धड़कन अंकित है
मेरे दिल मे अब तक
उस तस्वीर की एक एक बाद याद है मुझे
माँ ने छोटी से छोटी बात बताई थी मुझे
लगता है मानो कल की ही बात हो
आँखो में वो पहला चित्र समाया है अब तक ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
विषय-तस्वीर/चित्र
प्रथम प्यार की प्रथम तस्वीर
अंकित है इस दिल पर अब तक
कोई जगह न ले सकता उस की
संग रहेगी मेरे अंतिम क्षण तक
वो माँ संग मेरी पहली तस्वीर है
वो मेरे खुदा की बनाई तकदीर है
उसमें हैं सारे जहाँ की खुशियाँ
माँ की धड़कन अंकित है
मेरे दिल मे अब तक
उस तस्वीर की एक एक बाद याद है मुझे
माँ ने छोटी से छोटी बात बताई थी मुझे
लगता है मानो कल की ही बात हो
आँखो में वो पहला चित्र समाया है अब तक ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
दिनाँक-11/01/2020
शीर्षक-चित्र,तस्वीर
विधा-हाइकु
1.
रंगीन चित्र
बना इंद्रधनुष
सप्त रंग में
2.
चित्र अनोखा
कुदरत बनाती
इंद्रधनुष
3.
पुरानी यादें
बसी मेरे दिल में
तेरी तस्वीर
4.
जीवन चित्र
शानदार चरित्र
बड़ा विचित्र
5.
असंख्य तारे
अंतरिक्ष चित्र में
रंग निराले
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
शीर्षक-चित्र,तस्वीर
विधा-हाइकु
1.
रंगीन चित्र
बना इंद्रधनुष
सप्त रंग में
2.
चित्र अनोखा
कुदरत बनाती
इंद्रधनुष
3.
पुरानी यादें
बसी मेरे दिल में
तेरी तस्वीर
4.
जीवन चित्र
शानदार चरित्र
बड़ा विचित्र
5.
असंख्य तारे
अंतरिक्ष चित्र में
रंग निराले
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
दिनाँक-11/ 1 /2020
विषय-तस्वीर
कभी जो सोचूँ अतीत के बारे में,
एक प्यारी सी तस्वीर उभरती है।
रहा होगा कभी गुंजित वो मधुवन,
तस्वीर में नदी यमुना उतरती है।
चढ़े होंगे कदम्ब की डाल पे कान्हा,
गूँजती वंशी की धुन मन मे भरती है।
खाया होगा कभी लूट के माखन,
शिकवा गोपी यशोदा से करती है।
उतर यमुना में नाग नाथा होगा
अश्रु नैनों में नागिन भरती है।
काश हम भी होते उस जमाने में,
यही कामना अब मन मे उभरती है।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
विषय-तस्वीर
कभी जो सोचूँ अतीत के बारे में,
एक प्यारी सी तस्वीर उभरती है।
रहा होगा कभी गुंजित वो मधुवन,
तस्वीर में नदी यमुना उतरती है।
चढ़े होंगे कदम्ब की डाल पे कान्हा,
गूँजती वंशी की धुन मन मे भरती है।
खाया होगा कभी लूट के माखन,
शिकवा गोपी यशोदा से करती है।
उतर यमुना में नाग नाथा होगा
अश्रु नैनों में नागिन भरती है।
काश हम भी होते उस जमाने में,
यही कामना अब मन मे उभरती है।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
विषय - तस्वीर
दिनांक - 11/01/2020
वार-शनिवार
तस्वीर
आँखों में तेरी तस्वीर जो रहती है।
मुस्कुराती कभी तो कभी ठगती है।
कभी नजरों में तैरती है
कभी आँखों में घेरती है
सुनहरी घड़ी में दो पल
वो बरबस सहेजती है।
आँखों में तेरी तस्वीर जो रहती है।
कुछ पल फिसलते से
कदम कुछ ठिठकते से
यादों के झुरमुट में कहीं
एक साँझ पिघलती है।
आँखों में तेरी तस्वीर जो रहती है।
आशा मिलन की है
यादों की चुभन सी है
पास आती जुदाई कभी न
स्वप्नों की मृदु घड़ियाँ संवरती है।
आँखों में तेरी तस्वीर जो रहती है।
डॉ उषा किरण
दिनांक - 11/01/2020
वार-शनिवार
तस्वीर
आँखों में तेरी तस्वीर जो रहती है।
मुस्कुराती कभी तो कभी ठगती है।
कभी नजरों में तैरती है
कभी आँखों में घेरती है
सुनहरी घड़ी में दो पल
वो बरबस सहेजती है।
आँखों में तेरी तस्वीर जो रहती है।
कुछ पल फिसलते से
कदम कुछ ठिठकते से
यादों के झुरमुट में कहीं
एक साँझ पिघलती है।
आँखों में तेरी तस्वीर जो रहती है।
आशा मिलन की है
यादों की चुभन सी है
पास आती जुदाई कभी न
स्वप्नों की मृदु घड़ियाँ संवरती है।
आँखों में तेरी तस्वीर जो रहती है।
डॉ उषा किरण
विषय-* तस्वीर /चित्*र
विधा- काव्य
जब से तस्वीर दिल में समाई है।
सच मुझे आज नींद नहीं आई है।
जग चाहे हमें खूब बदनाम करे,
पर ये अंतस की बात बताई है।
