Friday, November 29

"आस",29नवम्बर 2019

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें 
ब्लॉग संख्या :-580
आस
"""""""

प्रचण्ड सूर्य किरणों से
झुलसती धरा को
पुरवाईयों के आगमन में
मौसम बहार और सावन में
एक आस है मेह की
स्नेह बून्दों के नेह की...।

चिलचिलाती धूप में
स्वेदकणों से तरबतर
खेत में निराई करती माँ
और..
ओढ़नी के झुले में
पेड़ की शाखा से झूलते शिशु को
आस है ममता की देह की
थपकी और स्नेह की...।

दहलीज पर खड़ी विरहन
बन्दनवार की लटकन
बटेऊ की आस में खड़ी
राह निहारती आँसुओं की लड़ी
मन में आस लिए
ताक रही कदमों की आहट
जला रही अगन देह की...।

गोविन्द सिंह चौहान

विषय आस
विधा काव्य

29 नवम्बर 2019,शुक्रवार

ईश्वर से सब आस लगाओ
जिसने यह संसार सजाया।
पंचतत्व किये निर्माणित
सूर्य चन्द्र आलोक बनाया।

आस पराई कभी करो मत
स्वावलंबी तुम बन जाओ।
जीवन के सुंदर उपवन में
फूल खिलाओ भू महकाओ।

मात पिता और गुरु जन से
सदशिक्षा की आस लगाओ।
कर दो सपने पूरे उनके
पद सरोज शीश झुकाओ।

मातृभूमि नित आस लगाती
प्रिय रक्षक बन जाओ उसके।
जो जग प्रदूषण विस्फारित
सदा स्वच्छ बनाओ हँसके।

स्वर्ग बनाओ इस धरती को
जन आस लगाता तुमसे।
अहिंसा परमोधर्म जीवन
मित्र सभी बन जाएँ हमसे।

स्वरचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

दिनांक-29/11/2019
आज का शीर्षक- 💔आस💔
िधा-रचना
================
बसी रह गई प्यास हमारी ।
भली लगाई आस तुम्हारी ।।
तुम्हें देख प्रमुदित होता था ।
मन लेकिन धीरज खोता था ।।
किरण प्रेम की जग जाती थी।
उत्सुकता जी भरमाती थी ।।
इच्छा होती थी बलिहारी ।।१।।
बशीभूत गुण-गान किया था।
नयन मूँद सम्मान दिया था ।।
मिली रौशनी थी यादों की ।
सदा गूँजती आह्लादों की ।।
अभिलाषा उमड़ी अतिभारी ।।२।।
तुमको मैंने बहुत पुकारा ।
नहीं मिला नवनीत सहारा ।।
अब आगे क्या कर सकता हूँ।
मन क्लेशों से भर सकता हूँ ।।
मिलन वांछा रही कंवारी ।।३।।
====================
'अ़क्स' दौनेरिया


"भावों के मोती"
29/11/2019

आस
******
जब जब भीगती हूँ
तेरी यादों की फुहारों
मे
तब तब तन्हाई और
तन्हा हो जाती है
एक गुबार सा उठता है
कहीं मन में ।
यूँ यादों में तुमसे मिलना ,जैसे
अधूरे गीत को पूरा
करने के लिए
बिखरे लफ्ज़ों को
समेटने की नाकाम
कोशिश हो...,
तेरी यादों का समंदर आकर भिगो देता पूरा अंदर न......
जाने कहाँ तक ।
तेरे खयालों के रंग बिरंगे
फ़ूल थोड़े सूखे मुरझाए
से और गहरे रंग के हो
जाते हैं तुम्हरे मिलन की
आस का रंग लिये ।
समय की सीमा तोड़ती धड़कने तेज़ हो जाती हैं
लगता है कितने
करीब हो तुम....,
वो तुम्हारे प्रेम की
बारिश
वो तुम्हारा प्रेम बन्धन
अनसुलझी सी पहेली
जो इस तन्हाई में
मेरे सुनेपन से लबरेज़ मन की
मिट्टी को गीला
करती है।
मिलन होगा मेरा तुमसे जानती हूँ
इसी आस मे तुम्हें खोजती
हुई न जाने कहाँ कहाँ
निकल जाती हूं, गहरी
और गहरी मन के जंगल में
इस मन की गीली
मिट्टी में मेरे ईश्वर पाती हूँ तेरे कदमो के निशां ।
ये दिल की आस हो
जाती है और गहरी
एकदिन थमेगा हाथ
तू होकर मेहरबाँ
।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
शीर्षक-- आस
प्रथम प्रस्तुति


