Friday, November 22

"अपना-पराया"22नवम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-573
शीर्षक : अपना पराया
दिनांक 22/11/2019


अपना पराया

दुनिया की इस भागदौड़ में,
मानव सारे रिश्ते भूल गया।

अपने ही सुख के सागर में,
पराये का दुख भूल गया।

कौन है अपना कौन पराया?
यह वक्त ने हमें बता दिया।

अपना कर्म करता है मानव,
धर्म ईमान को छोड़ दिया।

जहाँ दिखा स्वार्थ अपनापन,
वहाँ नया रिश्ता जोड़ दिया

अपने कब पराये बन जाते?
पराये कब अपने सिखा दिया।

स्वार्थ गंगा में डूबकी लगाकर,
मानवता का पाठ पढ़ा दिया।

अपनेपन की इस दुनिया में,
पराये कीर्तिमान बना‌ दिया।

अपने पराये का भेद छोड़कर,
'रिखब' ने गले लगा लिया।

रचयिता
रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'@
स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित


विषय अपना,पराया
विधा काव्य

22 नवम्बर 2019,शुक्रवार

दुःख दर्द में साथ निभाता
वह जीवन में अपना होता।
मित्र धर्म निभाता हिय से
सदा बीज मीत हित बोता।

स्वार्थ साधन लिप्त रहे जो
अपना हित सर्वोपरि माने।
वह पराया होता जीवन भर
स्नेह विमल वह .क्या जाने?

रक्त के रिश्ते फीके रहते
अपने बनते सदा पराये।
बन कृष्ण साथ निभाते
वे ही जीवन सदा संवारे।

अपना और पराया दोनों
सुख दुःख सम जीवन होते।
सत्य स्नेह जीवन अपनापन
पाप पराये अनवरत रोते।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

विधा--मुक्तक
प्रथम प्रस्तुति


कब कहाँ तक साथ निभाये कोई
कठिन है बात करना साफ़गोई ।।
अपने पराये बनें वक्त न लगे
सच्चाई जिसे भायी आँख रोई ।।

यह अहसास 'शिवम' किसे न मिला
यहाँ अपनों ने अपनों को छला ।।
अपने पराये है वक्त की बातें
जमाने का जादु किस पर न चला ।।

यहाँ गैरों ने साथ निभाया है
और अपनों ने दिल दुखाया है ।।
पढ़कर इतिहास अहसास हुआ
मन कसमसाया अश्रु आया है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 22/11/2019

दिनांक- 22/11/2019
विषय- "अपना-पराया"
िधा- छंदमुक्त कविता
******************
न कुछ अपना न कुछ पराया,
ये सब तो हैं बस मोह- माया,
आपसी झगड़ा इनसे बनता,
फिर मनु किसी की न सुनता |

कर्म अगर होंगे जो अच्छे,
जग नाम तेरा गुनगुनायेगा,
अपना-पराया जो तु करेगा,
हे मनु!चैन से मर भी न पायेगा |

ईश्वर ही देता है सबकुछ,
उस पर घमंड तेरा, तुच्छ,
जैसा-जैसा कर्म तु करेगा,
वैसा-वैसा ही फल पायेगा |

हरि नाम का भजन तु कर ले,
सच्चा सुख मिल जायेगा,
अपना-पराया के जंजाल से,
बस वो ही मुक्ति तुझे दिलायेगा |

स्वरचित- *संगीता कुकरेती*

22/11/19
अपना पराया

***
इसका महाराष्ट्र से कोई लेना देना नहीं है 🤑🤑मुहावरों का प्रयोग

"कहीं की ईंट,कहीं का रोड़ा "
"भानुमति ने कुनबा जोड़ा ।"
कौन "अपना है ,कौन पराया" है
"गधे को बाप "बनाया है
सबके "हाथ पाँव फूले" हैं,
दोस्ती में "आँखे फेरे "है।
"फूटी आंख नही सुहाते "
वो अब "आँखों के तारें" है ।
कब कौन किस पर" आंखे दिखाये"
कब कौन कहाँ से "नौ दो ग्यारह हो जाये" ।
"विपत्तियों का पहाड़" है
"गरीबी मे आटा गीला "हो जाये ।
"बंदरबांट "चल रही
"अंधे के हाथ बटेर " लगी
पुराने "गिले शिकवे भूले "हैं
"उलूक सीधे कर" रहे
"उधेड़बुन में पड़े"
"उल्टी गंगा बहा" रहे
जो "एक आँख भाते नहीं "
वो "एक एक ग्यारह हो रहे"
कौन किसको "ऊँगली पर नचायेगा"
कौन" एक लाठी से हाँक पायेगा"
"ढाई दिन की बादशाहत" है
"टाएँ टाएँ फिस्स मत होना "।
"दाई से पेट क्या छिपाना "
बस "पुराना इतिहास मत दोहराना" ।

