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ब्लॉग संख्या :-559
शीर्षक-- प्रयत्न / कोशिश
विधा-- मुक्तक
प्रथम प्रस्तुति
प्रयत्न करता हूँ प्रयत्न ही हाथ हमारे
माना कि नसीबों के हैं ये खेल सारे ।।
बिना प्रयत्न कुछ नही संभव हुआ यहाँ
सतत प्रयत्न से उन्नति के खुलें हैं द्वारे ।।
प्रयत्न करने से एकाग्रता बढ़ती मन की
नही बहकने पाती ये गाड़ी जीवन की ।।
प्रयत्नशीलता ही चाँद की दूरी नापी
हरेक उपलब्धि गाथा गाये समर्पन की ।।
खूबियाँ स्वयं जाग कर हुईं उजागर
नदी न अड़चनें देखी इक देखा सागर ।।
प्रयत्न कभी न खाली गया यहाँ 'शिवम'
कुछ न तो विकल्प अनुभव की भरती गागर ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 07/11/2019
विधा-- मुक्तक
प्रथम प्रस्तुति
प्रयत्न करता हूँ प्रयत्न ही हाथ हमारे
माना कि नसीबों के हैं ये खेल सारे ।।
बिना प्रयत्न कुछ नही संभव हुआ यहाँ
सतत प्रयत्न से उन्नति के खुलें हैं द्वारे ।।
प्रयत्न करने से एकाग्रता बढ़ती मन की
नही बहकने पाती ये गाड़ी जीवन की ।।
प्रयत्नशीलता ही चाँद की दूरी नापी
हरेक उपलब्धि गाथा गाये समर्पन की ।।
खूबियाँ स्वयं जाग कर हुईं उजागर
नदी न अड़चनें देखी इक देखा सागर ।।
प्रयत्न कभी न खाली गया यहाँ 'शिवम'
कुछ न तो विकल्प अनुभव की भरती गागर ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 07/11/2019
नमन भावों के मोती
शीर्षक कोशिश प्रयत्न
दिनांक 7/11/2019
शलभ की कोशिश
हर बार
दीपक पर
प्राण न्योछावर करना
इश्क की पावक
दर्शाती है
प्रिय मिलन की चाहत
होता है सफल
उसका प्रयास
हो शून्य में विलीन
होती है फलित
उसकी कोशिश
बैठ प्रेम की नाव
पहुंच जाता उस पार
हिचकोले खाता हुआ
प्रिय के पास
स्वरचित
संदीप कुमार विश्नोई
दुतारांवाली अबोहर पंजाब
शीर्षक कोशिश प्रयत्न
दिनांक 7/11/2019
शलभ की कोशिश
हर बार
दीपक पर
प्राण न्योछावर करना
इश्क की पावक
दर्शाती है
प्रिय मिलन की चाहत
होता है सफल
उसका प्रयास
हो शून्य में विलीन
होती है फलित
उसकी कोशिश
बैठ प्रेम की नाव
पहुंच जाता उस पार
हिचकोले खाता हुआ
प्रिय के पास
स्वरचित
संदीप कुमार विश्नोई
दुतारांवाली अबोहर पंजाब
विषय कोशिश,प्रयास
विधा काव्य
07 11 2019,गुरुवार
कोशिश साधन लक्ष्य प्राप्ति
कोशिश से सब कुछ मिलता।
कोशिश करो खुदा साक्षात
बिन कोशिश पत्ता न हिलता।
दक्षिण ध्रुव अंतरीक्ष में
कोशिश से चन्द्रयान भेजते।
गहन सिंधु तल में जाकर
कोशिश करके रत्न ढूढ़ते।
शिखर एवरेस्ट चढ़ जाते
हिम गाड़े तिरगा झंडा।
नापाक सीमा में घुसकर
ध्वस्त करें आतंकी अड्डा।
सागर मध्य रेल दौड़ती
असंभव सब संभव होता।
खून पसीना सना श्रेष्ठ नर
जीवन भर कभी न रोता।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
07 11 2019,गुरुवार
कोशिश साधन लक्ष्य प्राप्ति
कोशिश से सब कुछ मिलता।
कोशिश करो खुदा साक्षात
बिन कोशिश पत्ता न हिलता।
दक्षिण ध्रुव अंतरीक्ष में
कोशिश से चन्द्रयान भेजते।
गहन सिंधु तल में जाकर
कोशिश करके रत्न ढूढ़ते।
शिखर एवरेस्ट चढ़ जाते
हिम गाड़े तिरगा झंडा।
नापाक सीमा में घुसकर
ध्वस्त करें आतंकी अड्डा।
सागर मध्य रेल दौड़ती
असंभव सब संभव होता।
खून पसीना सना श्रेष्ठ नर
जीवन भर कभी न रोता।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
नमन:- मंच
जब भी तुम उपर उठने की कोशिश करते हो,
कईं आ जाते है तुम्हे नीचे गिराने को,
जब भी तुम आगे बढ़ने की कोशिश करते हो,
कईं आ जाते है तुम्हे आजमाने को,
जो गर तुम ठिठक गए देख कर उनकी शक्लें,
तो फिर खुद को काबिल ना बना पाओगे,
जो गर तुम रुक गए, पाए बिना अपनी वो मंजिले
तो फिर हसरतो को मुक्कमल न बना पाओगे,
जरूरत है बनाये रखने की वो इक जिद खुद में,
ओर जलाए रखना, जिंदादिली की लौ तुम में,
जरूरत है की बस खुद को जिंदा रखना खुद में,
ओर बनाये रखना अपनी पहचान बस तुम में।
🖊️ #प्रकाश_जांगिड़_प्रांश 🖊️
🌳काव्य गोष्ठी मंच, राजसमन्द
जब भी तुम उपर उठने की कोशिश करते हो,
कईं आ जाते है तुम्हे नीचे गिराने को,
जब भी तुम आगे बढ़ने की कोशिश करते हो,
कईं आ जाते है तुम्हे आजमाने को,
जो गर तुम ठिठक गए देख कर उनकी शक्लें,
तो फिर खुद को काबिल ना बना पाओगे,
जो गर तुम रुक गए, पाए बिना अपनी वो मंजिले
तो फिर हसरतो को मुक्कमल न बना पाओगे,
जरूरत है बनाये रखने की वो इक जिद खुद में,
ओर जलाए रखना, जिंदादिली की लौ तुम में,
जरूरत है की बस खुद को जिंदा रखना खुद में,
ओर बनाये रखना अपनी पहचान बस तुम में।
🖊️ #प्रकाश_जांगिड़_प्रांश 🖊️
🌳काव्य गोष्ठी मंच, राजसमन्द
नमन भावों के मोती
दिनांक: 07.11.2019
विषय: कोशिश
विधा: पद (छंदबद्ध कविता)
. इक कोशिश तो करके देखो
दिल में दबोच इक नई सोच,
अंदाज अलग चलके देखो।
खड़ी किनारे,जीत निहारे,
इक कोशिश तो करके देखो।।
क्या मैं भी ये कर पाऊँगा ,
ऐसी बातें क्यों करते हो ?
