Wednesday, November 6

"निमंत्रण "06नवम्बर 2019

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें 
ब्लॉग संख्या :-558
दिनांक-06/11/2019
विषय-निमंत्रण


नयनों के मौन निमंत्रण.......को

अनचाहे मन, चाहे तो पढ़ लेना।
नैनो के मौन निमंत्रण को।।
हर धड़कन पर नाम तुम्हारा।
खुले अधरों के आमंत्रण को।।
कनक मंजरी कर्ण के।
नछत्र तुम्हारे नित्य-निरंतर।।
अधर चांदनी पी रहे।
उम्मीदों के नव अभ्यंतर को।।
स्मृतियों की बाहों में।
यामिनी व्याकुल खड़ी सी,
चांदनी सेज सजा रही,।
वेदना कसकती इतनी भयंकर।।
अंग अंग नव छंद आज।
देख पुकार उठी धड़कन,
रुधिर में बढी रक्त की लालिमा
सांसो का क्रम हुआ इतना परिवर्तन।।
कष्टों की कलमुँही रात में।
आधी रात की काली सच ने
वेदनाओं ने रचे नए-नए स्वयंवर।।
खुलेआम जालिम दुनिया ने।
हंसते हंसते आंसू लड़ियों को लुटे।
अगणित बूंदे गिरी पृष्ठ पर
भावनाओं के कोरे झरने फूटे।।
नहीं मिला कोई भी अब तक अपना प्रियवर।
साक्षी रहे कलयुग के अवनी और अंबर।।
प्यार के सरहद पर खड़ी रहूंगी
जलते दीपक की तरह तत्पर.......

मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज

विषय: निमंत्रण
दिनांक 06/11/2019


शीर्षक : निमंत्रण विनायक

प्रथम निमंत्रण आपको, रिद्धि सिद्धि के दातार।
लापसी भोग स्वीकार कीजिए,देवों के आधार।।

देव गजानन्द संग आते , ब्रह्मा विष्णु महेश।
लापसी भरपेट खाते, धार बाल गोपाल भेष।।

गेहूँ का दलिया लीजिये ,घी में लीजे भून।
गुड का पानी मिलाइए स्वाद लीजिए दून।।

थाली में जब डालिए, कण -कण खिल जाए।
पी ना सके कोई इसे,चम्मच या हाथ से खाए ।।

काजू बादाम खोपरा गिरी की कतरन बुरकाय।
घी का चम्मच बड़े स्नेह से लापसी में मिलाय ।।

शादी में प्रथम मंगल भोग गणेश जी के लगाए।
परिवारजन आनन्द से लापसी प्रसाद पा जाए ।।

राजस्थानी लापसी 'की बात अजब निराली।
जो कोई खाय इसे बन जाए सूरमा भोपाली।।

घर में जब मीठा ना हो,और पाहुना आ जाए।
अतिथि देवो भव: लापसी से प्रसन्न हो जाए।।

भोजन की थाली में स्वादिष्ट लापसी सजाय।
लापसी के स्वाद से छप्पन भोग फेल हो जाय।।

पाक शास्त्री 'रिखब' बना, पाक कला निपुण।
लापसी की महिमा गाते,बाल,वृद्ध संग तरूण।।

रचयिता
रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित
जयपुर राजस्थान
विषय शीर्षक
विधा काव्य

06 11 2019,बुधवार

पाक तुम्हें है खुला निमंत्रण
आर पार की अब हो जाये।
चार बार किया पराजित
हर बार तू मुँह की खाये।

स्नेह निमंत्रण हर जन को
आओ स्नेह सुधा बरसाओ।
द्वेष ईर्ष्या स्वार्थ त्यागकर
मातृभूमि मिल महकाओ।

करुणा दया विनीत भाव ले
हम जगत निमंत्रण देते हैं।
स्वस्थ सुखी जीव जगत हो
विश्व मङ्गल कामना करते हैं।

यह भरतों का देश है भारत
गङ्गा यमुना ताज हिमालय।
प्रिय निमंत्रण हर मानव को
अद्भुत है भारत स्वर्गालय।