स्वरचित
अनिता सुधीर

दिनांक - 22/11/2019
दिन - शुक्रवार

विषय - "अपना-पराया"

ऐ जिंदगी तुझे जीने का उसूल क्या है
तु मुझे कभी बताती क्यों नहीं
"कौन अपना कौन पराया" है यहां
छिपे चेहरों से नकाब उठाती क्यों नहीं
हमें जो कभी खुश देखना ही नहीं चाहते
उनको इस दिल से हटाती क्यों नहीं
चल अब बता भी दे तू मुझे
नफरत को जहां से मिटाती क्यों नहीं
सबके दिलों में फिर से एक बार
प्यार से "दीप" जलाती क्यों नहीं
बता न जिंदगी मेरी प्यारी जिंदगी

*दीपमाला पाण्डेय*
रायपुर छग

भावों के मोती
अपना पराया

22/11 /19
कितने किये पड़ाव पार....
जीवन के देखे उताव चढ़ाव....
कुछ स्मृति हैं मन में शेष...
जो देती हैं अपने परायों का भेद...
बहुत करीव दिल के मेरे...
जो दे गए अपनेपन की सौगात
अश्रु लिए मेरे थाम.....
कितने रहे दूर मगर वो थे मेरे
दिल के पास.....
कुछ ने दिये इतने गहरे वार...
कहने को वो अपने थे...
पर किये पीठ पर कई प्रहार
लगता था रहे हैं पीठ ठोक...
लेकिन देख रहे थे जगह...
कहाँ किये जाये पीठ पर वार...
अपने मिलते हैं मुश्किल से
जो जान लेते बिन कहे दिल का हाल..
बारिश से भीगे चेहरे पर..
बहते आँसू लेते पहचान....
इस जग में
कुछ ही हैं अपने
जिनको रखना... सदा सम्हाल
पूजा नबीरा काटोल
नागपुर

भावों के मोती
शीर्षक- अपना पराया
जिसको भी अपना समझा

उसने ही पराया कर दिया।
हमको हमारे साये तक ने
कभी हमारा साथ न दिया।।

झूठे हैं जहां के रिश्ते-नाते
वक्त पड़े तो काम न आते।
डरता है ये शीशे सा दिल
इन पत्थरों के पास आते।।

अच्छी लगती मुझको तन्हाई
कभी न करती जो बैवफाई।
जब मुंह मोड़ा सबने मुझसे
साथ मेरा देने चली आई।।

अब खुद के साथ रहना है
यही इरादा कर लिया मैंने।
बेवफ़ा दुनिया के रिश्तों से
अब किनारा कर लिया मैंने।।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

दिनांक-23/11/2019
विषय- पराया


गुजरी रात अमावस की
जब पूनम आने वाली थी
सिंदूर लगाकर श्रृंगार किया
क्या थी ऐसी अथाह वेदना
क्यों तूने मेरा तिरस्कार किया

सानिध्य की थी मैं प्यासी तेरी
मृगनयनो की तासी थी मैं तेरी
हर्ष हमारा क्यों छीना तुने
प्रेम संसर्ग को क्यों बेधा तूने
एक ठिठोली खिलती थी
स्पर्श तुम्हारा रंगीली थी
अखियां मेरी छबीली थी
बैरन रतिया नशीली थी

प्रत्येक पहर मेरे रैना बिन तेरे कैसे रहेंगे
मधुयामिनी की बैरन स्मृतियां कैसे सहेंगे
प्रथम मिलन की मधुर स्मृति थी
कैसी तेरी निष्ठुर ठिठुर कृति थी

बिस्तर की हर सिलवट पर महक तुम्हारी आती थी
विरह वेदना का आघात सहूगी मैं अपने मन पे
क्यों तुम छोड़ गए मुझे वृद्धावस्था के यौवन पे
निर्जीव देह रह गई मात्र श्वासों के ऋण तन पे

स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज

तिथि _22/11/2019/शुक्रवार
विषय _*अपने पराये *

विधा॒॒॒ _काव्य

सही समय पर काम जो आऐ।
वही हमारा अपना कहलाऐ।
कौन है अपना कौन पराया
हमको साथी समझ नहीं आऐ।

