Sunday, November 17

"स्वतंत्र लेखन "17नवम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-568
विषय स्वतंत्र लेखन
विधा काव्य

17 नवम्बर 2019,रविवार

बड़ी वेदना होती मन में
कौआ मोती को खाता है।
श्वेत हंस दाना चुगता जब
खग दाना चुरा जाता है।

लोकतंत्र के देवालय में
बगुला भक्त भक्ति करते।
समय देख कर वे चुपके से
निज अपनी जेबें को भरते।

गीदड़ के संग शेर खेलते
झूँठ मुखोटा सदा पहनते।
रँगे सियार जब पकड़े जाते
हवालात की चक्की पीसते।

सत्यमेव जयते जो कहता
उसकी टांगे शेष खींचते।
राष्ट्र अखंड प्रगति पथ जावे
फिर भी श्वान तेज भौकते।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनांकः-17-112019
वारः-रवि वार

विधाः- छन्द हीन
मनपसंद विषय लेखन
विषयः- जोड़ा दो हंसों का नहीं तोड़ना

चली गयी तुम छोड़ हमें, सदा को रूठ।
गये तभी से हम भी बुरी तरह से टूट।।

हमने संसार का समस्त जंजाल छोड़ा।
लाभ हानि सबसे ही मुख अपना मोड़ा।।

रुपया पैसा सम्पत्ति से सारा नाता तोड़ा।
धोखा देने वाले सब अपनों को भी छोड़ा।।

टूटे नहीं भगवान,कभी दो हंसो का जोड़ा।
बनाया जो आपने,अपने हाथ से क्यों तोड़ा।।

ऐसा सितम प्रभु किसी और पर नहीं ढ़ाना।
याद में दूसरे की पड़ता है रोजं रोज मरना।।

खुली आँखो से देखते हैं, तुम्हारा सपना ।
रानी अगले जन्म में लेना हमको अपना।।

होगा पूरा तब हम दोनों का देखा सपना।
बना रहे जन्म जन्म तक भी साथ अपना।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
"व्थथित हृदय मुरादाबादी"
स्वरचित.

।। मर्ज़ बताया फ़र्ज़ ।।🌹

दर्द को बयां कर मिलता आराम है
र्द रातों में ज्यों फसता जुकाम है ।।

किसके लिए क्या है ये नही मालूम
मेरे लिए ज़ीस्त रही सदा घाम है ।।

दवा ही बन गयी है दर्द की कलम
वास्ते यही लिखूँ सुबहोशाम है ।।

नही लिखूँ जिस रोज रहती है घुटन
दवा भी ये मुफ्त सी लगे न दाम है ।।

क्या क्या बताना है कितना छुपाना है
हो गयी महारथ रोज का काम है ।।

नुस्खे बताना नुस्खे आजमाना
दादा थे बैध ये उनको प्रणाम है ।।

पाकीज़गी का नही पक्का अहसास
फिर भी औरों को दूँ ये पयाम है ।।

नुस्खे ही नुस्खे किताब में मेरी
नुस्खों से 'शिवम' भरा हर कलाम है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 17/11/2019
17.11.2019
रविवार