स्वरचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

शीर्षक--निमंत्रण
प्रथम प्रस्तुति


🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

कलियों ने जो मँहक न फैलायी होती
भौंरों की कतार ये यूँ न आयी होती ।।

आमंत्रण हम स्वयं दें पर जाऐं भूल
यही इक सच्चाई बयां करें ये फूल ।।

पतंगे भी आ जायँ हैं दिये के देख
कुदरत है ये कुदरत के अजब लेख ।।

फैशन के भी ढब आज दिखलायें रंग
क्यों नही होंय मस्तानों के मन मलंग ।।

खुला निमंत्रण नज़रों को नज़र डालिये
परीक्षा की घड़ी ये खुद को सँभालिये ।।

क्या शरारती पन ये क्या शैतानी है
नित नई झगड़े कि बन रही कहानी है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 06/11/2019

निमंत्रण

जब मिलता हमें ,

किसी आयोजन का निमंत्रण ।
खुशी से प्रफुलित होता मन ।
पढ़ते उसे दो बार ।
पढते निमंत्रण में,
नाम हैं किस किसका ?
जोड़ते हैं अपना नाता,
क्या हैं उसका !
खो जाते कभी,
रिश्तों के बिछडे यादों में ।
फिर निमंत्रण की तारीख,
देखते एक बार ।
और निश्चित तिथि पर ।
जाने को होते तैयार ।
होती सब,
हलचल शुरु ।
टिकट विकट की,
राह बिकट करते पार ।
नए कपडे,नया श्रृंगार ।
चाहें उम्र हो पचास पार ।
मिलते हैं निमंत्रण की,
निर्धारित जगह पर ।
होता हैं खुशनुमा,
एक एक क्षण ।
हँसी ठिठोली,
मस्ती भरी बोली ।
बिसरी हुई यादे,
जीवित होता हैं,
यादों का उपवन ।
छोड़ते फिर,
निमंत्रीत जगह का आंगन ।
एक बार भावुक होता मन ।
फिर एक बार,
मिलने का करते वादा ।
होते एक दूसरे से जुदा ।
ऐसे जीवंत करता जीवन ।
एक निमंत्रण ।

@प्रदीप सहारे

नमन भावों के मोती,
आज का विषय, निमंत्रण
दिन, बुधवार,

दिनांक, 6,11,2019,

देता है निमंत्रण वो पथ मुझको,
वीरों के जहाँ पदचिन्ह बने ,
अपनों का मोह त्याग कर जो,
देश भक्ति में लीन हुए ।

देते हैं निमंत्रण उजड़े चमन मुझे ,
जो फूलों से कभी लबरेज रहे।
कहते हैं मुझे हर वक्त यही वे ,
क्यों नफरत की हम भेंट चढ़े ।

आमंत्रित करें उनकी आहें,
जो श्रम करके खाली पेट रहें।
माँगतीं न्याय वे कातर आँखें ,
हर सुख से हम क्यों मरहूम रहें।

नेह निमंत्रण दे सोते जगते,
देखो कोई भी दुःखी न रहें।
अपना ले चल गम सबके ,
अब नहीं अकेले कोई दर्द सहे।

चलो कर लें बोझ दिल के हल्के,
मन मस्तिष्क में न बात कोई खटके ।
जब देंगीं निमंत्रण हमें उसकी बाहें,
चिरनिद्रा में सुकून से तभी जा सकें ।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश

भावों के मोती
शीर्षक- निमंत्रण
व्यथित हृदयों की दर्द भरी पुकार है, हे किशन!

स्वीकार करो हम दुखियों का मौन निमंत्रण।।
आओ प्रभु, धरा पर हो रहा अन्याय, अत्याचार,
संवेदनाएं मर गई,फैल रहे,
मनोमष्तिस्क में कुविचार।
सबके हृदय से कलुष हरो, रखकर अपने पावन चरन।
बड़ी देर से पुकार रहे तुझे, विकल होकर भक्तगण।
आओ आकर बुझाओ,सबके नैनों की प्यास भगवन्।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

दिनांकः-6-11-2019
वारः रविवार

शीर्षकः-निमन्त्रण

एक बार निमंत्रण मुझे, कवि सम्मेलन से आया ।
पाकर उसको मैं, प्रसन्नता से फूला नहीं समाया ।।

निश्चित तिथि को मैं, सम्मेलन स्थल पर जा पहूँचा ।
पूछा एक कवि ने,श्रोताओं के बारे में है क्या सोचा ?