भीड़,पीड़ से ऊपर आओ,
गिरने से तुम क्यों डरते हो ?
बनो गुब्बारा,उठो दोबारा ,
फिर जोश भरो उड़के देखो।
खड़ी किनारे जीत निहारे ,
इक कोशिश तो करके देखो।।
सहज न डूबे सागर में भी ,
इक उम्मीद सहारा जिनका ।
आशा की आदत है आखिर ,
देता लगा किनारा तिनका ।
कूदो,खड़े न सोचो तट पर,
तुम तरण ताल तरके देखो ।
खड़ी किनारे जीत निहारे ,
इक कोशिश तो करके देखो ।।
जीत - हार ,लाभ और हानि ,
निश्चय ही निश्चित करता है ।
पहलवान पहल करे पहले ,
मुश्किल को भी चित्त करता है ।।
बाँध के नाड़ा ,कूद अखाड़ा,
तुम भी कुश्ती लड़के देखो ।
खड़ी किनारे जीत निहारे ,
इक कोशिश तो करके देखो।।
संभावना में भावना हो तो ,
संभव होने में देर नहीं ।
मात मौत को दे सकते हो ,
साहस से बढ़कर शेर नहीं।
बस एक दफे तुम सुनो नफे ,
इक बार जोश भरके देखो ।
खड़ी किनारे जीत निहारे,
इक कोशिश तो करके देखो।।
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित रचना
मौलिक
दिनांक: 07.11.2019
विषय: कोशिश
विधा: पद (छंदबद्ध कविता)
. इक कोशिश तो करके देखो
दिल में दबोच इक नई सोच,
अंदाज अलग चलके देखो।
खड़ी किनारे,जीत निहारे,
इक कोशिश तो करके देखो।।
क्या मैं भी ये कर पाऊँगा ,
ऐसी बातें क्यों करते हो ?
भीड़,पीड़ से ऊपर आओ,
गिरने से तुम क्यों डरते हो ?
बनो गुब्बारा,उठो दोबारा ,
फिर जोश भरो उड़के देखो।
खड़ी किनारे जीत निहारे ,
इक कोशिश तो करके देखो।।
सहज न डूबे सागर में भी ,
इक उम्मीद सहारा जिनका ।
आशा की आदत है आखिर ,
देता लगा किनारा तिनका ।
कूदो,खड़े न सोचो तट पर,
तुम तरण ताल तरके देखो ।
खड़ी किनारे जीत निहारे ,
इक कोशिश तो करके देखो ।।
जीत - हार ,लाभ और हानि ,
निश्चय ही निश्चित करता है ।
पहलवान पहल करे पहले ,
मुश्किल को भी चित्त करता है ।।
बाँध के नाड़ा ,कूद अखाड़ा,
तुम भी कुश्ती लड़के देखो ।
खड़ी किनारे जीत निहारे ,
इक कोशिश तो करके देखो।।
संभावना में भावना हो तो ,
संभव होने में देर नहीं ।
मात मौत को दे सकते हो ,
साहस से बढ़कर शेर नहीं।
बस एक दफे तुम सुनो नफे ,
इक बार जोश भरके देखो ।
खड़ी किनारे जीत निहारे,
इक कोशिश तो करके देखो।।
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित रचना
मौलिक
07/11/2019
"प्रयास/कोशिश"
कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है........
हँसने के लिए भी रोना पड़ता है......
फल खाने के लिए बीज बोना पड़ता है........
मंजिल पाने के लिए कोशिश करना पड़ता है.....।
जिंदगी जीने के लिए सतत् चलना होता है....
तूफानी मंजर में भी आगे बढ़ना होता है......
गिर-गिरकर भी संभलना होता है.......
प्रयास न कभी छोड़ना होता है ......।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।
"प्रयास/कोशिश"
कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है........
हँसने के लिए भी रोना पड़ता है......
फल खाने के लिए बीज बोना पड़ता है........
मंजिल पाने के लिए कोशिश करना पड़ता है.....।
जिंदगी जीने के लिए सतत् चलना होता है....
तूफानी मंजर में भी आगे बढ़ना होता है......
गिर-गिरकर भी संभलना होता है.......