ताउम्र न तोड़ी दिल ने आस
उसी आस का है ये उजास ।।

दीदार की न थी ऐसी तंगी
दिल की रज़ा पहले बनूँ खास ।।

वो चाँद चाँद हम तारे न हों
गवारा न दिल को रहा उदास ।।

मुहब्बत की निशानी न आसां
नही बना एक दिन में ताज ।।

प्यार में परवाज़ न वो प्यार न
हसरत जगी रही हुआ आगाज़ ।।

आस का दामन न तोड़ो 'शिवम'
कभी न कभी आती जिन्दगी रास ।।

मिलता कुछ तोहफा हो लगन
सच्ची होता नया आभास ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 29/11/2019

दिन :- शुक्रवार
दिनांक :- 29/11/2019

शीर्षक :- आस..
एक रचना जो मैनें शुरुआती दिनों में लिखी थी..

आगमन की आस

है आगमन की आस तेरे,
कब आओगी पास मेरे,
नैन तरसे दरश को तेरे,
कब आओगी पास मेरे,
चौका सूना बिन तेरे,
तके आगमन की राह तेरे,
घर मंदिर के कंगूरे,
पड़ोसी भी पूछ पूछ हारे,
क्या दूं उनको जवाब मेरे,
है आगमन की आस तेरे,
कब आओगी पास मेरे
घर आंगन सूना बिन तेरे,
बहुत रह लिए अब मां के डेरे,
आ आ जाओ अब पास मेरे,
है आगमन की आस तेरे,
थक चूका हूं कर घर काम तेरे,
अब तो रोम रोम तुझे पुकारे,
है अआगमन की आस तेरे,
आ जाओ अब पास मेरे,
सांझ ढले जब घर को जाऊं,
हर कोना मुझे चिढ़ाये,
हर पल तेरी याद सताये,
लेखन में फिर मन बहलायें,
लेखन में फिर इतने रम गये,
याद में तेरी हम कवि बन गये,
पर हर लेख अधूरे बिन तेरे,
अब तो दिन महीने बीत गये,
अब तो आ जाओ पास मेरे,
है आगमन की आस तेरे,

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश

दिनांक 29/11/2019
विषय:आस

विधा: तांका

आस की डोर
प्रातः काल वंदन
मन संकल्प
उम्मीद हाथ थामे
शिक्षा का रिक्शा
लक्ष्य को छूने
उत्साह परिपूर्ण
साक्षात्कार को
आशाओ की कतार
खिली प्रतिभा
चयनित होकर
गर्भित हूँ मैं
रचूगी इतिहास
आशा भरूगी
नव किशोरों को ले
ऊर्जा प्रवाह
फ़ौलाद नया रूप
विजयी आशीर्वाद ।

स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव

दिल मैं जब भी प्यार का ख़याल आता है
आपका ही नाम हमें बारबार याद आता है,

भूखे नंगे बच्चे घूमते कभी दिखाई न दिए
पथ्थर में राम-रहीम हमें रोज नज़र आता है,

सियासत में आते ही सब कसर पूरी कर दी
हरएक नेता जेब भरने को ही यहाँ आता है,

दर्द क्या बयाँ किया?! अपने भी पराये हो गए
मुस्कुरा दिए; सारा जहाँ साथ निभाने आता है,

कोई रूह को छू जाए; ऐसी "आस" में जिए ‘आरती’
हरकोई बदन को छूने की तमन्ना लिए आता है…

© आरती परीख

दिनांक👉२९/११/२०१९
दिवस👉शुक्रवार
िषय👉आस
क्या-गम, क्या खुशी आस जिंदगी की बसी है,
जिंदगी के दोनो गुजरते लम्हें है आस ही आस जिंदगी है,
इश्क ही पहुंचादे बुलंदियों पर आस खड़ी आस में,
इश्क ही तबाही का पहला कदम है ।

डूबता जो वही जिंदगी में आस की रौशनी लाता,
जब आस की वफ़ा दिल में घर कर ले जिद़ बन जाती है ,

जिंदगी में सभी मुसाफ़िर है,
फिर भी आस में जिंदगी है,
जिंदगी ही जिंदगी की हमसफर है
बहुत हों या अकेला यही कारवाॅ है
मस्ती भरे आस के वगेर कांरवें की कदर नही है

कांटे लपेट लिये बदन पर गुलाबें गुल बन गया,
बेवफ़ाई से करली दोस्ती आस में रिशालाये जिंदगी बन गया ।

आस में हमसफ़र जब संग हो तमन्ना गहरी हो जाती है
खुदगर्जों के लिए कश्ती बनजाय जो
जन्नत के पार वही जिंदगी होती है ।
गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक

दिनांक-29/11/2019
विषय-आस


कृष्णपक्षी चांद निकला गगन में।

सुनकर प्रणय संदेश मन मे........