श्रोता यहाँ के पारखी, जानिये उनका आप मिज़ाज ।
आती नहीं पसन्द तो, देते चेहरा कवि का बिगाड़ ।।

सुनकर बातें उनकी, मैं बहुत अधिक ही घबराया ।
भय के मारे जाकर, मध्य में श्रोताओं के पठाया ।।

वक्र दृष्टि आयोजक महोदय की,तभी मुझ पर तनी ।
बुलाने के लिये मुझे,उठायी उन्होंने अपनी तर्जनी ।।

होकर लाचार मैं, हुआ जाकर मंच पर विराजमान ।
होने वाले अंजाम का भी अपने, करने लगा ध्यान ।।

कुछ समय के बाद ही, नम्बर मेरा भी जब आया ।
कविता पाठ करने के लिये, गया मुझको बुलाया ।।

कांपते हुये थर थर पहूँचा गया, श्रोताओं के सामने ।
एक हाथ से दिल, तथा दूजे से लगा माईक थामने ।।

भय श्रोताओं का ही था मुझ पर बहुत बड़ा छाया ।
इसीलिये जाकर मैंने भी, प्रेम से उनको ही पटाया ।।

कविता से पहले, कर बध्द नमन आपको हूँ करता ।
अपने बारे में श्रीमन,कुछ तथ्य़ो को मैं हूँ समझाता ।।

आये नहीं आपको श्रीमन, कविता मेरी यदि पसन्द ।
मचाईये नहीं श्रीमन,आप बिल्कुल भी कोई हुड़दंग ।।

जूते, चप्पल, टमाटर आदि भी, मारना होगा व्यर्थ ।
बेचकर उन्हें बाजार में, कर लूंगा पैदा पर्याप्त अर्थ ।।

उठा कर पत्थर बड़ा सा आप, सिर पर मेरे मारना ।
मारते समय उसे, हाथ न चाहिये आपका कांपना ।।

लगते ही पत्थर के जनाब, थम जायेंगी मेरी श्वास ।
पहुँच जाउंगा पल भर में ही, अपने प्रभु के पास ।।

मिलेगी प्रिया भी मेरी मुझे, वहीं प्रभु के ही पास ।
मिल जायेगा मुझे भी तब, अपनी प्रिया का साथ ।।

पाकर छुटकारा मुझ से, मिलेगा आपको सन्तोष ।
मिल कर प्रिया से अपनी, हो जाएगा मेरा भी रोष ।।

मिल जायेगा श्रीमान, मेरे व्यथित हृदय को चैन ।
सतायेगा न हीं फिर तो दिन ही मुझको, न ही रैन ।।

सुनाता हूँ कविता मैं, उठा पत्थर हो जाओ तैयार ।
आये नहीं पसन्द आपको, कर देना मुझ पर वार ।।

सुने बिना ही कविता के, उठा लिये उन्होंने पत्थर ।
उठा चप्पल भागा मैं भी, मंच तुरन्त ही छोड़कर ।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
व्यथित मुरादाबादी

मन भावों के मोती मंच
विषय-निमंत्रण
दिनांकः 6/11/2019

बुधवार
विधा-पद्य
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:

किसी को यदि बुलाना हो,सादर उन्हें निमंत्रण दो।
जब घर पर आ जायें वे,आदर सहित आसन दो।।

निमंत्रण दो यदि अतिथि को,उनका सादर सत्कार करो।
व्यंजन शुद्ध,सरस हो,भेंट देकर विदा करो ।।

बिना आदर सत्कार,जो भी कहीं चले जाते ।
तिरस्कार होता उनका,आकर घर पर पछताते ।।

खुले खान पान सामान,खुला निमंत्रण दे रहे।
लापरवाही करते खुद,रोगों को घर बुला रहे ।।

करें साफ नहीं फल, शब्जी ,रोगाणु इनमें रहते हैं ।
बिना धोयें पकायें खाते,रोगों को निमंत्रण देते है ।।

हाथ न धोयें भोजन पूर्व,यह भी रोग निमंत्रण है ।
कार्य बाधित,अर्थ हानि,उनको खुला निमंत्रण है ।।

हैं फैशन में जो लिप्त ,बालायें आज हो रही।
खुद अपने ही हाथों से,अपनी ईज्जत खो रही।।

आधे खुले वसन पहने,युवकों को खुला निमंत्रण है ।
दोषी ठहराते युवकों को,क्यों देती उन्हें आमंत्रण है ।।

स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर 'निर्भय,

स्वरचित

ह्रदय की गहराई से भेज रही हूँ निमंत्रण तुम्हें प्रिये
आँखें बिछाये रास्ता निहार रही हूँ बड़े प्यार से
बीत रहा हैं देखो प्रेम भरा ये मौसम सुहाना

बस हर कदम तुमसे ही मिलन की आस हैं .