विषय मुक्त सृजन
विषय -स्वपसंद
विधा - गीत

अपना परिचय
गीत में

सबको मेरा नमन,सबको मेरा नमन
मैं हूँ भक्ति की लय,मैं हूँ शक्ति सृजन।।

मैं धरा,अम्बिका,पार्वती,गौरा हूँ
उर में ही कर रही,नित मैं नूतन सृजन।।

माँ की ममता लुटा,एक आकार में
मुक्त बिखरा रही,ऊँचे-ऊँचे गगन।।

रक्त,पय, स्वेद,दे कर मैं हूँ पालती
पोसती हूँ सदा, सबका भावुक सा मन।।

स्वप्न स्वर्णिम लिए,ऊँचे आकाश पर
मेरे पंखों पे चल,उड़ रहा बाल मन।।

देशभक्ति करे,मातृ शक्ति बने
कर रही ऊर्जा का,सफल संचयन।।

आस्था और विश्वास, पनपा रही
अंधविश्वास से, दूर ही हों नयन।।

नाम ‘ दुर्गा ‘ मिला,मैं ‘उदार ‘ बन गई
मुश्किलें,आँधियाँ,मुझको करतीं नमन ।।

स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘

17-11-2019
नैतिकता

नैतिकता एक पंछी-
जो पिंजरे में जकड़ा था
वह बापू ने पकड़ा था
अब बापू नहीं रहे
विवश पंछी
विवशता किससे कहे
भौतिकता का मोल किया
मैंने पिंजरा खोल दिया
पंछी उड़ गया
मुझसे दूर गया
अब वो आजाद है
हाँ, मुझे याद है
कि, मैं भी
गुलाम बाप का आज़ाद बेटा हूँ
क्योंकि वो गुलामी में आये
और आज़ादी के लिए शूली चढ़े
मैं आज़ादी में पैदा हुआ
और आज़ादी से मेरे पग बढ़े
मुझे आज़ादी है
बोलने की, डोलने की,
रोकने की, टोकने की,
चौंकने की, भौंकने की,
शहीदों को कोसने की,
मैं कायल अपनी आदतों से
मुझे क्या उन शहादतों से
जो शूली चढ़े, मैंने तो देखा नही?
सत्ता-सुख संभव हो,
बाकी कोई लेखा नहीं
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
नमन मंच-भावों के मोती
दिनांक-17.11.2019
मात्राभार-221 2122 221 2122

अर्कान-मफ़ऊलु फ़ाइलातुन मफ़ऊलु फ़ाइलातुन
क़ाफ़िया-आओ स्वर
रदीफ़- ग़ैर मुरद्दफ़
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बेचारगी में मुझसे जो कुछ हुआ भुलाओ ।
आँखों से अश्क़ जारी तुम रब का ख़ौफ़ खाओ।।
********************************
जो चढ़ गई है गर्दूं बेकार में गर्द क्यूँ ,
ज़ेबा तुम्हें यही है बरसात कर गिराओ ।।
********************************
फ़ैजाने आशिक़ी है करते मुख़ालिफ़त क्यूँ,
मैं तुमको आजमाऊँ तुम मुझको आजमाओ ।।
*********************************
जीने की है तमन्ना तेरी मुराद लेकर ,
जो दर पै बैठ जाऊँ तेरे न फिर उठाओ ।।
********************************
दिल चाक-चाक मेरा होने लगा सुनो जी ,
टुक बैठ कर बराबर क़िस्सा-ए-ग़म सुनाओ ।।
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'अ़क्स ' दौनेरिया
मनपसंद विषय लेखन
हाय हाय ये जाड़ा

नमन मंच भावों के मोती समूह।गुरूजनों, मित्रों।

दर्दभरी दास्तां किसे सुनाऊं।
........खाने के लिए हैं सारे झमेले,
कैसे मैं बताऊं।

जाड़े में मुझसे कोई काम नहीं होता।
......... पर करते हैं मजबूरन,
क्यूंकि यूंहीं कुछ खाने को नहीं मिलता।

गाजर घिसते घिसते समय है निकल जाता।
.........तब कहीं जाकर,
हलवा है मिल पाता।

मटर छिलने में 12बज जाते।
..........लंच तैयार होने में,
3बज जाते।

दिन भर इसी झमेले में व्यस्त रह जाते।
........... कविता लिखने को,
समय नहीं मिल पाता।

आलू परांठे की तो बात हीं मत पूछो।
........... पहले उबालो आलू,
फिर परांठे बनाने में घण्टों लग जाता।

किससे करें शिकायत, जाड़े ने हालत कर दी खस्ती।
............ लगता है ये मिटाकर हीं दम लेगा,
शायद मेरी हस्ती।

....... वीणा झा.......
..... बोकारो स्टील सिटी.....
........ स्वरचित.......