प्रयास न कभी छोड़ना होता है ......।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।
गजल,
गम को भुलाने की कोशिश कर,
दिल को हंसाने की कोशिश कर, १।
कोई आहट रोशनी की हो,
आग जलाने की कोशिश कर,२।।
मन बोझ से दबी दबी रहती है,
दिल बहलाने की कोशिश कर।।३।।
रोटी आज नहीं कल मिलेंगी,
भूख को दबाने की कोशिश कर।।४।।
अब अंधेरों में रहना कैसा,
उजाला लाने कोशिश कर।।५।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसनाछ ग साधना कुटीर।
गम को भुलाने की कोशिश कर,
दिल को हंसाने की कोशिश कर, १।
कोई आहट रोशनी की हो,
आग जलाने की कोशिश कर,२।।
मन बोझ से दबी दबी रहती है,
दिल बहलाने की कोशिश कर।।३।।
रोटी आज नहीं कल मिलेंगी,
भूख को दबाने की कोशिश कर।।४।।
अब अंधेरों में रहना कैसा,
उजाला लाने कोशिश कर।।५।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसनाछ ग साधना कुटीर।
नमन भावों के मोती,
आज का विषय, प्रयास, कोशिश,
दिन, गुरुवार,
दिनांक, 7,11,2019,
आज का विषय, प्रयास, कोशिश,
दिन, गुरुवार,
दिनांक, 7,11,2019,
नदी किनारे बैठे हैं जो ,
लहरों से डर करके ।
पार करेंगे जीवन कैसे,
जो दूर रहे पतवारों से ।
कोशिश ही तो रंग लाती हैं,
हर इंसा के जीवन में ।
धरे हाथ पे हाथ रहा जो ,
कुछ न पाया जीवन में ।
करता प्रयास न मानव जो,
कैसे पहुँचता चंदा में ।
कोशिशें हजारों की होगीं ,
तब बाँध बने हैं नदियों में ।
कोशिशें हमेशा चलतीं रहीं,
कई रूप बदले सभ्यताओं ने।
जीवन मिलना पर्याप्त नहीं ,
बहुत होतीं कोशिशें जीने में ।
जीत हार का खेल चल रहा,
दम लगता है विजयी होने में।
असफलता कोशिश न पाती ,
यही बात कही विद्वानों ने ।
जीत पाता है कोशिश कर्ता,
ये सच देखा है इंसानों ने ।
साकार अवश्य सपने होंगे ,
यदि जोश भरा हो प्रयत्नों में।
मंजिल का पथ मिल जायेगा,
काँटों की परवाह नहीं पैरों में।
आदर्श हों हमारे जो भागीरथी,
फिर दम कितना बाधाओं में ।
जब गंगा आ सकती धरती पे ,
मानो जीत छुपी है प्रयासों में।
स्वरचित , मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
लहरों से डर करके ।
पार करेंगे जीवन कैसे,
जो दूर रहे पतवारों से ।
कोशिश ही तो रंग लाती हैं,
हर इंसा के जीवन में ।
धरे हाथ पे हाथ रहा जो ,
कुछ न पाया जीवन में ।
करता प्रयास न मानव जो,
कैसे पहुँचता चंदा में ।
कोशिशें हजारों की होगीं ,
तब बाँध बने हैं नदियों में ।
कोशिशें हमेशा चलतीं रहीं,
कई रूप बदले सभ्यताओं ने।
जीवन मिलना पर्याप्त नहीं ,
बहुत होतीं कोशिशें जीने में ।
जीत हार का खेल चल रहा,
दम लगता है विजयी होने में।
असफलता कोशिश न पाती ,
यही बात कही विद्वानों ने ।
जीत पाता है कोशिश कर्ता,
ये सच देखा है इंसानों ने ।
साकार अवश्य सपने होंगे ,
यदि जोश भरा हो प्रयत्नों में।
मंजिल का पथ मिल जायेगा,
काँटों की परवाह नहीं पैरों में।
आदर्श हों हमारे जो भागीरथी,
फिर दम कितना बाधाओं में ।
जब गंगा आ सकती धरती पे ,
मानो जीत छुपी है प्रयासों में।
स्वरचित , मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
विषय-प्रयास
विधा-दोहे
दिनांकः 7/11/2019
गुरूवार
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:
जो प्रयास करता रहे,उसकी होती जीत ।
सहयोग उसे सब करें,बनता सबका मीत।।
करता प्रयास सतत वह,होता नहीं निराश ।
बुलंद उसके हौसले,कभी न टूटे आस।।
थके मेहनत से नहीं,नहीं मानता हार।
आलस भी करता नहीं,नहीं उसे स्वीकार ।।
वही सदा होता सफल,होती जयजय कार ।
ऐसे वीरों को मिले,सदा विजय उपहार ।।
सदा रखें धैर्य चले,चलता अपनी राह।
कोई चाहे कुछ कहे,होत नहीं गुमराह ।।
लक्ष्य सदा हासिल करे,करके अर्पित चैन।
जब तक जीत मिले नहीं, रहता वह बेचैन।।
स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर' निर्भय
विधा-दोहे
दिनांकः 7/11/2019
गुरूवार
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:
जो प्रयास करता रहे,उसकी होती जीत ।
सहयोग उसे सब करें,बनता सबका मीत।।
करता प्रयास सतत वह,होता नहीं निराश ।