स्वार्थ पूर्ण समाज हमारा।
असमंजस हुआ मनवा सारा।
ये जीवन सफल होगा कैसे
जबतक मनभेद न मिटे हमारा।

कुछ तो हम सामंजस्य बनाऐं।
प्रेम प्रीत यहां सभी बढाऐं।
रहें अगर रागद्वेष मिटाकर
अभी ये शिखरों पर चढ जाऐं।

स्वरचितःः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
NL Sharma 
विषय-अपना/पराया
विधा-लावणी छंद

दिनांकः 22/11/2019
शुक्रवार
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:

कोई पराया नहीं हमको ,सारे लोग हमारे अब।
हमको सबसे हिलमिल रहना,एक दूजे के सहारे अब।।

आज एक वतन हमारा हैं हम तो भाई भाई सब।
हमको नहीं शत्रुता किसी से,दिल में बहुत समाई अब।।

करें अलग फूट डालकर जो,कभी नहीं उनकी सुनते ।
हम करें प्यार से बातें सब,नहीं किसी से जल भुनते ।।

जब इनकी दाल नहीं गलती,तब हमको भड़काते ये।
अब समझो इनकी चालाकी,हथकंडे अपनाते ये।।

हमारी एकता से डरकर,सारे हमसे जलते अब ।
रहो सदा सब हिलमिल,क्या मंसूबे तब।।

संकट में साथ रहे जो भी,वही हमारा होता ।
कभी काम न आये वक़्त पर,कभी किसी का क्या होता ।।

स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर 'निर्भय,

अपना-पराया

करते
अपना पराया
जिन्दगी
यूँ ही गुजर
जाती है
आया
खाली हाथ है
खाली ही
चला जाता है

ऐ जिन्दगी
तू इतनी भी
हंसीं नहीँ है
कि
अपना पराया
करते तूझे
जिया जाये
वो तो
हम ही हैं
जो तूझे
ढोये जा
रहेँ हैं

करते नहीँ
माता पिता
अपना पराया
पालते है वो
भूखे कह कर
अपने मुँह
का कौर
खिला कर

आ जाता है
जब सब हाथ
संभल जाता है
जब पंछी
उड़ जाता है
अपनों को ले कर

अपने पराये का
खेल है निराला
नहीँ है कोई
अपना प्यारा
जब तलक है
स्वार्थ उनका
पराये को भी
बना लेते है
अपना

निभाओ
रिश्ता ऐसा
दूध में मिले
पानी जैसा
मत बोलो
वह पराया है
मत बोलो
यह अपना है
खाये और रहेँ
मिलबांट कर

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

विषय -अपना पराया
दिनांक 22-11-2019
अपना पराया में,फर्क करना मुश्किल हो गया।
जो अपना वह पराया,पराया अपना हो गया।।

अपना कहने से भी,देखो कोई अपना ना हुआ ।
दिल ने जिसे माना, वो पराया अपना हो गया।।

एक वो पराया, जिसने जिंदगी को नाम दिया ।
वह मेरा अपना,जिंदगी वीरान कर चला गया ।।

रिश्तो के बीच, गलतफहमी ने घर कर दिया ।
अपनों को देखो, पल में पराया कर गया।।

लोभ लालच ने,जब दिमाग में घर कर दिया।
बेगाना बना ऐसे, राह भ्रमित वो हो गया ।।

खून के रिश्तो को,वो इस कदर बिसरा गया ।
घर बीच आंगन में दीवार बना, पराया हो गया।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

21/11/2019
"अपना/पराया"

छंदमुक्त
################
जन्म के साथ रिश्तों में बंध गई
नई-नई दुनिया लगी बड़ी अनोखी
कुछ कही कुछ रह गई अनकही
जग की सारी रस्मों को निभाई।

समझी कहाँ जग की चतुराई
दुनिया की सारी रस्में निभाई
सरलता मेरी बन गई दु:खदाई
आहिस्ता-आहिस्ता हो रही पराई

अपने पराये का भेद न समझ पाई
दिल खोल कर प्रीत सबपर लुटाई
नादानियाँ अपनी कहाँ समझ पाई
शायद यही जग को रास न आई ।

कहीं हो न जाए जग- हँसाई
दिल से भुलाकर सारी रूसवाई
आशीष देकर अब कर दो विदाई
बेटियाँ तो होती ही है पराई।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल।।