स्वतंत्र लेखन
विधा - लघुकथा


हसीन पल

"सुनो जी, आगरा का पेटा ले लो आपको अच्छा लगता है ।"
पत्नी ने पति से कहा । लेकिन उसने मना
कर दिया । तभी गरमागरम समोसा लिए , एक बेचने वाला खिडकी के पास आया तब पति ने पत्नी से कहा :
" समोसा खा ले , ले लूँ दो ठो "
लेकिन अब पत्नी ने मना कर दिया ।
मैं दिल्ली से भोपाल आ रहा था । मेरी सीट के सामने ये वृद्ध दम्पत्ति बैठे थे और मैंने महसूस किया पूरे रास्ते पत्नी, पति से मीठा खाने का कहती और पति मना कर देता फिर पति , पत्नी को मिर्च मसाले की चीज खाने को कहता और वह मना कर देती ।
इसके बाद पत्नी ने सब्जी रोटी निकाली और दोनों ने साथ साथ खाई ।
फिर उनमें जब स्टेशन पर कोई कुछ बेचने आता तब मीठा - नमकीन खाने , न खाने के लिए बहस
होती रही ।
इस बीच उस दाम्पत्ति में से पति सीट से उठ कर बाहर गया तब मैंने अपनी उत्सुकता जाहिर करते हुए कहा :
" माता जी आप अपने पति को मीठी चीज खाने के लिए क्यो बार बार कहती है , जबकि वह मना कर देते है । तब उन्होंने कहा :
" बेटा बूढ़ा और बच्चा एक सा होते है , इनको शुगर की बीमारी है , पहले जब मैं मीठा खाने के लिए मना करती थी तब यह खाने के लिए ज़िद करते थे और खाने के बाद बीमार पड़ जाते थे । अब मैंने उल्टा रास्ता अपनाया, अब मैं मीठा खाने को कहती हूँ तो ये खुद मना कर देते हैं ।"
इसके बाद थोडी देर बाद जब पत्नी उठ कर गयी तब मैंने पति से भी यही बात पूछी तब उन्होंने कहा :
" बेटा इसे हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्राल है पहले जब मैं नमक मिर्च तेल वाली चीजें खाने को मना करता था तब ये लडती थी , लेकिन अब कहता हूँ तो मना कर देती है और यही मैं चाहता था ।"
तब तक भोपाल आ गया और फिर सामान उठाने पर पत्नी कहती ज्यादा सामान मैं उठाऊंगी तो पति कहता मैं उठाऊंगा । इस तरह दोनों लड़ते झगड़ते प्लेटफार्म से बाहर आ गये ।

मैंने महसूस किया बुढापे मे लडाई एक दूसरे का , ध्यान रखने , आराम देने के लिए होती है , जिसमें स्वार्थ नहीं बस समर्पण होता है ।

शायद परमेश्वर ने बुढापा , जीवन के इन्हीं हसीन पल के लिए बनाया है ।

स्वलिखित लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल.

दिनांक - 17/11/2019
दिन - रविवार

विषय - स्वतंत्र

तेरी यादें

तेरी यादों पे कोई पहरा तो नहीं।
लेकिन ये जख्म कोई गहरा तो नहीं।
ठंडी हवा का झोंका तेरा पैगाम ले आया ,
रोने का मन था फिर भी मुझे हंसाया ,
तुम्हारे कमी का एहसास अभी पूरा तो नहीं,
फिर भी तेरी यादों पे कोई पहरा तो नहीं।
तुम मेरे साथ ही हो कहती हैं बहारें ,
जीती हूँ मैं तो बस तेरी यादों के सहारे ,
देखती हूँ मैं ख्वाब वो सुनहरा तो नहीं ,
फिर भी तेरी यादों पे कोई पहरा तो नहीं।
मेरे दामन में खुशियों के दो फूल खिलाते ,
दर्द गम को भूलकर मेरे होंट भी मुस्काते ,
शायद मेरे बिना तेरा जीवन अधूरा तो नहीं ,
फिर भी तेरी यादों पे कोई पहरा तो नहीं।
फिर भी तेरी यादों पे कोई पहरा तो नहीं।
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दीपमाला पाण्डेय
रायपुर छ ग
स्वरचित