बुलंद उसके हौसले,कभी न टूटे आस।।
थके मेहनत से नहीं,नहीं मानता हार।
आलस भी करता नहीं,नहीं उसे स्वीकार ।।
वही सदा होता सफल,होती जयजय कार ।
ऐसे वीरों को मिले,सदा विजय उपहार ।।
सदा रखें धैर्य चले,चलता अपनी राह।
कोई चाहे कुछ कहे,होत नहीं गुमराह ।।
लक्ष्य सदा हासिल करे,करके अर्पित चैन।
जब तक जीत मिले नहीं, रहता वह बेचैन।।
स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर' निर्भय
विषय -प्रयास / कोशिश
07/11/19
गुरुवार
मुक्तक
कोशिश की ऊँचाई जब हद से ऊपर उठ आती है।
तब किस्मत भी हार मान खुद ही नीचे झुक जाती है।
कितने भी विकराल भंवर जीवन-सरिता में आएं पर -
दृढ़प्रतिज्ञ - नर के पथ में बाधा न कोई रुक पाती है।
मिला है जब हमें अवसर सतत संघर्ष करने का।
प्रयासों से कठिनतम लक्ष्य पा उत्कर्ष करने का।
तो फिर अवसर सुनहरा हम क्यों यूँ ही व्यर्थ जाने दें-
यही एक रास्ता है योग्य बनकर हर्ष करने का।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
07/11/19
गुरुवार
मुक्तक
कोशिश की ऊँचाई जब हद से ऊपर उठ आती है।
तब किस्मत भी हार मान खुद ही नीचे झुक जाती है।
कितने भी विकराल भंवर जीवन-सरिता में आएं पर -
दृढ़प्रतिज्ञ - नर के पथ में बाधा न कोई रुक पाती है।
मिला है जब हमें अवसर सतत संघर्ष करने का।
प्रयासों से कठिनतम लक्ष्य पा उत्कर्ष करने का।
तो फिर अवसर सुनहरा हम क्यों यूँ ही व्यर्थ जाने दें-
यही एक रास्ता है योग्य बनकर हर्ष करने का।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
दिनांक ७/११/२०१९
शीर्षक-कोशिश/प्रयास
कोशिश करें सदा यही
सफलता आपका चरण चूमे
है जिंदगी खूबसूरत बहुत
कोशिश करें सदा यही
जिंदगी निराश ना हो।
असफलता सिखाये यही
कोशिश में है कमी कही,
धर्य ना खोये, हिम्मत ना हारे
अच्छे समय फिर आयेंगे
ढृढ़ निश्चय वह आत्मविश्वास के साथ
फिर एक करें प्रयास।
सफलता गर न भी मिले तो
कोशिश कभी न जाये बेकार
कोशिश के बाद जीत का एहसास
रंग भर देते जीवन में खास।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
शीर्षक-कोशिश/प्रयास
कोशिश करें सदा यही
सफलता आपका चरण चूमे
है जिंदगी खूबसूरत बहुत
कोशिश करें सदा यही
जिंदगी निराश ना हो।
असफलता सिखाये यही
कोशिश में है कमी कही,
धर्य ना खोये, हिम्मत ना हारे
अच्छे समय फिर आयेंगे
ढृढ़ निश्चय वह आत्मविश्वास के साथ
फिर एक करें प्रयास।
सफलता गर न भी मिले तो
कोशिश कभी न जाये बेकार
कोशिश के बाद जीत का एहसास
रंग भर देते जीवन में खास।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
नमन बंधुजनों
बडा ही रोमांचकारी खेल
जीवन की चुनौतियों का
कठिनाइयों से भरा
शानदार शिक्षाओं से युक्त
कदम कदम पर पढ़ाता हुआ
नए नए पाठ्यक्रमो से
झुझारू होने की सक्ति के साथ
दुश्मनों का सामना
कुछ टूट जाते है
घबराकर लेते है कदम
कुछ सिरफिरे अंदाज में
औऱ कुछ बढ़ते ही रहते बिना रुके
कुछ अनोखे के कारनामो के साथ
समेट लेते है कछुए की तरह खुद को
सुरक्षित कवच में
और पा जाते है अनेको ज्ञान
की उपलब्धि
न मुमकिन को भी मुमकिन बना देते है
चुनौतियों से हार जाना
अंत नही है खेल का
बस ख़ुद को टूटने मत दो
समेट लो खुद को बिखेरने से पहले
स्वरचित
मीना तिवारी
बडा ही रोमांचकारी खेल
जीवन की चुनौतियों का
कठिनाइयों से भरा
शानदार शिक्षाओं से युक्त
कदम कदम पर पढ़ाता हुआ
नए नए पाठ्यक्रमो से
झुझारू होने की सक्ति के साथ
दुश्मनों का सामना
कुछ टूट जाते है
घबराकर लेते है कदम
कुछ सिरफिरे अंदाज में
औऱ कुछ बढ़ते ही रहते बिना रुके
कुछ अनोखे के कारनामो के साथ
समेट लेते है कछुए की तरह खुद को
सुरक्षित कवच में
और पा जाते है अनेको ज्ञान
की उपलब्धि
न मुमकिन को भी मुमकिन बना देते है
चुनौतियों से हार जाना
अंत नही है खेल का
बस ख़ुद को टूटने मत दो
समेट लो खुद को बिखेरने से पहले
स्वरचित
मीना तिवारी
शीर्षक- कोशिश
सादर मंच को समर्पित -
🍀🍎 गीतिका 🍎🍀
***********************
🌺 कोशिश 🌺
☀☀☀☀☀☀☀☀☀
जीवन एक कहानी है ।
राह बड़ी अनजानी है ।।
जो चलता है सत पथ पर ,