जन्म जन्मांतरों का नाता अपना,
कभी मानो या न मानो तुम यारा।
चित्र छिपा रखा बर्षो से सीने में,
जो मुझे यहां लगता सबसे न्यारा।
भले सजन तुम हमें भूल जाओगे।
अब हमको तुमतो रोज सताओगे।
नहीं आस हम बस दर्शन के भूखे,
क्या सचमुच हमसे प्रीत लगाओगे।
मनमोहन तुम सबके मनकी जानो।
कौन कैसा सब दुनिया पहचानो।
तस्वीर तुम्हारी अंकित जीवन भर,
इस जग की सभी भावनाओं जानो।
स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
विधा- काव्य
जब से तस्वीर दिल में समाई है।
सच मुझे आज नींद नहीं आई है।
जग चाहे हमें खूब बदनाम करे,
पर ये अंतस की बात बताई है।
जन्म जन्मांतरों का नाता अपना,
कभी मानो या न मानो तुम यारा।
चित्र छिपा रखा बर्षो से सीने में,
जो मुझे यहां लगता सबसे न्यारा।
भले सजन तुम हमें भूल जाओगे।
अब हमको तुमतो रोज सताओगे।
नहीं आस हम बस दर्शन के भूखे,
क्या सचमुच हमसे प्रीत लगाओगे।
मनमोहन तुम सबके मनकी जानो।
कौन कैसा सब दुनिया पहचानो।
तस्वीर तुम्हारी अंकित जीवन भर,
इस जग की सभी भावनाओं जानो।
स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
दिनांकः-11-1-2020
आज का शीर्षकः- तस्वीर / चित्र
बदल दी थी जिन्होंने कभी हमारी तकदीर।
बैठे हैं अन्दर शीशे के बन कर एक तस्वीर।।
थकती न थीं कभी करते हुए जो हमसे बात।
करती नहीं बात,देख के तस्वीर गुज़रती रात।।
हर संकट से हमें था जिसने सदा ही बचाया।
विफल हुये प्रयास उनको मैं बचा ही न पाया।।
बिन तुम्हारे हो गए हैं हम, बिल्कुल बेसहारा।
सामने तुम्हारे ही देते थे भगवान भी सहारा।।
देख कर तस्वीर तुम्हारी कटते दिन और रात।
रहता यही कार्यक्रम हो जाड़ा गर्मी या बरसात।।
बन जायेंगे एक दिन हम ऐसी तो ही तस्वीर।
हो जायगी फिर से हम दोनों की एक तकदीर।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
आज का शीर्षकः- तस्वीर / चित्र
बदल दी थी जिन्होंने कभी हमारी तकदीर।
बैठे हैं अन्दर शीशे के बन कर एक तस्वीर।।
थकती न थीं कभी करते हुए जो हमसे बात।
करती नहीं बात,देख के तस्वीर गुज़रती रात।।
हर संकट से हमें था जिसने सदा ही बचाया।
विफल हुये प्रयास उनको मैं बचा ही न पाया।।
बिन तुम्हारे हो गए हैं हम, बिल्कुल बेसहारा।
सामने तुम्हारे ही देते थे भगवान भी सहारा।।
देख कर तस्वीर तुम्हारी कटते दिन और रात।
रहता यही कार्यक्रम हो जाड़ा गर्मी या बरसात।।
बन जायेंगे एक दिन हम ऐसी तो ही तस्वीर।
हो जायगी फिर से हम दोनों की एक तकदीर।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
11-01-2020
*तस्वीर*
इस तस्वीर के अंतस में झाँक कर देखा।
जिन्दगी की कसौटी पर आँक कर देखा।
निर्निमेष पलकें, दूर क्षितिज के उस पार।
विधाता के समक्ष- अशेष प्रश्नों का बौछार।
गहन खामोशी में दर्द की सर्पिल रेखाएँ ।
वक्र है, असन्तोष से उपजी मनोव्यथाएँ।
सीने में सहेजकर रखे दर्द भरे कुछ घाव।
फूट पड़ेंगे कोरों से नयनों के बन सैलाब।
इस पानी से दिल के दाग ही धुल जाए।
या, किसी तिलिस्म की पिटारी खुल जाए।
तो बोल उठे शायद यह पत्थर-सी प्रतिमा।
हो दूर परत संशय की खिले ऐसी द्युतिमा।
कभी सुने हो? तस्वीरें भी क्या बोलतीं है?
अनजान निगाहें फिर क्यूँ भला टटोलती है?
उतने ही तो भाव दिखे, जितने वहाँ उकेरे हैं।
कूँची की ये कारीगरी, करते चतुर चितेरे है।
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
*तस्वीर*
इस तस्वीर के अंतस में झाँक कर देखा।
जिन्दगी की कसौटी पर आँक कर देखा।
निर्निमेष पलकें, दूर क्षितिज के उस पार।
विधाता के समक्ष- अशेष प्रश्नों का बौछार।
गहन खामोशी में दर्द की सर्पिल रेखाएँ ।
वक्र है, असन्तोष से उपजी मनोव्यथाएँ।
सीने में सहेजकर रखे दर्द भरे कुछ घाव।
फूट पड़ेंगे कोरों से नयनों के बन सैलाब।
इस पानी से दिल के दाग ही धुल जाए।
या, किसी तिलिस्म की पिटारी खुल जाए।
तो बोल उठे शायद यह पत्थर-सी प्रतिमा।
हो दूर परत संशय की खिले ऐसी द्युतिमा।
कभी सुने हो? तस्वीरें भी क्या बोलतीं है?