17-11-19 -- रविवार
स्वतंत्र विषय लेखन

****************

मुक्तक
--------

सब कहते, जीव परिंदा है,
क्या जाने कब उड़ जाये,
छोटी छोटी बातों पर ये,
क्यों तड़पे क्यों घबराये,
आना जाना रीत जगत की,
क्यों मानव करता चिंता-
नहीं भरोसा दो पल का भी,
क्यों अगणित स्वप्न सजाये।।
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया

विषय - स्वतंत्र लेखन
दिनांक 17 -11- 2019

मन
ुष्य जन्म मिला,सार्थक कर।
कर्तव्य पथ पर,सदा आगे बढ।।

हो सके उतना,कर्तव्य निभा।
श्रवण रह,कंस कभी ना बन ।।

नींव पत्थर,मजबूती प्रदान कर।
संस्कारवान बन,फर्ज निभा।।

कर्तव्य मार्ग, विपत्ति विघ्न।
साहस धैर्य से,तू काम कर।।

बाधा हर, नया सृजन कर।
इरादे मजबूत रख,जीत जंग।।

देश हित,जीवन समर्पण कर।
कायर भांति,खामोश ना रह।।

निस्वार्थ रह,पर हित कार्य कर।
कर्तव्य पथ से,ना भटका कर।।

राह दिखा,मार्ग प्रशस्त कर।
कर्म पथ,सदा हो अग्रसर।।

आदर्श श्रवण,जीवन सफल।
जग ना भूले,श्रेष्ठ कार्य कर।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
Damyanti Damyanti 
विधा पद्य |
कहन लागे कान्ह मैया से |

दाऊ मुझे चिढाते सब के आगे |
कहते मैया गोरी गोरी बाबा गोरे |
तू काला कान्ह मैया नही जायो |
एक दिन कोई आया मैया के द्वारे |
उससे लिया मैया ने मोल रोया बहुत मै |
मैया सांची सांची मोहे बतलादे |
बोली माँ सुन लाल की बाते हंसी|
न रे लल्ला दाऊ झूठो तोहे सतावे |
तूतो पूत मेरो जायो मत भ्रम पड |
आने दे दाऊ को ले बेलन मारुगी |
फिर न कभी सतायेगा तुझको |
सुन रोहणी बोली ऐसा है कान्ह
ला पकड दाऊ को तेरे आगे बाधूगी |
भोली बाते सुन मैया दोनो बली बली जाये |
या सुख को तीन लोक तरसे
सो सुख नारायण ने दिया मैया को |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा |
सर्वाधिक सुरक्षित रचना |

नमन भावों के मोती मंच
विषय-विषय मुक्त सृजन
विधा-मुक्तक

दिनांकः 17/11/2019
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:

(1)
करूँ वतन की रक्षा मै,
चाहे हो जाऊँ कुर्बान।
मातृभूमि की खातिर ही,
मै दे दूंगाअपनी जान।।

मैं जन सेवा करता हूँ,
चाहता हिंदी भाषा ।
यही देश का गौरव है,
यही हमारी अभिलाषा ।।

