Friday, November 29

"सड़क/फुटपाथ",28नवम्बर 2019

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें 
ब्लॉग संख्या :-579
🌹भावों के मोती🌹
28/11/2019
"सड़क
/फुटपाथ"
***************
1
अकेला खड़ा
फुटपाथ पे खोजे
अपनापन।।
2
रत्नों को खाए
बदहाल सड़क
रोती ममता।।
3
लूट की नीति
अंधेरी सड़क पे
सियार बनी।।
4
प्रेमी सड़क
रूठे दिल मिलाए
चारों पहर।।
5
आतंकी डर
दिन में लगी रात
सुप्त सड़क।।
6
कच्ची सड़क
तपन से दरकी
टूटा ज्यों मन।।
7
बॉम्बे सड़क
दिन रात दौड़ती
रेल सी बनी।।

8
वसंत आया
सड़क मन भाया
फूलों का फर्श।।
9
काली सड़क
रँग रैली मनाते
आवारा जन।।
10
सन्नाटा खत्म
सड़क पे चीखती
निर्भया रानी।।

स्वरचित
वीणा शर्मा वशिष्ठ

दिनांक-28/11/2019
विषय-सड़क-फुटपाथ


सड़कों पर चला पंथी अकेला
लेकर संग रश्मियों का मेला।
सड़के मौन मगन है स्वयं में
निर्जन पथ है सुबह की बेला।।

सड़कें मौन मगन है स्वयं में

सजल चांदनी ,सजी है सड़कें।

अंधेरी रात में सड़कों पर सन्नाटा

नजर मेरी चँहुओर फड़के।।

सड़कें मौन मगन है.....आभा

सड़कों की सुषमा रंगीन

बिछा हुआ है जाल रश्मि का

चांदनी रात में लगती संगीन।।

सड़कों का आलिंगन मौन मगन है.............

सड़कें कभी-कभी राक्षसी सी भूख हो जाती है...?

जहां सड़कें राक्षसी भूख से

क्षण-क्षण है अकुलाती

प्रथम ग्रास में ही

जीवन ज्योति निगल जाती।

भून देती है रूप को

दैहिक आलिगंन से

छवि को प्रभाहीन बना देती

ताप तृप्ति के चुंबन से।

सड़कों की वाटिका को .......पतझर

मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज

विषय सड़क,फुटपाथ
विधा काव्य

28 नवम्बर 2019,गुरुवार

आवागमन अति जरूरी
जो सड़कें ही पूरा करती।
ये साधन होती मंजिल की
दुःखियों की चिंता हरती।

मिलन बिछोह ही जीवन
सड़क सदा घर पँहुचाती।
सैर सपाटे करें सदा हम
नयी खुशियां जीवन लाती।

दुपहिया चार पहिया पैदल
सब सड़कों पर होते निर्भर।
है सावधानी अति जरूरी
तब सुरक्षित पँहुचे घर पर।

जन्मे शिशु को घर पर लाते
मरे हुये मरघट को जाते।
जीवन सड़क प्रिय साधन
पिकनिक पर हँसते हैं गाते।

धनिक निर्धन भेद करे ना
तीर्थ यात्रा इस पर करते।
है फुटपाथ पैदल आलम्बन
रैन बसेरा रंक यंही पे बनते।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
लंबी लंबी,
छोटी बडी ।
सड़कें हमें,
सीखाती जीवन ।
सुबह से शाम तक ।
दौड़ते हम उस पर ।
पाने को मंजिल ।
भटकते कभी,
अनजाने मोड़ पर ।
फिर आते सही राह पर,
नई उम्मीद के साथ ।
रुकती हैं रफ्तार ,
सड़क की चढाई पर,
या अंधे मोड़ पर ।
जो देते संकेत,
थोडा रुकने का ।
एक बार जीवन को,
मुड़कर देखने का ।
करते हम विश्लेषन ,
अपने जीवन का,
क्या खोया, क्या पाया?
प्रश्न का उत्तर,
अधूरा पाकर ,
फिर दौड़ते ,
मंजिल की ओर ।
सड़क के गड्ढे,
बताते हमें,
चुनौतियां जीवन की ।
होते कुछ परेशान,
फिर करते पार,
अपनी कला से ।
सड़क का यह,
ना खत्म होने वाला सफर।
चलता संग हमारे,
अंतिम समय तक,
अंतिम समय तक