मंजिल उसको पानी है ।
धूल भरी हो राह अगर ,
कोशिश दिल में ठानी है ।
मग में काँटे लाख मिलें ,
बढ़ कर राह बनानी है ।
कर्मठता से दृढ़ता रख ,
जिन्दादिली निशानी है ।
शुद्ध भावना रखते जो ,
पाते राह सुहानी है ।
रखें भरोसा जो खुद पर ,
उनकी जीत दिवानी है ।।
🌺🌻🍏🌹
🌴🌷**....रवीन्द्र वर्मा मधुनगर आगरा
सादर मंच को समर्पित -
🍀🍎 गीतिका 🍎🍀
***********************
🌺 कोशिश 🌺
☀☀☀☀☀☀☀☀☀
जीवन एक कहानी है ।
राह बड़ी अनजानी है ।।
जो चलता है सत पथ पर ,
मंजिल उसको पानी है ।
धूल भरी हो राह अगर ,
कोशिश दिल में ठानी है ।
मग में काँटे लाख मिलें ,
बढ़ कर राह बनानी है ।
कर्मठता से दृढ़ता रख ,
जिन्दादिली निशानी है ।
शुद्ध भावना रखते जो ,
पाते राह सुहानी है ।
रखें भरोसा जो खुद पर ,
उनकी जीत दिवानी है ।।
🌺🌻🍏🌹
🌴🌷**....रवीन्द्र वर्मा मधुनगर आगरा
शीर्षक- कोशिश
विधा- ग़ज़ल
हाथ अपना छुड़ाने की कोशिश न कर,
कुदरती नेमतों पे तू बंदिश न कर।
देखता है बहुत उलझनें तू बशर,
दूर होंगे वहम ज़ख्म ताबिश न कर।
जिंदगी को सनम यूँ करो न ख़ला,
दूर तू मुझसे हो ये सिफारिश न कर।
वासता है तुझे मुश्किलें भूल जा,
पेशतर वक्त से आज ख्वाहिश न कर।
मुंतज़िर हूंँ तेरी रहबरी की सनम,
दर्द अपने छुपा यूँ नुमाइश न कर।
हौसला- ए-क़ता गर तेरे साथ है,
मुर्शिदों पे सवालों की बारिश न कर।
मिट गई तीरगी खत्म हैं उलझनें,
सामने अब किसी के गुज़ारिश न कर।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
विधा- ग़ज़ल
हाथ अपना छुड़ाने की कोशिश न कर,
कुदरती नेमतों पे तू बंदिश न कर।
देखता है बहुत उलझनें तू बशर,
दूर होंगे वहम ज़ख्म ताबिश न कर।
जिंदगी को सनम यूँ करो न ख़ला,
दूर तू मुझसे हो ये सिफारिश न कर।
वासता है तुझे मुश्किलें भूल जा,
पेशतर वक्त से आज ख्वाहिश न कर।
मुंतज़िर हूंँ तेरी रहबरी की सनम,
दर्द अपने छुपा यूँ नुमाइश न कर।
हौसला- ए-क़ता गर तेरे साथ है,
मुर्शिदों पे सवालों की बारिश न कर।
मिट गई तीरगी खत्म हैं उलझनें,
सामने अब किसी के गुज़ारिश न कर।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
7/11/2019::वीरवार
विषय--प्रयास, कोशिश
प्रदूषण की काली चादर
कैसे इसे हटाऊँ
ऐ इंसा!!तेरी नादानी
कैसे तुझे बताऊँ
अम्बर से लेकर अवनि तक
फैला काला साया
धुँआ धुँआ अब हवा हो गई
धुँआ पिया और खाया
कर डाले हैं तूने कितने
कल करखाने ईज़ाद यहाँ
तुझे मिला है अमन चैन पर
प्रकृति हुई बरबाद यहाँ
अभी वक्त है अगर समझ ले
अपनी इस बेमानी को
मिल जाएगा नया सवेरा
जी लोगे जिंदगानी को
इक और इक होते हैं ग्यारह
मिलकर हाथ बढ़ाओ तुम
हर इक छोटे से #प्रयास से
ये दानव मार गिराओ तुम
रजनी रामदेव
न्यू दिली
विषय--प्रयास, कोशिश
प्रदूषण की काली चादर
कैसे इसे हटाऊँ
ऐ इंसा!!तेरी नादानी
कैसे तुझे बताऊँ
अम्बर से लेकर अवनि तक
फैला काला साया
धुँआ धुँआ अब हवा हो गई
धुँआ पिया और खाया
कर डाले हैं तूने कितने
कल करखाने ईज़ाद यहाँ
तुझे मिला है अमन चैन पर
प्रकृति हुई बरबाद यहाँ
अभी वक्त है अगर समझ ले
अपनी इस बेमानी को
मिल जाएगा नया सवेरा
जी लोगे जिंदगानी को
इक और इक होते हैं ग्यारह
मिलकर हाथ बढ़ाओ तुम
हर इक छोटे से #प्रयास से
ये दानव मार गिराओ तुम
रजनी रामदेव
न्यू दिली
प्रयास / कोशिश
जिन्दगी इतनी
मुश्किल भी नहीं
जीने की
कोशिश तो कर
अटक जाये
कभी मंजिल
मुकाम तलक
पहुँचने की
कोशिश तो कर
जो आ के
यादों में
गुम हो जाये
अपने हो कर भी
बेबफा हो जाये
उन्हें भुलाने की
कोशिश तो कर
दिया है जन्म जिसने
भूला दिया तू ने उसे ही
न रहेगा हाथ सिर पर
दुआ तू कैसे ले पायेगा
साथ उनके
कुछ पल गुजारने की
कोशिश तो कर
गुजर जायेगी उम्र
मौज मस्ती में
रह जायेगा
अकेला बुढापे में
जब मुश्किल होगा
गुजरना एक एक पल
तब मौला को
याद करने की
कोशिश तो कर
हर कोई मशरूफ है
साथ अपने यारों के
रहने वाले जमीन पर
मेहनतकश के साथ
कुछ पल गुज़ारने की
कोशिश तो कर
घमंड था " संतोष "
उसे बड़ा अपने यार पर
निभायेगा साथ वो
जिन्दगी भर
थाम लिया हाथ उसने
किसी और का
दोस्त हो मत बेजान
जिन्दगी में