स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर 'निर्भय,

17/11/2019
बिषय,, स्वतंत्र लेखन

कमजोर होती नजर धीरे धीरे
ढलती जाती उमर धीरे धीरे
हुआ अनजाना शहर धीरे धीरे
अपने ही ढाने लगे कहर धीरे धीरे
वक्त दिखाता असर धीरे धीरे
जाने कैसे होगी गुजर धीरे धीरे
व्यंग्य वाणों का चढ़ा जहर धीरे धीरे
पीछे छूटता जाता पहर धीरे धीरे
ढलने लगी दोपहर धीरे धीरे
काली रात रही है उतर धीरे धीरे
गमों की आदत पड़ गई इधर धीरे धीरे
वो और सताते उधर धीरे धीरे
ए आइना न अब तू संवर धीरे धीरे
चेहरों से बहने लगी नहर धीरे धीरे
स्वरचित ,सुषमा ब्यौहार

17-11-2019
स्वतंत्र लेखन


आधार छंद गीतिका
सीमांत-आया
पदांत-आपने
युग्म लेखन
*********
2122,2122,2122 ,212
प्रेम का दीपक जलाकर,फिर बुझाया आपने /
चल दिए तुम छोड़ मोहन,क्यों रुलाया आपने /
÷
कुंज की गलियाँ सिसकतीं,याद कर कान्हा तुम्हे ,
प्रीति की बंशी बजाकर,,,,,, दिल चुराया आपने //
÷
याद है ?तुमने नचाया,,,,,,,, गोपियों को रास में,
प्रीत बंधन में बंधाकर,,,,,,,फिर छुड़ाया आपने //
÷
सांवले घन,श्याम तुम तो,,,,,,प्रेम के अवतार हो,
किन्तु अपनी विरहणी को,क्यों सताया आपने //
÷
प्रेम तो जलती किरन है जो कभी बुझती नहीं,
फिर हृदय की कामना को,क्यों जगाया आपने //
÷
यूँ नहीं बजती रही है,,, प्रेम- "वीणा" श्याम की,
पावनी सी,,,,,,,,,, नेह की गंगा बहाया आपने //
÷
तन तुम्हारा मन तुम्हारा,कुछ नहीं वश में रहा,
राधिका तेरी कहे,,,,,,, सबको रिझाया आपने //
÷
***************************
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार

17/11/19

नादानी
छंदमुक्त
***

नादानी में यूं जिंदगी दांव पर लगा रहे
क्यों इन हुक्मरानों के झांसे में आ रहे

कहीं अनशन कहीं पत्थर कहीं गोली है
एक मोहरा बन खेलते खून की होली है।

कभी ये सोचा है हाथ तेरे क्या आयेगा
इस भरी दुनिया मे तू अकेला रह जायेगा

एक दिन गुमनाम गलियों में गुम जायेगा
तेरा कोई नामोंनिशान यहाँ ना रह पायेगा।

जो किया भूल जाओ, देर नही हुई है
सुधर जाओ अभी जीने के रास्ते कई हैं

शिक्षालयों में संस्कृति की नींव तोड़ा नहीं करते
सुबह का भूला घर लौटे,उसे भूला नहीं कहते

हौसले को उड़ान दे नया सफर शुरू करो
मेहनत लगन से अपनी नई मंजिल तय करो ।

अनिता सुधीर

विषय मुक्त सृजन
17,11, 2019,


रिश्ता -

रिश्ता स्याही कलम का होता गहरा है ,
मिल के कल्पनाओं को कागज पे उकेरा है।
दिल और भावनाओं का रिश्ता रहता है,
मन का चंचल पंछी जहाँ करे बसेरा है।
कहानी गीत कविता का गजल का जहाँ मेला है,
शीतलता सुकून को मन ने वहीं तो पाया है ।
सहारा कलम का जब जब शब्दों ने पाया है ,
समाजिक बिषमताओं को खूब ही लताड़ा है।
बस रही लेखन में साहित्यकार की आत्मा है,
दिल की आवाज को चाहता बुलंद करना है ।
देख पाता नहीं दर्द किसी का कलमकार है,
एक लेखक की यही तो होतीं निशानियाँ हैं ।