प्रदीप सहारे
सड़क/फुटपाथ

दुनियां है दो दिनों का मेला।
चलाचल पंक्षी अकेला।
धुन में चलते रहना सड़क पर।
मंजिल मिल जायेगी।
थक-हारकर बैठ नहीं जाना।
वरना जिन्दगी थम जायेगी।

जिन्दगी है एक सड़क।
चलता रहता प्राणी।
जितने रोड़े हों फूटपाथ में।
पर कभी रुकता नहीं है प्राणी।
जबतक मिले नहीं मंजिल उसको।
वो चलता रहता है।
चाहे जितने पांव थक जाये।
वो आगे बढ़ता रहता है।
मिल जाता है तब खुशियों का मेला।
चलाचल पंक्षी अकेला।
दुनियां है दो दिनों का मेला।
चलाचल पंक्षी अकेला।

वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित

प्रथम प्रस्तुति

देखना फुटपाथ पर कोई दम न तोड़े
बहुत ठंड पड़ रही कोइ अलाव जोड़े ।।

करदे दाता किसी की मति रूह काँप रही
देख ठंडी हवा अनहोनी भाँप रही ।।

वृद्ध भी हैं बेचारे क्या होगा उनका
पतले पैरहन में छुपा बदन जिनका ।।

कुछ प्रसूतायें भी हैं संग जिनके शिशु
खुले भी नही अभी जिनके ठीक से चक्षु ।।

कहाँ सहन कर पायेंगे बर्फीली हवा
पड़े गर बीमार वो नही होगी दवा ।।

काश जगे कुछ मानवता इंसान की
होंगीं उनकी भी इच्छा मकान की ।।

कुदरत ने तो सभी को दिया था 'शिवम'
पर बँटवारा न कर सके आपस में हम ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 28/11/2019

विषय - सड़क
दिनांक 28- 11- 2019
बहुत स्वार्थी है तू मानव,सब को क्षति पहुंचाई है।
तेरा ही हाथ है सबके पीछे,मान यही सच्चाई है।।

स्वार्थ में अन्धा हो,हकीकत तूने सदा बिसराई है।
सड़क पर होने वाली दुर्घटना,तेरे कारण आई है।।

तुने हीं लालच में पड़,सड़कें क्यूं ऐसी बनाई है ।
क्या करेगा ऐसे दौलत,पाप की यह कमाई है।।

आए दिन होती दुर्घटना,शर्म ना तुझको आई है।
अपने ही हाथों तूने,समाज में प्रतिष्ठा गवांई है।।

हेलमेट को बोझ मान,सड़क पर गाड़ी चलाई है।
सिर पर चोट से मृत्यु,अखबार में खबर आई है।।

मंजिल पर पहुंचाने वाली,बनी देखो दुखदाई है।
दोष नहीं सड़क का,विपदा तेरे कारण आई है।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

28/11/2019
"सड़क/फुटपाथ"

वर्ण पिरामिड
1
जो
जन्मा
अभागा
थका-हारा
गरीबी रोया
जीना औ मरना
फुटपाथ बिछौना।
2
है
जन्म
गरीब
फुटपाथ
सिर्फ दो हाथ
ईश्वर सौगात
कर्म ही जगन्नाथ।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।