झनक उठी झाँझर

तन- मन में।

मिलन की आस कसक उठी

मेरे अंतर्मन में ।

बूंद प्यासी स्वयं थी

तृप्त कर रही थी हुक को।

मादक मन मदमस्त था

प्राण प्रिय के विमुग्ध को।

एक क्षणभंगुर नितांत आया......

मंच पूरा बदल गया

पर्दा निःशब्द था।

वो निशा का स्वप्न मेरा

मौन स्तब्ध था।

फिर ना लौटा चांद निर्मम

निर्दयी प्रारब्ध था।

सत्य प्रकाश सिंह
प्रयाग राज

विषय -आस
दिनांक -१९-११-१९
जिंदगी लेगी करवट,गुमान ना कर।
करता है प्यार तुझसे,एतबार कर।।

आएगी बरसात,सावन इंतजार कर।
आस में गुजार पल,बेकरार ना कर।।

बेतुके झगड़े,तू ऐसे खत्म किया कर।
ना होगा कुछ हासिल,प्यार किया कर।।

एक दुआ,बुलंदियां पाई हजार मगर ।
उसके लिए तू,कोई गुनाह ना कर।।

आस विश्वास को,तू ना यूं तोड़ा कर ।
रह जाएगा तन्हा,आस में जिया कर।।

आस में जिंदगी,अपनो संग रंगीन कर।
होगा तेरा मिलन,थोड़ा विश्वास कर।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

विषय, आस .
शुक्रवार.

29,11,2019.

हम आस लगाए बैठे हैं कभी, इक दिन ऐसा तो आयेगा ,
बेटा दूर नहीं जायेगा घर से, यहीं रोजगार वह पायेगा।
जब भेदभाव नहीं होगा घर में माहौल सुखद हो जायेगा ,
बेटा और बेटी दोनों को, हरदम एक ही समझा जायेगा।
नहीं कुरीति जब दहेज की होगी, बहुओं को सताया नहीं जायेगा,
सम्बोधन मैका ससुराल नहीं, बस अपना घर कहलायेगा।
अन्याय नहीं कमजोर से होगा, न्याय सभी को मिल पायेगा,
भ्रष्टाचार जब भूमिगत होगा, पूजा ईमानदार को जायेगा।
भाषा जाति धर्म व प्रांत को लेकर, जहर न बोया जायेगा,
सिर्फ नाम भारत का होगा, बच्चा बच्चा गुण गायेगा।

स्वरचित, मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

आज के विषय पर प्रस्तुति

आशा

आशा जीवन सार है,सपनों का आधार।
भावी प्रतीक है यही,टिका हुआ संसार।।

आस और विश्वास ही,कर्म पथिक पहचान।
रहे संग हौसला नित,उर्जा मय इंसान।

बँधता आस निराश में,जीवन बीता जाय।
सुख दुख फेरे में मनुज,रोय कभी मुस्काय।

मात पिता की आस हैं,संतति हो आधार।
तोड़ो मत विश्वास को,कर सुखमय व्यौहार।

आशा राखो मन सदा,होना नही निराश।
काम कठिनभी सुलझते,यही रखो विश्वास।

सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
29-11-2019
29 /11 /2019
बिषय,, ,,आस,,

फसल से किसान से
धरती आसमान से
मुखिया से परिवार को
देहरी से द्वार को
जनता जनार्दन को देश से
नारी को परिवेश से
लगी रहती है आस
न बुझने बाली प्यास
एक दूसरे पर दृढ़ विश्वास
न कोई करे किसी को हतास
परस्पर निर्भर हैं बनकर सहारा
हाथों में हाथ मिलेगा किनारा
इसी तरह कट जाएगा जीवन का सफर
मंजिल दूर नहीं जब मजबूत हो हमसफर
स्वरचित,, सुषमा ,,ब्यौहार
29/11/2019
आस


यह आस अहर्निश जीने की
कदमों को गतिमान करे
इक साँस धड़कती सीने में
मूरत को मतिमान करे

पलक पुलक पथ ताके पलपल
जीवन का संचार करे
मन-मगन मिलन की आस लिए
प्रस्तर-मग पदचार करे

जो खग उड़ने की आस लिए
आतुर हो पदचाप करे
क्यों बैठ अहेरी निज मन में
पिंजरें का प्रलाप करे