आओ चले फिर यादों के झरोखे में
जी लें फिर से पल वो अनमोल
भेज रही हूँ फिर से निमंत्रण तुम्हें पिया
सावन की फुहार में मोर मोरनी संग नृत्य करने का .

आओ फिर से देखें ह्रदय में खुशियों की मुस्कान
भेज रही हूँ तुम्हें फिर से निमंत्रण पिया
राहों को फूलों से सजाने की
फिर से वो पूनम के चाँद संग प्रेम रस में जाने की .

तुम दीप मैं बाती पिया
बिन दीप के व्यर्थ हैं ज्योति पिया
निमंत्रण तुम्हें भेज रही हूँ फिर से पिया
फिर से बन जायें हम प्रेमी और प्रेमिका पिया और बन जायें जीवन भर के साथी पिया .
स्वरचित :=रीता बिष्ट

सभी मित्रों को नमन 🙏
दिनांक - 06/11/2019
वार - बुधवार
विषय - निमंत्रण

🌻🌻🌻🌻🌻🌻
निमंत्रण
🌻🌻🌻

धूप कुछ मद्धम हुई है,
साँझ अलसाने लगी है।
बहती शीतल मंद व्यार भी,
अन्तर झुलसाने लगी है।

देख शरद की अंगराइयां,
मन कुछ विह्वल हो चला है।
बैठ दूर निरख - निरख,
हुआ तृप्त मन कब भला है?

निहार मन का चाँद नभ में,
उपवन सा अन्तर खिला है।
तृप्त दृग जो हो न पाते,
पर चकोर को क्या गिला है?

पर्ण - पर्ण पर झिलमिलाती,
बूँदों में कुछ भाव पले हैं।
दो मन के अनुबंध हैं जो,
बूँद बनकर नेह ढले हैं।

उलझाता सा द्वंद में,
मन का तार छूता कौन है?
भाव प्रस्फुटित हो न पाता,
निमंत्रण भी मौन है !

स्व रचित
डॉ उषा किरण
पूर्वी चंपारण, बिहार

नमन मंच भावों के मोती
6/11/2019
विषय-निमंत्रण

===============

इठलाती बलखाती
लहरें किनारे चली आई हैं
तीर ने दिया है
लहरों को निमंत्रण

भंवरे मधुर स्वर में
गुंजन करते चले आ रहे हैं
गुलाबी गुलाब ने
दिया है उन्हें निमंत्रण

शोख चंचल तितलियां
खिंची चली आ रही हैं
उपवन के रंग बिरंगे
सुमनों का पाकर निमंत्रण

धरा नभ को पुकार रही
सूरज सिंधु में समा रहा
प्रकृति का कण कण
देता समस्त जगत को आमंत्रण

रे चंचल चितचोर मन!
तू किस दिशा को चला
ज़रा ठहर तो सही
अंतर्मन दे रहा तुझे आमंत्रण!

अंदर ज्ञान का दरबार सजा है
ख़ज़ानों का भंडार भरा है
अनंत काल से पुकार रहा दिल
दे रहा तुझे नेह आमंत्रण

कैसे रुकू मैं,व्यथित हूँ मैं
किसकी सुनूं मैं
किसकी करूँ अनसुनी मैं
मेरे मन देवता का
स्वीकार करूँ स्वीकार निमंत्रण...।।

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®

06/11/2019
"निमंत्रण"

कविता
################
नेह निमंत्रण दे पास बुलाया
दिल के द्वारे वंदनवार लगाया
स्वागत आरती थाल सजाया
राहों पे पलकों को बिछाया।

दिन-रात आस लगाए बैठी हूँ
हर आहट पे राहे तकती हूँ
मन का द्वार भी खोल रखी हूँ
निमंत्रण तुम्हें जबसे भेजी हूँ।

इंतजार किया है वर्षो हमने
इतना न तड़पाओ दिल को
दिल तुम्हारा है पाषाण क्यों
निमंत्रण पाकर न आये प्रिये।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

भावों के मोती
विषय- निमंत्रण

_____________________
मेरे अँगना में तुलसी मैया,
पधारो श्रीहरि तुम्हें निमंत्रण,
दुल्हन बनी हैं आज तुलसी मैया
मेरे अँगना में तुलसी मैया।।