आज का विषय👉सड़क
दिवस👉शुक्रवार
िनांक👉२८/११/२०१९
कविता 👉 सड़क
👉👉👉👉👉👉
मेरे शहर से यह सड़क जो दूर तक जाती है,
इसके फुटपाथ के सहारे बसे है कितने ही बार, मधुशाला यें ।
विखरी है दोनो ओर जहर की पीक,
फैलाते प्रदूषण का धुवाॅ कितने,
पॉलीथीन का प्रदूषण फैलाते,
छोटे-बड़े व्यवसायिक प्रतिष्ठान ,
मेरे शहर से यह सड़क जो दूर तक जाती है।
ढूँढ़ता रहता हूँ मैं. चलरही हंसी-खुशी की कितनी दुकान,
है कितने लोगौ के चेहरे पर मुस्कान,
हाँ पर खड़ी है गगन चुम्बी भवनो की शान ,
देखा मैंने रोज बदल रहा मेरा शहर,
मेरे शहर की यह सड़क जो दूर तक जाती है ।
देखरहा हूँ मैं फटेहाल "कोई"रोजगार को भटक रहा,
अमीरी की गुमान में कोई चलरहा,
सुबह-सवेरे हर कोई अपने काम पर लग रहा,
मेरे शहर की यह सड़क जो दूर तक जाती है ।
फुटपाथ पर चहल कदमी के संग मेरा शहर बदल रहा,
बदलते शहर के रंगौ के संग मायूसी-कौतूहल कही,
धन के अम्बार तो फांके की जिंदगी कही,
बढ़ते कदमो के संग कितने रंग बदल रहा मेरा शहर,
मेरे शहर की यह सड़क जो दूर तक जाती है।
मैं हूँ कि पालने से आज तक इस पर चलरहा हूँ,
रंग बदलती मेरी देह धारा से बदलती जिंदगी सा,
मेरा शहर रंग बदल रहा,
बदल रहे धर्म ज्ञान,इन्सानियत के धंधे,
बदलती राजशाही में भटक रही जन्ता की आवश्यकता को लिए,
मेरे शहर की यह सड़क जो दूर तक जाती,
है जिसके फुटपाथ के सहारे बसे कितने ही बार, मधुशाला की दुकानें
मेरे शहर की यह सड़क जो दूर तक जाती है ।।
गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक
स्वरचित मोलिक

सड़क

अंतहीन सड़कें
कहाँ आरंभ
कहाँ अंत
पता नहीँ
आड़ी तिरछी
ऊँची नीची
मुकाम तलक
पहुँचाती सड़कें
चौराहे गुमनाम
पगडंडी और
गलियाँ बदनाम

मिले थे किसी
सड़क किनारे हम
किसी दौराहे पर
एक तरफ तुम गये
एक तरफ हम
फासले बढते गये
हर मोड़ पर
मुड़ते गये
अंतहीन सड़क पर
चलते रहे
उदासीन
उपेक्षित
था यह
मौड आखिरी
दिख गये तुम
गले लग गये हम
मुकाम की
तलाश में फिर
आगे बढ़ गये हम

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

यही स्वर्ग है, यही नरक है
चलते रहो, खुली सड़क है
कहीं पे सूना, कहीं तड़क भड़क है,

अलसाया, कोई जरा कड़क है
सब जीते हैं, बस यही फर्क है।

कोई सितारा, कोई नाकारा
कोई हमारा, कोई तुम्हारा,
कोई साथ है, कोई न्यारा
कोई जीतता, कोई है हारा,
जीवन करता रोज इशारा
मतलब का है ये जीवन सारा,
कोई फिसड्डी, किसी को बढ़त है
चलते रहो, खुली सड़क है।

आदमी का अपनापन
रहता नहीं पूरे जनम,
पल-पल घटती घटनाएं
एक रुत आए,एक रुत जाये,
मेरा, मुझको, मैं और मैं ही
आता नजर पूरी जिंदगी भी,
हर तरफ ये तड़क-भड़क है
चलते रहो, खुली सड़क है।

बांध लो अपने ये बिस्तर
तान लो जीवन का चादर,
जो सफर था जीया जी भर
ये दीया जला रात चार पहर,
हर पहर में खोया है, पाया है
और अंत में क्या साथ लाया है,
रह गई पीछे सारी हड़क है
चलते रहो, खुली सड़क है।