अनजान निगाहें फिर क्यूँ भला टटोलती है?
उतने ही तो भाव दिखे, जितने वहाँ उकेरे हैं।
कूँची की ये कारीगरी, करते चतुर चितेरे है।
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
दिनांक- 11/01/2020
विषय- चित्र /तस्वीरविधा- छंदमुक्त कविता
******************
एक तस्वीर मैंने भी बना डाली,
रंगों की चादर उसे ओढ़ा डाली,
जीवन के सारे रंग उसमें भरे थे,
सूरत उसमें थी बड़ी भोली भाली,
एक तस्वीर मैंने भी बना डाली |
मिलना-जुलना कभी हो जाता,
मन को हमारे सुकून मिल जाता,
कभी सामने से उनको निहारते,
कभी तस्वीर से ही बाते कर डाली,
एक तस्वीर मैंने भी बना डाली |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
विषय- चित्र /तस्वीरविधा- छंदमुक्त कविता
******************
एक तस्वीर मैंने भी बना डाली,
रंगों की चादर उसे ओढ़ा डाली,
जीवन के सारे रंग उसमें भरे थे,
सूरत उसमें थी बड़ी भोली भाली,
एक तस्वीर मैंने भी बना डाली |
मिलना-जुलना कभी हो जाता,
मन को हमारे सुकून मिल जाता,
कभी सामने से उनको निहारते,
कभी तस्वीर से ही बाते कर डाली,
एक तस्वीर मैंने भी बना डाली |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
विषय_तस्वीर |
मेरे देश आये विदेशी जब से
तस्वीर भारत की बलदती रही |
सिकंदर न कर पाया कुछ खाली गया |
आये मुगल देश से धन ले गयेलूट |
कुछ ने किया शासन तस्वीर बिगडती रही |
कईदाग लग सुंदरता मे |
आये क ई पर अग्रेजी हुकमत ने
तस्वीर पूरी बदल दी लूट लिया
सोने की चिडिया कोगरीबी दी |
क ई लोग हुये शहीद तब देखो पुनः
तस्वीर बदलने लगी भारत की |
आज बहुत सक्षम हम हो चले |
एक दिन फिर होगी वही सुदंर तस्वीर देग की |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
मेरे देश आये विदेशी जब से
तस्वीर भारत की बलदती रही |
सिकंदर न कर पाया कुछ खाली गया |
आये मुगल देश से धन ले गयेलूट |
कुछ ने किया शासन तस्वीर बिगडती रही |
कईदाग लग सुंदरता मे |
आये क ई पर अग्रेजी हुकमत ने
तस्वीर पूरी बदल दी लूट लिया
सोने की चिडिया कोगरीबी दी |
क ई लोग हुये शहीद तब देखो पुनः
तस्वीर बदलने लगी भारत की |
आज बहुत सक्षम हम हो चले |
एक दिन फिर होगी वही सुदंर तस्वीर देग की |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
भावों के मोती
विषय--तस्वीर
_______________
धड़क उठी है फिर से,
दबी हुई सीने में याद।
नयी साल लेकर आई,
फिर से यादों की सौगात।
छलक पड़े आँखों से आँसू,
तस्वीर पुरानी यादों की।
तोड़ गए हो जो कबसे,
यादें उन टूटे वादों की।
किस्मत की लाचारी देखो,
खाई अपने दिल पे चोट।
रोक सके न उन खुशियों को,
किस्मत में ही था कुछ खोट।
बरबस आँखें छलक पड़ी,
जब चली पड़ी हवाएं सर्द।
यादों का ऐसा धुआँ उठा,
जगा गया दिल में दर्द।
अब तो जब तक जीवन है,
ये तड़प कभी न कम होगी।
जब-जब तेरी याद आएगी,
ये आँखें यूँ हीं नम होंगी।
टूटेगा न यह रिश्ता,
जब-तक बँधी साँसो की डोर।
अहसासों का यह बंधन,
हरदम खींचे यादों की ओर।
अनुराधा चौहान स्वरचित
विषय--तस्वीर
_______________
धड़क उठी है फिर से,
दबी हुई सीने में याद।
नयी साल लेकर आई,
फिर से यादों की सौगात।
छलक पड़े आँखों से आँसू,
तस्वीर पुरानी यादों की।
तोड़ गए हो जो कबसे,
यादें उन टूटे वादों की।
किस्मत की लाचारी देखो,
खाई अपने दिल पे चोट।
रोक सके न उन खुशियों को,
किस्मत में ही था कुछ खोट।
बरबस आँखें छलक पड़ी,
जब चली पड़ी हवाएं सर्द।
यादों का ऐसा धुआँ उठा,
जगा गया दिल में दर्द।
अब तो जब तक जीवन है,
ये तड़प कभी न कम होगी।
जब-जब तेरी याद आएगी,
ये आँखें यूँ हीं नम होंगी।
टूटेगा न यह रिश्ता,
जब-तक बँधी साँसो की डोर।
अहसासों का यह बंधन,
हरदम खींचे यादों की ओर।
अनुराधा चौहान स्वरचित
विषय- तस्वीर/ चित्र
विधा- हाइकु
तेरी तस्वीर
अय मेरे सनम
आंखों में बसी
जहां भी जाऊं
दिल में रहे सदा
तेरा ही चित्र
मेरे ख्वाबों में
बसा है एक चित्र
तेरे जैसा ही
ख्वाबों में मैंने
एक तस्वीर देखी
तुझ सी ही थी
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर
विधा- हाइकु
तेरी तस्वीर
अय मेरे सनम
आंखों में बसी
जहां भी जाऊं
दिल में रहे सदा
तेरा ही चित्र
मेरे ख्वाबों में
बसा है एक चित्र
तेरे जैसा ही
ख्वाबों में मैंने
एक तस्वीर देखी
तुझ सी ही थी
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़गपुर
दिनांक ११/१/२०२०
शीर्षक-तस्वीर
ले संकल्प करें प्रयास
देश की छवि बिगड़े न आज
दुर्जन के दुर्बल प्रयास
कभी सफल हो न आज।
शोचनीय है आज का परिपेक्ष्य
बुद्धि विवेक से ले हम काम
कृत्घ्न क्यों बने हम ,आप,
देशहित में करे प्रयास।
खिड़की खोल बाहर क्यों झांके?