सोलह श्रृंगार भेंट चढ़ाऊँ,
शालिग्राम से ब्याह कराऊँ,
देहरी पे दीप जलाऊँ तुलसी मैया,
मेरे अँगना में तुलसी मैया।।

नेह बरसता रहे सदा तेरा,
सुंदर सजाऊँ में तुलसी बिरवा,
रच-रच भोग लगाऊँ तुलसी मैया,
मेरे अँगना में तुलसी मैया।।

तुमसा हुआ न कोई सती,
दिवस कार्तिक एकादशी,
हो रहा श्रीहरि से विवाह तुलसी मैया,
मेरे अँगना में तुलसी मैया।।
*अनुराधा चौहान*
सादर नमन
06-11-2019
एक पुरानी रचना


मूक निमंत्रण
हृदय-तृष-चातक अति प्यासा
स्वाति-सरस-बरस अभिलाषा
नेह-बूंद चाहत लिए मन तरसे
तड़प तड़ित स्फुलित अंबर से
विहँसे चाँद गगन, मगन चकोर
संधि-वेला रुचिर पवन झकोर
तन ताप भाप धरामुख निःसृत
मन आप कल्प गल्प में विस्मृत
अवलंब-आकांक्षी हरित वल्लरी
विकल कली केसर कलित भरी
अधर मौन कंपित द्युति स्पंदन
नयनों का मृदुल मूक निमंत्रण
भाव-भ्रमर शब्दों में कहाँ समाते
निपट नादान काश तुम पढ़ पाते
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित

भावों के मोती।
विषय: निमंत्रण
दिनांक 6.11.2019.

------------------------------–--------------
बिछड़ गया था प्यार हमारा,
अरसा बीत गया अब तक।
खोजा बहुत तुम्हें मनाने को,
पर खोज न पाया आज तलक।।
आंखें रोयीं, ये दिल भी रोया,
नींदें रूठी,सब कुछ खोया।
तुमको पाने की चाहत में,
मैंने अपना सब कुछ खोया।।
अमर-प्यार की कसमें तेरी,
करके याद निस-दिन रोया।
जीवन शून्य हो चला था मेरा,
अकस्मात तेरा निमंत्रण पाया।।
तेरे हिम्मत की बलिहारी,
तूने अदम्य साहस दिखलाया।
मरे हुए को फिर से मारा,
विवाह-निमंत्रण हमें भिजवाया।।
(स्वरचित) ***"दीप"***

नमन भावो के मोती
दिनांक -६/११/२०१९
शीर्षक-निमंत्रण।


पाकर तेरा नेह निमंत्रण
खिल उठा मन बगिया मेरा
मिला निमंत्रण,जागी आशा
मिल बैठेंगे साथ सभी।

पाकर तेरा नेह निमंत्रण
आहृलादित हुआ मन मेरा
फिजाओं में घुल गया रौनक
हवाओं में मस्ती छाई

स्वस्थ मिलन होगा सभी का
आदान प्रदान भावों के होगें
अपना पराया भुल कर
अनुराग जगेगा सबके अंदर।

माना कि यह सब भ्रम है मेरा
फिर भी है आने की तैयारी
इन्द्रजाल है दुनिया सारी।
फिर भी जीने की है तैयारी।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

नमन भावो के मोती
विषय निमंत्रण
6/11/19


जब प्रकृति का
यौवन खिलता है
धरा की छवि
अदभुद होती है
सतरंगी रंगों का राजा
धरती रंगीन सजाता है
भ्रमरे गुंजन करके
कलियों पर मंडराते है
मनमस्त होकर तितली
इठलाती ओर इतराती है
रिमझिम वर्षा की बूंदे
अतुलित आनंदित
होकर मन मे
बह।रे बिखराती
मिट्टी की सोंधी सोंधी
खुसबू
संग हवा के बहती है
एक कवि के कोमल
मन मे
कविता की किरणें जग जाती
खो जाता है
वो ले उड़ान
कल्पनाओ का ले बखान
मिल जाता उसको
निमंत्रण
रवि किरणों के समान