यही स्वर्ग है, यही नरक है
चलते रहो, खुली सड़क है।

श्रीलाल जोशी "श्री"
तेजरासर,बीकानेर।

28/11 /2019
बिषय,, सड़क,,फुटपाथ

कल तक सिंहासन पर बैठे थे अकड़कर
आज बेगाने से खड़े सड़क पर
किश्मत का क्या भरोसा कब हँसाए रुलाए
कब ऊँचे ओहदे कब फुटपाथ पर ले आए
जो रोज चारों प्रहर करते थे सलाम
आज वही कतराते हैं करने से राम राम
हमें तो कुछ खबर नहीं है पल की
फिर क्यों बात करते हैं कल की
ए सड़क वही है वही थी और आगे भी जाएगी
बस हमारी जिंदगी वहीं पर थम जाएगी
यदि कर्म शाश्वत तो रही अकेला ही भला
चापलूसों की भीड़ का रहता काफिला चला
वक्त पर सभी छोड़ देते साथ
फिर हमें मिल जाता फुटपाथ
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार

विषय-सडक/फुट पाथ
विधा विधा-दोहे

दिनांकः 28/11/2019
गुरूवार
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:

कोई सुरक्षित है नहीं,आज कहीं इंसान ।
फुटपाथ सड़क सब जगह,मार रहे हैवान ।।

वे बेचारे क्या करें,सो जाते फुटपाथ ।
रैन बसेरा है कहाँ,जायें कहाँ अनाथ।।

साफ सफाई है नहीं,कचरा डालें रोज।
अभियान कहाँ चल रहा,कौन करें यह खोज।।

चोर सभी अब हो गये,सबकी गलती दाल।
उधडे सड़कें रोज है ,चोरी करें दलाल ।।

कहीं उछल कीचड़ रहा,करता वसन खराब ।
हालत सबकी बिगड रही,होते दुखी जनाब ।।

गड्ढे पडते जा रहे,कौन देता ध्यान ।
होते निसि दिन हादसे,ले लेते हैं जान।।

टेडी मेडी भी रहे,होती कहीं सपाट।
राह खुली सबके लिए,कभी न बंद कपाट।।

चयन के लिए
स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर 'निर्भय,

आज का विषय, सड़क, फुटपाथ
दिन, गुरुवार

दिनांक, 28,11,2019,

समानता और एकता की प्रतीक सड़क होती है ,

झूठी प्रीत नहीं करना कभी सड़क जानती है ।

हो गरीब या फिर अमीर ये दोनों के लिए होती है ,

होती है चाह इसे सबकी ये सबके ही करीब होती है ।

मौन बने रहना ही तो इसका नसीब होता है ,

चुपचाप सहे हर बात नहीं नीत अनीति कहती है।

दंगा फसाद या हो बलात्कार शांत रहती है ,

नयनहीन बनकर के ये लाचार बनी रहती है ।

ले लेकर नाम सड़क का खूब भ्रष्टाचार होता है ,

इंजीनियर ठेकेदार सभी को मालदार बनाती है ।

चलते चलते ही सड़क पर आँखें चार होतीं हैं ,

दो अजनबियो की दुनियाँ यूँ आबाद होती है ।

कभी सड़क पर इज्जत लुटती कभी बात बन जाती है,

आना जाना लगा सड़क पे सड़क खड़ी ही रहती है।

स्वरचित, मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

बिषय- सड़क/ फुटपाथ

जाने कहां पर खत्म होगी
मेरे जीवन की ये सड़क।
मंजिल नहीं दिखती कहीं
चलना होगा जाने कब तक।।

थक गये नाजुक पांव मेरे
कड़ी धूप में चलते-चलते।
मिल जाता कोई साया तो
सुकून के दो पल तो मिलते।।

आंखों से बहने लगे अश्क
करें तो करें क्या उपाय हम।
चलना ही है नियति मेरी
रोके से नहीं रुकेंगे क़दम।।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

दिनांक-28/11/2019
विषय-सड़क/फुटपाथ


फुट पाथौं पर बैठ आज कल,अक्ल वेचें लो बेअक्ल।
अकलदारौं को ये बेअकल दिखा दिखा छल कपट व वल।

डाई कर करवालो काले जो मूंढ़ के भूरे बाल।
पच्चट पाउडर की लगबालो पिचक रहे हैं जहां गाल।
बे अकल की अकल में है गजब का ऐसा तितम्मा।
लगै छरहरी छोरी छ: छ: बच्चन की अम्मा।
व्यूटी पालर में जाकर के बदलबालो अपनी शकल।