22-11-19
विषय - अपना - पराया

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

मुक्तक
--------

कोई नहीं पराया होता,
सबको अपना मान,
वेद कहें हम सब होते हैं,
ईश्वर की संतान,
भेद बढ़ाना बुरी बात है,
कुटिल जनों की रीत-
मिलजुल कर सब काम करें तो,
काम बनें आसान।।
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया

22/11/19
अपना पराया

*********

था समपन्न जब मैं
सारा जहाँ अपना था
पूछते थें सब हाल घर आकर
चाय की चुस्की संग
वह मिठास प्यारा था।

हर दिन मनाते होली
हर रात दिवाली था
अपनों के बीच खिलखिलाता मैं
सौभाग्यशाली था।

पर अब ये यादें
कुछ धुंधला हो रहा था
अवस्था मेरी घट रही
जेब भी हल्का हो रहा था।

शायद वक्त की करवट
भाँप लिया था सभी ने
उदास रहने लगा घर मेरा
सन्नाटा दिखता हर तरफ
सब मौन हो गया था।

मैं तो अब भी खड़ा वहीं था
देख रहा था सिमटते
सभी अपनों के दायरे को
चुपचाप समझ रहा था
अपने- पराये के फासले को......।

स्वरचित: - मुन्नी कामत।


22/11/2018
बिषय ,,अपना ,पराया

वक्त समझा देता कौन अपना पराया
पद पैसे ने कद काठी को बढ़ाया
दौलत के मद में अपनों की भी न पहचान
सिर चढ़कर बोलता रावण सा अभिमान
धन बालों के हजार ऐब छिप जाते
पैसे में तो दिल क्या जिगर के टुकड़े भी बिक जाते
अपने ही अपनों को देते हैं धोखा
अजब गजब ए व्यापार अनोखा
स्वार्थ सिद्धि में गधे को बाप कह देते
नहीं तो देखते ही आँख फेर लेते
हर एक व्यक्ति इसी दौड़ में शामिल है
दिखावटी की हर तरफ सजी हुई महफिल है
स्वरचित,सुषमा, ब्यौहार

लघुकथा अपने पराये
***
मीना (रोहन से ): बेटा आज मेरी दोस्त बहुत दिनों बाद आईं है । तुम आज हम दोनो के लिए चाय बना लाओ प्लीज...
तब तक हम दोनों बातें करते है।
(तभी रसोईघर की आवाज पर)
क्या हुआ रोहन ,एक भी काम तुमसे ढंग से नहीं होता ,एक चाय बनाने को कहा और तुम पूरा घर सर पर उठा बैठे । ये कह कर अपने बेटे पर नाराज हो रही थी ।
राखी : अरे मीना इसमें नाराज़ होने की क्या बात है ,तुम भी न वैसे की वैसे ही रही।
मीना (राखी से ) :तुम थोड़ी देर बैठो ,मैं बस गयी और आयी चाय ले कर ।
सुरभि : चाची आप भी बैठिए और आराम से बातें करिये, मैं आप दोनो के लिए चाय और नाश्ता ले आती हूँ।
(सुरभि ट्रे ले आ रही थी कि अचानक संतुलन बिगड़ने से चाय गिर गयी और कप भी गिर कर टूट गया ।)
मीना :कोई बात नहीं बेटा ,अभी साफ हो जायेगा ।
(राखी पूरे घटनाक्रम पर अचंभित थी )
राखी :मीना ये तुम्हारा दो व्यवहार , अभी अपने बेटे को ज़रा सी बात पर इतना डाँट दिया और सुरभि को कुछ नहीं कहा तुमने !
मीना :क्या बताऊं मैं तुम्हें ,तुमने मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया, मेरे लिए दोनों बच्चे बराबर हैं । सुरभि को मैंने ही अपने पास पढ़ने के लिए बुलाया था,बड़े शहर में इसकी पढ़ाई अच्छी हो जाएगी और भविष्य बन जायेगा ।उसको भी पहले मैं ग़लतियों पर टोक देती थी , पर सासु माँ और पति ने# अपने पराए की दीवार खींच रखी है । कुछ बोलो तो कहते है कि पराए कीं बेटी है इसलिए डाँटती रहती है । पहले इन लोगों को समझाने की कोशिश की । इन्हें मेरा प्यार और उसके भविष्य के प्रति चिंता नहीं दिखती ।उसकी भलाई के लिए कुछ कह दूँ ,तो इन्हें बुरा लगता है ।घर में रोज तनाव होने लगा था। मैं अपने बच्चे को भी तो गलतियों पर टोकती हूँ न ! बताओ मैं कहाँ गलत हूँ ,कब तक एक प्रश्नचिन्ह मेरे व्यवहार पर लगा रहेगा !
राखी :मीना का दर्द समझ रही थी।
घर वालों की ओछी मानसिकता मीना को अपने पराये का भेद अनुभव करा रही थी।वो सही होते हुए भी पराये पन का दंश झेल रही थी।