स्वरचित
मीना तिवारी
Damyanti Damyanti 

नमन जय माँ शारदा |
विषय_निमत्रंण
भेज रही स्नेह निमंत्रण करना तुम स्वीकार |

आओ कान्हा राह तक रही पलक पावडे बिछाय |
न करना बहाना कर्म का चितचोर जानती हूँ मैतेरा नटखट अंदाज |
भोजन षटरस बनाया ,थाल सजा रखा कब आओगे नैन थकै राह तकते |
निमंत्रण पा यू ठुकरवो न कहैन्या,
राधे को प्रिया न तरसाओ |
ये समझलो अगर न आये पा निमत्रंण तो ,जानते हो न
बस आ जाओ सब भूखे हे न सताओ |
पाप तुमको भी लगेगा यह समझ लो |
न समझौ राधे भोली ,हम भी भोले |,
न नचवाया तो नाम गोपागंनाये वराधे हमारा |
स्वरचित_दमयंती मिश्रा
तिथि _6/11/2019/बुधवार
विषय_"निमंत्रण "

विधा॒॒॒_काव्य

भेजोगे जब नेह निमंत्रण
हम दौडे दोडे आऐंगे।
बोले सबसे श्रीराम जी
हम तबतक खूब सताऐंगे।

अरसे से तंम्बू में बैठे
कभी आई तुम्हें शर्म नहीं।
देखें मुझसे लगाव कितना
क्या कोई बाकी धर्म नहीं।

विश्वास आस्था मरी हमारी
यहां बने हुऐ सभी स्वार्थी।
मानव दानव में क्या अंतर
कब बन पाया तू परस्वार्थी।

झूठे प्रेम प्यार दिखलाते।
कुछ औपरिकता जतलाते।
नहीं निमंत्रण हमें आवश्यक
अगाध आस्था ही बतलाते।

स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय जय श्री राम रामजी

१भा " निमंत्रण " काव्य (16)
6/11/2019/बुधवार
दिनांक : 06.11.2019
वार : बुधवार

आज का शीर्षक : निमंत्रण
विधा : काव्य

गीत

मौन निमंत्रण हमें मिल रहा ,
अधरों पर मुस्कान है !!
मन की बात कही ना जाये ,
ऐसे धड़के प्राण हैं !!

सभी सुधारस यहाँ चाहते ,
यह ना अपने हाथ है !
गरल सभी को चखना पड़ता ,
सुने कौन फरियाद है !
अगर मोहना छवि मिल जाये ,
जीवन इक मधुगान है !!

पंख पसारे उड़ना चाहें ,
सब भरते परवाज हैं !
मनचाहा विस्तार कहाँ है ,
मंज़िल भी इक राज है !
पल दो पल की खुशियां सारी ,
इसका रहता भान है !!

बड़े जतन से जगी उम्मीदें ,
तुमसे लागी प्रीत है !
अपने ही बैचेन यहाँ पर ,
यही अनोखी रीत है !
मिले खनकती हँसी अगर तो ,
दुख का तो अवसान है !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश 
भावों के मोती
विषय- निमंत्रण

_________________
चले आना ना रुकना तुम,
न कहना कि बंदिशें हैं।
यह बंदिशें हट जाएंगी,
अगर दिल में मोहब्बत है।।

हवा अब लाख मुँह मोड़ें,
रोकें से रुकें ना हम।
गुजर रहें हैं हसीं लम्हें,
कोई अब न रोके पथ।
चले आना ना रुकना तुम,
न कहना कि बंदिशें हैं।।

मेरे इस मौन निमंत्रण को,
नहीं ठुकरा देना तुम।
कहीं लोगों की बातों में,
न मुझको भूल जाना तुम।
चले आना ना रुकना तुम,
न कहना कि बंदिशें हैं।।

गवाह यह वादियाँ सारी,
गवाह चाँद-तारे भी।
उमर ना बीत जाए सारी,
तेरे इंतज़ार में ही।
चले आना ना रुकना तुम,
न कहना कि बंदिशें हैं।।

चले आएं हैं ठुकराकर,
ज़माने की बंदिशों को।
नहीं जाना हमें लौटकर,
छोड़ आएं राहों को।
चले आना ना रुकना तुम,
न कहना कि बंदिशें हैं।।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित

निमंत्रण
छंदमुक्त


भेजा निमंत्रण
माँ ने
आ जाओ बेटा
इस असहाय की
कभी सुध ले जाओ
नहीं है फुरसत
अभी माँ
आऊंगा फिर
कभी माँ
रखना तू
ख्याल अपना