ले साथ मौला का
चलने की
कोशिश तो कर
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
जिन्दगी इतनी
मुश्किल भी नहीं
जीने की
कोशिश तो कर
अटक जाये
कभी मंजिल
मुकाम तलक
पहुँचने की
कोशिश तो कर
जो आ के
यादों में
गुम हो जाये
अपने हो कर भी
बेबफा हो जाये
उन्हें भुलाने की
कोशिश तो कर
दिया है जन्म जिसने
भूला दिया तू ने उसे ही
न रहेगा हाथ सिर पर
दुआ तू कैसे ले पायेगा
साथ उनके
कुछ पल गुजारने की
कोशिश तो कर
गुजर जायेगी उम्र
मौज मस्ती में
रह जायेगा
अकेला बुढापे में
जब मुश्किल होगा
गुजरना एक एक पल
तब मौला को
याद करने की
कोशिश तो कर
हर कोई मशरूफ है
साथ अपने यारों के
रहने वाले जमीन पर
मेहनतकश के साथ
कुछ पल गुज़ारने की
कोशिश तो कर
घमंड था " संतोष "
उसे बड़ा अपने यार पर
निभायेगा साथ वो
जिन्दगी भर
थाम लिया हाथ उसने
किसी और का
दोस्त हो मत बेजान
जिन्दगी में
ले साथ मौला का
चलने की
कोशिश तो कर
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
विषय-प्रयास
विधा-दोहे
दिनांकः 7/11/2019
गुरूवार
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:
कदम ताल संग-संग मिले, जीवन में हो उजास
भावों के मोती चमकें, नयनों की मिटती प्यास।
कोशिश करके देखिए, हासिल होगा हर मुकाम
भाग्य को निरापद कोसे, प्रारब्ध दिलाए यश नाम।
नाकामे कोशिश करे, जग से बड़ा दुराव
ज्यों प्यासे को कुएं से, हरसुं पड़ता काम।
विनोद वर्मा 'दुर्गेश'
विधा-दोहे
दिनांकः 7/11/2019
गुरूवार
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:
कदम ताल संग-संग मिले, जीवन में हो उजास
भावों के मोती चमकें, नयनों की मिटती प्यास।
कोशिश करके देखिए, हासिल होगा हर मुकाम
भाग्य को निरापद कोसे, प्रारब्ध दिलाए यश नाम।
नाकामे कोशिश करे, जग से बड़ा दुराव
ज्यों प्यासे को कुएं से, हरसुं पड़ता काम।
विनोद वर्मा 'दुर्गेश'
शीर्षक -- प्रयास / कोशिश
द्वितीय प्रस्तुति
प्रयासरत हूँ हार नही मैं माना हूँ
निज मंजिल को आज अब पहचाना हूँ ।।
कैसे-कैसे मंजिल पर पहुँचना होता
खिला हुआ उस्ताद खुदा को जाना हूँ ।।
उस्ताद है उस्ताद से क्या डरना है
हमें उसके बताए पथ पर चलना है ।।
सब कुछ उस पर सौंप कर चलता चल
परिणाम कि फिकर उसको ही करना है ।।
कोशिशों में कमी नही करना 'शिवम'
जान जाओगे इक दिन सारे मरम ।।
सभी बँदोवस्त करके उसने भेजा है
निज कर्म में रंग भरना परम धरम ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 07/11/2019
द्वितीय प्रस्तुति
प्रयासरत हूँ हार नही मैं माना हूँ
निज मंजिल को आज अब पहचाना हूँ ।।
कैसे-कैसे मंजिल पर पहुँचना होता
खिला हुआ उस्ताद खुदा को जाना हूँ ।।
उस्ताद है उस्ताद से क्या डरना है
हमें उसके बताए पथ पर चलना है ।।
सब कुछ उस पर सौंप कर चलता चल
परिणाम कि फिकर उसको ही करना है ।।
कोशिशों में कमी नही करना 'शिवम'
जान जाओगे इक दिन सारे मरम ।।
सभी बँदोवस्त करके उसने भेजा है
निज कर्म में रंग भरना परम धरम ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 07/11/2019
दिनांक:7नवंबर19
विषय: कोशिश
विधा :कविता
कोशिशें कभी बेकार नही जाती हैं
काम आये या न आये
पर हार नही जाती
समय के साथ कोशिशें
बड़ी हो जाती हैं
अपने काम न सही
दूसरों के काम आती हैं
छोटी छोटी कोशिशें
ढाल बन जाती हैं
कभी डूब जाने पर भी
पतवार बन जाती हैं
कोशिशें ही जिन्दगी में
बहार लाती हैं
पतझड़ में भी श्रृंगार लाती हैं
कोशिशें सफलता की चाभी होती हैं
कभी अटका कर कभी भटकाकर
मंजिलों पर पहुंचा देती हैं
कोशिशें कभी बेकार नही जाती हैं।।
मनीष कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली
विषय: कोशिश
विधा :कविता
कोशिशें कभी बेकार नही जाती हैं
काम आये या न आये
पर हार नही जाती
समय के साथ कोशिशें
बड़ी हो जाती हैं
अपने काम न सही
दूसरों के काम आती हैं
छोटी छोटी कोशिशें
ढाल बन जाती हैं
कभी डूब जाने पर भी
पतवार बन जाती हैं
कोशिशें ही जिन्दगी में
बहार लाती हैं
पतझड़ में भी श्रृंगार लाती हैं
कोशिशें सफलता की चाभी होती हैं