क्या फाइदा अधिक पढ़ने से हो जायेगा खर्च यौं धन।
मिलै ना नौकरी सरकारी मारा जायेगा ये मन।
सीखो केवल दसखत करना टूटा फूटा सा भाषण।
जादा नहीं तो कम से कम मुख्य मंत्री जाये बन।
तब तमाम आई. ए. ऐसे.जुहार करैं हो बेदखल।

अलावा मुख्य इक दुकान एक गोदाम बनबालो।
बीमा की बडी़ पौलसी का उसका बीमा करबालो।
पक्का बेअकल की अकल से समझो खुल जायेगा भाग।
उसमें कबाड़ा कर इकट्ठा लगादो स्वयं ही आग।
बुझाती रहैं भले ही फिर चाहे जितनी भी दमकल।

एक पार्टी से दारू लो और एक से लेलो नोट।
एक पार्टी से ले लो डिब्बा पर दो ना किसी को वोट।
जीते कोई इनमें से ही एक निश्चय ही हर हाल।
सबसे प्रथम डालना जा उसके गले में पुष्प माल।
फिर नेता गीरी चमक जाय खुद ही गज कैमा गजकल।

एक लौटरी सोसाइटी की खुद ही खुलबालो दुकान।
नहीं हर्र लगे ना फिटकरी झट से बन जायें धनवान।
दिखला कर के उसमें घाटा पल्ले कै लेना झाड़।
अपना काम बन जाये जनता झौंके भले भांड़।
फिर पहना देना जनता को नंगा करके उन्हैं बलकल।

गर संतुष्ट हौं इस अकल से तो करना इसका प्रचार।
इससे हौं अगर असंतुष्ट तो हमैं बतलाना विचार।
गर करूं भी तो क्या करूं ये हकीकती पुकार।
जिसको लिखवा दिया कलम ने कहो भले बेअकल गंवार।
और अनेक मेरी डायरी में ऐसी भरी पड़ी अटकल।

कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)

28-11-19, गुरुवार
**************************


किस्मत का मारा
मैं बेचारा
बेसहारा
मेरा बसेरा है फुटपाथ
कोई नहीं है साथ

पूर्ण अकेला हूँ दुनिया में
सब कहते मुझे अभागा
न मात-पिता
न संगी-साथी
नहीं कोई रिश्तेदार
मन रहता बेजार
किससे करूँ पुकार
कुटिल है ये संसार
बस एक सहारा
है फुटपाथ !!!

~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया
दिनांक-२८/११/२०१९
शीर्षक-सड़क/फुटपाथ।


देखें सड़क पर दाँये बाँये
देखें सड़क पर आगे पीछे
जिस सफर के लिए, सड़क पे निकले,
रह न जाये कहीं अधूरे।

थोड़ी सी असावधानी बस
कई प्रतिभा नष्ट हो गई सड़क पर,
चलाये वाहन धीरे-धीरे
स्पीड न भागे सड़क पर।

क्षणभर में कुछ भी घटित हो जाये
गर सावधानी न रहे सड़कों पर
दिन दहाड़े चोरी छिनतई
बढ़ गई है सड़कों पर।

अनजान से बातें न करें
चलते चलते सड़क पर
कल परसों पर कभी ना टाले
सड़क के नियम सड़कों पर।

सड़क तो वही रह जाये
पर समाप्त हो जाये
किसी की जीवन सड़क पर।
सड़क नियम है जरूरी सड़क पर।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव


28/11/2019
विषय-सड़क/फुटपाथ

================
सड़कें,फ्लाईओवर दिन ब दिन
बढ़ते जा रहे हैं
अनगिनत बेहिसाब निर्मित होते जा रहे हैं
फिर भी ट्रैफिक में आती कोई कमी नहीं...

अस्पतालों में अत्याधुनिक चिकित्सा
अब उपलब्ध है
गरीब बेचारा सड़क पर पड़ा निस्तब्ध है
बीमारियों में मगर फिर भी
कोई कमी नहीं...