स्वरचित, मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

17/11/2019
"स्वतंत्र लेखन"

छंदमुक्त
################
नन्हे-मुन्ने मासूम प्यारे-प्यारे
कोमल मन औ निश्छल प्रेम

मासूमियत झलके चेहरे से
जैसे सितारे उतरे हो जमीं पे।

कंधे पे बस्ता लेकर मासूम वो
ज्ञान अर्जन को बाहर जायेंगें।

नन्हे-नन्हें पाँव उनके ........
पथरीली राहों पे लड़खड़ाएँगे

आते-जाते जग की राहों में...
कठिनाईयों संग भी टकरायेंगें

भाँति-भाति के लोग मिलेंगे.
दुनिया की रीत सीख आयेंगे।

भले-बुरे सारे कर्मों को......
अपनी नजरों से देख आयेंगे

उल-जूलूल कितनी घटनाएँ..
बालमन में भरके घर आयेंगे।

चार किताबें पढ़ते-पढ़ते...
वो भी हम जैसे हो जायेंगे।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

दिनाँक-17/11/2019
शीर्षक - बिंब , अक्स

स्वतन्त्र लेखन
🎍🎍🎍🎍🎍
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देखो कैसी विडंबना है
दौड़ धूप की जिंदगी में
चला कुल्हाड़ी पेड़ों पर
छाया की बाट जोहता है
बोखला कर दरिंदगी में
मानव जीवन खोता है।
🎄🎄🎄🎄🎄
नित दिन कर आगजनी
प्रदूषण खूब बढ़ाता है
यूँ बनने को समझदार
कृत्रिम वर्षा करवाता है
काट असंख्य पेड़ों को
छाया गहरी चाहता है।
🌹🌹🌹🌹🌹
पर्यावरण पर भाषण लंबे
विश्व स्तर पर पढ़ता है
फिर होता ये आखिर क्यों
तापमान शिखर चढ़ता है
देखो आज आसमान क्यों
प्रतिबिंब कलुषित छाया है।
🥀🥀🥀🥀🥀🥀
स्वार्थ भरे इन गलियारों में
हित छुप कर रह जाते हैं
राजनीति के चक्कर में आज
ये कानून कायदे बह जाते हैं
झूठे बड़प्पन के प्रतिबिम्ब में
वायदे अधूरे ही रह जाते हैं ।
🌺🌺🌺🌺🌺🌺
कर नए अविष्कार विज्ञान के
हम विकास की गाथा गाते हैं
पवित्र कर्त्तव्य निभाने को
हम लीक से पीछे हट जाते हैं
स्वर्णिम नाम लिखवाने को
प्रतिबिंब गजब छपवाते हैं।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻
हे मानव !
सद कर्म की कर ले पहचान
तभी बढेगा जग में तेरा नाम
पर्यावरण को स्वच्छ कर लें
होगा तभी स्वच्छ आसमान
सघन वन स्वच्छ तन मन
तभी खिलेगा सृष्टि उपवन।
रंग तो कुतरत ने दिये अनेक
चुनकर बनायें प्रतिबिंब नेक।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
********************
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया

भावों के मोती
विषय-- स्वतंत्र लेखन

🌸🌸
मीत बना कर भूल न जाना,
ऐ साजन परदेशी।
साथ कहीं तुम ले मत आना,
यहाँ सौतन विदेशी।

बहार का मौसम बीत रहा,
बीत रही ऋत सावन।
कजरी गीतों की धूम मची,
सूना मेरा आँगन।
तुम बिन सूना लागे पनघट,
सूनी गाँव की गली।
मीत बना कर भूल न जाना,
ऐ साजन परदेशी।

हँसना गाना भूल गई हूँ ,
भूली हर एक रीत।
कार्तिक के पावन अवसर पर,
भूली जलाना दीप।
चुभन भरी है शीतल बयार,
बीते रैना ऐसी।
मीत बना कर भूल न जाना,
ऐ साजन परदेशी।