टूटी आस तो साँस न जुटी
पिंजरा तो बहाना है
लाख जतन कर ले तू साधो
उलट आस उड़ जाना है
-©नवल किशोर सिंह
29-11-2019
स्वरचित

शीर्षक- आस
छंद मुक्त

बस मिलन घड़ी की आस रही
जीवन बगिया चिर सुहास रही।

संध्या और दिवस का अंतर था
निश्चल प्राणों में तिर श्वास रही।

जीवन वन आस महकाती थी
भोर की किरण भी उजास रही।

मिलन में विछोह है छिपा हुआ
फिर भी मिलन की आस रही।।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
दिनांक 29/11/19
विषय आस

छन्द मुक्त

छोड़ कर चला गया
किसी ढलती शाम
किसी प्रेयसी के पास
फिर भी रखती वो आस
भरती सिंदूर की रेखा
हर ढलती शाम
गर्व से करती टीका धारण
भरती चूड़ियों से कलाई
पहनती घुघरू वाले पायल
सहती बिछुवे की चुभन
नही देती अधिकार किसी को
यही है आस औऱ समर्पण
जुनून इंतजार का
उन्मुक्त भरा आसरा
एक सिंदूर की आस

स्वरचित
मीना तिवारी

29/11/19
आस

छंदमुक्त
**

क्यों पिघल रहा विश्वास
क्यों धूमिल हो रही आस
कैसा फैला ये तमस
चहुँ और त्रास ही त्रास ।

कोने में सिसक रही कातरता से
मानवता जकड़ी गयी दानवता से
राह दुर्गम ,कंटको से है रुकावट
जन जन शिथिल हो गया थकावट से।

संघर्ष कर तू आत्मबल से
जिजीविषा को रख प्रबल
भोर की तू आस रख
सत्य मार्ग पर हो अटल ।

आंधियों मे भी जलता रहे
दीप आस की जलाए जा
मन का तमस दूर कर
उजियारा तू फैलाए जा ।

स्वरचित
अनिता सुधीर

29/11/2019::शुक्रवार
विषय--आस

विधा--गीत

212 212 212 212
मैं समर्पित रही अर्चना के लिये
नैन मूंदें रही साधना के लिये

खार मुझको मिले पुष्प जब भी चुने
टूट जाते सभी वो सपन जो बुने
आस मन में लिए,मैं तड़पती रही
दग्ध ज्वाला सी पलपल मैं तपती रही
कब जली हूँ बता वेदना के लिए
नैन मूँदे रही साधना के लिए....

तू बने साँवरा, राधिका मैं बनूँ
पूज तुझको सदा,साधिका मैं बनूँ
तू समंदर बने मैं रहूँ सीप बन
तेरी पूजा का जलता हुआ दीप बन
मैं पुकारा करूँ वन्दना के लिए
नैन मूँदे रही साधना के लिए...

इक झलक तुम दिखा कर गए मोहना
प्रेम वीणा बजा कर गए मोहना
पा के दर्शन तेरा खिल गई हिय कली
अब तो गुलज़ार है प्रेम की ये गली
दिल खिला अब नई चेतना के लिए
नैन मूँदे रही साधना के लिए
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली

29/11/2019
"आस"

1
कर्मों को बोता..
भारतीय किसान
बारिश आस
2
जीत ले जंग
विफलता न डर
बढ़ा कदम
3
आशा किरण
निराशा से लड़के..
हासिल जीत
4
जीने की आस..
आखिरी साँस तक
नाचती रही
5
आशा किरण
मरते दम तक..
साथ न छोड़ी
6
आस के फूल
निराशा को चीरके..
मन में खिला

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

शीर्षक-- आस
द्वितीय प्रस्तुति


आस की एक किरण जगी है
लगन लगी थी लगन लगी है ।।

मिलने को मिल गया बहुत कुछ
रब की सुन्दर मिली गली है ।।

कुछ खोया तो कुछ पाया है
रीत जगत की आज फली है ।।

मुहब्बतों में क्या नहि संभव
मुहब्बतों की बात चली है ।।

आँसू थे जिस दामन में अब
काव्य कुंज की मधुर कली है ।।

रही लगन जो सच्ची जिसकी
सौगात चाह से बड़ी मिली है ।।

'शिवम' सफलता की कलिका ये
इक दिन में कब कहाँ खिली है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 29/11/2019

🌹💐भावों के मोती 💐🌹

छंद:
-चौपाई
विषय:-आस

आस जगाए पास नहीं आये ।
श्याम देख मोहे मुस्काये ।
जब बाँसुरिया अधर सुनाये।
मनवा उसको पास बुलाये ।