जितनी सुख सुविधाएं, उतनी ही
धन लालसा बढ़ती जा रही है
निर्धन की संख्या फुटपाथों पर
कटती जा रहीं हैं
फिर भी धनिक की शिकायतों में आती
कोई कमी नहीं..

गरीब सड़क,फुटपाथ पर रहने को मजबूर है
नेता,सेठ,साहूकार की चाटुकारिता तो
जगत में मशहूर हैं
इनके वैभव, ऐश्वर्य में आती कभी
कोई कमी नहीं....!!

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित

विषय-सड़क
दिनांक-28/11/19


बाबू जी धीरे चलना
राह में जरा संभालना
यहाँ बड़े बड़े गड्ढे है
पानी से सब भरे है
कीचड़ से सारे सने है
बरसात में बने नहर है
गर जाओगे यहाँ से
ठुमके लगाओ गे तुम
हँसते है वो सारे
वो साथी जो खड़े है
बनती है जब सड़के
लूट जाते है खजाने
कुछ भ्रस्ट तंत्र पनपते
कुछ राजनीति करते
बर्बाद होती जनता
तन मन और धन से
मोदी जी से बिनती
खींचो जरा इनकी चोटी
लगाते लाल टीका
पहने ईमान चोला
स्वरचित
मीना तिवारी

विषय - सड़क /फुटपाथ
दिनांक - 28/11/2019

दिन - गुरूवार

1.
टूटा सड़क
पथिक परेशान
भ्रष्ट नेता ।

2.
सड़क अनजानी
मंजिल है दूर
भटकते राहगीर।

3.
फुटपाथ ही सहारा
घर से निकला
बूढ़ा बेचारा ।

दीपमाला पाण्डेय
रायपुर छग
स्वरचित
28/11/2019

आज का विषय सड़क/ फुटपाथ

पहले प्रत्येक सड़क के साथ बनते फुटपाथ।
वाहन चलते सड़क पर पैदल चलते फुटपाथ।।

सड़के बढ़कर हो गयी चौड़ी विकास के साथ।
धीरे धीरे छोटे होकर गायब हो गये फुटपाथ।।

गायब हुये फुटपाथ पैदल यात्री की है आफत।
चलने को फुटपाथ नहीं सड़क चलने में संकट।।

यात्रियों की सुरक्षा को सड़कें हो गढ़ों से साफ।
सड़क के किनारों पर भी बनने चाहिये फुटपाथ।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
"व्थथित हृदय मुरादाबादी"
स्वरचित.

🌹भावों के मोती ,🌹

वि
षय:-सडक़/फुटपाथ

विधा:-तुकान्त कविता
🌹💐🌹💐🌹💐🌹

हमसफर थककर कहीं तुम रूक न जाना राह में ।
हो पथिक जीवन के मेरे थक न जाना साथ में ।

है डगर मुश्किल भरी हूँ हादसों से में कहीं ।
पर कभी बन जाती हूँ अनकही दुआ कभी

मिलते हैं जब दिल कोई मौन सडकों पर कभी ।
अंकुरित होती है चाहत मेरे सीने पर ही कहीं ।

हूँ मैं निर्भय लील जाती हूँ कभी अपने आगोश में ।
फिर सफर करते हैं मुझपर अपने ही फिर जोश में ।