पहले अपने अंदर भापें,
शर्म करें हम अपनी हरकत पर
यदि हम करे कोई गड़बड़।
कृपा करो हे कृपा निधान
हमारी गति तुम्हारे हाथ
विश्व पटल पर हम चमके
फिर कभी न हम बहके।
चयन करते जब हम अपनी सुन्दर तस्वीर
क्यों बिगाड़े देश की तस्वीर
अपनी मर्यादा को हम ना भूलें
ले संकल्प पूरा हम करे।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
शीर्षक-तस्वीर
ले संकल्प करें प्रयास
देश की छवि बिगड़े न आज
दुर्जन के दुर्बल प्रयास
कभी सफल हो न आज।
शोचनीय है आज का परिपेक्ष्य
बुद्धि विवेक से ले हम काम
कृत्घ्न क्यों बने हम ,आप,
देशहित में करे प्रयास।
खिड़की खोल बाहर क्यों झांके?
पहले अपने अंदर भापें,
शर्म करें हम अपनी हरकत पर
यदि हम करे कोई गड़बड़।
कृपा करो हे कृपा निधान
हमारी गति तुम्हारे हाथ
विश्व पटल पर हम चमके
फिर कभी न हम बहके।
चयन करते जब हम अपनी सुन्दर तस्वीर
क्यों बिगाड़े देश की तस्वीर
अपनी मर्यादा को हम ना भूलें
ले संकल्प पूरा हम करे।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
तस्वीर/चित्र
नमन मंच भावों के मोती समूह।गुरूजनों, मित्रों।
राधा की आंखों में तस्वीर बसी ऐसी।
मनमोहन घनश्याम की।
मूरली मनोहर श्याम की।
दिन रात चैन नहीं आये।
यमुना तट पर दौड़ी चली जाये।
कृष्ण कन्हैया वंशी बजाए।
राधा रानी नाचती जाये।
दोनों एक दूजे के नैनों में बस गए।
जैसे चन्दा और रात की।
राधा की आंखों में तस्वीर बसी ऐसी।
मनमोहन घनश्याम की।
मूरली मनोहर श्याम की।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नमन मंच भावों के मोती समूह।गुरूजनों, मित्रों।
राधा की आंखों में तस्वीर बसी ऐसी।
मनमोहन घनश्याम की।
मूरली मनोहर श्याम की।
दिन रात चैन नहीं आये।
यमुना तट पर दौड़ी चली जाये।
कृष्ण कन्हैया वंशी बजाए।
राधा रानी नाचती जाये।
दोनों एक दूजे के नैनों में बस गए।
जैसे चन्दा और रात की।
राधा की आंखों में तस्वीर बसी ऐसी।
मनमोहन घनश्याम की।
मूरली मनोहर श्याम की।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
"भावों के मोती"
11/1/2020
तस्वीर
******
तस्वीरें दीवारों पर
ही नहीं,मन के
हर कोने में बसा
करती हैं ।
वे खाट के बगल
में ,तकिए के नीचे
तो मेज़ की दराज़
में मिला करती हैं ।
न होती उनके पास
आवाज़ लेकिन
खामोश अल्फाज़ो
के ज़खीरे हुआ
करती हैं।
न लगा सकें वे
साथ किसी के
ठहाके तो क्या
वे मुस्कुराती हर
वक़्त रहा करती हैं।
हर अहसास को
करती वो बयाँ
तस्वीरें गुज़रे वक़्त
का आईना हुआ
करती हैं ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
11/1/2020
तस्वीर
******
तस्वीरें दीवारों पर
ही नहीं,मन के
हर कोने में बसा
करती हैं ।
वे खाट के बगल
में ,तकिए के नीचे
तो मेज़ की दराज़
में मिला करती हैं ।
न होती उनके पास
आवाज़ लेकिन
खामोश अल्फाज़ो
के ज़खीरे हुआ
करती हैं।
न लगा सकें वे
साथ किसी के
ठहाके तो क्या
वे मुस्कुराती हर
वक़्त रहा करती हैं।