बरस रहे आँखों से आँसू,
सूनी राह निहारे।
दिन बीत एक साल हो गई,
दिलोजान सब वारे।
थक-हारकर तड़पे विरह में,
यह नाराजी कैसी।
मीत बना कर भूल न जाना,
ऐ साजन परदेशी।

***अनुराधा चौहान*** स्वरचित 

स्वतंत्र विषय

"लला श्रीराम की मुक्ति"

बनाओ भव्य मंदिर तुम, दिवाली फिर से आई है।
लला श्रीराम की मुक्ति, शहादत दे के पाई है।।

अयोध्या हो रही जगमग ,खुशी चहुं ओर छाई है।
पका मिष्ठान घर-घर में,बधाई सबने गाई है।।

जले हर घर में दीपक हैं,खुशी हर दिल में छाई है।
इमाम-ए-हिन्द के चेहरे पर ,रौनक फिर से आई है।।

अवध में मुद्दतों के बाद ,यह खुशहाली आई है।
मिटा के सब विवादों को, न्याय की खुशबू छाई है।।

मिटा है तम अवधपुर से ,प्रगति की किरणें बिखरी हैं।
इस कलयुग में भी सतयुग की सुहानी शाम आई है।।

सरयु तट की रौनक भी, यही पैगाम लाई है।
अवधपुर की फिजां में ,फिर से बहारे शाम आई है।।

करो श्रमदान इस ढंग से, मिटे सब बैर कौमों का।
रहे प्रभु राम की गरिमा , मिटे हर भाव गैरों का।।

रखो बस ध्यान तुम इतना, झलक हट के दिखे इसकी।
निहारें विश्वकर्मा भी ,भव्यता ऐसी हो इसकी।।

बनाओ भव्य मंदिर तुम, दिवली फिर से आई है।
लला श्रीराम की मुक्ति ,शहादत दे के पाई है।।
(अशोक राय वत्स)© स्वरचित
रैनी, मऊ उत्तरप्रदेश

विषय : स्वतंत्र
दिनांक: 17नवम्बर,2019


🙏गुरू वन्दना🙏

गुरु तुम महान हो,
अमृत गुण की खान हो।
ब्रह्मा तुम विष्णु तुम,
गुरु महेश्वर समान हो।
ज्ञानी तुम त्यागी तुम,
हृदय विशाल हो।
भाग्य तुम भविष्य तुम,
भूत वर्तमान हो।
भक्ति तुम शक्ति तुम,
तुम प्रभु समान हो।
तेज तुम शीतल तुम,
तुम प्रकाशवान हो।
धीर तुम वीर तुम,
तुम शीलवान हो।
चरित्र तुम पवित्र तुम,
सरस्वती की शान हो।
'रिखब'करे नमन तुम्हें,
तुम स्वर्ग से महान हो।

स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित®
रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
जयपुर राजस्थान

शीर्षक- मनपसंद बिषय लेखन
दर्द को कैसे दफनाया जाता है मुस्कान तले,

इस जमाने को हम आज करके दिखला देंगे।
मालुम है हमें कि हम हरगिज़ खतावार नहीं
मगर तेरी तसल्ली की खातिर,खुद को सज़ा देंगे।
जानते हैं,हम कितना ही पुकारें तु न आएगा कभी
मगर हम तेरे ही इंतज़ार में ये जिंदगी गुजार देंगे।
तेरे दर्द को आखिर कब तक सीने में दबाए रखेंगे
एक रोज अल्फाजों में सारा गुबार निकाल देंगे।
कभी गीत, कभी गजल की शक्ल में लिख कर
प्यार का असली मतलब इस जहां को समझा देंगे।
स्वरचीत- निलम अग्रवाला, खड़कपुर