कभी अटका कर कभी भटकाकर
मंजिलों पर पहुंचा देती हैं
कोशिशें कभी बेकार नही जाती हैं।।
मनीष कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित
रायबरेली
भावों के मोती
शोर्षक- कोशिश
कोशिश जारी है मेरी
कविता लिखने की।
मन की हर एक बात
लफ़्ज़ों में उकेरने की।
कभी न कभी तो मुझे
कामयाबी मिल जाएगी।
कौशिश करने वालों की
कभी हार नहीं होती।
बस यही ख्याल लिए
इस राह पर चल पड़ी हूं।
कुछ नया लिखने का
रोज प्रयास कर रही हूं।
भूल कौई हो जाए तो
उसका सुधार कर रही हूं।
धीरे-धीरे ही सही मैं
मंजिल की ओर बढ़ रही हूं।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
शोर्षक- कोशिश
कोशिश जारी है मेरी
कविता लिखने की।
मन की हर एक बात
लफ़्ज़ों में उकेरने की।
कभी न कभी तो मुझे
कामयाबी मिल जाएगी।
कौशिश करने वालों की
कभी हार नहीं होती।
बस यही ख्याल लिए
इस राह पर चल पड़ी हूं।
कुछ नया लिखने का
रोज प्रयास कर रही हूं।
भूल कौई हो जाए तो
उसका सुधार कर रही हूं।
धीरे-धीरे ही सही मैं
मंजिल की ओर बढ़ रही हूं।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
07/11/2019
"कोशिश/प्रयास"
सेदोका
1
जीवन पथ
बाधाओं से न भय
हौसले हो बुलंद
सदैव बढ़
हासिल है मुकाम
कोशिशें कामयाब।
2
मायावी जग
चलना सत्य पथ
जीवन का संघर्ष
कठिन तप
इसां प्रयासरत
मंजिल पदार्पण
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"कोशिश/प्रयास"
सेदोका
1
जीवन पथ
बाधाओं से न भय
हौसले हो बुलंद
सदैव बढ़
हासिल है मुकाम
कोशिशें कामयाब।
2
मायावी जग
चलना सत्य पथ
जीवन का संघर्ष
कठिन तप
इसां प्रयासरत
मंजिल पदार्पण
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
विषय -कोशिश/ प्रयास
दिनांक 7-11 -2019
कोशिश करने वालों ने, सदा परचम लहराया है।
कायरों ने सदा,छल कपट को गहना बनाया है ।।
लोगों की छल भरी मुस्कान,तू समझ ना पाया है।
उगते सूरज को देख,सदा जीवन में उजाला लाया है।।
तुझमें शक्ति अपार, पहचान तू क्यों नहीं पाया है।
गंगा धरा पर लाने वाला,भागीरथ कहलाया है ।।
कोशिश करने वाला,कोयले से हीरा निकाल लाया है।
राह मुश्किल आसान कर,मंजिल को तूने पाया है।।
बन निडर आगे बढ़,तूफान कौन रोक पाया है।
तूफान जो टकराया,वह कहीं नजर ना आया है।।
कोशिश करने वाला सदा, चहूँओर छाया है।
कहती वीणा आंधियों में,दीपक वही जगमगाया है।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 7-11 -2019
कोशिश करने वालों ने, सदा परचम लहराया है।
कायरों ने सदा,छल कपट को गहना बनाया है ।।
लोगों की छल भरी मुस्कान,तू समझ ना पाया है।
उगते सूरज को देख,सदा जीवन में उजाला लाया है।।
तुझमें शक्ति अपार, पहचान तू क्यों नहीं पाया है।
गंगा धरा पर लाने वाला,भागीरथ कहलाया है ।।
कोशिश करने वाला,कोयले से हीरा निकाल लाया है।
राह मुश्किल आसान कर,मंजिल को तूने पाया है।।
बन निडर आगे बढ़,तूफान कौन रोक पाया है।
तूफान जो टकराया,वह कहीं नजर ना आया है।।
कोशिश करने वाला सदा, चहूँओर छाया है।
कहती वीणा आंधियों में,दीपक वही जगमगाया है।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिन :- गुरुवार
दिनांक :- 06/11/2019
शीर्षक :- प्रयत्न/कोशिश
कट जाएगी स्याह रात ये,
फिर आयेगी चाँदनी रात भी।
चल उठेंगे चिराग उजालों के,
आयेगी सितारों की बारात भी।
करो तुम प्रयत्न जरा मन से,
सफलताओं का अंबार लगेगा।
अडिग हौसलों के आगे तुम्हारे,
हिमालय भी अदना सा लगेगा।
कोशिश की नहीं मंजिल कोई,
कोशिश तो सफर है मंजिल का।
कोशिश पाटेगी हर भंवर को..
दिलाएगी किनारा साहिल का।
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
दिनांक :- 06/11/2019
शीर्षक :- प्रयत्न/कोशिश
कट जाएगी स्याह रात ये,
फिर आयेगी चाँदनी रात भी।
चल उठेंगे चिराग उजालों के,
आयेगी सितारों की बारात भी।
करो तुम प्रयत्न जरा मन से,
सफलताओं का अंबार लगेगा।
अडिग हौसलों के आगे तुम्हारे,
हिमालय भी अदना सा लगेगा।
कोशिश की नहीं मंजिल कोई,
कोशिश तो सफर है मंजिल का।
कोशिश पाटेगी हर भंवर को..