हर अहसास को
करती वो बयाँ
तस्वीरें गुज़रे वक़्त
का आईना हुआ
करती हैं ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
सादर मंच को समर्पित --
🐥🐣🐒 गीतिका 🐵🍢🍥
*********************************
🌘👥👹 चित्र/तश्वीर 🐾🌜⛄
**********************************
रोज तिल-तिल जा रही है जिन्दगी ।
रूप, योवन खा रही है जिन्दगी ।।
बाण थक कर शिथिलता बढ़ती गयी ,
पत्रक्षय दर्शा रही है जिन्दगी ।
झुर्रियाँ बढ़ आइना भाता नहीं ,
चित्र स्वयँ बना रही है जिन्दगी ।
साँस भी कम हो रहीं पल-पल यहाँ ,
जाग अब , समझा रही है जिन्दगी ।
वक्त रहते कुछ करें सत्कर्म भी ,
सत्य पाठ पढ़ा रही है जिन्दगी ।।
🍀🌴🌷🌲🍑
🐚🍥💧🌺 **... ..रवीन्द्र वर्मा आगरा
🐥🐣🐒 गीतिका 🐵🍢🍥
*********************************
🌘👥👹 चित्र/तश्वीर 🐾🌜⛄
**********************************
रोज तिल-तिल जा रही है जिन्दगी ।
रूप, योवन खा रही है जिन्दगी ।।
बाण थक कर शिथिलता बढ़ती गयी ,
पत्रक्षय दर्शा रही है जिन्दगी ।
झुर्रियाँ बढ़ आइना भाता नहीं ,
चित्र स्वयँ बना रही है जिन्दगी ।
साँस भी कम हो रहीं पल-पल यहाँ ,
जाग अब , समझा रही है जिन्दगी ।
वक्त रहते कुछ करें सत्कर्म भी ,
सत्य पाठ पढ़ा रही है जिन्दगी ।।
🍀🌴🌷🌲🍑
🐚🍥💧🌺 **... ..रवीन्द्र वर्मा आगरा
विषय -चित्र
दिनांक-११-१-२०२०चित्र बना,जीवंत रंग मैने उसमें भर दिया।
खामोश रह,जज्बात ऐसे बयां कर दिया।
दौड़ती भागती जिंदगी को,विराम दिया।
चित्र देख सराहा,बस इतना वक्त दिया।
प्रतीकात्मक ढंग से,उसको उकेर दिया।
कर प्रशंसा सबने ,और वाह कह दिया।
चिंतनरत कुछ ने,मनोभाव व्यक्त किया।
मन:स्थिति अनुरूप,आंकलन कर दिया।
चित्र बना,यूं कुछ पल साथ गुजार दिया।
नादान जहां ,बस चित्र अच्छा कह दिया।
चित्र बना सजदा ,देखो मैंने कर दिया।
मर कर भी उसे, जहां अमर कर दिया।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक-११-१-२०२०चित्र बना,जीवंत रंग मैने उसमें भर दिया।
खामोश रह,जज्बात ऐसे बयां कर दिया।
दौड़ती भागती जिंदगी को,विराम दिया।
चित्र देख सराहा,बस इतना वक्त दिया।
प्रतीकात्मक ढंग से,उसको उकेर दिया।
कर प्रशंसा सबने ,और वाह कह दिया।
चिंतनरत कुछ ने,मनोभाव व्यक्त किया।
मन:स्थिति अनुरूप,आंकलन कर दिया।
चित्र बना,यूं कुछ पल साथ गुजार दिया।
नादान जहां ,बस चित्र अच्छा कह दिया।
चित्र बना सजदा ,देखो मैंने कर दिया।
मर कर भी उसे, जहां अमर कर दिया।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 11-01-2020
विषय- तस्वीर
मुक्तक
तस्वीरें सदा अमर रहती हैं,
तस्वीरों में यादें बसती हैं ।
तस्वीरों में हम जीवित रहते,
कथा जीवन की ये कहती हैं ।।
समय का ये भेद बताती हैं,
तस्वीरें उम्र कहाँ छुपाती हैं।
हर युग की स्मृतियां हैं इनमें,
सुख दुख में सदैव सुहाती हैं।
वर्तमान में अतीत लाती हैं ,
आज से ये कल बन जाती हैं।
यादों का पुलिंदा संजोकर,
मुस्कान अश्क ये दे जाती हैं।
आजीवन साथ ये रहती हैं ,