भेजा निमंत्रण
ससुराल से
दामाद जी
बन गये हो
बेटे के पिता तुम
आ जाओ जल्दी
अगले दिन ही
आ गया वो
जो असमर्थ था
आने के लिए
माँ के निमंत्रण पर

भेजा निमंत्रण
यमराज ने
"माँ" है बेटा
तेरा नकारा
जा रहा हूँ
हरण प्राण उसके

कहा माँ ने
बिलख कर
" हे यमराज
बदल ले नाम
अपने निमंत्रण पर
अभी शुरू हुई है
बेटे की जिंदगी
मैं जी चुकी जिंदगी

हो नकारा
भले ही बेटा
लेकिन है
वह मेरा बेटा

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

06/11/19
निमंत्रण

***
बड़े प्यार से निमंत्रण दिया
आज शुद्ध हवाओं को ।
नेह निमंत्रण स्वीकार कर
आना भी चाहा हवाओं ने ।
पर शर्त रखी आने की
और फिर कभी न जाने की !
क्या मेरा मान रख पाओगे
स्वार्थ, विकास के नाम पर
मेरी अस्तित्व बचा पाओगे।
पल भर के लिये मैं किंकर्तव्यविमूढ़
क्या जवाब दूँ ....
मुस्करा कर बोली सुगंधित हवा
यही तुम्हारा निमंत्रण है
क्या सोच रही
इतना विलंब जवाब देने में
स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रहा
बच्चों के जीवन से खिलवाड़
या फिर विदेशी कंपनी
का नया उपकरण ..
अभी समय है
चेत जाओ
निमंत्रण दिया है
मान रख लो ..
फिर
निर्णय लेने में मैंने देरी न लगाई
सभी की तरफ से हामी भर आईं ।

स्वरचित
अनिता सुधीर
विषय निमन्त्रम
विधा कविता

दिनांक 5.10.2019
दिन बुधवार

निमन्त्रण
💘💘💘💘

निमन्त्रण में गहरा स्नेह होता
भावों का बरसता मेह होता
ह्दय का एक लगाव होता
सम्बन्धों का प्रादुर्भाव होता।

निमन्त्रण की भाषा में मीठापन है
निमन्त्रण की भाषा में अपनापन है
निमन्त्रण की भाषा में सँस्कृति की होती गरिमा
निमन्त्रण में भाषा के सौन्दर्य की होती ललिमा।

इसलिये ही निमन्त्रण में आकर्षण है
निमन्त्रण में प्रेमाबद्ध समर्पण है
निमन्त्रण यदि स्वीकार नहीं कर पाता कोई
तो उसमें भी उसके मृदु भावों का अर्पण है।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
दिनांक 06/11/2019
विषय:निमंत्रण

बिधा :छंद मुक्त
बहुत छोटे से ज्ञान से शिव सती के एक प्रसंग पर लिखने की कोशिश की है।पूरे तथ्य अभी बांध नही पाई तो आप सब की टिप्पणियों से सुधार करने का प्रयास करूगी।

ब्रहमा पुत्र दक्ष जी ने रचा एक महायज्ञ
आमंत्रित सब देव थे रखा सबका मान
क्रोध वश शिव को निमंत्रण न दिया
दिखाने को अपना क्रोध ...
सती दक्ष की पुत्री थी करने लगी थी जिद्द
निमंत्रण न होने पर भी पहुंची पिता के द्वार।
पर वहा पर पिताकृत पर सती को आया ज्ञान
चूक उससे हूई थी तो त्यागे वही पर प्राण।
इस पर शिव का क्रोध रूप हुआ बहुत विकराल
जटा खोल तांडव कर ले कर चले पत्नी सती को
घूम घूम ब्राह्मण मे कोपित हुआ शरीर ।
पृथ्वी नाश के संदेह मे विष्णु ने छोडा अपना चक्र
सती माँ के शरीर के हुए इक्यावन खंड
सभी खंड कहलाने लगे सती पीठ के नाम ।
सबकी आस्था विशेष सबका करू वंदन
एक सीख बतला गया निमंत्रण की विशेषता
कही भी जाओ नही बिना आदर निमंत्रण पाय
वरना होगे अपमानित होगे दुष्परिणाम ।
एक और भी सीख है जब विवाह मे बंध गये
पति पत्नी दोनो रखे एक दूसरे के मान का ध्यान ।

स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
विषय :- "निमन्त्रण"
दिनांक :- 6/11/2019