अँखियाँ मीचे साँसें भीचे ,
दौड़ी आँऊ उसके पीछे ।
चितवन से उपवन भी रीझे
देख छटा मनवा भी भीजे ।

स्वरचित
नीलम शर्मा # नीलू
बिषय- आस
कभी भी किसी हाल में भी

ना छोड़ना तुम, साथ आस का।
जब सब साथ छोड़ जाते हैैं,
दोस्त, प्यार, परिवार, रिश्ते।
तब इसके सहारे ही तो हम
हर ग़म को हंसकर सह जाते हैं।
एक दिन सब कुछ ठीक होगा
खुद को ये दिलासा दे पाते हैं।
अगर इससे भी छुड़ा लेंगें दामन
कर लेंगे किनारा अहम के चलते
तो जीने की कोई चाहत
कोई मकसद न रह जाएगा।
सांसैं तो चलेगी मगर
तन बेजान हो जाएगा।
मन‌ पाषाण हो जाएगा।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

29-11-19शुक्रवार
विषय-आस

विधा-कविता
💐💐💐💐💐💐
आस व निराश
सुख व दुःख
सवाल व जवाब
सत्य व झूठ
दिन व रात
अँधेरा व उजास
हर्ष व विषाद
ईमानदारी व बेईमानी
सकारात्मक व नकारात्मक
जिंदगी इन सबका सम्मिश्रण है
दोनों ही पहलू अजर-अमर हैं
अतएव यही कह सकता हूँ मैं
ओ!जिंदगी,चिरंजीवी भवः
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
विषय-आस
दिनांकः 29/11/2019

शुक्रवार
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:

वही सफल होता सदा,जो सदा जागरूक रहता ।
उसकी आस न कभी फले,जो सोता ही रहता ।।
जब पाप की बेल लगाई,फिर आस भले की करता क्या ।
जैसा जिसने बोया है,वेसा ही पाकर रहता ।।

कृषक बीज बोता खेत में,करता फ़सल पर विश्वास ।
है इंतजार बरसात का,सदा लगाये आस।।
इंसान लम्बी उम्र को,आस लगाये रहता है ।
खुश और तंदुरुस्त रहूँ,हो जब तक अंतिम श्वाॅस।।

जब तक आस दीप जले,इंसान करें प्रयास ।
पूरी लगन से काम करें,नहीं कोई कयास ।।
मंजिल वही पाता यहाँ ,सदा जागरूक जो रहें ।
जो सोता है वक़्त पर,उसकी फले न आस।।

कभी सारी आस नहीं फले,कभी पाकर इंसान खोता कुछ ।
कभी कभी यह आस फले,कभी खोकर ही पाता है कुछ ।।
बहुत ज्यादा आस न कर,सब कुछ मिलता नहीं कभी ।
कर्म संग ईश्वर कृपा हो,वही पाता है यहाँ सब कुछ ।।

कभी मिला न किस्मत से ज्यादा,न वक़्त से पहले मिला है ।
जो भी अधिक समर्थ है,उसको ही अधिक मिला है ।।
कोई निष्ठा न लगन हो,काम करें बुझे मन से ।
होता वहीं सफल नहीं,हो उसका यही सिला है ।।

स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर' निर्भय,
दिनांक-२९/११/२०१९
शीर्षक_"आस"


आस सबकी यही सदा
हरपल रहे खुशहाल
कर्म उत्तम करे सदा
पूरण होगी आस।

अनासक्त न हो जीवन से
करें पूजन अराध्य
सुख दुःख तो आनी जानी है
रहे ईश पर विश्वास।

धर्म कर्म में रत रहे
पूरण होगी आस
निंदा रस से दूर रहे तो
सुखी रहें संसार।

स्वरचित_आरती श्रीवास्तव।
विषय-आस
विधा-दोहा


उनके आने की सखी,जागी मन में आस ।
वो दिन आयेगा सखी, होंगे उनके पास ।।

मन में नई उमंग हो,जागे नई तरंग । जीवन फिर गतिमान हो, आशाओं के संग।।

आशा के तू संग जी,मत निराश तू होय।
होनी तो होकर रहे, तू काहे को रोय।।

अंधकार को छोड़ कर, उड़ प्रकाश की ओर।
आशा की डोरी पकड़, हो जीवन में भोर।।

जगती मन में आस है, अच्छे दिन अब आय
दुर्दिन मेरे दूर हों, संकट सब टल जाय

आस परिंदा उड़ चला, दूर गगन की ओर ।
सपने में वो आ गये , होते - होते भोर।। ।।

सरिता गर्ग


"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...