अवसाद खुशियों से भरती हैं ।
सामान्य लगे जीवित रहकर
मृत होकर पूजित बनती हैं ।
कुसुम लता 'कुसुम'
नई दिल्ली
विषय- तस्वीर
मुक्तक
तस्वीरें सदा अमर रहती हैं,
तस्वीरों में यादें बसती हैं ।
तस्वीरों में हम जीवित रहते,
कथा जीवन की ये कहती हैं ।।
समय का ये भेद बताती हैं,
तस्वीरें उम्र कहाँ छुपाती हैं।
हर युग की स्मृतियां हैं इनमें,
सुख दुख में सदैव सुहाती हैं।
वर्तमान में अतीत लाती हैं ,
आज से ये कल बन जाती हैं।
यादों का पुलिंदा संजोकर,
मुस्कान अश्क ये दे जाती हैं।
आजीवन साथ ये रहती हैं ,
अवसाद खुशियों से भरती हैं ।
सामान्य लगे जीवित रहकर
मृत होकर पूजित बनती हैं ।
कुसुम लता 'कुसुम'
नई दिल्ली
विषय-तस्वीर / चित्र
विधा-मुक्त
दिनांक--11 / 01 / 2020
कितनी कितनी यादें अपनी तस्वीरों में कैद हुईं
बना दिया जानेमन मैने दिल को अपना एलबम
कई खट्टी-मीठी यादें
बार-बार उभरती हैं
रात भर मेरे ज़हन में
हलचल पैदा करती हैं
कुछ तस्वीरें रंगीन-हसीन
चित्रपट सी मुखर होती हैं
दिल के कैनवास पर किसी
सिनेमा-सी चलती हैं
तेरी-मेरी जिंदगानी में
कितनी बातें होती हैं
वो सब स्वर्णिम यादें बनकर तसवीरों में सजती हैं।
डा.नीलम
विधा-मुक्त
दिनांक--11 / 01 / 2020
कितनी कितनी यादें अपनी तस्वीरों में कैद हुईं
बना दिया जानेमन मैने दिल को अपना एलबम
कई खट्टी-मीठी यादें
बार-बार उभरती हैं
रात भर मेरे ज़हन में
हलचल पैदा करती हैं
कुछ तस्वीरें रंगीन-हसीन
चित्रपट सी मुखर होती हैं
दिल के कैनवास पर किसी
सिनेमा-सी चलती हैं
तेरी-मेरी जिंदगानी में
कितनी बातें होती हैं
वो सब स्वर्णिम यादें बनकर तसवीरों में सजती हैं।
डा.नीलम
विषय------तस्वीर
विधा------गजल
दिनांक -----11/01/2020
दिल में है छवि , आँखों में तेरी ही तस्वीर ।
देख आके मेरे आँखों के बहते नीर ।
कँधें बिठाया ,उँगली पकड़ चलना सिखाया ,
पिता हूँ मैं , बेटे तू है मेरा तकदीर ।
नैन में तुझे बसा देखा संसार सारा ,
मेरा सहारा है , तू ही है मेरा वीर ।
देखे थे तेरे लिए ख़्वाब अश्क़ बन बहे ,
तू क्यों न समझे मेरे मन की जो है पीर ?
तेरे धन-ऐशो-आराम की नहीं चाहत ,
आ जा इक बार, बस तू ही मेरा जागीर ।
जा बसा परदेश , कौन पहुँचाये संदेश ?
आने की आस जगे , कह पिता है गंभीर ।
ज़िद तेरे बचपन की , हठ कर चीजें लेना ,
हठ कर के आ जा बैठा हूँ मौत के तीर ।
धनेश्वरी देवांगन धरा
रायगढ़, छत्तीसगढ़
विधा------गजल
दिनांक -----11/01/2020
दिल में है छवि , आँखों में तेरी ही तस्वीर ।
देख आके मेरे आँखों के बहते नीर ।
कँधें बिठाया ,उँगली पकड़ चलना सिखाया ,
पिता हूँ मैं , बेटे तू है मेरा तकदीर ।
नैन में तुझे बसा देखा संसार सारा ,
मेरा सहारा है , तू ही है मेरा वीर ।
देखे थे तेरे लिए ख़्वाब अश्क़ बन बहे ,
तू क्यों न समझे मेरे मन की जो है पीर ?
तेरे धन-ऐशो-आराम की नहीं चाहत ,
आ जा इक बार, बस तू ही मेरा जागीर ।
जा बसा परदेश , कौन पहुँचाये संदेश ?