स्वरचित
अनिता सुधीर
👉अपना/परायादिवस👉शुक्रवार
दिनांक👉२२/११/२०१९
👉👉👉👉👉👉
अपना /पराया
÷÷÷÷÷÷÷÷÷=
तृषित प्राण मन भाव मेरे,
विकल हुवे क्यो है,
तोड़ दो ये बंधन देखूँ ,
क्षितिज के उसपार अपना क्या है,
गये जो इस पथ पर पराया हो,
उनका कल्प भरा ठिकाना क्या है,
उन स्मरणो भरे श्वासों के घेरे प्राची बन मुझे घेरे,
व्यथित जीवन सिन्धु के निश्वास लहर का ठोर क्या है,
बुझा जो दीप उस शिर का आलोक आकाश कैसा है,
बांधा था बंधन चीर तन्ता का अग्नि के फेरे,
वो देह ग्राहता विम्ब बनी,
उस चीर की शुलभ साधना क्या है,
जीवन पुलक से नभ को राह ली,
देकर गये कल्पना मय वेदना क्यो है,
कहदो कि स्नेहिल रश्मियो के बंधन झूठे,
फिर काहेको अपना,पराये का रंग मय संसार क्यो है,
जीवन की परिस्थिति यो की बाड़ में चाँद तारे नही डूबे,
डूबने को करूणा भरी मृदुल जीवन धारा ही क्यो है,
दृष्टि ज्योति, सूर्य उगा, चाँद तारे डूबे,
जीवन आदि का अरमान अधूरा,
अपना बन पराया विश्वास का प्रकाश डूबता क्यो है ।।गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक
पूर्ण मोलिक

आज का विषय, अपना-पराया
दिन, शुक्रवार

दिनांक, 2 2,11,2019

यहाँ अपना - पराया कोई नहीं, कुछ मिले जुले से चेहरे हैं।
कहीं फूल खिले कहीं पतझड़ है, कहीं तनहाई के मेले हैं ।
प्रायः स्वार्थ बस बनें अपने यहाँ, मतलब की दुनियाँ वसाई है ,
हित नहीं सध रहा जिनसे हैं, लगते सब वही पराये हैं।
रिश्ते खून के कभी अपने थे, अब तासीर न वो रह पाई है।
यहाँ कर्तव्य हीनता के कारण ही , अपने सब हुए पराये हैं ।
जीवन ज्योति प्रकाशित हो, हमें अंधियारे पथ के मिटाने है,
अपना - पराया सब छोड़ छाड़, गम सबके गले लगाने हैं।

स्वरचित, मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश,
विषय - अपना - पराया
********************

एक गीत
#########
कौन है अपना , कौन पराया ,,,,
अब तक हमको समझ न आया,,।
जिनको हमने था ,अपनाया
आज वो हमसे हुआ ,,,पराया।

कल तक जो था, अनजाना सा,
आज है,,, अपना सबसे प्यारा ।
माया का ये खेल है, ऐसा ,,,,,
कोई मिल गया , कोई है बिछड़ा ।

सबसे हिलमिल रहना जग में ,,
पता नहीं कब आए बुलावा ,,,
छोड़ कर फिर जाना होगा,,,,।
जीवन का क्या ,, नहीं भरोसा ,,।

स्वरचित -" विमल '

विषय - अपना/पराया
22/11/19

शुक्रवार
मुक्तक

अपना और पराया कहकर जो मतभेद बढ़ाते हैं।
वे समाज के बीच कभी समभाव नहीं ला पाते है।
ऐसे नेताओं को यश व कीर्ति कहाँ मिल पाएगी-
जो केवल कुर्सी की खातिर जनता को लड़वाते है।

अपना और पराया कैसा ,जब हम सब जन एक हैं।
ईश्वर की सम्पूर्ण सृष्टि में भाव सभी के नेक हैं।
अंतर्मन में हर मानव के है समुचित समभाव यहाँ-
इसीलिए तो ऐक्य भाव की टूटीं कभी न टेक हैं।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