दिलाएगी किनारा साहिल का।
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
हर साँस भरेगी इक जोश नया।
प्राणों का हर्ष नहीं कम होगा।
बाधाएं प्रति-पल हो कितनी।
कदापि, संघर्ष नहीं कम होगा।
जीवन आदर्श का ले अवलंबन।
मिथ्या जग का, तज आलिंगन।
मन का उत्कर्ष नहीं कम होगा।
कदापि, संघर्ष नहीं कम होगा।
तिल- तिल बहता लहू शिरा मे।
मन की यदि शेष है उत्कंठाए।
प्राणो का अमर्ष नहीं कम होगा।
कदापि, संघर्ष नहीं कम होगा।
प्राणों का हर्ष नहीं कम होगा।
बाधाएं प्रति-पल हो कितनी।
कदापि, संघर्ष नहीं कम होगा।
जीवन आदर्श का ले अवलंबन।
मिथ्या जग का, तज आलिंगन।
मन का उत्कर्ष नहीं कम होगा।
कदापि, संघर्ष नहीं कम होगा।
तिल- तिल बहता लहू शिरा मे।
मन की यदि शेष है उत्कंठाए।
प्राणो का अमर्ष नहीं कम होगा।
कदापि, संघर्ष नहीं कम होगा।
तिथि 7/11/2019/गुरुवार
विषय *प्रयास /कोशिश *
विधा॒॒॒ _'काव्य'
प्रयास लगातार कर रहा हूं।
मगर धीरे प्रगति कर रहा हूं।
परिणाम परमेश्वर के हाथ
सही समझआया कर रहा हूं।
कोशिश करें हमारा काम है।
आलसी सदा से बदनाम है। परोपकार पुरुषार्थ कर जो
मरे देशहित वही सुनाम है।
चलें चाहे कछुऐ की गति हम।
रखें सदैव आपसी सुमति हम।
प्रगति पथ पर अग्रसर रहेंगे
नहीं करें प्रयासों में क्षति हम।
अरमां यही आसमां चूम लूं।
हर कोना धरती का घूम लूं।
अपनी कोशिश करता रहूं मैं
पहुंच शिखर मस्ती में झूम लूं।
स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय जय श्रीराम रामजी
भा *प्रयास/कोशिश*काव्य
7/11/2019/गुरुवार
विपिन सोहल
विषय *प्रयास /कोशिश *
विधा॒॒॒ _'काव्य'
प्रयास लगातार कर रहा हूं।
मगर धीरे प्रगति कर रहा हूं।
परिणाम परमेश्वर के हाथ
सही समझआया कर रहा हूं।
कोशिश करें हमारा काम है।
आलसी सदा से बदनाम है। परोपकार पुरुषार्थ कर जो
मरे देशहित वही सुनाम है।
चलें चाहे कछुऐ की गति हम।
रखें सदैव आपसी सुमति हम।
प्रगति पथ पर अग्रसर रहेंगे
नहीं करें प्रयासों में क्षति हम।
अरमां यही आसमां चूम लूं।
हर कोना धरती का घूम लूं।
अपनी कोशिश करता रहूं मैं
पहुंच शिखर मस्ती में झूम लूं।
स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय जय श्रीराम रामजी
भा *प्रयास/कोशिश*काव्य
7/11/2019/गुरुवार
विपिन सोहल
भावों के मोतीं
विषय :- कोशिश / प्रयास
मैदान खडे़ हो प्रयास करो ।
प्रयास करो तुम प्रयास करो ।
तटस्थ रह कर्म सायास करो ।
संकल्प हिम्मत साहस भरो ।
मन में जीत की आशा भरो ।
बाँटो खुशियाँ नैराश्यता हरो ।
जग में तुम नव उल्लास भरो।
जीत की तुम शांत साँस भरो।
आनन्द का तुम अहसास करो।
सीखों और तुम अभ्यास करो।
प्रयास करों तुम प्रयास करो।
प्रयास करो तुम प्रयास करो ।
मधु पालीवाल
स्वरचित
7/11/2019
विषय :- कोशिश / प्रयास
मैदान खडे़ हो प्रयास करो ।
प्रयास करो तुम प्रयास करो ।
तटस्थ रह कर्म सायास करो ।
संकल्प हिम्मत साहस भरो ।
मन में जीत की आशा भरो ।
बाँटो खुशियाँ नैराश्यता हरो ।
जग में तुम नव उल्लास भरो।
जीत की तुम शांत साँस भरो।
आनन्द का तुम अहसास करो।
सीखों और तुम अभ्यास करो।
प्रयास करों तुम प्रयास करो।
प्रयास करो तुम प्रयास करो ।
मधु पालीवाल
स्वरचित
7/11/2019
दिनांक-7/11/2019
विषय-प्रयास
नन्ही चींटी की सुनी थी कहानी
अथक प्रयास ख़ुद कहता ज़ुबानी ।
रहती इसमें ऊर्जा समाहित
भाव सकारात्मकता का निहित ;
संघर्ष संग सीख सिखलाता
ज़िंदादिली का दृष्टांत बन जाता ।
हौंसलों की गाथा कहलाता
इसका ताप खरा सोना बनाता
व्यक्तित्व में चार चाँद लगाता
उत्कृष्टता का पैमाना बन जाता ।
हारी बाज़ी को पलटा देता
मंज़िल को क़रीब ला देता ,
नव ऊर्जा का संचार है करता
आशावादिता का भाव जगाता ।
प्रयास कहलाता है साधना
कठिन हालातों की आराधना ;
बिन प्रयास ना कुछ हासिल होता
प्रयोगों का आधार प्रयास होता
जीवन के हर क्षेत्र में काम आता ।
बिन इसके कहाँ कोई मुक़ाम पाता
बिन प्रयास कुछ ना सम्भव होता
प्रयोगों से प्रयास सम्भव होता ।
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित एवं मौलिक
विषय-प्रयास
नन्ही चींटी की सुनी थी कहानी
अथक प्रयास ख़ुद कहता ज़ुबानी ।
रहती इसमें ऊर्जा समाहित
भाव सकारात्मकता का निहित ;
संघर्ष संग सीख सिखलाता
ज़िंदादिली का दृष्टांत बन जाता ।
हौंसलों की गाथा कहलाता
इसका ताप खरा सोना बनाता
व्यक्तित्व में चार चाँद लगाता
उत्कृष्टता का पैमाना बन जाता ।
हारी बाज़ी को पलटा देता
मंज़िल को क़रीब ला देता ,
नव ऊर्जा का संचार है करता
आशावादिता का भाव जगाता ।
प्रयास कहलाता है साधना
कठिन हालातों की आराधना ;
बिन प्रयास ना कुछ हासिल होता
प्रयोगों का आधार प्रयास होता
जीवन के हर क्षेत्र में काम आता ।
बिन इसके कहाँ कोई मुक़ाम पाता
बिन प्रयास कुछ ना सम्भव होता
प्रयोगों से प्रयास सम्भव होता ।
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित एवं मौलिक
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