आने की आस जगे , कह पिता है गंभीर ।
ज़िद तेरे बचपन की , हठ कर चीजें लेना ,
हठ कर के आ जा बैठा हूँ मौत के तीर ।
धनेश्वरी देवांगन धरा
रायगढ़, छत्तीसगढ़
विषय : तस्वीर
तिथि : 11.1.2020
विधा :: कविता
दिल मेरा
तस्वीर तेरी
तोड़ा जो दिल
टूट जाए गी तस्वीर।
संभलना
लगे न ठोकर
दिल नाजु़क है कांच सा
सह न सके आंच सा।
मरहम भी
आएगी न काम
झेले गा पीड़ा
सुबह शाम।
जो हटानी हो तस्वीर
कुछ ऐसी कर तदबीर
शामिल हो मेरी ज़िदगी में
ले ले मुझे अपनी बंदगी में।
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
तिथि : 11.1.2020
विधा :: कविता
दिल मेरा
तस्वीर तेरी
तोड़ा जो दिल
टूट जाए गी तस्वीर।
संभलना
लगे न ठोकर
दिल नाजु़क है कांच सा
सह न सके आंच सा।
मरहम भी
आएगी न काम
झेले गा पीड़ा
सुबह शाम।
जो हटानी हो तस्वीर
कुछ ऐसी कर तदबीर
शामिल हो मेरी ज़िदगी में
ले ले मुझे अपनी बंदगी में।
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
तस्वीर
बनाती है
माँ
ख्वाबों में
एक सुन्दर
तस्वीर
होता है
शिशु जब
गर्भ में
कागज
दिखा कर पूछा
उसने
कौन है इसमें
कहा मैंने
जब है तस्वीर
दिल में
उसे कागज पर
उतारा नहीं करते
तकदीर से
नहीं बदलती
तस्वीर
किसी की
होता है वहीं
जो देता मौला
जिन्दगी में
मेहनत से
बदलती है
तस्वीर
जिन्दगी की
मुखौटों से
होता नहीं
कुछ जिन्दगी में
है
जिन्दगी में खेल
तस्वीर
का ऐसा
होता नहीं वो
दिखता जैसा
खाओ मत धोखा
तस्वीर के बहाने
आ जाते है बहुत
बहलाने
तस्वीर के बहाने
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
बनाती है
माँ
ख्वाबों में
एक सुन्दर
तस्वीर
होता है
शिशु जब
गर्भ में
कागज
दिखा कर पूछा
उसने
कौन है इसमें
कहा मैंने
जब है तस्वीर
दिल में
उसे कागज पर
उतारा नहीं करते
तकदीर से
नहीं बदलती
तस्वीर
किसी की
होता है वहीं
जो देता मौला
जिन्दगी में
मेहनत से
बदलती है
तस्वीर
जिन्दगी की
मुखौटों से
होता नहीं
कुछ जिन्दगी में
है
जिन्दगी में खेल
तस्वीर
का ऐसा
होता नहीं वो
दिखता जैसा
खाओ मत धोखा
तस्वीर के बहाने
आ जाते है बहुत
बहलाने
तस्वीर के बहाने
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
11/01/20
चित्र
दीवारों पर रंग बिरंगी पेंसिल
से आड़ी तिरछी रेखाओ का जाल
नन्हें हाथों का कमाल
कितने सुंदर चित्र
और कितने मासूम चित्रकार।
कोरे श्वेत कागज पर
मन के भाव को उकार
आम में रंग भर देते लाल
चित्र में आ जाता निखार,
रंगों से अनजान ये चित्रकार।
रंगीन पेंसिल से रच
लेते एक अनोखा संसार
कल्पनाओं से बनाते नदिया पहाड़
कला के कल्पनाओं में रचा चित्र
इनसे बड़ा कौन है चित्रकार
नन्हें हाथों मे पेंसिल
से कलम लेने लगा आकार
अब की बोर्ड के बटन अपार
लिये मोबाइल हाथ में
कैसे बनाएं वो चित्र ।
भीड़ मे खो कर रह गए ये चित्रकार।
रंगों का अर्थ अब जानो
हरा है प्रगति ,पीला आशा का संचार
नीला है विश्वास ,लाल रंग है प्यार
जीवन कैनवास के स्वयं बनाओ चित्र
बनो श्रेष्ठ चित्रकार ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
चित्र
दीवारों पर रंग बिरंगी पेंसिल
से आड़ी तिरछी रेखाओ का जाल
नन्हें हाथों का कमाल
कितने सुंदर चित्र
और कितने मासूम चित्रकार।
कोरे श्वेत कागज पर
मन के भाव को उकार
आम में रंग भर देते लाल
चित्र में आ जाता निखार,
रंगों से अनजान ये चित्रकार।
रंगीन पेंसिल से रच
लेते एक अनोखा संसार
कल्पनाओं से बनाते नदिया पहाड़
कला के कल्पनाओं में रचा चित्र
इनसे बड़ा कौन है चित्रकार
नन्हें हाथों मे पेंसिल
से कलम लेने लगा आकार
अब की बोर्ड के बटन अपार
लिये मोबाइल हाथ में
कैसे बनाएं वो चित्र ।
भीड़ मे खो कर रह गए ये चित्रकार।
रंगों का अर्थ अब जानो
हरा है प्रगति ,पीला आशा का संचार
नीला है विश्वास ,लाल रंग है प्यार
जीवन कैनवास के स्वयं बनाओ चित्र
बनो श्रेष्ठ चित्रकार ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
विषय : तस्वीर
दिनांक :11/01/2020
विधा : छंदमुक्त कविता
तस्वीर
दिल के किसी कोने में
मेरे हंसने ओर रोने में
उसका रहना जरूरी है ।
मिलन की आस में
दिल के कैनवास में
तस्वीर तो अधूरी है ।
ख्वाहिशें बेजान सी
खंडहर मकान सी
कह रही अभी दूरी है ।