विधा :- "काव्य"

क्यों बैठे चुपचाप यारो क्यों बैठे चुपचाप.........
सुलगती ये वादियाँ तुमको बुलातीं
दहकती ये घाटियाँ पीड़ा दिखातीं
ऊँचे पर्वत घने जंगल छिन रहे हैं धीरे धीरे
घाटों का विकराल क्रंदन बढ़ रहा है धीरे धीरे
जैसे किसी वियोगिन का फल रहा हो श्राप.........
क्यों बैठे चुपचाप.........
फटी धरती की बिवाई रुदन कृषक का पुकारे
सेठ का सिर कर्ज़ भारी पूछता कैसे उतारे
पेट भरता सारे जग का फाके में जीवन गुजारे
मग्न हैं सब खुद ही खुद में कौन अब उसको निहारे
झेलता परिवार सारा अनचाहा संताप........
क्यों बैठे चुपचाप..........
आज चारों तरफ फिरतीं अजगरों की टोलियाँ
हर चौराहे जल रहीं संस्कार की होलियाँ
भ्रातृभाव खत्म जग से द्वेष हर दिल में समाया
सद्कर्मों पर पड़ गई है कुटिलता की काली छाया
बेहयाई घुसी हर दिल सुनी ना पदचाप.................
क्यों बैठे चुपचाप..........
देश की सीमा धधकती दे रही तुम को निमन्त्रण
शूर हो स्वीकार लो जो सरहद से आया आमन्त्रण
भारती तुम को बुलाती आन पर उसकी बनी है
शान को उसकी सहेजो भृकुटी अरि की तनी है
गर सोचने में समय बीता होगा पश्चात्ताप...........
क्यों बैठे चुपचाप यारो क्यों बैठे चुपचाप...........
***************************************

दिनांक -6/11/2019
विषय- निमंत्रण


अनदेखी इनसान बहुत करता आया
प्रकृति सहनशीलता को बिसराया
साधनों संसाधनों का दोहन करता
विवेक प्रतिदान में मौन ही हो जाता
गर्मियों में भयंकर आग बरस रही
जीव जंतु संग धरती भी तप रही
ऋतुओं ने अपना चक्र बदल लिया
मौसम ने भी संग रुख मोड़ लिया
पराली जलाना घातक बतलाया
कृषक तंगहाली का मजाक उड़ाया
सब लोग धुआँ -धुआँ चिल्ला रहे
परस्पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे
वायु प्रदूषण ने हाहाकार मचाया
प्रदूषण मौन निमंत्रण समझ आया
निज गिरेबाँ ज़रा झाँककर तो देखो
पटाखा दिवाली पर सोचकर देखो
भौतिक साधनों पर अंकुश लगाओ
बढ़ती आबादी कोई धारा लगाओ
अभी मात्र मौन निमंत्रण है इसका
परिचित प्रदूषण बद नाम जिसका

संन्तोष कुमारी ‘संप्रीति ‘
स्वरचित एवं मौलिक

06/11/2019
गीत
विषय:-"निमंत्रण"

कर्म के पथ पर आमंत्रण
भोर में सन्देश समाया है
क्षितिज की देहरी पार कर
रवि निमंत्रण लाया है.....

पंछी चहके, बगिया महके
मंद समीर झूमें औ बहके
जीवन यूँ मुस्काया है
रवि निमंत्रण लाया है.....

लहरों पर रश्मि का खेल
अम्बर पर मेघों का मेल
विश्वास जगाने आया है
रवि निमंत्रण लाया है.....

ओस के लडडू पत्तों के थाल
धरा का करके गाल गुलाल
अंधेरा हटा कर आया है
रवि निमंत्रण लाया है.....

स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद
निमंत्रण
मुस्कुराहट को निमंत्रण भेजकर
खोलती हूँ मैं हृदय के द्वार

स्नेह-संबल हर दुखी इंसान का
भेंट करती यह विजय का हार ।।

फेंककर गंभीरता का आवरण
हो निमंत्रित मुस्कुराती छाँव
थम नहीं जाए कहीं यह क्रम कभी
मुश्किलों से थक रहें जब पाँव।।

नफरतों की ढ़ाह दे दीवार जो
है बड़ी शक्ति छुपी इस भाव में
मुस्कुराहट पाटती दूरी सभी
मुस्कुराना है खुशी की चाव में।।

स्वरचित "पथिक रचना"

No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...