तकते रहते हैं मुझपर खड़़े फुटपाथ को।
मैं मिला देती हूँ हँसके उनके हालात को ।

स्वरचित

नीलम शर्मा # नीलू

विषय : सड़क/फुटपाथ
विधा: स्वतंत्र

दिनांक 28/11/2019

शीर्षक : मैं सड़क हूँ

मैं सड़क हूँ।
आड़ी टेढ़ी,
लम्बी चौड़ी,
संकरी पगडंडी,
कच्ची पक्की हूँ।
रोड़ी मिट्टी जल,
डामर मिल रूप,
मेरा निखारा।
गाँव को शहर से,
सदा जोड़ती,
बिछड़े को,
मिलाती।
पथिक को,
मंजिल तक,
पहुँचाती।
गरीबों का,
मैं सहारा हूँ।
फुटपाथ पर,
करते बसेरा।
सर्दी,गर्मी,वर्षा,
आँधी और तूफान,
हर मौसम को,
सहन करती।
वाहनों का होता,
आवागमन शोर,
अनगिनत भार,
ढोती रोज,
ध्वनि प्रदूषण,
वायु प्रदूषण,
सिर चकराता,
पर्यावरण को,
शुद्ध बनाते,
खड़े किनारे,
हरियाले पेड़।
मन बहलाते,
प्यार लुटाते,
पवन देव,
शीतल बयार,
अहर्निशं बहाते।
'रिखब' की,
कलम ने लिखी,
सड़क आत्मकथा।

रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित
जयपुर राजस्थान

दिनांक-28/11/2019
विधा-हाइकु (5/7/5)
िषय :-"सड़क"
(1)
ओवरलोड
सड़कें ले जा रहीं
वैकुंठ लोक
(2)
सर्दी की मार
फुटपाथ पे रंक
रोते हालात
(3)
फूल भी दिखें
जीवन की सड़क
शूल भी चुभें
(4)
सूखे हलक
गर्मी करती मार्च
सूनी सड़क
(5)
जीवन नर्क
फुटपाथी जिंदगी
किसको फर्क
(6)
गाँव-शहर
संस्कृति औ समृद्धि
लाई सड़क
(7)
गड्ढे अपार
खा गया है सड़कें
ये भ्रष्टाचार

स्वरचित
ऋतुराज दवे

विषय - सड़क / फुटपाथ

फुटपाथ पर जन्म और
फुटपाथ पर ही मर जाना ,
क्या यह फुटपाथ पर जन्में
लोगों की अकर्मण्यता है या कुछ और ?
आग उगलती सड़क पर
नंगे पांव दौड़ दौड कर
हर आते-जाते के आगे-पीछे भागते ,
फूल पत्ते, खिलौने खरीदने को मनाते ।
दो चार सामान बिक जाये तो
सुबह के इंतजार में रात भर जागते ।
कभी उघारे बदन सहते लू के थपेड़े
सैकड़ो दफा सिल सिल कर पहनते
औरों के फटे कपड़े ।
खून जमा देने वाली ठंड में
फुटपाथ पर एक झीनी चादर में
सिमटा पूरा परिवार ।
पेट की आग देती है इन्हें ऊर्जा
और बोझिल जिंदगी ढोते
थकता नही देह का कोई पुर्जा ।
इनकी आह कराह
क्यों कोई सुन नही पाता ?
क्यों इनका ह्रदय
सुख के सपने बुन नही पाता
दौड़ते भागते नापते रहते हैं
दिन रात अंतहीन सड़क
जो कभी पहुंचाती नही
इन्हें इनकी मनचाही मंजिल तक ।
क्या यह किसी एक तबके का षड्यंत्र है ?
जो अपने ठाट बाट के तले
दबाये बैठा है इनके सपने ,
जो कभी सच हो नहीं पाते ।
बेच कर स्वप्न अपने
ये फुटपाथ के जन्में
रोते हुए भी हैं मुस्कुराते ।

(स्वरचित)सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )

कच्ची सी पगडण्डी है.....
जहाँ से मर्ज़ी रास्ता निकाल..
निकल जाओ...
बिना सोचे…समझे.....
अबोध बचपन जैसे....

पक्की सड़क सी बन गयी है....
रफ़्तार भी तेज़ है...जवानी के लहू जैसी....
आगे निकलने की जल्दी में...
सब निकल गए....
कुछ रिश्तों को पीछे छोड़...
कुछ ज़िन्दगी को छोड़.....

सड़क अब पुरानी सी हो गयी है...
बोझ से कहीं खड्डे पड़े हैं....
तो कहीं टूटी है तरेड़ों में...
बार बार मरम्मत पे भी सुधर नहीं पायी...
लगता है पूरी की पूरी दुबारा ही बनेगी....

ऐसी ही तो है ज़िन्दगी !

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२८.११.२०१९

No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...