रास्ते जुदा जुदा
मिले ना कोई खता
सजा मिली पूरी है ।
यादों में हर पल,
मन सँग करे छल,
अजब मजबूरी है ।
जुदाई घनघोर जैसे ,
नदिया के छोर जैसे ,
जुदाई बदस्तूरी है ।
कुछ भी ना कह पाए ,
दूर भी ना राह पाए,
कैसी जी हज़ूरी है ।
मिलन की आस में,
दिल के कैनवास में,
तस्वीर तो अधूरी है ।
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब ।
दिनांक :11/01/2020
विधा : छंदमुक्त कविता
तस्वीर
दिल के किसी कोने में
मेरे हंसने ओर रोने में
उसका रहना जरूरी है ।
मिलन की आस में
दिल के कैनवास में
तस्वीर तो अधूरी है ।
ख्वाहिशें बेजान सी
खंडहर मकान सी
कह रही अभी दूरी है ।
रास्ते जुदा जुदा
मिले ना कोई खता
सजा मिली पूरी है ।
यादों में हर पल,
मन सँग करे छल,
अजब मजबूरी है ।
जुदाई घनघोर जैसे ,
नदिया के छोर जैसे ,
जुदाई बदस्तूरी है ।
कुछ भी ना कह पाए ,
दूर भी ना राह पाए,
कैसी जी हज़ूरी है ।
मिलन की आस में,
दिल के कैनवास में,
तस्वीर तो अधूरी है ।
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर , पंजाब ।
विषय-तस्वीर/चित्र
विधा-दोहे
दिनांक-11/1/2020
शनिवार
तस्वीर वक्त ,आइना,भरते हैं जज्बात।
इनमें यादें बस रहे,हैं पूर्व सौगात।।
दर्शाती आकर हमें,वह पूर्व की पीर।
यादें आती जब हमें,नैनों आता,नीर।।
इनमें हम जीवित रहें,कहती जीवन की बात
आज बताये भूत को,,लाती है मुस्कान।
खुशी और अवसाद का,देती ये इमकान।।
बेजान हुई जान है,आज यहाॅ साकार।
सुख,दुख भाव बता रही,और समय का भेद।
उम्र का अहसास हो,कभी जताती खेद।।
स्वरचित
डाॅ एन एल शर्मा जयपुर
विधा-दोहे
दिनांक-11/1/2020
शनिवार
तस्वीर वक्त ,आइना,भरते हैं जज्बात।
इनमें यादें बस रहे,हैं पूर्व सौगात।।
दर्शाती आकर हमें,वह पूर्व की पीर।
यादें आती जब हमें,नैनों आता,नीर।।
इनमें हम जीवित रहें,कहती जीवन की बात
आज बताये भूत को,,लाती है मुस्कान।
खुशी और अवसाद का,देती ये इमकान।।
बेजान हुई जान है,आज यहाॅ साकार।
सुख,दुख भाव बता रही,और समय का भेद।
उम्र का अहसास हो,कभी जताती खेद।।
स्वरचित
डाॅ एन एल शर्मा जयपुर
विषय -तस्वीर
विधा-गीत
जब खोये जलधि की वाहौं में नदी तो खोजने से भी ज्ञात न हो सकती।
सीने से भले ही इसे चिपटालो, किन्तु तस्वीर से बात न हो सकती।
झिलमिलायैंगे सितारे अम्बर में, और पूनम का चांद भी चमकेगा।
किन्तु जब तक रवि अस्त का वक्त न हो, तब तलक अंधेरी रात न हो सकती।
दादुर मोर और पपीहा बोले इन्द्र धनुष अरु नभ में दामिनि दमके,
चले पवन पछैंया अरु पुरवैया परन्तु घन बिन बरसात न हो सकती।
क्या माइने नैनौ के बिन आइने, जो खुद को खुद न कभी देख सकैं,
चाहे लाख छिपालो निज चहरे को,
परन्तु दर्पण से घात न हो सकती।
हो रहा क्षरण क्षण क्षण क्षण क्षणिक इस जिन्दगानी का ओ कवि महावीर,
लिख गिन गिन समय के चक्करों के चक्र
कि गत क्षण से मुलाकात न हो सकती।
कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)
विधा-गीत
जब खोये जलधि की वाहौं में नदी तो खोजने से भी ज्ञात न हो सकती।
सीने से भले ही इसे चिपटालो, किन्तु तस्वीर से बात न हो सकती।
झिलमिलायैंगे सितारे अम्बर में, और पूनम का चांद भी चमकेगा।
किन्तु जब तक रवि अस्त का वक्त न हो, तब तलक अंधेरी रात न हो सकती।
दादुर मोर और पपीहा बोले इन्द्र धनुष अरु नभ में दामिनि दमके,
चले पवन पछैंया अरु पुरवैया परन्तु घन बिन बरसात न हो सकती।
क्या माइने नैनौ के बिन आइने, जो खुद को खुद न कभी देख सकैं,
चाहे लाख छिपालो निज चहरे को,
परन्तु दर्पण से घात न हो सकती।
हो रहा क्षरण क्षण क्षण क्षण क्षणिक इस जिन्दगानी का ओ कवि महावीर,
लिख गिन गिन समय के चक्करों के चक्र
कि गत क्षण से मुलाकात न हो सकती।
कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)
जाते जाते पिला दे
प्रेम के अमृत रस
सङ्ग तेरे रहे
कुछ हसीन गमगीन पल
बहुत साथ निभाया
तूने मेरे सङ्ग सङ्ग
बस एक कहा करना
बीती रैन अंधियारे में
चुपके चुपके आना
धुंधली तस्वीरों की याद दिलाना
यादो की हथेली से
मुझको सहलाना
कुछ गुनगुनाना
यादो की सहेली
बन मुझसे लाड़ लड़ाना
स्वरचित
मीना तिवारी
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