भावों के मोती
विषय--अपना-पराया

-----------------------------
फ़लसफ़ा ज़िंदगी का
कुछ ऐसा रहा
खुद पर ही खुद का यक़ीन न रहा
बदलते मौसम की तरह
कुछ इस तरह बदले रिश्ते
रिश्तों के रुख पर यकीं न रहा
खूब की थी हमने सबको
समेटने की कोशिश की
अपना-पराया करने में
खुशियों का कारवां
न जाने कब गुज़र कर
यादों की किर्चों का
गुबार पीछे छोड़ गया
महक भी न पाए थे
प्यार के फूल गुलिस्ताँ में
नफ़रत की आग में
राख बना बिखर गया
दिल के किसी कोने में
कहीं ज़िंदा है यह भरोसा
लौटेगा फिर एक दिन मौसम
बहार की खुशियाँ लिए
समेट सको समेट लेना
एक बार फिर रिश्तों को
जज़्बात का तूफ़ान थमा
तो फिर लौट नहीं पाएगा
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित

"भावों के मोती"
विषय-अपना /पराया

दिनांक-22/11/2019

क्यूँ हम रिश्तों
को तोलते हैं ।

उसमें भी फिर
अपनो और परायों
को खोजते हैं ।

जितना सच और
झूठ में बीच झीना
सा पर्दा होता है ।

वही झीना पर्दा
है अपने पराए के
बीच,न जाने वो
झीना पर्दा कब
हट जाएगा ।

कब
अपने पराये
लगने लगेंगे
और हम महसूस
करेंगे खुद को
लुटा ,ठगा सा ।

लेकिन उस झीने
पर्दे के उस ओर
झांके तो महसूस
होगा वो मेरा अपना
तो अपना था ही नही।

वो तो सोच थी,
चाह थी जो दोनो
को एक दूजे के
साथ रखती थी ।

बस सोच बदल गयी
या चाहत .........…

मौन रहकर खोजो
उस अपने को ।

जो न छोड़ेगा साथ
तुम्हारा अंत तक
देगा साथ
चिरागमन तक ।

वो तू है स्वयं के
लिए स्वयं का ।।

स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर

दिनांक २२/११/२०१९
शीर्षक-"अपना/पराया।


कभी अपना,कभी पराया
दुनिया ने खूब भरमाया है
आशा निराशा तो सबके साथ
कर्म पथ पर बढ़ते जाना है।

दुःख में साथ दिया तो अपना
नही तो सारे पराये है,
ये मानसिकता ठीक नही
सब परिस्थिति के मारे है।

कौन अपना,कौन पराया
सारे जग तो न्यारे है
आंकाक्षाओं को जब नही लादे तो
दुनिया का सफर सुहाना है।

"अहं श्रेष्ठ" का भाव त्यागे तो
जीवन खुशियों का खजाना है
अपना पराया को भुला कर
दुनिया में रंग जमाना है।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
दिनांक:22/11/2019
विधा:पिरामिड

विषय:अपना पराया

हाँ
पिया
मनाया
मन भाया
मोह न माया
अपना पराया
समाज ने बनाया।

जो
किया
भुलाया
न थी माया
प्यार निभाया
अपना पराया
नही समझ आया ।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
विषय----- कौन अपना कौन पराया
विधा-------छंद मुक्त

दिनांक-----22/11/19

*कौन अपना कौन पराया*.........

यहाँ कौन है ? अपना.. कौन ..#पराया..
मन बेचारा... कहाँ .. समझ पाये..
कुछ पराये ....दे जाते हैं...
अपनेपन का... अहसास...
दे जाते हैं... अपनत्व.. ,स्नेह- प्रेम से....
समझते...भावनाऐं...मर्म मन के
मिला लेते हैं... दिल ..से दिल..
और कुछ अपने....
लगते पराये से....
अपनापन का मुखौटा...
लगा कर...प्रेम ...जताने..
का ढ़ोंग रचते हैं ...
वक्त ने हमें ..बताया...
यहाँ... कौन है...#अपना...
कौन...#पराया
वक्त ने ...बहुत कुछ.. दिखाया...
पराये में अपनापन...
और ..अपनों में परायापन...
परन्तु... ऐसा..
विरोधाभास ....आखिर ..क्यूँ.....?

धनेश्वरीदेवांगन "धरा"
रायगढ़(छत्तीसगढ़)


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"अंदाज"05मई2020

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