17/11/2019
विषय स्वेच्छिक

विधा गीत (प्रत्येक पंक्ति २३ मात्राएं )

नज़र ये जब मिलाई , बदनामी हो गई ,
नज़र भी अब तुम्हारी , दीवानी हो गई।
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मिले वो जब हमें थे , दीवाना कर गए ,
नज़र की उस अदा पे , हम भी तो मर गए।
ज़माने की नज़र में , हम आशिक हो गए ,
मिले वो भीड़ में थे , नज़रों से खो गए।
****************************
कहानी क्या बताएं , नादानी हो गई ,
नज़र भी अब तुम्हारी , दीवानी हो गई।
****************************
कली वो ज्यों खिली हो , फूलों के बीच में ,
नज़र थी वो मिलाती , शूलों के बीच में।
बनी है प्यार में अब , दुनिया दीवार ये ,
भुला कर याद आता , है तेरा प्यार ये।
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हवा भी देखो अब तो , सुहानी हो गई ,
नज़र भी अब तुम्हारी दीवानी हो गई।
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स्वरचित
संदीप कुमार विश्नोई
दुतारांवाली अबोहर पंजाब

विषय - स्वैच्छिक
17/11/19

रविवार

अगर हम आज को देखें तो कल अपना सुहाना है,
करें यदि यत्न हम जी भर तो हर सपना सुहाना है।

बिना संघर्ष के जीवन में कुछ भी मिल नहीं पाता,
बढ़े पग लक्ष्य की खातिर तो फिर चलना सुहाना है।

कभी भी स्वार्थ से नर को नहीं संतोष मिलता है,
अगर परमार्थ हो दिल में तो कुछ करना सुहाना है।

सभी को प्रेम के धागे में बंधकर साथ रहना है,
चलें सब साथ तो जीवन सफर कितना सुहाना है।

हृदय में देशभक्ति का रहे जज़्बा जवानों में,
देशहित प्राण को त्यागे तो वह मरना सुहाना है।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

विषय - " स्वतंत्र लेखन '
..................

अनायास
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जब कभी भी,,,
थोड़ा सा भी,,, कष्ट होता है,,
मुँह से निकल,, ही जाता है,
### माँ ###
संसार मेँ सार्थक ,,,साकार
शब्द,,,,," माँ ' ही तो है,,,
निःस्वार्थ प्रेम,,,,,त्याग
करुणा, स्नेह की साक्षात,,
प्रतिमूर्ति ,,,,कितनी ही दूरी
क्यों न हो,,,इहलोक से,,,
परलोक,,,,,,, तक,,,,,
आज मेरे पास,,, नहीं,,
नहीं नहीं ,,,,आज भी मेरे
पास ही कहीं रहती है,,,
लगता है ,,,जब भी उदास
हो जाता हूँ,,, सहारा देने
चली आती है,,,, उसकी
याद यूं ही आ जाती है,,
### माँ ###
यूं ही --"अनायास '
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स्वरचित ,,, " विमल '

17/11/2019 (रविवार )
( विवेक )
वह जानती है उसे
पहचानती भी है
उसने देखा है उसे
प्रत्य़क्ष अप्रत्य़क्ष ।
देखना अलग बात है
समझना बड़ी बात है
मुश्किल है उसके लिए
उसके मनोभाव पढ़ना
नही खोज पाती वह
उसके शब्दों के अर्थ ।
कोशिश करती रहती
भावभूमि टटोलने की
शायद वह उसे जान पाए
करती है चिंतन -मनन
किसी निष्कर्ष पर पहुँचेगी ।
तब दिल की अनदेखी कर
अंतर्आत्मा को सुनेगी ।
उसकी भावनाओं का
निश्चित रूप से सम्मान ।
हाँ,समय तो लगता है
किसी को समझने में
व्यक्तित्व को परखने में
माना वह बहुत संतोषी है
विवेक परम परपोषी है..,

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित

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